Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 21
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.२१) KAILĀSA ŚRUTASAGARA GRANTHASÚCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts Vol 1.1.21 बदरिमीणासिवमा वादमहारा॥ छानामाझियाशि धीरानगवडमहावार आचार्य श्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर राम AFRAID मादागारभित वरती यानापानसतारा सिगात्रावादाम anpuनाम For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.२१) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची के आशीर्वाद व प्रेरणा | आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी हावीर भी । एतत विद्या ले प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५४२० वि.सं. २०७२ ० ई. २०१६ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २१ Aacārya Śhrī Kailāsasāgarasūri Smsti Granthasūcī - Ratna 21 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.२१ Kailāsa Śrutasāgara Granthasūcī: 1.1.21 * संपादक मंडल * पं. संजयकुमार आर. झा पं. गजेन्द्र पढियार पं. अरुण कुमार झा पं. भाविन पंड्या पं. अश्विन भट्ट पं. रामप्रकाश झा पं. नवीनभाई वी. जैन डॉ. उत्तमसिंह पं. राहुल त्रिवेदी * संयोजक * डॉ. हेमन्त कुमार * संपादन सहयोग * परबत ठाकोर संजय गुर्जर * कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग * केतन डी.शाह For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २१ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथाना विस्तृत सूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची • वर्ग - १: जैन साहित्य खंड - २१ से आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Śrī Dēvarddhigaņi Kșamāśramaņa Hastaprat Bhāņdāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section - I: Manuscripts Catalogue * Class - I: Jain Literature Volume - 21 * Blessings & Inspiration of Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Publishers Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, (Guj.) India 2016 For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 21 Kailāsa Śrutasāgara Granthasūcī: 1.1.21 Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.21 Preserved in Śrī Dēvarddhigani Kșamāśramaņa Hastaprat Bhāņdāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir ००: Publisher OVir Samvat 2542, Vikram Samvat 2072, A.D. 2016 Edition : First ० प्रकाशन सौजन्य : शेठ श्री देवीचंद, विकासकुमार, अनिलकुमार चोपड़ा परिवार (बच्छराज डेवलपर्स), मुंबई Sheth Shri Devichand, Vikaskumar, Anilkumar Chopda Parivar (Baccharaj Developers), Mumbai OAvailable at: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth o Publisher : Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382007. (Guj.) INDIA Tel: (079)23276204,23276205,23276252, Whatsapp : 07575001081 Website: www.kobatirth.org E_mail : gyammandir@kobatirth.org O Price : Rs. 1500/ O ISBN: 81-89177-00-1 (Set) 978-81-89177-94-2 (Vol.21) O Printer : Navprabhat Printing Press, Ahmedabad * उपलक्ष * श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के ८२वें जन्मोत्सव के पुनीत प्रसंग पर 4.वि. सं. 2072, भाद्रपद शुक्लपक्ष, (द्वि.) नवमी, रविवार दि. 11-09-2016 For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अर्हम् नमः ॥ मंगल कामना तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार-भाष्यकार-चूर्णिकार-टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋणस्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. __ अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सर्वप्रथम सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरे-धीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित-समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस सूची में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का जो भगीरथ कार्य मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी ने जो सहयोग दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहमूल्य सहयोग दिया है, उन सबकी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को उत्तरोत्तर गति प्रदान की, वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक कार्य है. डॉ. हेमन्त कुमार, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, श्री गजेन्द्र पढियार, श्री नवीनभाई जैन, श्री अरुण कुमार झा, डॉ. उत्तमसिंह, श्री भाविन पंड्या, श्री राहुल त्रिवेदी, श्री अश्विन भट्ट आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. संस्था के अध्यक्ष श्री सुधीरभाई मेहता, ज्ञानमंदिर में चल रही विविध गतिविधियों की देख-रेख करनेवाले अन्य ट्रस्टीगण व कारोबारी सदस्य सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत २१वें खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले शेठ श्री देवीचंद, विकासकुमार, अनिलकुमार चोपड़ा परिवार (बच्छराज डेवलपर्स), मुंबई के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ. बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों के अपने-आप में विशिष्ट प्रकार के सूचीपत्र कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का २१वाँ खंड प्रकाशित हो रहा है, जो ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वज्जन इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकासपथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. पनसागर सरि For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org * प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के २० वें खंड को चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है. यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों के सूचीकरण हेतु वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी तथा यहाँ के पंडितवर्यों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. पंडितों के साथ-साथ करीब तीस कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती हैं. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो इस कार्य को आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में चल रहे श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण एवं कारोबारी सदस्य तो अत्यन्त उत्साही व सक्रिय रहे ही हैं, साथ-साथ ज्ञानमंदिर को आज की ऊँचाईयों तक पहुँचाने में भूतपूर्व ट्रस्टीयों एवं कारोबारी सदस्यों का भी जो महत्त्वपूर्ण योगदान प्राप्त हुआ है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची - जैन हस्तलिखित साहित्य के इस २१वें खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता शेठ श्री देवीचंद, विकासकुमार, अनिलकुमार चोपड़ा परिवार (बच्छराज डेवलपर्स), मुंबई के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस २१वें रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट - कोबातीर्थ, गांधीनगर II For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13888888888888888888888888888 संघवी शेठश्री कुशलराजजी बच्छराजजी कंकु चौपड़ा की स्मृति में पचपदरा (राज.) हाल मुंबई निवासी संघवी परिवार श्रीमती उमरावदेवी कुशलराजजी कंकु चौपड़ा 8888888888888888888888888888 पुत्र-पुत्रवधु : पौत्र-पौत्रवधु : शा देवीचंद-सौ. विमला देवी विकास-सोनालिनी अनिल-निधी प्रियांश-विराज प्रपौत्र : प्रपौत्री विदीशा फर्म : बच्छराज डेवलपर्स, मुंबई For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *प्राक्कथन* कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में प्रकाशित हो रहे इस २१वें रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. प्रस्तुत भाग में संस्कृत, प्राकृत व देशी भाषाओं की आगमिक साहित्य, कर्मसिद्धान्त की मूल, टीका, अवचूरि आदि महत्त्वपूर्ण कृतियों के अतिरिक्त देशी भाषाओं की रास, कथा, औपदेशिक-सुभाषित पद आदि अनेक कृतियाँ भी अप्रकाशित प्रतीत हो रही हैं. जिसमें यशोविजयजी रचित गुरुपद पूजा-अष्टप्रकारी व २४ जिन स्तवन-अष्टमीतपगर्भित, जिनहर्ष रचित सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, सकलकुशल रचित २४ जिन बहिर्लिपिका स्तवन आदि अनेक कृतियाँ संशोधन-संपादन हेतु विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. हस्तप्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही जटिल व कष्टसाध्य होता है, परंतु उनमें समाहित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ, जो अद्यावधि विद्वद्वर्ग की नजरों से ओझल थीं, उन्हें आपके कर-कमलों में समर्पित करने का यह सुंदर परिणाम हमारे लिये अपार संतोषदायक सिद्ध हो रहा है... __ जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत ही जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ विविधस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व परासामग्री; इस तरह छः भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्त्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकरण का कार्य कर दिया गया है. प्रस्तुत सूची के पूर्व के सभी खंडों की तरह इस खंड में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची तो श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी को आधार रखकर हमने यह संपादनकार्य किया है. मुनिश्री के हम चिरकृतज्ञ हैं. समग्र कार्य के दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. तथा श्रुताराधक आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी म. सा. की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; फलतः हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है. ___ प्रतों की प्राथमिक सूचनाओं की कम्प्यूटर में प्रविष्टि तथा सन्दर्भ हेतु पुस्तकें आदि शीघ्रतापूर्वक उपलब्ध कराने हेतु ज्ञानमन्दिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है. फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह गई होंगी. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें, जिससे भविष्य में प्रकाशित होनेवाले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल III For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ........ji ................... iii अनुक्रमणिका मंगलकामना. प्रकाशकीय........................................... प्राक्कथन.............................. अनुक्रमणिका ......................................................................................................................iv प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत ..... ............................................................................... V-V1 हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य एवं सादर ग्रंथ समर्पण...................... .....vii-viii हस्तप्रत सूची......................... ...........................................................१-४७१ परिशिष्ट : कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या.... ..................४७२-५९६ १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १. .४७२-४९२ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २. ......४९३-५९६ परिवार इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ VI एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ 454 पर हैं. कृपया वहाँ पर देख लें. प्रस्तुत खंड २१ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. * प्रत क्रमांक - ८५६२६ से ८९३२० * इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से इस खंड में ३६०८ प्रतों की सूचनाओं का समावेश हुआ है. * समाविष्ट प्रतों में कुल ४३६९ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. * इन परिवारों की कुल ४५७२ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. * सूची में उपरोक्त कृतियाँ कुल ६३४५ बार आई हैं. IV For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ($) . कृति/प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक. (-) .......... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. (+)......... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में- प्रत की महत्ता सूचक. - इस हेतु प्र. वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्त्ता कर्त्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित शुद्धप्राय - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत, यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद- संधि सूचक - वचन विभक्ति - क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. - . कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान यथा आवश्यकसूत्र सह निर्युक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. (#) ......... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में. प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र. वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. मूल पाठका, टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. ********** कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में ऊर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--) ......... आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप............ अपभ्रंश (कृति भाषा) अंति:......... अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ............. आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदिः........ आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप............. प्रत प्रतिलेखन उपदेशक (प्र. ले. पु. विद्वान ) उपा. . उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ग. गडी. www.kobatirth.org ******... ऋ.. ........ ऋषि (विद्वान स्वरूप) क .............. कवि (विद्वान स्वरूप) कुं.. कुल ग्रं. ....... कुंडली (कृति स्वरूप) .मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्वप्रथाग्र परिमाण प्रत व पेटाकृति विशेष में. कुल पे. ....... कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) क्रीत............प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान ) गा. * प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत * कृति नाम के अंत में विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. को............. कोष्टक (कृति स्वरूप) ....... गणि (विद्वान स्वरूप) ...........गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य........... गद्यबद्ध (कृति प्रकार) . गाथा (कृति परिमाण) . गुजराती (कृति भाषा) गुटका......... बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) क्वचित् गोटका शब्द भी प्रयुक्त होता है. V गु. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गृही.......... गृहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला | प्रे. प्रतलेखन प्रेरक. (प्र. ले. पु. विद्वान) (प्र. ले. पु. विद्वान) बौ............. बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) .मराठी (कृति भाषा) गोल.......... गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) ग्रं........... . ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) जै.............. जैन कृति (कृति परिशिष्ट) जै.क. . जैन कवि (विद्वान स्वरूप) जैदे............ जैन देवनागरी (प्रत लिपि) ते. . जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) .... आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला (प्र. ले. पु. विद्वान) दत्त.. दि.............. जैन दिगंबर कृति. जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट) .... देवनागरी (प्रत लिपि) देना.. पं.............. पंजाबी (कृति भाषा ) पं. ............ पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) पठ. ....... पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान) प+ग......... पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार) पद्यबद्ध (कृति प्रकार) . पाठक (विद्वान स्वरूप) ...--------- महा. मा. मा.गु. मु.. मु.. मूपू.. ये. ........... ......... यंत्र (कृति स्वरूप) रा.............. राजा (विद्वान स्वरूप) पद्य.. पा. पु. हिं......... पुरानी हिंदी (कृति भाषा ) पू. वि.......... पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व विक्र वी.. पूर्व. ......... रा.. . राजस्थानी (कृति भाषा ) राज्यकाल ... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. राज्ये......... जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का लेखन हुआ हो. लिख .प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) | ले. स्थल..... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) वा. . वाचक (विद्वान स्वरूप) वि..............विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्र. ले. ........... कृतिमाहिती स्तर) . कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि. 'श. आदि के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक. पृ.............. पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर पर) पे. नाम. . प्रतगत पेटाकृति नाम पे. वि ......... प्रतगत पेटाकृति विशेष पै.............. पैशाची प्राकृत (कृति भाषा ) प्र. वि......... प्रत विशेष. प्रले........... प्रतिलेखक, लहिया, (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, श्रु... पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर .) प्र. ले. पु.... प्रतिलेखन पुष्पिका की (प्रत / पेटाकृति / कृति स्तर) ('सामान्य, मध्यम' आदि उपलब्धता सूचक.) प्र.ले.श्लो.... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखि प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) प्र. सं......... प्रति संशोधक प्रा............. प्राकृत (कृति भाषा ) . महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा ) .मागधी प्राकृत (कृति भाषा) . मारुगुर्जर (कृति भाषा ) . मुनि (विद्वान स्वरूप) . मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) . जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) ............. सं.. सम. VI सा. स्था. वै.......... . वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ........ व्या.प. ....... व्याख्याने पठित - विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान) श.. ....... . शक संवत् (वर्ष माहिती - प्र. ले. पु. कृति रचना वर्ष ) श्राव.......... श्रावक (विद्वान स्वरूप) श्रावि......... श्राविका (विद्वान स्वरूप) . . श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान ) श्वे............. जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट) रचना वर्ष) विक्रेता - प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान) ....... वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. २०००. वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वी सदी'. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति रचना वर्ष) पु., कृति . संस्कृत (कृति भाषा) . समर्पक ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) .... साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) . जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) हिं.............. हिंदी (कृति भाषा ) For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (* सुकृत केसहभागी *) * हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली * 0000000000000000000OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), |१७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी अहमदाबाद पालडी अहमदाबाद | १८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, सुरत २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार, अहमदाबाद १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ । अहमदाबाद ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर मुंबई | २०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, आरे रोड, गोरेगाँव मुंबई वालकेश्वर मुंबई |२१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, बेंग्लोर ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ ||२२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट, बेंग्लोर ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ | २३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, महुडी ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया || २४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव मुंबई २५. श्री जुहु स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) मुंबई ९.जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया अमेरिका |२६. श्री शांतिनाथ देरासर जैन पेढी, श्री शंखे. पार्श्व., १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग अहमदाबाद | बावन जिनालय, देवचंदनगर रोड, भायंदर (वे.) थाणा मुंबई ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल मुंबई | २७. श्री जैन पंच महाजन मांडाणी (राज.) १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट मुंबई |२८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ |१३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ मेवानगर (राज.) __ अमेरिका, 'जैना' हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा अमेरिका | २९. श्री संभवनाथ जैन ट्रस्ट बिसलपुर (राज.) १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन मुंबई |३१. श्री पुष्पदंत श्वे. मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी ___ मुंबई |३२. श्री सेटेलाईट श्वे. मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद १६. श्री सांताक्रुज जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ ३३. श्री वेपेरी श्वे. मू. पू. जैन संघ चेन्नई जैन देरासर मार्ग, सांताक्रुज (वे.) मुंबई मुंबई मुंबई मुंबई * हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली * १. श्री आदिनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर २. श्री रांदेर रोड जैन संघ ३.बी. एम. एफ. के. सदन - हस्ते श्री भरतकुमार एम. शाह ४. श्री सीमंधरस्वामी जिनमंदिर पेढी गांधीरोड, पझल, चेन्नई सुरत अहमदाबाद महेसाणा VII For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (* सुकृत के सहभागी * ) हस्तप्रत सूचीकरण में 9 से २७ भाग के आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. रमेशकुमार चोथमलजी, तारादेवी रमेशकुमार : सन्स नोवी, हाल शिवगंज (राज.) २. श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ३. घाणेराव (राजस्थान) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई । एस. देवराजजी जैन चेन्नई ४. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ५. मांडवला (राज.) निवासी संघवी मुथा मोहनलालजी रघुनाथमलजी सोनवाडीया परिवार चेन्नई ६. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ९. शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी अहमदाबाद १०. श्री भवानीपुर मूर्तिपूजक जैन श्वेताम्बर संघ कोलकाता ११. श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार कोलकाता १२. श्री सांताक्रुज जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ मुंबई १३. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) यु.एस.ए. १४. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन), यु.एस.ए. १५. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद १६. श्री विजय देवसूर संघ श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज, पायधुनी मुंबई १७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर १८. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद १९. श्रीमती छगनकंवर अमृतलालजी गांधी परिवार सिरोही-जोधपुर २०. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद २१. शेठ श्री देवीचंद, विकासकुमार, अनिलकुमार चोपड़ा परिवार (बच्छराज डेवलपर्स) मुंबई * सादरसमर्पण* कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में... जिनके द्वारा यह श्रुतपरंपरा अक्षुण्ण रही. VIII For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्री महावीराय नमः॥ ॥ श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ।। कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८५६२६. () ऋषभजिन प्रथमतीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:ऋषभस्तव०, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, १२४३५). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: पामी सुगुरु पसाय; अंति: विनय करीने वीनवू ए, गाथा-५८. ८५६२७. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. प्रल्हाद लहिया, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, ११४३८). औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माया कीधी जीव कारमी; अंति: दिवविजय० उतरशे भवपार, गाथा-१२. ८५६२८. वर्द्धमानस्वामीनुं पारणु, संपूर्ण, वि. १८९०, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२, ३९४२०). महावीरजिन पारणं, मु. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशलाए पुत्र; अंति: कहे थास्ये लीला लहेर, गाथा-१८. ८५६२९. शत्रंजयतीर्थ स्तवन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १३४४०). १.पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा नवाणु करिइं; अंति: पद्म कहें भवतरिइं, गाथा-५. २. पे. नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांतिजिणेसर साहिबो; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. ८५६३० (+) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १३४३५). औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ऐक अनोपम शिखामण; अंति: उदयरतन एम भणे, गाथा-१०. ८५६३१. मौनएकादशीपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७.५४१२, १२४२८). मौनएकादशीपर्व सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: हरी पुछे नेमने हो; अंति: रे हुं वारी वीतरागनी, गाथा-९. ८५६३२. () पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, ३०७८-१५). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: ७०सूरिंद्रसूरिश्वरो. ८५६३३. सिद्धपद सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, १२४३६). सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम प्रसा करो; अंति: कहे सुख अथाग हो गौतम, गाथा-१६. ८५६३४. (4) पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १२४२६). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रांगि मुनि, ढाल-६, गाथा-४९. ८५६३६. पुण्य सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, दे., (२७४१२, १२४३४). १. पे. नाम, पुण्य सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: माणक धरम करो सुखदाय, गाथा-२९, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से है.) - For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, प. २आ-३आ, संपूर्ण. म. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमी जिनचरण; अंति: विजयभद्र० नवी अवतरे, गाथा-२५. ८५६३७. अध्यात्मबत्तीसी व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२७४१२, २९x१८). १. पे. नाम. अध्यात्मबत्तीसी, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर परमेश्वरकुं; अंति: कहे अरिहंत देवरे, गाथा-३२. २.पे. नाम. अजितजिन स्तवन-चोथा आरा, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. तेजसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: चोथो आरो जिनवर वारो; अंति: तेज० जिनवर नाम जुगते, गाथा-५. ८५६३८. (+) चतुर्विंसतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-८(१ से ६,८ से ९)=२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १०x२९). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: तुं जीवजीवन आधारो रे, स्तवन-२४, गाथा-१२१, (पू.वि. धर्मजिन स्तवन से कुंथुजिन स्तवन गाथा-२ अपूर्ण तक व नेमिजिन स्तवन गाथा-३ अपूर्ण से है.) ८५६३९ नेमराजिमती स्तवन व ५ इंद्रि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १०४३३). १. पे. नाम. पनरेतिथि नेमजी स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिनमुख कमले राजे; अंति: रंगविजय वधते रंगे, गाथा-२३. २.पे. नाम.५ इंद्री सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आप तुजने शीख चतुरनर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है व __ अंतिम प्रशस्ति वाली गाथा नहीं है.) ८५६४० (-) मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४१२.५, १६४३२). मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: जंबू तो दिपै हो भरथ; अंति: मूगतरो खोल्यो बारणां, गाथा-१७. ८५६४१. पर्युषणपर्व सज्झाय व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १०x४७). १.पे. नाम, पजूसण स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमु सरसति; अंति: तस सीस वल्लभगुण गाय, गाथा-१६. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परव पजुसण पुन्ये; अंति: सुजस महोदय कीजे, गाथा-४. ८५६४२. अजितजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, १५४५४). १. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीपना भरत मे; अंति: रायचं०करपा करो जगनाथ, (वि. प्रतिलेखक ने २ के बाद गाथांक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पुहे महीने सी पडै सक; अंति: ढी मुक्तना फल पायावे, गाथा-२८. ८५६४४. आत्म स्वाध्याय, सिक्षानी स्वाध्याय व शाश्वताशाश्वतजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४३३). १.पे. नाम. आत्म स्वाध्याय, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रीउडो; अंति: राजसमुद्र० सोभागी रे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २. पे. नाम. शिक्षानी स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. उदयरत्न, पुहिं., पद्य, आदि: सोइ सयाना जानीयो जिन; अंति: तेहनी जावू बलीहारी, गाथा-५. ३. पे. नाम. शाश्वताअशाश्वताजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. महोदय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर प्रमुख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८५६४५. गीत व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे.५, जैदे., (२५.५४१२, १६-१८४५०). १. पे. नाम. सुलसामहासती सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विमल गुण गाय रे, गाथा-१०, (पृ.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नंदीषेणमुनि सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहो रहो रहो रहो वालम; अंति: रूपविजय जयकार लाल रे, गाथा-५. ३. पे. नाम, नमिरायनी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मथुरानगरीनो; अंति: जी हो उतारे भवपार, गाथा-७. ४. पे. नाम, रथनेमिराजिमती गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल चाली रंगसु रे; अंति: समयसुंदर० अविचल लील, गाथा-५. ५. पे. नाम, धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अजिया जोरावर करमें; अंति: उदय० जे भवजल तीर रे, गाथा-७. ८५६४६. १० अच्छेरा सह टबार्थ, औपदेशिक दोहा व उपदेशरसालछत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२, १७-१९४३५-३७). १.पे. नाम. दश अच्छेरा सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-१० आश्चर्य गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्ग१ गब्भहरणं२; अंति: दश वि अणंतेण कालेण, गाथा-२. कल्पसूत्र-१० आश्चर्य गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: गर्भापहार महावीरजीनो; अंति: अछेरा अनंते काले थाइ. २.पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक दहासंग्रह-विविधविषयोपरि*, पुहि.,मा.ग.,रा., पद्य, आदि: तिमिर गइ रवि देखते; अंति: ज्यों बालूकी भीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. उपदेसरसालछत्तीसी, पृ. १अ, संपूर्ण. उपदेशरसालछत्तीसी, मु. रुघपति पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचरण नमी करी; अंति: समज्यां मंगलीक माल, गाथा-३७. ८५६४७. (+) सिद्धदंडिका स्तव व ३६ राजकुल नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पालिताणा, प्र.वि. श्री ऋषभदेवजी प्रासादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३८-४३). १. पे. नाम, सिद्धदंडिका स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: दिंतु सिद्धिसुहं, गाथा-१३. २.पे. नाम. ३६ राज कुल नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ३६ राजकुल नाम, मा.गु., गद्य, आदि: (१)रायकुली छत्रीसे सोय, (२)गोचर गोयलनि१ गोहिला२; अंति: जाति कहीइं पडिआर३६. ८५६४८. औपदेशिक लावणी, कगरु लावणी व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४११.५, १३४४५). १. पे. नाम, औपदेशिक लावणी-धर्म, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: किसीकी भुंडी नाही; अंति: एक प्रभु दरसण चहीए, गाथा-४. २. पे. नाम, कुगुरु लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तजु तजु में उन; अंति: कुगुरुसंग नीवारी हे, गाथा-४. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कनकसौभाग्य शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी सीमंधरस्वामी; अंति: भवियण गुण गावसे जी, गाथा-५. ८५६४९. भलेनो अर्थ, संपूर्ण, वि. १८८६, माघ शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. नाडोल, प्रले. पं. खुशालरत्न (गुरु पं. आसकरण); गुपि.पं. आसकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में 'प्रीतार्थे' ऐसा लिखा है., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३७). भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मु. महानंद, मा.गु., गद्य, वि. १८३९, आदि: श्रीप्रभु श्रीमहावीर; अंति: परमानंद पद पामस्यो. ८५६५०. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४१२, ९४२९). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२० अपूर्ण तक लिखा है.) ८५६५१. ५ संस्थानभेद विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १६x४७). ५ संस्थानभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पांच संठाणमे कोनसे; अंति: (-). ८५६५२. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १३४३२-३६). महावीरजिन स्तवन-जन्मकल्याणकगर्भित, मु. धनदास, मा.गु., पद्य, वि. १९०९, आदि: प्रथम जिनेस्वर पाय; अंति: ___ धनदास० में गाय सुणाइ, ढाल-४, गाथा-८१. ८५६५३. (+#) शालिभद्रधन्नाकीरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १८७२, वैशाख शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. १६-१४(१ से १४)=२, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. श्रावि. छोटी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सालभद्रका चोपाइना., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, १६-१७४३६-४०). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदिः (-); अंति: मनवंछत फले लेसी जी, ढाल-२९, ___गाथा-५१०, (पू.वि. अंत की दो ढाल हैं.) ८५६५५ (+) भानुमुनि ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, २२x६०). भानमनि ढाल, मु. दयाचंद, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: वर्द्धमान वरदायको नम; अंति: दयाचंद०लोभी चीत धन ए, ढाल-३. ८५६५६. () साधुपद व मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:तवन., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १७४४२-४६). १.पे. नाम. साधपद सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९१०, आश्विन शुक्ल, ९, प्रले. मु. रामचंद्र (जेमलगच्छ); पठ.सा. तीजी (गुरु सा. छोटा सती); गुपि.सा. छोटा सती, प्र.ले.प. सामान्य, पे.वि. प्रतिलेखन स्थल मिटाया गया है. मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: समगतिधारी सुद्धमतिहर; अंति: चंद्रभाण० थासी सीद्ध, गाथा-१७. २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पाली, प्रले. सा. तीजी (गुरु सा. छोटा सती); गुपि. सा. छोटा सती, प्र.ले.प. सामान्य, पे.वि. यह कति बाद में लिखी गई है. रा., पद्य, आदि: धारणी समजावे हो मेग; अंति: हइजो कोड कीलीयांण, गाथा-१०. ८५६५७. तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३२-३६). २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजे ऋषभ समोसर्य; अंति: रे समयसुंदर कहे एम, गाथा-१६. ८५६५८. (+#) खंधकमनि चौढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १७४३२-३६). खंधकमुनि चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: सावत्थी नगरी सोहामणी; अंति: हो करज्यो सहू कोय, ढाल-४, गाथा-२४. For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८५६५९ (+) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ६, प्र.वि. अबरखयुक्त पाठ. कृतिविक्षेप के कारण काल्पनिक पत्रांक दिये गये हैं., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३-१७४४०-५०). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ग. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीजिनहर्ष सवाईजी, गाथा-४, (प.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: दीक्षा श्रीअरनाथकस्य; अंति: ज्ञानस्य लाभं सदा, श्लोक-४. ३. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंति: देवि विघ्न दरै हरै, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथ भुनाथनिभानने; अंति: तनुभातनुभातन भारती, श्लोक-४. ५. पे. नाम, शांतिजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: देवदेवाधिपैः सर्वतो; अंति: यच्छताद्वस्सदा, श्लोक-४. ६. पे. नाम, त्रिगढा स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. समवसरण स्तुति, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: मिल चौविह सुरवर; अंति: लीला पामी जैत सुनाणी, गाथा-४. ८५६६०. अट्ठाणुबोलरो बासठ्यौ यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५.५४१२, १७४१४). ९८ बोल का बासठिया, रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ८५६६१ (+#) महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४४७-४९). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७७ अपूर्ण तक है.) ८५६६२. पट्टावली, यशदेवसूरि स्तुति व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, ३४४१५). १.पे. नाम. पट्टावली, पृ. १अ, संपूर्ण. पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामि१; अंति: श्रीनन्हसूरि ६५. २. पे. नाम, यशदेवसूरि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीभूवाले सुदृष्ट्य; अंति: जीयाज्जगत्यां प्रभुः, श्लोक-२. ३. पे. नाम. यशदेवसूरि मूलमंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐहीं भूवालायै नम; अंति: जायते सीघ्रम्, मंत्र-१. ८५६६३. (+) जिनवाणी, महावीरजिन व विजयलक्ष्मीसूरि गुंहली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ११-१३४२४-२८). १.पे. नाम. जिनवाणी गहंली, पृ. ४अ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. म. दीपविजय, मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: दीपविजय०प्रभुता दीजे, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. महावीरजिन गहुँली, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मारो दीइ छ; अंति: दरिसण जय जयकार, गाथा-६. ३. पे. नाम. विजयलक्ष्मीसूरि गहुंली, पृ. ४आ, संपूर्ण. म. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.ग., पद्य, आदि: आरजदेश नरभव लह्यो रे; अंति: सोभाग्यलक्ष्मी० जांण, गाथा-६. ८५६६४. (+) कलावतीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., ., (२५.५४१२, १२४३४-३६). कलावतीसती सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नयरि कोशंबिनो राजा; अंति: हिरविजे० देखाड रे, गाथा-१३. ८५६६५ (+) औपदेशिक दहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:उपदेशीहा., संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १३४४०-४४). . For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आलोयणाविचार दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्ध श्रीपरमातमा; अंति: पावे मुकति समाध, गाथा-८५. ८५६६६. (#) सनीश्चर छंद, संपूर्ण, वि. १८९७, वैशाख शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पालीपुर, प्रले. मु. प्रेमचंद (चंद्रगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, १७४३६-४०). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरांपति; अंति: हेम०सुप्रसन्न सनीसवर, गाथा-१७. ८५६६७. (#) वीसस्थानकतप व सीमंधरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४.५४१२, ८x२७-३१). १. पे. नाम. वीसस्थानक स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: देवचंद्र०करे तसु चंग, गाथा-४. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मनसुधवंदो भावे भवियण; अंति: श्रीजिनहर्ष सहाईजी, गाथा-४. ८५६६८.(#) नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४३६-४०). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, म. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसे नेमी; अंति: (-), (पू.वि. चोक-१९ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८५६६९ अजितजिन स्तवन, राधाकृष्ण रेखता व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४१२, १०x२८). १. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहालुं रे; अंति: आनंदघन मत अंब, गाथा-६. २. पे. नाम, राधाकृष्ण रेखता, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: जनम जनम गून मांनूगि; अंति: रूप० जाउं बलीहारि रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: मणिभंगो महादःखं; अंति: पद मुद्रितानना, श्लोक-५. ८५६७०. कलिकंडपार्श्वजिन स्तवन, चंद्रप्रभजिन स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, ८४५०). १. पे. नाम. कलिकुंडपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-कलिकंडमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं कलिकुंडं; अंति: संतु मे० प्रसिद्धये, श्लोक-४. २.पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः प्रभा; अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं प्रभृत्यक्षर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८५६७१ (4) मार्गणा यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १६x२३). ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंदीये काए; अंति: (-), (पू.वि. ६६ संख्या तक है.) ८५६७२. देवाचीनारी स्तवन व पच्चक्खाण कल्पमान-पोरसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १२४११-४०). १. पे. नाम. देवाचीनारी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन गहुंली-५६ दिक्कुमारी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमल कमल उदानमां देवा; अंति: राम० शिवमंदिर तणी जी, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २.पे. नाम. पोरसी पच्चक्खाण मास कल्पमान, पृ. १आ, संपूर्ण. पच्चक्खाण कल्पमान-पोरसी, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पोसमां १२ पगले पोरसी; अंति: मगसरमां ११पगले पोरसी. ८५६७३. (+#) २४ जिन स्तवन, गौतमगणधर स्तुति व कर्मविपाकफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. ग. साधुविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १४४३६-४०). १.पे. नाम. चउवीस जिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, म. आणंद, मा.ग., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणम; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. २. पे. नाम. गौतमगणधर पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदं वीर जिणेसर सार; अंति: लबधि जस सुखदायिका, गाथा-४. ३. पे. नाम, कर्मोपरि स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: ऋद्धि० सिवसुखदाई रे, गाथा-१७. ८५६७४. (+#) चारित्रदैणरी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. आ. जिनचंदसूरि (गुरु गच्छाधिपति कांतिसागर, बृहत्विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वास्त्रिलेवा०पत्र., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे.. (२५.५४११.५, १८४४८-५२). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सांझरी वेला चारित्र; अंति: चलाइजै अक्षत चलाइजै. ८५६७५. दसपच्चखाण व शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, १०४४०-४६). १. पे. नाम. दशपच्चखाण स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु; अंति: रामचंद्र तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. २.पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, म. चारित्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति आपोरे शांतिना; अंति: चारित्र० पाप अपारजी, गाथा-५. ८५६७६. (+) आनंदश्रावक सज्झाय व नक्षत्रपादानुसार राशिनामविचार, संपूर्ण, वि. १९५१, आषाढ़ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जेतारण, प्रले. मु. चनणमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पडमाछतिसी., संशोधित., दे., (२४.५४११.५, २०-२१४५८-६६). १.पे. नाम, आनंदश्रावक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कनीराम, रा., पद्य, वि. १८८६, आदि: पडिमाधारी आणंद; अंति: त्यारो संग निवारो रे, गाथा-४४. २.पे. नाम, नक्षत्रपादानुसार राशिनामविचार, पृ. १आ, संपूर्ण. होडाचक्र, सं., गद्य, आदि: च चे चो ला अश्विनी; अंति: थ दे दो च ची मीन १२, (वि. नक्षत्रपादे होडाचक्र, १२ राशीष चंद्रपालटणविधि व पाया विचार.) ८५६७७. तेर काठिया व सुगुनकुंवर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १७४३६-४४). १.पे. नाम. तेर काठिया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. १३ काठिया सज्झाय, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९३९, आदि: जिनमारग पाई जी कमाई; अंति: तिलोक रीष० भवजल पार, गाथा-१५. २. पे. नाम, सुगुनमहाराज सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सुगुनकुवर साध्वी सज्झाय, सा. केसरबाई, पुहिं., पद्य, वि. १९४३, आदि: धन सतीया सुजाण श्री; अंति: दरसणरी लगरइ चाया, गाथा-६. ८५६७८. (+#) सुखदख सज्झाय व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३०-३७). १.पे. नाम, सुखदख सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि देवदाणव तीर्थंकर अंति: रीधीहरख० शिवसुखदाई, गाथा - १७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जसराज, पुहिं., पद्य, आदि: जागौ मेरे लाल विशाल, अंति: जस० त्रीभुवन मोहनां, गाथा-३. ८५६७९ नंदिषेणमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, दे. (२५.५४११.५, ११४३१). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु, पद्य, आदि: राजगरी नगरीनो वासी अंति: मेरुविजय नमे निस दीस, ढाल - ३, गाथा - १६, (वि. प्रतिलेखक ने बीच के अधिकांश पाठ छोड़ दिए हैं.) ८५६८० (+) शांतिप्रकाश, संपूर्ण, वि. १९३८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी : शांतिप्रका०., संशोधित., दे., (२४.५x११.५, १४५४६-५२). शांतिप्रकाश, पुहिं., पद्य, वि. १९३६, आदि प्रेम सहित बंदू, अति मन प्रभु को ध्यान, गाथा-१३८. ८५६८१. माणिभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २६ X११.५, १४-१८४३२-३८). माणिभद्रवीर छंद, मु. लालकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति भगवती भारती; अंति: लालकुसल लखमी लही, गाथा १९ (वि. गाथा ४ के बाद गाथांक नहीं लिखा है.) " "" ८५६८२ (+) ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१२, ९३१-३३). अक्षयतृतीया स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि ऋषभ वरस रह्या उपवासी अंति उदयरत्न० धर्मने पाया, गाथा-७. ८५६८३. पुडंरिकगिरि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. राधनपुर, प्रले. गिरधरशंकर भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुडी स्तोत्र पेन्सिल से लिखा है. अंत में "श्रीआदिनाथाय नमो ऐसा लिखा है. दे. (२६.५x१२, ११x२६-३२). शत्रुंजयतीर्थस्तव, सं., पद्य, आदि नमन्निवभक्तिभरात्; अंति: लभते फलमुत्तमम्, श्लोक-१३. ८५६८४. पांडव सज्झाय शत्रुंजयतीर्थगर्भित, संपूर्ण, वि. १९०२, श्रावण शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. सा. चनणा आर्या (गुरु सा. नंदु आर्या महासती); गुपि. सा. नंदु आर्या महासती; पठ. सा. लक्ष्मीश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६X१२, १३X३०-३६). पांडव सज्झाय-शत्रुंजयतीर्थगर्भित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पांचपांडव मुनिराय; अंति: देव०सिद्धाचले हो लाल, गाथा १९. ८५६८५ (+) रथनेमि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६४१२, १३x२८-३२). रथनेमि सज्झाय, मु. प्रतापविजय, मा.गु., पद्य, आदि चालो सहरो गुरु बंदवा; अंतिः प्रताप० कमला बाधी जो, गाथा - १०. , ८५६८६. झांझरियामुनि व जंबूस्वामी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-४ (१ से ४) = १ कुल पे. २, जैदे. (२६.५x११.५, ८-१०X३३-३५). १. पे नाम. झांझरीयामुनि सज्झाय, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि (-) अंतिः सांभलता आणंद के, डाल-४, गाथा-४३, (पू.वि. ढाल-४ की गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे नाम जंबूस्वामीनी गुहली, पृ. ५आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजब कीउ रे मुनिराय; अंतिः पद्म० पामें शिवराज, गाथा- ७. ८५६८७. (+) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७X१२, १०x३२-३६). शांतिजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि शांति जिनेसर साहेब अति जिनविजय० मंगल माला रे, गाथा - १३. ८५६८८ (+) ज्ञानपच्चीसी व जिनपूजाष्टक, संपूर्ण वि. २९वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्रले. मु. चिमनसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२६४१२, १४४५५-५९). For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १.पे. नाम, ज्ञानपच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचविंशति, मु. उदयकरण, पुहिं., पद्य, आदि: सुरनर तिर्यग् जोनि; अंति: आपको उदैकरन कैहेत, गाथा-२५. २. पे. नाम. जिनपूजाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनपूजा अष्टक, पुहि., पद्य, आदि: जलधारा चंदन पुहप; अंति: दीजे अरथ अभंग, गाथा-१०. ८५६८९ (+#) साधगण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:ढाल., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, १४४३६-३८). साधुपद सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: समताधारी सुधमतीजी; अंति: चंदरभाणसेवापावै साध, गाथा-१६. ८५६९०. सिद्धाचलनी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११.५, १०x४०-४४). शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल निला मुनी; अंति: सारी चकेसरी रखवाली, गाथा-४. ८५६९१ (2) ८ कर्मना ३० बोल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. हंडी:त्रीसबोलपत्र., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७-१८४४२-४८). ८ कर्म ३० बोल विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावर्णीकर्म; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'पिशाच १ भूत २ यक्ष ३ राक्षस ४' तक लिखा है.) ८५६९२ (२) २२ परिसह सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २१४५१-५७). २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीआदेसर आद दे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ की गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८५६९३. सरावकरी बीनती, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. आगरा, प्रले. मु. लालचंद पं., प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सरावकरीभा०., जैदे., (२५.५४११.५, १५-१६४३३-३९). ४ श्रावक प्रकार पद, म. मोतीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: बीरधमान सासनधणी गणधर; अंति: मोतीचंद० नरनार जी, गाथा-४१. ८५६९४. (+#) भूपालचउवीसी का भाषार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८-४२). २४ जिन स्तव-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इस लोक विषै यः कोऊ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ तक लिखा है., वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) ८५६९५. नेमिजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सेऊ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १८४३४). नेमिजिन बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: जी स्वामी की आया; अंति: मनाय ल्या जादरायन, गाथा-१३. ८५६९६. (2) शालिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६९, चैत्र कृष्ण, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. मोजी ऋषि; पठ. श्रावि. जीवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सालभदरकी लावडी., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १६-१७४३०-३२). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: राजगरी नगरीन सेणक; अंति: विमल० संपत्ति दोडी, गाथा-३२. ८५६९७. (4) गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १२४४२-४८). ___ गौतमस्वामी छंद, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रभुती गोतम सांमी; अंति: रायचंद०रिधनै छिटकावो, गाथा-१५. ८५६९८. (+) आध्यात्मिक हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४११.५, ८४३३). For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: बरसइ कांवल भीजइ पाणी; अंति: मुख कवि देपाल वखांणइ, गाथा-६. आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कांबल क० इंद्री वरस; अंति: ते पंडित कहेवाय, (वि. गाथा ४ तक ___टबार्थ क्रमशः लिखा है बाकी का टबार्थ १आ पर लिखा है.) ८५६९९ (+#) बावीस अभक्ष्य बत्रीस अनंतकाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, १२४२४-३०). २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: वड १ पीपल २ उंबर ३; अंति: आलू ३१ पिंडालू ३२. ८५७००. शिवकुमार, भवदेवनागिला व शालिभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, १३४४४). १.पे. नाम, शिवकुमार सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रे तस पगले हुं दास, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, भवदेवनागिला सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भवदत्तभाई घरि आवीओ; अंति: समयसुंदर०मुनि पाय रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. __शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सालिभद्रई संदेहो मन; अंति: (-), गाथा-४, (पूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा का अंतिम पद नहीं लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) ८५७०१. ३२ विजयजिन नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ३८x१२-१४). अढीद्वीप ३२ विजयजिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीविजयदेव सर्व; अंति: १ऐ श्री अग्राहीनाथ. ८५७०२. (+) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३१). सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण सरसति भगवति; अंति: पुन्ये दरसण पायो रे, ढाल-७, गाथा-४०. ८५७०३. संजतीराजा चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १३४४८). __संजतीराजा चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: जिनमार्ग जगमे प्रगट; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ गाथा-१३ तक लिखा है.) ८५७०४. ढुंढकपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५४११.५, १०x२३). ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमत निरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी प्रणमी; अंति: पयंप हितकार अधिकार, गाथा-२५. ८५७०५ (+) महावीरस्वामिजीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ८x२५-२७). महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मुज विनती; अंति: समयसुंदर० भुवनतिलो, गाथा-१९. ८५७०६. मौनएकादशी गणणं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १८४४५). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., गद्य, आदि: श्रीमहाजस सर्वज्ञाय; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. ८५७०७. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३७-४१). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: कहे पापथी छुटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३४. ८५७०८. मूर्ख के १०० बोल व अन्य बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:अथ मूरख का बोल का पाना., जैदे., (२५४११, २१४७२). १.पे. नाम. मूरखना १०० बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. मूर्ख के १०० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: बालकसुं प्रीते करे; अंति: तप न करे ते मु.१००. २. पे. नाम. ३२ इच्छा बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org मा.गु., गद्य, आदि: मल्लिनाथजी महोण घर; अंति: कीयो सो आपणी इच्छा. ३. पे. नाम तेरापंथ भीखम मत, पृ. १आ, संपूर्ण. नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मूल द्रिष्टता कूणे; अंति: आतमां न्याय तलाव. ४. पे. नाम. गुण अवगुण बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पंडित जे ते न करे; अंतिः करे ते धर्मनी हाणि. ८५७०९ (+) रथनेमिराजिमती पंचढालियो, संपूर्ण, वि. १९५६, श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी रहनेमी., संशोधित., दे., (२५.५X११.५, १३X३२). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सीधने आरीया; अंति: मास आसोज मुजार हो, ढाल-५. ८५७१०. (+) १० पच्चक्खाण व औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., जै., (२५४११.५, १८x४४). १. पे. नाम. १० पच्क्खाणफल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविध प्रह उठी, अंति: निश्चइ पामउ निर्वाण, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय आचारविचार, मा.गु, पद्य, आदि पांच इंद्री रखे अंति: छत्तीसं गुनसूरा रे, गाथा-७. ३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रा., पद्य, आदि: चलि जा कागज किसी गुड अंतिः कोई संगी न साथी, गाथा १०. - ८५७११. पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन व साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. २, वे. (२५४११.५. ८x२०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन १० भववर्णन, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण मु. a. मतिविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद हो पाय; अति मतिविसाल सुखै करी, गाथा-१२ (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) प्र. वि. हुंडी कानजीसामीनुं पानु से., जैवे. (२५.५x१२, १२४३३) " १. पे. नाम. शीयलनववाड, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. २. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि (-); अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं सूत्र- २१, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. "पनरसकमतुमीसू जातीति केवसाहुरयहरण" पाठ से लिखा है.) ८५७१२. शीयल नववाड सज्झाय व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. १८८९, माघ कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल. गॉडल, प्रले. मु. कानजी ऋषिः अन्य सा मोतीबाई आर्या (गुरु सा. गंगाबाई), प्र.ले.पु. सामान्य, ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहने जाउ भांमणे, ढाल १०, गाथा ४३. ११ २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहि., मा.गु. सं., पद्य, आदि: अजो कृष्ण अवतार कंसः अति: सलावको औषधना कवो हे. ८५७१३. कुमतिखंडण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९७४, चैत्र शुक्ल, ९, रविवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. वीनातटनगर, प्रले. पं. हीरविजय (तपागच्छ) पठ. पं. तिलोकसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२४.५५११, ११४३४-३७). " कुमतिखंडन सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः ॐकार आद अनंता अरिहंत; अंति: मणिविजय इम भा हो. ८५७१४. (*) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २, प्र. वि. हुंडी पटावली. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५४११.५, २१-२६४६६). ढुंढकमत पट्टावली बुढालियो, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीजेसलमेररा भंडार अति: रामचंदजीरो २३, डाल- २. " For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५७१५. खंधककुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सझाय., दे., (२५.५४११.५, १३४३९). खंधकमनि सज्झाय, रा., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर पाय नमुजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) ८५७१६. पंचनमस्कार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १५४२७). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंताणं नमुक्कारो; अंति: पढम हवइ मंगलम्, गाथा-११. ८५७१७. वरदत्तगणमंजरी कथा सह टबार्थ व गौतमस्वामी स्तवन, अपूर्ण, वि. १८१२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. धर्मरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ६-९४३८-४३). १.पे. नाम. वरदत्तगुणमंजरी कथा सह टबार्थ, पृ. १०अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: (-); अंति: मितसद्गुणम्, श्लोक-१५०, (पू.वि. श्लोक-४७ अपूर्ण से है.) वरदत्तगणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: १६५५ पतिगण्यते. २. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण. म. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो गणधर वीरनो रे; अंति: रे वीर नमि जगदीस, गाथा-७. ८५७१८. पाक्षिकखामणा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, जैदे., (२५४१२, १४४३०). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४, संपूर्ण. ८५७१९ (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. दुर्वाच्य. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, १७४४०-४२). औपदेशिक सज्झाय-कटवचन त्याग, रा., पद्य, आदि: कडवा बोल्यां अनरथ; अंति: मत कोई प्रकास्यो, गाथा-२४. ८५७२०. क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५.५४११.५, १०४३२-३६). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जिव खिमागुण आदर; अंति: संघ जगीश जी, गाथा-३६. ८५७२१. गोडीजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मघा मयाराम ठाकोर भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १६४३०). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: पूरणवंछित पामीइ दयण; अंति: परधर जयवंत गोडीधणी, गाथा-३७. ८५७२२. (2) औपदेशिक, प्रास्ताविक दोहा-पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२, २२-२६x६५-७०). १. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह-प्रश्नोत्तरमय, पुहि., पद्य, आदि: किस कारण गोरी पीत; अंति: सरीर जगत में सुरा, गाथा-७. २.पे. नाम. औपदेशिक पद संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: मुखसुं पडे लार कान; अंति: ब्रध माचो नहीं मुके, गाथा-७. ३. पे. नाम. रात्रिभोजनपरिहार पद, पृ. १अ, संपूर्ण. रात्रिभोजन परिहार पद, पं. रत्न, पुहिं., पद्य, आदि: रात्रीभोजन दोष अती; अंति: रत्न० करो नर नार, पद-४. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: इसक मुसक खासी खुसक; अंति: ता दिन सगो न कोय, दोहा-६०, (वि. विविध विद्वत्कत विविध विषययुक्त दोहा पदादि संग्रह.) ८५७२३. (+) सीमंधरजिन विनती स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ४४४७). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., गद्य, आदि: हे श्रीसीमंधरस्वामी; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८५७२४ (१) स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५X११. १२-१३४३१) २० विहरमान स्तवन, पंन्या. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि कहियो वंदन जाय दधि अति (-), (पू.वि. ऋषभानंदजिन स्तवन गाथा- २ अपूर्ण तक है . ) " ८५७२५. (+) मौनएकादशी गणणु, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५४११.५, १२४३९). मी एकादशीपर्व गणणु, सं., गद्य, आदि श्रीमहाजस सर्वज्ञाय अंतिः अरण्यनाथनाथाय नमः. ८५७२६. गोडी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैदे. (२६५११.५, १४४३९). , " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवनगोडीजी मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: साहेबिया लाल दिल भर अति आज आज आनंदरंग वधाई, गाथा-१२. ८५७२७. पार्श्वनाथ स्तोत्र, स्तवन व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५X११.५, १२X३०). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चरण प्रमोद - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सदा फल चिंतामणि; अति जपे पुरो सयल जगीस ए. गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. माणेक मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुज्य रे पुज्य; अति: मुनि घरे ध्यान तेरो, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक लोक संग्रह, पुहि. प्रा. मा. गु. सं., पद्य, आदि उपदेशो ही मूर्खाणां अंतिः केवलं विषवर्द्धनम्, श्लोक १. ८५७२८. (+) पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, १२X३५-४०). पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुमति, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरु हर्ष घणि; अंति: देजो भवो भव सरण मुदा. ८५७२९. (+) सिद्धचक्र स्तवन व नेमिजिन फाग, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्रले. पं. हिम्मतविजय गणि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२६४१२, १५४३१). १. पे नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पं. अमृतकुशल, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीगुरुना पद पंकज, अंति नामे ते जय जयकार रे, गाथा- १४. २. पे. नाम. नेमराजुल फाग, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. पं. हिम्मतविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमराजिमती सज्झाय, पं. हिम्मतविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदिः सहसावनि नेमि राजुल अंति: जग जस दिणयर जयकारी, गाथा- ९. ८५७३०. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी : ज्ञानपंचमी., दे., (२६x१२, ९३३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रणमी पास जिणेसर, अंति: गुणविजय रंगे मुणि, डाल- ६, गाथा-४९. ८५७३१. (+) २४ जिन व गौतमस्वामी स्तुति, संपूर्ण, वि. १८०८, कार्तिक कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. कोटारामपुर, प्रले. पं. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X११.५, ११४३७). १. पे नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. १३ For Private and Personal Use Only ग. अमृतधर्म, मा.गु., पद्य, आदि तीरथपति त्रिभुवन सुख अति शुद्ध अनुभव मानीये, गाथा ५. २. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६ वी, आदि वीरजिणेसर केरोसीस, अंति: गीतम तुठे बंछित कोड, गाथा - ९. "" ८५७३२. सुविधिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८५३, पौष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पू. ३-१ (१) =२, जैवे. (२६.५x१२, १४४३४)सुविधिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: (-); अंति: गुण देवाधिदेवना रे, ढाल-२, गाथा-२९, (पू.वि. ढाल -१ गाथा-६ अपूर्ण से है.) ८५७३३. (#) आषाढाभूतिमुनि पंचढालिया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५X११.५, १६X३६). Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आषाढाभूतिमनि पंचढालियो, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरशण परिसो वावीसमो; अंति: रीजाय लीया हो, ढाल-७.. ८५७३४. बुद्धि रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. पं. केसरविजय, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १७-१९४३८-४०). बद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देव अंबाई; अंति: शालिभद्रष्टले किलेसतो, गाथा-६२. ८५७३५ (+) विहरमानजिन वीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४३३). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुज हीयडौ हेजालूवौ; अंति: (-), (पू.वि. सुबाहुजिन स्तवन गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८५७३६. मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. उदयभाण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२४४१). मेघकुमार चौढालिया, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुणनिलो; अंति: रे गुण गाता सुख थाय, ढाल-४, गाथा-२३. ८५७३७. पार्श्वजिन व आदिजिन लावणी आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६८, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, ले.स्थल. पेढामली, प्रले. मु. ज्ञानरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३५). १. पे. नाम, पार्श्वजिन लावणी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या. रूपविजय, पहिं., पद्य, आदि: जगत भविक कज; अंति: पामे चिद परमानंदा, गाथा-१६. २. पे. नाम, ऋषभ लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी-केसरियाजी, म. मूलचंद्र, पुहि., पद्य, वि. १८६३, आदि: सुणियो वातां सदाशिव; अंति: मूलचंद० भागा मुरजीवा, गाथा-७. ३. पे. नाम. सज्जन दर्जन दहा, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सजन थोडा हंश परे; अंति: फरत घणा दीशंत, दोहा-१. ४. पे. नाम. २८ बोल-शारंग नाम सह शब्दार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. २८ बोल-शारंग नाम, मा.गु., गद्य, आदि: वेणा १ वारूण२ वाजी ३; अंति: राग २७ खटिका २८. २८ बोल-शारंग नाम-शब्दार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. जटिल शब्दों का अर्थ लिखा है.) ५.पे. नाम. पार्श्वनाथनो छंद, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद, म. विनयशील, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन कुल कज सुर; अंति: नवनिद्ध होय घर तेना, गाथा-२. ८५७३८. १३ काठिया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १४४२९). १३ काठिया सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसमरी गौतम गणधार; अंति: हेमविमलसूरि सीसे कही, गाथा-१५. ८५७३९. जीवछत्तीसा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. पेमा (गुरु सा. छोटीजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सज्झाय., जैदे., (२६४१२, २०४४६-५०). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मोह मिथ्या की नीद मे; अंति: ऋष जैमल कहै एम जी, गाथा-३५. ८५७४०. नमस्कार महामंत्र रास, संपूर्ण, वि. १८९५, सोमवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सिवाड, प्रले. सा. माना (गुरु सा. जीउ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नोकार., जैदे., (२७४११.५, १९४४५). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहलीजी लेउ; अंति: जाणज्यो श्रीनवकारातो, गाथा-१८. ८५७४१. आचार्यपद सज्झाय-नवकार पदाधिकारे तृतीय, संपूर्ण, वि. १८४३, कार्तिक शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पार्श्व भाग में अनावश्यक लेखन पर कागज चिपकाए हुए हैं., जैदे., (२५४११.५, १२४३३). For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ आचार्यपद सज्झाय-नवकार पदाधिकारे तृतीय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आचारी आचार्यनोजी; अंति: बोधीबीज उच्छाहि, गाथा-९. ८५७४२. शांतिजिन व वासपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. इलोल, पठ. मु. फतेविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ११४३७). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मु. चारित्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति आपो रे शांतिना; अंति: चारित्र० पाप अपारजी, गाथा-५. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ____ मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नायक मोह नचावीयो; अंति: एम जपे जिनराजो रे, गाथा-५. ८५७४३. गुरुशिष्यसंवाद पद व चारमंगल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:४मंगलप०., जैदे., (२५४१२, १७X४९-५२). १. पे. नाम. गुरुशिष्य संवाद पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चेलाके चीता गुरांजी; अंति: गुरांजी वीन मान मुवा, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. ४ मंगल रास, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध साधु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ८५७४४. जीव विराधना विचार व तपस्या आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९०१, चैत्र कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. सादडी, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १३४३२). १. पे. नाम. जीव विराधना विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जीवविराधना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अणगल्यु पाणि वावों; अंति: करी मिच्छामि दुकडं. २.पे. नाम. तपस्या आलोयणा, प. १आ-२आ, संपूर्ण. श्रावक आलोयणा, रा., गद्य, आदि: प्रथम वीकायना विनासे; अंति: मिच्छामि दकडं तस्स. ८५७४५ (#) कनीराम प्रभाती व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १४४२६-४०). १. पे. नाम, कनीराम प्रभाती, पृ. १अ, संपूर्ण. कनीरामजीगुरुगुण प्रभाती, मु. नथमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: पूज्य कनीरामजीरो जाप; अंति: नथमल नाम तणो, गाथा-८. २. पे. नाम. कनीरामजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कनीराम स्तवन, मु. नथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पूज्य नाम तणी महिमा; अंति: नथमल ध्यान धर नितरो, गाथा-८. ८५७४६. (+#) प्रश्नोत्तरमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. तडावग्राम, प्रले. मु. अजबचंद ऋषि (गुरु मु. सुजाण ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, १२४३८). जैन प्रश्नोत्तर संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जीवनकाहा जस्सः १; अंति: जीवन मुक्ति होय सही. ८५७४७. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १२४३५). सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: ओ मारा मंदिरस्वामि; अंति: मे तो वेगला जइ वस्या, (वि. गाथांक नही लिखा ८५७४८. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. जसोदा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १५४४७). महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.ग., पद्य, आदि: एक मन वंदो श्रीवीर; अंति: नवै देह मनवंछित भणी, गाथा-२६. ८५७४९. ७ नय विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:नय ७., जैदे., (२६.५४१२.५, २४४६०). सप्तनय विवरण-नैगमादि, मा.गु., गद्य, आदि: नमो वंभिए लिबीए नैगम; अंति: ३२ श्रव ३६३ मत हवा. For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५७५० (+) मंगलदीपक व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मोहन डामर; अन्य. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५x११.५, १४X३३). " " १. पे. नाम. मंगलदीपक, पृ. १अ, संपूर्ण. www.kobatirth.org ४ मंगल पद, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि आज घरे नाथ पधारे; अति रूप० चरणकमल जाउं वार, पद-३. २. पे नाम. शत्रुजयतीर्थं स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि श्री रे सिद्धाचल; अंति: करी विमलाचल गावो, गाधा-५. .पे. नाम, शांतिजिन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण. आ. मुक्तिसागरसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८९८ आदि शांतिप्रभु वीनती एक अंतिः सूरि मुक्तिपदना आधार, गाथा- ७. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि वहाणां वायां रे प्रभ अंति: गोडीचा स्वामी, गाधा-६८५७५१. विहरमानजिन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५x११.५, १६३५). १. पे नाम, विहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: पुर्व महाबदेमे, अंति राय० अबके लिजे मानिजी गाथा ११. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-तपगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: गौतमस्वामीजी बुद्धि; अंति: टालो स्वामि दुख घणा, गाथा-११. ८५७५२. शांतिजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, दे. (२५४११.५, १७२६-३०). " १. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रात उठ श्रीसंत; अंति: पापी लाय कषाय टली, गाथा-५. २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५.५X११.५, १३X५०). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मीठा थे तो चोतरसुजाण, अंतिः सहदा बरस कुलसाल नखम, गावा-९ ८५७५३. साधारणजिन स्तवन, पार्श्वजिन स्तवन व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु तोरी वाणी सुणी; अंति: मुज तुज ध्यानमां, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- अमिझरा, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- अमझरा, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि हां रे तुम्हें अति राम० अविचल लियल वरीजै, १५X३६). १. पे. नाम औपदेशिक कवित्त, पू. १ अ संपूर्ण. गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहिं., मा.गु. सं., पद्य, आदि आ नीचीकुं मत परणो; अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ८५७५४ (+) छत्रीस राजकुल नाम व कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५x१२, औपदेशिक कवित्त संग्रह*, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: फीकी हुं नीकी लगे; अंति: त्यारे पानी पथर तरंत... २. पे. नाम छत्रीस राजकुल नाम राजा सहित, पृ. ९आ, संपूर्ण, ३६ राजकुल नाम, मा.गु., गद्य, आदि : आदपॐकार चिहुं दिश; अंति: मथुरांइ जादववली. ३. पे. नाम. वस्तुपाल सुकृत कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. वस्तुपालतेजपाल सुकृत कवित्त, दत्त, मा.गु., पद्य, आदि पंचसहस प्रासाद जैन, अंति संवत बार पंच्योत्तरे, गाथा-२८५७५५ (+) बोल संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५X११.५, ५५x२५-३० ). " बोल संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: जीव १ गइ २ इंदिय काए; अंति: पर्याय १ नियंता. For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८५७५६. कायस्थिति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:कायस्थिति., दे., (२४४१२.५, १६४३६-४३). कायस्थिति विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: जीव गई इंदी काय जोय; अंति: साइया अपजवसीया. ८५७५७. (+) श्रावक के ९१ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १२४१५-२५). ९१ बोल-श्रावक के, मा.गु., गद्य, आदि: १ जीवदया में रुचै; अंति: अणजाण रसतै चलै नहीं. ८५७५८. आत्महित बोध व रतनजी नाम के २४ लेखन भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:आतमहित., दे., (२४४१२, १८४४१-४५). १.पे. नाम. आत्महित बोध, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. शांतिप्रकाश, पुहिं., पद्य, वि. १९३६, आदि: प्रेम सहित वंदौ; अंति: निरमल ग्यानसमाधि, गाथा-१३१. २. पे. नाम. रतनजी नाम के २४ लेखन भेद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदि: १ रतनजी २ तरनजी; अंति: २३ नजीतर २४ जीनतर. ८५७५९ ज्योतिषद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२४.५४१२, १३४३५). ज्योतिष्कसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपके माहीने; अंति: उजलो जोतिचक्र जाणणो. ८५७६०, स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४१२.५, १६४३७). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संती जणंदनी छबी राजे; अंति: राम नव निधि पासे छे, गाथा-६. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. म. वीर, मा.ग., पद्य, आदि: आदिजिनेसर विनती; अंति: इम वीर नमे करजोडी रे. गाथा-५. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल वंदो रे; अंति: भक्ति करुं इक तारी, गाथा-५. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरुवा रे गुण तुम्ह; अंति: जस० जीवन आधारो रे, गाथा-५. ५.पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मारूं मन मोहुरे; अंति: कहेतां नावे पार, गाथा-५. ८५७६२. जीवना ५६३ भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२५.५४१२.५, ११४३६). ५६३ जीवभेद विचार, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: देवतानी गति आगती १५; अंति: मोक्षने विषे जाय. परिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१२, १८४३५). १. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-नश्वर काया, हसनबेग, पुहिं., पद्य, आदि: ये काया कंचन सेबहत; अंति: काया धोके का घर है, गाथा-५. २.पे. नाम, क्रोधपरिहार सज्झाय, प. १अ-१आ, संपूर्ण. हसनबेग, पुहिं., पद्य, आदि: कोइ क्रोध मत करोजी; अंति: फिर पीछे पछताता है, गाथा-४. ८५७६४. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, १५४४३). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मोक्षपद, म. हरिदास, पुहिं., पद्य, आदि: बिमल चित्त कर मित्त; अंति: साहेबने बतायो है. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: निनवउलाचालै रे भव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ तक लिखा है.) ८५७६५. सिद्धचक्र स्तवन व शांतिजिन नमस्कार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १२४३०). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, प. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे मानविजय उवज्झाय, ढाल-४, गाथा-२५, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शांतिजिन नमस्कार, पृ. २आ, संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: विपुलनिर्मलकीर्तिभरा; अंति: सिद्धिसमृद्धये, श्लोक-३. ८५७६६. भवदेव व वधुदीक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७७१३.५, १३४३०). १. पे. नाम, भवदेव स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भवदेव भाई घर आवीया; अंति: समयसुंदर सुखदाय रे, गाथा-८. २. पे. नाम. वधुदीक्षा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वधुदीक्षा, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उत्तर दक्षणथी साधु; अंति: मुगतीपुरी मे जासे, गाथा-५. ८५७६७. (+) विहरमान स्तवन वीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, २४४४७). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. सीमंधर, युगमंधर, बाहुजी, अनंतवीर्य, विशाल व वज्रधरजिन स्तवन है.) ८५७६८ (#) सतीविवरण चउढालियो, औपदेशिक व अढारपापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १८-२०४४५). १. पे. नाम. सतीविवरण चउढालियो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सुशीलासती चौढालियो, मु. सांवत ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९०७, आदि: सद्गुरु पाय नमी कहुं; अंति: सांवत० सातम गुण गाया, गाथा-१५. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवमाया, मा.गु., पद्य, आदि: गुर परमातम पाय लागु; अंति: जेम दडा का दोटा, गाथा-१९. ३. पे. नाम, अढारपापथानक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक सज्झाय, मा.ग., पद्य, आदि: पापस्थान अढारे पुरो; अंति: थार हीय लीलाडरी फुटी, गाथा-१६, (वि. गाथाओं मे व्यतिक्रम तथा पाठ में अंतर है.) ८५७६९. गजसुकमालमुनि लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १६x४६). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकीनंदन; अंति: कहे० हंस करी गाई, गाथा-२३. ८५७७०. जंबूद्वीप क्षेत्रविस्तारमान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४१२, १५४४०). जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, प्रा.,सं., प+ग., आदि: जंबूद्वीपमध्यस्थानां; अंति: यथा ३९६९०००००००० कला. ८५७७२ (+#) नेमनाथजीरो चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, २२४४८-५२). नेमिजिन चरित्र, रा., पद्य, आदि: संकराजा जशोमतीराणी; अंति: मनरी तो हुस रही मनमे, ढाल-१४, (वि. प्रतिलेखक ने ढाल परिमाण क्रमशः नहीं लिखा है.) ८५७७३. (+) शांतिजिनंदा स्तुति स्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ११४२८). शांतिजिन छंद-हस्तिनापरमंडन, आ. गणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शारद मात नमुं सिरनाम; अंति: मनवंछीत शिवसुख पावे, गाथा-२१. ८५७७४. पर्वतिथि चर्चा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, ११४४५). पर्वतिथि चर्चा, मु. हर्षचंद्रजी, मा.गु., गद्य, आदि: (१)तथा आजना कालना केइ, (२)जे चवदसांदिक दोय; अंति: हर्षचंद्र विनिर्मितं. ८५७७५. स्तवन, स्तति व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४४१२,११४३०). For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १. पे. नाम. २४ जिन निर्वाणस्थल चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. सुधनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजय श्रीऋषभदेव; अंति: सुधन० प्रणमीजे मनरंग, गाथा-२. २. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चउजिन जंबूद्वीपमा; अंति: ज्ञान सीर धारीजे आण, गाथा-२. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, प. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूर्व दिशि इशानकूण; अंति: द्यो पूरो संघ जगीश, गाथा-८. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पातु वः श्रीमहावीर; अंति: प्रक्षालन जलोपमा, गाथा-१. ८५७७६. (+) १४ गुणठाणा भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४४४९). १४ गुणस्थानक भेद, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८५७७७. (+) आदिजिन व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२.५, १६x४०). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:ऋषभदेव. आदिजिन स्तवन, मु. कर्मचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १९७५, आदि: पंचपरमेष्टी नित्यनमु; अंति: कर्मचंद०सीस निमायाजी, गाथा-१५. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अजितनाथ. मु. कर्मचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअजितनाथ महाराज; अंति: कर्मशशी० सुख कामी, गाथा-१२. ८५७७८. (+) ४५ आगम स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १३४३४). ४५ आगम स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवि तुमे वंदो रे; अंति: शिवलक्ष्मी घेर आणो, गाथा-१३. ८५७७९ मेतारजमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१३, १२४२५). मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: संजम गुणना आगलाजी; अंति: साधु तणी ए सज्झाय. ८५७८०. स्तवन, पद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ९, प्रले. मु. सोभागचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १६x४१). १. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: म्हे ध्यावला हो; अंति: पंचमीगत पहचसी जाय, गाथा-१९. २.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी खूब बनी छै जी; अंति: कटै न करमा को फंदो, गाथा-११. ३. पे. नाम. सम्यकत्व सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: देव नीरंजन गुर; अंति: जो चाहो मुक्तरमणने, गाथा-१३. ४.पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, म. विनयचंद, मा.ग., पद्य, आदि: चढी सावणे सांम बरात; अंति: पुहबी इतनी तब दीत है, गाथा-१४. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-नश्वर काया, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- नश्वर काया, पुहि., पद्य, आदि: असुवथकी जीव उपनां; अंति: बनाय सुखानंद गाया है, गाथा-११. ६. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कमरकुं मोडकर चलते; अंति: धरु फिर करन आवना है, गाथा-८. ७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-आत्म निरीक्षण, पहिं., पद्य, आदि: न यारो में रही यारी; अंति: नफा जाणे न टोटा, गाथा-४. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, ले.स्थल. बामडोली, प्रले. सोभागचंद दगड़, प्र.ले.पु. सामान्य. मताका For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २० कैलास आध्यात्मिक पद-नश्वर काया, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी काया में है; अंति: अब चल देख बहार, गाथा-४. ९. पे. नाम. शीलोपदेश सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. 3 मु. रतनविजय, मा.गु., पद्य वि. १९६६, आदि मत ताको हे नार; अंतिः शियल जस उत्तम प्राणी, गाथा- ६. ८५७८१. () कमलावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : इकुकररा. अंत में "अजराजजी कनसु जतारण" लिखा है, अशुद्ध पाठ. दे., (२५x१२.५, २०X३८). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कमलावतीसती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: महिला में बेठी राणी; अंति: जइमल० सिवरा सुख लहो, गाथा - २७. ८५७८२. सम्मेतशिखर स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५x१२.५, ११४२३) " ८५७८३. शिखरजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैदे. (२५.५४१२.५, ११४२६). 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८९८ आदि समेतशिखर सुरमणि समो; अति हर्षचंद० गणधारी, गाथा-७. , सम्मेतशिखरतीर्थं स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: दुरलभ नर भव जांणी, अंति श्रीहर्षचंदरिसर, गाथा ९. ८५७८४. २० स्थानकतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४९ ज्येष्ठ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. रणछोड भूराभाई वैद्यराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६.५X१३, ११X३४). २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि प्रणम् सरस्वती आपो अंति: गोयम स्वामीने रे लो, गाथा-८. ८५७८५. अतीत, वर्तमान व अनागतचोवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. लवजी मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X१२, ११४३०). १. पे नाम. अतीतचोवीसी स्तवन, पू. १अ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- अतीत, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि श्रीगुरुकेश रे पाय अंतिः नमता सिद्धेरे काज, गाथा ६. २. पे. नाम, वर्तमानजिन चोवीसी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वर्तमानजिन चौवीसी, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि वर्त्तमानका लेहवि रे; अति रे पोहती सयल जगीस, गाथा-५. ३. पे. नाम. अनागतजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- अनागत, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि हवे चोवीसी आवती रे; अति रे करजोडि कल्याण, गाथा-७. ८५७८६. प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैदे. (२५.५X१२.५, १४४३६). "" प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: घुर समरुं सामण सरसती; अंति: जिम सयल संपति वरो, ढाल - २, गाथा - २२. ८५७८७. (१) चैत्यवंदन चौवीसी, संपूर्ण वि. १९९३ माघ शुक्ल, १२ गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. अंचालाल सींघ दीवानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. दे. (२५x१२, १५४२७). चैत्यवंदनचौवीसी, अंबालाल सींघ दीवानजी, मा.गु., पद्य, आदि आदिनाथ पहिला नमू; अंतिः रत्नपुरीसुं मझार, गाथा - १५. ८५७८८ (+) पंचमी स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६४१२, " ११४३३). For Private and Personal Use Only " ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु पद्य, आदि श्रीतीर्थंकर वीर अंति: विजयलक्ष्मीसूरि पावे, गाथा ४. ८५७८९. पट्टावली व स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५X१२.५, १२३४). १. पे. नाम. पट्टावली, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण, वि. १९००, भाद्रपद शुक्ल, ८, प्रले. मु. हमीरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्री मानभद्रजी प्रसादात्. पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदि: वर्द्धमानस्वामी; अंति: श्रीविजयदेवेंद्रसूरि. २. पे. नाम. स्तवन चौवीसी, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २१ स्तवनचौवीसी, मु. गुणविलासजी, पुहिं., पद्य, वि. १७५७, आदि: अब मोहीगे तारो; अंति: (-), (पू.वि. पद्मजिन स्तवन गाथा-३ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने संभवजिन व अभिनंदनजिन स्तवन नहीं लिखा है.) ८५७९० (+#) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१२, १३४२८). पद्मावती आराधना, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: कहइ पापथी छुटइ ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. ८५७९१ पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१२.५, १७४३२). पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सरसत मात मना करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३८ अपूर्ण तक है.) ८५७९२. स्तोत्र, सवैया व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, ., (२५.५४१२, १४४३१). १.पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९६६, श्रावण अधिकमास शुक्ल, ३, प्रले. मु. रामलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. म. लाल, पुहि., पद्य, आदि: गढ ऊंचो घणो रे; अंति: लाल० चरणा तिहारी को, गाथा-७. २. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्ठियंत्रगर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नेतृसिंह कवि, सं., पद्य, आदि: वंदे धर्मजिनं सदा; अंति: संग्रथित सौख्यदः, श्लोक-४. ३.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. कल्याणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचिंतामणि पार्श्व; अंति: कल्याण०देखावो मुझकुं, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया- शीलगुण, नान, पुहिं., पद्य, आदि: चंदबदन महा मृगलोचन; अंति: नानका गुम जाणत नारी, सवैया-२. ८५७९३. (#) ज्योतिषफल श्लोक व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. विवेकसागर (गुरु पं. अमृतसागर); गुपि.पं. अमृतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४२). १. पे. नाम, ज्योतिष फल श्लोक सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. भडली संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरेख बहुरेखं वा येषा; अंति: दुखिता नात्र संसय. भडली संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जेहना हस्तना; अंति: ते निरधन होय. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे साहिब तुम ही; अंति: भजनथी तुंही तारणहारा, गाथा-५. ३.पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजितदेव मुज वालहा; अंति: णमतें सब प्रणमे तेहा, गाथा-५. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विजयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: लिधु माराज मारु मन; अंति: विजयरत्न० सुख दीधु, गाथा-५. ८५७९४. (+) छत्रीस छत्रीसी व वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र १४२ है., संशोधित., जैदे., (२६४१२, ४४४२२-२८). १.पे. नाम. छत्रीस छत्रीसी, पृ. १अ, संपूर्ण. छत्रीसछत्रीसी, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सहित श्रुत विनयादि, (वि. सातवीं छत्रीसी अपूर्ण तक का भाग खंडित है.) २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वा. देव, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवसुपूज्य नरेसरू; अंति: रे मामो मंगलमाल, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५७९५. नेमनाथराजिमती बारमासो व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १९४३९-४८). १. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मु. लालविनोद, पुहि., पद्य, आदि: विनवे उग्रसेन की लाड; अंति: लालविनोदीनै गाए, गाथा-२६. २.पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नेहसुजस सासन निहंग; अंति: बांह अविलंबन उबरु, गाथा-२. ८५७९६ (#) १० पच्चक्खाणफल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, ९४३२). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. ८५७९७. (+#) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, संपूर्ण, वि. १९१८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. महिमापुर मकसूदाबाद, प्रले.पं. कल्याणनिधान (गुरु ग. हंशविलास), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री सुविधिनाथजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११.५, १३४३२-३५). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपत जोज्यो आपणी मन; अंति: इम कहै श्रीसार ए, गाथा-७२. ८५७९८ (+) अंतरिक्ष व मगसी पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९७२, पौष कृष्ण, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. आंबोरी, प्रले. पं. नथमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, १६४३४). १. पे. नाम. मगसीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण... पार्श्वजिन स्तवन-मगसी, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: रक्षण भरतै जाणीये रे; अंति: वंदै जिनचंद सुजाण, गाथा-७. २.पे. नाम. अंतरिक्षपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: कासीदेस वणारसी सोहे; अंति: आपो अविचल वासोजी, गाथा-११. ८५७९९ (+) च्यार मंगल व गजसुकमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४३-४५). १.पे. नाम. ४ मंगल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ४ मंगल पद, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहेलु ए मंगल जिनतणु; अंति: भवजलनिधि तरो ए, गाथा-६, (वि. गाथांक नही लिखे हैं.) २. पे. नाम. गजसुकमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: द्वारिकानगरी ऋद्धि; अंति: सुगुरु सहाय रे, ढाल-३, गाथा-३८. ८५८००. नंदीश्वरदीपे जिनार्चन विधि, संपूर्ण, वि. १९८४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, मध्यम, प. २, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. श्राव. सगतमल परमानंद जगाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, ८४३७). नंदीश्वरद्वीप पूजा, मा.ग.,सं., प+ग., आदि: प्रथमं जलयात्रा महो; अंति: पूजा संघभक्ति करै. ८५८०१ (१) ८४ लाख जीवायोनि नाम, मुहपतीके ५० बोल व सामायिक विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १५४३५). १.पे. नाम. ८४ लाख जीवयोनि नाम, पृ. २अ, संपूर्ण. ८४ लाख जीवायोनि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठलाख पृथ्वीकाय सात; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. मुहपतीके ५० बोल, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८७२, आषाढ़ शुक्ल, ६, बुधवार, ले.स्थल. आंबोरीनगर. For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ आदरु; अंति: आदरं जीमणै पगे. ३.पे. नाम. सामायिक विधि, प. २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.ग., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: करी मिच्छामि दक्कडं. ८५८०२. मोक्षनगरी सज्झाय व गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सज्झाय, जैदे., (२५.५४११.५,१२४४७). १.पे. नाम, मोक्षनगरीनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मोक्षनगर, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मोक्षनगर मारो सासरो; अंति: समय० लइयो सुखकारो, गाथा-५. २.पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजणेसर केरो सीस; अंति: तूठां संपदांनी कोड, गाथा-९. ८५८०३. (+) शांतिजिन स्तवन व आवती चउवीसीतीर्थंकर नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२४४७). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज उलग; अंति: मोहन० सुपंडित रूपनो, गाथा-७. २.पे. नाम. आवतीचौवीसीतीर्थंकर नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिननाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: नरकथी श्रेणिकनो जीव; अंति: आवती चउवीसी थास्ये. ८५८०४. आत्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक १आ पर रोजनीशी हिसाब लिखा है., जैदे., (२५.५४११.५, ११४३५). आध्यात्मिक सज्झाय, नग, रा., पद्य, आदि: थोडा दीनरो जीवणो; अंति: जब देखसीज मारी फोज, गाथा-८. ८५८०५. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४१२, १२४३२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, म. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमी पूछे वीरने रे; अंति: जैनेंद्रसागर० आदरे, ढाल-३, गाथा-२८. ८५८०६. नवपद वासक्षेपपूजा, संपूर्ण, वि. १९५१, चैत्र कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण मेदपाटी; पठ. सा. गुलाबश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२, १३४३६). नवपद उलाला, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: तिरथपति अरिहा नमी; अंति: देवचंद्र सुसोभता, गाथा-२१. ८५८०७. श्रेणीकराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १६x२६). श्रेणिकराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मे तो पुरब सुकरत; अंति: आयो मारा छरना छयार, गाथा-१६. ८५८०८ (+#) १० श्रावक व साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. साहेपुरा, प्रले. सा. रायकवरी (गुरु सा. पाराजी); गुपि.सा. पाराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ससराव., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, १९४३८-४२). १.पे. नाम. १० श्रावक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२९, आदि: आणंदजी रे सिवानंदा; अंति: चोलमजीठनो रंग हो, गाथा-१७. २. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. विजयदेवसूरि, रा., पद्य, आदि: पांच इंद्रीजी जेना; अंति: इम भण बीजदेवसुरोजी, गाथा-११. ८५८०९ जिनचंद्रसूरि भास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, ८x२८). जिनचंद्रसूरि भास, मु. लावण्यकमल, मा.गु., पद्य, आदि: गुणनिधि जिणचंद; अंति: लावण्यकमल सुख पावै, गाथा-९. ८५८१० (+) पद्मावतीकल्प स्तोत्र, पूजाविधि व भरुवसंतमालती रसनिर्माणविधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-१५(१ से १५)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १०४२२-२६). १.पे. नाम. पद्मावतीकल्प स्तोत्र विधान सह बालावबोध, पृ. १६अ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पद्मावती स्तोत्रम्, श्लोक-२५, (पू.वि. मात्र अंतिम श्लोक है.) For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पद्मावतीदेवी स्तव-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: घर मैं लक्ष्मी रहैं, (पू.वि. बालाव० श्लोक-२४ अपूर्ण से है., वि. संक्षिप्तविधि सहित है.) २. पे. नाम. पद्मावतीदेवी पूजा, पृ. १६आ-१८अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथजिन; अंतिः पूजयामीष्टसिद्ध्यै, श्लोक-११. ३. पे. नाम. भरूवसंतमालती रसनिर्माणविधि, पृ. १८आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८५८११. (+) चेलणासती चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडीःचेलण., संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४३४). चेलणासती चौढालियो, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: जे नर अवसर अटकलै चैत; अंति: रायचद० वचन प्रमाण, ढाल-४, गाथा-३७. ८५८१२. (+) वासक्षेपपूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:वासक्षेप., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, ११४३२). नवपद पूजा, मु. देवचंद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: परम मंत्र प्रणमी; अंति: जस०अष्ट द्रजं जजामहे, ढाल-९, गाथा-९५. ८५८१३. (+#) उदाईराजारो चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. किसनगढ, प्रले. सा. मानाजी, प्र.वि. हुंडी:उदाइजी., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १५४३७-४१). __ उदाईराजा वखाण, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: चंपानगर पधारीया; अंति: दुक्कडं मोयो रे, ढाल-६. ८५८१४. (+) पोसह सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५४, आश्विन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पोसह सजायपत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२, १३४३५). पौषधव्रत सज्झाय, मु. गुणलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलो संवर आणीइंतज; अंति: खपे बह करमनी कोड रे, गाथा-१४. ८५८१५ (+) २४ अल्पबहुत्व बोल, संपूर्ण, वि. १९५४, चैत्र शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. चनणमल (गुरु मु. सोभागमल); गुपि.मु. सोभागमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:२४अल्पाबहु., संशोधित., दे., (२५४१२,४०४६६). __ जीवाभिगमसूत्र-अल्पबहत्व २४ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ३ बोल स्त्री बोलरी; अंति: नपुंसग अनंतगुण. ८५८१७. (+#) दंडध्वजशिखररोपण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १२४२८). ध्वजादंडरोपण विधि, म. देवचंद, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: प्रथम भुमी गंगोदिके; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., पाठांश "हस्तो जितास्तु" पर्यंत है.) ८५८१८. जीवदया, श्रावक व दीपावलीपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल, भरतपुर, प्रले. उमा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१२, १७४३५). १. पे. नाम, जीवदया सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ६काय सज्झाय, रा., पद्य, आदि: हुवा होसी आज छै जी; अंति: श्रावक देसां साख, गाथा-१४. २.पे. नाम, श्रावक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __औपदेशिक पद-संयमित वाणी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक थोड़ा बोलीजे; अंति: वरता जै जैकारो जी, गाथा-५. ३. पे. नाम. दीपावलीपर्व सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. हर्षविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धनधन मंगल एह सकल दिन; अंति: हरष०हिवे हरखे गाइ रे, गाथा-८. ८५८१९ गुरुगुण भासादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९७०, श्रावण शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ५, दे., (२५४१२, १८४३४). १.पे. नाम, गुरुगण भास, पृ. ७अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. केसर, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: (-); अंति: केसर० आसीस अम्हतणी, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, जयचंदसूरि गुरुगुण सवैया, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. केसर, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यान जिहाज भवोदधि; अंति: जैचंदगछै सभ भेट्यौ, दोहा-१. वजार For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३. पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. म. केसरचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: रंगमहिलरी गोढ्यां थे; अंति: हो पालीनगर पधारो, गाथा-९. ४. पे. नाम, जयचंदसूरि भास, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सारदा; अंति: कहै होज्यो जय जयकार, गाथा-१२. ५. पे. नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. म.शांतिकशल, मा.गु., पद्य, आदि: मनवंछितपूरण आदि नमो; अंति: शांतिकुशल० सुख थयो, गाथा-५. ८५८२०. निर्मोहीराजा पंचढालीयो, संपूर्ण, वि. १९७०, श्रावण शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:निरमोहिणो., दे., (२४४१२, १६४५८). निर्मोहीराजा पंचढालीयो, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: निरमोहिगुण वरणवू दे; अंति: पंच ढाल परसिद्ध रे, ढाल-५. ८५८२१. पंचतीर्थी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४४१२, ११४२१). ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि हे आदि हे आदि; अंति: मुनि लावन्यसमय वरो, गाथा-६. ८५८२२. (+) अनाथीसाधु संधि, संपूर्ण, वि. १८७५, भाद्रपद कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१२, ११४४०). अनाथीमुनि पंचढालियो, उपा. विमलविनय वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १६४७, आदि: श्रीजिनसासन नायक; अंति: पामे सुख संपति सारी, ढाल-५, गाथा-७१. ८५८२३. महावीरजिन गुंहली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२, १०४३८). महावीरजिन गहुंली, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: जग उपगारी रे वीर; अंति: अमृतवाणी रंगस्यु रे, गाथा-८. ८५८२४. गोतमसामीरो रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:गोतमरा., जैदे., (२५४११.५, १४४४६-४९). गौतमस्वामी रास, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गाउ गौतम तणा; अंति: रायचंदजी० चोमास जी, गाथा-१३, (वि. प्रतिलेखक द्वारा अंत में विशेष पाठ दिया गया है.) ८५८२५ (+) शत्रुजयतीर्थोद्धार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४११.५, १२४२७). शत्रुजयतीर्थोद्धार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीभरतराजाजी उद्धार; अंति: १३ द्रव्य खरच्या हो, गाथा-१०. ८५८२६. अरणिकमुनिवरनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. गीरधारीदास आतमारामजी वैष्णव, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, ११४३२). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सिधो जी, गाथा-११. ८५८२७. (+#) साधु आचार बोल व शतायुमध्य श्वासोच्छवासादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, २२४८३). १.पे. नाम. साधु आचार बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुक्रिया बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ उपदेश छकाया नीरक; अंति: तो प्राचतवेद कल्प. २. पे. नाम. सौ वर्ष में श्वासोच्छवासादि बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: राजनगरी सेणकराजा एक; अंति: (-). ८५८२८. पिंगल नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३.५४१२, २२४४१). पिंगल नाममाला, पुहि., पद्य, आदि: श्रीअरिहंतसु सिद्धपद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११२ प्रहरणकलिका छंद अपूर्ण तक है.) ८५८२९ (+) २४ जिन स्तुति व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२.५, १२-१४४२१). १.पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहिं., पद्य, आदि: मानजौ सतगुरुजी हमारी; अंति: हावीरस्वामी चित धरणा, गाथा-११. २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-सासबहु, मा.गु., पद्य, आदि: सासु कहो वहु सांभलो; अंति: पातलौ जीणरी नारकवाया, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) । ८५८३० (+) छ कायाना बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, १८४३६). ६ काय बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथवीकायना चार भेद; अंति: ले तेने उडपुर के इये. ८५८३१. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. छबील पुस्कर्णाब्राह्मण, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२.५,११४३३). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. कविदास, मा.गु., पद्य, वि. १९३०, आदि: तुने संसार सुख किम स; अंति: कविदास० चार निवारजो, गाथा-१२. ८५८३२. खंधकमनि व चेलणाराणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. हंडी:खंधक., दे., (२५.५४१२.५, १०४२८). १.पे. नाम, खंधकमनि सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो खंधक महामुनि; अंति: सेवक सुखियां कीजे रे, ढाल-२, गाथा-११. २. पे. नाम. चेलणाराणी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखाणी राणी; अंति: पामीओ भवतणो पार, गाथा-६. ८५८३३. शांतिजिन पूजन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रारंभ में शांतिजिन, कुंथुजिन, अरजिन व मल्लिजिन का कोष्ठक पूजन सामग्री नाम आदि दिए गए हैं., दे., (२४.५४१२,५४३१). शांतिजिन पूजन स्तवन, मा.गु., प+ग., आदि: श्रीशांतिनाथ जिनतणा; अंति: धरे सीझे वंछित काज, गाथा-६. ८५८३४. (+) समाचारी-देवसूरगच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४१२, १७४३८). सामाचारी-देवसूरगच्छीय, गच्छा. विजयधरणेंद्रसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (१)जीयात् जिनेशसिद्धांत, (२)स्वस्ति श्रीपार्श्व; अंति: १३मी अगष्ट सने १८७३. ८५८३५. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, १६४२०-४२). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानतीर्थंकर; अंति: वीजय जिणेंद्रसूरी, (, भाद्रपद शुक्ल, ४) ८५८३६. (+) महावीरजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., ., (२४.५४१२, ५४३२). महावीरजिन स्तवन, म. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: में तो नजीक रे सांजी; अंति: उदयरत्न० श्रीमहावीर, गाथा-८. महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे वितराग देव हं; अंति: धर्म सदा जयवंतो वसे. ८५८३७. (2) देववंदनविधि आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४५). १.पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वीयराय संपूरण कहीजै, (पू.वि. प्रारंभ का अधिकांश भाग नहीं है.) २. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. चंद्रगुलाब, पुहिं., पद्य, आदि: नेमजीकु जावा न देती; अंति: पुराण प्रभु सेती, गाथा-३. ३. पे. नाम. पाक्षिक अतिचार, पृ. २आ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभिक पाठ लिखा है.) ४. पे. नाम. हेमकीर्ति गहुँली, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ हेमकीर्तिगुरु गहुँली, मा.गु., पद्य, आदि: हेमकीरतगुरु वांदस्या; अंति: च्यार खुट में गाउं, गाथा-६. ८५८३८. (+) नववाड सज्झाय व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. जिनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक-१ लिखा है, परन्तु कृति अपूर्ण होने के कारण काल्पनिक पत्रांक-२ लिया गया है., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२४३८). १.पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ९ वाड सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: ते साधसुं सनेहो रे, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमलकल्प उद्यानमा; अंति: सरणी सीवमंदिर तणिजी, गाथा-९. ८५८३९ (#) नमिराजर्षि ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:नमीराजा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १६x४५-४८). नमिराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: शाशननायक सिमरतां; अंति: (अपठनीय), ढाल-७. ८५८४० (+) चंद्रप्रभजिन स्तवन व नेमिजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्रावि. रायकुंवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, १३४४२). १.पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कुशालचंद शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १९०३, आदि: चंद्राप्रभुजिन देवा; अंति: द्यौत्ये आई पाउं रीझ, गाथा-११. २.पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: छपन करोड जादु जान; अंति: देव धरम गुण गाय लीयो, गाथा-६. ८५८४१. सुभद्रासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२७४१२,११४२८). सुभद्रासती सज्झाय, मु. भानु, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं ते सारद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा __अपूर्ण., गाथा-२५ अपूर्ण तक लिखा है.) ८५८४२. जिनप्रतिमा स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, अन्य. मु. गौतमविजय (गुरु पं. धनविजयजी); गपि.पं. धनविजयजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, ९४३९). १. पे. नाम, जिनप्रतिमा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. म. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जिन प्रतिमा वंदण; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: सतत म छंडे मीत तूं; अंति: टारी टरै नहीं कोय, दोहा-१. ३.पे. नाम. निन्हव विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. निह्नव विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (१)हवे ओलखावाने अर्थे, (२)श्रीवीर केवलज्ञानात; अंति: सर्व विसंवादी जान८. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अमंत्रमक्षरं नास्ति; अंति: आम्नाया खलु दुर्लभा, श्लोक-१. ८५८४३. अष्टापदऋषभ स्तवन व संखेश्वरजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १५४३९-४२). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद ऊपरे जाण; अंति: हो फले सघली आश के, गाथा-२३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेसरो मन; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૮ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५८४४. मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, १२४३५). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वनायक मुगतिदायक; अंति: माणेकमुनि सिवसुखकरं, गाथा-१३. ८५८४५.२४ जिन चंद्रावला स्तवन व गौतमस्वामी गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. सणवाग्राम, प्रले. मु. कस्तुरसागर; लिख. पं. माणिक्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १४४३७-४३). १. पे. नाम. २४ जिन चंद्रावला, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निजगुरु चरण नमी करी; अंति: ज्ञान० जिनगुण भणीइं, गाथा-३५. २. पे. नाम. गौतमस्वामी गीत, पृ. ४अ, संपूर्ण. __उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गौतमनाम जपो परभाते ज; अंति: समयसुंदर० गुण गाते, गाथा-४. ८५८४६. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२, १०४३६). महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरणकमल नमीए; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक लिखा है.) ८५८४७. (+) औपपातिकसूत्र-संसारसागरनौका वर्णन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ७४३६). औपपातिकसूत्र-हिस्सा सूत्र-२१संसारसागर-नौका वर्णन, प्रा., पद्य, आदि: संसारभयउव्विग्गा भीय; अंति: णिया चरंति धम्म. औपपातिकसूत्र-हिस्सा सूत्र-२१संसारसागर-नौका वर्णन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार थकी वली उद्वेग; अंति: संसाररूप समुद्र तरौ. ८५८४८. (+#) पुण्यपाप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, १४४३२). पुण्यपाप स्तवन, मु. विवेकविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: सरसतिनैं प्रणमु सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८५८४९ (+) ८ कर्मनो बंधद्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ४१४२४). भगवतीसूत्र-८ कर्मबंधद्वार कोष्ठक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८५८५० (+) महावीरजिन गहंली व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १५-१७४५२). १.पे. नाम. सनत्कुमार सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: देवलोक त्रीजे संभाली, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. रथनेमिराजीमति सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. रथनेमि सज्झाय, म. वसता मनि, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग थकी रे रहनेमी; अंति: छे मुगती मझार रे, गाथा-७. ३. पे. नाम, महावीरजिन गहुंली, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवीर समोसर्या; अंति: पामीजे देवविमान, गाथा-९. ८५८५१. पार्श्वजिन स्तवन, पद व आषाढभूति चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, १६४४३). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति यति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडी प्रभु पास; अंति: जिन० जतिसर वंदे रे, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विनय सजीने साहिबा; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३. पे. नाम. आषाढाभूतिमुनि चरित्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ८५८५२. (+) गौतमपृच्छा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:गौतमपृच्छा सज्झाय., संशोधित., दे., (२६४१२, १२४३९). प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: गौतम पछे श्रीमहावीर; अंति: जस० जन भवजल पार रे, गाथा-१३. ८५८५३. (-) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, दूहा व असार संसार वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२, १६४२९). १.पे. नाम, चंद्रगुप्तराजाना सोलेसपना, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: चंद्रगुपतराजा सुणो, गाथा-५४. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. राम चरण, पुहिं., पद्य, आदि: काजल भरणो हे सखि; अंति: राम० सब जग देवे रोय, गाथा-२. ३. पे. नाम, असार संसार वर्णन, पृ. ३आ, संपूर्ण. असार संसार वर्णन-गौतम द्वारा प्रश्न महावीरस्वामी द्वारा जवाब, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीगोतमस्वामि पुछ; अंति: माया कपटरूप भमर छे, ग्रं. अंक १५. ८५८५४ (+) प्रदेशीराजा चौढालियो, साघुसत्व सझाय व राजुल गीत, संपूर्ण, वि. १८५५, चैत्र शुक्ल, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. विकानेर, प्रले. मु. छित्रमल (गुरु मु. लिखमीचंद); गुपि. मु. लिखमीचंद; पठ. सा. दया (गुरु सा. सीता), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२५४१२, १९४४०). १.पे. नाम. प्रदेशीराजा चौढालियो, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:प्रदेसी. मा.गु., पद्य, आदि: चित इम लेइ राजान भेट; अंति: सहीए मो दिल वसे नहीए, ढाल-४, ग्रं. १०५. २. पे. नाम. साधुसत्व सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. छित्रमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: घर छोडीने निसर्या; अंति: छित्र हो कह एह विचार, गाथा-१४. ३. पे. नाम. राजुल गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: दो घडीया रे च्यार; अंति: ज्ञानविमल० आंखडीया, गाथा-८. ८५८५५ (+) थोयो पजसणानी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४२७). पर्युषणपर्व स्तुति, आ. भावलब्धिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्यवंत पोसाले आवो; अंति: सिद्धाइका दुखहरणी, गाथा-४. ८५८५६. ज्ञानपंचमी, मतिज्ञान, व श्रुतज्ञान स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२६४१२, ८४३१). १.पे. नाम. केवलज्ञान स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, आ. लक्ष्मीसरि; आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरने प्रगट; अंति: ज्ञान ___ महोदेय गेह रे, गाथा-६. २. पे. नाम, मतिज्ञान स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमो पंचमी दिवसे; अंति: विजयलक्ष्मी लहो संत, गाथा-६. ३. पे. नाम. श्रुतज्ञान स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुत चउदभेदे कर; अंति: विजयल० गुण गेह रे, गाथा-६. ८५८५७. (+) ५६३ जीवभेद, ५६० अजीवभेद व पच्चक्खाणकल्पमान यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, २०४११). १.पे. नाम. जीवनाभेद ५६३, पृ. १अ, संपूर्ण. ५६३ जीवभेद यंत्र, मा.गु., को., आदि: भरति महाबिदेह; अंति: अंते अधोग्राम मुठिमा. For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. अजिवनाभेद ५६०, पृ. १आ, संपूर्ण. ५६० अजीव भेद यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. पोरसी आदि पच्चक्खाण समय विचार यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पच्चक्खाणकल्पमान यंत्र, मा.गु., को., आदि: श्रावण पग ७ भाद्रवो; अंति: जेठ पग ७ असाड पग ६. ८५८५८. (+-) काठीआनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८३, पौष शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. राडधरा, प्रले. मु. श्रीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:काठीयापत्र., अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ९-१३४३५). १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: साधु समीपै आवतोजी आल; अंति: सीस उत्तम गुण गेह, गाथा-१५. ८५८५९ (-) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४४१२, ९४२३). पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: मन मोहनगारो साम सहि; अंति: सफल आपणो करै जी लो, गाथा-१०. ८५८६०. (+) पार्श्वजिन स्तवन द्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२.५, १३४४३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शेरसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: तेरे दर्शन की बलीहार; अंति: पार उदारन वाले तेरे, गाथा-१२. २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदसागर, पुहिं., पद्य, वी. २४४१, आदि: प्रभु मेरे पारसनाथ; अंति: आनंद को अब तार, गाथा-१३. ८५८६१. समवसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११.५, १४४३६). समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक वार वच्छ देश आवजो; अंति: रेहता उशव रंग वधामणा, गाथा-१५. ८५८६२. श्रावकप्रायश्चित विधि, संपूर्ण, वि. १८८४, भाद्रपद शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. कस्तुरविजय (खरतरगच्छ); गृही. पं. माणिकरत्न; अन्य पं. मोहन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४७-५६). श्रावकआलोयणा विधि, मा.ग., गद्य, आदि: खमासमण देइ गुरुने; अंति: हजार सज्झाय वधारीइ. ८५८६३. (-) नेमराजिमती सज्झाय व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, १२४४९). १.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजयजीरा लाडला; अंति: रतनचंद० प्राण आधार, गाथा-१०. २. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी आपा दुलवाजी; अंति: रीषभदास० मोहन वेलडी, गाथा-५. ८५८६४. महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४४१२, १०४२९). महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदि: आधार ते हृतो रे एक; अंति: पाम्या सिवपद सार, गाथा-१५. ८५८६५ (-) औपदेशिक सज्झाय व ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४१२, १७४२८). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: इण काल रो भरोसो भाई; अंति: रतन० कीजो धर्म रसालो, गाथा-१३. २. पे. नाम. उपदेसी ढाल, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायाकपट, म. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कुडकपट कर माया मेली; अंति: रतनचंद० माया प्रकृत, गाथा-११. ८५८६६. रुक्मणीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. दरियापुर, प्रले. कुवरजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, ११४३३-३८). For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामो गाम; अंति: राजविजय रंगे भणे जी, गाथा-१५, ग्रं. १४. ८५८६७. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १०४४३). पार्श्वजिन स्तवन, पं. लब्धिरुचि, सं., पद्य, वि. १७१४, आदि: वंदेहं श्रीपार्श्व; अंति: लब्धिरुचि० नुवनां रे, श्लोक-९. ८५८६८. वीरजिन सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सोजत, प्रले. मु. वजेचंद; अन्य. श्राव. पानाचंद देवचंद; ग. वीरचंद्र मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, २५४१९). देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: सकलचंद०उलट मनमां आणी, गाथा-१२. ८५८६९. रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:रोहणी तव०, जैदे., (२३.५४११.५, ७४२५-२७). रोहिणीतप स्तवन, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवति सामणीए; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ अपूर्ण तक लिखा है.) ८५८७०. उतपत्ती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. फतेपुर, प्रले. सा. अणंदाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१०.५, १९४४२). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपत जोज्यो आपणी मन; अंति: इम कहिये श्रीसार ए, गाथा-७२. ८५८७१. छ ठाणबडीयानो अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४४११.५, १८४४०-४९). ६ स्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अनंतभाग हीन अनंता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "नवरं पोतास्थान छ ठाणवडीए" तक लिखा है.) ८५८७२. पद, थोय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१९, कार्तिक कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२४.५४१२, १८४३९). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षनो रे; अंति: देवचंद पद लीधरे, गाथा-९. २. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कुंथुजिन मनडुं; अंति: आनंद० करि जाणूं हो, गाथा-९. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ.१आ, संपूर्ण. __ उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: तुम बिन ओर न जाचुं; अंति: जस० गुण संगे माचुं, गाथा-४. ४. पे. नाम. मौनएकादशी थोय, पृ. १आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: इकादसी अति रुअडि; अंति: गुण० संघ तणा निसदीस, गाथा-४. ८५८७३. बिंबप्रवेश स्थापनाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४२). जिनबिंबप्रवेश विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम सुमुर्हत लग्नी; अंति: नाम १०८ वार स्मरइ. ८५८७४. जिनकल्याणक पनरतिथितपस्या विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५४१२, १४४३८). जिनकल्याणक १५ तिथि तपस्या विधि, मा.गु., को., आदि: १वैशाख वदि श्रीकुंथु; अंति: नेमिपरमेष्ठिने नमः. ८५८७५. कीर्तिध्वजराजा ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, अन्य.सा. कुवरजी माहाराज; प्रले. सा. सरसाजी माहाराज; अन्य.सा. चुनाजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका व वर्ष अशुद्ध हैं., दे., (२४४१२,१५४३३). कीर्तिध्वजराजा ढाल, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९३१, आदि: श्रीश्रीआदजिनेसरु; अंति: हीरालाल०करी एक मन हो, गाथा-७४. ८५८७६. (#) ऋषभदेवजी निंद्या स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १५४३८). आदिजिन स्तवन, म. धर्मवर्धन, मा.ग., पद्य, आदि: त्रिभुवननायक ऋषभजिन; अंति: अरज श्रीध्रमसी तणी, गाथा-१६. स For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स ३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५८७७. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०). सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्कर; अंति: श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. सकलकशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत अनंत; अंति: मंगलमाला संपजे. ८५८७८. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२४४१२, १५४३७). साधुवंदना बृहद, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमु अनंत चोवीसी; अंति: जैमल एही तिरणरो दाव, गाथा-१०८. ८५८७९ (+) पार्श्वनाथजीरो श्लोक, संपूर्ण, वि. १९४३, श्रावण कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. लूणकरणसर, प्रले. मु. हुकमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १३४३६). पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमुं परमारथ अवचल; अंति: वंछित पावै, ___ गाथा-५६. ८५८८०. रायचंदजी गुण वर्णन, संपूर्ण, वि. १८९३, आषाढ़ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मु. सतीदास ऋषि; पठ. सा. हसतु (गुरु सा. बगलुजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, २२४५२). रायचंदऋषि गुरुगुण वर्णन, मु. आसकरण, रा., पद्य, वि. १८४०, आदि: अरिहंत सिद्धने आरीया; अंति: आसकरण० सुरत सुहावणी, ढाल-१, गाथा-१८. ८५८८१(-) औपदेशिक लावणीद्वय, संपूर्ण, वि. १९६३, चैत्र कृष्ण, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थलमंदसोर, प्रले. गीरधारी; अन्य. मु. लालचंदजी (गुरु मु. मोति ऋषि); गुपि. मु. मोति ऋषि (गुरु मु. गौतम); मु. गौतम (गुरु मु. अमी ऋषि); मु. अमी ऋषि (गुरु मु. धनराज); मु. धनराज (गुरु मु. हीराजी ऋषि); मु. हीराजी ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२, १८४५७). १. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: लक्ष्मीसुम दोनु का; अंति: लाया तु क्या ले जाय, गाथा-४. २. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __पुहिं., पद्य, आदि: परगट हरकुं सबी भजे; अंति: कथन कछु ओरहि है, गाथा-५. ८५८८२ (+) वीसविहरमानजिन नाम व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९११, श्रावण शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२, १२४३८). १.पे. नाम. २० विहरमानजिन नाम, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति हुंडी में लिखी गई है. __मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसीमंधर श्रीयुग; अंति: जसोभद्र१९ देवजसा२०. २. पे. नाम. वीसविहरमानजिनना स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वंदु मन सुधे वेरमाण; अंति: नेहधर धर्मसी नमै, ढाल-३, गाथा-२६. ८५८८३. पद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ९, जैदे., (२५.५४१२, २४४५३). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: छांडदे अभिमान जीव रे; अंति: नाचइ भैया आप पिछान, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-मन, पुहिं., पद्य, आदि: ए मन ऐसो है जिणधर्म; अंति: ज्यों प्रगटै पद पर्म, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जिनवाणी, पुहिं., पद्य, आदि: को को नही तारे जिण; अंति: जिन वचन सवे उपगारे, गाथा-६. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण... मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: तु तिर्थका देवताजी; अंति: रूप० देव न दूजा होय, गाथा-५. ५. पे. नाम, पार्श्वजिन जन्मोत्सव पद, प. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ . पुहिं., पद्य, आदि: आज वधाइ वाजैरी माई; अंति: कीजे मेरो प्रतिपाल, गाथा-५. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनवशीकरण, पुहिं., पद्य, आदि: मन मरकट वस कीजे रे; अंति: नमो नमो तिरकाला रे, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. कुमतिसुमति सज्झाय, म. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: छांडो कमति अकेली जा; अंति: लालविनोदी०मन भावैरे, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. __मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: एह संसार खार सागर; अंति: भूधर० की बेदन खोइ, गाथा-१०. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणै घर बैठा नील करो; अंति: समयसुंदर०कहै गुणजोडो, गाथा-८. ८५८८४. (#) वैराग्य सज्झाय व धर्मफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १८४४६). १.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: सैखरो धरम छै साचो; अंति: आपणो जगतम जीवणो थोडो, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-धर्मफल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६५, आदि: दया रणशींगो वाजीओ रे; अंति: रायचंद०धरमरा फल जोजो, गाथा-१७. ८५८८६. च्यारमंगल पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४२). ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धारथ भूपति सोहिइ; अंति: उदयरत्न भाखे एम, ढाल-४. ८५८८७. अतीतचोवीसी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, ९४२४). २४ जिननाम स्तवन-अतीत, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अतित चोवीसी ध्याइइं; अंति: राज० करुं प्रणाम, गाथा-९, (वि. गाथा-५ के बाद गाथांक नहीं लिखे हैं.) ८५८८८. (+-) शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. डाबल, प्रले. श्रावि. रायकुंवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२५४११.५, १५४३६). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गौतमनाम नमुं सिरनामी; अंति: वंछित फल निहचै पावै, गाथा-२१. ८५८८९ (+) आत्मशिक्षा व भरतबाहबली सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १२४३१). १.पे. नाम. आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आयुष्य सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: आऊ तूटै सांधौ लागै; अंति: जिनराज० तणो उछाहरे, गाथा-१२. २. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबल चारित लीयो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८५८९०. मानतुंगमानवती कथा, संपूर्ण, वि. १९६४, माघ शुक्ल, १२ अधिकतिथि, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. मु. मुनीलाल (गुरु मु. गणेशदास, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १९४५३). मानतंगमानवती रास, अनपचंद-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: श्रीजिनशांति जिनेसरू: अंति: प्रसादे० जयनगरे कही, ढाल-७. ८५८९१ (+) सिद्धदंडिका स्तवन व वणझारा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२,११४३६). १.पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. शा For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी अंतिः पद्मविजय जिनराया रे, दाल-५, गाथा - ३८. २. पे. नाम. वणझारा सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय वणझारा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि नरभव नगर सोहामणुं अंति: करे पद्म नमे वारंवार, गाथा-७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८५८९२. (९) २४ जिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. जैवे (२६x१२, १५×२७). २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार; अंति: (-), (पू.वि. नेमिजिन स्तुति गाथा - १ तक है.) ८५८९३ (-) महावीरजिन स्तवन, सज्झाय व घंटाकर्ण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक ११-१२ लिखा है, अशुद्ध पाठ-संशोधित. दे. (२६४१२, १४४३५). १. पे. नाम महावीरजिन स्तवन- पारणागर्भित, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अति: तेहने नमे मुनि माल, गाथा २८. - २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, अन्य. मु. बिहारीलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, आ. गुणसागरसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: भरतकुमर जाइ कह्यो; अंति: तो दीसौ छइ रे कारिमो, ढाल-१, गाथा-१२. ३. पे. नाम. घंटाकर्ण स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ८५८९४. २४ तीर्थंकर शुकनावली, संपूर्ण, वि. १८७४, कार्तिक कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, सेवाडी, जैये. (२५.५४१२, १४४१६). २४ जिन शुकनावली, मा.गु. सं., गद्य, आदि उतावलो काम थास्यै; अंति: औषधथी गुण नही छै, (वि. २४ तीर्थंकर के मंत्र-यंत्र सहित) ८५८९५. विजयलक्ष्मीसूरि वारमासो व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जैदे. (२५४१२, . १६X३२). १. पे. नाम. विजयलक्ष्मीसूरि बारमासा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हु तो सरसतिने पाये; अंति: तपागछमां० अजूआलू रे, गाथा १६. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आ. भावप्रभसूरि, पु,ि पद्य, आदि: मोहराव से लडीया रे अति (-), (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण तक है.) ८५८९६. (+) पालानो विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. जैनगर, प्रले. मु. ख्यालीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१२, २२४५५-५६). संख्याताअसंख्याताअनंता मान विचार, मा.गु., सं., गद्य, आदि: संख्यानूं एक प्रकार; अंति: अनंतक अनंतो नास्ति. ८५८९७. (*) ५ मूलभाव ५३ उत्तरप्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२३.५४१२, १५४४१). " ५ मूलभाव ५३ उत्तरप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम उदयिकभाव; अंति: लाभइ तेहनइ अनुसारइ. ८५८९८. (8) नेमराजिमती बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, ले. स्थल राजनगर, पठ. श्रावि. नवलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११.५, १३X३०). नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण मासे स्याम; अंति: कवियण० नवनिध पामी रे, गाथा - १३. ८५८९९. चोत्रीस अतिशय स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. पानाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४४११.५, १४X३६). ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमतिदायक कुमति, अंति: ज्ञान० मांगु भवभवे, गाथा- ११. For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३५ ८५९००. नंदीषेणमुनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. चंदाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १३४२८). ___ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: बेरागी मन बालहाजी; अंति: वरत्या जयजयकार, गाथा-१५. ८५९०१ (+) १४ पूर्व प्रमाण व प्रस्ताविक श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कोटानगर, प्रले. मु. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:१४चउदेपूर्वप्रमाणपत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५४१२, २१४३८-४४). १. पे. नाम. १४ पूर्वमान प्रमाण, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ पूर्व नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम उत्पादपूर्व पद; अंति: स्याही से लिखाय. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अब्धिलब्धिर्कदंबक; अंति: दसाणं कप्पेअ ववहारे, श्लोक-२. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह-अर्थ, पुहि.,मा.ग., गद्य, आदि: समुद्रलब्धि के समूह; अंति: कल्प व्यवहारसूत्र, (वि. अर्थ टबार्थ के रूप में लिखा है.) ८५९०२ (+) नेमिजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२,११४२३). नेमिजिन बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: नेणारी मारी नामरू; अंति: तुझ बिन घडी रे छ मास, गाथा-१३. ८५९०३. (+) शीलनी ३२ उपमा व छूटक दहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४३२-३६). १. पे. नाम, शीलव्रत ३२ उपमा बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पहेली उपमाई ग्रहगण; अंति: मांहे सीयलव्रत मोटो. २. पे. नाम. छुटा दूहा, पृ. १आ, संपूर्ण. दहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. ८५९०४. सिद्धचक्र नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४२९-३५). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: साध० सीस कहे करजोड, गाथा-५. ८५९०५. (4) गजसखमालरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:गज. लेखन स्थल अस्पष्ट है., अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२.५, २१४३२-३८). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देस मजारि; अंति: सिवसुख पांमीअ जी, गाथा-५०. ८५९०६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(१ से २)=४, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ११४३६-३८). हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सज्झाय-३ गाथा-५ अपूर्ण से सज्झाय-१३ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८५९०७. अमकासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४१२, १२x२९-३१). अमकासती सज्झाय, म. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमका ते वादल उगियो; अंति: वीरविजय गुण गावता रे, गाथा-२३. ८५९०८. समतिजिन स्तवन व षड्द्रव्यपरिणाम विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १३४४१). १.पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: मोटा ते मेघरथ राय रे; अंति: रीखभ कहे रक्षा करीये, गाथा-४. २. पे. नाम. षड्द्रव्य परिणाम विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा का विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: छ द्रव्यमां जीव अने; अंति: नवि जहंति ए वन मीटे. For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५९०९. भरतबाहुबली संवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२४.५४१२, १२४२८-३४). भरतबाहुबली संवाद, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माता समरी3; अंति: कुसल० प्रणमु सिरनामी, गाथा-६४. ८५९१० (+) रोहिणीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३८-४२). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ८५९११. (+) दया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६१, कार्तिक कृष्ण, २, शनिवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कुचामण, प्रले. मु. क्षेमकरण, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४४८-५२). मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडा विनती, मा.गु., पद्य, आदि: दया बरोबरि धर्म नहीं; अंति: संत सुखी अणगारो जी, गाथा-३४. ८५९१२. (+) वर्षफल विचार व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२४, माघ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटननगर, प्रले. मु. सौभाग्यविजय (गुरु मु. गुमानविजय); गुपि.म. गुमानविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. चलोडाना रेवासी., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., दे., (२५.५४१२, १६x४३). १.पे. नाम, वर्षफल विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: चैत्र सुदि १ दीवशे; अंति: पण मरणकाल जाणवो. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तार्य तार्य पार्श्व; अंति: सौभाग्य नरसे जेत रे, गाथा-६. ८५९१३. (+#) कृष्णबलभद्रनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४३८-४२). बलभद्रकृष्ण सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारीका हुंती नीसर; अंति: ल्यावणसमेइ० कोइ तोले, गाथा-३०. ८५९१५ (+#) नाणावटी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. चारो कोनों में सुशोभनयुक्त पत्रांक अंकित हैं., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, ९४२४-२८). नाणावटी सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हो नाणावटी नाणुं नर; अंति: रूप कहे० भवीक प्राणी, गाथा-८. ८५९१६. (+-) मौनएकादशी स्तवन व गुरुसंगति पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४११, १६४३८). १. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: भर्या समद मा झूलण; अंति: हाथी होदब फरसी, गाथा-८. २. पे. नाम, गुरुसंगति पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: पुन जोगे गुरु मीलीया; अंति: सुकल ध्यान ध्यावो, गाथा-१४. ८५९१७. (+) नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १८३८, पौष शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. खीमेल, प्रले. मु. जीवणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३-१६४३४-४२). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विवधवर; अंति: कुशललाभ०परिवंछित लहे, गाथा-१४. ८५९१८. सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. बीकानेर, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३९-४१). सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय-रूपअभिमान, रा., पद्य, आदि: तिणकालेण सम पहल देव; अंति: प्रतिपाल० रे तु राणी, ढाल-४. ८५९१९ (+#) इरियावही सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३५-३९). For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३७ वहीं इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: श्रुतदेवीना चरण नमी; अंति: वीनयविजय उवझायो रे, ढाल-२, गाथा-२६. ८५९२० (4) जिनप्रतिमामंडन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४२, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाटण, प्रले. पं. राजेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. माहाविर प्रसादात. दयासत्क रहेवासी पाटण., अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४१२,११४२८-३२). जिनप्रतिमामंडन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतादिक उद्धार ज; अंति: वाचक जसनी वाणी हो, गाथा-१०. ८५९२१ (+) सासतां चैत्यप्रभु बिंबनिर्णय स्वरूप विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. भट्टा. जिनचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रतिमासास्वती पत्र., संशोधित., जैदे., (२५४१२, १७४३८-४२). शाश्वतजिनबिंब स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता मनधरि; अंति: जंपइ सार ए अधिकार ए, ढाल-६, गाथा-६०. ८५९२२. (+) १८ नातरा व झांझरियामुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १२४३२-३४). १. पे. नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेंहलोनि प्रणमूरे; अंति: रिधविजय० रे मनरंगीली, ढाल-३, गाथा-३४. २. पे. नाम. झांझरियामुनि सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: पासजिणेसर समरतां; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-४ तक है.) ८५९२३. (+) दोढसो कल्याणक मौनइग्यारस गणणं तपविधान स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७८, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३५-४१). मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमुं जिन; अंति: जसविजय जयसिरि लही, ढाल-१२, गाथा-६२. ८५९२४. गुरुगुण गहुँलीद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४२). १. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरुं मुख चंदचकोर; अंति: सदा सद्बुद्धी रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: आतमरुची गुणधारणी रे; अंति: मीत रे सुखकारणी, गाथा-७. ८५९२५. नववाडि सज्झाय, नेमिजिन बारमासा व आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १९x४०). १.पे. नाम. नववाडि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, अन्य. पं. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदिः श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: जाउं तेहने भामणे, ढाल-१०, गाथा-४३. २. पे. नाम, नेमिजिन बारमासो, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: राजिमती कहै नेमजीनै; अंति: सुजंग करो फिर० कहि, गाथा-१२. ३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लख लहो रे लख लहो रे; अंति: गननिरंजन पाउं रे, गाथा-३. ८५९२६. (+) १५तिथि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७९, फाल्गुन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२-१८x२५-४५). १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम; अंति: नयविमल० नाम तणो गुणी, स्तुति-१६, गाथा-६४. ८५९२७. (+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ११४३६-४०). For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु वचन सिर धरी म; अंति: लइ तस घरि होइ रंगरोल, गाथा-१५. ८५९२९ (+) आराधना आलोयण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५,११४३२-३६). आलोचणा आराधना, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम तीन नवकार कहि; अंति: मंगलीक माला विस्तरो. ८५९३० (+) विवाहसूत्र वाचनविधि स्वाध्याय, नेमिजिन गीत व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १३-१४४२८-३२). १. पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: वंदि प्रणमी प्रेम; अंति: विनयविजय उवज्झाय रे, गाथा-२०. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. म. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मारा नेमपीयारा लोल; अंति: रुचिरविमल०फली रे लोल, गाथा-१३. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: तार हो तार प्रभु मुज; अंति: देवचंद्र० प्रकाशे, गाथा-७. ८५९३१ (+) संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १०x२२-२६). संभवजिन स्तवन, म. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: हं तो मोयो रे लाल; अंति: नीतलाभ० गाउ ह लटके, गाथा-५. ८५९३२. (+#) मौनएकादशी व अध्यात्म स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११.५, १३-१४४२७-३५). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम बोले ग्रंथ; अंति: लालविजय० विघन निवारी, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठि सवारें सामायक; अंति: भावप्रभ०सीवपद भोगीजी, गाथा-४. ८५९३३ (+#) तारातंबोल नगरी वार्ता, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प.१,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४३०-३४). तारातंबोल नगरी वार्ता, मा.गु., गद्य, आदि: संवत १६८४ वर्षे; अंति: मली ५६५० यमी थाय सही. ८५९३४. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. गाथांक नहीं लिखा है., दे., (२६४११.५, ११४४०-४४). अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, म. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र वदी आठम दिने; अंति: खीमाविजय० ग्यान अनंत, गाथा-१४. ८५९३५ (+) नेमिजिन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पालणपुर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२४२६-३४). १.पे. नाम. नेमिजिन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए संसार असार सरूप; अंति: दानविजय० भवसायर तरे, गाथा-५. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: माडी मुने निरपख किणे; अंति: आनंद बाजी सघली फावे, गाथा-८. ८५९३६. (+#) छंद व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६६, माघ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, ले.स्थल. सांडेरानगर, पठ. सा. रुपा आर्या, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४३८-४२). १. पे. नाम. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमात नमुं सिरनामी; अंति: गुणसागर० सुख पावै, गाथा-२१. २.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित परे विविध परे; अंति: कुशललाभ० वंछित लहै, गाथा-१७. ३. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३९ मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जग जयो; अंतिः सदा सदावली वखांणिये, गाथा-१६. ४. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: य पुरा राजभृष्टाय; अंति: विदधमं सततामिव मंगलं, श्लोक-९. ५. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंति: सुप्रसन्न प्रजायते, श्लोक-५. ८५९३७. (+#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, ११-१२४३८-४२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ताहरी मरतनं नही; अंति: उदयरत्नपार उतारो रे, गाथा-६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ताहरे वअणे मनडुं; अंति: उदयरत्न० समवरणी रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: पामी परभूना पाया रे; अंति: उदयरत्न०दामण वलगोरे, गाथा-५. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आंखडीइए मि आज र; अंति: उदय० आदेसर तुठारे, गाथा-७. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: थारी मुद्राइ मन मोह; अंति: ज्ञानविमल गुणखाणी, गाथा-५. ६. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ताहरी अजबसी जोग्यनी; अंति: कांति०मनमंदिर आवो रे, गाथा-५. ७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम शीतलनाथ स्तुति लिखा है. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जगत दिवाकर जगत कृपा; अंति: देव० मनोरथ साधी रे, गाथा-८. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. मु. रूपविबुधशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोडीप्रभु पासजी; अंति: रूप० मन पुरवि आसा रे, गाथा-५. ९.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुं पारंगत तुं परमेश; अंति: खेमा०तेही ज पावें रे, गाथा-४. ८५९३८. नवपद स्तवन व सरस्वतीदेवी मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १२४३९). १. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९०, आदि: नवपद ध्यावो सुखकरू; अंति: श्रीहर्षचंद० वालेसर, गाथा-१२. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वद; अंति: आवे सदा इम ज करवो. ८५९३९. २१ बोल प्रतिमापूजा प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. मोहनविजय, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १४-१७४४६). प्रतिमापूजा विषयक २१ प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रश्न २१ पूछ्या; अंति: दशांगै जोइ लेज्यो. ८५९४०. पकवानादि कालमान विचार, सचितअचित सज्झाय व १० पच्चक्खाणफल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १७४४८). १.पे. नाम. पकवान आदि कालमान विचार संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., प+ग., आदि: झगरा बार पुहरे वास; अंति: उपरांत दही अभक्ष्य, (वि. आचारांगसत्रादि के सन्दर्भ दिए गए हैं.) २. पे. नाम. सचितअचित सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, म. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः प्रणमी श्रीगौतम; अंति: वीरविमल करजोडी कहे, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नम; अंति: सीस गुणचंद तपविध भणै, ढाल-३, गाथा-३३. ८५९४१ (+) जादवारो रास, संपूर्ण, वि. १९३९, फाल्गुन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. साथसेण, प्रले. श्राव. छोगचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जादवराश., संशोधित., दे., (२६४१२, १६x४४-४८). नेमराजिमती रास, म. पुण्यरत्न, मा.ग., पद्य, आदि: सारद पय प्रणमि करि; अंति: पुण्यरत्न० जिणंद के, गाथा-६२. ८५९४२. (-) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१२, १८४३७-३९). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरिठ देस मझार द्रिक; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८५९४३. (+) अल्पबहुत्व बोल विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-२(१,४)=३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, ३८x१६-२१). अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बोल-१५ अपूर्ण से १०३ तक है., वि. स्याही फैलनेवाले स्थल पर पाठ नहीं लिखा गया है.) ८५९४४. अष्टमीतिथि व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, ८४४०-४२). १. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: जिनसुख० जनम प्रमाण, गाथा-४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८५९४५. (+) नवकार छंद व ११ गणधर विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक-१आ पर अज्ञात यंत्र दिया गया है., संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १८४६२-६६). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंति: कुसललाभ० वंछित लहइ, गाथा-१६. २.पे. नाम. गणधर विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: १ इंद्रभूति २ अग्नि; अंति: ८३९५ ७८७२ ६२ ४०. ८५९४६. (+) पद्मावती आलोयणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १४४३८-४२). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवरांणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर० पणानो सार, ढाल-३, गाथा-३४. ८५९४७. अनाथीमनि सज्झाय, साधारणजिन स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:अनाथीजीरो तवन., दे., (२५.५४११.५, १८४३२-३४). १.पे. नाम. अनाथीमनि सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. म. खेमकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: अरिहंत सिध नमसकार; अंति: खेमकीरत० किरपानाथ के, गाथा-६३. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रीत मेरी जिनवर से; अंति: हीरालाल इसी जाणी रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी सुध मन आसता देव; अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर, गाथा-७. ८५९४८. (4) गजसकमालमनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, १८४३८-४२). For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अरिष्टनेमि नामै हुआ; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१० गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८५९४९ (+) श्रावक मनोरथ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पठ. श्राव. लक्ष्मीचंद नाहटा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रावकाका३मनोर्थ., संशोधित., दे., (२६४१२, १०४३२-३६). श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोरथ करतो थको; अंति: वासग ठाणांग मध्ये छै. ८५९५० (#) महावीरजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०२, माघ कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. विनयचंद्र (गुरु ग. भक्तिचंद्र); गुपि.