Book Title: Kalpasutra Lekhan Prashasti Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ मार्च २००५ हरिराज के तीन पुत्र थे- जीवा, जिणदास और जगमाल । एक पुत्री थी जिसका नाम मणकाई था । जीवराज की पत्नी का नाम कुतिगदेवी था । जिणदास की प्रिया का नाम जसमादे था । नरसिंह के तीन पुत्र थे- सहसकिरण, सूरा और महीपति । सहसकिरण के दो पुत्र थे- अद्दा और सद्दा । महीपति का पुत्र वच्छराज था । हरिराज का धर्मपुत्र सुभाग था । धर्मवान हरिराज अपने परिवार सहित तीर्थयात्रा, संघपूजा, जैन धर्म की प्रभावना करता हुआ शोभायमान है । इधर भगवान महावीर स्वामी के पंचम गणधर पट्टधर सुधर्मा स्वामी हुए और उन्हीं की वंश परम्परा में हरिभद्रसूरि आदि प्रभाविक आचार्य हुए । शासन का उद्योत करने वाले उद्योतनसूरि के शिष्य वर्द्धमानसूरि हुए । इनके शिष्य जिनेश्वरसूरि ने पत्तन नगर में दुर्लभराज की राज्य सभा में खरतर विरुद प्राप्त किया था । उनके पट्टधर जिनचन्द्रसूरि हुए तत्पश्चात् नवाङ्गी वृत्तिकार श्री अभयदेवसूरि हुए । उनके शिष्य सूरिशिरोमणी जिनवल्लभसूरि हुए । तदनन्तर युगप्रधान पदधारक जिनदत्तसूरि हुए । तत्पश्चात् परम्परा में श्रीजिनचन्द्रसूरि, श्रीजिनपतिसूरि, श्रीजिनेश्वरसूरि, श्रीजिनप्रबोधसूरि, श्रीजिनचन्द्रसूरि, श्रीजिनकुशलसूरि, श्रीजिनपद्मसूरि, श्रीजिनलब्धिसूरि, श्रीजिनचन्द्रसूरि, श्रीजिनोदयसूरि और जिनराजसूरि हुए 1 इनके पट्टधर पूर्णिमा चन्द्र के समान, सूर्य की किरणों को धारण करनेवाले श्रीजिनभद्रसूरि है । उन्हीं के उपदेश से हरिराज ने स्वर्ण स्याही में यह कल्पसूत्र सन् १५०९ में लिखवाया और इसकी प्रशस्ति मुनिसोमणि ने लिखी है ।। इस प्रशस्ति का महत्त्व इसीलिए भी बढ़ जाता है कि जैसलमेर में जिसको लक्ष्मणविहार कहा जाता है, जिसके दूसरे शिलालेख की प्रशस्ति उपाध्याय जयसागर ने लिखी है। तदनुसार रांका गोत्र में जोषदे और आसदेव की परम्परा में धांधल हुए । इस प्रशस्ति में इस परम्परा के प्रतिष्ठित महनीय सभी श्रेष्ठियों के नाम और उनके पुत्रों का उल्लेख है । ये नरसिंह मम्माणी कहलाते और उनके पुत्र जयसिंह के पुत्र भोज और हरिराज ने इस जेसलमेर तीर्थ पर लक्ष्मण विहार में संवत् १४७३ में श्री जिनवर्द्धनसूरि के सान्निध्य Jain Education International tional For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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