Book Title: Krushnarshi Gaccha ka Sankshipta Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf

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Page 2
________________ Vol. I-1995 कृष्णर्षिगच्छ का संक्षिप्त... वाचक हरिगुप्त [तोरमाण के गुरु] कवि देवगुप्त सुपुरुषचरिय के रचनाकार शिवचन्द्रगणिमहत्तर [भिन्नमाल में स्थिरवास नाग वृन्द दुर्ग मम्मट अग्निशर्मा वटेश्वर [आकाशवप्रनगर/अम्बरकोट/ अमरकोट में जिनमंदिर के निर्माता] तत्त्वाचार्य दाक्षिण्यचिह्न उद्योतनसूरि [शक सं० ७००/ई० स०७७८ में कुवलयमालाकहा के रचनाकार उक्त दोनों प्रशस्तियों की गुरु-परम्परा की तालिकाओं के मिलान से उद्योतनसूरि और कृष्णर्षिगच्छीय जयसिंहसूरि की गुरु-परंपरा की जो संयुक्त तालिका बनती है, वह इस प्रकार है: वाचक हरिगुप्त [तोरमाण के गुरु] कवि देवगुप्त [सुपुरुषचरिय या त्रिपुरुषचरिय के रचनाकार] शिवचन्द्रगणि महत्तर [भिन्नमाल में स्थिरवास] नाग वृन्द दुर्ग मम्मट अग्निशर्मा वटेश्वर क्षमाश्रमण आकाशवप्रनगर में जिनमंदिर के निर्माता) तत्त्वाचार्य यक्षमहत्तर दाक्षिण्यचिह्न उद्योतनसूरि [शक सं० ७०० / ई० स० ७७८ में कुवलयमालाकहा के रचनाकार] कृष्णर्षि जयसिंहसूरि [वि० सं० ९१५ / ई० स० ८५९ में धर्मोपदेशमालाविवरण के रचनाकार] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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