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अनुसन्धान ४६
१. कृति-अन्तर्गत केटलाये शब्दो मूळ सम्पादके शब्दकोशमां दाखल ज न कर्या होय. (दा.त. 'घडावश्यक बालावबोध' के 'विमलप्रबन्ध'नां सम्पादनो), २. अर्थ के स्थाननिर्देश विनाना शब्दकोशो पैकीना शब्दो, ३. पाछळथी सम्पादित थईने प्रकाशित थयेली कृतिओना शब्दकोशो, ४. जे कृतिओना शब्दकोशो थया ज नथी तेवी कृतिओना शब्दो.
___आ काम कोइ संस्था के तज्ज्ञोनी टुकडी ज हाथ धरी शके. कथाकोश थयो, साहित्यकोश थयो, तो आ पडकार पण झीलाशे ने ! ७०० वर्षना गाळानी हजारो कृतिओना शब्दसंचयने भायाणीसाहेबे भगीरथ कार्य कद्यु छे. वळी तेमणे ओवी आशा प्रगट करी छे के "जयन्तभाई जे नानो छोड उछेर्यो छे तेमांथी आगळ जतां वृक्ष बने."
डो. हरिवल्लभ भायाणी जेना आद्य संस्थापक हता ते 'अनुसन्धान' सामयिक अत्यारे आचार्य शीलचन्द्रसूरिजीना सम्पादन हेठळ प्रगट थाय छे. ओनी अत्यार सुधीमा ४१ पुस्तिका प्रकाशित थई चूकी छे. अमां संस्कृतप्राकृत तेमज मध्यकालीन गुजरातीनी अप्रगट कृतिओ संशोधित करीने प्रकाशित करवामां आवे छे अने सम्पादित कृतिनी साथे घणुंखरुं शब्दकोश पण जोडायेलो होय छे. हस्तप्रत-सम्पादनना प्रकाशन माटे आ ओक महत्त्वनुं माध्यम छे. पण आ संशोधन-सामयिकनी साहित्यजगतमां पर्याप्त नोंध लेवाई नथी ओम मने लागे छे.
ओक काळे आपणे त्यां 'आनन्द काव्य महोदधि' ग्रन्थना आठेक मौक्तिको प्रकाशित थयेलां, जेमां रासा, पद्यवार्ता आदि दीर्घकृतिओ समाविष्ट छे. आ ग्रन्थमौक्तिकोनुं तेमज आवा अन्य ग्रन्थोनुं पाठशुद्धि साथे पुनः सम्पादन करी शकाय.
'साहित्यकोश' खण्ड-१नां अधिकरणो लखातां हतां त्यारे ध्यान उपर आवेलुं के अक काळे जुदा जुदा सम्पादको द्वारा चौदेक जेटली सज्झायमाळाओ प्रकाशित थई हती. अमां घणा बधा कविओनी ओकनी ओक कति बधां सम्पादनोमां जोवा मळे. आवी कृतिओनुं पुनरावर्तन टाळीने अक संकलित ग्रंथर्नु सम्पादन पण हाथ धरी शकाय. अम करातां, आ ग्रन्थोनी जर्जरित हालत पण निवारी शकाशे अने 'रनिंग मेटर' रूपे जूनां बीबामां छपायेली आ
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