ग. भक्तिचंद्र (गुरु पंन्या. मयाचंद्र),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ४४३७-३९). महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: मेहे तो नाजर रहेसां; अंति: उदयरत्न तुम महावीर, गाथा-७. महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरने हजूर; अंति: जयजयकार जयकार हज्यो. ८५९५१ (+#) ६४ सती सज्झाय व महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २, कुल पे. २, ले.स्थल. बगेरा, प्रले. सा. कुस्याली, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १७४३९-४६). १.पे. नाम. ६४ सती सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. म. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नामपणै ग्यानी कथायां; अंति: जैमल कहे आणो धिरती, गाथा-४१. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: अरतजी अतबली अत सपूरण; अंति: जगतगुरु तीसला नंदणजी, गाथा-२६. ८५९५२ (+) साधुगुण, औपदेशिक व मेतार्यमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १०x२६). १. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. विजयदेवसूरि, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: भणे विजैदेवसूरोजी, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण, पे.वि. लिखावट के आधार से यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतीत होती है. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: (-); अंति: ते चिरकाले नंदो रे, गाथा-९, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण से लिखा है.) ३. पे. नाम. मैतार्यमुनि सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. लिखावट के आधार से यह कृति अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतीत होती है. मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: साधुतणी रे सज्झाय, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ अपूर्ण से लिखा है.) ८५९५३. (+) वीरजिन व नवपद स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९१, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १०४३२-३५). १. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. आनंदविमल, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद सार संभार जीया; अंति: लहै आनंदविमल अपार, गाथा-७. २. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: सो प्रभु मेरौ वीर; अंति: प्रगट कल्याण भयो, गाथा-५. ३. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ.१आ, संपूर्ण. म. आनंदविमल, पुहि., पद्य, आदि: मेरे नवपद चित नित; अंति: नवपद समरण रसिया, गाथा-३. ८५९५४. (+-) चंद्रप्रभजिन स्तवन, अष्टकर्म सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. सूरजमल ऋषि; पठ. सा. मानाजी आर्या (गुरु सा. कुशला आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १७४३८-४०). For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, प. १अ, संपूर्ण. मु. कुसालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: महासेणकुल दीपक चंदा; अंति: भजे खुटकर मारी कोरी, गाथा-१५. २. पे. नाम, अष्टकर्म सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ८ कर्म सज्झाय, मु. कुसालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अष्ट करम अरी छे चेतन; अंति: जोडी बीजे पद सिधाणुं, गाथा-६. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: संजम भव चावकर लीदो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ८५९५५. गुणसागरमुनि के नाम पत्र व प्रस्ताविक कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८८, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. हिंदुमल्ल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १४४४०). १. पे. नाम, गुणसागरमुनि के नाम पत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सा. जीजीबाई, पुहिं., पद्य, आदि: स्वस्तिश्री प्रभु; अंति: आपतौ जीजीबाईरा जीव, गाथा-२८. २. पे. नाम. प्रस्ताविक कवित संग्रह, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: गीत ही नाद युं श्लोक; अंति: सेजमै माणै राजकवार, गाथा-३०. ८५९५६. (+#) चोवीसी का डोला, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:चोइसी., संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५४११.५, १९४३८-४०). २४ जिन स्तवन-दोहला, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहल श्रीरषभनाथ अवतर; अंति: मारी आवागमण निवार, गाथा-२५. ८५९५८. (+) पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४४०-४५). पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपूरवर पासजिणंदो; अंति: पार्श्वनाथ चोसालो, गाथा-४. ८५९५९ (4) नेमराजुल स्तवन व १६ स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १६४३५). १.पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तजकर राजुलनार तज; अंति: जिनदास सुनो जिनवर रे, गाथा-४. २. पे. नाम. १६ स्वप्न सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, म. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामि सगुरु; अंति: लागी समकित एवी आस रे, गाथा-१९. ८५९६० (+) कृष्णकंस विवरण लावणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७८, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. मु. नवलचंद (गुरु मु. गंगाराम); गुपि. मु. गंगाराम (गुरु मु. श्रीचंद); मु. श्रीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १७४३७-४१). कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: गाफल मत रह रे मेरी; अंति: विनयचंद० मनही आणंदे, ढाल-२७, गाथा-४३. ८५९६१ (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १५४२५-३७). महावीरजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीरजी करपा; अंति: दो सो सुख दातारा, गाथा-१२. ८५९६२ (+#) महावीरजिन विनति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७४३६-४०). महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बीर सुणो मोरी बीनती; अंति: ___ म नाम हो मुझ आणंदपूर, गाथा-१९. ८५९६३. मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४१२, १०-१७४३५-४०). For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२९ www.kobatirth.org ४३ मौनएकादशीपर्व स्तवन- १५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि धुरि प्रणमुं जिन, अंति (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा- १ अपूर्ण तक है.) ८५९६४. नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १८७१, चैत्र कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल दशाडानगर, प्रले. मु. उदयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x१२, ११४३५). " नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी आदि बंछित पूरे विविध परे; अंतिः कुशललाभ० बंछित लहे, गाथा १३. - ८५९६५. भरतराजा ऋद्धिवर्णन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी भरतरीध., जैये. (२४४११.५, १५X४५-५०% भरतचक्रवर्ती ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि परथम समरु श्रीऋषभ, अंति वंदना श्रीभरतनेइ होइ, गाथा - २५. ८५९६६. उपदेश बत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९-८ (१ से ८) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैवे. (२५x१२, १५४४५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहिं, पद्य, आदि: क्या गुमान जियोनी, अंति: सद्गुरु शीख सुनीजे, गाथा- ३०, संपूर्ण. ८५९६७. (*) औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५. प्र. वि. संशोधित, गु., (२५४११.५, " मा.गु., पद्य, आदि चित्रोद्वारा रत्ननी अति आवे शिवरमणीतणो रे, गाथा- १७. ४. पे. नाम. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि पाडलीपुर नामे नगर, अंति: सुणजो एकचित लगाय, गाथा ५. ५. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. २आ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १२X४०). १. पे. नाम महावीरजिन पद. पू. १अ १आ, संपूर्ण. ! १५X३२). १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. १२-१आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय श्रावक, मा.गु., पद्य, आदि दुलहो नरभव पामवो जीव; अंति: ओ में अजरज पायो रे, गाथा- १५. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: वाणी सुणीने प्रणदा; अंति: पछे अरमणिक भूपाल, दोहा - ४. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रारंभ में ढाल ४ लिखा है किन्तु किस कृति की है यह स्पष्ट नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: तीण काले ने तीण समे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ व दोहा-३ तक है.) ८५९६८. () महावीरजिन, पार्श्वजिन पद व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हांजी प्रभु चंपानगर अति गाईया वरलु गाव मझार, गाथा- १०. २. पे नाम पार्श्वजिन पद. पू. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि प्रभु म्हांरा पास; अति दीजै दीजै दरसण देव, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि किन देख्यावे शिवगामी अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ८५९६९. (*) सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ६ प्र. वि. संशोधित, जैदे (२४४११.५, १३४३५). 3 " १. पे नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि गोयम नाणी होके कहे; अति: होके बहु सुख पायो, गाथा ५. २. पे. नाम. सिद्धचक्र सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल, अति: महिमा जेणे जांणीयो, गाथा-५. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची म. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर जिणंद; अंति: कांतिसागर गुणगाया हो, गाथा-१०. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो रे भवि भावे; अंति: कांतिसागर निशदिश, गाथा-५. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.. म. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: भवियां श्रीसिधचक्र; अंति: ज्ञानविनोद० हो लाल, गाथा-७. ६. पे. नाम, सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: श्री सिद्धचक्र आराधी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८५९७० पौषध विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १४४४५). पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अथ राइय पडिकमणुं करी; अंति: पठे पडिकमणुं करवं. ८५९७१. विविधतप यंत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४११.५, २६४३०). विविधतप यंत्र संग्रह, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८५९७२ (+#) वैराग्यपच्चीसी व औपदेशिक दहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १६x४६-५०). १.पे. नाम. वैराग्यपच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. गोपालदास, पुहिं., पद्य, आदि: अहो प्रमादी जीव जग; अंति: गोपाल. वैकुंठ ले जाइ, गाथा-२५. २. पे. नाम, औपदेशिक दुहा, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नाथ, पुहिं., पद्य, आदि: सतत लाख पुर्व लग गया; अंति: कहै ते काया हमारी, गाथा-२. ८५९७३. (4) प्रभुपूजा अधिकार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४४-५०). ९ अंगपूजा भावना, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमथी प्रगट; अंति: पूजाने विषे भाववा. ८५९७४. (+#) ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०४, वैशाख शुक्ल, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. हुंडी:ज्ञा.पं., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११.५, ११४३२-३५). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरू पाय; अंति: समय० भगतभाव एम सीमु, ढाल-३, गाथा-२५. ८५९७५. आतम सज्झाय व पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १२-१४४३०-४१). १. पे. नाम. आतम सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८४७, पौष शुक्ल, १०, शुक्रवार. औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रबोध, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मायाने वस खोटु बोले; अंति: तेहथी अनुभव लहीइरे, गाथा-१४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८४८, फाल्गुन शुक्ल, १५, गुरुवार, पे.वि. अंत में "हृतासनी दिने" ऐसा लिखा है. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन मुख पंकज; अंति: उदय सुसेवक तास तणो, गाथा-७. ८५९७६ (+#) श्रावकना तीन मनोरथ व महावीरजिन थुई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४४०). १.पे. नाम, श्रावकना तीन मनोरथ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोरथ दिन प्रते; अंति: समाधिमरण होज्यो. २.पे. नाम, महीवीरजिन थई, प. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८५९७७. (+#) गहुंली व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. १५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४४३-४५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चंदखुसाल, मा.गु., पद्य, आदि: नानडीयो गोद खेलावै; अंति: चंदुलाल सुख पावे छै, पद-८. २. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदमखान, पुहि., पद्य, आदि: बाबो रीषभ बेठो अलवे; अंति: तार लीजै अपनो करके, गाथा-३. ३.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरण मोहे राखोजी माहा; अंति: की अरजी भवसागरसे तार, गाथा-३. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद-केसरीया, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारा केसरीया; अंति: पुरो आस गुण गाओ रे, गाथा-३. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-नरभव प्रमाद, मा.ग., पद्य, आदि: खोयो रे गमार सारो; अंति: विषदाग न धोयो, पद-४. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ.१आ, संपूर्ण. मु. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: कोण नींद सूतो मन मेर; अंति: हे सतगुरु का चेरा, गाथा-४. ७. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन होरी, म. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: बसत ऐसे स्याम सलुणे; अंति: दीजीये मुक्तिनिवास, पद-९, (वि. इस कृति में कर्ता का उल्लेख नहीं किया है.) ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, प. १आ, संपूर्ण.. मु. ऋषभदास, पुहि., पद्य, आदि: यह चेतन या होरी रे; अंति: बनी एक अदभुत होरी, गाथा-३. ९. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. सुमत, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन खेलत होरी सत्ता; अंति: चिरजीवो यह जोरा जोरी, गाथा-४. १०. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आ नेमजी संकहियो; अंति: लगी मेरी तमसे डोरी, गाथा-४. ११. पे. नाम, माणिभद्र पद, पृ. २अ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर पद, म. मोहनरुचि, पुहिं., पद्य, आदि: कुसल माणिभद्र के; अंति: तेरी धारी हे सेवा, गाथा-५. १२. पे. नाम. हीरविजयसूरि गहुंली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. सुजस, पुहिं., पद्य, आदि: श्री गुरुहीर के; अंति: सुजस तुम गुरु सेवा, गाथा-५. १३. पे. नाम. सद्गुरु पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. गंगाराम, पुहि., पद्य, आदि: सतगुर साध सिपाई मे; अंति: गंगारा० आवागमन मिटाई, गाथा-५. १४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. म. नगजय, पुहि., पद्य, आदि: नायक विणजारा रे अंखी; अंति: नगजय कहे क्या तोय, गाथा-३. १५. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु.द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: ते बाधो जन्म ईही खोय; अंति: चोरासी मे डोहो रे, गाथा-४. ८५९७८. (+) सीमंधरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४३१-३३). सीमंधरजिन स्तुति, म. शांतिकशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुझने; अंति: शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४. ८५९७९ आलोवण व्रजोलोयनं व उजमणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. लेंचग्राम, प्रले. मु. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ४५४१३-२२). १.पे. नाम. आलोवण व्रजोलोयनं विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावक आलोयणा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञान आशतना उपवास १०; अंति: दुक्कडं तस्स. २. पे. नाम, उजमणा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्वतप उद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो नाणस्स; अंति: इम उजमणा विधि करवी. ८५९८०. शांतिजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १३४३५). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमु सिरनामी; अंति: वंछित सवि सुख पावे, गाथा-२१. ८५९८१.(-) मेघकुमार व तप सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४११.५, १४४२६). १.पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. म. पुनो, रा., पद्य, आदि: श्रीवीरजिणंद समोसर्य; अंति: पनो० ए सह सार असार, गाथा-२१. २. पे. नाम. तप सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. तपपद सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., पद्य, आदि: तप बडो रे संसार मे; अंति: तप आसोज मजारो रे तप, गाथा-१४. ८५९८२ (+) पार्श्वप्रभु व वीरजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. श्री वीरस्वामी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२४४३). १.पे. नाम. पार्श्वप्रभुजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, म. प्रधानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पारसनाथ पसायथी रे; अंति: दिणयर लील विलास रे, गाथा-७. २.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. पं. दर्शनविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य. महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सिद्धारथना रे नंदन व; अंति: विनयविजय गुणगाय, गाथा-५. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिननो विसवास छे म; अंति: रूपचंद रस माण्या, गाथा-८. १९८३. जिनगणप्रशस्ति बोल व अष्टप्रकारीपूजा कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २-१(१)=१, कल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखक के द्वारा पत्रांक नहीं लिखा होने के कारण अनुमानित दिया गया है., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४६). १. पे. नाम. जिनगुणप्रशस्ति बोल, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भगवान त्रिलोक्य तारण; अंति: करीने शांभलो. २.पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा कथा, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ८ प्रकारी पूजा-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'कांइक स्त्री जगत गुरु' से 'भगवंत आगे बत्रीसबंध नाटक मांड्यो' पाठ तक लिखा है.) ८५९८४. नवकारवाली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, ९x४५). नवकारवाली सज्झाय, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुं प्रेमथी; अंति: तो नरसुर शिवसद्म, गाथा-९. ८५९८५ (#) २८ लब्धि, अष्टमहासिद्धि नाम व ३४ अतिशय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १९४५०-५५). १.पे. नाम, २८ लब्धि नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जे ऋषिश्वरना हस्त; अंति: जे तपस्वी ने होय. २. पे. नाम. अष्टमहासिद्धि नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ लब्धि वर्णन, सं., गद्य, आदि: अणिमा १ महिमा २; अंति: महासिद्धि जाणवी. ३. पे. नाम. ३४ अतिशय, पृ. १आ, संपूर्ण. ३४ अतिशय वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमजिनेश्वर ४ अति; अंति: ए चोतीस अतिसय कह्यौ. ८५९८६. (4) सूरजजी सलोको, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, ६४१९). सूर्य सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामण करुं; अंति: कोइ थाहरै जी तोलै, गाथा-१८. ८५९८७. साधुगुण सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४११.५, १६x४८). For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४७ १.पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. किशनलाल, पुहि., पद्य, आदि: हां केइसा गुरुदेव; अंति: मम प्राण पियारा रे, गाथा-७. २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. किशनलाल, पुहिं., पद्य, आदि: मत कर गर्व दीवाना; अंति: निज तत्व पिछाना रे, गाथा-८. ८५९८८.(+) सकलजिन चैत्यवंदन व चोवीसजिन लंछन नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १२४३०-३५). १. पे. नाम. सकलजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत देवा चरणनी; अंति: तुम्ह पाय सेवा, गाथा-५. २. पे. नाम. चोवीसजिन लंछन नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन लंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वृषभ लंछन ऋषभदेव; अंति: लक्ष्मीरत्न कहंत, गाथा-९. ८५९८९ औपदेशिक हमची-जीवहितशिक्षा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४४११.५, १२४२५-३०). औपदेशिक हमची-जीवहितशिक्षा, मु. वर्धमान पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि पाए नमी; अंति: ते नरभव अजुआलै रे, गाथा-२५. ८५९९० (4) सडसठि बोलगर्भित सम्यक्त्व स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(४)=४, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. पं. दानविजय गणि; पठ. श्रावि. माणकबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १२४३०). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोलइरे, ढाल-१२, गाथा-६८, (पू.वि. ढाल-९ गाथा-४८ अपूर्ण से ढाल-१२ गाथा-६२ अपूर्ण तक नहीं है.) ८५९९१. (+) भमरगीता, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३५). नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: समुद्रविजय नृप कुल; अंति: संथुणो सानुकूल, गाथा-२७. ८५९९२. समोसरणनुं गरj, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १०४३४). समवसरणतप विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: भवजिननाथाय नमः १०; अंति: गुणधारकाय नमः. ८५९९३. (+#) २४ जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हंडी:चोइसी., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, १०-१२४३०-३५). २४ जिन स्तवन, सा. सायब कवर बाई, मा.गु., पद्य, वि. १८८५, आदि: नमु श्रीआदजी स्वामी; अंति: (-), (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा नही है.) ८५९९४. औपदेशिक व प्रास्ताविक लोक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, १५४४०). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-घत विषये, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण भाव घणो धरी; अंति: लविजय घीनो घडो कह्यो, गाथा-१९. २. पे. नाम. प्रास्ताविक लोक सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: घरे तेराणा राजीया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ८५९९५. (+) श्रावकना १७ गुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, ११४३०-३५). भावश्रावक १७ गुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भावश्रावकना भाखिइ; अंति: पूर तुझ भक्तिथी ए, गाथा-१९. For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८५९९६ (+) गौडीपार्श्वनाथ स्तवन, स्तंभनपार्श्व व समग्रजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२४.५x११.५, ११४३५). " १. पे. नाम गौडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ २अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, मु. धर्मवर्धन, सं., पद्य, आदि: प्रणमति यः श्रीगौडी; अंति: सुस्वाददास्तात्, श्लोक-११. २. पे नाम. स्तंभनपार्थ स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभन, आ. अभयदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणकेलि कमला; अंति: मनसे समशर्म्मदेयात्, गाथा-५. ३. पे नाम. समग्रजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: जय वीतमोह जय वीतदोष, अंति: सिद्धरूप चंद्राभिरूप, श्लोक ५. ८५९९७. नवपद स्तुति, दोहा व कल्लाणकंद स्तुति, अपूर्ण, वि. १८९४, चैत्र कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३)=१, कुल पे. ३, ले. स्थल. अहिपुर, जैदे., (२४.५X११.५, ११x२७). १. पे नाम. नवपद स्तुति, पृ. ४अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: इच्छारोधे संबरे, अंति: बरते निज गुण भोगे रे, गाथा - १. २. पे नाम. नवपद दोहा, पृ. ४-४आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदिः परममंत्र प्रणमी करी; अंति: जाणी हीये आणी भावसो, गाथा - १०. ३. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८५९९८. धर्मरुचि अणगार व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १ कुल पे. २, दे. (२४.५४११, १७४४२). 1 " १. पे नाम धर्मरुचि अणगार सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण, मु. रतनचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८६५, आदि चंपानगरी निरुपम अंति: करसी मुगतमे वासो, गाथा- १५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. श्राव भीषम, मा.गु., पद्य, आदि भंषा घरना निजाइ भंडी; अंति भीषम० सांवणयाने मास, गाथा- ९. ८५९९९ (+) शनिसर छंद, संपूर्ण, वि. १९२७, कार्तिक कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. वडनगर, प्रले. पं. शिवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : शनिसरजी छंद., संशोधित., दे., ( २४.५X११.५, १३x४०). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि अहिनर असुर सुरांपति अति हेम० सुप्रसन्न शनीसवर, गाथा- १७. ८६०००. (+) संथारा आलोड़ण व अष्टमीतिथि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्र १आ के बायें भाग में पार्श्वरेखा के बाहर यंत्र दिया है., संशोधित, जैदे. (२४.५४११. १९४३५). १. पे नाम. संधारा आलोइण, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पदमावती जीव; अंति: कहै पापथी छूटै ततकाल, ढाल -३, गाथा-३३. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धरम; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) ८६००९ पोषह सज्झाय व २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, संपूर्ण वि. १९६२, पौष कृष्ण, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २. ले. स्थल. अगस्तपुर, प्रले. पं. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२४.५x११.५, १५४३८). १. पे नाम. पोषहगुणवर्णन सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पौषव्रत सज्झाय, मु. गुणलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: संवर पेहेलो आणीइ तजी; अंति: खपे बहु करमनी कोड रे, गाथा - १४. २. पे नाम. २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २४ जिन लंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वृषभ लंछन ऋषभदेव; अंति: लक्ष्मीरत्न कहंत, गाथा-९. ८६००२. दीवा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अंत मे "जमन्याश्री" लिखा है., दे., (२४.५४१२, ११४२५). औपदेशिक सज्झाय-दीवा, मा.गु., पद्य, आदि: दस द्वारे दिवो कह्यो; अंति: निश्चे मोक्षे जाय, ढाल-२, गाथा-९. ८६००३. अणाहारी वस्तु नामावली, अठारह पोषध दोष व औपदेशिक गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. विझोवा, प्रले. मु. तीर्थसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १६४३२). १.पे. नाम, अणाहारी वस्तु नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. __ अणाहारीवस्तु नाम, मा.गु., गद्य, आदि: हरडै १ बहेडा २ आंवला; अंति: तिण वस्तुसुं भंग नही. २. पे. नाम. श्रावकने पोसाना १८ दोष, पृ. १अ, संपूर्ण.. १८ पौषध दोष, मा.गु., गद्य, आदि: अणपोसातीनो आण्यो; अंति: वात न करवी. ३. पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जं छम्मासी अवरसीअ; अंतिः अभव्वजीवा न पावंति, गाथा-४. ४. पे. नाम. कुलविशेष याचना सामाचारी, पृ. १आ, संपूर्ण. कृपण श्राविका लक्षण, मा.गु., गद्य, आदि: कृपणनीआ साधु वोहरवा; अंति: अणदीठो पणि मांगै. ५. पे. नाम. एकवीस पाणी, पृ. १आ, संपूर्ण. २१ प्रकार के धोवण, मा.गु., गद्य, आदि: उस्सेइमं तेदाथरानु; अंति: आंबिलीनुधो २१. ८६००४. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, जैदे., (२३४११.५, १४४३३). जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, आदि: जे जिन प्रतिमा; अंति: जस० किजै तास वखाण रे, गाथा-१५. ८६००५. सागरराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०३, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. उमा (गुरु सा. फूलाजी); गुपि. सा. फूलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत मे "तीजा रे वाचणारे अरथ ८" लिखा है., दे., (२५४११.५, १६x४०). सागरराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सागरतणा बेटा हुता; अंति: सागर राजा मन चिंतवे, ढाल-२, गाथा-३०. ८६००६. पंचमहाव्रत सज्झाय-प्राणातिपातविरमण व्रत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. रूपविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१२, ८४३९). महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवै रे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८६००७. (+) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय व १० पच्चक्खाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १२४३२-४२). १.पे. नाम. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्य संयोगे नरभव; अंति: मुनि वसता०अधीकारी रे, गाथा-१३. २.पे. नाम. १० पच्चक्खाण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविध प्रह उठी; अंति: पामो निश्चै निरवाण, गाथा-८. ८६००८. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१२.५, ११४२४-२५). आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे आपण ससनेहि; अंति: मोहन० लंछन बलीहारी, गाथा-७. ८६००९ (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ११४३२). औपदेशिक सज्झाय, म. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे चरण; अंति: गर्भावास नवि अवतरे, गाथा-२५. ८६०१०. गोडीपार्श्वनाथ वृद्धस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १२४२८). For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादनी; अंति: प्रीतविमल०अभिराममंतै, ढाल-५, गाथा-५५. ८६०११. डीगंमर की चर्चा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:डीगंमरकी चर्चा., दे., (२४.५४१२, १७४३८). दिगंबरचर्चा बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अलप मात्र दिगंबरमाह; अंति: नहीं तेने पुछीये. ८६०१२. ओसीयाजीतीर्थ छरीपालितसंघ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२, ८x२०-२६). ओसीयाजीतीर्थ छरीपालितसंघ स्तवन, सा. उद्योत, रा., पद्य, वि. १९५३, आदि: संघवीजी संघ चलावो थल; अंति: उद्योत० ज भेट्याजी, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखे हैं.) ८६०१३. अंतरीकपार्श्वनाथजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १८४४, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. अकलेरा, प्रले. मु. वेणीराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १५४४०). पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सारदमात मया करी आपो; अंति: भणै जयो देव जयजय करण, गाथा-५१. ८६०१४. श्रावक तीन मनोरथ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१२, ११४३२). श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोरथ दिन प्रते; अंति: समाधिमरण होज्यो. ८६०१५. दशार्णभद्रऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९७, वैशाख शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रीयां, प्रले. मु. हर्षचंद (गुरु मु. कुसालचंद ऋषि); गुपि. मु. कुसालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दशार्णभद्र., जैदे., (२४.५४१२, २०७३८-४०). दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सारद समरु मनरली; अंति: कर जोरी कवियण कहै, ढाल-४, गाथा-२८. ८६०१६. कर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, १०४२८). कर्मविपाकफल सज्झाय, म. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१४. ८६०१७. देवलोकनी व ११ गणधरसंशय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १२४३२). १. पे. नाम. देवलोक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनलोक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुधरमां देवलोकमां; अंति: यां वरते जय जयकार रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. ११ गणधरसंशय सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ११ गणधर संशय सज्झाय, मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभाते उठीने भविका; अंति: नमतां लहिये सिवमेवा, गाथा-९. ८६०१८. (+) नेमिजिन स्तवन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, ११४२९). १. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पोपटजी संदेसो केजो; अंति: जाऊं रे सारंगना पाणी, (वि. गाथांक नहीं है.) २. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ कुल कमल दिव; अंति: रे चरणे जीवो माहावीर, गाथा-११. ८६०१९. थूलीभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४३४). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछलदे मात मल्हार बह; अंति: लब्धि लक्ष्मी गणिजी, गाथा-१७. ८६०२० पर्युषणपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९८७, कार्तिक, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, १०४३३). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व सज्झाय- ढाल-१, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्वाध्याय, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः सखि पर्व पजूसण आवीया; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्री सरस्वती ध्याओ; अंति: करोड कल्याणी हो राज, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८६०२१. सुगुरुपचीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १३४३९). सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरू पिछाणो एणे; अंति: जिनहरख० हरख उछरंग जी, गाथा-२५. ८६०२२. महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२, ६४३६). महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१ तक है.) ८६०२३. (+) स्तुति, स्तवन व लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरिक्षजी, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनमहेंद्रसरि, मा.गु., पद्य, आदि: सिरपूरनगरमां सोभतार; अंति: प्रतिपाल हो जिनजी, गाथा-७, (वि. गाथांक नहीं २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणम् अश्वसेनंदनं; अंति: महेंद्रसूरि पांमीजी, (वि. गाथांक नहीं है.) ३. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी- मगसीपुरमंडन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लावणी-मगसी, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वंदू श्री मगसीपास; अंति: प्रभुचरणुं की सेवा, गाथा-४. ८६०२४. अजितजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. २-१(१)=१,प्र.वि. प्रारंभ में ज्ञाताधर्मकथांग के सूत्र-४८,३ अपूर्ण पंक्तियों में लिखकर छोड़ दिया है. स्तवन बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक के द्वारा लिखा गया है., दे., (२६४११.५, ११४३८-४६). अजितजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीजा अजित जिणंदजी रे; अंति: कांति कहै करजोडी रे, गाथा-७, संपूर्ण. ८६०२६. (+) गुणस्थान चडवापडवानो विचार व जीवाश्रितगुणस्थानक समय विद्यमानता सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४३८). १.पे. नाम. गणस्थानक आरोहअवरोह विचार सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चउरिक्कद्पणपंचय; अंति: तिय दोहिं गच्छंति, गाथा-१. गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चउक्क० च्यारि पैडा; अंति: चवदमाथी मोक्ष जावै, (वि. सारणी युक्त.) २.पे. नाम. जीवाश्रित गुणस्थानक समय विद्यमानता सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवाश्रितगुणस्थानकसमयविद्यमानता गाथा, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: मिच्छा अविरय देसा; अंति: नाणाजीवेस नवि होति. पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवाश्रितगणस्थानकसमयविद्यमानता गाथा की व्याख्या, सं., गद्य, आदि: ___मिथ्यादृष्ट्यविरतदेश; अंति: गाथा व्याख्यानम्. ८६०२७. स्तुतिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१२, १५४३६). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तति, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, आदि: मयगल घरबारी नार; अंति: संघने सुख देवें, गाथा-४. २. पे. नाम, नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कुगति कुमति छोडी; अंति: नेमी सेवें सुहेवा, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जलण जल वियोगा नाम; अंति: चंदो जाणे अमृतबिंदो, गाथा-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ.१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: कठिन कर्म मेली काठिय; अंति: टाले संघना कोडि पाले, गाथा-४. ८६०२८. (+) पार्श्वजिन व महावीरजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, आश्विन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. सुजाणगढ, प्रले. मु. जेठमल (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११.५, ११४४१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: मोरी सभल फली अरदास, गाथा-९. २. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नंदलाल, पुहिं., पद्य, आदि: वाजत रंग वधाइ सहरमे; अंति: नंदलाल०पुन्याइ नगरमे, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: टुक नीजर मरवी धरणाबे; अंति: पारसनाथ०मेरबी धरणाबे, गाथा-८. ८६०२९. प्रतिक्रमण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, ६x२८). प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुंभावशु; अंति: (-), गाथा-३, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) ८६०३०. भृगुपुरोहित चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. श्रावि. छीटी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भगुपीरो., दे., (२४.५४११.५, १८४३९). भगपुरोहित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: देव हुंता भव पाछलै; अंति: रे हो वज लेवो पार, ढाल-४, गाथा-६०. ८६०३१. भुजंगस्वामी व अजितवीर्य स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४४३). १. पे. नाम, भुजंगजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: भुजंगदे भावे भजु रा; अंति: वाचक जस० मान लाल रे, गाथा-६. २.पे. नाम, अजितवीर्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दीव पुष्करवर पश्चिम; अंति: वाचक जस इम बोले रे, गाथा-७. ८६०३२. ज्ञानपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. पं. खुसालसागर (अज्ञा. पं. सरूपसागर), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अंत में एक कृति प्रारंभ कर छोड़ दिया गया है., जैदे., (२४.५४११.५,१५४३३-४०). ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग जग जोनि; अंति: आपकुं उदय करन के हेत, गाथा-२५. ८६०३३. १२ देवलोक नाम आउखा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र११*२, दे., (२४.५४११.५, २२४२२). १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तर देव आयुष्य बोल यंत्र, मा.गु., यं., आदि: सुधर्म देवलोकना; अंति: (-). ८६०३४. (+) आषाढभूति ढाल, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रावण शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४.५४११.५, १८x१८). आषाढाभूति सज्झाय, मु. कुसालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९९, आदि: मन मान लो सेण अरजी; अंति: कुसल कीधी परकासकना, ढाल-२, गाथा-२२. ८६०३५. नेम व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, २३४४५). १. पे. नाम, नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय को लाडलो; अंति: जलकीड़ा के खाल, गाथा-१४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, ऋ. जीणलाल, मा.ग., पद्य, आदि: पार्श्व जिणेसर पुरण; अंति: श्रीसंघ मे मंगल करो, गाथा-१४. ८६०३६. नेमिजिन नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पंन्या. फतेंद्रसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १२४२७). For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org ८६०३८. असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X११.५, ११x२८). मिजिन नवरसो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६७ आदि सरसति सामणि पाय नमी अंतिः रिषभ० नेमि जिनेसरू, डाल-५, गाथा-७२. ८६०३०. पट्टावली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ३-१ (१) =२. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. पत्रांक दोनो तरफ लिखा है. वे. (२४.५x११.५, ५३४३०-४०) " "" महावीरजिनशासने प्रमुख घटना व काल, प्रा. रा. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. पाट २८वां श्रीविबुधप्रभसूरि से श्रीहीरसूरि तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमुं श्रीगौतम; अंति: वीरविमल करजोडी कहे, गाथा १७. - ८६०३९. औपदेशिक सज्झाय, लावणी व गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. मु. दर्शनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५११, १०३५-४२). १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमब, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि एक घरि घोडा हाथी आ रे; अंति लावण्यसमय० फल जोय रे, गाथा - १२. २. पे नाम औपदेशिक लावणी, पू. १आ, संपूर्ण. मु. तिलोकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पाप लोभमा भेला किधा; अंति: भाई पापी पिस्तानी, गाथा-६. ३. पे. नाम औपदेशिक गाथा- पाप-पुण्य फल, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. दर्शनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं., मा.गु., सं., पद्य, आदि: पंडितगोठ सुसंगत यारि; अंति: ऐ थोक पापथी पाया. ४. पे नाम. हीरविजयसूरीजी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडीजी वीनवुं; अंति: होज्यो मुझ आणंद, गाथा- १७. ८६०४० औपदेशिक सज्झाय- शीलगुण, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, दे. (२५.५X१२, १०x४१). ५३ יי औपदेशिक सज्झाय- शीलगुण, पुहिं., पद्य, आदि सोका मिल झूठो कलंक; अति: (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल १ तक लिखा है.) ८६०४१. (*) आत्महितविनती छंद व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१२, १३४३४-३७). " १. पे नाम. आत्महितवीनती छंद, पृ. १अ. संपूर्ण. आत्महितविनंति छंद, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि प्रभु पाय लागी करूं अंतिः सकल० सदा सुख देसाई, गाथा १०. (वि. अंतिमवाक्य आंशिकरूप से खंडित है.) २. पे. नाम. महीवीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में "साहाजी लीधो कहे उदयस्वरूपथ पामे मुगति नाम गइ" लिख कर छोड़ दिया है. For Private and Personal Use Only महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि गंगा गया नई गोदावरी; अंति नहीं लहे मुगतिनो माग, गाधा -१०. ८६०४२. (+) गुरुचेला संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२३.५X१२, १५X३५). प्रहेलिका संग्रह, रा., पद्य, आदि: देख्या रे चेला विना; अंति: गुरुजी विना मान मान, गाथा-८. ८६०४३. महावीरजिन स्तवन- निगोदविचारगर्भित, संपूर्ण, वि. १८८०, आषाढ़ शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, जोधनगर, प्रले. सा. अमरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३४१२, २४४५५). महावीरजिन स्तवन- निगोदविचारगर्भित, मु. क्षमाप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि ग्रह उठी नमियें सदा अंति क्षमाप्रमोद जगीस ए, गाथा- ४८. ८६०४४. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५७, वैशाख कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. बेलचंद शाह, पठ. श्रावि. फूलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२४.५x११.५, ११४३७). Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शQजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिन आव्या रे; अंति: पद्मविजय सुप्रमाण, गाथा-७. ८६०४५. आचारांगादि आगम विषयदर्शन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १८४४४). आगम यथाक्रमबीजक संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रीआचारांग कह; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., सूत्रकृतांगसूत्र-श्रुतस्कंध-१ के उद्देश-१ विषय वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ८६०४६. (4) पौषधकुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४१२, १३४३८). पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा वासस; अंति: धम्ममि उज्जमेह, गाथा-१६. ८६०४७. (+) भजन पच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, १७X४६). भजनपच्चीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: सुत्रकथा सुध सोधने; अंति: मेरे समरि सिवसुख साज, गाथा-२५. ८६०४८. (#) नेमिजिन स्तवन, सामायिक सज्झायादि सग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, कुल पे. ४,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १४४३०). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहन, पुहि., पद्य, आदि: सजेलार जलधार सुखकार; अंति: मोहन० कह्यो उल्लासे, गाथा-७. २. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: सामायिक नय धारो चतुर; अंति: जस० ग्यानवंत के पासे, गाथा-८. ३. पे. नाम. इरियावही सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नारी मे दीठी इक आवती; अंति: करज्यो घणी सेवरे, गाथा-७. ४. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह-निरोगी काया, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आउरे नाम दुगणा; अंति: कहीयं सूडामणिसारं. ८६०४९ आदिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १४४३६). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: रंग लागो श्रीजिनराज; अंति: रे सेवे सुरनर बंद, गाथा-८. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अवंती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: ऐवंती पासजी भेट्या; अंति: नेहडलो लागोरा पासजी, गाथा-७. ८६०५० (+) औपदेशिक सवैया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ४३४२३-२७). औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: कुंजर को देख जैसे; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ८६०५१. शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. जीवण, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, १५४३२). शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहेब हो; अंति: समयसुंदर० जनमनमोह ए, गाथा-१५. ८६०५२. सज्झाय व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र.वि. सभी पत्रों पर पत्रांक-१ लिखा है., दे.. (२४.५४११.५,११४३४). १.पे. नाम, आत्मोपदेश सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, आ. विनयप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सासरीये एम जइये रे; अंति: शिवसुख लहीये रे बाइ, गाथा-८. २. पे. नाम. मोक्ष सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोक्षनगर माहरु सासर; अंति: ज्ञानविमल० ठाम रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर्ण हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासदःखवर्णन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: तुने संसारी सुख किम; अंति: मलवो छे महामुसकिल जो, गाथा-९. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कार्तिकसुद पांचमि; अंति: अधिक अधिक तश निवाजे, गाथा-४. ५. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: लालविजय० विघन नीवारी, गाथा-४. ८६०५३. (#) विजयसेठविजयासेठाणी व अइमुत्तामुनि सज्झाय तथा आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १०४३०). १.पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय-शीलगर्भित, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पास; अंति: कुसल नित घर अवतरे, ढाल-३, गाथा-२६. २. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.ग., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: लिखमीरतन० ना पाया, गाथा-१७. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नाभिराय कुलसैहरौ; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा ८६०५४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२६४११.५, ११४३१). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति: समय कहे करो द्याहडी. गाथा-१३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वालेसर मुज विनति; अंति: इम जंपे जिनराज हो, गाथा-७. ३. पे. नाम. जिनदत्तसूरि पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दादा चिरंजीवो सेवकजन; अंति: मनवंछित फलज्यौ, गाथा-११. ४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दादो परतिख देवता; अंति: सारज्यो सगला काज, गाथा-५. ५. पे. नाम, गुरुगुण पद, पृ. २आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि गुरुगुण पद, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: चरण की चरण की चरण; अंति: जिनहर्ष० सुख करन की, गाथा-५. ८६०५५. सीमंधरजिन पत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:श्रीमंदरजी., जैदे., (२५४११.५, १६x४३). सीमंधरजिन विनती पत्र, क. नर, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमहाविदेह; अंति: की याविधि नोबत वाजै, पत्र-२. ८६०५६. (+) साधुगुणवर्णन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४२). ४ महाव्रत सज्झाय-साधुगुण, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिविधि त्रिविधि कर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___अपूर्ण., गाथा-१७ तक लिखा है.) ८६०५७. भले का अर्थ व संसार स्थिति विचार, संपूर्ण, वि. १८३९, आषाढ़ कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. पोसालि लाडोलि, पठ. मु. फतेचंद (गुरु मु. गुलाबचंद); प्रले. मु. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४२३-३५). १.पे. नाम. भले का अर्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. भले अर्थ की वार्ता, मा.गु., गद्य, आदिः (१)अ आ इ ई उ ऊ ऋ, (२)भले ते सिउ कहीइ अरे; अंति: संवरीनइ धर्म करि, (वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम "भले अर्थ टीका सहित" ऐसा लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. संसार स्थिति विचार, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ककउ केवलउ ते पिता; अंति: ए कमाईनोउ विचार कहिउ. ८६०५८. (+) गुरुगुण महिमा पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ३९४२२-२४). गुरुगण पद, वा. शिवचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदि: सारद माय नमी करी; अंति: सिवचंद० दसमी सूरजवार, गाथा-२७. ८६०५९ (+) जिनचंद्रसूरीजी वधावो व चिंतामणिपार्श्वनाथ लूअर, संपूर्ण, वि. १९वी, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. दौलतमाणिक्य; पठ. सा. अखा (गुरु सा. किसना); गुपि. सा. किसना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४३५-३७). १.पे. नाम. जिनचंद्रसूरीजी वधावो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरि वधावा, म. दौलतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरु माता नित प्रति; अंति: वांद्या नवनिध थाय, गाथा-११. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि मरोटमंडण, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. दौलत, मा.गु., पद्य, आदि: चिंतामणि स्वामीजी; अंति: भव भव देज्यै तुम सेव, गाथा-११. ८६०६०. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४०-४४). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमानिलो; अंति: जयसी जे जे रंग, अध्याय-१०. ८६०६१. अजितजिन सतवन व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, २८x२२). १.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअजितनेश्वर देव; अंति: खुसालमुनि गुण गाय रे, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोकसंग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उद्यम खलु कर्त्तव्य; अंति: सप्तमो विजयस्मृतः. ८६०६२. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८१४, फाल्गुन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. खरोडग्राम, प्रले. मु. दीपचंद; पठ. मु. हरजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, २१४४४). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: संता कीधी जोडो रे, गाथा-३४. ८६०६३. सिद्धचक्र स्तवन, महावीरजिन स्तवन व औपदेशिक गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १३४३४). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वा. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र सुणो; अंति: अति उत्तम अधिकारजी, गाथा-८. २.पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर वंदीये; अंति: उत्तम एहवी वाणी रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: तन का फांस तन में; अंति: सो केसो हो तकरार. ८६०६४. सुधर्मास्वामी भाष व महावीरस्वामी थोय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ११४४४-४६). १.पे. नाम. सुधर्मस्वामी भाष, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी भास, रा., पद्य, आदि: कठडारा आया गुरुजी; अंति: जिनसासन बहुमान, गाथा-७. २. पे. नाम. महावीरस्वामी थोय, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ कुल मुगुट; अंति: विशुद्ध देवी मयालजी, गाथा-४. ८६०६५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३६). For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १.पे. नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, महमद शाह, मा.गु., पद्य, आदि: गाफलबंधा हो निंदलडी; अंति: सांइ विना सरन थाय, गाथा-७. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कहजो चतुरनर ते कुण; अंति: रूप कहे बुध सारी रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. देवेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन अनुसरीए; अंति: ए देवेंद्रनी धरि बुध. ४. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन ६ की मा.गु. सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन ६-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गणधर धरम इम उपदेशे; अंति: वृधीविजय लहो तेहरे, गाथा-८. ८६०६६. खंधकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १३४२९). खंधकमुनि सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: तिर्थंकर चरणे नमिं; अंति: नारायण० अविचल राज, ढाल-४. ८६०६७. नेमिजिन गीत व नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८२२, श्रावण कृष्ण, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १३४३६). १. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८२२, श्रावण कृष्ण, ३, शुक्रवार. नेमिजिन स्तवन, मु. नित्यविजय, रा., पद्य, आदि: सूरति थाहरी हो; अंति: नित्यविजय० सवाई मान, गाथा-५. २.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पिउजी पिउजी नाम जपुं; अंति: पाय भट्य आस्या फली, गाथा-७. ८६०६८. औपदेशिक गाथा व रोटला सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, १२४३५). १.पे. नाम, औपदेशिक गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मंत बलं तंत बलं विजा; अंति: वइरी खंड करत. २. पे. नाम. रोटला सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. तपपद सज्झाय, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सर्व देवदेव में; अंति: पास धीर मुनि गाजे, गाथा-११. ८६०६९. ढंढणऋषि सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय-निंदा परिहार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, ११४४२). १. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-निदापरित्याग, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: नंदा म करसो कोइ; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५. ८६०७०. क्रोधपच्चीसी व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११.५, २१४५८). १. पे. नाम. क्रोधपच्चीसी, पृ. १अ, संपूर्ण. क्रोधपचीसी, म. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण हो भवियण करोध; अंति: मने जोडी जुगति ढाल, गाथा-२५. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदक, म. रायचंद ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८३५, आदि: नवरो माणस निंदक हवे; अंति: रायचंद० नही जावे ए, गाथा-२५. ३.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: जाकी देहस्यौ दसौ दिस; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है., वि. गाथांक नहीं हैं, अतः अनुमानित गाथांक दिये गये हैं.) ८६०७१. जंबूस्वामी व मल्लीजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी:मलीजिन स्तवंन छे., जैदे., (२५.५४१२, १५४४०). १. पे. नाम, जंबूस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, म. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नयरी भली; अंति: सिधविजे गण सवाआरे, गाथा-१४. २. पे. नाम. मल्लीजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मा.ग., पद्य, आदि: मिथिला नगरि सोहामणी; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ तक लिखा है.) ८६०७२. तृष्णा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४११.५, १०४२५). औपदेशिक सज्झाय-तृष्णा, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध मान मद मच्छर; अंति: विघन विना निरवाणे, गाथा-११. ८६०७३. स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२,११४३१). स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजिन; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८६०७४. गुहली भाष, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११.५, ११४४४). गुरुगुण गहुंली, मु. कीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: सोहम गुरु सम गुरु; अंति: जगमाहि नवनवी थाय रे, गाथा-५. ८६०७५. देवलोक स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४११.५, ११४३५). देवलोक स्तवन, मु. चतुरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरस्वति; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ८६०७६. (+) पद्मावती आलोयणा व सिद्धगिरि स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. पंडित. त्यागीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, ११४२५-२६). १. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: पापथी छूटे ते ततकाल, ढाल-३, गाथा-३८. २. पे. नाम. सिद्धगिरि स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमलाचलमंडण जिनवर; अंति: देवचंद्र० सिरदार, गाथा-४. ८६०७७. रोहीणीतप स्तवन व सामयिक बत्रीस दोष सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १५४३७). १. पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासनदेवी सांमणी ए; अंति: सफल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२७. २. पे. नाम. सामायिक बत्रीस दोष, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दोष बत्रीस नीवारी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ तक है.) ८६०७८. (#) मेघरथराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. प्रांतीज, प्रले. श्रावि. झवेर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४३८). मेघरथराजा सज्झाय,म.रायचंद, मा.ग., पद्य, वि. १७९७, आदि: दशमे भवे श्रीशांतिजी; अंति: रायचंद शुभ वाण रुडा, गाथा-२१. ८६०७९. महावीरजिन स्तवन-कुंडलपुर, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:महावीर सझा., जैदे., (२५.५४१२, १८४४५). For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org ५९ महावीरजिन स्तवन- कुंडलपुर, मु. जतीदास, पुहिं., पद्म, आदि: कुंडलपुर सुवावणो अति सुखपाव जतीदास कवाव, गाथा - १०. ८६०८० (+) वीरथुइ व महावीरजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. २९वी, मध्यम, पू. २- १(१ ) = १ कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१२, १४x२८-३१). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: देवाहिव आगमिस्संति, गाथा २९ (पू.वि. गाथा १८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि पंचमहल्वयमुव्वयमूलं; अंतिः तहावरे तिब्बेमि, गाथा- ६. ८६०८१. स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) = १, जैदे., (२७.५X१२.५, १३X३५). स्तवनचौवीसी, मु. गुणविलासजी, पुहिं., पद्य, वि. १७५७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., विमलजिन स्तवन से मल्लिनाथ स्तवन गाथा-४ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६०८२. (४) बीजतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२.५, १३x४०). बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरस वचन रस वरसती; अंति: तस घर लील विलास ए, ढाल - ३, गाथा - १६. ८६०८३. (*) रात्रीभोजन परिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ३, प्र. वि. संशोधित. दे. (२७४१२.५ ११५३३). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा, यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुपद प्रणमी आण अति सुजस सोभाग लहीजे रे, ढाल ४, गाथा-३५. , " ,י ८६०८४ (#) औपदेशिक सज्झाय-नारीत्याग, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. थराद, प्रले. मघा मयाराम ठाकोर भोजक; पठ. श्राव. वजेचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे. (२६५१३, १३x२८). " औपदेशिक सज्झाय - नारीत्याग, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: बेटीस्युं वल्वो धोजो; अंतिः बोले नमो तीर्थराजा, गाथा - ११. ८६०८५. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X१३, १०x४३). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि नाभिनंदन पूर्व नवाणु अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १५ अपूर्ण तक लिखा है.) ८६०८६. पार्श्वजिन छंद, मंगल पद व आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, पू.वि. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर मंगल पद आध्यात्मिक पद, पठ. श्रावि. सांकुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X१२.५, ११x२९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-संखेश्वर, पू. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पास शंखेश्वरा सार; अंति: उदयरत्न०माहाराज भीजो, गाथा-५. २. पे. नाम. मंगल पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि अरिहंत नमो नमो सिद्ध, अंति गती भावे नित नित नमो गाथा-३. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पू. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only पुहिं., पद्य, आदि: करता कुन कहावे साधु; अंति: मेरा बाकी खबर बतावे, गाथा-६, (वि. कर्तानाम चिदानंद लिखा है.) ८६०८७ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२६४१३, ८४३४). शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. बुद्धिसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि शत्रुंजय मंडण ऋषभ; अंति: संकट रिवबुधसागर चुर गाथा-४. ८६०८८. स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक नहीं है., दे., (२८X१३, ३३X२६). १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि श्री रे सिद्धाचल अंति: करी विमलाचल गायो, गाथा ५. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदि मंगल आठ करी जिन आगल; अति तपथी क्रोड कल्याण जी, गाथा-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. ८६०८९ रहनेमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, दे. (२६४१३, १३४३८). रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग लेइ ध्याने रहा; अंति: नेमीने राजुल बुझवारे, गाथा-११. ८६०९० (४) नवकार विवेचन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५x१३, ११४३०). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: नमो लोए सव्वसाहूणं, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: नमो कहता नमस्कार हो; अंति: माहरो नमस्कार होज्यो. ८६०९१. ऋषिपंचमी उत्पत्ति कथा, कालिकाचार्य कल्पवाचन प्रसंग व गच्छोत्पत्ति काल विवरण, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५X१२.५, २६-३३X२७). १. पे. नाम. ऋषिपंचमी उत्पत्ति कथा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१)हवे पर्युषण पर्वनी, (२) पुषवती नगरीने विषे; अंति: ऋषिपांचमी के थाणी. २. पे. नाम. कालिकाचार्य कल्पवाचन प्रसंग, पृ. १आ, संपूर्ण. कालिकाचार्य सभा समक्ष कल्पवाचन प्रसंगवर्णन, मा.गु., गद्य, आदि : आनंदपुर नगरने विषे; अंति: केटलेक पांचमी कीधी. ३. पे. नाम. गच्छोत्पत्ति काल विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. १० गच्छोत्पत्ति कालनिर्णय, मा.गु., गद्य, आदि: संवत् ६०९ डिगंबर; अंति: आव्या छे सहि सत्य. ८६०९२. महावीरजिन होरी व पार्श्वजिन स्तवन- पाटणमंडण, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, दे., (२५.५x१३. १२X३५). १. पे नाम, महावीरजिन होरी, पू. १अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: महावीर ऐसे जिनवंदनकु, अंतिः निज स्वर्ग गयो री गाथा-५. , २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पाटणमंडण, मा.गु., पद्य, आदि: सानिध करजो सारदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., डाल-१ की गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ८६०९३ (#) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६x१३, १३x३९). स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रीषभ जिणंदा ऋषभ, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., संभवजिन स्तवन तक है.) ८६०९४. (+) कनकध्वज राजा ढाल व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, दे., (२५X१३, १५x२८). १. पे. नाम. कनकध्वज राजा ढाल, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण, ले. स्थल. जोधपुर, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. कनकध्वजराजा रास, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९२३, आदि अजोध्या नगरी तणो सरे; अंति: मुगल गया माह भाग हो, गाथा - ५९. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३अ -३आ, संपूर्ण, वि. १९५२, फाल्गुन कृष्ण, ५, सोमवार, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र. आ. रामेंदुसूरि (गुरु आ जिनचंद्रसूरि, लोकागच्छ ). प्र.ले.पु. सामान्य. नेमराजिमती स्तवन, आ. रामचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९५२, आदि: बोलो बोल रे दील खोल; अंति: राम० आठ भवारा सरदार, गाथा - ११. For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८६०९५. इलाचीकुमार सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय परनारी परिहार, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, दे., मु. . मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि सोलमा श्रीजिनराज उलग; अति मोहन० रूपनो ललना, गाथा-७. २. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि मन वचन कायाई पालो अंति: (-), (पू.वि. गाता - ७ अपूर्ण तक है.) ८६०९७. केशी गौतम सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २६१३, १३X३३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६x१२.५, १२X३६). १. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि नामे इलाचि कुंवर जाण; अंति: लबधविजे गुण गाय, गाथा- १४. २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय परनारी परिहार, पू. १आ, संपूर्ण, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीव वारु छं मोरा; अंति: खोखरि हांड लिसार, गाथा-५. ८६०९६. शांतिजिन स्तवन व सामायिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५. ५x१२.५, १२X४१). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. मोहन; पठ. श्रावि. पुरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्री अजीतनाथजी प्रसादात्. केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर प्रणमीये; अंति: रूपविजय गुण गाय रे, गाथा - १६. ८६०९८. नवपद वासक्षेप पूजा, संपूर्ण, वि. १९३२, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. इंदोर, प्रले. श्राव. अंबाराम स्वरूपचंद ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमाहावीराय नमः, दे., (२५X१३, ११X३६-३८). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (१) परम मंत्र प्रणमी करी, (२) अरिहंत पद ध्यातो थको; अंति: खेपं यजामहे स्वाहा, पूजा- ९. ८६०९९. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९७८, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, जावाल, दे., (२५.५x१३, १०X३७-४०). पार्श्वजिन स्तवन-बोरनगर मंडण, मु. केसरविजय, रा., पद्य, वि. १९४१, आदि: पारस तोरी निरखण दो अ; अंति: केशविजय जयकारी, गाथा- १०. ८६१००. (+) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे., (२५X१२.५, ११x२८). ६१ सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १४१७, आदि: सकल सुरासुर सेवित; अंति: सुविधिविजय सुविलास, गाथा १२. ८६१०९. पांच समिति तीन गुप्ति सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ४-३ (१ से ३) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. दे.. (२७X१२.५, १२X४०). ८ प्रवचनमाता सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पारिट्ठावणीया समिति गाथा - ९ अपूर्ण से वचन गुप्ति गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ८६१०२. (+) रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, दे. (२५.५४१२.५, ११X३०). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामिणी मुझ; अंतिः श्रीसार मन आस्या फली, ढाल ४, For Private and Personal Use Only गाथा - २८. ८६१०३. सिद्धचक्रपद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, दे. (२५.५५१२, ५५२४). सिद्धचक्रपद स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि नवपद ध्यान धरो रे; अंति री सुरतरु बीज खरो रे, गाथा- ३. ८६१०४. (+) पर्युषणपर्व अठाई स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६५, माघ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. लाभचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२६X१२, ११x२६). पर्युषण पर्व अठाई स्तवन, मु. हेमसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि प्रणमुं पास जिणंदा, अंति जपे हेमसोभाग हो, गाथा-३७. Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६१०५ (+) मांगलिक श्लोक संग्रह, सागरोपम पल्योपम विचार व दूहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ११४२९). १. पे. नाम, मांगलिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: कृतापराधेपिजने कृपा; अंति: वीसं वंदामि तिथयरा, श्लोक-६. २. पे. नाम. सागरोपम पल्योपम विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: एक जोजन एटले च्यार ४; अंति: कह्या छे तेथी जाणवु. ३. पे. नाम. औपदेशिक दुहा, पृ. १आ, संपूर्ण.. ___ मा.गु., पद्य, आदि: चोखे चीते तप करो दया; अंति: द्यो सुपात्रे दान, गाथा-१. ८६१०६. (+) छंद, स्तुति, सज्झाय व देववंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १४४३४-३७). १. पे. नाम. ऋषभदेवजीनो छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ आदिजिन छंद-धलेवामंडन, आ. गणसूरि, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीप्रमोदरंग धारणी; अंति: रिद्धी सिद्ध पाइई, गाथा-८. २.पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: गौतम नाम प्रभात जपो; अंति: फतेली फतेली फतेली, गाथा-१. ३. पे. नाम, सीखामण सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. जीवदया सज्झाय, म. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: गोयम गणहर पय पणमेवि; अंति: जीनसासन छे साचो धरम, गाथा-१७. ४. पे. नाम. देववंदन छंद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. जिनवंदनविधि स्तवन, म. कीर्तिविमल, मा.ग., पद्य, आदि: चोविसै तिर्थंकरनि कर; अंति: वृद्धविमल० संपद लहे, (वि. प्रतिलेखक ने २ के बाद गाथांक नहीं लिखे है.) ५. पे. नाम. तिथिमहत्व गाथा संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: बीया दविहे धम्म; अंति: सव्वन्नपयंचपावंति, गाथा-४. ६. पे. नाम. रत्नप्रभसूरि सवैया, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. रत्नप्रभसूरि कवित, मा.ग., पद्य, आदि: विक्रमादैत्य थकि वरस; अंति: वस्तुपाल मइ मंडले, गाथा-३. ७. पे. नाम. आधाशीशी निवारण मंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. आधाशीशी निवारण मंत्र विधिसहित, मा.गु., गद्य, आदि: ॐअट्ठावली वनगहनमांहि; अंति: आण ठः ठः ठ स्वाहा. ८६१०७. (+#) शनिश्चर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२.५, १४४३१-३३). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: सुप्रसन शनीस्वर वरि, गाथा-१७. ८६१०८. (+) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर व अष्टमी चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १२४२८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उदय० आप तुठो, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, म. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र वदी आठम दिने; अंति: खिमा० प्रातिहार्यसम्, गाथा-८. ८६१०९ श्रावक पाक्षिक अतिचार व प्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १८८५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. ग. देवविमल; पठ. श्राव. जयचंद सामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४३१). १. पे. नाम. श्रावक पाक्षिक अतिचार-लघु, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो अति; अंति: (-), (पू.वि. पांचवां परिग्रह अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २.पे. नाम. सामायिक-प्रतिक्रमण विधि, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: मिच्छामिदूक्कडं, (पू.वि. १ लोगस्स काउसग्ग अपूर्ण से ८६११०. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:आनंदघन., जैदे., (२६४१२.५, १२४३३). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: रिषभ जिनेशर माहरो रे; अंति: (-), (पू.वि. सुवधिजिन स्तवन तक है.) ८६१११ (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १५-१८४४७-६३). महावीरजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: वीर जिणंद सासण धणी; अंति: धन धन वीर जिणंद, गाथा-१०. ८६११२. कुंथुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४८, माघ कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, २०४१६). कुंथुजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कंथु जीणंद करुणा करो; अंति: रे कहे मोहन रस गीत, गाथा-७. ८६११४. (-) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. रामलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१२.५, १५४३०). औपदेशिक सज्झाय-श्राविकादोषनिवारण, मा.ग., पद्य, आदि: बैठे साधु साध्वी; अंति: संका नही छै काय कै, गाथा-१७. ८६११५. खिमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९४६, फाल्गुन शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडीःखीमा., कुल ग्रं. ४६, दे., (२५४१२.५, ११४३१). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खिमागुण आदर; अंति: संघ जगीश जी, गाथा-३६. ८६११६. (4) छंद व चौपाई आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५,१७४४९). १.पे. नाम, भीनमालपार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., पद्य, वि. १६६१, आदि: सरसति भगवति नमीय पाय; अंति: पुन्यकमल भव भय हरु, गाथा-५३. २. पे. नाम. शीखामणनी चोपाई, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करूं; अंति: विवेकचंद एह विचार, गाथा-२५. ३. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. ग. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: वीर जिणेसर प्रणमुं; अंति: भक्तिवि० पभणे निसदिस, गाथा-२९. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. उपा. भाण, मा.गु., पद्य, आदि: गोडी गिरुउ गाजतो धवल; अंति: भणे भाण० अम तुं धणी, गाथा-१७. ८६११७. नेमिजिन व चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१३, १२४३१). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जगपति नेम जिणंद प्रभ; अंति: आतम गुण मुझ दीजीये, गाथा-११. २.पे. नाम, चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ.१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: था परवारी हो जिनजी; अंति: भली भली उपनी हो राज, गाथा-५. ८६११८. (-) निर्मोहीराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४१३, १६४३१). निर्मोहीराजा सज्झाय, खूबचंद, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: मद्वंदु नावराय के; अंति: खुपुचंद० उतम प्राणी, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६११९. अक्षयनिधितपखमासमण दहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, १४४३९). अक्षयनिधितप खमासमण दहा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर संखेश्वर नमी; अंति: होज्यो ज्ञानप्रकाश, गाथा-२६. ८६१२०. खंधकमुनि चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडीःखंधकऋषि चो., जैदे., (२५.५४१३, १२४२७). खंधकमुनि चौढालिया, मु. केवल, मा.गु., पद्य, आदि: आदि सिद्ध नवनार गुर; अंति: केवल० धार रे मुनीवर, गाथा-४६. ८६१२१ (+) बारव्रत नामादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५५१२.५, १२४२६). १.पे. नाम. श्रावकना बारव्रत नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: जीवहिंसा न करवी १; अंति: सुपात्रदान देवु १२. २. पे. नाम, त्याग करवाना अभक्ष्य, पृ. १अ, संपूर्ण. त्याज्य करवा लायक अभक्ष्य, मा.गु., गद्य, आदि: मध मदिरा माखण ने; अंति: खावा बोलने विदल नखा. ३. पे. नाम. १४ पूर्वनाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ पूर्व नाम, मा.गु., गद्य, आदि: उत्पादपूर्वाय नमः; अंति: विंदुसार पूर्वाय नमः. ४. पे. नाम. ज्ञान आराधना विधि, पृ.१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चौदसथी आदरे एकासणा; अंति: देव त्रण वखत वांदे. ८६१२२. (+) औपदेशिक बारमासो, संपूर्ण, वि. १९४७, चैत्र कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. ३, प्रले. आ. रामेंदुसरि (नागोरीलुंकागच्छ); पठ. मु. ऋषभचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१३, ८४३२). औपदेशिक बारमासा, मा.गु., पद्य, वि. १९२०, आदि: चेत कहे तुं चेतन; अंति: रकाश किया चंद्रायणा, गाथा-१३. ८६१२३. (+) बडगच्छ लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. हर्षविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १०४३१). वडगच्छशाखा लावणी, म. दर्लभराम, मा.गु., पद्य, वि. १९२२, आदि: महाराज राजेश्वर गणधर; अंति: सकल गच्छ सीर नामीजी, गाथा-८. ८६१२४. (+) ५६३ जीवभेद यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १८४९). ५६३ जीवभेद यंत्र, मा.गु., को., आदि: भरति महाबिदेह; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नंदीश्वरद्वीप तक लिखा है.) ८६१२५. (+) जीवण गुरुगण पद संग्रह-नागोरीगच्छाधिपति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.२, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३, १७४३३). १. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. जीवणगुरु स्तवन-नागोरीगच्छाधिपति, आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि, रा., पद्य, आदि: आज दिवस सफलो भयो सद; अंति: लक्ष्मी० वंछित काजा, गाथा-७. २. पे. नाम. जीवण गुरुगुण पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: आज हुवो अति ओछव मेरे; अंति: रिध वृद्ध तेज सवाया, गाथा-६. ३. पे. नाम. जीवण गुरुगुण पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. परमानंद, रा., पद्य, आदि: आज मनोरथ फलीयाजी; अंति: परमानंद० अधिक ओछाह, गाथा-८. ४. पे. नाम. जीवण गुरु बधाई, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. म. परमानंद, पुहिं., पद्य, आदि: आज वधाई मेरे आज वधाइ; अंति: परमानंद० सुख सवायो, गाथा-५. ८६१२६ (+) गजसुकुमाल लावणी, संपूर्ण, वि. १९४४, कार्तिक कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सुजापुर, प्रले. मु. गेंदालालजी (गुरु मु. ज्ञानसागरजी); गुपि. मु. ज्ञानसागरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:लावनी सुकमाजी., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२६४१२.५, १८४४३). For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ गजसकुमालमुनि लावणी, मु. तीलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९३६, आदि: परमपती परमेसर समरो; अंति: तीलोक० मे बारंबारी, गाथा-३८. ८६१२७. अष्टमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. पसीबाई; प्रले. पं. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४४१). अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टम जिनचंद्र प्रभु; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४. ८६१२८, (-) औपदेशिक सज्झाय व गुरुगण गहंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, १०४२६). १.पे. नाम, आत्मोपदेश सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रणमुं सदगुर; अंति: नीत आनंद घणु थाय, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखे हैं.) २. पे. नाम, गुरुगुण गहंली, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में पेंसिल से लिखी गई है. मु. खेमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे आजुनो दीन; अंति: खेमावीजय दील धारो रे, (वि. गाथांक नहीं लिखे हैं.) ८६१२९ (+) २३ पदवी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, १५४२५). २३ पदवी स्तवन, आ. उदयप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर पाय; अंति: उदय प्रभनै० घणौ थयौ, गाथा-२३. ८६१३०. पंचतीर्थी स्तवन व सप्तव्यसन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १६४३७). १.पे. नाम. पंचतीर्थी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदए आदए आदिजिणेसरु ए; अंति: भणे० सुख पामै सासता, गाथा-१२. २. पे. नाम. ७ व्यसन, पृ. १आ, संपूर्ण. ७ व्यसन श्लोक, सं., पद्य, आदि: द्युतं च मांसं च; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ तक लिखा ८६१३१. सकलतीर्थ वंदना व दहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१३, १२४३५). १. पे. नाम. सकलतीर्थ वंदना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल तीर्थ वंदु कर; अंति: जीव कहे भवसायर तरं, गाथा-१५. २.पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दहा, पुहिं., पद्य, आदि: नरभव तो पायो सही; अंति: (१)जोन परूंगो जाय, (२)सार ओही ज तत्व छै, गाथा-१. ८६१३२. अष्टमीतिथि व रोहिणी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२६४१२.५, ११४४१). १.पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदिः (-); अंति: लावण्य०कल्याण रे, ढाल-४, गाथा-२४, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. रोहिणी स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. वासपूज्यजिन स्तवन, म. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासव पूजित वासुपूज्य; अंति: अनुभव सुख थाय, गाथा-६. ८६१३३. शांतिजिन, आदिजिन आरती व पंचपरमेष्ठि स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, दे., (२६४१३, १३-१४४२४-४१). १. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. सेवक, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: नरनारी अमर पद पावे, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन आरती, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: अपछरा करती आरती जिन; अंति: करजो जाणी पोतानो बाल, गाथा-६. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभु सुरवर सी रसाल, गाथा- ७. ८६१३४ औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, दे. (२२.५४१३, १२४३०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक पद, मु. दिलहर्ष, मा.गु., पद्य वि. १८३२, आदि मनधर सारद मातजी वली; अंति: दिलहरषे० भायो रे " लाल, गाथा १०. ८६१३५. (+) आदिजिन, विमलजिन स्तवन व पार्श्वजिन पालणुं, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१ (१)=३, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैदे. (२५x१२.५, १२-१३X३०-३८). "" " १. पे नाम आदिजिनविनती स्तवन, पृ. २२-४अ संपूर्ण वि. १८९५, ज्येष्ठ कृष्ण, ७ मंगलवार, प्रले श्राव मनसुख पानाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर; अंति: नी वित्तगी एम भणीयं गाथा ४३. २. पे नाम. विमलजिन स्तवन, पू. ४-४आ, संपूर्ण मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिन विमल वदन रलियामण; अंति: रामविजय गुण गाय रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पालणु, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन पारणुं, ग. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता वामा देवी झुलाब, अंति: (-), (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण तक है.) ८६१३६. चौवीसी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, दे., (२५x१३, १३X३१). चौवीसी स्तवन, मु. स्वरूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शीतलजिन स्तवन गाथा-६ अपूर्ण से है व वासुपूज्यजिन स्तवन गाथा-१अपूर्ण तक लिखा है.) ८६१३७. औपदेशिक सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवनद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, जैदे. (२७५१३, १२४३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि पास प्रभूना चरण नमी अंति: वाते घणो रागी रे, गाथा- ९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ -१आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, पुहिं., पद्य, आदिः यामे बासमे रे मरदो म; अंति: मुगतपुरी मे खेलो, गाथा-७. ३. पे. नाम. पल्लवियापार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेसरु रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) " ८६१३८ (+) धर्मनाथ स्तवन व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ३-२ (१ से २) = १ कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२७४१२, १२४३४). १. पे नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. . मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: मोहन० अति घणो रे लो, गाथा-७, (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे नाम श्लोक संग्रह. पू. ३आ, संपूर्ण श्लोक संग्रह जैनधार्मिक *, प्रा., सं., पद्य, आदि: किं भावी नारकोहं; अंति: नमः श्री नाभिसूनवे, श्लोक-२, (वि. श्लोक-२ शत्रुंजयमाहात्म्य से उद्धृत है.) ८६१३९. (+) औपदेशिक सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, ले. स्थल. खाचरोद, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित जैवे (२५.५x१२.५, १९३७). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रेम, पुहिं., पद्य, वि. १८८७, आदि सब चत थीर राखी मेली; अंति: धरमसु पावोगा निरवाणो, गाथा-१३. २. पे नाम साधारणजिन स्तुति, पू. १आ, संपूर्ण, मु. For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org मु. प्रेम, पुहिं, पद्य, आदि: समर सरीजिनराजकुं विप अति प्रेम० नमु सीस नमाई, गाथा- ३. ३. पे. नाम नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. . प्रेम, रा., पद्य, आदि: थे जोवो रे जादव तोरण; अंति: प्रेम० प्रेमरस पाया, गाथा-५. ४. पे. नाम. सामान्य गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु., सं., पद्य, आदि: एकसहस्रंब्देसहस्रं; अंति: ईल्योवील्यो तीलील्यो, श्लोक-१. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रेम, पुहिं., पद्य, आदि तन तडफे जीम माछलो अंतिः प्रेम० चेतन सुधरे आप, गाथा-२. ६. पे नाम पार्श्वजिन पद, पू. १आ, संपूर्ण, मु. प्रेम, पुहिं., पद्य, आदि वरसन लागो ऐ वरसालो; अंतिः उपज्यो प्रेम ततकालो, गाधा-४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६१४० (+) गुरुविहारविनती गीत संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. वे. (२५.५४१२.५, १३४३५)गुरुविहारविनती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पाये नम; अंति: ए विनति चितमा धार, गाथा-१८. ८६१४९ (४) अनाथीमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. केसरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५x१२.५, २१४३७). अनाथीमुनि सज्झाय, मु. खेमकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: अरिहंत सिध नमसकार; अंति: पजुसणदी पर्यके, गाथा- ६४. ८६१४२. (+) समोसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. राजनगर, प्रले. मोतीचंद, पठ. श्रावि. गुलाबश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१३ १३४३३). महावीरजिन स्तवन- समवसरणगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि त्रिसलानंदन बंदि; अंति जस० जिनपद सेवा खंत, गाथा- १७. ८६१४३ सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. श्राव रणछोडलाल मगनलाल शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्, दे. (२६४१३ १३५३९). सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि सुणि सुणि सरसती भगवत, अंति: संतोषी ० पामो भवपार रे, ढाल-७, गाथा ४०. ६७ ८६१४४ भीलीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२५४१३ १३३०). "" भीलडी सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामीने विनवु अति पूरी वन छे अति रुडी, गाथा-१८. ८६१४५ क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जै, (२५.५x१२.५, १९२९). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि : आदरि जीव क्षमागुण; अंति: समयसुंदर०संघ जगीस जी, गाथा - ३६. 3 ८६१४६. (+) १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-५ (१ से ५ ) = १, कुल पे. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X१३, १३X३१). १. पे. नाम. ११मुं पापस्थानकनी सज्झाय, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति: (-), (पू.वि. स्थानक-११ गाथा-७ अपूर्ण से स्थानक - १३ गाथा-५ तक है.) ८६१४७ तीजतिथि, चोधतिथि स्तुति व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ३, दे., ( २६४१३, १७३८). १. पे नाम तृतियातिथि स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. तृतीयातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि श्रेयांस जिणेसर शिव अंतिः लीला होज्यो अति घणी, गाथा-४. २. पे नाम चतुर्थीतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि सर्वार्थसिद्ध थकी अंतिः ए नय धरी नेह निहालतो, गाथा-४. ३. पे नाम नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदिय पाय; अंति: करो अंबिकादेविया, गाथा-४. ८६१४८.(+) १४ स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. ऋषभचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१३, १३४३७). १४ स्वप्न सज्झाय, ग. हीरधर्म, मा.ग., पद्य, आदि: तारक सकलाधार प्रभु; अंति: हीरधरमपुरुष जग गायौ, गाथा-४२. ८६१४९ (+) धनाशालीभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३, १२४३४). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाला तणे भव; अंति: आजी सहजसुंदरनी वाण्य, गाथा-१५. ८६१५० (+) महावीरजिन पारणुं व नेमिजिन लावणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, ११४३६-४६). १.पे. नाम. माहावीरस्वामिजिनो हालों, प. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है., प्रले. श्राव. जगजीवन पानाचंद गद्रप; पठ. श्रावि. कृष्णकुवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्री संभवजिन प्रसादात्. महावीरजिन पारj, मु. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: कहे थासे लीला लेहेर, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नेमिजिन लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: मेरा दुख मत कर मेरि; अंति: जिनदास०मुगतिवधु परणि, गाथा-४. ८६१५१. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४१३.५, ११४२७). महावीरजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: श्रीमहावीर सासण धणी; अंति: धन धन वीर जिणंद, गाथा-११. ८६१५२. जिनप्रतिमावंदन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, गु., (२५.५४१२.५, २०४२१). जिनप्रतिमावंदन स्तवन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जसविजे० चिरकाले नंदो, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं __ है., गाथा-११ अपूर्ण से है.) ८६१५३. (+) ९८ बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:अ.बोल., संशोधित., दे., (२५.५४१३, १२४२९). ९८ बोल यंत्र-अल्पबहत्व, मा.गु., को., आदि: सव थोवा गर्भ मनुष्य; अंति: सेसा० सर्वजीवविसेसा०. ८६१५४. (+) देवेंद्रसूरिजी विनतीपत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वडगामा, प्रले. अमरचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र-१४८ है., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., दे., (२४४१३, २९४२१). देवेंद्रसूरिजी विनतीपत्र, अमरचंद भोजक, मा.गु., प+ग., वि. २०वी, आदि: स्वस्ति श्रीपार्श्व; अंति: अमरचंद० मंगलीकनी माल. ८६१५५. (+) पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ३५४३०). पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गद्य, आदि: १. श्रीमहावीरस्वामी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'जिनहर्षसूरि' तक लिखा है.) ८६१५६. (+) रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पालणपूर, प्रले. मु. भक्तिविजय; पठ. श्रावि. उगरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपल्लवीया परसादात्त., संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १०४३२). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-३२.. ८६१५७. (+) ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७७१३, १७X४८-५५). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८६१५८. गोचरी ४७ दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७४१२.५, १९४५३). गोचरी ४७ दोष, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: आधाकर्म दोष ४ भेदै; अंति: ५ दोष मांडलना जाणवा. For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८६१५९ (+) सिद्धचक्र स्तवन व अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९१२, फाल्गुन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, १५४३२). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १९१२, फाल्गुन शुक्ल, ५, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.प. सामान्य. नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: (-); अंति: दानविजय जयकार रे, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अठावय गिरितुंग शृंग; अंति: गावतां रंगविजय जयकार, गाथा-४. ८६१६०. २२ परीषह वर्णन व ८ मद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२८x१३.५, १४४३९). १. पे. नाम. २२ परीषह वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: क्षुधा परीसह भूख; अंति: विचार सांभली असद्दह. २. पे. नाम. ८ मद सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनी वारीइं; अंति: मानविज० नरनारी रे, गाथा-११. ८६१६१. १८ नातरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७४१३, १२४३६). १८ नातरा सज्झाय, मु. वीरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलाने प्रणमुंरे; अंति: वीरसागर गुण गाय रे, ढाल-३, ___ गाथा-३२. ८६१६२. (-) कर्मबली व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रावण शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. धनीराम (गुरु मु. शिवदयाल); गुपि.मु. शिवदयाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७७१३.५, १७४३४). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कर्म, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: कर्म बली रे भाई कर्म; अंति: जन्म मरण दुख सल नहीं, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में किसी अन्य कृति 'गनहासामी भास' का अवशेष भाग की गाथा-२० से २२ तक लिखा है. औपदेशिक सज्झाय-शिष्य, पुहि., पद्य, आदि: जो गोर कहे तहत कर; अंति: सुखानंद कहाब थेरा, गाथा-५. ८६१६३. (+) सौभाग्यपचमीपंचमीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(३ से ४)=३, प्रले. ग. जिनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पंचमीतप. पत्रांक-१आ का अनुसंधान पाठ-१अ पर लिखा गया है, कारण कि पत्र-१आ ढाल-१ गाथा-५ के बाद पत्र-२अ पर ढाल-२ की गाथा-७ से लिखा गया है. अतः बीच के बाकी पाठ १अ पर है., संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४२५). सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, म. गणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुनि, ढाल-६, गाथा-४९, (पू.वि. ढाल-४ से ढाल-५ की गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है.) ८६१६४. संयोगी भांगा कोष्ठक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. *पंक्ति अक्षर अनियमित है., दे., (२६.५४१३). संयोगी भांगा, मा.गु., गद्य, आदि: एकसंयोगे त्रिकसंयोगे; अंति: (-). ८६१६५ (+) चैत्रीपूनमदेववंदन विधि, सूतक विचार व असज्झाय विगत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १५४५०). १.पे. नाम. चैत्रीपूनम क्रिया आराधना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चैत्रीपूनम क्रियाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम चौखुणी गोवरनी; अंति: (अपठनीय). २. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: जिण स्त्रीइं पुत्र; अंति: आभरै तो १२ सूतक. ३. पे. नाम. असिज्झाईरी विगत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ३४ असज्झाय काल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धुंआरि पडै तांसीम; अंति: सिज्झाई प्रहर १२ सीम. ८६१६६. मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२७४१२.५, १२४३८). For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मृगापुत्र सज्झाय, मु. हंसविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सूगरीव नयरी सोहामणी; अंति: हंसविमल०तस परिणाम रे, गाथा-२८. ८६१६७. () सिद्धचक्र स्तुति व नवाणुप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, ११४३२). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत नमो वली सिद्ध; अंति: नयविमलेसर वर आपो, गाथा-४. २. पे. नाम. नवाणुप्रकारी पूजा, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ९९ प्रकारी पूजा-शवजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८६१६८. (+) जिनकुशलसूरिजी छंद व जगजीवणचंद्रसूरीजी अष्टक, संपूर्ण, वि. १९०७, कार्तिक शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२६.५४१३, ९-१२४३४). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरीजी छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. । जिनकुशलसूरि छंद, मु. भावराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुशलसूरि सुख; अंति: भावराज इण पर भणे, गाथा-१३. २. पे. नाम. जगजीवनचंद्रसूरि अष्टक, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.. मु. पन्नालाल ऋषि, सं., पद्य, वि. १९०७, आदि: अथप्रज्ञासीमा गुणगण; अंति: स्तवनमद्भूतं गुरो, श्लोक-११. ८६१६९ (+) आदेशर विनती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७७१३, १६४३६). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर अति; अंति: लावनसमे० एम भणी, गाथा-४५. ८६१७०. ९ वाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७४१२.५, १०x२०). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण तक है.) ८६१७१. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. जेठा; लिख. सा. सोभाग्यश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:स्तवन., जैदे., (२७.५४१३, १३४३३). महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विर सुणो एक विनति; अंति: विर तारे चरणे रे, गाथा-८. ८६१७२. दीवाली कल्प, संपूर्ण, वि. १९५९, वैशाख कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:दिवाली कल्प., दे., (२७४१३, १४४४१). दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर वीरजिनवर; ___ अंति: प्रगटे सकल गुण खाण. ८६१७३. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३५, चैत्र शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, प. ३, ले.स्थल, पाली, प्रले. गणेश व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नेम० स्तवन०, दे., (२७४१२.५, ११४३०). नेमराजिमती नवभव स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: नेमजी आव्या रे; अंति: पद्मविजय जिनराय, गाथा-१७. ८६१७४. चोवीसतीर्थंकर व पंचतीर्थी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५४१३, १५४४७-४९). १.पे. नाम. चोवीसतीर्थंकर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रावण शुक्ल, १४ अधिकतिथि, ले.स्थल. वडलु, प्रले. मु. वीरचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:स्तवन पत्र. श्री शांतिनाथजी प्रशादात्. २४ जिन लंछनादि विवरण स्तवन, उपा. जयसागर, मा.गु., पद्य, वि. १४९३, आदि: नीतप्रति समरु सरस्वत; अंति: पभणे जयसागर उवझाय, गाथा-२८. २. पे. नाम. पंचतीर्थी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पंचतीर्थ. ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदये आदये आदजिणेसरू; अंति: सुखे आवे आसना, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८६१७५ (+) आत्मस्वरूपपुष्टि निजात्म भावना, अनित्य भावना व सवैया कवित्तादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ३६x२४). १.पे. नाम. आत्मस्वरूपपुष्टि निजात्म भावना, पृ. १आ, संपूर्ण. आत्म भावना, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्द्धमानाय श्री, (२)बहिरात्मा अंतरात्मा; अंति: भिन्न भावना करणी. २. पे. नाम. कार्तिकेयानुप्रेक्षा-अनित्य भावना, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. कार्तिकेयानप्रेक्षा, आ. कार्तिकेयस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तिहयण हिलयं देवं वं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. मंगलाचरण सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: सो केवल दर्शन ग्यान; अंतिः परिगह माहि उदासी, गाथा-१. ४. पे. नाम. आत्मगर्दा सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. आत्मगर्दा कवित्त, पुहिं., पद्य, आदि: क्रोध उदे रातो मदमान; अंति: साल ऐसे हाल होयस्यो, गाथा-१. ५. पे. नाम. ५६३ जीवभेद यंत्र, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: नरक१ रत्नप्रभा संकर; अंति: संख्याते असंख्याते. ८६१७६. सहजानंदी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सझाय., जैदे., (२७७१३, १३४३८). आध्यात्मिक सज्झाय-सहजानंदी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सहजानंदिरे आतमा; अंति: वीर० तरीया अनेक रे, गाथा-११. ८६१७७. (+) थूभप्रतिष्ठा विधि, दिनमान गाथा व रत्नप्रभापृथ्वी विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७X१३, १६x४९). १. पे. नाम. थूभप्रतिष्ठा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुप्रतिमा प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथ शुभ दिने शुभ; अंति: कीजइ नेवज मूकीयई. २. पे. नाम. दिनमान गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नुणा करि सत्तंगुला; अंति: तउ लाभइ दिन प्रमाण, गाथा-१. ३. पे. नाम. १२ मास दिनमान विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. दिनमान विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: चैत्राश्वनि १४४ भाग; अंतिः सहस्रं किरणा रवे. ४. पे. नाम. रत्नप्रभापृथ्वी विचार, पृ.१आ, संपूर्ण. ____ मा.गु.,रा., गद्य, आदि: तत. योजन ८० मध्ये अण; अंति: निश्चइ एक अवतार करइं. ५. पे. नाम. जंबूद्वीप चक्रवर्त्यादिमान गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. __चक्रवर्ती विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जंबूदीवे चक्की उक्को; अंति: सासणलक्खायना अभव्वाः, गाथा-२. ६. पे. नाम. ११ गणधर गृहवासादि काल कोष्ठक, पृ. १आ, संपूर्ण. गणधर विवरण, मा.गु., को., आदि: १ इंद्रभूति २ अग्नि; अंति: ८३९५ ७८ ७२ ६२ ४०. ८६१७८. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७७१३, १०७२४-२६). साधारणजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक जिनशुं तरसियो ले; अंति: शुभवीर० रहिस्यु रे, गाथा-६. ८६१७९ नेमराजीमति व राधाकृष्ण होरीपद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (: ६.५४१२,११४४०). १. पे. नाम. नेमराजुल होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती होरी, पं.सबुद्धिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: कृष्ण गोपंगज्ञा घेरि; अंति: वंदे सबुद्धि कर जोरी, गाथा-७. २. पे. नाम. राधाकृष्ण होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. सूरदास, पुहिं., पद्य, आदि: होरी खेलत कुंजविहारी; अंति: सूर० कृष्ण खेले होरी, गाथा-४. ३. पे. नाम. राधाकृष्ण होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. सूरदास, पुहिं., पद्य, आदि: चटके मेरो चीर मोरारी; अंति: सूर० कृष्ण खेले होरी, गाथा-५. ८६१८०. १६ सती नाम व श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१३, १६४४६-४९). १.पे. नाम. १६ सती नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: ब्राह्मी१ चंदन२ बालि; अंति: सिद्ध सब आदि मीलै. २. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दखहरणी छे एह, गाथा-२२. ८६१८१. १७ भेद पूजाविचार स्तवन व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९७४, वेदरसातलनिधिर्मेदनी, कार्तिक शुक्ल, १४, रविवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. मकसुदाबाद अजीमगंज, प्रले. मु. अबीरेंदु ऋषि (वडतपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री भागीरथीस्तटे., दे., (२५.५४१३, १६x४१). १. पे. नाम. १७ भेद पूजाविचार स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजाविचार स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बिमलबर नाण जगि भाणु; अंति: इम भावना भाविय, गाथा-२९. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कृशोपि चंद्रो न सभोग; अंति: नादेन मदं त्यजंति, श्लोक-१. ८६१८२. जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. रोटी (गुरु सा. बीजुजी महासती); गुपि.सा. बीजुजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १९४३०). जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगग्रही नगरी वसे; अंति: ज्यान सिवसुख होसि रे, गाथा-२७. ८६१८३. १० श्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१३.५, १६४३५). १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठि प्रणमुं; अंति: कहे मुनि श्रीसार रे, गाथा-१४. ८६१८४. ककाबत्रीसी व आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२५.५४१३, १२४३१). १.पे. नाम. ककाबत्रीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करी; अंति: सिस जीवमुनि इम भणे, गाथा-३३. २. पे. नाम. आदिजिनविनती स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. ___ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेजा; अंति: देज्यो परमानंद रे, गाथा-२०. ८६१८५. पार्श्वजिनछंद-गोडीजी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४१२, ९४२८-३३). पार्श्वजिन अष्टक, ग. मयाचंदजी, मा.ग., पद्य, आदि: सरस्वति समत आप; अंति: मयाचंद० सामी चित रहै, गाथा-११. ८६१८६. (+) नेमराजिमती नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १८४४९-५२). नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत चंदलो; अंति: रूपचंद० मुगत मझार जी, ढाल-९, गाथा-४०. ८६१८७. जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारीपूजा, आरती व दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१२.५, १३४३४). १.पे. नाम. जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ३अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. म. ज्ञानसार, मा.ग.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: रची शोधो कविजनवंद, (प.वि. जलपूजा अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जिनकुशलसूरिजी आरती, पृ. ४अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि आरती, मु. लाभवर्द्धन, पुहि., पद्य, आदि: पहिली आरती दादाजी; अंति: गुरु चरण कमल बलिहारी, गाथा-५. ३. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-धम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: धरम मंगल महिमा निलो; अंति: जैतसी धरमे जै जैकार, गाथा-६. ८६१८८.(+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १८४५२). १.पे. नाम, नंदीश्वरद्वीप स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीपजिन स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसर बावन जिनालये; अंति: जैनचंद्र गुण गावो रे, गाथा-१५. For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ 1 २. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पू. १अ संपूर्ण वि. १८८५, चैत्र शुक्ल, १५, ले. स्थल. सिद्धाचल तीर्थ. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि ऋषभ जिणंद दिणंद मया, अंतिः वचन छे एम जिणेसर, गाथा ५. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि दादो परतिख देवता; अंतिः सारज्यो सगला काज, गाथा-५. ४. पे. नाम. सहस्रजिनकुट स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सहस्रकूटजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सहस्रकूट जिनप्रतिमा; अंति: देवचंद्रनी ए प्रीत, गाथा - १४. ८६१८९. नमस्कार महामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१२.५, ७X३३). नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण सीमरू; अंति: प्रभसूरिनै सीस रसाला, गाथा १४. ८६१९०. (४) रात्रीभोजनत्याग सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१२.५, ११४२३). रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतलवारु वसे जी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ८६१९९. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, अन्य सूर्यमल प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५x१३, १४२९). " पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि श्रीसुगुरु चिंतामणि अंति प्रभु पारसनाथ की गाथा १५. ८६१९२. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, दे. (२५.५X१२.५, १२४३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भरतचक्रवर्ती सज्झाय, रा., पद्य, आदि आरीसाना भवनमा बेठा अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल- २ की गाथा - ६ तक लिखा है.) ८६१९३. (+) २४ जिन शुकनावली, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. दे., (२५x१३, " ८६१९६. २० स्थानकतप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, दे. (२४.५४१२.५, १०x३५). " १२x१५-३५). २४ जिन शुकनावली, मा.गु. सं., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवजी अति (-) (पू.वि. शुकन चक्र २२२ तक है.) ८६१९४. मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, वे. (२४.५x१२.५, १८x२५). मेघकुमार सज्झाय, मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्री वीरजिणंद अंतिः सामी संजम सुखम समाइ, गाथा-२१. ८६१९५. साडाव्रणसो गाथानुं स्तवन - ढाल -१५, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५X१३, ११x२६). सीमंधरजिन विनती स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण गाथा - १४. ८६१९७. तपविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१) -२, दे. (२६.५४१२.५, १४४३६). ७३ , י יי २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या, जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि सुअदेवी समरी कहूं; अति खीमाविजय० सुजस जमाव, तपविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अथ वृद्धसंसारतारणतप; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., रत्नत्रयतपविधि अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only ८६१९८. (+) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पत्र खंडित होने के कारण प्रतिलेखक का नाम अवाच्य है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., ( २६.५X१३, १७२९). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हीन राणी पदमावती; अंति: कहइ पाप छुटु ततकाल, ढाल ३, गाथा-३६. ८६१९९ अयमत्ताऋष सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पृ. १ ले स्थल, खारचा, प्रले. पं. प्रेमहंस, पठ. श्राव. साहेबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६.५x१२.५, १६४३२). अमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने अंतिः ते मुनिवरना पाय, गाधा- १७. Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ " . कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६२००. रावणमंदोदरी संवाद रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. पत्रानुक्रम नहीं लिखा है., दे., (२५.५४१३, १७X४८). रावणमंदोदरी संवाद रास, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: मंदोदरि प्रमुखा राणी, (पू.वि. ढाल-४० अपूर्ण से अनुमानित ५५ तक है., वि. पाठ अव्यवस्थित हैं.) ८६२०१ (+) स्तवन, हरियाली, प्रहेलिका पद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ८,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३३-३८). १.पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण; अंति: इम विमलाचल गुण गाय, गाथा-१५. २. पे. नाम, बाहुजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, आदि: रामत रमवा में गई थी; अंति: सफल कीयो अवतार हे, गाथा-८. ३. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरजीनां गुण; अंति: उदयरतन दुख टाली रे, गाथा-११. ४. पे. नाम. आदिजिन हरियाली, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: एक अचंभो उपनो कहो जी; अंति: सुणो भविक सहु संत, गाथा-१०. ५. पे. नाम. प्रहेलिका पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: उजल बरणो नाहलो रे; अंति: वलि पूछे गुरु पास, गाथा-४. ६. पे. नाम. प्रहेलिका पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: हाथ न धोवै पग न धोवै; अंति: म्हेई चतुर सुजाण, गाथा-२. ७. पे. नाम, प्रहेलिका पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. म. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक नार अति नानडि उवे; अंति: मेरवि०पैसै छै उंडी, गाथा-६. ८. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन आया हे सोरठ; अंति: करजोडी रतनो भणै, गाथा-१०. ८६२०२ (+) पंचपरमेष्ठि गुण वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१२.५, १३४२९). ५ परमेष्ठिगुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंताणं पहिलै पदे; अंति: नमस्कार होज्यो. ८६२०३ (+) २० विहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. श्राव. हीराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२.५, १३४२८). २० विहरमानजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वंदु मन सुधे वेरमाण; अंति: धरमसी०धरी ध्रमसी नमे, ढाल-३, गाथा-२६. ८६२०४. सरणारी सीज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४४१३, ९x१९). ४ मंगल शरण, म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: प्रह उठीने समरीजे हो; अंति: चौथमल वाल गोपाल, गाथा-११. ८६२०५. पंचमीतप व चैत्रिपूनमपारण विधि, संपूर्ण, वि. १९६१, फाल्गुन कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. पं. जसविजय गणि; पठ. श्राव. बहादुरसिंह सीध्वी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री चिंतामणिदे प्रसादात्., दे., (२५४१३, १०४३१). १.पे. नाम. पंचमीतप पारवा विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पंचमीतप पारने की विधि, मा.ग., गद्य, आदि: तप करकै उजमणु कीजे; अंति: याचकानें दान दीजै. २. पे. नाम. चैत्रीपूनमपारण विधि, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. चैत्रीपूनम पारिवा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम म्यानपूजा करके; अंति: फल छे ए आज्ञा छै. ८६२०६. आदिजिन स्तवन व मुनिवंदन सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१२.५, ११४२३). For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, मु. चारित्रविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९१७, आदि: ऋषभ प्रभु मोहना सुख; अंति: चारित्र० सुविशाल रे, गाथा-९. २. पे. नाम. मुनिवंदन सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमुनिराजने वंदना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) ८६२०७. कलियुग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०७, भाद्रपद कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. समउ, प्रले. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शेशफणा पार्श्वनाथ प्रशादात्., दे., (२५४१३, १५४३२). कलियुग सज्झाय, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरस्वति समरु सदा; अंति: कंति आणंद सुख पायो, गाथा-२४. ८६२०८. (#) सभद्रासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. गोपालदास बावा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. शेठजुठाकलाणजीनी चोपडीमांथी प्रत प्रमाणे उतारु छे., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१३, १३४३४). सुभद्रासती सज्झाय-सीयल, मु. संधो, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोधे रे इरजा; अंति: रहे सोना केरे ठामि, गाथा-२२. ८६२०९. दीवानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४३९). औपदेशिक सज्झाय-दीवा, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दश धरुवे दीवो बले ए; अंति: प्रगटे घटमां सदाय, ढाल-२, गाथा-१५. ८६२१०. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९५१, पौष शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. वसंतराम पानाचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३, ११४२८). अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, म. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र वदि आठिम दिने; अंति: शासने सफल करो अवतार, गाथा-१४. ८६२११. होलिकापर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. गोकलचंद्र (बृहद्विजयगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, १२४४१-४८). होलिकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति: मनोरथ सिद्ध थायै. ८६२१२ (+) औपदेशिक पद, लावणी व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८६-१८८७, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २०, ले.स्थल. खाचरोद, प्र.वि. यह प्रत कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित होने की संभावना है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, २९४२४-२८). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. प्रेम, पुहिं., पद्य, आदि: माने नाही लिगार मुरख; अंति: पावो परम पद सार, गाथा-३. २. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. प्रेम, पुहिं., पद्य, आदि: तम सुख संपत के दरीया; अंति: प्रेम० तारो जीनेसरराय, गाथा-३. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद-कुमति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. प्रेम, पुहि., पद्य, आदि: कुमति करी पटरानी रे; अंति: प्रेम० जीनगानी रे, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद-सतगुरु, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-सद्ग, मु. प्रेम, पुहि., पद्य, आदि: सतगुर के चरणे सिर; अंति: प्रेम० पांचमी गती, गाथा-३. ५. पे. नाम. आत्मशिक्षा पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. औपदेशिक पद, म.प्रेम, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन समजौ चितमे जोय; अंति: प्रेम० जन्म नही होय, गाथा-४. ६. पे. नाम, महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. म. प्रेम, पुहि., पद्य, आदि: ढुंढत जिनजीकुं जुग; अंति: माहावीरजी के ताई, गाथा-३. ७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रेम, पुहि., पद्य, आदि: चरण नमु नित जिनवर; अंति: ध्यावु सांज सवेरा रे, गाथा-३. ८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रेम, पुहि., पद्य, आदि: तम जपत नाम जगतमे सुख; अंति: चरण सिस नमत जोड दोई, गाथा-२. For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९. पे. नाम. औपदेशिक पद-सदगुरुवाणी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रेम, पुहि., पद्य, आदि: मेरे चीत नहीं वसे रे; अंति: प्रेम० सुखमे आतम फसी, गाथा-३. १०. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रेम, पुहि., पद्य, आदि: महावीरजी मुगतका वासी; अंति: प्रेम० अविन्यासी रे, गाथा-३. ११. पे. नाम, औपदेशिक पद-कुमति, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. प्रेम, पुहिं., पद्य, आदि: काढो रे काढो कुमत; अंति: सासतो सीध अषाढो, गाथा-३. १२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ.१आ, संपूर्ण. मु. प्रेम, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो चीत जिन चरणां; अंति: हंस्यामे हुवो आगे, गाथा-३. १३. पे. नाम, साधगण पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. प्रेम, पुहि., पद्य, आदि: संत मुनी सदा सुखी रे; अंति: प्रेम० आतम कर उमंगी, गाथा-३. १४. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. प्रेम, पुहिं., पद्य, वि. १८८६, आदि: चरण नमु सतगुर तणा; अंति: प्रेम० भाख्यो अधकार, गाथा-७. १५. पे. नाम. आत्मोपदेसी सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आत्मोपदेशी, मु. प्रेम, रा., पद्य, वि. १८८६, आदि: छे सासे पुल खुटी थार; अंति: प्रेमे० दीयो सिरनामी, गाथा-७. १६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. प्रेम, पुहि.,रा., पद्य, आदि: उत्तम चरणा चत धरो; अंति: दूधा वरसे मेहरे, गाथा-४. १७. पे. नाम, औपदेशिक पद-गुरुवाणी, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. प्रेम, पुहि., पद्य, आदि: सुगडजन सांभलो रे; अंति: प्रेम० सुखमे आतमवसी, गाथा-३. १८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. प्रेम, पुहिं., पद्य, आदि: तरीया तीखी ते गहे; अंति: प्रेम० कर लीना नार, पद-१. १९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. म. प्रेम, पुहिं., पद्य, आदि: तरीयासु जे तर गेहा; अंति: खोल्या खरा जबार, पद-१. २०. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. प्रेम, रा., पद्य, आदि: सामवरणा हो साहेब; अंति: सीस नमावे प्रेम हो, गाथा-३. ८६२१३. सरस्वती अष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. मुक्तिश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, १२४३२). सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुद्धि विमल करणी; अंति: नित्य नवेलि जगपति, गाथा-९. ८६२१४. (+) महावीरस्वामीनो चौढालियो, विनती व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९२६, वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ७-४(१,४ से ६)=३, कुल पे. ४, ले.स्थल. नौतनपुर, प्रले. मु. प्रतापचंद नवलचंद ऋषि; पठ. मु. जसाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १६x४३). १.पे. नाम. महावीरस्वामी चौढालियो, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. महावीरजिन चौढालिया, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदिः (-); अंति: कीयो दिवाली दिने, ढाल-४, गाथा-६३, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, कर्मकहाणी सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-कर्मकहाणी, मा.गु., पद्य, आदि: कह छु कर्मतणि एक; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-३ तक है.) ३. पे. नाम. सीमंधरस्वामी विनती, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिनविनती स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मनवंछित अविचल दीजीइ, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम, उपदेशनी सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. स .) For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ मुनिगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: मानवभव टाणो तो सगुरु; अंति: राय० सुध समकित राखो, गाथा-९. ८६२१५. पद्मावती आलोयणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, चैत्र शुक्ल, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पत्र खंडित होने से लेखन संवत अवाच्य है., दे., (२५४१२.५, ४-८x२९). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३३. पद्मावती आराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे पद्मावती राणी; अंति: जीव सुखी० हुवै. ८६२१६. (-) होरीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९००, चैत्र कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. राणपुर, प्रले. सा. प्रसन्नबाई (गुरु सा. डाहीबाई आर्या); गुपि.सा. डाहीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:होली सज्झाय. पत्रांक अंकित नही है., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४१२.५, १३४३३). गजसुकुमालमुनि होली, मु. लालजी, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सीअल संजमनी केसर कीज; अंति: लालचंदजी गुण गइय, गाथा-११. ८६२१७. पडिकमणानि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२.५, १२४३३). प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: गोयम पूछे श्रीमहावीर; अंति: जस० जन भवजल पार रे, गाथा-१३. ८६२१८. महावीरजिन स्तवन, पंचतीर्थी स्तुति व पृथ्वी सचितअचित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३४). १. पे. नाम. देवानंदा ब्राह्मणीन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, म. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: दरिसण आव्या रे हो दर; अंति: खपावी गया दोय मोक्ष, गाथा-८, (वि. गाथांक गलत लिखे हैं.) २.पे. नाम. पंचतीर्थ स्तति, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ तीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: आबु अष्टापद गिरनार; अंति: जैन शासनमां जय जयकार, गाथा-४. ३. पे. नाम. पृथ्वी सचितअचित सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमु सहगुरुनु; अंति: सूगडांगवृत्तिथी जोय, गाथा-५. ८६२१९. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१३, १४४३७-३८). सीमंधरजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चांदलिया संदेशो; अंति: जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-१५. ८६२२० (-) नमीराजर्षि, महावीरजिन लावणी व साधु आचार १०८ बोल, अपूर्ण, वि. १९७५, मध्यम, पृ. १२-१०(१ से ९,११)=२, कुल पे. ३, ले.स्थल. जैतारण, प्रले. मु. माणकचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:लावणीनां., अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१२.५, २२४४३). १. पे. नाम, नमीराजर्षि लावणी, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि लावणी, म. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: विदेह देश और मिथिला; अंति: हीरालाल० भागदशा जागी, ढाल-२. २. पे. नाम. महावीरजिन लावणी, पृ. १०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: श्रीत्रिसलादे उतम; अंति: (-), (पू.वि. पद-२ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. साधु आचार १०८ बोल, पृ. १२अ-१२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: लाग परासीया काये १०८, (पू.वि. बोल-६९ से है.) ८६२२१ (+) पचवीस बोलरो थोकडो, संपूर्ण, वि. १९१२, वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. पं. धनसुख मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १३४३६). २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोले गति; अंति: यथाख्यातचारित्र. ८६२२२. मेघकमारमनि चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, जैदे., (२५.५४१३, ११-१८४३६-४१). For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मेघकुमार चौढालिया, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गुणधर गुण नीलो; अंति: जादव कइ० सुख थाय, ढाल-४, गाथा-२३. ८६२२३. (+) ज्ञानपंचमीपूजा विधि, अपूर्ण, वि. १९४८, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, ले.स्थल. लक्ष्मणपुर, प्रले. मु. हीरचंद्र ऋषि (बृहत्विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ग्यानपंचमिपूजा०., संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १६x४५). ज्ञानपंचमीपर्व पूजा विधिसहित, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)प्रथम श्री मंदरजी मे, (२)सम्यज्ञान प्रभूपूतं; अंति: जे वियराय केणा आधो, (पू.वि. बीच में देववंदन विधि अपूर्ण है.) ८६२२४. मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, लिख. सा. विजयश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, ११४३०). मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल-४, गाथा-४२. ८६२२५. अंतरायकर्म निवारणपूजा ढाल, संपूर्ण, वि. १९५१, कार्तिक शुक्ल, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मंगलपुर, प्रले. अंबाराम लाधाराम जोषी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.५, १३४२७). साधारणजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन मंदिर आवो रे कहुं; अंति: श्रीशुभवीर मळ्यो, गाथा-९. ८६२२६. (+) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१३,१२४३८). सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र वर सेवा; अंति: निज आतम हित साधे, गाथा-१३. ८६२२७. नेमिजिन गजल व नेमिराजीमति पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र १४४, दे., (२४.५४१२.५,१६४१४). १.पे. नाम. नेमिजिन गजल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रंग, पुहिं., पद्य, आदि: सतगुरु चरण में भजना; अंति: पाइह त्यां रंग बधाई, गाथा-२६. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मु.ज्ञान, पुहिं., पद्य, आदि: सुरसरी सुख कारन तारन; अंति: नही चंप तरे अचंभा, पद-५. ८६२२८. नेमिजिन पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२५४१२.५, ८x२५). १. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारकापुरसु चालया; अंति: सेवग० सुण हो नेमजी, गाथा-८. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जालम जोगीडासुं लगी; अंति: तन मन करुं कुरबान रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. म. सेवाराम, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभुजीसू लागो मारो; अंति: प्रीत नही छुटे री, गाथा-४. ८६२२९ (+) पर्युषणपर्व नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सरदार, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१३, १४४२९). पर्युषणपर्व नमस्कार, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमंडणो; अंति: तणौ धीर करे गुणग्यान, गाथा-७. ८६२३० (+) नवपदनी लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१३, ११४२८). नवपद लावणी, क. बाल, पुहिं., पद्य, वि. १९१७, आदि: जगतमा नवपद जयकारी; अंति: कहे नवपद छबि प्यारा, गाथा-५. ८६२३१. बोल विचार व सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:दसका., दे., (२५४१२, १४४२६). १.पे. नाम. १० का ३५ बोल, प. १अ-३अ, संपूर्ण. १० वस्तु ३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोले पचखाण नवका; अंति: आवो९ मोहसु आवौ१०. २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरमणी सम सहु मंत्र: अंतिः जिनलाभ० जश लीजे रे, गाथा-१३. ८६२३२. कर्मविपाकफल सज्झाव, संपूर्ण, वि. १८७५, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल कोलवडा, प्रले. मु. तीर्थविजय; पठ. श्रावि. सोनबाई श्राविका, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत मे "खरे बपोरे लखी छे" ऐसा लिखा है., जैदे., (२४.५X१३, १४X३३). ८६२३८. इग्यारसनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, दे. (२५x१३, १२x२६). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि : देवदाणव तीर्थंकर, अंति: नमो कर्म माहाराजा रे, गाथा- १८. ८६२३३. (+) भलेनो अर्थ, संपूर्ण, वि. १९४४, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. वीकानेर, प्रले. पं. करमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. दे. (२४४१२.५, १३४३९-४३). भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालागमन पंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, आदि: प्रभुजीनै लेशाल बैठा; अंति: पामस्य इति तत्वं. ८६२३४. बीज की थूई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. अबीरचंद जती पठ. श्रावि. महताबकुमर बीबी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२४.५५१२.५, ११४२८). बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज, अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाधा-४. ८६२३५. (*) देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९३९, चैत्र शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले स्थल, बीकानेर, प्रले. पं. करमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, दे. (२४.५४१३, १३४३०-३२). " खरतरगच्छीय पांच शक्रस्तवे देववंदन विधि, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि प्रथम नवपदजीको गटो, अंति कही जयवीयराय कहै. ८६२३६. आलोअण देवानी विधि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैवे. (२४.५४१२, १७४३९)आलोयणाविधि संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: १ ज्ञान आशातनायै जघ; अंति: तो बलतुं तेहिज करवु. ८६२३७. स्तवनचीवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैवे. (२४.५x१२.५, १३x२४). स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु. पच, वि. १७वी आदि मनमधुकर मोही रह्यउ अति (-), (पू.वि. संभवजिन स्तवन-३ तक है.) पद्य, एकादशीतिथि सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि गोयम पूछे वीरने सुणो; अंति सुव्रत रूप सझाय भणी, गाथा - १५. प्रभु समक्ष भावना, मा.गु., गद्य, आदि श्रीजिनमंदर पडीमा अति: त्रीकरण वंदणा होजो. २. पे नाम. सामायिक प्रतिक्रण के समय स्थापना के बोल, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ७९ ८६२३९. वीसस्थानक तप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२५x१३, १३५२४). २० स्थानकतप उच्चारण विधि, प्रा. मा.गु., सं., गद्य, आदि हरिया० मुहपत्तीप०; अंति यथासक्त अगड लीजे. ८६२४०. भगवान के सामने भावना व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ३, कुल पे. २, दे. (२६१२.५, ८-१०x२६). " १. पे. नाम. भगवान के सामने भावना, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मा.गु. गद्य, आदि श्रीवीरना पटोधर पांच अति: (१) आवसकनी क्रीआ करई, (२) तो मीच्छामी दुक्कई. , ८६२४१ (+) प्रास्ताविक लोक संग्रह व पांचइंद्रीना २७ विषय गाथा संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X१२, १६x४०). १. पे नाम, प्रास्ताविक लोक संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, प्रा.,सं., पद्य, आदि: देवार्चने न रज्जं; अंति: एगो धमो न लभइ, श्लोक-३०. २. पे. नाम. पांचइंद्रीना २७ विषय, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय २७ विषय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पंचक्खीनासयादोवि; अंति: सत्तावीसं च विन्नेया, गाथा- १. ८६२४२. महावीरजिन गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, पठ. श्रावि. दोलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., (२५.५४१२.५, १२x२९). महावीरजिन गहुली, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनवीर समोसर्या अंतिः वंदिइ वीरजिणंद, गाथा- ७. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, आ. जिनसौभाग्यसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९५, आदि: सिखर समेत जुहारो; अंति: सौभाग्यसूरि० गाये रे, गाथा- १७. ८६२४४. २४ जिन, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, नाम देहायुमान विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५X१२.५, ३३५१३). ८६२४३. समेतशिखर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., ( २४.५X१२.५, १२x२२). २४ जिन, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, नाम देहायुमान विवरण, मा.गु., को., आदि ऋषभ भरत धनुष ५००; अंति महावीर हाथ ७ वर्ष ७२. ८६२४५. (+) गुरुगुण गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : तवनल., संशोधित., दे., (२५x१३.५, १४४४२). गुरुगुण गहुंली, जै. क. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: वे गीरु मेर उर बस भव; अंति: मसतक चढो बुधर मागे ए, गाथा-१५. ८६२४६ (४) कर्मविपाकफल, इलाचीकुमार व दंडणऋषि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७-१५ (१ से १५)-२, कुल पे. ३. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४१३, १३४२६). "3 १. पे. नाम कर्मविपाकफल सज्झाय, पू. १६अ १७अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि देव दाणव तीर्थंकर, अंति नमो कर्म महाराजा रे, गाधा-१८. २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि नाम इलापुत्रजी जाणीय; अंति: लबधवीजे गुण गाए, गाथा ९. ३. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि टंढणऋषिने वंदणा अति (-) (पू. वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८६२४७. (+) पार्श्वजिन स्तवन- नवखंडा व नवकार छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२४.५X१२, ११३७). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन- नवखंडा, पृ. १अ संपूर्ण. , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९४५, आदि घनघटा भुवन रंग छाया अति एम वीरविजय गुण गाया, गाथा-६. २. पे. नाम. नवकार रास, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सांमीण द्यो; अंति: रास भणु श्रीनवकारनो, गाथा-२५. ८६२४८. हेतशिक्षाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे. (२३.५x१२.५, ११३०-३४). उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलज्यो सज्जन नर; अंति: शुभवीर० मोहन वेली, गाथा-३६. ८६२४९ पच्चक्खाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे. (२४.५x१२.५, १२x२६). "" १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु, पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु अति: रामचंद तपविधि भणे, ढाल - ३, गाथा - ३४. ८६२५०. संधाराराईगाथादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, वे. (२५.५४१३, १२४३०).पे. नाम संधाराराइ गाथा, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. १. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही २ नमो खमासमणा; अंति: मज्झवि तेह खमंतु, गाथा - २१, (वि. वर्तमान परिपाटी से हटकर पाठांतर के रूप में 'अरिहंता मंगलं मज्झ' से 'चउदसलक्खाउमणुएसु' तक ७ गाथा अधिक दी गई हैं.) २. पे नाम. पोसह लेवा गाथा, पृ. २अ. संपूर्ण. पौष प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि करेमि भंते पोसह अति अप्पाणं वोसिरामि ३. पे नाम साधुअतिचारचितवन गाथा, पृ. २अ संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे, अति: (१) वितहाकरणमि अईयारा (२) ने मिध्यादुःकृत चै, गाथा- १. ४. पे. नाम. गोचर्या गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. गोचरी आलोयण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कालेणय गोअरिआ; अंति: जंकिंचि अणुउत्तं, गाथा - १. ५. पे. नाम अतिचार आलोयणा, पू. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजूणा चउपहुर दिवसमां; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ८६२५१. नवतत्त्व विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५.५४१३, ११४४२). नवतत्त्व प्रकरण-विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नवतत्वनो सरुप भली तर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मोक्षतत्व विचार तक लिखा है.) ८६२५२. (#) महावीरस्वामीनं हालरिओ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१२.५४११.५, ११४३२-३६). महावीरजिन हालरडु, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशला झुलावे; अंति: होजो दीपविजय कविराज, गाथा-१७. ८६२५३. मरुदेवीमाता चौढालियो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(२ से ३)=२, प्रले. मोतीचंद, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२५४१२.५, १२४२८-३२). मरुदेवीमाता चौढालिया, म. रायचंद ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८५५, आदि: माताजी मरुदेवा रे; अंति: रायचंद० ज्ञान __ अभ्यास, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-८ अपूर्ण तक नहीं है.) ८६२५४. ५६३ जीवभेद यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२४४१२.५, १७४२५-३०). ५६३ जीवभेद यंत्र, मा.गु., को., आदि: रत्नप्रभा आगत परभव; अंति: (-). ८६२५५ () श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८२, कार्तिक कृष्ण, ४, मंगलवार, जीर्ण, पृ. १, ले.स्थल. कडा, प्रले. ग. रत्नसोम (गुरु पंन्या. कस्तुरसोम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ११-१२४३७-४१). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक उठे तुं परभात; अंति: जिनहर्ष० जिवधरी सनेह, गाथा-२०. ८६२५६. २४ जिन पंचकल्याणक व मौनएकादशी १५० जिनकल्याणक कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १८९३, फाल्गुन शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. पं. मूलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२.५, १२-१४४३२-४५). १. पे. नाम. २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेव आषाढ वदि४; अंति: वदि ३० मोक्ष महावीर. २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गणj, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरत; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ८६२५७. निर्जरातत्त्व विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२६.५४१२, १३४४६). निर्जरा तत्त्वविचार, पुहि.,मा.ग., गद्य, आदि: जीवरूपी कपडा कर्मरूप; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आर्तध्यान के ४ भेद तक लिखा है.) ८६२५८. (+-) रहनेमिराजिमती व नारकीनी जोड, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. सा. जीवीबाई; गृही. श्रावि. पार्वतीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१४, ११४२१). १. पे. नाम. रहनेमिराजिमती जोड, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने "नेमनाथनी जोड" ऐसा लिखा है, वास्तव में रहनेमिराजिमती की जोड है. रथनेमिराजिमती जोड, मा.गु., पद्य, आदि: मुनीवर संजम लईने; अंति: एतो सतीमा सीरदार रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. नारकीनी जोड, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. नारकी जोड, मु. करसन, मा.गु., पद्य, आदि: जीव भरमाणो घणो बहु; अंति: गुरुसेवा अती नीकी रे, गाथा-२४. ८६२५९ (#) नेमराजुल संवादे अष्टभव स्त्रीवर्णन, संपूर्ण, वि. १९००, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:चोकनेम., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १९x४२-५०). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, म. अमृतविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसे नेमकवर; अंति: सीस ___ अमृत गुण गाया, चोक-२४. ८६२६०. जीवविचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४४१२.५, १३४२८-३७). For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५६३ जीवभेद विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: वायरो सुद्धवायरो गुज; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., तिर्यंच के ५ भेद अपूर्ण तक लिखा है.) ८६२६१ (+) ३५ असज्झाय विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., ., (२५.५४१३, १३४१९). ३४ असज्झाय काल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धूअरिपडे तै असिज्झाई; अंति: सिज्झाई प्रहर १२ सीम. ८६२६२. प्रश्नसिद्धांत बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, दे., (२३४१२.५, १६४३८). १.पे. नाम. वाचनप्रश्न सिद्धांतना, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ५२ प्रश्नोत्तर-विविधशास्त्रोक्त, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: श्रीप्रश्नव्याकरणमा; अंति: नियुक्ति० कही छे, प्रश्न-५२. २. पे. नाम. २७ गुणसाधु गाथा, पृ. ३अ, संपूर्ण. साधु २७ गुण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: छव्वय छक्काय रक्खा; अंति: मरणं उवसग्गसहणं च, गाथा-२. ३. पे. नाम, मैथुनविरमण गाथा, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: असंखइथीनरमेहणाउं; अंति: समुच्छिमा जेते असंखा, गाथा-५. ४. पे. नाम. ४९ बोल-लुंकामती, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. ___ लुंकामतीय प्रश्नबोल, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवाइमांहि अंबड; अंति: सिद्धांत न दीजे, ग्रं. ४९ प्रश्न. ८६२६३. (+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२.५, १०x२४-२८). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भरतने पाटे भूपति रे; अंति: श्रीशुभवीर०हईडा हजूर, गाथा-८. ८६२६४. (4) पार्श्वजिन पद, सोरठदेशवर्णन व ओसवाल उत्पत्ति कवित्त, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५, १२४२४-२९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-बारातवर्णन, मा.गु., पद्य, आदि: कडडा बाजा हो नणदल; अंति: सादसुं तस घर मंगलमाल, गाथा-९. २.पे. नाम. विझौ सौरठ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, वि. १९५५, आषाढ़ शुक्ल, ७, ले.स्थल, भीनमालनगर, प्रले. पं. मेघविजय गणि; अन्य. मु. गजेंद्रविजय; पठ. श्राव. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. सोरठदेशवर्णन पद, मा.गु., पद्य, आदि: मागी तो कागद मोकलो; अंति: चंगि वाडी मांहि रे, गाथा-१५, (वि. गाथाक्रम का उल्लेख न होने से गाथा संख्या गिनकर दी गयी है.) ३. पे. नाम. ओसवालज्ञाति उत्पत्ति कवित्त, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ओसवालज्ञाति उत्पत्ति कवित, रा., पद्य, आदि: वर्द्धमान जीन थकी वर; अंति: (१)रतनप्रभ० थीर थापीया, (२)ए __ ओसवाल ए भोजग हुआ, गाथा-२. ८६२६५ (#) शांतिनाथजीनो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१२, २२४१९). शांतिजिन स्तवन, मु. सीवरतन, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: सांती सांतीसू दारस स; अंति: सीवरतन गुण गाय, गाथा-१४. ८६२६६. (#) अष्टमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२.५, १३४३०-३२). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे योवनीया; अंति: कांति सुख पामे घणु, ढाल-२, गाथा-२४. ८६२६७. प्रास्ताविक दहा व जिनकशलसूरिजी स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. आसकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री ऋषभदेवजी प्रसादात्., जैदे., (२४.५४१२, १७४३४). १.पे. नाम. दहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण... प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आत्म बुद्धि सुखं; अंति: रही तेरी घटी कुं ठौर, श्लोक-४. २. पे. नाम. दादाजिनकुशलसूरीजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ जिनकुशलसूरिजी स्तवन, मु. चंद, मा.गु., पद्य, आदि: अरे लाला श्रीजिनकुशल; अंति: वीनती करै बारोबार रे, गाथा-११. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरीजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: गाजै जिणकुशल गडालै; अंति: जिनभक्ति जतीसर वंदै, गाथा-१६. ८६२६८. परदेशीराजा ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १३४३८). प्रदेशीराजा केशीगणधर ढाल, रा., पद्य, आदि: हिवै प्रदेसीरायजी; अंति: पावै सीवरमणी तणो रे, ढाल-१, गाथा-२५. ८६२६९. भक्ष्याभक्ष्य काल प्रमाण व विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, दे., (२५४१२, ११४२५). १. पे. नाम. श्रावकनै खाणेकी वस्तुको विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भक्ष्याभक्ष्य काल प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: चावल पुहर ४ राब पहर; अंति: (१)अंकुरा नीकल्या निषेध, (२)जीवाभीगममे कयो छे. २. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सूतक विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: पुत्र जन्म्यां दिन१०; अंति: आभडाइ० पुहर १२ सुतक. ३. पे. नाम. वीसस्थानकतप लेवानी विधि, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही पडिक्; अंति: एसणावी वासक्षेप कीजै. ४. पे. नाम. पंचमीअष्टमीएकादशी लेवानी विधि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. तपग्रहण विधि-पंचमीअष्टमीएकादशी आदि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: शुद दिन इदरा; अंति: पछइ वासक्षेप दीजइ. ५. पे. नाम. तपश्चर्या-व्रत-उद्यापनादिविधि संग्रह, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पांचम अथवा छट्ठिनइ; अंति: तप ऊजमणाविधि जाणवउ. ८६२७०.५ प्रश्नोत्तर-आगमगत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२.५, ३८x२०). ५ प्रश्नोत्तर-आगमगत, पुहिं., गद्य, आदि: ५ कारण असुभ होइ जिस; अंति: निमित्त नही जाणणा. ८६२७१ (+) सिद्धचक्र व वीसस्थानक चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, ८x२४-२६). १. पे. नाम. नवपद चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: श्रीसीधतक्र पद बंदीय; अंति: करी पामु सिवसुख सार, गाथा-४. २.पे. नाम. वीस स्थानक चैत्यवंदन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: पहिले पद अरिहंत नमुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ का प्रथम शब्द ही है.) ८६२७२. चैत्यपरिपाटी पद-पालीतीर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, लिख. श्राव. सैसमल कोठारी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, ९४२८-३२). चैत्यपरिपाटी स्तवन-पालीतीर्थमंडन, म. शांतिरत्न, मा.ग., पद्य, वि. १९२०, आदि: सुंदर सोहे मरुधर मोह; अंति: शांतिरतन प्ररनालिका, गाथा-५. ८६२७३. (+) चवदै सुपना पूजा, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रावण कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ४, प्रले. श्राव. धनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १५४३८-४२). १४ स्वप्न पूजा, मु. अबीरचंद्र ऋषि, पुहि., पद्य, वि. १९३१, आदि: अगम अगोचर अलख अज अवि; अंति: अबीर० सैं कर बंदना, पूजा-१४. ८६२७४. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४११.५, १०x४०-४४). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतीर्थ प्रणमि सदा; अंति: लावण्य०कल्याण रे, ढाल-४, गाथा-२४. For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६२७५. (+) चर्चा संग्रह-अनेकार्थ, संपूर्ण, वि. १९१८, फाल्गुन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. बुधमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. उपरला पाना साधुदेवजी कोटावालाका चेला तपसी पनाजीना लिख्यासु लीख्या., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२.५, १९४५३). चर्चा संग्रह-अनेकार्थ, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: एकेक जिण वचनना अजाण; अंति: शोभाया च नमस्यति. ८६२७६ (+#) ताबली तपसरी ढाल, संपूर्ण, वि. १८८६, चैत्र कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. ताराचंद (गुरु मु. सबलदास ऋषि); गुपि. मु. सबलदास ऋषि (गुरु मु. आसकर्ण ऋषि); मु. आसकर्ण ऋषि (गुरु मु. रायचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१२८२) कर कुवड कर वांकडी, (१२८३) भणजो गुणजो सीखजो, जैदे., (२५.५४१२, १९४४०-४८). तामलीतापस चौपाई, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: परिसनाथ प्रणमुं सदा; अंति: (१)सबलदास० जैति वरी पास, (२)सबलदास० अत घणो ए, ढाल-१२. ८६२७७. (+) कलावती सती चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९४२, पौष शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. लक्ष्मणपुरी, प्रले. मु. गोवर्द्धन ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में औपदेशिक दुहा लिखा है., संशोधित., दे., (२५४१२, ११४३७-४१). कलावतीसती चौढालियो, मु. रंग, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: सारद मात मया करी; अंति: रंग मानसंघ जय जयवरे, ढाल-४, गाथा-६३. ८६२७९ (#) श्रावक वंदितुसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, ११४४०-४४). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ८६२८० (+) साधु परंपरा परिचय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१३, १३४३५-३८). साधुपारंपर्य परिचय, मु. नानकचंद, सं., गद्य, आदि: यत्सूक्तिपीयूषरसं; अंति: नानकचंद्र० किंचित्, (वि. प्रशस्तिश्लोक-२ तक लिखा है.) ८६२८१ (+) गोडीपार्श्वजिन स्तवन व आदिजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, ११४३२-३४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. म. शांतिकशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: (-); अंति: शांति० करतां सुख लहै, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-३३ अपूर्ण से हैं.) २.पे. नाम. आदिजिन स्तोत्र-शत्रंजयतीर्थमंडण, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पूर्णानंदमयं महोदयमय; अंति: नाभिजन्मा जिनेंद्रः, श्लोक-१०. ८६२८२ (+) षट् उपधानविधि व चोवीस दंडक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ११४२४-२८). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, पृ. १अ-३अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरें; अंति: विनय० भवें भवें, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से २४ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, प. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ८६२८३. वर्तमानचोवीसजिन नगरी, माता, पितादिविचार कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:२१ठाणौइकवीस., जैदे., (२५.५४१२, १३४५३-५५). २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: ऋषभ सर्वार्थ विनीता; अंति: सिद्धाइका पावापुरी. ८६२८४. (+) चूलिका गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:दशविकाल., संशोधित., दे., (२४४१२, १७४४६-५२). For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमानिलो; अंति: जयतसी जय जय रंग, अध्याय-१०. ८६२८५ (+#) समवसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.२,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६४३४-४०). नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: यादवकुल सिणगार श्री; अंतिः सोमसुरिंदसुरि० लहे ए, कडी-३६. ८६२८६. (4) ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५०, श्रावण कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १४४३५-३७). आदिजिन स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूजो पूजो प्रथम जिणं; अंति: क्षिमाविजये० गुण गाय, गाथा-९. ८६२८७. (4) अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, ७X२१-२५). अजितजिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजितजिन तेरी रे; अंति: दीपे० रीध भोग तारी, गाथा-५. ८६२८८. (+) औपदेशिक हरियाली सह टबार्थ व दहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. पंडित. विनोद; पठ. श्रावि. लक्ष्मीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, ३-१०४३२). १.पे. नाम. पंडितविनोद हरियाली सह टबार्थ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.. औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहेजो पंडित ते कुण; अंति: जसविजय० सुख लहस्यै, गाथा-१३, संपूर्ण. औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: हरीयालि दिसे जांणिइं; अंति: (-), (पूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ तक टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. समस्या श्लोक, पृ. ३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: गतं बहत्तरं कालं; अंति: सज्जनं मन रंजनम्, श्लोक-१. ३. पे. नाम, औपदेशिक दहा, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक दुहासंग्रह-विविधविषयोपरि*, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: किहां कोइल किहां अबन; अंति: जे पासे मुझ प्राण, गाथा-३. ८६२८९. सेजाजीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पीपला, जैदे., (२५४१२, १३४३४-३६). शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. राजसमद्र, मा.ग., पद्य, आदि: पगी पग आय सुमरता; अंति: राजसमुद्र० मोरी आस, गाथा-९. पर्युषणपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, १२४३०-३४). पर्युषणपर्व सज्झाय-व्याख्यान-३, मु. माणेक मुनि, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: देखी सुपन तव जागी; अंति: माणक जिन गुणज्ञान रे, गाथा-९. ८६२९१. (+) २४ जिन गणधरसंख्या चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १,प्र.वि. हंडी:गणधर. पेन व पेंसिल से आधुनिक संशोधित है., संशोधित., दे., (२४.५४१२, ११४३०-३२). २४ जिन गणधरसंख्या चैत्यवंदन, मु. कल्याणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थकरने नमुं; अंति: कल्याणविमल गुण खाण, गाथा-१३. ८६२९२. (+) पजोसण व सिद्धचक्र चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, १४४३२-३४). १. पे. नाम. पजोसण चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. __ पर्युषणपर्व स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीपजुसणपर्व; अंति: तणो दीपविजय गुण गाय, गाथा-१२. २. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., पद्य, वि. १८वी, आदि: उपनसनाणमहोमयाणं; अंति: तीर्थंकरा मोक्ष कामे, गाथा-५. ८६२९३. केशीगौतम गहंली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, लिख. मु. वृद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, ११४३८). ८६२९० For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची केशीगौतमगणधर गहुंली, मु. जीवणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो श्रावस्तीनगरी; अंति: चालो जईये गुरुवंदवा, गाथा-११. ८६२९४.(+) दीपावलीपर्व व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:दीवाली., संशोधित., दे., (२४४१२.५, २२४३८-४४). १.पे. नाम. दीपावलीपर्वणा गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व रास, म. