Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
५६
अनुसन्धान ४६
मध्यकालीन गुजराती साहित्य : प्रतीक्षा, पडकार अने संप्राप्ति
कान्तिभाई बी. शाह
विवेचन विभागनी आ बेठकमां वक्तव्य माटे निमन्त्रण आपवा बदल परिषदनो आभारी छु. आ निमन्त्रण मळ्युं त्यारे थोडोक संकोच अनुभवेलो केमके मारे कार्यक्षेत्र मुख्यत्वे मध्यकालीन गुजराती साहित्यना कृति-संशोधनसम्पादन के तद्विषयक ग्रन्थसमीक्षाओ पूरतुं सीमित गणाय. पण मन्त्री श्री रतिलाल बोरीसागरे मने सधियारो आपतां कह्यु के वक्तव्योमा संशोधननी वात थाय ने विषय-वैविध्य जळवाय ओ अभिप्रेत छे ज.
वळी, लगभग ओ समयगाळामां, परिषदना विदाय थतां प्रमुख श्री कुमारपाळ देसाईले 'परब'मां 'प्रमुख श्रीनो पत्र' अन्तर्गत मध्यकालीन कृतिओनां संशोधन-सम्पादन-प्रकाशन परत्वे थती उपेक्षा अंगे चिन्ता प्रगट करेली, अ वाते मने बळ मळ्युं के आ ज तन्तुने पकडीने मध्यकालीन साहित्यक्षेत्र अंगे थोडीक मारी वात पण उमेरी शकाय.
में मारा वक्तव्यनो विषय राख्यो छे : 'मध्यकालीन गुजराती साहित्य : प्रतीक्षा, पडकार अने संप्राप्ति.' आ विषयना अनुलक्ष्यमां, मारे हाथे संशोधित सम्पादन- यत्किचित् काम थयुं छे अनुभवभाथाने पण अहीं दृष्टान्त लेखे उपयोगमां लीधुं छे अटली स्पष्टता करी लउं.
मित्रो, साहित्यजगतमां अवो सूर ऊठतो संभळाई रह्यो छे के "मध्यकालीन गुजराती साहित्य हांसियामां धकेलातुं जाय छे, आवी कृतिओनां घणां ओछां सम्पादनो बहार पडे छे, शाळा-महाशाळाना अभ्यासक्रमोमां अनुं स्थान घटतुं जई रा छ, अध्यापकोमा मध्यकालीन साहित्यना अभ्यास परत्वेनुं वलण ओछु थतुं जाय छे." आ क्षेत्रना तज्ज्ञोनो आ प्रतिभाव छे. अमां रहेला तथ्यने नकारी के अवगणी शकाय अम नथी.
अमाये वळी, छेल्ला सवा दायकामां मध्यकालीन गुजराती साहित्यक्षेत्रे संशोधन-सम्पादन-विवेचन अने मार्गदर्शन द्वारा महत्त्व- प्रदान करनारा संमान्य
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
डिसेम्बर २००८
विद्वज्जनो भोगीलाल सांडेसरा, हरिवल्लभ भायाणी, के.का.शास्त्रीजी, जयन्त कोठारी, शिवलाल जेसलपुरा, रमणलाल ची. शाह अने भूपेन्द्र त्रिवेदीनां निधनथी जाणे के आ क्षेत्रे शून्यावकाश सर्जायो होय अवी लागणी अनुभवाय छे. खालीपो अवश्य वरताय, पण अनो झुरापो तो न ज होय. केमके आ अवकाशपूर्तिनो पडकार छेवटे तो आपणे झीलवानो छे.
