Book Title: Kaumudimitranandrupakam
Author(s): Ramchandrasuri, 
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ लेखकीय आज भूमिका तथा परिशिष्टों से समन्वित और स्वोपज्ञ हिन्दीभाषानुवाद से युक्त कौमुदीमित्रानन्द रूपक का, जो पारिभाषिक रूप में एक प्रकरण है, यह संस्करण विद्वान् पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। यह जैन-सम्प्रदाय के अतिप्रसिद्ध लेखक और प्रबन्धशतकर्ता रामचन्द्रसूरि की एक महनीय कृति है। अद्यावधि इसकी कोई संस्कृत टीका अथवा हिन्दी अनुवाद उपलब्ध न होने के कारण मैंने जिज्ञासुओं की सहायता के लिये इस रूपक का हिन्दी में अनुवाद करने का प्रयास किया है। यह हमारा प्रथम प्रयास है। अत: इसमें पूर्णता होने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता। प्रस्तुत अनुवाद-कार्य जिनके वात्सल्यपूर्ण मार्गदर्शन का सत्परिणाम है, उन परमपूज्य पितृचरणों में मैं सादर प्रणामाञ्जलि अर्पित करता हूँ। आदरणीय गुरुजनों को भी श्रद्धया नमन करता हूँ, जिनके अमोघ आशीर्वचन मुझे सतत प्रेरणा प्रदान करते रहे। ___ इस कार्य के लिए सर्वप्रथम प्रेरणा मिली वाराणसीस्थ पार्श्वनाथ विद्यापीठ के वरिष्ठ प्रवक्ता आदरणीय डॉ० अशोक कुमार सिंह जी से। इन्होंने आद्यन्त अपने प्रोत्साहन और मुद्रण के समय समस्त ग्रन्थ का ध्यानपूर्वक अध्ययन तथा इसमें अपेक्षित संशोधन कर जो अनुग्रह हमारे ऊपर प्रदर्शित किया है, तदर्थ हम इनके कृतज्ञ हैं। ग्रन्थ के उत्कृष्ट कम्पोजिंग के लिए सरिता कम्प्यूटर्स, वाराणसी के सञ्चालक श्री अजय कुमार चौहान भी साधुवादार्ह हैं। __आदरणीय विद्वज्जन से हमारी यही प्रार्थना है कि इस प्रथम प्रयास में हुई हमारी त्रुटियों की सूचना हमें देने की कृपा करें, जिससे भविष्य में यदि इसका द्वितीय संस्करण हो तो उसमें अपेक्षित संशोधन किया जा सके गच्छतः स्खलनं क्वापि भवत्येव प्रमादतः। हसन्ति दुर्जनास्तत्र समादधति सज्जनाः।। अन्त में विद्वान् पाठकों से अपनी त्रुटियों के लिये क्षमा-प्रार्थी तिथि १५-८-१९५८ (कृष्ण-जन्माष्टमी) श्यामानन्द मिश्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 254