Book Title: Kriyagarbhit Chaturvinshati Jinastuti Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf View full book textPage 6
________________ Vol. III-1997-2002 સાગરચંદ્રકૃત ક્રિયાગર્ભિત ‘ચતુર્વિશતિજિનસ્તુતિ’ 139 (स्त्रग्धरा छन्दः) आत्मन्युद्धृतरागे विशदतरलसज्ज्ञानलक्ष्मीर्यदीये यस्मिन् कल्पद्रुरूपे प्रणयमुपगते स्वेषु वेश्माङ्गणेषु / यत्पादाग्रेण मेरु क्षितिधरमधुना देवदेव ! पुमांसो भीतत्राणैकतानं व्यसनशतविनाशाय तं वर्धमानम् // 24 // (शार्दूलविक्रीडितम्) इत्थं तीर्थकृतां ततेत्रिभुवनश्रीमौलिलीला स्रजो विद्वान् सागरचन्द्र इत्यभिधया लब्धप्रसिद्धिस्तुतिम् / सर्वाङ्गं परितन्वती सुमनसामानन्दरोमोद्गम नानावृत्तनिवेशपेशलतरै र्युक्तां कियागुप्तकैः // 25 // पाठान्तराणि : 1. (क) जनवृजिन, 2. (ख) कंजनस्या, 3. कम्मा, 4. (क) मनसेभिनन्दन, 5. (क) रम्यडम्बरं, (ग) वनबन्धुरा भरण ऽम्बरंसुराः, 6. (ख) कौल्ये, 7. (क) मान्याः, 8. (ख) सुतुल्यम्, 9. (क) सदा, (ग) दरादा, 10. (क) श्चेति, 11. (ख) तैनो, 12. (ख) भव, 13. (क) कम, 14. (क) भ्यस्त, 15. (क) निरुपधि, 16. (क) रमतगुणगण, 17. (क) क्षुक्ष, 18. (क) कूल, 19. (क) (ख) मधुरतां, 20. (क) दक्ष, 21. (ख) वर्म, 22. (ख) (ग) नाक (ग) नराजणः, 23. (क) मुक्तिद्वार, 24. (ख) निर्वाणश्रेणी, 25. (ख) (ग) स्त्य, 26. (क) त्वां, 27. (ख) जालकैः, 28. (क) स्मित, 29. (ख) कृष्णया, 30. (क) (ग) भागे, 31. (ख) स्र, 32. (क) वृत्ति, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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