ताजेतरमां नेशनल मिशन फोर मेन्युस्क्रिप्ट्स, न्यू दिल्हीओ भारत अने भारत बहारनी हस्तप्रतोतुं सर्वेक्षण हाथ धर्यु छे. ते अनुसार भारतमा ४० लाख अने ओ पैकी गुजरातमा १० लाख हस्तप्रतो होवानो अंदाज छे. अमां जोके संस्कृत-प्राकृतथी मांडी बधी प्रादेशिक भाषाओनी, अनेकविध विषयो धरावती हस्तप्रतोने आवरी लेवाई छे. अमां मध्यकालीन गुजरातीनी प्रतिओ पण समाविष्ट होय ज. पण आपणने निसबत छे ते अनुसार, हस्तप्रतोना केवळ सर्वेक्षण के केवळ यादीओ आगळ आपणुं काम अटकतुं नथी. आपणुं अन्तिम लक्ष्य तो होय सर्वेक्षण अने यादीओनी चावी द्वारा हस्तप्रतोमां जळवायेलो विपुल साहित्यराशि प्रगट थाय ते. सेंकडो नहीं, हजारोनी संख्यामां मध्यकालीन कृतिओनी हस्तप्रतो हजी विविध भण्डारोना दाबडाओ अने पोटलांओमां बद्ध थयेली छे. ओ सौने आपणी प्रतीक्षा छे; आपणा थकी प्रागट्यना अंजवासनी अमने झंखना छे.
पण हस्तप्रत-सम्पादन ओ केवळ ओक कागळ परथी बीजा कागळ परतुं लिप्यन्तर मात्र नथी. आ प्रक्रिया पूरी सज्जता अने क्षमता मागी ले छे. वाचना माटे हस्तप्रत-पसंदगी, लिपिवाचन, तत्कालीन भाषास्वरूपनी जाणकारी, पाठनिर्धारण, अन्य प्रतोने आधारे पाठपसंदगी- आ प्रक्रियामां सम्पादननी ओक चोक्कस शिस्तने अनुसरवानुं होय छे. हस्तप्रतना लेखनकार (लहिया) द्वारा ज थयेली पाठभ्रष्टता अमां मोटो अन्तराय होय छे जेनी शुद्धि माटे क्यारेक ओ ज कृतिनी अन्य प्रतोनो आधार सहायक नीवडे छे. केमके संशोधके छेवटे तो कृतिना मूळ सर्जकनी निकट पहोंचवानुं छे. उदाहरण तरीके 'गुणरत्नाकरछन्द 'मां 'भमुह-कमांणि' (आंखनी भ्रमररूपी कमान) ने बदले केटलीक प्रतो 'भमुह-कामिनी' पाठ ज आपती हती, जे अशुद्ध छे अने अर्थभेद ऊभो करे छे. भायाणी साहेबे कडुं छे के “सवाल हस्तप्रत छापीने सुलभ करवानो
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
५८
अनुसन्धान ४६
छे करतां अमने प्रमाणभूत करवानो वधु छे."
समयांतरे लखायेली हस्तप्रतोमां पार विनाना जोवा मळता उच्चारभेदोने पाठान्तरमां नजरअंदाज करवा पडे छे. छतां बहारथी सामान्य जणातो उच्चारभेद क्यारेक शब्दसन्दर्भ ज नहीं, आऱ्या संवेदनविश्व बदली नाखतो होय तो काळजीपूर्वक अनी नोंध लेवी आवश्यक बने छे.
'गुणरत्नाकरछन्द मां कोशा गणिका युवान स्थूलिभद्रने प्रथमवार निहाळतां ज अना प्रत्ये स्नेहासक्त बने छे. त्यारे केटलीक प्रतोमां ओनो मनोभाव आ रीते नोंधायो छे-'गणिकाभव स्या मांहि ?' ज्यारे वाचनास्वीकृत प्रतमां ओ 'गणिकाभाव स्या मांहि ?' ओम मळे छे. 'अ' अने 'आ' वच्चेनो आ भेद कोशाना भावविश्वने केटलुं पलटी नाखे छे. हवे गणिकाभाव नहीं; प्रीतिभाव - आ संक्रमण अना व्यक्तित्वने नवो ओप आपे छे.