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवानरो गणधर; अंति: पोहता मोख निधान, गाथा-३४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चोथमल, रा., पद्य, वि. १८५५, आदि: साधु कहे तुं सुण रे; अंति: चोथमल०मदमसती पकडी रे, गाथा-१३. ८६२९५. सुधर्मास्वामी गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४१२.५, १२४२६-३०). सुधर्मास्वामीगणधर गहंली, क. अमृत कवि, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही उद्यानमां; अंति: अमृत० पामति परमानंद, गाथा-८. ८६२९६. (#) रत्नविजयजीरो रास, संपूर्ण, वि. १९६०, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. पद्मसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३९, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१२.५, १४४२४-४०). रत्नविजय रास, मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदि: सरसत गणपत दीजियौ; अंति: सांडेराव मझार, ढाल-५, (वि. अंत में रास संबंधी दोहा उल्लिखित है.) ८६२९७. श्रेयांसजिन स्तवन व पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४१२.५, १०४३४-३८). १.पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, प. १अ, संपूर्ण. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांसजिणंद; अंति: मानविजय० मे सदयो रे, गाथा-५. २. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: परमेष्ठि नमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-७. ८६२९८. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२.५, ११४४८-५२). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: चालो चालोने जईए सोरठ; अंति: सौभाग्यविमल सुखकार, गाथा-११. ८६२९९ (+#) गौतमस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, ११४३०-३२). गौतमस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामी प्रछा करै; अंति: अदभूत जोत अपार हो, गाथा-१७. ८६३०० (+) ४५ आगम अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १५४३२-३६). ४५ आगम पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जलपूजा ढाल-२ गाथा-१ __ अपूर्ण से नैवेद्यपूजा ढाल-१ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८६३०१. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२.५, १३४३७). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: परखदा आगे दिये मुनि; अंति: सार छे एह हो, गाथा-११. ८६३०२. भरतबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२.५, ११४३५-३७). भरतबाहबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: तव भरतेसर वीनवे रे; अंति: रामवीजे जय सीरीवरे, गाथा-१२. ८६३०३. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२५४१२.५, १०४२६-३०). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसत्रुजो सिणगार; अंति: आगम वाणी विनीत, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधि; अंति: प्रवचन वाणी वनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: उपजे विनय विनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपनविध कहें सुत त्र; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. विनीतविजय, मा.ग., पद्य, आदि: जिननी बहिन सुदर्शना; अंतिः (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८६३०४. कालचक्र-१२ आरा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२, जैदे., (२५.५४१२.५, २१४१०-२७). कालचक्र-१२ आरा यंत्र, मा.गु., यं., आदि: अथावसर्पिणीनो १ आरो; अंति: ४ कोडाकोड सागरोपम. ८६३०५ (2) गौतमपृच्छा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १५४३६). गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतमस्वामी पूछा; अंति: मझारो पाउतवै निरवाण, गाथा-३२. ८६३०६. (+) स्थंभन पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३८, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. मयाकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, ११४३१-३५). पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभन, उपा. शांतिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलमाला मंदिर केवल; अंति: क सांतिचंद्र कहे जयो, ढाल-२, गाथा-२७. ८६३०७. ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२४४१२.५, ११४३०-३५). ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नरक तिर्यंचगति; अंति: अनंत भागै सिध पद्मः. ८६३०८ (+) नेमिजिन व साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, १०४३६). १. पे. नाम, नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदीय पाय; अंति: मंगल करो अंबादेवीयै, गाथा-४. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: माई जौ तूसै अंबाई, गाथा-४. ८६३०९ (+) आषाढभूति चौढालियो, छंद, सज्झाय, स्तवन व पदसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९१६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, कुल पे. ८, ले.स्थल. लसकर, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, १७४४५-५०). १. पे. नाम. आषाढभूति चौढालियो, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:आषा.चोढा. आषाढाभूतिमुनि चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: उतराध्ययन दूसरै; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ की गाथा-९ अपूर्ण तक २. पे. नाम. ऋषभदेव छंद, पृ. ३अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:ऋषभदे.छं. आदिजिन छंद-धुलेवा, श्राव. रोड गीरासिंह कवि, पुहिं., पद्य, वि. १८६३, आदिः (-); अंति: रंग हे रीषभनाथ कू, ___गाथा-४१, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समभुयतलथीइ थकी उंची; अंति: कहे० अबतो मारग पायो, गाथा-१२. ४. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-भावनगरमंडण, म. साध, पुहिं., पद्य, वि. १८६१, आदि: प्रथम जिणंद जुहारियै; अंति: वांद सिरनामी, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८८ www.kobatirth.org ५. पे नाम आदिजिन पद, पू. ४आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि आज उदो घर संपदा पूजो अंति: सही श्रीजिनवर जपता, गाथा-४. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. जिनलाभ, पु,ि पद्य, आदि चित्त सेवा प्रभु चरण; अति कहै सदा गुणमणि गहराई, पद-३. ७. पे. नाम पद्मप्रभजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, आ.जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि पदमप्रभु जिन तारो अंतिः प्रभुना गुण गावे, गाथा-३. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. लाल, पुहिं., पद्य, आदि: मनवा जगत चल्यो जाय; अंति: लाल कहे मन लाय रै, गाथा-४. ८६३१०. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. १९७२ आषाढ़ शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पू. ३, प्रले. मु. केसरीचंद (खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी जीवनी उतपत. प्र. ले. लो. (८१०) वासी बीकानेर (१२६०) भग्नि टुगी तास घर, दे. (२४४१२.५, १५४३५). ., 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि अरिहंतादिक प्रणमी; अति वेग मुक्तिवधु वरो, गाथा- ३०. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- जन्मकल्याणक, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि : उतपति जोज्यो आपणी मन; अंति: रंगे इम कहे श्रीसार, गाथा- ७२. ८६३११. (+) जिनप्रतिमा अधिकार व पार्श्वजिन स्तवन- जन्मकल्याणक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५४१२.५, १२X४०-४५ ). १. पे. नाम. जिनप्रतिमा अधिकार स्तवन, पृ. १अ -२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा विधिसहित जन्मकल्याणक पूजा ढाल, हिस्सा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः रमति गमति हमने सहेली; अंतिः श्रीसुभवीर वचन रसाली, गावा- ९. अक्षर ८६३१२. (+#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१६ (१ से १६) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित.. फीके पड गये हैं, जैदे., ( २४.५X१२, १५X४७-५०). १. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १७अ संपूर्ण. वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलुडी विदेहज क्षेत्र; अंति: मानविजय० तुम पद सेव, गाथा-४. २. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १७अ संपूर्ण. सीतासती सज्झाय शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि जलजलती मिलती घणी रे अति नित प्रणमी पाय रे, गाथा ८. ३. पे. नाम. आत्महित सज्झाय, पृ. १७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासमे चिंतवै ए; अंति: जईई मोक्ष मझार के, गाथा - ९. For Private and Personal Use Only ४. पे नाम आयंबिलतप सज्झाब, पृ. १७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: समरी श्रुतदेवी सारदा अति (-) (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८६३१३. (#) नेमनाथ चोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५x१२, १२X३२). नेमिजिन लावणी, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेम निरंजन बालपण; अंति: माणेक० मनने क्रोडे, ढाल-४, गाथा - १६. ८६३१४. दिवा सज्झाय व पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २४.५X१२, १२४३२). १. पे नाम. दिवा सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण, अन्य. सा. पुण्यश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, औपदेशिक सज्झाव- दीवा, मा.गु., पद्य, आदि दस धारी दिवो को अंतिः निचे मोक्षे जाय, ढाल २, गाथा- ९. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पेंसिल से बाद में लिखी गई है. Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: क्षितिमंडलमुकुटं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक लिखा है.) ८६३१५. मृषावादपापस्थानक, अदत्तादानविरमणव्रत सज्झाय व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४१३,१६x४०-४५). १.पे. नाम, मृषावादपापस्थानक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: असत्य वचन मुखथी नवि; अंति: जे कहइ सुध आचार, गाथा-५. २. पे. नाम. अदत्तादानविरमणव्रत सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: त्रीजुं महाव्रत; अंति: तेहना पाय नमे करजोडि, गाथा-६. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेवा शांति जिणंद की; अंति: संघ मंगलकारी वेलो, गाथा-१६. ८६३१६. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि.२०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१३, १४४२३). शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवल ज्ञानकमला; अंति: पद्मविजय सुहितकर, गाथा-७. ८६३१७. (+) सुमती पचवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १५४४०-४५). वैराग्यपच्चीसी, मु. सदारंग, मा.गु., पद्य, आदि: ए संसार अथीर कर जाना; अंतिः सदारंग० नही सो टलना, ढाल-२, गाथा-२५. ८६३१८. (+) कीर्तिध्वजराजा ढाल, संपूर्ण, वि. १९४४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. भीलाड, प्रले. मु. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:किरतध., संशोधित., दे., (२६४११.५, १६४५१-५५). कीर्तिध्वजराजा ढाल, मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, वि. १९३१, आदि: श्री श्रीआदिजिनेसर; अंति: ढाल करी एक मन हो, गाथा-७४. ८६३१९ (+) दोष शुकनावली व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १४४४२-५१). १.पे. नाम. दोषशुकनावली, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले. भट्टा. जिनचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य. पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ॐ नमो भगवति, (२)१११ सरीर वेदना छे; अंति: यावट करणी जात्र दैणी. २.पे. नाम, ज्योतिष संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८६३२०. साधारणजिन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४११.५, ११४४५). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आज म्हारा प्रभुजी; अंति: अहनिशि ए दिल आवो, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंन्या. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणंद अवधारिये; अंति: निज भावसं सत अठ वार, गाथा-५. ८६३२१. (+) अरणिकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. माणकचंद वीरजी शाह; अन्य श्रावि. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ११४३०). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल लीधो जी, गाथा-८. ८६३२२. (+) नेमीस्वर गोपीसंवाद, संपूर्ण, वि. १९०५, आषाढ़ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १६४५०-५५). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: समर्यां देवी सारदा; अंति: सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६३२३. रामलक्ष्मणसीता ढाल-कालविशे, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, २२४५२). रामलक्ष्मणसीता ढाल-कालविशे, पुहिं., पद्य, आदि: हरे काल से डर रे नाद; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., गाथा-३१ तक लिखा है.) ८६३२४. (-) सज्झाय, लावणी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४११.५, २१४४६). १.पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रत्नचंद, मा.गु., पद्य, आदि: देवकीनंद शिरोमणि; अंति: मधु मास गुरुवारे, गाथा-८. २. पे. नाम. कुगुरु लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तजु तजु मन कुगुरु; अंति: जिनदास० खुवारी हे, गाथा-५. ३. पे. नाम. सुगुरु लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमुं नम में गुरु; अंति: चरणन की बलियारी हे, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: वटाउरा बीत गइ सारी; अंति: खोल देखो दोय नैण, गाथा-३. ५. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: खामी रा लाल भरीयो; अंति: काया देखन जीवन पर गइ, गाथा-५. ६. पे. नाम. बलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तुगीयापुर नगर; अंति: सीवपुर एरे भास रे, गाथा-१४. ८६३२५ (+) २३ पदवी द्वार नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:पदवी द्वार., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२४४१-४५). २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररतन१ छत्ररतन२; अंति: समदृष्टि१ साधुपदोय. ८६३२६. महावीरजी आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १०४३०). महावीरजिन निर्वाण आरती, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जगदीस जिनेश्वर; अंति: जय जय अविकारा, गाथा-११. ८६३२७. (+) ऋषभनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४४०). आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोदरंगकारणी कला; अंति: आदिदेव ध्याइई, गाथा-८. ८६३२८. (+) सीमंधरजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. गलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १४४४५). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा हु; अंति: होज्यो मुज चित हो, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी वामाजीना जाया; अंति: रामविजय भणे रे लो, गाथा-५. ८६३२९. पंचमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३७). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सौभाग्यपंचमी तप करो; अंति: अनुभव केवल नाणो रे, गाथा-९. ८६३३०. २४ जिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२, १२४३२-३६). २४ जिन स्तति, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार; अंति: (-), (प.वि. संभवजिन तक स्तुति है व प्रथम स्तुति ४ गाथा की है.) ८६३३१. (+) भृगुपुरोहित छढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:भृगुपुरोहित., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५४५०-५६). भृगपुरोहित छढालीयो, मु. जेमलजी मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: दर्शण कीधां साधरो; अंति: जेमल० गुरु सेवा करे, ढाल-६. For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८६३३२. (+) पृथ्वीचंद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०१, माघ कृष्ण, १, रविवार, मध्यम, पृ. ३, पठ.पं. ध्यानविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १३४३७-४१). पृथ्वीचंद्रगुणसागर सज्झाय, पंडित. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक सुख करु; अंति: जीवविजय धरे ___ ध्यान, ढाल-३, गाथा-६८. ८६३३३ (+#) नेमराजीमती बारमासो, संपूर्ण, वि. १८३३, मध्यम, पृ. २, प्रले. सभाराम; अन्य. तुलसीराम; सेवगराम; रामसुखदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०-४५). नेमराजिमती बारमासा, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: विनवे उगरसइन की; अंति: अख सुनाए, गाथा-२६. ८६३३४ (4) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, २२४१५). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सहिया सैजूंजो गिर; अंति: तपियो मननै उलासे हे, गाथा-१०. ८६३३५ (+) रोहिणीतप सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८२, कार्तिक शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. वरजूबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत मे "श्री चिंतामणपार्श्वजी प्रसादात्" एवं "अर्द्धरात्रौ लिखनीयं" लिखा है., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३५). रोहिणीतप सज्झाय, म. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीवासुपूज्य नमी; अंति: पदनो होय सामी हो, गाथा-११. ८६३३६. (+) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ६४३५-४०). जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलं १ केलि २ कलि ३; अंति: वज्जे जिणं आलए, गाथा-४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्लेषमा नाखि उलूहिउ; अंति: करता महा पाप थायइ. ८६३३७. (+) महावीरस्वामी विनतिरूप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १०४३०). महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मारी विनती; अंति: संथुणो त्रिभोवन तिलो, गाथा-२०. ८६३३८. पार्श्वजिन स्तवन-समवसरण विचारगर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३७). पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, म. धर्मवर्धन, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीजिनशासनसेहरो जग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ की गाथा-१२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८६३३९ (4) महावीरजिन स्तवन-नालंदापाडा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १४४३०). महावीरजिन स्तवन-नालंदापाडा, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: मगध देस कै मांहि; अंति: चोदा कीया चोमासा जी, गाथा-१९. ८६३४०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११.५, १३४४०-४५). १. पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं रे फल छइ क्रोध; अंति: उदयरतन०उपसम रस नांही, गाथा-६. २. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीइ; अंति: माननि दीजइ देसोटो, गाथा-५. ३. पे. नाम, माया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं मूल जाणीइं; अंति: ए छे मारग सुद्धि रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तमे लक्षण जोज्यो लोभ; अंति: लोभ तजइ तेहने सदा रे, गाथा- ७. ८६३४१. (+) अभव्य सज्झाय व पार्श्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२४X११.५, १०X३२). १. पे. नाम. अभव्य सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदिः उपदेस न लागे अभव्यने; अंति: उत्तम संघनी रीत रे, गाथा- ७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. सं., पद्य, आदि: देवाधिदेवं कृत; अंति: सारा भाग्यवंतो भवंति, श्लोक ९. ८६३४२. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२५.५x११.५, १६४५०). १७ भेदी पूजा, मु. जीवराज ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि श्रीजिनबदन प्रकासकर अंति: जीवराज०मंगल पठायी हो, ढाल - १७. ८६३४३. (४) मौनएकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५. " " १४X३५-४० ). मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि गौतम बोलइ ग्रंथ; अति: लालविजय० विधन निवारी, गाथा-४. ८६३४४ (+) सिद्धचक्र नमस्कार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५x१२, १०X३५). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्म, आदि सिद्धचक्र आराधतां अंतिः साधुविजयतणो० करजोड, गाथा-५. " ८६३४५. उपदेश छत्तीसी व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैवे. (१०x१०, १५३६-४२). १. पे. नाम. उपदेश छत्तीसी, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण, वि. १८९५, चैत्र कृष्ण, २, ले. स्थल. मेडता, प्रले. मु. पृथ्वीराज ऋषि; पठ. सा. श्रीकबरा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य. उपदेशछत्रीसी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि सजद करी सतगुरु समझाव, अंतिः सुणता पातिक नासे रे, गाथा-३४. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि भुखा घरनी जाइ भुडी; अति करडो सांवणीयाने मासे, गाथा १०. ८६३४६. (#) महावीरजिन स्तवन व १६ सत्यवादी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की फैल गयी है, जैदे. (२६४११.५, १५४४५-५०% " १. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- १४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि इक मन वंदो श्रीवीर अति: देह मनवंछित घणी, गाथा - २९. २. पे. नाम. १६ सत्यवादी सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मचार चूडामणी अंति: (-) (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ८६३४७. (+#) गोडिपार्श्वदेव छंद, संपूर्ण, वि. १८३५, चैत्र कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. इल्लोल, लिख. ग. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगौडिपार्श्व चरणे., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १४X४४-५१). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन दे मुझ सारदा; अंति: कांतिविजय जय जय करण, गाथा - ५१. ८६३४८. विजयसेठ सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, वे. (२६४११.५ १२४४१). " יי विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: भरत खेत्रे रे समुद्र अति कुशल नित घर अवतरे, ढाल-४, गाथा - २४. For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८६३४९. (#) गौडीपार्श्वनाथ व फलवर्धिपार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. सुरेल, प्रले. मु. माणक्यरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६x४०). १.पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८०५, आश्विन कृष्ण, १०, गुरुवार. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशे; अंति: कांतिविजय० गोडी धवल, गाथा-३७, (वि. गाथा-५ के बाद गाथांक नहीं लिखे हैं.) २.पे. नाम, फलवर्धिपार्श्वजिन छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. अभयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता सेवका; अंति: अभयसोम० दायक भगति, गाथा-७. ८६३५० (+) ८४ लाख जीवाजोन खमत खामणा ढाल, संपूर्ण, वि. १८९५, आषाढ़ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. गुणभद्र; पठ. श्रावि. रलीयायत, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ११४३६). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: कहे पापथी छुटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३४. ८६३५१ (#) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, ११४३७). पार्श्वजिन स्तवन-शामला, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूजाविधि मांहि भाविइ; अंति: वाचक जस कहइं देव, गाथा-१७. ८६३५२. (+-) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४१३, ११४३०). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आर आसइ हरइ खिलअ चनाश; अंति: नह जगां जवं खवं पयपर, गाथा-१०. ८६३५४. (2) अक्षरछत्रीसी, स्तवन व कुंडलीयो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नही है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १३-१५४३२-३५). १. पे. नाम, अक्षरबत्रीसी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अक्षरबत्तीसी, मु. महेश, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: (-); अंति: मुनि महेस हित जाण, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रतिमास्थापन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. विमलरत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनप्रतिमासु नही रंग; अंति: भविक नमो सिरनामी रे, गाथा-५. ३. पे. नाम, औपदेशिक कुंडलियो, पृ. २आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक कुंडलियाँ, रा., पद्य, आदि: संतांरी निद्या करे; अंति: (अपठनीय), गाथा-५. ८६३५५. गुरुशिष्य अध्ययनप्रेरक पत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२, ३३-४३४३७-४२). गुरुशिष्य अध्ययनप्रेरक पत्र, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्वस्तिश्रीसकलसुर; अंति: जे तिहा भणे छे. ८६३५७. (#) महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, ११४३१). महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, म. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीवीर जिनेसर सुपरि; अंति: मुझ देज्यो भवोभवे, गाथा-२७. ८६३५८. (+) मंत्रादि व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४३४-३६). १. पे. नाम. घंटाकर्णयंत्र महिमा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: दिन प्रतें वार ३ अ७; अंति: (१)राजा चुगलरो भय न होय, (२)विधि गुरुगम्य छै. २. पे. नाम. घंटाकर्ण मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरा मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वधरणेद्रपद्मावती स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथ; अंति: गुरु प्रसत्तेः. For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम, पंचांगुलि मंत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: पंचागुली देवी परसिर; अंति: (१)सुखं कुरु० स्वाहा, (२)पाई जइ सर्व दोष जाय. ५. पे. नाम, ऋषिमंडलयंत्रमंत्रादि, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. ऋषिमंडल स्तोत्र-बहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: जापाल्लभते पदमव्ययम्, श्लोक-६३, ग्रं. १५०. ६.पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ७. पे. नाम. कलिकुंडस्वामी पार्श्वस्तोत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं तं नमह; अंति: स्वामिने नमः स्वाहा, श्लोक-४. ८६३५९. निसाणी छंद व सिखामण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५०, पौष शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. द्रांपुर, प्रले. मु.रीधीरत्न (गुरु आ. कीर्तिरत्नसूरि); गुपि.आ. कीर्तिरत्नसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १३४३६). १.पे. नाम. निसाणी छंद, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपति दायक सुरनर; अंति: जिनहरष० कहंदा है, गाथा-२७. २. पे. नाम. सिखामण सज्झाय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलकरण नमी जिनचरण; अंति: ते नहि अवतरे, गाथा-२५. ८६३६०. सेव॒जा नमस्कार व गुणठाणानी थोयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १२४३४). १. पे. नाम. सेव॒जा नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ चैत्यवंदन, म. कीर्तिमाणेक, मा.ग., पद्य, आदि: श्री सिद्धाचल तीर्थ; अंति: करत सुर सुख अनंत हे, गाथा-५. २. पे. नाम. गुणठाणनी थोयो, पृ. १आ, संपूर्ण. गुणस्थानक स्तुति, मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहेलुं मिथ्यात्व; अंति: इम मेघविजय वरदाइ जी, गाथा-४, (वि. कर्तानाम मोहनविजय लिखा है.) ८६३६१. सीमंधरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १०४३०-३५). सीमंधरजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: जंबुद्वीप विदेहमां; अंति: पद्म० शिवसुख थाय जी, गाथा-४. ८६३६२. मरुदेवीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १०४३९). मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन मरुदेवी आइ; अंति: प्रकटे अनुभव सारि रे, गाथा-९. ८६३६३. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १९४४२). १.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणि हो के कहे; अंति: कांति बहुं सुख पाया, गाथा-५. २. पे. नाम. सिद्धचक्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल; अंति: महिमा जेणे जांणीयो, गाथा-५. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर जिणंद; अंति: कांतिसा० सुख पाया रे, गाथा-१०. ४. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो रे भवि भावे; अंति: कांतिसागर निशदिश, गाथा-५. म. मा " For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: भवियां श्रीसिद्धचक्र; अंति: ज्ञानविनोद० हो लाल, गाथा-७. ८६३६४. अरिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १८४४२-४६). अरजिन स्तवन, मु. केशव, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: श्रीजिनवर प्रणमुं; अंति: (१)पाम्या सुख अनंत रे, (२)करी स्तुति गुण गेह, ढाल-५, गाथा-४८, प्र.ले.प. मध्यम. ८६३६५. संखेश्वरपार्श्वनाथनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, १२४३३). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: वदन अनोपम चंदलो गोडि; अंति: शांतिकुशल० सुख लहै, गाथा-४१. ८६३६७. (+) नवमंगल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. श्रावि. छुटीयाबीबी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवमंगल., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १७७५२). नेमिजिन तपकल्याणक, मु. सुनंदलाल, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: अजी गुरु गणधर देव; अंति: लाल मंगल गाइया, ढाल-९, गाथा-४२. ८६३६८. पांचमां आरा की ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जतारण, प्रले. सा. हसतु (गुरु सा. छोटाजी); गुपि. सा. छोटाजी (गुरु सा. उमाजी); सा. उमाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३२-३८). पंचमआरा सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: श्रीजिन चरणकमल नमी; अंति: कथा का बोले सुणाय हो, ___ गाथा-१३. ८६३६९ (+) सतरभेद जिनप्रबंध, संपूर्ण, वि. १८८३, कार्तिक शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. देवपुर, प्रले. मु. सरूपसागर (गुरु मु. मानसागर); गुपि. मु. मानसागर (गुरु मु.रंगसागर); मु. रंगसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शतरभेद. श्री कुंथुनाथजी श्रीगोडीपार्श्वनाथजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १५४३७-४५). १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतमुखकजवासिनी; अंति: (१)मूनिसर० संथूणीओ रे, (२)सुरपति जिम थुणियो, ढाल-१७. ८६३७० (+) गोचरी आलोवानी विधि, पोषह विधि व चोवीस मांडला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. सरितबिंदर, प्र.वि. हुंडी:मांडला., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १७X४१-४४). १.पे. नाम. गोचरी आलोवानी विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. गोचरी आलोयण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: गोचरीथी आवी इच्छामि; अंति: सांभरी आहार करें सही. २. पे. नाम. पोसह लेवा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: वांदे पछे सज्झाय करे. ३. पे. नाम. चोवीस मांडला, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ मांडला, प्रा., गद्य, आदि: आघाडे आसन्ने उच्चारे; अंति: दूरे पासवणे अहियासे. ८६३७१ (#) वंदित्तुसूत्र, १४ नियमविचार व श्रावकना १२ व्रत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३७-४७). १. पे. नाम. वंदित्तुसूत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.. ___ संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. २. पे. नाम. १४ श्रावकनियम गाथा सह टबार्थ, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. १४ श्रावकनियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त दव्व विगई पणह; अंति: (१)दिसि न्हाण भत्तेसु, (२)को मिच्छामि दुक्क्डं, गाथा-१. १४ श्रावकनियम गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रभातै उठीनै सदा; अंति: परिमाण मै राखै. ३. पे. नाम. श्रावकना १२ व्रत, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला थूल प्रणात्; अंति: प्रते अनुमोदिया. For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६३७२. अयमत्ताऋषि व वीरप्रभ गहंली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, ले.स्थल, जंबुसर, जैदे., (२६४११.५, १४४३६). १. पे. नाम. अयमत्ताऋषि गहुंली, पृ. ४अ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि गहुंली, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अयमत्तामुनि वंदिये; अंति: रे सांभले धरी मनरंग, गाथा-९. २. पे. नाम. वीरप्रभु गहुंली, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. __ महावीरजिन गहंली, मु. रंगविजय, माग., पद्य, आदि: बेंहनी गुणशिल्य; अंति: रग० अति घणों रे लोल, गाथा-६. ८६३७३. गोडीपार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १८०४, फाल्गुन कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १७४३७). पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: धरमसीह ध्याने धरण, गाथा-२९. ८६३७४. अष्टमी नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १०४३१). अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, म. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र वदी आठम दिने; अंति: प्रगटे ज्ञान अनंत, गाथा-१४. ८६३७५ (4) जयंतीसती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११.५, १८४३३). जयंतीश्राविका सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: अरिहंत सिद्धने आरिया; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ की गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८६३७. मुनिगुण सज्झाय, विजयधर्मसूरि भास व क्षेत्रदेवता स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. भूज, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४२). १. पे. नाम. मुनिगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. मनछीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: चारित्रनो खप करजो; अंति: नि सूणवानो मन बीजो, गाथा-९. २.पे. नाम. विजयधर्मसूरि भास, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. भुज, पठ. श्रावि. मनछीबाई; प्रले. मु. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. दीपविजयशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वालो मारो दीए छ; अंति: होजो मंगलमाल, गाथा-५. ३. पे. नाम, क्षेत्रदेवता स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जे से खित्ते साहु; अंति: देवी हरो रियाहिं, गाथा-१. ४. पे. नाम. क्षेत्रदेवता स्तति, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: यस्याः क्षेत्रं समा; अंति: भयान्न सुखदायिनी, श्लोक-१. ५. पे. नाम. क्षेत्रदेवता स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. __ भवनदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: ज्ञानादिगुणयुतानां; अंति: सदा सर्वसाधुनाम्, श्लोक-१. ८६३७८. नेमिराजुल पखवाडो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. घ्राणपुर, प्रले. पं. रंगसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३४३४). नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिनमुखकमलै राजे; अंति: रंगविजय वधते रंगे, गाथा-२३. ८६३७९ औपदेशिक पद संग्रह व श्रमणधर्म गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२६४१२, १६४५३). १. पे. नाम. औपदेशिक पद संग्रह, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. पहिं., पद्य, आदिः (१)श्रीसीधंत वीतराग की, (२)जैसे सव जादों जरे; अंति: (१)तो उदै आवैगा, (२)ध्यान्यानि चरयेत, दोहा-३१. २. पे. नाम. श्रमणधर्म गाथा सह टबार्थ, पृ. ४आ, संपूर्ण. श्रमणधर्म गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अयमंतरं सि को एत्थं; अंति: तुसणीए कसायं ए झाति, गाथा-१. श्रमणधर्म गाथा-टबार्थ, मा.गु., पद्य, आदि: अः इन जगै कोन छै; अंति: मोन रह्या कषायवंतपै, गाथा-१. ८६३८०. खंधकमुनि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४१२, १०४३१). For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ खंधकमनि सज्झाय, म. मोहनविजय, मा.ग., पद्य, आदि: नमो नमो खंधक महामुनि; अंति: सेवक सुखीया कीजे, ढाल-२, गाथा-२०. ८६३८१. ८ मद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९७१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, प्रले. रेवाशंकर पंडित, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२६४१२, ९४३२). ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनि वारिये; अंति: अविचल पदवी नरनारी रे, गाथा-११. ८६३८२ (+) गुरुगुण गहुंलीद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, ११४३५-३८). १. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु.खांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सही मोरी चालो सहगुरु; अंति: खांति० परिणाम हो, गाथा-१०. २. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. खांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (१)परमानंद पद साधता रे, (२)विषयकषाय विरति करी; अंति: खांति नमें नित पाय, गाथा-४. ८६३८३. (4) औपदेशिक व धन्ना अणगार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. सा. हसतु (गुरु सा. छोटाजी); गुपि. सा. छोटाजी (गुरु सा. उमाजी); सा. उमाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:धनापोनो., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१२, ११४३७). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. औपदेशिक सज्झाय-धर्मदलाली, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समझावे आगे सुख अपारद, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. धन्ना अणगार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरवाणी रे धना; अंति: पाया हे मनडो गय गहो, गाथा-२०. ८६३८४. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१२, ११४२७). साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: वंदु श्रीजिनराय मन; अंति: श्रीजिनभक्त भलि जी, गाथा-१२. ८६३८५. राजीमती हीडोलणो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १३४३२). राजिमतीसती सज्झाय, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति प्रणमीउ चंदावद; अंति: दयासुर० मारा लाल, गाथा-१४. ८६३८६ (+#) कलावतीरी सोलह ढाल, संपूर्ण, वि. १८६५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सोझत, प्रले. मु. सतीदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कलावतीनी., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, २१४४८-५०). कलावतीसती चौपाई, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: जुगबाहु जिन जगत गुरु; अंति: मेडतेनगर चोमास, ढाल-१६. ८६३८७. नेमजी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, ९x४१). नेमिजिन स्तुति, पंन्या. महिमाविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: श्रीगिरनारशिखर सिणगा; अंति: दिन दिन नित्य दिवाली, गाथा-४. ८६३८८. औपदेशिक कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १३४४८). औपदेशिक कवित्त संग्रह , पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: ग्यान घटे नर मूढ की; अंति: सीखथी कवित कर खेलीइ, (वि. छुटक गाथा संग्रह.) ८६३८९ (4) १२ व्रत विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १४-१७४३३-३६). १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: परमथ संथउवासु दिठ; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'संसपओगे काम०' पाठ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६३९० (+#) आदिजिन विनती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित _है, जैदे., (२६४१२.५, २०४३७). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: पामी सुगुरु पसाय; अंति: विनय करीने विनवे ए, गाथा-५७. ८६३९१ (+) नंदिसरद्वीपस्थजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. रानेरबंदिर, प्रले. पं. जिनविजय; पठ. श्राव. गलाल राघवजी साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३४). साधारणजिन स्तवन-नंदीश्वरद्वीप मंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आनंदमंदिर नंदिसरवर; अंति: बोधबीज सदा मचे, ढाल-४, गाथा-२६. ८६३९२.८ प्रकारी पूजा व पंचमीनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३३). १.पे. नाम.८ प्रकारी पूजा, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., ले.स्थल. पुरबंदिर, प्रले. ग. जितसागर; पठ. श्रावि. लक्ष्मीबाई, प्र.ले.प. सामान्य. मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: (-); अंति: मोक्षं हि वीराः, (पू.वि. मात्र अंतिम ढाल है.) २. पे. नाम. पंचमी सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरुना हुं प्रणमी; अंति: वाचकदेवनी पुरो जगीश, गाथा-५. ८६३९३. (4) सिद्धचक्र स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १३४३४). श्रीपाल रास-सिद्धचक्र स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीजे भव वर थानक तप; अंति: एह अग्यारमी ढाल रे, ढाल-११, गाथा-४६, संपूर्ण. ८६३९४ (+) मुहपत्तिना बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, ११४३४). महपत्तिपडिलेहन बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्त्व; अंति: छकायनी जयणा करूं. ८६३९५. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १५४२८). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: गुणसूरि० शिवसुख पावे, गाथा-२१. ८६३९६. गमा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १९४४६-५०). भगवतीसूत्र शतक २४-संबद्ध दंडक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम उद्देशे नरक७; अंति: आउखो नवमे गमे९. ८६३९७. (+) ज्ञानदर्शनचारित्र संवाद, आदिजिन व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ११४३०). १. पे. नाम. ज्ञानदर्शनचारित्र संवाद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.., पद्य, आदि: श्रीइंद्रादिक भावथी; अंति: चओ अनुजोग विचार ललना, ढाल-१, गाथा-४. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पीउडा जिनचरणारी सेवा; अंति: मोहन अनुभव मांगे, गाथा-५. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आंखडीये रे में आज; अंति: श्रीआदेसर तुठा रे. ८६३९८. नेमिजिन स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्रले. ग. ऋद्धिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२,१७४४६). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. माणकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सकल नगरमे तीलक; अंति: माणीक० गावता रे जी, गाथा-१२. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ म. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आयो रे मास वसंत सरस; अंति: नयवि० वासी जयो भगवान, गाथा-७. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयसागर, पुहिं., पद्य, आदि: अब हमकुं ग्यान दियो; अंति: रिद्ध दियो मुज कुं, पद-७. ४. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: मुनीसुव्रतनाथ जिणेसर; अंति: कीरत गावो जीनेसरकी, पद-४. ५. पे. नाम, अभिनंदनजिन होरी पद, पृ. १आ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: अभीनंदन जीनराय चालो; अंति: नित प्रत शीस नमाय, गाथा-५. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. नयचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय बोलो पासजीनेसर की; अंति: नयचंद० पुरुतरु कीज, गाथा-७. ८६३९९ औपदेशिक पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, दे., (२४४१२, २२४४०). १.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. आत्माराम; पठ. मु. हरद्वारी, प्र.ले.पु. सामान्य. पुहिं., पद्य, आदि: है चस्मा फैज का जारी; अंति: खमालें जिसका जी चाहे, गाथा-१०. २. पे. नाम. काया सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-काया, पुहिं., पद्य, आदि: कहे काया प्राणी से; अंति: वफा तुं भी ना पायेगा, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: पाप धतुरा न बोय रे; अंति: फिर क्यु भौदु होये, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. शंकरदास, पुहि., पद्य, आदि: तुजे चलणा याही से; अंति: संकरदास० के रहो हजूर, गाथा-४. ५. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. नंदलाल, पुहि., पद्य, आदि: महा असुचि मलमत्र; अंति: समरासे आव्या समझाकें. गाथा-४. ६.पे. नाम. दया करणी पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-दया, पुहिं., पद्य, आदि: दया विना करणी दुखदान; अंति: जिणवाणी हे दया करणी, गाथा-५. ८६४००. ५६० भेद अजीवना व ५६३ भेद जीवना, संपूर्ण, वि. १९०९, वैशाख शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. अहमदावाद, प्रले. पं. तिलोकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पेज १४२ हैं., दे., (२५.५४११.५, ९४४१३-३८). १. पे. नाम. ५६० भेद अजीवना, पृ. १अ, संपूर्ण... ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ५ वर्ण ते केहा स्वेत; अंति: (१)५६० भेद अजीवना हुवा, (२)अजीवरा थया इति जाणवा. २. पे. नाम. ५६३ भेद जीवना, पृ. १आ, संपूर्ण. ५६३ भेद जीवराशि क्षमापना, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रथम ७ नारकीना १४, (२)जीवना पांचसइंत्रिसठ; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ८६४०१. नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३४-३९). नेमराजिमती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: म्हे ध्यावालां हो; अंति: तारो सायब तुम घणी, (वि. अंत की गाथाओं में गाथांक नहीं हैं.) ८६४०२ (#) धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. सारां (गुरु सा. किसनमाला); गुपि. सा. किसनमाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४३८). धन्नाअणगार सज्झाय, म. ठाकरसी, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी रे धना अमीय; अंति: गाया हे मन में गहगही, गाथा-२२. ८६४०३. (4) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४८). For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनकृत, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुख; अंति: श्रीमेरुनंदन उवझाय ए, गाथा-३२. ८६४०४. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२५.५४११.५, १९४५२). १. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हुं; अंति: समयसुंदर०पातक जाय रे, गाथा-६. २. पे. नाम. नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. _उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मीथुला नयरीनो; अंति: समइसुंदर० भवपार, गाथा-८. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बुझ रे तुं बुझ प्राण; अंति: वकुं पामीये भवपार रे, गाथा-७. ४. पे. नाम, साधुस्वरूप सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जै.क. भूधरदास, पुहि., पद्य, आदि: मोह महारीय जीपक; अंति: भुदर मांग जी एह, गाथा-१४. ५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीसंत नाम संत करो; अंति: रिध सीध घर आइ मिले, गाथा-१३. ६.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन की सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रमपुष्पिका अध्ययन की सज्झाय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: धमो मंगल मेहमा; अंति: ___ होव ज जयकार, गाथा-६. ८६४०५. अरणिकमुनि रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अनुरीया, प्र.वि. हुंडी:अरणक., जैदे., (२६.५४११.५, १७४४५). अरणिकमुनि रास, मु. बुधमल, मा.गु., पद्य, आदि: पारसजीन पारस इधक करी; अंति: उदीयापुर रे मजारीअ, ढाल-४. ८६४०६. ढालसागर-ढाल-९०, ९१ व १३४, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, २१४५२). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. ५७५०, प्रतिपूर्ण. ८६४०७. (+) पंचमहाव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, ११४४३). ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुनी परि दोहिलो; अंति: श्रीविजयदेवसूरि कि. ८६४०८. (+#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, १७४४१). महावीरजिन स्तवन, मु. चेतनदास, मा.गु., पद्य, आदि: कुंडलपुर सुहावणा; अंति: चेतनदास० केव स्वामी, गाथा-१०. ८६४०९ (+) कीर्तिध्वजराजा ढाल, देवकी सज्झाय व परनारी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. मु. हीरालाल (गुरु मु. जवाहरलाल, स्थानकवासी), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., दे., (२५४११.५, १६x४८-५६). १.पे. नाम. कीर्तिध्वजराजा ढाल, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. गाथांक-३४ के बाद ३८ अंकित है. हुंडी:ढाल की. म. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९३१, आदि: श्रीआदि जिनेश्वरू; अंति: हीरालाल०करी एक मन हो, गाथा-७५. २. पे. नाम. देवकी सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: ओजी मुनिवर वचन सुणी; अंति: हीरालाल हर्खहोलास, गाथा-११. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवन. ललितांगकुमार सज्झाय-शील विषये, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९५९, आदि: सुंदर सहर सुहामणो; अंति: हीरालालहर्ष होल्लास, गाथा-१३. ८६४१०. (+) १० पच्चक्खाणसत्र, विविधविचार व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कल पे.७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, २९४५७). १.पे. नाम. प्रासुकजल विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: जत्थ जलं तत्थ वस्स: अंति: शरीर तं साधवो धारयति. For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १०१ २. पे. नाम, चतुर्भंगी विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. पुण्यपाप चतुर्भंगी विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: थूला सुहमा जीवा संकप; अंति: निरवद्य परिणाम. ३. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दुर्लभ भव लही दोहलो; अंति: मोहन कहे विसवावीस रे, गाथा-८. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी ओलंभडे मत; अंति: वृषभ लंछन बलिहारी, गाथा-७. ५. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हो प्रभु मुज प्यारा; अंति: माया ताहरी रे लो, गाथा-६. ६. पे. नाम. १० पच्चक्खाण सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पच्चखाण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सरे नमुक्कार; अंति: साइमं० सव्वस० वोसिरइ. ७. पे. नाम, प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दोचेव नमुक्कारे आगार; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-३, (वि. भवचरिम, गंठसी व मुठसी आदि पचक्खाण सहित लिखा है.) ८६४११ (+) औपदेशिक छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४४०). औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.ग., पद्य, आदि: भगति भारती चरण नमेव; अंति: धर्म रंगरातो बोल, गाथा-१६. ८६४१३. उदाइराजा चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १६४५४-६०). उदाईराजा वखाण, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: चंपानगर पधारीया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ गाथा-४ तक लिखा है.) ८६४१४. (+) १६ सती सज्झाय व पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १७४३७). १.पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: उदयरत्न० सुखसंपदा ए, गाथा-१७. २. पे. नाम. आंबील पच्चक्खाण, पृ. १आ, संपूर्ण. आयंबिल पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उगे नमुक्कारसीय; अंति: धारेणं वोसरामि. ८६४१५ (#) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:स्तवनपत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४३६). सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हं; अंति: पूरि आस्या मनतणी, गाथा-१९. ८६४१६. बाइस अभक्ष्य बत्रीस अनंतकाय, शील व नमस्कारमंत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, १७४४५). १.पे. नाम, २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन रे शुद्धि; अंतिः प्राणी ते शिवसुख लहे, गाथा-१०. २.पे. नाम. शीयल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. भेरूदास, मा.गु., पद्य, आदि: म कर रसरंग प्रीउ; अंति: धन नरनार जे शील पालै, गाथा-७. ३. पे. नाम, नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ.१आ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: समर हो जीव नवकार निज; अंति: आपणा कर्म आठे विछोडी, गाथा-६. ८६४१७. खंधकमुनि चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. सा. छोटीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, २०४३८-४४). For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ०७ १०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची खंधकमनि चौढालिया, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५३, आदि: मुनीवर सासण धणीजी; अंति: चतमासारी चोथ आइ, ढाल-४. ८६४१८. १४ गुणठाणा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:गुणठाण., जैदे., (२४.५४११.५, १४४३५). १४ गुणस्थानक विचार, पुहिं., गद्य, आदि: सावज कीता नीरबत कीता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'वेदपाणाईवाई' पाठ तक लिखा है.) ८६४१९ (+) १८ पापस्थानक सज्झाय व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १६x४३). १.पे. नाम. १८ पापस्थानक सज्झाय, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सलोक. मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि: महावीर वर्धमानजी; अंति: दुक्कडमे दिनो हे, गाथा-३८. २. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सवैया. औपदेशिक सवैया-१८ पापस्थानक, मा.गु., पद्य, आदि: पाप अठारा सेवता बदे; अंति: ज्यु होवे खेवो पार, सवैया-४. ८६४२०. सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३७-४३). सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति; __ अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८६४२१ (+) दीक्षाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:दीक्षाविधि., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१३, १५४४२-४५). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: दीक्षा लेतां एतला; अंति: नोकार वाली गणावीइं. ८६४२२. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:मंदरसांमीस्तु., ., (२७७१३, १२४३८-४०). सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वालो मारो सीमंधर; अंति: का ते सद्दा. ८६४२३. सूतक विचार, विविध जीव आयुष्य विचार व शांतिनाथ चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, दे., (२७४१३, १२४४०). १.पे. नाम. सूतक विचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सूतकविचार. मा., गद्य, आदि: (१)प्रथम कोईने घरे जन्म, (२)पुत्र जन्म दिन १०; अंति: जीवनी उत्पत्ति थाय. २. पे. नाम. इंद्रिय विषय विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-इंद्रिय विषय विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: पुठं सुण्णेइ सदं; अंति: पुढे वियांगरेति. ३. पे. नाम. पर्वत नाम संख्या, पृ. २आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: भरत १ हीमवंत२ हेमवंत; अंति: शीखरी२ ऐरावत१. ४. पे. नाम. विविध जीव आयुमान, पृ. ३अ, संपूर्ण... विविध जीव आयुष्य विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्य, १२ वर्षमुं; अंति: १०थी १४ वर्ष सुधी. ५. पे. नाम. शांतिनाथस्वामी, चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभद्र, सं., पद्य, आदि: नाना विचित्रं बहु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक लिखा है.) ८६४२४. सज्झाय व पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ७, जैदे., (२७.५४१३, १५४२४-२८). १. पे. नाम, सीतासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग.जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: नीत प्रणमीजे पाय रे, गाथा-९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. रूपसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम दीपे दीपता रे; अंति: मोटा श्रीमहावीर के, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १०३ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अलगी रहेनी अलगी रहे; अंति: जिनगुण स्तुति लटकाली, गाथा-६. ४. पे. नाम. बाहुजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अरज अरज सुणोने रूडा; अंति: जिनजी दीनदयाल, गाथा-६. ५. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण पीयारा हो; अंति: अहनिस प्रणमु पाय रे, गाथा-७. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसरि, मा.ग., पद्य, आदि: वरकाणे प्रभुजी बिराज; अंति: मोरा रे तुम सांभलो, गाथा-७. ७.पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-नारदपुरीमंडन, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: चालो सहिली आपण सहु; अंति: पल पल वलभ करे प्रणाम, गाथा-७. ८६४२५. पर्युषणपर्व नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२८x१३.५, ११४३७). पर्यषणपर्व नमस्कार, म. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजय मंडणो; अंति: तणौ धीर करे गुणग्यान, गाथा-७. ८६४२६. प्रभंजना सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१३, ९x४०). प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरि वैताढ्यने ऊपरे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१४ तक लिखा है.) ८६४२७. (+#) साधुपद सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १५४३९). साधुपद सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: समकितधारी सुधमतीजी; अंति: चंद्रभाण० पावै सिद्ध, गाथा-१६. ८६४२८. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडक विचार गर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२८x१३, १२४५१). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पुरे मनोरथ पासजिन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ गाथा-२४ अपूर्ण तक लिखा है.) ८६४२९ (+) साधुश्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १३-१४४३५-३७). १. पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. साधपाक्षिकअतिचार-श्वे.म.प., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: अनेरो जे कोई अतिचार. २. पे. नाम. श्रावक अतिचार, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि; अंति: अतिचार पक्ष दिवस. ८६४३०. मौनएकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मणीलाल लखमीचंद पांडे, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२, १२४३९). मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: लालविजय० विघन निवारी, गाथा-४. ८६४३१ (+) मौनएकादशी पर्व गणर्नु, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१३, १८४४६). मौनएकादशीपर्व गणगुं, सं., को., आदि: जंबूद्वीप भरत अतीत; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ८६४३२. (+) राइपडकमणविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:राइपडिकमणाव., संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, १३४३३). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम पूर्वरीति; अंति: मुंहपत्ति पडिलेहवं. ८६४३३. आषाढभूति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७.५४१३, ११४३८). For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीश्रुतदेवी चित्त; अंति: भावरतन सुजगीसो रे, ढाल-५, गाथा-३७. ८६४३४. औपदेशिक पद, सज्झाय व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२७७१३, १७४४२-५२). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तेरो अलख अगोचररूप; अंति: मेरो आनंदघण महाराज, गाथा-५. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: एक काया उर कामिनी; अंति: चले स्वारथीओ संसार, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: जैने कहजो मारा वालाज; अंति: रे सार्या आतमकाज रे, गाथा-७. ८६४३५. नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२७४१२.५, १२४३७). नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, म. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: पडवे प्रीतम रे प्रेम; अंति: ___माणेक० तिथी पुरण थाय, गाथा-१५. ८६४३६. बीजतिथि स्तति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. कनैयालाल पोकरदास लहिया, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२७.५४१२.५, १०४३८). बीजतिथि स्तति, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., पद्य, आदि: जंबद्वीपे अहनीस; अंतिः विघ्न निवारी जी, गाथा-४. ८६४३७. मंगलाचरण प्रसस्ति व पार्श्वजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, दे., (२६४१२.५, ११४३६). १. पे. नाम, मंगलाचरण प्रसस्ति, पृ. २अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद-९. २. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. २अ, संपूर्ण. ___मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: एसो मंगल निलहो भय; अंति: धर्मस्वरूप उपदिशे, श्लोक-३. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, म. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जीणंदा वामानंदा; अंति: गाती वीर घरे आवती, गाथा-४. ८६४३८. रथनेमिराजिमति सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-९(१ से ९)=२, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. श्राव. भाईचंद केसरीचंद वोहरा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८.५४१३, १२४३४). रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वेकी नीत वंदन करो जो, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ८६४३९. मेघकुमार सिलोको, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२८.५४१२.५, ११४३८). मेघकुमार सिलोको, मा.गु., पद्य, आदि: समरुं हुं पेहला; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३० अपूर्ण तक लिखा है.) ८६४४० सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२८x१३, १२४२८). सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि सरसती भगवत; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८६४४१. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १०४२७). औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दुध पुत्रने धन जोबन; अंति: लाखे चोराशी माई, गाथा-६. ८६४४२. गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी खंडित है., जैदे., (२७.५४१२.५, २३४५०). For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: संपति सुखदायक सरस; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८६४४३. (+) आत्मनिंदा भावना, संपूर्ण, वि. १९५९, वैशाख कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:आत्मनि., संशोधित., दे., (२७४१२.५, १५४३४-४१). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंति: सो नर सुगुण प्रवीण. ८६४४४. (+) महावीरजिन सत्तावीस भववर्णननो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ४, प्र.वि. हंडी:सत्ता०भ०., संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १५४५०). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, पंन्या. ज्ञानकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: पूरण प्रेमे प्रणमीइ; अंति: वीर जिनवर जय करो, ढाल-११, गाथा-८७. ८६४४५. लंपकलोपकतपगछजयोत्पत्तिवर्णन रास, संपूर्ण, वि. १८७८, माघ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. कुल ग्रं. १०८, जैदे., (२७४१२.५, १५४४६-५०). ढुंढक रास, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरसती चरण नमी करी; अंति: अविचल पद लीला रे, ढाल-७. ८६४४६.(+) सरस्वती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, २०४५०). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: वाचा फलसें माहरी, गाथा-३३. ८६४४७. (#) बत्रीस योग संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१२.५, १५४४३). ३२ योग विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मनवचन कायाना शुभ योग; अंति: संलेखणा संथारो करे. ८६४४८. (+) चोवीस दंडक यंत्र, हेमदंडक गाथा व योनि अल्पबहुत्व विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४११.५, २०४३६). १.पे. नाम. चौविस दंडक यंत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). २.पे. नाम. हेमदंडक, पृ. ३आ, संपूर्ण. हेमदंडक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवभेया सरीराहार; अंति: अप्पाबहदंडगंमि, गाथा-५. ३. पे. नाम. योनि अल्पबहत्व विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. योनिअल्पबहत्व विचार, रा., गद्य, आदि: सबसे थोडा जीवा सीतोस; अंति: जोणीयां अनंतगणा. ८६४४९. माणिभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१३, १३४४७). माणिभद्रवीर छंद, म. शांतिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती स्वामनी पाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१८ अपूर्ण तक लिखा है.) ८६४५०पाटावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सरवाड, प्रले. सा. चमना आर्या, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १७X४२). महावीरजिनशासने ऐतिहासिक प्रसंग वर्णन, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: समणभगवंत श्रीमहावीर; अंति: वदइ ते प्रमाण ८६४५१ (+) प्रतिक्रमणविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १५-१६x४५). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रथम धोतीयो प्रमुख, (२)खमासमण पूर्वक तीन नव; अंति: (-), (वि. अंतिमवाक्य खंडित है.) ८६४५२. भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालागमन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१३, ११४३२). For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालागमन पंडित संवादगर्भित, मा.ग., गद्य, आदि: प्रभु नीशालै वैठा; अंति: (-), (पू.वि. "भभो भारी" पाठ तक है.) ८६४५३. शुद्ध आंबिल को विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१३, १५४३३). शुद्धआयंबिल विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: साधु को प्राये; अंति: ग्रथांकै वीच है. ८६४५४. (+) नवपदओली उजववा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १३-१५४३२-३५). सिद्धचक्र आराधना विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम कोई वडो; अंति: मखतमणिय स्थापयति. ८६४५५. (+#) आठ कर्मप्रकृति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १०-१२४३२-४२). ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी तेहनी; अंति: (-), (पू.वि. "नोकायउजुयाय १ नोसावउजुयाय २ नोसासउजुयाय ३" पाठ तक है.) ८६४५६. (#) करकोडी यंत्र, संपूर्ण, वि. १९३१, कार्तिक शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. सीवशंकर गौडब्राह्मण; अन्य. सा. जमुनाबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१२.५, २५४२१). यंत्र संग्रह-पन्नवणादि, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८६४५७. (4) पंचनिग्रंथ विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १९४४३). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२५ उद्देश-६गत नियंट्ठा-संजया आलापकगाथा का विवरण, सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ८६४५८. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १८९३, आश्विन कृष्ण, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४४०). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: भले मुहर्ते; अंति: कही पच्चखाण करावीयै. ८६४५९. औपदेशिक सज्झायद्वय, संपूर्ण, वि. १९७०, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७७१३, १२४३४). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-जीवसीखामण, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवशिखामण, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जोने तु पाटण जेवां; अंति: रत्नविजय०आव्या काम, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-जीव, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सजी घरबार सारु मिथ्य; अंति: रत्नविजय० छेकथी रे, गाथा-१२. ८६४६०. नमस्कार महामंत्र व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१३, ११४३२). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: ॐहीं नमोअरिहंताणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., तीसरे पद तक लिखा है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: ए पेले पदे अरीहंत; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: आपे बेनी चलो सइआ जिन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ तक है.) ८६४६२. (+) गौतमस्वामी अष्टक व छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, १५४२८-३०). १.पे. नाम, गौतमस्वामी अष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. म. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेलो गणधर विरनो रे; अंति: धीर नमे निसदीस, गाथा-८. २. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात प्रथवि सुत प्रात; अंति: जस सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १०७ ८६४६३. भास व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२७.५४१३, १४-१६४६३). १.पे. नाम. गुरुगुण भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. धर्मचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: गछनायक कहे वेगे; अंति: सीरनाम पुन्यधाम गावे, गाथा-१२. २. पे. नाम. गुरुगुण भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सजनी श्रीगुरुपदपंकज; अंति: देवेंद्रसूरि० भावसुं, गाथा-६. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: मोने संभव जनसुं; अंति: दिलमां हे धारो रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पांचमा सुमतिजिणेसर; अंति: राम० ज्यो जिनराय रे, गाथा-५. ८६४६४. नेमनाथजिन नवरसो, संपूर्ण, वि. १९६१, कार्तिक कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. मांघरोलबंदर, प्रले. मु. माणेकचंद्र शिष्य; पठ. श्रावि. मोतीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवरसो., दे., (२८x१२.५, १२४३३). नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत चंदलो; अंति: रूपचंद० उतारो भवपार, ढाल-९, गाथा-४०. ८६४६५ (+) चउदनियम, धन्नाशालिभद्रनी सज्झाय व नेमनाथराजिमती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१५, वैशाख शुक्ल, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. इलोलनगर, प्रले.पं. लक्ष्मीविजय; पठ. श्रावि. नाहलकुंयर; अन्य. पं. श्रीदेव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री कुंथुनाथजी श्रीऋषभदेवजी प्राशादेन., संशोधित., दे., (२७.५४१३, १३४३३). १. पे. नाम. चउदनियम सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. १४ नियम सज्झाय, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करि; अंति: ऋद्धिविजय उवझाय, गाथा-२१. २. पे. नाम. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अजीया जोरावर करमी; अंति: उदय० भवजल तीर रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमनाथराजिमती स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: सांमलीया सिद्धनें; अंति: गुण देइ अमने वालो रे, गाथा-६. ८६४६६. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १२४३६). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. सुखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कारतक सुद पंचमि तप; अंति: सुखविजे अतिय विराजे, गाथा-४. ८६४६७. (+) झांझरियामुनि सज्झाय, अनाथीमुनि सज्झाय व नवकार महामंत्र छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, १७४४५). १.पे. नाम. झांझरियामुनि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति: सांभलतां मन आणंदा, ढाल-४, गाथा-४३. २. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति: समयसुंदर० बे कर जोड, गाथा-९. ३. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ८६४६८.(+) नेमराजीमति बारमासो व औपदेशिक लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. रीया, प्रले. श्रावि. रायकुंवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१३, १६४३६). १. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मु. हर्षकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: हो सामी क्युं आये; अंति: फेर लियो जादराय ने, गाथा-२६. २.पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुणो भव प्रभुजी के; अंति: जिनजी कु नित ध्यावो, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६४६९. योग पावडी, नववाड सज्झाय व सवैयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२७.५४१३, १५४४३). १. पे. नाम, योग पावडी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. योगपावडी, गोरखनाथ, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध लोभ दरि परिहर; अंति: गोरख० परमपद पावें, गाथा-६७. २. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहने जाउ भामणि, ढाल-१०, गाथा-४३. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ४आ, संपूर्ण. क. सुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: जित झैन तहां फुनि; अंति: सुंदर लोभ न होइयै, गाथा-१. ८६४७० गणणो देवलोकनो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, जैदे., (२७७१३, १२४१३). १२ देवलोक गणj, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: २० नोकारवालि गणवि, (पू.वि. नवलोकांतिक विधि अपूर्ण से ८६४७१. दशवैकालिकसूत्रनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२७.५४१३, १४४४२). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अध्यययन-१ की ___ गाथा-७ अपूर्ण से अध्ययन-१० की गाथा-६ तक है.) ८६४७२. (+#) स्तवन, सज्झाय, विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२९x१२, ३३४१८). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण... उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुखलवइ वीजइं जयो रे; अंति: वाचक जस०भयभंजण भगवंत, गाथा-७. २. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ.१अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: जगपति तुं तो; अंति: भगवंत भावेसुं भेटीउ, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धोबीडा तुं धोजे मनन; अंति: (-), गाथा-६, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ४. पे. नाम. संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि-मुंहपत्ति विधि, पृ. १आ, संपूर्ण.. संवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५. पे. नाम. शंखेश्वरनो स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पास शंखेश्वरा सार; अंति: भींजो पपांणो, गाथा-५. ८६४७३. (+) विकल पच्चक्खाण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, २५४२२). विकल पच्चक्खाण सज्झाय, रा., पद्य, वि. १८३२, आदि: भेख धार्यारा त्याग; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ की गाथा-३२ अपूर्ण तक है.) ८६४७४. तपागछनी पोसानी विधि, संपूर्ण, वि. १९३२, कार्तिक कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३, दे., (२९x१२.५, १३४२९). पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम थापणा थापवी पछ; अंति: विधि केहवी. ८६४७५ () बीजतिथि, ज्ञानपंचमी व अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, कल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १३४३८). १. पे. नाम. बीजतिथि चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: दविध धर्म जिणे; अंति: नमता होय सुख खाण, गाथा-७. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १०९ मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा वीर; अंति: परे रंगविजय लहो सार, गाथा-९. ३. पे. नाम. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.ग., पद्य, वि. १९वी, आदि: महा सुदी आठमने दिने; अंति: पद्मनी सेवाथी शिववास, गाथा-७. ८६४७६. मौनएकादशीपर्व व अष्टमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. इलोल, प्रले. ग. विवेकविजय, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३९). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तति, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १८७८, ले.स्थल. ईलोल, प्रले. पं. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: शांतिकरण श्रीशांतिजी; अंति: गुण गाया जी, ढाल-५, गाथा-४२. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तति, पृ. ३आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जिन आगल; अंति: तपथी कोड कल्याण जी, गाथा-४. ८६४७७. पद, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ५, दे., (२७ १२.५, १८४४०). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- अहंकार परिहार, म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तर्या करो भव; अंति: तिलोक० वरसि ___ वराणी, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद-कर्मगति, पृ. ७अ, संपूर्ण. म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: कर्मगति हे अजब जग; अंति: तिलोक० लाग जानाइ, गाथा-५. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-धर्मध्यान, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: देख काल जुग की कनी; अंति: वारु दिलस सव की हारी, गाथा-६. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण.. पुहि., पद्य, आदि: संजम तो मरम न दिल; अंति: अनुमहाव्रत धारा संजम, गाथा-७. ५. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी तुम दंसणा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८६४७८. साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:थोइ., दे., (२७४१२.५, ४४४८). साधारणजिन स्तुति, म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: संसार नाम जिसका सार; अंति: जोड के करता पौकार, गाथा-४. ८६४७९. नियंठा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७४१३, १८४४४). संजयानियंठा के बोल, प्रा.,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ८६४८० (#) रतनकुमार ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, २०४४५). रतनकुमार ढाल, सा. लछमा, मा.गु., पद्य, वि. १९०९, आदि: सुर वीर गुणधीर एसकाल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१ ___ अपूर्ण तक है.) ८६४८१, दानशीलतपभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१३, १२४३७). दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयैतादास, मा.गु., पद्य, आदि: दान एक मन जीवडा दानख; अंति: वियण कहत जयंतिदास रे, गाथा-१३. ८६४८२ (4) रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२.५, १४४३७). For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रोहिणीतप स्तवन, म. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारे वासुपूज; अंति: रोहिणी गुण गाईया, ढाल-६, गाथा-३१. ८६४८३. (+) विहरमानजिन स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हंडी:विसवेहरमानत०., संशोधित., जैदे., (२८x१२,१९४५४). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुखलवई विजय जयो रे; अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-८ की गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ८६४८४. शंखेश्वरपार्श्वनाथजीनो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७४१२.५, ११४४१). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माता सरसति; अंति: सेवक नित्यविजय जयकार, गाथा-३७. ८६४८५ (+) पजूसण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:पजूसणस., संशोधित., दे., (२७४१२.५, १२४३४). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमु सरसति; अंति: तस जगवल्लभ गुणगाय, ___ गाथा-१६. ८६४८६. सिद्धपद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२८x१३, १३४३५). सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम पृच्छा करे; अंति: शिवपुर नगर सोहामणु, गाथा-१६. ८६४८७. कालमंडलाभंग स्थापन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२७.५४१२.५, १३४४१). योगविधि कालमांडलादि-साधु, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि० पहिल; अंति: सज्झाय काल पडिकमीइ. ८६४८८. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. जेसींघ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, १३४४२). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सकल सुखदाय रे, ढाल-५, गाथा-१६. ८६४८९. नेमिजिन नवरसो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, जैदे., (२७४१२, ११४४५). नेमिजिन नवरसो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदिः (-); अंति: थूणो नेमी जिणेसर, ढाल-५, गाथा-६९, (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से है.) ८६४९०. चैत्यवंदन विधि, स्तवन, लावणी व आरती संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. ८, जैदे., (२८x१३, १३४३७-४०). १. पे. नाम. चैत्यवंदनसूत्र-विधि, पृ. ४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नमुत्थुणं के अंतिम पद से है.) २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.. क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चंदाजी श्रीमंदर; अंति: वाधे मुज मुख अतिनूरो, गाथा-७. ३. पे. नाम. जयवीराय सूत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. प्रणिधानसूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: जय वीयराय जगगुरु होउ; अंति: जैनं जयति शासनम्, गाथा-५. ४. पे. नाम, पार्श्वजिन लावणी, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लावणी-कल्याण, मु. गुलाबचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अगड, अगड, बाजे; अंति: लोक तमाशा देख रह्या, गाथा-१७. ५. पे. नाम. आदिजिन आरती, पृ. ५अ, संपूर्ण. मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय आरती आदिजिणंदा; अंति: मूलचंद रिषभ गुण गायो, गाथा-३. ६. पे. नाम. २४ जिन आरती, पृ. ५अ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव; अंति: आवागमण निवार की, गाथा-४. ७. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. आदिजिन पद-संध्याकाल, म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: भवि तुमे सांझ समे; अंति: समरन हे जिनजि को, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. ५आ, संपूर्ण. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: जै जै आरती संत; अंतिः प्रभुजीने आरती तोले, गाथा-४. ८६४९१. प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२८x१३, १६४३१). प्रश्नोत्तर संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८६४९२. अरणिकमुनि सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, दे., (२४.५४१२.५, ११४३०). १. पे. नाम, अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. खीमा, पुहिं., पद्य, आदि: काचा था सो चल गया हो; अंति: आयो जिण दीस जाय रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. खुसाल, रा., पद्य, आदि: साधु कहे साभल तुं बा; अंति: जो नही करसी धरमै, गाथा-११. ८६४९३. चैत्यवंदन, गीत व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, पठ. श्रावि. फूलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, १२४३५). १.पे. नाम. पद्मप्रभुजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपद्मप्रभुना नाम; अंति: मान० मुको बीजो वाद, गाथा-५. २. पे. नाम. सुपार्श्वनाथ स्तवन रूपस्थध्यान गर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नीरखी नीरखी तुंज; अंति: जिनप्रतिमा जयकार, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमिप्रभु गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन गीत, श्राव. लींबो, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगिरनारें त्रिण; अंति: लींबो०नेमनाथ गुणखांण, गाथा-३. ४. पे. नाम. जिनदर्शन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनदर्शन प्रार्थनास्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: प्रपद्ये जिनं देवदेव, श्लोक-२. ८६४९४. नियंठा संजया आलापक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२९x१२.५, १९४४२). भगवतीसूत्र-चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८६४९५. (+#) चौवीस जिन नाम, माता-पिता, नगर, नक्षत्र आदि विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२८x१३, १६४५८). २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८६४९६ (#) चंद्रगुप्तराजारा सोले सुपन, संपूर्ण, वि. १९१०, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल, जोधपुर, । प्रले.मु. हीरविजय गणि; पठ. श्राव. मगनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२८x१३, १२४४९). १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: दीधो दान छकायो रे, गाथा-३१. ८६४९७. खंधकमनि चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७.५४१२.५, १७४५१). खंधकमुनि चौढालिया, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: नमूं वीर शासनधणी जी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८६४९८ (+) क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९१०, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. प्रतिलेखन तिथि-आशु वद ११ भी लिखा है., संशोधित., दे., (२८.५४१३, ९४३४). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खिमागुण आदर; अंति: चतुर्विध संघ सुजगीस, गाथा-३६. ८६४९९. महावीरजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, ११४३७). __ महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.ग., पद्य, आदि: आधार ज हंतो रे एक; अंति: वरिया शिवपद सार, गाथा-१५. ८६५०० (+) गहंली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, प्रले. मु. सौभाग्यसोम; पठ. श्रावि. फुलकुवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १२४१९-३१). For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११२ www.kobatirth.org १. पे नाम महावीरजिन गहुंली, पू. १अ १आ, संपूर्ण. पं. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहि चालो श्रीमहाविर; अंति: दीपविजय० निज आवासे, गाथा- ९. २. पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र गहुली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि सहियर सुणीवे रे भगवत: अंतिः दीप० मंगल कोटि वधाई, गाथा-७. ३. पे नाम. नवपद गहुंली, पृ. २अ २आ, संपूर्ण मु. आत्माराम, मा.गु., पद्य, आदि सहियर चतुर चकोरडी, अंति दीजे हो सहि सुख अनंत, गाथा- ७. ४. पे. नाम महावीरजिन गहुंली, पू. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि मंगलीक वाणी रे वाली अंतिः परमानंद पद वरीय, गाथा-५. 3 प्र. वि. हुंडी सोलासत्याछ, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६.५x१२, १८४३२-३८). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि प्रभु मारो दीइ ; अति नवे रे दरसण जय जयकार, गाथा-६. ८६५०९. (७) १६ सती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२३ मध्यम, पृ. १, ले. स्थल कीसनगड, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, . १६ सती सज्झाय, वा. उदबरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि आदीनाथ जीणवर आदिबाहू; अंति: उदयरतन ० सुखसंपदा हे, गाथा- १६. ८६५०२. औपदेशिक सज्झायय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२७.५x१२.५, १५४३६). ९. पे नाम औपदेशिक सज्झायनिंदा परिहार, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि तीर्थंकरदेवन होजी, अति नरक नीगोदा वास, गाथा १५. ८६५०३. प्रदेशबंध वर्गणास्वरूप विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२७.५X१३, १४४४१). २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चेत कह चीतमाहि बीचार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा- १ अपूर्ण तक लिखा है.) प्रदेशबंध वर्गणास्वरूप विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि जिम कुचिकर्णश्रेष्टी अंतिः सासोस्वास ग्रहण, (वि. अंत में अंकमय कोष्ठक दिया है.) For Private and Personal Use Only ८६५०४. १५६ प्रकृतिस्थितिबंध विचार, संपूर्ण, बि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२७४१३, १६x४०) " , १५६ प्रकृतिस्थितिबंध विचार, मा.गु., गद्य, आदि: विघ्नपंचक ५ आवरणि १४; अंति: भागनो जाणवो पूर्ववत्. ८६५०५. मुनिसुव्रतजिन व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२८x१२.५, १६४३२). १. पे नाम मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मुनिसुव्रतसामी हो के अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, गाथा-३ तक लिखा है.) २. पे नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: विश्वपति केवल पाय; अति ग्रह्मामे तुम्ही देवना, गाथा ११. ८६५०६. (+) निर्वाणीजिन व दामोदरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७.५X१३.५, १३x४०-४२). १. पे. नाम निर्वाणीजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. . देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमुं चरण परमगुरू; अंति: देवचंद्र० पुरणथानें, गाथा- ९. २. पे नाम, दामोदरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, मु. मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि सुप्रतीते हो करी धिर, अंति: देवचंद्र पद कारणे, गाथा ५. ८६५०७. (+) स्तवन, पद व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. पाठ., जैवे., (२७४१३.५, १३-१४४३६-४०). " १. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १अ संपूर्ण, प्रले. मघा मयाराम ठाकोर भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य. ५. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ पहिं., पद्य, आदि: जाग जाग रयन गई भोर; अंति: ज्यं नीरंजन पावे, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक पुरस मे नवलो दीठो; अंति: हेत भणि गुणरागी रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पावापुरमा वीरजिणेसर; अंति: जिनचंद्र० चीत लावां, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: ओरन से रंग न्यारा; अंति: रुपचद० तुमारी हे, गाथा-८. ५. पे. नाम. स्वयंप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी स्वायंप्रभु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ तक है.) ८६५०८.(+) जतीधर्मछत्रीशि, संपूर्ण, वि. १९३३, चैत्र शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, १५४४६-५०). यतिधर्मबत्रीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: भाव जती तेहने कहो; अंति: जश० ते पामे शिव सात, गाथा-३२. ८६५०९. अल्पबहुत्व ९८ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२८x१२.५, १९४५०-६०). ९८ बोल यंत्र-अल्पबहत्व, मा.गु., को., आदि: पहिले बोलें मनुष्य; अंति: सर्व जीव विशेषाधिक. ८६५१० (+#) सेजाय रास, अपूर्ण, वि. १९४३, फाल्गुन कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ६-३(१,३ से ४)=३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४१३, १४४३२-४०). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदिः (-); अंति: समयसुंदर० आनंद थाय, ढाल-६, (पू.वि. ढाल-२ के दोहा-६ तक व ढाल-३ की गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-५ की गाथा-१ अपूर्ण तक नहीं है.) ८६५११. ४५ आगम श्लोक संख्या, १४ पूर्वनाम व साढापचवीस आर्यदेस, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२७४१३, १०x२५-३०). १. पे. नाम. ४५ आगम श्लोक संख्या, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: आचारंगसूत्र २५००; अंति: न हुवे एह महिलाओ. २. पे. नाम. १४ पूर्व नाम, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उपायपूर्वमाहे द्रव्; अंति: कर पुरव संख्या जोड. ३. पे. नाम. साढापच्चीस देशनाम व ग्रामसंख्या, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: १ मगधदेस राजग्रही; अंति: (-), (पू.वि. २०-सिंधुदेश तक है.) ८६५१२. (+) २४ जिन कल्याणक स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३,११४२४-२८). २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणमी जिन चोवीसने; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ की गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ८६५१३. २४ जिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:त्तवन., दे., (२६.५४१३, १४४२५-३०). २४ जिन सज्झाय, मु. हेत ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीआदनाथ अजित संभव; अंति: रीष० सिवसुख पाइए, गाथा-९. ८६५१४. (#) एकादशी नमस्कार, रोहिणी थुई व महावीरजिन पारणं, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१३, १२४२६-३०). १. पे. नाम. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक वीरजी प्रभु; अंति: खिमा० सफल करो अवतार, गाथा-९. २. पे. नाम. रोहीणीतप स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रोहिणीतप स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नख्यत्र रोहिणी जे; अंति: पदमवीजेय गुण गाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-पारणाविनती, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोमासी पारणौ आवै करे; अंति: सुभवीर वचनरस गावे रे, गाथा-८. ८६५१५. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२८x१३, ९४३५). औपदेशिक सज्झाय-प्रहेलिका, मा.गु., पद्य, आदि: एक बलीओ रे जग मुझ; अंति: हो भवजल पार के, गाथा-७. ८६५१६. (#) मल्लीजिन व शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. भगवान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ३८x११-१७). १.पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संयम लेवा मलि उमाह्य; अंति: कांति० तुं ही ज नेठ, गाथा-५. २.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रामानंदन पापनिकंदन; अंति: लइ कांति धवल गुणीस, गाथा-६. ८६५१७. (+) एकादशीनी थुई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १४४३२-३६). मौनएकादशीपर्व स्तुति, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम बोले ग्रंथ; अंति: लालविजय० विघन निवारी, गाथा-४. ८६५१८. २४ जिन लंछन चैत्यवंदन व नवपद सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, ९-१०४३६-३८). १.पे. नाम. २४ जिन लंछन चैत्यवंदन, प. १अ, संपूर्ण. ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: आदिदेव लंछन वृषभ; अंति: शुभने सुख होज्यो, गाथा-९. २. पे. नाम. सिद्धचक्र सज्झाय, पृ.१आ, संपूर्ण. मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल; अंति: नवपद महिमा जाणजो जी, गाथा-५. ८६५१९. आदिजिन वीनती व सिद्धचक्र स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१२.५, १५४३८). १. पे. नाम. आदिश्वरजी विनती, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिजिनविनती स्तवन-शत्रंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: (-); अंति: विनय करीने विनवे ए, गाथा-५७, (पू.वि. गाथा-३८ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: वीरजिणेशर उपदिशि रे; अंति: सिद्धचक्र जय जयकार, गाथा-१३. ८६५२० (+-) नेमिजिन स्तवन, औपदेशिक सज्झाय व लीलोतरी नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२७४१३, १२४२६-२८). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण... नेमराजिमती पद, मा.गु., पद्य, आदि: हेरे जीरे आडंबर कर; अंति: धरमदना पुन अधीक जागे, गाथा-४, (वि. अंतिम दो गाथाओं में गाथांक नहीं लिखे हैं.) २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-समता, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: हो प्रीतमजी प्रीत की; अंति: चिदानंद निज घर आवे, गाथा-७. ३. पे. नाम. लीलोतरीनी विगत, पृ. १आ, संपूर्ण. लीलोतरी नाम, मा.गु., गद्य, आदि: कोलु१ तुरिया२ कारेला; अंति: वालोलनी जाति१५. ८६५२१. ऐमंतोरषी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १२४३५-४०). For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: लखमीरतन०अयमंतो अणगार, गाथा-२०. ८६५२२. प्रतिक्रमण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२, १२४३४-३८). प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गोयम पूछे श्रीमहावीर; अंति: जस० जन भवजल पार रे, गाथा-१३. ८६५२३. (+) मौनएकादसीनं चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, ११४२८-३२). १५० जिन कल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक जग जयो; अंति: शिवलक्ष्मी वरीजे, गाथा-१६. ८६५२४. (4) ऋषभाननजिन स्तवन, औपदेशिक दहा व २० स्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, ११४४२). १.पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक दहासंग्रह-विविधविषयोपरि*, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (-), गाथा-१. २.पे. नाम, ऋषभाननजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीऋषभानन गुणनिलौ; अंति: परम तुमे मीत हो, गाथा-७. ३. पे. नाम, २० स्थानकतप मंत्र काउसग्ग संख्या सहित, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण; अंति: नमो तित्थस्स २०लो २०. ८६५२५ (#) खंधकमुनि चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सायपुरा, प्रले. भवानीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:खंदक., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२.५, १४४४०-५०). खंधकमुनि चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: सारतीनगरी सुवावणीजी; अंति: कोय करम न छुटै केहनै, ढाल-४, गाथा-२४. ८६५२६ (+) औपदेशिक सज्झाय, अपर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १.प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, १७-२०४३६-४०). औपदेशिक सज्झाय-जीव, मा.गु., पद्य, आदि: जीव तुं सीधने संभार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ तक है.) ८६५२७ (+) पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १९२९, पौष कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. अगरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ६x२३-२५). पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल, रा., पद्य, आदि: तेविसमा जिनराज जोरी; अंति: ऋद्धि० दीज्यो दीदार, गाथा-३. ८६५२८. पंचमआरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १३४३७-४७). पंचमआरा सज्झाय, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: जिनहर्ष वयण रसाळ, गाथा-२१. ८६५२९ (#) च्यार शरणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, १४४३०-३६). ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुझने च्यार सरणां; अंति: समयसुंदर०भवनो पारोजी, अध्याय-४, गाथा-१२. ८६५३०. नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, १२४२८). नेमराजिमती सज्झाय, मु. चंदनलाल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम मनाउ श्रीनवकार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१९ तक लिखा है.) ८६५३१. देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३४-३६). महापरिठवण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: स्नानपूर्वक नवो वेष; अंति: उपर वडी सांति केहवी. ८६५३२ (+) तीर्थमाला स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३९-४७). तीर्थमाला स्तव, सं., पद्य, आदि: पंचाणुत्तरशरणा; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-२३. ८६५३३ (+) संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३४). संभवजिन स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहब सांभलो रे संभव; अंति: न्यइ० देवाधिदेवा, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६५३४. (#) सिद्धाचलजीनी थोय, संपूर्ण, वि. १९३०, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. राधनपुरनगर, प्रले. पं. गुलाबविजय (गुरु पं. वीरविजय); गुपि. पं. वीरविजय (गुरु पं. उदयविजय); पठ. सा. जतनश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७४१३, ११४३१-३५). शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल निला मुनि; अंति: सारि चकेसरि रखवाली, गाथा-४. ८६५३५ (+) पाखीप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९१८, चैत्र शुक्ल, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वीकानेर, पठ. श्रावि. वृद्धिबीबी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पाखीपडिक. स्थान बिकानेर के लिए वीकार लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२८.५४१३.५, १३४३४-३८). पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पुहिं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तिहां वंदित्तूसूत्र; अंति: देवसीकी विधि करै, (वि. मूल का प्रतीक पाठ है.) ८६५३६. (+) मौनएकादशीपर्व गणj, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १२४३०-३६). मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को., आदि: श्रीमहायशसर्वज्ञाय; अंति: (-), (पू.वि. 'श्रीधर्मेंद्रनाथाय नमः' तक है.) ८६५३७. पार्श्वजिन स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१२.५, १५४३४-३७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८५३. सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा प्रभ; अंति: पार्श्वजिनं शिवम्, श्लोक-७. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: नवपंचम गुण जाणकै; अंति: (-), गाथा-५. ३. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: जपाकुसुमसंकास; अंति: ब्रूयान्न संसयः, श्लोक-१३. ४. पे. नाम. प्रहेलिका दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रहेलिका संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: सजन किम नवि विसरे; अंति: (-), दोहा-३. ८६५३८. (4) चउद सुपन्ननी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, ११४४०-४४). १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: देवतिर्थंकर केरडि; अंति: लावनसमे इम भणे ए, ढाल-४, गाथा-४६. ८६५३९ (+) हितशिक्षाद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४४४-५२). हितशिक्षाबत्रीसी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सकल विमल गुन कलित; अंति: क्षमादिकल्यान सुबंदन, गाथा-३३. ८६५४० (+) स्थूलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १३४२४-३२). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, आ. भावहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: योग ध्यानमा जोडी; अंति: भाव नमे नीत पाअ, गाथा-१४. ८६५४१ (+#) गौतमस्वामी रास व लालविजयजी का दस्तावेज, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १४-१५४३८-४६). १.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८३४, पौष शुक्ल, ५, पठ. श्राव. न्यांनजी, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, ढाल-६, गाथा-५६. २.पे. नाम. लालविजयजी का दस्तावेज, पृ. ३आ, संपूर्ण, प्रले. पं. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. विक्रम संवत् १९४६ श्रावण शुक्ल १ रविवार के दिन लिखा गया है. पं. लालविजय, मा.गु., गद्य, आदि: आ मारी गादी सरसामान; अंति: ये च्यार हत्या छे. ८६५४२. (+) बीजतिथिपर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. प्रसन्नश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२,११४२५-२७). For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ११७ बीजतिथिपर्व चैत्यवंदन, मु. नयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसमा जीनराजजी; अंति: नाये० मुजने सीव एक, गाथा-११. ८६५४३. जीवअजीव भेदविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, १५४१३). १.पे. नाम. ५६३ जीवभेद यंत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., को., आदि: भरतक्षेत्र महाविदेह; अंति: अंते अधोग्राम मुठिमा. २.पे. नाम. ५६० अजीवभेद यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ५६० अजीव भेद यंत्र, मा.गु., यं., आदि: भरतक्षेत्र जंबूद्वीप; अंति: द्वीपमै मुट्ठी मे. ८६५४४. (+#) २० विहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, २०४१५-१७). २० विहरमानजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंधर जुगमंधर; अंति: खेमाविजय०दुख टाले रे, गाथा-७. ८६५४५. पिंडविशुद्धि सप्ताधिकचालीसदोष चत:पदी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४११.५, १३४२८-३४). पिंडविशुद्धि प्रकरण-४२ आहारदोष सज्झाय, संबद्ध, ग. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सरसती सामिणि प्रणमी; अंति: नित्य० होज्यो आपणे, गाथा-५८. ८६५४६. औपदेशिक हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, अन्य. सा. संतोषश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, ३४२४). औपदेशिक हरीयाली, पं. वीरविजय, मा.ग., पद्य, आदि: चेतन चेतो चतर; अंति: पीधानी न करो खामी, गाथा-९. औपदेशिक हरीयाली-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: हे प्राणी चतुर नाच; अंति: बीरविजय गणी कहै छइं. ८६५४७. २० स्थानकतप व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३६-४०). १.पे. नाम. २० स्थानकतप स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. श्रीमनमोहनचिंतामणिपार्श्वजी प्रसादात्. ___पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुअदेवी समरी कहुं; अंति: खीमाविजय० सुजस जमाव, गाथा-१४. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहालुरे बीजा; अंति: रे आनंदघन मति अंब, गाथा-६. ८६५४८. (+#) ऋषभदेव विवाहलो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप __ गए हैं, जैदे., (२६.५४१२.५, ९४४०-४८). आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहत कविता नर ऋषभदासो, गाथा-७२, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) ८६५४९ नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नवतत्व०., जैदे., (२६४१२.५, २१४४५). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध', रा., गद्य, आदि: पेलो जीवतत्व१ अजीव; अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय अजीवद्वार तक है.) ८६५५०. अर्बुदगिरि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२७४१२, ११४३३). अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. अमीसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: समरि सरसति मायने; अंति: अमीसागर०संघ मंगल करु, ढाल-२, गाथा-४२. ८६५५१. ज्ञानपंचमी क्रियाविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२६.५४१३, ११४४०). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम पवित्र; अंति: श्री केवलज्ञानाय नमः, (वि. कृति में देवचंदजी व विनयचंदजी के स्तवन भी मिलते हैं.) ८६५५२. (+) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९११, भाद्रपद कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १३४३१). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: दीक्षा लेतां एतला; अंति: १ नोकारवाली गणाविइं. For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६५५३. (#) मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रावण कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४१२.५, ११४३०-३५). मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल-४, गाथा-४२. ८६५५४. विनय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१३, १३४४०). विनय सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजंबू मुनि विनव्य; अंति: साचा वीर वचन रे, गाथा-११. ८६५५५. (+) प्रदेशीराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५,१३४३१). प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: स्वेतंबिका नगरी; अंति: कवियण सुभ उपगार रे, गाथा-१९. ८६५५६. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १६४४१-४५). १. पे. नाम, सिखामण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपता त्याग, म. लब्धिविजय, मा.ग., पद्य, आदि: बापलडी रे जीभलडी तुं; अंति: कहइ सुणि प्राणी रे, गाथा-८. २.पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछ दे मात मलार बहु; अंति: लीला लखमी घणी जी, गाथा-१७. ३. पे. नाम. मनकमुनि सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो मनक महामुनि; अंति: पामो सदगति सारो रे, गाथा-१०. ४. पे. नाम. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन धनाशालिभद्र; अंति: लबधिरयणी दिह जो रे, गाथा-१३. ५. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, ग. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जोइ जतन करि जीवडा; अंति: इम कहे केवलनाणी रे, गाथा-११. ८६५५७. नवपद सज्झाय व सिद्धचक्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सिद्धचक्रनीस., दे., (२७४१२.५, १२४४१). १.पे. नाम. नवपद सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल; अंति: महिमा जाणज्यो जी, गाथा-१०. २. पे. नाम. सिद्धचक्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारद माय प्रणमी; अंति: केसर० तुज लली लली जी, गाथा-९. ८६५५८. बार भावना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२७४१२.५, १३४६०-६७). १२ भावना पद, रा., पद्य, आदि: हां रे जीव गढ मड पौल; अंति: मोरा देवी माताने भाई, भावना-१२. ८६५५९ (+) अट्ठाई स्तवन, एकादशीपर्व सज्झाय व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४११, १०४४७). १. पे. नाम. अट्ठाई स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: स्यादवाद सुधोदधि; अंति: बहु संघ मंगल पाईया, ढाल-९, गाथा-५४. २. पे. नाम. एकादशीपर्व सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे वीरने सुणो; अंति: रुप सज्झाय भणी, गाथा-१५. ३. पे. नाम, धर्मना आठ बोल, पृ. ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८ बोल- धर्मपरिवार, रा., गद्य, आदि: १ धरमनो बाप जाण पणो; अंतिः ८ धर्मनो मुल क्षमा. ४. पे नाम, पापना ८ बोल, पू. ४आ, संपूर्ण ८ बोल-पापपरिवार विषयक, रा., गद्य, आदि: १ पापरो बाप लोभ; अंति: ८ पापरो मुल क्रोध. ८६५६०. दीवानी सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. राधनपुर, प्रले. उजमलाल नरभेराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२७४१३, १२x२९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय-दीवा, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दश धरुवे दीवो बले ए; अंतिः प्रगटे घटमां सदाय, ढाल - २, गाथा - १५. ८६५६१. जलयात्रा वरघोडा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सीताराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६.५X१२.५, १२X३२-३५). जलयात्रा वरघोडा स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हवे सामग्री सवि सज; अंति: सेठ धरता धरमनो टेक, गाथा - १५. ८६५६२ सिद्धाचल स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२६१२.५, १०x४०) शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल निला मुनी; अंति: सारी चकेसरी रखवाली, गाथा-४. ८६५६३. (#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१३, १४X३१-३५). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रणमी पास जिनेसर, अंति गुणविजे रंगे मुनी, डाल- ६, गाथा ४९. ८६५६४. लावणी, पद, गजल व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३६, वैशाख कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, ले. स्थल. बुदीगाम, प्र. वि. हुंडी पदराग लाव., दे. (२६.५X१२.५, २०४४०-४५). "" १. पे नाम साधारणजिन लावणी, पृ. १अ संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: नाथ मारी अरजी सुण; अंति: ते पीण चिंत लीजो, गाथा-५. २. पे नाम कलियुग सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. मु. रामचंद, रा., पद्य, आदि: हलाहल कलजुग चल आयो; अंति: बेटी धनवंत रह दुखीया, गाथा-६. ३. पे. नाम. पुण्यपाप पद, पू. १अ १आ, संपूर्ण. मु. दीपचंद, पुहिं., पद्य, आदि दोष बात सब जुग मे अंतिः चरणो म आजर खडा, गाथा-४. ४. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रत में "मुसलमानी पद" नाम दिया है. पुहिं., पद्य, आदिवासी मेरी खरी प्यारी अंति होकर अटल अखाडेवा, गाथा-८. " ११९ ५. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाब, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. दोलत, पुहिं., पद्य, आदि: गजसुखमाल कवर बडभागी; अंति: मुक्तपुरी जिन पाइ, गाथा-५. ६. पे नाम. १० बोल सज्झाय औपदेशिक, पृ. १आ, संपूर्ण. १० बोल औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मीली रे जोगाइ दस बोल; अति धारो न दिस को एरे, गाथा ९. ७. पे. नाम. गजल मुसलमानी, पृ. १आ, संपूर्ण. गजल मुसलमानी औपदशिक, मा.गु., पद्य, आदि टूक लोटत कम चीपडी, अंति ए माया तुज जूबापन आइ. ८६५६५. सिद्धाचल व नेमराजिमति स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२५.५x१२.५ १२४३५). १. पे. नाम सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, ग. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामीजी मुजने; अंति: किर्तिविजे उवज्झायरे, गाथा-७. २. पे नाम. नेमराजमति स्तवन, पृ. १-१ आ. संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन बावीसमु जिनराज; अंति: मुगती पधार्या रे लोल, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६५६६ (+) बंधउदयउदीरणासत्ता यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५- २ (१ से २) = ३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५X१२.५, १७X१८-४९). बंधउदयउदीरणासत्ता यंत्र- ८ कर्मविषये, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८६५६७. (*) अजितनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१२.५, १४४२६-३०). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजितजिन स्तवन, मु. शिवरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि सायबा रे अजीत जेणंदस, अंति: ज सीवरतन गुण गाया रे, गाथा - १५. ८६५६८. गुरुविहारविनती गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि; पठ. श्रावि. समरथबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५x१२.५, १२४३५). गुरुविहारविनती गीत, मा.गु., पद्य, आदि श्रीसंखेश्वर पाय नमी अंतिः जिम करो आज विहार, गाथा-२०. ८६५६९. (#) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६८, आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. अंजारनगर, प्रले. पं. क्षमाविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६१२, १३४३३). धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. नेम, मा.गु., पद्य, आदि: पूछे प्यारीने धन्नो; अंति: दारा प्याराजी हो राज, गाथा-१७. ८६५७० (+) जिनप्रतिमा हुंडी, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी हुंडी पत्र., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १४X३४-३७). जिनप्रतिमाहुंडी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, बि. १७२५, आदि सुयदेवी समरू हियडे, अंति: जिनहरख कहंत के, गाथा-६७. ८६५७१. (+#) भक्तामर स्तोत्र का गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. छगनी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१२, १६४३४). "" भक्तामर स्तोत्र-गीत, संबद्ध, ग. सोमकुंजर, मा.गु., पद्य, आदि: मन सीवरु चकेसरी मन; अंति: इम बोलै हो सांतसूर गाथा - १६. ८६५७२. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२६.५x१२.५, ११४४२-४५). मिजिन स्तवन, मु. अमृतविमल, मा.गु. पद्य वि. १९वी आदि सखी आइ रे नेमनी जान; अंति: अमृत विमल पद " बरि, गाथा- ७. ८६५७३. महावीरजिन जन्मबधाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २६१२.५, १८x२५). महावीरजिनजन्म बधाई, रा., पद्य, आदि: (१) बधाई तीनो लोक मे हुई, (२) त्रिसला दे माता; अंति: भवसागर से त्यार, गाथा - १३. ८६५७४ (-) जमाली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, वे., (२५X१२, १४x२५-३०). जमाली सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: सासणनायक श्रीवीर, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८६५७५. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५५, चैत्र कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. ३ ले. स्थल. डुंगरपुर, प्रले. पं. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२६४१२, ११४३७-४१). ऋषिमंडल स्तोत्र-वृहद् आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः ॐ आचंताक्षरसंलिक्ष; अंतिः परमानंद नंदितः, श्लोक - ७२, ग्रं. १५०. ८६५७६. (+) तीर्थमाल मंगलाष्टक व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६.५X१२, १६X३८-४५). १. पे. नाम जिनाष्टक स्तोत्र, पू. १अ, संपूर्ण, २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि नतसुरेंद्रजिनेंद्र: अंतिः जिनप्रभसूरि० मगहर, श्लोक ९. २. पे. नाम. तीर्थमाल मंगलाष्टक, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि नित्य श्रीभुवनाधि; अति: श्रीधर्मसूरिभिः, श्लोक १६. For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १२१ ३. पे. नाम. शास्वता जिनचैत्यालय स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __ तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दर्शनं देव देवस्य; अंति: पापतरोर्फलमिदृशं, गाथा-४०. ५. पे. नाम. औपदेशिक सुभाषित संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. सुभाषित संग्रह, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: आर्तोदेवानमस्यंति तप; अंति: चतर्थे किं करिष्यति. ८६५७७. छ आवश्यक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३२, पौष शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, प. ३, ले.स्थल. रीणी, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, १०४३४-४०). ६ आवश्यकविचार स्तवन, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोविसे जिन चितवी; अंति: तेह सिवसंपद लहै, ढाल-६, गाथा-४३. ८६५७८ (+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन व पंचमीतिथि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ११४३५). १. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: साध० सीस कहे करजोड, गाथा-५. २.पे. नाम. पंचमीतिथि सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंचमीतिथिपर्व सज्झाय, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु चरण पसाउले रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८६५७९ (#) दीपावलीपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, २२४४५). दीपावलीपर्व सज्झाय, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवंत रो गण; अंति: करी जु पावो भोपार, गाथा-२७. ८६५८०. द्वारिकानगरी ऋद्धिवर्णन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, २०४४०). द्वारिकानगरी ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. जयमल, मा.गु., पद्य, आदि: बावीसमा श्रीनेमिजिण; अंति: रीष जमल कहे छे ___ एम ए, गाथा-२७. ८६५८१. पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. कालिदास प्राणनाथ व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.५, १२४२७). पार्श्वजिन स्तुति-जीरावला, मु. वीरमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पास जीरावलो पुजी; अंति: राखे सासन सुख संपदा, गाथा-४. ८६५८२. आदिजिन जन्मोत्सव पद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४१२, १६x४७-४८). १.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद-जन्ममहोत्सव, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: जाके जनम समय सुरराज; अंति: उपमा त्रिलोकमांहि, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कर्मविशे, म. केसोदास, पुहिं., पद्य, आदि: उदय करमगति नाहि टरी; अंति: केसोदास करनी जीव धरी, गाथा-६. ३. पे. नाम. समवसरण पद, पृ. १अ, संपूर्ण. __ मु. माल, पुहिं., पद्य, आदि: सुरअसुर नरपती सकल; अंति: भगवंत को वण्यो ऐसो, गाथा-२. ८६५८३. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२.५, १८x१५-४१). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामी; अंति: ७४ श्रीजिनहर्षसूरि. For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६५८४.) शांतिजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्रले. श्रावि. रायकुंवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संतनाथ., अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५X१२, १०x४५). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: तुं धन तुं धन तुं धन; अंति: बतावो तो म सउ भरपामी, गाथा-५. २. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि प्रात उठ श्रीसंतजिनं अंति पापी लाय कषाय टली, गाथा ५. ८६५८५. (+) नेमराजिमती सज्झाय व होरी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५X१२.५, १३४३०-३४). १. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर स्याम सनेसो; अंति: पहला मुक्ति गई ललना, गाथा १०. २. पे. नाम. होलि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. होलिकापर्व सज्झाय, मु. जिनदास, रा., पद्य, आदि: नेमीसर बनखंडरो बसीईय; अंति: दुखीयाकु दरस दइयो, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमराजिमती होरी, पृ. १आ-२अ संपूर्ण मु. धनिदास, पुहिं., पद्य, वि. १९१३, आदि: सब रुत को सिणगार; अंति: धनिदास० सुणु चितलाई, गाथा-१०. ४. पे नाम, नेमिजिन होली, पृ. २अ, संपूर्ण, नेमिजिन होरी, मु. मूलदास, पुहिं., पद्य, आदि: देखे सुनया होली खेल; अंति: साधुचरण चीत लाया री, गाथा-६. ८६५८७ (+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, अन्य. सा. प्रसन्नश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे... (२५.५X१२, १०X२५-३० ). पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल परव सणघारहार; अंति: पालतां होवे जय जयकार, गाथा - १२. ८६५८८. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. १, दे. (२५४१२, १२४३०-३५ ). ८६५९०. पोखणाद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७१२.५, १३x४५). पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंगकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सरसति सांमण ध्याऊ; अंति: गंगकुसल गुण गाया हो, गाथा - १५. ८६५८९. (*) २२ अभक्ष ३२ अनकाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४२, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. अबीरचंद ऋषि; पठ. मु. सुमतिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२६X१२.५, १२X३०). २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मु. समरसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर पाय नमी; अंति: समरचंदसूर उच्चरै ए, गाथा-७. " १. पे नाम प्रभु पोंखणां, पू. १अ संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन -पोंखणा, मा.गु., पद्य, आदि वेवाण उठ तुं वेली; अंति: सरसु प्रभु पद पावति गाथा १२. २. पे नाम प्रभु पोंखणा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रभु पोखणा स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे इंद्र पुछे अति ओछ्व आज अति घणो रे, गाथा १०. ८६५९१ (#) नेमनाथजीरो बारेमासो, संपूर्ण, वि. १९५४ फाल्गुन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, उदयपुर, प्रले. पं. गंभीरमुनी (खरतर गच्छ); पठ. श्रावि. कानबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. धरमसालायां मध्ये. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे.. (२७४१४.५, १२४३०). नेमराजिमती बारमासा, मु. देव, पुहिं., पद्य, आदि का दुरी नेमनाथ, अति: देव तुमारा जसकुं, गाथा- १३. " For Private and Personal Use Only ८६५९२. (+) साधुजी निरवाण विधि, संपूर्ण, वि. १९५६, फाल्गुन कृष्ण, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. वीजापुर, प्रले. हाल मालजी बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७.५X१४, १५X३७). साधुकालधर्म विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि ज्यारे काल करे त्यार; अंतिः ओघो जमणी कोरे राखवो. Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १२३ तर ८६५९३. (-) जीव रास, संपूर्ण, वि. १९५२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पुसल सीयाणा वालारी परतसै श्री भनमालरापुसाल माहसु प्रत काढने लखीयसे., अशुद्ध पाठ., दे., (२८x१५, १४४२८). पद्मावती आराधना, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छूटे ते ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. ८६५९४. (+) मौनएकादशी व २० स्थानकतप गणणं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. पं. सुरेंद्रजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३.५, १२४३२). १.पे. नाम, मौनएकादशी गणj, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत; अंति: श्रीअरणनाथाय नमः. २. पे. नाम. २० स्थानक गणj, पृ. ३आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गणj, प्रा.,मा.गु., को., आदि: ॐ नमो अरिहंताणं २०००; अंति: तिथयस्स लोगस्स २०. ८६५९५. २४ दंडक २४ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४८ हैं., दे., (२७४१४, ६४१३-५४). २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को., आदि: सरीरद्वार १ अवगाहना; अंति: (-), (वि. अंतिम वाक्य अंकमय है.) ८६५९६. (+) साध्वी निर्वाण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३.५, १२४३५-४१). __ साध्वीकालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, आदि: कोटी गण वयरी शाखा; अंति: उघाडु रखाय नहि. ८६५९७. धर्म भावना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. दुर्लभराम रायचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१४, १५४४२). धर्म भावना, मा.गु., गद्य, आदि: धन्य हो प्रभु संसार; अंति: करीने वंदणा होजो. ८६५९८. दोहा संग्रह, प्रहेलिका, कवित्त व सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२८x१५, १२४२८). १.पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.. क. गद, पुहिं., पद्य, आदि: काली कु दर्शन त्रीया; अंति: नरने नर ए किम गम्यो, गाथा-२. २. पे. नाम. प्रास्ताविक प्रहेलिका, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रहेलिका दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: बारे सरोवर तेर हंस; अंति: पंडित करो विसार, दोहा-१. ३.पे. नाम, औपदेशिक कवित्त, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह , पहि.,मा.ग., पद्य, आदि: दिन दोरा दसवी कहो; अंति: तके निर्धन करथपे, गाथा-२. ४. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल वंदो रे; अंति: भक्ति करुं इक तारी, गाथा-५. ८६५९९ (2) उपदेश सत्तरी, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रावण शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल, भीनमाल, प्रले. मु. मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२८x१५, १२४३०). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोयो आपणी मन; अंति: जिम पामो भवि पार ए, गाथा-५८. ८६६०० रुक्मणीसती सज्झाय व औपदेशिक दहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१४.५, २०४१५). १. पे. नाम. रुक्मणीसती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामोगाम; अंति: जाइ राजविजे रंगे भणे, गाथा-१३. २.पे. नाम, औपदेशिक दहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: सुख मे सजन बोत है; अंति: विपत कसोटि कीने, गाथा-१. ८६६०१. मेतारजमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४१४, २७४१५). मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: संजमगुणना आगरु जी; अंति: राजविजय० ए सज्झाय, गाथा-१४. ८६६०२. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मंगल मनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३.५, १४४३५). For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल पर्व श्रृंगारहार; अंति: प्रमोद० जय जयकार, गाथा-१३. ८६६०३. स्नात्रपूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४१४, १२४२७-३०). स्नात्रपूजा, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: (१)प्रथम बाजोठ३ ते मध्य, (२)मुक्तालंकार विकार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आदिजिन-मरुदेवामाता चौद स्वप्न ढाल की गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) ८६६०४. पौषधविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. कीर्तहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पोसहविधि., जैदे., (२७४१४, १८४५४). पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इरियावही पडिकमी ४ नव; अंति: भणीजे माला फेरीजै, (वि. पौषध-पडिलेहण देववंदनादि विधि.) ८६६०५. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१४, १२४३४). शत्रंजयतीर्थ स्तवन, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: जे कोइ सिद्धगिरिराज; अंति: लहे शुख साजने रे लो, गाथा-१५. ८६६०६. चिंतामणिपार्श्वजिन छंद, सिद्ध स्तुति, सविधिजिन सतवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. ४, अन्य. श्रावि. रुखमणीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३, १३-१५४३०-३५). १.पे. नाम. चिंतामणी पारसनाथनो छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-चिंतामणि, म. चेतन, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: कल्पवेल चिंतामणि; अंति: समरो मनवचकाया, ढाल-२, गाथा-२६. २. पे. नाम. सिद्धभगवंतनी स्तति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सिद्धपद स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे तरण तारण दुख; अंति: पुजा पुजो देव नीरंजन, गाथा-१५. ३. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: बाजे रे नगारा की ठोर; अंति: रूपचंद० देव न चाउ ओर, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, शंकर, मा.गु., पद्य, आदि: जेने परनारीसु प्रीत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक लिखा है.) ८६६०७. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२१, आश्विन कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जैनशाला, प्रले. श्राव. प्राणजीवनदास डाह्याभाई सा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीमहावीरसामी प्रसादात्. नीजवीद्यार्थिपठनार्थ, जैनसाला लीपीक्रते., दे., (२७.५४१३.५, ११४२५). औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधनां; अंति: उदयरतन उपसम रस नांही, गाथा-६. ८६६०८. (#) शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३.५, १०४२०). शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सीतलजीनवर सहज सुरंगा; अंति: कुशल गुण गाया रे, गाथा-१०. ८६६०९ पंचमाआरानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७X१४, ११४४०-४३). पंचमआरा सज्झाय, मा.ग., पद्य, आदि: वीर कहे गोतम सूणो; अंति: देखिये भाखा वयण रसाल, गाथा-२१. ८६६१०. प्रत्याख्याण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२६.५४१३, ११४२८). प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: धुरि समरूं सामिणी; अंति: सयल सुख संपति वरौ, ढाल-२, गाथा-१७. ८६६११. नेमराजिमती बारमासो, संपूर्ण, वि. १८७२, फाल्गुन कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४१४, १८४३५). नेमराजिमती बारमासा, मु. हर्षकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: हो स्वामी क्युं आया; अंति: नेमजी पुरो मनकी आसा, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १२५ ८६६१२. संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२७४१४, १३४२६). संभवजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे लाला संभवजिन; अंति: करीये संघ कल्याण रे, गाथा-९. ८६६१३. श्रावक ३ मनोरथ व पोसह सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३५, पौष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:मनोरथ., दे., (२६.५४१४, १७४३४). १.पे. नाम. श्रावक ३ मनोरथ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. सा. रत्ना गणिणि, प्र.ले.प. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: पहेले मनोरथे श्रमणो; अंति: एहवो मुझने हज्यो. २. पे. नाम. पोसह सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. विरमगाम, प्रले. रामजी वीरचंद भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं, गाथा-५. ८६६१४. दिग्पाल आह्वान व भतबली मंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२६४१३, १२४३०-४०). १.पे. नाम, दशदिग्पाल आह्वान, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. १० दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: पुजा गृहं स्वाहा, पद-१०, (पू.वि. अष्टम दिक्पाल मंत्र अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, भूतबली मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. भूतबली वासक्षेप मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐनमो अरीहंताणं ॐनमो; अंति: कारिणो भवंतु स्वाहा. ८६६१५ (+) १० का ३५ बोल व नरभवरत्नचिंतामणि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३, १५४३०). १.पे. नाम. १० का ३५ बोल, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. १० वस्तु ३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोले १० यतिधर्म; अंति: आवे मोहसुं आवे. २.पे. नाम. नरभवरत्नचिंतामणि सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृति के प्रारंभ में "इकविसजातरो पानी" ऐसा लिखा है परंतु भिन्न सज्झाय है. औपदेशिक सज्झाय-नरभवरत्नचिंतामणि, मु. अभयराम, मा.गु., पद्य, आदि: आ भव रत्नचिंतामणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ८६६१६. (+) उपदेशमाला सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३.५, ११४३६). पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. ८६६१७. गौतमस्वामी गहंली व वीरजिन गहंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१४, १४४२८). १. पे. नाम. गौतमस्वामी गहुँली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आपापानयरी उद्यानकै; अंति: सुहजै भणैरे लो, गाथा-५. २. पे. नाम. वीरजीनी गहुँली, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन भास, आ. लक्ष्मीसरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आया रे गुणशील; अंति: लक्ष्मीसूरी गुण ठाण, गाथा-५. ८६६१८. समयसुंदरोपाध्याय कृत पट्टानुक्रमतः, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२६.५४१३, १४४४२). पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामि१; अंति: श्रीजिनकीर्तिसूरी७४, अंक-७४. ८६६१९ (+) गौतमस्वामी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४१, पौष शुक्ल, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मेशाणा (महेशाणा, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१३.५, १०x२५). गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. ८६६२०. धरणेंद्रसूरिश्वर व मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१३.५, ११४३३). १. पे. नाम. धरणेंद्रसूरिश्वर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. पं. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची धरणेंद्रसूरिगुरुगुण सज्झाय, मु. चिमन, मा.गु., पद्य, आदि: विजयधरणेंद्रसूरींद्र; अंति: चिमन० इम आसिस देवे, गाथा-७. २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ ___ अपूर्ण तक लिखा है.) ८६६२१. नमोथुणंरी आम्नायविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. नेमा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, १३४४३). नमुत्थुणं कल्प, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमुत्थुणं अरिहंता; अंति: प्रमुख सघला भय नासे, गाथा-१६. ८६६२२. (#) चिंतामणि पार्श्वप्रभू स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३, १३४३५). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसरि, सं., पद्य, आदि: किं कपरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं __ददातु, श्लोक-११. ८६६२३. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह व अनानपूर्वीभांगा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१३, २०x१९-२०). १. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. __प्रा.,सं., पद्य, आदि: कुग्रामवासः कुलहीन; अंति: न बलं न बुद्धिः, श्लोक-७. २. पे. नाम. अणाणुपुरवीभांगा की विधि, पृ. १आ, संपूर्ण... अनानुपूर्वी विधिसहित, मा.गु., को., आदि: जोणसा भांगा नीकालना; अंति: (-). ८६६२४. रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६.५४१३, ११४३४). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-३२. ८६६२५ (2) माणिभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३.५, २३४१७). माणिभद्रवीर छंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वसन दियो सरसति; अंति: माणभद्राय नमो नमो, गाथा-१४. ८६६२६. (#) औपदेशिक सज्झाय व अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १६x४३). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-साधुगुण, रा., पद्य, आदि: चोरासी लख जुनमै रे; अंति: मुनिवर करह विचार, गाथा-१०. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आठम तप आराधीए भाव; अंति: सुभ फल पामे तेह, गाथा-१२. ८६६२७. वीसस्थानकतप विधि व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१३.५, १६४३७). १. पे. नाम. २० स्थानकतप विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम शुभ दिवसे पोषध; अंति: नित्थार पारगा होह. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८६६२८. सकलजिनवीनती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, १२४४०). साधारणजिन स्तवन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अबोला स्याना लोछो; अंति: दीप० अनंतगण गणवंता, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १२७ ८६६२९. ढंढणऋषि सज्झाय व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९२१, कार्तिक शुक्ल, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. प्रतापचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, १०x२८). १.पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषजीनै वंदणा हुं; अंति: कहै जिणहरष सुजाण रे, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सोरटे पंचरत्नानि नदि; अंति: पंचमो ऋषभ दरसणं, श्लोक-१. ८६६३०. धम्मोमंगलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१३, ८४३७). दशवैकालिकसूत्र-धम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: धम्मो मंगल महिमा; अंति: धर्म नामे __ जय जयकार, गाथा-६. ८६६३१. अष्टमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९५४, आश्विन अधिकमास शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वढवाण, प्रले. श्राव. झवेरचंद गुलाबचंद शाह; पठ. श्रावि. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३.५, ११४५६). __ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अठम जिन चंद्रप्रभ; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४. ८६६३२. (+) गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १२४४६). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. गुणनिधि, मा.गु., पद्य, वि. १९२५, आदि: द्वारिकानगरि समोसर; अंति: दर्शनथी सिव थाय, गाथा-१०. ८६६३३. चक्रवर्ति ऋद्धिवर्णन व ज्वरनिवारणादि मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. लूणकरण (बृहननागोरीलुंक), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३, ११४५०). १.पे. नाम. चक्रवर्ति ऋद्धि वर्णन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: छ खंड भरतक्षेत्र; अंति: लिखियइ रशनाई करी. २.पे. नाम, ज्वरनिवारणादि मंत्र विधि सहित, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ८६६३४. २५ बोल थोकडा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:२५ बोल थोकडा., दे., (२६.५४१३, १४४४५). २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: १नरकगते २तिर्यंचगते; अंति: यथारमात चारित्र५. ८६६३५. अल्पबहुत्व ९८ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१०x१०, २०४३९). ९८ बोल यंत्र-अल्पबहत्व, मा.गु., को., आदि: सर्वस्तोकानरा संख्या; अंति: ९८ अधिक सर्वजीव. ८६६३६. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अंत मे "श्री पार्श्वप्रभो श्री पद्मप्रभस्वामीना प्रसादात्" लिखा है., दे., (२७.५४१२.५, १२४२५). पार्श्वजिन स्तवन, म. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामणि; अंति: प्रभु पारसनाथ कीयै, गाथा-१५. ८६६३७. छंदगणरूप देवफलादि कोष्ठक, जीव संख्या व रत्नप्रभादि ७ नरक कोष्ठक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६.५४१२.५, १५४३९). १. पे. नाम. मगणादि ८ छंदोगण रूपदेवफलादि कोष्ठक, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: मगनsss मही सुख मित्र; अंति: मृतु सत्रू सूरमा. २. पे. नाम. ८४लाख जीवसंख्या विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ८४ लाख जीवायोनि विचार, मा.ग., गद्य, आदि: सातलाख पृथ्वी इम जै; अंति: दो किरोड़ इंद्री. ३. पे. नाम. रत्नप्रभादि ७ नरक कोष्ठक, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८६६३८. (+) हीरविजयसूरि व खरतरगच्छ मतमतांतर प्रश्न, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रावण शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. उमीयापुर, प्रले. जोईतादास मनोहरदास मोदी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३.५, ३३४२६). हीरविजयसूरि व खरतरगच्छ मतमतांतर प्रश्न, मा.गु., गद्य, आदि: अपरं श्रीहीरविजयसूरि; अंति: प्ररूपणा० प्रीछ्यो. For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६६३९ षट्दर्शन समुच्चय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४८-५२). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा; अंति: सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८७. ८६६४१ (+) श्रावक आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १७X४७). श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रपं; अंति: मुनिषडरसचंद्रवर्षे, अधिकार-५, ग्रं. १६६. ८६६४३. (+) सिंदूरप्रकर सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१७(१ से १७)=२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३-१७X४५-४७). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५० से है व ५७ तक लिखा है.) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४९ की टीका अपूर्ण से है व श्लोक-५७ की टीका अपूर्ण तक लिखा है.) ८६६४४. (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, ११४३३-३९). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक लिखा है.) लघक्षेत्रसमास प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: अर्हमिति ब्रह्मपदं; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८६६४५. जिनबिंब गण नक्षत्र योनि आदि विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. नागोर, प्रले. जयगोपाल पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२.५, १३४६८). धारणागति यंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इह देवस्य तद्विंबकार; अंति: गति यंत्रकानेमीयः. ८६६४६. पंचदशक यंत्रविधान पंचदशम पटल व विजयपताकायंत्र विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. मु. प्रमोदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १५४४७). १. पे. नाम. पंचदशक यंत्रविधान-पंचदशम पटल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचदशीविधि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. विजयपताकायंत्र विधि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: च्यार वर्णने शुभ; अंति: पद्मावती० नमः स्वाहा. ८६६४७. चारित्र विधि व संथारा विधि, संपूर्ण, वि. १८८९, आषाढ़ कृष्ण, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, १८४३५-४०). १.पे. नाम. चारित्र विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम सचित्त वस्त; अंति: अप्पसखियं सिंघसखियं. २. पे. नाम. संथारा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. संथारापचक्खाण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमइरियावहि पडिकमी; अंति: त्तियागारेणं वीसरामि. ८६६४८.(+) अभव्यकलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:अभव्य कु., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ६४३५). संबोध प्रकरण-हिस्सा अभव्य कलक, प्रा., पद्य, आदि: जह अभविय जीवेटिं; अंति: तेसिं न संपत्ता, गाथा-९. संबोध प्रकरण-हिस्सा अभव्य कुलक का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जेम अभव्य जीवोइ नथी; अंति: ते अभव्य जीवन पामे. ८६६४९ (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७४, फाल्गुन कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १०x२४-३०). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १२९ ८६६५० (+) बृहत्शांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, १३४३५). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: ध्यायमाने जिनेश्वरे. ८६६५१ प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२.५, ११-१३४२३-२७). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: ऊगे सूरे नमुक्कारी; अंति: गारेणं अपाणं बोसरामी. ८६६५२. (+) संबोधसित्तरी-संघलक्षणस्वरूप गाथा २९-३० सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है. श्रीबोरसद मध्ये पं.रंगसागर पासे टीकानी परत छे, तेमांथी ए २ गाथानी टीका उतारी लीधी छे., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, १६x४१). संबोधसप्ततिका-हिस्सा संघलक्षणस्वरूप गाथा २९-३०, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: एगो साहू एगाय साहणी; अंति: वुच्चइ एयारिसो संघो, गाथा-२, (वि. प्रारंभ में कृति की विषयवस्तु का मा.ग. भाषा में परिचय दिया रस संबोधसप्ततिका-हिस्सा संघलक्षणस्वरूप गाथा २९-३० की-टीका, सं., गद्य, आदि: एकः साधुर्यतिः १ एका; अंति: मुचितं नान्यसेति. ८६६५३. ५ समवाय गाथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४१२.५,१३४४०). ५ समवाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कालो १ सहावर नियई३; अंति: एगंते होइ मिच्छत्तं, गाथा-१. ५ समवाय गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (१)काल शब्दै उत्सर्पणी, (२)तिहां प्रथम कालवादी; अंति: सर्व समवाय पणे मानणा. ८६६५४. (+) वीरस्तुति अध्ययन व नमिपवज्जादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, १५४४८). १. पे. नाम. वीरस्तुतिनामा अध्ययन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुछिसुणं समाणां; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन ९-१०, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: सुखी साध वीतरागी, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ८६६५५ (+) पंचम्यादि विविधतपग्रहणविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४८, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३+१(३)=४, ले.स्थल. लक्ष्मणपुर, प्रले. मु. हीरचंद्र ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १६४५०). तपग्रहण विधि-पंचमीअष्टमीएकादशी आदि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पंचमीतवं अष्टमीतवं; अंति: प्रतिक्रमण करा देना. ८६६५६. (+) मौनएकादशीपर्व १५० कल्याणक गणj, संपूर्ण, वि. १९१८, आश्विन कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. महिमापुर मकसूदाबाद, प्रले. पं. कल्याणनिधान (गुरु ग. हंशविलास); पठ. श्राव. झालबाबु सेठिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १२४३०-३६). मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत; अंति: श्रीआरण्यनाथाय नमः. ८६६५७. (+) नवग्रहगर्भित जिन स्तवन, नवग्रहदानाध्याय व ज्योतिष श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३.५, १३४३१). १.पे. नाम. नवग्रहगर्भित जिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: भद्रबाहु० श्रुतः, श्लोक-१२. २. पे. नाम. नवग्रहदानविधान-जातकाभरणे, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ढुंढिराज दैवज्ञ, सं., पद्य, आदि: ये खेचरा गोचरतोष्ट; अंति: दानमिदं मुनींद्रैः, श्लोक-१०. ३. पे. नाम, ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., पद्य, आदि: तनुधनसहजसुहृत्सुत; अंति: निगदिता क्रमसोभतारा, श्लोक-२३. ८६६५८. संथारापोरसीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. पुण्यसुंदर गणि (कवलगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५४१२.५, १२४२८-३४). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निस्सही नमो खमासमणाण; अंति: इअ समत्तं मएगहियं, गाथा-१४. ८६६५९ (+) सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ५४२५-२७). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, अप., पद्य, आदि: जो धुरि सिरि अरिहंत; अंति: अम्हह मनवंछिय दियओ, गाथा-३, (वि. ३ गाथा को १ गाथा माना है.) ८६६६० (+#) पार्श्वजिन स्तव, २४ जिन स्तोत्र व तांबूलगुण श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १६x४०-४६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव-जीरापल्ली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवामेयं विधुमधु; अंति: एव लक्ष्मीविशेषाः, श्लोक-१३. २.पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, प. १आ, संपूर्ण. म. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: सूरिराजस्य० निवासं, श्लोक-८. ३. पे. नाम. त्रयोदश तांबूलगुण, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: तांबूलं कटुतक्तमुल्ल; अंति: स्वर्गेपि ते दुर्लभा, श्लोक-१. ८६६६१ (+) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७३, वैशाख कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १०-६(१ से ६)=४, कुल पे. ८, प्रले. पं. नगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री इष्टदेव प्रशादात्., संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १६x४०). १.पे. नाम. बाला स्तोत्र, पृ. ७अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. बालत्रिपुरासुंदरीदेवी स्तोत्र, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वसति मे हृदये सदैव, गाथा-६, (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी मंत्र, पृ. ७अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवीमंत्रसाधन विधि, प्रा., गद्य, आदि: ओं नमो भगवईए सअदेव; अंति: किरि० जापेन सिद्धिः. ३. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तव, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम, श्लोक-१३. ४. पे. नाम. इंद्राक्षी स्तोत्र, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदिः (१)ॐ अस्य श्रीइंद्राक्ष, (२)इंद्राक्षी द्विभुजा; अंति: प्रत्यक्ष परमेश्वरी, श्लोक-१३. ५. पे. नाम. देवी खमावन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेव्यपराधक्षमापन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अपराधक्षमं कुर्यात्; अंति: प्रसीद परमेश्वरी, श्लोक-४. ६. पे. नाम. गणपति स्तोत्र, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. गणपति अष्टक, सं., पद्य, आदि: (१)ॐ अस्य श्रीगणेशकवच, (२)द्वे भार्ये सिद्धि; अंति: सर्वे ते निरूपद्रवा, श्लोक-१३. ७. पे. नाम. बाला लघुस्तव, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. बाला लघुस्तव-मंत्रगुप्तगर्भित, ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: ऍकाराश्रयमाश्रितं; अंति: (१)शाश्वति कार्यसिद्धि, (२)क्लीं बाला एँ नमः, श्लोक-१२. ८.पे. नाम. सरस्वत्याष्टक, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में सरस्वत्याष्टकं स्वेष्टविद्यार्थपूर्लो त्रिविष्टपविष्टरसं संपूर्ण लिखा है. सरस्वतीदेवी अष्टक, मु. धर्मवर्द्धन, सं., पद्य, आदि: प्राग्वाग्देवि जग; अंति: वश्य मे सरस्वती, श्लोक-८. ८६६६२. (+) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १५४२८-३४). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुक्खाणं, गाथा-६०. For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १३१ ८६६६३ (+#) सांभकुंवर की लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१३, २६४६४-६८). शांबप्रद्युम्न लावणी, मु. नंदलाल शिष्य, पुहि., पद्य, आदि: ए प्रजनकुंवर का; अंति: मेरा हे उपगारि जी, गाथा-२९. ८६६६४. (#) जंबूद्वीपक्षेत्रमानादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्र-२४३., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१२, ३५४२९-३२). १. पे. नाम. जंबूद्वीप क्षेत्रमान विचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै वेलना धारक देव; अंति: परध दक्षणा जाणवा. २.पे. नाम. अढीद्वीप कंड विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अढीद्वीप वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: भरतना १० हेमवयना १०; अंति: (अपठनीय). ३. पे. नाम. २० विहरमानजिन नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसीमंधरजी १ युग; अंति: १९ अजितवीर्य २०. ४. पे. नाम. २६ देश क्षेत्रमान ग्रामादि विवरण, पृ. २आ, संपूर्ण. आर्यदेश नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ मगधदेश राजग्रहीनगर; अंति: नगरी २५८०० ग्राम. ८६६६५. (+) चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९७४, भाद्रपद शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. श्राव. केशवजी शवजी कोठारी; गृही. सा. राणबाई; दत्त. श्रावि. जवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पेंसिल से सुधारा हुआ है., संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १२४२४-२८). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. ८६६६६. प्रज्ञापनासूत्र-भाषापदगत चतुर्विध भाषाविवरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२.५, ४४३५). प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा भाषापद ११, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: जणवए समत ठवणा नाम; अंति: वोयड अव्वोयडा चेव. प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा भाषापद का बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदि: जिण देस भाषा बोल; अंति: सट्ठाण नजर को जाणवा. ८६६६७. पार्श्वजिन स्तुति व नवग्रह दशदिक्पालपूजन कोष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, ९४३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. नवग्रह दशदिक्पालपूजन कोष्टक मंत्रसहित, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. नवग्रह दशदिक्पालपूजन कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८६६६९ (+) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१३, ८४३८-४०). प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धम्मेणरिद्धीधणद्दस्स; अंति: मग्येकछंति तं वद्यं, गाथा-१७. ८६६७० (+) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र विधिसहित, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:प्रतिक्रमण., संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १४४४३). देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: (१)णमो अरिहंताणं णमो, (२)जयउसामिहि० रिसह सत्त; अंति: (-), (पू.वि. "केवलि सत्तमावोभ" पाठ तक है.) ८६६७१. (#) चउसरण पयन्ना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. श्राव. गांगजी वैरागी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४१३, १७४३२-३६). For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ८६६७२. (+#) मौनएकादशीपर्व स्तवन-ढाल-४, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१२.५, २१४१४-१८). मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७९५, आदिः (-); अंति: गणि जिनविजय सिरी वरी, (प्रतिपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम ढाल लिखी है.) ८६६७३. औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२७४१२.५, २५४३०). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ.१अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: देख तेरे पकडन नु फोज; अंति: फेर जनम नहीं पावेगा, पद-१. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, वि. १९२१, आदि: श्रीजिनचरणा नमो करूं; अंति: ढाल सुणो नरनार, गाथा-८. ३. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चंपालाल, पुहि., पद्य, आदि: पत्थर को देव जान पूज; अंति: चंपालाल०और किम तारसी, सवैया-१. ४. पे. नाम. पक्षिपरिवार कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. पक्षीपरिवार कवित्त, पुहि., पद्य, आदि: तीतर सवार पवो पै दल; अंति: राम से फरियाद करी है, गाथा-१३. ८६६७४.(+) ज्ञानपंचमी चैत्यवंदन विधि व आगम स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१३, १३४३२-३६). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: तिहां प्रथम पवित्र; अंति: श्रीकेवलज्ञानाय नमः. २. पे. नाम. आगम स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुत अतिहि भलो संघ; अंति: क्षमाकल्याण सदा पावै, गाथा-७. ८६६७५. (+-) नववाड सज्झाय व जैन सामान्यकृति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी खंडित है., अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १४४३६). १. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९१६, कार्तिक शुक्ल, ५, रविवार, ले.स्थल. खीहग्राम. मा.गु., पद्य, आदि: नववाड सही जिनराज; अंति: होय जावै ब्रह्मचारी, गाथा-१०. २. पे. नाम. जैन सामान्यकृति, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). ८६६७६. (+#) ९० प्रश्न ढुंढकने पुछवाना, अपूर्ण, वि. १८५९, चैत्र कृष्ण, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, ले.स्थल. भुजनगर, प्र.वि. श्रीऋषभदेव प्रसादात्., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १३-१६x४२-४५). ढुंढकमती को पूछने के ९० प्रश्न, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदिः (-); अंति: (१)व्रतना कह्या ए किम९०, (२)ए ढुंढकने पूछवाना छे, प्रश्न-९०, (पू.वि. प्रश्न २७ अपूर्ण से है.) ८६६७७. (#) चतुर्दशस्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३०-३४). १४ स्वप्न सज्झाय, ग. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: तारक सकलाधार प्रभु; अंति: हीरधरम०पुरुष जग गायौ, गाथा-४२. ८६६७८. पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, १४४३४-३८). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपर गोडीजी इतिहास वर्णन, म. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादिनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) ८६६७९. औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२७७१३, १३४३४-३६). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोइजो आपणी मन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८६६८० (+) संबर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२.