Book Title: Lonkagachhana Pujyona Tran Bhas
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 4
________________ ५२ बहु धरमी धन्य बगसरूं रे, जिहां संघ सहु सुखकंद, दोसी खीमासुत सोभता रे, कहुं केसवजी कुलचंद, गुण ... धर्मधुरंधर मोदी मेघजी रे, वली बुद्धि भली रणछोड, हेम समोवडि दीपे हेमसी रे, सधराज पुरे मन कोडि, संघ मांहि सोभागी जांणीयें रे, भला डुंगर ने मोरारि, पीतांबर मालव जागजी रे, वली प्रेमो जसाणी सार, गुण सुखकारण जीवो संघवी रे, धरे पूंजो श्रीजिन ध्यांन, व्यापारी वीचंद जांणीयें रे, बहुं मेलजी क्रमसी मांन गुण इम संघ सहु मिल्या सांमटा रे, जांणे सूरति केरो संघ, वाजित्र वाजे गुलाल ऊडे घणा रे, एक सुरपद पाम्या गंग गुण... ७ जांम नें जेठवो जाणता रे, वली झालावाडें राजि मार्च २००८ Jain Education International For Private & Personal Use Only गुण कहुं नरपति वली केटला रे, ते माने तुम लाज, गुण संघ सहु तुम चाहता रे, वली अवर कहुं अणपार, सास्त्र कही तसुं रीझवे रे, ताहरी वांणीना बलिहार, गुण तेज झलांमल भालनो रे, तोरी कुंकुमवरणी काय, चऊद विद्यागुण सागरु रे, एहवो नर पेदा नही थाय, गुण हालारनो पति रीझीयो रे, कहे ल्यो मनवंछित दांम, गंग कहे नही लीडं राजीया रे, माहरे जीवदयासुं काम, सतरसडसठ्यो सोहामणो रे, रह्यो पोरबिंदर चोमास, रांणो रीझ्यो गुण देखिने रे, कहे पूरुं तुमारी आसि, गुण सुणि बरडापति राजीया रे, हूं मागं वचन मयाल, लेख लखी आपो मुझनें रे, कोई खाडी न नाखे जालि, गुण राणो कहे धन धन तुं रषी रे, तुझ सम अवर न कोय, गुण धर्मपsो वजडाव्यो सहेरमां रे, जेम जीव न मारे कोय, गुण एम धन धरमनो बांधीयो रे, वली जे जे थयो जस वास, गुणरतनें भर्या गांगजी रे, तुमें पांमज्यो शिवपुर वास, गुण सतरछतेरे श्रावण ऊजली रे, पांचिमनें भृगुवार, बगसर सहेर सोहांमणो रे, जिहां संघ सहु सुखकार, गुण 414 ... *** 444 ... ... *** ... ४ ५ ८ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ www.jainelibrary.org

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