हस्तप्रत-सम्पादनमां केवळ उच्चार ज नहीं, शब्दपर्याय, छन्द-बंधारण, प्रास, काव्यसौन्दर्य वगेरे पण पाठपसंदगीनो आधार बनी रहे छे.
मध्यकालीन गुजराती साहित्यमा पद्यसाहित्यनी तुलना गद्यसाहित्यनुं प्रमाण घणुं अल्प छे. अमां बालावबोधो, गद्यकथाओ, वर्णको, पट्टावलिओ, प्रश्नोत्तरी, औक्तिको, विज्ञप्तिपत्रो वगेरेनो समावेश थाय. पण जे सहुमां बालावबोधो अने ते अन्तर्गत प्राप्त गद्यकथाओ मध्यकालीन गद्यसाहित्यनो घणो मोटो हिस्सो छे. आ बालावबोधोनां संशोधन-अभ्यास परत्वे विशेष ध्यान केन्द्रित करवा जेतुं छे. 'जैन गूर्जर कविओ' (द्वितीय आवृत्ति)मां नोंधायेला बालावबोधोनी संख्या लगभग ओक हजारे पहोंचवा जाय छे. जेमा प्रकाशित बालावबोधोनी संख्या ३० थी वधारे नथी. ओ रीते हजी आ क्षेत्रमा केटलुं जंगी काम बाकी छ अनी सहेजे कल्पना करी शकाशे. जोके मोटा भागना बालावबोधो अज्ञातकर्तृक दर्शावाया छे, अने कोई एक ज ग्रन्थ उपर अनेकने हाथे ओ रचायेला छे.
आ बालावबोधो तत्कालीन भाषास्वरूपना अभ्यास माटे पण घणा महत्त्वना छे. पद्यनी भाषा अना छन्दोलयने कारणे साहजिकतानी भोंथी ओछेवत्ते अंशे पण ऊंचकायेली होय छे; ज्यारे बालावबोधोना गद्यमां भाषा अनुं साहजिक स्वरूप जाळवी राखे छे. बालावबोध अन्तर्गत दृष्टान्तकथाओमां तळपदा
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
डिसेम्बर २००८
शब्दोनो वैभव अने बोलचालनी लढणो धरावतुं गद्य वास्तविकतानी विशेष नजीकर्नु होईने जीवंत लागे छे. कथामां क्यारेक आवतां क्रियापद विनानां टचुकडां वाक्योने लीधे लाघवयुक्त गद्याभिव्यक्ति पण सविशेष ध्यान खेंचे छे. जेमके
___ "गांधार देश. सबल राजा. तेहनई शकुनि बेटु. गांधारी प्रमुख आठ बेटी. पणि आठइ अपछरा-समांना.
धर्मदासगणिकृत प्राकृतमा ५४४ गाथामां रचायेल 'उपदेशमाला' ग्रन्थ परनो सोमसुन्दरसूरिकृत 'उपदेशमाला बालावबोध' गुजराती भाषामां विषय परनो सौथी जूनो बालावबोध. आ बालावबोधनी रचना संवत १४८५ नी छे. अना सम्पादनमा वाचना माटे जे हस्तप्रतने में उपयोगमा लीधी ते संवत १४९९ ना लेखनवर्षनी छे. आम ग्रन्थरचना अने हस्तप्रतलेखन वच्चे केवळ १४ वर्षनो ज तफावत. आथी स्वाभाविक रीते ज ग्रन्थरचना-समयनुं ज भाषाकीय माळखं अमां यथातथ जळवाई रह्यं छे. कर्मार्थे 'ने' अनुगने स्थाने तत्कालीन 'हुई' प्रत्यय अहीं प्रचुर मात्रामा प्रयोजायेलो देखाय छे.
बालावबोधकार अहीं प्रत्येक गाथानो क्रमश: आंशिक निर्देश करता जई, अना शब्दपर्यायो आपता जई, कथ्य विषयनो तत्कालीन भाषामां विशदपणे अवबोध थाय ते रोते अनुवाद अने खपजोगो विवरण-विस्तार करी आपे छे.
