Book Title: Laghu Ane Bruhat Prakrit Vyakaran
Author(s): Dalichand Pitambardas
Publisher: Dalichand Pitambardas

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Page 13
________________ ( ४ ) भ, जुवइअणो, (युवतिजनः ). कचिद् विकल्पः, 27 आयु वा ३२५२ विरपे याय, भ, पईहरं, पइहरं (पतिगृह); "ईसोतं, "इसोत्तं (नदीस्रोतः); बहुमुई, वहूमुहं, (बहुधूि] मुखं); कणउरं, कणऊरं (कर्णपुरं); सिरोवेअणा, सिरवेअणा, (शिरोवेदना); पीआपी, पिआपिअं (पीतापीतं ); सरोरुह, सररुहं (सरोरुहं); भुअवत्तं, मुआवत्तं (भूजेपत्र); पल्लिवइ, पल्लीवइ, (पल्लीपति); गामणीमुओ, गामणिसुओ (ग्रामणीमुतः); अंतउरं, अंतेउरं, (अन्तःपुरं); अक्खउहिणी, अक्खोहिणी, (अक्षौहिणी). ५॥ पदयोः सन्धिर्वा ॥ १-५ संस्कृतोक्तः सर्वः सन्धिः प्राकृते पदयो र्व्यवस्थितविभाषया भवति । ___ न्यारे शहना निट संबंध हायछ; त्यारे संस्कृत व्याકરણના નિયમ પ્રમાણે જે જાતના સંધિ કરવા હોય તે મારામાં वैकल्पिक (विजय) थायछे नभई, दहि ईसरो, दहीसरो, (दधीपरः); वासेसी, वास इसी, (व्यासर्षिः). पदयोरितिकिम् ? ये सूत्रमा पदयोः ( पदनी पश्ये) मे રબ ધ્યાનમાં રાખવો જોઈએ, કારણ કે, એકના એકજ પદમાં माकत भाषामा संधि यता नथी. तेथी, शनी निकट सं५ डाय, तानसा नियम साशु म, पाओ (पाद)।

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