Book Title: Laghu Ane Bruhat Prakrit Vyakaran
Author(s): Dalichand Pitambardas
Publisher: Dalichand Pitambardas
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( ३ )
इदमपि च लोका दवगन्तव्यं यत् प्राकृते द्विवचनं चतुर्थी
च न भवतः ।
3, प्राकृतभां द्विवचन मने
या राय चोथी विभक्ति नथी; चोथीने पहले छठ्ठी पराय छे.
३ ।। बहुलम् ।। १–२
बहुल मिसधिकृतं वेदितव्यम्, आशास्त्र परिसमाप्तेः । या व्या२णुनां मधां सूत्रभां (नियमभां) बहुल शम्हने! શબ્દના मध्याहार छे. बहुल शब्छन। अर्थ " भुट्टी भुट्टी रीते " अथवा “ જુદી જુદી ” " विदये "येव। थायछे.
શબ્દના
૧
४ ॥ दीर्घ स्वौ मिथो वृत्तौ ॥ ' । १-४
वृत्तौ समासे, स्वराणां दीर्घ ह्रस्वौ बहुलं भवतः । मिथः परस्परं
ह्रस्वस्य दीर्घो दीर्घस्य च ह्रस्वः ।
,
डेटले! ठेङाणु समासिक शोभां थायछे, भने ह्रस्वने पहले दीर्घ थायछे र्वेदी ); सत्तावीसा, ( सप्तविंशतिः ). कचिन्न भवति, ठेटते हे
दीर्घ स्वरने पहले भो, अंतावेई, ( अन्त
हस्व
येव।
२३२ थते। नथी;
१ । एतदध्यायस्थित दशमसूत्र तिलकं दृश्यताम् । यातु शमध्यायना इसभा सूत्र उपरनी टीप भु. शौरसेन्यादौ नैष विरिति । शौरसेनी भाषाभां भेवा नियम नथी.

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