५, ८x२६-३०). औपदेशिक सज्झाय-संवर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर गोयमने कह; अंति: मुगत हेला यु तिरो, गाथा-६. ८६६८१. (#) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१३, ११४२८-३०). आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो श्रीआदि; अंति: ज्ञानविमल मति जागी, गाथा-१०. ८६६८२ (-) सीतासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३४१२, ११४३७). सीतासती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: सोवन वाडी मे मीरग; अंति: कोइ बत्या जे जेकारजी, गाथा-२८. ८६६८३. (+#) २४ जिन स्तुति, रत्नाकरपच्चीसी व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४८, माघ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, पठ. मु. तेजकर्ण, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४१३, १४४३४-४६). १.पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: चित्तमानंदकारैः, श्लोक-१०. २. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सुरकिंनरनागनरिंदनतं; अंति: कमले राजहंससमप्रभा, श्लोक-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. क. हेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जे जगतारण दुखवारण; अंति: कवि हेम किधु इम कहे, गाथा-५. ४. पे. नाम. रत्नाकरपच्चीसी, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण, प्रले. आ. रामेंदुसूरि (नागोरीलंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. ५. पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. मु. कीर्तिमाणेक, मा.गु., पद्य, आदि: श्री सिद्धाचल तीर्थ; अंति: किरतिमांणक० अनंत हे, गाथा-५. ६.पे. नाम. शत्रंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञानकमला; अंति: पदमविजय सोहितकर, गाथा-७. ८६६८४. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय-१ से ५ अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४१३, १३४३२-३४). उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्त धरी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८६६८५ (+#) दयाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पालीताणा, पठ. श्राव. भाईचंद अमरशी शाह, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:दयाछत्री. श्री आदिनाथ प्रसादं., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१३, १२४३२-३६). दयाछत्रीसी, मु. चिदानंदजी, पुहि., पद्य, वि. १९०५, आदि: चरणकमल गुरूदेव के; अंति: चिदानंद० फलि मन आश, गाथा-३६. ८६६८६. उपदेशपच्चीसी व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१३, १४४४६-५०). १. पे. नाम. उपदेशपच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. हांसी, प्रले. रामयश, प्र.ले.पु. सामान्य. म. चंद्रभाणऋषि, रा., पद्य, वि. १८६०, आदि: चोउरासि मै चाकज्यू; अंति: चंद्रभाण० चतुर सुजाण, गाथा-२५. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हमारा दिल लग्या फकिर; अंति: नितचित राख हजूरी मै, गाथा-७. ८६६८७.(#) महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, लिख. पंन्या. अभयसोम गणि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२.५, १४-१५४३२-३८). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: हंसराज० ए मुझ जगगुरु, ढाल-१०, गाथा-६३, (पू.वि. ढाल-१ की गाथा-९ अपूर्ण से है.) ८६६८८. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४१३, १२४३२-४०). For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद तपविध भणै, ढाल-३, गाथा-३३. ८६६८९ चैत्यवंदन व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२२.५४१२.५, १९४२२). १. पे. नाम, विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, प. १अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहेला जिनवर विहरमान; अंति: तणो नय वंदे करजोडी, गाथा-८. २. पे. नाम. २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत महंत पद; अंति: सीस भाणने कोड कल्लाण, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अश्वसेन का लडका जोर; अंति: सेवकने सीवसुख दीयाते, गाथा-७. ४. पे. नाम. स्वर्णप्राप्ति स्थल-अर्बुदाचल, पृ. १आ, संपूर्ण. अर्बुदगिरितीर्थ कल्प, मा.गु., प+ग., आदि: अर्बुदाचल उपरे अंबरण; अंति: धातनु सोनु थाय छे. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जे नर चित्तथी उतार्य; अंति: झख मारंगे लोग, गाथा-३. ८६६९० (+) श्रावक १२ व्रत सज्झाय व नोकारवाली सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १२४२६-३०). १.पे. नाम. १२ व्रत सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर पाय नमीजे; अंति: विनयविजय० कोइ न तोले, गाथा-१५. २. पे. नाम. नवकारवाली सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: नवकारवाली वंदीइं चिर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८६६९१. जीवभेद विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२३.५४१२, १३४३१-३३). ५६३ जीवभेद विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: वायरो सुद्धवायरो गुज; अंति: उतकृष्टु २ पल्योपमनु. ८६६९२. (+) गुरु पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२.५, १०x२०-२३). गुरुपद पूजा-अष्टप्रकारी, उपा. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: वर छतिस गुणायुत जानि; अंति: सुजस० जै जै जग आधार, पूजा-८. ८६६९३. (+) आदिजिन विनती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, ११४२६-३२). आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिणवर सेāजा; अंति: जिनहर्ष० परमानंद रे, गाथा-२०. ८६६९४. (+#) ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पत्तनपुर, प्रले. मु. भावसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१३, २५-३१x१४-२४). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.ग., को., आदि: १ नारकी २ तिर्यंच; अंति: आहारी ६१ अणाहारी ६२. ८६६९५ (+) भरतबाहबली व चरणकरण सत्तरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, ११४२८-३२). १.पे. नाम, भरतबाहबली सज्झाय, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: स्वस्त श्रीवरवा भणी; अंति: रामविजयै जयश्री वरै, ढाल-४, गाथा-५३. २. पे. नाम. चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: पंच महाव्रत दसविध; अंति: ज्ञान० सुजस वाधे जी, गाथा-७. ८६६९६. (+) पासत्था सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:पासत्था., संशोधित., जैदे., (२७७१३, ११४३६-४०). पासत्था सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वंदे सकल सुरासुरराय; अंति: बोले श्रीहंसभवनसुरि, गाथा-२७. ८६६९७. सामायिकना बत्रीसदोषनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७४१३, १०४२८-३२). For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १३५ सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनसारद सद्गुरु; अंति: इम दिपे० गुण गाय रे, ढाल-२, गाथा-२२. ८६६९८. (+#) अक्षयनिधितप स्तवन व विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, अन्य. सा. आनंदश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१३, १२४३०-३६). १.पे. नाम. अक्षयनिधितप स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: श्रीशंखेश्वर शिर; अंति: शुभवीर० घर बारणे, ढाल-५, गाथा-५१. २. पे. नाम. अक्षयनिधितप विधि, पृ. ४आ, संपूर्ण... मा.गु., प+ग., आदि: श्रावण वदि ४ना दीवस; अंति: मुखी नैवेद्य चढावीइं. ८६६९९. अंतरीग पार्श्वनाथजीरो स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६४१२.५, ११४३२-४०). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५१ अपूर्ण तक है.) ८६७०० (+) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय व सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, अन्य. श्रावि. कासीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पंचमिस्तु., संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १३४३०-३८). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, प. १अ-२अ, संपूर्ण. ___आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्यजिणेसर; अंति: विजयलक्ष्मी० दाया रे, ढाल-५, गाथा-१६. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र वर सेवा; अंति: पद्मविजय० हित साधे, गाथा-१३. ८६७०१ (+) ऋषभदेवनी लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, १३४२६). आदिजिन लावणी, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: सरसती माता सुमत की; अंति: सुसहर सलूमर मै थारे, गाथा-१३, (वि. गाथांक नही लिखे हैं.) ८६७०२. (+-) मुक्तिगमन सज्झाय व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रावण शुक्ल, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १४४४०). १.पे. नाम. मुक्तिगमन सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रावण शुक्ल, १४, सोमवार. पहिं., पद्य, वि. १९२८, आदि: तीर्थंकर महावीर; अंति: लीखी सबके मन भाई, गाथा-२२. २. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. २अ, संपूर्ण. म. संदर, पुहि., पद्य, आदि: नयण बिना नहीं दरपण; अंति: सिधि न लेवो करत है, पद-३. ८६७०३. अंतरीक्षपार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:अंतरिकजीनो छंद., दे., (२७४१२.५, १४४३१-३८). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन दियो सरसति; अंति: दरिसण हु वंछु सदा, गाथा-५४. ८६७०४. खंधकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:खंधकमुनी सज्झाय., अ., (२६.५४१३, ११४३२). खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो खंधक महामुनि; अंति: सेवक सुखीया कीजे, ढाल-२, गाथा-२०. ८६७०५. गुरुगुण गहंली, संपूर्ण, वि. १९३८, कार्तिक शुक्ल, मध्यम, प. १, ले.स्थल. इलोल, प्रले. ग. विद्याविजय; पठ. सा. नाहलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१३, १२४२७). गुरुगुण गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: चरणकरण करि सोभता; अंति: जगजस पडहव जाय रे, गाथा-५. ८६७०६. (+) स्तुति व दुहा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३, ११४३१). १. पे. नाम. सुमतिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: मोटा ते मेघरथ राय रे; अंति: ऋषभ कहे रक्षा करो ए. गाथा-४. २. पे. नाम, सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहेले पद जपीए अरिहंत; अंति: कांतिविजय गुणगाया, गाथा-४. ३. पे. नाम, २० विहरमानजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषे विहरंत; अंति: जण मनवंछिय सारै, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक दहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दुहा संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: दृग सुमेरु तुं कनक; अंति: इह डारण उहै फुल, गाथा-२. ८६७०७. लग्नकुंडलीगर्भित श्रीपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, गु., (२६४१३, ६x४२). पार्श्वजिन स्तवन-लग्नकंडलीगर्भित, म. गलाबविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ज्योतीसी लगन बनावो; अंति: गुलाबविजय सुख पामे, गाथा-८. ८६७०८ (+) मेतार्यमनि व पंचमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. मोतीरुचि गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७७१३, १४४३४). १. पे. नाम, मेतार्यमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. राजविजय, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: समदम गुणनो आगरुजी; अंति: राजविजय० ए सज्झाय, गाथा-१३. २. पे. नाम. पंचमीतिथि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु चरण पसाउले; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-७. ८६७०९. मौनएकादशी गणणुं व प्रात:काल प्रतिलेखना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, ?, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६४१३, १२४३२). १. पे. नाम. मौनएकादशी गणj, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. २. पे. नाम. प्रात:काल पडिलेहण विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-प्रतिलेखन विधि-प्रातःकालीन, संबद्ध, गु.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो०; अंति: सर्व कपडा पडिलेहणा. ८६७१०. केशीगौतमगणधर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१३, १२४४१). केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गुणधर प्रणमीये; अंति: रूपविजय गुण गाय हो, गाथा-१६. ८६७११. पर्युषणपर्व सज्झाय व जंबुस्वामी मोक्षगमन विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, १२४३५). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: पर्वपजूसण आवीया रे; अंति: मतिहंस नमै करजोडि रे, गाथा-११. २.पे. नाम, जंबुस्वामी मोक्षगमन विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी मोक्षगमन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजंबुस्वामी मोक्ष; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'एसी वर्ष- आयुष हतु' पाठ तक लिखा है.) ८६७१२. (+) साधारणजिन चैत्यवंदन व भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १२४२४). १. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेह भगव; अंति: सवाइ वंदामी नमोथणं, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.) २. पे. नाम, भरहेसर सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ८६७१३. (+) दशवैकालिक सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:सज्झाय पत्र., संशोधित., दे., (२५.५४१३, ११४२५). For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १३७ दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-३ की चूलिका-२ तक लिखा है.) ८६७१४.(+) जलयात्रा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-२४(१ से २४)=१, प्र.वि. हुंडी:विधि., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३९). जलयात्रा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: वाजींत्रनी घोष करीइ, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., अंगन्यास अपूर्ण से है.) ८६७१५. बीजतिथि, पंचमीतिथि व संसारदावनल स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१३, ११४३२). १.पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १७अ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमि पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३. पे. नाम. संसारदावानलस्तुति, पृ. १७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संसारदावानल स्तति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८६७१६. देशावगासीकी गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१३, ९४२३). आवश्यकसूत्र-देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८६७१७. नेमिजिन स्तवन व विचारपंचाशिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७७१३, ११४३१). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. श्रावि. माहाकोर बहेन, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: सुणो स्वामि हमारा रे; अंति: लीयो सुखदीन वलीयो रे, गाथा-८. २.पे. नाम. विचारपंचाशिका सह टबार्थ, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: वीरपयकयं नमिउं देवा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) विचारपंचाशिका-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: वीरपरमात्माना पदकमले; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) ८६७१८. महावीरजिन लोरी व धर्मप्रेरक संवाद सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१२.५, १७४३५). १. पे. नाम. महावीरजिन लोरी, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १८५१, आदिः श्रीनमस्कार जिन को; अंति: वसु भुवनक्र जोडी जी, गाथा-१८. २.पे. नाम. धर्मप्रेरक संवाद सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-धर्मप्रेरक संवाद, मा.गु., पद्य, आदि: आयो चले बाजार लोक कह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ८६७१९. औपदेशिक सज्झाय, पद व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१३.५, १२४३९). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: चतुर नर सामाइक नय; अंति: ज्ञानवंत के पासे, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जेन कहो किम होवे परम; अंति: जैनदशा जस ऊंची, गाथा-९. ३. पे. नाम. नवलखाजी स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-नवलखा, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीनवलखा प्रभु पास; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ८६७२१. (+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२.५, १६४३९). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: अमृत वचने रे प्यारी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६७२२ (+) अंतरकाल स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१३, ११४२७). २४ जिन अंतरकाल स्तवन, मा.गु., गद्य, आदि: सफल संसारनी पंचपरम; अंति: (-), (पू.वि. अभिनंदनजिन स्तवन अपूर्ण तक है.) ८६७२३.(+) नेमराजुल लावणी व नेमराजमति पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१२.५, ११४२७). १. पे. नाम. नेमराजुल लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ नेमराजिमती लावणी, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: राजुलराणी नेम पुकारै; अंति: लब्धिरुचि० आप दीया, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. लब्धिरूचि, पुहिं., पद्य, आदि: जरा सुणो बालम मोरी; अंति: जायकी भव हतीया, गाथा-३. ८६७२४. पोसीनाजीनो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. प्रांतीज, प्रले. मु. गुलाबविजय, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२४.५४१३, १३४३४). पार्श्वजिन स्तवन-पोशीना, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: सरसति सामिनीने समरी; अंति: कहे उत्तमविजय वधाई, गाथा-१३. ८६७२६. (+) वज्रस्वामी गहंली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ३४३०). वज्रस्वामी गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखी रे में कौतक दीठु; अंति: शुभवीरने वाल्हा रे, गाथा-८, (वि. १८८७, कार्तिक कृष्ण, ७, प्र.ले.पु. सामान्य) वज्रस्वामी गहुंली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवयरस्वामी ६ मासन; अंति: अर्थे वल्लभवचन छे, (वि. १८८७, कार्तिक कृष्ण, ९, पठ. श्रावि. नवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य) ८६७२७. (+) औपदेशिक दहा व औपदेशिक सवैया संग्रह, संपूर्ण, ई. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पालणपुर, लिख. श्राव. त्रिभोवनदास; अन्य. उजमचंद वैद,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पलवीयाजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२४४१२.५, ११४३२). १.पे. नाम. दहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक दुहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: सजन मत जानु प्रीत गई; अंति: राते जगाले सूतो, गाथा-३. २.पे. नाम. सवैया संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया संग्रह, पहि., पद्य, आदि: रंग के रसीले लाल रंग; अंति: छोडो काल कह्या करुगी. ८६७२८. (+) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१३, १२४३१). नेमिजिन नवरसो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: सरसति सामिनी पाय नमी; अंति: थुण्यो नेमिजिणेसरू, ढाल-५, गाथा-७२. ८६७३० (#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१३, १२४३३). शांतिजिन स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिनाथ जिनेसर चरण; अंति: जो तारे तो तरीये रे, गाथा-११. ८६७३१. नेमजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१३, ११४३१). नेमिजिन स्तुति, पंन्या. महिमाविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: श्रीगिरनार शिखर; अंति: दिन दिन नित्य दिवाली, गाथा-४. ८६७३२ (4) साधारणजिन स्तवन, नेमिराजिमती स्तवन व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२.५, १४४२८-३२). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनराज के सतर; अंति: धर्म अवीचल सुखराज के, दोहा-६. For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २.पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवल गोखने अवल झरुंखे; अंति: सेवक देव कहे जयकारी, गाथा-८. ३. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-मित्रलक्षण, दीनदरवेस, पुहिं., पद्य, आदि: मिसरी घोरे जुठ से; अंति: ग्यान की कसर कटारी, पद-१. ८६७३३ (+#) शीतलजिन स्तवन व सौभाग्यपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१३.५, १३४३२). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-कलकत्तामंडन, आ. शांतिसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुभहित जिन सीतल सेवो; अंति: प्रभु सेवो निरागी, गाथा-५. २. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सौभाग्यपंचमी तप करो; अंति: अनुभव केवल नाणो रे, गाथा-९. ८६७३४. ऋषभ स्तवन व आउखा विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२.५, १४४२८). १. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज भला दिन उगा हो; अंति: सीसनो राम सफल अरदास, गाथा-५. २. पे. नाम. पृथ्वीकाय प्रमुख जीवाजोनी संममूर्च्छिमनो आउषानो विचार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पृथ्वीकायादि आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: खेचरपंखीनो आउषो; अंति: तीन सहस वरसनो. ८६७३५. धूपपूजा व आदिजिन आरतीद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४१३, १३४३५). १.पे. नाम. धूपपूजा, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: एक जिन तुरसियो बोले; अंति: सुभ वने चरणे रे सुरे, गाथा-६. २. पे. नाम, आदिजिन आरती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जे जे आरती आदजिणंदा; अंति: सो नरनारी अमरपद पावे, गाथा-६. ३. पे. नाम. आदिजिन आरती, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: अपछरा करती आरती जिन; अंति: जाणी पोताना बाल, गाथा-६. ८६७३६. (+) धूपपूजा व आदिजिन आरतीद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, कल पे. ३,प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१३. ११-१३४३४). १.पे. नाम. धूपपूजा, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: एक जिन तुरसियो बोले; अंति: सुभ वने चरणे रे सुरे, गाथा-६. २.पे. नाम. आदिजिन आरती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जे जै आरती आदजिणंदा; अंति: सो नरनारी अमरपद पावे, गाथा-६. ३. पे. नाम. आदिजिन आरती, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: अपछरा करती आरती जिन; अंति: करजो जाणी पोतानो बाल, गाथा-६. ८६७३७. सिद्धाचल स्तवन व अष्टापद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१२.५, ११४३७). १. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल वंदो रे; अंति: ज्ञानउद्योत. एक तारी, गाथा-५. २. पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो रे अष्टापदगढ़ने; अंति: दरसण दीजे देवरे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६७३८. (+) मुनिराज गुण सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अंत में जल की एक बुंद में त्रसजीवों का मुद्रित चित्र व विवरण चिपकाया गया है., संशोधित., अ., (२४.५४१२.५, १४४३७). मुनिगुण सवैया, रा., पद्य, आदि: पाप पंच परीहरे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने गाथा-४ तक लिखकर ही कृति पूर्ण कर दी है.) ८६७३९ (+) चतुर्विंशतिजिन व शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८७८, चैत्र शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. वलेगाम, प्रले. राजेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १७४३९). १. पे. नाम. चतुर्विशतीजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, म. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणम; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. २. पे. नाम. संखेश्वरपार्श्वजिन स्तव, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: मुदा प्रसन्नः, गाथा-३२. ८६७४० (+) पद्मावती ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१३, १४४३८). पद्मावती आराधना बृहत्-जीवराशिक्षमापना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मोटी सति पदमावती; अंतिः पापथी छुटे ते तत्काल, ढाल-३, गाथा-८२. ८६७४१. (+) रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, १४४४२-४४). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२७. ८६७४२. स्तुति, चैत्यवंदन पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ९, दे., (२५.५४१२.५, १४४२३-२६). १. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र की सेवा; अंति: चेतना० अरज हमारी है, गाथा-३. २. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: परमपुरुष परमेश्वर; अंति: चेतन० भवदुख फंदा है, गाथा-४. ३. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: दरसन दीजै समत; अंति: चेतन अविचल धामी रे, गाथा-३. ४. पे. नाम. साधुगुण पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: पंचमहाव्रत पाले साधु; अंति: तिनको वंदमा हमारी है, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-काया, मु. चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: काया माया थिर नही; अंति: चेतन की सुन वानी रे, गाथा-४. ६. पे. नाम, अभिनंदनजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: अभिनंदन से देव सेव; अंति: संत पाय चेतना तरे, गाथा-३. ७. पे. नाम. संभवजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. म. चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: संभव श्रीजिनराय रे; अंति: अहनिस लागुं पाय रे, गाथा-३. ८. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. म. चेतन, पुहि., पद्य, आदि: मेरे मन आनंद सरस; अंति: पाये आवागमन मिटाई, गाथा-४. ९.पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे नैनन में छबि; अंति: रिषभचरन लव लाई, गाथा-३. ८६७४३. जंबूकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मलूकचंद ऋषि; गृही. सा. ककुंबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जंबुकुमारनी सज्झाय., जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३२). जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी वसे; अंति: ते तणा गुण गाया रे, गाथा-१४. C For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १४१ ८६७४४. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९४८, आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ४, दे., (२५.५४१२.५, ८x२५). पद्मावती आराधना, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पदमावती; अंति: समयसुंदर० तत्काळ, ढाल-३, गाथा-३४. ८६७४५. परनारी परिहार व नाणावटी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, प्रले. गिरधरशंकर भोजक; पठ. सा. चंपाश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३, १३४३२). १. पे. नाम. परनारी परिहार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नर चतुर सुजाण परनारि; अंति: वचन महावीर तणो साचो, गाथा-९. २.पे. नाम, नाणावटी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्राव. साहजी रुपाणी, रा., पद्य, आदि: हो नाणावटी नाणो खरो; अंति: भगती मनमां जांणी, गाथा-८. ८६७४६ (+) तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, संपूर्ण, वि. १९४७, आषाढ़ कृष्ण, १२, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. गणेशचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, १०४३०). तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: तित्थयरा गणहारी; अंति: मंगलीक माला संपजइं. ८६७४७. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पार्श्वजिन व पंचपरमेष्टी नमस्कार स्तुति, संपूर्ण, वि. १८९४, पौष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. वडनगर, प्रले. ग. भाग्यविजय (तपागच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३, ९४३६). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धगिरि ध्यावो; अंति: विमलसूरी इम गुण गावे, गाथा-७. २. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शंखेश्वर पासजी पूजीए; अंति: नयविमल० वांछीत पूरती, गाथा-४. ३. पे. नाम. ५ परमेष्ठिनमस्कार स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनस्तुत्यादि संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीअल्तो भगवंत; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ८६७४८. सुबाहुकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, १४४४२). सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: हवे सुबाहुकुमार एम; अंति: क्षेत्रमा जासे मोक्ष, गाथा-१५. ८६७४९. धार्मिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१३.५, १६४३१). दोहा संग्रह-जैनधार्मिक, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: वीर हेमाजल से निकसी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण., दोहा-१० अपूर्ण तक लिखा है., वि. प्रारंभ में नवकार मंत्र लिखा है.) ८६७५१. (-) जीव रास, अपूर्ण, वि. १९३८, वैशाख कृष्ण, ३०, बुधवार, मध्यम, पृ. ५१-४९(१ से ४९)=२, प्रले. श्राव. हरिलाल लालचंद शाह; पठ. श्राव. नथुभाई प्रेमचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१२, १४४३४-३८). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: सांमसुदर० दुकडंग, ढाल-३, गाथा-४७, संपूर्ण. ८६७५२. आठोत्तरसो गण नवकारवाली स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हंडी:नवकरवालीग., जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३४-३८). नमस्कार महामंत्र चौढालिया, उपा. राजसोम पाठक, मा.ग., पद्य, आदि: नवकारवाली मणियडा; अंति: पाठक रससोम भणइ ए, ढाल-४. ८६७५३. (+#) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. नानालाल हरीनंद लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२.५, १२४३६-४०). आदिजिन स्तवन, मु. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिनेसर स्वामि रे; अंति: मुनीज उगमते सुरजो, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६७५४. (+2) पांचआराना भावकलंकी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३०, फाल्गुन शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. हरिदुर्ग, प्रले. मु. भाग्यविजय; पठ. मु. वल्लभविजय; अन्य. मु. गोविंद मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "लिखी साधुजी गोविंदमुनिजी पार्थात्" ऐसा उल्लेख है., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४१२.५, १२४३२). पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: जिणहंस०सीसव रसालो रे, गाथा-२१. ८६७५५. दानशीलतपभावना व मोरादेजी माता की सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१३, १६x२९). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रगपतजीनी माता बुलावे; अंति: सुहपुरे मारग च्यारे, गाथा-११. २. पे. नाम. मोरादेजी माता सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: तम सेती नही बोलु वो; अंति: हमने रे विसारी जी, गाथा-८. ८६७५६. पांचइंद्रीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२.५, २०४१४-१८). ५ इंद्रिय सज्झाय, म. माल, मा.गु., पद्य, आदि: भोलीडारे हंसा रे; अंति: ते नमे मुनी माल, गाथा-७. ८६७५७. चतुर्विंशतीजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२४४१२, १७२३२-३६). नमस्कारचौवीसी, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८५६, आदि: जय जय जिनवर आदिदेव; अंति: गणि सीस क्षमाकल्याण, अध्याय-२४, गाथा-१४७. ८६७५८. (+) छ कायना बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:छकायनाबोल., संशोधित., जैदे., (२४.५४१२.५, २२४४४-५०). ६काय बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहेले बोले इंदीयावर; अंति: मोक्षना सुख पामीये. ८६७५९ (+#) नंदीषेणमुनि व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१३, २४४२४-३२). १. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहो रहो ने वालहा ए; अंति: रुपविजय जयकार लाल रे, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही हो सांभल; अंति: आणंद कहे कर जोडी रे, गाथा-१०. ८६७६०. बिंबस्थापन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४१२.५, २५४२२-२८). जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम दिन शुद्ध जोइय; अंति: उपसर्गहरस्तोत्र गणवो. ८६७६१. रोहिणीतप स्तुति व पंचमीतिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२०, कार्तिक शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पुना, प्रले. मु. चनणसारजी; पठ. श्राव. लाधाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.५, १०४२३). १.पे. नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ___ मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीधचक्रजी भगवान; अंति: लाभ रूपविजय जयकार, गाथा-४. २. पे. नाम, पंचमीतिथि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंचमीतिथिपर्व सज्झाय, म. कांतिविजय, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीगुरु चरण पसाउले; अंति: कांतिविजय गुण गाई, गाथा-७. ८६७६२. (+) अजितजिन स्तवन व त्रीजा महाव्रतनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सुरत, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४१२.५, १३४२६-३०). १.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जणंदस्युं प्रीत; अंति: वाचक यस० गुण गाय के, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २. पे. नाम, अदत्तादानविरमणव्रत सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: त्रिजु माहाव्रत; अंति: तेहना पाय नमे करजोडि, गाथा-५. ८६७६३. दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२२४१२, १२४३०). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ की गाथा-१० से ढाल-४ की गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ८६७६४. (#) गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१३.५, १३४३५). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, श्राव. भगवानदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन आया हो सोरठ; अंति: जनम मरन मिट जाए, गाथा-१४. ८६७६५ (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२.५, १९x१८). महावीरजिन स्तवन, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: शांत सनेही वीरजी भवि; अंति: रंगे पद पावे. जयकार, गाथा-७. ८६७६६.(-) औपदेशिक व साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. १९६०, आश्विन कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. पं. मंगलसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि, अशुद्ध पाठ., दे., (२२.५४१२.५, १७४१४-१९). १. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: षटदर्ब जामे कहो भीन; अंति: आन सुध मन ग्यान, गाथा-४. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तिर्थ करता दुर्त हरत; अंति: सेवो थायसी कल्याण ये, गाथा-५, (वि. गाथांक नहीं दिया है.) ८६७६७. उपदेशपच्चीसी व औपदेशिक सवइयो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१२, १५४३९-४२). १. पे. नाम. उपदेसी कडो, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. उपदेशपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८२०, आदि: जिनवर दियो एसो उपदेस; अंति: वरते परम रे आनंदके, गाथा-२४. २. पे. नाम. औपदेशिक कडो, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-स्त्री, पहिं., पद्य, आदि: ग्यानी ह का ग्यान; अंति: एक त्रियाके प्रसंगते, पद-१. ८६७६८. औपदेशिक पद व खंधकमुनि चौढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४११.५, १८४३८). १.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: अबक् चूक पड्यो जीवा; अंति: नहीतर नरगो पडेगो रे, गाथा-७. २. पे. नाम. खंधकमनि चौढालीयो-ढाल-४, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. खंधकमनि चौढालिया, म. तिलोक ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १९३९, आदि: (-); अंति: धर्म सदा श्रीकार रे, प्रतिपर्ण. ८६७६९. पाठकबत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२३४१२.५, ११-१२४३४-४०). हितशिक्षाबत्रीसी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सकल विमल गुन कलित; अंति: क्षमादिकल्यान सुबंदन, गाथा-३२. ८६७७०. उपदेशपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, १७X४८-५२). उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८७८, आदि: निठ निठ नर भवे लहो; अंति: रतनचंद दियो एम उपदेश, गाथा-२७. ८६७७१. (+) कीरतध्वजराजारो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२.५, १८४३४-४०). कीर्तिध्वजराजा ढाल, म. हीरालाल, पुहि., पद्य, वि. १९३१, आदि: अजोध्यानगरी तणो सरे; अंति: हीरालाल गया हुवा सीध, गाथा-६०. ८६७७२. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४.५४१२, १२४३०-३४). For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: माहरी विनतडी अवधारो; अंति: अगरचंद कै० वचन विलास, गाथा-२१. ८६७७३. (#) ढंढणऋषि सज्झाय व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सेवाडी, प्रले. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री माहावीरजि प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४१२, १२४२४-२८). १. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिजीने वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हित हिल्लोलति कील्लो; अंति: पंथि पुछंति कुपक, श्लोक-१. ८६७७४. (#) नेमराजिमती स्तवन व भागा अमलसरी संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१३, १९x१५). १.पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८४६, माघ कृष्ण, ५, मंगलवार, ले.स्थल. देवगढ, प्रले. मु. दलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. अनुपकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन मोहनगारा जी; अंति: अनोपकुसल गुण गायाजी, गाथा-१९. २.पे. नाम. भागा अमलसरी संवाद, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८४६, पौष शुक्ल, १३, प्रले. हेमजी, प्र.ले.पु. सामान्य. देवीचंद, मा.गु., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: देवीचंद० वेणप्रसाद, गाथा-३, (वि. पत्र का ऊपरी भाग फटा होने से आदिवाक्य अवाच्य है.) ८६७७५. स्तुति, पद व होरी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ९, दे., (२४.५४१२, २३४४२). १.पे. नाम. समवसरण स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. म. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: आज समोसरण की रचना भई; अंति: विनय धरत थिर चित थई, गाथा-४. २. पे. नाम. ज्ञान पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक ज्ञान पद, मु. विनयविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मोकुं ऐसो भेद बतायो; अंति: विनयशुं शीश नमावो, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमराजिमती होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: होरी खेलावत कानइआ; अंति: कहे हम लेत बलैयां, गाथा-८. ४. पे. नाम. नेमराजिमती होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. क. चतुर, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल सुंदर नार शाम; अंति: वंदं बे कर जोरी रे, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रंगविजय, पुहि., पद्य, आदि: गोपी गोवालन होरी नेम; अंति: के राजुल रूपरंग गोरी, गाथा-८. ६.पे. नाम. नेमराजिमती होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. घेलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कीन संग खेलु मे होरी; अंति: घेलचंद सुख पायो, गाथा-४. ७. पे. नाम. नेमराजिमती होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: होरी के दिन चार चलो; अंति: रुपचंदकुं निहाल, गाथा-५. ८. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अलबेले नेमकुमार होरी; अंति: राणी राजुल शोभा जोरी, गाथा-३. ९. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानउद्योत, पुहि., पद्य, आदि: एक समे घनशामकी सुंदर; अंति: उद्योत कला गुण बांधी, गाथा-५. ८६७७६. अजीवना पांचसेने साठ भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनीलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२.५, १२४३४-३८). ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय खंध देस; अंति: पांचसे ने साठ जाणवा. For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८६७७७. (+) आचारछत्रीसी व औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:आचा., संशोधित., दे., (२४.५४१२, २१४३२-३८). १. पे. नाम. आचारछत्रीसी, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. म. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गुर सम जगतमे को नही; अंति: रत्नचंद० भवीयण प्रणी, गाथा-३७. २. पे. नाम, आचारछत्रीसी, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. म. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुध समकीत पाया वीना; अंति: रतनचंद०० रे संसारो, गाथा-४५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: पालो पालो रे संजम कि; अंति: तिलोक० एह बीरीया रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मत करो रे चतुर; अंति: तिलोक रीख०पद निरवाणा, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. म. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मेटो मेटो रे भवीक जन; अंति: तिलोक० सुविसाली रे, गाथा-५. ८६७७८. () नेमराजीमती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१२,१२४३२-३६). नेमराजिमती स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लूंबी झंबी रह्यो; अंति: कहे दानविजय उल्लास, गाथा-९. ८६७७९ (4) मुनिपति चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:मुनीपती., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, ३३४९०-९८). मुनिपति चरित्र *, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीपे भरतखेत्र; अंति: दोनो एकी भवतारी हुवा. ८६७८० (+) आदिसरजीनी विनती, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. लोहियाणानगर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२, १३४३४-३८). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: पामी सगुरु पसाय; अंति: विनय करीने वीनवइ ए, गाथा-५८. ८६७८१. (#) देवानंदामाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२३.५४११.५, ९४२८-३२). देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: सकलचंद०उलट मनमां आणी, गाथा-११. ८६७८२. बासठ मार्गणा जंत्र रचना, संपूर्ण, वि. १८८०, आषाढ़ कृष्ण, ३०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२२.५४११.५, २४४५२-५८). ६२ मार्गणा स्तवन, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: शासननायक वीरने तिम; अंति: ज्ञानसार० अति मतिमंद, गाथा-११२. ८६७८३ (+#) बलभद्रमुनि, ढंढणमुनि व कंडरीकपुंडरीक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. राधिकापुर, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १३-१५४३०-४०). १. पे. नाम. बलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पं. क्षेमवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: सरसति चरणकमल नमी; अंति: खेमवरधन० घर मंगल थाय, ढाल-३, गाथा-४१. २. पे. नाम, ढंढणमुनि सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. ___पं. क्षेमवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सरसतिमात पसायथी रीषि; अंति: खेम० सूख खांणी रे लो, गाथा-१९. ३. पे. नाम. पुंडरिककंडरीक सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पं. क्षेमवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सरसति समरी गुरु नमि; अंति: खेम वयण उजमाल रे, गाथा-१७. ८६७८४. भविष्यनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हंडी:भविसनि., दे., (२१४११.५, ११४२८-३०). For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-भविष्य विशे, मु. लब्धिविजय; मु. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भविसमे लखुं होय ते; अंति: लब्धिविजय ० जो सार, गाथा- ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६७८५ (+) छप्पन बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. वालापुर, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २४ १२.५, ११X३२). ५६ बोल- साधु आचार, रा. गद्य, आदि ते विधि पुस्तक लिखो, अंति कहीई पीडवीसुध साख. ८६७८६. (४) पर्युषणापर्वविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. दे., ( २२x१२.५, १०x२२-२८). पर्युषणपर्व अठाई स्तवन, मु. हेमसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पास जिणंदा; अंति: जपे हेमसोभाग हो, गाथा-३७. ८६७८७ (+) ग्यान गुटको, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४. प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२३४१२, १२४३२-३६). आलोयणाविचार दोहा, मा.गु., पद्य, आदि सिद्ध श्रीपरमातमा अति को पावै मुक्त समाध, गाथा ८९. ८६७८८. (+) कुशालचंदगुरुगुण गीत, संपूर्ण वि. १९११, मध्यम, पृ. ३. ले. स्थल, पीपाड, पठ. सा. उमेदाजी आर्या, ', प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२२x११, १४- १७३०). कुशालचंदगुरुगुण गीत, मु. भगवानदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९११, आदि: अविनासी कासि धणी; अंति: भगवानदास मन आणंद ए, गाथा - ४१. ८६७८९. (४) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२x१२.५, १०-११x२८-३२). 3 महावीरजिन स्तवन-समकितविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: प्रणमी पद जिनवरतणां; अति: (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण ढाल १ मात्र लिखा है.) ८६७९०. जिनमाता १४ स्वप्न विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५- १ ( ३ ) =४, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२२.५X१२, १३X२८-३१). १४ स्वप्न विचार-जिनमाता, मा.गु., गद्य, आदि: तथा केवलीइ एक भवनइ; अंति: (-), (पू.वि. स्वप्न-२ अपूर्ण से कमलसरोवर अपूर्ण तक व स्वप्न ५ अपूर्ण से नहीं है.) ८६७९१. (+) शांतिनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, वे., (२२.५X१२, ९-११x२४-२८). शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज ओलग; अंति: मोहन० पंडित रूपनो, गाथा-७. ८६७९२. (*) शांतिजिन लावणी व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ६-५ (१ से ५)=१, कुल पे. २. प्र. वि. प्रारंभ में अज्ञात किसी रास की अंतिम पंक्ति है., संशोधित., दे., (२२.५x१२.५, १२x२८-३२). १. पे. नाम. शांतिजिन लावणी, पृ. ६अ, संपूर्ण. गाथा- ७. शांतिजिन स्तवन, मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ महाराज; अंति: विरविजय० तुमारी सेवा, २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्यविषयक, मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक मास केडे मास जाए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ११ अपूर्ण तक है.) हाथ, गाथा - ९. २. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ८६७९३ औपदेशिक सज्झाय, शत्रुंजयतीर्थ स्तवन व विष्णु स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र- १आ के दाहिने भाग में कुछ अस्पष्ट वाक्य उल्लिखित हैं. दे. (२२.५४१२, १२४२५-३०). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाव, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा कां भमे; अंति: For Private and Personal Use Only महमुद० अरहंतने Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १४७ म. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल भेटवा; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. विष्णु स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शांताकारं भुजगशयनं; अंति: भयहरं सर्वलोकैकनाथम्, श्लोक-१. ८६७९४. गुरुगुण गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४१२.५, ११४३४). गुरुगण गहंली, म. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हं तो हरख धरीने; अंति: झाजा जस लीजिये, गाथा-१०. ८६७९५. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५४१२.५, ५४३२). महावीरजिन स्तवन, मु. लाभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आजूनो आजूनो आजनो रे; अंति: वंछित अनोपम आजुनो रे, गाथा-३. ८६७९६. संघयणरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२३.५४११, १६-१८४३४-४०). संग्रहणी स्तवन, म. चारित्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति वरसति सकतिरूप; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ की गाथा-२२ तक लिखा है.) ८६७९७. (+) पांच महाविदेह गणणां, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पत्र १४३, संशोधित., दे., (२२४११.५, ३१-३२४७-१८). १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीजयदेवजी २ श्री; अंति: श्रीबलभद्र सर्व. ८६७९८. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १३४२२-२६). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहेलुं पंचपरमेष्टि; अंति: यथाशक्ति पछखाण करावै. ८६७९९ (+) सम्मेतशिखरजी आरती व गुरुगुण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१३१३) खाजो पीजो खरचज्यो, जैदे., (२१x१२.५, १६४१५). १. पे. नाम. समेतशिखरजी आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ आरती, मा.गु., पद्य, आदि: आरती समेतशिखरजी की; अंति: संघकुं सिवसुख दीजै, गाथा-११. २. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: आज म्हारै आनंद रंग: अंति: हे अतिसै निरमलो. गाथा-७. ८६८०० (#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९६२, वैशाख कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. गुमानविजय (गुरु मु. रत्नविजय); गुपि.मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पजुसण., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२१.५४१२, १०x२०). पर्यषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुषण गुणनीलो; अंति: पाम्यो जय जयकार, गाथा-९. ८६८०१. नसित हंडी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२३४१२, १६४३६). निशीथसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: हस्तकर्म करे करावे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., पांचवें उद्देश का बोल अपूर्ण तक लिखा है.) ८६८०२. ५ महाव्रत सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२४४१२, १४४२४-३०). ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सज्झाय-१ की गाथा-३ अपूर्ण से है व सज्झाय-४ की गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८६८०३ (#) बार भावना, अपूर्ण, वि. १९१४, आश्विन कृष्ण, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२-८(१ से ८)=४, प्रले. गंगाराम जोशी; पठ. अंबाराम देसाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२, १०x२५). १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: (-); अंति: तणी जेसलमेर मझार, ढाल-१३, गाथा-१३१, ग्रं. २००, (पू.वि. ढाल-९ की गाथा-८८ अपूर्ण से है.) ८६८०४.(+) स्वामीजी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, अन्य. मु. अनोप, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अनोपजीरे नेसरा छे., संशोधित., जैदे., (२४४१२, १३४२९-३१). For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधु आचार स्तवन, मु. मोतीचंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: चालुजी स्वामी घर छोड; अंति: सांभलजो नरनार जी, गाथा-५३. ८६८०५. पार्श्वजिन मंत्रविधान, पद्मावती आरती व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१२, ९४३७-४३). १.पे. नाम, पार्श्वजिन मंत्रविधान, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मंत्रविधान-नमिऊण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहँ नमीऊण; अंति: दीन प्रत १०८ गणवो, मंत्र-१. २. पे. नाम. पद्मावती आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: जय जय पञ मा जय जय; अंति: चाहे सुख आपो मुजने, गाथा-५. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. __प्रा.,सं., पद्य, आदि: अजाहित्वा सुरापीत्वा; अंति: न गच्छेत् जैनमंदिरे, श्लोक-१. ८६८०६. दृढप्रहारी पंच ढाल, संपूर्ण, वि. १९०६, कार्तिक शुक्ल, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रायपुरनगर, प्रले. मु. हर्षचंद (गुरु मु. कुसालचंद ऋषि); गुपि. मु. कुसालचंद ऋषि; पठ. सा. चंपाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, २२४६१). दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: पंच प्रभूने नित नमु; अंति: गायारिया तणे माय रे, ढाल-५. ८६८०७. (+) उपधानतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १३४४०). उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर धरम; अंति: समयसुंदर० सुख करो, ढाल-३, गाथा-१८. ८६८०८. (-) कृष्णभक्ति पद व नेमराजिमति स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:झुमडरी., अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२, १५४२८). १.पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __क. नरसिंह महेता, पुहि., पद्य, आदि: जी मात जसोदा जलभर; अंति: कोइ साज पडीया दीन की, गाथा-९. २.पे. नाम. नेमराजीमति स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: क्यु आया कीम फरे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ तक लिखा है.) ८६८०९ (+) पद्मावती स्तोत्र, नवकार छंद व आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२,१५४३६). १.पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी छंद, म. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपार्श्व प्रतिमा; अंति: हर्षविजय० सुखकारणी, गाथा-९. २.पे. नाम. नवकार छंद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, संबद्ध, पं. धर्मसिंह पाठक, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: कामितसंपय करणं तम; अंति: कविध्रमसी उवझाय कहि, गाथा-११. ३. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-श–जयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिजिनं वंदे गुणसदनं; अंति: वितनोतु सतां सुखानि, श्लोक-६. ८६८१०. (+) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११.५, १३४३०-३६). सिद्धचक्र स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: तिरथपति अरिहा नमी; अंति: देवचंद्र सुशोभता, गाथा-११. ८६८११ (+#) औपदेशिक व आत्मोपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११.५, १६४३५-४०). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९०२, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, ले.स्थल. केकडी, प्रले. कुसालाजी, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १४९ मा.गु., पद्य, आदि: चेतो रे भव प्राणीया; अंति: वरता जे जे कारे, गाथा-२२. २. पे. नाम. आत्मोपदेश सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: चेतन अनंत गुणा को रे; अंति: भगवतजी रा प्रसागदसू, गाथा-१९. ८६८१२. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मालनगर, दे., (२०४१२, १०४२५). शांतिजिन छंद-हस्तिनापरमंडन, आ. गणसागरसरि, मा.ग., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: मनवंछीत शिवसुख पावे, गाथा-२०. ८६८१३. औपदेशिक कुंडलियाँ व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७७, भाद्रपद शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. सा. पानकवरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सवैयापत्र., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२०४११, २१४४९). १. पे. नाम. औपदेशिक कुंडलियाँ, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक कुंडलियाँ-परनारीपरिहार, मु. रत्न ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नारि उबी गोखडे कहे प; अंति: रत्नदुरगत जडवे तालो, गाथा-४. २.पे. नाम. औपदेशिक सवैयादि संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. दोहा, पद आदि भी संलग्न है. औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुख की धार वरी हो; अंति: हाथ से इतनो दुख पायो, सवैया-२४. ८६८१४. सरस्वतीदेवी छंद व भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२१४११.५, १५-१७४२८). १.पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. २अ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सबही पुजो सरस्वती, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण है.) २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-गीत, संबद्ध, ग. सोमकुंजर, मा.गु., पद्य, आदि: मन समरु चकेसरी मन; अंति: हो सामी जैजैकार, गाथा-१६. ८६८१५ (4) धर्मरुचिअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११.५, ३४४२२). धर्मरुचिअणगार सज्झाय, म. रतनचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६५, आदि: चंपानगरी नीरोपम सुंद; अंति: रतनचंद० लिया सिववासो, गाथा-१४. ८६८१६. दानशीलतपभावना व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४११.५, १२४२३-२७). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८७५, आषाढ़ कृष्ण, २, ले.स्थल. पल्यका, प्रले. मु. प्रेमचंद (चंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधरम कीजीये; अंति: तणा फल त्यांह रे, गाथा-६. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८७५, भाद्रपद कृष्ण, ६, ले.स्थल. पल्यका. पार्श्वजिन स्तवन, आ. यशोदेवसरि, मा.गु., पद्य, आदि: परगट पास जिणंदजी; अंति: यसोदेवसुरी आसजी, गाथा-१०. ८६८१७. बारव्रत छपा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४४१२, ११-१३४३२-३५). १२ व्रत छप्पय, मु. प्रकाशसंघ, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: श्री जीवदया नीत पाली; अंति: ते मोक्षना सुख मालशे, गाथा-१३. ८६८१८. बीजतिथि व सीतासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१२, १४४३७). १.पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: बीज तणे दिन दाखवू; अंति: सर्या सहु काज रे, गाथा-९. २.पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम; अंति: उदय० होज्यो प्रणाम, गाथा-७. ८६८१९. औपदेशिक सज्झाय पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ११, प्र.वि. हुंडी:उपदसी., दे., (२२४११.५, १५४३०). १.पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: खाटो कलियुग आयो रे, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: करम तणी गति न्यारी; अंति: सिवपुर छै न्यारी हो, गाथा-४. ३. पे. नाम. वाणी पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __औपदेशिक पद-वाणी, मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: रसना वीन वीचारी म बो; अंति: करलीयो तोसु कोल रसना, गाथा-५. ४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सिद्ध सरुपी सदा पद; अंति: जनम मिलायो धुले रे, गाथा-५. ५. पे. नाम, आध्यात्मिक लावणी, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: प्राणी कु विषयन से; अंति: जिनदास० माग्यो रे, गाथा-४. ६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: दोय घडीको तडको रह गय; अंति: सुण बहु पाया चैन, गाथा-४. ७. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम औपदेशिक पद लिखा है. मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कीसै वीरह दे गाउ रे; अंति: हुकम करोगो छीन मै०, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: असी विध तीनै पाइयै; अंति: विधि सेती कर जा, गाथा-४. ९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. म. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: कैसा ध्यान धर्या है; अंति: ० करमनी संघ अर्या है, गाथा-४. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तै सव जग छग खाया है; अंति: ताको सीस नमाया है, गाथा-६. ११. पे. नाम, औपदेशिक पद-मान, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: आजी मान म करीस्या; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८६८२० (4) औपदेशिक २५ गुरु बोल व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१२, २३४२३). १.पे. नाम. औपदेशिक २५ गुरु बोल, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुंणीइ गुरु के बोलु, (पू.वि. बोल-२४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतज्यो रे काल; अंति: जे सीवपुरमा भलीयो, गाथा-१५. ८६८२१. पार्श्वजिन सलोको, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:पारसनाथ., दे., (२१.५४१२, १९४२८-३०). पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमं परमातम अविचल; अंति: चवदे राजरो अंतरजामी, गाथा-५६. ८६८२२. नवकारमहामंत्र विधिमय सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सूर्यपुर, जैदे., (२३४१२, १२४३२-३९). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अंति: रे गुणज्यो नवकार, गाथा-९. ८६८२३. माणीभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. १९५७, कार्तिक शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सुरतबंदर, दे., (२३४१२, १६४३५). माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती; अंति: लाख लाख रीझा लहे, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १५१ ८६८२४. छींक विचार व पोसहमा पोसह लेवा विधि, संपूर्ण, वि. १८६६, आश्विन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११.५, ११४३२). १.पे. नाम. छींक विचार, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. ग. शिवचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य. संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पाखी पडिकमणु करता; अंति: तथा संघे भणाववी. २.पे. नाम. पोसहमा पोसह लेवा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. नंदीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: राईया पडिकमणामा; अंति: बीजी सर्व पूर्व रीते. ८६८२५. औपदेशिक पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२२.५४११.५, १३४३४). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. सुग्यानसागर, पुहिं., पद्य, आदि: नहीं ऐसो जनम बारंबार; अंति: ही चलेसी लार नहीं, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, म. संग्रामदास, पुहिं., पद्य, आदि: तेरो उपाये धरीयोई; अंति: हीती यारी हक नाखे, पद-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तु मत मार रे मुजकु; अंति: सुकी चडाव तुजकु, गाथा-५. ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. जीवदास, पुहिं., पद्य, आदि: तु मत मार रे वीरा; अंति: सिवरो साप वहीरा, गाथा-४. ८६८२६. (+) औपदेशिक बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४१२, ११४३७). औपदेशिक बोल, मा.गु., गद्य, आदि: तमने कष्ट पडै त्यारे; अंति: (-), (पू.वि. अनर्थकारी अर्थ करने प्रसंग अपूर्ण तक ८६८२७. (#) ढुंढकपचीसी, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रावण कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. सीरोहीनगर, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, १२४३०-३५). ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमत निरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी प्रणमी; अंति: पयंपे हितकारी अधिकार, गाथा-२५. ८६८२८. (+) २० विहरमानजिन स्तुति व साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११.५, ११४३०). १.पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८८६, वैशाख कृष्ण, ५, पठ. श्रावि. धोलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्री श्रीमंदिर; अंति: करिइ भवनो अंत, गाथा-९. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानावरणादिक गए भए; अंति: पूजो पद अरविंद, गाथा-४. ८६८२९. प्रज्ञापनासूत्र-पद १२ का बंधेलका मकेलका थोकडा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२३४१२, १८४४९-५५). प्रज्ञापनासूत्र-पद १२ का बंधेलका मुकेलका थोकडा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: हो भगवान बंधेलका; अंति: जाव नारकी परे कहना. ८६८३० (+) मुनिवर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, १४४४०). गुरुगुण गहुँली, जै.क. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: वे गुरु मेरे उरवसो; अंति: चढो भूधर मांगे एह, गाथा-१५. ८६८३१. आदिजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३२-३६). आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोद रंग धारणी; अंति: सो ऋद्धि सिद्धि पाइए, गाथा-९. ८६८३२. (+) समवायांगसूत्र-पीठिका का टबार्थ+बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.१,प्र.वि. टबार्थ बालावबोध शैली में लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १५४४६). For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७उ, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८६८३३. सधर्मास्वामी सज्झाय, नेमिराजिमती स्तवन व सीतासती पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:सीयाजी., दे., (२४.५४११.५, १७X४५). १. पे. नाम. सुधर्मास्वामि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी सज्झाय, मु. राम मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सुधर्मा हो; अंति: नित वंदे मुनि राम, गाथा-६. २.पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जादवराय आठ भवांरी; अंति: राम० वंदे वारंवार, गाथा-७. ३. पे. नाम, सीतासती पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंडित. तुलसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: मेगनाथ माता कन आय; अंति: मिलवा मंदोदरी राणी, गाथा-८. ८६८३४. (#) सूतक विचार व ५६३ जीवभेद यंत्र, संपूर्ण, वि. १९१८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पल्लिका, प्रले. पं. हंसराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, ११४३५-४०). १.पे. नाम. सूतक विचार, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पुत्र जनम्या दिन १०; अंति: तो १२ प्रहर सूतक. २. पे. नाम. ५६३ जीवभेद यंत्र, पृ. २अ, संपूर्ण.. मा.गु., को., आदि: भरतक्षेत्र महाविदेह; अंति: (-), (वि. अंतिम वाक्य अंकमय है.) ८६८३५. (+) आचार बावनी व प्रहेलिका दूहा, संपूर्ण, वि. १९६३, पौष कृष्ण, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. छोटीसादडी, प्रले. मु. लालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आ.बा. मुनि माणकचंदजी द्वारा सं.१८८१ में लिखि गइ प्रत उपर से प्रतिलिपि की गइ है., संशोधित., दे., (२५४११.५, १७४३६-४१). १.पे. नाम. साधु आचार बावनी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. साधु आचार स्तवन, मु. मोतीचंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: वर्द्धमान शासणधणी; अंति: सांभलजो नरनार जी, गाथा-५२. २.पे. नाम. प्रहेलिका दहा, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चार मील्या चोसठ हसे; अंति: चतुर करोनी चाउ, गाथा-१. ८६८३६. बासठियो, अपूर्ण, वि. १८७३, आश्विन शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ५-३(२ से ४)=२, जैदे., (२५४११.५, १६४१७). ६२ मार्गणा उदय यंत्र, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठ नहीं हैं.) ८६८३७. जंबूकुमार व शालिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १७७५५). १.पे. नाम, जंबूकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक नरवर राजीओ; अंति: छे मोक्षि दुवार, गाथा-१६. २. पे. नाम. शालिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाला तणे भव; अंति: सहजसुंदरनी वाणी, गाथा-२०. ८६८३८. (-) आदिजिन सलोको व भांजगडीयोरी ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी:भांजघडयोखटपट., अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४१२, १४४२९-३१). १. पे. नाम, आदिजिन सिलोको, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आदिजिन सलोको, मु. कुशलचंद, रा., पद्य, वि. १९६१, आदि: (-); अंति: कुसलचंद० जोत सवाई, गाथा-४४, (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. भांजगडीयोरी ढाल, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __ भांजगडीया खटपटीया ढाल, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: निराकार चिद्रुप अजरा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ के दोहा-१ अपूर्ण तक है.) ८६८३९. पचीस बोलनो थोकडो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:पचीस बोल., जैदे., (२४४११.५, २२४३८-४५). For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोल गत च्यार; अंति: जथाख्यात चारित्र. ८६८४० च्यार प्रकार आहार व अणाहारीवस्तु नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१२, १३४२९-३२). १. पे. नाम. च्यार प्रकार आहार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ४ आहार विचार, मा.ग., गद्य, आदि: असन ते शाल ज्वारी; अंति: कहिई ए ४ आहार कह्या. २. पे. नाम, अणाहारीवस्तु नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: पंचगलिंब मुल १ छालि; अंति: ते सर्व अणहारी जाणवा. ८६८४१ (+) सीमंधरजिन वीनती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, १८४३५-४०). सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ तक लिखा है.) ८६८४२ (-) नागिलाभवदेव, मेघकुमार व चेलणासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १४४३८). १. पे. नाम, नागिलाभवदेव सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, आदि: भावदेव भाई घरी आविया; अंति: प्रणमइ पार रे, गाथा-८. २. पे. नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावै हे; अंति: छूटइ भव तणा पाश, गाथा-५. ३. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: पांमिस्यै भव तणो पार, गाथा-७. ८६८४३. निगोदविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:निगोदत., जैदे., (२४४११.५, ११४३५). महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित, मु. क्षमाप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी नमियें सदा; अंति: क्षमाप्रमोद जगीस ए, गाथा-४८. ८६८४४. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १०४३४). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: श्रीजिनचंद्र० मन आस, गाथा-९. ८६८४५. (+) महावीरवृद्धि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६८, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४११.५, २३-३१x१७-२०). महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: इक मन वंदो श्रीवीर; अंति: नवै देह मनवंछित भणी, गाथा-२८. ८६८४६. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२३४११.५, ७X२२-२४). शत्रंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कर जोडी कामणि कहे लल; अंति: सेवक जिन धामए, गाथा-१७. ८६८४७ (+#) धन्नाअणगार सज्झाय व धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, १६४३५). १.पे. नाम, धन्नाअणगार सज्झाय, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. म. ठाकरसी, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीजिनवर मुख वाणी; अंति: गाया हे मन में गहगही, गाथा-२१. २. पे. नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मोने धरमजिणंद; अंति: मोहन० अति घणो रे लो, गाथा-६. ८६८४८. विनयपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४११.५, ९४२१). विनयपच्चीसी, पुहिं., पद्य, आदि: जिणशासन को मूल है; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६८४९. होणहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२२.५४११.५, ९४३४). __ भाविभाव सज्झाय, मु. शिवलाल, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: कोइ यक नगर वखाणु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१८ अपूर्ण तक लिखा है.) ८६८५०. (2) सज्झाय व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कल पे. ४.प्र.वि. पत्र १४२ है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे., (२३.५४१२, ४४४२७-३०). १. पे. नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे; अंति: छुटी ए कर्मनो पास, गाथा-५.. २. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पंडित. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: दीवाली दिन पर्व; अंति: सासन शुरी जग चंदाजी, गाथा-४. ३. पे. नाम, अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: तपथी कोडि कल्याण जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-विकथा, मा.गु., पद्य, आदि: हारे मारे सरसति; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., __ढाल-३ की गाथा-१६ अपूर्ण तक लिखा है.) ८६८५१. (+#) श्रावकगण सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१२, ४७४२५). १. पे. नाम, श्रावकगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहियै मिलसै रे; अंति: सफल जन्म तिण लाधो जी, गाथा-२१. २. पे. नाम. क्रिया विधि अविधि विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. अभयराम, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., गद्य, आदि: कहे छे जे क्रिया; अंति: जावे तेहथी संसार वधे. ३. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन-रूपातीतगर्भित, म. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुंही साहिबा रे मन; अंति: मानविजय० सरिखाई थाय, गाथा-९. ४. पे. नाम, अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु तुज दरिसण; अंति: रस माहल्यो एकताने, गाथा-७. ८६८५२. फलवर्धीपार्श्वनाथ, पंचपरमेष्ठि स्तवन व आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२४११.५, १२४२७). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: श्रीफलवधिपुर पासजी; अंति: सासता रतन अनूप मिलाइ, गाथा-६. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हम बैठे अपने मौन; अंति: सुरझै आवागौनसों, गाथा-४. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिरक्षा स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्टि नमस्कार; अंति: आधिस्चापि कदाचन, श्लोक-८. ८६८५४. (#) २० स्थानक चैत्यवंदन, स्तवन व ५ मूलभाव विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४४११.५, ११४२६-३२). १.पे. नाम. २० स्थानकतप चैत्यवंदन-कायोत्सर्गसंख्यागर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: चोवीस पनर पीताली; अंति: पद भणी नमस्व का साधो, गाथा-४. २.पे. नाम. २० स्थानकतप स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. श्रीश्रीमांणभदरजी सत्य छे. मा.गु., पद्य, आदिः श्रीजिनवर प्रणम; अंति: वीसथान कहा माहाराज, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org ३. पे नाम, ५ मूलभाव ५३ उत्तरप्रकृति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: द्विभेद ओपशमिक भाव; अंति: एवं ५३ भेद थया. ८६८५५. चरणसित्तरीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२१.५४११.५, ९४२८). ', " चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि पंच महाव्रत दसविध; अति: जगमां सुजस वाघो जी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-८. ८६८५६. (#) इलाचीकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्र १x२ है., अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. दे. (२१x११.५, ३०-३२४१५-२० ). " इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि नामे एलापुत्र जाणीयो; अंति: लबधीविजय गुण गाय, गाथा-४९. जैदें.. ८६८५७ उदाईराजा चौढालियो अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २- १ (१) = १ प्रले. सा. जीउ आर्या (गुरु सा जेठाजी आर्या); गुपि. सा. जेठाजी आर्या (गुरु सा. लाछांजी आर्या); सा. लाछांजी आर्या (गुरु मु. जेमल ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, (२१x११, २०X२५). उदाईराजा चौडालियो, मु. . जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: जैमल० दुकडोमोड़ रे, डाल-४, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., ढाल ४ की गाथा १ अपूर्ण से है.) मा.गु., गद्य, आदि: उपसमभाव १ क्षयोपशमभाव; अंति: ए ३ भेदए ५३ जाणवा. २. पे नाम, जीवभेद गाथा सह टवार्थ, पृ. १अ संपूर्ण १५५ ८६८५८. पखवासापारण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : पखवासा., दे., (२२x११.५, १३X२६-३३). पाक्षिकतप पारणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि पखवासा तप पूरौ हुवा अति पूजा करे पारणी करे. ८६८५९ (+) शांतकविधिव तपांसि संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी: शांतकविधिः, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५X११.५, १५X४५). १. पे नाम. शांतक विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण वि. १८७०, माघ कृष्ण, २ ले स्थल. कंटालीया, प्रले. पं. नगा, प्र.ले.पु. सामान्य. शांतिक विधि, मा.गु., गद्य, आदि तणी बांधी माटी प्रति; अंति: मंगलीक वधावीये. २. पे नाम तपांसि पृ. १आ- ३अ, संपूर्ण. तपावली, सं., प+ग., आदि: ज्ञानतपः उपवासत्रयं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., रोहिणी तपपूर्ण तक लिखा है.) , ८६८६० (+) सिद्धचक्रपूजन सूचिका, संपूर्ण वि. १८७६ कार्तिक कृष्ण ११, मध्यम, पू. २ ले स्थल. महिपूर, अन्य पं. मोहनदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका बीच में दी गई है., संशोधित., जैदे., ( २४.५X१२, १४X३०-३६). सिद्धचक्रयंत्र संक्षिप्त पूजनविधि, मा.गु., सं., प+ग., आदि: ॐ भूरसी भूतधात्री, अंति: पछै सुख विचरीजै. ८६८६१. ५ भाव के ५३ उत्तरभेद नाम, जीवभेद गाथा सह टबार्थ व गहुंली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे. (२४१२, १४४५८). " १. पे. नाम. ५ भाव के ५३ उत्तरभेद नाम, पृ. १अ, संपूर्ण जीवभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि धावर बिगला नेरवा तिस अंतिः जिनधम्मउज्जमं कुणह, गाथा-४, (संपूर्ण, वि. प्रतिलेखक ने गाथा-४ न लिखकर ५ लिखा है. ) जीवभेद गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि थावर विगलंद्री नारक, अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा का टवार्थ नहीं लिखा है.) ३. पे नाम प्रभाति गहुंली. पू. १आ, संपूर्ण. प्रभाती गहुली, मु. दीपविजय, रा., पद्य, आदि आजो रे बाई आजो रे; अंतिः नामे महामंगलपद पावे, गाथा- ९. ४. पे नाम. जिनवाणी गहुली, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि अमृत सरखी रे सुणीई अतिः प्रभुने प्रभुता दीजे, गाथा- ७. For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६८६२. लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ८, जैदे., (२४.५४११, १३-१५४३०-३४). १.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: पिया बीन झर झर हुइ; अंति: जिनदास० लाग पवन उनी, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी-मगसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: मुगतगढ जीत लिया वंका; अंति: जिणदास० में कोई संका, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी-मगसी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: मुगतगढ जीत लिया वंका; अंति: जिणदास० में कोई संका, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, रा., पद्य, वि. १७वी, आदि: अरे मन सुणरे थारी सफ; अंति: जिनदास मान नहि नावे, गाथा-५. ५. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: अरी माइ रे मेरो नेम; अंति: मलजी ग्यांन के मेना, पद-५. ६. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु.जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुकरत की बात मेर हाथ; अंति: जिनदास० मेरो नहि रे, गाथा-५. ७. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. __मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सजन विन गुन तजी हमकू; अंति: जीनदास प्रभु हमकुं, गाथा-५. ८. पे. नाम. राजिमतीसती विलाप लावणी, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: दे गया दगा दिलदार; अंति: जिनदास०बैठ वीनती गाई, गाथा-५. ८६८६३. (+) चेलणासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८०, माघ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३२-३४). चेलणासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दासी उभी जोगी समीप; अंति: करी छे म्हान नाही रे, ढाल-२, गाथा-४६. ८६८६४. लालजी महाराज सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२३.५४११, १४४२८-३४). __ लालजीमहाराज सज्झाय, पुहिं., पद्य, वि. १९५९, आदि: पुज पधार्या आप हुआ; अंति: ध्यान कर चितचाया, गाथा-७. ८६८६५. सचित्तअचित्त सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १४४४२-४८). सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी सदा; अंति: नयविमल०पदवि लेसे तेह, गाथा-२५. ८६८६६. जेमलऋषि गुणमाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जोधाणा, दे., (२४.५४११.५, १७२३२-३६). जेमलऋषि गणमाल, म. भगवानदास, रा., पद्य, वि. १८९१, आदि: पुज जैमलजीरो सीमरण; अंति: भगवानदास० गुण गाय जी, गाथा-१९. ८६८६७. पद्मावती आलोयण, संपूर्ण, वि. १९०१, चैत्र कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:आलोयणपत्र., दे., (२४.५४११.५, ७४२४-२६). पद्मावती आराधना, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवै राणी पदमावती; अंति: समयसुंदर छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३५. ८६८६८. सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. ६, दे., (२४४१०.५, १८x२८-३९). १.पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: खरदुषणसु जगडो माचोयो; अंति: जासी मुगत्या माह, गाथा-३१. २. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: राजमतीजी मोटी सती रे; अंति: लाल अजर अमर पद पाय, गाथा-१५. ३. पे. नाम. सदर्शनसेठ सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. सा. मनाबाई, मा.गु., पद्य, आदि: सेठ सुदर्शण सरावग; अंति: मणा० गत बाकडी रे लाल, गाथा-८. 11. For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पे नाम. सिद्धपद महिमा वर्णन, पृ. ५अ, संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदि दूज पद सिद्धाणं कहता, अति करी विराजमान थया. ५. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५३-५आ, संपूर्ण, औपदेशिक सज्झाय-सुकृत, पुहिं., पद्य, आदि: सुकरत करणा वह सो कर; अंति: लघाव कर बातां सत की, गाथा-८. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, मु. सूरजमल, पुहिं., पद्य, वि. १९५२, आदि: खबर नहीं है जुग में; अंति: सुरजमलजी लाव जोडी, गाथा-६. ८६८६९. २० असमाधिस्थानादि बोल संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, वे. (२३४११.५, ३८४३८). १. पे. नाम. २० असमाधिस्थान बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. २० बोल असमाधि, मा.गु., गद्य, आदि: दव दव करतो चालतो; अंति: अणरासती आहार भोगवे, कडी-२०. २. पे. नाम. २९ सबला बोल, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. २१ बोल- सबल दोष, मा.गु., गद्य, आदि हस्तकर्म करतो मैथुन अति: (-). ३. पे. नाम. आचारांगसूत्र अध्ययन नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. आचारांगसूत्र- अध्ययन नाम, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. ३० मोहनीय कर्मबंध, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. अवशेष पाठ १अ पर है. ३० बोल-महामोहनीय कर्मबंध, मा.गु., गद्य, आदि: त्रस जीवने पाणीमाहि; अंति: देवता आवेछे इम कहे. ५. पे नाम. ३२ योग विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. वह कृति १अ पर है. मा.गु., गद्य, आदि: आलोयणा १ निरवलेवे २; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल- २४ अपूर्ण तक लिखा है.) ८६८७०. (+) २० बोल व समता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४१, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. व्यारा, प्रले. मु. विना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: समतार, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित जैदे. (२५x११.५, २१४३८-४४). १. पे. नाम. २० बोल वाद निवारण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १५७ २० बोल वादनिवारण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: किणसुइ वाद वीवाद न; अंतिः रायचंद ०० प्र उपगारजी, गाथा १८. - २. पे. नाम. समता सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि चाखो रे नर समता रस अंति रायचंद ०० हरख हुलासोजी, गाथा २२. ८६८७१ (१) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, भावनगर, प्रले. ग. खीमारुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३x११.५, १२X३०-३६). सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि भावे कीजे रे नवपद अति उत्तम गुणनो रे ठाण, गाथा ११. ८६८७२. सिद्धचक्र स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, दे. (२३.५४११.५, ११४३०-३४). " १. पे नाम. सिद्धचक्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि नवपद महिमा सार सांभल अति उत्तमसागरसीस० जाणियो, गाथा-५. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविनोद, पुहिं., पद्य, आदि गौतम पूछत श्रीजिन; अंति ज्ञान० करो भगवान की गाथा- ७. ८६८७३. (+) ६२ मार्गणा, १४ गुणस्थानक यंत्र व ५ भाव विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. दे.. (२४x११.५, २३X३५-५० ). ९. पे. नाम. ६२ मार्गणा यंत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., को, आदि देवगति मनुष्यगति; अंति असन्नी आहारक अणाहारी. २. पे नाम. १४ गुणस्थानक विचार यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को, आदि मिध्यात्व सास्वादन: अंतिः क्षीणमोह सजोगी अजोगी. For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. ५ मूलभाव ५३ उत्तरप्रकृति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: उपशमिक भाव २ उपशमिक; अंति: उवसमसेढि पुणपयोमो. ८६८७४. नेमिराजल बार्हमासिया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४११.५, १३-१५४३०-४०). नेमराजिमती बारमासा, मु. अमरविशाल, मा.गु., पद्य, आदि: यादव मुझनै सांभरै; अंति: भणी विनवै अमरविशाल, गाथा-१९. ८६८७५. तेरकाठियाद्वय व वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११.५, १३४४२). १.पे. नाम. तेर काठिया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: परमाणंदिइं लीणमन आणी; अंति: लाधउ अविचल ठाम, गाथा-१०. २. पे. नाम. तेर काठिया सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, म. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम नामि टलइ सवि; अंति: ते नर पापि न छीपइ रे, गाथा-१६. ३. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. साधगण सज्झाय, आ. विजयदेवसरि, रा., पद्य, आदि: पांचइ इंद्री अहिनिशि; अंति: इम भणइ विजयदेवसरोजी, गाथा-९. ८६८७६. (+) सीमंधरजिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १३-१४४४०-५८). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधनां; अंति: उदयरतन उपसम रस नाही, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीए: अंति: उदयरतन० देसोटो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, म. उदयरत्न, मा.ग., पद्य, आदि: समकितनं मुल जाणीये; अंति: उदय०मारग छे शुद्ध रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, म. उदयरत्न कवि, मा.ग., पद्य, आदि: तमे लक्षण जो जो लोभ; अंति: उदयरतन० तेहने सदा रे, गाथा-७. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चांदलिया संदेशो; अंति: जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-१५. ६. पे. नाम. ७ व्यसन सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु.जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुरु; अंति: सीस रंगै जयरंग कहै, गाथा-९. ८६८७७. व्याख्यान पीठिका, संपूर्ण, वि. २०वी, माघ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संवतवाला भाग खंडित है., दे., (२३.५४११.५, ८४२५). व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, आदि: (१)अनित्यानि शरीराणि, (२)अर्हत भगवंत असरण; अंति: मांगलिक्यमाला संपजे. ८६८७८. सिद्धाचल स्तवनद्वय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४११.५, ११४३०). १. पे. नाम. सिद्धाचलजी महाराजरौ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शवजयतीर्थ स्तवन, मु. केवल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेत्तुंजो भेटीया; अंति: मांगु हुं नितमेव, गाथा-११. २.पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल ध्यावो रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८६८७९. अंतरायनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४१२, १२४३२-३६). For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १५९ असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीइं; अंति: ऋषभ० वरस्यो सिद्धि, गाथा-११. ८६८८० रहनेमी सज्झाय, वज्रधरजिन व चंद्राननजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२३.५४११.५, १५-२७४१६-२४). १. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. श्रीदेव, पुहि., पद्य, आदि: झरमर झरमर वरसे मेहा; अंति: श्रीदेव०वेग त्रिकाला, गाथा-७. २. पे. नाम, वज्रधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वीरविमल शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुरवर चिंत रे; अंति: विरविमलगुरु०ताहरीसेव, गाथा-५. ३. पे. नाम. चंद्राननजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वीरविमल शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी मुझ मंदर पधारी; अंति: विरविमल गुरु०वारोवार, गाथा-५. ८६८८१. छ आवश्यक विचार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. श्राव. हरिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, ११४३२-३६). ६ आवश्यकविचार स्तवन, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिन चीतवी; अंति: विनयविजय०शिवसंपद लहे, ढाल-६, गाथा-४४. ८६८८२. पार्श्वजिन स्तवन व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१२, १५-१६x४०-४४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि सारदमाय पाय घण; अंति: कांतिविजय०सिद्धि करो, गाथा-२१. २. पे. नाम. औपदेशिक दहो, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: प्रेमवात ही रखीइ; अंति: बाहिर निकसत नाहि, गाथा-१. ८६८८३. (+) उसरावण सातढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. पनालाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उसवण., संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १८४३६-४२). औपदेशिक सज्झाय-उपकारविषे, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीअरिहंत सिद्धने; अंति: राय मेडतैनगर चौमास ए, ढाल-७, गाथा-९२. ८६८८४. (+) आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११.५, ११४२४-२८). ___ आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहि., पद्य, आदि: एसा ज्ञान विचारो; अंति: चिदानंद० नवि टाले रे, गाथा-७. ८६८८५. गुरुशिष्य प्रश्नोत्तर संवाद, दानशीलतपभावना सज्झाय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११.५, २०४४३). १.पे. नाम, गुरुशिष्य प्रश्नोत्तर संवाद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: देखी रे चेला विणा; अंति: गुराजी मौत मुवा, प्रश्न-१८. २. पे. नाम, दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जयैतादास, मा.गु., पद्य, आदि: दान एक मन देह जीवडे; अंति: कहे जयंतीदास रे, गाथा-१३. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-भलेगर्भित, पुहिं., पद्य, आदि: भली बात करीए माडी; अंति: धर्म करो सिवरमणी वरो, गाथा-४. ८६८८६ (+#) भलेनो अर्थ, संपूर्ण, वि. १८८१, चैत्र शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३४-३८). भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालागमन पंडित संवादगर्भित, मा.ग., गद्य, आदि: प्रभु लेशालें बेठा; अंति: परमानंद पामस्यौ. ८६८८७. सिद्धचक्र नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १२४३०-३२). For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: साधुविजयतणो० ___ करजोड, गाथा-५. ८६८८८ (+) गजसुकुमालमुनि व प्रभंजनासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३-१४४४०-५२). १.पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: द्वारिकानयरी ऋद्धि; अंति: देवचंद० साहाय रे, ढाल-३, गाथा-३७. २. पे. नाम. प्रभंजनासती सज्झाय, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरि वैताढ्यने उपरे; अंति: देवचंद्र०लील सदाई रे, ढाल-३, गाथा-५०. ८६८८९. अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १४४२२-२६). अजितजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ज्ञानादिक गुण संपदा; अंति: देवचंद० भावधरम दातार, गाथा-१०. ८६८९० महावीरस्वामीको छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १४-१५४४४-५२). महावीरजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: महावीर सासण धणी जिन; अंति: लालचंद० __ श्रीवीरजिणंद, गाथा-११. ८६८९१ (+#) २४ तीर्थंकरारो लेखो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हंडी:चोवीसीज्ञां०, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, २१४४२-४४). २४ जिन लेखो, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला श्रीऋषभदेव; अंति: माहरी वंदना होज्यो. ८६८९२. पद्मावती आराधना स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२३.५४११.५, ११४३०-३२). पद्मावती आराधना, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर० छुटे ___ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. ८६८९३. (+) उपदेश सज्झाय, लेश्या विचार व लघुशांति स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, पठ. श्राव. चांदमल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११.५, ११४३०-३२). १.पे. नाम. बुढापा सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८९२, कार्तिक कृष्ण, ४. मु. जेमल, रा., पद्य, आदि: दुलभ मीनष जमारो पाय; अंति: मूनीवर दे सीख रसाल, गाथा-२६. २.पे. नाम. लेश्यालक्षण श्लोक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: अतिदुष्ट सदाक्रोधी; अंति: शुक्ललेश्याधिको नर, श्लोक-६. ३. पे. नाम. लघुशांति, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांति; अंति: जयनं जयति शाशनम्, श्लोक-१९. ८६८९४. ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४८ हैं., जैदे., (२३४१२, १२४२६-३२). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.ग., को., आदि: (-); अंति: (-), अपर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण ८६८९५. पर्युषणपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११, १०४३४-३६). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम समरु सरसती पाय; अंति: तस गुरु वलभ गुण गाय, गाथा-१६. ८६८९६ (#) जिनप्रतिमा, शांतिजिन स्तवन व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१२, १२४३०-३४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिमा हो; अंति: समय० जिनप्रमासुं नेह, गाथा-७. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदररूप सोहामणुं; अंति: समय० आपो परमाणंदो रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. ६ विगइ नाम, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. हासिया मे लिखा है. For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ मा.गु., गद्य, आदि: दुध दही माखण घी तेल; अंति: गोल खांड साकर मदिरा. ४. पे. नाम. साधु उपकरण नाम, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. हासिया मे लिखा है. जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ८६८९७. धन्नाअणगार सज्झाय व जिनचंदसूरि वधावो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२२.५४११.५, ९-१०४२८-४०). १. पे. नाम, धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. म. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वचन चित्तधारी; अंति: अमरसी० होइ नवनिद्ध, गाथा-१९. २. पे. नाम, जिनलब्धिसूरि वधावो, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सारा सिरीसंघनी पूज; अंति: लालचंद०वरस प्रतिपीजै, गाथा-७. ८६८९८.(-2) पारसनाथजीरो सीलोको, संपूर्ण, वि. १९४०, माघ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. जेठमल ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. लेखन स्थल अवाच्य है., अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११.५, १५-१६४३२-३६). पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमुं परमातमा; अंति: जोरावरामलो०० __ आतराजमी, गाथा-५६. ८६८९९ (#) पार्श्वजिन, वरदायिनीमाता स्तोत्र व वरकाणापार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. ध्राणपुर, प्रले. मु. जगरूपसागर; पठ. श्राव. माहासिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११.५, १३४३२-३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथ; अंति: परय वांछितं नाथ, श्लोक-५. २. पे. नाम, वरदायिनीमाता स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सशिकर निकर समुद्जल; अंति: सहेदसुंदर० सरस्वती, ढाल-३, गाथा-१४. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. नित्यप्रकाश, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद हो पाय नमे; अंति: नितप्रकार०सुखीया करै, गाथा-१३. ८६९०० (2) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२४११.५, १४४३२-३६). १. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तति, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं; अंति: सा अह्म सया पूसथ, गाथा-४. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ आ. सोमतिलकसरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराज पदपद्म; अंति: दाता ददुत स्यवं वा, श्लोक-१. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ४. पे. नाम, शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. हेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: तज लवंग जायफल एलची; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ तक लिखा है.) ५. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: भौमवक्रे अनखय बुध; अंति: वरसे धूल न वरसे पाणी. ८६९०१ (+) सज्झाय, पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११.५, १२४३०-३६). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रामचंद्र, रा., पद्य, आदि: कांई रे गुमान करे आप; अंति: परभव से डरता रहीजै, गाथा-११. २. पे. नाम. दसपचक्खाण पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-दसपचक्खाण, म. राम, मा.गु., पद्य, आदि: दसपचखाणे जीवडोजी काई; अंति: राम० पामस्यौ शिवसर्म, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, म. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: उठोने मोरा आतमराम; अंति: वस्तु सदा बधाइ रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. २४ जिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.. म. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव; अंति: रामचंद्र० गावे रे लो, गाथा-५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. हिम्मत, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण माहरा प्रभुजी; अंति: हीत रे सुरतरु सामंद, गाथा-६. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण; मु. खेमचंद, पुहिं., पद्य, आदि: निरमल होय भजले; अंति: कमलगछ खेमचंद की वाणी, गाथा-८. ८६९०२ पद, स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. ७, दे., (२१.५४१२, १९४२९-३०). १. पे. नाम. आध्यात्मिक होली पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जडाव, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: होली खेलो रे हारे; अंति: जडाव० वद चवदस जाणी, गाथा-८. २. पे. नाम, आध्यात्मिक होली पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक होली पद-जीवदया, मु. जडाव, रा., पद्य, वि. १९५१, आदि: मती ढोलो रे हां रे; अंति: जडाव० जनम सुधरे, गाथा-११. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. औपदेशिक पद-सुकृत, मु. जडाव, रा., पद्य, आदि: कीजी कीजी रे हारे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-तमाखू परिहार, मु. जडाव, रा., पद्य, वि. १९५१, आदि: मत पीवो रे हां रे मत; अंति: जडाव० करो सुगणा, गाथा-१३. ५. पे. नाम. १० बोल सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. जडाव, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतो रे दस बोल; अंति: सिवरमणी न्यारी रे, गाथा-५. ६.पे. नाम. दीवालीपर्व स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. दीपावलीपर्व स्तवन, म. जडाव, रा., पद्य, आदि: जिण दिन मुगत गया जिन; अंति: जडाव० मंगलमाली रे, गाथा-९. ७. पे. नाम. ७ व्यसनपरिहार सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण.. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जडाव, रा., पद्य, आदि: सात वीसन मती सेवज्यो; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८६९०३. (#) देवशीप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.२, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११.५, ११४२५). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम इरीयावहि पडिकम; अंति: डाभे हाथे नोकार गणवो. ८६९०४. (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८९२, कार्तिक कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, पठ. मु. चंद्रभाण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२२४१२, १३४३०-३५). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, ढाल-६, गाथा-४९. ८६९०५. शेजय थुई व सच्यायमात स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, १६४३८). १. पे. नाम. शेव्रुजय थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि: आगे पुरव वार; अंति: कारिज सिद्ध हमारी जी, गाथा-४. २. पे. नाम, सच्यायमात स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सच्चियायदेवि छंद, हेम, मा.गु., पद्य, आदि: सानिधि साचल मात तणी; अंति: हेम कहे सिचियाय तणा, गाथा-५. ८६९०६ (+) उपवास फल व जिनवंदन फल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४११, १७४४७). १. पे. नाम, उपवास फल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपवासफल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ उपवास करे तो एकनो; अंति: जोडे कीजे उपवास. २. पे. नाम. जिनवंदन फल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चौवीसे करूं; अंति: कीरतविमल वंदे निसदीस, गाथा-१२. ८६९०७. गुरुविहारविनती गीत, महावीरजिन व चिंतामणी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४२, कार्तिक शुक्ल, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. सांकलेश्वर महेश्वर व्यास; अन्य. श्रावि. जेठीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१२, १०४२४-२७). १. पे. नाम. गुरुविहारविनती गीत, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर पाय नमी; अंति: म करो आज विहार, गाथा-२०. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-विजयसेठविजयासेठाणी विनतीगर्भित, म. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८८८, आदि: एकवार कछ देस आवीये; अंति: जित निसान बजाविये, गाथा-११. ३. पे. नाम. चिंतामणि स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपति अवनासी कासी; अंति: रूपविजय शिवराज हो, गाथा-११. ८६९०८. धन्नाकाकंदी अणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. दयाहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११.५, १३४३०). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. मेरु, मा.गु., पद्य, आदि: चरण कमल नमी वीरना; अंति: मेरु नमि वारोवार रे, गाथा-११. ८६९०९ (-) आदिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. प्रतापगढ, पठ. लीछमण कुवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३.५४११.५, १२४२५). आदिजिन स्तोत्र, मु. चंद्रकीर्ति, सं., पद्य, आदि: नमो जोती मुरती; अंति: चंद्रकीरती पुनातु, श्लोक-६. ८६९१० (+#) रथनेमिराजिमती पंचढालियो, अपर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हंडी:रहनेमी री., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १६४३६-४०). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिद्धने आरिया; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ की गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८६९११. सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२३.५४११.५, ९४२५). सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: साहिब श्रीश्रीमंधर; अंति: इम भणे अवधारो जगनाथ, गाथा-१३. ८६९१२. (2) दिपावलीपर्व गणनो, पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, १६४२८). १. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: सांवलिया साहेब; अंति: हे० आई आज हमारी बारी, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: सांवलीयो साहिब है; अंति: लीजे नाम सवैरो, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. दीपावलीपर्व गुणनो, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल, जोधपुर, प्रले. मु. चोथमल (गुरु मु. फोजमल); गुपि.मु. फोजमल (गुरु मु. लीखमिचंद); मु. लीखमिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: महावीरस्वामी; अंति: सरवगिनाय नम्म ४, मंत्र-४, (वि. विधिसहित.) ४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: रहो रहो सांवलीया; अंति: कहे० प्रीत मंडाणी, गाथा-६. ८६९१३. (-) औपदेशिक पद व नमस्कारमहामंत्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१४११.५, १५४३५). १.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: समज रे नर समजे चेतन; अंति: भणे बनारसीदास, गाथा-६. २. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम श्रीअरिहंतदेवा; अंति: मुकत चावा ता धरम करी, गाथा-१२. ८६९१४. सामायिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२१४११.५, ६४१४). सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायक मन सुधै करो; अंति: ते सामायक सुध करे, गाथा-४, __(वि. प्रतिलेखक ने ४ गाथा में कृति पूर्ण की है.) ८६९१५. धन्नाअणगार सज्झाय व जातिनाम गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४११, १४४४८). १. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. स्वामी रतनचंदजी कने उतारी छे. म. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनगरी काकंडी हो; अंति: रतन कहै करजोड, गाथा-१४. २. पे. नाम, जातिनाम गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चुडागर१ दरजी२ नाई३; अंति: बाजै कानजी की बांसरी, गाथा-२. ८६९१६ (+#) आदिजिन व विहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, १०४२५-३०). १. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९०२, माघ शुक्ल, १२, प्रले. मु. जयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलंभडे मत खीजो हो; अंति: वृषभ लंछन बलिहारी, गाथा-७. २. पे. नाम. विहरमानजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर २; अंति: खिमाविजय०दुख वारे रे, गाथा-७. ८६९१८. असज्झाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १०४३३). असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीई; अंति: ऋषभ० वरस्यो सिद्धि, गाथा-११. ८६९१९ रोहीणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पालीताणा, पठ.सा. चुनी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५,११४३६). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: हिव सकल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. ८६९२०. सिद्धचक्र स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९१५, कार्तिक कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, ले.स्थल. गौत्रका, प्रले. पं. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, १३४३५-४०). १.पे. नाम. सिद्धचक्र षष्ठम स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सिद्धचक्र स्तवन, मु.ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: ज्ञानविनोद० लाल रे, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सिद्धचक्र सप्तम स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: आराहो प्राणी साची नव; अंति: हरषित होइं नितमेवा, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३. पे. नाम, सिद्धचक्र अष्टम स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: गौतम पूछत श्रीजिनभाष; अंति: भगति करो भगवानकिं, गाथा-७. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र नवम स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सांभलो; अंति: विनोद० भव आधार कें, गाथा-५. ८६९२१. (+) साधारणजिन स्तुति व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १३४३५-४०). १. पे. नाम. ९ वाड सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी पसु पंडक तणीजी; अंति: बोलइ हो अजतदेवसूर कै, गाथा-१४. २. पे. नाम. विजयसेनसूरीश्वर स्वाध्याय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. विजयसेनसूरि सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीहीरविजयसूरि पाय; अंति: प्रीतिविजय मंगलकरू, गाथा-१७. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सद्भक्तियुक्तिनतनैक; अंति: मुदिनंददतां जिनेशः, गाथा-१. ८६९२२. (4) गोडीपार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वनीतराज गाथा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३५). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. वनीतराज, मा.गु., पद्य, आदि: सुख संपत दाइ सुजस; अंति: नरराज सवाया जगधणी, ___ गाथा-९. ८६९२३. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, ११४४२). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमल कमलदल लोयणी दीस; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम ढाल लिखी है.) ८६९२४. (#) श्रीमती चोढालियो, संपूर्ण, वि. १९१२, पौष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. देसणोक, प्रले. मु. हीरानंद माहात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२४.५४११.५, १८४३६-३८). श्रीमती रास, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: श्रील धर्म सुख संपजै; अंति: रतनचंद० सहुने सुखदाई, ढाल-६. ८६९२५. विनयाध्ययन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १२४३०). उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१ विनयसुत्तं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी चीत धरीजी; अंति: विनय सयल सुखकंद, गाथा-८. ८६९२६. (+) बीजतिथि व पंचमीतिथि सज्झाय, अपर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, कल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १३४२८-३२). १.पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: नित विविध विनोद रे, गाथा-८. २. पे. नाम. पंचमीतिथि सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. हंसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती चरण नमि करी रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८६९२७. अमकासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४१२, १२४३०). अमकासती सज्झाय, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमका ते वादल उगियो; अंति: वीरविजय गुण गावता रे, गाथा-२३. ८६९२८. (4) साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०४११.५, १२x२४-२७). साधपाक्षिकअतिचार-श्वे.म.प., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: अनेरो जे कोई अतिचार. For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६९२९ (4) नेमराजिमती पद व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४१२, १५४२६). १.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पूछोनी जीया तरसेनी; अंति: दासनी अरजी गजारीया, गाथा-९. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: इस जगमाही कोइ नही; अंति: गाई वर्ता जै जैकारो, गाथा-७. ८६९३० (+) पद, दूहा व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२२.५४११.५,११४३३). १.पे. नाम. सीमंधरजिन वीनती स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, म. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: त्रिभुवनसाहिब अरज; अंति: अगरचंद० वचन विलास, गाथा-२१. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: भोर भइ रे वटाउ जागो; अंति: उवट पंथ सिव जागो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रीषभ अजित संभव; अंति: मुक्ति तणा दातारो, गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक प्रहेलिका दहा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रहेलिका संग्रह. पहिं.. पद्य, आदि: एक घटै एक नित वधै घट: अंति: सण हो नप सरतेस. दोहा-२. ८६९३१. पानाचंदने मणिविजयजी को लिखा पत्र, संपूर्ण, वि. १९०८, कार्तिक कृष्ण, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. १, दे., (२१x१२, २२४१७). मणिविजयजी पत्र, श्राव. पानाचंद, रा., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीपार्श्व; अंति: केजो जी वंचावजो जी. ८६९३२. (#) चंद्रप्रभुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. ज्ञानचंद्र ऋषि (गुरु मु. नवलचंदजी ऋषि); गुपि. मु. नवलचंदजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत मे पठनार्थे नाम खंडित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२२४११.५, १०४२६). चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कर जोडी विधि वीनवु; अंति: हाथ अंतरगत अलगा नही, गाथा-८. ८६९३३. आदिजिन स्तवन व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र-१अ पर "नमीदिने लिखत" ऐसा लिखा है., दे., (२०.५४११.५, १९४३७). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: राणकपुर मन मोहियो रे; अंति: लाल शिवसुंदर सुख थाय, गाथा-१६. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नाहं स्वर्ग फलोपभोग; अंति: मानयः शुद्ध दृष्टि, श्लोक-४. ८६९३४. औपदेशिक दोहा संग्रह व कर्मविपाकफल सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. वडीरीया, प्रले. सा. पेमा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१९.५४११.५, १७४३७). १. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: नदी गहि ओतरी सो वार, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-५ से है.) २. पे. नाम. कर्मविपाकफल सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: नमो करम महाराजा रे, गाथा-१८. ८६९३५ (4) लावणी व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्र १४२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (३९x११.५, ५३-६०x१९-२२). For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १६७ / १. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रामकिसन ऋषि, पुहि., पद्य, वि. १८६८, आदि: चेत चतुर नर कहेत; अंति: से ए उपदेश सुणाया है, गाथा-१८. २. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ____ आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: इणि अवसर एमत्तो रमता; अंति: ते मुनिवरना पाया, गाथा-१८. ३. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडु अष्टापद मोहु; अंति: प्रह उगमते सूर जी, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-पण्योपरि, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड तुंम कर; अंति: पामीस रोटी ने दोटी, गाथा-३. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहेबरी सेवा मे; अंति: उदयरत्न० श्रीमहावीर, गाथा-७. ८६९३६. (+) साधु पंचभावना-ढाल ३ व ४, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४१२.५, १२४४०). साधु पंचभावना, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८६९३७. लब्धीकीर्तिजी की पहिरावणी विगत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२९x१२, २८x१४). लब्धिकीर्तिजी की पहिरावणी विगत, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८६९३८. (+#) २४ दंडक २४ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८.५४१२.५, १३४६४-७०). २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८६९३९ (2) समवसरण बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. हंडी:समोसरण., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२९x१२, २३४५१). समवसरण बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाए लेसपखाए दिट्ठी; अंति: पहली धारनी परि जाणवा. ८६९४०. घंटाकर्ण कल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:घंटाक.क., दे., (२७४१२, १४४५०). घंटाकर्ण कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य गिरिजाकांत; अंति: देव प्रसीद परमेश्वर. ८६९४१. २४ जिन भवसंख्या, पूर्वभवद्वीपक्षेत्रविजयादि विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२८x१३, २५४४३). २४ जिन विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: ऋषभ१ अजित२ संभव३; अंति: कन्या चैत्रसुदी. ८६९४२. भगवतीसूत्र शतक १० उद्देशश्गत जीवभेदप्रभेदादि विवरण यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२८x१२, ३१४५६). भगवतीसूत्र-यंत्र, मा.गु., यं., आदि: १एकेंद्री जीव छइ देश; अंति: जंत्र थकी जाणवी. ८६९४३. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.४, प्र.वि. हुंडी:जिनरष जिन., जैदे., (२७४१२, ११४३५-३७). जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतसिध आगे हूवा वलि; अंति: तमे राखो धरमसु प्रेम, ढाल-४, गाथा-७०. ८६९४४ (+#) वासुपूज्य स्तवन-पिलवाईमंडण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१२, १४-१६४३९). वासुपूज्य स्तवन-पिलवाईमंडण, ग. गुलाबविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि: सरसति केरा चरण नमी; अंति: विजय सुख पामे घणो, ढाल-१, गाथा-२५. ८६९४५ (+-) नेमिजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. रायकुंवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५४१२, १५४३८). नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: राजल सहीयाने इम कहै; अंति: राजुल पोहती निरवाण. ८६९४६. उपदेश इकवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, १३४३९). For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपदेशइकवीसी, मा.गु., पद्य, आदि: सिखामण सांभलो सुखकार; अंति: उपदेस इकवीसी प्रकासी, गाथा - २१. ८६९४७ (+#) ११ अंग व मृषावादपापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२७.५४१२, १४४३३-३५) १. पे. नाम. ११ अंग सज्झाय अंग १- १०, पृ. १९अ-४आ, संपूर्ण. ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि : आचारंग वडु कर्यु रे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. मृषावादपापस्थानक सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: असत्य वचन मुखथी नवि अति: कांतिविजय० सुध आचार, गाथा-५. ८६९४८. औपदेशिक हरियाली, सज्झाय व प्रहेलिका संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ५, जैदे., (२७.५४१२.५, १५x२९). १. पे नाम औपदेशिक हरियाली पद, पृ. १अ संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि ते वण सरग नरग नही; अंतिः पासचंद० होइ ते बुझि गाथा ४. २. पे नाम औपदेशिक हरियाली पद, पृ. १अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: एक पुरख छि सिहिजि; अंति: (-), गाथा-५, (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा का अंतिम कुछ अंश नहीं है.) ३. पे. नाम. नवकारवाली सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदि: समरथ नारि छे अतिसारी; अति देखता बापि बेटी जाइ, गाथा-७. ४. पे. नाम, औपदेशिक हरियाली पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सुकडि लगत फुल मुल; अंति: तु उथपत तो कोणउ मथत, गाथा-४. ५. पे नाम प्रहेलिका पद संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण. प्रहेलिका पदक वित्तादि संग्रह- समस्यागर्भित, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि., पद्य, आदि नरादित उतपती नारी तन; अंति पछि साहामु जुइ, गाथा ३. ८६९४९ (+) गोमतीसेठाणी व लक्ष्मीधरश्रेष्ठि कथा, संपूर्ण, वि. १८९६, चैत्र शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २. ले. स्थल पेथापुरनगर, प्रले. पं. निधानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२८१२, १६x४५-५०). १. पे. नाम. गोमतीसेठाणी कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. गोमती ठाणी कथा अस्थिरचित्तविषये, प्रा. मा. गु., प+ग, आदि (१) अप्प अरिहो अणवडियस, ( २ ) श्रीपुरनगरने० गोमती, अंति: थाको घेर गयौ, गाथा - १. २. पे नाम, लक्ष्मीधरश्रेष्ठि कथा, पृ. १-३अ, संपूर्ण. लक्ष्मीधरश्रेष्ठि कथा धर्मसेवागर्भित, मा.गु., गद्य, आदि (१) धम्मं निसेवितुं सुहं (२)ए भरत क्षेत्रने विषे अंति सिद्धस्वरूप पामै ८६९५०. आगमिक विविध प्रश्नोत्तर संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१० (१ से १०) = ४, प्रले. रूघनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x११.५, २१-४०X१२-१६). ', बोल संग्रह - आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अति संधारो ज भोगवस्यूं (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रारंभिक भाग अपूर्ण से है.) ८६९५१. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२८४१२, ९५३८). , पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहजानंदी शीतल सुख; अंति: वीर० तेडतां दोय घरी, गाथा - ९. For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १६९ ८६९५२. मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९८, भाद्रपद कृष्ण, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. आगलोड, प्रले. पं. तीर्थसोम गणि (गुरु पं. रंगसोम, लघुपोसालगच्छ); गुपि. पं. रंगसोम (गुरु पं. रुपसोम, लघुपोसालगच्छ); पं. रुपसोम (गुरु भट्टा. आणंदविमलसोमसूरि, लघुपोसालगच्छ); भट्टा. आणंदविमलसोमसूरि (लघुपोसालगच्छ); पठ.सा. मानकवरबाई (गुरु सा. ददीबाई); गुपि. सा. ददीबाई; सा. सांमणबाई, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. श्री माणीभद्र प्रसादात् सांतीसोमजी चरणाख्यां लपीचक्रं रीषभदेव प्रसादात्., जैदे., (२७.५४१२.५, १०४३६). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: पांमीइं मंगल घणो, ढाल-३, गाथा-२५. ८६९५३. ७ समुद्धात, ७ संघयणादि यंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:बासतानो पानो., दे., (२८x१२, २०४४०). जैनयंत्र संग्रह , मा.गु., को., आदि: १वेदनीय कषायसमुद्धात; अंति: (-), (पू.वि. क्रम-९२ विकलेंद्री कंपमान तक है.) ८६९५४. विनयसुत्त, औपदेशिक व नमिराजर्षि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. ग. हेतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १४४४४). १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-मा.गु. अध्ययन-१ विनयसुत्तं सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१ विनयसुत्तं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी चीत धरीजी; अंति: विनय सयल सुखकंद, गाथा-८. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: संसारे जीव अनंत भवें; अंति: उपदिशे भवहित करुं, गाथा-७. ३. पे. नाम. नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देवतणी ऋधि भोगवी; अंति: उदयसिंह गुरु वयणे रे, गाथा-९. ८६९५५ (+) ८ मद सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, ९४३५). ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनी वारीइं; अंति: अविचल पदवी नरनारी रे, गाथा-११. ८६९५६. बलभद्रमुनि सज्झाय, महावरीसमवसरण स्तवन व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२७४१२, १६x४३-४४). १.पे. नाम, बलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: शा माटे बंधव मुखथी न; अंति: उदयरतन० नव आवे तोले, गाथा-७. २. पे. नाम. चरमजिन समवसरण स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक वार वछदेस आवजो; अंति: ओच्छव रंग वधामणां, गाथा-१५. ३. पे. नाम, औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: मूले स्थूलं तदपि सुख; अंति: पातवश्चर्म दंडः, श्लोक-१. ८६९५७. शालिभद्रमुनि व भरतबाहबली सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२८x१२, १९४४२). १.पे. नाम. शालिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवालीया तिणे; अंति: सहजसुंदरनी वाणि, गाथा-१७. २.पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: स्वस्ति श्रीविरवा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२७ तक है.) ८६९५८ (+) २३ पदवी विचार व १४ रत्न विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. अमरसी ऋषि; पठ. श्रावि. लेहेरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५,१२४१४). १. पे. नाम. २३ पदवी विचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पदवी. मा.गु., गद्य, आदि: १तीर्थंकरनी पदवी२ चक; अंति: वासुदेव ने बलदेव. For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७० www.kobatirth.org २. पे. नाम. १४ रत्न विचार, पू. २अ २आ, संपूर्ण १४ रत्न विचार-चक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, आदि: १ चक्ररतन छो खंड साध; अंति: पर्वतने मुले उपजे. ८६९६०. राई व देवसि अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७.५X१२, ११X३६). १. पे. नाम. रात्रि अतिचार, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार-श्वे. मू.पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ठाणे कमणे चंकमणे; अंति: तस मिच्छामि दुक्कडं. २. पे नाम साधुरात्रिप्रतिक्रमण अतिचार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. साधुराई प्रतिक्रमण अतिचार छे.मू. पू. दुक्कई. संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि संधारा उबट्टणकि परिय; अंति: मिच्छा मि ८६९६२. अष्टापदतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२७१२.५, १०x३१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८६९६१. () फूलपूजा चर्चा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे., (२७X११.५, १६x४८). पूष्पपूजा चर्चा, मा.गु., गद्य, आदि तथा कोइक पूछे जे अति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'जीव घणा के सरीर घणा' पाठ तक लिखा है.) आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद ऊपरे जाण; अंति: भास० फले सगलेरी आस के, गाथा- २३. ८६९६५. आगमगत बिविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, दे., (२६X१२, १६X५०). ८६९६३. शांतजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पंडित. रेवाशंकर शर्मा, पठ. सा. भावश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, (२६.५X१२, १२X४० ). शांतिजिन छंद, मु. दीपसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: श्रीसंतिनाथरो कीजे; अंति: मारा मनरि चिंता काट, गाथा - १६. ८६९६४. चिंतामणिपार्श्वप्रभु स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९६७ आश्विन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२, १४४३४). पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि किं कर्पूरमयं सुधारस अंति: बीजं बोधिजीजं ददातु श्लोक-११. 食い बोल संग्रह - आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि (१)सव्वथोवा परिमंडल, (२)बाट बहते में ज्ञान४; अंति कहीजे नीमा पूतला की, संपूर्ण 1 ८६९६६. ढुंढकपक्षनिरूपित चैत्यशब्द विविधार्थयुत चर्चा संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. पत्र १x४ है. दे., (२६.५x१२.५, ११४३२). ढुंढकपक्षनिरूपित चैत्यशब्द विविधार्थयुत चर्चा संग्रह, पुहिं., प्रा., सं., गद्य, आदि प्रथम तो अहमदाबाद में अतिः ११वां अर्थ बागह देखो. For Private and Personal Use Only ८६९६७ (+) तपग्रहण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पणयुक् विशेष पाठ- संशोधित, जैदे., (२५.५x१२.५, १२X३२). तपग्रहण विधि, प्रा., मा.गु. गद्य, आदि: प्रथम इरिवावही अति: (-) (पू. वि. पंचमीतपग्रहण विधि अपूर्ण तक है.) ८६९६८. वृद्धशांति व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे ३, जैवे. (२६४१२, १२-१३४३३-३६) १. पे. नाम. वृद्धशांति, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयतु शासनम्. २. पे नाम भूमि शुद्धि मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. भूमिशुद्धि मंत्र, सं., गद्य, आदिः ॐ भूरसि भूतधात्री; अति: कुरु कुरु स्वाहा. ३. पे नाम, मंत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि ॐ ह्रीं क्लीं क्ष्वी अति मंत्रे अग्नी थापी ४. ८६९६९. गौतमगणधर स्तवन व सुधर्मास्वामी गहुंली, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जैदे. (२७.५X१२.५, १०-११x४०). Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १७१ १. पे. नाम. गौतमगणधर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. ग. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अजीया गौतम गणधर; अंति: मांमस्येय्य विधलवास, गाथा-७. २. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीर पटोधर शोभता सहिय; अंति: शिवसुख वसीयां रे, गाथा-७. ८६९७०. थूलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१२, १२४३७). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बोलोनाजी बोलोनाजी; अंति: नो भाव नमे मुनि पाय, गाथा-१५. ८६९७१ प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:प्रदेशी., जैदे., (२५.५४११.५, १८४३०-३६). परदेशीराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: राय प्रदेसी मुकीओ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ तक लिखा है.) ८६९७२. औपदेशिक सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२, १४४२५-३०). औपदेशिक सवैया संग्रह , मु. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सातमो खड चल्यो जब; अंति: ध्यान सुण की उनी को, सवैया-५. ८६९७३. नंदीश्वर लघु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, ९४३१). नंदीश्वरद्वीपजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसर शास्वती; अंति: कोडि कल्याणो रे, गाथा-५. ८६९७४. (+) इंद्रभूति विशेषण नाम, गुरुगुण गहुँली व ग्यारह गणधर विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४२६-३५). १. पे. नाम. इंद्रभूति विशेषण नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वति कंठाभरण; अंति: भारति इम बोलते. २. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. १अ, संपूर्ण. विजयजिनेंद्रसूरि गुरुगुण गहुंली, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: सहि मोरी शासननायक; अंति: क्ति रंगे भवसायर तरे, गाथा-५. ३. पे. नाम. ग्यारह गणधर विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. गणधर विवरण, मा.गु., को., आदि: १ इंद्रभूति २ अग्नि; अंति: मोक्षनो सं०. ८६९७५. आत्मशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१३, १९४५६). औपदेशिक सज्झाय-आत्मशिक्षा, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध समरू; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३० तक लिखा है.) ८६९७६. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, ११४२६). शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारुं डुंगरिइं मन; अंति: सिद्धिविजय सुखवास हो, गाथा-१३. ८६९७७. शीयल चौढालियो व शनिश्चर कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२७.५४१३, ११४३१). १. पे. नाम. शीयल चौढालियो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. शीयलव्रत चौढालियो, मु. जीवण, मा.गु., पद्य, आदि: चोविसे जिन आगमे रे; अंति: जीवन० गुण गावे रे, ढाल-४, गाथा-२०. २. पे. नाम. शनिश्चर कथा, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति शंपत द्यो मुझ; अंति: पीडा न करे द्वार, गाथा-२८. ८६९७८. (+) स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२.५, १९-२१४३५). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. म. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर; अंति: बधविजय जयकारी जी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम, सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीरजिणेसर अतिअल; अंति: करजो मोरी माये जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल भेटवा; अंति: करी विमलाचल गुण गाया, गाथा-५. ४. पे. नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: धन धन खेत्र माहा विद; अंति: धरज्यो सुविशेष, गाथा-७. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राम शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: अहो भव प्राणि रे सेव; अंति: ओवी उज्वजो जगदीश, गाथा-५. ८६९७९. श्रावक करणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:श्रावकरी करणी., जैदे., (२६४१२.५, १४४३६). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक उठ तुं वडी; अंति: जिनहर्ष० हरणी छे एह, गाथा-२२. ८६९८० (+) जीवपदस्थापनारूप चर्चा व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२.५, ११-१३४४५). १.पे. नाम. जीव पदस्थापनारूप चर्चा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. जीवपद स्थापना चर्चा, पुहिं., गद्य, आदि: वाजै जैनमति प्रदेबी; अंति: कहै सो प्रमाण है. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा- निश्पक्षता, पृ. २आ, संपूर्ण... औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पखा पखी मे पचमु ऐ; अंति: सकल पक्ष लयलीन. ८६९८१ पार्श्वजिन, सीमंधरजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१२.५, ११४२५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जन्मोत्सव, आ. जिनहर्षसरि, मा.ग., पद्य, आदि: आज महोच्छव अति भलो; अंति: रे उपज्यो हरख अपार, गाथा-७. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: श्रीमंदिरजिनजीने; अंति: थाप्या तीरथ पांच, (वि. गाथांक नहीं है.) ३.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलि मन भंवरा काई; अंति: ले लेखा साहिव हाथ, गाथा-९. ८६९८२. ४ गोला चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.४, दे., (२६.५४१२.५, १३४३२). ४ गोला चौढालियो, मु. धनदास, पुहिं., पद्य, वि. १९०७, आदि: संतनाथजी सोलमां संत; अंति: धनदास० भाव तुम राखो, ढाल-४. ८६९८३. जंबूस्वामी व कामदेव श्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, ३५४१९). १.पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ए आठुइ कामनी जंबु; अंति: बू वरतीया 0 जैकार, गाथा-१४. २.पे. नाम. कामदेव श्रावक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: एक दिन इंद्र; अंति: खुस्याल० गुन ग्रांम, गाथा-१६. ८६९८४. शिष्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, १०४२४). शिष्य हितशिक्षा सज्झाय, मु. जिनभाण, मा.गु., पद्य, आदि: चेला रहे गुरुने पास; अंति: सेवो इम कहे जिनभाण, गाथा-७. ८६९८५ (4) पंचतीर्थ चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२, ९४२६). ५ तीर्थ चैत्यवंदन, म. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल गिरनारगिरि; अंति: सच्चाई वंदामि, गाथा-५. ८६९८६ (+) सचितअचित सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १३४४७). For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १७३ सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी; अंति: नयविमल कीधि सज्झाय, गाथा-२४. ८६९८७. केशीगौतमगणधर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४४, माघ कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण मेदपाटी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, १२४४०). केशीगौतमगणधर सज्झाय, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर प्रणमिये; अंति: रूपविजय गुण गाय रे, गाथा-१५. ८६९८८. (+) गौतमपृच्छा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, १३४४२). गौतमपच्छा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामी पूछा करई; अंति: वछ गोयमा सांभलो रे, गाथा-१३. ८६९८९ औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १३४४१). औपदेशिक सज्झाय, म. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतजो रे ए काळ; अंति: जे सिवपूरमां भलीयो, गाथा-१५. ८६९९०. मल्लिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७४१२.५, १२४३४-३८). मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: नवपद समरी मन सुद्धै; अंति: धरममार्ग मन मै धरी, ढाल-५, गाथा-४१. ८६९९१. १६ सती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. मु. कल्याणविमल, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ११४४०). १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदे जिनवर; अंति: उदयरतन० सुखसंपदा ए, गाथा-१७. ८६९९२. (+) सीमंधरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १३४४२). सीमंधरजिन स्तुति, म. देवचंद्र, मा.ग., पद्य, आदि: प्रभुनाथ तुं तियलोक; अंति: नित्यात्म रस सुख पीन, गाथा-२१. ८६९९३. महावीरजिन व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, १३४३३). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिनजन्म बधाई, रा., पद्य, आदि: त्रिसला दे माता; अंति: भवसागर से त्यार, गाथा-१३. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. भवानीदास ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: गीरनारी की बता दो; अंति: दास भवानी० की पावडी, गाथा-४. ८६९९४. रोहिणीतप स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, १२४४६). रोहिणीतप स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नक्षत्र रोहिणी जे; अंति: पद्मविजय गुण गाय, गाथा-४. ८६९९५ (+) प्रास्ताविक कवित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, २१४४३). प्रास्ताविक कवित संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: थरहरै कृपण पंचमांहि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद-१५ तक लिखा है.) ८६९९६. नेमराजीमती नवरसो, संपूर्ण, वि. १८८५, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, प. २, ले.स्थल. मुंबई, प्रले. ग. रत्नविजय; अन्य. मु. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १६४३४). नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय कुलचंदलो; अंति: प्रभु उतारो पार, ढाल-९, गाथा-४०. ८६९९७. महावीरजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, १२४४२). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: मारा प्रभुजी मजने; अंति: माणेकने मगति आपोरे, गाथा-८. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन- भद्रेश्वर मंडन, मु. हंसविजय, मा.गु., पद्य, आदि स्वच्छ श्रीकच्छमां, अंतिः ज्यारे पेली पाले, गाथा ५. ८६९९८. अष्टमीतिथि स्तुतिद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २६.५X१२.५, १२X४३). १. पे नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि अष्टमीदिन चंद्रप्रभु, अंतिः अष्टमी पोसहसार, गाथा-४. २. पे नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पू. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि चोबीसे जिनवर प्रणमुं अंति: जिवत जुग परमाण, गाथा-४. ८७०००. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२७१२, १२X३१). १. पे नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि सत्तरे भेदे जिन पूजा, अंति पूरो देवी सिद्धाईजी, गाथा ४. २. पे नाम, पंचमीतिथि स्तुति, पू. १अ १आ, संपूर्ण. मु. जीवविजय; मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८४-१८०० आदि पंचमी दिन जनम्या नेम; अंति: सीस जीवविजय जयकार, गाथा- ४. ३. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य वि. १७वी आदि श्रावण सुदि दिन अति (-) (पू. वि. गाथा- २ , , अपूर्ण तक है.) ८७००१. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६०, फाल्गुन, ३, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. देवविजय (गुरु मु. जयविजय); गुपि. म. जयविजय प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५x११.५, १२x४२). मु. साधारण जिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि कि पीयूषमयी कृपारस अति: जिनेश्वराणाम्, गाथा- १०. ८७००२ (#) हरिकेशीमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७X१२, २१X५८-६३). हरिकेशीमुनि चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८२८ आदि अरिहंत सिद्धने आयरिय; अति रे लाललहिए लील विलास, ढाल १०. ८७००३. साधारणजिन चैत्यवंदन, स्तवन व शांतिस्नात्रादिविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्र १x२, दे., (२७.५x१२, १२x२५ ). १. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जय जय तुं जिनराज आज; अंति: मल्यो भवजल पार उतार, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. मु. रामविजय, पुहिं, पच, वि. १८वी, आदि मुनिध्येय नमो सुरगेय, अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा - ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे नाम. कुंभस्थापना दिपकस्थापना पाटलापूजन शांतिस्नात्र पूजनविधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शांतिस्नात्र विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि मूल गुंभारेकु अच्छी अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. "अखंडचावलको साथियो" तक लिखा है.) ८७००४ संवत्सरी प्रतिक्रमणविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३ ले स्थल, रामपुरा कोट, प्रले. पं. प्रीतमंदिरमुनि (गुरु ग. रामरत्न, खरतरगच्छ-भट्टारक); गुपि. ग. रामरत्न (परंपरा आ. महेंद्रसूरि, खरतरगच्छ भट्टारक); पठ. मु. हीराचंद, राज्यकाल रा. रामसिंघ राज्ये आ. महेंद्रसूरि (खरतरगच्छ भट्टारक), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी: संम पडिक श्रीऋषभदेवजी प्रासादात्., ., (२७X१२, १२x२५ ) . पाक्षिकचीमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु., प+ग, आदि प्रथम १एक खमासमण देह; अंति देवसीक भणज्योजी. ८७००५ औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे. (२६.५x१२.५, १०x२८). . For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रणमु सदगुरु; अंति: नित आनंदघन सुख थाय, गाथा-१०. ८७००६. (+) औपदेशिक हमची, संपूर्ण, वि. १८९१, पौष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, १५४३७). औपदेशिक हमची-जीवहितशिक्षा, म. वर्धमान पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिने पाय नमि; अंति: ते नरभव अजुआलै रे, गाथा-२५. ८७००७. (+) स्त्रीचरित्र चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १४-१६x४२). स्त्रीचरित्र चौढालिया, श्राव. हीराचंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: लख चोरासी मै भटकर; अंति: सांभलज्यो नरनारी जी, ढाल-४. ८७००८. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ८, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४२८). १. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: नीत प्रणमीजे पाय रे, गाथा-९. २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नामेला पुत्र जोणीयै; अंति: समयसुदर गुण गाय, गाथा-९. ३. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण रिषनै वंदणो; अंति: कहै जिणहरष सुजाण रे, गाथा-९. ४. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हुं; अंति: पाप पुलाय रे, गाथा-५. ५. पे. नाम, अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनिवर चाल्या; अंति: समयसुंदर० फल लीधो जी, गाथा-८. ६. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखाणी राणी; अंति: पांमिस्यै भव तणो पार, गाथा-७. ७. पे. नाम, अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रेवाडी चढ्यो; अंति: वंदे रे बे कर जोड, गाथा-९. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आउखो तुटांनै सांधो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ८७००९ नवपद स्तवन व साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. खेरालु, प्रले. पं. जितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४२३, १५४३८). १. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरिहंत पद ध्यातो थको; अंति: तणी कोई नथी अधूरी रे, गाथा-१४. २.पे. नाम. ठाणेकमणे सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ठाणे कमणे चंकमणे; अंति: तस मिच्छामि दुक्कडं. ८७०१० (+) ऐमंतोरिषी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, ११४३६). अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद धीर जिणंदी; अंति: वंदे अइमुत्तो अणगार, गाथा-२०. ८७०११. (+) चंद्रगुप्त १६ स्वप्न, नेमराजीमति सज्झाय व श्रीकृष्णभक्ति पद, अपूर्ण, वि. १८६४, कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १५४३६). १.पे. नाम. चंद्रगुप्त १६स्वप्नफल सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चंद्रगुप्त १६ स्वप्न सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ की गाथा-४ अपूर्ण से है व गाथा-११ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. श्रीकृष्णभक्ति पद, पू. २अ संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृष्णभक्ति पद, मा.गु., पद्म, आदि काल मथुरा मांह्यवी, अंति सीखु हरिनंदने माटे, गाथा- १. ३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सज्जन सर्थि; अंति: रूपचंद० गये दोनु सार, गाथा-१०. ८७०१२. (+) रावण व भरतचक्रवर्ती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५X१२, १४४५). १. पे. नाम. रावण सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. चोमल ऋषि, मा.गु., पद्म, आदि केहे भविषण सुण हो; अति चोथमल० नरनारी, गाथा १७. २. पे. नाम. भरतचक्रवर्ति सझाच, पृ. १आ, संपूर्ण. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि भरतजी भूप भये वैरागी अति: मुक्त गया सोभागी, गाथा १०, (वि. अंतिमवाक्य अस्पष्ट व खंडित है.) , ८७०१३. सामायिक प्रतिक्रमणादि विधिसंग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. २, कुल पे. ७ जैदे. (२७४१२, १६४४४). १. पे. नाम. सामायक लेवा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि; अंति: ३ नोकार कहीजै. २. पे. नाम. सामायक पारवा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: संझाइ प्रतिक्रमण; अंतिः तस मिच्छामि दुक्कडं. ३. पे. नाम. पोसहलेवा- पारवा विधि, पु. १अ १आ, संपूर्ण. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरिआवहि; अंति: पारवानी गाथा कहीजै.. ४. पे नाम. प्रभात पडिकमणा विधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: इरियावही पडिक० अंति: लो० पात्रा पडलेना. ५. पे. नाम. थापनाको बोल १३, पृ. २अ, संपूर्ण. स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, मा.गु.. गद्य, आदि: सुद्धस्वरूप धारवु१; अति डंडेकी १० कपडेकी २५. ६. पे नाम. देववादवा विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. देववंदन विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: जैनं जयति शासनं. पे. नाम देवसी पडिकमणा विधि, पृ. २अ २आ, संपूर्ण देवसिप्रतिक्रमण विधि-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही ४नो० का० लो; अंति: पछे शांति० लोगस्स. ८७०१४. (+) आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, संपूर्ण, वि. १८७३, चैत्र कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. वीरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में अगरचंद भेरुदान सेठीया संबधित दुहा दिया हुआ है. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे., (२५.५X१२.५, १५X३७-४०). "" आषाढाभूतिमुनि पंचडालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि दर्शन परीसह बावीशमो अंति तो जन्म धन्य हो, ढाल - ७. ८७०१५. पंचमीतिथि व अष्टमीतिथि स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २- १(१ ) = १ कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक खंडित होने से अनुमानित दिया है., जैवे. (२६४१२, १२४३२). "" १. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: सफल थयो अवतार तो, गाथा-४, (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १७७ अष्टमीतिथिपर्व स्तति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: तपथी कोड कल्याण जी, गाथा-४. ८७०१६. (+) लघुदंडक, संपूर्ण, वि. १८९७, चैत्र शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, २२४४२). दंडकभेद बोल-लघु, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर ५ उगाहणा संघेण; अंति: गति ४ प्राण १० योग ३. ८७०१७ (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १८६७, ज्येष्ठ कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. दादरी, प्रले. सा. लालाजी (गुरु सा. केसर आर्या); गुपि. सा. केसर आर्या (गुरु सा. रंभा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:साधुवंदना., संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १५४२९). साधुवंदना बृहद, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमो अणंत चउवीसी; अंति: जैमल एही तिरणरो दाव, गाथा-१११. ८७०१८. नेमराजुल बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२, १४४२९). नेमराजिमती बारमासा, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९११, आदि: राजुल उभी विनवे रे; अंति: मुजनै चर्णा रे पाय, गाथा-२२. ८७०१९ पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३२, श्रावण शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. साणंद, प्रले. पं. प्रसिद्धविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र महेता वंदणना पाथ उतारु छे सागरनाउपासरा मधे. हुंडी:पुण्यप्रकाशनो., जैदे., (२६४१२.५, १२-२२४४०). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पूनप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०२. ८७०२० (4) संवर सज्झाय, केसरीयानाथजी स्तवन व नारी विरह गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १४४३९). १. पे. नाम. संवर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-संवर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर गोयमने कह; अंति: मुगती हेला यु तिरो, गाथा-६. २. पे. नाम, आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, वि. १९०४, भाद्रपद शुक्ल, ५. आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माताने नमसू; अंति: ऋषभविजयनी वाणी रे, गाथा-१३. ३. पे. नाम. नारी विरह गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. विरहव्यथा गीत, मा.गु., पद्य, आदि: जीवन मोरा हो सांभलि; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७०२१ (+) दिक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:दिक्षा., संशोधित., दे., (२७४१२.५, ११४३८). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: दीक्षा लेता एला; अंति: नोकारवाली गुणावीइं. ८७०२२. नंदीश्वरद्वीप स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२, ६४३४). नंदीश्वरद्वीप स्तति, मा.गु., पद्य, आदि: नंदिसरवर द्विप; अंति: देवी सांनिध्य कीजे, गाथा-४. ८७०२३. सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२, १२४३४). सिद्धचक्र स्तुति, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अंगदेश चंपापुरी वासी; अंति: न० तस घर नित दिवाली, गाथा-४. ८७०२४. दीवा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२, १२४३३). औपदेशिक सज्झाय-दीवा, मा.गु., पद्य, आदि: दस द्वारे दिवो कह्यो; अंति: दीवो बले सारी रात, ढाल-२, गाथा-९. ८७०२५. अध्यात्म गीता, संपूर्ण, वि. १८९०, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सांडेराव नगर, प्रले. गौतम, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिजिन प्रशातात्., जैदे., (२७४१२.५, १४४३८). अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमिए विश्वहित; अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा-४९. ८७०२६ (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, ९४३८). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: मिस्सो होइ अजीवो, गाथा-५४. For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७०२७. गौतमकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, अन्य. सा. काशीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गौतमकु., जैदे., (२५.५४१३, ५४२८). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: संवितु सुहं लहति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो लोभीया नर; अंति: एतलइ मुक्ति सुख पामइ. ८७०२८. २३ पदवी गतिआगति विचार, संपूर्ण, वि. १८८५, श्रावण कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. हिंदुमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १३४४०). २४ दंडक २३ पदवी गतिआगति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: बार गुणे करी विराजमा; अंति: जुगल्यां आथी. ८७०२९. श्रावक लघुअतिचार, अपूर्ण, वि. १८६०, चैत्र अधिकमास कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम, पृ. १५-१३(१ से १३)=२, ले.स्थल. गुढानगर, प्रले.पं. दोलतसागर; पठ. श्राव. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १४४३६). श्रावकलघुअतिचार-अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छा० भगवन अरिहंत; अंति: तीयागारेणं वोसिरामि, संपूर्ण. ८७०३०. स्तवन, चैत्यवंदन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ६, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३२). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: ज्ञानविमले कहिई, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, गौतमस्वामी चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नमो गणधर नमो गणधर; अंति: नामथी होय जय जयकार, गाथा-३. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: इंद्रभुति अनोपम गुण; अंति: नित नित मंगलमालिका, गाथा-४. ४. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं गणभृद; अंति: सूरेवरदायकाश्च, श्लोक-४. ५. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर मधुरी वाणी भाखे; अंति: तेहने नय करे प्रणाम, गाथा-७. ६. पे. नाम. दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दखहरणी दीपालिका रे; अंति: (-), गाथा-९, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ८७०३१. कीसनजी बारमासो व औपदेशिक लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्रावि. रायकुंवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कीसनजी., दे., (२६४१२, १६x४२). १. पे. नाम. कीसनजी बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कृष्ण बारमासा, मु. अखमल, पुहिं., पद्य, आदि: गिरधर मुरलीबाज कीसन; अंति: कलियाँ कुछ देखन की, गाथा-१४. २. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: खबर नहीं है जग में; अंति: जिनकु वीनती अखमल की, गाथा-९. ८७०३२. पोषह विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२.५, १६४३९). पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहिला इरियावही पडीकम; अंति: देववांदी पोसह पारै. ८७०३३. महावीरजिन व गुरुगुण गंहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, २८४२६). १. पे. नाम. महावीरजिन गंहुली, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन गहुंली, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी विचरता गांमो; अंति: प्रेमे वधामणो रे लो, गाथा-७. २. पे. नाम. गुरुगुण गंहुली, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुंली, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीसुरत मझार आज; अंति: अपार जेथी आणंदवरोरी, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८७०३४. महावीरजिन निसाणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. मोजीराम ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १९४५५). महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, म. हर्षमाणिक्य, मा.ग., पद्य, आदि: माता सरसती सेवग सती; अंति: हइ हेममाणिक्य मुनि, (वि. गाथांक नहीं लिखे हैं.) ८७०३५. शीतलजिन स्तवन व पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. मघा मयाराम ठाकोर भोजक; मगन मयाराम ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., जैदे., (२५.५४१३.५, १४४३०). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. म. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नंदानंदन जुगदावंदन; अंति: खेमाविजय०पोतानो लीधो, गाथा-८. २.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, प. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., पे.वि. यह कृति पत्रांक २अ की खाली जगह पर लिखी गई है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक है.) ८७०३७. श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८८१, आश्विन कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०-५२). श्रावकसंक्षिप्तअतिचार*, संबद्ध, मा.ग., प+ग., आदि: श्रावक तणइ धर्मइं; अंति: मिच्छामि दक्कडं. ८७०३८. (+) महावीरजिन पारण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १२४३४). महावीरजिन पारणं, म. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिसलाई पुत्र; अंति: कहे थाशे लीलाल्हेर, गाथा-१८. ८७०३९. पखवासा व सिद्धतपनुं गणनु, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, २०४१४). १.पे. नाम. पखवासनुं गणनु, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मोटा पखवासानो गुणनो-१ से १६ तिथि तप, मा.गु., गद्य, आदि: कुंथुनाथ पारंगताउ; अंति: मुकवी पूजा भणाववी. २. पे. नाम. सिद्धतपर्नु गणनं, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धितप गणj, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी कर्म क्षय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "२० साथीया ७ खमासणा" तक लिखा है.) ८७०४० (+) धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१४, चैत्र कृष्ण, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. रायकवरी (गुरु सा. पाराजी); गुपि. सा. पाराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:धनाकी., संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १६x४५). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिनसासनसामी अंतरजामी; अंति: दोय सैर पर लहियै, गाथा-१९. ८७०४१. अष्टापदतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७४१२, ११४३२). आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद उपरे इणे; अंति: फलें सघली आस कें, गाथा-२३. ८७०४२. ८ प्रकारी पूजा काव्य व औपदेशिक सज्झायद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:अष्टक., जैदे., (२६.५४१२, १३४४२). १.पे. नाम. सिखामण सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. औपदेशिक सज्झाय, म. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विजैभद्र० नवि अवतरै, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. साधारणजिन अष्टक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पं. वीरविमल गणि, सं., पद्य, आदि: विमलकेवलदर्शनसंयुतं; अंति: यांति मोक्षं हि वीरा, श्लोक-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, प. २आ, अपूर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ओ रंग से रंग न्यारा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८७०४३ () जिनसहस्रनाम स्तुति, संपूर्ण, वि. १९३५, कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६.