Book Title: Kevalgyan aur Kevaldarshan dono Upayog Yugpat nahi Hote Author(s): Kanhaiyalal Lodha Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf View full book textPage 1
________________ 3. 3D श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय में एक आचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर को छोड़कर सर्वसम्मत मत है कि केवलज्ञान और केवलदर्शन ये दोनों उपयोग युगपत् नहीं होते जबकि दिगम्बर मान्यता में अधिकांश आचार्यों का मत है कि ये दोनों उपयोग युगपत् ही होते हैं। परन्तु श्वेताम्बर आगम व ग्रंथों में अपनी मान्यता का प्रतिपादन करने वाले स्पष्ट सूत्र मेरे देखने में नहीं आये, प्रायः अर्थापत्ति अनुभव से ही यह मान्यता पुष्ट करते हैं। इसके विपरीत दिगम्बर परम्परा के आगम 'कषाय पाहुड' आदि ग्रन्थों एवं इनकी टीकाओं में दोनों उपयोग युग१ पत् नहीं होते इसके अनेक स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध हैं, इन्हीं में से कुछ यहाँ प्रस्तुत करते हैं (क) गुणधराचार्य प्रणीत कषायपाहुड मूल ग्रन्थ की गाथा १५ से लेकर २० गाथा तक जिन मार्गणाओं के अल्प बहुत्व के रूप में जघन्य | और उत्कृष्ट काल कहा गया है। इसमें उत्कृष्ट काल के अल्पबहत्व में कहा गया है चक्षुदर्शनोपयोग के उत्कृष्ट काल से चक्षु ज्ञानोपयोग का काल दूना है । उससे थोत्र, घ्राण, जिह्वा इन्द्रियों का ज्ञानोपयोग, मनोयोग, वचनयोग, काययोग आदि स्पर्शनेन्द्रिय ज्ञानोपयोग का उत्कृष्ट काल क्रमशः विशेष अधिक है। स्पर्शनेन्द्रिय के ज्ञानोपयोग से अवायज्ञान का उत्कृष्ट काल दना है। अवायज्ञानोपयोग के उत्कृष्ट काल से ईहाज्ञानोपयोग का उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है। इससे श्रु तकाल का उत्कृष्ट काल दूना है। श्रुतज्ञान के उत्कृष्ट काल से श्वासोच्छ्वास का उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है। केवलज्ञान, केवलदर्शन, कषाय सहित जीव के शुक्ल लेश्या का उत्कृष्ट काल स्वस्थान में समान होते हए भी प्रत्येक का उत्कृष्ट काल श्वासोच्छ्वास से विशेष अधिक है। केवलज्ञान के उत्कृष्ट काल से एकत्व वितर्क अवीचार ध्यान का उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है। इनसे पृथक्त्व वितर्क सवीचार ध्यान का काल दूना है। इससे प्रतिपाती सूक्ष्म सांपराय, उपशम श्रेणी में चढ़ने १ वाले का सूक्ष्म सांपराय, क्षपक का सांपराय का उत्कृष्ट काल क्रमशः विशेष अधिक है। सक्षम सांपरायिक जीव के उत्कृष्ट काल से मान कषाय का उत्कृष्ट काल दूना है। इससे क्रोध, माया, लोभ, क्षुद्रभव ग्रहण, कृष्टिकरण, संक्रामक, अपवर्तना का उत्कृष्ट काल क्रमशः विशेष 5) अधिक है । इससे उपशांत कषाय का काल दूना है। इससे क्षीण कषाय का उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है। इससे चारित्रमोहनीय के उपशामक का उत्कृष्ट काल दूना है । इससे चारित्र मोहनीय के क्षपक का उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है। 5555555555555555555555२३६३७७७७७७७ केवलज्ञान और केवलदर्शन, दोनों उपयोग युगपत् नहीं होते FOLA 21 ఉంటడండదండండంటండండAAAAAAAAAAAAAAAAAAAడడం -कन्हैयालाल लोढा चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम र साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 02368 Jain Education International For Private & Personal use only. www.jainelibrary.orgPage Navigation
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