Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 26
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११५२६२. तीनचोवीसीजिन नाम व वर्तमान २४ जिन पिता नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२४४१२.५, १२४२९). १.पे. नाम. २४ तीर्थंकर नाम-अतीत, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अतीत, मा.गु., गद्य, आदि: केवलज्ञानी १ निर्वाणी २; अंति: स्पंदन २३ संप्रति २४. २. पे. नाम. २४ वर्तमानजिन नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभ १ अजित २ संभव ३; अंति: वर्द्धमानजी २४, अंक-२४. ३. पे. नाम. २४ जिन नाम-अनागत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपद्मनाभ१ श्रीसुरदेव२; अंति: अनंतवीर्य२३ भद्रकर२४, (वि. अंत में बृहद शांति की "ॐ मुनयो" से प्रारंभ होने वाली गाथा दी है.) ४. पे. नाम. वर्तमान २४ जिन पिता नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन पिता नाम-वर्तमान, सं., गद्य, आदि: ॐ श्री नाभि१ जितशत्रु२; अंति: अश्वसेन२३ सिद्धार्थ२४. ११५२६३. २४ जिन परिवार परंपरा संपदादि बोल विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:ओलोवो., दे., (२४४१२, २२४३६). २४ जिन परिवार परंपरा संपदादि बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेला ऋषभदेवजी चोरासी गच्छ; अंति: मारो वनण नमसकार हुजो. ११५२६४ (+#) गौतमाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. पं. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४२२). गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-१०. ११५२६५. आदिजिन स्तुति व चंद्राननजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२.५, ५-११४३१-३६). १.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: शुभ्रामरी भासिता, श्लोक-४, (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चंद्राननजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नलिनावती विजये जयकारी; अंति: देशो धर्मनेह निरवहेशो रे, गाथा-७. ११५२६६. (+) मंडल प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ८४४३). मंडल प्रकरण, मु. विनयकुशल, प्रा., पद्य, वि. १६५२, आदि: पणमिय वीरजिणंद भवमंडलभमण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ तक लिखा है.) मंडल प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम नमस्कार करीनइ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ११५२६७. संलेखना पाठ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सल., दे., (२५४१२, १६४२९). संलेखना पाठ, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अपच्छिम मारणंतीय; अंति: तस्स मिच्छामिदक्कडं. ११५२६९ (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, ११४३१). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१८ अपूर्ण तक है.) ११५२७०. स्थानांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५५-५४(१ से ५४)=१, प्र.वि. हुंडी:ठाणायंग., जैदे., (२४.५४१२, ७X४२). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्थान-३ उद्देश-२ अपूर्ण से है व उद्देश-३ अपूर्ण तक लिखा है.) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private and Personal Use Only

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