Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 21
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१
www.kobatirth.org
2
आगमछत्रीशी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुहगुरु चरणकमळ प्रणम; अंति: पासचंदि हरखिं भणिय,
गाथा - ३५.
८९१४९. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५.५x११, १०x३६)
पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि सुणि माहरी अरदास रे अति सगलइ पिण जोवइन हारे, गाथा -९. ८९१५०. आदिजिन व वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. मना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X१०.५, १५X४० ).
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: श्रीरिषभ सघला पत्नी जा; अंतिः कोई राखीजी मती, गाथा १५. २. पे नाम वासुपूज्यजिन स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण,
मु. . रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: श्रीवासुपूज्य संजम; अंति: जगगुरु पांचु जिणंदो, गाथा-१५. ८९१५१. (*) नमस्कारमहामंत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५x१०.५,
११X३५).
नमस्कारमहामंत्र सज्झाय, मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रवचन जगजय; अंति: मुनि विमलमनिधरी जगीस,
गाथा - १३.
८९१५२. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६x१०.५, २२४५१).
विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि प्रमोदाय कृतोप्यासीद अंति: देहसंख्या स्वमानेन.
८९१५३. (+*) सम्यक्त्वना ६७ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ टीकादि का अंश नष्ट है, जैवे., (२५.५X११, १६x४८).
६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चउसद्दहणा तिलिंग दस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, प्रकार-८ प्रभावना का वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.)
८९१५४. (f) पार्श्वनाथ बारमासो, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५.५४१०, १५X४१-४६).
४५१
मु. नवल, मा.गु., पद्य, आदि हा रे बिदरा लग्यादि अति: नवल० भव तुम पाए सेव गाथा ४.
,
३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: ०जिणेसरु प्रभावती; अंति: ते सुजाण सुविचारी, गाथा - २९, (वि. आदि व अंति वाक्य का आंशिक भाग खंडित है.)
८९१५५. क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : क्षमाछत्रीशी., जैदे., (२५.५X१०.५, १७५८). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षमागुण; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी,
गाथा - ३६.
"
८९१५६. स्तवन, पद व प्रहेलिका संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ५, दे. (२५.५५११, १३४४३-५६). १. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. हीरधर्म, पुहिं., पद्य, आदि: जिणंदवा मिल गयो रे; अंति: धरम से लेह भयो हे, गाथा-५.
२. पे नाम साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लबधि गुरु गौतमस्वामी; अंति: अनोपम गुणसागर गंभीर, गाथा-४.
५. पे नाम प्रहेलिका संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि गिरिसुतापति दीकरी; अंति राज हो सरन मन मांहे, गाथा-२.
पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मे मुख देख्यो पारस, अंति: रूपचंद० तरण जिहाज, गाथा-४.
४. पे. नाम महावीरजिन पद, पू. १अ १आ, संपूर्ण,
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612