Book Title: Krushnarshi Gaccha ka Sankshipta Itihas Author(s): Shivprasad Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf View full book textPage 3
________________ शिवप्रसाद Nirgrantha (थारापद्रगच्छ से सम्बद्ध वि० सं० १०८४ / ई० स० १०२८ के लेख में इस गच्छ के आचार्य पूर्णभद्रसूरि ने भी वटेश्वर क्षमाश्रमण का अपने पूर्वज के रूप में उल्लेख किया है।) कृष्णर्षिगच्छ का उल्लेख करने वाला द्वितीय साहित्यिक साक्ष्य है वि० सं० १३९० / ई० स० १३३४ में इस गच्छ के भट्टारक प्रभानंदसूरि द्वारा आचार्य हरिभद्र विरचित जम्बूद्वीपसंग्रहणीप्रकरण पर लिखी गई टीका की प्रशस्ति। यद्यपि इसमें टीकाकार प्रभानन्दसूरि के अतिरिक्त किसी अन्य आचार्य या मुनि का उल्लेख नहीं मिलता, किन्तु इनकी प्रेरणा से वि० सं० १३९१ / ई० स० १३३५ में लिपिबद्ध करायी गयी त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित की प्रतिलिपि की दाताप्रशस्ति से इनके गुरु-परम्परा के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त होती है। इसके अनुसार कृष्णर्षिगच्छ में सुविहित शिरोमणि पद्मचन्द्र उपाध्याय हुए जिनकी शाखा में भट्टारक पृथ्वीचन्द्रसूरि हुए। उनके पट्टधर प्रभानन्दसूरि के उपदेश से एक श्रावकपरिवार द्वारा उक्त महत्त्वपूर्ण कृति की प्रतिलिपि करायी गयी । सुविहितशिरोमणि पद्यचन्द्र उपाध्याय भट्टारक पृथ्वीचन्द्रसूरि प्रभानन्दसूरि [वि० सं० १३९०/ ई० सन् १३३४ में जम्बूद्वीपसंग्रहणीप्रकरणसटीक के रचनाकार, इनके उपदेश से वि० सं०१३९१ / ई० स०१३३५ में विशष्टिशलाकापुरुषचरित की प्रतिलिपि की गयी] कृष्णर्षिगच्छ का उल्लेख करने वाला तृतीय साहित्यिक साक्ष्य है इसी गच्छ के आचार्य जयसिंहसूरि द्वारा रचित कुमारपालचरित (रचनाकाल वि० सं०१४२२ / ई०१३६६) की प्रशस्ति', जिसके अन्तर्गत ग्रन्थकार ने अपनी गुरुपरम्परा दी है। इसके अनुसार चारण (वारण) गण की वज्रनागरी शाखा के......कुल में कृष्णनामक महातपस्वी मुनि हुए। उनकी परम्परा में निर्ग्रन्थचूडामणि आचार्य जयसिंहसूरि हुए, जिन्होंने वि० सं० १३०१ / ई० स० १२४५ में मरुभूमि से मंत्रशक्ति द्वारा जल निकाल कर प्यास से व्याकुल श्रीसंघ की प्राणरक्षा की। इनके शिष्य प्रभावक शिरोमणि प्रसन्नचन्द्रसूरि हुए। इनके पट्टधर निस्पृहशिरोमणि महेन्द्रसूरि हुए, जिनका सम्मान मुहम्मदशाह ने किया था। इन्हीं के शिष्य जयसिंहसूरि हुए, जिन्होंने वि० सं० १४२२ / ई. सन् १३६६ में उक्त कृति की रचना की जिसकी प्रथमादर्श प्रति इनके प्रशिष्य नयचन्द्रसूरि ने लिखी। कृष्णमुनि निर्ग्रन्थचूडामणि जयसिंहसूरि [वि० सं० १३०१/ ई० सं० १२४५ में मरुभूमि में जल निकालकर संघ की प्राणरक्षा की प्रभावक शिरोमणि प्रसन्नचन्द्रसूरि निस्पह शिरोमणि महेन्द्रसूरि [मुम्मदशाह द्वारा सम्मानित जयसिंहसूरि [वि० सं० १४२२ / ई० स० १३६६ में कुमारपालचरित के रचनाकार] Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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