Book Title: Madhyakalin Gujarati Sahitya Pratiksha Padkar ane Samprapti
Author(s): Kantilal B Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan

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________________ ५६ अनुसन्धान ४६ मध्यकालीन गुजराती साहित्य : प्रतीक्षा, पडकार अने संप्राप्ति कान्तिभाई बी. शाह विवेचन विभागनी आ बेठकमां वक्तव्य माटे निमन्त्रण आपवा बदल परिषदनो आभारी छु. आ निमन्त्रण मळ्युं त्यारे थोडोक संकोच अनुभवेलो केमके मारे कार्यक्षेत्र मुख्यत्वे मध्यकालीन गुजराती साहित्यना कृति-संशोधनसम्पादन के तद्विषयक ग्रन्थसमीक्षाओ पूरतुं सीमित गणाय. पण मन्त्री श्री रतिलाल बोरीसागरे मने सधियारो आपतां कह्यु के वक्तव्योमा संशोधननी वात थाय ने विषय-वैविध्य जळवाय ओ अभिप्रेत छे ज. वळी, लगभग ओ समयगाळामां, परिषदना विदाय थतां प्रमुख श्री कुमारपाळ देसाईले 'परब'मां 'प्रमुख श्रीनो पत्र' अन्तर्गत मध्यकालीन कृतिओनां संशोधन-सम्पादन-प्रकाशन परत्वे थती उपेक्षा अंगे चिन्ता प्रगट करेली, अ वाते मने बळ मळ्युं के आ ज तन्तुने पकडीने मध्यकालीन साहित्यक्षेत्र अंगे थोडीक मारी वात पण उमेरी शकाय. में मारा वक्तव्यनो विषय राख्यो छे : 'मध्यकालीन गुजराती साहित्य : प्रतीक्षा, पडकार अने संप्राप्ति.' आ विषयना अनुलक्ष्यमां, मारे हाथे संशोधित सम्पादन- यत्किचित् काम थयुं छे अनुभवभाथाने पण अहीं दृष्टान्त लेखे उपयोगमां लीधुं छे अटली स्पष्टता करी लउं. मित्रो, साहित्यजगतमां अवो सूर ऊठतो संभळाई रह्यो छे के "मध्यकालीन गुजराती साहित्य हांसियामां धकेलातुं जाय छे, आवी कृतिओनां घणां ओछां सम्पादनो बहार पडे छे, शाळा-महाशाळाना अभ्यासक्रमोमां अनुं स्थान घटतुं जई रा छ, अध्यापकोमा मध्यकालीन साहित्यना अभ्यास परत्वेनुं वलण ओछु थतुं जाय छे." आ क्षेत्रना तज्ज्ञोनो आ प्रतिभाव छे. अमां रहेला तथ्यने नकारी के अवगणी शकाय अम नथी. अमाये वळी, छेल्ला सवा दायकामां मध्यकालीन गुजराती साहित्यक्षेत्रे संशोधन-सम्पादन-विवेचन अने मार्गदर्शन द्वारा महत्त्व- प्रदान करनारा संमान्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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