Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 26
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११५२८६. (+) दशविधयतिधर्म व ईरियावहीनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२३-१२२(१ से १२२)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १२४४८). १.पे. नाम. दशविधयतिधर्म सज्झाय, पृ. १२३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: मला सुजश लीला अनुभवे, ढाल-११, गाथा-१३६, (पू.वि. ढाल-११ गाथा-३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. ईरियावहीनी सज्झाय, पृ. १२३अ, संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशारद चितमां धरी सद्; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा-३ तक लिखा है.) ११५२८८. (+) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:समवा०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, २१४३८). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयमे आउसं तेणं भगवय; अंति: (-), (प.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.. अध्ययन-२ प्रारंभिक पाठ अपूर्ण तक है.) समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७३, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ के पत्र है. ११५२९०. मंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४.५४१२, १३४३३). जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो हुं जाण तोरी स्थान; अंति: (-), (पू.वि. "ॐ नमो हनुमंताय वानरराजाय" पाठांश तक है.) ११५२९३. (+#) शीलव्रतोच्चार विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. भक्तिविजय; अन्य. मु. आणंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१२, १३४३५). शीलव्रतोच्चार विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम नंदी मांडी तथा ठवणी; अंति: संघ तेहने पेहरामणी करे. ११५२९४. (+) भारती प्रभाती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. वल्लभविजय; पठ. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४४४०). सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरस वचन समता; अंति: वाचा फलशी माहरी, गाथा-३३. ११५२९५. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२५.५४१२.५, ११४३१). स्तवनचौवीसी, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: उठत प्रभात नाम जिनजी को; अंति: (-), (पू.वि. सुपार्श्वजिन स्तवन अपूर्ण तक है.) ११५२९६. ऋषभनाथजी की लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४१२, १४४४५). आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: आदिकरण आदिकर जिणंद जिनराज; अंति: दीपविजय० सब कीरत कहे, गाथा-६५. ११५२९७. कर्मबंध भांगा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., दे., (२४.५४१२.५, १२४४४). कर्मबंध भांगा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सप्तम बोल उदयवर्णन अपूर्ण से है व नवम बोल लेश्यावर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ११५३०० (#) सुदर्शनासती भास व साधारणजिन पद आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १४-१८४४७-५७). १.पे. नाम. सुदर्शनासती भास, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: निवाजे रे अमृत सुख निरधार, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सुनो अविनासि साहिब; अंति: न फिरे दनिया में फेरा, गाथा-४. For Private and Personal Use Only

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