पण अहीं आ बालावबोधनी धर्मोपदेशना ग्रन्थ लेखे मारे वात करवी नथी. आ अप्रगट ग्रन्थ प्रकाशित थतां साहित्यदृष्टिले अनी संप्राप्ति हती अ तो अमां मळती लगभग ८० जेटली नानीमोटी दृष्टान्तकथाओ. मोटा भागनी आ कथाओ गाथा-विवरणना छेडे अलग कथारूपे रजू थई छे. अमां मुनिमहात्माओ, चक्रवर्तीओ, सती स्त्रीओ, राजाओ, मन्त्रीओ, श्रेष्ठिओ आदिनां चरित्रात्मक कथानको छे. आ उपरांत मनुष्येतर देवो अने पशु-पंखीओनी कथाओ, रूपककथाओ अने समस्याना तत्त्ववाळी कथा पण मळे छे. अंगत स्वजन ज स्वजननो केवो अनर्थ करे अवां दृष्टान्तोनुं तो आलुं कथागुच्छ अहीं प्राप्त थाय छे, जेमा माता पुत्रनो, पुत्र पितानो, पिता पुत्रनो, भाई भाईनो, पत्नी पतिनो, मित्र मित्रनो अनर्थ करे छे.
आ ज रीते मेरुसुन्दरना 'शीलोपदेश बालावबोध'मां ४३ कथाओ प्राप्त
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
६०
अनुसन्धान ४६
थाय छे. आम बालावबोधकारोओ संस्कृत-प्राकृत ग्रन्थोना अनुवादोने दृष्टान्तकथाओथी पुष्ट कर्या छे अने ओ रीते कथाकोश पण बन्या छे. जोके बधा ज बालावबोधोमां आवी दृष्टान्तकथाओ प्राप्य नथी होती. जेमके सोमसुन्दरसूरि पछी, संवत १५४३मां नन्नसूरिओ आपेलो 'उपदेशमाला बालावबोध' मूळ ग्रन्थनी प्राकृत गाथाओना केवळ अनुवादरूपे ज छे. अनुं सम्पादन रोमन लिपिमा डो. टी.अन.दवे ई.स. १९३५मां प्रगट करेलुं छे.
के.का.शास्त्रीजीओ अमनी उत्तरवयमां बालावबोधोनां प्रकाशनो उपर खास भार मूक्यो छे. तेओ लखे छे : "मारी अक विनंती छे के कोईपण संस्था, ओ पछी जैन होय के जैनेतर, जेने गुजराती भाषा-साहित्यना प्रकाशननु ध्येय छे तेणे बालावबोधोना प्रकाशननी ओक योजना विचारवी जोईओ."
मध्यकाळनी सं. १५७२मां सहजसुन्दरे रचेली, अक अप्रगट दीर्घकृति 'गुणरत्नाकरछन्द' विशे मारी पीएच.डी.नी थिसिस तैयार करती वेळा 'छन्द' संज्ञावाळी कृतिओ अने अना स्वरूप प्रत्ये नजर करवान बन्यु.
___ मध्यकाळमां क्वचित् अक्षरमेळ अने बहुधा मात्रामेळ छन्दो तो पद्यवार्ता, प्रबन्ध जेवां स्वरूपोमां प्रयोजाया छे अने रासा, आख्यान जेवां स्वरूपोमां, मूळमां मात्राछन्दोमांथी विकसित थयेली देशीओ अनुं वाहन बनी छे. आमांथी कोई कोई कृति मुख्यत्वे जे छन्दमां रचाई होय ते चोक्कस छन्दनामथी पण ओळखाई छे. जेमके 'मारु ढोला चोपइ' के 'माधवानल कामकन्दला दोग्धक.' पण कृतिने मळेली 'छन्द' संज्ञा शानुं सूचन करे छे ?
