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डिसेम्बर २००८
शब्दोनो वैभव अने बोलचालनी लढणो धरावतुं गद्य वास्तविकतानी विशेष नजीकर्नु होईने जीवंत लागे छे. कथामां क्यारेक आवतां क्रियापद विनानां टचुकडां वाक्योने लीधे लाघवयुक्त गद्याभिव्यक्ति पण सविशेष ध्यान खेंचे छे. जेमके
___ "गांधार देश. सबल राजा. तेहनई शकुनि बेटु. गांधारी प्रमुख आठ बेटी. पणि आठइ अपछरा-समांना.
धर्मदासगणिकृत प्राकृतमा ५४४ गाथामां रचायेल 'उपदेशमाला' ग्रन्थ परनो सोमसुन्दरसूरिकृत 'उपदेशमाला बालावबोध' गुजराती भाषामां विषय परनो सौथी जूनो बालावबोध. आ बालावबोधनी रचना संवत १४८५ नी छे. अना सम्पादनमा वाचना माटे जे हस्तप्रतने में उपयोगमा लीधी ते संवत १४९९ ना लेखनवर्षनी छे. आम ग्रन्थरचना अने हस्तप्रतलेखन वच्चे केवळ १४ वर्षनो ज तफावत. आथी स्वाभाविक रीते ज ग्रन्थरचना-समयनुं ज भाषाकीय माळखं अमां यथातथ जळवाई रह्यं छे. कर्मार्थे 'ने' अनुगने स्थाने तत्कालीन 'हुई' प्रत्यय अहीं प्रचुर मात्रामा प्रयोजायेलो देखाय छे.
बालावबोधकार अहीं प्रत्येक गाथानो क्रमश: आंशिक निर्देश करता जई, अना शब्दपर्यायो आपता जई, कथ्य विषयनो तत्कालीन भाषामां विशदपणे अवबोध थाय ते रोते अनुवाद अने खपजोगो विवरण-विस्तार करी आपे छे.
पण अहीं आ बालावबोधनी धर्मोपदेशना ग्रन्थ लेखे मारे वात करवी नथी. आ अप्रगट ग्रन्थ प्रकाशित थतां साहित्यदृष्टिले अनी संप्राप्ति हती अ तो अमां मळती लगभग ८० जेटली नानीमोटी दृष्टान्तकथाओ. मोटा भागनी आ कथाओ गाथा-विवरणना छेडे अलग कथारूपे रजू थई छे. अमां मुनिमहात्माओ, चक्रवर्तीओ, सती स्त्रीओ, राजाओ, मन्त्रीओ, श्रेष्ठिओ आदिनां चरित्रात्मक कथानको छे. आ उपरांत मनुष्येतर देवो अने पशु-पंखीओनी कथाओ, रूपककथाओ अने समस्याना तत्त्ववाळी कथा पण मळे छे. अंगत स्वजन ज स्वजननो केवो अनर्थ करे अवां दृष्टान्तोनुं तो आलुं कथागुच्छ अहीं प्राप्त थाय छे, जेमा माता पुत्रनो, पुत्र पितानो, पिता पुत्रनो, भाई भाईनो, पत्नी पतिनो, मित्र मित्रनो अनर्थ करे छे.
आ ज रीते मेरुसुन्दरना 'शीलोपदेश बालावबोध'मां ४३ कथाओ प्राप्त
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