Book Title: Karm aur Karya Karan Sambandh
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf

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Page 3
________________ कर्म और कार्य-कारण सम्बन्ध ] चार्वाक के विरोध में ही महावीर का कर्म सिद्धान्त है । धर्म भी विज्ञान है और वह भी कार्य-कारण- सिद्धान्त पर खड़ा है | विज्ञान कहता है, "अभी कारण अभी कार्य ।" " परन्तु जब तथाकथित धार्मिक कहते हैं- "अभी कारण, कार्य अगले जन्म में तो धर्म का वैज्ञानिक आधार खिसक जाता है । यह अन्तराल एक दम झूठ है । कार्य और करण में अगर कोई सम्बन्ध है तो उसके बीच में अन्तराल नहीं हो सकता, क्योंकि अन्तराल हो गया तो सम्बन्ध क्या रहा ? चीजें असम्बद्ध हो गईं, अलग-अलग हो गई । यह व्याख्या नैतिक लोगों ने खोज ली, क्योंकि वे समझा नहीं सके जीवन को । [ २७५ मेरी अपनी समझ यह है कि प्रत्येक कर्म तत्काल फलदायी है । जैसेयदि मैंने क्रोध किया तो मैं क्रोध करने के क्षण से ही क्रोध को भोगना शुरू करता हूँ । ऐसा नहीं कि अगले जन्म में इसका फल भोगू । क्रोध का करना और क्रोध का दुःख भोगना साथ-साथ चल रहा है । क्रोध विदा हो जाता हैं लेकिन दुःख का सिलसिला देर तक चलता है । यदि दुःख और आनन्द अगले जन्म में मिलेंगे और उनके लिए प्रतीक्षा करनी होगी तो कहीं किसी को हिसाबकिताब रखने की जरूरत होगी । परन्तु, फल के लिये प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं होती । वह तत्काल मिलता है । हिसाब-किताब रखने की जरूरत नहीं होती । इसलिये महावीर भगवान् को भी विदा कर सके । अगर जन्म-जन्मान्तर का हिसाब-किताब रखना है तो फिर नियन्ता की व्यवस्था जरूरी है । नियन्ता की जरूरत वहाँ होती है जहाँ नियम का लेखा-जोखा रखना पड़ता है । क्रोध मैं अभी करूँ और मुझे फल किसी दूसरे जन्म में मिले तो इसका हिसाब कहाँ रहेगा ? इसलिये कुछ लोगों ने कहा - परमात्मा के पास । इन लोगों का परमात्मा महालिपिक है जो हमारे पुण्य-पाप का हिसाब रखता है और देखता है कि नियम पूरे हो रहे हैं या नहीं ? महावीर ने बड़ी वैज्ञानिक बात कही है । उनके अनुसार नियम पर्याप्त हैं, नियन्ता की जरूरत नहीं है । अगर नियन्ता है तो नियम में गड़बड़ी होने की संभावना बनी रहेगी । लोग उसकी प्रार्थना करेंगे, खुशामद करेंगे और वह खुश होकर नियमों में उलट-फेर करता रहेगा । कभी प्रह्लाद जैसे भक्तों को वह आग में जलने न देगा और कभी नाराज होगा तो आग को जलाने की आज्ञा देगा । उसके भक्त को पहाड़ से गिराओ तो उसके पैर नहीं टूटते, किसी दूसरे व्यक्ति को गिराओ तो उसके पैर टूट जाते हैं । प्रह्लाद की कथा पक्षपात की कथा है । उसमें अपने आदमी की फिक्र की जा रही है और नियम के अपवाद बनाये जा रहे हैं । महावीर कहते हैं कि अगर प्रह्लाद जैसे अपवाद हैं तो फिर धर्म नहीं हो सकता । धर्म का आधार समानता है, नियम है जो भगवान् के भक्तों पर उसी बेरहमी से लागू होता है जिस बेरहमी से उन लोगों पर जो उसके भक्त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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