'छन्द' सम्भवत: चारणी परम्परामांथी आवेलो प्रकार छे. चारणी साहित्यपरम्पराओ अक्षरमेळ रूपमेळ छन्दो, मात्रामेळ छन्दो तेमज डिंगळ चर्चित छन्दो - अम त्रण प्रकारना छन्दोनो उपयोग कयों छे; जेमां भुजंगप्रयात, पद्धरी, वृद्धनाराच, रोळा, लीलावती, मोतीदाम व. छन्दो उपयोगमा लेवाया छे.
__ आ परम्परामां कृति पठन रूपे नहीं, पण श्रवणरूपे झीलवानी होई छन्दोगान अेक महत्त्व- माध्यम बने छे. कृतिना आ छन्दोगानने पुष्ट करवा माटे चारणी परम्परामां शब्दानुप्रास, अन्त्यानुप्रास, वर्णसगाई, झडझमक, संयुक्ताक्षरी उच्चारणो, रवानुकारी शब्दसंगीत-अम नादवैभव पर विशेष ध्यान अपाय छे.
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
डिसेम्बर २००८
'गुणरत्नाकरछन्द' नी रचना अगाउ मध्यकाळमां बे नोंधपात्र 'छन्द'. संज्ञावाळी रचनाओ प्राप्त थई हती. श्रीधर व्यासकृत 'रणमल्लछन्द' सं. १४५४मां; अने लावण्यसमयनी 'रंगरत्नाकर नेमिनाथ छन्द' सं. १५४६मां. आ बन्ने कृतिओ आपणने उपर कहेली वातनुं समर्थन करती देखा.
'गुणरत्नाकरछन्द' आ 'छन्द' संज्ञा धरावती दीर्घ रचनाओमां एक विशिष्ट उमेरण छे. जो 'उपदेशमाला बालावबोध' मां मने कथाओनो संपुट सम्प्राप्त थयो, तो आ कृतिनुं संशोधन हाथ उपर लेतां अक काव्यसौन्दर्ये ओपती 'छन्द' कृति सम्पन्न थई. ओमां प्रयोजायेला २० उपरान्त अक्षरमेळ अने मात्रामेळ छन्दो चारणी छन्दोलयनी छटा दाखवे छे. कथाने निमित्ते स्थूलभद्र - कोशाना हृदयभावोनुं निरूपण कृतिनो विशेष आस्वाद्य अंश रह्यो छे. काव्यस्पर्श पामेलां रसिक गतिशील वर्णनो अने अनी अलंकरण - समृद्धि सर्व कांई मनोहर छे.
ललितकोमलकान्त पदावलि तरीके कान्तनी 'स्नेहघन कुसुमवन विमल परिमल गहन' अ पंक्तिने आपणे याद करीओ छीओ. एवी ज पदावलिनुं स्मरण करावती पंक्ति अहीं जुओ :
'नारी-सरोवर सबल सकल मुखकमल मनोहर. '
संयुक्ताक्षरी शब्दावलि, आन्तरप्रास, नादसंगीत द्वारा कोशाना रूपसौन्दर्यना वर्णनमां काव्यना बहिरंगने कवि केवुं सजावे छे ते जुओ :
"सुवन्न देह, रूपरेह, कामगेह गज्जओ, उरत्थ हार, हीरचीर, कंचुकी विरज्जओ, कटक्क - लंकि, झीण वीण, खग्गि खरिंग दुम्मओ, पोहराण पक्खि पक्खि लोक लक्ख घुम्यओ. "
६१
गणिका ओक पुरुषनिष्ठ न रहेतां अनेकनी साथे छळ करे छे. ओ वात
कविअ स्थूलभद्रने मुखे रात्रिनुं उपमान प्रयोजीने करी छे. ते आखुं कल्पनचित्र नवीनताभर्युं छे.
"सूरज जव अत्थमई, केश तव मूंकी रोई, जव वेला जेहनी ताम तेहस्यउं मन मोहइ,
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसन्धान ४६
फुल्ल तार सिरि घल्लि रमइ ते चंदा साथइ, सूर समइ जाणेवि, फुल्ल पणि नाखइ हाथइ, इम रयणि कूड बिहुँस्यउं करइ, वेशि कहीं साची नउ हई."
