Book Title: Karm aur Karya Karan Sambandh
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf

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Page 2
________________ २७४ ] [ कर्म सिद्धान्त जन्मों के अच्छे-बुरे कर्मों के द्वारा इस जीवन के सुख-दुःख की व्याख्या करना कर्मवाद के सिद्धान्त को विकृत करता है । सच पूछिए तो ऐसी ही व्याख्या के कारण कर्मवाद की उपादेयता नष्ट सी हो गई है। कर्मवाद की उपादेयता इस बात में है कि वह कहता है-तुम जो कर रहे हो वही तुम भोग रहे हो। इसलिये तुम ऐसा करो कि सुख भोग सको, आनन्द पा सको। अगर तुम क्रोध करोगे तो दुःख भोगोगे, भोग रहे हो । क्रोध के पीछे ही दुःख भी आ रहा है छाया की तरह । अगर प्रेम करोगे, शान्ति से रहोगे, और दूसरों को शान्ति दोगे तो शान्ति अर्जित करोगे। यही थी उपयोगिता कर्मवाद की। किन्तु इसकी गलत व्याख्या हो गई । कहा गया कि इस जन्म के पुण्य का फल अगले में मिलेगा, यदि दुःख है तो इसका कारण पिछले जन्म में किया गया कोई पाप होगा । ऐसी बातों का चित्त पर बहुत गहरा प्रभाव नहीं पड़ता । वस्तुतः कोई भी व्यक्ति इतने दूरगामी चित्त का नहीं होता कि वह अभी कर्म करे और अगले जन्म में मिलने वाले फल से चितित हो। अगला जन्म अंधेरे में खो जाता है । अगले जन्म का क्या भरोसा ? पहले तो यही पक्का नहीं कि अगला जन्म होगा या नहीं ? फिर, यह भी पक्का नहीं कि जो कर्म अभी फल दे सकने में असमर्थ है, वह अगले जन्म में देगा ही। अगर एक जन्म तक कुछ कर्मों के फल रोके जा सकते हैं तो अनेक जन्मों तक क्यों नहीं ? तीसरी बात यह है कि मनुष्य का चित्त तत्कालजीवी है । वह कहता है ठीक है, अगले जन्म में जो होगा, होगा, अभी जो हो रहा है, करने दो। अभी मैं क्यों चिंता करू अगले जन्म की ? इस प्रकार कर्मवाद की जो उपयोगिता थी, वह नष्ट हो गई । जो सत्य था, वह भी नष्ट हो गया । सत्य है कार्य-कारण सिद्धान्त जिस पर विज्ञान खड़ा है । अगर कार्य-कारण को हटा दो तो विज्ञान का सारा भवन धराशायी हो जाय। ह्य म नामक दार्शनिक ने इंगलैंड में और चार्वाक ने भारतवर्ष में कार्यकारण के सिद्धान्त को गलत सिद्ध करना चाहा। अगर ह्य म जीत जाता तो विज्ञान का जन्म नहीं होता। अगर चार्वाक जीत जाता तो धर्म का जन्म नहीं होता, क्योंकि चार्वाक ने भी कार्य-कारण के सिद्धान्त को न माना । उसने कहा, "खामो, पीयो, मौज करो" क्योंकि कोई भरोसा नहीं कि जो बुरा करता है, उसे बुरा ही मिले । देखो, एक आदमी बुरा कर रहा है और भला भोग रहा है। चोर मजा कर रहा है, अचोर दुःखी है। जीवन के सभी कर्म असम्बद्ध हैं। बुद्धिमान आदमी जानता है कि किसी कर्म का किसी फल से कोई सम्बन्ध नहीं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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