Book Title: Kamal Battisi
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 94
________________ श्री कमलबत्तीसी जी ६. आध्यात्मिक जयमाल श्री कमलबत्तीसी जी सभी जीव भगवान आत्मा, सब स्वतंत्र सत्ताधारी । पर्यायी परिणमन क्रमबद्ध, सबकी अपनी है न्यारी ।। कोई किसी का कुछ नहीं करता, कहते यह अरिहंत हैं। आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है ॥ १. श्री तारण पंथ जयमाल ७. भेदज्ञान तत्व निर्णय करना, तारण पंथ आधार है। मुक्ति सुख को देने वाला, समयसार का सार है । वस्तु स्वरूप जान कर ज्ञानी, बनता खुद भगवंत है। आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है ।। १. मन शरीर से भिन्न सदा जो, एक अखंड निराला है। धुव तत्व शुद्धातम कहते, चेतन लक्षण वाला है । ऐसे निज स्वरूप को जाने, वही कहाता संत है। आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है । ८. द्रव्य दृष्टि के हो जाने पर, द्रव्य स्वभाव दिखाता है। पुद्गल द्रव्य शुद्ध परमाणु, भ्रम में न भरमाता है । ध्रुव तत्व दृष्टि में रहता, बनता वह निर्ग्रन्थ है । आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है ॥ २. निज स्वरूप का अनुभव ही तो, सम्यकदर्शन कहलाता। स्व पर का यथार्थ स्वरूप ही, सम्यज्ञान में झलकाता ॥ निज स्वभाव में रत हो जाना, सम्यक्चारित्र अन्त है। आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है ।। पराधीन पर के आश्रय से, मुक्ति नहीं मिलने वाली। पर की पूजा क्रिया कांड सब, मन समझाना है खाली ॥ निज चैतन्य देव को पूजो, बन जाओ अरिहंत है। आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है ।। ३. निज स्वरूप को भूला चेतन, काल अनादि भटक रहा। चारों गति के चक्कर खाता, मोह राग में लटक रहा ।। सद्गुरू तारण स्वामी जग को, दिया यही महामंत्र है । आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है ॥ १०. जन जन का अध्यात्म धर्म है, निज स्वरूप को पहिचानो। बाह्य परिणमन कर्माधीन है, इसको अपना मत मानो ॥ ज्ञानानंद स्वभावी हो तुम, देखो खिला बसंत है । आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है ।। सम्यक् दर्शन ज्ञान चरण ही, मोक्षमार्ग कहलाता है। जीवमात्र का धर्म यही है, जैनागम बतलाता है ॥ धर्म साधना आतम हित में, हर व्यक्ति स्वतंत्र है। आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है ।। जाति पांति व क्रिया कांड सब, सम्प्रदाय बतलाते हैं। अज्ञानी जीवों को इनमें,धर्म के नाम फंसाते हैं । बाह्य प्रपंच परोन्मुख दृष्टि, करती यह परतंत्र है । आतम शुद्धातम पहिचानो, यही तो तारण पंथ है ॥ (दोहा) सोलहवीं सदी में हुए, सदगुरू तारण संत । शुद्ध अध्यात्म की देशना, चला यह तारण पंथ ।। जाति पांति का भेद तज, किया धर्म प्रचार । ज्ञानानंद स्वभाव से, मच रही जय जयकार ।।

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