(२.८३) [ज्यारे सूर्य आथमे छे त्यारे रात्रि केश छूटा मूकीने रडे छे. पण जेवी जेनी वेळा अ प्रमाणे तेनी साथे मन जोडे छे. अ ज रात्रि (चन्द्र आवतां) तारा रूपी पुष्पो माथामां गूंथीने चन्द्रनी साथे क्रीडा करे छे. वळी पाछो सूर्यने आववानो समय थतां रात्रि तारक-पुष्पोने हाथथी नाखी दे छे. आम रात्रि बन्नेनी साथे कपट करे छे. अ ज रीते वेश्या पण कदी साची होती नथी.]
___आपणे त्यां 'छन्द' संज्ञावाळी लघु काव्यकृतिओ पण रचाई छे. अमां मुख्यत्वे इष्ट देव-देवीनी स्तुति, महिमागान अने रूपगुणवर्णननुं आलेखन थयुं होय छे अने ते कोई अेक सळंग छन्दमां रचायेली होय छे. आवी 'छन्द' स्वरूपी दीर्घ-लघु कृतिओना स्वरूप, विकास, विषयवस्तु अने अना छन्दोविधाननी दृष्टि सघन अभ्यासने सारो अवकाश छे.
परिषदमा डो. भोगीलाल सांडेसरा स्वाध्यायपीठ अन्वये मारे कोई अेक प्रकल्प तैयार करवानो हतो. ते अनुषंगे ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिरमांथी मने सं. १६४१मां रचायेली, हरजी मुनिकृत 'विनोदचोत्रीसी' नामक पद्यवार्तानी प्रत मळी आवी. आ साधुकविनुं तो नाम पण कोई जवल्ले सांभळ्यु होय. मात्र 'जैन गूर्जर कविओ' अने 'साहित्यकोश'मां नानकडो उल्लेख मळे. पण कृति हती 'सिंहासन बत्रीसी' के 'सूडाबहोतेरी'नी जेम ओक कथादोरमां परोवायेली ३४ लौकिक कथाओनी वार्तामाला. अना शीर्षकमां निर्देशाया प्रमाणे आ बधी हास्य-विनोदे रसायेली जीवनबोधक कथाओ छ, ओक साधुमहात्मा ३४ दिवस सुधी रोज अकेकी कथा कहीने अक नास्तिक श्रेष्ठीपुत्रने आस्तिक बनावे छे. कथाओ मौलिक नहि, पण कवि द्वारा एने अपायेलो पद्यदेह मे कविनी सर्जकता. आपणा पद्यवार्ता-साहित्यमां हास्यरसिक कथामाला स्वरूपे आ ओक विशिष्ट उमेरण छे. साथे अ पण याद करी लउं के ताजेतरमा ज डो. रमेश शुक्ल द्वारा कवि शामळनी 'पन्दरमी विद्या' नामे स्त्रीचरित्रने निरूपती, अद्यापिपर्यन्त अप्रगट ओवी रसिक कथा उपलब्ध
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
डिसेम्बर २००८
बनी छे.
मध्यकालीन गुजराती साहित्यनी वात करीओ अटले अनी साथे सम्बद्ध अना शब्दकोशनी पण वात करवानी थाय ज. केमके मध्यकालीन शब्दनो अर्थ-सन्दर्भ जाण्या विना ते साहित्यनो अवबोध अपूर्ण रहे. उच्चार के पर्याय दृष्टिले मध्यकालीन शब्दो आजे अपरिचित बन्या छे. अक उदाहरण आपुं : 'विनोदचोत्रीसी' मां विरहिणी नायिका कहे छे -
"तेरे बिरह मूं देहं दही, जिउं वनि बूंघचीयांई,
आधे जल भइ कोइला, आधे लोही-मांस." हवे आ 'बूंघचीया' शब्दनो अर्थ न जाणुं त्यां सुधी अलंकारर्नु सौन्दर्य वणप्रगट्युं रहे. पण 'चूंघचीया' अटले 'चणोठी' अवो अर्थ शब्दकोशमांथी प्राप्त थतां विरहिणीनु भावचित्र स्पष्ट थयु के 'तारा विरहमां वननी चणोठीनी जेम मारो अडधो देह बळीने कोलसो थयो छे ने अडधो लोही-मांस ज रह्यो छे.'
