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प्रतिभा तथा परिश्रमका इसप्रकार ही जिज्ञासुओंको उत्कृष्ट लाभ मिलता रहेगा।
टिप्पणीकार :-प्रभा नामकी टिप्पणीके कर्ता मुनिराजश्री सूर्योदयविजयजी उपरोक्त व्याख्याकार पन्यासश्री शुभङ्करविजयजी गणिके शिष्य हैं। आपने अल्प समयमें ही व्याकरण, न्याय आदि का अच्छा अभ्यास किया है । जिसका प्रमाण इस पुस्तककी प्रभा नामकी टिप्पणी हीं है। इस आधारपर ऐसी आशा करना सर्वथा उचित ही है कि आप आगे और भी अच्छी सफलता प्राप्त करेंगे तथा इसप्रकारके लोकोपयोगी कार्यो प्रवृत्त रहेंगे। ___अन्तमें जिज्ञासुओंसे शुभभावनापूर्वक यह निवेदन है किवे अन्य अनेक कारकप्रकरणोंके अवलोकनके प्रलोभनमें समय तथा श्रमका व्यय नहीं करके प्रभा टिप्पणी एवं भद्रङ्करोदयाव्याख्या सहित कारकमाला के अवलोकनमें ही अपनी शक्ति, श्रम तथा समयका सदुपयोग करें । एक स्थानमें यथेष्ट अर्थ लाभ हो तो अनेक स्थानोंमें हाथ पसारनेकी क्या आवश्यकता ? । विश्वासपूर्वक यह कहा जासकता है कि-मधुच्छत्ररूप इस एक पुस्तकसे ही नाना पुस्तकरूपी पुष्पोंके भावरूप रसोंका गुण अवश्य ही प्राप्त किया जासकता है। विशेष कहनेकी आवश्यकता नहीं, क्योंकि हाथ कंगनको आरसीसे क्या प्रयोजन ? इति ।
शक सं. १८८३ रामनवमी (शनिवार)
पं. श्री चन्द्रशेखरझा लदौरा (दरभंगा)