५४१२, १०४३१). जिनसहस्रनाम लघुस्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्त्रिलोकनाथाय; अंति: मुच्यते नात्र संशयः, श्लोक-४१. For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७०४४. (+) कायस्थिति प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, ४४३२-३४). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय; अंति: अकायपदसंपदं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जिम ताहरा दर्शन रहित; अंति: संपदा प्रति दिओ. ८७०४५. (+) साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १०४३९). साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नेत्रानंद करी भवोदधी; अंति: जिनेश्वराणाम्, गाथा-८. ८७०४६. (+) प्रतिमाशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:प्रतिमाशतक., पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १०x४१). प्रतिमाशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणि नता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण., श्लोक-८ तक लिखा है.) ८७०४७. (+) सकलाहत् स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४३५). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (१)सकलकुशलवल्ली, (२)सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२४ अपूर्ण तक है.) ८७०४८. (+) परिपाटीचतुर्दशक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. अहम्मदाबाद, प्रले. शिवराम पानाचंद ठाकोर; पठ. श्रावि. आधारबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४११.५, ६४२८). परिपाटीचतुर्दशक, उपा. विनयविजय, प्रा., पद्य, वि. १८वी, आदि: नमिऊण वद्धमाणं; अंति: जिणा इमे विणयविजयेण, गाथा-२७. परिपाटीचतुर्दशक- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी; अंति: विनय० उपाध्याय तेणे. ८७०४९. व्याख्यान विधि, संपूर्ण, वि. १९५८, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. कल्याणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री महावीरस्वामि प्रासादात्., दे., (२६.५४१२, १३४२२-३५). __ व्याख्यान विधि, पुहि.,प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० जयइजग; अंति: वाचना प्रवर्ते छे, श्लोक-३. ८७०५०. २८ लब्धि स्तवन व २८ लब्धि दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१२, ९४५३). १.पे. नाम, २८ लब्धि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अट्ठावीस लब्धि सारी; अंति: पणु पामो त्यारे रे, गाथा-६. २. पे. नाम. २८ लब्धि दहा, पृ. १आ, संपूर्ण. २८ लब्धि नाम दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: आमोसहि लब्धि मलि; अंति: नमो नमो गौतम स्वामि, गाथा-५. ८७०५१ (+) अष्टमीतिथि पर्व स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १०x४५). १.पे. नाम. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, प. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतीर्थ प्रणमि सदा; अंति: पूर्ण कोडि कल्याण रे, ढाल-४, गाथा-२४. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रणमुं सदगुर; अंति: बारणे मत जाजो रे, गाथा-११. ८७०५२. अक्षयनिधितप स्तवन व खमासमण दूहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, ११४४४-४६). १. पे. नाम. अक्षयनिधितप स्तवन, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण.. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: श्रीशंखेश्वर शिर; अंति: शुभवीर० घर बारणे, ढाल-५, गाथा-५२. २.पे. नाम, अक्षनिधितप खमासमण दूहा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १८१ अक्षयनिधितप खमासमण दूहा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर संखेश्वर नमी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१४ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७०५३. (+) खंडाजोयण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:खंडाजोय., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४११.५, २२४५५). लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप एक लाख; अंति: (-). ८७०५४. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १०x४३). शांतिजिन स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अलवेसर अवधारीये दासा; अंति: वृद्धि कहै कर जोडि, गाथा-८. ८७०५५. (+) जीवविचार बोल यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १५४७६). जीवविचार बोल*, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८७०५६. (#) २३ द्वार विचार व ५७ बंधहेत यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी:बंधहेतु यंत्रम्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २४४५१-५६). १.पे. नाम. २३ द्वार विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.. २४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.ग., प+ग., आदि: (१)सरीरोगाहणा संघयण, (२)पशमश्रेणि प्राप्त; अंति: (-), गाथा-२. २.पे. नाम, ५७ बंधहेतु यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक ५७ कर्मबंधहेतु, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८७०५७. (+#) ऋषभस्वामी वीनती स्तवन, संपूर्ण, वि. २००१, कार्तिक शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पाटण, प्रले. श्राव. मोहनगिरधर भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री ऋषभदेव प्रासादे. केशरबाईज्ञानमंदीर माटे लख्यु. हुंडी:ऋषभदास कृत रुषभदेव आलोयण., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, ११४४०). आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.ग., पद्य, वि. १६६६, आदि: श्रीआदीसर वंदं पाय; अंति: बोले पाप आलोउ आपणा, गाथा-४८. ८७०५८. इरयावहि पडिकमता व सिद्धचक्र स्तवन, अपूर्ण, वि. १९६८, भाद्रपद कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. जावालग्राम, प्रले. श्राव. नवलमल सुरतिघजी; पठ.सा. मोनश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री चंद्रप्रभुजिनबिंब प्रशादेतः., दे., (२६.५४१२, १३४४१). १. पे. नाम. इरियावही पडिकमता, पृ. २अ, संपूर्ण. इरियावही १८२४१२० भेद, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पांचसे त्रेसठ जीवना; अंति: पडिकमंता देवराइ. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन-ढाल १, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदंबा प्रणमी कह; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. ८७०५९ (+) सज्झाय, स्तवन, चैत्यवंदन व गहंली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १२४३२-३४). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण आवीया रे; अंति: मतिहंस नमै करजोडि रे, गाथा-११. २. पे. नाम, मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. हंसरतन, मा.गु., पद्य, आदि: एने असाढ उनउजी; अंति: हंस०सीच्यो समकीत छोड, गाथा-१०. ३. पे. नाम. सिद्धन चैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सिद्धपद स्तवन, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जगतभूषण विगत दूषण; अंति: नमो सिद्ध निरंजनं, गाथा-१३. ४. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पू.वि. अंत में किसी अज्ञात कृति के आरंभ का पाठ "सोहमस्वां" लिखकर छोड दिया है. पंन्या. रूपविजय, मा.ग., पद्य, आदि: शासननायक विरजीणंद; अंति: रूप० लहे सीव गेह हे, गाथा-८. ८७०६०. औपदेशिक लावणी, संपूर्ण, वि. १८५४, माघ कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:उपदे., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४१). For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: बल जाओ रे मुसापर प्य; अंतिः जिनराज० आस तज मेरी, गाथा-५. ८७०६१. चित्रसंभूति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५X११.५, १२x१४). चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्र कहे ब्रह्मराय; अंतिः शिवपुर लहेस्ये हो के, गाथा-२०. ८७०६२. बोल संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२६४१२, १६x४८). 1 बोल संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: सात लाख पृथी इम जै; अति: (-). ८७०६३. मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७.५X१२, १७X४७). मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमि पासजीणंदने; अंति: (-), ढाल -१, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३२ तक लिखा है.) ८७०६४. खंधकऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२४.५x११.५, ११४३६) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राय सेवक मुनिने भणे; अंतिः सेवक सुखीया कीजे रे, ढाल - २, गाथा - १२. ८७०६५. (+) धन्नाजीरी ढाल, संपूर्ण, वि. १९०७, आषाढ़ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. भानीदास (गुरु मु. भगवानदास ऋषि); गुपि. मु. भगवानदास ऋषि (गुरु मु. कुसालचंद ऋषि); मु. कुसालचंद ऋषि; पठ. सा. उमेदाजी आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. छोटाजीरी नेसराव छे. माहा मंदीर मध्ये. हुंडी धनाजीरी ढाल., संशोधित. दे.. (२५.५४११.५, १२-१४४२६-३५). " धन्नाकाकंदी ढाल, मु. भगवानदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९०५, आदि: काकंदिनगरि निरूपम, अंति: कुसालचंदजी रे पासो, ढाल - २. ८७०६६. (+) फुटगर कवत स्वैइया दूहा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., दे., (२७१२, १९४४५). विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: राम हू न जान्यौ सीता; अंति: (-). " " ८७०६७. नंदीश्वर, १४ पूर्व स्तवन व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैवे. (२६.५x१२, १६x४५). १. पे. नाम. नंदीश्वर स्तवन, पू. १अ संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीपजिन स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि नंदीसर बावन जिनालय, अंति जैनचंद्र गुण गावो रे, गाथा-१५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पू. १अ १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: वो दिल भाया मेरे सां; अंति: ज्ञानसार गुण गाया, गाथा-४. .पे. नाम. १४ पूर्व स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आ. सौभाग्यसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९६, आदि जिनवर श्रीवर्धमान अतिः णतां सयल मनवंछित सरै, ढाल -३, गाथा - ३३. ८७०६८. चंदनवालासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, दे. (२६.५५१२, १२४३०). " , चंदनबालासती गीत, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कोशंबी ते नगरि पधारि; अंति: लब्धि० गाय हो स्वामी, गाथा - ३६. ८७०६९. जिनगृहबिंबप्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, लखने, प्रले. मु. गोकुलचंद्र ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५X१२, १५X४५). जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: मूल गंभारेकु अछी तरह; अंति: वासक्षेप करणो. मूल ८७०७०. गौतमस्वामी गहुंली, संपूर्ण, वि. १९४५, भाद्रपद शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, दे., ( २६.५X१२, ११४३८). गौतमस्वामी गहुली, मु. दीपविजय, मा.गु, पद्य, आदि जी रे कांमनी कहे सुण; अति वीर सासन सणगार रे, गाथा-८. ८७०७१. (+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. मुक्तिविजय, प्र. वि. प्रतिलेखक के नाम के उपर लिखा गया है., संशोधित, जैदे., ( २६.५x११.५, ११×३१). For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १८३ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, म. गणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुणी, ढाल-६, गाथा-४९. ८७०७२ (+#) अइमत्तामनि व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. म. चतुरा ऋषि; लिख. पं. नयविजय गणि; ग. माणकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६४३९). १.पे. नाम. अइमत्तामनि सज्झाय, प. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: लखमीवीजय० ना पाया, गाथा-१८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-काया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. पदमतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: वनमाली धणी अप करे; अंति: पदम० रखे खोट लगाइ, गाथा-९. ८७०७३. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४११.५, १०४२७). विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरजी नारी प्रवीण की; अंति: तै भणौ बुधि सुख हेत. ८७०७४ (#) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, ३१४४०). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: सल्लं कामा विषं कामा; अंति: द्वाराणि चत्वारि. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: ०सालरी परे साल छे; अंति: ते मरणना द्वार छै०. ८७०७५ (+) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:ढालतवन., संशोधित., जैदे., (२५४१२, २०४५४). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: नवघाटी मे भटकता रे; अंति: धर्म कीया रहे लाज, गाथा-१३. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गुरुवाणी, मु. कुसालचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८८०, आदि: सतगुर की सांभल वाणी; अंति: अठारेअसीयो कहीजै, गाथा-९. ३. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीपना भरत मे; अंति: हु प्रणमु दिननै रात, गाथा-१६. ४. पे. नाम. महावीरजिनगौतमस्वामी ढाल, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन गौतमस्वामी ढाल, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४४, आदि: गुर म्हावीर गोतमचेला; अंति: राय० __कंठ मेल कदजौल, गाथा-१२. ५. पे. नाम. गुरुणीगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: ऐसी गुरणीरा गुण गाय; अंति: जसे रही मनमाहे वसे, गाथा-१३. ८७०७६. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, दे., (२६४१२, ७१४५०). विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तक, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सवैया-१३१ अपूर्ण से है., वि. प्रथम कृति किसी एक कर्ता की बडी कृति होना संभव है.) ८७०७७. महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, ९४३७). महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: वर्धमान जिनवर परम; अंति: श्रीसंघ मंगलकारिणी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७०७८. झांझरियामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सादलपुर, प्रले. मु. लालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२५.५४११.५,१७४५२). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महियलमांहि मुनिवर; अंति: लबधिविजयमुनी खांति, गाथा-३७. ८७०७९. २४ जिनपंचकल्याणक तिथि विचार व भरतबाहूबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, ११४३०). १. पे. नाम. २४ जिनपंचकल्याणकतिथि कोष्टक, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १९३९, कार्तिक शुक्ल, ११, मंगलवार, ले.स्थल. करोली. २४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., को., आदि: श्रीऋषभदेवजी असाढवदि; अंति: कातिवदि ३० मोक्ष. २. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अतिलोभीया भरत; अंति: समयसुंदर गज थकी उतरो, गाथा-८. ८७०८०. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. प्रतिलेखकने ढाल-५ के बाद ढाल-४ लिखी हैं., दे., (२५४१२, १२४३२). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सयल सुखकारी रे, ढाल-५, गाथा-१६, (वि. ढाल-४ अंत में लिखी है.) ८७०८१ (-) नमस्कारमहामंत्र व युगमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पीसांगण, प्रले. माना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बीसछर मान., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, १९४४३). १. पे. नाम, नमस्कारमहामंत्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम नम अरिहंत; अंति: मंत्रजी रो ध्यान धरो, गाथा-११. २. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२५, आदि: जुगमीदर जीण सांभलो र; अंति: णेसरलाल वीनतड अवधारो, गाथा-१४. ८७०८२. अध्यात्म पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अंत मे एक प्रस्ताविक श्लोक उल्लिखित है., दे., (२५.५४११.५, १४४३४). अध्यात्म पद, मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि: चितानंद मान कह्या; अंति: कुसल नीजगुण सुध हेरा, गाथा-१०. ८७०८३. (#) शीतलनाथ सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मेरतानगर, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४११.५, १५४२९). शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहिब हो श्री; अंति: चरण न छोड़ें तोरडा, गाथा-१४. ८७०८५. इलाचीपुत्र चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. भागा (गुरु सा. रतुजी); गुपि. सा. रतुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:इलापु., जैदे., (२६.५४१२, १८४४२). इलाचीकुमार चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोतमगणधर भलो र; अंति: संपदा नाम जय जयकार, ढाल-४. ८७०८६. (2) पार्श्वजिन स्तवन व शांतिजिन स्तुतिद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४५७-६१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. कीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: वामादेवीनंदन विश्व; अंति: कीर्ति पूरो आस, गाथा-४. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुखागार प्रणत; अंति: उदय सदा सुख पावेजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: गजपुर अवतारा; अंति: उदय० सुखदाता सयाणी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८७०८७. पार्श्वजिन पद व रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १४४४०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. प्रतापविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: जगतगुरु दरसन वहीलो; अंति: परतापविजे० गाया रे, पद-११. २. पे. नाम. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्यसंजोगे णरभव; अंति: वसता० तणा अधिकार रे, गाथा-१३. ८७०८८ (+#) वैराग्य, परनारीपरिहार व रेवती श्राविका सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११.५, २०४३६). १.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. _ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य विषयक, पुहिं., पद्य, आदि: रतन जडता का पिंजरा; अंति: गया जमारा हारजी, गाथा-१३. २. पे. नाम. परनारीपरिहार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ परनारी परिहार सज्झाय, पुहि.,रा., पद्य, आदि: रावण मोटो राय कहावै; अंति: तावडौ ढलक जाय ढलको, गाथा-६. ३. पे. नाम. रेवतीश्राविका सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वल्लभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिहासन रेवति; अंति: वल्लभ० हर्ष अपार रे, गाथा-१०. ८७०८९ (+#) मेघरथराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सोजत, प्रले. मु. सतीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मगरथरी., संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १७४४८). मेघरथराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: परव दिवस बैठा थका; अंति: दया तणो बीसतारोजी. ८७०९०. (+) गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पत्र २४२ है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२४४१२.५, २५४२१). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. नयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद तणा पय वंदः; अंति: फले इम पभणे नयरंग, गाथा-४४. ८७०९१. (+) विषापहार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, ११४३५). विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहि., पद्य, वि. १७१५, आदि: विश्वनाथ विमल गुन ईश; अंति: सदा श्रीजिनवर को नाव, गाथा-४१. ८७०९२ प्रतिक्रमण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४३३). प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गोयम पूछे श्रीमहावीर; अंति: भविजन भवजल पार रे, गाथा-१३. ८७०९३. पांचमनी थोय व महावीरजिन थोय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१२, १४४२६-३२). १. पे. नाम. पांचमनी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ पंचमीतिथि स्तुति, मु. कीर्तिरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर साथे; अंति: कीर्ति० मनह जगीसजी, गाथा-४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति-गांधारमंडन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-गंधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गंधारे माहावीर जीणंद; अंति: जसविजय जयकारी, गाथा-४. ८७०९४. नेमिजिन स्तवन व अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२४४१२.५, १२४३३). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पद्म० अविचळ नेम रे, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आबु अचल रलिआमणो रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७०९५ (+) औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २१वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११.५, ११४३९). For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, म. चोथमल ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १९८१, आदि: (१)अरज सामलो हो साहिबा, (२)सोनारूपा मिट्टि तणे; अंति: चोथ०पाम दारियामे ताल, गाथा-७. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. चोथमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: सुगडा मानवी हो चतुरा; अंति: शिक्षा दे हितकार, गाथा-११. ८७०९६ (-) २४ जिन स्तवन-मातापिता नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४४१२.५, १६४३३). २४ जिन स्तवन-मातापितानामगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: नाब राजा मोरादेवी; अंति: बीमान पोहता नर जाणे, गाथा-२४. ८७०९७. (+) विजयशेठविजयासेठाणी चौढालियो व मेघकुमार सप्तढाल, अपूर्ण, वि. २१वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १७४४७). १. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. म. रामचंद, पुहिं., पद्य, वि. १९१०, आदि: आदिनाथ आदिसरो सकल; अंति: रामचंद० ब्रह्मचार, ढाल-४. २. पे. नाम. मेघकुमार सातढाल, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मेघकमार सज्झाय, रा., पद्य, आदि: धारणी समजावे हो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ की गाथा-७ तक है.) ८७०९८. (+) गति आगति द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:गतिआगतिनो द्वार., संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४३८). ५६३ जीवभेद गतिआगति विचार-२४ दंडके, रा., गद्य, आदि: समचै जीव पांचसै; अंति: नेरयामाहि चवीनै आवै. ८७०९९ (+) पंचमीतिथि स्तवन व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२.५, ९४२६-४२). १. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण... औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८७१००, पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९२१, फाल्गुन कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. प्राणजीवनदास डाह्याभाई सा; पठ. श्राव. केवल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४१२.५, ९४२४). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पाश संखेसरो मण; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७, (वि. गाथांक नही है.) ८७१०१. (+) सुभद्रा को पंचढालियो, संपूर्ण, वि. १८७६, मार्गशीर्ष, १०, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२३४१२, १६४३६-४४). सुभद्रासती पंचढालीयो, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: सिवदायक लायक सदा; अंति: विनयचंदै०पांचु एकरी, ढाल-५. ८७१०२ (#) पार्श्वजिन स्तवन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ७, प्र.वि. हुंडी:थुइपत्र०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १४-१५४३०-३२). १.पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: उजवालडी बीजै चंदा; अंति: ज्ञानसुरिंद० जिणंद, गाथा-४. २.पे. नाम, पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. उदयसागरसरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमी संभव ज्ञाण; अंति: उदैसरि अविचल थप ए, गाथा-४. ३. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १८७ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट प्रमाद; अंति: तस विघन दूरे हरे, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-दशपुरमंडण, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. __मु. उदयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: दसपुरमंडण सोहै नवफण; अंति: तास उदो करी माया, गाथा-४. ५. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीयांसजिन; अंति: संघनै नित मंगल करु, गाथा-४. ६. पे. नाम, पाक्षिक स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सनातस्याप्रथमस मेरु; अंति: सर्वकार्येष सिद्धं, श्लोक-४. ७. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवृधमानजिनवर परम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८७१०३. (+) ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६४, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सरीयारी, प्रले. मु. राजाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पांचमीतपस्त., संशोधित., जैदे., (२२.५४१२.५, १८४३६-४०). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: समयसुंदर० प्रसंसीउ, ढाल-३, गाथा-२५. ८७१०४. अष्टप्रकारी पूजा काव्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. न्यायसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४११.५, २०४१८-२२). ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., पद्य, आदि: विमलकेवलभासनभास्करं; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, श्लोक-९. ८७१०५. श्रावकना चार शरणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:चारस., दे., (२३४१२, २४४६०-७२). ४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: चत्तारि सरणं पडिवज्झ; अंति: मनुं शरणुं पडिवझर्छ. ८७१०६ (+) नेमिनाथराजिमति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०६, कार्तिक कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:ने०रा०सि०., संशोधित., दे., (२६४१२, १२४३०-३४). नेमराजिमती सज्झाय, मु. माणक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला तो समरूं हो; अंति: माणक० आवागमण निवार, गाथा-१८. ८७१०७. (+) १८ पाप स्थानकनिवारण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १०४३०-३२). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलू का; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सज्झाय-१ तक लिखा है.) ८७१०८. नवकार मंत्र व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, २१४४४-५४). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद-९. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-जीवोपदेश, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जीवा तु तो भोला रे; अंति: जेमल०इम रुलियो संसार, गाथा-३५. ८७१०९ () औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १०४३०-३२). औपदेशिक सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कां नवी चेते रे चीतम; अंति: लब्धी०सुख पामें अपार, गाथा-७. ८७११० (+#) जोबन पचीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सोजत, प्रले. मु. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:जोबनपची० अंत में 'आरज्याजी वाचना अर्थे' ऐसा उल्लेख मिलता है., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७४१२, १७२३२-४६). यौवनपच्चीसी, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १९१६, आदि: जोबनियानो लटको दहाडा; अंति: सिष्य कहे खोडिदास जो, गाथा-२५. For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७१११ (2) नमस्काराणि जिनानां, संपूर्ण, वि. १७४९, माघ कृष्ण, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, १५४३९-४५). साधारणजिन नमस्कार, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर प्रमुख सवे; अंति: करि ऋषभ कहि ते धन्य, गाथा-७. ८७११२. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११.५, १०४३०-३२). महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण आव्या हो देवा; अंति: भाववीमरा० दोय मोख, गाथा-८. ८७११३. (+) शांतिजिन त्रिभंगी छंद व सवैयादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, कल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १२४३४). १. पे. नाम. शांतिजिन त्रिभंगी छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-त्रिभंगी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: विश्वसेन कुल कमल; अंति: शांतिदेव जय जितकरन, गाथा-९. २. पे. नाम, अक्षौहिणीसैन्य मान, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: गज इकवीस हजार आठसै; अंति: अक्षौहणी परवान किय. ३. पे. नाम, औपदेशिक गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: कुम्गह गहगरियाणं; अंति: वयनम्मिषवेइ कप्पूरं, गाथा-१. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक सवैया संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: अजुम जु कचु वाणी; अंति: सो तुम हमकु देह, गाथा-१. ५. पे. नाम. श्रावक २१ गुण सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: लज्यावंत दयावंत; अंति: एकवीस गणधारी हे, पद-१. ८७११४. अक्षयनिधितप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १५४४४-४८). अक्षयनिधितप विधि, मा.गु., प+ग., आदि: (१)श्रावण वद ४ने दिवसें, (२)श्रीश्रुतज्ञानने नित; अंति: (१)चित्रामण करवा जोईइ, (२)पामु अविचल राज, दोहा-१. ८७११५. (+) महावीरजिन व मुनिसुव्रतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १३४४०-४६). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: वीरजिणंदशु विनती; अंति: नहि छोडे चतुर के, गाथा-७. २. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: मुनिसुव्रतजिन तुज; अंति: चतुर थशे निजरूप जी, गाथा-७. ८७११६. (4) विचारचोसठी, संपूर्ण, वि. १८६८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. धोराजी, प्रले. श्राव. खुस्यालचंदजी जीवराजजी शाह; अन्य. श्राव. उदेचंद रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में 'पूज्य ऋषि उदेचंदजी रायचंदजी पासेथी लख्यु छे' ऐसा उल्लिखित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४५०-५४). विचारचोसठी, आ. नन्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५४४, आदि: वीरजिनेसर प्रणमी पाय; अंति: कोरंटगछ पभणे नंदसुर, गाथा-६४. ८७११७. (4) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हंडी:गोतमारासो० अंतिम पत्र का क्रम नही लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४२८-३६). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमला; अंति: (-), (अपूर्ण, _पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७११८. (+) चतुर्दश गुणस्थानक वृद्धि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. प्रतापसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४३९-४५). For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १८९ सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमतिदाता; अंति: कहै इम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४. ८७११९ (+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४११.५, ११४३०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सुमति विलाप सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: पडज्यो कुमितिगढना; अंति: उदय० लेहिसि सवाय, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: घडी एक रहोने रथ राखि; अंति: दीवगुण स्तवनमां गाय, गाथा-१२. ३. पे. नाम, दान सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. म. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रसीया राचौ रे दान तण; अंति: तिलकविजय जयकार, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेम गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोखेरे बेठी राजुल; अंति: होज्यो एहवी युगति रे, गाथा-९. ८७१२० (+-) दीपावलीपर्व रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२६४११.५, १३४३०). दीपावलीपर्व रास, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो श्रीभगवंतरो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३९ तक लिखा है.) ८७१२१. चारित्रमनोरथमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. मनजी ऋषि (गुरु उपा. देवसुंदर, संडेरगच्छ); गुपि. उपा. देवसुंदर (संडेरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १४४३२-४२). चारित्रमनोरथमाला, मु. खेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिसर पाय नमी; अंति: श्रीखेमराज० लहइ अपार, गाथा-५३. ८७१२२ (+#) स्थूलिभद्र लेख, आदिजिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-४(१ से ३,६)=३, कुल पे. ७, प्र.वि. हुंडी:सज्झायपत्र., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३६-३८). १. पे. नाम. स्थूलिभद्र लेख, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि लेख, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: स्वस्ति श्री कोस्या; अंति: काई देवविजय सुख थाय, गाथा-२१. २. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जगनायक जगगुरु; अंति: केशर० दरिशण सुखकंद, गाथा-५. ३. पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: बीज तणे दिन दाखव्यं; अंति: देव०सर्या सहु काज रे, गाथा-९. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरुना प्रणमी पाय; अंति: वाचक देवनी पुरो जगीस, गाथा-५. ५.पे. नाम, अष्टमीतिथि सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसति चरणे नमी; अंति: वाचक देव सुसीस, गाथा-७. ६. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. दान, मा.गु., पद्य, आदि: सुख दुख सरज्यां पामी; अंति: दाम० सदा सुखकार रे, गाथा-८. ७. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी वसे; अंति: सिद्धिविजय सुख थाया, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७१२३ () आत्मानी आत्मता, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११.५, १७४३८-५०). ६५ गण-आत्मा के, मा.ग., गद्य, आदि: असंख्यात प्रदेशी; अंति: आत्मा ध्यायवा योग्य. ८७१२४. (+#) २४ जिन विमान, माता, पिता आदि विवरण यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, २५४५३). २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८७१२५. (+) ज्ञानपंचमी, अष्टमी व मौनएकादशी स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १२४३०-३२). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ___ सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जिन आगल; अंति: धीर०सीस० कल्याण जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तति, पृ. ९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ तक है.) ८७१२६. (4) सिद्धनी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, ८४३०-३४). सिद्धपद स्तवन, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जगतभूषण विगत दूषण; अंति: ध्यानथी सिद्ध दरसन, गाथा-१३. ८७१२७. अजितनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, १४४३२-४२). अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनकृत, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुख; अंति: सिरिमेरुनंदण उवझाय ए, गाथा-३२. ८७१२८. ऋषभजिन स्तुति व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १३४२८-३४). १.पे. नाम, आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सौधर्म देवलोक पहिलो; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. २.पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्री रे सिद्धाचल; अंति: कांति० विमलाचल गायो, गाथा-५. ८७१२९. अल्पबहत्वविचारमयं श्रीसंभव स्तोत्रं, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १५४४६). संभवजिन छंद-अल्पबहुत्वगर्भित, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: संभव सहजिइ सुखदातार; अंति: हर्ष०कमलविमल दिउ सेव, गाथा-३२. ८७१३०. नोकारवालीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ८x१८-२२). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कहेजो रे पंडित ते; अंति: रूप कहे बुध सारी रे, गाथा-५. ८७१३१. दीपावलीपर्व सज्झाय व ७ सहेली प्रहेलिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी: दीवाली., जैदे., (२५४११.५, १०-१२४३६). १.पे. नाम. ७ सहेली प्रहेलिका, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पहली सखी जेब बोले; अंति: पंडित० सो करो बिचार, गाथा-८. २. पे. नाम. दीपावलीपर्व सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. हर्षविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धनधन मंगल एह सकल दिन; अंति: हरखे हरखे गाइ रे, गाथा-१०. ८७१३२ (+) दशार्णभद्रराइ चउढालो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दीसा०., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १८४४२-४६). For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १९१ दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सारद समरु मनरली समरु; अंति: मलार समत सरासछायसाये, ढाल-४, गाथा-२७. ८७१३३. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८-४०). १. पे. नाम. एकमतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात्व असंयम; अंति: नयविमल० होवे लीलाजी, गाथा-४. २. पे. नाम, चतुर्थीतिथि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सर्वारथसिद्धथी चवी ए; अंति: ए नय धरी नेह निहालतो, गाथा-४. ३. पे. नाम, कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंद पढमं जिणंद; अंति: (-), गाथा-२, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ४. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप मप; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७१३४. (#) भुडुया महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ११४२४-२८). महावीरजिन स्तवन-भुतीर्थमंडन, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: सरसति सामण वीनवू; अंति: रामचंद०प्रणमु पाय रे, गाथा-१३. ८७१३५. (+#) कर्मबंध उदयउदीरणासत्ता यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, ४८x२४). कर्मग्रंथ-२ कर्मबंध-उदय-उदीरणा-सत्तायंत्र, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). ८७१३६. जगदंबा अष्टक व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, १४४३२). १. पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. कृति के पूर्व में संवत् १७५४ वर्षे ऋ. राजपाल, ऋ. लाखा व क्र. जेठा की दीक्षा का उल्लेख किया है. सं., पद्य, आदि: ऐं ह्रीं श्रीं मंत्र; अंतिः सदा सारदे देवि तिष्ठ, श्लोक-८. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-तमाकुपरिहार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय- तमाकु त्याग, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती विनवे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० तक है.) ८७१३७. नेमराजिमती रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. बर्दा, प्रले. मु. सुरताण ऋषि; दत्त. गणेश व्यास; पठ. मु. झंझा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, ११-१२४३०-३२). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: पुण्यरत्न नेमि जिणंद, गाथा-६४. ८७१३९ (#) २४ जिन नमस्कार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, ११४४४-५०). २४ जिन नमस्कार स्तुति, पं. संघसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: सकलसुखदातार सार सेवक; अंति: (-), (पू.वि. वासुपूज्यजिन स्तुति गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ८७१४० (#) सुखदेवलोक सज्झाय व चोवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. ज्ञानचंद भागचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जीतमलजीरे प्रसाद., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १६x४७). १.पे. नाम. सुखदेवलोक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. श्री धनाजीरा पाना उपर लिखीयो. देवलोकसुख सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, आदि: सुख देवलोकारा; अंति: आसकरण चोमासो जी, गाथा-२१. २.पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन स्तवन, मु. देवा ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नमो श्रीआदि अजितनाथ; अंति: रीषजी कहे स्तवन, गाथा-१३. ८७१४१. पट्टावली व उपशम सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, ३०x१७). १.पे. नाम. पाटावली, पृ. १अ, संपूर्ण. पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: महावीर थकी श्रीसुधर; अंति: श्रीजयप्रभसूरि ३०, (वि. पाट ३० तक है.) २.पे. नाम. उपशम सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-उपशम, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भवभंजण रंजण जगदेव; अंति: गर्भवासि० नही अवतरि, गाथा-१२. ८७१४२. आंचलिकमत विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १८४५६). अंचलमत विचार, सं., गद्य, आदि: अंचलं स्थापयंति१ मुख; अंति: ग्रहणं अनुजानंति. ८७१४३. दीपावलीपर्व स्तुति व ककाबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १३४३९). १.पे. नाम. अक्षर बत्रीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कक्काबत्रीसी, म. महिमा, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: कका ते कीरीया करो कर; अंति: मुनिमहिमा हित जांण, गाथा-३३. २. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तति, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रत्नविमल, मा.ग., पद्य, आदि: सासननायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसति वर वाणी, गाथा-४. ८७१४४ (+) आद्रकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. जयमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, १५४४२-४६). आर्द्रकुमार सज्झाय, क. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीउडा प्रीतडली इम; अंति: लब्धि कहि करजोडि रे, गाथा-१५. ८७१४५ (+) २४ तीर्थंकर बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, २५४५१). १.पे. नाम. २४ तीर्थंकरों के नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. २४ तीर्थंकर प्रथमदेशना पर्षदासंख्या मान, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन प्रथमदेशना पर्षदासंख्या मान, मा.ग., गद्य, आदिः (१)हवे प्रथमदेशना भगवंत, (२)महावीरने ८ परषदा देव; अंति: १२ पर्षदा समो० मिली. ३. पे. नाम. समोवसरण रहवानी स्थिति, पृ. १आ, संपूर्ण. समवसरण कालमान विचार-इंद्रादि द्वारा रचित, मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्मेंद्र दिन ८ सम; अंति: (१)समोवसरण दिन १ रहे, (२)मासो ए प्रायक वचन छइ. ४. पे. नाम. समोसरण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: भवनपति व्यंतर; अंति: एवं १२ परषदा जाणवी. ८७१४६. (+) चैत्यवंदन, स्तवन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४२९). १. पे. नाम, सुमतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुमतिनाथ गुणशुं मिलि; अंति: जश० मुज प्रेम प्रकार, गाथा-५. २.पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, म. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतलडी बंधाणी रे; अंति: मोहन कहे मनरंग जो, गाथा-५. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंति: विनय धरे तुम ध्यान, गाथा-३. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ יי www.kobatirth.org उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूखलवई विजयें जयो रे; अंति: वाचक जस०भयभंजण भगवंत, गाथा- ७. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि श्रीसीमंधर जिनवर सुख, अंति ज्ञानविमल गुणखाणी, गाथा- १. ६. पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मारा वीरजीनो सिंहासन अति रत्नने जडियो हिरणीने, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है । ८७१४७. (F) नमस्कार महामंत्र सह अर्थ व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २९वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२७४११, १५X४७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. संज्ञी असंज्ञी जीव कालमान, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि (-): अंति: (-). २. पे. नाम. २३ पदवी विचार, पू. १अ संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र- २३ पदवी विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर चक्रवर्ति; अंति: विना ८ पामइ ८ पदवी. ३. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सह अर्थ, पृ. १आ, संपूर्ण नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ५ पदों तक लिखा है.) (२६.५X११.५, १९X३३- ४० ). १. पे. नाम नेमिजिन बारमासो, पृ. १अ, संपूर्ण. १९३ नमस्कार महामंत्र- अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि नमो क० नमस्कार हूवो अंति: (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. साधुपद के अर्थ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७१४८. नमिजिन स्तवन, नेमिजिन स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२ - ११(१ से ११)=१, कुल पे. ३, जैदे. (२६११.५ ११५२६-३०). १. पे. नाम नमिजिन स्तवन, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है. ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पद्मविजय पोते देव जो, गाथा-६, (पू. वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि शांमलीया लाल तोरणथी; अंतिः पद्म तस्य शिर धारे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनपुरमंडन, पृ. १२ आ. अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि परवादि उलुकोपरि हरि; अंति (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८७१४९. () नेमिजिन बारमासो व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : बारमासीयो., अशुद्ध पाठ., जैदे., नेमिजिन बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: समदबीजेजीरा नंद खोटी; अति गीरनार मुक्त पुहताजी, गाथा-१३. २. पे. नाम नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि माता सेवादेजी जाया; अंतिः साथे ए संजम जेतावो, गाथा- १४. For Private and Personal Use Only ८७१५०. (*) धर्मरूचिअणगार सज्झाय व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६.५x११, १०-१८४२७-३७). "" १. पे नाम. धर्मरूचि अणगार सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. धर्मरुचिअणगार सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: धरमरुची मुनीवर भणी; अंति: चोथमल० धरमरु अनगार, गाथा - ९. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीमंधरसांमीजी; अंति: हंस० मानीए महाराज, गाथा - १२. ८७१५१. पार्श्वजिन स्तवन व बाहूजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, वे. (२६४११.५, १३४३५-४०). Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण पावस उल्लस्यौ; अंति: जिणहर्ष सदा आणंद रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. विहरमान स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. बाहुजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: रामति रमवा हुं गई; अंति: जिन० अवतार रे माय, गाथा-८. ८७१५२. (*) आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३, प्र. मु. कुंवरजी ऋषि पठ. मु. कल्याणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. जै. (२६४११, १०X३२-३५). " आदिजिनविनती स्तवन शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि पामी सुगुरु पसाय, अंति विनय करीने विनवे ए. गाथा-५८. " www.kobatirth.org ८७१५३. असज्झाय विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X११, १८x४५-५०). असज्झाय विचार, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि धूहरि पडइ असज्झाई अति असज्झाई विगति समत्तं. ८७१५४ (-) औपदेशिक सज्झाय व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी तीसना, अशुद्ध पाठ, जैदे. (२६५११, १८४३८ ). " १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-तृष्णापरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: तिसना तुरणी हे तुतो; अति: पुहुता बरतो जैजकारो, गाथा-१७. २. पे. नाम आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कान्हजी, मा.गु., पद्य, आदि चवदजी कुल म नाभज भुप, अंति: स्वामी बाधस्याजी, गाथा - १२. ८७१५५ (४) मृगांकलेखा चरित्र, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४११, २१४७२). मृगांकलेखा रास, श्राव. वछ, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर पय नमेवि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७१५६. सिझण द्वार व उपवास फल, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२७४११, ११४३३). १. पे. नाम. सिझण द्वार, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोल संग्रह-विविधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ रत्नप्रभाना आव्या; अंति: नपुंसक १समे १० सीझी. २. पे. नाम. उपवास फल, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. उपवासफल विचार, मा.गु., गद्य, आदि १ उपवास करे तो एकनौ; अंति: ६२५ नौ फल एतला होइ. ८७१५७ (-) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२६.५४११.५, १०x३२). औपदेशिक सज्झाय, मु. चोधमल, रा., पद्य, वि. १८५५, आदि: साधु कहे तु सुण रे; अति सिखदेवे छे सखडी छे, " " गाथा - १३. ८७१५८. (*) कार्तिकशेठ चौढालियो व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३. कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी कातक., संशोधित. दे. (२६११.५, १७४३८-४०). १. पे. नाम. कार्तिक शेठ चौदालियो, पू. १अ-३अ, संपूर्ण, ले. स्थल, रूपनगर, प्रवे. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. कृति संपूर्ण किए बिना ही प्रतिलेखन पुष्पिका लिखी है. कार्तिकसेठ पंचढालिया, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अरहत सिद्ध साधु सर्व, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र ढाल ४ तक लिखा है.) २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३१-३आ, संपूर्ण मु. साधुदास, पुहिं., पद्य, आदि: मोह मद की नीद सुतो; अंति: दे सूपात्रदान बे, गाथा-१२. ८७१५९. (-) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., ( २६११, १२४३८). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि जीव शवेते आतिमा धर्म अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा १७ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १९५ ८७१६० (+#) बुढला चोपई, संपूर्ण, वि. १८५५, आश्विन शुक्ल, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. अजर, प्रले. मु. सरुपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ढाल बुढाला की. अंत मे "वीतराग सत छे" लिखा है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १६x४१-५२). बढ़ापा चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: नीरधन के घर बेटीजी; अंति: विना जीवन की सी कमाइ, ढाल-१२. ८७१६१ (-) धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. सोदकरण (गुरु मु. ख्यालीराम); गुपि. मु. ख्यालीराम (गुरु मु. नानगराम); मु. नानगराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: धर्मसीद्रा. हुंडी: धनाजीकीसझाछे., अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४११.५, १२-१४४१५-२८). धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: घरे बतीसु कामनी धना; अंति: पार धन हु तो उवारी, गाथा-१३. ८७१६२. (+#) ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११, १२४२९). ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती विवरण, पुहिं.,मा.गु.,रा., गद्य, आदि: ऐकै मार थका सासवसास; अंति: खडब चोरासी अडब. ८७१६३. (+-) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न व सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी: चंदगुप०., अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १९४३५-४०). १. पे. नाम. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___ मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपूर नामे नगर; अंति: जेमलजी करी छे जोडो, गाथा-४०. २. पे. नाम. सनत्कुमार चक्रवर्ती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपत परसंस्या कर; अंति: खेम०गाया सुख पावइ जी, गाथा-२०. ८७१६४. (+) जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १२४३६-४०). जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसत स्वामिने वीनवू; अंति: भागविमल० हो जय जयकार, गाथा-१५. ८७१६५. नेमिकष्ण जीवन वृत्तांत, पद्गलपरावर्त, नारकी वेदना आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२७.५४११.५, ४४४२५). १.पे. नाम. नेमिजिन व कृष्ण जीवन वृत्तांत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन व कृष्णजीवन वृत्तांत, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: १ नेमिना भव ९ धनकुमर; अंति: कण्हस्स वासुदेवपदं. २.पे. नाम, पुद्गलपरावर्त विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पुद्गलपरावर्त्तना बइ; अंति: परावर्त्त कहिइ ८. ३. पे. नाम. नारकी १० वेदना नाम, पृ. १आ, संपूर्ण.. १० नारकी वेदना नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीय१ उष्ण२ खुह३; अंति: किधी वेदना हुइ. ४. पे. नाम, काग प्रीच्छा , पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. काकशकुन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: विहाणामांही उगती दिस; अंति: (-), (पू.वि. वायव्यकोण फलादेश अपूर्ण तक ८७१६६. (+) इरियावही सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७X११.५, ११४३४). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: गुरु सनमुख रहि; अंति: शुभविर० अनुसरिई जी, गाथा-१४. ८७१६७. (4) जिनबिंबप्रवेश विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ९४२२-२६). जिनबिंब प्रवेशप्रतिष्ठादि विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: शुक्र बृहस्पतिनु उदइ; अंति: (-), (पू.वि. "श्रीफल रूपा नाणा सहित" पाठ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७१६८. () अवंतिसुकुमाल स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ३ ले स्थल. अंजार, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६११.५, १७-२३४४४-४९). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य वि. १७४१, आदि मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंतिः शांतिहरख सुख पावे रे, . ढाल - १३, गाथा - १०७. ८७१६९. (*) नेमनाथ चोक, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५X१२.५, १२३५-४० ). , नेमिजिन लावणी, मु. माणेक मा.गु., पद्य, आदि प्रभुनेमनिरंजन बालपण; अंति: माणेक० चड्या वरघोडे, ढाल ४, गाथा - १६. ८७१७०. रेवती सज्झाय व छींक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६.५X११.५, १०X३५). १. पे नाम. रेवती सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभविजय, मा.गु., पद्य, आदि सोवन सिहासन रेवती; अति वल्लभ० भव तणो पार रे, गाथा - १०. २. पे नाम. छिंक विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, " छींक विचार, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, आदि: पाखी पडिकमणा मांहि; अंति: छिक दूषण मिटे सही.. ८७१७१ () विनय बोल संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे. (२६४१०.५, १७४३९). विनय बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: वीनयना सातभेद नाणवीन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "पख बीनाना सातभेद" तक लिखा है.) ८७१७२. स्थूलभद्र सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. मती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे, (२५.५४११.५, १२X३५-४० ). स्थूलभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्म, वि. १७५९, आदि सुखसंपति दायक सदा; अंति मनोरथ सवि फल्या रे, दाल-९, गाथा-७४. पालणपुर, जैदे., (२६११.५, १३x४५). " महावीर जिन स्तवन- जेसलमेरमंडन- विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि वीर सुणो मोरी वीनती अंति त्रिभुवनतिलो, गाथा-१९. " ले. स्थल. ८७१७३. महावीरस्वामी विनतिरूप स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८३, वैशाख कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५.५x११, १६३०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८७१७४ (+) स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११.५, १२x२७). अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु. सं., प+ग, आदि प्रथम प्रभुजीने बेसण, अंति: उवसमंतु मे स्वाहा. ८७१७५. (१) १४ गुणठाणाद्वार यंत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३, प्र. वि. हुंडी : गुणठांणाद्वारयंत्र टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, , " १४ गुणस्थानके ९३ द्वार विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८७१७६. २० बोल वाद निवारण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १ ले स्थल भरुवा, प्रले. माना, प्र.ले.पु. सामान्य, 1 प्र. वि. हुंडी : बीश., दे. (२६११, २१४३६). २० बोल वादनिवारण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि किणीसु बाद बिबाद न, अंति मेडतासर मजार जी, गाथा १६. ८७१७७. (+) शीलबत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२६४११, १९x४०). For Private and Personal Use Only 1 शीयलबत्रीसी, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सील रतन जतने करि राख; अंति: राजसमुद्र सुविचार जी, गाथा-३२. ८७१७८. (+०) दंडक स्तवन सह टवार्थ व दंडक २४ नी गति आगति विगत, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२६४११.५, ५४४०). १. पे. नाम. दंडक स्तवन सह टवार्थ पू. १अ ३आ, संपूर्ण वि. १८४९. 3 1 Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १९७ पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमउ पासनाह प्रह; अंतिः प्रसादि परमारथ लहइ, गाथा-२३. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमउ पासनाह कहतां; अंति: प्रसाद परमारथ पाम्यो. २. पे. नाम. दंडक २४ नी गति आगति विगत, पृ. ३आ, संपूर्ण.. गति आगति द्वार विचार-२४ दंडके, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नारकीनी गति २ आगति २; अंति: थकी आवै एवं गति नाम्या. २५. ८७१७९ (+) दशवैकालकसूत्रनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १४४४१-४५). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा नीलो; अंति: जयतसी जे जे रंग, अध्याय-१०. ८७१८० (4) मेतार्यमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अंत मे पत्र १आ पर 'माणिभद्रवीर छंद' की गाथा-१ प्रारंभ करके छोड़ दिया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १६४३६). मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: समदम ना गुण आगरूजी; अंति: साधु तणीय सज्झाय, गाथा-१३. ८७१८१ (2) भाषाभक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. विमलसागर; पठ. श्रावि. हीरादेजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४४२-५०). भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहि., पद्य, आदि: आदि पुरुष आदीश जिन; अंति: ते पावै शिवखेत, गाथा-४९. ८७१८२. पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १४४२८). ___ पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: श्रीविजयजिनेंद्रसूरी. ८७१८३. सुकोशमुनि सज्झाय, साधुपद सज्झाय व १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, १९४५७). १. पे. नाम. सुकोशलमुनि सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. सूरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी अयोध्या जयवती; अंति: भणे श्रीसंघ प्रसन्न, गाथा-४६, (वि. ढाल-२.) २. पे. नाम. साधुपद सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति गुपति सुधी; अंति: हर्षविजय हितकारी रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठी दसविह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८७१८४. नवकार महिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १७४५५-६२). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कपतरू रे आण; अंति: सेवा देज्यो नित्य, गाथा-१३. ८७१८५. पंचमआरा सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. बुंदीनगर, दे., (२५.५४१२,१९४४०-४५). १.पे. नाम, पंचमआरा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: श्री जिन चरणकमल नमु; अंति: लालचंद० बोल सूणाय हो, गाथा-१४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. म. लालचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: अरजवडा होय जगतम डोल; अंति: एव सता नही पाती है, गाथा-९. ८७१८६. व्याख्यान पीठिका व द्वादशावर्तवंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. केसरीसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३-१५४४२). १. पे. नाम. व्याख्यान पीठिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवंत वीतरागनी; अंति: तत् संबंधनी वाचना. २. पे. नाम. द्वादशावर्त विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. द्वादशावर्तवंदन विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: एक यथाजात१ उघोमुहपति; अंति: पैसवू १ वार निकलवं. ८७१८७.(+) आदिजिन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१०(१ से ९,११)=२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है, परंतु कृति अपूर्ण होने के कारण काल्पनिक पत्रांक लीया है., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, २०४४५-५५). आदिजिन चौपाई, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२९ अपूर्ण से ३० अपूर्ण तक व ढाल-२४ अपूर्ण से ढाल-३६ अपूर्ण तक है.) ८७१८८. श्रीसारकवित्तबावनी व सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, १८-२०४५८-६०). १. पे. नाम. श्रीसारकवित्तबावनी, पृ. ४अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्रीसारबावनी, मु. श्रीसार कवि, मा.गु.,रा., पद्य, वि. १६८९, आदि: (-); अंति: श्रीसार० साचै मनै, गाथा-५५, (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रास्ताविक सवैया संग्रह, पृ. ५अ, संपूर्ण. पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: बंग कहरि मृगंक कहा; अंति: अरु लेवे कुं अतीमसी, गाथा-३. ३. पे. नाम. सवैया संग्रह-जैनधार्मिक, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: जानत बालगोपाल सवे जस; अंति: कंकरसै सब काज सरे है. ८७१८९ (+#) सतसय दोहा, आदिजिन स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३६-४५). १. पे. नाम. २४ जिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीतीर्थंकर चोवीसे; अंति: पामे शिवपुर थान, गाथा-५. २.पे. नाम. पद्मप्रभजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, आ. जिनलाभसरि, मा.गु., पद्य, आदि: पदमप्रभु जिन ताहरो; अंति: प्रभुना गुण गावे, गाथा-३. ३. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. गुणविलास, पुहिं., पद्य, आदि: अब मोहि तारोगे; अंति: मेरी करो प्रतिपाल, गाथा-३. ४. पे. नाम. सतसया दोहा, पृ. १आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क. बिहारीदास, ब्र., पद्य, वि. १७१०, आदि: मेरी भो बाधा हरो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ८७१९० (#) एकादशी नमस्कार, गौतमस्वामी सज्झाय व साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १५४४०-४५). १. पे. नाम, एकादशी नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासन नायक वीरजी; अंति: खिमा० सफल करो अवतार, गाथा-९. २.पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८७२, प्रले.पं. दयाविजयगणि (विजयआणंदसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: गौतम तुकै संपति कोड, गाथा-९. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंति: कुर्वंतु वो मंगलं, गाथा-९. ८७१९१. धर्म भावना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, १२४३६). धर्म भावना, मा.गु., गद्य, आदि: धन्य हो प्रभु संसार; अंति: रीने वंदना होज्यो जी. For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८७१९२ (+#) अध्यात्मबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ४,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३४-४२). अध्यात्मबत्तीसी, म. बालचंद मनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेश्वर; अंति: गहे अरिहंत देव रे, गाथा-३२. ८७१९३. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन-श्रीपुरमंडण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, ११४४०-४६). १.पे. नाम. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, प. २अ, अपूर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पुन्य थकी फले आस रे, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-श्रीपरमंडण, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. राजेंद्रभक्ति, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: प्रभु श्रीपुरमंडण; अंति: ध्यावना भवि कीजे रे, गाथा-११. ८७१९४. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १८४३५-४०). गजसकुमालमुनि सज्झाय, म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकिनानंदन; अंति: चोथमल० हंस करिन गाइ, गाथा-२२. ८७१९५. पंचमी लघ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, जैदे., (२५४११.५, ८४३६). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचम तप तुम्है करो; अंति: न्याननौ पंचमो भेद रे, गाथा-५. ८७१९६. स्तोत्र व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:उलिनानवतप., जैदे., (२५४११, १८४४५). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधीइ; अंति: ज्ञान प्रसिध लाल रे, गाथा-५. २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: आराहो प्राणी साची नव; अंति: हरषित हु नितमेवा, गाथा-५. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. म. ज्ञानविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: गौतम पूछत श्रीजिन; अंति: भगति करो भगवानकिं, गाथा-७. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८४०, कार्तिक कृष्ण, १३. मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सांभलो; अंति: जैनेन्द्र०भव आधार के, गाथा-५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सार सुरती जग जाण; अंति: मेधराज० त्रीभुवनतीलो, गाथा-६. ८७१९७. ढंढणऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५४, फाल्गुन कृष्ण, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. गीरधारी (गुरु पंन्या. खुशालचंद); गुपि. पंन्या. खुशालचंद; दत्त. मु. प्रेमचंद्र ऋषि; अन्य. मु. वीरचंद ऋषि; ऋ. वालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत मे ताव आदि का विधिसहित यंत्र दिया गया है., जैदे., (२५.५४११.५, १२४२६-३१). ढंढणऋषि सज्झाय, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण रिषजीने वंदणा; अंति: हुंवारी लाल, गाथा-९. ८७१९८. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्राव. गोकल शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, ११४३८). महावीरजिन स्तवन, म. शिवकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: सकल संघ सुखकारी वीरइ; अंति: सिवकल्याण कोडि लीजइ, गाथा-१९. ८७१९९. सनतकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १६४४०-४६). सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कुरुदेसने गजपुर ठाम; अंति: कर जोडी प्रणमे पाय, ढाल-४. For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७२००. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११.५,७४३०). लब्धिद्वारे २१ द्वार विचार, पुहि.,प्रा., गद्य, आदि: जीव गइ इंदिय काए सुह; अंति: (-), (पू.वि. "असंखतामा भाग जाणइ अन" तक है.) ८७२०१ शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. भावश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, ११४२३). शांतिजिन स्तवन, पं. वीरविजय, पुहि., पद्य, आदि: खिण खिण सांभरे शांति; अंति: शुभवीरविजय पडिपुन्ना. ८७२०२. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १७४५४). औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: पोह सम उठी भावसु; अंति: कोरै घडै पडी छांटो ए, गाथा-३८. ८७२०३. भगवतीसूत्र सज्झाय व संखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, *ट.घा., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०). १. पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: वीर जिणेसर अरथ; अंति: क्षमा०गावै सुजगीस रे, गाथा-२१. २. पे. नाम. संखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेश्वरो; अंति: उदयरत्न० आप तूठा, गाथा-७. ८७२०४. (+) भयपच्चीसीरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हंडी: भयपचीसी., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४५१). औपदेशिक सज्झाय-भयपच्चीसी, रा., पद्य, आदि: सासण नायक श्रीव्रधमा; अंति: (१)मन रे तु जीवने समजाय, (२)तीजी भयदीवी खोय, गाथा-२१. ८७२०५. (+) पार्श्वजिन स्तवन, आदिजिन स्तवन व गुरुगुण स्तुति, संपूर्ण, वि. १८८६, वैशाख शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. गधराण, प्रले. मु. शिवदास ऋषि (गुरु मु. कुशालचंद); गुपि. मु. कुशालचंद; पठ. सा. छोटाजी (गुरु सा. उमाजी); गुपि. सा. उमाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: ढालांछेसंतगुर., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४.५४११.५,१७४५२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८५, आदि: कासी ए देस वणारसी; अंति: कुसालचंद्रजी जोड करी, गाथा-९, प्र.ले.पु. सामान्य. २.पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रायचंदजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सामीजी रे सांमा जोय; अंति: रायचंदजी० लिजो संभाल, गाथा-१०. ३. पे. नाम. गुरुगुण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. कुशालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पांच महाव्रत पालताजी; अंति: जोडी चीत हुलास हो, गाथा-९. ८७२०६ (#) चौपटखेल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११.५, १०४३७). औपदेशिक सज्झाय-चौपटखेल, आ. रत्नसागरसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम असब मल झाटकी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक लिखा है.) ८७२०७. (+) इलाचीकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वेरावल, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४४०-४५). इलाचीकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुरति जिम सोवन ओलखे; अंति: उग्यो अभिनव भाण, गाथा-१८. ८७२०८. आषाढभूति चौढालियो व भरतबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, २०४७०-७५). १. पे. नाम. आषाढभूति चौढालियो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले. पं. चतुरहर्ष मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य. आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी; अंति: श्रीसंघकुं सुखकारी, गाथा-६९. For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २०१ २. पे. नाम, भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबल चारित्र लीयो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७२०९ विजयप्रभसूरि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७१८, वैशाख, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जालोरदुर्ग, पठ. मु. बोधसागर (गुरु मु. कल्याणसागर, तपागच्छ); गुपि. मु. कल्याणसागर (गुरु मु. केसरसागर, तपागच्छ); मु. केसरसागर (गुरु मु. उत्तमसागर, तपागच्छ); मु. उत्तमसागर (गुरु उपा. कुशलसागर गणि, तपागच्छ); वा. कुशलसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४११, १३४३६). विजयप्रभसूरि सज्झाय, उपा. कुशलसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पूज्य पधारो मरुदेशे; अंति: उत्तम निसदीस के, गाथा-१३. ८७२१०. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रावण कृष्ण, ३०, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. कीसनगढ, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२५.५४११.५, १४४३०-४१). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: ए जैमलजी करी जोडो रे, गाथा-४०. ८७२११. शत्रुजयतीर्थ, अजितजिन चैत्यवंदन व धर्मजिन पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, ११४४०). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय सिद्ध; अंति: जिनवर करुं प्रणाम, गाथा-३. २.पे. नाम. अजितजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: अजितनाथ अवतार सार; अंति: अजितनाथ नित्ये जपो, गाथा-३. ३. पे. नाम. धर्मजिन पूजा, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मजिन पद, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: पूजो श्रीजिनधरम देव; अंति: श्रीधरमनाथनें नाम, गाथा-४. ८७२१२. (4) प्रत्याख्यानसूत्र व आर्द्रकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३३). १. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: असित्थेण वा वोसिरामि. २. पे. नाम, आर्द्रकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: तुम्ह दरसणरी अति घणी; अंति: हो चिता विरह वेदण गई, गाथा-७. ८७२१३. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रावण कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३९). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३५. ८७२१४. जिनराज चैत्यवंदन, पार्श्वजिन स्तोत्र व केशरियाजी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४११.५, ११४३३). १. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जय जय तुं जिनराज आज; अंति: मल्यो भवजल पार उतार, गाथा-६. २. पे. नाम. पार्श्वनाथजीन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथ; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ३. पे. नाम. केशरियाजी- चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन-धुलेवा मंडन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीकेशरियानाथजी तुं; अंति: कमल कहे नित्यमेव. ८७२१५. १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११.५, १४४१६-२२). For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीना भेद ५; अंति: नहीं तो दूषण जाणिबौ. ८७२१६. जिनप्रतिमाफल व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०९, आश्विन शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १२४४०). १. पे. नाम. जिनप्रतिमाफल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनवंदनविधि स्तवन, म. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चउवीसै करु; अंति: कीर्तिविमल० वरवा, गाथा-११, प्र.ले.पु. सामान्य. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-देवनाटकविचार, म. जिनेंद्रसागर, मा.ग., पद्य, आदि: प्रभु आगलि नाचै सुर; अंति: जोवण उछक छे अति, गाथा-९. ८७२१७. १६ स्वप्न सज्झाय व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८०, फाल्गुन कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. रायपुर, जैदे., (२५४११, १७४४५). १. पे. नाम. १६ स्वप्न सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुरनामे नगर चंद; अंति: समयसुंदर कही जोडो रे, गाथा-२७. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुक्खलवइ विजया जयो; अंति: वाचक जस०भयभंजण __ भगवंत, गाथा-७. ८७२१८. (+#) नेमराजिमती सज्झाय, स्थूलभद्र गीत व पार्श्वजिन स्तवादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. सुभट्टपुर, प्रले. वा. यशोवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, २१४५४). १. पे. नाम. नेम सिज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. यशोवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: ससनेही राजुल विनवै; अंति: हो पुरी पूरो संसार, गाथा-७. २.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जसवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कविमाता करज्यो मया; अंति: जसोवरधन० नरभव लाहरी, गाथा-८. ३. पे. नाम. स्थूलिभद्र गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. यशोवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: सखी मोहि थूलभद्र आणि; अंति: तुं डुक्कर दुःकर कार, गाथा-७. ४. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. यशोवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कहै इम कोस्या नारि; अंति: यशोवरधनगुर कह्यो हे, गाथा-९. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १आ, संपूर्ण. __ मु. जगरूप, मा.गु., पद्य, आदि: मन सुध करि मनुहार; अंति: वाचक इणविधै जीम्हां, गाथा-७. ८७२१९ पंचमी महिमा स्तवन, दशवैकालिक सज्झाय, वर्धमानजिन स्तुति व औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ६, जैदे., (२५४११.५, १३४५८). १.पे. नाम. पंचमी महिमा स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८९३, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, १५, ले.स्थल. मोरवाडा, पठ. मु. पेमचंद; प्रले. सा. रूपा, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. सेठ जोरावरमलजीरे सिघं मध्ये. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणे; अंति: विजयलक्ष्मी० दाया रे, ढाल-४, गाथा-१६. २.पे. नाम. दशवैकालिक सज्झाय, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण, वि. १८९३, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, १, ले.स्थल. मोरवाडा, प्रले. सा. रूपा; पठ. मु. प्रेमचंद (चंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २०३ दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमानिलो; अंति: जेतसी जय जय रंग, अध्याय-१०. ३. पे. नाम. वर्धमानजिन स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा.,सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणिं भव; अंति: मे मंगलं देवि सारं, गाथा-४. ४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: अबधू रामराम जग गावै; अंति: रमता आनंद भवरा, गाथा-४. ५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवध नट नागर की बाजी; अंति: आनंदघन० सोइ पावै, गाथा-४. ६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: अबधू आस्या औरनकी कहा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., __गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७२२०. फतेमुनीना गुणकीर्तन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४११.५, ८४३३). फतेचंदमुनि सज्झाय, श्राव. जेष्ठाजी, पुहि., पद्य, वि. १९१०, आदि: देशक मारग मोक्षना; अंति: चतुरदशी सुख कारो, ढाल-२, गाथा-२०. ८७२२१. रथनेमिराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ११४३४). रथनेमिराजिमती सज्झाय, म. रूपविजय, मा.ग., पद्य, आदि: काउसग्ग ध्याने मुनि; अंति: रूपविजय० देह रे, गाथा-८. ८७२२२. अजीवना ५६० भेद, पल्योपमना त्रिण प्रकार व पुद्गलपरावर्त विचार, अपूर्ण, वि. १९०२, श्रावण शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, प्रले. मु. विनयरत्न (अचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, १७४५८). १. पे. नाम. अजीवना ५६० भेद, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ५ नवाने जुनो करे ६, (पू.वि. चंद्रविमान अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, पल्योपमना त्रिण प्रकार, पृ. ३अ, संपूर्ण. पल्योपम-सागरोपम त्रण प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: पल्योपमना त्रिण; अंति: कोडे खेत्रसागर थाइ. ३. पे. नाम, पुद्गलपरावर्त विचार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पुद्गलपरावर्तिना; अंति: श्रेय श्रियं प्रापय. ८७२२३. गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६०, वैशाख कृष्ण, ३०, रविवार, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५.५४११.५, ११४४०). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. मकनमोहन, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: एक घर घोडा हाथीयाजी; अंति: मकनमोहन० भवनो पार रे, ढाल-२, गाथा-४३. ८७२२४. (+) अष्टप्रकारी पूजा व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. मेडता, प्रले. पं. मालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १२४३४). १.पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीजगनायक तु धणी; अंति: अमीकुंवर कहे नहि वार, ढाल-८. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: चेतन ते एसी करी तेसी; अंति: न मुके कटको कोर, गाथा-७. ८७२२५. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, साधारणजिन स्तवन व आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १२४४५). १. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हंसरतन, मा.गु., पद्य, आदि: ऐन असाडो उन्होजी; अंति: सीच्यो समकित छोड, गाथा-९. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: या तन काची माटी का; अंति: कहे० तारे तारन हारा, गाथा-४. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु.रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: इस सहर विच कौण दिवान; अंति: रे दुश्मन मान गुमान, गाथा-४. ८७२२६. (4) कुंभस्थापन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, २७४२०). कंभस्थापन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ८७२२७. पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५५, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सिंगोली, प्रले. मगनीराम ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पांच., जैदे., (२४.५४११.५, १३४३४). पंचमीतिथि स्तवन, म. वर्धमान ऋषि, मा.ग., पद्य, वि.१४८४, आदि: सारद प्रणम पाय सकल; अंति: वृद्धिमान० संपति करि, ढाल-४, गाथा-४३. ८७२२८. (#) घासीराम संलेखना सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१६, पौष कृष्ण, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जावला, प्रले. श्रावि. रायकंवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १३४३३). १. पे. नाम. घासीराम संलेखना सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कनीराम, मा.गु., पद्य, वि. १९१२, आदि: पूज घासीरामजी भारी; अंति: गाउ पुज सोभाग पुज०, गाथा-९. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: थारी फूल सी देह पलक; अंति: रतन० सुखरी अबलाषा रे, गाथा-५. ८७२२९ नेमिजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१४, चैत्र शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, प्रले. श्राव. प्रेमचंद परसोत्तम गांधी; पठ. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वासुपूज्यस्वामी प्रसादे., दे., (२४.५४११.५, ९४३१). नेमिजिन सज्झाय, मु. दीपविजयशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: भाखें श्रीभगवंत; अंति: विजय तणो० सुख थयु रे, गाथा-१७. ८७२३०. कमलावतीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. छगनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, १४४४२). कमलावतीसती सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, वि. १९६०, आदि: धन पुरुस जो संजम; अंति: चोथमल०आया विचरंता जी, गाथा-९. ८७२३१. (+) पार्श्व स्तोत्र व १६ सती नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रसंख्या नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १३४३०). १.पे. नाम. पार्श्वस्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास चिंतामणि जेम; अंति: सदा पूरो मनरली, गाथा-८. २. पे. नाम. १६ सती नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ब्राह्मी१ चंदन२ बालि; अंति: १५ पदमावती १६ सुंदरी. ८७२३२. सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १८x२४). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: वाचक जस०भयभंजण भगवंत, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-२ से है.) २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडीन वीनउं; अंति: ज्ञान० साकर भेलो रे, गाथा-६. ८७२३३. कालमांडला विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, १२४३१). योगविधि कालमांडलादि-साध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अथ मोटा जोग वहे तेने; अंति: मिच्छामि दक्कडं. ८७२३४. केशीगौतमगणधर सज्झाय, संपूर्ण, वि.२०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १२४३१). केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर प्रणमीये; अंति: रूपविजय गुण गाय रे, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८७२३५. (+) नेमराजिमती सज्झाय व आत्महितशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण विशेष पाठ. दे. (२५.५४११.५, १३४२८). युक्त " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आव. रुपचंद, मा.गु., पद्य, आदि अणसमजूजी सी सीखामण अति रूपचंद० पातक जाय नासी, गाथा ८. २. पे. नाम. आत्महितशिक्षा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि प्रभुजी साथै प्रीत अति उदयरतन० इम बोले रे, गाथा-७, ८७२३६. स्थूलीभद्र सज्झाय, औपदेशिक पद व नवग्रह वाहन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५X११.५, नवग्रह वाहन, मा.गु., सं., पद्य, आदि: चंद्रबुधभृगुत्रेव अंति: नवग्रह बांन जाणीवे, गाथा- ३. ८७२३७. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., ( २४.५X११.५, १६X३८). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि आठकर्म नाम कहे छै; अति रावण ८ जरासिंधु ९. ८७२३९. संखेसरापार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे. (२४४११.५, ११४२६) १६४३८). १. पे. नाम. स्थूलीभद्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, आ. भावहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जोग ध्यानमें जोडी; अंति: भाव नमे नित पाय, गाथा-१५. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ. संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि जेन कहो किम होवे परम, अंति जैनदशा जस ऊंची, गाथा- १०. ३. पे नाम. नवग्रह वान, पृ. १९आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ, जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पास अंतिः सयल रिपु जीपतो, गाथा ५. ८७२४०. ऋषभदेव स्तवन व आदौ नेमि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४x११.५, १२x३९). १. पे. नाम ऋषभदेव स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. सुरत ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०९, आदि आदिजिणेसर हो साहिव; अति सुरत० सफल करो मुझ आस, गाथा - ९. २. पे. नाम आदी नेमि स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र- पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि आदी नेमिजिनं नौमि अंतिः सुखनिधानं० निवास, श्लोक - ९. ८७२४१. श्रावकपाक्षिक अतिचार, दानशीलतपभावना प्रभाती व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५५११, ९४३९). १. पे. नाम. श्रावकपाक्षिक अतिचार, पृ. १अ संपूर्ण आवकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि अतिः करी मिच्छामि दुक्कई. २. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. १अ संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि रे जीव जिन धरम कीजीय, अंतिः समयसु० फल त्यांह रे, गाथा- ६. ३. पे नाम ज्योतिष संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण, मा.गु. सं., पद्य, आदि आदित्ये उत्तरे काल, अंति: तुम्ह सुख बंछित वरी, गाथा २. ८७२४२. पंचपद वंदना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. खारीया, प्रले. मु. माणकचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: पचपद बनण. गुरु परसादे लीखी. दे. (२३.५x११.५, १७४३३). " "" २०५ पंचपरमेष्ठि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: पेल पद जगन वीस; अंति: वनण मालम उइजो सामी. ८७२४३. (+) भृगुपुरोहित चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५X११.५, १४X३२). कमलावतीरानी इक्षुकारराजा भृगुपुरोहित सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (१) महिला में बैठी राणी, (२) देख तमासो इखुकार नगर, अति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा २७ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only " Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७२४४. जंबुपन्नती छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सेवाडी, दे., (२४.५४११.५, ३१४२२). जंबूद्वीपपन्नत्ती छंद, म. साकलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: एक लक्ष जोयण; अंति: भेद साकलचंद कहंदा हे. ८७२४५. माणिभद्रजी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:मणिभद्रजी छंद., जैदे., (२४४११.५, १५४३३). माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामीण पाय; अंति: शांति० मुझ सरव संपदा, गाथा-४४. ८७२४६. शनिश्चर चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४.५४११.५, १४४३५-४२). शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति सामणि दो मति; अंति: ललितसागर इम कहे, गाथा-३१. ८७२४७. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५४११.५, १३४३५). १.पे. नाम. चतुर्विंशतितीर्थंकर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. महिमामेरू, पुहिं., पद्य, आदि: ऋषभादिक तीर्थंकर राय; अंति: प्रभु सेवो सुखकार, गाथा-७. २. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. __ पुहिं., पद्य, आदि: नाभिजी को नंद; अंति: ताकै आखै अवदात रे, गाथा-५. ३. पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भाव धर धन्य दिन आज; अंति: जिनचंद सुरतरु कहायो, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. साधुकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: देखो माई आज ऋषभ घरि; अंति: साधुकीरति गुण गावै, गाथा-४. ५. पे. नाम, महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भुवनकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: मो मन वीर सुहावै; अंति: भुवनकीरत गुण गावे, गाथा-३. ८७२४८. सुभद्रासती पंचढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:सुभद्रा पंच ढाल., जैदे., (२४४११, १७४४५-४९). सभद्रासती पंचढालीयो, म. विनयचंद, मा.ग., पद्य, वि. १८७०, आदि: सिवदायक लायक सदा; अंति: (-), ढाल-५, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम ढाल की गाथा-२१ तक लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने अंतिम ढाल की गाथा-२१ तक लिखकर इति लिखा है.) ८७२४९. नेमराजिमती बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४११, १८४३६). नेमराजिमती बारमासा, मु. हर्षकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: हो स्वामी क्युं आया; अंति: गाइया गावता सुख पावै, गाथा-२६. ८७२५० (+) औपदेशिक सज्झाय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३८-४२). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८१६, चैत्र कृष्ण, ७, ले.स्थल. अवरंगाबादनगर, प्रले. पं. देवसुंदर (गुरु पं. मानसुंदर गणि); गुपि.पं. मानसुंदर गणि; पठ. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पति जोज्यो आपणी; अंति: इम कहइ श्रीसार ए, गाथा-७२. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण... मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: ल्याव रे मनां चीत; अंति: आनंदघन दवाय एसे जी, गाथा-३. ८७२५१. विषापहार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:वीषेपाटलीखते., अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४११.५, १७४३६-४०). विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं., पद्य, वि. १७१५, आदि: विसवनाथ विमल गुण इस; अंति: अचलकीरती० जीनसर नाम, गाथा-४१. ८७२५२. (#) २० स्थानकतप स्तुति व १४५२ गणेश चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३३-३७). १.पे. नाम. २० स्थानकतप स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुछे गौतम वीर जिणंदा; अंति: आधार वीरविजय जयकार, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org ८७२५३. आठमनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. वे. (२५x१२, १२४३२-३४). "" २. पे. नाम. १४५२ गणेश चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. १४५२ गणधर चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि गणधर चउरासी का अंतिः शुभ० जब लग घट मे सास, गाथा- ६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि पंच तिरथ प्रणमुं सदा अति लावण्य० कल्याण रे, ढाल - ४, गाथा - २४. ८७२५४. (*) सरस्वती स्तोत्र व पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित.. जैवे. (२४.५x११.५, १०x२५-३७). १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र. पू. १अ संपूर्ण. मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदिः सर्वारिष्टप्रणाशाय अंतिः कुर्वतु वो मंगलं, श्लोक ८, (वि. गौतम स्तुति, सरस्वतीद्वादशनाम स्तोत्र, या कुंदेंदु आदि सरस्वती स्तुति व १६सती श्लोक संग्रह. सबका श्लोक क्रम एक ही देकर अंत में सरस्वती स्तोत्रम् नाम दे दिया गया है.) २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि बलि बलि हुं घ्यावं; अंति कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. ८७२५५. (#) पार्श्वजिन स्तवन व सामायक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५. ५X११, १०-१२X३२-३८). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन- पुरुषादानीय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. सुखदेव, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि वामानंदन साहिबा हां, अंतिः सुखदेव० किसनदुरंग मे, गाथा- १०. २. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणो भावसु दोय; अंतिः धर्मसिंह० लाल रे, गाथा-४. ८७२५६ (-) औपदेशिक पद, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ४, प्रले. मु. माणेकचंद, प्र. वि. हुंडी तवन, अशुद्ध पाठ. दे. (२०.५X१२, १७३१). " १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. खूबचंद ऋषि, पुहिं, पद्य, आदि हाकवो मन बजाजी सतगुर अति खुबचांद० मिले आधाग रे, गाथा-५. " २. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पु.ि, पद्य, आदि नय की निज बुटी निज, अंतिः जिनदास ० गई वरमणा मेटी, गाथा ४. ३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय गूढ, पू. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-हरियाली, पुहि., पद्य, आदि सेठाणी नही खुले माल अंतिः राम चंदन अगर काट, गाथा- ६. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २०७ मा.गु., पद्य, आदि: वामानंद राख हमारी, अंति: अब तुम शरण लीघ, गाधा ८. ८७२५७. आनंदादिक दस श्रावकनी ढालो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी : आनंद०, प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. दे. (२१.५४११.५, १३४३२-३८). आनंदश्रावक ढाल, मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८२९, आदि अनरी जात अनेक छै; अंति रायचंदजी इम भास हो, ढाल ४, गाथा- ६४. ८७२५८. अनाथीमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. माणकचंद वीरजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : अनातीमु. दे. (२१.५x११.५, १८४३२). ८७२५९. नमस्कार महामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४.५X११, १०X३२-३४). अनाथीमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९५९, आदि: तु नइ जाण रे नाथ; अंति: चोतमल० धरमरी पाल रे, गाथा- २३. For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरूं; अंतिः प्रभु सरवर सीस रसाल, गाथा-१४. ८७२६० (-) साधारणजिन स्तवन, शांतिजिन गीत व अभिनंदनजिन पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११, ३७४२०-२५). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. __ पंन्या. ऋद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर हो मुझ नमडइ तु; अंति: रिधिकुशल० चरणे लयलीन, गाथा-८. २. पे. नाम. अभिनंदनजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. क. देपाल, मा.गु., पद्य, आदि: अमे उवाया वाया ते; अंति: कह्यां कवि देपालइरे, गाथा-४. ३.पे. नाम. शांतिजिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदाई रे सुखदाई रे; अंति: सुंदर अंतर ज्यामी रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. प्रेम गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मृघानयणी मनुहरणी; अंति: बंदु छोडित बेदीनु, गाथा-६. ८७२६१. शीलविषे पुरुषने सिखामणरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५९, आश्विन कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. मनरूपविजय गणि; पठ. मु. दानमल; अन्य. पं. रूपविजय, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२१४११, १२४२८-३२). औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंता रे सिख; अंति: कुमुदचंद सम उजलो, गाथा-१०. ८७२६२. (2) आदिजिन गीत व तिथिनक्षत्रवेध विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, १५४२२-२८). १.पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दर्गदास, मा.गु., पद्य, आदि: वडा अनडां पाहडां; अंति: दुर्गदास० अहोनिस जीह, गाथा-३. २. पे. नाम. तिथि-नक्षत्र वेध विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नंदा च रोहिणी वेध; अंति: टालएत् पंडितो जन. ८७२६३. (#) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, अपूर्ण, वि. १८१४, आश्विन अधिकमास शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २७-२६(१ से २६)=१, ले.स्थल. बुरहानपुर, प्रले. मु. हर्षचंद्र (पूनमीयागच्छ); पठ. श्रावि. बालबाई; लिख. श्रावि. खीमीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११.५, १५४४४-४६). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदिः (-); अंति: समयसुंदर०सुजस जगीस ए, (पू.वि. खंड-२ ढाल-२२ की गाथा-८ अपूर्ण से है.) ८७२६४. शीतलजिन स्तवन व गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२४४११, २६४२५). १. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इणि जिनवरनी जी सेव; अंति: विजय० सुख संपति धामी, गाथा-५. २. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. विजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सूरीसू गुणेकरी; अंति: विजै० जेम गिरेश, गाथा-७. ८७२६५. अजितजिन स्तवन, शृंगार श्लोक व भांग गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११, १०४२६-३०). १. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलग अजित जिणंदनी; अंति: रूपनो प्रभु अंतरयामी, गाथा-५. २. पे. नाम. शृंगार श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: हे कांते कुचभार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २०९ ३.पे. नाम. भांग गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: आणी लटाली पटाली; अंति: झरोखे आई सवाई सकति, पद-१. ८७२६६. सिंहवानर कथा व प्रहेलिका दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १८४३४). १. पे. नाम, सिंहवानर कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक कथा-सिंहवानर, मा.गु., पद्य, आदि: एक सम सींगकु भारी; अंति: खर नागणा वला खराब, गाथा-१८. २.पे. नाम. प्रहेलिका दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कोकण बदन नरीन चरण; अंति: गुरांजी वणिया नही, दोहा-१०. ८७२६७. (+) छुटक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, १९४४२). बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: ते वाथी पुस्तक लीखो; अंति: पिंडविसुद्धि साखे. ८७२६८. बोल संग्रह व भावपूजा स्वरूप, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी: तेइसमो., दे., (२३.५४११.५, १५४३८). १.पे. नाम, सिद्धगति प्राप्ति के बोल विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शीघ्र सिद्धगति प्राप्ति बोल विचार, रा., गद्य, आदि: आकरो आकरो तप करे तो; अंति: जीव वेगो मोख मे जाय. २. पे. नाम, सूत्रकृतांगसूत्र बोल संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: २३ सुगडांगजी के; अंति: ४२ हजार वर्ष उणा. ३. पे. नाम. भावपूजा स्वरूप, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ० करुणाभाव२ जिनगुण; अंति: २३ ति सुभ मनने टीको. ८७२६९. सिच्चयायदेवि छंद व उपकेशगच्छ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. सिंभकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, १०x४०-४८). १. पे. नाम. सिच्चायायदेवी छंद, पृ. १आ, संपूर्ण.. सच्चियायदेवि छंद, हेम, मा.गु., पद्य, आदि: सानिधि साचल मात तणी; अंति: हेम कहे सिचियाय तणा, गाथा-५. २.पे. नाम, उपकेशगच्छ सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अइसा रे ओयसपुर नव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ तक लिखा है.) ८७२७०. उपदेशी कडा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:उपदेशी०., दे., (२५४११.५, १३४४०-४६). औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: जिनवर दियो ऐसो उपदेश; अंति: ऋषि रायचंद० परम आनंद, गाथा-२४. ८७२७१. महावीरजीरो चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:चोढाली०., दे., (२४४११.५, १८४४०-४४). महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिधारथकुल मे जी उपना; अंति: रायचद०० रे दीन ए, ढाल-४, गाथा-५४. ८७२७२ (+#) गजसुकमालजीरी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११.५, १२४२८-३२). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजिनराजतणी; अंति: सहीने पोहता शिवपुरी, गाथा-४२. ८७२७३. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३४११.५, १२४२२-२६). पार्श्वजिन स्तवन, पं. उत्तमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे आज श्रीजिनराज; अंति: उत्तमचंद०भवना फंदाजी, गाथा-६. ८७२७४. पार्श्वनाथ १०८ नाम स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १४४३२-३६). पार्श्वजिन स्तवन, मु. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमातने समरीइ रे; अंति: लाल शुभने सुख भरपुर, गाथा-१९. ८७२७५ (+) चंदकेवली रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, ११४२६-३२). चंद्रराजा रास, म. मोहनविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धरा धवति प्रथम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ की गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७२७६. नववाडिसीयलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२८x११.५, ११४३८-४२). For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदिः श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: उदयरतन० तेहने भांमने, ढाल-१०, गाथा-५१. ८७२७७. नवकार छंद व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२८x११, ११४३८-४२). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र रास, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिने द्यो; अंति: रास भणु श्रीनवकारनो, गाथा-२५. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-नवखंडा, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. म. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९४५, आदि: घन घटा भुवन रंग छाया; अंति: विर० खंडा पासजी पाया, गाथा-६. ८७२७८. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५४११.५, १४४१८). औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: प्रीति सोपाधिक विष; अंति: एक सुख एक सुखत्रास, गाथा-८. ८७२७९. ज्वर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२८x११.५, १२४३६-४२). ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आणंदपुर अजयपाल; अंति: कांति मंत्र जपीइ सदा, गाथा-१६. ८७२८० (+) अष्टमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४११.५, १२४३८-४२). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतीर्थ प्रणमि सदा; अंति: लावण्य० कल्याण रे, ढाल-४, गाथा-२४. ८७२८१. दशमीकालिक सज्झाय-अध्ययन-१, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२९x११, ६४१८-२०). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमानिलो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८७२८२. (#) एवंतिसुकुमालनी ढालु, संपूर्ण, वि. १८९०, फाल्गुन, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १८४४२-४६). अवंतिसकमाल रास, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: पास जिनेसर सेवीये; अंति: जिनहर्ष० सख पावे रे. ढाल-१३, गाथा-१४२. ८७२८४. अठाईदिनि भास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३०-३२). अट्ठाईपर्व भास, मु.ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसति ध्याउं मन; अंति: ज्ञानविमल० हो राज, गाथा-१२. ८७२८५. नियंठाद्वार गाथा, मेघकुमार चौढालियो व प्रास्ताविक दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२८x११.५, १२-१६४३२-४५). १. पे. नाम. नियंठाद्वार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२५ उद्देश-६गत नियंट्ठा-संजया आलापकगाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पण्णवण वेयरागे कप्प; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. मेघकुमार चौढालियो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ मेघकुमार चौढालिया, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गुणधर गुणनलउ; अंति: जादव० भणता सुख थाय, ढाल-४, गाथा-२२. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-२, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र दो दोहा ही लिखा है.) ८७२८६. (+) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९४५, कार्तिक शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ८-४(१ से ३,५)=४, प्रले. भाईचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४११.५, १०४३२-३६). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: नयसुंदर जय करं, ढाल-१२, गाथा-१२०, ग्रं. १७०, (पू.वि. ढाल-६ की गाथा-८ अपूर्ण से गाथा-२३ अपूर्ण तक व ढाल-८ से है.) ८७२८७. (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, १३४३६-४०). For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २११ नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (पू.वि. तिजयपहुत्त गाथा-४ तक है.) ८७२८८.(#) कल्लाणकंद स्तुति व पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, कल पे. २.प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११.५, ११४२८-३८). १. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पडमं; अंति: सुहाअसी अंम सआ पसथा, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण दिन सुद पंचमी; अंति: रीषबदास० कर अवतार तो, गाथा-४. ८७२८९. राजिमतीसती विलाप व औपदेशिक लावणी, अपर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२७४१२, ९४२२-२८). १.पे. नाम. राजिमतीसती विलाप लावणी, प. २अ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र हैं. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: जीनदास०बेठ विनती गाइ, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: आयो अब समकित के घर; अंति: सरण जैनदास आय धसीया, गाथा-४. ८७२९० (#) १० श्रावक सज्झाय, औपदेशिक सवैया व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, २१४५२-५८). १.पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास चिंतामणि जेम; अंति: सेवक सदा परवइ मनरली, गाथा-८. २. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण... ___ मु. धनजी शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: पद्मप्रभू प्रणमुंहर; अंति: धनजी सिष० कह्यो आजे, गाथा-९. ३. पे. नाम. १० श्रावक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठि प्रणमु दस; अंति: कहइ मुनि श्रीसार रे, गाथा-१५. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंदर बंदीय; अंति: ज्ञानचंद० समझाय हो, गाथा-१४. ५. पे. नाम, औपदेशिक सवैया-गाथा-११, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, श्राव. विनोदलाल, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: विनोदीलाल० नवकारको, प्रतिपूर्ण. ८७२९१. (+) सिद्धाचल स्तवन व असज्झाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x११.५, ११४३४-३८). १.पे. नाम. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामिनी; अंति: सेवक जिन धरो ध्यान, गाथा-१६. २.पे. नाम. असज्झाय सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी समरी मात; अंति: शिवलच्छी तस वरे, गाथा-१६. ८७२९२. अइमुत्तामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४११.५, १०४४४-४८). __ अइमत्तामनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: लक्ष्मीरत्न० पाया, गाथा-१८. ८७२९३. श्रेयांसजिन स्तवन व प्रास्ताविक दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११, ११४२८-३२). १.पे. नाम, श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: श्री श्रेयांस जिन; अंति: आनंदघन मतिवासी रे, गाथा-६. २.पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, प. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: मन मजुस गुणरतन चुपकर; अंति: वचन कुंची रसाल, गाथा-१. ८७२९४. २४ जिन गीत, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२८x११.५,१०x४४). २४ जिन गीत, मु. अमररत्नसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देवी मनि समरइ; अंति: (-), (पू.वि. पद्मप्रभजिन गीत अपूर्ण तक है.) ८७२९५ (+) फतेचंदमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. जीतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११, १६४५८). फतेचंदमुनि सज्झाय, मु. श्रीचंद्र ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: चरम जिणेसर वीनवं; अंति: (१)परभव में सुख होय, (२)मान लीज्यो मुनिराज, गाथा-२७. ८७२९६. (-) नेमिजिन फाग व नेमिराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. माना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:फाग., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७.५४११.५, १८४५०). १. पे. नाम. नेमिजिन फाग, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: भोगी रै मन भावीयो रे; अंति: राजहरख० फाग रसालो रे, गाथा-२९. २. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: समतविजेसरत नेम बिराज; अंति: राजल प्राणद पायो रे, गाथा-७. ८७२९७. (+#) उदायीऋषि सज्झाय व अर्जुनमाली चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. रुपनगढ, प्रले. माना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उरजन०., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२८x११, २३-२६x४०-५२). १. पे. नाम. उदायीऋषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ उदाईऋषि सज्झाय, रा., पद्य, आदि: घणा लोग आव जाव बाणी; अंति: लटण पटण सब कीनी रे, गाथा-२५. २. पे. नाम. अर्जुनमालीमुनि चौढालिया, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.. रा., पद्य, आदि: सोदागर मिलीयो नही नह; अंति: गया वरत्या जयकार हो, ढाल-६. ८७२९८. अढार नाताको चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १८२५, फाल्गुन शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पुखरज, प्रले. गुली, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अढार०., जैदे., (२८x११, १७-१९४४४-५०). १८ नातरा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मनुषा भव पायो जी; अंति: लोहट कीयो वखाण, ढाल-४, गाथा-७९. ८७२९९ सज्झाय संग्रह व स्थूलिभद्रमनि कोशा बारमासो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.२, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी: जंबुस्वामिनी. हुंडी: जंबूकुमारनी. हुंडी: देवाणंदामाता. हुंडी: थूलभद्रनी., दे., (२७४११,१५४३४). १. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी वसै; अंति: सिधविजय० गुण गाया रे, गाथा-१४. २. पे. नाम. देवानंदामाता सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. उपा. सकलचंद्र गणि, पहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: सकलचंद०उलट मनमा आणी, गाथा-१२. ३. पे. नाम. स्थूलभद्र १५ तिथि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वेस्याइं वधाव्या; अंति: शुभवीर वचन सुमलावो, गाथा-२०. ४. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि कोशा बारमासो, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्थूलिभद्र कोशा बारमासो, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कोश्या कहे सुणज्यो; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ८७३००. शत्रंजयतीर्थ व शांतिजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२७४११.५, ११४३२-३६). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल वंदो रे; अंति: ज्ञानउद्योत० एक तारी, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मूरत मोहन वेलडी जी त; अंति: चिदानंद रंगरेलडी जी, गाथा-३. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी सिद्धाचल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ८७३०१ (+) तेजसिंहगुरु भास, प्रत्येकबुद्ध सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७५२, फाल्गुन कृष्ण, २, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. राणपुर, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२७४१०.५, ४४४१९). १. पे. नाम. तेजसिंहगुरु भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. काहनजी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात समे नित्य प्रण; अंति: तणा काहनजी गुण गाय, गाथा-६. २. पे. नाम. प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुं दिसथी च्यारे; अंति: समयसुदर०पाटण परसिद्ध, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: वादळ दोहो दसिउ नम्या; अंति: उदय० जगि भाण रे, गाथा-८. ८७३०२. घी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पुरबिंदर, प्रले. ग. विनोदरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११, ३५४१६-१८). औपदेशिक सज्झाय-घृत विषये, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण भाव धरी घणो; अंति: लालविजय घीनोगुणकह्यो, गाथा-१८. ८७३०३. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४११, १४४४४). औपदेशिक सज्झाय-गुरुभक्ति, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: सतगुर ग्यानी दिपता; अंति: हुं सतगुरजीरो दास रे, गाथा-१३. ८७३०४. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४११.५, १५४४८). आदिजिन स्तवन, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आद जिणंद वंदीयाइ मनध; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७३०५ (+-) युगमंधरजिन, वीस विहरमान स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:बीसब्र., संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७.५४११, २२-२३४५०). १. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: नीसदीन लुल लुल सीस; अंति: जिणंद बाणी भली पकडी, गाथा-१५. २. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जीवणजी, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीमीदर पहला नम; अंति: जीवणजी० सरज तारण उलस, गाथा-१२. ३. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कुस्यालचंद, रा., पद्य, वि. १८६४, आदि: सतगुरु आगल सुण भव; अंति: कुस्यालचंद० परगासो, गाथा-१७. ८७३०६. पद्मावती आराधना व आयुष्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२४.५४११.५, १३४४१-४५). १.पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १९६४, फाल्गुन शुक्ल, १४, ले.स्थल, विक्रमपुरनगर. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: छुटै नर ते ततकाल, ढाल-३, गाथा-६९. २.पे. नाम. आयुष्य सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: आऊ तूटै सांधौ लागै; अंति: जिनराज० तणो उछाह रे, गाथा-१२. ८७३०७. (-) बाहुबली सज्झाय व जैन सामान्यकृति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२८x१२, १७X१७). १. पे. नाम. बाहुबली सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वीरा म्हारा गज थकी; अंति: समयसुंदर वंदु पाय रे, गाथा-६. २. पे. नाम. सामान्य जैन कृति, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). ८७३०८.(#) परदेशीराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११.५, १७४३७). परदेशीराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आइ राजान इम कहे; अंति: सामदी नही प्राणी रे, गाथा-२९. ८७३०९. सूतक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२७४११, ८४३३). सूतक विचार-जन्म, मा.गु., गद्य, आदि: पुत्र जन्मे दिन दशनु; अंति: मूर्छित जीव उपजे छे. ८७३१०. २४ दंडक यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४११.५, ३७४२९). २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८७३११ (+) बलभद्रमुनि सज्झाय व प्रास्ताविक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७३५-१७३९, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११,५०x२२). १.पे. नाम. रामऋषिनिर्वाण कृष्ण स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १७३५, माघ शुक्ल, १२, सोमवार, ले.स्थल. नागबंदर. बलभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तुज आगल सी कहु; अंति: निसदिस जिनवर्धमान रे, गाथा-१९. २.पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १७३९, चैत्र कृष्ण, ८, रविवार, ले.स्थल. लक्ष्मीपुर. पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: अंधारे जिम दीपक कीजे; अंति: भली प्रेम की गालि. ८७३१२. (+) १४८ कर्मप्रकृति यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ६६४२७-३४). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८७३१३. (#) पार्श्वजिन स्तवन व अरणिकमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १८४४६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ.१अ, संपूर्ण. मु. जसवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतरी अजब सुरत; अंति: बारि हो जिनेसरजी, गाथा-५. २.पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: तिण अवसर एक कांमनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण तक है., वि. हासिये में लिखे गए पाठ के खंडित हो जाने के कारण पूर्णता संदिग्ध है.) ८७३१४. चेलणासती चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, २१४४१). चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर ते नर अटकले जे; अंति: मुनी मुक्त मजार, ढाल-४, गाथा-३३. ८७३१५ (+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४२७-३०). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय-शीलगर्भित, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेअ उठि रे पंच; अंति: हर्षकीरत० घर सांभरे, ढाल-३, गाथा-३५. ८७३१६. नेमीजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. डाईबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११, १०x२९). नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कां रथ वालो हो राज; अंति: मोहन रूप अनुपनो, गाथा-७. ८७३१७. (4) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, ११४३४). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावे धर्मसी सुजगीश ए, ढाल-४, गाथा-३४. ८७३१८. () दशविधाराधना व पर्यंताराधना विधि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-२(१,३)=४, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:आराधना., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११, १५४४६). For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org जैदे., (२५.५x११.५, १४४३३). १. पे. नाम सीधचक्र स्वाध्याय, पृ. १अ संपूर्ण. १. पे. नाम. दशविधाराधना, पृ. २अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: सरसुमणा नमुक्कारं, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से ३२ अपूर्ण तक व जीवराशिक्षामणाद्वार से पूर्व द्वार की गाथा १२ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. पर्यंताराधना विधि, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रा.,सं., प+ग., आदि: स्तुतिदानपूर्वकं; अंति: (-), (पू.वि. वीर्याचार अपूर्ण तक है.) ८७३१९ (#) पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६X११.५, ११३४-३९). पार्श्वजिन छंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से २४ तक है.) ८७३२० (+) ९८ बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, ले. स्थल. रुपनगर, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : अठ्ठाण, संशोधित., जैदे., ( २६११, १७३२). ९८ बोल यंत्र- अल्पबहुत्व, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: जीवा विसेसाहिया, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., बोल- ६१ से है.) ८७३२१. चंदराजा रास-उल्लास २ ढाल १५ से १९, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. सरुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : चंदराजा., जैदे., ( २६.५X१०.५, १३-१५X४०-४५). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि (-) अति (-), प्रतिपूर्ण ८७३२२. (+) सिद्धचक्र सज्झाय, महावीरजिन व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., सिद्धचक्र सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमूनीचंद्रसूरीसने; अंति: ए पेख रे सुश्राविका, गाथा-८. २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, २१५ मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि विरजीणेसर वीनती हमार, अंति: धर्मवीजय नमे पाय रे, गाथा - ७. ३. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन- डोहामंडण, मा.गु., पद्य, आदि प्रभू डोहागाम बीराजे अंति (-), (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ८७३२३ मुहपत्तिपडिलेहणविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२८X११.५, ६-८X३५). पतिपडिलेहणविधि स्तवन, ग. लब्धिवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: वरधमान जिनवर तणाजी; अंति: लब्धिवल्लभ गणि कही, गाथा - १५. ८७३२५. पंचबोल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५.५४११, १४४५०). " " ८७३२४. २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०३ माघ शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पू. १ ले स्थल कीसनगढ़, प्रले. सा. रायकवरी ' (गुरु सा. पाराजी); गुपि. सा. पाराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: चोइसी. चादुजीकी नेसराय छे., दे., (२५.५X११, १५X४५). २४ जिन स्तवन- दोहला, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहला श्रीरषभनाथ अवतर; अंति: रायचंद० आवागवण निवार, गाथा - २५. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिनेसर प्रणमी; अंतिः कमल साध प्रणमइ आणंद, गाथा-२८. ८७३२६. () ७ व्यसन, धर्मोपदेश व जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. हुंडी:जंबू., अशुद्ध जैदे. (२६११, १६४३४-५० ). "" " १. पे. नाम. ७ व्यसन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि पर उपगा साधु सुगुरु अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, गाथा- २ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय-दानफल, पू. १अ संपूर्ण मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: इक घर घोडा हाथियाजी; अंति: लावण्य० पुनप्रमाण जी, गाथा- १३. ३. पे. नाम जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: जंबु, Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " म. ,सिद्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदि राजगरी नगरी वस ऋषभदत; अति: सिद्धविजय सुपसाया रे, गावा- १४. ८७३२७. जीव बोल थोकडा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५x११, १९३६). २२१ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: जीव २६ गइ ५ हंदि ३; अंति: अनंतगुणा २१ लब्धद्वार ८७३२८. राजल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : राजल., जैदे., (२६X१०.५, १६३२). मराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि नेमनाथ मनावता गयो, अंति: जुगम तत सार हिय माय, गाथा २०. ८७३२९ (+) जीवकाया सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. दे. (२७४११, १३४३८). औपदेशिक सज्झाय काया, मु. रूपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि काया कामण जिवने इम; अंति: कामण जीवजीने " " इम कह, गाथा - १४. ८७३३०. नेमराजिमती विवाहलो, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैवे. (२६.५x११, १२०४३). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजिमती विवाहलो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: जूनागढ केरी रे जोउ; अंति: लावण्य० जगत्र आणंद रे, गाथा - २९. ८७३३१. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी नारीकी, जैवे. (२६.५x११, १७४४०)औपदेशिक सज्झाय-नारी, पुहिं., पद्य, आदि: मुरख मन भावे नही; अंति: मत कोइ परणो नारी, गाथा-२५. ८७३३२. (#) फकीरचंद जीवन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६.५x११ १७४३५). " फकीरचंद जीवन चरित्र, मु. उत्तम, रा., पद्य, आदि: जंबुदीपना भरतमे किसन; अंति: आवागवण नीवार रे, गाथा-१८. ८७३३३. आचार्य ८ संपदा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, जैदे. (२५४१०.५, १२x४३). " आचार्य ८ संपदा, मा.गु., गद्य, आदि: आचार संपत् ४ भेद चरण; अंति: ८४००० उचित एवं मान. ८७३३५. (#) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६.५X११, १८x४५). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८पू, आदि ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अति आनंदघन पद पावे रे, स्तवन- २४. ८७३३६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, जैदे. (२६.५X११, १२X४०). १. पे. नाम. स्याद्वादनय स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सार गुणधार सुखकार, अतिः समकित तणी एवढाइ, गाथा- ९. २. पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिमा हो; अंति जिनप्रतिमास्यु नेह गाथा - ७. ३. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्थापन सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. जिनप्रतिमा वंदनफल स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि जिनवर जिनप्रतिमा अति मुगतिरमणि वस आणो जी, गाथा - १०. ४. पे. नाम. १०८ जिननाम स्तवन, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. १०८ जिननाम स्तवन-विशेषण, पं. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वयंभूविभुशंभु सर्व; अंति: मानविजय० अविचल संपदा, गाथा- २३. ८७३३७. स्तवनचौवीसी- स्तवन- १, २, ४, ७, ११, १५, १७ व २३, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., ( २६.५X११.५, १३×३४). स्तवनचीवीसी, मु. आनंदघन आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि रिषभ जिनेशर माहरो रे अति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. कुल ८ स्तवन लिखें हैं.) ८७३३८. (+) अढारपापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., दे., (२६x११.५, १२४३०). १८ पापस्थानक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण परसोत्म कहइ; अंति: किसल सालि घणु रे लोल, For Private and Personal Use Only गाथा-८. Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८७३३९ (+#) औपदेशिक पद संग्रह व नेमराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १९४४८). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म.द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यानी जीवदया नित; अंति: करै जतन सो ग्याता, गाथा-४. २.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: वसि संसार में मै; अंति: मेटी लह्यौ सुख सार, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: पुदगलना कि बिसवा सार; अंति: ढोर चरेंगे घासा वो, गाथा-३. ४. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. जीतसागर, पहिं., पद्य, आदि: तोरण आया हे सखी कहे; अंति: जिण घर नवनिध संपजे, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ८७३४०. गौतमस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११, ९x४२). महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदि: आधार ज हतो रे एक; अंति: वरिया सिवपद सार, गाथा-१५. ८७३४१ (+) देहस्थ अध्यात्मस्वरूप हंसलडा गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४२८). देहस्थ अध्यात्मस्वरूप हंसला गीत, म. हंसतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतदेव सुसाध गुरु; अंति: हंसतिलक० सिवपुरि ठाम, गाथा-३७. ८७३४२ (+) सुदर्शनसेठ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४११.५, १३४३६). सुदर्शनसेठ सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पंच विषयरस राती कपिल; अंति: मुझ सेवकनु सारु काज, गाथा-१८. ८७३४३. (+) ६ आवश्यकविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:स्तवन., संशोधित., दे., (२६४११, ९४३१). ६ आवश्यकविचार स्तवन, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोविसे जिन चितवी; अंति: विनयविजय०शिवसंपद लहे, ढाल-६, गाथा-४४. ८७३४४. औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४११, १२४३५-३८). औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसद्गुरु उपदेश; अंति: श्रीधर्मसी उवज्झाय, गाथा-३६. ८७३४५. गुरुगुण गहंली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १०४३३). गुरुगुण गहुंली, पं. ऋद्धिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सुण साहेली सद्गुरु; अंति: ऋधिसागर घणुचरण जीवो, गाथा-१३. ८७३४६. भावपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १७X४२). भावपचीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: भावपचीसी जोडु भारी; अंति: भाव विसबकुडी राज, गाथा-२५. ८७३४७. (+) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४३३). १. पे. नाम. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलपुर नामे नगर चंद; अंति: जैमल जीयै जोडो रे, गाथा-४८. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मुज विनती; अंति: समयसुंदर० भुवनतिलो, गाथा-१९. ८७३४८. (+) पार्श्वजिन स्तवनद्वय व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. मांडवी, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १३४४०). १.पे. नाम, पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन, मु. मुक्तिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: बंदे नित पाए लाल रे, गाथा २५ (पू.वि. गाथा २२ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन -सुथरीमंडण मृतकल्लोल, मु. मुक्तिचंद्र, मा.गु., पद्म, आदि भवीआ सुथरीगाम सोहामण; अति मुक्तिचंद्र गुण गाइ, गाथा ११. ३. पे नाम. काया जीव संवाद, पू. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि धंधो करी धन मेलीउ रे; अंति विण मोकलाव्यो जाय रे, गाथा-६. ८७३४९. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २. वे. (२६.५X११, ९x४०). "" अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतीरथ प्रणमुं सदा अति तवन रच्यु छे तारे रे, बाल-४, गाथा - २४. ८७३५०. २० विहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०८, पौष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पू. १, दे. (२६.५x११, १९६०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ! २० विहरमानजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि वंदु मनशुद्ध विहरमान; अंतिः नेह धारि ध्रमसी कहे, ढाल -३, गाथा-३६. ८७३५१. (*) बीजतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. वे. (२६.५x११.५, १४४४२). बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरस वचन रस वरसति; अंति: तस घर लील विलास ए. डाल- ३, गाथा १७. ८७३५२. चारित्रमनोरथमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पठ. श्रावि. वीरा साहा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : चारित्रमनोरथ., जैदे., (२६X११, ९X३५-४०). चारित्रमनोरथमाला, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सुह गुरुपाय प्रणमुं; अंति: मिली शिवसुखदायक होइ, गाथा - ४१, ग्रं. ८८. ८७३५३. नवकार रास, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, दे. (२६.५x११, ११४३८-४२). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामीने दो मुझ; अंति: रास भणु सरवे साधूनो, गाथा-२५. ८७३५४. (#) त्रीसचउवीसी तीर्थंकर नामानि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जै.., (२५.५X१०.५, २४४५७-६८). ३० चौवीसी जिननाम गणणुं, मा.गु. सं., गद्य, आदि: १केवलज्ञानी २ निर्वा, अंति: २४ श्रीसूर्यक. ८७३५५ (-) अनाधिमुनि चौढालियो संपूर्ण वि. १९२९ मध्यम पू. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. दे. (२५.५४११. १८३९). " अनाथीमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: बैठा छो तरवर छाय हो; अंति: लेस्या अनाथी बंदीनैज, ढाल-४. ८७३५६. १९ बोल संग्रह व २० मासा मान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५X११, १९×३६). ९. पे नाम. १९ बोल संग्रह. पू. १अ १आ, संपूर्ण १९ बोल- श्रावकाचार, मा.गु, गद्य, आदि पेले बोले भणवा गुणवा; अंति: साधननो टोटो पडे. २. पे. नाम. ताजारा का दाणाकी संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. २० मासा मान, पुहिं., गद्य, आदि: (१) ताजारा का दाणाकी, (२) ६५० दाणा का १२ ताजाण; अंति: जोडाजे मन मानजू. ८७३५७. (-) राजिमतीसतीइकवीसी व युगमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., ., (२६११, १७३५-४२). १. पे नाम. राजिमतीसतीइकवीसा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. . चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: सासणनाइक समरी मनवंछत; अंति: सुद पांचम मंगलवार, गाथा-१७. २. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि महाविदेह मे प्रभु रो; अति आवागमण अलगी कीजे, गाथा ९. ८७३५८. (*) १४ स्वप्न विचार व चातुर्मास योग्य स्थान के १३ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, " प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४११, १५४३९). " For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २१९ १.पे. नाम. १४ स्वप्न विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ स्वप्न विचार-भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, आदि: स्त्री तथा पुरुष एक; अंति: तिणिहिज भव सीझइ. २. पे. नाम. चातुर्मास योग्य स्थान के १३ बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. १३ बोल-चातुर्मास योग्य स्थानविषये, पुहि., गद्य, आदि: पहिल बोल चिखलो अलप; अंति: बोल सझाइनी जाइगा होइ. ८७३५९ उपदेससित्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:उपदेस सितरी., जैदे., (२५.५४११, १२४४५). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जो जीव आपणी मन; अंति: रत्नहर्ष० श्रीसार ए, गाथा-७१. ८७३६० पौषधविधि गीत, संपूर्ण, वि. १७८३, आश्विन कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. देवसूरी, जैदे., (२६४११, १२४४६). पौषधविधि स्तवन, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: जेसलमेर नगर भलो जिहा; अंति: समयसुंदर भणइ सीस, ढाल-५, गाथा-३७. ८७३६१. गुरुणीगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११, १३४४५). गरुणीगण सज्झाय, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: सणो आर्याजी अरदास; अंति: सहर परसिध जाण मै करि गाथा-२१. ८७३६२. नेमि गीत, संपूर्ण, वि. १८८७, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पंन्या. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ९४३०). नेमिजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.ग., पद्य, आदि: तोरण आव्या स्वामि पा; अंति: नेम अनुभव कलियोरे, गाथा-१५. ८७३६३. कठियाराकान्हड चोपड़, संपूर्ण, वि. १८४१, वैशाख, ४, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. रूपनगर, प्र.वि. हुंडी:चोप.कान्हक., जैदे., (२६४११,१३-२५४४८-५८). कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमु सदा; अंति: मानसागर० दिन वधते रंग, ढाल-९. ८७३६४. (+-) सिंहछाली कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिंहछाली., अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, २३४५०). औपदेशिक सज्झाय-सिंहछाली उदाहरणयुक्त, रा., पद्य, आदि: एकण गाव वस एक पाली; अंति: आलु छु शुद्ध होई रे, ढाल-२, गाथा-५१. ८७३६५. ऋषभदेव परिवार स्तवन व जसवंत गुरुगुण भास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४११.५, १३४३७). १. पे. नाम. ऋषभदेव परिवार स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __आदिजिन परिवार स्तवन, मु. जसवंत ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरसहेसर पाय नमी; अंति: सकल संघ जइकार, ढाल-२, गाथा-१२. २. पे. नाम. जसवंत गुरुगुण भास, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जसवंत शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिजिन वंदीइ सुमति; अंति: आणी जी रे भाव आणी, गाथा-८. ८७३६६. साधुवंदना बडी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. केकडी, प्रले. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:साद., जैदे., (२६.५४११, १४-१७४३१-३५). साधुवंदना बृहद, म. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नम् अनंत चोविसी रुषभ; अंति: जमलजीइ तारणरो डावो, गाथा-१०८. ८७३६७. (-) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. बदनी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पास. पठनार्थे विद्वान "अमेवाजी" ऐसा अशुद्ध नाम है., अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४११, १२४२४-३०). For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन, मु. विशाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोतम हो पाय प्रण; अंति: विसाल सुखीया करौ, गाथा-१४. ८७३६८. रावणमंदोदरी संवाद सज्झाय व गौतमस्वामी छंद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-१३(१ से १३)=४, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १८४४०-४५). १.पे. नाम. रावणमंदोदरी संवाद सज्झाय, पृ. १४अ-१७आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: गजपती गुणवती वचन रस; अंति: देवि प्रसादि गायु, गाथा-४९. २. पे. नाम, गौतमस्वामी छंद, पृ. १७आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीर जिणेसर केरु सीस; अंति: सवि संयोग संपद कोडि, गाथा-९. ८७३६९ (+-) नरभवरत्नचिंतामणि व चेलणासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:चेलणा., अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१०.५, १९४३६). १. पे. नाम, नरभवरत्नचिंतामणि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नरभवरत्नचिंतामणि, मु. अभयराम, मा.गु., पद्य, आदि: यो भव रतन चिंतामण; अंति: अनंत० भव तीराया र, गाथा-१३. २.पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: सुणो सुणो या स्वामी; अंति: सव सुख थाय रे, गाथा-११. ८७३७०. नवतत्त्व विचार सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, जैदे., (२६.५४११, १७४४०-५४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा-१२ से है.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पछइ मोक्ष पामइ, (पू.वि. गाथा-११ के बालावबोध अपूर्ण से है.) ८७३७१. जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. माना, प्र.ले.पु. सामान्य, ., (२६४१०.५, १८४४२). जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगरी नगरी भली; अंति: धन धन जंबुजी हद कीदी, गाथा-१८. ८७३७२. (-) सज्झाय, लावणी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४११, १८४४५-५०). १. पे. नाम. नेमिजिन लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: सजन समझावो अपनो मन क; अंति: जिणदासनित उठ दरशनकु, गाथा-४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लावणी-चिंतामणी, पंडित. हरसुख, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचिंतामण जिनवर; अंति: आवागमण निवारी, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लीज्यो लीज्यो नाव; अंति: आवागमण निवार रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद-केसरियाजी, मु. कुसाल, पुहिं., पद्य, आदि: सफल घडी जी प्रभु; अंति: जासु वीनता करी के, गाथा-४. ५. पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: गेरो रंग लागो हो; अंति: कीयो काति मास, गाथा-१६. ८७३७३. (#) अरिहंत वीनती स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १५४४६). १. पे. नाम. अरिहंत वीनती, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ साधारणजिन स्तवन-विनती, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनराजे करुनइ; अंति: मन नितु तिहां वसइ, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-श्रावकधर्म, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २२१ मा.गु., पद्य, वि. १६३०, आदि: सरसती सामणी करउ पसाय; अंति: जाणी पालउ नजि आचार, गाथा-१३. ८७३७४. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ४४३५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन जे त्रिभुवन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक टबार्थ है.) ८७३७५. गोडीनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले.पं. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१०.५,११४४२). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, ऋ. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धणी सुणि वीनतीजी; अंति: तव्यौ त्रिभुवन राव ए, गाथा-१७. ८७३७६. अट्ठोत्तरी स्नात्र विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१०, १३४४०-४५). अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रारंभ ए प्रथम भूमि; अंति: (-), (पू.वि. दिग्पाल स्थापना विधि ___ अपूर्ण तक है.) ८७३७७. कायस्थिति २१ द्वार वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, पौष शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:कायातित., जैदे., (२७४१०.५, १९-२०७४३-४५). कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: अंति: एकस्सिध विजो अभव. ८७३७८. (+) काया गीत, २४ जिन स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११, १३४३८). १. पे. नाम, काया गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत-कायाविषये, मा.गु., पद्य, आदि: नणंद रे बे हु घाठवी; अंति: वाहला टालो गर्भावास, गाथा-५. २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... ___ मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर पहेला; अंति: धनि जीवजे थाइ जिती, गाथा-७. ३.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वडपणनइ विचारी जोज्यो; अंति: बगलानी परि बठो रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सनान करो उपसम रसपूर; अंति: निश्चइ सिधरमणी वरे, गाथा-४. ८७३७९. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. चंडीसर, प्रले. मु. सारंग; लिख. मु. आसा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४४५). पार्श्वजिन स्तवन, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तेरे पाए पडु; अंति: लक्ष्मीकलोल जिनजी, गाथा-२१. ८७३८० (+) तपसी फकीरचंद सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल, रूपनगढ, प्रले. सा. गीला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:तपसी., संशोधित., दे., (२६४११, १७४३०-३५). फकीरचंद जीवन चरित्र, मु. उत्तम, रा., पद्य, आदि: जंबुदीपना भरतमे किसन; अंति: आवागवण नीवार रे, गाथा-१८. ८७३८१ (+) षटबंधव सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:षटबंधवक., संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १६४३२). देवकी ६ पुत्र सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: अब रायऋषजी हो राज; अंति: कुशलमुनि गुण गावीया, गाथा-२४. ८७३८३. (+) छ कायनी विगत, सप्तनय व षद्रव्य नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. भूधर (गुरु उपा. भीमराज); गुपि. उपा. भीमराज (गुरु उपा. गुलालचंद, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ७०, जैदे., (२६४११.५, १८४५२-५५). १.पे. नाम. छ कायनी विगत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ६ काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली परथवीकाय बीजी; अंति: साखै मीछामी दुकडं. For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२२ www.kobatirth.org २. पे. नाम. सप्तनय नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ७ नय नाम, मा.गु., गद्य, आदि: निगमनय १ संग्रह २; अंति: समभिरूढनय६ एवंभूतनय७. ३. पे. नाम पद्रव्य नाम, पू. १आ, संपूर्ण षद्रव्य नाम, सं., गद्य, आदि जीवदव्ब १ अजीवदव्व २ अंति: पुद्रलास्तिकायदव्व ६. ८७३८४. (+) श्रावक आराधना का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८६, वैशाख कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६११.५, १२४३५). श्रावक आराधना-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१) श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत, (२) अत्र श्रावका आराधना; अंति: ससबट्ठ सिधविमाण. ८७३८५. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अंत मे देसी रागपरक देसी मुखडो का संग्रह है., वे., (२५.५X११, १४४० ). महावीरजिन स्तवन, मु. मलूकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: इणे सरोवरआनी पाल उभी; अंति: गाइयो इम सुख करु, गाथा-७. ८७३८६. (+) हमची सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X११.५, १३X३९). (२५.५X११, ३६X१८). १. पे. नाम. ढाईद्वीप क्षेत्रविवरण यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., यं., आदि: (-); अंति : (-). २. पे. नाम. १४ राजलोकविवरण यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक हमची-जीवहितशिक्षा, मु. वर्धमान पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतीने पाए नमीने; अंति: ते नरभव अजूआले रे, गाथा २५. ८७३८७. ढाईद्वीप क्षेत्रविवरण व १४ राजलोकविवरण यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पत्र १x२, जै., י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ राजलोक विवरण यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ८७३८८. (*) रामसीता पद व जयंतीश्राविका सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. रड, प्र. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी, जयंती. संशोधित. दे. (२५x१०.५, १४४३६). १. पे. नाम रामसीता पद, पृ. १अ संपूर्ण. कवीर, पुहि., पद्य, आदि: अरण गरण की बादलीह; अंति कबीर० ले घर आया है, कडी ६. २. पे. नाम जयंती श्राविका सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण रा., पद्य, आदि: सदारथराजाजी का कुल; अंति: जिण जवंती जिन जायी, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only ८७३८९. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०४, आश्विन शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५X११, १३५०). शांतिजिन स्तवन, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी पूरहथणाउर अतीय; अंति: भवभवना दूख दूर हरो, गाथा - २६. ८७३९०. (#) मनभमरा सज्झाय व पंचपरमेष्टि आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंड है, दे., (२५.५x१०.५, १३x४०). १. पे. नाम. मनभमरा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मन भमरा कांइ; अंति: लेखो सायब रे हाथ, गाथा - ९. २. पे. नाम. पंचपरमेष्टि आरती, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि आरती, मा.गु., पद्य, आदि: पहेलडी आरति अरिहंत; अंति: ते मुगत सिधावे, गाथा-१२. ८७३९१. (+) २० विहरमान छंद व ११ गणधर छंद, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-१ (१) ४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६.५X११, ११X३८-४२). १. पे नाम. २० विहरमान छंद, पू. २अ-३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २० विहरमानजिन छंद, म. तेजप्रताप शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जाइ रंग रोल की जाए, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. ११ गणधर छंद, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. मु. अनंतदास, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणधार सब सुखकार; अंति: अनंतदास० बारण खोलीआ, गाथा-१२. ८७३९२. (2) देवलोक नरकादि विविधबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-५(१ से ५)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, ३३४१९-२५). बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८७३९३. २० स्थानक तप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:संख्या., जैदे., (२६.५४११, १२४५०). २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, प्रा., गद्य, आदि: (१)अरितभगति त्रिकाल, (२)नमो अरिहंताणं सहस्स; अंति: तित्थस्सग. २४लो. का. ८७३९४. (#) आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १३४३४-४०). आदिजिन स्तवन-शत्रंजयतीर्थमंडन, म. रत्नचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल तीरथधणी; अंति: जंपइ वेग सिवरमणी वरउ, गाथा-२५. ८७३९५ (+) मृगापत्र सज्झायादि, नेमसागरगरु गहंली व पंचमहाव्रत २५ भावना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, ११४३५). १. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रवनयरी सोहमणीजी; अंति: होजो तास परीणाम रे, गाथा-२४. २.पे. नाम. साध मनोरथ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: पेहले मनोरथ समणो नीग; अंति: मुजने होजो स्वामी. ३. पे. नाम. नेमसागरगुरु गहुंली, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, वि. १९१४, आषाढ़ कृष्ण, १४. ___ मा.गु., पद्य, आदि: गुरुजी आवा गोरी सोरठ; अंति: सिववधुना सुख पावो रे, गाथा-९. ४. पे. नाम. साधु पंचमहाव्रतनी २५ भावना, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. २५ भावना विवरण-५ महाव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: इर्यासुमती १ आलोकी; अंति: माहाव्रतनी जाणवी. ८७३९६. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सजाय., दे., (२६४११.५, ८४३६). पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: नमो देवनागेंद्रमंदार; अंति: चिंतामणि पार्श्वनाथ, श्लोक-७. ८७३९७. (+) मल्लिजिन स्तवन व तपफल विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १७४३६). १. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... मु. चंद्रभाणऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८५३, आदि: जीवडा जप लीज्यो रे; अंति: चंद्रभाण० तनमनम जी, गाथा-१६. २. पे. नाम. तपफल विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नोकारसीम सो बरसा; अंति: दसलाख कोडहजार बरस. ८७३९८. (#) नेमराजिमती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, प्रले. पं. विजयसौभाग्य गणि (गुरु ग. हंसभाव); गुपि. ग. हंसभाव, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११,११-१२४२५-३०). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सुप्रसन नेमि जिणंद, गाथा-६४, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से है.) ८७३९९ शांतिजिन, पद्मप्रभजिन व सुविधिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४११.५, १२४३१-३५). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२४ www.kobatirth.org मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुं पारंगत तुं परमेश; अंति: पीवे तेही ज पावे रे, गाथा-५. २. पे. नाम पद्मप्रभजिन स्तवन, पु. १अ संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु, पद्य, आदि पद्मचरण जिनराय बाल, अंति: खिमाविजय जिनराजविजी, गाथा- ६. ३. पे नाम. सुविधिजिन स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि सुविधिजिन बलीवली, अंतिः जिन० जगजण लहत कल्याण, गाथा ५. ८७४०० (-) मृत्युलक्षण सज्झाय, समुद्धात व गर्भस्थजीव विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक नही है. अशुद्ध पाठ, दे. (२६×११.५, ८x२७) , २. पे. नाम. ७ समुद्धात विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सरीर मै समतघात किता; अंति: लखण ईम पिछांणीजै. ३. पे नाम. गर्भस्थजीव भावना व गती विचार, पू. ३अ, संपूर्ण. १. पे. नाम. मारती समगतघातना लखण, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मृत्यु बाद की गति जानने के लक्षण, मा.गु., पद्म, आदि: मुझने देवता देवांगना अतिः काड काड खावे छे. गाथा-७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गर्भस्थजीव भावना व गति विचार, मा.गु., गद्य, आदि ओ जीव मरने समद्रष्टी अंति: माइ तौरो भैर लेऊ. ८७४०१. (+) पंचमआरा सज्झाव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, वे. (२६.५x११, १२४३६)पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: भाषा वयण रसाल, गाथा-२१. ८७४०२. (*) गर्भपरावर्तन विचार, सूरिमंत्र व विविधविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१ (१) १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है, संशोधित, जैदे. (२६११, १६५६२). . १. पे. नाम. गर्भपरावर्तन विचार- वैदिक शास्त्र साक्ष्य व मांधाता कथा युक्त, पृ. २अ - २आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. गर्भपरावर्तन विचार-वैदिक शास्त्र साक्षी व मांधाता कथा युक्त, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सम न अवगुण चर्चवा, (पू.वि. गर्भहरण समय प्रभु की ज्ञान स्थिति कथन अपूर्ण से है.) २. पे नाम सूरिमंत्र, पु. २आ, संपूर्ण (२६X११, ५३X२४-२९). १. पे. नाम चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सूरिमंत्र साधन विधि, प्रा. सं., गद्य, आदि ऐं नमः ॐ ह्रीं नमो अंतिः (१) आयरियमेरु स्वाहा, (२) प्रवं शुभं भूयात्. ३. पे. नाम. विविधविचार संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. विविध विचार संग्रह, गु., प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: कर्मविना नरक पडे, अंति: उंडो द्वेष नही. ८७४०३. (+) १४ पूर्व दूहा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X११, ११X३०). १४ पूर्व दूहा, मा.गु., पद्य, आदि उतपात प्रवाद पूरव अति ते नर पामे सुख, गाथा- १४. ८७४०४. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ५, प्रले. मु. वेलजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रवदन चंद्रसारिखी; अंति: प्रेम० गंगानीर रे, गाथा - ५. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. १अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: चंदनमलियागरि तणुं; अंति: लावण्य० लही मोटमसाणी, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय - निंदात्याग, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: निंदा म करसो कोए; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५. ४. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन. पू. १अ १आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ तुझ; अंतिः ृपाकरी सेवक मनि थापो, गाथा-८. ५. पे. नाम. विजयसेठविजघासेठाणी सज्झाय, पृ. १९आ, संपूर्ण मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि भरतक्षेत्रइ रे समुद्; अति महीअलि महिमा विस्तरइ, ढाल ४, गाथा-२८. Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ . ८७४०५. अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम पू. १, प्रले. मु. सौभाग्यविमल पठ. सा. वीजलश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है. वे. (२६४११. ९४२२) अजितजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि प्रीतलडी बंधाणी रे अति मोहन कहे मनरंग जो, गाथा ५. ८७४०६, (A) जैनयंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैये. (२६.५४११, " १२x६०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैनयंत्र संग्रह *, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अहोरात्र १७ मंडल १८ से है.) ८७४०७. पार्श्वनाथ सलोको, संपूर्ण, वि. १८९३, माघ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. कुंचामण, प्रले. मु. ज्ञानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४१२, ५८४२१-२८). " पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा. पद्य वि. १८५१, आदि प्रणमुं परमातम अविचल, अंति: जोरावर ० अंतरजामी, गाथा ५६. ८७४१०. (+) दृढप्रहारी मुनि सज्झाच, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पू. १, प्रले. पं. कस्तूरविमल गणि (गुरु पं. प्रेमविमल गणि); पठ. मु. दयाविमल (गुरु पं. कस्तूरविमल गणि); गुपि. पं. प्रेमविमल गणि (गुरु पं. कीर्त्तिविमल गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६५०). दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: पय पणमीअ सरसति सरसति; अंति: लावण्यसम० सिद्धिगामी गाथा २४. ८७४११. जंबूकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैवे. (२५.५४११. १५X३९). ८७४१३. आध्यात्मिक हरियाली सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैवे (२६५११.५, ८४३२). जंबूस्वामी सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणीक नरवर राजीयों; अंति: भणे अमे उतारो भवपार, गाथा-२०. ८७४१२. कृपणपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, वे. (२६४११.५, १५X३४-३६) कृपणपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: निठ निठ तै नरभव पायो; अंति: सहुनै सीखडली दीनी रे. २२५ आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसइगी कांबले भीजइगा; अंति: मूरख कवि देपाल वखाणइ, गाथा-६, संपूर्ण. आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कांबली कहतां इंद्री, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ४ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) ८७४१४. (*) भगवतीसूत्र शतक ३० समोसरण विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, प्र. वि. पत्र का पहले मोइवाला भाग नहीं है., संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ६०x२८). For Private and Personal Use Only भगवतीसूत्र-हिस्सा समवसरण शतक-समवसरण विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: थका भव भव बेकही (पू.वि. विनयवादी थको ४ गतिरो आऊषो बांधइ' पाठ से है.) ', ८७४१५. (A) आगमिक विविध विचार प्रश्न संग्रह, अपूर्ण, वि. १९२४ वैशाख कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ७-३ (१ से ३)=४, ले. स्थल गोपालगढ़, राज्यकालरा, जसवंतसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२५.५४११.