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________________ डिसेम्बर २००८ 'गुणरत्नाकरछन्द' नी रचना अगाउ मध्यकाळमां बे नोंधपात्र 'छन्द'. संज्ञावाळी रचनाओ प्राप्त थई हती. श्रीधर व्यासकृत 'रणमल्लछन्द' सं. १४५४मां; अने लावण्यसमयनी 'रंगरत्नाकर नेमिनाथ छन्द' सं. १५४६मां. आ बन्ने कृतिओ आपणने उपर कहेली वातनुं समर्थन करती देखा. 'गुणरत्नाकरछन्द' आ 'छन्द' संज्ञा धरावती दीर्घ रचनाओमां एक विशिष्ट उमेरण छे. जो 'उपदेशमाला बालावबोध' मां मने कथाओनो संपुट सम्प्राप्त थयो, तो आ कृतिनुं संशोधन हाथ उपर लेतां अक काव्यसौन्दर्ये ओपती 'छन्द' कृति सम्पन्न थई. ओमां प्रयोजायेला २० उपरान्त अक्षरमेळ अने मात्रामेळ छन्दो चारणी छन्दोलयनी छटा दाखवे छे. कथाने निमित्ते स्थूलभद्र - कोशाना हृदयभावोनुं निरूपण कृतिनो विशेष आस्वाद्य अंश रह्यो छे. काव्यस्पर्श पामेलां रसिक गतिशील वर्णनो अने अनी अलंकरण - समृद्धि सर्व कांई मनोहर छे. ललितकोमलकान्त पदावलि तरीके कान्तनी 'स्नेहघन कुसुमवन विमल परिमल गहन' अ पंक्तिने आपणे याद करीओ छीओ. एवी ज पदावलिनुं स्मरण करावती पंक्ति अहीं जुओ : 'नारी-सरोवर सबल सकल मुखकमल मनोहर. ' संयुक्ताक्षरी शब्दावलि, आन्तरप्रास, नादसंगीत द्वारा कोशाना रूपसौन्दर्यना वर्णनमां काव्यना बहिरंगने कवि केवुं सजावे छे ते जुओ : "सुवन्न देह, रूपरेह, कामगेह गज्जओ, उरत्थ हार, हीरचीर, कंचुकी विरज्जओ, कटक्क - लंकि, झीण वीण, खग्गि खरिंग दुम्मओ, पोहराण पक्खि पक्खि लोक लक्ख घुम्यओ. " ६१ गणिका ओक पुरुषनिष्ठ न रहेतां अनेकनी साथे छळ करे छे. ओ वात कविअ स्थूलभद्रने मुखे रात्रिनुं उपमान प्रयोजीने करी छे. ते आखुं कल्पनचित्र नवीनताभर्युं छे. "सूरज जव अत्थमई, केश तव मूंकी रोई, जव वेला जेहनी ताम तेहस्यउं मन मोहइ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229507
Book TitleMadhyakalin Gujarati Sahitya Pratiksha Padkar ane Samprapti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantilal B Shah
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size343 KB
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