मारे मते अक बृहद् मध्यकालीन गुजराती शब्दकोशनी अनिवार्यता छे. जयन्त कोठारीओ आपणने 'मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश' आप्यो. पण ओनीये मर्यादा अमणे पोते स्वीकारी छे. ओ संकलित शब्दकोश छे. भायाणी साहेब, ओमने अक सूचन अ हतुं के मध्यकाळनी कृतिओमांथी सीधा ज शब्दो लेवा. पण स्वास्थ्य-संजोगोने ध्यानमा राखीने अमणे जे मध्यकालीन कृतिसम्पादनोमां अर्थ सहितना शब्दकोश अपाया होय, अने ते पण स्थान निर्देश साथेना, अटला ज शब्दकोशोने आधारे तैयार थयेलो आ शब्दकोश छे. जयन्तभाई क्षेत्रमर्यादा तो स्वीकारी, पण त्यांये संशोधननो अतिश्रम तो अमणे को ज. मूळ सम्पादके आपेलो खोटो अर्थ छोडीने शुद्ध अर्थ आप्यो, मूळमां शब्द ज भ्रष्ट होय के खोटी रीते पाठ निर्धारित थयो होय तो तेनी पण शुद्धि करी. अने आ बधा माटे चोक्कस संज्ञाओ पण प्रयोजी. अमणे पोते निवेदनमा लख्यु के 'कोश काम संकलन करतां वधारे तो संशोधननुं बनी गयुं.'
आवो प्रमाणभूत शब्दकोश मळ्या पछीये काम तो बाकी रहे ज छे.
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसन्धान ४६
१. कृति-अन्तर्गत केटलाये शब्दो मूळ सम्पादके शब्दकोशमां दाखल ज न कर्या होय. (दा.त. 'घडावश्यक बालावबोध' के 'विमलप्रबन्ध'नां सम्पादनो), २. अर्थ के स्थाननिर्देश विनाना शब्दकोशो पैकीना शब्दो, ३. पाछळथी सम्पादित थईने प्रकाशित थयेली कृतिओना शब्दकोशो, ४. जे कृतिओना शब्दकोशो थया ज नथी तेवी कृतिओना शब्दो.
___आ काम कोइ संस्था के तज्ज्ञोनी टुकडी ज हाथ धरी शके. कथाकोश थयो, साहित्यकोश थयो, तो आ पडकार पण झीलाशे ने ! ७०० वर्षना गाळानी हजारो कृतिओना शब्दसंचयने भायाणीसाहेबे भगीरथ कार्य कद्यु छे. वळी तेमणे ओवी आशा प्रगट करी छे के "जयन्तभाई जे नानो छोड उछेर्यो छे तेमांथी आगळ जतां वृक्ष बने."
डो. हरिवल्लभ भायाणी जेना आद्य संस्थापक हता ते 'अनुसन्धान' सामयिक अत्यारे आचार्य शीलचन्द्रसूरिजीना सम्पादन हेठळ प्रगट थाय छे. ओनी अत्यार सुधीमा ४१ पुस्तिका प्रकाशित थई चूकी छे. अमां संस्कृतप्राकृत तेमज मध्यकालीन गुजरातीनी अप्रगट कृतिओ संशोधित करीने प्रकाशित करवामां आवे छे अने सम्पादित कृतिनी साथे घणुंखरुं शब्दकोश पण जोडायेलो होय छे. हस्तप्रत-सम्पादनना प्रकाशन माटे आ ओक महत्त्वनुं माध्यम छे. पण आ संशोधन-सामयिकनी साहित्यजगतमां पर्याप्त नोंध लेवाई नथी ओम मने लागे छे.
