Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 26
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची षट्कारक व्यवहारनिश्चयदृष्टांत स्वरूप छप्पय-बालावबोध, पुहि., गद्य, आदि: (१)अब षटकारक आपही के विषे, (२)प्रथम कर्ता१ कर्म२ करण३; अंति: तातें परकं काहे• चाहै. ४. पे. नाम, सिद्ध जयमाला पूजा, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. पद्मनंदि, सं., पद्य, आदि: ॐ उ धोरयुतं; अंति: मचर्ल संचर्चचामो व्ययं. ५. पे. नाम, सिद्धचक्र जयमाल, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. पद्मनंदि, सं., पद्य, आदि: त्रीलोक्येश्वर वंदनीय चरण; अंति: पद्म० सोम्येति मुक्तिम्, श्लोक-११. ११५३३६. (+) मौनएकादशीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. गोविंददास साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२.५, ११४३०). मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ संभाली; अंति: श्रीसंघ विघन निवारी, गाथा-४. ११५३३७. (+#) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१३, १०x२०). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु समरी रे वाणि; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ११५३४२. (+) स्तुति, भास व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, कुल पे. ६, ले.स्थल. वालूचर, प्रले. मु. शिवदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१३, १६४३३). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. २. पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: वीर जिणेसर अरथ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. लब्धिचंद्रसूरि वधावो, पृ. ३अ, संपूर्ण. लब्धिचंदसूरि वधावो, पा. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: वहिला पधारोजी रे वाला; अंति: मन गुरुचरणै वस रह्यो, गाथा-५. ४. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि गंहली, पृ. ३अ, संपूर्ण.. जिनचंद्रसूरि गहंली, मु. जीतरंग, मा.गु., पद्य, आदि: आज आनंद मुझ अती थयो; अंति: लहे रे जीतरंग उलास, गाथा-६. ५. पे. नाम. लब्धिचंद्रसूरि वधावो, पृ. ३आ, संपूर्ण. लब्धिचंदसूरि गहली, मा.गु., पद्य, आदि: गच्छपती आया हे सहेली; अंति: हे सहेली मारो गच्छपति, गाथा-८. ६. पे. नाम, भगवतीसूत्र भास, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. संबद्ध, श्राव. मनसुखदास दुग्गड, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणी नित नमुं; अंति: परम आणंदै रे लो अहो गावो, गाथा-१८. ११५३४४. (+) शिक्षारूप स्वाध्याय, सीमंधरजिन स्तव व राधाकृष्णभक्ति पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१३, १२-१७४३३-४१). १. पे. नाम, शिक्षारूप स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दुर्मतिविषये, मा.गु., पद्य, आदि: दुरमतडी वेरण थई लीधो; अंति: पदवीमां जै मलसे, ढाल-२, गाथा-१५. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामि स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, म. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरजी सुणजो; अंति: लालचंद कहे० एही अरदासो जी, गाथा-७. For Private and Personal Use Only

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