Book Title: Leshya Ek Vishleshan
Author(s): Devendramuni Shastri
Publisher: Z_Bhanvarlal_Nahta_Abhinandan_Granth_012041.pdf

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Page 13
________________ एक जंगल में डाकुओं का समूह रहता था। ये दूसरों को लूटकर अपना जीवनयापन करते थे । एक दिन छः डाकूओं ने सोचा कि किसी शहर में जाकर हम डाका डालें। वे छः डाकू अपने स्थान से प्रस्थित हुए। छः डाकूओं में से प्रथम डाकू ने एक गांव के पास से गुजरते हुए कहा - रात्रि का सुहावना समय है । गाँव के सभी लोग सोए हैं। हम इस गांव में आग लगा दें ताकि सोधे हुए सभी व्यक्ति और पशु-पक्षी आग में झुलस कर खत्म हो जायें उनके कन्दन को सुनकर बड़ा आनन्द आएगा। 1 दूसरे डाकू ने कहा- बिना को क्यों मारा जाय ? जो हमारा मानवों को ही मारना चाहिए। तीसरे डाकू ने कहा- मानवों में भी औरतें और बालक हमें कभी भी परेशान नहीं करते। इसलिए उन्हें मारने की आवश्यकता नहीं । अतः पुरुष वर्ग को ही मारना चाहिए । चतुर्थ डाकू ने कहा- सभी पुरुषों को भी मारने की आवश्यकता नहीं है । जो पुरुष शस्त्रयुक्त हों केवल उन्हें मारना चाहिए । मतलब के पशु-पक्षियों विरोध करते हैं उन पांचवें डाकू ने कहा- जिन व्यक्तियों के पास शस्त्र है किन्तु जो हमारा किसी भी प्रकार का विरोध नहीं करते, उन व्यक्तियों को मारने से भी क्या लाभ है छठे डाकू ने कहा- हमें अपने कार्य को करना है। पहले ही हम लोग दूसरों का धन चुराकर पाप कर रहे है, और फिर जिसका धन हम अपहरण करते हैं, उन व्यक्तियों ५३ ४] के प्राण को लटना भी कहीं बुद्धिमानी है? एक पाप के साथ दूसरा पाप करना अनुचित ही नहीं बिलकुल अनुचित है । Jain Education International इन छहों डाकूओं के भी विचार क्रमशः एक दूसरे से निर्मल होते हैं, जो उनकी निर्मल भावना को व्यक्त करते हैं। ५१ उत्तराध्ययननियुक्ति में ५२ लेश्या शब्द पर निक्षेप दृष्टि से चिन्तन करते हुए कहा है कि लेश्या के नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव से चार निक्षेप होते हैं। नो-कर्म लेश्या और नो-अकर्म लेश्या ये दो निक्षेप और भी होते है। नो कर्म लेश्या के जीव नो-कर्म और अजीव नोकर्म ये दो प्रकार है । जीव नो-कर्म लेश्या भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक के भेद से वह भी दो प्रकार की है। इन दोनों के कृष्ण आदि सात-सात प्रकार हैं 1 अजीव नो-कर्म लेश्या द्रव्य - लेश्या के चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारक, आमरण, वादन की छाया रूप है। कितने ही आचार्यों का मन्तव्य है कि औदारिक, ओदारिक मिश्र, वैकिय, वैकिय मिश्र, आहारक आहारक- मिश्र, कार्मण काय का योग ये सात शरीर हैं तो उनकी छाया भी सप्तवर्णात्मिका होगी, अतः लेश्या के सात भेद मानने चाहिए । ५३ ५१ लोक प्रकाश, सर्ग २, श्लोक ३६३-३८०१ ५२ जागग भविपसरीरा तबहरित्ता य साणो दुबिहा कम्मा नो कम्ने यानो कम्मे हुन् दुविहा उ ॥ ३५ ॥ जीवाणमजीवाणय दुविहा जीवाण होई नायव्त्रा । भवमभव सिद्धियाणं दुविहाणवि होई सत्तविहा || ३६ || अजीव कम्मनो दव्वलेसा सा दसविहा उनायव्वा । चंदाण य सूराण य गहगण णक्खत्ततारा ॥ ३७ ॥ आसरण छायणा दंशगाण मणि कामिणी णजालेसा । अजीव दव्वलेसा नायव्वा दसविहा एसा ॥ ३८ ॥ और किसे भाव लेश्या कहें ? लेश्या के सम्बन्ध में एक गम्भीर प्रश्न है कि किस लेश्या को द्रव्य लेश्या कहें क्योंकि आगम साहित्य में कहीं कहीं पर द्रव्य लेश्या के अनुरूप भाव परिणति बतायी गयी है, तो कहीं पर द्रव्य लेश्या के विपरीत भाव परिणति बतायी गयी है । जन्म - उत्तराध्ययन, ३४, पृ० ६५० पद सप्तमी संयोगजा इयं च शरीरच्छायात्मका परिगृह्यते अन्येत्वौदारिकौ दारिकमि अमित्यादि भेदतः सप्त विधत्वेन जीवशरीरस्य तच्छायामेव कृष्णादिवर्णरूपां नोकर्माणि सप्त विधां जीव द्रश्य लेश्या मन्यते तथा । - उत्तराध्ययन ३४, टीका, जयसिंह सूरि, पृ० ३५० · For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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