Book Title: Leshya dwara Vyaktitva Rupantaran
Author(s): Shanta Jain
Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf

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Page 5
________________ ९६ मुमुक्षु शांता जैन , रहस्यवादियों ́ Occult Scientists ) की दृष्टि में रंग की एकरूपता जो हम सृष्टि में चारों ओर देखते हैं वह ( Divine mind ) की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति है । यह प्रकाश तरंगों के रूप में ( one life principle ) की ब्रह्माण्डीय प्रस्तुति है । " ओकल्ट साइंस ( Occult Science ) ने सात रंगों के आधार पर सात किरणें मानी है, जिन्हें वे जीवन विकास के आरोहण क्रम में स्वीकार करते हैं । प्रत्येक किरण को विकासवादी युग का प्रतीक माना है । सात किरणें सृष्टि के सात युगों को दर्शाती हैं । आध्यात्मिक ज्ञान, जिसे ( Lords of light ) माना जाता है और विकास का मार्गदर्शन करता है उसे सात किरणों की आत्मायें भी कहा जाता है । उनकी मान्यता है कि किरणें अनन्त शक्ति और उद्देश्य की पूर्णता हैं जो कि Supreme Source से निकलती हैं और जिसे सर्वशक्तिमान प्रज्ञा द्वारा निर्देशन मिलता है । सात ब्रह्माण्डीय किरणों में तीन प्रथम किरणों - लाल, नारंगी और पीली से सम्बन्धित प्रथम तीन युग बीत गए हैं। अब हम चौथे युग यानी हरे रंग में जी रहे हैं, जो बीच का रंग है । या यूँ कहें कि एक ओर संघर्ष, कटु अनुभव का निम्न युग और दूसरी ओर आत्मिक विकास तथा गुणों का श्रेष्ठ युग जिसके बीचोबीच हरा रंग है । इससे आगे भावी दृष्टिकोण नीली किरणों के उच्च प्रकम्पनों की ओर आगे बढ़ा है और यह विकास अधिकाधिक श्रेष्ठ स्थिति में Indigo और Violet तरंगों तक विकसित होता जाएगा, जब तक सप्तमुखी किरण विभाजन के अन्त तक हम नहीं पहुँच जाएँगे । रंगों के आधार पर मनुष्य की जाति, गुण, स्वभाव, रुचि, आदर्श आदि की व्याख्या करने की भी एक परम्परा चली। महाभारत में चारों वर्णों के रंग भिन्न-भिन्न बतलाएँ हैं । ब्राह्मणों का श्वेत, क्षत्रियों का लाल, वैश्यों का पीला और शूद्रों का काला । ४ ५ जैन साहित्य में चौबीस तीर्थंकरों के भिन्न-भिन्न रंग बतलाए गए। पद्मप्रभु और वासुपूज्य का रंग लाल; चन्द्रप्रभु और पुष्पदन्त का श्वेत; मुनिसुव्रत और अरिष्टनेमि का रंग कृष्ण; मल्लि और पार्श्वनाथ का रंग नीला और शेष सोलह तीर्थंकरों का रंग सुनहरा माना गया है। ज्योतिष विद्या के अनुसार ग्रह मानव के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं । उनकी विपरीत दशा में सांसारिक और आध्यात्मिक अभ्युदय में विविध अवरोध उत्पन्न होते हैं । इन अवरोधों को निष्क्रिय बनाने के लिये ज्योतिष शास्त्री अमुक ग्रह को प्रभावित करने वाले अमुक रंग के ध्यान का प्रावधान बताते हैं, विभिन्न रंगों के रत्न व नगों के प्रयोग के लिये कहते हैं । शरीर शास्त्री मानते हैं कि रंग हमारे जीवन की आन्तरिक व्याख्या है अनेक प्रयोगों द्वारा यह ज्ञात किया जा चुका है कि रंगों का व्यक्ति के रक्तचाप, नाड़ी और श्वसन गति एवं १. The Power of the Rays SGJ Ouseley P. 43 २. Colour Meditations, SGJ Ouseley P. 15 . ३ महाभारत शान्तिपर्व २८८/५ ४. अभिधान चिन्तामणि १ / ४९ ५. Colour in the Treatment of Disease, J. Dodson Hesse Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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