Book Title: Lokvinshika Part 02
Author(s): Haribhadrasuri, Manikyasagarsuri
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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(१५)
पृष्ठम् पङ्क्तिः
विषयः १२७-१३ आहारकस्वरूपम् । तत्र च आहारकशरीरकरणप्रयो
जनव्यावर्णनप्रसङ्गे प्रश्ननिरचिकीर्षाया एव हेतुत्वेनोपन्यास 'अनागमिक' इति प्रतिपाद्य सपूर्वप
क्षमन्यहेतू नुपन्यस्याऽऽहारकपदव्युत्पत्त्यादिकम् । १२९-२२ तैजसस्वरूपम् । १३०-२४ शीतलेश्यायाः तैजसशरीरप्रभवत्वसङ्गतिः । १३१-८ कार्मणशरीरस्वरूपम् । प्रसङ्गतः कर्मण आवारक
त्वसिद्धि-बन्धविचार-कार्मणनामाभिधाननिमित्त
त्वादिविचारः । १३२-२२ शरीरपञ्चकस्य परस्परं विशेषविचारोपक्रमः हेतु
नवकेन च शरीराणां मिथः विभक्ततरत्वविचारः । १३८-२१
औदारिकशरीरस्यासङ्ख्यातप्रमाणत्वसङ्गतिः । १३९-१२ पुद्गलाधिकारप्रसङ्गेन वाचः पौद्गलिकत्वविचारः । १४.-. वाचः स्वरूपप्रसङ्गे भाषाद्रव्यग्रहणनिसर्गविधिमता
न्तरैदम्पर्यादिस्वरूपम् । १४२-२३ भाषाद्रव्याणां व्यापकत्व-श्रुतिगोचरत्व-सङ्घात
भेदस्वरूपम् । १४५-- ९ भाषासमुद्घातीयलोकपूरण-मोद्भेदपूर्वक - त्रि
चतुःपञ्चसमयेषु लोकव्याप्तिप्रकाराणामुपन्यासः । १४६-२३ सम-विषम श्रेणिगतशब्दपुद्गलस्वरूपवैषम्यमुपदर्य
ग्रहणं कायिकयोगेन निसर्गश्च वाग्योगेनेति कथमितिशङ्काऽपाकरणपूर्वं वाचः योगत्वसिद्धिः । .
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