५, ३२-४५X१५-३०). बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अति (-). (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.. सूर्यमंडल विचार से है., वि. सचित अचित्त पानी विचार, तेरापंथी २० प्रश्नादि विविध विचार संग्रह . ) ८७४१६. (+) स्तवन व गूढार्थ दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित., जैवे. (२५x१०, २०x४०) ९. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण. मु. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इण डुंगरीये मन मोहीउ; अंति: सफलीसी यात्र हो, गाथा- १२. २. पे. नाम सिद्धाचलतीर्थ स्तवन, पू. १अ संपूर्ण Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२६ www.kobatirth.org יי कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल तीरथ अंतिः सफली घडी हे हां, गाथा-७. ३. पे. नाम. गूढार्थ दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि गिरधीकतजतास तिलक; अति: कहज्यो एहनी जात, गाथा- ९. ४. पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-पुरुषादानीय, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन गमतो साहिब मिल्यौ; अंति: चढे नही दुजो चीतन रे, गाथा ५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिम तिम हुं आवी; अंति: करि चलतो वीवहार, गाथा-५. ८७४१७ (+) चौदह स्वप्न सवैया, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १० ९(१ से ९)-१ प्रले. मु. ठाकुर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, १९५२). महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि श्रीसिद्धारध कुलतिलो; अंतिः दायक ए सुपनातर गाता, गाथा-१५, संपूर्ण. ८७४१८. ऋषभजिनसुत नामानि व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है.., जैवे. (२५.५x१०.५, १०x१९-२० ). " १. पे नाम ऋषभजिन सुत नामानि पू. १अ १आ, संपूर्ण " आदिजिनपुत्र नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभरत १ बाहुबली २ अति वंसनाथ ९९ अंगदेव १००. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: कसरि आपण चार्य आपणा; अंति: जंजाणि सूत करि जासू, गाथा-२. ८७४१९ नेमराजिमती रास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २, जैदे. (२५४१०, १५४४७). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पय पणमी करी; अंति: पुण्यरत्न० नेमि जिणंद, गाथा-६४. ८७४२०, ४ मंगल पद, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२५.५x११, १०x४४). ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि सिद्धारथ भूपति सोहे; अति उदवरत्न भाखे एम, ढाल ४, गाथा - २०. ८७४२१. शांतिजिन स्तवन व प्रथम पापस्थान सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, प्रले. मु. मोहन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १२X५५). १. पे नाम. शांतजिन स्तवन, पृ. ९अ. संपूर्ण, शांतिजिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ दयानिधि; अंति: मंगलमाल रसीया जी, गाथा-५. २. पे. नाम. प्रथम पापस्थान सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि पापस्थानिक पहिलं अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८७४२२. (#) ३४ अतिशय स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६X१२, १४X३८). ३४ अतिशय स्तवन, आ. महिमाप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर सेवीइं; अंति: महिमा० जिन पाया रे, गाथा - १५, (वि. सारणी युक्त.) ८७४२३. (*) आलोचना विधि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५x१०.५, १५४५१). आलोचणा विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: पूर्व इर्यापथिकी; अंति: आगइ बइसीनै लीज .. ८७४२४. औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १८७१, चैत्र कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. अजीमगंज, जैवे. (२५.५x११.५, १७४४४). "" औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसदगुरु उपदेश अति: श्रीधर्मसी उवज्झाय, गाथा - ३६. For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २२७ ८७४२५ (+) मेघरथराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:नागरत., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १८४३८-४०). मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडा विनती, मा.गु., पद्य, आदि: दया बरोबर धर्म नहीं; अंति: संत सुखी अणगारो जी, गाथा-३१. ८७४२६. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, वैशाख कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. चीताखेडा, जैदे., (२५४११.५, २२४४७). गौतमस्वामी रास, श्राव. शांतिदास, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सरस वचन दायक सरसती; अंति: गौतमरिषी आपो सुखवास, गाथा-६६. ८७४२७. सुभद्रासती चौढालियो व चित्रसंभूति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३१, वैशाख अधिकमास शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सुभद्रा चौढाली., जैदे., (२६४११.५, १५४५२). १.पे. नाम. सुभद्रासती चौढालियो, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सरसति सामण वीनवू; अंति: मान० फलिया मनोरथ माल, ढाल-४. २. पे. नाम, चित्रसंभूति सज्झाय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. मु. त्रिकम, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: प्रणमुं सरसति सामणी; अंति: विक्रम०वीनती अवधार ए, ढाल-४. ८७४२८. चेलणासती चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४१२, १६४३४-३८). चेलणासती चौढालियो, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर जे नर अटकलो; अंति: रायचंद० वचन प्रमाण, ढाल-४, गाथा-३७. ८७४२९ नरकभूमिविवरण बोलयंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, ४०x१४). नरकभूमिविवरण बोलयंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८७४३० (+) नेमिजिन गीत, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४४७). नेमिजिन गीत, मा.गु., पद्य, आदि: जीवन आवो रंगइ रमिइ; अंति: सेवक कुं सुखकारी रे, गाथा-९, संपूर्ण. ८७४३१. नमस्कार महामंत्र महिमा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४५४). नमस्कार महामंत्र-महिमावर्णन, पुहि., गद्य, आदि: नोकार चौदा पुरव का; अंति: चोरनो दृष्टांत कहवो. ८७४३२. ३४ अतिशय स्तवन व पद्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२६४११.५, ३७४२१-२५). १. पे. नाम. चउत्रीस अतिसय स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ३४ अतिशय स्तवन, मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन प्रणमुं सुख; अंति: नितलाभ नमे जिन पाय, गाथा-१३. २. पे. नाम. एकेंद्री विषयसंज्ञा निरूपण पद, पृ. १अ, संपूर्ण. एकेंद्रिय विषयसंज्ञा निरूपण पद, मु. उदयराज, पुहिं., पद्य, आदि: नवपल्लव अशोक हुंति; अंति: पुरुष भूलि निरखि, पद-१. ३. पे. नाम, परनारी परिहार गाथा, प. १अ, संपूर्ण. परनारी परिहार पद, पुहिं., पद्य, आदि: देखे पराई नारि के; अंति: वीजक शीस धड खोईये, पद-१. ४. पे. नाम, औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मन वाहन भूख न मिले; अंति: ताको बडो अभाग, गाथा-१. ५. पे. नाम. १४ गुणठाणानी मार्गणा, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक मार्गणा, मा.ग., को., आदिः (-); अंति: (-). ८७४३३. (+) महावीरजिन १० स्वप्न स्तवन, मदनरेखासती चौपाई व देवविमान २५३ मन मोतीमान विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १५४३८). १. पे. नाम. महावीरजिन १० स्वप्न स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: सासणनायक समरीयै रे; अंति: सुत्त भगोतीरी साख, गाथा-१३. २.पे. नाम. मदनरेखासती चौपाई-ढाल ४, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मदनरेखासती चौपई, म. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३.पे. नाम. देवविमान २५३ मण मोतीमान विचार, पृ.१आ, संपूर्ण. २५३ मण मोतीमान बोल-सर्वार्थसिद्ध विमान, मा.गु., गद्य, आदि: एक मोती ६४ मननु; अंति: मण- एवं दोइस तीरपन. ८७४३४. (+) चंदनबालासती चौपाई, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १७४३७). चंदनबालासती चौपाई, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणवर० देपाल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण तक है.) ८७४३५. १० श्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १२४३४-३६). १० श्रावक सज्झाय, आ. नन्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: जिन चउवीसइ करी; अंति: कोरंटग० भणै नंदरि, गाथा-३३. ८७४३६. (#) स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. १०, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०, २०४५१). १. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लूंबी झंबी रह्यो; अंति: कहे दानविजय उल्लास, गाथा-९. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, पृ.१अ, संपूर्ण. ___आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काय रे जीव तुं मनमै; अंति: जिनहरष० पसायै रंगरली, गाथा-९. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: अंखीयां हरखण लागी; अंति: भव भय भावठ भांगी, गाथा-४. ४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म.रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: समझ समझ जीव ग्यान; अंति: होवे निरंजन यार, गाथा-३. ५. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: भोरी अमांणी आया रे; अंति: रूपचंद बंदा तेडा, गाथा-४. ६. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मनभावन जन तन मन तोसे; अंति: मुजरा हमारा ल्यो रे, गाथा-५. ७. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हक मरना हक जाना; अंति: भूले मुसमान कुराणा, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद-ज्ञान, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: बाबा तेरे बाग में; अंति: लाग तनीकी लेरा लेरा, गाथा-३. ९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दिल दाम हरम जानी दोस; अंति: नाथ निरंजन न्यारा है, गाथा-४. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-दीवबंदर, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सचा सांई हो डंका; अंति: दीपे रूपचंद तुम बंदा, गाथा-४. ८७४३७. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११, १३४४१). औपदेशिक सज्झाय- तमाकु त्याग, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती वीनवे; अंति: आणंद० कोडि कल्याण, गाथा-२१. ८७४३८. औपदेशिक सज्झाय व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १२४३९). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: अभिमानी जीवडा इम किम; अंति: पासचंदसूरि० धरम सनेह, गाथा-२३. २.पे. नाम. औपदेशिक दौहा, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ औपदेशिक दोहा, मु. उदय, पुहिं., पद्य, आदि धन बिन तन कुंदइत है अंति उदय० सुनत सिरदीन, दोहा ३. ८७४३९. जंबूस्वामी गहुंली व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११.५, १३X३२). १. पे नाम, जंबूस्वामी गहुली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मनमोहन, मा.गु., पद्य, आदि गाम नगर पुर विचरतां अति महाराज कारिज सिधा छे, गावा-८. २. पे नाम पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक ५. ८७४४० (+) इंद्रादिदेवकृत अभिषेक कलशमान गाथा व सर्वार्थसिद्धिमुक्ताफलमान स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे. (२५.५४१०.५, १५४४५). " " १. पे नाम. इंद्रादिदेवकृत अभिषेक कलशमान गाथा सह गमनिका टीका, पू. १अ संपूर्ण, प्रले. ग. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. इंद्रादिदेवकृत अभिषेक कलशमान गाथा, प्रा., पद्य, आदि पणवीसजोअणुत्तंगो बार अंति: नालुअ इगकोडिलक्खाई, गाथा - १. इंद्रादिदेवकृत अभिषेक कलशमान गाथा- गमनिकारूप टीका, सं., गद्य, आदि: इंद्राः १० वैमानिकाः अति गाथागतसंख्या सिद्धा. २. पे. नाम. सर्वार्थसिद्धिमुक्ताफलमान स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: गुणविजय० फलइ आसो रे, गाथा १६. ८७४४१. (+) सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय व च्यार बोल अनंता, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११. ११४४२). १. पे. नाम. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति थकी सवि फलें आसो रे, गाधा १६. २. पे नाम, व्यारबोल अनंता, पू. १आ, संपूर्ण. २२९ ४ अनंतजीव बोल, मा.गु., गद्य, आदि: अभव्य जीव अनंता १; अंति: जोति भव्य अनंता ४. ८७४४२. नेमिजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, प्रले. मु. भाग्यविमल (गुरु मु. संघविमल), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६११, १४४३४) नेमराजिमती बारमासा, मु. दयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि नेम पियारा सांभलो एक अंतिः करम कपोर साहेबजी, गाथा - १६. ८७४४३. आदिजिन विनती व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११.५, ११×३१). १. पे. नाम. आदिजिन विनती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only आदिजिनविनती स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: कनक कमल पगलां ठवइ ए; अंति: सरूप प्रभु पूजीइं ए, गाथा-१३. २. पे नाम, अजितजिण स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: वाचक ज० गुण गायके, गाथा-५. ८७४४४. (+) तीर्थंकर संघ प्रमाण, संपूर्ण, वि. १८३०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. हमावसग्राम, प्रले. मु. धनरूप पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जै. (२५.५११ २३४४० ). १. पे. नाम. चौवीसजिन परिवार संख्या, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन परिवार संख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्री आदिनाथ संघ अति: (१) नगर क्षत्रियकुंडपुर, (२) ५३१००० श्राविका सर्व. २. पे. नाम. चौवीस तीर्थंकर भक्तिवंत, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकरभक्त नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ भरत चक्री २ सगर चक; अंतिः प्रसेनजित २४ श्रेणि.. Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७४४५. (#) सुबाहुकुमार संधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४२). सुबाहकुमार संधि, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६०४, आदि: पणमि पास जिणेसर केरा; अंति: थायउ नित् __ भणतां, गाथा-९०, ग्रं. १४०. ८७४४६. (+) सुकोशलमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:सकोस., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४३०). सुकोशलमुनि गीत, मु. ज्ञानदास, मा.गु., पद्य, आदि: सर्वसिद्धे सहिगुरु; अंति: न्यानदास० पाय रे, गाथा-६४. ८७४४८ (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ८x२९). औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, म. राजसमद्र, पुहिं., पद्य, आदि: एक काया अरु कामनी; अंति: स्वारथ को संसार, गाथा-५. ८७४४९. विवाहपडल का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३०). विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वंदी करी; अंति: कलाधीर सुख पामै मुदा, गाथा-५५. ८७४५० (+) दादाजी गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. मीठाचंद देवसी; पठ. मु. मोटा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १६४५२). जिनकशलसूरिजी गीत, म. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१२, आदि: जगगुरु वीर जिणंद; अंति: विजैदशम विहाणेबे, ढाल-३, गाथा-३१. ८७४५१. दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १३४३२). दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सारद समरु मनरली समरु; अंति: कुशल सीस गुण गावीयै, ढाल-४, गाथा-२६. ८७४५२ (#) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३१). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय सरसति भगवती; अंति: सहज स्वभावनी सिद्धि, गाथा-१५. ८७४५३. (+) पार्श्वनाथ सलोको, संपूर्ण, वि. १९८७, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. नागोर, प्रले. फतेराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:शिलोको., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५४११, १८४४७-५१). पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमुं परमातम अविचल; अंति: चवदे राज रो अंतरजामी, गाथा-५७. ८७४५४. २० स्थानकतप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११, ११४३४). २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: हारे मारे प्रणमु; अंति: गोयम स्वामीने रे लो, गाथा-८. ८७४५५. अरणिकमनि रास, धर्मजिन व मल्लिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १५४४६-५३). १. पे. नाम. अरणिकमुनि रास, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.. मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १७०२, आदि: सरसति सामिणि वीनवं; अंति: कहीओ रास विलास कि, ढाल-८. २. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: थांसु प्रेम बन्यो छे; अंति: जस० मान्या छै मेरा, गाथा-५. ३. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तुज मुज रीझनी रिंझ; अंति: सीस एहज चित्त धरै री, गाथा-५. ८७४५६. भरतक्षेत्रादि परिमाण विचार व चौवीसजिन वर्तमानादि नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १०x२५). For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २३१ १. पे. नाम. भरतक्षेत्रादि परिमाण विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भरतक्षेत्र योजन ५२६; अंति: वणस्सई भार अढार२. २. पे. नाम. चौवीसजिन वर्तमान, आगत, अनागत वीस विहरमानादि नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन, अतीत, अनागत व वर्तमान तीर्थंकरादि नाम, मा.गु., गद्य, आदि: केवलज्ञानी१ निर्वाणी; अंति: श्रीअनंतवीर्यस्वामी. ८७४५७. (+) दीक्षा विधि व हनुमान मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४२-४५). १. पे. नाम. दीक्षालेवा विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलुं नांदपाखती; अंति: यथायोग्य नाम दीजइ. २. पे. नाम. हनुमान मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. हनमंत मंत्र विधि संग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः ॐनमोकैलाशपर्वत; अंति: (-). ८७४५८. आध्यात्मिक पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११, १७४५८). १. पे. नाम. देवकीषट्सुत सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. देवकी ६ पुत्र सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: अब रायऋषजी हो राज; अंति: कुशलमुनि गुण गावीया, गाथा-२४. २. पे. नाम, गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा-७ अपूर्ण से अन्त तक १आ पर लिखा है. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिकानगरी अति भली; अंति: भावसुं वांदे वारंवार, गाथा-१२. ३. पे. नाम. चूनडीनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. चुनडी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सीयल० चुनडी जे उढे; अंति: मिटे संसार किलेसो जी, गाथा-१३. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: देख्या दुनियां बीचि; अंति: फिट उसका जमवासा, गाथा-५. ८७४५९. परिग्रह सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, १८४४२). औपदेशिक सज्झाय-परिग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: परगरहनो छत पांचमोय; अंति: मुरछा मत करो कोइक, गाथा-४३. ८७४६०. सुकोशलमुनि सज्झाय, अंबिकादेवी व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. मेत्राणा, प्रले. मु. जयमंडन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ३८४२१). १. पे. नाम. सुकोशलसाधु रास, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रहि उठी रे भगवति; अंति: ऋषि वंदं सिरनामी, गाथा-४२. २. पे. नाम. अंबिकादेवी स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. पुण्य, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ जय जय अंबिका माई; अंति: पुण्य० नमो आणंद, गाथा-११. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सदा फल चिंतामणि; अंति: जंपइ पूरि मनह जगीस ए, गाथा-७. ८७४६१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. दलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, २२४५५). १.पे. नाम. १५ तिथि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: एकम कहे तुं एकलो रे; अंति: जिम टल जावै संतापे, गाथा-१७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-नारी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___पुहिं., पद्य, आदि: मुरख के मन भावे नही; अंति: पछे इच्छा ताहरी रे, गाथा-१७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- वैराग्य, रा., पद्य, आदि: मात पिता वइन नै भाई; अंति: संसारनै जाणज्यो खारो, गाथा-१२. ४.पे. नाम. ४ गोला सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रा., पद्य, आदि: साधांतणी वाणी सुणी; अंति: जुधमीयो ज्यु लाल, गाथा-१८. ८७४६२. दीपावली देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १८६५, कार्तिक शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पालीताणानगर, प्रले.पं. मेघविजय; पठ. श्रावि. खुसालीबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीरिषभदेव प्रसादात्. अंत में प्रतिलेखक द्वारा "जात्रा नवाणु करवा आव्या त्यारे लखी आपी छे" का उल्लेख है. हुंडी:दिवाली., जैदे., (२५.५४११, १२४३४-३७). दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर वीरजिनवर; अंति: ज्ञानविमल०सकलगुण खाण. ८७४६३. (+) पंचम रागमाला व रागमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १५४५२). १.पे. नाम, पंचमरागमाला, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रागमाला-पंचम, पंन्या. समुद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नाद अन्नादमय; अंति: गुण गाय माल सिरीवणी, गाथा-३६. २. पे. नाम, रागमाला, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर पाय नमीए; अंति: जिनसमुद्रसूरि०सुखकार, गाथा-४२. ८७४६४. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १६x४०). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-१८. ८७४६५. सम्यक्त देवानी विधि, इंद्र रावण संवाद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. लसकर, प्रले. मु. रणधीर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, २०४५८-६१). १.पे. नाम. सम्यक्त देवानी विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९२१, कार्तिक कृष्ण, १४. सम्यक्त्वादि व्रत आरोपण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: देव अरिहंत अष्ट महा; अंति: १२५ उपवास दीजै. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: चरण धरत चिंता करत; अंति: वह पद में थीर होय, गाथा-१५. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय- मिथ्याप्रदर्शन, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: काल गयो जाण्यो भरतार; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ४. पे. नाम, इंद्ररावण लडाई संवाद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. इंद्र रावण वाक्यद्ध, रा., पद्य, आदि: सीध्रुज आव्यो महीपति; अंति: नासे कर्म विरामो रे, गाथा-२५. ८७४६६. १६ स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११, १६४३०). १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलिपुर नामे नगर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७४६७. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११, १४४४८). २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन रे शुद्धि; अंति: प्राणी ते शिवसुख लहे, गाथा-५. ८७४६८. कमलावतीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १०४३०-३५). कमलावतीसती सज्झाय, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: कहइ राणी कमलावती; अंति: इम बोलइरे कमलावती, गाथा-८. ८७४६९. पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३७-३९). पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात मया करी आपो; अंति: भावविजय०देव जय जयकरण, गाथा-६३. For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २३३ ८७४७०. क्षमाछत्रीसी, कर्मछत्रीसी व जिन नमस्कार श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे.६, जैदे., (२५४१०,१६x४५-५०). १.पे. नाम. क्षिमाछत्रीसी भास, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीवदया गुण आदर; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा-३६. २. पे. नाम. करमछत्रीसी, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: करम थकी को छूटई नहीं; अंति: समयसुंदर० परमाणि जी, गाथा-३६. ३. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: इंद्रभृति वसभति; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. ४. पे. नाम. पंचजिन नमस्कार, पृ. ३आ, संपूर्ण. पंचजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्णं गजराज; अंति: स्त्रिलोकचिंतामणिवीर, श्लोक-५. ५. पे. नाम, मांगलिक श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंति: संपजइ लीजंतइ जस नाम, श्लोक-२. ६.पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गइ गइ मयि गइ दंत गए; अंति: रीझइ पिण बूझइ नहीं, गाथा-७, (वि. गाथाक्रम-३ से ९.) ८७४७१ (2) चित्रसंभूति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३३). चित्रसंभूति सज्झाय, मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो चित कहे ब्रह्म; अंति: भवस्थिति आई हो, गाथा-१९. ८७४७२. (+) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १८४५१-५५). १.पे. नाम. पडिकमणा पोसहसामायकफल स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. पौषधसामाइक सज्झाय, पं. सुमतिकमल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणवर रे पासि; अंति: सुमतिकमल० ते जन लहे, गाथा-१०. २. पे. नाम. वस्तकालप्रमाण स्वाध्याय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सिद्धांतसारविचार सज्झाय, आ. आणंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजगनाथ रे मुखै; अंति: वर तपागछ है नायको, ढाल-३, गाथा-१५. ३. पे. नाम. संवत्सरी दानाधिकार स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जिनवरसीदान स्तवन, म. लब्धिअमर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवरदाईना चरण नमी; अंति: वंछित पाज्यो हो, गाथा-२८. ४. पे. नाम. समूर्छिमजीवकालमान गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. समूर्च्छमजीवकालमान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जेठासाढे चतुरो वासा; अंति: उवगरणो तं देवापि पण०, गाथा-५. ५. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गुणा कुर्वति दतत्वं; अंति: स्वयमायंति षट्पदा, गाथा-१. ८७४७३. पृथ्वीचंद गुणसागर वेली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११, १९४५४). पृथ्वीचंद्रगुणसागर वेली, मा.गु., पद्य, आदि: सिरिनेमि जिणेसर नमिअ; अंति: गुणसागर रिषिराज, गाथा-६०. ८७४७४.(+) जिनविजयसूरि गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३९). १. पे. नाम. जिनविजयसूरि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. म. करमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि हुं; अंति: गाथा-७. २.पे. नाम. जिनविजयसरि गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. करमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पूज पधार्या हो मरुधर; अंति: वीनवै इम करमचंद, गाथा-७. ८७४७५. विविध बोल-कोष्टक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १७४३८). १.पे. नाम, भगवतीसूत्र शतक६ उदेसो३ बंधाधिकार यंत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बंधउदयउदीरणासत्ता यंत्र-८ कर्मविषये, मा.ग., को., आदिः (-); अंति: (-). २. पे. नाम. गुणठाणा १४ ना मार्गणा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक मार्गणा, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. आठ आत्माका यंत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. ८ आत्मा ६२ बोल, पुहि., को., आदि: (-); अंति: (-). ८७४७६. शीलव्रत सज्झाय व जंबूकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १६४३१). १.पे. नाम. शीलव्रत उपरि स्वाध्याय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १७३६, माघ शुक्ल, ९, ले.स्थल. जालोर, प्रले. ग. कृष्णविजय (गुरु पं. रूपविजय); गुपि.पं. रूपविजय (गुरु म्. सिद्धिविजय), प्र.ले.प. सामान्य. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय-शीलगर्भित, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अंति: हरष नित घरि अवतरइ, ढाल-३, गाथा-२९. २. पे. नाम. जंबूकुमार सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक नरवर राजिओ; अंति: पुहता मुगति मझार, गाथा-१६. ८७४७७. जैनधार्मिक श्लोक सह बालावबोध व पेथडशा महामात्य वनप्रसंग वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ११४२८). १.पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: दग्धे बीजे यथात्यंत; अंति: नारोहति भवांकुरः, श्लोक-१. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: बल्या बीज जिम अंकुर; अंति: धर्म१२ ठकुराई१३. २. पे. नाम, पेथडशा महामात्य वनप्रसंग वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: राजा पेथडने ५५हाथी; अंति: जीरु मण ६३ संख्या. ८७४७८. नेमराजिमती गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं हैं., दे., (२५.५४१०.५, २७७१३). १. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कर जोड़ी करु एक; अंति: चउहे सीधी आधार, गाथा-८. २. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मेरी बहिनी मि पीछलइ; अंति: जान अम्रीतरस पीनो, गाथा-३. ८७४७९ (+) शारदाष्टक, कर्मछत्रीसी व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १५४४५-४८). १. पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो केवल नमो केवल; अंति: वनारसी० संसार कलेस, गाथा-१०. २.पे. नाम. कर्मछत्रीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कर्मछत्तीसी, पुहि., पद्य, आदि: परम निरंजन परमगुरु; अंति: करे मूढ वडावे सिष्ट, गाथा-३८. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: निरमल ग्यान के; अंति: गोली लागी ग्यान की, (वि. गाथांक नहीं है.) ८७४८०. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४१). औपदेशिक सज्झाय-नारी, मु. सुधनहर्ष पंडित, पुहि., पद्य, आदि: नर लघु नारी मोटी; अंति: हर्ष० हृदयमां आणो रे, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २३५ ८७४८१ (4) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४११.५, १९४४३). स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मनमधुकर मोही रह्यो; अंति: (-), (पू.वि. चंद्रप्रभजिन गीत, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ८७४८२. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ११४३५). ___ साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: वांदु श्रीजिनराय मन; अंति: नहीचे मुक्ति लहो जी, गाथा-१७. ८७४८३. (+) पट्टावली तपगच्छ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, १३४३४-३६). पट्टावली-तपागच्छीय, पुहि., पद्य, आदि: वीर पाटि श्रीसोहम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्रीकीर्तिविजय उपाध्याय तक लिखा है., वि. गाथांक नहीं है.) ८७४८४. (#) इक्षकारसिद्ध चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५२-५५). इक्षकारसिद्ध चौपाई, म. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: परमदयाल करें आसा; अंति: खेम भणैः कोडि कल्याण, ढाल-४. ८७४८५ (+) पार्श्वजिन आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १०४२७). पार्श्वजिन आरती, म. सुखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेली आरती अश्वसेन; अंति: सुखविजयइ मन गुण गावे, गाथा-८. ८७४८६. सम्यक्त्व के ६७ भेद विचार व ६ भाविक स्थानक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ११४२३-५४). १. पे. नाम. ६७ सम्यक्त्व विचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चउसद्दहणा तिलिंग दस; अंति: बोल समकितहि ए धरवा. २. पे. नाम. ६ भाविक स्थानक, पृ. २आ, संपूर्ण. __ सं., गद्य, आदि: १ अस्तिजीवः २ नित्य; अंति: ६ अस्तिमोक्षोपायः. ८७४८७. (+) पंचतीर्थ व २० विहरमान चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. चाणसमा, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, ११४३०). १. पे. नाम, पंचतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर समरुं श्रीआदिदेव; अंति: तस घर जय जयकार, गाथा-५. २. पे. नाम. २० विहरमान चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: द्विपेंद्र सीमंधर; अंति: (१)कर्मणामष्टकं च, (२)युष्मान जिनेश्वरा, श्लोक-७. ८७४८८. सिद्धदंडिका स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६४११.५, ११४३६). सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: पद्मविजय जिनराया रे, ढाल-५, गाथा-३८. ८७४८९ (+) ५० बोल यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १६४५७). ५० बोल यंत्र-कर्मबंध, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ८७४९१ (+#) चंद्रप्रभुजिन स्तवन व शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:मैरेटी ढाल छै., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११,१७४५५). १. पे. नाम, चंद्रप्रभुजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: चंद्रप्रभु चितमोह; अंति: लालचंद० दास चरणारो, गाथा-१३. २. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिनकी शीतल वाणी; अंति: लाल० सीरधर चरणानी, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७४९२. (2) भाष्यत्रय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३६). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), (पू.वि. प्रत्याख्यान भाष्य गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) ८७४९३. पार्श्वजिन स्तवन, औपदेशिक छंद व पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १४४४५-४८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. दीप्तिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तोत्र, म. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.ग., पद्य, आदि: सकल सदा फल चिंतामणि; अंति: परो संघ जगीस हो, गाथा-७. २.पे. नाम. औपदेशिक छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारति चरण; अंति: धरमरंग० मनि चोल, गाथा-१६. ३. पे. नाम, पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पंचरूप करि मेरुशिखर; अंति: हरज्यो विघन हमारा जी, गाथा-४. ८७४९४ (+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११.५, १९४४४-५०). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय-शीलगर्भित, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रे रे; अंति: कुशल नित घर अवतरे, ढाल-३, गाथा-२४. ८७४९५ (#) सनतकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १५४५२-५४). सनत्कुमार रास, मु. लक्ष्मीमूर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: जीव विमासी जोइं तुं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ की गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८७४९६. जंबुकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४११, १७४३६). जंबुकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभवो कर बिचारणा धन; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ८७४९७. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, १८४४३). महावीरजिन स्तवन-कुंडलपुर, मु. जतीदास, पुहिं., पद्य, आदि: कुंडलपुर सुवावणो; अंति: जतीदास कवावो वनी, गाथा-१०. ८७४९८.(+) शिवपुरनगर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सीवपुरी., संशोधित., जैदे., (२६४११, १८x२८). शिवपुरनगर सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो श्रीसीवपुर नगर; अंति: रायचंद० जुगतसुं कीधी, गाथा-२१. ८७४९९ शांतिजिन स्तवन व शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:शांतिनाथस्तवनं., जैदे., (२६४११, १४४४५). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-दियोदरपरमंडन, म. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति केरा हो चरणकमल; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इणि जिनवरनी जी सेव; अंति: विजय० सुख संपति धामी, गाथा-५. ८७५००. संभवजिन, शत्रंजयतीर्थ व सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १२४५२). १. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण... मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: संभवजिनवर स्वामिजी; अंति: ज्ञान० सुख भरपूर हो, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: डुंगर ताढो रे डुंगर; अंति: रे कोड कल्याणो रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण. " शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. वेलो, मा.गु., पद्य, आदि वे कर जोडी रे कहे अति वेलो० भावु भावना रे, गाथा- १०. ८७५०१ (+) नेमराजिमती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५४११.५, १०४२४-२८). नेमराजिमती स्तवन, मु. अमीयकुवर, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल सजनी रे मारी ह; अंति: अमीकुयर० गृहीने राखे, " "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा- ६. ८७५०२ (४) नेमिनाथजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १८७०, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल नाडुल, बत्त. मु. भीमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५४११.५, १८४४४-४८). नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., पद्य, आदि: हठ करी हरीय मनावीयै; अंति: ऋद्धिहरख० दातार रे, गाथा - ३२. ८७५०३. कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैदे. (२४.५४११, २५४४८-५४). " कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, रा., पद्य, आदि: राजा दशरथ पहला हुआ; अंति: रे मन में हरखत थया, ढाल -७. ८७५०४ (+) मौनएकादशीपर्व गणणु, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. २. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५४१०५ १२४३८-४२). मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., को. आदि महाजस सर्वज्ञाय नमः अंतिः श्री आरणनाथाय नमः, , मु. २. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, पृ. १आ, संपूर्ण. ८७५०५. तृतीयातिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५X११, १०x३२-३८). तृतीयातिथि स्तुति, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निसिहि त्रिण; अंति: खिमा० सुर संभारो जी, गाथा-४. ८७५०६. मृगापुत्र सज्झाय व शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X११.५, १७x४२-४६). १. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पू. १अ संपूर्ण खेम, मा.गु., पद्य, आदि सुग्रीवनगर सुहामणो अंति: खेम० दिनकोड कल्याण हो, गाथा - १४. २३७ उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहीच हो; अति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १४ तक लिखा है.) ८७५०७ (F) ६४ सती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले सा. सरूपा (गुरु सा. मृगावती); गुपि. सा. मृगावती (गुरु सा. सुजाणश्री), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १६x२२-२४). ६४ सती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नाम पने ग्यानीक थीया; अंति: जैमल कहे आणो धिरती, गाथा - ३९. ८७५०९. (४) ५२ अनाचार साधुजीवन बोल, ३० महामोहनी कर्मबंध बोल व १४ बोल सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २४x११, २०x३३). १. पे. नाम. ५२ अनाचार वर्णन साधु जीवन के पृ. १अ संपूर्ण. " मा.गु., गद्य, आदिः उदेसीक आहार भोगवे ते; अंति: करे ते अणाचार लागे. २. पे. नाम. ३० बोल महामोहणी कर्मबंध, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ३० बोल - महामोहनीय कर्मबंध, मा.गु., गद्य, आदि: त्रस जीवने पाणीमाहि अंति: गोपवी खरो दिखवे ते. ८७५१०. (*) पंचतीर्थजिन, शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन व नवपद स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. मु. कल्याणविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नमस्कार., संशोधित., दे., ( २४.५X११, १४X३०-३४). १. पे नाम. पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ. संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि अरिहंत देवा चरणोनी अंति भव देजो तुम पाय सेव, गाथा-५. ३. पे. नाम. १४ बोल सज्झाय- भगवतीसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ बोल सज्झाय-भगवतीसूत्र शतक १, संबद्ध, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि सूत्र भगोती सतक पहल; अंति रेला रिषजी कहे इम, गाथा- १५, (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम कड़ी के कुछ शब्द नहीं हैं., वि. गाथा-९ के बाद गाथांक का उल्लेख नहीं है. ) For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम, नवपद स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अरीहंताणं नमोकारो; अंति: होई पण बोहिलाभम्, गाथा-९. ३. पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: आदिनाथं जगन्नाथ; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. ८७५११. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५२, फाल्गुन कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. हरचंद (नागपुरीय लुंकागच्छ); पठ. सा. जीउजीआर्या, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:सलूणा., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १८४४०-४४). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: उंडोजी अर्थ विचारीयै; अंति: हुं पामो भव पार हो, गाथा-३०. ८७५१२. (+) स्तुति व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १४४४४-४८). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. प्रमोदरुचि, पुहि., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत आराधिये; अंति: फले रूचिप्रमोद जपेत, गाथा-५. २. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. राजेंद्रसूरि , पुहिं., पद्य, आदि: श्रीशजे ऋषभजिण; अंति: वडो उतारे भव भव पार, गाथा-५. ३. पे. नाम. सम्मेतशिखर चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, आ. राजेंद्रसूरि , पुहिं., पद्य, आदि: पूरब देशमें प्रगट हे; अंति: भाषियो वंदित जेजेकार, गाथा-६. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. राजेंद्रसूरि , मा.गु., पद्य, आदि: आदिश्वर जिनवर भेट्या; अंति: वंदे तारण तीर्थ उदार, गाथा-३. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९८४, आदि: आहोरसेर मांहि उच्छव; अंति: संघमां जयजयकार जी, गाथा-९. ८७५१३. (+) श्रावक ३ मनोरथ, संपूर्ण, वि. १८४८, आश्विन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अलिपुर, प्रले. मु. चंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १९४४४-५२). श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो मनोरथ समणोपाशक; अंति: अंत करतो करम खय करइ. ८७५१४. युगमंधरजिन व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११, १०४३७-४१). १. पे. नाम. युगमंधरजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.. युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयुगमंदिर भेटवा; अंति: जेणसागर० अविचल राज, गाथा-५. २. पे. नाम. सीमंधरजिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: साम सीमंधर वीनती; अंति: जिनसागर०परिमानंदन रे, गाथा-५. ८७५१५. (+) महावीरजीरो चौढालिया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:माहावीर०., संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १४४३८-४२). महावीरजिन चौढालिया, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धारथ कुल उपना; अंति: राय० दीवाली री रात ए, ढाल-४, गाथा-६०. ८७५१६. (+) होलिका का चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. दोलतराम, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:होलीकाच०., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १६४३८-४२). होलिकापर्व ढाल, म. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पुरुष राजा; अंति: विनयचंद कहे करजोरी, ढाल-४, गाथा-६१. ८७५१७. (+) अष्टदृष्टि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सुरतबिंदर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४४०-४४). For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २३९ ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदिशी; अंति: वाचक यशने वयणे जी, ढाल-८, गाथा-७६. ८७५१८. () वैराग्यशतक व ज्ञानपंचवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अंत में दुहा दिया गया है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७४५६-७०). १.पे. नाम, वैराग्यशतक, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहसि जहा सासयं ठाणं, गाथा-१०३. २. पे. नाम. ज्ञानपंचविंशति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ___ मु. उदयकरण, पुहि., पद्य, आदि: सुरनर तिरजग जोनि में; अंति: कुं उदेकरन मैं हेत, गाथा-२५. ८७५१९. धन्नाऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सझाय., जैदे., (२५४११, १८४४७-५१). धन्नाऋषि सज्झाय, मु. केसर, मा.गु., पद्य, वि. १७७९, आदि: सुभद्रा कहै धना; अंति: दिने केसर कहे करजोड, गाथा-३७. ८७५२० (#) धनजीरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, ११४३४-३८). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रै धना; अंति: गावता रे मनटे गहगहो, गाथा-१६. ८७५२१ (4) दशवैकालिकसूत्र-प्रथम सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, ७X३६-४०). दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुपदपंकज नमीजी; अंति: वृद्धिविजय जयकार, गाथा-५. ८७५२२ (#) त्रिभुवनप्रासादजिनबिंबसंख्या चैत्यपरिपाटी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४११.५, १७४४८-५२). शाश्वतजिनबिंबसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलउ त्रिकल अतीत; अंति: (-), (पृ.वि. पंचम देवलोक वर्णन तक ८७५२३. कल्पसूत्र की पीठिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११, १५४४२-४६). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)पुरिम चरिमाण कपो, (२)प्रथम तिर्थंकर अनै; अंति: नौकार मंत्र सासतो छै. ८७५२४. पंचांगुलीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:देविपंचां०., दे., (२५४११, १७४३४-४०). पंचांगलीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर पाय; अंति: जागे जुग जगियेक देव, श्लोक-२१. ८७५२५. (#) औपदेशिक होली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सोजत, प्रले. सा. हसतु (गुरु सा. छोटाजी); गुपि. सा. छोटाजी (गुरु सा. उमाजी); सा. उमाजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:ढाल होली., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १३४३०-३४). औपदेशिक होली, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: मास फागण आयो जाणी मत; अंति: वीसलपुर आणंद हो, गाथा-२२. ८७५२६. गुणठाणा द्वार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. हुंडी:गुण ठाण., जैदे., (२५.५४११, १९४४४-५२). १४ गुणस्थानके २५ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आपणो गुणठाणो जाणवो, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., स्थिति द्वार से है.) ८७५२७. (#) सर्वार्थसिद्ध स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३४-३८). सर्वार्थसिद्ध स्तवन, पं. धर्महर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सर्वारथसिद्धिइ; अंति: धनहर्ष० परि वाणी रे, गाथा-११. ८७५२८. स्थूलिभद्रनवरस सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४११.५, ४६x२०-२४). For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्थूलिभद्रनवरस सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: करी श्रृंगार कोश्या; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ की गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८७५२९. संजया यंत्र, संपूर्ण, वि. १८५६, पौष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. जेपुर, पठ. मु. जगराम ऋषि; प्रले. सा. पुष्पाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१३, २०x१०-६३). भगवतीसूत्र-चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: पनवणा १ वेद २ रागे ३; अंति: संख्यातगुणा ८७५३० विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, २५४२१-५७). १. पे. नाम. आठसइ बोल का बंधि, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ कर्म ८०० बोलबंधी यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. १२ प्रकार की साधु सामाचारी, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८२४. मा.गु., गद्य, आदि: लेबो अनइ देवउ तंजहा; अंति: विस्तारनो कहवो१२. ३. पे. नाम, बारा प्रकारनो आहार पाणी, पृ. १अ, संपूर्ण. साधु को त्याग करने योग्य १२ प्रकार के आधाकर्मि आहार, पुहिं., गद्य, आदि: आधाकर्मी१ उदेसीक२; अंति: आइ पड्यो होइ ते१२. ४. पे. नाम. षटद्रव्यनी चरचा गाथा सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: परणामी १ जीव २ मुत्त; अंति: सब गदमिय रहीय पवेसो, गाथा-१. नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ते षटद्रव्य ग्यारा; अंति: सरव गति छ आकास अलोक. ८७५३१. शालिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. राजबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १४-१५४२६-२८). शालिभद्रमुनि सज्झाय, म. सहजसंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवालातणइ भवई; अंति: सहज०भवि तम्ह सो दास, गाथा-१८. ८७५३२ (#) शेव्रज वीनती पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२-१४४३९-४९). आदिजिनविनती पूजा स्तवन, ग. अनंतहंस, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीसे–ज सहिर; अंति: अनंतहस०बीज सुहांकरो, गाथा-२२. ८७५३४. (4) २४ जिन आयु व आंतरा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११, १६४३१-३५). १. पे. नाम. २४ जिन आयुष्य विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदिनाथजी आयु ८४; अंति: महावीरजी आयु ७२ वर्ष. २. पे. नाम. २४ जिन आंतरा, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर; अंतिः सहस्रवर्ष उणो आंतरो. ८७५३५ (+) सरस्वतीदेवी स्तवादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १७X४०-४४). १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. २. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. मनिसंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीजिनकल्याणवल्लि; अंति: वृद्धितराचिरात्ममापि, श्लोक-६. For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३. पे. नाम.५ इंद्रिय सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ४. पे. नाम. राधाभक्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. सूरदास, पुहिं., पद्य, आदि: तिलक किसै गुण सार्यो; अंति: तिलक इस गुण सार्यो, पद-१. ८७५३६ (+) शांतिजिन व एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. पुण्यविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३४-४२). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा जिनवर सांतिजिन; अंति: राजविजय० मन भावे रे, गाथा-११. २.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समोसरण बेठा भगवंत; अंति: समयसुंदर०कहु द्याहडी, गाथा-१३. ८७५३७. (#) सज्झाय संग्रह व आधाशीशी मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३४). १.पे. नाम, ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली; अंति: समयसुंदर० पाटण परसिध, ढाल-५. २. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. ___ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी द्वारामति जाणीइ; अंति: समयसुंदर तसु ध्यान, गाथा-६. ३. पे. नाम, सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जोवा आव्या रे देवता; अंति: समयसुंदर कहै सार, गाथा-५. ४. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मारग मइ मुनिवर; अंति: समयसुंदर मनवालि, गाथा-५. ५.पे. नाम. आधाशीशी मंत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहि., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: संभलाईजै प्रभातै. ८७५३८. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. अमी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपदेशी स्तवन. हीरारुषिजी प्रतापे., दे., (२५४११.५, १८४५०-५४). १. पे. नाम, उपदेशी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. ऋषिराज, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडला जे के काले; अंति: बलता जोया रुषीराजे, गाथा-७. २.पे. नाम. उपदेशी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. ऋषिराज, मा.गु., पद्य, आदि: तारा मनमां जाणे छ; अंति: धर रुषिराजनी रे, गाथा-९. ३. पे. नाम, उपदेशी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कठण चोट माथे कालनी; अंति: लीधो साधु आनो साथ रे, गाथा-६. ८७५३९. सरस्वती अष्टक आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६०, फाल्गुन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. खंभात, प्रले. मु. अमी ऋषि; अन्य. मु. हीराजी ऋषि (गुरु मु. भाणजी ऋषि); गुपि. मु. भाणजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:स्तुती., दे., (२५४११, १८४५२-५६). १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी अष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जिनादेशजाता जिनेंद्र; अंति: विलोका निरस्तानिदानी, श्लोक-८. २.पे. नाम. पार्श्वनाथस्वामीनो छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४२ www.kobatirth.org १२x२६-३०). १. पे नाम सुमतिजिन स्तवन, पू. १अ संपूर्ण. , पार्श्वजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि खीटमंगलमुकीटं, अति रम्यारम्यं सेरम्यम्, श्लोक-४. ३. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पू. १अ, संपूर्ण. " सद्गुरुमाहात्म्य पद, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि श्रीजिनराज सरणो धरम, अंतिः हारी० ठाम आनंद को, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. सुगुण, पुहिं., पद्य, आदि: कोयल टहुक रही मधुबन अति प्रभु के चरण में, गाथा-५. , ८७५४०. स्थूलीभद्रमुनि सज्झाय व मनकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. ग. सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०५, १५४३६-४८). १. पे नाम. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछलदे मात मल्हार बह; अंति: लबधि०लीलालखमी घणी रे, गाथा-१७. २. पे. नाम. मनकमुनि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो मनक महामुनि, अंति: लबधि० लहस्यो भव पारो, गाथा- १०. ८७५४१. सुमतिनाथ, अरिहंत स्तवन व जैनधार्मिक श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११.५, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. जसवंत - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि सुमति जिणेसर साहिबजी अंति: जसवंतनाजी० अविचल धाम, गाधा- ६. २. पे. नाम. अरिहंतपद सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि वारी जाउं श्रीअरिहंत, अंति ज्ञानविमल गुण गेह, गाथा- ७. ३. पे. नाम जैनधार्मिक लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: दयाधर्म जिणोवक्ते; अंति: भवे भवेण निश्चितं, श्लोक-१. ८७५४२. राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ व औपदेशिक प्रभाती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( १ ) = १, कुल पे. २, दे., (२५.५X११.५, १२X३६). १. पे. नाम. राजप्रश्रीयसूत्र सह टबार्थ, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. , राजप्रश्रीयसूत्र, प्रा. गद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण सूत्र -५ अपूर्ण से है व "आमलकप्पानगरीए बहिया' पाठ तक लिखा है.) राजप्रश्रीयसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (-). पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, २. पे नाम औपदेशिक प्रभाती सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण ग. मोतीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: घडी में घडीयाला वाजे; अंति: मोतीचंद० नितमेवा रे, गाथा- ९. ८७५४३. (+) तप उचरवा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५x११.५, १८४३८-४२). 3 "" तपच्चारण विधि, प्रा.मा.गु., गद्य, आदि: तप उच्चरावी तिवारी, अंतिः मुक्खो जिनशासने भणिओ. ८७५४४ (७) पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२५.५X११, ३५X१०-२५). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाटक्रम ५६ हेमविमलसूरि तक लिखा है.) ८७५४५ नेमराजुल लेख संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, प्रले. पं. ज्ञानविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११. ११४४२-५६). For Private and Personal Use Only नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीरवागिरे अति: रुपविजय तुझ दास गाथा- १९. ८७५४६. (#) ज्ञाताधर्मकथाना सों बोल, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२५.५४११, १९५४६-५२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि न्यात्याधरमकथा साढा अंति रीखी नेहने प्रताप, प्रश्न- १००. Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २४३ ८७५४७. (+) उपधानविधि कोष्ठक व मालारोपण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ९४५५). १.पे. नाम. उपधानतपविधि यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. मालारोपपण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. उपधानमालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं मुहपत्ती; अंति: दिन १० जघन्य करवं. ८७५४८.(-) औपदेशिक सज्झाय व गुरुगुण गहंली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पेमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:यणव., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १९-२०४३०-३४). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रघुपतिशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: या जप छयण तीरतीर लाल; अंति: रुगपत० सुवयण र समगत, गाथा-१४. २.पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आसकरण, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: हाथ जोड विनती करु; अंति: यासकरण सुणो वीनती, गाथा-१०. ८७५४९ (+#) श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३५-४५). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहर्ष० हरणी छे एह, गाथा-२२. ८७५५०. गुरणीजीरो गीत, संपूर्ण, वि. १८६२, पौष शुक्ल, २ अधिकतिथि, सोमवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. देसणोक, प्रले. मु. तुलसीदास ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १५४५६-६०). गुरुणीगण गीत, रा., पद्य, आदि: अगरु जीव गरु आंगणै; अंति: मत कोइ करो रीसो, गाथा-२५. ८७५५१. स्थूलीभद्र बारमासो व स्थूलीभद्र चोमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १५४३९). १. पे. नाम. स्थूलीभद्र बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. स्थूलिभद्रमुनि चौमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण आयो वालहा; अंति: गुण जिनहरष प्रकास, गाथा-१६. २. पे. नाम. स्थूलभद्र चातुर्ममासस्थित गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्र चौमासा, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण आयो साहिबा रे; अंति: जगति जिनहरष भलाइ, गाथा-५. ८७५५२. (+) भरतचक्रवर्ति सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.१,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, १८४३५). भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सितंतरलाख पुरब बरस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१६ तक लिखा है.) ८७५५३. (-) वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सज्झाय., अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११, १८४४१). औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: दुलभ लाधो मनुषज मार; अंति: भेध लोभ अहंकार नही, गाथा-१८. ८७५५४. जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:ज.वो., जैदे., (२६४१०.५, १८४३३-४१). जंबूस्वामी सज्झाय, ऋ. खुशालचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: मगदेस राजगरी नगरी; अंति: भारी धन धन धन ___ जंबो, गाथा-१५. ८७५५५. औपदेशिक गहुंली व मुनिगुण भाष, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १२४४०). १. पे. नाम. औपदेशिक गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.ग., पद्य, आदि: मुनिवर मारगमां वसिया; अंति: श्रीशुभवीर चरण नमती, गाथा-९. २.पे. नाम, औपदेशिक भाष, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मुनिगुण भास, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानदिवाकर सोभता; अंति: सुणी पामे पद महानंद, गाथा-६. ८७५५६. सूर्य सलोको आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, दे., (२६४१०.५, १४४३४). १. पे. नाम. सूरजजी सिलोको, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सूर्य सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि करोने; अंति: तु सूरजदेव प्रसिद्धो, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम, अमरसिंघ श्लोको, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण तुज पाएजी; अंति: बधा वीमणाजी मानो, गाथा-३५. ३. पे. नाम. दादा पार्श्वनाथनो सलोको, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सांमण तुझ पाय; अंति: तणो कुल ईधको कहायो, गाथा-१०. ४. पे. नाम. जसवंतसिंघ दहा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. जसवंतसींघ महाराजा दहा, पुहिं., पद्य, आदि: मनडो आज उमाहियो घटा; अंति: जसा हं बलहारी तोहि, गाथा-१३. ५. पे. नाम. जैनदूहा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. दहा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मांणो मोती पैहरती; अंति: घर घरकी पीणहार, गाथा-१. ८७५५७. (+) शांतिनाथ स्तवन व मतांतर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५,११४४२). १. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. विवेक, अप., पद्य, आदि: जय पण सुरनर सुवनकाय; अंति: विवेकइ० शांतिजिणेसरो, गाथा-३०. २. पे. नाम. मतांतर सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मतांतर सज्झाय-जनरल, आ. पद्मसागरसूरि, म.,मा.गु., पद्य, आदि: पुन्यचा मारग नवनवा; अंति: पदमसा०वखाण स्वामी, गाथा-१०. ८७५५८. (#) रात्रीभोजन सज्झाय व वैराग्य पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४४). १.पे. नाम. रात्रीभोजन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतल नयरी वसै जी; अंति: सार्यो आतमकाज रे, गाथा-२०. २.पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. १आ, संपूर्ण. गोरखनाथ, मा.गु., पद्य, आदि: माहरो रे वेरागी रे; अंति: माया का भव टाली रे, गाथा-६. ८७५५९. हीरविजयसूरि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १२४४३). हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. हर्षसोम, मा.गु., पद्य, आदि: हीर गुरु हीर गुरु; अंति: हीरगुरु तुब्भ तोलइ, गाथा-१०. ८७५६०. साधु आवश्यकविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४५३). साधुविधिप्रकाश, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: स्थापनाचार्य पडिलेहण; अंति: कीयो तिविहार पोरसी. ८७५६१(-) कृष्णरुक्मणी सज्झाय व शांतिजिन आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११.५, २६४१४). १.पे. नाम. कृष्णरुक्मणी सज्झाय, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. मु. धनदास, रा., पद्य, आदि: रुकमण घरसुं निसरी जख; अंति: द्वारामति माहि आयो, गाथा-१२. २. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. १आ, संपूर्ण.. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: जं जं आरति तुम्हारी; अंति: जो नर अम्र पद पावें, गाथा-५. ८७५६२ (4) बादशाह प्रतिबोधन व जीवशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२५४११, १३४३२). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-बादशाह प्रतिबोधन, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: चीठी काछे खुन खुदा; अंति: सकलचंद० पनह तुम्हारी, गाथा-७. २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवशिक्षा, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडला रे जीवडला तूं; अंति: सिद्धि० चडत सवाइ रे, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २४५ ८७५६३. (+३) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६११, २१x६०). १. पे. नाम. नवकार स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रूपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि नमस्कार अरिहंतने अंति चउदे पुरबनो सारो जी, गाथा - २५. २. पे. नाम. विमलजिन पंचकल्याणक स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. विमलजिन पंचकल्याणक स्तवन- मेदिनीतटिमंडण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि विमलनाथ सुणउ बीनती अंति समयसुंदर० सुजगीस ए. गाथा १४. ३. पे. नाम. अभव्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदिः अभव्य न समजे किमही अंति: निफल हुइ जिनवाणी, गाथा- ११. ४. पे नाम, जीवदया सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि रे जीवदया पालज्यो; अति करो सिवगति पावे तेह, गाथा- ११. ८७५६४. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण वि. १८१५, चैत्र कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ४, जैवे. (२५x११, १२४३७). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल अति: विजयभद्र० इम भए, गाथा - ७४. ८७५६५. (+) सज्झाय संग्रह व औपदेशिक हरियाली, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( १ ) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. क् पाठ-संशोधित, जैदे, (२५.५४११.५, १६-१७४३५-५३) १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि सुधु धर्म मुकिसि; अंति: दुलह मानव भव लीघु, गाथा-७. २. पे. नाम. शीयल नववाड सज्झाय, पृ. २अ, , संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शीयलव्रत सज्झाय नववाड, मा.गु., पद्य, आदि: गुणनिधि जीवडा शीलरवण अति बोले श्रीउपदेसमाल, गाथा ८. ३. पे. नाम औपदेशिक हरियाली, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १६५७, कार्तिक कृष्ण, १४, ले. स्थल, धराद, प्रले. ग. शिवविजय (गुरु पं. बुद्धिविजय गणि); गुपि. पं. बुद्धिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: ते कुण नारी छइ जगि; अंति: पणि नहि एहनी तोलइ रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. २० स्थानकतप सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. कीर्तिसागर, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनवर उपवेश्य अंतिः ते तीर्थंकर पदवी वरड़, गाथा-७. ८७५६६. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, दे. (२५x१०.५, ८x२६). י पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, श्राव. लाधो साह, मा.गु., पद्य, आदि : आहे पाटणनगरे सुशोभीत; अंति: सास्वता सुख लहे तेह, गाथा - ३. ८७५६७. २४ जिन कल्याणक तिथि, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, दे. (२५.५X११, १०X३१-३६). " 1 २४ जिन कल्याणक तिथि, मा.गु., गद्य, आदि: कार्तिकसुदि३ सुविधि; अंति: १३ पद्मप्रभु दीक्षा. ८७५६८. (+) देवसीपडिकमण विधि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२६४११. १८x४०). יי For Private and Personal Use Only देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि इच्छामि० इच्छाकारेण अति: समाहर जयबीयराय कहे. ८७५६९. १८ हजार शीलांगरथ गाथा व बंधोदयसत्ता विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२५x११, ३X६५). १. पे. नाम. १८ हजार शीलांगरथ गाथा, पू. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्र सहित, प्रा., पद्य, आदि जे नो करंति मणसा अंति: खंतजुया ते मुणी वंदे, गाथा- १. २. पे नाम बंधोदयसत्ता विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., गद्य, आदि: तत्र मिथ्यात्वादिभि; अंति: भाव सति सहावः सत्ता. ८७५७०. (+) पार्श्वजिन १० भव वर्णन, संपूर्ण, वि. १७९७, वैशाख कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ३, प्रले. ग. मोहनसागर (गुरु पं. रूपसागर गणि); गुपि. पं. रूपसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पार्श्वनाथ., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५४४४). पार्श्वजिन १० भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: इणहिण जंबूद्वीपरइ; अंति: वामा० कूखै अवतरे. ८७५७१. (+) ६३ शलाका पुरुष विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४४६). ६३ शलाकापुरुष विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमोअरिहंताणं नमोसिद्, (२)इहा श्रीभगवंत महावीर; अंति: विमान मोक्षसुख पामै. ८७५७२. शांतिजिन स्तवन व रामभक्ति पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११, १५४४६). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. खिमधर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु वंदीय पूजीय; अंति: खिमधर० सद आणंद उपनो, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. रामभक्ति गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. रामभक्ति पद, मलकदास वैष्णव, मा.गु., पद्य, आदि: राम भजि राम भजि; अंति: मलुकदास हरिजन गाइरे, गाथा-६. ८७५७३. आदिजिन स्तवन व विधाता अष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११, १३४३३). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहंतजी लेइन; अंति: नो इम जीत नमे सुखकंद, गाथा-१२. २. पे. नाम. विधाता अष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि.,सं., पद्य, आदि: महामूर्खने मंदिर; अंति: जन्म जन्मतरेद्धी, गाथा-९. ८७५७४. ग्यानरी चरचा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४११.५, १६४३२). औपदेशिक सज्झाय-ज्ञान चर्चा, रा., पद्य, आदि: ग्यानि ग्यानसू देखले; अंति: तीणसू पामौ कल्याणक, गाथा-२४. ८७५७५. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२२.५४११, १०४३०). ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि ए आदि ए आदिजिने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७५७६. (+) दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:दानशीलरो चो., संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १३४४२). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाय नमी; अंति: समय० प्रथम प्रकास, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५.. ८७५७७. (+#) दस सुपना स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:दस सुप., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४१०.५, १२४४३). महावीरजिन स्तवन-स्वप्नगर्भित, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३१, आदि: सासननायक सुमरिये रे; अंति: रायचद० देखिया रे लाल, गाथा-१३. ८७५७८. गुरुणीगण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११, १७४२६-३२). गुरुणीगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: सुणो आर्याजी अरदास; अंति: जाणम कीरी गुरुणीजी, गाथा-२१. ८७५७९ (+) पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४४३). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सार सुरती जग जाण; अंति: मेधराज० त्रीभुवनतीलो, गाथा-५. ८७५८०. पार्श्वजिन छंद व विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२५४११, १३४३४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवौ पास संखेसरौ मन; अंति: पास सरो आप तुठा, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org २. पे. नाम. गर्भस्थशिशु लिंगज्ञान श्लोक सह बालावबोध, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. गर्भस्थशिशु लिंगज्ञान श्लोक, मा.गु., पद्य, आदि: नखद्वयं गुरवणि; अंति: कुमारी विषमे कुमारा, गाथा-१. गर्भस्थशिशु लिंगज्ञान श्लोक - बालावबोद, गु., प्रा., गद्य, आदि: नख कही जे विसति कहु; अंति: एकी रहै तो पुत्र होय. ३. पे. नाम. होलीवायुमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. होली विचार दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: पूर्व वाय वहंतो जोय; अंतिः परजा दुख न देखे कोय, गाथा-४. ४. पे नाम. सुभाषितश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. * सुभाषित श्लोक संग्रह पुहि., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि बालोपि चौर स्थिरोपि, अंतिः तस्य नो चलते मनः, गाथा-२. ८७५८१. (+) भृगुपुरोहीत चौडालियो, संपूर्ण वि. १९९३ आश्विन कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पू. ३ ले स्थल, रायपुर, प्रले. सा. मगनी (गुरु सा. कंबरीजी); गुपि. सा. कंवरीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी भृगु पी. चुनाजी म्हाराजकी नेसरायमे छे., संशोधित, दे. (२४४११.५, १५X४३). भृगुपुरोहित चौढालिया, क्र. जेमल, रा., पद्य, आदि: तीण अवसर मुनीराव अंति मिछामि दुक्कडं मोय, डाल-४. ८७५८२. अर्जुनमालीमुनि चौढालिया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. हुंडी : उरजनमालीरी ढाल., दे., । . दे.. (२४.५x११.५, १६३०-३५). गाथा - २५. ८७५८४ आर्द्रकुमार स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैदे. (२४.५X११, १२४३३). "" " अर्जुनमालीमुनि चौडालिया, रा. पद्य, आदि सोदागर मलीया नही नही; अंतिः भवती ताप काहो भवतणा, ढाल ६. ८७५८३. सीखामण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४.५X११, १३-१५X३८-४२). औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि मंगल करण नमीजे चरण; अंतिः विजयभद्र० नही अवतरे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आर्द्रकुमार सज्झाय, क. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रीउडा प्रीतडली इम अंति लब्धि कहे कर जोड़ी रे, गाथा - १३. ८७५८५ (+) विमल मेताना श्लोको, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५५११, १७X३८). יי २४७ (-), विमलमंत्री शलोको, मु. उदयरत्न, गु., मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सरसति समरु बे कर जोड, अंति: । (पू.वि. गाथा ८८ अपूर्ण तक है.) ८७५८६. (+) तीर्थमाला, साधारणजिन व पार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-६ (१ से ६) = १, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X१०.५, १५X४८). १. पे. नाम तीर्थमाला स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेत्रुंज ऋषभ; अंति: समैसुंदर कहे एम, गाथा - १६. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: भाव भगति मन आणि घणी; अंति: मनवंछित कारज सरइ, गाथा - १४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. . रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणंद जुहारीय; अंति: रत्न० पाय अरुवंदो रे, गाथा-९ For Private and Personal Use Only ८७५८७ (७) बुद्धि रास, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पू. ३, प्र. वि. अवाच्य मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १५X३७). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय देवी अंबाई, अंतिः तीया सवि टलइ कलेस, गाथा- ६३. ८७५८८. एकादशी स्तुति व संतिकर स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११, १३x४४). १. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, ले. स्थल, रतनपुर, प्रले. ग. ललितविजय, पठ. मु. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मौनएकादशीपर्व स्तुति, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तिथि मौनएकादशी उपदेश; अंति: लालवि०पुरो मनहे जगीस, गाथा-४. २. पे. नाम. संतिकर स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण, पठ. ग. ललितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. संतिकरं स्तोत्र, आ. म सरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: मणिसंदर० पयं परमं, गाथा-१३. ८७५८९ आसीकपच्चीसी व स्त्रीरूप वर्णन कवित्त, अपूर्ण, वि. १८०८, माघ शुक्ल, १ अधिकतिथि, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. गुंदवच, जैदे., (२४.५४११, १२४३५). १. पे. नाम. आसीकपच्चीसी, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आशिकपच्चीसी, य. जिनचंद्र, मा.ग., पद्य, आदिः (-); अंति: सौख्य घणुं लहेस्ये, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण . २. पे. नाम. स्त्रीरूप वर्णन कवित्त, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: तुझ मुख अति सारुं; अंति: भोली छुटते सठेभ्यः, गाथा-६. ८७५९०. आध्यात्मिक होरी, नेमिजिन पद व आध्यात्मिकहोली पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४११.५, ११४३४). १. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: उठो सरधा गौरि चतना; अंति: भजनराज० अमर पद थाय, गाथा-३. २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. लींबो, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगीरनारे त्रण; अंति: लिंबो० नेमनाथ जिनखाण, गाथा-३. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक होली पद, मु. भाणचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चातुरी क्या बोलुं; अंति: नीसानी में तो चाहुं, गाथा-७. ८७५९१ (+) आदिजिन, नेमजिन व बीजतिथि स्तति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ११-१३४३३). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.ग., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्र उठि वंद रिषभदेव; अंति: रिषभदास गुण गाय, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: मंगल करो अंबिक देवया, गाथा-४. ३. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८७५९२. (#) श्रावकविधि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४८). श्रावकविधि सज्झाय, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणम् वीर जिणेसर पा; अंति: गतिवध तस लीलां वरइ, गाथा-२०. ८७५९३. (+) सुखविपाक सूत्र, संपूर्ण, वि. १९६५, पौष शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पीपाड, प्रले. मु. केवलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सुख विपाक., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११, १९x४९). विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेवं ___भंते सेवं भंते, अध्याय-१०. ८७५९४. (+) खरतरगच्छ गच्छाधिपति पत्रलेखन पद्धति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १०४२८-३१). खरतरगच्छ गच्छाधिपति पत्रलेखन पद्धति, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्तिश्रीपार्श्व; अंति: वंदना अवधारज्योजी. ८७५९५. वंदणा स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६०, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. जीतसागर, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३६). For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २४९ जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चोवीसे करीय; अंति: कीर्तिविमल सुख वरवा, गाथा-११. ८७५९६. (+#) आदिजिन लावणी व प्रास्ताविक दोहा, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. आहोर, प्रले. मु. फतेचंद; पठ. श्राव. लखजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ११४२८-३२). १.पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, वि. १८६०, आदि: सरस्वतीमाता सुमत की; अंति: सलूंबरमां प्यारे, गाथा-२५. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, प. २आ, संपूर्ण.. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), दोहा-१. ८७५९७. टकोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४११, ९४२७). औपदेशिक सज्झाय-शीलव्रत, म. पद्मतिलक शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: न सूहे निरधनी ओ धन; अंति: पोवी पुन्य वडो संसार, गाथा-१४. ८७५९८. (+) दीपमालिका स्तवन व औपदेशिक छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, पठ. श्राव. कपूरचंद साह, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १५४४३-४७). १.पे. नाम. दीपमालिका स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण... गौतमस्वामी दीपालिका रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रभूति गौतम भणइं; अंति: हीरगुरु गुण विचारी, ढाल-१३, गाथा-७६. २. पे. नाम. औपदेशिक छंद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती भारती चरण नमेव; अंति: लक्ष्मी० मन धरजो चोल, गाथा-१६. ८७५९९ (+) नेमिजिन स्तवन व नेमिजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११, १७X४०). १. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, वि. १९०८, आदि: समुदविजय सुत लाडलो; अंति: अर्ज हमारी अवधारज्यौ, गाथा-११. २. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, म. प्रेम, पुहिं., पद्य, आदि: हे मेरो मन वस कर लीन; अंति: सार्यों मुक्त आवास, गाथा-७. ८७६०० (+) श्रावक दैनिक विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १४४३८-४२). श्रावक नित्यक्रिया विधि संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: स्नात्र करतां पहिला; अंति: पछै तो यथाशक्ति. ८७६०१ (8) आहारना बयालीस दोष, संपूर्ण, वि. १८७१, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रामपुरा, प्रले. पं. नथमल्ल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, २४४३८-४२). गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम दस दोष मिश्र; अंति: नही तो भेखधारी छे. ८७६०२. (+) पद, स्तवन व जयवीयरायसूत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, ११४३१). १. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: आज सकल मंगल मिले आज; अंति: अनुभव रस माने, गाथा-५. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ आदिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: उठत प्रभात नाम; अंति: सुखसंपदा बढाइयै, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: जागो मेरे लाल विशाल; अंति: सुरत वलि वलि जाइयइं, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. जयवीयरायसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रणिधानसूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा-३ व ४ तक लिखा है.) ८७६०३. (2) शितलजिन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १३४४३-४७). १. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहज सुरंगा; अंति: शुवधीकुशल गाया रे, गाथा-९. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांति माहारस सागरू; अंति: मेघ समो कहेवाय हो, गाथा-५. ८७६०४. (+#) भगपुरोहित चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, २२-२५४३८-४२). __ भूगुपुरोहित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: देव हुंता भव पाछलै; अंति: पहुंता मुक्ति मझार, ढाल-४, गाथा-४९. ८७६०५. (+#) माईदास संथारा भास व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १०-१४४४०-४४). १.पे. नाम. माईदास संथारा भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. दर्गदास, मा.गु., पद्य, वि. १६३४, आदि: श्रीपति नरपति नाकपति; अंति: दुगदास लहइ अविचल वास, गाथा-१३. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ.१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. - पुहि., पद्य, आदि: मोहि डहिरे उसदीको; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८७६०६. सिंदरप्रकर बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. मु. कस्तुरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नही है., जैदे., (२४.५४११, १४४५०-५२). सिंदूरप्रकर-बालावबोध कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तया एगिंदियत्तणं, (पू.वि. मात्र अंतिम धनप्रिय कथा है.) ८७६०७. षट्मासी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १६४३५-३९). महावीरजिन स्तवन-छमासी तप, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: पय प्रणमी जीनवरतणां; अंति: कवियण०पामे मंगलमाल ए, ढाल-२, गाथा-१७. ८७६०८. चउद गुणठाणा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सोझित, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४०-४४). १४ गुणस्थानक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि वीरजिणेसरदेव; अंति: घरि सुख संपति घणो, गाथा-२४. ८७६०९. (+#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १९४५०). औपदेशिक सज्झाय-नरकदःख वर्णन, म. रिषजी, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: रिषजी०वीनती हाथ जोरी, गाथा-३१, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) ८७६१० (+) नमिजिन स्तवन, अनंतजिन स्तवन व नेमराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४८-५२). १.पे. नाम. नमिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. नमिजिन स्तवन, म. अभिराज, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति दे मुझ वाण हो; अंति: दया धर्म कह्या ए, गाथा-२१. २. पे. नाम. अनंतनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अनंतजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १६४१, आदि: नयरि अजध्याथान अपूरव; अंति: चरण सेवक इम भण्या, गाथा-११. ३. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, सिं., पद्य, आदि: साहिब मइडा चंगी सूरत; अंति: तइडे नितु गावंदा हइ, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २५१ ८७६११. (+) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३५, आषाढ़ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. खुशालचंद मलुकचंद वसा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १०४२४-२८). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पास संखेसरा सार कर; अंति: उदय० रेख महाराज भीजो, गाथा-५. ८७६१२.(-) धन्नाअणगार, बुढापा व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. माणकचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:धनाजी व बुडलारो., अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४११,१५४३२-४०). १. पे. नाम, धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: धना मुनी धन मानवभव; अंति: रामचंद्र०मुगत सीधायो, गाथा-७. २.पे. नाम. बुढापा सज्झाय, पृ.१आ, संपूर्ण. ____ पुहि., पद्य, आदि: (१)भुढला तेरी अकल कीदर, (२)बुढला तेरी अकल कीदर; अंति: जीम सुधर तेरी काया. ३. पे. नाम. सीखामण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: नाया धोया पीहर मील; अंति: वो लेसी सीवपुर वास, गाथा-१०. ८७६१३. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. नथु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, ११४२८-३०). ___ महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिसलानंदन चंदन शीत; अंति: वीर कहे० देज्यो आशीश, गाथा-११. ८७६१४. प्रतिक्रमणादिविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, जैदे., (२४४११, १८४५८-६२). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिक्कमीइं; अंति: (-). ८७६१५. गौतमपच्छा सज्झाय व किसनजी गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १६x४०-४४). १. पे. नाम. गौतमपृच्छा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामी प्रीच्छा; अंति: अरे वछ गोयम सांभल रे, गाथा-१७. २. पे. नाम. किसनजी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. कष्णरुक्मणी गीत, मीराबाई, पहिं., पद्य, आदि: रूखमणी चलउ हो जनमभूम; अंति: मिरा० कुलसु नाता नाह, गाथा-७, (वि. अंत में "सुरदास प्रभु तमारे मीलनकु, एह जीव हे तुम पास" बाद का लिखा हुआ है.) ८७६१६. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले.पं. भीमसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, २५४६०-६४). सीमंधरजिन स्तवन, म. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: अनंत चउवीसि जिन नम; अंति: सिद्धविजय० ___ मंगल करो, ढाल-७, गाथा-१०५. ८७६१७. ज्ञानपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, १६४५६-६०). ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग योनि; अंति: उदय करन के हेत, गाथा-२५. ८७६१८. (+) योगीगुण व मुनिशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४२८-४२). १.पे. नाम. जोग कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय-योगी गण, मा.गु., पद्य, आदि: योगीनिइ जोखिम नही; अंति: दत्तर पारि उतारइरे, गाथा-५. २.पे. नाम. मुनि शिक्षा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मुनिशिक्षा सज्झाय, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जिणभवण संघ कारण मुनी; अंति: सूधं संयम पालु रे, गाथा-९. ८७६१९ दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:दिक्षावि०., जैदे., (२५४११, १२४५०-५६). प्रव्रज्या विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम नाण मंडावीने; अंति:नोकारवाली०१ गणावीए. ८७६२०. रात्रिभोजन चउपई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११, १७-१९४५४-५८). For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रात्रिभोजन चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु भगत करुं मन; अंति: तणो कह्यो ते लवलेस, गाथा-७९. ८७६२१ (-) कालचक्र मान विवरण, संपूर्ण, वि. १८५३, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, १९४४४-५८). कालचक्र मान विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: बाद्रपूद्गल प्राव्रत; अंति: सागरनो एककालचक्र थाय. ८७६२२ (+-) औपदेशिक लावणी व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६६, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. लोडीसादडी, प्रले. सा. फुली (गुरु सा. पनाजी); गुपि.सा. पनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तवन., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४११, १४४३४-३६). १. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. जडाव, पुहिं., पद्य, वि. १९५१, आदि: पाप से जीव बोत राजी; अंति: नही पावे भवे पार, गाथा-५. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९६४, आदि: चालोजी आपी मोसनगर; अंति: हीरालाल० मंगलाचार, गाथा-८. ३.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-असत्यत्याग विशे, म. नंदलाल शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसी दुनीयारो कइ; अंति: सांचने आच नी आवे, गाथा-४. ४. पे. नाम. मुक्तिगमन सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, वि. १९२८, आदि: तीर्थंकर महावीर; अंति: समत उगणीसे अठार जी, गाथा-२१. ८७६२३ (+#) सज्झाय, स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२-१५४३०-४६). १. पे. नाम. देवतणी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. भगुपुरोहित सज्झाय-रात्रिभोजन परिहार, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तणी ऋद्ध भोगवि; अंति: उदयविजय० मोरा लाल रे, गाथा-६. २. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदसुं प्रीत; अंति: जस० नित प्रणमे पाय, गाथा-५. ३. पे. नाम, अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रै वाडी; अंति: समय वंदेरे बे करजोडि, गाथा-९. ४. पे. नाम. गिरनारतीर्थ पद, पृ. १आ, संपूर्ण. __ पुहिं., पद्य, आदि: शिखर गिरनार जाना रे; अंति: पल छीन रे जाना रे, गाथा-३. ८७६२४. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६८, ज्येष्ठ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सिद्धपुर, प्रले.पं. हरीचंद (गुरु मु. सिवचंद, तपागच्छ); गुपि. मु. सिवचंद (गुरु ग. उत्तमचंद्र, तपागच्छ); ग. उत्तमचंद्र (गुरु ग. उदयचंद्र); पठ. श्रावि. जोइतीबाई, प्र.ले.प. मध्यम, जैदे., (२५४११, १२४२८-३६). सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो प्रणमुं दिन; अंति: कहे मानविजय उवज्झाय, ढाल-४, गाथा-२५. ८७६२५ (#) सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, ८x२४). सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकर निकर समुज्वल; अंति: सहज० सोय पूजो सरसती, ढाल-३, गाथा-१४. ८७६२६ (#) नववाडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, मध्यम, पृ.४, प्रले. ग. रत्नविजय; पठ. श्रावि. चांपाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, ११४३६). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: उदयरतन०तेहने भामणेजी, ढाल-१०, गाथा-४२. For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८७६२७ (+) बंभणवाडि स्तवन व शत्रुजयतीर्थ स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२४.५X११, १२-१३X३६). १. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पू. १अ-२आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , महावीर जिन स्तवन- वामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि: समरवी समरथ सारदाय; अति श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा २१. २. पे नाम ५ तीर्थजिन स्तुति, पू. २आ, संपूर्ण, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमुख्य; अंतिः ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ८७६२८. गौतमस्वामी स्तवन व जंबूकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. लाल स्याही से लिखा हुआ है., जैवे. (२४.५x११.५, १८४६०-६६). " १. पे. नाम गौतमस्वामी रास. पू. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४ आदि गुण गाव गोतमतणा लब्ध; अंति: रायचंदजी ० चोमास जी, गाथा १३. ८७६३१. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५.५४११, १५४४४-५०). " २५३ २. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि राजग्री नगरीरो वासी अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) " ८७६२९ (#) पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५.५४११.५, १५-१६x४२-५२). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्म, आदि: सरसति सूमति आपे अंतिः कवि कुसललाभ० गोडी धणी, गाथा १६. , - ८७६३०. वामणवाड स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, दे. (२५.५x११, २१४५१-५५). , महावीर जिन स्तवन- बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः समरवि समरवि सारदाय अंति कमलकलससूरीश्वर सीस, गाथा - २१. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली हुं; अंति: समयसुंदर ० परिसिध, बाल-५. ८७६३२. रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अंत में ज्योतिष संबंधी अस्पष्ट लेखन है., दे., (२५X११.५, ११४३५). For Private and Personal Use Only रोहिणीतप स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नक्षत्र रोहिणी जे; अंति: पद्मविजय गुण गाय, गाथा-४. ८७६३३. धन्ना अणगार, बावच्चाकुमार व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, ले. स्थल, पिपाड, प्रले. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: नेमनाथ, जैवे. (२५४१०.५, १८-१९४४४-४८). " १. पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. धन्ना अणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंति: गाया हे मन में गहगही, गाथा - २२. २. पे. नाम. थावच्चाकुमार सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि नेमजिणंद समोसर्या रे; अंतिः संयम भार रे सोभागी, गाथा- ७. ३. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि मन वच काया करे जे अंति भाजि गयो विखवाद, गाथा- १०. ८७६३४ (#) शिवपुरनगर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८२८, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. फलोदि, प्रले. सा. जीउ आर्या (गुरु सा. जेठाज आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५x११, १७x४६-४८). Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि हो अहो सीधसीला सगला, अंति: नीवारो कीरपानाथेजी, गाथा १६. ८७६३५. सुधर्मास्वामी गीत व नालंदापाडा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्रावि. सरूपा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, २०४४२-४६). १. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ० " मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८३९, आदि: भरतक्षेत्रमे भलो; अति रावचंद हरख हुलासो जी, गाथा- १२. २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन- नालंदापाडा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: मगध देशमाहि विराज; अंति: ग्यानतणो प्रकासो जी, गाथा-२०. ८७६३६. जैमलऋषि गुणवर्णन, संपूर्ण, वि. १८७८, आश्विन शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. चंदु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १६x४०-४४). जैमलऋषि गुणवर्णन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्यजोगे ग्यानी मोन; अंति: राय०जैमलजी मैमा जाजी, गाथा - १३. ८७६३७. महालक्ष्मी व अंबिकादेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. सिद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १६x४४-४६). ९. पे. नाम महालक्ष्मी स्तोत्र- पद्मपुराण, पृ. १अ संपूर्ण पद्मपुराण-महालक्ष्मी स्तोत्र, हिस्सा, क्र. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: पद्मासने गजारूढा; अंति: लक्ष्मी तव गृहे, लोक-१०. २. पे नाम अंबिकादेवी स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. पुण्य, मा.गु., पद्य, आदिः ॐ जय जय अंचिका माई अति पुण्य० नमो आणंद, गाथा- ११. ८७६३८. (*) अंतरीक पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, अमदावाद, प्रले. श्राव. सवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, ११३४-४४). पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: हां जी दख्यणदेसें; अंति: नायसागर० जिनराजे रे, गाथा-८. ८७६३९. (*) २४ तीर्थंकर कल्याणक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी कलाण, संशोधित, जैये. (२५.५४११.५, १८४४४-४८). २४ जिन पंचकल्याणक तिथि व जाप, सं., गद्य, आदि: कार्तिक वदि ५ संभव, अंति: नमिनाथ इकिसमा को चवण. ८७६४०. (+) निश्चयव्यवहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. सादडीनगर, प्र. वि. श्रीचिंतामणीजी प्रसादात्., संशोधित, जैवे. (२४.५४१०.५, १३४४२-५०% निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनवर रे देशना अंति: वीतराग एणि परे कहे, गाथा - १६. ८७६४१. (+) सीतासती व जिनराजसूरि गीत संग्रह, संपूर्ण वि. १६८२ आश्विन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ६, ले.स्थल. आगरानगर, प्रले. ग. आनंदकीर्ति वाचक; पठ. श्रावि. देउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १४X३२-३८). १. पे. नाम सीता गीत पृ. १अ संपूर्ण. " सीतासती गीत, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: लखमणजी रा वीराजी हो; अंति: राजसमुद्र कहइ रे, गाथा-८. २. पे नाम. जिनराजसूरि गीत पू. १अ १आ, संपूर्ण १अ-१आ, जिनराजसूरि गुरुगुण गीत- खरतरगच्छाधिपति, मु. आनंदकीर्ति, रा., पद्य, आदि: भद्रसेनजीरा वीरजी हो; अंतिः आनंदकी० दुख मेटिस, गाथा ५. ३. पे. नाम. जिनराजसूरि गीत, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. जिनराजसूरि गुरुगुण गीत-खरतरगच्छाधिपति, मु. आनंदकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु गच्छनायक जिण; अंति: आनंद० दिन सफल विहाण, गाथा- ७. For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४. पे. नाम. जिनराजसूरि गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. जिनराजसूरि गुरुगुण गीत-खरतरगच्छाधिपति, मु. आनंदकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: करि जोडि जोसी पूछती; अंति: गावतां आनंदकीरति थाइ, गाथा-६. ५. पे. नाम. जिनराजसूरि गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जिनराजसूरि गुरुगुण गीत-खरतरगच्छाधिपति, मु. आनंदकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: देखउ माई सोभा मेरइ; अंति: सदा संघ सयल सुखकार, गाथा-५. ६. पे. नाम. सीतासती गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: जब कहइ तुझ बनवास रे; अंति: आज नवल जस तेहनउ, गाथा-५. ८७६४२. नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:नववाड., दे., (२५४११,१२४४०-४४). नववाड सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: नववाड कही जिनराज सही; अंति: होय जावे नरनारी, गाथा-११. ८७६४३. सिद्धसहस्रनामवर्णन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१०.५, ११-१३४४०-४४). सिद्धसहस्रनामवर्णन छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जगनाथ जगदीस जगबंधु; अंति: मांहि निज दृष्ट देवी, गाथा-२१. ८७६४४. (+#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९५, माघ कृष्ण, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. गुलर, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ढालनारकी., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १६४३७-४३). औपदेशिक सज्झाय-नरकदःख वर्णन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर भाखीयो आणी; अंति: छाल रे पापी जीवने रे, ढाल-१, गाथा-१९. ८७६४५. गजसुकुमाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११, २७४५०-५४). गजसुकुमालमुनि चौपाई, मु. माधव, मा.गु., पद्य, आदि: रिठनेमि नामे हुवा; अंति: माधव० आण रिदय विवेक, __ढाल-१५. ८७६४६. चतुर्विंशतितीर्थंकर प्रतिमास्थापन यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १४४४०-४८). २४ जिन राशि नक्षत्र योनि गण वर्ग हंसक विवरण कोष्टक, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). ८७६४७. (+) वीरदसोटन विधि व अक्षरार्थ गाथा सह अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. रणधीर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, २३४५२-६०). १.पे. नाम. वीरदसोटन विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ७, गुरुवार, ले.स्थल. अकबराबाद. वर्धमानजिन नामकरण आश्रयी भोजन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे भोजन नीयुक्ति; अंति: नाम दीधो वर्धमानकुमर. २. पे. नाम. अक्षरार्थ श्लोक संग्रह सह अर्थ, पृ. २अ, संपूर्ण, वि. १९२०, आश्विन शुक्ल, ३, बुधवार. अक्षरार्थ श्लोक संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: बावन अक्षर हे सखी; अंति: लभते परमं पदम्, श्लोक-८. अक्षरार्थ श्लोक संग्रह-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बावन अक्षर मिली ददा; अंति: परे पांचांनो जाणिवो. ८७६४८ (+#) नववाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११,१४४३२-४०). नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ से है व ३ तक लिखा है.) ८७६४९. (2) आदिजिन स्तवन व अइमुत्तामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १५४४०-४६). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-बृहत्श–जयतीर्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. म. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमिय सयल जिणंद; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ __ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम, अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: लिखमीरतन० ना पाया, गाथा-१८. For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७६५० (+) आर्द्रकुमारमुनि चउढालीयो, संपूर्ण, वि. १७२८, कार्तिक शुक्ल, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. हाजीपुरपट्टण, प्रले. पं. समयमाणिक्य (गुरु ग. मतिरत्न, बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १७X५०-५४). आर्द्रकुमारमुनि सज्झाय, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: सकल जैन गुरु प्रणमु; अंति: कनकसोम० सव सुखकार, ढाल-५, गाथा-४७. ८७६५१. गुरुविहार भास, नवपद तपविधि व यंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४११.५, ११४२९). १. पे. नाम. गुरुविहार भास, प. १अ-१आ, संपूर्ण. पंन्या. खिमाविजय , मा.ग., पद्य, आदि: आज रहो मनमोहन तुमने; अंति: जिनसासनमां सोहार रे, गाथा-९. २. पे. नाम. नवपद वर्णानुसार आयंबिलतप, पृ. १आ, संपूर्ण. नवपद वर्णानुसार आयंबिलतप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहेले पदे आंबेल धोलु; अंति: पदे धोलु आंबेल करवु९. ३. पे. नाम. मंत्र-यंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ८७६५२. नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:नववाड., दे., (२५४११, १२४३१-३६). नववाड सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: नववाड कही जिनराज सही; अंति: होय जावे नरनारी, गाथा-११. ८७६५४.(-) ज्ञान पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११.५, २१४५५-५६). औपदेशिक ज्ञानपद, मु. मनोहर, मा.गु., पद्य, आदि: गान पदइ सरवणसंणा रे; अंति: मनोहर० करो भगवंतजी, (वि. प्रतिलेखक ने ७ के बाद गाथांक अस्तव्यस्त लिखा है.) ८७६५५ (4) पंचपद महिमा, ३ आंगुलमान गाथा व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५२). १. पे. नाम, पंचपद महिमा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. म. राम ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: सर्व आगमसार श्रीनव०; अंति: वहु जन्म के पातक खपै, गाथा-२९. २. पे. नाम. जिन ३५ वचनातिशय स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. ३५ जिनवाणी अतिशय स्तवन, उपा. पुण्यसागर, अप., पद्य, आदि: विणयगुण पणयजणजणिय; अंति: सामि सफली होइज्यो, ढाल-२, गाथा-२७. ३.पे. नाम. पार्श्वनाथ समवसरणाधिकार स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण, ले.स्थल. वीदासर. पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासनसेहरो जग; अंति: पाठक धरमवरधन धार ए, ढाल-२, गाथा-२८. ४. पे. नाम. ३ अंगुलमान गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: परमाणुं तसरेणुं रहरे; अंति: वीरस्सायंगलं भणियं, गाथा-३. ८७६५६. (+) क्षमाछत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १९४४५-५०). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव खिमागुण; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा-३६, संपूर्ण. ८७६५७. (-) हनुमान ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. कुसाला (गुरु सा. जसुजी महासती); गुपि. सा. जसुजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४१०.५, १८४४०). हनुमान ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: रावणनो चाकर सूग्रीव; अंति: हो घणु काम विकार, गाथा-३६, (वि. गाथांक अस्तव्यस्त लिखा है.) ८७६५८. (+) अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ८४३१). अजितजिन स्तवन, मु. नरसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिनेसर वांदता; अंति: नरसुंदर० अविचल राज, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २५७ ८७६५९. (+) आदिजिन पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १०४३१). आदिजिन पंचकल्याणक स्तवन-बीकानेरमंडन, म. थिरहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणेशर पय नमी; अंति: पूरवौ वंछित सदा, गाथा-२६. ८७६६० (+) नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. केसरविजय (तपगच्छ); पठ. श्रावि. कीलाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ८०, जैदे., (२५४११.५, १३४५०-५७). नमस्कार महामंत्र,शाश्वत ,प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत प्रति माहरो; अंति: भणी सिद्ध वडा कहीइं. ८७६६१ (+#) पार्श्वजिन स्तवन व श्रेयांसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १५४४६-५०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सावरनगरमंडण, पं. भीमचंद पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनव अमृतवेला कंदो; अंति: भीमचंद गुण गाया रे, गाथा-७. २. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. राम, मा.गु., पद्य, आदि: हो श्रेयांसजी जिनराय; अंति: राम० दरसण देव दिखाय, गाथा-७. ८७६६३. गिरनारतीर्थोद्धार रास, अपूर्ण, वि. १७२८, श्रावण कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. सिद्धसोम गणि (गुरु आ. विशालसोमसूरि); पठ. सा. लालबाई (गुरु सा. कमलसुंदरी); गुपि. सा. कमलसुंदरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीविशालसोमसूरिगुरु प्रसादात्., जैदे., (२५.५४११, ११४२८). गिरनारतीर्थोद्धार रास, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: आपि सुख मंलग मुदा, ढाल-१३, गाथा-१८०, (पू.वि. गाथा-१७२ अपूर्ण से है.) ८७६६४. (#) ऋषभदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. हीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४११.५, १५४४७). आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाभिकुलगर कुल नभचंद; अंति: ज्ञानचंद० कोइ न तोले, ढाल-२, गाथा-२६. ८७६६५. आदिजिन स्तवन व साधु आचार बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३३). १.पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाभिकुलगर कुल नभचंद; अंति: ज्ञानचंद० कोई न तोलइ, ढाल-२, गाथा-२६. २.पे. नाम. साधु आचार बोल संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ५२ अनाचार वर्णन-साधु जीवन के, मा.गु., गद्य, आदि: उदेसी आहार लै तो अणा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल ३० अपूर्ण तक लिखा है.) ८७६६७.(-) चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१०.५, १४४२६-२८). चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: चंदा परभुजी चत मोवो; अंति: मुजे न तारोजी, गाथा-११. ८७६६८. (+) शनिश्चर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ११४३०-३५). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अही नर असुर सुरांपती; अंति: जपता अलगि टले आपदा, गाथा-१७. ८७६६९ (#) विजयधर्मसूरि गहंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४३६-४१). विजयधर्मसूरि गहुँली, मु. बुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविजयधर्मसूरीसरूं; अंति: बुद्धिकुशल जयकार, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७६७० (+) २० स्थानकतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १३४४२-४५). २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीशस्थानक तप सेवीयै; अंति: कहै वसतो मुनिवरो, ढाल-३, गाथा-१८. ८७६७१ (+) पार्श्वजिन स्तवन, करकंडुमुनि सज्झाय व विशालसोमसूरि भास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १५४३७). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हेस्वर मुझ वीनती; अंति: कहइ सेवक जनराज रे, गाथा-७. २. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी अति भली हुं; अंति: वांदणा हूं वारी लाल, गाथा-६. ३. पे. नाम. विशालसोमसूरि भास, पृ. १आ, संपूर्ण... मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात पसाउ लइरे; अंति: तारे सेवक दइ आसीस, गाथा-७. ८७६७२ 4) महावीरजिन १० स्वप्न स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१३, माघ कृष्ण, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. साहेपुरा, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १०-१२४३४). महावीरजिन १० स्वप्न स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: सासणनायक समरीयै रे; अंति: सुत्त भगोतीरी साख, गाथा-१२. ८७६७३. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, ११४३३). महावीरजिन स्तवन-पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महावीरजी प्रभु घर आव; अंति: सुभवीर वचनरस गावे रे, गाथा-८. ८७६७४. (+) आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १३४३०). नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणंद जुहारीय मन; अंति: पद स्वामि समरण पाईयइ, ढाल-४, गाथा-३२. ८७६७५. सीमंधरजिन स्तुति, शांतिजिन स्तुति व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, १२४३२). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर स्वामी यो; अंति: ते सुखकरो श्रृतदेवता, गाथा-४. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-ब्राह्मीपुरमंडण, आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ब्राह्मीपुरमंडण सोलम; अंति: सांनिधि कर सुरराणी, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दयातणो सायर मुगति; अंति: तणे चितसमाधि पूरै, गाथा-४. ८७६७६. नवकार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४११, १३४३२-३५). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पेहिलौजी लीजीइं; अंति: कोई नही आधार कि, गाथा-२१. ८७६७७. (#) पांचमा आरारी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:पांचमाअरारी., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३५). पंचमआरा सज्झाय, म. जिनहंस, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गौतम सुणो; अंति: जिनहंस० वयण रसाल रे, गाथा-२१. ८७६७८. महावीरजिन स्तवन व जिनभक्तिसूरि भास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, ११४२६-३३). For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org १. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सिद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: वदन अनोपम चंदा निरखं; अंतिः प्रणमै सिद्ध सदाई रे, गाथा - ७. २. पे. नाम जिनभक्तिसूरि भास, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि पंधीडा कहोने जी बात अति हो सेवक वीनवे जी गाथा ८. " ८७६७९ स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ८. जैदे. (२४४११.५ १३४४२-४५). १. पे. नाम आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदि : आज तो बधाइ राजा नाभि; अंति: निरंजन आदिसर दयाल रे, गाथा ६. २. पे नाम शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पू. १अ. संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि विमलाचल नित बंदीये, अंति तेह नर चिर नंदे, गाथा-५. ३. पे. नाम शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आतमराम किण दिन; अंति: दिन परमानंद पद पासुं, गाथा-७. ४. पे नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविनोद, पुडिं, पद्य, आदि गोतम पुछत श्रीजिन; अति भगति करो भगवानकिं, गाथा- ७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणी हो कहे सुण; अंति: जंपे हो बहु सुख पाया, गाथा-६. ६. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कुसलवर मंदरु ए; अंति: ए दिन दिन वाधे नूर, गाथा-८. ७. पे नाम पार्श्वजिन पद. पू. २अ-२आ, संपूर्ण मु. उदयसागर, पुहिं., पद्य, आदि: अब हम कुं ज्ञान दीयो; अंति: ऋद्धि दियो मुझ कुं, पद-८. ८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लोक चउद के पार; अंति: चरन चरन की दासा हे, गाथा-४. ८७६८०. मौनएकादशीपर्व, गुरुपरंपरा व अष्टमंगल स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. प्रीतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२४.५x११, ११४३६) १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि एकादशी अति रुअडी; अति निवारो संघतणा निशदिश, गाथा-४. २५९ For Private and Personal Use Only २. पे. नाम. गुरुपरंपरा गुण स्तुति-तपागच्छीय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.से., पद्य, आदि परमानंद विमल वरदाई अति पुण्यविजयातनयाप्तजात, गाथा-२. ३. पे. नाम. अष्टमंगल स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि सत्धीयनंदावत्तजुत्तभ; अंति: जुत्त सुरवित्त महेसर, गाथा - १. ८७६८१. चक्रवर्ति ऋद्धि विचार व शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६५, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, ले. स्थल. मंदसोर, प्रले. पं. चतुर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५x११, १२x४१). १. पे नाम, चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, प्र. १अ संपूर्ण. प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि चोरासीलाख हाथी; अंति: चक्रवर्ति रीघ भोगवे. २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: डुंगर थंडो रे डुंगर, अंति: होसी अति उछरंगो रे, गाथा - ८. ८७६८२. महावीरजिनशासने ऐतिहासिक घटना वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४४११, २१X३८). महावीरजिनशासने ऐतिहासिक प्रसंग वर्णन, मा.गु., सं., गद्य, आदि: श्रीवीरात् केवलात् १४; अंति: ते सत्य जाणवा. ८७६८३. ज्योतिष गण प्रिति विचार व ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२४४११.५, १३X३४-३७). Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. ज्योतिष गण प्रिति विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष *, पुहि.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: मेषराशि से पूर्वा; अंति: कलहो देव राक्षसा. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ८७६८५. सिद्धचक्र स्तवन व गुरुगुण गहंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. उदयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५,१३४३८). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराहीइ जिम; अंति: हो कहे नय कविराज के, गाथा-७. २. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गुहली करो गुरु आगले; अंति: पामे सुभ भव पार रे, गाथा-८. ८७६८६. सिद्धाचल स्तवन व श्रावकदिनकृत्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२४.५४१०.५, १०x२६-२८). १. पे. नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ___ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: अमृत वचने रे प्यारी; अंतिः स्तवीयो गिर सोहंकर, गाथा-२८. २. पे. नाम. श्रावकदिनकृत्य सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्नजिणाण आणं १; अंति: निच्चं सुगुरुवएसेणं, गाथा-५. ८७६८७. (+) स्तुति, पद व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१३.५, ११४३५). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत; अंति: निधि प्रगटै चेतन भूप, गाथा-६. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामि चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिनवर विहरमान; अंति: कारण परम कल्याण, गाथा-३. ३. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव देशे दीपतो; अंति: तीरथ करण कल्याण, गाथा-३. ४. पे. नाम, सिद्धाचल चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन नमत कल्याण, गाथा-३. ५. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: सोयो तूं बहुत दिन; अंति: इहै सिवमांगरे, गाथा-३. ८७६८८. (#) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:चेलाने दिख्या विधि., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ११४२५-२७). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम ठवणी मांडीयै; अंति: विघ्न विघात दक्षाः. ८७६८९ वर्द्धमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८७, श्रावण कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, ९४३०). महावीरजिन स्तवन, मु. जयसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सखी माहरु मन मोह्यं; अंति: तुम आणा सिर वहे रे, गाथा-७. ८७६९०. महावीरगोतमसंबंध चउढालीयो, संपूर्ण, वि. १९०३, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४.५४११.५, १७४४८-५०). For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org २६१ महावीरजिन चौडालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य वि. १८३९, आदि सिद्धारथ कुल उपना, अंतिः दीवाली रे दिन ए, ढाल ४, गाथा - ५५. " ८७६९१. (+) बँकचूल रास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५x११, १९x४६-५०). कचूल रास, मा.गु., पद्य, आदि आदिजिनवर आदिजिनवर, अंति: सकल संघनी पूरइ आस, गाथा- ९८. ८७६९२. (*) पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन गाथा, २१ मिथ्यात्त्व भेद व सम्यक्त्व ८ वचन भांगा, संपूर्ण, वि. १७३६, माघ शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५X११, १२३१-३४). १. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन गाथा, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. प्रा.सं., पद्य, आदि : बारस गुण अरिहंता; अंति: उवसग्ग सहणं च २७, गाथा-१. २. पे. नाम. २९ मिथ्यात्व भेद, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: लौकिक देवगत मिथ्या; अंति: मुत्तसन्ना २१. ३. पे. नाम. सम्यक्त्व ८ वचन भांगा, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि न जाणहं न आदर न अंति: ३ सुश्राविका ४. ८७६९३ (१) बुद्धि रास, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. चलोडानगर, प्रले. पं. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : बूधरास अंत मे "श्री जीराउलापार्श्वनाथ" लिखा है., संशोधित, जैवे. (२४.५x११, ११x२६). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवी अंबाई पंच; अंति: सफल करो संसार तो, गाथा-६५. ८७६९४. (+) अतिचार आलोयणा व स्तुति संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ९, प्रले. पं. नथमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२४४११, १२X४०). " १. पे. नाम. अतिचार आलोयणा, पृ. १अ, संपूर्ण. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि आजूना च्यार पुत्र अति मिच्छामि दुक्कई. ; २. पे. नाम नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि सुर असुर बांदु पाय; अंति: मंगल करे अंबक देवीय, गाथा- ४. ३. पे. नाम. शीतलजिन स्तुति, पू. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सुख समकित दायक कामित; अंति रीये कहे जिनलाभसूरीस, गाथा ४. ४. पे नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण, ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि निरुपम सुखदायक जग; अंतिः श्रीजिनलाभसुरिंदा जी, गाथा-४. ५. पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि विश्वनायक लायक; अंतिः यपे होज्यो जयजयकारी, गाथा-४. ६. पे नाम. पर्जूषणा स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पर्युषण पर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि बलि वलि हुं घ्याउं अंति कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४७. पे. नाम जिनदत्तसूरि स्तुति- खरतरगच्छीय, पृ. ३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि दासानुदासा इव सर्व अंतिः प्रधानो जिणदत्तसूरि, श्लोक १. (२४.५x११, १९४३९) १. पे. नाम च्यार निक्षेपा विचार, पू. १अ संपूर्ण. ८. पे. नाम. चतुर्विंशति तीर्थंकर स्तुति, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र, अंति: जिनप्रभूसूरि० गंहर, श्लोक ९. ९. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति- फलवर्द्धितीर्थ, आ. जिनसिंहसूरि, मा.गु., पद्य, आदि परतापूरण चिंताचूरण; अति विघन हरो नितमेव गाथा ४. ८७६९५. (+) ४ निक्षेप विचार व १४ पूर्व नाम - विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६२ www.kobatirth.org कैलास 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४ निक्षेप विचार, प्रा., मा.गु., प+ग., आदि: (१) नामनिक्षेप १ स्थापना, (२) नामजिणा जिणनामा ठवण; अंति: दृष्टांत छइ, गाथा - १. २. पे. नाम. १४ पूर्व नाम-विवरण, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. १४ पूर्व नाम, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: सर्व द्रव्य पर्यायनउ अति लोकबिंदुसार पूर्वं १४. ८७६९६. (+) पुण्यपाप कुलक, २२ अभक्ष्य नाम व लोट मिश्रण काल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५X११, १५X४०-४२). १. पे. नाम. पुण्यपाप कुलक सह गाथार्थ, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा. पद्य वि. १५वी, आदि छत्तीसदिनसहस्सा वास, अंतिः पणवीसुस्सास , उस, गाथा १२. पुण्यपाप कुलक- अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि छत्तीस हजारदिन सीवरस अंतिः काउसी बांधे. २. पे. नाम. २२ अभक्ष्य नाम, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: बड१ पीपल२ प्लक्ष३; अंति: छाछ प्रमुख कालातीत. ३. पे. नाम लोट मिश्रण काल, पू. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रावण भाद्रवे ५ दिन; अंति: पछै अचित्त थायै. ८७६९७ नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. गुडली, प्रले. हरनाथ पठ. नानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५X११, १०X३१). (२४.५X११, २०x४४-५५). १. पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण.. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 " मराजिमती स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नीरंजन यार वो टुक; अंति रूप० दील भर यार वो गाथा ५. ८७६९८ (४) अक्षरबावनी व पद संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे ४, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जै.. " मु. . केशवदास, पुहि., पद्य, वि. १७३६, आदि ॐकार सदा सुख देउतहि, अंति केसवदास सदा सुख पावै, गाथा- ६२. २. पे नाम औपदेशिक पद, पू. ४अ, संपूर्ण मु. केशवदास, पु,ि पद्य, वि. १८वी, आदि जा घरि तेल फूलेल; अंति: मजूर कुं काहे सतावे, गाथा २. - ३. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. कान्ह, पुडिं, पद्म, आदि सुनो रे आलम के वार अति: कान्ह ज्ञान जग है, पद- १. ४. पे नाम प्रास्तिविक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक पद पु,ि पद्य, आदि सत्तावीसहसातत्रणि अति एता तुम्ह रख्या करूय, पद-१. " ८७७०० ५६३ जीव भेद विचार, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे. (२४.५४११, १८४४७). " "" ५६३ जीवभेद विचार, पुहिं., मा.गु., गद्य, आदि भरत क्षेत्र में जीव अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. क्रमांक १८ "दस भेद वरज्या एवं १५३ तक लिखा है.) ८७७०१. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२०.५x११.५, १२x२८). सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरमणी सम सहु मंत्र अति अनुपम जस लीजे रे लो, गाथा - १३. ८७७०२ (P) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५X११.५, १८४५२). " औपदेशिक सज्झाय-साधुसंगति, मु. दया, मा.गु., पद्य, आदि: साधूजी नगरी आया परा; अंति: कहै० पासी सुख अपार, गाथा ३८. ८७७०३. ४ मंगल रास व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X११, २३४५७). १. पे. नाम. ४ मंगल रास-ढाल ३ व ४, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २६३ ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-४ के दहा-२ तक लिखा है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. समुद्रविजय, पुहिं., पद्य, आदि: एक तो काया हर दुजी; अंति: करणी जग में सार, गाथा-१३. ८७७०४. महावीरस्वामी स्तवन व संवर सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १९४४६). १. पे. नाम. महावीरस्वामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणउ मोरी वीनती; अंति: समयसुंदर० भुवनतिलो, गाथा-१९. २. पे. नाम. संवर सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-संवर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर गोयमने कह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८७७०५. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४११, १५४३७). १. पे. नाम. गोडीपार्श्व छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशें; अंति: कांति० नमो गोडी धवल, गाथा-३७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, पृ. २आ-४अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मु.जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: गुण जिनहरष गावंदा है, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से २४ अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. ४. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: रूपविजय० फल लीधो जी, गाथा-१०. ८७७०६. दीवाली स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, जैदे., (२५४११.५, १०४३७-४१). दीपावलीपर्व सज्झाय, पं. हर्षविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन मंगल तेरसको दि; अंति: हरखे हरख दीवाली रे, गाथा-८. ८७७०७. गोपीचंदराजारी ढाल, संपूर्ण, वि. १९०८, कार्तिक कृष्ण, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. खाचरोध, प्रले. सा. छोटी आर्या; पठ. श्रावि. उमाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११, १४४२७). गोपीचंदराजा ढाल, पुहिं., पद्य, आदि: ऊंची सीतोमडी रे गोपी; अंति: हंव जहजकारो रे लो, ढाल-७. ८७७०८. ककाबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, "ट.घा., जैदे., (२४.५४११, १०४३०). कक्काबत्रीसी, पुहिं., पद्य, आदि: क का कीजइ काम धरम; अंति: लिख्या अंक जे निरमया, गाथा-३१. ८७७०९ २४ जिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११.५, १३४४०). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. ८७७१० (4) औपदेशिक, सेजेजा, पार्श्वजिन गीत व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १४४४६). १.पे. नाम. नणद भोजाई गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, मु. आनंदवर्द्धन, पुहि., पद्य, आदि: देह देह नणद हठीली; अंति: आणंदवर्द्धन० याणी री, गाथा-२३. २. पे. नाम. से@जा गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: शेजानो वासी; अंति: कवियण भव पार उतारो, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. माग., पद्य, आदि: आजनै वधावो हे सहीयर; अंतिः प्रज भलै सुविहांण, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. जंघाल विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सींधो प.८ तांबाको; अंति: जंघाल चोखी थायै, गाथा-३. ८७७११. भक्तामर स्तोत्र मंत्राम्नाय, संपूर्ण, वि. १८६९, वैशाख कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १५४३९). भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम बे काव्य आदेसर; अंति: मनोवांछीत फल पामीइ. ८७७१२. (+) २४जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, १४४४०). २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सीवर सीवर जिणराज सीव; अंति: दुखदालिद्र हरी जाव, गाथा-२०, (वि. गाथा-१२ के बाद गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है. गिनकर लिखा गया है.) ८७७१३. (#) दीपावलीपर्व स्तुति व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. लालाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, ११४२२-३०). १. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंडित. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ए दीवाली परव पनोतु; अंति: सकल संघ आणंदा जी, गाथा-४. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___गु., पद्य, आदि: तमे जरा औनें आवो रे; अंति: रे परघर पेट भरे छे, गाथा-२. ८७७१४. ३२ असज्झाय विचार, भास व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२४४११, १४४४२). १.पे. नाम. ३२ असज्झाय विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ३२ असज्झाय विचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: ●हरि पडे तासीम; अंति: असिज्झाई पहुर १२ ताई, गाथा-३२. २. पे. नाम. असज्झाय भास, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: संध्याकालि अने परभात; अंति: विना मम करु सिज्झाय, गाथा-२१. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. मंत्र-औषधसंग्रह, सं.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८७७१५. स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १४४४०). १. पे. नाम. श्रीपतिपद्यतौ चतुर्विंशित बलानि सुगमप्रकार, पृ. १अ, संपूर्ण. ग्रह उच्चबल २४ सुगम प्रकार श्लोक, सं., पद्य, आदि: नीचो निता ग्रहा; अंति: कलाद्यं बलमुच्चज, श्लोक-१. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन - शंखेश्वर, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: तत थेई तत थेई राज; अंति: वाजे रे तस घर जीत जस, गाथा-९. ३. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी न जाईयइ परि; अंति: परघर गमण निवारि, गाथा-१०. ८७७१६. (+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, ८x२८). जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भविका श्रीजिनबिंब; अंति: श्रीजिनचंद सवाइ रे, गाथा-११, (वि. गाथांक नहीं है.) ८७७१७. (#) माणिभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १०४२७). माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती; अंति: लाख लाख रीजों लहै, गाथा-२२. ८७७१८. (4) पंचसहेली रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, २१४५४). __ पंचसहेली रास, क. छहल, पुहिं., पद्य, वि. १५७५, आदि: देख्या नगर सुहामणा; अंति: वरनवी छीहल कवि परगास, गाथा-६६. ८७७१९ राजुलरहनेमि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१७, वैशाख कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल, भरतपुर, दे., (२५४११.५, १६x४६). राजिमतीसतीइकवीसा, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: शासननायक समरिये; अंति: हो पीपार गाम मझार, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २६५ ८७७२० (+#) सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११.५, १३४३२). सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद० वंदु मन; __ अंति: कहै मुनि इम धर्मसी, ढाल-६, गाथा-३४. ८७७२१. राईपडिकमण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४११, १२४३४). राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम अरियावही; अंति: केवू सामायिक पारवं. ८७७२२. (2) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मोती; अन्य. सा. लाबाजी आर्याजी; सा. चंपाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १८४३४-३५). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: मोह मिथ्यात की नींद; अंति: रिषि जैमल कहे एम जी, गाथा-३५. ८७७२३. (4) आध्यात्मिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १०-१२४३२-३४). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू राम राम जग गावे; अंति: रमता अंतर भमरा, गाथा-४. २. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नाम हमारा राखे; अंति: मुरत सेवकजन बल जाइ, गाथा-४. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: मारै गुरां दीनो माने; अंति: पद फरसो जामनमरन टरी, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: चरखा चलता नांहि बे; अंति: होगा भूदर चेत सवेरा, गाथा-५. ८७७२४. पार्श्वजिन व माणिभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी अस्पष्ट है., दे., (२४४१०.५, १५४३२-३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन संपओ सारदा; अंति: इम तवीयो छंद देशंतरी, गाथा-४७. २. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सूरपति नती सेवीत सभ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१८ तक लिखा है.) ८७७२५ (+) जिनप्रतिमाहुंडी रास, संपूर्ण, वि. १९०३, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. जालंधर, प्रले. पं. वृद्धिचंद (गुरु मु. देवीचंद); गुपि. मु. देवीचंद; अन्य. पं. श्रीचंद (गुरु मु. देवीचंद); पठ. श्रावि. वरजकुवरबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:प्रतिमा., संशोधित., दे., (२३.५४१०.५, १४४३१). जिनप्रतिमाहंडी रास, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुयदेवी हीयडै धरी; अंति: जिनहर्ष कहंत के, गाथा-६७. ८७७२६. बुधरसाधु रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १६४३९). बुधरसाधु रास, मा.गु., पद्य, वि. १८५१, आदि: अरिहंत सुधने साधजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ तक लिखा है.) ८७७२७. (4) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४.५४११.५, १२x२५). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. ८७७२८.(+) वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, ११४२८). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, म. राजसमद्र, रा., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रीउडो; अंति: नारी वीण सोभागी रे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७७२९. (+) सुभद्रासती चौढालियो, संपूर्ण, वि. १८७८, फाल्गुन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. हलसुरि, प्रले. मु. अमरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सुभद्रासती. अन्त में 'रुगनाथकी है' लिखा है., संशोधित., जैदे., (२४४११, १७X४५). सुभद्रासती चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: सिवसुखदायक लायक सदा; अंति: मुल मर्म धर्मनो ए, ढाल-५. ८७७३० (+#) नेमिजिन रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. वीराजी आर्या, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३४). नेमिजिन रास, पं. कमलकीर्ति गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमिय सारद सामिणी गउ; अंति: कमल सुखकारो रे, गाथा-१६. ८७७३२. अष्टमीतिथि व बीजतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४११, ११४३९). १.पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: नय० कोडी कल्याण जी, गाथा-४. २. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: लबधि० पूरि मनोरथ माय, गाथा-४. ८७७३३. (+) ५६३ जीवना भेदनी गतागत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १३४४०). ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहलि नरके २५नी आगत; अंति: पुसक पणि भेला लेवा. ८७७३४. ४ मंगल पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १२४३८). ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धारथ भूपति सोहिए; अंति: उदयरत्न भाखे एम, (वि. गाथा-४ में ही कृति पूर्ण कर दी है.) ८७७३५ (+) आदिजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पंडित. खूबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:छंदपत्र छे., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०.५, ११४३७-४०). आदिजिन छंद-शत्रुजयतीर्थ मंडन, मु. कविराज, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीगणधर जिनकुशलगुरु; अंति: कविराज०हो धन खरतरधणी. ८७७३६. औपदेशिक व६ लेश्यादृष्टांत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७११, भाद्रपद शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे.२, प्र.वि. लिखावट से प्रत २०की प्रतीत होती है, संभव है कि वि.सं.१७११ में लिखी प्रत की प्रतिलिपि हो., जैदे., (२४.५४११, ३६४१७-२१). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-तत्त्वज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमी वीरजिण; अंति: रहि कही गाय रिंग, गाथा-१५. २. पे. नाम. ६ लेश्यादृष्टांत सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. इंद्र शिष्य, रा., पद्य, वि. १७११, आदि: वंदीत वीरजिणंद रे; अंति: इंद्रनो० आणंद लहीजे, गाथा-१५. ८७७३७. महावीरजिन, शांतिजिन स्तवन व बृहस्पति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४१२, १५४३०). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रंगविजय, मा.ग., पद्य, आदि: प्रभुजी वीरजिणंदने; अंति: भवोभव तम पाय सेव हो, गाथा-५ २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेशर साहिबा; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-५. ३. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंति: सुप्रति सुप्रजायते, श्लोक-५. ८७७३८. आदिजिन स्तवन व नेमिजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., जैदे., (२४.५४११, १३४४२). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन-शत्रंजयतीर्थमंडन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २६७ मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सयल सुहकर सयल सुहकर; अंति: भणई वयण सुहंकरो, गाथा-२२. २. पे. नाम. नमिराय प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमिजिन सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: देस विदेह सोहामणु; अंति: सहिज०करु सेवा तेहतणी, गाथा-१५. ८७७३९ (#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सिरोही नगर, प्र.वि. हुंडी:निश्चय ने व्यवहार स्थवन., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४२६). शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांतिजिणेसर केसर; अंति: यशविजय जय सिरि लही, ढाल-६, गाथा-४८. ८७७४०. प्रहेलिका पद व गहंली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३२). १. पे. नाम, प्रहेलिका पद, पृ. १अ, संपूर्ण... मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि: वन मे तो जाई राज; अंति: कहो नहीतर देसं गाली, गाथा-९. २. पे. नाम, गुरुगुण गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कुंकुम चंदन छडो रे; अंति: हरख थयो बहुं कोडी, गाथा-१४. ३. पे. नाम. केशी गौतमगणधर गहली, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. केशीगौतमगणधर गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: सावथी उद्यानमां रे; अंति: करी गुहली रंगरसाल रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली पद, पृ. २अ, संपूर्ण. सद्गुरु पद, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयां सहगुरुजीने; अंति: शिवरमणी वेग वरीजै, गाथा-५. ५. पे. नाम. सद्गुरु गहुंली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गुरुगण भास, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु हे सदगुरु; अंति: मानथी सहीरो गावे भास, गाथा-५. ८७७४१. मेदपाट गुण वर्णन, नमस्कार महामंत्र स्तोत्र व नवग्रह जाप संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१८, ज्येष्ठ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. सांगानेरनगर, प्रले. मु. शिवकीर्ति, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीगोडीपार्श्वजी., जैदे., (२४.५४११, १५४४७). १. पे. नाम, मेदपाट गुण वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मेवाडदेशवर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., पद्य, वि. १८१४, आदि: मन धरी माता भारती; अंति: जैनेंद्र० चिर नंद, गाथा-१२. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंगे; अंति: जास अपाररी पीराणी, गाथा-९. ३. पे. नाम. नवग्रह जाप, पृ. १आ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः यः पुरा भ्रष्टराजाय; अंति: भवंतु मे स्वाहाः, श्लोक-१०. ८७७४२. (+) नववाड स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. मु. तेजाजी स्थविर (गुरु मु. भीमजी स्थविर); लिख. नंदकरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १६४२६-४०). नववाड स्तवन, म. दर्गादास, मा.गु., पद्य, आदि: जीण माय कही नवबाड; अंति: दरगद० वरत पालज्यो, गाथा-१०. ८७७४४. (+-) तीर्थंकर-चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वीकानेर, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १२४३६). तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.ग., गद्य, आदि: तित्थयरा गणहारी सुर; अंति: रिधी वृधि मंगलीक वरे. ८७७४५. १६ जिन विनती, २४ जिन स्तवन व १० बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११, १०x२८). १.पे. नाम. १६ जिन विनती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १६ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: रीखभ अजीत संभवसामी; अंति: रायचंद० अलघी करणा, गाथा-१२. २.पे. नाम. २४ जिनवर्ण स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, प्रले. फकीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीगुरुप्रसाद. २४ जिन वर्ण स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: पै उठी प्रभात नमीने; अंति: रायचंद०कोड रे प्राणी, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. १० बोल-धर्म, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदि: दया पालै ते दानेसरी; अंतिः प्रभातमां तमा तमा, अंक-१०. ८७७४७. (4) गणधर इग्यारसदेव वांदवा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पत्रांक अंकित नही है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४५१-५६). गौतमस्वामी चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बिरुद धरी सर्वज्ञy; अंति: तो शुद्ध समकित लहिये, गाथा-३८, (वि. विधिसहित. गाथा वैविध्य.) ८७७४८. आध्यात्मिक हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. भीमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ४४४०). आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसइं छै कांबली; अंति: मुरख कवि ___ देपाल वखाणे, गाथा-६. आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कांबील कहेतां इंद्रि; अंति: नामा कवि इम वखाणै इम. ८७७४९. चैत्यवंदन चौबीसी, संपूर्ण, वि. १८८९, कार्तिक शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ४, प्रले. श्राव. खूमचंद (गुरु पं. उत्तमविजय पंडित); गुपि. पं. उत्तमविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १२४४०). चैत्यवंदनचौवीसी, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहंत धनुष; अंति: बहु जन पाम्या पार, चैत्यवंदन-२४. ८७७५०. दोढसै कल्याणकरो गणणो, संपूर्ण, वि. १९१०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. नागोर, पठ. गणेश, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, १२x२७). मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को., आदिः (१)जंबुद्वीप भरतक्षेत्र, (२)श्रीमहायशसर्वज्ञाय; अंति: (१)नमः श्रीयोगनाथाय नमः, (२)श्रीआरण्यनाथाय नमः. ८७७५१. नमस्कार महामंत्र छंद व साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८१७, पौष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. पं. केसरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १६x४९). १. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध; अंति: कुशललाभ० वंछित लहै, गाथा-१७. २. पे. नाम, साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति-संगीतमय, मा.ग.,सं., पद्य, आदि: धो धो धिधिक्तां; अंति: दांनयुतं धधपमप्पधुनि, श्लोक-४. ८७७५२. पट्टावली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:श्रीजीन पाटवलि छे., दे., (२४.५४११.५, १५४३१). १.पे. नाम. पट्टावली, पृ. १अ, संपूर्ण. पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामि पट्; अंति: (-). २. पे. नाम. लुंकागच्छ पट्टावली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पट्टावली लोंकागच्छीय, रा., गद्य, आदि: साहा लुंकोगच्छ हुऔ; अंति: हरखचंदजी जेचंदजी. ८७७५३. (+) चैत्यवंदन, स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ९,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१०x१०, १०४२४). १. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदायक श्रीसिद्धचक; अंति: एहनो परम विचार, गाथा-३. २. पे. नाम. नवपद चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र देवा; अंति: दीजे नीरमल ग्यान, गाथा-३. ३. पे. नाम. नवपद चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतपद उजल नम् वलि; अंति: पामे परम निधान, गाथा-३. ४. पे. नाम, सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि वीरजिणेसर अति अलवेसर: अंति: सानिध करज्यो मायजी, गाथा-४. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. मु. भूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि नवपद ध्यान धरो भवि अंति: भूपविजय गुण गेह जी, गाथा-४. ६. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: निरुपमसुखदायक जगनायक: अंतिः प्रते दो सुखसाताजी, गाथा-४, ७. पे. नाम चारित्रपद स्तवन, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय चारित्रधर्म, मु. भूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि आठमो चारित्रपद नीत; अति: नमे भुपविजय नीज सक्त, गाथा-८. ८. पे. नाम. ग्यानपद स्तवन, पृ. ३-४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: सातमो ग्यांन तणो पद, अंति: तणा गुण चीत विचारौ, गाथा-७. ९. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्री अरिहंत जपो मनरंग, अंतिः महिमा अगम अपाररी माइ, गाथा - ९. ८७७५४. पार्श्वजिन स्तवन, चूलारोपण मुहूर्त व नेत्रसुरक्षा औषध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२३.५X११, १२X३०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. - पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वा ब्रह्मवादिनी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ११ तक लिखा है.) २. पे नाम. चूलारीपण मुहूर्त, पू. १आ, संपूर्ण . मुहूर्त्त संग्रह, मा.गु., सं., पद्य, आदि आंगल अष्ट सवागजां; अंति छोडणाः बाकीरालीनाः. ३. पे. नाम. नेत्रसुरक्षा औषध, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८७७५५. विमलासती पंचढालियो, संपूर्ण, वि. १८९९, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. देवस्या, जैदे., ( २४.५X१०.५, १९४३६-४२). विमलासती पंचडालियो, मु. कुसालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९८ आदि सासणनायक सीमरीये, अंति कुसालचंद० मन हुलासो, ढाल ५. " "" ८७७५६. ढुंढकमत कुमति उत्थापन चर्चा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२३.५X१०.५, ११X३३-३६). २६९ मु. रूपचंद, पुर्हि, पद्य, आदि कृपा करो गोडी पास अति रूपचंद पदवी पाई, गाथा-५. · २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. कुंडकमत कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहि., प्रा., गद्य, आदि भृमामति कहे हु; अंति (-), (पू.वि. "मन चाह्या काम करे ए प्रगट" पाठ तक है.) " ८७७५७. (*) श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. जैये. (२४४११.५, १५x४२). आवककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तु उठे परभात अति: सागारी अणसण लेसु ए. गाथा - २१. ८७७५८. २४ तीर्थंकरना नाम नक्षत्रादि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. आहोरनगर, प्रले. मु. जालमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३.५x१०.५, १३४५१). २४ जिन नाम राशी जन्मनक्षत्र लंछनादि विचार, मा.गु., को, आदि (-); अति: (-). ८७७५९. (*) स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ६ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४४११, ११×३५-४५), १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. १अ संपूर्ण . For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन पद, म. लाल, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणंदा मोरी निजर; अंति: मुनि ऐलाल कहंदा, गाथा-४. ३. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: मधुवन मे जाय मची; अंति: सुधक्षमा कहै करजोडी, गाथा-३. ४. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंडित. खीमाविजय, पुहि., पद्य, आदि: इक सुण लौ नाथ अरज; अंति: अनुपम कीरत जगतरो, गाथा-५. ५.पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन फाग-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: रंग मचो जिन द्वार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ६. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.. म. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: सब स्वारथ के मित हइ; अंति: ताथे निस्थारा, गाथा-३. ८७७६०. गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १६४३४-३७). गुरुगण सज्झाय, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: सामीजी साहेब सणो; अंति: अविचलज लील विलासी, गाथा-१७. ८७७६१. (-) घासीरामजी गीत व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४११.५, १४४३५-३८). १.पे. नाम. घासीरामजी गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __रा., पद्य, वि. १९३०, आदि: लाडपुरोसर सुवावणो; अंति: पदमावती सहर मझार, ढाल-१, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: पाणीरी बुद तीणरो नर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ८७७६२. औपदेशिक सज्झाय व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ३१४२१). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: धर्म म मुकीस विनय म; अंति: सो चिरकाले नंदो रे, गाथा-९. २. पे. नाम. अजुवालि पखि वृष्टि चक्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: चउथिनै दिवसि रात्रि; अंति: (अपठनीय). ८७७६३. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४११, ११-१३४२७). औपदेशिक सज्झाय-शीलव्रत, म. पद्मतिलक शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: न सुइ निरधनने धनवंत; अंति: हवी पुण्य वडूं संसार, गाथा-१४. ८७७६४. (+) साधुपद गीत व अरहन्नकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १५४५२-५५). १.पे. नाम. साधुपद सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचे इंद्री रे अहनिस; अंति: श्रीविजयदेवसूरिजी, गाथा-८. २. पे. नाम, अरहन्नकमुनि सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. ब्रह्मराय ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु गोयम गणहर चरणइ; अंति: ऋषि ब्रह्म कहइ सजगीस, गाथा-११. ८७७६५ () हीरविजयजीना बारह बोल व मिच्छामि दक्कड विधि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, ३६४२२). १.पे. नाम. हीरविजयसूरि के बारह बोल, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १६४६, पौष शुक्ल, ले.स्थल. पत्तन नगर, प्रले. आ. हीरविजयसूरि, प्र.ले.प. सामान्य, पे.वि. श्रीविजयभद्रसूरिभि प्रसादी. हीरविजयसूरि के १२ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: संवत १६४६ सोल छइताला; अंति: तथा संघर्नु ठबकुं. For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २. पे. नाम. मिच्छामि दुक्कड देवानी विगत, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १६४९, पौष शुक्ल, १५, रविवार, ले.स्थल. महिमदावादनगर, प्रले. उपा. धर्मसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. मिच्छामि दुक्कडं पत्र-धर्मसागरजी द्वारा, मा.गु., गद्य, वि. १६४९, आदि संवत १६४९ वर्षे पोष अंति अहम्मदाबादनो संघ. ८७७६६. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) =१, कुल पे. २, जैदे., ( २३१०.५, १२३७-४० ). १. पे. नाम. विजयसेठविजया सेठानी सज्झाच, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: कुसल निति पर अवतरे, डाल-४, गाथा-२८, (पू.वि. डाल-४ की अंतिम गाथा व कलश मात्र है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. זי जै.क. भूधरदास, पुहि., पद्य, आदि ऐसी समझ के सिरधूर अंति: भूधर० नफाको नहीं मूल, गाथा-४. ८७७६७ पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, वे. (२४४११.५, ९४२३) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि पर्व पर्युषण गुणनीलो अति शासने पामे जय जयकार. ८७७६८ (+) अनाथीमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. अहापुर, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२४४११.५, १५X४२). अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि मगधाधिप श्रेणिक; अंतिः कनकविजय० वचन सनाथी, गाथा ३०. ८७७६९ औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२३.५x११, १०x२५). औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि एक घरि घोडा हाथीआ रे; अंति पुन्य तणा परिमाण रे, गाथा- १३. लक्षण जाणवा. २. पे नाम. देह विचार, पू. १अ, संपूर्ण. अंगलक्षण विचार, मा.गु., गद्य, आदि मणिबंध थकी उद्धव अंति इम १२४ अंगुल थाइ. ३. पे. नाम ७२ स्वप्न विचार, पू. १अ १आ, संपूर्ण. २७१ ८७७७०. () साधारणजिन स्तवन, बारमासो व गृहस्थ व्यक्तियों के नामों की यादी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, वे. (२३४११.५, १०x३०-३२). १. पे नाम साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि नीरंजण आरबो रे अब तख; अति: रुपचंद० देव न दुजो ओर, गाथा ५. २. पे. नाम नेमराजिमती बारमासो, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: मोही तारा मुखडा अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भाद्रपदमास अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम गृहस्थ व्यक्तियों के नामों की यादी, पृ. १आ, संपूर्ण. गृहस्थ नामावली, मा.गु., गद्य, आदि: कुबेरदास नरसीदास सा; अंति: सा नरसीदास केवलदास.. ८७७७१ (+#) विचार संग्रह व पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है. जैये. (२१x११, ४४x२५). १. पे नाम. ३२ लक्षण विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण, ३२ लक्षणपुरुष विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: (१) लखण वंजण गुणोववेयं, (२) हीयो १ मुहडो२ निलाड ३; अंति: ३२ प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि सांभलीवातर कीधीवात२; अति नै ४२ सामान्य छे. ४. पे. नाम ७ कुलकर विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि उत्सर्पिणीकालनो; अंतिः सव्व१२ उसभेय१३. For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५.पे. नाम. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरी प्रतिक्रमण विधि-संक्षिप्त, प. १आ, संपूर्ण, पे.वि. कृति १अ के ऊपरी भाग में लिखकर पूर्ण की है. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: एवंकारे यती तणे; अंति: भ० पाखीसूत्र कदु. ८७७७२. (#) साधुआचार विवरण, संपूर्ण, वि. १५८६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. उपा. ज्ञानसुंदर (धर्मघोषगच्छीय),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११, १६x४३). साध आचार विवरण, मा.गु., पद्य, आदि: पूछइ अनइ जाणइ पुन्यव; अंति: होइ तउ प्रणाम किजइ, गाथा-२९. ८७७७३. प्रस्ताविक छटकीया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३.५४११.५, १२४४३). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: किया हंस विना नदी जल; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१४ तक है.) ८७७७४. हितशिक्षा चौपाई ढाल-६-७, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४११, १४४३३). हितशिक्षा चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि मिरगावती हवइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७७७५. चेलणासती चौढालियो, संपूर्ण, वि. १८३८, आश्विन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. अनोपम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १९४५९). चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर जे नर अटकलै; अंति: वीतरागजीरा वचन परमाण, ढाल-४, गाथा-३७. ८७७७६. (+) सती सज्झाय व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२०, आषाढ़ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मु. रायचंद ऋषि (गुरु मु. जैमलजी ऋषि); गुपि. मु. जैमलजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नारीनी सझा., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२४४११.५, २०४४७). १. पे. नाम. सती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलधर्म, म. जैमल ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: सह सरीखा नर नहीं; अंति: जैमलनी ए सिखा हो लाल, गाथा-२६. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: बे कर जोडि सीमिंदर; अंति: रायचंद० मुगति मै थेर, गाथा-१५. ८७७७७. आत्मप्रबोध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२४४११, १६x४२-४५). