Book Title: Mahabharat Samhita Part 04
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 17
________________ 13. 2. 10 ] अनुशासनपर्व [ 13. 2. 39 पुत्रो द्युतिमतस्त्वासीत्सुवीरो नाम पार्थिवः / न ह्यल्पं दुष्कृतं नोऽस्ति येनामि शमागतः / धर्मात्मा कोशवांश्चापि देवराज इवापरः / / 10 भवतां वाथ वा मह्यं तत्त्वेनैतद्विमृश्यताम् // 25 सुवीरस्य तु पुत्रोऽभूत्सर्वसंग्रामदुर्जयः।। एतद्राज्ञो वचः श्रुत्वा विप्रास्ते भरतर्षभ / दुर्जयेत्यभिविख्यातः सर्वशास्त्रविशारदः // 11 नियता वाग्यताश्चैव पावकं शरणं ययुः // 26 दुर्जयस्येन्द्रवपुषः पुत्रोऽग्निसदृशद्युतिः / तान्दर्शयामास तदा भगवान्हव्यवाहनः / दुर्योधनो नाम महाराजासीद्राजसत्तम / 12 स्वं रूपं दीप्तिमत्कृत्वा शरदर्कसमद्युतिः / / 2. तस्येन्द्रसमवीर्यस्य संग्रामेष्वनिवर्तिनः / . ततो महात्मा तानाह दहनो ब्राह्मणर्षभान् / विषयश्च प्रभावश्च तुल्यमेवाभ्यवर्तत // 13 वरयाम्यात्मनोऽर्थाय दुर्योधनसुतामिति // 28 रत्नैर्धनैश्च पशुभिः सस्यैश्चापि पृथग्विधैः / ततस्ते काल्यमुत्थाय तस्मै राज्ञे न्यवेदयन् / नगरं विषयश्चास्य प्रतिपूर्ण तदाभवत् // 14 ब्राह्मणा विस्मिताः सर्वे यदुक्तं चित्रभानुना // 29 न तस्य विषये चाभूत्कृपणो नापि दुर्गतः / ततः स राजा तच्छ्रुत्वा वचनं ब्रह्मवादिनाम् / व्याधितो वा कृशो वापि तस्मिन्नाभून्नरः क्वचित् / / अवाप्य परमं हर्षं तथेति प्राह बुद्धिमान् // 30 सुदक्षिणो मधुरवागनसूयुर्जितेन्द्रियः / प्रायाचत नृपः शुल्कं भगवन्तं विभावसुम् / धर्मात्मा चानृशंसश्च विक्रान्तोऽथाविकत्थनः॥१६ नित्यं सांनिध्यमिह ते चित्रभानो भवेदिति / यज्वा वदान्यो मेधावी ब्रह्मण्यः सत्यसंगरः / | तमाह भगवानमिरेवमस्त्विति पार्थिवम् // 31 न चावमन्ता दाता च वेदवेदाङ्गपारगः // 17 ततः सांनिध्यमद्यापि माहिष्मत्यां विभावसोः / तं नर्मदा देवनदी पुण्या शीतजला शिवा / दृष्टं हि सहदेवेन दिशो विजयता तदा // 32 चकमे पुरुषश्रेष्ठं स्वेन भावेन भारत // 18 ततस्तां समलंकृत्य कन्यामहतवाससम् / तस्य जज्ञे तदा नद्यां कन्या राजीवलोचना / ददौ दुर्योधनो राजा पावकाय महात्मने // 33 नाम्ना सुदर्शना राजन्रूपेण च सुदर्शना // 19 प्रतिजग्राह चाग्निस्तां राजपुत्री सुदर्शनाम् / ताहापा न नारीषु भूतपूर्वा युधिष्ठिर / विधिना वेददृष्टेन वसोर्धारामिवाध्वरे // 34 दुर्योधनसुता याहगभवद्वरवर्णिनी // 20 तस्या रूपेण शीलेन कुलेन वपुषा श्रिया। तामग्रिश्चकमे साक्षाद्राजकन्यां सुदर्शनाम् / अभवत्प्रीतिमानग्निर्गभं तस्यां समादधे // 35 भूत्वा च ब्राह्मणः साक्षाद्वरयामास तं नृपम् // 21 तस्यां समभवत्पुत्रो नाम्नानेयः सुदर्शनः / दरिद्रश्वासवर्णश्च ममायमिति पार्थिवः / शिशुरेवाध्यगात्सर्वं स च ब्रह्म सनातनम् // 36 न दित्सति सुतां तस्मै तां विप्राय सुदर्शनाम् // 22 अथौघवान्नाम नृपो नृगस्यासीस्पितामहः / ततोऽस्य वितते यज्ञे नष्टोऽभूद्धव्यवाहनः / तस्याप्योघवती कन्या पुत्रश्चौघरथोऽभवत् // 37 ततो दुर्योधनो राजा वाक्यमाहविजस्तदा // 23 / तामोघवान्ददौ तस्मै स्वयमोघवती सुताम् / दुष्कृतं मम किं न स्याद्भवतां वा द्विजर्षभाः। | सुदर्शनाय विदुषे भार्यार्थे देवरूपिणीम् / / 38 येन नाशं जगामाग्निः कृतं कुपुरुषेष्विव / / 24 / स गृहस्थाश्रमरतस्तया सह सुदर्शनः / म,भा, 17 - 2497 -

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