Book Title: Karm aur Karya Karan Sambandh
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf

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Page 6
________________ 278 ] [ कर्म सिद्धान्त है। साहस भी कर्म है और उसका भी फल होता है। साहसहीन भी कर्म है और उसके भी फल हैं / इसी प्रकार बुद्धिमानी भी कर्म है, बुद्धिहीनता भी कर्म / इनके भी अपने-अपने फल हैं / यदि असफलता के कारण उनके भीतर होंगे तो अच्छे आदमी भी असफल हो सकते हैं। बुरे प्रादमी भी सुखी हो सकते हैं यदि सुख के कारण उनके भीतर वर्तमान होंगे। किसी और का दुःख तो हमें दिखता नहीं, दुःख सिर्फ अपना और सुख सदा दूसरे का दिखता है / ऐसे ही शुभ कर्म हमें अपना और अशुभ कर्म दूसरे का दिखता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्म को शुभ मानता है, क्योंकि इससे उसके अहंकार की तृप्ति होती है / सुख के हम आदी होते जाते हैं, दु:ख के कभी आदी नहीं हो पाते। आदमो दूसरे का देखता है अशुभ और सुख, अपना देखता है शुभ और दु.ख / उपद्रव हो गया तो वह कर्मवाद के सिद्धान्त का आश्रय लेता है / मेरी मान्यता यह है कि अगर वह सुख भोग रहा है तो उसमें कुछ ऐसा जरूर है जो सुख का कारण है, क्योंकि अकारण कुछ भी नहीं होती / अगर एक डाकू सुखी है तो उसका भी कारण है / साधु के दुःखी होने का भी कारण है / अगर दस डाकू साथ होंगे तो उनमें इतना भाईचारा होगा जितना दस साधु में कभी सुना नहीं गया। लेकिन अगर दस डाकुओं में मित्रता है तो वे मित्रता के सुख अवश्य भोगेंगे, लेकिन साधु एक दूसरे से बिल्कुल झूठ बोलते रहेंगे। तब सच बोलने का जो सुख है वह साधु नहीं भोग सकता। अन्त में मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि अकस्मात् कुछ भी नहीं होता / यदि कुछ घटनाओं को अकस्मात् होता मान लें तो कार्य-कारण का सिद्धान्त व्यर्थ हो जाता है / यहाँ तक कि लाटरी भी किसी को अकस्मात नहीं मिलती। हो सकता है कि जिन लाख लोगों ने लॉटरी लगाई उनमें सबसे ज्यादा संकल्प वाला आदमी वही हो जिसे लॉटरी मिली। ऐसे ही हजार कारण हो सकते हैं जो हमें दीख नहीं पड़ते / वस्तुतः उस घटना को ही अकस्मात् कहते हैं हमारी समझ में नहीं आता / जीवन सचमुच बहुत जटिल है / इसमें कोई घटना कैसे घटित हो रही है यह ठीक-ठीक कहना एकदम मुश्किल है, लेकिन इतना तो निश्चित है कि जो घटना हो रही है उसके पीछे कोई न कोई कारण है, चाहे वह ज्ञात हो या अज्ञात / कर्म के सिद्धान्त का बुनियादी आधार यह है कि अकारण कुछ भी नहीं होता। दूसरा बुनियादी आधार यह है कि जो हम कर रहे हैं वही भोग रहे हैं और उसमें जन्मों के फासले नहीं हैं / हमें जानना चाहिये कि हम जो भोग रहे हैं, उसके लिए हमने कुछ उपाय किया है, चाहे सुख हो या दुःख, चाहे शान्ति हो या अशान्ति / 000 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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