Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 21
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 473
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९२१० (+) महाविरजिन, साधारणजिन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८९, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १९४४६). १.पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: सासननायक सुखकारी; अंति: चर्मजीणेसर जीवरा जडी, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आउखो तटांनै सांधो; अंति: होज्यो निस्तार रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. शिवलाल, पुहि., पद्य, आदि: श्रीजिनराज सुणी लीयै; अंति: शिवलाल०लिज्यो अवधारी, गाथा-६. ८९२११. १० श्रावक गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. गिरिधरदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४३). १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठि प्रणमुं; अंति: कहइ मुनि श्रीसार रे, गाथा-१४. ८९२१२. (+#) विजयसेनसूरि सज्झाय व राशितिथिनक्षत्रादि कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४५२). १.पे. नाम, विजयसेनसूरि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विशालसुंदर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणसर सोलमु समर; अंति: विशालसुंदर० पाय रे, गाथा-११. २. पे. नाम. राशितिथिनक्षत्रादि कोष्ठक, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: मेष वृष मिथुन कर्क; अंति: आद्रा पुष्य० चोघडीयो. ८९२१३. साधारणजिन स्तुति, औपदेशिक पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४११, १६४४१). १. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. विमलकीर्ति, मा.ग., पद्य, आदि: बाहुबल चारित लीयो; अंति: विमलकीरति सुखदाइ, गाथा-१२. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मेघाशिष्य ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सिणगार सजी करी; अंति: मेघाशिष्य आत्ममा काज, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-माया, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: माया कारिमी रे भूलो; अंति: आराधइ नमि सुरनर पाइ, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर तुमसम ओर न कोइ; अंति: हित अनहित अवलोइ हो, गाथा-३. ५. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि.,सं., पद्य, आदि: बेगला ते दूकडा दूकडा; अंति: निर्दिदस्य निदि वपु, गाथा-२. ८९२१४. गुरुगुण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४१०.५, १०४३४-३८). विजयधर्मसूरि गरुगण गीत, म. जैनेंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी मात; अंति: गुरु चीरंजीवो रे, गाथा-१४. ८९२१५ (-) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१०.५, ३५४१८). १. पे. नाम. वृत्यादि बोल संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ४२ बोल संग्रह-आगमिक वृत्यादि मध्ये, रा., गद्य, आदि: चक्रवर्तिना कटिक चूर; अंति: ते सर्व असाधु जाणिवा. २. पे. नाम. भगवतीनी वृत्ति बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जतीनि खाडांतरूयारि; अंति: न थाइ सधांति कहीउ छइ. ८९२१६. स्थूलिभद्र एकवीसो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:श्रीथुलिभद्र एकवीसो., जैदे., (२५.५४११,११४३५). स्थूलिभद्र एकवीसो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: आविउ आविउ रे जलहर; अंति: बोलइ अंगी निरमल थाईइ, गाथा-४२. ८९२१७. थूलभद्र गीत व थंभणपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३४). For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612