Book Title: Madhyakalin Gujarati Sahitya Pratiksha Padkar ane Samprapti Author(s): Kantilal B Shah Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ ५८ अनुसन्धान ४६ छे करतां अमने प्रमाणभूत करवानो वधु छे." समयांतरे लखायेली हस्तप्रतोमां पार विनाना जोवा मळता उच्चारभेदोने पाठान्तरमां नजरअंदाज करवा पडे छे. छतां बहारथी सामान्य जणातो उच्चारभेद क्यारेक शब्दसन्दर्भ ज नहीं, आऱ्या संवेदनविश्व बदली नाखतो होय तो काळजीपूर्वक अनी नोंध लेवी आवश्यक बने छे. 'गुणरत्नाकरछन्द मां कोशा गणिका युवान स्थूलिभद्रने प्रथमवार निहाळतां ज अना प्रत्ये स्नेहासक्त बने छे. त्यारे केटलीक प्रतोमां ओनो मनोभाव आ रीते नोंधायो छे-'गणिकाभव स्या मांहि ?' ज्यारे वाचनास्वीकृत प्रतमां ओ 'गणिकाभाव स्या मांहि ?' ओम मळे छे. 'अ' अने 'आ' वच्चेनो आ भेद कोशाना भावविश्वने केटलुं पलटी नाखे छे. हवे गणिकाभाव नहीं; प्रीतिभाव - आ संक्रमण अना व्यक्तित्वने नवो ओप आपे छे. हस्तप्रत-सम्पादनमां केवळ उच्चार ज नहीं, शब्दपर्याय, छन्द-बंधारण, प्रास, काव्यसौन्दर्य वगेरे पण पाठपसंदगीनो आधार बनी रहे छे. मध्यकालीन गुजराती साहित्यमा पद्यसाहित्यनी तुलना गद्यसाहित्यनुं प्रमाण घणुं अल्प छे. अमां बालावबोधो, गद्यकथाओ, वर्णको, पट्टावलिओ, प्रश्नोत्तरी, औक्तिको, विज्ञप्तिपत्रो वगेरेनो समावेश थाय. पण जे सहुमां बालावबोधो अने ते अन्तर्गत प्राप्त गद्यकथाओ मध्यकालीन गद्यसाहित्यनो घणो मोटो हिस्सो छे. आ बालावबोधोनां संशोधन-अभ्यास परत्वे विशेष ध्यान केन्द्रित करवा जेतुं छे. 'जैन गूर्जर कविओ' (द्वितीय आवृत्ति)मां नोंधायेला बालावबोधोनी संख्या लगभग ओक हजारे पहोंचवा जाय छे. जेमा प्रकाशित बालावबोधोनी संख्या ३० थी वधारे नथी. ओ रीते हजी आ क्षेत्रमा केटलुं जंगी काम बाकी छ अनी सहेजे कल्पना करी शकाशे. जोके मोटा भागना बालावबोधो अज्ञातकर्तृक दर्शावाया छे, अने कोई एक ज ग्रन्थ उपर अनेकने हाथे ओ रचायेला छे. आ बालावबोधो तत्कालीन भाषास्वरूपना अभ्यास माटे पण घणा महत्त्वना छे. पद्यनी भाषा अना छन्दोलयने कारणे साहजिकतानी भोंथी ओछेवत्ते अंशे पण ऊंचकायेली होय छे; ज्यारे बालावबोधोना गद्यमां भाषा अनुं साहजिक स्वरूप जाळवी राखे छे. बालावबोध अन्तर्गत दृष्टान्तकथाओमां तळपदा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10