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदिशी; अंति: वाचक जशने वयणे जी, ढाल-८, गाथा-७६. ८७७७८. (+) थावच्चाकुमार ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:थावरचा., संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १४४४४). थावच्चापुत्र ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: थाव! भोगी भमर; अंति: तेहने छेर्या बासो रे, ढाल-६, गाथा-६७. ८७७७९ (+#) ४ मंगलीक गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, १०४३८). ४ मांगलिक गीत, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर मनधरी; अंति: वीरविजय० नवनिध सद्ध. ८७७८०. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२३.५४११.५, १५४४८). १.पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: हं तो जाउं गिरनार; अंति: क्रीपा करो माहाराज, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: संजम को सारो रस लायो; अंति: संजम को सारो रस लायो, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दोलत, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु मेरे प्राण; अंति: मेरे प्राण आधार, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमराजीमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २७३ नेमराजिमती पद, म. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी मोरा मोरा; अंति: दोलतराम कर जोरी, गाथा-५. ५.पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, म. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: एमे हाढा रे मनाउ साम; अंति: प्रभुनाम तणो आधार, गाथा-५. ६.पे. नाम. नेमजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: वासनो सोहान बस राख; अंति: मुसलमान कहीए नेक, गाथा-३. ८७७८१. थंभणपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११, ११४३०). पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपूर श्रीपासजिणंद; अंति: पार्श्वनाथ चोसालो, गाथा-९. ८७७८२. स्थूलभद्र सवैया व पुरुष ७२ कला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, २४४४७). १.पे. नाम. स्थूलभद्र सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में "७२ कला पुरुष के" शीर्षक देकर छोड दिया है. स्थूलिभद्रमुनि सवैया, मु. भगोतीदास, पुहिं., पद्य, आदि: एक समें चारो शिष्य; अंति: भद्र सुप्रसन्न जी, गाथा-९. २.पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ.१आ, संपूर्ण. ज्योतिष, पहि.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: सूर्य स्थान बिना; अंति: मनस्थं धनंबहनर्थम्, (वि. सारणी युक्त.) ८७७८३. शांतिजिन छंद व नवकार छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२४.५४११, १३४३०). १.पे. नाम. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमाय नमुं सिरनामी; अंति: मनवंछित शिवसुख पावै, गाथा-२१. २. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र छंद, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध परे; अंति: कुशललाभ० संपद लहे, गाथा-१८. ८७७८४. भक्तामर स्तोत्र का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४४११, १२४२९-३७). भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहि., पद्य, आदि: श्रीआद पुरुष आदीसर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२६ तक लिखा है.) ८७७८५. रात्रीभोजन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३२, वैशाख शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वडालिया सिंहण, प्रले. मु. चैनराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, १६x४८). रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीपुर वारु वसैजी; अंति: रात्रिभोजन निवार रे, गाथा-२५. ८७७८७. (#) जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १६४३०-३६). जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: स्मृत्वा गुरुपदांभोज; अंति: त्संस्तुवैः संस्तुतं, ढाल-८. ८७७८८. बोल विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, दे., (२५.५४११, १६४१८-३९). १.पे. नाम. तिरसठ शलाका पुरुष नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ६३ शलाकापुरुष नाम, मा.गु., गद्य, आदि: २४ तीर्थंकर १२ चक्र; अंति: ७ रावण ८ जरासिंधु ९. २. पे. नाम. पैंतालिस आगम नाम, पृ. १आ, संपूर्ण.. ४५ आगम नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इग्यारे अंगरा; अंति: १० ३०० पयना नाम. ३. पे. नाम, अतीत अनागत तीर्थंकरादि विवरण, पृ. २अ, संपूर्ण. अतीत अनागत वर्तमान तीर्थंकरादि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीकेवलनांणी १; अंति: वचनगुप्ति कायगुप्ति. ४. पे. नाम. जीव आयुमान विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. __सं., गद्य, आदि: मनुष्य आयुष व. १२०; अंति: चातक वर्ष ३०. ५.पे. नाम, श्लोक व कवित्त संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उत्क्रोंचं प्रीतदानं; अंति: होइ सो पाइयै, गाथा-२. For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७७८९ (+) शांति-कुंथ-अरनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. श्राव. लालजी; लिख. मु. बालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४३२-३७). शांति-कुंथु-अरजिन स्तवन, मु. बालचंद मुनि, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: सकल सिद्धि आदिनमी; अंति: आणंदइ मनह जगीश ए, गाथा-४५. ८७७९०, आदिजिन ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, ११४३४). आदिजिन ढाल, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय ऋषभ जिणेसर; अंति: पुरी भली सतरमी ढालजी, गाथा-१२. ८७७९१. साधुगुणवर्णन सज्झाय व ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ११४३८). १.पे. नाम. साधगणवर्णन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १७९३, आश्विन कृष्ण, ८, शुक्रवार, पठ. श्राव. हरीराम, प्र.ले.पु. सामान्य. साधगण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचेंद्री रे अहिनसि; अंति: भणे विजयदेवसूरो जी, गाथा-१२. २.पे. नाम, ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिहं दिसथी च्यारे; अंति: गाया हे पाटण परसिद्ध, गाथा-६. ८७७९२. २० स्थानक विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११, १०४२९). २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं २०००; अंति: पूजा प्रभावना करवी. ८७७९३. (4) पंचमहाव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, १४४३४-४१). ५महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुनी परि दोहिलो; अंति: श्रीविजैदेवसूरि कि. ८७७९४. पुद्गलपरावर्त स्वरूप व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. वाघा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १६४५३). १.पे. नाम. पुद्गलपरावर्त स्वरूप, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. मु. वाघा, प्र.ले.पु. सामान्य. पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अनंतानंत परमाणु आ एक; अंति: अंत थासै नहीं. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मोभूमिस्त्रिगुरुः; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७७९५. नंदीषेणमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १५४२७). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगही नगरीनो वासी; अंति: मेरुवि०नमो करजोडी हो, ढाल-३, गाथा-१६. ८७७९६. दयामाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११,१३४४३). दयामाता सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दया भगवती छे सुखदाई; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१९ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७७९७. (+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:चैत्रीपूनमस्त., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४८). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पय प्रणमी रे जिनवरना; अंति: परइ साधुकीरति इम कहइ, ढाल-३, गाथा-१३. ८७७९८ (+) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १६४३७). मेघरथराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: परव दिवस बैठा थका; अंति: दया तणो बीसतारोजी, गाथा-३१. ८७७९९ (+#) कर्मप्रकृति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कर्मप्रकृतिनीसज्झाय., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, २३४४८). For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org २७५ कर्मप्रकृति सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि आठे दी कर्मा तणी एक अति: ऋषिजैमल० आणंद थाय हो, गाथा ४६. ८७८००. पच्चक्खाण सज्झाय व असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५X११, १६x४३-४६). १. पे. नाम. पच्चक्खाण सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. (२५X१०.५, १८x४०). १. पे नाम. आदिजिन लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. सौभाग्यरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी करी, अंति: सौभाग्य० भाख्यु आनंदि, गाथा-३८. २. पे. नाम. असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमुं श्रीगौतम, अंति: अचित वद्धि जांणि तेह, गाथा-१८. ८७८०१. लेखिनी शुभाशुभ विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. शंकर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १३×३९). " लेखनी शुभाशुभ विचार, सं., पद्य, आदि पंचसप्तनवमांशात् अति धनधान्य समागमः, श्लोक-२७. ८७८०२. (+) लघुशांति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५x११, ४४३६-३८). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. लघुशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमानदेव आचार्य; अंति: पद स्थानक पामइ. ८७८०३. पासाकेवली व पंचमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जै.. (२५.५११, १८३३). " १. पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. पाशावली -पद्यानुवाद, मा.गु., पद्य, आदि: महादेव नमस्कृत्यं, अंतिः मिलै लाछ लहे विस्तार, गाथा - ६४. २. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. श्लोक-४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, ८७८०४. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. २, दे. (२५x११, १३x२९-३३). पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, वि. १७वी, आदि हिव राणी पद्मावती; अति पापथी छूटे ते ततकाल, ढाल -३, गाथा - ३६. ८७८०५. आदिजिन लावणी, बालिका गीत व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि आहे अति झीणी अति, अंति: कहिं लबधिविजय करजोडि. २. पे. नाम वालिका तालिका गीत पू. १अ १आ, संपूर्ण. 1 बालिका गीत, मा.गु., पद्य, आदि: घूघरीयालो घाट सोविन, अंति: हरमचीद्राखडी रे, गाथा- ११. ३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 मु. पद्मतिलक शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि न सूई पुण्यवंत बीर, अंति: पुण्य वडु संसारि, गाथा - १४. ८७८०६. पंचमहाव्रत स्वरूप विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X११, १६x४०). ५. महाव्रत स्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, आदि पांचेमहाव्रत द्रव्य अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, "पलोपमनो देवतारो आउखो बाधई" पाठ तक लिखा है.) ८७८०७. महावीरजिन चौदालियो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे. (२५.५४११, १७४५०). " महावीरजिन चौडालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्म, वि. १८३९, आदि सिद्धार्थकुलमई जी, अति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल २ की गाथा १८ तक लिखा है. वि. अंत में चातुर्मास विवरण दो पंक्ति में लिखा है.) ८७८०८. (*) दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६X११, २०X३५-४५). दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि सारदमात मनरली समरु; अति: छियासीय० राइ ऋषजी हो, ढाल - ४, गाथा - २८. For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७८०९ साधारणजिन स्तवन, औपदेशिक सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४११, १३४५५). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लाल, मा.गु., पद्य, आदि: तारो तो सही म्हारा; अंति: आश जिन पूरो तो दई, गाथा-४. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-संसार असार, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: असाउत्तम जन्म तुम्ही; अंति: अतांस्थिर होवसा, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन फाग, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर; अंति: जिनचंद० सुरतरु की, गाथा-७. ८७८१०. सुदर्शनशेठ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (३६४११, १६४५६). सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: सतगुरुपद पंकज नमी हो; अंति: सुभ० नमो बेकर जोडि, गाथा-४३. ८७८११. (+) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८८, वैशाख अधिकमास शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. भगवानदास ऋषि (गुरु मु. कुसालचंद ऋषि); गुपि. मु. कुसालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ऋषभदेवस्तवन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६x४५). आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाभ कुलगुरु कुलनाभ; अंति: ग्यानचंद० कोइ न तोलै, ढाल-२, गाथा-२६. ८७८१२. नमस्कार महामंत्र रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. हुंडी:नोकार., दे., (२५.५४११.५, १८४३५). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो लीजि; अंति: रास भणोजी नवकारनो, गाथा-२२. ८७८१३. (+#) आत्मस्वरूप अनूपवर्णन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले.पं. चरणकुमार, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, ७-९४२६-३३). आध्यात्मिक सज्झाय, पं. चरणकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: आतमध्यानी अंतरजामी; अंति: कुमर कहइ सग्यानी, गाथा-७. ८७८१४. (+) आलोयणाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७४३८). आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: पाप आलोइ तुं आपणा; अंति: करी आलोयण उच्छाहि, गाथा-३६. ८७८१५. बलदेवमुनि सज्झाय, ज्योतिष व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९००, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १२४३८). १.पे. नाम. बलदेवमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. म. सकल, मा.ग., पद्य, आदि: तुगियागिरि सिखरि सोह; अंति: सकल भवि सुख देई रे. गाथा-८. २.पे. नाम. ज्योतिष, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: बुधेमेकं शुक्रचक्षु; अंति: (१)बारे ऊपर होवे तो, (२)देई बाकी रहेसो धातु. ३. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, पंन्या. खिमाविजय , मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद जगत उपगारी; अंति: सिद्धि निदान जी, गाथा-७. ८७८१६. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५४११, १३४४२). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति देउ मति; अंति: धन धन एह मुझ गुरु, ढाल-१०, गाथा-७७. ८७८१७. असज्झाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (३६४११, १०४३०). असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीइं; अंति: वहेली वरसो सिद्धि, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८७८१८. पार्श्वजिन स्तवन, जीवभेद व अजीवभेद सज्झाव, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२६४११, "" २९४६४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. गुणरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: सौभाग्यभाग्या; अंतिः परं देव सदा स्वसेवां, श्लोक-१५. २. पे. नाम. जीवभेद सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीसारव चितमें धरी अंति: जिनवचन सदा सद्दहै, डाल-२, गाधा-२० ३. पे. नाम, अजीवभेद सज्झाय, पू. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. जिन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुतदेवी सुपरें नमी; अंति: जिन इणि परे उपदिशे ए, ढाल -२, गाथा-३५. ८७८१९. (#) नवकारस्मरण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X११, १२X३७). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: ओर बसत बोहो विधी मिल; अंति: ग्यानी मन समरो नोकार, गाथा- १५. ८७८२०. दीपावलीपर्व रास, संपूर्ण, वी. १९ वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. पाली, प्रले. सा. उदाजी (गुरु सा. जेठाजी आर्या); गुपि. सा. जेठाजी आर्या (गुरु सा. लाछांजी आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १९x४६). दीपावलीपर्व रास, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि भजन करो भगवानरो गणधर अति जैमलजी० दीवाली न मान, गाथा - ३९. ८७८२९. संयोगी भांगा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२६४१९, ४८४१५-१९). "" संयोगी भांगा, मा.गु., गद्य, आदि एक संयोगे को हेवउत्त; अंतिः २ जाणिवा ८ श. ९ उदे., (वि. सारणी युक्त.) ८७८२२. रथनेमिराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : राजीमतीसती., जैदे., (२५X१०, १५X४७). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि शत्रुंजय सिद्ध: अंतिः जिनवर करु प्रणाम, गाथा-३. २. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण, रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: देखी मन देवर का; अंति: ऋद्धिहर्ष कहै एम, गाथा-२०. ८७८२३. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे, ५, दे., (२५४११.५, १२४३७). मु. , मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र महामंत्र; अंति: भणी वंदु बे करजोडि, गाथा-३. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. २७७ मु. शांतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पहेले दिन अरिहंतनुं; अंतिः शिष्य कहे कर करजोड, गाथा-६. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंति: विनय धरे तुम ध्यान, गाथा- ३. ५. पे नाम. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि प्रीतडी न कीजे नारी अति समयसुंदर रुडी रीत, गाथा-५. ८७८२४. (#) मतिज्ञान गत्यादि ६२ द्वार यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६X११, ३४X६-२०). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नारकगति १ तिर्यंचगति २; अंति: (-). "" ८७८२५. (*) असज्झाय विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५४१०.५, ११४४५)असज्झाय विधि, मा.गु, गद्य, आदि: असज्झायना भेद २ एक अति असज्झायमाहि जाणवी. ८७८२६. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५.५४११, १४४४०). For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तवन- शामला, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि पूजाविधि मांहे; अति वाचक जश कहे देव, गाथा - १४. ८७८२७. शत्रुंजयतीर्थ व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जै. (२५x१०.५, १७४४२). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची म. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: हांजी बीमलाचल मन; अंति: जिनेंद्र करे प्रणामौ, गाथा-९. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेसर साहेबा; अंति: मोहन० सुण मोरी अरदास, गाथा-७. ८७८२८. (+#) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १३-१४४४५). स्तवनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आदिकरण अरिहंतजी ओलगड; अंति: (-), (प.वि. अभिनंदनजिन स्तवन तक है.) ८७८२९ नेमराजिमती गीत व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १२४३५). १.पे. नाम, नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ उपा. अमरसी, मा.गु., पद्य, आदि: पंथीडा हरकर कहै रे; अंति: अमरसी कहै उवझाय, गाथा-९. २. पे. नाम. सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. सवैया संग्रह , पुहिं., पद्य, आदि: तमक्षाल खुस्याल मै; अंति: लाल जांन मेरे सामरी. ८७८३०. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १४४२९-३५). औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभल दर्लभता, मा.गु., पद्य, आदि: मनुख जुवरा कोइ अनारज; अंति: गया नीरफल हंकार नहीं, गाथा-१२. ८७८३१ (+) रात्रीभोजन दोषवर्जन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४३४-४१). औपदेशिक सज्झाय-रात्रिभोजन परिहार, म. विशालसंदर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर वंदी चउवीस; __ अंति: मंडइ लहइ ते संपद घणी, गाथा-४४. ८७८३२. आषाढाभूतिमनि पंचढालियो, चेलणासती चौढालियो व खंधकमनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १८-१९४३८-४८). १.पे. नाम. आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आषाडभूत. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरशण परिसो वावीसमो; अंति: जगमें जाणु धन्य हो, ढाल-७. २.पे. नाम. चेलणासती चौढालियो, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:श्रेणिकराजारोपो. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: ओसर जे नर अटकलै ते; अंति: वीतराग वचन प्रमाण, ढाल-४, गाथा-३७. ३. पे. नाम. खंदकमनि चौपाई, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हंडी:खंधकरीढा. खंधकमुनि चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: वध परिसो वर्णवु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल की गाथा-१० अपूर्ण तक है. ढाल संख्या नहीं है.) ८७८३३. औपदेशिक सज्झाय व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १३४४०). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-सद्गुरु, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ ऋ. गंगाराम, मा.गु., पद्य, वि. १९११, आदि: श्रीगुरुदेव क्रिया; अंति: गंगाराम गुण गाया, गाथा-२०. २. पे. नाम, गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: कहा था महा पापणी; अंति: गए कैसे मिटे पियास, गाथा-२. ८७८३४. शारदामाता छंद, शांतिजिन स्तवन व जोबन अस्थिरनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९१, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. कालद्री, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३६-४१). १. पे. नाम. शारदामाता छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ___मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसवचन समता मनि आणी; अंति: शांतिकुशल० सवि माहरी, गाथा-३५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शारद मात नमुं सिरनाम; अंति: मनवंछित शिवसुख पावे, गाथा-२२. For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २७९ ३. पे. नाम. जोबन अस्थिरनी सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जोबन अस्थिर, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जोवनियारी मौजौ फौजौ; अंति: यो कहीया वात जेथी रे, गाथा-५. ८७८३५ (#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:ज्ञानपंच., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, ११४३०-३३). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगत भाव प्रसंसयो, ढाल-३, गाथा-२५. ८७८३६. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. लक्ष्मीबाई, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४०). नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग.,सं., पद्य, आदि: अरिहंत पद ध्यातो; अंति: जस तणी० न अधूरी रे, गाथा-१४. ८७८३७. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३०, आषाढ़ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नागोर, प्रले. सा. रुकमा (गुरु सा. हसतुजी महासती); गुपि.सा. हसतुजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १२४३५). नेमिजिन स्तवन, मु. कुसालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु समदविजय सुत; अंति: सेजत सेहर चोमास रे, गाथा-१७. ८७८३८. (+) अमरसिंहजी महाराज के समुदाय की ६१ मर्यादा, संपूर्ण, वि. १९५२, चैत्र शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२५.५४११, ३५४२३). अमरसिंहजी महाराज के समुदाय की ६१ मर्यादा, पुहिं., गद्य, वि. १९५२, आदि: पुज्यजी अमरसिंघजी; अंति: तो उसको दंड देना. ८७८३९ (+) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११, १२४४५). विविध विचार संग्रह*, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: बत्तीसं कवलाहारो; अंति: अर्थ इत्यर्थः. ८७८४० (+) आदिजिन चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:रीषभ., संशोधित., दे., (२५४१०.५, १६४३८). आदिजिन चौढालिया, ग. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: रूप मनोहर जुगतानंदण; अंति: कीनाबे बीसुर नामना, ढाल-२१, गाथा-२१.। ८७८४१ (+) पार्श्वजिन स्तोत्र व पार्श्वजिन जकडी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन लघुस्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-लघु, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: थुणिस्युं जिणवर पासु; अंति: अम्ह आपओ सुख जगदीसुए, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ जकडी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन जकडी-फलवर्धिपुरमंडण, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीफलवर्द्धपुरि; अंति: वीरविजय० जसु तणउ, गाथा-४. ८७८४२. औपदेशिक व स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १३४३४). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अहो लाल सुंदर रूप सो; अंति: ण गाता सीवसुख थाय रे, गाथा-६. २. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में सागर समुदाय के १५ श्रमणभगवंतों के नाम क्रमशः लिखे है. क. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: चंदलीया तुं वेहलो; अंति: वाट जोउ चोमासै रे, गाथा-६. ८७८४३. अवंतिसुमाल व सुकोशलमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १३४४३). १. पे. नाम. अवंतिसुकमाल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: घणा मुगणा महाघणावइ; अंति: सविला बिवसइ तस अंगणइ, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. सुकोशलमुनि सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिन राजवंसि राजा; अंति: नितु नितु भगतिइ, गाथा-३५. ८७८४४. (#) आत्मोपदेश सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. सुखसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१०.५, १२४३९). __औपदेशिक सज्झाय, क. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिणवर इम उपदिसै आगै; अंति: इम पभणै रूपचंद रे, गाथा-२१. ८७८४५. ३० महामोहनीय कर्मबंध बोल व आवती चौवीसी नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. ३० महामोहनीय कर्मबंध बोल का बाकी पाठ आवती चौवीसी नाम के बाद लिखा गया है., जैदे., (२५.५४११, १२४४५-५०). १. पे. नाम. त्रिस महामोहनी कर्म, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ३० बोल-महामोहनीय कर्मबंध, मा.गु., गद्य, आदि: त्रस जीवने पाणीमाहि; अंति: महामोहनी कर्म बांधे. २.पे. नाम, आवती चौवीसी नाम, प. १आ, संपूर्ण. २४ जिननाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: पद्मनाथतीर्थंकर; अंति: जीव सर्वार्द्धसिद्धि. ८७८४७.(+) सिद्धार्थराजा भोजनसमारंभ वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, ११४३२-३८). सिद्धार्थराजा भोजनसमारंभ वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: माड्यउ उत्तंग तोरण; अंति: जिमाया भक्तिसं करी. ८७८४८. शीतलजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पठ. श्रावि. संपूरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ९-१०४३२). शीतलजिन स्तुति-आत्मनिंदागर्भित, ग. राजहंस, अप., पद्य, आदि: सदानंद संपुन्न चंदो; अंति: गणि मारड उरमइ हंस, गाथा-२१. ८७८४९. (+) दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४४६-५१). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: सुंदर० सुप्रसादा रे, ढाल-४, गाथा-१०१,ग्रं. १३५. ८७८५१. (+) औपदेशिक व ९ वाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १७४३१-३५). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: इक घरि घोडा हाथयजी; अंति: पुन प्रमाण रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. ९ वाड सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नववाड. आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी पशु पंडग तणी रे; अंति: श्रीबिजैदेवसुर के, गाथा-१५. ८७८५२. (+-) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११, १३४३४). सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति परससा करे बठा; अंति: खम कहइ गाया सुख पावै, गाथा-२०. ८७८५३. (+) गजसुकुमालमुनि रास, संपूर्ण, वि. १७६८, आश्विन कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल, वीकानेर, प्रले. मु. जैनेंद्रसागर (गुरु मु. जसवंतसागर, तपागच्छ); गुपि. मु. जसवंतसागर (गुरु मु. कांतिसागर, तपागच्छ); मु. कांतिसागर (गुरु मु. उत्तमसागर, तपागच्छ); पठ. श्रावि. केसरीबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४४०-४५). गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देस सोरठ द्वारापुरी; अंति: वलि अविचल संपद थाइ, गाथा-९७. ८७८५४.(#) चौवीस जिनवर सवीया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३-१४४४०-५४). For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २८१ २४ जिन सवैया, मु. हरिसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: सरस वचनदे सरसति वचन; अंति: सुख सुयश कु पाया, गाथा-२५. ८७८५५. (+) नेमिजिन बारमासो व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मालपूरा, प्रले. श्राव. माना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, २०४३०). १.पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. १अ, संपूर्ण.. नेमिजिन बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: समदबीजेजीरा नंद खोटी; अंति: गीरनार मुकत पुहताजी, गाथा-१३. २.पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: थान माता सेवादेजी; अंति: साथे ए संजम जेतावो, गाथा-१४. ८७८५६. (+) उपदेशसत्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, २१४४३-४९). उपदेशसत्तरी, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समझ० सदगुरु मुखवाणी; अंति: सांभलज्यो नीसदीसजी, गाथा-७८. ८७८५७. सुमतिजिन व सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १९४५४). १. पे. नाम, सुमतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमउ सुमतिजिणंद; अंति: पसाइ सेवकने सुखदाइ, गाथा-११. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: सुधन संसार जिनराज; अंति: देह वंछीइ सुखकरो, गाथा-२१. ८७८५८. (#) देवानंदामाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३८). देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: पूछि उलट मनमां आणि, गाथा-११. ८७८५९. नेमनाथराजमती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, १३४३२). नेमराजिमती स्तवन, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरु पाय गा; अंति: पद राजुल लडोजी, गाथा-११. ८७८६० (+) सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १५४४१). सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: ससिकरि निकर समुजल; अंति: सहजसुंदर० सरस्वती, ढाल-३, गाथा-१४. ८७८६१. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन लघु व बृहत्, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२४.५४११, १२४३३-३६). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: समयसुंदर० प्रसंसीयौ, ढाल-३, गाथा-२६. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: समय० पंचमो भेदरे, गाथा-५. ८७८६२. (+) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, ४४४०). घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकरणो महावीर; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: २१ काकरी भुकरवानी; अंति: धोईने छाठे तो मटे, (वि. विधिसहित.) ८७८६३. (+#) अनाथीरिषराज चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७४५६-६०). अनाथीमनि रास, म. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७३५, आदि: वंदियै वीर जिणेसर; अंति: पामे कोड कल्याण, ढाल-८. For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७८६४. (#) ११ प्रश्नोत्तर-केशीगणधर प्रदेशीराजा, संपूर्ण, वि. १९वी, आषाढ़ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जालोर दुर्ग, प्रले.पं. विनय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका खंडित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११,१४४४४). केशीगणधर प्रदेशीराजा ११ प्रश्नोत्तर, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अमात्य आदेसात् तुरंग; अंति: कार्य सफल कीधा. ८७८६५. चौवीसदंडक चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४११.५, १४४४०). २४ दंडक चौपाई, मु. दोलतराम, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो वीर सुधीरकुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४० तक लिखा है.) ८७८६६. (#) औपदेशिक व बीजामहाव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १२४३०-३५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-वाणिया, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणीओ विणज करई छइं; अंति: वाणी आवे कमाइ साथ, गाथा-८. २. पे. नाम. बीजामहाव्रत सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मषावादपापस्थानक सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: असत्य वचन मुखथी नवि; अंति: ___ कांतिविजय० सुध आचार, गाथा-५. ८७८६७. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११, १२४५०-५५). महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलो; अंति: दायक ए सुपनातर गाता, गाथा-१५. ८७८६८. कल्लाणकंद स्तुति, सुभाषित श्लोक व असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४११, १२४३५). १. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंद पढमं जिणंद; अंति: सुहास्या अम सआ पसथा, गाथा-४. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सभाषित संग्रह *, सं., पद्य, आदि: विना परापवादेन न; अंति: विना मधेन तुप्यति, श्लोक-१. ३. पे. नाम. असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमुं श्रीगोतम; अंति: (-), गाथा-१८, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७८६९ (#) क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १३४३८). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१४ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७८७०. सिद्धचक्र नवपद नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १५४४०-४५). नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमोनंत संत प्रमोद; अंति: ज्ञानविमल०जयकार पावे, गाथा-२२. ८७८७१ (+) दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ९४२९-३४). दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक; अंति: जंपै लालविजै निसदीस, गाथा-९. ८७८७२ (#) गावान व गोंबडान औषध व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २९x१५). १. पे. नाम. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुखदायक आदिजिन; अंति: ए पावे आतिमराम, गाथा-१, (वि. ३ गाथा परिमाणवाली कृति को गाथा परिमाण-१ दिया है.) २.पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २८३ उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदिः श्रीमंदिर वीतराग; अंति: विनय वंदे सुविहाण, गाथा-२. ३. पे. नाम, नेमिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुलवर श्रीनेमिनाथ; अंति: रूपविजय० जगजीवन आधार, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय श्रीपार्श्वनाथ; अंति: रुप कहे गुणगेह, गाथा-४. ५. पे. नाम. गावानु व गोंबडानु औषध, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधादि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८७८७३. षडावश्यक प्रतिक्रमण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५४११, १०४३८-४१). ६ आवश्यक स्तवन, संबद्ध, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोवीसे जिनवर नमु; अंति: तेह शिव संपद लहे, ढाल-६, गाथा-४४. ८७८७४. (-) आदिजिन व २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मेडता, प्रले. सा. सरूपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में सं. १८६२ लिखा है किन्तु लिखावट से प्रत २०वीं सदी की प्रतीत होती है, संभव है कि उस प्रत की नकल की गई हो., अशुद्ध पाठ., दे., (२५४११.५, १८४३१-३८). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. कान्हजी, मा.गु., पद्य, आदि: चवदजी कुल म नाभज भुप; अंति: सामी पार उतार, गाथा-११. २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन-अनागत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम महाराज सेणकन; अंति: रीष जमजी कीधी जोड ए, गाथा-२७, (वि. एक गाथा को २ गिनती करके क्रम दिया है.) ८७८७५ (+) ऋषिमंडल स्तव व पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३६). १. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, प्रा.,मा.ग., पद्य, आदि: सिरिरिसहेसर अजियजिण; अंति: भवियण पाम सह० वेवि, गाथा-१३. २. पे. नाम. पट्टावली, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: आचार्यश्रीजयप्रभसूरि; अंति: पटे मु.श्रीजयचंदजी. ८७८७६. एकादशीव्रत गीत व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १४४३७). १.पे. नाम. एकादशीव्रत गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. मु. भीमजी ऋषि (गुरु मु. नागजी ऋषि); गुपि. मु. नागजी ऋषि (गुरु मु. हीराजी ऋषि); मु. हीराजी ऋषि (गुरु मु. वाहलाजी ऋषि); मु. वाहलाजी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम. __मा.गु., पद्य, आदि: मेर सखर सोनानो आपे; अंति: छाडो करो वरत एकादसी, गाथा-१२. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. _पुहिं., पद्य, आदि: नवि काम तजो नवि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७८७७. (+) अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:अक्षयतृतीया., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४४१-४५). ___अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभुं; अंति: क्षमाकल्याणपाठकैः, ग्रं. ७०. ८७८७८. चंद्रप्रभजिन स्तवन व प्रमादवर्जन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, ११४३५-४०). १.पे. नाम. चंद्रप्रभुजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: चंदलिया संदेसो कहे; अंति: महियल मेघ प्रमाण, श्लोक-५. २. पे. नाम. प्रमादवर्जन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-४ प्रमादवर्जन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजरामर जगको नही; अंति: हुवे परम आणंदो रे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७८७९. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, ९४३६). औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: गुण छै पूरा रे; अंति: म भणीस ओछा रे बोल, गाथा-६. ८७८८० साचादेवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६०, चैत्र शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. इडरनगर, प्र.वि. अंत मे "श्री आदिनाथजिन प्रासादत व श्री लघवृद्धपौषसालाया गछे" लिखा है., जैदे., (२५.५४११, १४४४५). शांतिजिन स्तवन-मातर, मु. शिवरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: साचा देवनी रे सेवा; अंति: शिवरत्न गुण गाया, गाथा-१३. ८७८८१. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. मयणा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ९४२५). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सहिया सेजगिरि; अंतिः स्तवीओ मननइ उलासइ, गाथा-६. ८७८८२ (+) साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४४, आश्विन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. ठाकुरसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ९४३०). साधारणजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, रा., पद्य, आदि: सुगुण सनेही जिनजी; अंति: श्रीजिनचंद० तारो राज, गाथा-५. ८७८८३. वीरस्तुति अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, ११४४४). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुछीसुणं समणा माहणा; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१६ तक लिखा है.) ८७८८४. आदिजिन व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १०४३०). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मुक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राणजिवन परमेस्वरु; अंति: पामवा रे चरणकमल आधार, गाथा-५. २. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिनेस्वर साहिबा; अंति: तुझ पद पद्म आधार, गाथा-५. ८७८८५ (+) विमलाचलमंडण श्रीऋषभदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पठ. श्रावि. राजबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पहिल पणमिय. अंत मे बडे अक्षरमे पठनार्थ का नाम लिखा है., संशोधित., जैदे., (२५.५४११,१३४३६). आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.ग., पद्य, आदि: पहिलउं पणमीय देव; ___ अंति: विजयतिलक निरंजणो, गाथा-२१. ८७८८६. बंभणवाडि स्तवन व औपदेशिक दहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १९४४५). १. पे. नाम. बंभणवाडि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवी समरथ सारदाय; अंति: श्रीकमलकलससुरीसर सीस, गाथा-२१. २. पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दुहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम वर्गपट अक्षर; अंति: देव देव सुप्रसन तुह, गाथा-१. ८७८८७. (#) अजितनाथ स्तवन व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ९४२९). १. पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजितजिणेसर साहिबो रे; अंति: राम अधिक तनु वान, गाथा-७. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ८७८८८. दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०६, कार्तिक शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. विजोवा, प्रले. मु. तीर्थसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसंतामणपार्श्वनाथजी प्रसादात्., दे., (२५४११, १४४३८-४३). For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १.पे. नाम. दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में पत्र ३आ पर देववंदनविधि संक्षिप्त लिखी आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर चरम चोमासा; अंति: ज्ञानविमल०सकलगुण खाण. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, म. सजस, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षनो रे; अंति: सुजसविजय पद लीधो रे, गाथा-९. ८७८८९ () आलोयण विचार कोष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ३२४१५). आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८७८९०. सिद्धचक्र स्तवन व देवसिप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १३४३०-३६). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८७६, पौष कृष्ण, २, रविवार, प्रले. पं. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुसल कमलानो रे; अंति: दानविजय जयकारी रे, गाथा-२३. २.पे. नाम. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __ संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: (-), (पू.वि. 'आयरीय० करेमिभंते०' सूत्र तक है.) ८७८९१. ३४ अतिशय वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १३४३७). ३४ अतिशय वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: चौतीस अतिशयमाहे; अंति: करै सर्व भेला कीया. ८७८९२. रुक्मणीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, ११४२०). रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक लिखा है.) ८७८९३. (+#) दंडकद्वार बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १९४३२-५८). दंडकद्वार बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: सरीर३ वैक्रीय१ तेजस२; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., द्वार-१२ के बोल-२२ तक है.) ८७८९४. (+#) नारकी चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नारकी., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, २०४४०-४५). नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदजीणंद जुहारीए मन; अंति: सरब कलेस वो सामी, ढाल-४, गाथा-३१. ८७८९५ (#) ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाटण, गुपि. आ. जयचंद्रसूरि; प्रले. मु. वर्द्धमान ऋषि (गुरु आ. जयचंद्रसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. समरचंद्रसूरिनाक्षरउपरिथी लिख्यु छइ., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, २७४६०). ज्योतिष , पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (अपठनीय); अंति: (-). ८७८९६. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४३५-४०). २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसरि, मा.ग., पद्य, आदि: जिनसासण रे सुधी; अंति: ते सवि सुख लहै, गाथा-१०. ८७८९७. आलोयणा विचार व इंद्रियपराजयशतक गाथा-१४, संपूर्ण, वि. १८११, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. सीरोही, जैदे., (२५४११.५, १४-१६४३८). १.पे. नाम, प्रायछितप्रदान विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञाननी आशातना जघन्य; अंति: गीतार्थ० मुखथी जाणवु. २. पे. नाम. इंद्रियपराजयशतक-गाथा १४, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८७८९८. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १२४२८-३१). पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: वादल दहदिशि उनह्या; अंति: प्रतपो जग भांण रे, गाथा-८. ८७८९९. २३ पदवी विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:२३ पदवि., दे., (२५.५४११, १५४४५). प्रज्ञापनासूत्र-२३ पदवी विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पदवि नाम सात एकेंद्र; अंति: गजरत्न२ वरज्या२७. ८७९००. बीजतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११, १०४३७). बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूद्वीपे अहोनिश; अंति: विघ्न निवारी जी, गाथा-४. ८७९०१. अइमुत्तारिषि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. कल्याणविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अइमंता सिजाय., दे., (२५४११.५, १५४२४). अइमत्तामनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर वादी गौतम; अंति: लक्ष्मीविजय० पाया, गाथा-१८. ८७९०२ (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४०, आश्विन कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. विरमगाम, प्रले. मु. कल्याणचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.वि. श्री अजितनाथ प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, ११४२८-३२). महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंद; अंति: रामविजय० अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५६. ८७९०३. गुरुआगमन गहंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४११, ९४३०-३३). गुरु आगमन गहुंली, मु. सोमचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सई मोरी चालो सतगुरु; अंति: गाय हो सुधि साविका, गाथा-१७. ८७९०४. खीमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८१९, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पंन्या. भूधर; पठ. सा. केसर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३४३७-३९). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: समयसुंदर०संघ जगीस जी, गाथा-३६. ८७९०५. उपदेशिक बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४११, ९४३०). औपदेशिक बोल, मा.गु., गद्य, आदि: जीवदयाने विशे रमवू; अंति: पोतानी मेले वरे. ८७९०६ (+) गुरुआगमन गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १०४३२). गुरु आगमन गहुंली, मु. सोमचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सई मोरी चालो सतगुरु; अंति: गाय हो सुधि साविका, गाथा-१७. ८७९०७. (#) आदिजिन स्तवन व गौतमस्वामी स्तुति, संपूर्ण, वि. १८७२, कार्तिक कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. वीकाणैसेर, प्रले. रत्नचंद; पठ. सा. रूपा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३२). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहंतजी लेइन; अंति: सीस नमे जिनचंद रे, गाथा-१४. २. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अंगुठे अमृत वसे; अंति: कूटवरो मील विखर जाय, गाथा-२. ८७९०८ (2) औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४२८-३२). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. देवब्रह्म, पुहि., पद्य, आदि: काया का घर उपर; अंति: देवाब्रह्म गुण गाय, गाथा-६. २. पे. नाम, आत्मोपदेश सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. देवब्रह्म, पुहिं., पद्य, आदि: उभींछी धन वो बरियार; अंति: पाप कलंक निवारज्योजी, गाथा-८. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २८७ औपदेशिक सज्झाय-चेतन, मु. देवब्रह्म, पुहिं., पद्य, आदि: चेतनजी का ध्यान; अंति: देवा० गुण गावाजी, गाथा-९. ८७९०९ (+) पच्चक्खाण सज्झाय, लूणपाणी विधि, आरती व मंगलप्रदीप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३६). १. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दशविह प्रय उठि पचखाण; अंति: पामो निश्चइ निर्वाण, गाथा-८. २. पे. नाम. लूणपाणी विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: उवणेउ मंगले वो जिणाण; अंति: लब्भइ सिद्धइ गमणु, गाथा-७. ३.पे. नाम. साधारणजिन आरती, पृ.१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: मरगयमणि घडिअ विसाल; अंति: उच्छलती सलिलधारा, गाथा-३. ४. पे. नाम. मंगल प्रदीप, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: कोसंबीसं विअस्सा पया; अंति: भाणुव्वपयाहीणं दितो, गाथा-२. ८७९११. स्थूलिभद्र कोस्या सज्झाय व मेवाडी देशी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १२४३२). १.पे. नाम, स्थूलिभद्र कोस्या सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्र बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा रे मारा आसाढो; अंति: करस्यां तुम्ह वीसवास, गाथा-१३. २.पे. नाम. मेवाडी देशी, पृ. १आ, संपूर्ण. अमरसिंघ राजकुमार पद-मेवाडीराणा, मा.गु., पद्य, आदि: राजा जेसिंघजीरो; अंति: धणवारि मेवाडा राणा, गाथा-४. ८७९१३. तांबली तापसी ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:तांबली तापसनी ढाल., अ., (२५.५४११.५, २२४४३). तामलीतापस चौपाई, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: पारसनाथ प्रणमुं सदा; अंति: सबलदास० अत घणो ए, ढाल-१२. ८७९१४ (+-) ६४ सती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:६४सती सीजाय., अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४४५). ६४ सती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नामपने ग्यानी कथीया; अंति: ऋष जेमल कहै आण धरती, गाथा-३९. ८७९१५ (4) अनंतजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५-६४३३). अनंतजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गावउ जीउ श्रीअनंत; अंति: ज्ञानचंद० भवपार तरइ, गाथा-५. ८७९१६. (+-) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३७, चैत्र कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जालोर, प्रले. जीवणमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जीवकायारो., अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२५४११, १७४३९). औपदेशिक सज्झाय-काया, म. रूपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: काया हो कामण जीवजी; अंति: भणे रूपचंद हो भविक, गाथा-२१. ८७९१७. (#) खामणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:खामणा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १४४२७). खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं अरिहंतने; अंति: गुणसागर सुख थाय, गाथा-१६. ८७९१८ (+) पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३५-४१). १.पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: एक ध्यान संतजी का; अंति: शीवनारी वर वरणा, गाथा-५. २. पे. नाम. समेतशिखर-शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण... सम्मेतशिखरतीर्थ-शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पुहि., पद्य, आदि: धनभाग हमारा सिखरसमित; अंति: अपणा जनम सुधार पारो, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८८ www.kobatirth.org ३. पे नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि राजुल पोकारे नेम, अंतिः झरि कहे चैन विजे, गाथा-३ ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ कषाय पद, मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: जैन धर्म नही कीतावो; अंति: भारी करमसु रीता वो, गाथा-४. ५. पे नाम परदेसी पद, पू. १आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: इक काया अरु कामिनी; अंति: स्वारथ को संसार, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा-६. ८७९१९. (+#) नमस्कार महामंत्र सह अर्थ, सवैया, स्तुति, गीत व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र. वि. हुंडी असुती, अशुद्ध पाठ संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५X११.५, १७२८). १. पे नाम. नमस्कार महामंत्र सह अर्थ, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: साध सुपात्र वडे; अंति: लालचंद० कर गुण गाउंगा, गाथा १२. - ५. पे. नाम. साधुगुण पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंतिः णमो लोए सव्वसाहुणं, पद-५. नमस्कार महामंत्र - अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि असोकवृक्ष सुरपुफ, अति तीरीने पारंगत पामे. २. पे. नाम. महावीरजिन वाणीविशेषण सवैया, पू. १आ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन सवैया-वाणीविशेषण, पुहिं., पद्य, आदि: वीर हिमाचल ते निकसी; अंति: आर छोरा की कहाणी है, गाथा-५. ३. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र स्तुति, पृ. २अ- ३अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, रा., पद्य, आदि: असुभ करमकु हरणकु; अंति: नमो नमो पंच नवकारने, गाथा-६. ४. पे. नाम साधारणजिन गीत, पू. ३३-३आ, संपूर्ण पुहिं., पद्य, आदि: गय सुध ग्यान धरीय; अंति: धन धन साधुगुणधारी जी, गाथा-५. ८७९२० (#) माणिभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. खंभायत बंदर, प्रले. मु. मनोहरविजय पं. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री माहावीरजी प्रसादात् मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५x११.५, १४४३१). "" माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती; अंति लाख लाख रीझा लहे, गाथा-२६. ८७९२१. (+) षष्ठिशतक प्रकरण- (प्रा.) हिस्सा गाथा १ सह वालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., जैदे., (२५X११, १०X१४-२९). 7 अंतिः षष्ठिशतक प्रकरण-हिस्सा गाथा १, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरु; . निरंतरवसैहीययम्मि, गाथा- १. षष्ठिशतक प्रकरण-हिस्सा गाथा १ - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हंत भगवंत असरणसरण; अंति: मंगलीक संपजौ. ८७९२२. (*) हौरविजयसूरि सज्झाय व शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैये., (२४.५X११, ११x४४). १. पे नाम हीरविजयसूरि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. . आनंदहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर पाय नमिजी; अंति: आणंदहर्ष जयकार, गाथा- १५. २. पे नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only " मु. आनंदहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि आदि अनादि तीरथ सार; अति आनंद० सुखसंपति वरइ, गाथा-४. ८७९२३. ओपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. जोधपुर, प्रले. मनोर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X११.५, १३X३३). औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि च्यार पोर रो दीन, अंति: रायचंद० लीजो लाल रे, गाथा- ११. Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २८९ ८७९२४.(#) औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १६४५६). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण... औपदेशिक पद-इंद्रियदमनविषये, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: दया तणो मारग सुध दाख; अंति: जेमल० दमी लीजे रे, गाथा-८. २.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-संसारस्वप्नबोधे, म. जेमल ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: नरग नीगोद भमतो रे; अंति: जेमल० नगरने साधो रे, गाथा-११. ३.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-काल, म. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: देव दाणव चक्रवर्ति; अंति: जेमल० नरभव टाणो रे, गाथा-१७. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. औपदेशिक पद-साधु, मा.गु., पद्य, आदि: जती साधरो वीरद धराये; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८७९२५. त्रिशलामाता १४ स्वप्न ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:माहावी., दे., (२५.५४११.५, १९४३८). महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, रा., पद्य, आदि: पहेलीने प्रणम् हो; अंति: म्हारी आवागमण नीवार, गाथा-१७. ८७९२६ (+) नेमराजुल बारमासो व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३८). १. पे. नाम. नेमराजुल बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्वामि; अंति: कवियण० नवनिध पामी रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रासंगिक श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: स्त्रीमुद्रां झषकेतन; अंति: कापालिकाश्चापरे, श्लोक-२. ८७९२७. (-) नवकारमहिमा व संथारा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४११.५, १६x४२). १. पे. नाम. नवकारमहिमा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय-महिमा, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत करु जीय सर सरसत; अंति: सार न टुटा ज्यो, गाथा-२१. २. पे. नाम. संथारा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण... म. चौथमलजी म., मा.ग., पद्य, आदि: सायो रणकनकपुररा राज; अंति: चथमलजी कर गुणगरमो जी, गाथा-१०. ८७९२८. (#) माणिभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. १८७२, माघ शुक्ल, १२, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. भृगुपुर, प्रले. मु. खुशालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४११.५, १३४३६). माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती स्वामण पाय; अंति: आपो मुज सुख संपदा, गाथा-४०. ८७९२९ (+#) पार्श्वजिन छंद व मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.२, कुल पे. २, ले.स्थल. भीनमाल, प्रले. मु. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११,११४३१). १. पे. नाम. गोडीजीपार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाररूप परमेश्वरा; अंति: जीत कहे हरखै सदा, गाथा-२२. २. पे. नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे; अंति: छुटसे भव तणो पास, गाथा-५. ८७९३० (+) तेजसिंहगुरु भास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, ३७४२३-२६). For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची तेजसिंहगुरु भास-लुंकागच्छ, मु. वेलजी, मा.गु., पद्य, आदि: साध सिरोमणि सिवसुख; अंति: वेल० गुरुगुण गावइ रे, गाथा-१६. ८७९३१. पार्श्वनाथ स्तवन व चावतरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. आउआ, प्रले. मु. मयाचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४५७). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. अमृतवल्लभ, मा.ग., पद्य, आदि: दरसण दीजै पासजी; अंति: ध्यान धरो नितमेव ही, गाथा-५. २. पे. नाम. चावतरी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. निंदा परिहार सज्झाय, म. लब्धि, मा.ग., पद्य, आदि: चावत म करो परतणी; अंति: मानवी पामै देव विमान, गाथा-५. ८७९३२. नेमराजिमती स्तवन व कर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. वाणारस, जैदे., (२४४११, ११४४१). १. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. ग. सवलाल, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: जान लेइ जादव सढ्या; अंति: गर आवोनि हठीला नेमजी, गाथा-७. २. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. ग. सवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. दान, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदुःख सरज्यां पामी; अंति: दान० सदा सुखकार रे, गाथा-८. ८७९३३. (+) सज्झाय व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ६, ले.स्थल. घाणोरानगर, प्रले. मु. गजेंद्रसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ९४२८). १. पे. नाम, सीतासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग.जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: नित प्रणमं पाय रे, गाथा-८. २. पे. नाम. मेतार्यमुनि सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. राजविजय, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरु जी; अंति: भणे जी साधुतणी सजाय, गाथा-१३. ३. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी द्वारामती जाणिय; अंति: समयसुंदर तसु ध्यान, गाथा-६. ४. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे; अंति: अमर० छुटे भव तणा पास, गाथा-५. ५. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर महियल विचरे; अंति: सुकवि इण परि विनवे, गाथा-६. ६. पे. नाम. रथनेमिराजिमती गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल चाली रंगसु रे; अंति: समयसुदर० अविचल लील, गाथा-५. ८७९३४. सिद्ध के १५ भेद गाथा व १५ भेद सिद्ध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १३४४१). १.पे. नाम. १५ सिद्धभेद गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जिण १ अजिण २ तीत्थ ३; अंति: कणिक्काय १४ काय १५, गाथा-१. २. पे. नाम, पनरभेद सिद्ध सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १५ भेद सिद्ध सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पनरै भेदे सिवगए मन; अंति: कहै पंद्रे भेद कहाय, गाथा-१३. ८७९३५ (#) पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४११.५, २९x१६-२०). पार्श्वजिन स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्र उठी प्रणमु; अंति: शीश धीरनी पुरो जगीश, गाथा-४. ८७९३६. २३ बोल विचार, संपूर्ण, वि. १९३३, फाल्गुन शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रीमापुर, प्रले. श्राव. रंगलालजी सरीफ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत मे 'चंपालाल देखी' ऐसा लिखा है., दे., (२४४११.५, २०४६१). For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २९१ २३ बोल विचार-धर्म विशे, रा., गद्य, आदि: श्रीजीणराजे धर्म दया; अंति: सो घरमे नही पधराइय, अंक-२३. ८७९३७. रिष बत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११.५, १६x४४). ऋषिबत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद श्रीआदिजिणंद; अंति: जिनहर्ष नमु कर जोडि, गाथा-३२. ८७९३८. (4) प्रभाती पडिकमणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४४२). राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम सामायक विधि०; अंति: पारवा गाथा भणुं सही. ८७९३९ (4) विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, २५४५५). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नउकारना पहिला पदना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., विहरमाननो देहमान तक लिखा है.) ८७९४१. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १३४२९). नेमिजिन स्तवन, पं. खेमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत मात मनायकैजी; अंति: खेमचंद० करै चितल्याय, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ८७९४२ (+) महावीरजिन स्तवन सह टबार्थ, सीमंधरजिन व शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ८४३०). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... महावीरजिन स्तवन, म. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: मे तो नजीक रेहस्याजी; अंति: उदयरत्न० श्रीमहावीर, गाथा-७. महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: क्रोध मान माया लोभ; अंति: सारसागर तरी पार उतरे. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंति: विनय धरे तुम ध्यान, गाथा-३. ३.पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीसे–जो सिद्ध; अंति: सरी जिनजी करु प्रणाम, गाथा-३. ८७९४३. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११, १६४३९). औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, ऋ. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरनी वाणी रे; अंति: रत्न० हितकारी रे, गाथा-२०. ८७९४४. (+) मरूदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. नबाबगाम, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आदेसर. संवत मात्र ९६ लिखा है., संशोधित., जैदे., (२४४११, १४४१०-३३). मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: दीख्यार दीन थान देखी; अंति: गुणचालीसमी ढाल रसालो, गाथा-१३. ८७९४५. (+) औपदेशिक पच्चीसी, सज्झाय व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. श्राव. कनीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, २२४५५). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिकदृष्टांत पद, रा., पद्य, आदि: हंडया हालै रे चिह; अंति: आगलो नांख्यो फोड रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. औपदेशिक पच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८७८, आदि: नित नित नरभव लह्यो; अंति: रतनचंद दियो एम उपदेश. ३. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, म. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी खुब वणी छैजी दे; अंति: अब तो मारग पायो, गाथा-१२. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आध्यात्मिक पद, पुहि., पद्य, आदि: अरे तन का तनका तनक; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) ८७९४६. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १०४३४). शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: लिलुडी रायण सीतलनी; अंति: विमलसूरी इम भणे ए, गाथा-७. ८७९४७. अडचण कविता, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:अडचणनी क., जैदे., (२४.५४११.५, १२४४८). असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीइं; अंति: वहेला वरसो सिद्धि, गाथा-११. ८७९४८. (+) चतुर्विंशति दंडक पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७७०, फाल्गुन शुक्ल, ४, रविवार, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १४४४१-४६). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ८७९४९ (4) साधारणजिन पद, ढुंढक रास व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४५३). १.पे. नाम. साधारणजिन पद, प्र. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद-इंद्रनाटक, मु. कनककुशल, पुहि., पद्य, आदि: इंद्र नाचै नाचै हरि; अंति: कनककुशल० पाप पेखरी, गाथा-३. २.पे. नाम. ढुंढक रास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: संबत सतरैगुणतीसमै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४१ तक लिखा है.) ३. पे. नाम, औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८७९५० (4) औपदेशिक, नमिराजर्षि व साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२४४११, ११-१२x२३). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सुधो धर्म मकिस विनय; अंति: सो चिरकाले नंदोरे, गाथा-८. २. पे. नाम. नमिराजर्षि सज्झाय, पृ.१आ-२अ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देवतणी रीध भोगवी; अंति: इम श्रीगुरु सीह वचने, गाथा-९. ३. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ग. विजयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पंच महाव्रत सूधा; अंति: तस पाय वंदन कीजे सो, गाथा-८. ८७९५१ (+#) जिनप्रतिमा शिल्प व पूजनोपकरण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १७X४८). १. पे. नाम. जिनप्रतिमा शिल्प विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: धर्मस्थाने ततो गम्यं; अंति: मज्जणं भावओ कुज्जा, श्लोक-२४. २.पे. नाम, जिनप्रतिमा पूजनोपकरण विचार, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमापूजनोपकरण विचार-विविधग्रंथोद्धत, प्रा.,सं., प+ग., आदि: तसाइ जीवरहिए भूमीभाग; अंति: मूलबिंब० भूभाग इति. ८७९५२. चतुर्विंशतिजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. वासुपुज्य चैत्यवंदन की प्रथम गाथा प्रारम्भ में भी लिखी गई है., जैदे., (२४४११, १५४३०-३६). चैत्यवंदनचौवीसी, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहंत धनुष; अंति: (-), (पू.वि. धर्मजिन चैत्यवंदन गाथा-१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org , हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २९३ ८७९५३. (+) २० स्थानक विचार, पद, स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ९, प्रले. ग. उत्तमचंद (गुरु ग. विद्याचंद, तपागच्छ); गुपि. ग. विद्याचंद (गुरु आ. विजयदेवसूरि, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, १९४५५-६०). १. पे. नाम. सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण वि. १७५१, माघ शुक्ल, ९, रविवार ले स्थल, पालनपुर. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोलइ रे, ढाल-१२, गाथा - ६८. २. पे नाम. अध्यात्मजकडी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि पांचू घोडूं रथ इक; अंति राज विनय जीउ पाया, गाथा-५३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. . विनय, पुहिं., पद्य, आदि: घोरा जूठ है रे तु मत; अंति: शिखाओ यू पामो भवपारा, गाथा-५. ४. पे. नाम औपदेशिक पद, प्र. २आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं, पद्य, आदि किसके चेले कसके अंतिः विनय० सुख भरपूरि गाथा ८. ५. पे. नाम इरियावही सज्झाय, पृ. २आ-३अ संपूर्ण, वि. १७५१. संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि श्रुतदेवीना चरण नमी अंतिः विनयविजय उवज्झाय रे, " ढाल - २, गाथा - २६. ६. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- फलवद्धिं, मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि आयो आयो फलवदिमंडन अति चाहो शिवपद साधनइ रे, गाथा - १२. ७. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ३१-४आ, संपूर्ण वि. १७५१, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, बुधवार, ले. स्थल, लालपुर, महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पा नमी; अंतिः सेवक सकल जनमन रंजणो, ढाल -५, गाथा-६७. ८. पे. नाम. २० स्थानकतप सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. - मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: शांतिजिणेसर करुं प्र अति दान० कहइ निश्चइ एह, गाथा १२. ९. पे नाम. २० स्थानक विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि प्रथम पदि नमो अरिहंत अंतिः लोगस ४ नो काउसग कीजइ, ८७९५४ (+) ६२ मार्गणा विधान, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., ( २४४१०.५, १७x४४). ६२ मार्गणा विधान, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्म, आदि वंदो देव युगादि जिन अति वनारसी कीजै मोख उपाठ, " गाथा - २८. ८७९५५ () जयतिहुअण स्तोत्र भंडारगाधादि संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. कुल पे. ६. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४x११, ११x४२-४७). For Private and Personal Use Only १. पे नाम. जयतिहुअण स्तोत्र भंडारगाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. जयतिहु अण स्तोत्र- भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः ॐ नमो परमेसर सिरिपास, अंतिः सिद्धि मह बंछियपूरण, गावा-२ (वि. विधि सहित है.) २. पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र शेषकाव्य, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: गंभीरताररवपूरित; अंति: गुणैः प्रयोज्यः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. उवसग्गहरस्तोत्र भंडारगाथा, पृ. १आ, , संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा *, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः ॐ नट्ठट्ठमयठाणे पणठ; अंति: पासजिणिंद नम॑सामि, गाथा - २. ४. पे नाम वर्द्धमानविद्या मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवओ वद्धमाण; अंति: वर्द्धमानविद्या. ५. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो भगवतीमहामोहिनी; अंति: सर्पनो भय न होइ. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्र-स्तंभनपुर, पृ. २अ, संपूर्ण... प्रा., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवओ सिरि पास; अंति: प्रभावा विद्यते. ८७९५६. २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:चोवीसी तीर्थंकर., दे., (२५.५४११.५, ११४३५-४०). २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु., पद्य, आदि: समरु श्रीआदजिनद कीया; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१९ तक लिखा है.) ८७९५७. (4) रेणादेवी चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:रयणादेवी चो., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १९४४७-५०). जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे हुई; अंति: महविदेह जासी मोखि, ढाल-४, __गाथा-६५. ८७९५८. (+) साधु स्वाध्याय, गुरुगुण भास व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १३४५३). १.पे. नाम. साधु स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. मुनिगुण सज्झाय, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आरति सवि दूरइं करी; अंति: इसा साधु इक वार णइ, गाथा-७. २. पे. नाम. गुरुगुण भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८००, फाल्गुन कृष्ण, ५, प्रले. मु. सोभाचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. कर्मचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७९२, आदि: श्रीसूरीसर पय नमी; अंति: एहवा सदगुरु वंदीए, गाथा-९. ३. पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सज्जन फलज्यो फूलज्यो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० अपूर्ण तक लिखा है.) ८७९५९ (+) अतीतानागत वर्तमानजिन नाम गर्भित २४ विंशतिजिन व चोवीस दंडक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४४३-४५). १.पे. नाम. अतीतानागत वर्तमानजिन नाम गर्भित २४ विंशतिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वरतमान चौवीसी वंदू; अंति: सदा जिणचंदसुर ए, ढाल-५, गाथा-२४. २. पे. नाम. चोवीस दंडक स्तवन, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणसर; अंति: गावे धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ८७९६०. ३४ अतिशय, औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२६४११, ११४४८). १.पे. नाम. ३४ अतिशय छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमतिदायक कुमति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद-यौवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न*, मा.गु., पद्य, आदि: योवनीयानी मोजां फोजा; अंति: (-), गाथा-५, (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो कीरतसवानीतसं; अंति: चिंतव्यो ते थास्ये. ४. पे. नाम, प्रहेलिका श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जीव चोरासी लख तु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org ५. पे. नाम औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक दोहा, मा.गु., पद्य, आदि जीव चोरासी लख तु अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. दोहा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ८७९६१. (+) शास्वतजिनभवन विंव संख्या यंत्र, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५x११, २२x१६-२१). शाश्वताचैत्य जिनबिंबसंख्या कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८७९६२. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. पालणपुर, प्रले. मु. गोविंददास साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११, १०X३१). शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिन एक मुज विनत; अंति: मोहनविजय गुण गाय, गाथा-७. ८७९६५. गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २६ ११, १५X४५). " ८७९६३. साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. प्रतिलेखकने कृतिनाम नेमनाथ स्तुति लिखा है., दे., (२५X११.५, १५X३३). साधारण जिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकि पाडला जाई; अंति माई तुसे देव अंबाई, गाथा-४. ८७९६४. दसचंदरवानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३८, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. उनडोठ, प्र. वि. हुंडी: चंद्रुझ पत्र. श्री धरमनाथजी प्रसवात. वे. (२६४११ १३-१५X३५ ). , १० चंदरवा सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि समरी सारदीय अनंत अति मानविजय कहे सरे, ढाल-३, गाथा ४२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुगुण सज्झाय, पं. भूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि प्रणमि श्रीसारदा सार; अंति: अधिक पुंहवी जगीस, गाथा - १६. ८७९६६ ५६० अजीव भेद विचार, संपूर्ण, वि. १८८८, माघ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. नायकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२६११, १३X३४). ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकायना ३ भेद, अंति: ५६० भेद अजीवना जाणवा. ८७९६७. (+) ४ मंगल सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. हुंडी : मंगल, संशोधित, जैदे. (२६११.५, १९५६ ). ४ मंगल सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसीजिन नमुं; अंतिः ऋष जैमलजी कहे एम तो, गाथा-३२. ढाल - ९, गाथा - ५४. ८७९७१. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, दे. (२५x११.५, १३४३४-३८). " , י २९५ " ८७९६८. (+) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : पदमा., संशोधित., दे., ( २६ १०.५, १९×२८-३५). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: पापथी छुट ततकाल, ढाल -३, गाथा-३५. ८७९६९. २४ जिन ११ बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : ११ गीया रे बो., दे., (२५X११.५, १३X३४). २४ जिन ११ बोल संग्रह, रा., गद्य, आदि: पेले बोले ऋषभदेवजी; अति खीर से पारणो कीयो. ८७९७० (+) षट् अष्टाह्निक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१५, कार्तिक कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ग. खंतिविजय (गुरु पं. उत्तमविजय); गुपि. पं. उत्तमविजय (गुरु पंन्या. कांतिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५x११. ११X३४-४०). " ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीस्याद्वाद सुधोदध; अंति: बहुं संघ मंगल पाईया, For Private and Personal Use Only ८७९७२. (*) गौतम प्रश्नोतर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. वे. (२६११.५, १०x४०-४५) महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन- विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवनतिलो गाथा- १९. Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सरसति भगवति भारती; अंति: कहे गछ मंगल करु, ढाल-१२, गाथा-७७. ८७९७४. (+) ५ महाव्रत, रात्रिभोजनत्याग व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,१३४४३-४७). १.पे. नाम. ५ महाव्रत सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवे रे; अंति: भणै ते सुख लहि, ढाल-५, गाथा-३०. २. पे. नाम. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. रात्रिभोजन त्याग सज्झाय, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धर्मनुं सार ते; अंति: कांति० धन अवतार रे, गाथा-७. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. पदमतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: मनमाली धन अप हो म; अंति: पदम० जिम खोडि न लागै, गाथा-८. ८७९७५. जंबूवृक्षनो वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४११.५, ९x४३). जंबूवृक्ष वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूवृक्षं पीठ पांच; अंति: ५७ ला १४ ह०२ सय ८८. ८७९७६. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०-४५). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: आपे खेल खेलिंदा दूल; अंति: रूपचंद०जीत तिहारी है, गाथा-४. २.पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: वांके गढ फोज चली हे; अंति: दीधी नगारा की ठोर, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद-काया, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-काया, म. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: या तन काची मटि का; अंति: णही तूहीय तारिण हारा, गाथा-५. ४. पे. नाम, पार्श्वजिन पद-दीवबंदर, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: वाहा वाहा सच्चा सांइ; अंति: दीपे रूपचंद तुज बंदा, गाथा-३. ५. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हम मगिन भये प्रभ; अंति: जस कहे. मैदान में, गाथा-६. ८७९७७. (+) जामोती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:जामोतीजी., संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४३-४६). जामोती चौपाई, रा., पद्य, आदि: कृष्णबलभद्र दोनो नीस; अंति: हूं बलिहारी यादवां, ढाल-७. ८७९७८. पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, ४३४१६-२४). पट्टावली*, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीमहावीरजी; अंति: ७२ जिनलाभसूरि. ८७९७९ (+) परमात्म छत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ११४३२). परमात्मछत्रीसी, मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: परमदेव परमात्मा परम; अंति: लिखि आत्म के उद्धार, गाथा-३६. ८७९८०. श्रावक ३ मनोरथ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:३ मनोरथ., दे., (२६४११.५, ११४४५). श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले मनोरथे समणो; अंति: काले एहवो मुझने होजो. ८७९८१ (#) सज्झाय, चैत्यवंदन व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३३-३५). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आंखडीए मे आज रे; अंति: श्रीआदिसर तठा रे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २९७ २. पे. नाम वचनविचार सज्झाव, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, प्र. ले. लो. (१३०८) जिहां लग मेरु अडि है, (१३०९) पोधी गुण भरपूर हे, (१३१०) पढण गुणण कुं पुस्तका, (१३११) मन रंजन वांणी गमन. वचनगुप्ति सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि वचन विचारी रे सजन अंति आतमा पामइ सुख तहकीक, गाथा- १५. ३. पे. नाम, साधारणजिन चैत्यवंदन, पू. २अ-२आ, संपूर्ण मु. चिदानंदजी, मा.गु., पद्य, आदि: मन मोह्यं प्रभु गुण, अंति: भव धारी नय परीणाममां, गाथा-५. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. (२५X११, १६x४०). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. मु. यशोविजय, मा.गु., पद्य, आदि आवो मुज मन धाम अति जस शिर तु ही आतमराम गाथा ५. ८७९८२ (*) औपदेशिक लावणी व सज्झाव संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे., मु. खुसाल, रा. पद्म, आदि: साधु कहे साभल तु वा अति जो नही करसी घरमै गाथा- ११. 5 २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि दुरलभ भए नरनो भव, अति सिखामण जिण मगरी रे, गाथा- ११. ३. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: खबर नही आ जगमे पल, अंतिः विनती अखेमल की गाथा - ९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८७९८४. (#) तत्वविचार काव्य, औपदेशिक श्लोक, स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १३x४५-५०). ५. १. पे नाम. दशवैकालिकसूत्र नवमा अध्ययन सज्झाय, पू. १अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन ९ सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि विनय करेज्यो चेला; अति वृधिविजय लखमी लहवी, गाथा १२. o २. पे. नाम तत्वविचार काव्य, पृ. १आ, संपूर्ण. तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि९ व्रत५; अंति: ज्ञेया सुधीभिः सदा, ३. पे नाम औपदेशिक लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक-१. प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि साधुत ऐसी करी दनियं; अंति चउरे दूखेण जी पांती, लोक-३. ४. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. १आ, संपूर्ण, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि पांचु घोरुं रथ एक अंतिः राज्य बिनय ज्यु पाया, गाधा-५५. पे नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन. पू. १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. विबुधविमल, मा.गु., पद्म, आदि श्रीसंखेसर साहबो रे; अति पासजी सफल फली मुझ आस, गाथा ५. ८७९८५ (+४) गुरुगुण भास व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९९ पौष शुक्ल १४, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ४, ले. स्थल, जलालपुर, प्र. मु. न्यायसागर साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२५.५x११.५, १५४४२). १. पे नाम. विद्यासागरसूरि गुरुगुण भास, पृ. १अ संपूर्ण मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७९७, आदि: श्रीगुरुचरण पसाइ गुण; अंति: न्यायसागर गुण गाय हो, गाथा-७. २. पे. नाम उदयसागरसूरि गुरुगुण भास, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य वि. १७९७, आदि सदगुरु दीठे पातिक अति न्यायसागर दे आसीस, गाथा-७. ३. पे. नाम मल्लिनाथ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मल्लिजिन स्तुति, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जगपति मल्लिजिणेसर; अंति: एम मनघरमा रहेजो वही, गाथा-५. ४. पे. नाम संभवनाथ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची संभवजिन स्तवन, मु. न्याय, मा.गु., पद्य, वि. १७९८, आदि: जिनपती संभव देव दयाल; अंति: न्याय कहे उलट धरी, गाथा-९. ८७९८६. अतीत अनागत वर्तमान चोवीसजिन आदि नाम संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ९, जैदे., (२५४११.५, १३४३७). १.पे. नाम. अतीतचोवीसी नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अतीत, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीकेवलज्ञानी; अंति: स्पंदन २३ संप्रति २४. २. पे. नाम, अनागतचोवीसी नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिननाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपद्मनाभ१ श्रीसुर; अंति: अनंतवीर्य२३ भद्रकर२४. ३. पे. नाम. वर्तमानचउवीसी नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-वर्तमान, मा.ग., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेव१ श्रीअजित; अंति: पार्श्वनाथ० महावीरजी. ४. पे. नाम. वासुदेव नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ९ वासुदेव नाम, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिपृष्टवासुदेव१; अंति: नारायण श्रीकृष्ण९. ५. पे. नाम. बलदेव नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ९ बलदेव नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अचलनाम१ विजय२ भद्रबल; अंति: रामचंद्र८ बलभद्र ९. ६. पे. नाम. चक्रवर्ति नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, आदि: भरथचक्रवर्ति१ सगर; अंति: जय११ ब्रह्मदत्त१२. ७. पे. नाम, चक्रवर्ती के मातापिता नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ चक्रवर्ती के मातापिता नाम, मा.गु., गद्य, आदि: उसभदतराजा१ सुमित्र२; अंति: विप्रा११ चुलणीराणी१२. ८. पे. नाम. बलदेव के पितामाता नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: प्रजापति१ बंभराजा२; अंति: अपराजिता८ रोहरी९. ९. पे. नाम. वासुदेव की माता के नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मृगादेवी१ उमादेवी२; अंति: सुमित्रा८ देवकी९. ८७९८७. (+) तप चिंतवणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:तप चिंतव., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १४४४८). महान तपस्वीरत्नो-तप चिंतवन, मा.गु., गद्य, आदि: तप निर्जरा का बारा; अंति: तपना अनेक भेद जाणवा. ८७९८८. गर्भहर्षाकुसलाधिकार कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. रोहीडानगर, प्र.वि. हुंडी:कथा., प्र.ले.श्लो. (१०६) लिखणहार अतिचतुर, (६०७) जलं रक्षे थलं रक्षे, जैदे., (२६४११.५, १४४३२). त्रिशलामाता गर्भचिंताविलाप व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: हौँ माहरो गर्भ ऐस; अंति: गर्भ सर्वेग उछाहवंत. ८७९८९ एकादशीपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, १२x२८). एकादशीतिथि सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पुछि वीरने सुणो; अंति: सुव्रतरूप सज्झाय भणी, गाथा-१५. ८७९९०. सिद्धचक्र नमस्कार, व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. सिद्धक्षेत्र, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२६४११,११४३०). १.पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण.. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: सिवसुखदायक सिद्धचक्र; अंति: लहीइं अविचल लील, गाथा-३. २. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चंपापूरीनो नरवरु; अंति: धरीइं एहनुं ध्यान, गाथा-३. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आसो मासने चैत्र मास; अंति: तणो नयविमल कहे शीश, गाथा-३. ४. पे. नाम, सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. महान तप For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २९९ मु. सुखविजय; पं. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधतां; अंति: सुखविजय कहे सिस, गाथा-३. ५.पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नमो अरिहंत पहिले पदे; अंति: ए गणणानो पाठ, गाथा-३. ८७९९१ (#) चंदनमलयागिरि रास व धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६x६०-६५). १.पे. नाम. चंदनमलयागिरि रास, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चंदनमलीयागरी दहा. मु. भद्रसेन, पुहि., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम; अंति: भद्रसेन० सुवंछित भोग, अध्याय-५, गाथा-१८७. २.पे. नाम. धर्मनाथ स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलकारण देव निरुपम; अंति: पासचंद इणि परि कहइ ए, गाथा-९. ८७९९२ (4) नेमराजिमती बारमासो व ज्योतिष श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२५.५४११, १६-१८४३२-५०). १. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, म. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: मागसिर मासइ मोहिउ; अंति: विनय० हर्ष उल्लास, गाथा-२७. २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक-पंचांग ज्ञान, पृ. १आ, संपूर्ण.. ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मेषे जन्म मघा; अंति: ए त्रीस मुहूर्ता. ८७९९३ (+-) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२६४११, १२४३३). आदिजिन स्तवन, मु. हीरविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिराया कुलचंदए जग; अंति: पुरउ दीउ सिवपुर राजए, गाथा-११. ८७९९४. (4) महावीरजिन छंद व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, ९४३५). १. पे. नाम. महावीरजिन छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्री वीरजिनेसर जनमीय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-दात जीभ, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दांत जीभ, मु. वेलजी, पुहिं., पद्य, आदि: दात कहे सुण जीभ म कर; अंति: पाडीस दात जीभनो वाद, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं दिया है.) ८७९९५ (+#) २४ जिन अंतरकायमानआयुस्थिति कथन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. शांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४३८-४१). २४ जिन स्तवन-देहमान आयस्थितिकथनादिगर्भित, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: पंचपरमिट्ठ मन शुद्ध; अंति: नामे धरमवरधन इम भणे, ढाल-५, गाथा-२९. ८७९९६ (-) स्त्रीदुर्गुण सज्झाय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४११.५, १६४२८-३५). १.पे. नाम, स्त्रीदुर्गुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: नारि हार हाथी रे कार; अंति: बली गया रे जी, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: चेत चेत नर गाफल मत; अंति: डर छे उण दी आरा को, गाथा-६. ८७९९७. (2) अंतरीक्षपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३२, श्रावण शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. खुसाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १७४३६-४०). For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसत; अंति: ज्ये जीन चरणे वस्यु, गाथा-५५. ८७९९८ (#) अवंतिसुकुमाल व धन्नाशालिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, पठ. मु. सागररत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४४३-५२). १. पे. नाम. अवंतिसुकुमाल सज्झाय, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. अवंतिसकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनीवर आर्य सूहस्ती; अंति: हर्ष सुख पावे रे, ढाल-१३, गाथा-१०७. २.पे. नाम, धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन धन्ना सालिभद्र; अंति: लबधिरयणी दिह जो रे, गाथा-१३. ८८००० (+-) राजिमतीसती इकवीसी, सीतासती सज्झाय व औपदेशिक दहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:राजमती सीता का ढाल., अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १४-१६४३३-५२). १.पे. नाम. राजिमतीसती इकवीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. राजिमतीसतीइकवीसा, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: शासननायक समरिये; अंति: सुद पांचम मंगलवार, गाथा-२०. २. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: झलरती बलती घणी रे; अंति: लेस धगत सीधार रे, गाथा-९. ३. पे. नाम, औपदेशिक दुहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जब तब हीत आव घट माय; अंति: आय जोवन वीत्यो जाय, गाथा-१. ८८००१ (#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:संत जीणसर., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ११४४६). शांतिजिन स्तवन, म. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीसंतजीणसर संतकर त; अंति: ध्यान श्रीसीध भणो, गाथा-१४. ८८००२. औपदेशिक सज्झाय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. श्राव. माणकचंद मयाराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११,११४३३). औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदि: नाहलु न माने रे काइ; अंति: जोज्यो पंडित विचार, गाथा-११. औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार भावना मांहि पेहल; अंति: एहनो अर्थ पंडित जोजो. ८८००३. (+) महावीरजिन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १४४५१). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-४५ आगमसंख्यागर्भित, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: देवताना पिण जे छै; अंति: धरमसी० पुस्तक देख ए, ढाल-३, गाथा-२८. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-चैत्रीपूनम, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पय प्रणमी रे जिनवरना; अंति: अमर० कीरति इम कहै, ढाल-३, गाथा-१३. ८८००४. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १५४३२-४०). औपदेशिक सज्झाय-श्राविकादोषनिवारण, मा.गु., पद्य, आदि: बैठे साधु साध्वी; अंति: शंका नही छे काय के, गाथा-२२. ८८००५. (+) इलाचीकुमार चौढालिया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १८४४५). For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ इलाचीकुमार चौढालिया, मा.गु, पद्म, आदि प्रथम गणधर गुणनिलो र अंतिः केचलग्यान वशेषज्ञ, ढाल ४. ८८००६. पार्श्वजिन स्तवनद्वय व चौपडवैराग्य सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-८ (१ से ८) = १, कुल पे. ३, जैये., (२५४११, १९५३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पं. माणिक्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि: (-); अंति: माणक० आरति सघली जाय, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण से हैं.) २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८बी, आदि अलगी रहेनी अलगी रहे; अंतिः मोहन० स्तुति लटकाली, गाथा- ६. ३. पे नाम. चोपडवैराग्य सज्झाय, पू. ९आ, संपूर्ण. चौपड वैराग्य सज्झाय, आ. मानसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम अशुभमल झाटकी; अंति: मानसागर कहे सूर रे, गाथा - ९. ८८००७ (२) सिद्धचक्र व पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६११, ११x४६). १. पे नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धचक्र सेवो भवि; अंति: उत्तम सीस सदाई, गाथा-४. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि वरस दिवसमांहि सार; अंतिः जिनेंद्रसागर जयकार, गाथा-४. ८८००८ २४ जिननाम पितामातादिविचार कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, जैदे., (२५.५४११.५, २६x२७-३६). २४ जिन व्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को, आदि ऋषभ सर्वार्थ विनीता अतिः 7 (अपठनीय). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि पारकि तुने सीध पडी अति: समर ले श्रीभगवान, गाथा-७. ८८०१०. वर्णमाला, दूहा व नेमनाथ गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, प्र. मु. आसकरण ऋषि, पठ. श्रावि. जोईतीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १४४४२). १. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १अ, संपूर्ण. ८८००९. आदिजिन पंचकल्याणक गरबी व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३- २ (१ से २) = १, कुल पे. २, जैवे. (२६११.५, १०x३१). १. पे. नाम. ऋषभदेव पंचकल्याणक गरबी, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिजिन पंचकल्याणक गरबी-बारेजामंडन, क. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि: (-); अंति: ऋषभ० ते सुख पावे रे, गाथा-६, (पू. वि. गाथा - १ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ; अंति: व्व श्श ष्ष स्स ह २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पू. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सजन किए हि समुरते; अंति: न जाहि वसंतो वल्लहुं, गाथा-८. ३. पे नाम, नेमराजिमती स्तवन. पू. १आ, संपूर्ण. ३०१ ग. जिन हर्ष, पुहिं., पद्य, आदि जब मेरो साहिब तोरण अंतिः साची प्रीत लगाई, गाथा-५. ८८०११. (+#) स्तवन व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११.५, १३-१५४५५). १. पे नाम. स्याद्वादनय स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सार गुणधार सुखकार; अंतिः समकित तणी एवढाइ, गाथा ९. २. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम, सुमतिजिन स्तवन, पृ.१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: तुम हो बहु उपगारी; अंति: नयविमल० मइ बलिहारी, गाथा-६. ४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. __ आदिजिन स्तवन, मु. भाव, मा.गु., पद्य, आदि: सकल समीहित पूरण; अंति: कामधेनु सो दोहोवइ, गाथा-५. ८८०१२ (#) आदिजिन हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४७, आषाढ़ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ७४३७). आदिजिन हरियाली, मा.गु., पद्य, आदि: एक अचंभो उपनो कहो जी; अंति: सुणो भवक सहु संत, गाथा-१०. आदिजिन हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुषको आउखु हवडाने; अंति: रे भव श्रावक थे सुणो. ८८०१३. ५ कारण छ ढालिया स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२५४११, १२४३६). ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिइं; अंति: विनय कहे आणंद ए, ढाल-६, गाथा-५८. ८८०१४. नेमराजिमती पद द्वय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११.५, २६४१६). १.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, रा., पद्य, आदि: समुद्रविजजीरो लाडलो; अंति: महारी ले गया हे माय, गाथा-६. २. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ नेमराजिमती पद, मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: बातडली सुण जाज्यो; अंति: रतन० आवागमन मिटाज्यो, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनचंद्रसरि, मा.ग., पद्य, आदि: जीनवर माहा तेवीसमां; अंति: पसाव पभण श्रीजीणचंद, गाथा-९. ८८०१५. स्नात्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८११, कार्तिक शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. कर्पटवाणिज्य, प्रले. पं. मुक्तिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १६x४२). स्नात्र पूजा, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., पद्य, आदि: पूर्वे बाजोठ उपरि; अंति: भाणु वसे याहि णंदितो, गाथा-७०. ८८०१६. औपदेशिक सज्झाय, नेमराजिमती स्तवन व गुरुगण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११.५, १६४३५). १.पे. नाम. दानफल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानविषये, मा.गु., पद्य, आदि: समरु सरस्वति सामणीजी; अंति: एक उलसे पाय रे, गाथा-११. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: नवभव केरी प्रीत खरी; अंति: कवीयण० मुज बंधण छोड, गाथा-९. ३. पे. नाम, गुरुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मु. दयाचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १९०३, आदि: सतगुर ग्यानी दिपता; अंति: मारी आवागमण निवार रे, गाथा-१२. ८८०१८. चंद्रराजागुणवती सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सवैया., दे., (२५.५४११.५, १७४३५). चंद्रराजागुणवती सवैया, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९३१, आदि: कुसुमपुरी को राज चंद; अंति: हीरालाल० माइ है, सवैया-६. ८८०१९. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, संपूर्ण, वि. १८७८, चैत्र शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल, जावाल, प्रले. मु. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पंचमीरी चैत्यवंदण पत्र., जैदे., (२५४११.५, १३४३२). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसौभाग्यपंचमी तणो; अंति: विजयलक्ष्मी गुण उचरे, पूजा-५, गाथा-१५. ८८०२०. २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. आगर, प्रले. भोजराज, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५४११, १६x४०). For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३०३ २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु., पद्य, आदि: समरु श्रीआदिजिणंद; अंति: प्रभू मोय दरसण दीजे, गाथा-२५.. ८८०२१. (+) दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १८१५, आषाढ़ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सरसा, प्रले. ठाकुरसी; पठ.पं. थिरपाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०,१५४३४). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १०१. ८८०२२. २४ दंडक २४ द्वार विचार व जंबूद्वीप क्षेत्रविस्तारमान यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र १४३, पंचपाठ., दे., (२५४११.५, २६४१८-५६). १.पे. नाम. २४ दंडक २४ द्वार विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: नारकी१ अशुर २ नाग३; अंति: योतिष२३ वैमानिक२४. २. पे. नाम. जंबुद्वीप पर्वतादिक्षेत्रमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८८०२३. (2) पद, स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४,प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४२). १.पे. नाम, धर्मजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. गोडीदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीधरमजिनेसर ध्याव; अंति: गोडीदास० गुण गावो हो, गाथा-५. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे घरीयारी वावैरी; अंति: कला विरला कोउ पावा, पद-३. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कमलवनै भमरो रमे हसा; अंति: रिद्ध० चरण नमावी सीस, गाथा-५. ४. पे. नाम. नंदिषणमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में प्रतिलेखक ने "ऋषभ सीझाय" ऐसा लिखा. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी न जाईयइ परि; अंति: एकलो परघर गमन नीवार, गाथा-१०. ८८०२४. भरतबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४०-४७). भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: स्वस्ति श्रीवरवा; अंति: रामविजय जयश्री वरि. ढाल-४, गाथा-३८. ८८०२५. आत्महितशिक्षा सज्झाय व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १३४४४). १.पे. नाम, आत्महितशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु साथे जो प्रीत; अंति: उदयरत्न इम बोले रे, गाथा-७. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी ओलंभडे मत; अंति: मोहन० लंछन बलीहारी, गाथा-७. ८८०२६. १७ भेदीपूजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, १३४२६). १७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सतरभेदी पूजा जिन; अंति: जस० तर्या परतारे रे, गाथा-९. ८८०२७. (+-) फकिरचंद जीवन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४११, १७४३२). फकीरचंद जीवन चरित्र, मु. उत्तम, रा., पद्य, आदि: जंबुदीपना भरतम सहर; अंति: आवागमण नीवार रे, गाथा-१८. ८८०२८. चौतीसय अतिशय स्तोत्र व औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण, वि. १८८१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११,१३४४१). १. पे. नाम. चौतीसय अतिसय स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमति दायक दुरित; अंति: सेव मांगु भवभवे, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम, औपदेशिक कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त, क. गद्द, पुहिं., पद्य, आदि: ओ उपनोए एक उवागर; अंति: गद्द० भावै जिणही चढो, पद-१. ८८०२९. पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १८१२, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. गुढली, प्रले. मु. ऋषभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री आदिनाथजी प्रशादात्., जैदे., (२५४११, ११४४२). __ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन संपो सारदा मया; अंति: ईम तवीउ देसंतरी, गाथा-३८. ८८०३० (+) दानशीलतपभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १९४४४-५०). दानशीलतपभावना सज्झाय, रा., पद्य, आदि: आदजिणेसर आददे रे विर; अंति: अछै समझो हिया मझार, ढाल-२, गाथा-३८. ८८०३१. (+) विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १८५३, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २९-२५(१ से २५)=४, कुल पे. ३, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले.मु. गंगाराम, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५,१५४३६-४०). १.पे. नाम. २४ दंडक ३० द्वार विचार, पृ. २६अ-२८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: छ मासनु आंतरु पडई, (पू.वि. देव द्वार अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ५६३ जीवभेद गतिआगति विचार-२४ दंडके, पृ. २८अ-२९अ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: नारकीनी गति ४० ते; अंति: १११भेदा देवेषु यांति. ३.पे. नाम, अजीवरा ५६० भेद, पृ. २९अ, संपूर्ण. ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ते मध्ये वर्ण१०० गंध; अंति: ५६० भेद अजीवना जाणवा. ८८०३२. मुनिगुण भास व गुरुगुण गहुंली, अपूर्ण, वि. १८७३, आषाढ़ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११,१०४२७). १. पे. नाम. मुनिगुण भास, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सुणी पामे पद महानंद, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चरण करणस्यु शोभता; अंति: शुभ० मेलत शिव साथ रे, गाथा-५. ८८०३३ () बुध रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४८). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवि अंबाई; अंति: सालभद्र० टलै कलेस तो, गाथा-६२. ८८०३४. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १०x२९). औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: धोबीडा तुं धोजे मननु; अंति: सहज० छे अमृत वेल रे, गाथा-६. ८८०३५. चोसठियो यंत्र, संपूर्ण, वि. १९५६, भाद्रपद शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. मांडवी, प्रले. म. टोकरसी (गुरु मु. मोतीविजय); गुपि. मु. मोतीविजय (गुरु पं. हेमविजय); पं. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १३४४२). चोसठियो यंत्र, मा.गु., को., आदि: ऋषभनाथ अजीतनाथ संभव; अंति: पार्श्वनाथ वर्द्धमान. ८८०३६. जंबूकुमार चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, २०-२२४४०-४८). जंबुकुमार चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर विहरवा; अंति: राज मुनीवर आया, ढाल-४. ८८०३७. ९८ बोल अल्पबहुत्व विचार, ७ गरणा व ९ चंद्रवा विधान, संपूर्ण, वि. १९०१, माघ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११, ९-१०x२१-३२). १.पे. नाम. ९८ बोल अल्पबहत्व विचार, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, प्रले. वृद्धिचंद्र श्रीमाली, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रज्ञापनासूत्र-लघु अल्पबहुत्त्व ९८ बोल, संबद्ध, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, आदि: गर्भज मनुष्यसव्वसु; अंति: सिगला जीव विशेषाधिक. २.पे. नाम. श्रावक के घर में ७ गरणा का विधान, पृ. ३आ, संपूर्ण. ७ गरणा-श्रावक के घरमें, मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रावकनइ ७ वाना गले, (२)मीठा पाणीरो गलनो१; अंति: घीरो५ तेलरो६ आटारो७. For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३०५ ३. पे. नाम. श्रावक के घर में ९ चंद्रवा का विधान, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्रावक गृहे ९ चंद्रवा विधान, मा.गु., गद्य, आदि: पांणीहारे १ उखल उपर; अंति: देरासरे ९. ८८०३८. पर्युषणपर्व, अतीतचौवीशी व भाविजिनचौवीशी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११.५, ११४४२). १.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण गुणनिलो; अंति: पाम्या जय जयकार, गाथा-९. २. पे. नाम. अतीतचौवीशी- चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-अतीत, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उछरपीणी आरे थाय केवल; अंति: श्रीशुभवीर सनाथ, गाथा-४. ३. पे. नाम, भाविजिनचोवीसी चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. अनागत जिनचोवीसी चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मनाभ सुरदेवने; अंति: शुं अविहड धर्म स्नेह, गाथा-४. ८८०३९. ज्ञानपंचमी स्तवन व बीजतिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, ११४३६). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु चरण पसाउले रे; अंति: कांतिविजय गुण गाय रे, गाथा-८. २.पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भवि जीवने रे; अंति: नित विवध विनोद रे, गाथा-८. ८८०४० (+-) २४ तीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. रुपनगढ, प्रले. सा. सदी, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १८४४९). २४ जिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: आदनाथ करो हो सुनाथ; अंति: रुष० द्यो कंठ मोरे, गाथा-३१. ८८०४१ (4) मौनएकादशी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३९-४०). मौनएकादशीपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदिः (-); अंति: लहे ते मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-२५, (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-८ अपूर्ण से है.) ८८०४२. दशवैकालिकसूत्र की सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२-३९(१ से ३९)=३, जैदे., (२५.५४१२.५, १५-१७४४५). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, म. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमानिलो; अंति: गीत रच्या सुखकार, अध्याय-१०, संपूर्ण. ८८०४३. (#) २० स्थानकतप स्तवन, देसावगासी विधि व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिये गये है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४६३). १. पे. नाम. २० स्थानकतप स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. वखतचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे वसतो मुनिवरो, ढाल-३, गाथा-१८, (पू.वि. अंतिम ढाल की गाथा-१७ ___ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में पत्र के ऊपरी भाग में लिखी है. औषध संग्रह **, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. देसावगासिक पच्चक्खाण लेने-पारने की विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: (-). ८८०४४. धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:धन्ना., जैदे., (२५.५४११, १७४३८). धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामण विनवुजी; अंति: धनोरिष वांदिय रे लाल, गाथा-१५. For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०६ www.kobatirth.org ८८०४५ (#) संवर सज्झाय, नेमिजिन स्तवन व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:तवन., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १३x४२-४५). १. पे. नाम, संवर सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. ६ संवर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजणेसर गोयमने कहे, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: राजूल सखि आइ मिल सगर; अंति: भाखै नेम तणो अधिकार, गाथा - १०. ३. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रामचंद्र, पुहिं, पद्य, आदि सीमंधरजी क्या जाणु अति: रामचंद्र० तवन करी, गाथा-८. " ८८०४६. दयाचंदगुरु गीत, संपूर्ण, वि. १९६७, श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. बोयल, प्रले. मु. भारमल ऋषि । मु. दयाचंद्र): गुपि. मु. दयाचंद्र, पठ. सा. थापाजी आर्या सा. छगनाजी, प्र.ले.पु. मध्यम, दे. (२५.५X११.५, १०x३२). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दयाचंदगुरु गीत, मु. प्रताप मुनि, पुहिं., पद्य, आदि: भल आया हो सतगुरुजीनी; अंति: श्रावग सब हरखावे, गाथा-७. ८८०४७ (+) गौतमवृच्छा चउपई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-६ (१ से ६) = १, प्र. वि. हुंडी गोतम संवत १५४५ फागुण सुदि ११ गुरुवार बाद में किसी और के द्वारा लिखा गया है., संशोधित., जैदे., ( २६११, ११-१३x४२). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर विमल केवल तूंणह; अंति: लावण्य० जिनवचने वसिउ, गाथा २२, संपूर्ण ८८०४८. राजुलपच्चीसी बडी संपूर्ण, वि. १८५३, भाद्रपद शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. महताब ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १७४४५). राजिमतीपच्चीसी, मा.गु., पद्य, आदि सुनि भवियण हो प्रथम अंति: अंत सिवपुर पायये, गाथा ४७. ८८०४९ (+) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११, , १४४३८-४०). יי साधुवंदना, मा.गु, पद्य, आदि बंदीय गिरुआ सिद्धि अति (-) (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ८८०५०. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पठ गंगाराम हरिनारायण शुक्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५.५X११.५, ११X३६). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अंग उमाहो मोने अति; अंति: प्रेम घणै जिणचंद रे, गाथा-७. ८८०५१. संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२५.५४११.५, २७४१६). " " संभवजिन स्तवन, पंन्या, जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि सुखकारक हो श्रीसंभव; अति साधन भावइ स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४४१०.५, १२-१३४२२-३५). १. पे. नाम. २४ जिनराजना नाम स्तवन, पू. १आ- ३अ, संपूर्ण. संग्रही, गाथा - ११. ८८०५२ (+) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. जैदे., (२५.५४११.५, १५-१६४३५). " स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाला हो; अंति: (-), (पू.वि. सुविधिजिन स्तवन अपूर्ण तक है.) ८८०५३ (४) २४ जिनराज नाम स्तवन, १६ सती रास व ४ मंगल पद, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की For Private and Personal Use Only २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सअल जिणेसर प्रणमु; अंति: ताश शीस पभणे आनंद, गाथा-२७. २. पे. नाम. १६ सती रास, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि आदीनाथ आदीनाथ जिनवर; अंति: उदयरतन० सुखसंपदा ए, गाथा-१३. Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org ३. पे. नाम, ४ मंगल पद, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिधारथ भुपति सोहे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल -१ की गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८८०५४ (+) २४ दंडक विचारगर्भित स्तवन, अष्टभयनिवारक श्रीगोडीपार्श्वनाथ छंद, औपदेशिक दूहा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पू. ६-४ (१ से ४)= २ कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५x१०५ १२-१५४३४-४२). . १. पे. नाम. २४ दंडक विचारगर्भित स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन २४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य वि. १७२९, आदि (-); अंति: गावे धरमसी सुजगीस ए, (पू.वि. ढाल-४ की गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अष्टभयनिवारक श्रीगोडीपार्श्वनाथ छंद, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण, वि. १८८२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, प्रले. पं. दयालाभ; पठ. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन पद- गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती अरज; अंति: धरमसीह ध्यांनें धरण, गाथा - २९. पे. नाम औपदेशिक दूहा, पृ. ६आ, संपूर्ण. " औपदेशिक दुहा, पं. जसवंत, पुहिं., पद्य, आदि जसवंत धरम न कीजीये; अंति: मीलै धरमी नरकै जाव, गाथा १. ८८०५५ (+) पट्टावली, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, दे. (२६४११.५, १९३५-३७). पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजेसलमेरना भंडार; अंति: (-), (पू.वि. भगवतीसूत्रगत गौतमस्वामी व महावीरजिन प्रश्नोत्तर संवाद अपूर्ण तक है.) ८८०५६. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५X११.५, १६x४३). सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: एक मोती चोसठमणतणा ए: अति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - २१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८८०५७. (+) एकादशीतिथि सज्झाय, नेमराजिमती व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४११, १०x२५-२८) १. पे. नाम. नेमराजिमती स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि अलबेली छबीली रंगीली, अंति: राम नेम गुण गाइ, गाधा ४. २. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. १आ-२अ संपूर्ण. , मु. मानविजय, मा.गु, पद्य, आदि आज मारे एकादशी रे अति मानविजय लीला लहसे, गाथा ८. ३. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५X११, १५X३३). १. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. O पुहिं., पद्य, आदि : आदीनाथ लांबा हाथ; अंति: माडी पेहरो साडी, गाथा-४. ८८०५८. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन व द्रुमपत्रीयाध्ययन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १३X३४-५२). १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र- शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंतिः पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक ५. ३०७ २. पे नाम. द्रुमपत्रीयाध्ययन सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-डुमपत्रीवाध्ययन सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि वीर विमल केवल धणीजी; अंति: खिमाविजय० बहु गुणवेल, गाथा २२. ८८०५९. २४ जिन सज्झाय, औपदेशिक लावणी व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., मु. . रिखजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ अजित संभव, अंति: अटल सुख की खान है, गाथा-८. २. पे. नाम औपदेशिक लावणी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०८ www.kobatirth.org पुहिं., पद्य, आदि खबर नहि हे जुग में; अंति न मानी विनती अखमल की गाथा-९ ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: द्युतं च मांसं च; अंति: ज्याको अंत न पार, श्लोक-२. ८८०६०. पांचमतपविधि आराधन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैदे. (२५x११.५ १५३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु, पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुपदकज; अति अधिक उदय हुइ आज, गाथा - १४, (वि. ढाल - ३.) ८८०६१ (+) अभिनंदनजिन स्तवन व नंदीश्वरद्वीप जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३२). १. पे नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. ८८०६२. पंचमीविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५. ५X११.५, १४X३७). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि अभिनंदनजिन अरज अमारी, अंति सबला कीधा राजी, गाथा- ७. २. पे. नाम. नंदीश्वरद्वीपजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आठमइं दीप नंदीसर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) पंचमीतिथि विधि स्तवन, मा.गु. प+ग, आदि पहलो अंग सुहामणो रे; अति: नाणस्स २० जाप करणी. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधदेश पावापुरी; अंति: मेरु दिओ मनुहार, गाथा- ९. २. पे. नाम. १६ सती नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ८८०६३. अरणिकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८१८ चैत्र शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. वखता (गुरु सा फूला ); गुपि. सा. फूला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १५X३८). अरणिकमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि एक दिन अरणक वार; अंति: रीष मुकत्या गया जी, गाथा- २३. ८८०६४. दीपावलीपर्व चैत्यवंदन व १६ सती नाम, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५x११, ९४३३) १. पे. नाम. दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि ब्राह्मी चंदनबालिका, अतिः कुर्वंतु वो मंगलम् श्लोक-१. ८८०६५. आगमिक प्रश्नसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८५३, वैशाख कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, जैये. (२६४११, २०४५४-५७). " प्रश्न संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजीवाभिगमेसूत्रै; अंति: फलावीइं ते प्रश्न ४७, (वि. प्रश्न- ४७.) ८८०६६. पौषधपारणसूत्र व सामायिकपारणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, जैदे. (२५.५x११.५, १x२८). " १. पे. नाम. पौषधपारणसूत्र -तपागच्छीय, पृ. १आ, संपूर्ण. " संबद्ध, प्रा.मा.गु. पा., आदि सागरचंदो कामो अति मिच्छामि दुक्कडम्, गाथा-३. २. पे. नाम. सामायिकपारणसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सामाइअ वयजुत्तो जाव; अंति: मिच्छा मि दुक्कडम्. ८८०६७ (२) महावीरजिन विनती स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., " 3 (२५.५X११, १०X२७). महावीरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि जिनवर चोवीसमा; अंति: देज्यो परमानंद रे, गाथा-१९. ८८०६८. सोमजी सज्झाय व श्रावकगुण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. कांडाकरा, कच्छ, प्रले. गुमानसिंग, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x११.५ १२x४३). १. पे नाम. सोमजीपूजनी सिज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only सोमजीगुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सोमजी पूज विराजै; अंति: करै करम हुवै चकचूर, गाथा-५. २. पे. नाम. श्रावकगुण सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि कछ देस श्रावक भला अति (-) (पू.वि. गाथा ११ तक है.) " Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३०९ ८८०६९ (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०५, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. विझेवानगर, प्रले. पं. सुखसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, २७४१४-१७). महावीरजिन स्तवन-पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोमासी पारणो आवे; अंति: सुभवीर वचनरस गावे रे, गाथा-८. ८८०७०. नेमराजिमती बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १०x४०). नेमराजिमती बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजुल इण परि; अंति: पाले अविहड प्रीत रे, गाथा-१३. ८८०७१ चैत्यवंदनक, शारदाष्टक व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. सांडेरानगर, प्रले.पं. हितसागर; पठ. मु. मानसिंघ (गुरु पं. हितसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १७४४०). १. पे. नाम. चैत्यवंदनक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८०९, पौष शुक्ल, ६. साधारणजिन चैत्यवंदन-विविधतीर्थक्षेत्रमंडन, सं., पद्य, आदि: नित्यं श्रीभुवनाधि; अंति: छिद्रहस्ते यथोदकम्, श्लोक-२६. २.पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमौ केवल नमौ केवल; अंति: तजि संसार किलेस, गाथा-१०. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: ज्या की भवथिति घट गई; अंति: दख दानी दोष भरीह, सवैया-५. ८८०७२. (4) पार्श्वजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११.५, १४४३४-४०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: सफल फली सहु आस, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पा. सदानंद, मा.ग., पद्य, आदि: मोरा पासजिनराज सूरति; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ८८०७४. (+#) शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. सहिजश्री; पठ. श्रावि. झंपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, ११४३५). संतिकरं स्तोत्र, आ. मनिसंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: सिद्धी भणइ सीसो, गाथा-१५. ८८०७५. नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. मनीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३०). नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: नेम वंदन राजुल चली; अंति: सदा उत्तम मन आणी लो, गाथा-१८. ८८०७६. (+) दानशीलतपभावना व मरुदेवामाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. खेमती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १४४४२). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पंडित. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि: अरे चेता नद नही है; अंति: कुशल० सुद्धे ये राची, गाथा-१०. २. पे. नाम. मरुदेवामाता सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मरुदेवी माता कहे; अंति: मो भव पार उतारो रे, गाथा-१६. ८८०७७. (-#) नवकारगुण, दोहा संग्रह व द्वारका वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११.५, २३-२४४६४). १. पे. नाम, नवकार १०८ गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र १०८ गुण, मा.गु., गद्य, आदि: गुण श्री अरिहंतना; अंति: साधना सरव गुण एकसोआठ. For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. प्रस्ताव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मत करज्यो अहंकार ए; अंति: (अपठनीय). ३. पे. नाम. द्वारका व कृष्णपरिवारादि विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. द्वारिका व कृष्णपरिवारादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धारकनगरी १२ जोजन; अंति: पुत्री ५०लाख पोत्रा. ८८०७८. आतमा उपर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १२४२६). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासगर्भित, म.क्षमाविजय, मा.ग., पद्य, आदि: गरभावासमै चिंतवैए; अंति: खीमा० मगत मझार तो, गाथा-९. ८८०७९. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सोले सुपना., दे., (२५४११.५, १६४५०-५५). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, म. जैमल ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: पाडलीपर नामे नगर; अंति: जयमल्ल० किधी जोडो रे, गाथा-४३. ८८०८० (#) सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. धोराजी, प्रले. ग. कृष्णविजय (गुरु ग. कस्तुरविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. कस्तुरविजय (गुरु ग. भाणविजय', तपागच्छ); ग. भाणविजय (गुरु पंन्या. हितविजय'); पठ. मु. दयाविमल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४११, १७४४२-४४). सरस्वतीदेवी छंद, म. शांतिकशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मनि आंण; अंति: फलस्ये सविताहरी, गाथा-३६. ८८०८१. स्नानविधि व १५ तिथि सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११, १८४४७-५०). १. पे. नाम. स्नान विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: उत्तिष्ठंतु महद्भता; अंति: स्नानमहं करिष्ये. २. पे. नाम, लघु सरामण, पृ. १अ, संपूर्ण. पितृतर्पण विधि-संक्षिप्त, सं., पद्य, आदि: प्रभाते वहति गंगा; अंति: चाने बांधवा स्मृता, श्लोक-३, (वि. श्लोक संख्या क्रमशः लिखा है.) ३. पे. नाम. १५ तिथि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. गंगदास, मा.गु., पद्य, आदि: सकल विद्या वरदायणी; अंति: सहु कहे सेवक गंगदास, गाथा-२०. ४. पे. नाम. करपल्लवी, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: कके कमल खखे खडग; अंति: षडक ससे सोनी हहे हाथ. ८८०८२ (4) साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:अतिचार., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३५-४०). साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि चरणं; अंति: यथाशक्ति पहुचाडज्यो. ८८०८३. सकलजिन स्तवन, जं किंचिसूत्र व २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४११.५, १०४३४). १. पे. नाम. सकलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत देवा चरणनी; अंति: ज्ञान० तुम पाय सेवा, गाथा-५. २. पे. नाम. जं किंचिसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जंकिंचि नाम तित्थं; अंति: ताई सव्वाइं वंदामि, गाथा-१. ३.पे. नाम. २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन लंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभलंछन रिषभदेव; अंति: लखमीरतन इम कहंत, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८८०८४. चंदनबालासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५X११.५, ११×३५). चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः बालकुमारी चंदनबाला, अंतिः कुंवर कहे करजोडि रे, गाथा - १३. ८८०८५. (४) १८ पापस्थानक सज्झाय व औपदेशिक दूहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. छगना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी अठारा पापधानकरी.. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२५X११, १३x२६-३२). १. पे. नाम. १८ पापस्थानक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि पापधानक अढारपुरा कर अति रे जीवडला कहनीर धारी, गाथा १६. २. पे नाम औपदेशिक दूहा जुगार निषेध, पृ. १आ, संपूर्ण. י' औपदेशिक दुहा *, पुहिं., पद्य, आदि: जुवा रमै जे नर माया; अंति: तुज जुवा मत खेल रै, दोहा-१. ८८०८६. (+) होलिका चरित्र व परनारी परिहार सज्झाय, संपूर्ण वि. १८८९ पौष कृष्ण १४, मध्यम, पू. २. कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १७x४२). ९. पे. नाम होलिका चरित्र. पू. १अ २आ, संपूर्ण होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि प्रथम पुरुष राजा; अंतिः विनयचंद कहे करजोरी, डाल-४, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ५५. २. पे. नाम. परनारी परिहार सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि परनारी प्रसंगथी भोगव; अति भलेरी सुख पायो अथको गाथा- ११. " ८८०८७. पाक्षिकादि पडिकमणा विधि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ४. प्र. वि. हंडी पाखीप्र०. वे. (२५.५४११.५, ११४२५-३०). , प्रतिक्रमणविधि संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम वंदेतू; अंति: सामायक पारी सांभले. ८८०८८. नोकारनी विधि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२५x११.५ १२x२२). नमस्कार महामंत्र जाप विधि, मा.गु., गद्य, आदि पहिला शरीर सुध वस्तु अंति: रोग टलइ वयरी टलइ. ८८०८९. (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८९०, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. पुण्यसुंदर गणि (कवलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गोतमरासो., संशोधित., जैदे., (२५x११.५, १४X४०). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विरजिणेसर चरण कमल; अंति: संपजे कुरला करे कपूर, ढाल-६, गाथा ४९. ८८०९० मुकतकोविद, संपूर्ण वि. १८४९ आषाढ़ कृष्ण, ६, मध्यम, पू. १, प्र. वि. हुंडी: मुकतकोवीद, जैदे., (२५.५५११, १४x२६). औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंदजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वगसमर संगासण धरम पेम अति रायचंदजी ०ढाल जोडी जी गाथा १५. ३११ ८८०९१ (७) स्तुति, सज्झाय व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५-४(१ से ४) = १, कुल पे. ४. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५x११.५, ११४३२-३७) २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीइं; अंति: लबधिविजय गुण गाय, गाथा - ९. ३. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. १. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. प्रले. ग. भावविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: दिशतु शासनदेवता, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण से है.) मु. आनंदघन, पुहिं, पद्य, वि. १८वी, आदि अवधू नाम हमारा राखे, अंतिः सेवक जन बलिहारी, गाधा ४. " ४. पे नाम. सुविधिजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि भोरी अम्हाणी आया रे; अंति रूपचंद बंदा तेडा, गाथा ४. For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८०९२. (*) नमस्कार महामंत्र रास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. हुंडी नवकार रास, संशोधित, जैदे. (२६४११, १६x४०). , " नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पेहिलौजी लीजीइं; अंति: जगमांहि नही कोई आधार, गाथा -२२. ८८०९३. (+) नवकार स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५x११, १७४५५-६०). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे अयाण; अंति: तणी सेव कीजह नित, गाथा १३. ८८०९४. (#) २४ जिन गणधर संख्या स्तवन, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११, १४४३३-३५). २४ जिन गणधर संख्या स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, आदि पेहिला ऋषभजिणंद रे ए अति ए सुंदर तवन आनंद, गाथा - १५. ८८०९५. घृत सज्झाय, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. १ जैदे. (२६५११, ११४३६-४०). " पदेशिक सझाय घृतविषये, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि भवियण भाव घणो धरी; अंति लालविजय० गुण का गाथा १९. ८८०९७. बाल पच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२४.५४११.५, १३४४५-५०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बालपच्चीसी, पुहिं., पद्य, आदि: दुलहो मनुष्य जमारो; अंति: पाप तणीजे बांधे पाल, गाथा-२५. ८८०९८ (*) नेमराजिमती व एकादशीव्रत गीत, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पु. १. कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५x११, ११-१४४३७) "" १. पे. नाम. नेमराजीमती गीत, पृ. १२-१आ, संपूर्ण पठ श्रावि, नानीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमराजिमती स्तवन, मु. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: जान सजी जादव जुड्या; अंति: हइ फल्या मनोरथ आज रे, गाथा - १३. २. पे. नाम. एकादशीव्रत गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मेरसिखर सुनान आप कनक; अति वरत मा आद किकादसि गाथा ९. ८८०९९. स्थूलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. लालविजय (गुरु मु. शुभविजय); गुपि. मु. शुभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १४X४०-४५). स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि मनि धरु; अंति: देयो सिवपुरी वास, गाथा-१६. " ८८१०० (*) नेमिजिन वारमासो, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x११, १४X३५). नेमिजिन बारमासो, पुहिं, पद्य, आदि अब सखी आयो है श्रावण अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा १३ अपूर्ण तक लिखा है.) ८८१०१ (-) नलदमयंती, औपदेशिक व आध्यात्मिक सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे., (२५X११, १३x४७). १. पे. नाम. नलदमयंती सज्झाय, पृ. १अ, , संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जो तम छाड्यो देस हो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभ के दूहा ३ तक लिखा है.) गाथा - १२. ३. पे नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण रा., पद्य, आदि मे देवन ते अरहंत चाउ, अंति: भत चरण की दीजीड़, गाथा ८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-चेतन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि चेतन अनंत गुणाको रे; अति: गुण गावणा प्रेमस्यु, For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८८१०२. सिज्झाय करवा विधि व फलित ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १५४३८-४४). १.पे. नाम. सज्झाय विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. व्याख्यान वाचन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिकमी; अंति: पाछु वाख्यान वांचवो. २. पे. नाम. ज्योतिष, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भडली संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मघा स्वाति च रेवत्या; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "धन तीजो भाग सुजाणह" पाठ तक लिखा है.) ८८१०३. (+) काय स्थिति बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १८-२२४२५-२८). कायस्थिति विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: जीव गई इंदी काय जोय; अंति: असासवता कह्या छे. ८८१०४. (#) त्रिभुवनप्रासादजिनबिंबसंख्या चैत्यपरिपाटी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १३४२३). आराधना, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलं त्रिकाल अतीत; अंति: सासय ठाणं सुह तिहाणं, ग्रं. २२७. ८८१०५. स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:स्नात्रपत्रं., जैदे., (२५४११, १३४४०). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: सारखी कही सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६०. ८८१०६. (+) पुद्गलपरावर्त विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४३). पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात वर्गणाई औदारिकइ; अंति: परावर्त सुक्ष्म थाइ. ८८१०७. (+) शीलप्रकाश रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:सीलरासो., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १७X४३). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: पहिलुं प्रणाम करूं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ अपूर्ण तक लिखा है.) ८८१०८.(#) अक्षर चौतीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. वलभीनगर, प्रले. श्राव. खुबचंद वैरागी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री धर्मनाथजी प्रसादात्., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४११.५, १३४३०). अक्षरचौतीसी, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कका कुड न बोलीये कुड; अंति: कहे गुणविजय सुसीक्ष, गाथा-३४. ८८१०९. (-) विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, २०४३४). १. पे. नाम. एकवीस सबला दोष, पृ. १अ, संपूर्ण. २१ बोल-सबल दोष, मा.गु., गद्य, आदि: हस्तकर्म करै तो सबल; अंति: थानक सेवे तो सब०. २. पे. नाम. ३३ आशातना विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, आदि: गुरू आगले चाले तो आस; अंति: अरथमें खोट काढे तो. ३. पे. नाम, बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: फागुण मास पग३ अंगुल४; अंति: माहमास पग३ अंगुल८. ८८११० (+) रामसीता चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., ., (२४४११.५, १९४४४). रामसीता चरित्र, मा.गु., पद्य, आदि: हा हा देव ते स्यूंअंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने १७ के बाद गाथांक नहीं लिखा है, "निरमल करु पीहर सासरो रे लाल" तक लिखा है.) ८८१११. महावीरजिन लेखो व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध., जैदे., (२५४११, ११४३८-३९). १. पे. नाम, महावीरजिन लेखो, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन आयुविवरण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: तिन्नि सय तीसासढा; अंति: हीनयं जिना समये, गाथा-१. महावीरजिन आयुविवरण गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिथिपत्रे आह; अंति: साठ दिन वरसरो लेखो. For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: ऐसे सहर बिच कोण दिवा; अंति: रूपचंद० की कमान है, गाथा-४. ८८११२. सिद्धाचल स्तवनद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३७). १. पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वाहलो वसे वीमलाचले र; अंति: पांमीये सिवसुख जाय, गाथा-८. २.पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आतमराम किण दिन; अंति: गीरी परमानंद पास्यु, गाथा-७. ८८११३. (+) संवर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १०४३९). औपदेशिक सज्झाय-संवर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर गोयमने कह; अंति: मुगति जासी पाधरो, गाथा-६. ८८११४. (+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११, ११४३७). पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पर्युषण गुणनीलो; अंति: शासने पामे जय जयकार. ८८११५. धारणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. घ्रांणपुर, दे., (२३.५४११, १२४४०-४६). २४ जिन राशि नक्षत्र योनि गण वर्ग हंसक विवरण कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८८११६. मनस्थिरीकरण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४११.५, ३१x१९). औपदेशिक सज्झाय-मनस्थिरीकरण, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मन थिर करजो रे समकित; अंति: वरजो रे चिदघन रासीने, गाथा-७. ८८११७. सरप्रभजिन, ईश्वरजिन व विशालजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११.५, ३०x२३). १. पे. नाम. सुरप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आवो रे मन मंदीर मोरे; अंति: तोरी आण बहु शिर जोरे, गाथा-५. २. पे. नाम. ईश्वरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: दानसील बहु जगमां तेर; अंति: स्वादे वधता वाना रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. विशालजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: द्रव्य सरुप इम उपदीस; अंति: सिरधरे तुझ आणा भगवंत, गाथा-७. ८८११८. (#) स्थूलीभद्र बारमासा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १५४२८). स्थूलिभद्र बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र मास सोहमणो; अंति: सही संपति लील के, गाथा-१४. ८८११९ (+) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११.५, १०-१२४२७-३०). नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजयसुत शिवा; अंति: पुहती करअ कल्याण, गाथा-२३. ८८१२० (+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १२४२९-३२). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, म. साधविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: तणो सीष्य कहे करजोडि, गाथा-५. ८८१२१. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १७४४६). आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुं प्रथम जिणेसर; अंति: धरमवरधन० प्रकाश ए, ढाल-३, गाथा-२६. ८८१२२. छींक विचार व साध साध्वी कालधर्म विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, १३४४३). For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३१५ १. पे. नाम. छींक विचार, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. पं. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. ___ संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पाखी पडिकमणु करता; अंति: छींके तो लोच कराववो. २. पे. नाम. साधु साध्वी कालधर्म विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुसाध्वी कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम उष्ण जले; अंति: खीलो ठोकी बेसारवो. ८८१२३. रुक्मणीसती व प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४११.५, १२४२६). १. पे. नाम. रुक्मणीसती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. म. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामो गाम; अंति: जाइ राजविजे रंगे भणे, गाथा-१४. २. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु तुमारा पाय; अंति: ऋद्धिहर्ष० ए परतख्य, गाथा-६. ८८१२४. अजितजिन स्तवन व रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., दे., (२४.५४११, ११४२४-२६). १. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलग अजित जिणंदनी; अंति: रूपनो ससनेही स्वामी, गाथा-५. २.पे. नाम. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __उपा. यशोविजयजी गणि *, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जस सौभाग्य लहीजइं रे, ढाल-४, गाथा-३६, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३३ अपूर्ण से लिखा है.) ८८१२५. (#) भरहेसर सज्झाय व औपदेशिक कवित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे.२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, २५४१८-२०). १.पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. म. विद्यावर्द्धन; पठ. श्रावि. रिद्धिबाई, प्र.ले.प. सामान्य. __ संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. पं. कुशल, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक कवित्त, रा., पद्य, आदि: सार बाबासार सब बातरी; अंति: अकेकी कला वधती चडे, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ८८१२६. २४ तीर्थंकर कल्याणक व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १९४५०). १.पे. नाम. २४ तीर्थंकर कल्याणक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, कल्याणक, दीक्षा, मोक्षादि विवरण, पुहि., गद्य, आदि: श्रीआदिनाथना आसाढ वद; अंति: कार्तिक वदि मोक्ष. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: महानंद कल्याणवली; अंति: नाथजी पासजी रंग गायो, गाथा-११. ८८१२७. (#) सवचंदसूरि भट्टारक रास व उत्पति समय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, ३४४२५-२८). १. पे. नाम. भट्टारिक सवचंदसूरिनी उत्पति, पृ. १अ, संपूर्ण. सवचंदसूरि भट्टारक समयमान-खरतरगच्छ, रा., गद्य, आदि: भट्टारिक सवचंदरिनी; अंति: विसेष रागे कीधो छे. २. पे. नाम. सवचंदसूरि भट्टारक रास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सवचंदसूरि भट्टारक रास-खरतरगच्छ, रा., पद्य, आदि: सासन नायक समरीइ; अंति: तस वाधइ हो घर मंलमाल, ढाल-३. ८८१२८. कल्याणविमलजी तथा मनि प्रेमविमलजी के नाम भूषणदास रायचंद का पत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२ हैं., दे., (२४.५४११, २९x१४-२०). विविधविषयसंबद्ध साधु पत्राचार पत्रसंग्रह, मु. भुवनकीर्ति, सं., गद्य, आदि: सवत श्रीमनुष्यभव महा; अंति: विमलजी ने वंदना केजो. For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५ खामणा, मा.गु., गद्य, आदि पहिला खामणा अढीवीपमा अंति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., छठा खामणा अपूर्ण तक लिखा है.) ८८१३०. आचार्य प्रथम पीठीका १३८ बोल सूचिपत्र व ९ बोल जिनचंद्रसूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, वे., (२५.५x११, ११x२४). १. पे नाम. आचार्य प्रथम पीठीका १३८ बोल सूचिपत्र, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण. आचार्य प्रथम पीठिका १३८ बोल सूचिपत्र, मा.गु., गद्य, आदि १ अश्वादिक्रयाणकविक्; अति भूमिस्थानीधी निर्णय. २. पे. नाम जिनचंद्रसूरि ९ बोल- खरतरगच्छ पृ. ३आ, संपूर्ण. ९ बोल जिनचंद्रसूरि खरतरगच्छ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). " ८८१३१. (*) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे., (२५.५x११.५, १८४३६). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि : उतपति जोइ न आपणी मनि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३१ तक लिखा है.) ८८१३२. (७) श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९१८ श्रावण कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. अमीचंद (गुरु मु. माणेकचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११, ९४२५). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि सारावक तु उठे परभात; अंति: करणी छे दुखहरणी एह, गाथा - २१. ८८१३३. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., ( २४.५X११, ११४३५). ८८१२९. (+) ५ खामणा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, १६x४५-४७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैदे., भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलि अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ८८१३४. १९ काउसग दोष सह अर्थ, श्रावक गुण व चउसरण गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, (२५.५४११.५, १५X३७). १. पे. नाम. १९ काउसग दोष सह बालावबोध, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. चैत्यवंदनभाष्य-हिस्सा १९ कायोत्सर्गदोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि: घोडय १ लया २ यथंभे; अंति: यवारुणी १८ पेहा १९, गाथा - २. १९ कायोत्सर्गदोष गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि घोडो जिम चरण वांको अंति: रहित काउसण कीजे. २. पे नाम श्रावकना २१ गुण सह वालाववोध पू. १आ, संपूर्ण " धर्मरत्नप्रकरण-चयनित २१ श्रावकगुण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: धम्मरयणस्स जुग्गो; अंति: इगवीसगुणहिं संजुत्तो, गाथा ३. २१ श्रावकगुण गाथा बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि धर्म रतनने जोम्य; अंति: २१ इणे गुणे युक्तः. ३. पे. नाम. चउसरण गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि: मुजनइ चार सरणा; अंतिः कल्याण मंगलकारो जी, गाथा-३. ४. पे नाम. सुभाषित, पृ. १आ, संपूर्ण. , लोक संग्रह पुहि. प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि न निर्मितायं च दृष्ट; अतिः काले विपरीत बुद्धि, श्लोक-१. ८८१३५ (+) नेमराजीमती बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२३.५X११, १६३५). नेमराजिमती बारमासा, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि ससीएवनी नयनांबुझी अंतिः ससी द्रुतारि रे, गावा- १५. ८८१३६. महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जै.. (२५४११, ८४३४). महावीरजिन स्तुति, मु. दोलतविजय, मा.गु., पद्य, आदि शासननो नायक जीनवर अंति: दोलत देजो माई, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३१७ ८८१३८. पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अंत में अन्य प्रतिलेखक द्वारा निम्नलिखित पाठ लिखे गए हैं- गीरधरजी पाली मधे रहे छै श्रीसारद्याअनमो नमः श्रीगुरुभ्यो नमः श्री वीतरागाय नमोन्म: वीर जिणंद उपदेशे स्वामी करौरे जीवजतन., दे., (२४४११,१५४३६). __पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमान तीर्थं; अंति: श्रीपुण्यसागरसूरि. ८८१३९. नमस्कारमहामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. सुखसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १०४२४). नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवीयण समरो; अंतिः प्रभु सुंदर सीस रसाल, गाथा-१४. ८८१४०. (+) सुमतिजिन आरती, संपूर्ण, वि. १९४१, भाद्रपद शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११.५, ९x१६). सुमतिजिन आरती, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिजिणंदने आगले; अंति: गुलाबे पूजोजी सवेरो, गाथा-४. ८८१४१ (+) अष्टमीतिथि व शत्रंजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १०४३४). १.पे. नाम, अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पामे घणो, ढाल-२, गाथा-२२. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.... म. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: रे सिद्धाचल भेटवा; अंति: करी विमलाचल गायो, गाथा-५. ८८१४२. सुपन विचार व ज्योतिष विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. प्रायः कल्पसूत्र सुबोधा टीकान्तर्गत विचार., जैदे., (२५.५४११.५, २०४४५). १. पे. नाम. सुपन विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, आदि: रात्रनै पेहले पोहरे; अंति: जान आगल कहिजै. २. पे. नाम. ३२ लक्षणादि सामुद्रिक ज्योतिष विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पंचदीर्घ चतुर्हस्व; अंति: ते उत्तमपूरष जानवो. ८८१४३. (#) क्षेत्रपाल नीसाणी व भेरुजी छंद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १८४३०-३२). १. पे. नाम. क्षेत्रपाल नीसाणी, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १७८४, वैशाख अधिकमास शुक्ल, ५, ले.स्थल. उटालाग्राम, प्रले. मु. हीरसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य. क्षेत्रपाल निसानी, म. फतेचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गोरा मतवाला भेरु; अंति: पग तेरा ध्यावंदा है, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. भेरुजी छंद, प. १आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भैरुजी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: वाटे घाटे तुं वसै; अंति: (-), (पू.वि. "भीलण सेती भाव" पाठ तक है.) ८८१४४. (4) पार्श्वजिन स्तोत्र, छंद व स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७२, आश्विन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. ३, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि (लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४४१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., ले.स्थल. आडीसरनगर, पे.वि. श्री हंशनाथ प्रसादात्. मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: (-); अंति: लब्धि० मुदा प्रणम्य, गाथा-३२, (पू.वि. श्लोक-२७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवे; अंति: जिनहर्ष अकल अविनास, गाथा-८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. विजयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मूरत श्रीपासतणी; अंति: निधि सिद्धि आणंद घणे, गाथा-११. ८८१४५. कालीमाता स्तोत्र, नवकार छंद व पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. ३, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १५४५१). १. पे. नाम. कालिकामाता स्तोत्र, पृ. १०अ, संपूर्ण. गिरधारी, मा.गु., पद्य, आदि: करी सेवना ताहरी मात; अंति: जीवे चरण सुपाली, गाथा-८. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरूं; अंति: प्रभु सुंदर सीस रसाल, गाथा-१४. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, पृ. १०आ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनमुख पंकज; अंति: उदय सुसेवक तास तणो, गाथा-७. ८८१४६. प्रियमेलक चौपाई, अपूर्ण, वि. १८४९, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. सा. रतनी (गुरु सा. लाडाजीसामी); गुपि.सा. लाडाजीसामी (गुरु सा. चंदजी); सा. चंदजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक खंडित है, अतः अनुमानित पृ.सं. अनुमानित दी गई है., जैदे., (२४.५४१२, १६४३०). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: (-); अंति: पुण्य अधिक परमोद, ढाल-११, गाथा-२२०, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., ढाल-११ गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ८८१४७. (+) २४ जिन नाम, राशि, योनि, नक्षत्रादि विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१०.५, २४४४०). २४ जिन राशि नक्षत्र योनि गण वर्ग हंसक विवरण कोष्टक, मा.ग., को., आदिः (-); अंति: (-). ८८१४८. (+) बारमास दहा व कपटी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. भक्तिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १७४२९). १. पे. नाम. बारमास दूहा, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती तेरमासा, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: प्रणमुं विजया रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. कपटी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुध संवेगी कीरिआधारी; अंति: लाजे नही वलि टाल, गाथा-२२. ८८१४९. अइमत्तामुनि व मेतार्यमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटणनगर, जैदे., (२४.५४११, १४४३६). १. पे. नाम. अइमत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पाटणनगर. __अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: ते मुनिवरना पाया, गाथा-१८. २. पे. नाम. मेतार्यमुनि सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. राजविजय, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: सुमत गुपतनां आगरुजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८८१५१. मेघकुमार सज्झायद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१०x१०, १४४३९). १. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या जी; अंति: भणेजी ते पामे भवपार, गाथा-२१. २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. क. कसल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर आय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८८१५२. चौविसजिन गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२४.५४११, १३४३२). २४ जिन गीत, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., संभवजिन गीत गाथा-३ अपूर्ण से है व पद्मप्रभजिन गीत तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३१९ ८८१५३. (#) जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, ४४-४६४२१). जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अनंत प्रदेसीयो० छेदी; अंति: (-), (पू.वि. प्रश्न-३७ अपूर्ण तक है.) ८८१५४. (4) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. भवानीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ११४३३). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी प्रभु पासजी पासजी; अंति: रंगविजय० सिवराज रे, गाथा-६. ८८१५५. पार्श्वजिन व नेमराजुल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १३४४५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुखसार, मा.