Book Title: Leshya Ek Vishleshan Author(s): Devendramuni Shastri Publisher: Z_Bhanvarlal_Nahta_Abhinandan_Granth_012041.pdf View full book textPage 8
________________ नाम वेग (३) तेजस् लाल पुण्य के फल की भी आकांक्षा नहीं करते उन क्षीण-क्लेश सत्त्वगुण से मन का मैल मिट जाता है, अतः वह शक्ल चरमदेह योगियों के अशुक्ल-अकृष्ण कर्म होता है। है। शिव स्वरोदय में लिखा है-विभिन्न प्रकार प्रकृति का विश्लेषण करते हुए उसे श्वेताश्वतर के तत्त्वों के विभिन्न वर्ण होते हैं, जिन वर्गों से प्राणी उपनिषद् में लोहिन, शक्ल और कृष्ण रंग का बताया प्रभावित होता है।४१ वे मानते हैं कि मूल में प्राणतत्त्व गया है ।३९ सांख्य कौमुदी में कहा गया है जब रजोगुण एक है। अणओं की कमी-बेशी, कम्पन वा वेग से उसके के द्वारा मन मोह से रंग जाता है तब वह लोहित है, पांच विभाग किये गये हैं। जैसे: रंग आकार रस या स्वाद (१) पृथ्वी अल्पतर पीला चतुष्कोण मधुर (२) जल अल्प सफेद या बैंगनी अर्द्ध चन्द्राकार कसैला तीव्र त्रिकोण चरपरा (४) वायु तीव्रतर नीला या आसमानी गोल खट्टा (५) आकाश तीव्रतम काला या नीलाभ अनेक बिन्दु गोल कड़वा सर्व वर्णक मिश्रित रंग) या आकार शून्य जैनाचार्यों ने लेश्या पर गहरा चिन्तन किया है। पूर्वापेक्षया कम। नीले, आसमानी रंग से प्रकृति में उन्होंने वर्ण के साथ आत्मा के भावों का भी समन्वय शीतलता का संचार होता है। हरे रंग से न अधिक किया है। द्रव्यलेश्या पौद्गलिक है। अतः आधुनिक उष्मा बढ़ती है और न अधिक शीतलता का ही संचार वैज्ञानिक दृष्टि से भी लेश्या पर चिन्तन किया जा होता है, अपितु सम-शीतोष्ण रहता है। सफेद रंग से सकता है। प्रकृति सदा सम रहती है। लेश्या : मनोविज्ञान और पदार्थ विज्ञान रंगों का शरीर पर भी अद्भुत प्रभाव पड़ता है। मानव का शरीर, इन्द्रियाँ और मन ये सभी पुद्गल लाल रंग से स्नायु मण्डल में स्फूर्ति का संचार होता है । से निर्मित हैं। पुद्गल में वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श नीले रंग से स्नायविक दुर्बलता नष्ट होती है, धातुक्षय होने से वह रूपी है। जैन साहित्य में वर्ण के पाँच प्रकार सम्बन्धी रोग मिट जाते हैं तथा हृदय और मस्तिष्क में बताये हैं-काला, पीला, नीला, लाल और सफेद । शक्ति की अभिवृद्धि होती है। पीले रंग से मस्तिष्क की आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से सफेद रंग मौलिक नहीं है। दुर्बलता नष्ट होकर उसमें शक्ति संचार होता है, कब्ज, वह सात रंगों के मिलने पर बनता है। उन्होंने रंगों के यकृत, प्लीहा के रोग मिट जाते हैं। हरे रंग से ज्ञानसात प्रकार बताये हैं। यह सत्य है कि रंगों का प्राणी तन्तु व स्नायु-मण्डल सुदृढ़ होते हैं तथा धातुक्षय सम्बन्धी के जीवन के साथ बहुत ही गहरा सम्बन्ध है। वैज्ञानिकों रोग नष्ट हो जाते हैं । गहरे नीले रंग से आमाशय संबंधी ने भी परीक्षण कर यह सिद्ध किया है कि रंगों का प्रकृति रोग मिटते हैं। सफेद रंग से नींद गहरी आती है। पर, शरीर पर और मन पर प्रभाव पड़ता है। जैसे लाल, नारंगी रंग से वायु सम्बन्धी व्याधियाँ नष्ट हो जाती है नारंगी, गुलाबी, बादामी रंगों से मानव की प्रकृति में और दमा की व्याधि भी शान्त हो जाती है । बैगनी रंग उष्मा बढ़ती है। पीले रंग से भी उष्मा बढ़ती है किन्तु से शरीर का तापमान कम हो जाता है। ३९ अजामेकां लोहित शक्ल कृष्णां बहवीः प्रजा सृजमानां सरुपाः । ...अजो ह्य को जुषमाणोऽनुशेते, जहात्थेना मुक्त भोगाम जोऽन्यः॥ -श्वेताश्वतर उपनिषद् ४/५।। ४. सांख्य कौमुदी, पृ० २००। ४१ आपः श्वेता क्षितिः पीता, रक्तवर्णों हुताशनः । मारुतो नीलजीभूतः, आकाशः सर्ववर्णक ।। -शिव स्वरोदय, भाषा टीका, श्लो० १५६, पृ०४२। [ ४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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