Book Title: Kappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 02
Author(s): Bhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman,
Publisher: Shubhabhilasha Trust
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सिरिभद्दबाहुसूरिरइयं ॥ कप्पसुयं ॥ ( भासविसेसचुण्णिसहियं ) ॥ बीओ उद्देो ॥ ॥ उवस्सयपगयं ॥
[सुत्तं] उवस्सयस्स अंतोवगडाए सालीणि वा वीहीणि वा मुग्गाणि वा मासाणि वा तिलाणि वा कुलत्थाणि वा गोहूमाणि वा जवाणि वा जवजवाणि वा उक्खित्ताणि वा विक्खित्ताणि वा विकिन्नाणि वा विप्पकिन्नाणि वा, नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अहालंदमवि वत्थए ॥२-१॥
उद्देसाभिसम्बन्धो—
एरिसए खेत्तम्मी, उवस्सए केरिसम्मि वसितव्वं ? | पुव्वुत्तदोसरहिते, बीयादिजढेस संबंधो ॥ ३२९०॥ अहवा पढमे सुत्तम्मि पलंबा वण्णिया ण भोत्तव्वा । सिं चि रक्खट्टा, तस्सहवासं निवारेति ॥ ३२९१॥ अवि य अणंतरसुत्ते, उवस्सतो अधिकतो णिसिं जत्थ । समणाण न निग्गंतुं, कप्पति अह तेण जोगो उ ॥ ३२९२ ॥
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" एरिसए खेत्तम्मी उवस्सए०" ["अहवा पढमे० ' 'अवि य० " ] गाहाओ तिन्नि कण्ठाओ । एएणाभिसम्बन्धेन इमं सुत्तमागतं "उवस्सगस्स अंतोवगडाए० "१ सुत्तं उच्चारेयव्वं ।
उपेत्य यत्राश्रयं गच्छन्ति स उपाश्रयः उवसग्गो त्ति वा एगद्वं । तस्स उवस्सयस्स अंतोवगडाए, वगडा णाम वतिपरिक्खेओ । अभ्यंतरग्रहणेन निवेसणवगडा उवस्सयवगडा
१. अंतोअवगडाए अ ब क ड इ ।
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