Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 7
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि सारद बुधवाइ सेवक अंतिः भणे लालविजय निशदिश, गाथा - १८.
संपूर्ण.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२. पे. नाम. अढारनातरा सज्झाय, पृ. २अ - ३आ,
१८ नातरा सज्झाय, मु. वीरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिले ने प्रणमुं रे; अंति: वीरसागर गुण गाय रे, ढाल -३,
गाथा - ३२.
३. पे. नाम. मधुबिंदुआ सज्झाय, पृ. ३-४अ संपूर्ण,
मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरसती रे मुझ; अंति: परमपद इम मांगीइं,
गाथा - १०.
४. पे नाम, सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण.
नवपद स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र सदा सुखदाई; अंति: रामविजय मनरंगि हो, गाथा - ९. २९७१३. कलियुग सज्झाव, संपूर्ण, वि. १९५९ आश्विन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. इलोलनगर, प्रले. मु. वल्लभरूचि पठ. श्रावि. मेनां, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीकुंथुजिन आदिजिन प्रसादात्., जैवे. (२६१३, १०x३०).
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कलियुग सज्झाय, मु. प्रमोदरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे हलाहल कलजुग; अंति: धर्मध्यान कीजै रे, गाथा - ११. २९७१४. पजूसणनां नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७.५X१३, १२३५).
पर्युषणपर्व नमस्कार, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेत्रुंजो सिणगार; अंति: वीरने चरणे नमुं शीश, चैत्यवंदन-७, गाथा २१.
२९७१५. तपगरणुं संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( १ ) = १, प्र. वि. *पंक्त्यक्षर अनियमित है।, जैदे., (२६.५X१२.५). तपग्रहणविधि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति (-), पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
२९७१६. आदिजिन वीनती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २६.५X१२.५, १२×३२).
आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेत्रुंजा; अंति: देज्यो परमानंद रे, गाथा - २०. २९७१७. छ आवश्यक विचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. वीसनगर, प्रले. दलसुख अंबाराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., ( २६.५x१२.५, १३४३३).
६ आवश्यकविचार स्तवन, वा विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसई जिन चीतवी; अंति: तेह शिवसंपद लहे,
गाथा -४३.
२९७१८. (+) नवकार रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे., (२७.५x१३, १३४३३).
२९७२१. झांझरियामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैये., (२७४१३, १३४३३).
नमस्कार महांत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनी द्यो; अंति: रास भणु श्रीनवकारनो, गाथा - २५. २९७१९. पांचमहाव्रत स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे, ( २६.५X१३, ११४३३).
५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पुरवे रे; अंतिः भणे ते सुख लहे, ढाल - ५. २९७२०. (+) उपधान स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२७.५x१३, १२x३१).
महावीर जिन स्तवन- उपधानतपविधिगर्भित, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदिः श्रीवीरजिणेसर सुपरि; अंति: मुझ देज्यो भवे भवे, गाथा - २७.
झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति: सांभलता उपजे आणंद के, ढाल - ४, गाथा- ४३.
२९७२२. (+) स्तवन संग्रह व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. मु. श्रीधरसीभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (१७X१२.५, १४x२४).
१. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
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मु. हेतविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: साचा देव मया करी रे; अंति हेतविमल उलास, गाथा-९, २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पु. १आ-२अ, संपूर्ण.

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