Book Title: Mahabharat Samhita Part 04
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 16
________________ 13. 1. 61 ] महाभारते [ 13. 2.0 - तस्मादुभी कालवशावावां तद्दिष्टकारिणौ। स्वकर्मप्रत्ययाल्लोकांस्त्रीन्विद्धि मनुजर्षभ // 74 नावां दोषेण गन्तव्यौ त्वया लुब्धक कर्हि चित् // न तु त्वया कृतं पार्थ नापि दुर्योधनेन वै / भीष्म उवाच। कालेन तत्कृतं विद्धि विहता येन पार्थिवाः // 75 अथोपगम्य कालस्तु तस्मिन्धर्मार्थसंशये / वैशंपायन उवाच / अब्रवीत्पन्नगं मृत्युं लुब्धमर्जुनकं च तम् // 62 इत्येतद्वचनं श्रुत्वा बभूव विगतज्वरः / काल उवाच / युधिष्ठिरो महातेजाः पप्रच्छेदं च धर्मवित् // 76 नैवाई नाप्ययं मृत्यु यं लुब्धक पन्नगः / इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि किल्बिषी जन्तुमरणे न वयं हि प्रयोजकाः॥६३ प्रथमोऽध्यायः // 1 // . अकरोद्यदयं कर्म तन्नोऽर्जुनक चोदकम् / प्रणाशहेतुर्नान्योऽस्य वध्यतेऽयं स्वकर्मणा // 64 यदनेन कृतं कर्म तेनायं निधनं गतः / युधिष्ठिर उवाच / विनाशहेतुः कर्मास्य सर्वे कर्मवशा वयम् // 65 पितामह महाप्राज्ञ सर्वशास्त्रविशारद / कर्मदायादवाल्लोकः कर्मसंबन्धलक्षणः / श्रुतं मे महदाख्यानमिदं मतिमतां वर // 1 कर्माणि चोदयन्तीह यथान्योन्यं तथा वयम् // 66 भूयस्तु श्रोतुमिच्छामि धर्मार्थसहितं नृप। यथा मृत्पिण्डतः कर्ता कुरुते यद्यदिच्छति / कथ्यमानं त्वया किंचित्तन्मे व्याख्यातुमर्हसि // 2 एवमात्मकृतं कर्म मानवः प्रतिपद्यते // 67 केन मृत्युर्गृहस्थेन धर्ममाश्रित्य निर्जितः। यथा छायातपौ नित्यं सुसंबद्धौ निरन्तरम् / इत्येतत्सर्वमाचक्ष्व तत्त्वेन मम पार्थिव // 3 तथा कर्म च कर्ता च संबद्धावात्मकर्मभिः // 68 ... भीष्म उवाच / एवं नाहं न वै मृत्युन सर्पो न तथा भवान् / . अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम् / न चेयं ब्राह्मणी वृद्धा शिशुरेवात्र कारणम् // 69 यथा मृत्युर्गृहस्थेन धर्ममाश्रित्य निर्जितः // 4 तस्मिंस्तथा ब्रुवाणे तु ब्राह्मणी गौतमी नृप। मनोः प्रजापते राजन्निक्ष्वाकुरभवत्सुतः / स्वकर्मप्रत्ययाल्लोकान्मत्वार्जुनकमब्रवीत् // 70 तस्य पुत्रशतं जज्ञे नृपतेः सूर्यवर्चसः // 5 नैव कालो न भुजगो न मृत्युरिह कारणम् / दशमस्तस्य पुत्रस्तु दशाश्वो नाम भारत / स्वकर्मभिरयं बालः कालेन निधनं गतः // 71 माहिष्मत्यामभूद्राजा धर्मात्मा सत्यविक्रमः // 6 मया च तत्कृतं कर्म येनायं मे मृतः सुतः। दशाश्वस्य सुतस्त्वासीद्राजा परमधार्मिकः / यातु कालस्तथा मृत्यूमुश्चार्जुनक पन्नगम् // 72 सत्ये तपसि दाने च यस्य नित्यं रतं मनः // 7 भीष्म उवाच / मदिराश्व इति ख्यातः पृथिव्यां पृथिवीपतिः / ततो यथागतं जग्मुर्मृत्युः कालोऽथ पन्नगः / धनुर्वेदे च वेदे च निरतो योऽभवत्सदा // 8 अभूद्विरोषोऽर्जुनको विशोका चैव गौतमी // 73 / मदिराश्वस्य पुत्रस्तु द्युतिमान्नाम पार्थिवः / / एतच्छ्रुत्वा शमं गच्छ मा भूश्चिन्तापरो नृप। महाभागो महातेजा महासत्त्वो महाबलः // 9 -2496 -

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