Book Title: Kamal Battisi
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Bramhanand Ashram

View full book text
Previous | Next

Page 105
________________ श्री कमलबत्तीसी जी श्री कमलबत्तीसी जी आध्यात्मिक भजन चैतन्य वंदना हे ज्ञान सूर्य चैतन्य देव,तुमको वंदन शतवार नमन ।। टेक॥ त्रय कर्मों से तुम न्यारे हो। त्रय रत्न चतुष्टय धारे हो ॥ देहालय वासी आत्मदेव, तुमको वंदन शत बार नमन ॥१॥ परिपूर्ण ज्ञानमय अविनाशी । अविकार स्वयं शिवपुर वासी ॥ हे चिद्रूपी शुद्धात्म देव, तुमको वंदन शत बार नमन ॥२॥ तुम ज्ञायक सिद्ध स्वरूपी हो । नित ममल अभेद अरूपी हो । ज्ञाता दृष्टा धुव धाम देव, तुमको वंदन शत बार नमन ॥३॥ हे चिदानंद मय शुद्धातम । अरिहन्त सिद्ध सम परमातम ॥ ब्रह्मानन्द मय सुख धामदेव, तुमको वंदन शत बार नमन् ॥४॥ भजन -३ सम्यकदर्शन जिसे हो गया, उसका बेडा पार है। अज्ञानी मिथ्यादृष्टि का, अभी अनंत संसार है ॥ १. इस शरीर से भिन्न आत्मा, अनुभव प्रमाण यह जाना है। पर भावों से भिन्न सदा ही, शुद्धातम पहिचाना है। २. अरस अरूपी अस्पर्शी हूँ, ज्ञानानन्द स्वभावी हूँ। ज्ञेय मात्र से भिन्न सदा मैं, ज्ञायक ज्ञान स्वभावी हूँ | करना-धरना कुछ भी नहीं है, दृष्टि का ही खेल है। अज्ञानी मिथ्यादृष्टि की, जग में चलती रेल है ॥ वर्तमान शुभयोग मिले हैं, मनुष्य जन्म यह पाया है। वीतराग सद्गुरू मिले हैं, जिनवर शरण में आया है। अपना सत्पुरुषार्थ जगा लो, स्व विवेक से काम लो। जीवन का ही दांव लगा दो, भेदज्ञान को थाम लो ॥ जब तक स्व-पर ज्ञान न होवे, जन्म-मरण न छूटेगा। जिसको सम्यज्ञान हो गया, उसका बंधन टूटेगा । चेतो जागो निज को देखो यही समय का सार है। मुक्ति मार्ग पर चलने को, फिर पढ़ो श्रावकाचार है ॥ पाप विषय कषाय को छोड़ो, संयम तप स्वीकार करो। मोह राग के बंधन तोड़ो, साधु पद महाव्रत धरो ॥ भजन-४ जय हो जय हो जय हो रे, ममल स्वभाव की जय हो रे॥ १. ममल स्वभाव का उदय हो गया। सारा भ्रम अज्ञान खो गया...जय हो... २. ममलह ममल स्वभाव त्रिकाली। धुव तत्व शुद्धातम खाली... जय हो... ३. एक अखण्ड अभेद अविनाशी।। शुद्ध प्रकाशं ध्रुव धाम वासी...जय हो... ४. न कुछ था, न है न रहेगा। द्रव्य दृष्टि प्रकाश रहेगा...जय हो... ५. आनंद परमानंद बरस रहो। ज्ञानानंद अपने में हरष रहो..जय हो... भजन -२ लीजे रत्नत्रय धार, आत्मा लीजे रत्नत्रय धार...॥ १. सम्यक् दर्शन रत्न अमोलक, तीन लोक में सार...आत्मा... २. सम्यक्ज्ञान की अनुपम महिमा, सुख-शांति दातार...आत्मा... ३. सम्यक्चारित्र मुक्ति का दाता, परमानन्द भण्डार...आत्मा... ४. पर से भिन्न, स्वयं को लख लो, छूटे यह संसार....आत्मा... ५. स्व का बोध ही सम्यक्ज्ञान है, कर दे बेड़ा पार....आत्मा... ६. अपने में ही लीन रहो नित, यही मोक्ष का द्वार....आत्मा... ७. ज्ञानानन्द स्वभावी आतम, गुरू तारण रहे पुकार....आत्मा... ८. संयम तप की करो साधना, करो साधु पद स्वीकार....आत्मा...

Loading...

Page Navigation
1 ... 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113