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कारकविवरणका सिद्धहेमशब्दानुशासन तथा कारकपरीक्षाका प्रधानतया पाणिनीय व्याकरण आधार है । ग्रन्थ देखनेसे ऐसा ही ज्ञात होता है । कारकविवरणमें द्विकर्मक तथा अधिकरणकारकके विषयमें यह बात स्पष्टतः ज्ञात होती है । क्योंकि इसमें सिद्धहेमशब्दानुशासनके अनुसार ही विषयोंका प्रतिपादन है । कारकपरीक्षा में अधिकरणकारकके विषयमें सिद्बहेमशब्दानुशासनके सूत्रका उल्लेख है । परन्तु अन्य सभी सूत्र कारकोंके विषयमें पाणिनीयव्याकरणके ही उल्लिखित हैं।
___ कारकविवरण :- यह ७५ कारिकाओंका एक छोटासा ग्रन्थ है । इसमें कारकोंके मुख्यभेदोंका संक्षेपमें स्थूलरूपसे निरूपण किया गया है। जिसके सभी प्रतिपाद्य विषय शब्दभेद होनेपरभी सिद्धहेमशब्दानुशासनकी बृहवृत्तिमें विस्तृत रूपमें उपलब्ध हैं। यहां यह ध्यान देने योग्य है कि-कारकविवरणकारने उदाहरणोंकी स्वयं ही कल्पना की है। किसी ग्रन्थसे नहीं लिये है। इस ग्रन्थके अन्तमें समाप्तिकी पुष्पिकामें कर्त्ताके रूपमें पण्डित अमरचन्द्रका उल्लेख है । किन्तु ग्रन्थके आदिमें अथवा अन्तमें ग्रन्थकारका कोई उल्लेख नहीं है। मंगल तथा प्रशस्ति भी नहीं हैं । पण्डित अमरचन्द्र कृत अनेक ग्रन्थ कहे जाते हैं । आचार्य श्री चन्द्रसागरसूरि सम्पादित सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन-प्रथम विभागमें पण्डित अमरचन्द्रकृत-'स्यादिशब्दसमुञ्चय' वृत्तिसहित मुद्रित उपलब्ध है। जिसमें आदिके श्लोकमें ही “पण्डित अमरचन्द्र" इसप्रकार ग्रन्थकर्त्ताने अपने नामका उल्लेख किया है। ऐसा कुछ इस (कारकविवरण) ग्रन्थमें नहीं है-यह ऊपर कहा जा चुका