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राध्य नपत्र या
एबोलइम को जोस अने सर्व देवैवस्त श्री एकांत निषेधन थीए बोल इमकरिवेऽव्यक्षेत्र काल नावनी यपेक्षास विजन स्किन करिव अस स्तनो निषेध वलि अयंवाला नवया व तालिवर्ड | गीतार्थ जायें आम करतात लुलाने बेंबितिमघ्लान थायेंतिम करें। एकांत कोनशिलान बें । किमजो६२ ला खजिम लाज वाटतवणिव्यवसाई लाज बेहजोई वस्त व हरइ तिने एका तकांइनही इकाइ जिवस्त वे हरवी जिवस्त इंजेती वारलान देवें तिती वारदस्त वे हरें । इष्टांते गुरु श्रावकनें आगिवन् मेयोती विहार कर वें अक्षम में देर है । प्रति सोनारें संयम आराध् तिगुरु तिहार है। केतिवैगुरु नौ विनयवियाक्च करता कि तले दिव से शिष्य नामनजागष्ट बुद्दिचितवाला कही ये एगुरुमत्य यांमस्यै एस्तै चिंतवते ते गुरु ने मारवान ली ऊषादी कनी चिंताना करणा श्रावक नेक सौ गुरु । तसं लेणा असल्यै बैगुरु नेक है। भगवन् कव्ययांलीनविरुरावा जिहांजली तुम्हे इहाए कस्थान किं दिन इहां रहता या केतले दिवस श्रावक नाम न दो दला थाये एह चौविसेष शिष्ये गुरुने कल। एवैजे सदाय गुरुला साधनें गुरुवयवांलीवदिखाने या आजन आाव्यात स्युंकार एश्रावक रुसमाथी हिमवन्तौ नातपाली सां प्रतिष्करी | ९६ पूर्विक
गुरु चिंत थे। श्रावरुनो का इवाकनीस दतिजेना व वें एसगलीक सिध्पनी वातावशिष्यनीश्रीजां बीरेण सलले यो कार्यसाध्यै हवा शिष्य गुरु नौजव घात का से ससीय जोइये ॥ इति कथाः॥ आचार्य तथा पाध्यायादिकको प्रतीतिकपून एवं कोवाकियनति तोमिवोन एकसंतिवार घर पाकोवंतजलीनें, यमन करिव प्रसन्न करें जो कार्य विनय पीए वचनविनय च्याटयरियऊवियं नच्चा | पत्ति एल पसायए विद्याविद्ययं जलीउ हो । वानपुलत्तिया धर