ओक काळे आपणे त्यां 'आनन्द काव्य महोदधि' ग्रन्थना आठेक मौक्तिको प्रकाशित थयेलां, जेमां रासा, पद्यवार्ता आदि दीर्घकृतिओ समाविष्ट छे. आ ग्रन्थमौक्तिकोनुं तेमज आवा अन्य ग्रन्थोनुं पाठशुद्धि साथे पुनः सम्पादन करी शकाय.
'साहित्यकोश' खण्ड-१नां अधिकरणो लखातां हतां त्यारे ध्यान उपर आवेलुं के अक काळे जुदा जुदा सम्पादको द्वारा चौदेक जेटली सज्झायमाळाओ प्रकाशित थई हती. अमां घणा बधा कविओनी ओकनी ओक कति बधां सम्पादनोमां जोवा मळे. आवी कृतिओनुं पुनरावर्तन टाळीने अक संकलित ग्रंथर्नु सम्पादन पण हाथ धरी शकाय. अम करातां, आ ग्रन्थोनी जर्जरित हालत पण निवारी शकाशे अने 'रनिंग मेटर' रूपे जूनां बीबामां छपायेली आ
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________ डिसेम्बर 2008 कृतिओनो चहेरोमहोरो पण बदलाशे. साहित्यकोश खण्ड-१नां अधिकरणमां सर्जकनी कृति मुद्रित के अमुद्रित छे तेनो निर्देश करवामां आव्यो छे. कोश प्रकाशित थया पछीना गाळामां अमुद्रित कृति प्रगट थई होय के कोशमां वणनोंधायेली कृति मळी आवी होय तो परिषदे कोशनी ओक अधिकृत नकलमां यथास्थाने ओ फेरफारो नोंधता जई कोशसामग्रीने 'अप-डेट' करता रहेQ जोइओ. सम्पादक पोते आवी प्रकाशन-माहिती परिषदने पहोंचाडे अर्बु आयोजन पण गोठवी शकाय. आम थाय तो नवी आवृत्ति वेळानुं काम सरळ अने चोकसाईभयुं बनी शके. मित्रो, में अहीं नरसिंह-मीरां के अखो-प्रेमानन्द जेवी मध्यकाळनी सिद्धहस्त सर्जकप्रतिभाओनी वात नथी करी मे हुं जाणुं छु. पण मारा वक्तव्यनो मुख्य सूर जे क्षितिजो हजी वणखेडायेली छे ते दिशामां कदम मांडवा अंगेनो छे. जे साहित्यसामग्री धरबायेली पडी छे अने उद्धरवा माटे आपणी प्रतीक्षा छे, अने ओ पडकार आपणी ज युवापेढीओ झीलवानो छे. अवो विश्वास अवश्य बेसे छे के जे कांई नवें प्रगट थई रह्यं छे, प्रगटवा मथी रह्यं छे अने हवे पछी प्रगटवार्नु छ अनी संप्राप्ति-उपलब्धि नगण्य नहि होय. अथी ज जयन्त कोठारीओ जेने न वीसरवा जेवो वारसो कह्यो ओवा आ मध्यकालीन गुजराती साहित्यना तन्तुथी आपणे विच्छिन्न न थईओ. आपणा प्रजाकीय जीवनना उछेर, घडतर अने विकसनमां अना थकी थयेला पोषण- मूल्य जरीकेय ओछु न आंकीओ. [गुजराती साहित्य परिषदना गांधीनगर खाते डिसे. २००७मा योजायेला ४४मा संमेलनमां विवेचन विभागनी बेठकमा अपायेखें वक्तव्य 7, कृष्ण पार्क, गगनविहार सामे खानपुर, अमदावाद-१