Book Title: Leshya dwara Vyaktitva Rupantaran Author(s): Shanta Jain Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf View full book textPage 9
________________ १०० मुमुक्षु शांता जैन तेजोलेश्या और अतीन्द्रिय ज्ञान का भी गहरा संबंध है। तेजोलेश्या की विद्युत धारा से चैतन्य केन्द्र जागृत होते हैं और इन्हीं में अवधि ज्ञान अभिव्यक्त होता है। पद्मलेश्याः ध्यान-पद्मलेश्या का रंग पीला है। पीला रंग न केवल चिन्तन, बौद्धिकता व मानसिक एकाग्रता का प्रतीक है, बल्कि धार्मिक कृत्यों में की जाने वाली भावनाओं से भी संबंधित है। पीला रंग मानसिक प्रसन्नता का प्रतीक है। भारतीय योगियों ने इसे जीवन का रंग माना है । सामान्य रंग के रूप में यह आशावादिता, आनन्द और जीवन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण को बढ़ाता है। ___ मनोविज्ञान मानता है कि पीले रंग से चित्त की प्रसन्नता प्रकट होती है और दर्शन शक्ति का विकास होता हैं । दर्शन का अर्थ है-साक्षात्कार । लेश्याध्यान में पीले रंग का ध्यान केन्द्र पर किया जाता है। ज्ञान केन्द्र शरीर शास्त्रीय भाषा में बृहत् मस्तिष्क (Cortex) का क्षेत्र है । हठयोग में जिसे सहस्रार चक्र कहा जाता है। जब हम चमकते हुए पीले रंग का ध्यान करते हैं तब जितेन्द्रिय होने की स्थिति निर्मित होती है। कृष्ण और नील लेश्या में व्यक्ति अजितेन्द्रिय होता है। पद्मलेश्या के परमाणु ठीक इसके विपरीत हैं। पद्मलेश्या ऊर्जा के उत्क्रमण की प्रक्रिया है। इसके जागने पर कषाय चेतना सिमटती है । आत्म नियन्त्रण पैदा होता है । शुक्ल लेश्याः ध्यान-शुक्ल लेश्या का ध्यान ज्योति केन्द्र पर पूर्णिमा के चन्द्रमा जैसे श्वेत रंग में किया जाता है । श्वेत रंग पवित्रता, शान्ति, सादगी और निर्वाण का द्योतक है। शुक्ल लेश्या उत्तेजना, आवेश, आवेग, चिन्ता, तनाव, वासना, कषाय, क्रोध आदि को शान्त करती है। लेश्या ध्यान का लक्ष्य है--आत्मसाक्षात्कार । शुक्ल लेश्या द्वारा इस लक्ष्य तक पहुँचा जा सकता है। यहाँ से भौतिक और आध्यात्मिक जगत् का अन्तर समझ में आने लग जाता है। आगम के अनुसार शुक्ल ध्यान की फलश्रुति है-अव्यथ चेतना, अमूढ़ चेतना, विवेक चेतना और व्युत्सर्ग चेतना। शरीर शास्त्रीय दृष्टि से ज्योति केन्द्र का स्थान पिनियल ग्रंथि (Pineal gland) है। मनोविज्ञान का मानना है कि हमारे कषाय, कामवासना, असंयम, आसक्ति आदि संज्ञाओं के उत्तेजन और उपशमन का कार्य अवचेतन मस्तिष्क हायपोथेलेमस (Hypothalamus) से जो होता है उसके साथ इन दोनों केन्द्रों का गहरा संबंध है। हाइपोथेलेमेस का सीधा संबंध पिच्यूटरी और पिनियल के साथ है। विज्ञान बताता है १२-१३ वर्ष की उम्र के बाद पिनियल ग्लैण्ड निष्क्रिय होना शुरू हो जाता है जिसके कारण क्रोध, काम, भय आदि संज्ञाएं उच्छृखल बन जाती हैं। अपराधी मनोवृत्ति जागती है। जब ध्यान द्वारा इस ग्रन्थि को सक्रिय किया जाता है तो एक सन्तुलित व्यक्तित्व का निर्माण होता है। १. प्रज्ञापना १७/४/३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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