________________
१४
/
यद्यपि इस ग्रन्थ में विषयोंका सरल शैलीसे प्रतिपादन किया गया है । तथापि बोलचाल जैसी भाषाका व्यवहार होनेसे बहुत स्थानों में अर्थोक अध्याहार, वाक्योंकी विलक्षण रचना तथा कहीं कहीं अत्यन्त संक्षिप्त एवं रहस्यपूर्णरीति से समाधान आदि के कारण कितने हीं स्थान तथा कितनी हीं उद्धृतकारिकाओंकी व्याख्या नहीं होनेसे दुरूहभी है । परन्तु भद्रकरोदया व्याख्या से इन सभी स्थानों पर उत्तमरीति से स्पष्टीकरण हो जाता है । प्रायः लोग ऐसा कहते देखे जाते हैं कि अधिकतर व्याख्याता सरल एवं सुगम विषयोंपर विस्तृत एवं कठिन व्याख्या लिखते हैं, किन्तु कठिन स्थानोंको - जिसकी व्याख्या अपेक्षित होती है-सरल जानकर छोड़ देते हैं । प्रस्तुत व्याख्या उपरोक्त आरोपसे अस्पृष्ट है । क्योंकि विषम स्थलोंपर ही विशेष कर व्याख्या की गयी है । यह भी इस व्याख्याकी एक अनुकरणीय एवं आदरणीय विशेषता है । इतना हृीं नहीं, व्याख्याकारने यहां भी स्थान-स्थानपर अपनी प्रतिभाका उत्तम उपयोग किया है तथा स्वतन्त्र रूपसे विचार भी किया है । जिसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रहा जासकता ।
कारका :- यह प्रकरण १०९ श्लोकोंका है। ये क कलिकालसर्वज्ञश्री हेमचन्द्राचार्य कृत याश्रयमहाकाव्य से लेकर यहाँ संग्रहीत कियेगये हैं । उक्त महाकाव्य के द्वितीयसर्गके अन्तके ३२ श्लोक तथा शेष ७७ लोक तृतीयसर्ग के प्रारम्भके लिये गये हैं । जो कारकका व्यावहारिक ज्ञान सुलभ कराने की भावना से प्रेरित है, यह स्पष्ट है ।