Book Title: Karm aur Karya Karan Sambandh
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf

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Page 5
________________ कर्म और कार्य-कारण सम्बन्ध ] [ २७७ लेकिन पिछले जन्म में डाला गया हाथ आज कैसे बाहर खींचा जा सकता है ? हमारी इस व्याख्या ने कि अनन्त जन्मों तक कर्म के फल चलते हैं, मनुष्य को एक दम परतन्त्र कर दिया है। किन्तु मेरा मानना है कि सब कुछ किया जा सकता है इसी वक्त, क्योंकि जो हम कर रहे हैं, वही हम भोग रहे हैं। जिन्दगी की विषमता को समझने के लिये ऊटपटांग व्यवस्थाएँ गढ़ ली जाती हैं । मेरी समझ में यदि कोई बुरा आदमी सफल होता है, सुखी है तो इसका भी कारण है । मैं बुरे आदमी को एक बहुत बड़ी जटिल घटना मानता हूँ। हो सकता है, वह झूठ बोलता हो, बेईमानी करता हो, लेकिन उसमें कुछ और गुण होंगे जो हमें दिखाई नहीं पड़ते। वह साहसी हो सकता है, बुद्धिमान हो सकता है, एक-एक कदम को समझकर उठाने वाला हो सकता है। उसके एक पहलू को देखकर ही कि वह बेईमान है, आपने निर्णय करना चाहा तो आप गलती कर लेंगे । हो सकता है कि अच्छा आदमी चोरी न करता हो, बेईमानी भी न करता हो, लेकिन वह कायर हो। बुद्धिमान आदमी के लिये अच्छा होना अक्सर मुश्किल हो जाता है। बुद्धिमान आदमी अंच्छा होने के लिये मजबूर होता है। मेरी मान्यता है कि सफलता मिलती है साहस से । अगर बरा आदमी साहसी है तो सफलता ले आयेगा। अच्छा आदमी अगर साहसी है तो वह बुरे आदमी की अपेक्षा हजार गुनी सफलता ले आयेगा। सफलता मिलती है बुद्धिमानी से । अगर बुरा आदमी बुद्धिमान है तो उसे सफलता मिलेगी ही। अगर अच्छा आदमी बुद्धिमान है तो उसे हजार गुनी सफलता मिलेगी। लेकिन सफलता अच्छे भर होने से नहीं आती । सफलता आती है, बुद्धिमानी से, विचार से, विवेक से । कोई आदमी अच्छा है, मन्दिर जाता है, प्रार्थना करता है, लेकिन उसके पास पैसे नहीं हैं । अब मन्दिर जाने और प्रार्थना करने से पैसा होने का क्या सम्बन्ध ? अगर कोई अच्छा आदमी यह कहे कि मैं सुखी नहीं हूँ, क्योंकि मैं अच्छा हूं और वह दूसरा आदमी सुखी है क्योंकि वह बुरा है तो अच्छा दीखने वाला वह आदमी बुरे होने का सबूत दे रहा है । वह ईर्ष्या से भरा हुआ आदमी है । बुरे आदमी को जो-जो मिला है वह सब पाना चाहता है और अच्छा रहकर पाना चाहता है। यानी आकांक्षा ही बड़ी बेहूदी है। यदि बरे आदमी ने दस लाख रुपये कमा लिये तो इसके लिये उसने बुरे होने का सौदा चुकाया, बुरे होने की पीड़ा झेली, बुरे होने का दंश झेला। अच्छा आदमी मन्दिर में पूजा करना चाहता है, घर में बैठना चाहता है और बुरे आदमी को दस लाख रुपये मिले हैं वह भी चाहता है, जब उसे रुपये नहीं मिलते तो कहता है कि मैं अपने पिछले जन्म के बुरे कर्मों का फल भोग रहा हूँ। उसे झूठी सान्त्वना भी मिलती है कि वहाँ वह अगले जन्म में स्वर्ग में होगा वहीं वह बुरा आदमी नरक में । मैं कहता हूँ कि कर्म का फल तत्काल मिलता है, लेकिन कर्म बहुत जटिल बात Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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