गु., पद्य, आदि: गुणनथी गोडी पास; अंति: सुखसार सेवक दीजे रे, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक वरणी चुनडी आजो; अंति: सुणज्यो बालगोपाल, गाथा-१५. ८८१५६. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८१२, ?, आषाढ़ कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. जैमल्ल (गुरु मु. ललितसागर); गुपि. मु. ललितसागर; पठ. धना ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में अशुद्ध व भ्रष्टाक्षरों में कुछ लिखा गया है., कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत., जैदे., (२४.५४११.५, १२४४३). औपदेशिक सज्झाय-श्रावकाचार, मु. ललितसागर, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक जनम गमै छै रे; अंति: ललितसागर०समरण सार कै, गाथा-१०. ८८१५७. ५ इंद्रिय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १२४२०-३२). ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: सुजाण लहो सुख सासता, गाथा-६. ८८१५८.(+) एकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८२३, भाद्रपद कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. गोडीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १८४३७-४७). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., प+ग., आदि: श्रीनेमनाथ द्वारिका; अंति: एकादशीरी कथा वीरताः. ८८१५९. आदिजिन स्तवन, नेमराजिमती सज्झाय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११,१५४३९). १. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सिंहकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: म्हे तो उदियापुरथी; अंति: हो साहिब सुख संपदा, गाथा-१०. २. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवल गोख अमोल झरोखे; अंति: देवविजय जयकारी, गाथा-७. ३. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, महमद शाह, मा.गु., पद्य, आदि: गाफल बंदे नीदडली परी; अंति: मेरी बिडली पार उतार, गाथा-७. ८८१६०. नरक देव सिद्ध आयु अवगाहना प्रतर विरहकाल आदि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२४.५४११.५, १८४४८). नरक देव सिद्ध आयु अवगाहना प्रतर विरहकाल आदि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विरहनो काल कह्यो छै, (वि. प्रायः बृहत्संग्रहणी आधारित.) ८८१६१ (+) समवसरण गरj, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १०४३१). समवसरणतप विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: भवजिननाथाय नमः १०; अंति: गुणधारकाय नमः. For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८१६२. बासठियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४.५४११.५, १८४५०). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गइ ४ इंदिय ५ काए ६; अंति: अज्ञान ३ लेश्या ६. ८८१६३. पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५४११, १४४३५). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पन्य प्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०२. ८८१६४. (+#) ज्योतिष, सवैया संग्रह व जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, २५४४३). १.पे. नाम. ज्योतिष, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: जन्मतो वंसती सूर्यः; अंति: भानु०भोमेवंतु मारुतो. २. पे. नाम, सवैया संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. सवैया संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: पंचमो प्रवीनवार सुन; अंति: लेई सांमलो सटके छै, (वि. चंद्र, गंग, माघ आदि रचित सवैया है.) ३. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदिः श्रीश्रेणक नरवर राजी; अंतिः पहुंता मोक्ष द्वार, गाथा-१६. ८८१६५. समकितके ६७ भेद, संपूर्ण, वि. १८७५, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. केसरीचंद मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४४). ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ते प्रथम समकित पांच; अंति: दिसा नासै पंच प्रकार. ८८१६६. उत्तराध्ययनसूत्र-विनयसुत्तं सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४११.५, ९४२५). उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१ विनयसुत्तं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी चीत ____धरीजी; अंति: विनय सयल सुखकंद, गाथा-९. ८८१६७. कंथजिन स्तवन व ५ पांडव सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४११.५,११४२४). १.पे. नाम, कुंथुजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कुंथु जिणेसर जाणज्यो; अंति: लाल मानविजय उवझाय रे, गाथा-८. २. पे. नाम. ५ पांडव सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वर भलो; अंति: मुझ आवागमण निवार रे, गाथा-१९. ८८१६८. आदिजिन स्तवन व कमलावतीराणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४११, ९४२७-३८). १. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनवर पूजता आज; अंति: आज सेवकनइ कल्याण, गाथा-५. २.पे. नाम, कमलावतीराणी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जी हो ईष्कारपुर; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ८८१६९. आदिजिन स्तवनद्वय व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११, १०४३१). १. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: जी तुमारी मूरत मोहन; अंति: ऋषभदास गुण गेलडीजी, गाथा-३. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म.कीर्तिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: करज्यो म्हारी अरज प्; अंति: प्रभुजी घडी घडी रे, गाथा-६. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. अनिएचंद, पुहि., पद्य, आदि: डगरा बताय दे पाहरीया; अंति: आणंद० निर्मल ज्ञान, गाथा-४. ८८१७० (+) समकित बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११,१३४३८). ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सास्वादांन समकित १; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "रणा देवी २१ चेलणा को २२" पाठ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३२१ ८८१७१. खंधकमुनि चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९५९, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, प्रले. सा. जसोदा (गुरु सा. पनाजी); गुपि. सा. पनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:खंधक., दे., (२४४११, १८४४६). खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: वीरजिणंद सासणधणीजी; अंति: हो मिच्छामिदुक्कडम, ढाल-४. ८८१७२. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ८x२८). औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: प्यारो मोहनगारो राज; अंति: रायचंद० पद निरवांणि, गाथा-१२. ८८१७३. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तोत्र व २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ., (२४.५४११.५, १२४३०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकशल पाठक, सं., पद्य, आदि: नमद्देवनागेंद्रमंदार; अंति: चिंतामणि पार्श्वनाथ, श्लोक-७. २. पे. नाम. २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन लंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसरि, मा.गु., पद्य, आदि: वृषभ लंछन ऋषभदेव; अंति: लक्ष्मीरतनसूरीराय, गाथा-९. ८८१७४. (+) २३ पदवी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध., संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १३४२९). दंडक सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: गणधर गौतम स्वामिजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ अपूर्ण तक लिखा है.) ८८१७५. पार्श्वजिन व महावीरजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १८५१, कार्तिक शुक्ल, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १०४३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मा.ग., पद्य, आदि: (-); अंति: चंदो जाणे अमृतबिंदो, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कठिन करम मेली काठिआ; अंति: टाले संघना कोडि पाले, गाथा-४. ८८१७६ (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति व २४ जिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३८-४०). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ग. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: कनकवर्ण विराजित काया; अंति: अमृतविजय वाचक जयकारी, गाथा-२७. २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन-गुरुपरंपरानामगर्भित, प. २अ-३आ, संपूर्ण. ग. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणी प्रणमी; अंति: अमृतवि० लहीइ शुभ ठाम, गाथा-२५. ८८१७७. उजमणा विधि, सिद्धचक्र स्तुति व चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध., जैदे., (२५.५४११, १३४४४). १. पे. नाम. उजमणा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र उद्यापन विधि, सं., गद्य, आदि: पंचवर्ण धान्येः; अंति: तइ ठामि १९ पक्कान्न. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: भत्तिजुत्ताण सत्ताण; अंति: महंताण कल्लाणयं, गाथा-४. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक ही है.) ८८१७८. २८ लब्धिनाम, रात्रिभोजन दोष व बोल-विचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११.५, १६४५०). १. पे. नाम. २८ लब्धिनाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २८ लब्धि नाम, प्रा., गद्य, आदि: आमोसहीलब्धि १ विप्पो; अंति: एतली लब्धि उपजई. २. पे. नाम. रात्रिभोजनदोष आदि, पृ. १अ, संपूर्ण. रात्रिभोजन दोषविचार, मा.गु., गद्य, आदि: छन्नू भव लगे जीव; अंति: पाप घj घणुं लागई. ३. पे. नाम. इंद्र के आयुष्य में च्यवन होनेवाली इंद्राणियों की संख्या, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: बे कोडा कोडि; अंति: एक पल्योपम आउखू होई. ४. पे. नाम. बोलसंग्रह, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सुख- मूल खिमा छ; अंति: (-), (पू.वि. चौद राजलोक के अनुसार जोयण के परिमाण अपूर्ण तक है.) ८८१७९. स्तवन, स्तुति व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४११, १५४३६). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. ज्ञानउद्योत, पुहि., पद्य, आदि: ध्यान धरम का धरना; अंति: सीवसुंदरी सुख बरना, गाथा-६. २. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन समता मिलना; अंति: चिदानंद हित करना, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, म. विवेकविजय पं., मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: पासजिणंदा मुझ मन वसि; अंति: मन हरख्यो वीस्वाविस, गाथा-७. ४. पे. नाम. गंगकवि पद, पृ. १आ, संपूर्ण. गंग, मा.गु., पद्य, आदि: गंगतु रंग प्रवाह वसे; अंति: सा अकबर नेह कीयो, गाथा-१. ८८१८०. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, १०x४०). साधुवंदना, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रीजिनभाषित भारती; अंति: पावै अविचल मोख, गाथा-३२. ८८१८१ पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अंत में वशीकरण यंत्र दिया गया है., जैदे., (२४.५४११, ११४४३). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वरस दिवसमां सार; अंति: जिनेंद्रसागर जयकार, गाथा-४. ८८१८२. (+) ज्ञानावरणादि सातकर्मबंध विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, १५४४२). ७ कर्मबंध विवरण, पुहि., गद्य, आदि: सप्तकर्म का बंध समय; अंति: सर्व १४८ प्रकृति होइ. ८८१८३. स्तवन, लावणी व साधुवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, जैदे., (२४४११.५, १७X४०). १.पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ अजित जिननाथ; अंति: मेहर मेल जो मुगत मे, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: चल चेतन अब उठकर अपने; अंति: एक प्रभु दरसण चहीए, गाथा-४. ३. पे. नाम. साधुवंदना बडी, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. साधवंदना बृहद, म. जेमल ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमो अनंत चोवीसी ऋषभ; अंति: जैमल एही तिरणरो दाव, गाथा-५३. ४. पे. नाम. १४ बोल सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३२३ १४ बोल सज्झाय-भगवतीसूत्र शतक १, संबद्ध, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सूत्र भगोती सतक पहल; अंति: ऋषि रायचंदजी० जोड हो, गाथा-१७. ८८१८४. अनित्यभावना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२४.५४११.५, १२४३४). अनित्य भावना, रा., गद्य, आदि: अनित्यानि शरीराणि; अंति: तर मंगलिकमाला संपजे. ८८१८५ (2) कलावतीसती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१,प्र.वि. हंडी:केलावती., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११.५, १३४३०-३१). कलावतीसती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ के दोहा-२ अपूर्ण से है व ढाल-४ की गाथा-२ तक लिखा है., वि. ढाल-४ की जगह ५ लिखना व उस ढाल में २ गाथा लिखकर इति संपूर्ण करना संदिग्ध है.) ८८१८६. (+) सज्झाय, स्तवन व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ६,प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., संशोधित., जैदे., (२३४११.५, १४४३२). १.पे. नाम. सिद्धचक्र सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: महिमा जेणे जांणीयो, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद-समस्यागर्भित, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष *, मा.गु., पद्य, आदि: डाले बेठी सुडलि तस; अंति: जिनहर्ष० मत छै रूडी, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहि., पद्य, आदि: कहा रे अग्यानी जीव; अंति: जिनराज० सहज मिटावै, गाथा-३. ४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात भयो प्रात भयो; अंति: समय० शिवसुख कुंण लहे, गाथा-६. ५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: जस० सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ अष्टापद नित नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ८८१८७. इलाचीकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध., दे., (२१.५४११.५, ११४३०). इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे ईलापुत्र जाणीये; अंति: लबधविजै गुण गाय, गाथा-९. ८८१८८ (+) दशार्णभद्रइंद्रनी रिद्धि, संपूर्ण, वि. १९वी, भाद्रपद कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, २०४४७). दशार्णभद्र राजर्षि ऋद्धि वर्णन, म. श्रीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसमा श्रीवीरजिणंद; अंति: बीकानेर मझार ए, गाथा-३९. ८८१८९. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३४११.५, ११४३२). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: डुगर ठंडो रे डुंगर; अंति: उदयरतन० कोडि कल्याण, गाथा-८. ८८१९०. रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. दीपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, ११४३४-३८). रोहिणीतप स्तवन, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: श्रीसार०मन आस्या __फली, ढाल-४, गाथा-३२. ८८१९१ (#) सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वागसिणनगर, प्रले. पं. भाणविजय (गुरु पंन्या. देवेंद्रविजय); गुपि. पंन्या. देवेंद्रविजय (गुरु पंन्या. रूचिविजय); पठ. मु. दीपचंद (गुरु पं. भाणविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, १२४३०-३२). For Private and Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: भावतोर्हतं नमामि, श्लोक-४०. ८८१९२ (#) पद्मावती आराधना व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. सा. उमा (गुरु सा. फूलाजी); गुपि. सा. फूलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पद्मावतीरी., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, १२४३३). १.पे. नाम. पद्मावती आराधाना, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल. जेतारण, प्रले. सा. उमा (गुरु सा. फूलाजी); गुपि. सा. फूलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: कहइ पाप छुटु ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-श्रमणाचार, मा.ग., पद्य, आदि: पग दीजै सिरखि तप; अंति: सांकरे तप कर मालकडाय, गाथा-१२. ८८१९३. (4) साधुपद व श्रावकगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७३, माघ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, ३५४१५-२७). १.पे. नाम. साधुपद सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. विजयदेवसरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचे इंद्री रे अहनिस; अंति: इम बोले विजयदेसुरोजि, गाथा-१२. २. पे. नाम, श्रावकगुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कइयइं मिलसे रे; अंति: सफल जनम तिण लाधो जी, गाथा-२१. ८८१९४ (+) सज्झाय व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, २०४४३). १.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ११अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. कमलावतीसती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुकडम् मोय, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण मात्र है.) २.पे. नाम, धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण. म. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नगर काकंदी हो मनीसर; अंति: रतन कहै करजोडी, गाथा-१५. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव स्वामी; अंति: लालचंद० प्रसादिथी ए, गाथा-९. ४. पे. नाम. नेमिराजिमती पद-केशरीया, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद-केशरीया, म. नथमल, मा.ग., पद्य, आदि: जो थे चालो सिवपूरी र; अंति: मारी आवागमण निवार हो, गाथा-७. ५. पे. नाम. उदायीराजर्षि सज्झाय, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. कुशलचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: सोल देशतणो धणी नामे; अंति: मारा ग्यानी वाटडी, गाथा-११. ८८१९५. सज्झाय, कवित्त व दुहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२४४११, १३४२८). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ.१अ-२अ, संपूर्ण. मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलकरण नमी जिनचरण; अंति: नवी गर्भावासे अवतरे, गाथा-२५. २. पे. नाम. हीरविजयसूरि कवित, पृ. २अ, संपूर्ण. क. सोम, मा.गु., पद्य, आदि: सबे मृगनयणी चली; अंति: कवि सोम कहे० पेटनटा, गाथा-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक दूहो, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक दहासंग्रह-विविधविषयोपरि*, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: तिमिर गीयो रवि उगते; अंति: तिम विनय गयो अभिमान, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३२५ ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहि., पद्य, आदि: भरिम जलशमें कहूं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ तक है.) ८८१९६. (#) संभवजिन, चक्रेश्वरी स्तवन व नेमिजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१२, १८४४३). १.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: मुने संभव जिनस्यू; अंति: सीस दिलमां धारो रे, गाथा-६. २. पे. नाम. चक्रेश्वरीदेवी छंद, पृ.१अ, संपूर्ण. __ शंकर, मा.गु., पद्य, आदि: मा चक्रेसरी सिद्धाचल; अंति: संकर० मा चकेसरी, गाथा-११. ३. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: नेमप्रभु आवज्यो; अंति: जोडि कहें कवी कांन, गाथा-१६. ८८१९७. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११, ९४३५). महावीरजिन स्तवन, पंन्या. खिमाविजय , मा.ग., पद्य, आदि: वीरजिणंद जगत उपगारी; अंति: सिद्धि निदान जी, गाथा-७. ८८१९८. माणिभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. १८६०, आश्विन कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मीरचगाव, प्रले. मु. दीपचंदजती (तपागच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४३ हैं., जैदे., (३१४२३, ३२४१६). माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती; अंति: (-), गाथा-२६, (अपूर्ण, __ पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२६, कलश अपूर्ण तक लिखा है.) ८८१९९. भरतचक्रवर्ति सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१४११, १०४२६). भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९४५, आदि: मुगतपद पाया हो; अंति: पूरो मन की आस, गाथा-११. ८८२००. नेमराजिमती व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१.५४११, ११४२९). १.पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: यादवजी हो समुद्रविजय; अंति: मोहन कहे मलार, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजी प्रगट; अंति: मानविजय० तुज पाया रे, गाथा-५. ८८२०१. (#) गौतमस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८०७, आश्विन, १३, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. कल्याणचंद (गुरु ग. गुणविजय); गुपि. ग. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१x११.५, १५४२०-२५). गौतमस्वामी अष्टक, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेलो गणधर वीरनो रे; अंति: धीर नमे निसदीस, गाथा-८. ८८२०२. (#) घीगण उत्तम व वैराग्य सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१x११, १७X४१). १.पे. नाम. घीगुण उत्तम सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-घृत विषये, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण भाव घणो धरी; अंति: लालविजय० गुण का, गाथा-१९. २. पे. नाम. अरंटीयामिश्र वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-रहेंटीया, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमु मरूदेवी; अंति: लालविजय० दख माणयो, गाथा-१३. ३. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वैराग्य सझाय, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु पाए प्रणमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८८२०३. नेमराजिमती पद व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३४११, ९४३५-४०). १.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. जिनदास, रा., पद्य, आदि: स्याम मिलन की उमग; अंति: जगत से तिर गयो री, गाथा-८. २.पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ.१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नेम पिया संग जाउंगी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ८८२०४. स्तवन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११, १४४४३). १.पे. नाम. बीजतिथि स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दरिसण नित देज्यो, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. त्रीजतिथि स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. तृतीयातिथि स्तुति, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणेसर सुख करु; अंति: ऋषभने उत्तम गुण गाजे, गाथा-४. ३. पे. नाम. त्रीजतिथि स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. तृतीयातिथि स्तवन, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव नितु वंदना; अंति: करी प्रणमो उत्तम सार, गाथा-६. ४. पे. नाम. चतुर्थीतिथि स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में कोइ अज्ञात कृति का मात्र "धनते दिहाडो आज सुरत" पाठ है. मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजमंडण दुर; अंति: साहाज्य करो जयकारीजी, गाथा-४. ८८२०५ (#) बुद्धि रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११, १३४३८-४२). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देव अंबाई; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२५ तक लिखा है.) ८८२०६. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३४-३९). औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि कंता रे; अंति: कुमदचंद समय उलगौ, गाथा-१०. ८८२०७. (4) षद्रव्य चर्चा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४११.५, १४४४०). ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय१ अधर्मा; अंति: एक वीजे मे मिले नही. ८८२०८. भगवतीसूत्र भास, संपूर्ण, वि. १८७३, आश्विन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४११.५, १२४२७). ___ भगवतीसूत्र-भास, संबद्ध, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीरजिणेद वंदीजे; अंति: दिन दिन दोलत वाधे, गाथा-१०. ८८२०९. जंबूस्वामी सज्झाय व अध्यात्म पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, २२४४०-४५). १.पे. नाम, जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी वसै; अंति: रैकीजो धमसती बस, गाथा-३३. २. पे. नाम, अध्यात्म पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि: चितानंद मान कह्या; अंति: निजगुण सुध हिरा, गाथा-१०. ८८२१० (4) गोडीपार्श्वजिन देशांतरी छंद व ऋषभाष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ५)=२, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३८). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन देशांतरी छंद, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धवल धींग गोडी धणी, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, ऋषभाष्टक, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण.. आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोद रंग धारणी; अंति: रिद्धि सिद्धि पाइये, गाथा-८. ८८२११. नेमराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. १८३३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. नगराज मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११.५, १२४३३). नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहिं., पद्य, आदि: तोरण आया हे सखी कहै; अंति: जीतसागर० नवनिध संपजे, गाथा-१८. ८८२१२. जिनमंदिर ध्वजारोहण विधि व १० दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२३.५४११,१२४३५-४०). For Private and Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ १. पे. नाम. जिनमंदिर ध्वजारोहण विधि, प. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिहां प्रथम भूमि सुध; अंति: संघादिकनी पूजा करै. २.पे. नाम. १० दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.ग.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो इंद्राय पर्व: अंति: गच्छ गच्छ स्वाहा, पद-१०. ८८२१३. (#) खंधकमुनि चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सिंगोली, प्रले. सा. कंवरीजी (गुरु सा. चनणा); गुपि. सा. चनणा (गुरु सा. वदुजी महासती); सा. वदुजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:खंदककव., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १९x४२). खंधकमुनि चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: सवती नगरी सवावणीजी; अंति: मुगत तणा छ जोग खमावत, ढाल-४, गाथा-२४. ८८२१४. ३६ द्वार नियंठाना, अपूर्ण, वि. १७३७, कार्तिक शुक्ल, १५, बुधवार, मध्यम, पृ.५-२(१,३)=३, ले.स्थल. सूर्यपूर, प्रले. गच्छाधिपति चतुराजी शिष्य (लुंकागच्छ); पठ. मु. शिवराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११,१५४२८-३९). ६नियंठा ३६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कषाय कुसील संख्याता, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., राग द्वार अपूर्ण से है.) ८८२१५ (+) रामसौभाग्य पं द्वारा दी गयी हर्षपहिरामणी का खरडा, संपूर्ण, वि. १८६२, वैशाख कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सिद्धपुर, प्र.वि. पत्र १४८ हैं., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२२४११, १२४१२-२८). रामसौभाग्य पं द्वारा दी गयी हर्षपहिरामणी का खरडा, मा.गु., गद्य, वि. १८६२, आदि: (१)सं १८६२ वर्षे वैशाख, (२)पं दानविजय ग पं राम; अंति: शिवहर्षग पं रत्नसागर. ८८२१६. औपदेशिक सज्झायद्वय, संपूर्ण, वि. २१वी, मध्यम, प. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र १४३., गु., (३२.५४२०.५, १८४३६). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-अहंकार, मु. पद्मसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अहंकारीने गरब घणेरा; अंति: पदम तोए अंते मरवुरे, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-महावीरस्वामी को पुछे प्रश्न, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-महावीरजिन को पूछे गये प्रश्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक परसन पुछु रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ८८२१७. (4) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२३४११.५, १०४२६). नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सामी हमरा रे नेम; अंति: मोहन मन वसीया, गाथा-७. ८८२१८. (+#) धर्मनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, ११४५३). धर्मजिन स्तवन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मोने धरमजिणंद; अंति: उलट अति घणी रे लो, गाथा-७. ८८२१९ (+#) ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११.५, १३४२३-३३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तोत्र, म. कीर्तिराज, प्रा., पद्य, आदि: वंदामि नेमिनाहं पंचम; अंति: कित्तिराय मणोहरो, गाथा-११. ८८२२० (+#) ९ बाड ब्रह्मचर्य व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११, १३४३५). १.पे. नाम. ९ वाड ब्रह्मचर्य, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल. विशालपुर. ____ मा.गु., गद्य, आदि: वसति ए स्त्री नपुसंक; अंति: तथा ब्रह्मचर्य. २. पे. नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुझनै; अंति: शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४. ८८२२१ (4) मल्लिजिन कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१२, १८४३८-३९). For Private and Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मल्लिजिन कथा, मा.गु., गद्य, आदि: इण जंबूदिपे पश्चिम; अंति: दीक्षा लेइ मोक्ष. ८८२२२ (4) सुपार्श्वजिन व भुजंगनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०९, कार्तिक शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. जेष्टीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११.५, २३४१६-१८). १. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसुपास जिन वंदिइ; अंति: करे आनंदघन अवतार, गाथा-८. २.पे. नाम, भुजंगनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. भजंगजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: भुजंगदेव भावे भजु; अंति: वाचक जस० मान लाल रे, गाथा-६. ८८२२३. सकडाल-गोसाला संवाद ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४११, ४०x२६). सकडाल-गोसाला संवाद ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिवस सकडाल तिहा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ की गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ८८२२५ (+) पद्मावतीदेवी स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११.५, १४-१७४४१-४५). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: समग्र स्तव जापः, श्लोक-२५. ८८२२६. पद, गीत व दोहादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ५, दे., (२५.५४११, ११४२६-३३). १.पे. नाम. जिन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत, म. आनंदघन, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरौ तो ओही चाही है; अंति: आणंद० अवर न ध्याउ, गाथा-४. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ.५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: एम मुगल्ल अवल अभंग; अंति: सीत में आंधला मुल्ला , पद-१. ३. पे. नाम. राधाकृष्ण पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मलुकदास वैष्णव, पुहि., पद्य, आदि: सांवरै की दृष्ट मानु; अंति: मलुकदास० सेवक तुमारी, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. क. गंग, पुहि., पद्य, आदि: अन विना जैसै प्रान; अंति: मार चलै मद पंचहजारी, गाथा-२. ५. पे. नाम. सामान्य दूहा, पृ. ५आ, संपूर्ण. ___ काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य संग्रह , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ८८२२७. मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, २१४३३). मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगरीव नगरी सोहामणी; अंति: मुगत्या गया० जजकार, गाथा-२५. ८८२२८. विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११, २८x१०-२०). १.पे. नाम. ८६ बोल संग्रह, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम, पच्चक्खाण फल, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. स्याद्वाद सबंधी बोल संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. स्याद्वाद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ८८२२९ (#) मेघरथराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:दयासज्झा०., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११,१६x४२). मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडा विनती, मा.गु., पद्य, आदि: दया बरोबर धर्म नही; अंति: संत सुखी अणगारो जी, गाथा-३१. ८८२३० (+#) नमिराय ढाल व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. पं. गौतमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १५४२७-३५). For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपर्ण हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३२९ १. पे. नाम. नमिराय ढाल, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, वि. १८९७, माघ कृष्ण, ३, रविवार, ले.स्थल. समेलगाम, पे.वि. हुंडी:नमीराय. नमिराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: सासणनायक समरीए निहचै; अंति: मिच्छामि दुक्कडं जी, ढाल-७. २.पे. नाम, औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: धर्मे रागः श्रुतौ; अंति: घोरं नरकं व्रजंति, श्लोक-३. ८८२३१. पार्श्वजिन पद व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. उमा (गुरु सा. फूलाजी); गुपि. सा. फूलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४११, १४४४०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८७४, आदि: वामानंदन पास जीणंदजी; अंति: १८ वरस चीमतरो ए हा, गाथा-१०. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन खेत्र विदेह हो; अंति: किरपा आपरी रे लाल, गाथा-१४. ८८२३२. नेमिजिन चनडी व जैन सामान्यकृति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११, १२x२७-३३). १. पे. नाम, नेमिजिन चुनडी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओजी सिल सुरंगी चुनडी; अंति: ए छे मोक्षनो ठामो जी, गाथा-१४. २. पे. नाम, जैन सामान्यकृति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम पिंड पाणरो रूप; अंति: (-). ८८२३३. (+) चौविसी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३४११.५, १०x४१). २४ जिन स्तवन-वर्तमान, म. नंदलाल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजीने ॐकारा हो; अंति: पावे जो जीन लेवे नाम, गाथा-७. ८८२३४. (4) विविधविचार संग्रह, छींक विधि व मार्जारी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११, २७४१४-१८). १. पे. नाम. विविधविचार संग्रह-स्थानकवासी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., प+ग., आदि: से जइ पुण कुलाइ; अंति: एवं १० दोष तस्समि०, (वि. आचारांग कुलोत्पत्ती पाठ, तिक्खुत्तो वंदन सूत्र, देशावगासिक पच्चक्खाण, प्रश्नोत्तर, औपदेशिक श्लोक व गाथादि.) २.पे. नाम. छींक विधि, पृ. २आ, संपूर्ण... छींक विधि-समयसुंदरकृत, वा. समयसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ईरिहावहि; अंति: कीजै पाछे विधि कीजे. ३. पे. नाम. पक्ष्यादि मंडले मार्जारी गमनागमनदोष विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. मार्जारी दोषनिवारण विधि-समयसंदरकृत, उपा. समयसंदर, मा.गु., गद्य, आदि: इरिहावहि पडिक्कमि; अंति: डावे पगनी एडी ठोकणी. ८८२३५. (#) नमस्कार महामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.२,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, ११४३२). नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारन भविया समरो; अंति: प्रभुसुंदर सीस रसाल, गाथा-७. ८८२३६. (+) ज्योतिष श्लोकसंग्रह, साधारणजिन पद व सिचियायमाता छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, १४४३७). १.पे. नाम. ज्योतिष श्लोकसंग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: चुचेचोल लिलुलेलो अ; अंति: गुणा नक्षत्र स्थितेः. २.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: जाके मुख दर्शसै भगत; अंति: वस तु गण नृपहंतु शदा, पद-१. ३. पे. नाम. सिचियायमाता छंद, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३३० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. सिद्धसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मुझ मनि आसा आज फली; अति: (-), (पू.वि. गाथा १२ तक है.) ८८२३८. (F) मेघकुमार चौढालियो व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ४, प्रले श्राव. हरखचंद हरीचंद साह पठ. सा. छबलबाई स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. लो. (१२८६) पुस्तक प्यारा प्राणथी, (१२८७) जीहा लगे मेरू महीधरा, दे., (२२.५X११, १५X३५). १. पे. नाम. मेघकुमार चौढालियो पृ. १अ २अ संपूर्ण. " " मेघकुमार चौढालिया, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गुणधर गुण निलो; अंति: भणता रे अणता सुख थाय, ढाल-४, गाथा - २४. २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि दीयो बातु मिथ्यात; अंति: जडशे मुक्ती लटकारी रे, गाथा ६. ३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. २अ-२आ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदिः धन्य छे धन्य छे धन्य; अंति: मोटु पुन्य छे रे. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. सुंदरस्वामि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: तारा मनमां जाणे छे; अंति: बनावो एवा मे बहुरे, गाथा- ९. ८८२३९ (#) सुमतिजिन स्तुति व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३x११.५, १२X३३-४०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे नाम. सुमतिजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण क. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: मोटा ते मेघरथ राय; अंति: ऋषभ कहे रक्षा करो ए, गाथा-४. २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि राग विना तु रीझवै; अति हियडे घरी अतिआनंद हो, गाथा-८. ८८२४०. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९७४, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. फलोधीनगर, प्रले. मु. लाभचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५x१०.५, ११४३२-३८). , सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो प्रणमु दिनपति; अंति: उवज्झाय मेरे लाल, ढाल-४, गाथा - २६. ८८२४१. नेमिजिन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. छगनी, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२४४११, १०४३३)नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम त्यागी राजल नार; अंति: सुणोजी जिनवर रे, गाथा-५. ८८२४२. ५ तीर्थजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५X११.५, १२x२५-३०). " ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि आदए आदए आदिजिणेसरु ए अंति: लावण्यस्वामी एम भण ए. गाथा - ११. ८८२४३. शत्रुजवतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अंत में प्रतिलेखक ने कोई अज्ञात कृति का मात्र प्रारंभिक पाठ लिखकर छोड़ दिया है., जैदे., (२३.५X११, १३X३०). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयां मोरी चालो शेत; अंति: प्रेमे प्रणमु पाय हे, गाथा - १०. ८८२४४. दशवैकालिकसूत्र का वार्तिक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२४४११, १९४५८) दशवैकालिकसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (१) प्रणम्यश्रीमहावीर, (२) राजगृह नामा नगरनु अतिः भाव मंगलिक कहइ छइ. ८८२४५. (*) वैराग्यपच्चीसी, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४११, १३४४०). वैराग्यपच्चीसी, मु. सदारंग, मा.गु., पद्य, आदि: इह संसार अथिर कर जाण; अंतिः इते पर इता क्या करणा, ढाल -२, गाथा - २५. ८८२४६. (+) बीजतिथि, ५ तीर्थजिन व पार्श्वजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)= १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२४x११.५, ११X३२). For Private and Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३३१ १. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: विघ्नमर्दी कपर्दी, श्लोक-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ५ तीर्थजिन स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: ते संत भद्रंकराः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) ८८२४७. थंभणपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, जैदे., (२३४११, १४४३०). पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास; अंति: पार्श्वनाथ चोसालो, गाथा-८. ८८२४८. स्तवन, रेखता, होरी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, दे., (२४४१२, २५-३४४२३). १. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: आद् जोगी जन्म का नही; अंति: घट घट रामविसार, गाथा-५. २. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मुजरा साहिब मेरा रे; अंति: दास नीरंजन तेरा रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. फतेचंद पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: म्हाने रूडो लागे छे; अंति: ध्यावो भगत वडावन हेत, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन रेखता, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहि., पद्य, आदि: किये आराधना तेरी; अंति: नवल चेरा तिहारा है, गाथा-५. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनदेव पाया उदै; अंति: उदै मेरा भाग आयाजी, पद-४. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वार; अंति: मुखे बोले जे जेकाररे, गाथा-७. ८८२४९. मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४११.५, ७४२५-३०). मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी समजावे हो मेघ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) ८८२५० (+) उपदेशतेवीसी व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२१.५४११.५, १९४४७). १.पे. नाम. उपदेशतेवीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८२६, कार्तिक शुक्ल, १३, प्रले. मु. चोथमल, प्र.ले.पु. सामान्य. म. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२६, आदि: पांच पद नवकार सिमरो; अंति: चोथरिषी०जैतारण चोमास, गाथा-२३. २.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. सा. जीउजीआर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीपुज्यजीरा प्रसादात्. औपदेशिक सज्झाय-शोक, म. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: विरूई सोक सगाई जोति; अंति: सोक म देज्यो किण रे, गाथा-२०. ८८२५१. अगीयार गणधरनो सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२१४११.५, १०x२०-२२). ११ गणधर सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर पटोधर वंदीयें; अंति: विरविमल० शासन शणगार, गाथा-५. ८८२५२. पडिकमणानी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११.५, ११४३२). प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: गोयम पछे श्रीमहावीर; अंति: जस० जन भवजल पार रे, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३२ ८८२५३. भलेनो अर्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२२४११.५, १३४३३). " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " भले का अर्थ - महावीरजिन पाठशालागमन पंडित संवादगभिंत, मा.गु., गद्य, आदि इवे कह्यं जे भगवान; अंति: लोक प्रांणीओ करज्यो. ८८२५४. नवकार स्तवन, औपदेशिक सज्झाय व लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ९, जैवे. (२३४११.५, २२X४३). १. पे. नाम. नवकार स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. मगन, मा.गु., पद्य, आदि: ध्यान धरो नवकार को; अंति: मगन०छयालिसेरी साल को. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मगन, मा.गु., पद्य, आदि: ए अवसर मति हारो; अंति: मगन० चेतो निरनारो रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मगन, मा.गु., पद्य, आदि मुनि उपदसमे गावे रे; अति गन कहे पापकु टालो रे, गाथा-७. ४. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. मु. मगन, मा.गु., पद्य, आदि: तप जप संजम खप करो हो; अंति: मगन करे घर प्रेम, गाथा- ११. ५. पे. नाम साधारणजिन स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि अब तु चेतन समजीये, अंतिः राम० वरत्या जे जेकार, गाथा-५. ६. पे. नाम. गुरुगुण स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रंग, मा.गु, पद्य, आदि लोक अलोक भाव सब जगके, अंति: गर नित रंग वधाइ, गाथा ३. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. दोलत, पुहिं., पद्य, आदि भिसत के मकांम ज्यां; अति कहे दोलत की धजा है, गाथा-३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. ८. पे. नाम. साधारणजिनगुण लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन लावणी, मु. रामचंद्र, पुहिं, पद्य, आदि: हांक जिनवरना गुण; अति राम० प्रभू गर्भावासा, गाथा ५. ९. पे नाम औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. कुंभालाल, पुहिं., पद्य, आदि मादां कि निंद्या करे, अंतिः कुभालाल० लांबणी गावे, गाथा-५. ८८२५५. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन व सिद्धचक्रपद थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २४x११, ८x२९). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु, पद्य, आदि सीप खेत्र वंदो सदा अति सीधि लहे नीदान, गाथा-५. २. पे. नाम. सिद्धचक्रपद धोय, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीधचक्रपद सेवा, अंतिः वीमलेस्वर पद नमीजे, गाधा - १. ८८२५६. पट्टावली, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पत्रांक दोनों ओर हैं., दे., (२४X११, ५१-५४X३४-३७). पट्टावली*, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि: (१) जेसलमेर का भंडार, (२) श्रमण भगवंत अति: (-). (पू.वि. त्रिराशिक रोहगुप्त प्रसंग अपूर्ण तक है.) ८८२५७ (#) नेमनाथजीरो सलोको, नेमराजिमती सज्झाय व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१)=१, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२३.५x११, ११४२८-३२) " १. पे. नाम. नेमिजिन सलोको, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. कुशलविनय, मा.गु., पद्य वि. १७५९, आदि (-); अंति: कुसल ० तीजकेरू मे हरखे, गाथा २२, (पू.वि. गाथा २१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नेम कांइ फिर चाल्या; अंति: जिनहरष पयंपै हो, गाथा-८. ३. पे. नाम औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ लीलाचंद, पुहिं., गद्य, आदि: बावलरी गंग रात्र भीज; अंति: छे लालचंदरो लखत छै. ८८२५८. सामायिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३६-३८). सामायिक सझाय, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सतगुर संग करो भवप्रा; अंति: वेगीज गरज जे सरसी रे, गाथा-१८. ८८२५९. देवकीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३४११.५, ११४२९). देवकी ६ पुत्र सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: हवै रायरीषजी हो राज; अंति: सांसो भांजीयोजी, गाथा-२३. ८८२६०. चंदनबाला सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४११, ११४३१). चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुमारी चंदनबाला; अंति: कुंवर कहे करजोडि रे, गाथा-१३. ८८२६१ (+) पार्श्वजिन सलोको, स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७८, फाल्गुन कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ९, प्रले.पं. दीपसुंदर (कवलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११.५, १९४६१). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो सिलोको, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमं परमातम अविचल; अंति: जोरावर रो अंतरजामी, गाथा-५६. २.पे. नाम, गोडीपार्श्वनाथजीरो स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उमा, रा., पद्य, वि. १८७४, आदि: गोडीचा पासजी मानै; अंति: आपो मुक्त मझार, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. २अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, रा., पद्य, आदि: गोडीजी मुझरो महारो म; अंति: साचो सेवक जाणो रे, गाथा-५. ४. पे. नाम, गोडीपार्श्वजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. अमृत शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पूजो पूजो रे गोडीपास; अंति: अमृतसिसु० गोडी पासने, गाथा-५. ५.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: लगी लगी आंखीआने रही; अंति: उदयरतन०तोसं लगन लगी, गाथा-११. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. म. रंग, पुहिं., पद्य, आदि: जोवनधन थीर नही रहणा; अंति: सहजा ही मीट जान रे, गाथा-५. ७. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ जिन पद, जादराय, पुहिं., पद्य, आदि: वंदु जिनदेव सदा चरन; अंति: जादराय चरन के चेरे, गाथा-४. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: छिब तेरि सुहावन लाग; अंति: हरखचंद० वड भाग वे, गाथा-३. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. वृद्धिकुशल-शिष्य, रा., पद्य, आदि: जोडी थारी कुण जुडे; अंति: भव भव दीज्यौ दीदार, गाथा-६. ८८२६२. नेमिजिन व अजितजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२०.५४११.५, १५४४०). १.पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: उभी राजूल देराणि अरज; अंति: लाहो हवे अमे लेसु हो, गाथा-७. २.पे. नाम. नेमराजल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इम राजुलरांणि जंपे; अंति: गाइ सूबधीविजे सुखदाइ, गाथा-७. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: जउ जउ अजित जिणेसरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८२६४ (+) चैत्रीपूनम पूजाविधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२२४११, १३-१५४३२-३५). चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: प्रथम गोबररी गुंहली; अंति: (-), (पू.वि. चतुर्थ पूजाविधि संपूर्ण तक है.) ८८२६६. १४ गुणस्थानक २८ द्वार बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४११, १७X४२). १४ गणस्थानके २८ द्वार, मा.ग., गद्य, आदि: १बोले गमठाण सावज; अंति: गंथ्या ५ गुण चेव ६, द्वार-२८. ८८२६७. शारदाष्टक व सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४११, १४४३३). १. पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो केवल नमो केवल; अंति: वनारसी०तज संसार कलेस, गाथा-१०. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: स्यामि चेतनं हृदि; अंति: करिष्यामि न संशयः, श्लोक-८. ८८२६८. (+) २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८४, फाल्गुन शुक्ल, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. भाग्यविजय; पठ. मु. भीमजी (गुरु पं. भाग्यविजय), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अंबकाजी प्रसादात्. संवत १७८३ व १७८४ लिखा है., संशोधित., जैदे., (२२.५४११.५, १३४२४). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: ___ तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. ८८२६९ (#) औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१२, १६४२७). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मयतं पीता सुण वंदव; अंति: कहा सोवकी सप्र आस, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: रे मन समज तु जगत; अंति: रामने तवन बनाया, गाथा-१०. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. राम, मा.गु., पद्य, आदि: वास चडीने मोतिया जग; अंति: विचरंदा जैन मार्ग हो, गाथा-९. ८८२७०. ढुंढीया तेरापंथ प्रश्नसंग्रह व मोहनीयकर्मबंध स्थानक, संपूर्ण, वि. १९३४, चैत्र शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. देसणोक, प्र.वि. पत्र १४२ है., दे., (२१.५४११, २३४१६-२०). १.पे. नाम. ४१ प्रश्न-ढुंढिया द्वारा तेरापंथ को पूछे गये, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: कोई सचित्त लूण काचो; अंति: (-). २. पे. नाम. ३० बोल-मोहनीयकर्मबंध स्थानक, पृ. १आ, संपूर्ण. ३० बोल-मोहनीय कर्मबंध स्थानक, मा.गु., गद्य, आदि: त्रसजीवने पाणी में; अंति: अपूर्व वार्ता कहे३०. ८८२७१. १४ गुणठाणा ३२ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२१४११, १३४२५). १४ गणस्थानके ३३ द्वार बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: गुणठाणा सावध कितरा; अंति: अपडवाइ ३ १२१३ १४, (पू.वि. प्रतिलेखकने ३२ बोल ही लिखे है.) ८८२७२. हिसाबपचीशी, संपूर्ण, वि. १९१६, भाद्रपद शुक्ल, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ३, दे., (२०.५४१०.५, १०४३०-३७). हिसाबपंचविंशतिका, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम इष्ट परमेष्टि; अंति: एक रीति जानीए, गाथा-३२. ८८२७३. बीजनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११.५, ११४३०-३२). बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: विजयलबधि०विविध विनोद, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३३५ ८८२७४. चंद्रावतीभीमसेन सज्झाय व गिरनारशQजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १५४३८-४१). १.पे. नाम. चंद्रावतीभीमसेन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जस मुख सोहें सरसति; अंति: विवेकहर्ष भजो जगदीस, गाथा-२०. २. पे. नाम. गिरनारशजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., पद्य, आदि: सारो सोरठदेश दिखाउनै; अंति: ज्ञानविमल० सिर धरीया, गाथा-७. ८८२७५. पार्श्वजिन स्तवन व सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१x११, ११४२७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गंभीरा, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगंभिरापार्श्वजी; अंति: धर्मविजय गुण गाय जी, गाथा-७. २. पे. नाम, सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मा भगवती विद्यानी; अंति: दयानंद० तोरि बलिहारी, गाथा-७. ८८२७६. (#) अवंतिसकमाल रास, नेमराजिमती गीत व पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११.५, १९४५२). १.पे. नाम. अवंतिसुकुमाल रास, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. __ मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरष सुख पावे रे. २. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पं. जयकरणजी, मा.गु., पद्य, आदि: हां हो नेमजी लागी; अंति: जैकर्ण हो यादव एक ही, गाथा-९. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. ३आ, संपूर्ण. म.धर्मवर्धन, मा.ग., पद्य, आदि: मरति मननी मोहनी सखी; अंति: हेत कहै ध्रमसीह रे. ८८२७७. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२२४११, ९४२६). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पं. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाखीणो सुहावै जिनजी; अंति: बांदु श्रीविजै हीर, गाथा-५. ८८२७८. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अंत में दोहा व अंक लिखे हैं., दे., (२१४११.५, ११४२०). सीमंधरजिन स्तवन, मु. कनकसौभाग्य शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी सीमंधरस्वामी; अंति: भवियण गुण गावसे जी, गाथा-६. ८८२७९. गुरुगुण गीत व गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:गुरारावेमु. श्री सिरिकवरजीरे नेसरा छे., दे., (२०.५४११, १४४३५). १. पे. नाम. गुरुगुण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कुसालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८८, आदि: पुन्यजोगे सतगुरु मिल; अंति: कुसालचंद०जोर प्रकासी, गाथा-७. २. पे. नाम. गुरुगुणवर्णन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुरुगुण सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: आगइ कुगुरू अनंता; अंति: भगवंत गावै गुरू वे, गाथा-२५. ८८२८१. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२०४११, १५४१६-१७). पार्श्वजिन स्तवन, मु. भाग्यउदय, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तु साचो पारस; अंति: भाग्य० कंचन कर दीजे, गाथा-५. ८८२८२. (+) महावीरजिन विनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४११,११४३४). महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: ___समयसुंदर० तिलो, गाथा-१९. ८८२८३. पार्श्वजिन स्तवन व भरतबाहबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१४११.५, ११४२२-२५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ, संपूर्ण. म. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाखीणो सोहावें जिनजी; अंति: दीपविजय०बंद बिजयहीर, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: वंदे पाया रे, गाथा- ७. ८८२८४. आदिजिन आरती, मंगलदीवो आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित., दे., (२१.५X११.५, १५X३१). १. पे. नाम. प्रभु पोंखणा स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: यावे प्रसनजीत नार, गाथा- २३, (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से है.) २. पे नाम आदिजिन आरती पू. २अ, संपूर्ण, " मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: अपछरा करती आरति जिन; अंति: करजो जाणी पोतानो बाल, गाथा - ६. ३. पे. नाम. पंचतीर्थ आरती, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, पंचजिन आरती, मा.गु., पद्य, आदि पहली आरती प्रथम, अंति आरती शंती तुमारी, गाथा- ७. ४. पे नाम. मंगल दीवो. पू. २आ, संपूर्ण. आव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, आदि दीवो रे दीवो मंगलिक; अंति: देपाल० कुमारपालें, गाथा ५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८२८५. थंभणपुर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०.५X११.५, ९x३२). पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि थंभणपुर श्रीपास जिर्ण अति अमरविशाल० चोसालो, गाथा - १६. ८८२८६. (#) सज्झाय, स्तुति व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१९.५X१२, २१X३८). १. पे. नाम. भवदेवनागिला सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: भवदेव जागी मोहनी तज; अंति: हो नित सिस नमाय, गाथा -११. २. पे नाम. गुरुगुण स्तुति, पू. १अ संपूर्ण. मु. हीरालाल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: गरुजी माने मूगती को; अंतिः मे जुग जुक सीस नमायो, गाथा-४. " ३. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: कवरा साधतणो आचार; अंति हीरालाल हीरदे मुजार, गाथा-५. ४. पे नाम औपदेशिक पद-दत्तव्रत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, पुहि., पद्य, आदि पावोगा मुगती फुलपखडी अति तीलोक० प्रभु फरमाइ रे, गाथा ५. ५. पे नाम औपदेशिक पद-शीलव्रत, पृ. १आ. संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, पुहि., पद्य, आदि सदा पालो रे शीयल; अंतिः तीलोक० सदा सुखदाइ रे, गाथा- ६. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद-परिग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, पुहि., पद्य, आदि तयागो ममता परीग्रह, अंतिः तीलोक० पाई रे त्यागो, गाथा- ६. ७. पे नाम औपदेशिक पद-जोवन, पू. १आ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि मत अकडे जोबन के मटके; अंति: तीलोक० अचल सुख सटके, गाथा-५. ८८२८७ (७) नीसाल गरणो, संपूर्ण, वि. १८६८, वैशाख अधिकमास, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२१.५x११.५, १२४३५). महावीर जिन स्तवन- निसालगरणुं, मा.गु., पद्य, आदि त्रिभुवन जिण आणंदा, अंति: चरणे नीत नमु ए. गाथा- २३. ८८२८८. नेमराजिमती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. हुंडी नवभ०, दे. (१९.५X११.५, १६३०). नेमराजिमती स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि किम आया किम फिर चलीय, अंति: वांदु वे कर जोडी, गाथा-२० ८८२८९. (#) जुगवाहुजिन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२०X११.५, १६X३०). युगबाहुजिन स्तवन, मु. जिनदेव, मा.गु., पद्य, आदि इण जंबूदीपे जाणीइं अंति: जाणज्यो नितमेव रे, गाथा-१५. ८८२९० ध्यानभेदविचार पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, दे. (२०x११.५, २१x१९-२३) ध्यानभेदविचार पद, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि मन परिणामसु ध्यान अंतिः ते कर्मतंतु तोडै रे, गाथा १९. For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३३७ ८८२९१. षद्रव्यविचार स्तवन व औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, दे., (२५.५४११, ६१४२६-२८). १. पे. नाम, षद्रव्य विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ६ द्रव्य विचार स्तवन, मु. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्ध नमुं करजोडी; अंति: हेम मुनीस कहै री, गाथा-४७. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जेसे करवत एक काठ विच; अंति: ज्यौं पट सहज सफेद, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जांणपणानो बोहोत गुता; अंति: मद कहे रे गुनीजनो, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: रूपवंत गुणहीण तिण; अंति: चांदनो नांहि सोहावै, गाथा-३. ५. पे. नाम. ४ विपाक वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अब विपाक वरनौ विधि; अंति: कहै वरने चारि विपाक, गाथा-९. ६. पे. नाम. सर्वघातियादि विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. सर्वघातियादिकर्म विवरण, पुहिं., पद्य, आदि: सर्वघातिया की; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ८८२९२. ५ गणठाणा, चिंतामणि पार्श्वजिन भास व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:वांणजा., जैदे., (१९.५४११, १५४२७). १.पे. नाम. ५ गुणठाणा, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: पांच गुणठांणा सासता; अंति: नथी उपयोग लख्या नथी. २. पे. नाम. चिंतामणि पार्श्वजिन भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन भास-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिंतामण माहरी चिंता; अंति: समसुदर कहइ सुख भरपुर, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-वणजारा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: वीणज करणकु आयाजी; अंति: लेसी सुख अनगार नगरी, गाथा-९. ८८२९३. पार्श्वजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१४११.५, १५४३५). पार्श्वजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे वरघोडे वर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ८८२९४. साधुप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रंगरत्न; पठ. हीराचंद माणेकचंद फडीया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४१०.५, २६४१६-१७). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: प्रथम ईछामी खमासणो; अंति: कहवी पछै लोगस्स कहै. ८८२९५. ऋषभाननजिन स्तवन, सकलतीर्थ वंदना व बाराक्षरी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२१.५४११, ११४२६-३०). १. पे. नाम. ऋषभाननजिन सतवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ऋषभाननजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीऋषभानन गुणनिलौ; अंति: नयविजय० मित्त हो, गाथा-७. २. पे. नाम. सकलतीर्थ वंदना, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल तीर्थ वंदु कर; अंति: (१)जीव कहे भवसायर तरुं, (२)छनु जिनने करु प्रणाम, गाथा-१६. ३. पे. नाम, बाराक्षरी, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ; अंति: (-), (पृ.वि. ध वर्णमाला तक है.) For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८२९६. (+) मनभमरानो वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १०४४१). औपदेशिक सज्झाय-मनभमरा, मु. लाभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भुल्यो मन भमरा तुं; अंति: लाभ० साहेब हाथ, गाथा-१५. ८८२९७. रोहिणीतप स्तवन व उजमणो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५,१४४३५). १. पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामिणी मुझ; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-३२. २.पे. नाम, रोहिणी उजमणो, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: विध लीखीयै छै गुरुनै; अंति: गलीक गीत ग्यांन कीजै. ८८२९८. (+) सास्वता असास्वता चैत्यवंदन व सुमतिजिन दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२४३०). १. पे. नाम. सास्वता असास्वता तीर्थवंदना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंतिः सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१० २. पे. नाम. सुमतिजिन दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण.. ____ मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सुमत भर दीजीइं; अंति: जिम वाधे मुझ मुख नूर, दोहा-१. ८८२९९ (+) उपधाननामादि कोष्ठक, पौषधोपधान आलोचना व उपधान विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १५४१८-३७). १.पे. नाम. उपधाननाम सूत्रनामादि वाचनासंख्याविवरण कोष्ठक, पृ. १अ, संपूर्ण. उपधानतपविधि यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., आदि: उपधाननाम१ सूत्रनाम२; अंति: सिद्धाणं बुद्धाणं. २. पे. नाम, पौषधोपधान आलोचना विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पौषधोपधान आलोयणा विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: महपत्तीउ संघट्टे; अंति: तदा दिनवृद्धि जायते. ३. पे. नाम. उपधान विधि, पृ. १आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथमे द्वितीये; अंति: (-), (पू.वि. देववंदन विधि अपूर्ण तक है.) ८८३००. नेमराजुल, शांतिजिन स्तवन व १८ नातरा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी अवाच्य है., जैदे., (२६४१२, १५४४३). १.पे. नाम. नेमराजल स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. नेमराजिमती स्तवन, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: रामवीजय० सूण अरदास, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. वा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति करो जिन सांतजी; अंति: मेघ लहे सुखमाल, गाथा-८. ३. पे. नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंन्या. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: विरजिणेसर प्रणमु पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) ८८३०१ (#) महावीरजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५४११.५, १२४३५). महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदि: आधार ज हुँतो रे एक; अंति: वरीया सीवपद सार, गाथा-१५. ८८३०२. पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १८४३३-३८). पार्श्वजिन छंद-चिंतामणि, महम्मद काजी, मा.गु., पद्य, आदि: अचंत चंतामणी श्री; अंति: स्वामीजी आपो जी सेव, गाथा-७. ८८३०३. सामायिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, १०४३५). For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org ३३९ सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि चतुर नर सामायिक, अंति: ज्ञानवंत कड़ पासइ, गाथा-८. "" ८८३०४. उपदेशइकत्तरी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी उत्प० सिज्झा०, जैवे. (२५.५x११.५, १३४३०-३८)औपदेशिक सज्झाय गर्भावास मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि उतपत जोय जीव आपणी अति इम कहे श्रीसार ए. गाथा - ७२. ८८३०५ (४) २४ जिन स्तवन व धन्नाशालिभद्र सज्झाय, संपूर्ण वि. १७८३ कार्तिक कृष्ण, २. गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. मु. प्रेमरत्न प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११.५, १३x४०). "3 १. पे नाम. २४ जिन स्तवन, पू. १अ-२अ संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अति तास सीस पणे आणंद, गाथा-२९. २. पे नाम, धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अनुमति आपो मातजी बोल; अंति: सूरिनो भावरतन परिणाम, गाथा-१०. ८८३०६. ५ महाव्रत व ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, पठ. पं. रूपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जीवे. (२६११.५, ११४३०-३५). १. पे. नाम. ५ महाव्रत सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. मु. . कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवे रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चतुर्थ महाव्रत तक लिखा है.) २. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरुना हुं प्रणमु; अंति: वाचकदेवनी पुरो जगीश, गाथा-५. ८८३०७ पद्मप्रभ गीत, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५.५x११.५ १०X३४). y पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: भवि भवि सेवरे, गाथा- ९. ८८३०८. (*) आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५४१२, ११-१३X२२-३०). आदिजिन स्तवन, वा. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: श्रीसरसति लही वाणी ए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५९ अपूर्ण तक है.) ८८३०९. (+) अणगोस सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६११.५, ११४३४-४०)अणगस गीत, मु. माणिक, रा., पद्य, आदि: अणगोस करवो काल बाई अंति: करीये अणगोस वारोवार, गाथा-२२. ८८३१०. (+) महावीरजिन नामकरण विवरण व ७२ कला नाम, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२६×११.५, १०x२८). १. पे. नाम. महावीरजिन नामकरण विवरण, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. मा.गु., प+ग, आदि: मगधदेशमें अति भलो अति: ३६ एह छतीसकुली आवीइ (वि. ३६ कुल के नामयुक्त.) २. पे. नाम. ७२ कला नाम- पुरुष, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: लिखतकला १ गणितकला२; अंति: त्वया ग्यातव्या . ८८३११. अरिहंतपद चैत्यवंदन व ज्ञानपंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. सालगराम व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X११, १०x२५). १. पे. नाम. अरिहंतपद चैत्यवंदन, पू. १आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., पद्य, आदि उपन्नसन्नाण महोमवाणं, अति तीर्थकरा मोक्ष पामे, गाथा-५. २. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमीपंचरुपत्रिदस; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८३१२ (+) ज्ञानपंचमीपर्व, अष्टमीतिथिपर्व, व एकादशीतिथि चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १०४२५-३०). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: युगला धर्म निवारिओ; अंति: श्रीखिमाविजय जिणचंद, गाथा-९. २. पे. नाम. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र वदी आठम दिने; अंति: प्रगटे ज्ञान अनंत, गाथा-१५. ३. पे. नाम. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक वीरजी बहु; अंति: शासने सफल करो अवतार, गाथा-९. ८८३१३. जन्ममरण सूतक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १२४३३). सूतक विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धांत माहे जन्मनौ; अंति: आचारदिनकरमै कह्यौ छै. ८८३१४. संभवनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३७). संभवजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: नाथकी नाथकी नाथकी; अंति: भक्ति करो भोलानाथ की, गाथा-११. ८८३१५. दयाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. थराद, जैदे., (२६४११,१२४३७). दयाछत्रीसी, मु. साधुरंग, मा.गु., पद्य, वि. १६८५, आदि: दयाधरम मोटो जिनसासन; अंति: अमदावाद मझारी जी, गाथा-३६. ८८३१७. (+#) अर्हत्सहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४३६-४३). शक्रस्तव-अर्हन्सहस्रनाम, आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमो अर्हते परमात्म; अंति: प्रसादात्त्वयिस्थितं. ८८३१८. लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, ले.स्थल. जामखेड, प्रले. मु. अमी ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:लावणी., दे., (२५.५४११.५, १५४३२). १. पे. नाम. उपदेशी लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-क्रोधादिपरिहार, मु. रामरतन शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: पंडीत कान कशा बडा; अंति: रामरतन० उजेण के मांइ, पद-४. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-कायानगरी, मु. दीपचंद, पुहि., पद्य, आदि: एक नगर बडा गुलजार; अंति: दीप० पास करे लघुताइ, पद-४. ३. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. २अ, संपूर्ण. म.जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: वीलखे वदन भोले नलके; अंति: जिनदासरह्या मत हीना, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: धीक तेरा जीवना जिनंद; अंति: बेडा पार लगाया, गाथा-४. ५. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: सुकृत न कीयो; अंति: गई रे जैसे पानी में, गाथा-३. ८८३१९ (+) चोवीसी तिर्थंकर मातापितालंछन नाम गाम स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६४३८). २४ जिन स्तवन-माता पिता लंछन नाम गामादिगर्भित, गच्छा. हेमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अंति: हेमविमल० युगप्रधान, गाथा-२८. ८८३२१ (#) आगमशास्त्रे सकुनाध्याय, संपूर्ण, वि. १८२८, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४३६). For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ आगमशाखे - शुकनाध्याय, सं., पद्य, आदि देवं वृक्ष फलं वारा; अंतिः शरीरे क्लेशमेव च श्लोक-१७. ८८३२२. (*) दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५-१ ( ४ ) = ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११, १४४४०-४२). " दानशीलतपभावना चौडालियो, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य वि. १६६२, आदि प्रथम जिनेसर पय नमी; अंति श्रीजिनचंदसुरिंदो रे, ढाल-४, (पू.वि. "संसारी एतउ बीजा मुझ परीवार" से "धरम करो तुम्ह प्राणिया रे" के बीच का पाठ नहीं है.) ८८३२३. () गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. बीकानेर, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५X११.५, २०४४७). गजसुकुमालमुनि सज्झाब, मु. फतेचंद, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिन सीवसुखदायक, अंति: फत्तेचंद गुण गाया, गाथा - १९. ८८३२४. स्तंभण पार्श्वनाथ स्तवन व साडा बार ज्ञाति नाम, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे २, जैवे. (२५.५४११, १३x४०-४२). १. पे. नाम. स्तंभण पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि प्रभु प्रणमु रे पास अति: आणी कुसललाभ पपए, ढाल - ५, गाथा- ३५. २. पे नाम. साडा बार ज्ञाति नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. साढाबार ज्ञाति नाम, मा.गु., गद्य, आदि: वीसाओसवाल१ वीसापोरवा; अंति: एकण थाली जीमे १२. ८८३२५. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५X११, १४४४५). 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण पुण्ये; अंति: निसदीन दीओ वधाई जी, गाथा-४. ८८३२७. महावीरजीनो पारणो, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे. (२५x११.५, ११४२५-३० ). साधुवंदना, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि रिसाहजिन पमुह चोबीस, अंति: (-) (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ४ की गाथा ४२ अपूर्ण तक लिखा है.) ८८३२६. (+) दीवालीपर्व, चतुर्दशीतिथि व पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X११.५, १४X३६-४१). १. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पंडित. देवचंद्र, मा.गु., पच, आदि ए दीवाली परव पनोतु अति सकल संघ आनंदा जी, गाथा-४. २. पे नाम चतुर्दशीतिथि स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि चीद सुपन सुचित हरि अंति: सकल संघ सुखकरणी जी, गाथा ४. ३. पे नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पू. १आ, संपूर्ण महावीरजिन स्तवन- पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चौमासी पारणो आवै करि अति सुभवीर वचनरस गावे रे, गाथा -८. ८८३२८. स्तवनचीवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १७४५२). ३४१ २. पे नाम साधु आलोयणा, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण. साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु., गद्य, आदि समकत अतीचार २ उप०; अति सुइ टुट जाव तो बेलो. स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्रीआदीश्वरस्वामी हो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, अजितजिन स्तवन तक लिखा है.) ८८३२९. (-) श्रावक आलोयणा व साधु आलोयणा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी आलोणा, अशुद्ध पाठ., दे., (२६x११.५, १४X३८). १. पे. नाम. श्रावक आलोयणा, पृ. १अ संपूर्ण. रा., गद्य, आदि सवग समकत भंग जंगन; अति तीन तेहीज फेर देणा For Private and Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४२ ८८३३०. (*) नेमराजिमती बारमासो व प्रास्ताविक दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९९३ पौष शुक्ल ८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. खीचंद, प्रले. नथमल्ल; पठ. सा. जीताजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५x११.५, १६X३६). १. पे. नाम नेमराजिमती बारमासो, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य वि. १९११, आदि: राजुल उभी विनवे रे; अति वारी को धरमरा काम, יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा- २३. २. पे नाम. प्रास्ताविक दूहा संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दुहा, पुहिं., पद्य, आदि मनाली मीत्र हजार हे अंति: उणहीज रंग गहीं जो दोहा ५. ८८३३१. (N) मेघकुमार सज्झाय व प्रास्ताविक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११.५, १५४४०). १. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. लाल विजय, मा.गु., पद्य, आदि सद्गुरु पाव प्रणमी म अति लालविजय करि ग्यान, गाथा-१५ (वि. आठ पद के हिसाब से गाथांक १५ लिखा है.) २. पे नाम. प्रास्ताविक दूहा संग्रह, पू. २आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि छिदर कमल न नीपजइ अंति: उमटीउ सेवाल, गाथा २. ८८३३२. बारव्रत पूजा-चतुर्थव्रत ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६X११.५, १४X३८). १२ व्रतपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु. सं., पद्य, वि. १८८७, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण ८८३३३. (K) इलाचीकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६११, १३x२९). इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि नाम इलापुत्र जाणीय, अंति: लबधिविजय गुण गाय, गाथा - १५. ८८३३४. (*) श्रमण अतिचार व पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संपूर्ण, वि. १८५१, कार्तिक कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. जावालग्राम, प्रले. ग. नायकविजय; पठ. श्राव. किसना (गुरु ग. नायकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसुमतिनाथजी प्रशादात्., संशोधित., जैदे., (२५X११.५, १३X३५). ९. पे नाम भ्रमण अतिचार, पृ. १अ ४अ संपूर्ण हिस्सा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि० विशेषतश्चारि; अंति: मिच्छामि दुक्कडं.. २. पे. नाम. पाक्षीक तप, पृ. ४अ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा. मा. गु, गद्य, आदि इच्छाकारेण संदिसह अंतिः तप करी पोहचाडज्यो. ८८३३५. (+) साधारणजिन स्तवन व आत्महित सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., ., (२५X११.५, १४४४२). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सकल समता सुरलता तु; अति: ज्ञान० सुजस जमाव रे, गाथा ८. २. पे. नाम. आत्महित सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, क. वीरविमल, मा.गु., पद्य, आदि चेतन चेतज्यो रे काल, अंति ते सिवपुरमा भलीयो, गाथा - १४. ८८३३६. (*) उपधानतप विधि व उपधान आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११.५, १८x४७). १. पे. नाम. उपधानतप आराधन विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. उपधानतपआदि विधि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: प्रथम उपधान नोकारनो१; अंति: एतलो विध सेष. २. पे. नाम. उपधान आलोयणा, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३४३ ___ मा.गु., गद्य, आदि: आंबिल निरंतर पुरुष; अंति: कले विराधनायां उपवा०. ८८३३७. दहा, स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, १३४४१). १.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. अमरसी, मा.गु., पद्य, आदि: पंथीडा हरखर कहि रे; अंति: अमरसी कहै उवझाय, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. धरम, मा.गु., पद्य, आदि: नव भव केरी प्रित धरी; अंति: भवभवना मुझ वांधण छोड, गाथा-९. ३. पे. नाम, औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: वहितै जल कालू कहै; अंति: इण सरवर री पाल, दोहा-१. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंता हो नारी; अंति: दोलत दीयै सव तीणा जी, गाथा-९. ८८३३८. (2) नववाड व दानशीलतपभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, २१४४३). १. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: असत्री पसु पिंडग तणी; अंति: रे विजयदेवसूर के, गाथा-१३. २. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. जयमल, रा., पद्य, आदि: पुनी जोग गुर मीलीया; अंति: जमलजी० दान सीलतप भाउ, गाथा-१९. ८८३३९. ६२ मार्गणादि बोलयंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०८, फाल्गुन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. बुंदीनगर, दे., (२५.५४११, २०४४२). १. पे. नाम. १०२ बासठीयो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: जीवगइ१ इंदियर काए३; अंति: (-). २. पे. नाम. १४ गुणस्थानना बासटीयो, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानके ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. ५ शरीर विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ५शरीरद्वार विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. ८ आतमानो विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ आत्मा ६२ बोल, पुहि., को., आदि: १ द्रव्य आत्मा में; अंति: ८ विर्यआत्मा में. ५. पे. नाम. ८ कर्मनो विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ कर्मबंध भेदविचार कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८८३४०. (+) ४ मंगल सज्झाय व दानशीलतपभावना प्रभाती, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४३४-३६). १.पे. नाम. ४ मंगल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मंगलीक पेहलु कहु एह; अंति: मंगल नित्य नित्य धाय, गाथा-१५. २. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. १आ, संपूर्ण. __उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म कीजिइ; अंति: मुगति तणो दातार, गाथा-६. ८८३४१. (+) सुभद्रासती चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १८३६, मार्गशीर्ष अधिकमास शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. मनोहरसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १८४५२). सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सरसति सामण वीनवु आपो; अंति: फलिय मनोरथ माल, ढाल-४. ८८३४२ (+) वीसथानकतपो विधि, संपूर्ण, वि. १७९३, श्रेष्ठ, प. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १७X४५). For Private and Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं २००० अति: ५नो काउस कीजै. ८८३४३. (+) नंदीश्वरद्वीप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५x११.५, १०X२८-३३). नंदीश्वरद्वीपजिन स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसर बावन जिनालय; अंति: जैनचंद्र गुण गावो रे, गाथा-१५. ८८३४४ (+) भोजन विच्छित्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.. (२५४११, २२४५४) भोजन विच्छित्ति, मा.गु., गद्य, आदि: मांड्यउ उत्तंग तोरण; अंतिः प्रमुख पहिराया. ८८३४५. होलिकापर्व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैवे. (२५x११, १४४४५-५०) होलिकापर्व कथा, मा.गु. सं., प+ग, आदि उजेणी नगरीइ प्रजापाल अति आ भव परभव सुखी थाई. ८८३४६. २३ पदवी वर्णन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५X११, १६x४७). २३ पदवी वर्णन स्वाध्याय, मु. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो पणमी वीरजिणंद; अंति: धन तेहनो अवतार, गाथा २० (वि. प्रतिलेखक ने २०वीं गाथा लिखकर कृति समाप्त कर दी है.) ८८३४७. पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैवे. (२५.५x११.५, १३४४३). " पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सारदमात मया करी आपो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - २५ अपूर्ण तक लिखा है.) ८८३४८. विविध गुणणादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ८, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक १ व २ लिखा है, परंतु प्रथम कृति अपूर्ण होने से पत्रांक २-३ काल्पनिक दिये हैं. दे., (२५.५४११, ११x१४-३०). "" १. पे. नाम. पीस्तालीस आगमनु गणणुं, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ४५ आगमतप गणणुं, मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: अनुयोग० सूत्राय नमः, (पू.वि. मात्र अंतिम दो सूत्र ओघनिर्युक्ति व अनुयोगद्वार सूत्र ही हैं.) २. पे. नाम. चउदपूरवनु गणणु, पृ. २अ, संपूर्ण. १४ पूर्व गणणं, मा.गु. सं., गद्य, आदि उत्पादपूर्वाय नमः अति पूर्वाय नमः, ३. पे. नाम. पार्श्वनाथस्वामीना दशगणधर नाम, पृ. २अ २आ, संपूर्ण १० गणधर नाम- पार्श्वजिन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुमतीस्वामी १; अंति: १० श्रीविजयस्वामी. ४. पे. नाम. पांच मेरुनु गणणुं, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५ मेरुपर्वत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुदर्शनमेरुजिनाय; अंति: मालीमेरुजिनाय नमः. ५. पे. नाम बावन जिनालयन गरणु, पू. २आ, संपूर्ण. ५२ जिनालय ओली गणणुं, मा.गु. सं., गद्य, आदि: अंधारी आठमे अंति: वारीषे०सर्वज्ञाय नमः.. ६. पे. नाम. पंदरतिथीनुं गणणु, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. १५ तिथि गणणुं, मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीगौतमसर्वज्ञाय; अंति: १४ श्रीसंभवनाथाय नमः. ७. पे. नाम. २५० अभीषेक विवरण, पृ. ३अ, संपूर्ण. २५० अभिषेक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: बासठ इंद्रनी ६२ अति अनी० देव ४ लोकपालदेव. ८. पे. नाम. १० पच्चक्खाण नाम, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. इसी पेटांक में लगभग समान १ से ८ पच्चक्खाण के नाम अलग से लिखे हैं. मा.गु., गद्य, आदि उपवास १ एकासणउ२ अंति: १० अलेवाडू सुखीनिवि. " ८८३४९. (+) गौतमस्वामी सज्झाय व १० बोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६२, आश्विन शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, दे., (२५.५४११.५, १४४५२-५७). १. पे नाम. मुक्तिवर्णन स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम स्वामी पूछा करे; अंति: पामे सुख आथाग हो, गाथा - १६. २. पे. नाम. १० बोल सज्झाय- स्याद्वाद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३४५ १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्यादवादमत छे जिनवर; अंति: श्रीसार० रतन बहुमोल, गाथा-२१. ८८३५० (#) प्रदेशीराजा सज्झाय व थावच्चा अणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ४०-४१४२४-२६). १. पे. नाम. प्रदेशीराजा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: विमलजणेसर पाय नमी; अंति: रे हा रूपमूनी जयकार, ढाल-२, गाथा-१८. २. पे. नाम, थावच्चाअणगार सज्झाय, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. थावच्चाकुमार चौढालिया, मु. तेजसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन नेम जिणंद; अंति: तेज० थावचागुण गाय रे, ढाल-४, (वि. गाथाप्रमाण २१ है.) ८८३५१. साधु समाचारी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १७X४३). साधु समाचारी, मा.गु., गद्य, आदि: आठ मास तांइ साधु मन; अंति: ए रीति प्ररूपी छई. ८८३५२. (4) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:पद्मावती., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १६x४४). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर०छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३२. ८८३५३. पर्युषणपर्व स्तुति व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३४३६). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीपजुसणपर्व; अंति: तणो दीपविजय गुण गाय, गाथा-१०. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहासंग्रह , पुहिं., पद्य, आदि: हमसे अवगुण वहुत है; अंति: बांहि ग्रहे की लाज, दोहा-४६. ८८३५४. (+#) एकमतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १०४३६). एकमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम; अंति: नयविमल० होइ लीला जी, गाथा-४. ८८३५५ (+) नंदीषेणमुनि सज्झाय, नेमराजुल स्तवन व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४८). १.पे. नाम. नंदीषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८४२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, ले.स्थल. बुसीगाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगही नगरीनो वासी; अंति: मेरु० मुनिवर सोभागी, ढाल-३, गाथा-१४. २.पे. नाम, नेमराजल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, पं. मनरुपजी, रा., पद्य, आदि: प्रभु थे समुद्रविजै; अंति: मनरूप० दिल सुख पाया, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह-, रा., पद्य, आदि: एक अचंभो पेखीयो; अंति: मोकु देह सुदर्शन. ८८३५६. (E) आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४३५). आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीश्रुतदेवी हिइ; अंति: भावरतन सुजगीसो रे, ढाल-५, गाथा-३७. ८८३५७. (+) भवीयकुटुंब रास, संपूर्ण, वि. १७८३, वैशाख कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४३५). For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची समकितगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सिरि रिसहेसर मनिहि; अंति: ते पामइ सर्वसिद्धि, ढाल-२, गाथा-७८. ८८३५८. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ११४३४). पार्श्वजिन स्तवन-मगसी, आ. जिनसंभवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: मगशी पारस मोहियो; अंति: श्रीजिनसंभवसूरिए, गाथा-११. ८८३५९ (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १७९०, चैत्र, १४;वि. १९०४, वैशाख कृष्ण, ३०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. हर्षराज; पठ. कीसनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३४-३८). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.ग., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: ध्यान हीयै धरो ए, गाथा-५२. ८८३६०. ज्योतिष विचार, गुरुगण गहंली व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४११.५, १४४३८). १. पे. नाम, संतानभाव ग्रहपीडा निवारण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहि.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: संतानभावेस्थ ग्रहाणा; अंति: क्षिप्यते केतु तथैवं. २. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण.. ___ मा.गु., पद्य, आदि: चालो सहेली वंदवा; अंति: सुधरूप धरी नेह वाणी, गाथा-७. ३. पे. नाम. हलवा निर्माण दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण... प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: मेंदा पाणी दोगुणो; अंति: घालीये सीरो सखरो होय, गाथा-१. ८८३६१. नेमराजिमती बारमासा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४२). नेमराजिमती बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वैशाखे वन मोरीया; अंति: मिलीया मुगति मझार, गाथा-१५. ८८३६२. सज्झाय व स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२६४११, ३९४२२). १. पे. नाम. विजयप्रभसूरि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. विजयप्रभसूरिगुरुगुण सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदऊं विजयप्रभसूरि; अंति: हितविजय० सुख करणे रे, गाथा-११. २. पे. नाम. विजयक्षमासूरि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. विजयक्षमासूरि गुरुगण सज्झाय, उपा. जीवविजय, सं., पद्य, आदि: भजत विजयक्षमासूरि; अंति: जयादित स्तुतिमुदारं, गाथा-८. ३. पे. नाम. विजयक्षमासूरि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीमज्जिनेशः शुभ; अंति: ददतां सुखौघं, श्लोक-१. ४. पे. नाम, विजयक्षमासूरि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सार्वज्ञं विजयक्षमा; अंति: सौख्यप्रदं संस्तवे, श्लोक-१. ५. पे. नाम. हितविजयगुरु स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु वंदो चित्त; अंति: जिन कहे करजोडी रे, गाथा-१५. ६. पे. नाम, मांगलिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीमत्सौख्यप्रदं; अंति: सदा० तस्य गहे, श्लोक-१. ८८३६३. बुद्धि रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पठ. सा. मेघा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ११४२७-३६). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देव अंबाई; अंति: ते सवि टलइ कलेस तु, गाथा-६४. ८८३६४. (+#) वैद्यक, ज्योतिष व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. सुखसागर, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६x४८). १. पे. नाम. औषध व ज्योतिष, पृ. १अ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पाप सेती प्रीतडी; अंति: डंग माथे लगावीजे. For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३४७ २. पे. नाम. शरीरस्थ ग्रहवास दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष, पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: रवी शिरवासो चंद मुख; अंति: राहुकेतुशनि हाण. ३. पे. नाम. आत्मा उपर सिज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, अन्य. मु. सुखसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासमै चिंतवैए; अंति: जइए मुगति मझार कै, गाथा-९. ४. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग व्रत रहनेमि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८८३६५ (#) पार्श्वजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, ५४३८). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुपासनाह प्रह; अंति: पासचंद० परमारथ लहे, गाथा-२३, (वि. अंतिमवाक्य अस्पष्ट है.) पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमुं पार्वनाथ; अंति: गति आगति जाणवी. ८८३६६. स्थूलिभद्रकोशा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १२४४५). स्थूलिभद्रकोशा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आ चित्रसाली आ सुख; अंति: बोलउ वचन विचारी जी, गाथा-१५. ८८३६७. (+) विविधतप यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., ., (२५.५४१०.५, ८x२१-३०). विविधतप यंत्र संग्रह, मा.ग., को., आदि: (-); अंति: (-). ८८३६८. चौदह रत्न विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १५४४०). १४ रत्न विचार-चक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, आदि: चक्र रतन छे तो छडं; अंति: चक्रव्रत सद्गुणी. ८८३६९. (#) छंदलक्षण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, ३४४२०). __ छंदलक्षण, मा.गु., प+ग., आदि: गाथार्नु उत्तरार्द्ध; अंति: शुभा अम्ह तुम्ह जयउ. ८८३७०. सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन व लेख, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १७X४४). १. पे. नाम. सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.. सीमंधरजिन विनती स्तवन, क. कमलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: स्वस्ति श्रीपुःकलवती; अंति: विहरतो देउ मे भदं, ढाल-७, गाथा-१०५. २. पे. नाम. सीमंधरजिन लेख, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. सीमंधरजिनविनती लेख, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: स्वस्तिश्री पुंडरगिण; अंति: जयवंत०माझिम रातिइ रे, ढाल-५, गाथा-४०. ८८३७१. भगवतीसूत्र बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, २४४४५). भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: समुचय जीवनो भेदे १; अंति: ए नवमो दंडक जाणवो. ८८३७२. चेलणासती व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १५४३८). १. पे. नाम, चेलनासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: चेडा राजानी बेटी सात; अंति: रायचंद० जुगत जाणी, गाथा-१८. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: इण काल रो भरोसो भाई; अंति: करजो धरम रसालो ए, गाथा-१४. ८८३७३. (+) १२ मास सूर्यकिरणसंख्या, रात्रिदिनसंख्या व २४जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रावण कृष्ण, ७, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. केकींद, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चोइसी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १६४१०-२५). १. पे. नाम, १२ मास सूर्यकिरणसंख्या विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहिं., गद्य, आदि: चतक महिन साढीबारास; अंति: हजार अर ५० किरण तप१२. २.पे. नाम. १२ मास रात्रिदिनसंख्या विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पोसक महिन १२ म० दिन; अंति: म दिन १७ महोरती रात. ३. पे. नाम, चोइसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: धुर प्रणमु ऋषभजिणंद; अंति: ए तान कियो बचाव ए, गाथा-१९. ८८३७४. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.ले.श्लो. (७५६) तेलाद्रक्षे जलाद्रक्षेत्, जैदे., (२६४११.५, १५४५०). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: जिणंदा ताहरी वाणीयै; अंति: भाखेरे इम कवि कंतरे, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अनूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जीवन मांहरा तेवीसम ज; अंति: पसाय पभणे अनुपमचंद, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हेली वृंदावन जास्या; अंति: जिन० प्रीत बंधाणी हे, गाथा-४. ४. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गिरनारे बोल्या मोर; अंति: लालचंद०गयो चितचोर है, गाथा-५. ८८३७५. (#) अध्यात्मबत्तीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११, १६४३८). अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर तिहां परम; अंति: सुखकंद रुपचंद जाणीए, गाथा-३३. ८८३७६. (+) चोविस अतिशय छंद, द्रव्यविचार व आठ कर्मस्थिति विचार गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, २८x१७). १. पे. नाम. चोविस अतिशय छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमतिदायक कुमति; अंति: पद सेव मागुं भवोभवे, गाथा-११. २. पे. नाम. द्रव्यविचार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: परिणामी जीव मुत्ता; अंति: मिदिरहि अप्पवेसे, गाथा-१. ३. पे. नाम. ८ कर्मस्थिति विचार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नाणे दंसणावरणे वेयणि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ८८३७७. स्तवन, गीत व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, जैदे., (२६४११.५, १५४३८). १. पे. नाम. गोडीपार्श्व गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत-गोडीजी, म. राम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण आयौ रे मास; अंति: सार कर जोडे रामै कही, गाथा-९. २.पे. नाम. रिषभजिनेसर गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आयो आयो मास आसाढ दिस; अंति: राम० अमृतरस आछो पीयो, गाथा-१४. ३.पे. नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- वैराग्य, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: साथे रे माया नही चले; अंति: राममुनि० भव भर लैवै, गाथा-११. ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-क्रोध परिहार, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. रामचंद, पुहि., पद्य, आदि: खमा कीया सुख उपजै; अंति: रामचंद०पालौ सीख सकोई, गाथा-११. ५. पे. नाम. आबू छंद, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. अर्बदगिरितीर्थ छंद, क. रूप, मा.गु., पद्य, आदि: पुत्र गवरी समरु प्रथ; अंति: रूपो० अरबुदगढ भाखीये, गाथा-१७. ६. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३४९ सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: जिनहरष०प्रणमु पाय रे, गाथा-९. ८८३७८.(+) कमलावतीसती सज्झाय व नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६४, उगणीसे चोसठ, पौष कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. नवासर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२, १८४४५). १. पे. नाम. कमलावतीसती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, वि. १९६०, आदि: धन पुरुस जो संजम; अंति: चोथमलकबहु न टलता जी, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पूरा तो लागो नेमजी; अंति: प्राणाधार नेमजी, गाथा-८. ८८३७९ (+) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, १६४३१). सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति परसंसा करइ; अंति: खेम०गाया सुख पावइ जी, गाथा-२०. ८८३८०. शंखेश्वर पार्श्वनाथ, पल्लविया पार्श्वनाथ स्तवन व अष्टमी नमस्कार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १४४४०). १. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मा.गु., पद्य, आदि: मनना मोहन म्हारा; अंति: पादपद्म सहु कोय, गाथा-५. २.पे. नाम. पालविआ पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपालवीआ पासजी; अंति: वहेलुं शिवसुख थाय, गाथा-५. ३. पे. नाम, अष्टमी नमस्कार, पृ. २आ, संपूर्ण.. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: महा सुद आठम दिने; अंति: पद्मनी सेवाथी शिववास, गाथा-७. ८८३८१. श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४३५-३७). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावकतणइ; अंति: चोवीसासो __अतिचारमाहि. ८८३८२. २४ तीर्थंकर चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १५४४६). २४ जिन स्तवन- गणधर संख्यादि विवरण, ग. नेमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: श्रीआदिसर प्रणमुं; अंति: नेमचद० पपणाखैपुरै, गाथा-२७. ८८३८३. पार्श्वजिन छंद व नेमराजिमती पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १०x२८). १.पे. नाम. पार्श्वनाथजिन छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: परिता पूरण प्रणमीये; अंति: धणी सेवकने सानिध करौ, गाथा-२१. २.पे. नाम, नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.. मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: गीरनार की वता दे; अंति: वार-वार पाउ पडीया, गाथा-७. ८८३८४. सामायिक सज्झाय व श्रुतदेवी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३५). १. पे. नाम. सामायकना बत्रीस दोष सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी पाय; अंति: श्रीकमलविजय गुरु शीष, गाथा-१३. २. पे. नाम, श्रुतदेवी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: कमलदलविपुलनयना कमल; अंतिः श्रुतदेवता सिद्धिम्, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८३८५. (4) गुरुगुण गीत व चेलणासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. धर्मा (गुरु मु. गिरधरलाल सांमी); गुपि. मु. गिरधरलाल सांमी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपदेशीढा०., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४३). १. पे. नाम. गुरुगुण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पाली. मु. कुसालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८८, आदि: मांने पुनजोगे सतगुरु; अंति: कुसालचंद० दीखन डुलुं, गाथा-७. २. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: राणी करीये रसोइ; अंति: राखी मांहारी बाजी हो, गाथा-१०. ८८३८६. एकसौ सत्तर जिन व बीसविहरमान नाम, संपूर्ण, वि. १८१९, वैशाख शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पंन्या. भूधर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १६४४३). १.पे. नाम. १७० तीर्थंकर गुणणं, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १७० जिन नाम, मा.ग., गद्य, आदि: १ श्रीजयदेवजी २ श्री; अंति: सहस्त्र २००० गुणी जइ. २.पे. नाम. बीसविहरमान नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर; अंति: १९ अजितवीर्य २०. ८८३८७. औपदेशिक पद व धर्मरुचिअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:धनारुचि., दे., (२५४११.५, १३४३३). १.पे. नाम. औपदेशिक पद-परनारी परिहार, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. देव, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चतुर सुजाण; अंति: कीधारा तो फल पाइ, गाथा-९. २. पे. नाम, धर्मरुचिअणगार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रतनचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६५, आदि: चंपापुरी नाम अनोपम स; अंति: रतनचंदजी० नीसतारो हो, गाथा-१४. ८८३८८. (+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६६, वैशाख कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले. मु. उदयचंद; पठ. श्राव. रामचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४४०). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादिनी; अंति: नाम अभिरामं मंते, ढाल-५, गाथा-५५. ८८३८९ श्रावक आलोयणा बोल, संपूर्ण, वि. १८३०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सादडीनगर, प्रले. पं. मनोहरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १७४४७). आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञाननी आशातना जघन्य; अंति: सज्झाये उपवास पुहचे. ८८३९०. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३८). पार्श्वजिन स्तवन-शेरीसा, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: स्वामि सुहाकर श्रीसे; अंति: नमो नमो त्रिभुवन धणी, गाथा-२८. ८८३९१ (#) आदिजिन, पार्श्वजिन व चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४३६). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले. मु. दोलतविजय; पठ. मु. अमरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तवन-नारदपुरीमंडन, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: चालो सहेली आपण सहु; अंति: पल पल वलभ करे प्रणाम, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, म. शिवरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८००, आदि: पास जिणंदजी री जाउं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ३. पे. नाम, चंद्रप्रभजिन स्तवन गाथा-१०, पृ. १आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. मात्र १०वीं गाथा है.) For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३५१ ८८३९२. (+) औपदेशिक सज्झाय व २० विहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११, १३४३३). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्री धरम ध्यान धरो प; अंति: जोडी भाव उलासाणी, गाथा-१०. २. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२४, आदि: सरीमंद्र जुगमंदर; अंति: जमल० समत १९२४ चाइसा, गाथा-१०. ८८३९३. १६ सती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४३३-३८). १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: उदयरत्न० सुखसंपदा ए, गाथा-१७. ८८३९४. (+) गौतमस्वामी गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४२२). गौतमस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तियाम वनखंड मझारि; अंति: गुरुपद पद्म वधावे तो, गाथा-७. ८८३९५ (+) रोहिणीतप सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, ११४३८). रोहिणीतप सज्झाय, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य नमी; अंति: अमृतपदनो० स्वामी हो, गाथा-११. ८८३९६. स्तवनचोवीसी व शत्रुजयतीर्थ स्तवनद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, कुल पे. ३, पठ. श्रावि. प्रेमकुयरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ११४३२). १.पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १२अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: रामविजय जयसिरी लहि, (प.वि. महावीरजिन स्तवन की मात्र अंतिम गाथा है.) २. पे. नाम. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, प. १२अ, संपूर्ण. ___ मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विरजी आया रे विमलाचल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण मात्र लिखा है.) ३. पे. नाम. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. १२आ से लिखना प्रारंभ किया है. म. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे तो भले बिराजो; अंति: पद्मविजय कहे जेण, गाथा-८. ८८३९७. (+) चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१०, वैशाख शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. पं. नगविजय; पठ. पं. चुनीविजय गणि (गुरु पं. नगविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, १९४६३). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर आददेव; अंति: तुंहि तरीयो मुज तार, गाथा-९. २. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, म. हर्षविजय, मा.ग., पद्य, आदि: पूरव दिशि इशान कुण; अंति: हर्ष० पुरो संघ जगीश, गाथा-९. ३. पे. नाम, उत्कृष्ट चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीमते वीरनाथाय; अंति: लोका यथालोकादुपासते, गाथा-९. ४. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: श्रेयस्करी देहिनां, श्लोक-५. ५. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. ऋद्धिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदि अजित ने संभवनाथ; अंति: रिधि० प्रणमैं निसदीस, गाथा-५. ६. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. साधुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: तणो सीस नमे करजोडि, गाथा-१५. For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८३९८. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १८८८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. पं. आणंदविनय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १५४३७). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीना ५ भेद; अंति: गोकुं केवल दुगंमि. ८८३९९. मनुष्यभव १० दृष्टांत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १९४५९). १० दृष्टांत सज्झाय-मनुष्यभव, वा. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी परमेसर वीर; अंति: विजयसिंह गुणधारी, गाथा-१२. ८८४००. बासठ मार्गणा विचार व पाँचसौ साठ अजीव भेद विचार, संपूर्ण, वि. १८७०, वैशाख कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, जैदे., (२५४११, १२४४८-५१). १. पे. नाम, बासठ मार्गणा द्वार विचार, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गइ ४ इंदिय ५ काए ६; अंति: ४७ थया शेष २१६ रह्या. २. पे. नाम. ५६० अजीव भेद विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय खंध १; अंति: कीधे ५६० अजीवना भेद.. ८८४०१. ६ द्रव्य विचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १५४५४). ६ द्रव्य विचार स्तवन, म. हेम, मा.ग., पद्य, आदि: सिद्ध नमुकरजोडी; अंति: हेम मुनीस कहै री, गाथा-४७. ८८४०२. बोल, विचार व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११, १४४४८). १.पे. नाम. तीर्थंकर, चक्रवर्ती व वासुदेव नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. तीर्थंकर, चक्रवर्ति, वासुदेव नाम, अवगाहना, आयुष्य, प्रा., प+ग., आदि: चक्किदुगं हरि पणगं; अंति: दो चक्की केशवा चक्की, गाथा-१. २. पे. नाम, पाँच सौ तिरेसठ जीव भेद विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ५६३ जीवविचार बोलसंग्रह *, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: ५६३ बौल अभिहवादिक; अंति: गुरु ५ आत्मा ६. ३. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ऋ. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८२, आदि: आदिजिन अरिज सूणो; अंति: रम रागी साधु भगतकारी, गाथा-११. ८८४०३. (+) पडिकमणारा आवसक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रावण कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. ग. खंतिविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, १०४३७). ६ आवश्यक स्तवन, संबद्ध, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोवीसेजिन सेंतवी चतु; अंति: विनयभक्तिथी तरिएरे, ढाल-६, गाथा-३८. ८८४०४. मोक्ष सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ६४३४). मोक्ष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोक्षनगर माहरु सासर; अंति: छे मुगतिनं ठाम रे, गाथा-५. ८८४०५. स्तवन, पद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. १२, दे., (२५४११.५, ११४२८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ सरीखा मेवासीने; अंति: प्रभु पाय ले लागु, गाथा-८. २.पे. नाम, औपदेशिक पद- वैराग, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- वैराग्य, क. दिन, पुहिं., पद्य, आदि: सबसे रे मीठा बोलीइ; अंति: ज्ञान से समझो सब कोई, गाथा-६. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहि., पद्य, आदि: कहा अग्यानी जीवकुं; अंति: जिनराज० सहज मिटावै, गाथा-३. ४. पे. नाम. सम्यक्त्व सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: जब लगे समकित रत्नकुं; अंति: ज्ञान कहे० चित सोह, गाथा-५. ५. पे. नाम. मूढशिक्षा पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जे मूरख जन बाउरे जिन; अंति: दिन दिन गुण गावे, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ६.पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे एहि ज पाहिऐ नीत; अंति: करो कछु और न चाहु, गाथा-३. ७. पे. नाम. सम्यक्त्व पद, पृ. २आ, संपूर्ण. म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जागे सो जिनभक्त कहाव; अंति: ताकुं वंदना हमारी वे, गाथा-३. ८. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., पद्य, आदि: आंगण कल्प फल्यो री; अंति: समय०लेस्युं सोहले री, गाथा-५. ९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अबधु क्यां सुवे तन; अंति: मूरत नाथ निरंजन पावै, गाथा-४. १०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू क्या मागुंगुनह; अंति: आनंद०करुं गुणधामा रे, गाथा-४. ११. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नट नागर की बाजी; अंति: रस परमारथ सो पावे, गाथा-४. १२. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जाग जाग रेण गई भोर; अंति: तो निरंजन पद पावे, गाथा-३. ८८४०६. (+#) २८ लब्धिनाम सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १२४३३). २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आमोसही विप्पोसही; अंति: नेया सेसाउ अविरुद्धा. २८ लब्धि नाम-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आमोसही हाथने स्पर्शइ; अंति: महानसिंह मांही लाभे, (वि. अन्त में लब्धियंत्र दिया है.) ८८४०७. हटावालो सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सदीयारा, प्र.वि. हुंडी:हट०., दे., (२५.५४११, १६४३८). औपदेशिक सज्झाय-परोपकार, मा.गु., पद्य, आदि: हटवालो मै लै जसो जुग; अंति: धरमनो हुसी सुख अपार, गाथा-२५. ८८४०८. दीक्षादेणरी विधि, संपूर्ण, वि. १९५२, माघ कृष्ण, ३०, बुधवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. धनसुख ऋषि; पठ. मु. हेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५,१३४३६). दीक्षा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम संध्या चारित्र; अंति: पूर्वक छै ते जाणज्यो. ८८४०९. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४११, १३४४१-४५). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिसहजिण पमुह; अंति: सचंदि मन आणंदि संकया, ढाल-७, गाथा-९१. ८८४१०. नवतत्त्वनी चरचा, संपूर्ण, वि. १९५९, आश्विन कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. वढवाण, प्रले. श्राव.खीमचंद पोपटलाल गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्वनी चर्चा., दे., (२५.५४११, १२४४२). नवतत्त्वगण बोल-रूपीअरूपी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नवतत्वमांही रूपी; अंति: त्रीजे समै निजरे. ८८४११. मौनएकादशी व पंचमीतिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १४४३९). १. पे. नाम. मौनएकादशी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे वीरने सुणो; अंति: सुव्रतरूप सज्झाय भणी, गाथा-१५. २. पे. नाम. पंचमीतिथि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु चरण पसाउले रे; अंति: गाथा-७. ८८४१२. (+) १४ गुणठाणा ५७ कर्मबंध हेतु, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११,१६४५७-६४). १४ गणस्थानक ५७ कर्मबंधहेत, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मिथ्यात्व १: अंति: में ५ई भाव लाभै. For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८४१३. (+) २४ जिन आश्रित चक्री वासुदेवादि समय विचार व १२ व्रतनाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १०४५१). १.पे. नाम. २४ जिन आश्रित चक्रवर्ती वासुदेव समय विचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. यंत्रसहित.) २. पे. नाम. १२ व्रत नाम, पृ. २अ, संपूर्ण... __ मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात१ मृषावाद; अंति: अतिथ्यसंबिभाग१२. ८८४१४. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ११४३१). सिद्धचक्र स्तवन, मु. दोलतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति चरणे नमी रे; अंति: दोलत अचल सुख ठांण रे, गाथा-१३. ८८४१५. रथनेमिराजिमती, उत्तराध्ययनसूत्र की सज्झाय व पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. अमनगर, जैदे., (२५४११.५, १५४३६). १.पे. नाम. रथनेमिराजिमती स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सद्गुरु पाय; अंति: पद राजुल लह्यो जी, गाथा-११. २.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय-अध्ययन-१६, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी जिनपूजा; अंति: पूरयो देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. ८८४१६. युगमंधरजिन व चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १८४३८). १. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: जुगमींधरजिन सांभलो; अंति: रायचंद० कुचेरे गांव, गाथा-१३. २. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४६, आदि: आठमौ नवमौ नैणा निरखु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१६ तक लिखा है.) ८८४१७. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०, १२४३९). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: रंभा जणणी रुयडीजी; अंति: जी कहि कवी इम जाणि, गाथा-१८. ८८४१८. चंद्रप्रभजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, २९x१७). १. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण... ___ मु. माणिक, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभुजिन चाकरी; अंति: सकल समीहित काम, गाथा-९. २. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. __उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभ जिन साहिबा; अंति: तुम त्रुठइ सुख थाय, गाथा-५. ८८४१९ (+) दशार्णभद्र ऋद्धि वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२४२४). दशार्णभद्र ऋद्धि वर्णन, मा.ग., गद्य, आदि: दशार्णभद्र श्रीवीर; अंति: सर्व संख्या जाणवी. ८८४२० (+) साधु ३० उपमा, पंचम आरा ३० बोल व २८ सिखामण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:सिखाव., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, २०-२५४५९). १. पे. नाम. साधु ३० उपमा, पृ. १अ, संपूर्ण. ३० उपमा-साधु की, मा.गु., गद्य, आदि: एहवी उपमा जिम कासी; अंति: आहार वासी राखे नहीं. २. पे. नाम. पांचमाआराना ३० बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३५५ ३० बोल ढालिया-पंचमआरा, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नगर गाम सरीखा होसी; अंति: राज्य घणो होसी ___३०, ढाल-२, गाथा-३०. ३. पे. नाम. २८ सिखामण, पृ. १आ, संपूर्ण. २८ शिखामण बोल, रा., गद्य, आदि: पहिली सिखावणैजी की; अंति: बोलजै धर्म वधावजै. ८८४२१. (+) अष्टमीतिथि व महावीरजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ३४२७). १. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. __आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: कहे जीवित जनम परमाण, गाथा-४. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तुति, आ. विजयजिनेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीवीरजिनेश्वर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवे इहां श्रीवीर; अंति: (-). ८८४२२ (+) आंगुल विचार व महावीरस्वामी आयुष्य प्रश्न, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७४५७). १.पे. नाम, आंगुल विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. अंगल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आंगुल ते मान विशेष; अंति: सास्वता पदारथ मिणाझइ. २. पे. नाम. महावीरस्वामी आयुष्य प्रश्न, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन आयष्य विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम संवत्सरमान कही; अंति: छै निःसंदेह जाणवो. ८८४२३. क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १७७७, भाद्रपद शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. पीतांबरजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आदरजीवखम्यागु., जैदे., (२५४११, १२४३२-३५). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षमागुण; अंति: चतुर्विध संघ जगीस जी, गाथा-३६. ८८४२४. आनंदश्रावक ढाल, धन्नाकाकंदी व मान सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १४४३८). १.पे. नाम. आनंदश्रावक ढाल, पृ.१अ-३अ, संपूर्ण. मु. वल्लभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवीर समोसर्या; अंति: वल्लभवि०लहे सुजगीस ए, गाथा-४८. २.पे. नाम, धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, म. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचनै वैरागीयो हो; अंति: होये जय जयकार रे, गाथा-११. ३. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- अभिमान परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान न करयो कोई; अंति: ते शिव लीजे हो, गाथा-८. ८८४२६ (+#) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह व लघु पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११, १८४५०). १.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अज्ञानतिमिरांधानां; अंति: एतच्चंडललक्षणं, गाथा-४७. २. पे. नाम, लघु पट्टावली, पृ. १आ, संपूर्ण. लघुपट्टावली-पार्श्वचंद्रसूरिगच्छीय, आ. हेमचंदसूरि, सं., पद्य, आदि: विदित सकलशास्त्रान्; अंति: इला राजंति ते सूरयः, श्लोक-४. ८८४२७. (+) मौनएकादशीपर्व गणन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, १२४३५-३७). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरत; अंति: श्रीआरण्यनाथाय नमः. ८८४२८. कल्पसूत्रव्याख्यान पीठिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, ८x२९). For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: रोगिनं मृत्युरेव. ८८४२९. बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२-२१(१ से २१)=१, प्र.वि. कुल ग्रं. १६००, दे., (२६४११.५, ६४३६). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: कप्पट्ठिई त्तिबेमि, उद्देशक-६, (प.वि. उद्देशक-६ के सूत्रांश "अवलंबमाणोवाणातिक्कमति" पाठ से है.) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एम हुं कहुं छु. ८८४३० (#) २८ लब्धि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. उन्नतनगर, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १२४३९). २८ लब्धि स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: जा जस्स तुह पसाया; अंति: होइ जहा परमपयलद्धी, गाथा-१८. ८८४३१ (+) जयतिहुअण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ९४३५-३७). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयण वरकप्प; अंति: अभयदेव विन्न० आणंदिउ, गाथा-३०. ८८४३२. (+) संघभक्ति, शासन प्रभावनादि महिमाश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १६४५२). १. पे. नाम. संघभक्ति महिमाश्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: बीजं मोक्षमहाद्र्म; अंति: समत्ते तस्स संदेहो, श्लोक-६. २. पे. नाम. जिनशासनप्रभावना श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण.. प्रा.,सं., पद्य, आदि: निरस्तदोषे जिनराज; अंति: चउरो उज्जोअगा भणिआ, गाथा-४. ३. पे. नाम. जिनप्रासादनिर्माणमहिमा श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: काष्टादीनां जिनावासे; अंति: कल्पं विमानोत्तमम्, श्लोक-३. ४. पे. नाम. मालारोपणमहिमा श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कल्याणावलिवल्लिमेघ; अंति: दोपधानं वदधीत तत्तपः, श्लोक-५. ५. पे. नाम. व्रतोद्यापनफल श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीकृतार्था सफलं; अंति: सुसुखानि तेषां स्युः, श्लोक-३. ६. पे. नाम. जिनमंदिर जीर्णोद्धारफल श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.. प्रा.,सं., पद्य, आदि: जीर्णोद्धारः कृतो; अंति: (१)पुण्यं० विवेकिनां, (२)श्रीभिर्विवर्द्धते, श्लोक-६. ८८४३३. (+) साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १२४२९-३२). साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: बादर जाणता अजाणता०. ८८४३४. २० स्थानक गणणं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ११४२१-२५). २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं २०००; अंति: काउसग्ग ५ लोगस्सनो. ८८४३५. अरिहंतजाप व सिद्धाचलना छठ अठमनो गणनं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १०x११-३२). १.पे. नाम, अरिहंतजाप गणनं, पृ. १अ, संपूर्ण. अरिहंतजाप गणर्नु, सं., गद्य, आदि: अनंतज्ञानगुणधारकाय; अंति: वीर्यगुणधारकाय नमः. २. पे. नाम. सिद्धाचलना छठ अठमनो गणनु, पृ. १अ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थ छट्ठ अट्ठम गुणर्नु, सं., गद्य, आदि: श्रीपुंडरीकगणधराय; अंति: श्रीकोडिगणधराय नमः. ८८४३६. नवकार रास व पार्श्वजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १२४४०). १. पे. नाम, नवकार रास, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंगे; अंति: जास अपार री माई, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३५७ २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: जिणचंद सकल रवी दीपतो, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. म. केसर ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदिः प्रणमं पास जिनेसरु; अंति: ऋषि केशर मनचंगैरे, गाथा-८. ८८४३७. इरियावहि कुलकादि संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्रले. मु. तुलसीदास ऋषि (गुरु मु. रुपाजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ६x४०). १. पे. नाम. इरियावहि कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. इरियावहि कुलक, प्रा., पद्य, आदि: देवा अडनउ असयं चउदस; अंति: रे जीव निच्चंपि, गाथा-११. इरियावहि कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवताना समवई एकसो; अंति: नित्य सदाय जीवप्रति. २. पे. नाम. पन्नवणासूत्र-मनुष्यभेद विचार सह टबार्थ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-मनुष्यभेद विचार, हिस्सा, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: सेकिंतं मणुस्सा; अंति: मणुस्सा समुच्छंति. प्रज्ञापनासूत्र-मनुष्यभेद विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: किम ते समुछिम मनुष्य; अंति: नव प्राणना धनी उपजइ. ३. पे. नाम. मुंहपत्ति पडिलेहणा सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मुहपत्ति पडिलेहणा, प्रा., पद्य, आदि: सूतत्थतत्तदिठी दंसण; अंति: लेहणाई कमसोविचिंतेजा, गाथा-२. मुहपत्ति पडिलेहणा-टबार्थ, प्रा., गद्य, आदि: सूत्र अरथन; अंति: चिंतवई मनमाहे. ४. पे. नाम. इंद्रजीवन में देवीसंख्यासूचक गाथा सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. इंद्रजीवन में देवीसंख्यासूचक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दो कोडाकोडीओ पंचासी; अंति: चवंति इदस्स जम्मंमि, गाथा-२. इंद्रजीवन में देवीसंख्यासूचक गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बे कोडाकोड अनइ पचास; अंति: आउखा मध्ये चवि. ५. पे. नाम. पुनप्रकार सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण.. ९ पुण्य प्रकार, प्रा., गद्य, आदि: अन्नपुने १ पाणपुने २; अंति: वयपुने ८ कायपुने ९. ९ पुण्य प्रकार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: साधुनइ अनादिक आपता; अंति: करतां पुण्य बांधइ. ६. पे. नाम. दसविधदान आलापक सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. दसविधदान आलापक, प्रा., गद्य, आदि: दसविहे दाणे पण्णते; अंति: काहं तिय कतंतिय. दसविधदान आलापक-टबार्थ, प्रा., गद्य, आदि: दस दांनना ठांमलि; अंति: माहरु काम कीधु छई. ८८४३८. (#) १० पच्चक्खाण आगार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४१८-३३). १० पच्चक्खाण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: नवकारसी १ पोरसी २; अंति: सहस्सागा पच्छनका. ८८४३९ शत्रुजयतीर्थ, अजितनाथ व २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १४४४७). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आतमराम कुण दिन; अंति: दिन परमानंद पद पासुं, गाथा-७. २.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आज अजितजिन साहिब मिल; अंति: वृद्ध भणइं शुभ वाणी, गाथा-५. ३. पे. नाम. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजे ऋषभ समोसर्य; अंति: समयसुंदर कहै एम, गाथा-१९. ८८४४० (+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १८६२, पौष कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. पं. रविविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित. श्री संखेसरजी प्रासादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १६४३७). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुणविजय रंगे भणे, ढाल-६, गाथा-४९, (पू.वि. ढाल-४ की गाथा-७ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८४४१. आत्महितशिक्षा व आत्महित सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४११, ११४२९). १. पे. नाम. आत्महितशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु साथे जो प्रीत; अंति: उदयरत्न इम बोले रे, गाथा-७. २. पे. नाम. आत्महित सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आत्महित, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: माहरु माहरु म म कर; अंति: रह्यो रंगसार रे, गाथा-५. ८८४४२. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, जैदे., (२५४१२, १३४३८). १. पे. नाम. पौषदशमीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेसरपास जिनेसर; अंति: धीरविजय० सुखदाय जी, गाथा-४. २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: संघने विघन निवारी, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमि पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ४. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. ___संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. ५. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंद पढमं जिणंद; अंति: सया अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ६. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ८८४४३. चंदनबालासती वेल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बलूंदा, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४११, १२४२७). चंदनबालासती वेल, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कोसंबीनगरी पधारीया; अंति: सिवसखमागं हो ठाकुर, गाथा-५१. ८८४४४. (#) स्थूलिभद्र नवरसो, अपूर्ण, वि. १७७६, आश्विन अधिकमास शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. सूरतबिंदर, प्रले. श्राव. मेघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नोरस., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २४x७५). स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: उदयरतन० सहु फल्या रे, ढाल-९, गाथा-७४, (पू.वि. ढाल-५ गाथा-१ अपूर्ण से है.) ८८४४५. आधाकर्मी आहार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११, १२४४०). आधाकर्मी आहार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: साध थइने आधाकरमादिक; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "गृहस्थने घरे बेसे तो श्रीभगवतेमि" पाठ तक लिखा है.)। ८८४४६. (+) ८ प्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८७८, चैत्र कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. चंडावलनगर, प्रले. ग. तिलोकहंस (गुरु ग. युक्तिहंस); गुपि. ग. युक्तिहंस (गुरु ग. कनकहंस); पठ. मु. रिधकरण (गुरु ग. तिलोकहंस), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अष्टप्रका०., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११,११४३४-३६). ८ प्रकारी पूजा, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुरसरी सिंधु पउमद्रह; अंति: मोक्षं हि धीराः, पूजा-८. ८८४४७. (+) आदिजिन छढालियुं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १७४३३-४०). आदिजिन छढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: आदिनाथ आनंदसुं; अंति: वर्ते कुसल ने खेम, ढाल-६. ८८४४८. (+#) वज्रस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ८९, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १८४४४-४८). For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org ३५९ वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरध भरतमांहि शोभतो; अंति: जिनहर्ष० गुण गाया रे, ढाल १५, गाथा- ८९. ८८४४९. पार्श्वजिन, आदिजिन स्तवन व आनंदश्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. मु. रामकृष्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: निसाणी. वे. (२५x११.५, १७४४६). "1 " १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन घघरनिसाणी, पृ. १अ २अ संपूर्ण पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर, अंति: गुण जिनहरख गावंदा है, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ५१. २. पे. नाम. आनंदश्रावक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: किण होलिरा दुहा लिख; अंति: बेसरमाने लाज न आवै, गाथा-९. ३. पे. नाम आदिजिन स्तवन, पू. २आ, संपूर्ण मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: रीषभानंदण वांदीये; अंति रीष आसकरणजी इम भणे, गाथा-७८८४५०. () शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण वि. १९५६, जीर्ण, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५x११.५, १७४३४). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि से करजोडी विनवुं जी अंति समयसुंदर गुण भणे, गाथा - ३१. ८८४५१. वस्तुपाल तेजपाल धन व्यय विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५x११.५, १४x२१-३६). वस्तुपालतेजपाल धन व्यय विवरण, मा.गु., गद्य, आदि १३१३ जे प्रसाद अति: मण लुंण घर साह. ८८४५२. स्तवन संग्रह व सीमंधरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५X११, २१X५४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. १अ संपूर्ण. " पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगीडीपुरमंडण प्रभ; अंतिः क्षमाकल्याण० थाय हो, गाथा - ५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेंसर म्हारो अति कर जोडी रंगे थुणीयो, गाथा-५, ३. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु संजोगथी मे; अंति: रुपचंद विनति करी, गाथा - २२. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौडीप्रभु पासजी; अंति: जिनलाभ० परम कल्याण, गाथा-५. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सकलसुरासुर नरवर; अंति: नित कविजन मुख वरणीजी, गाथा-४. ८८४५३ (२) गौतमगणधर रास, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५x११, १२X३३-३५). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अति: विजयभद्र० इम भणे ए, ढाल ६, गाथा- ४८. " ८८४५४ (-) नंदमुनि व होलिका कथा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ, दे., (२५X११.५, १६X३७). १. पे. नाम. नंदमुनि कथा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि अहेब जंबूदीवे दाहण अंति: गच्छइ नरयतिरिएसु, गाथा-१९. २. पे. नाम. होलिका कथा, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची होलिकापर्व कथा, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूदीप भरतखंडि मालव; अंति: मूरति कीधी रोग गउ, (वि. अंत में एक गाथा व साधारण जैसा विचार लिखा गया है.) ८८४५५. तपविधि यंत्र, संपूर्ण, वि. १९३६, वैशाख शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल, रुपनगढ, प्रले. म्. गजमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तपःजं०., दे., (२४.५४१२, १४४३८). तपविधि यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८८४५६. औपदेशिक पद संग्रह व नेमिजिन हालरडु, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२४.५४१२, १६x४१). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ पुहिं., पद्य, आदि: गरमी हइ छेले छवाय; अंति: चाकर परभु थारो नही, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-गुरुभक्ति, मु. चिदानंद, पुहि., पद्य, आदि: एक कर लो रे सेवा; अंति: राम० कर गुरुचरणन की, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: दान सुपातर मुनीकु; अंति: कीयो रे अग्यान को, गाथा-७. ४. पे. नाम. नेमिजिन हालरडु, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. अमी ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: आवो मारा लाला सब जुग; अंति: अमरखजीनवनीध थावे रे, गाथा-९. ८८४५७. (-) झांझरियामुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२, ९४२७). झांझरियामुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: इणे अवसर विरहातुर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८८४५८. अर्जुनमाली ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५४११.५, १५४४२-४५). अर्जुनमालीमुनि ढाल, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: वर्धमान जिनवर नमुं; अंति: तेविस माय० सुभदाय, ढाल-९. ८८४५९. मेघरथराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाली, जैदे., (२५४११, २०४३६). मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडा विनती, मा.गु., पद्य, आदि: दया बरोबर धर्म नही; अंति: संत सुखी अणगारो जी, गाथा-३४. ८८४६०. १२ भावना पद, हकममुनि दीक्षा व अनाथीमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४६-४५(१ से ४५)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:१२भावना लीखे. हुंडी:अनाथीमुनिनो त०., दे., (२४४१२, १९४३९). १.पे. नाम. १२ भावना पद, पृ. ४६अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जीम दुधनो भाजन संख, (पू.वि. समकित की भावना-६ से है.) २. पे. नाम. हुकममुनि दीक्षा सज्झाय, पृ. ४६अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि: सेर टोडा सुनी कल; अंति: गावे सुरपद पावे हो, गाथा-११. ३. पे. नाम, अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. ४६आ, संपूर्ण. म. खूबचंद ऋषि, पुहि., पद्य, वि. १९६५, आदि: राजगरिकी वागमे सरे; अंति: वीगन सहु टल जाय, गाथा-१३. ८८४६१. (+) श्रावक प्रतिक्रमण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:पडकुणो., संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १६x४३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ८८४६२. मौनएकादशी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. भगवान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३४). एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज मारे एकादशी रे; अंति: अविचल लीला वरसे, गाथा-७. ८८४६३. औपदेशिक सज्झाय व ५ परमेष्ठि आरती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, *ग. 'झ.घा. *ढ.डी., जैदे., (२४.५४११.५, १९४३१-४०). For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३६१ १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: भरजोबन मते भइ कवरी; अंति: तोसु भलो कीयो थे भाय, गाथा-१४. २. पे. नाम. ५ परमेष्ठि आरती, पृ. १आ, संपूर्ण. जै.क.द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: इणविध मंगल आरती कीजै; अंति: ज आरती संत तमाहारी, गाथा-१४. ८८४६४. ४७ दोष साधु गोचरी प्रायश्चित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४.५४१२, ३९x१६-२२). ४७ दोष साध गोचरी प्रायश्चित, मा.गु., गद्य, आदि: आधाकर्मी दोष दृष्ट; अंति: अणंतर छडी दोष. ८८४६५. वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १३४३१). वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. रूप, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: श्रीबासपूज्य बारम; अंति: रूप० प्रभु पूरो आसा, गाथा-१२, प्र.ले.पु. सामान्य. ८८४६६. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२३, कार्तिक शुक्ल, ४, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वडु, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ढाल उपदे०., दे., (२७.५४११, १३-१५४३८-४५). औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: श्रीजिणवर दीयो एह; अंति: दया भाव दिल आणज्यौ, गाथा-२४. ८८४६७. (#) आदिजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२८x११, १५४३८). आदिजिन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामण बीनउरे; अंति: गावता मंगलचार, गाथा-१३. ८८४६९ (#) ६४ प्रकारीपूजा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:चो०पूजा., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५४११.५, ११४३६). ६४ प्रकारीपूजा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: विशाल जिनभुवनने विषे; अंति: करके बीमां करीये. ८८४७०. दानशीलतपभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. लिछमी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४११.५, १७४५२). दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), गाथा-२५, (वि. अक्षर अवाच्य हैं.) ८८४७१. धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध., दे., (२८x११.५, १५४४१). धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरवचन प्रतिबोधीए; अंति: आवागवन नही कवही रे, ढाल-२, गाथा-१७. ८८४७२. जंबूद्वीपनो प्रमाण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२८.५४११.५, १२४४५). जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हवे जंबुद्वीपनो मान; अंति: एकलाख जोजन थाय. ८८४७३. भरतक्षेत्र स्वरूप, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२८.५४११.५, १३४४८). भरतक्षेत्रादि परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: भरतक्षेत्र प्रमाण; अंति: ए प्रमाण जाणवो. ८८४७४. महावीरजिन पारणो, चेलणासती सज्झाय व २० विहरमानजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:माहावीरजीको पारणो., दे., (२७.५४११.५, १६४३४-३५). १. पे. नाम. महावीरजिन पारणो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन पारj, मा.गु., पद्य, आदि: अनरी जात अनेक छ; अंति: जीरण जीम फल होय, ढाल-३, गाथा-२६. २. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. __उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वखाणी राणि चेलणा; अंति: टुटै आठइ कर्म, गाथा-८. ३. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमींद्र जुगमींद्र; अंति: उतारो जी अंतरजामी, गाथा-८. ४. पे. नाम. १६ सतीनाम गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी १ चंदनबाला; अंति: एकी ज छै सोल सत्या, श्लोक-१. ८८४७५. नवकारनो रास व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२६४११, ११४३७). १. पे. नाम, नवकारनो रास, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति स्वामिनि द्यो; अंति: रास भणु श्रीनवकारनो, गाथा-२५. For Private and Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-नवखंडा, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. म. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९४५, आदि: घन घटा भुवन रंग छाया; अंति: विर० खंडा पासजी पाया, गाथा-६. ८८४७६. उपदेशछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ. श्रावि. सुरजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x११.५, १३४३४). उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलज्यो सज्जन नर; अंति: शुभवीर० मोहन वेली, गाथा-३७. ८८४७७. (+) औपदेशिक पद व सवैयादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ११,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, २१४६०). १. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आतमराम, पुहिं., पद्य, आदि: इक दिन लाला रे रैन; अंति: रे रूप हंसाल को हो, गाथा-५. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ.१अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अजी तुम कौन देश लगन; अंति: क्या परवाई रे भमरा, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंद, पुहिं., पद्य, आदि: जरा ते जोबन रतन; अंति: काहे को सोच पर्यो हे, गाथा-७. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मु. आतमराम, पुहि., पद्य, आदि: कुमति के फंद फस्यो; अंति: सश्रृंग देख हस्यो री, गाथा-४. ५.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: कुमता हि डोलहि; अंति: सब भूम जाल रच्यो री, गाथा-५. ६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरी क्या ही वेकदरी; अंति: नाथ आनंद ही आप गुनी, गाथा-७. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आनंद, पुहिं., पद्य, आदि: एसे तो विषम वाजी; अंति: कंत जारी वाजी संसरी, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: दुनिया मतलब की गरजी; अंति: भूदर० संग जली के, गाथा-४. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दरद दील दरदीनु दरदी; अंति: गाई बतावे सुगाणे, गाथा-५. १०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. दलपतराम डाह्याभाई, मा.गु., पद्य, आदि: जाय छे जगत चाल्यु; अंति: दलपतरामे रे, गाथा-११. ११. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: नर राम विसार के काम; अंति: बतावत है ता थेई इनको, गाथा-३. ८८४७८. (#) अनाथीमुनि सज्झाय व पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १८६४, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. साहेपुरा, प्रले. मु. जगराम (गुरु मु. कनीराम); गुपि. मु. कनीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४११, २०४४४). १. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिपति श्रेणिक; अंति: सुण्यो वचन अनाथी, गाथा-३०. २. पे. नाम, पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपण घर बेठा लील करो; अंति: सुंदर कहे गुण जोडो, गाथा-८. ८८४७९ (+-) नेमराजिमती सज्झाय, पार्श्वजिन स्तवन व अज्ञात कृति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७.५४११, १७४३७-४५). १. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण. म.खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: श्रीनेमसर नीत नमो जा; अंति: खेमो०उबरग थयो नेम जी, गाथा-१५. २.पे. नाम. १० भवगर्भित पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३६३ पार्श्वजिन स्तवन-१० भवगभिंत, मा.गु., पद्य, आदि ० गौतम हो पाय प्रणमे अति नवा साल सुखीया करो, गाथा-१३. ३. पे. नाम. अज्ञात देशी पद्य कृति, पृ. ११आ, संपूर्ण. अज्ञात देशी पद्य कृति", मा.गु., पद्य, आदि दौलत दुणानो लीली लाह; अंति: साहेब ज्योज्यो जी, गाधा-५. ८८४८०. (+) गुरुगुण सज्झायद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, प्रले. मु. कर्मचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७.५X११.५, १६x४२). १. पे नाम. गुरुगुण ग्रामनी सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुगुण सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि (-); अंति: अमृत०वार सुकर सुखदाय, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गुरुनी सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. गुरुगुण सज्झाय, मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, वि. १८०४ आदि मुझने वाला लागे रे ; अति भलो कहीई श्रेसपतवार, गाथा-७, प्र.ले.पु. सामान्य. ८८४८१. ढुंढकपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२८x११.५, १०x३७). डकपच्चीस स्थानकवासीमत निरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि श्रीसुतदेवी प्रणमी; अंति: पयंपे हितकारी अधिकार, गाथा २५. ८८४८२. एकादसीनी स्तुति व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२८x११.५, १२X३९-४१). ९. पे नाम. एकादसीनी स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, मौन एकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि गीतम बोले ग्रंथ, अंति संघना विघन निवारी, गाथा- ४. २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि नरस्यूं प्रीत न कीजि, अंति भुवनमा हुओ रे आनंद, गाथा-१०. ८८४८३ (+) अक्षयनिधितप स्तुति व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८७, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, ले. स्थल. फतेगडनगर, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, जैवे. (२८४११.५, ८-१२४४७). " १. पे नाम. अक्षयनिधितप स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन- अक्षयनिधितपगभिंत, ग. आणंदसुंदर, मा.गु., पद्य वि. १८८६, आदि वंदू श्रीजिन सोलमा, अंति लहिइं भवजल छेह, गाथा - ११. २. पे. नाम आदिजिन स्तवन. पु. १ आ. संपूर्ण. मु. कपूर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तिर्थंकर रीषभ; अंति: ज्यो साहेब तारी सेवा, गाथा- ७. ८८४८४. (+) आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. प्रेमविजय (गुरु पं. हर्षविजय); गुपि. पं. हर्षविजय (गुरु पंन्या. वनीतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: आलोय. संशोधित, जैये. (२७.५X११.५, १३४३०). " आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: देववंदन अकरणे पुरिमढ; अंति: तो उपवास १ तथा २. ८८४८५ (+) २४ तीर्थकर लेख संपूर्ण वि. १८७९ चैत्र शुक्ल, २. शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, कुचामण, प्रले. सा. माना, " प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: लेखो, संशोधित, जैदे., (२७११, २२४३६). २४ जिन लेख, मा.गु., गद्य, आदि पहला बांद रिषभनाथ, अंति बनणा नीमस्कार हूज्यो. ८८४८६. पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, दे. (२८x११.५, ४१५२८). पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गद्य, आदि: १. श्रीमहावीरस्वामी; अंति: थानसागर ७४ छगनसागर. ८८४८७. शालिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२९x११.५, २७४१३-१५) शालिभद्रमुनि सज्झाय-दानविषये, ग. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: दान सुपत्रे हो दीजीइ; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० अपूर्ण तक लिखा है., वि. अंत में धर्म विषयक दो गाथाएँ किचित् अर्थ के साथ लिखी गई हैं.) For Private and Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८४८८. सामायिकना ३२ दोष, औपदेशिक सज्झाय व ग्रहोपरि जिनपूजा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२८x११.५, १५४४६). १.पे. नाम. सामायिकना ३२ दोषनी सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. ३२ सामायिकदोष सज्झाय, मु. विजयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कुसल० कहे नामी सीस, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, पृ. ३अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगत्गुरु नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिर्मतः, श्लोक-११. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: जीव क्रोध म करजे; अंति: पभणे चिरकाले वंदो रे, गाथा-९. ८८४८९. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:श्रीआदीत्व०., दे., (२७४११.५, १३४३७). आदिजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: सार करोने हमारी हे; अंति: हंसे अरज करी प्यारी, गाथा-२१. ८८४९० (+#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४११.५, १५४४०). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिली धुर समरूं; अंति: जीवजु पावो भवनो पार, गाथा-१९. ८८४९१. (+-#) महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हंडी खंडित है., संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५४१०.५, १४४३८). महावीरजिन स्तवन-जीरणसेठ द्वारा चौमासी पारणा, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंतजी अनंतबली; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) ८८४९२. पार्श्वजिन स्तवन व महावीरजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, दे., (२७४१२, १२४३२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. उपा. विनयसागर, हिं., पद्य, वि. २०वी, आदि: पारस प्रभु का चार; अंति: विनय० सुख पइयें रे, गाथा-६. २. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन-पंचकल्याणक, मु. मुक्ति, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ सुत वंदीये; अंति: वरत्यां मंगलमाल, गाथा-१०. ८८४९३. (#) अनाथीमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५,१३-१७४३२-५१). अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक; अंति: सुण्यो वचन अनाथी, गाथा-३०. ८८४९४. नवपदनी ओलीनां खमाशमण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७.५४१३, १२४४४). नवपदओली खमासमण, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण; अंति: (१)लोगस १२ नवकार४८ गणवा, (२)चकेस्वरिदेवीऐ नमोनमः. ८८४९५. जिनप्रतिमास्थापन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२, ११४२६). जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, आदि: जिनजिन प्रतिमा वंदन; अंति: रुआ कीजे तास वखाण रे, गाथा-१५. ८८४९६. (+) वंदित्तसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ८x२७-३२). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ८८४९७. देवतादि आयुष्य लेश्या विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नही लिखा है., जैदे., (२७४११.५, १८४५२). देवतादि आयुष्य लेश्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: देवता को दस हजार वरस; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'चार प्रकारनी प्रव्रज्या' पाठ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३६५ ८८४९८ (+) रावणनो चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:रावण., संशोधित., ट.घा. 'चा.गी., जैदे., (२६४११, १५४३१-३७). रावण चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: अति वरो छै मानवि; अंति: बोल मंदोदरी बोलै, ढाल-४. ८८४९९ (+) ८२ बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, २१४३४). __ बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ८८५०० (+) विहरमानजिन स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १६४३५). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ८८५०१ (+) सूर्यकांता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, ११४३६). सूर्यकांता सज्झाय, मु. हीरविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती स्वामीने विनवु; अंति: परिणाम भवियण सांभलो, गाथा-९. ८८५०२. पर्युषणपर्व स्तुति, महावीरजिन स्तुति व सीमंधरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १३४४३). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण पुण्ये; अंति: संतोषी गुण गाय जी, गाथा-४. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, प. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरे भेदे जिन पूजा; अंति: मानविजय० सिद्धाईजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. म. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूरब दिशि ईशान कणि; अंति: हर्ष कहई० संघ जगीश, गाथा-८. ८८५०३. (#) कमलावती सज्झाय, आध्यात्मिक सज्झाय व प्रहेलिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, १८४४४-४६). १. पे. नाम. कमलावती सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कमलावतीरानी इक्षुकारराजा भृगुपुरोहित सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: महिला में बैठी राणी; अंति: सुख पाम्यो सगला सार, गाथा-३५.. २. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: भलोज आखर उपजे; अंति: एकै धरती धरै पचीस, गाथा-२१. ३. पे. नाम. प्रहेलिका, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रहेलिका संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: लकलपेटण सीतहरण नहीं; अंति: मंस २ अर्थ पानी, दोहा-४. ८८५०४. (+) शांतिजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १०४३०). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: मनवंछीत शिवसुख पावे, गाथा-२१. ८८५०५. (+) पंचमांगस्य किंचित् नूंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६४१२, १२४४४). भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पंचपरमेष्टि नमस्कार; अंति: सेवं भंते सेवं भंते. ८८५०६. नेमनाथनी ढाल-ढाल १, संपूर्ण, वि. १९०६, कार्तिक कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. विझोवा, प्रले. मु. तलोकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १३४२८). नेमिजिन नवरसो, क. ऋषभदास संघवी, मा.ग., पद्य, वि. १६६७, आदि: सरसति सामिनी पाय नमी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८८५०७. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १०४३७). For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: सुणो सखी संखेस्वर जइ अति शुभवीर ० कमला वरता, गाथा - १४. ८८५०८ क्रोधमानमावालोभपरिहार व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, कुल पे. २, जैदे., (२६x१२, १३x२९). १. पे. नाम. क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १७८३, चैत्र कृष्ण, १३, शनिवार, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. दोलतचंद गणि (गुरु पं. दीपचंद्र, अंचलगच्छ); गुपि. पं. दीपचंद्र (गुरु ग. दानचंद्र, अंचलगच्छ); ग. दानचंद्र (गुरु पं. जीवणचंद्र गणि, अंचलगच्छ); पं. जीवणचंद्र गणि (गुरु ग. जिनचंद्र ) पठ. श्रावि. मूली, प्र.ले.पु. मध्यम.. पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रे पामे सुख निसीदिस, ढाल-४, गाथा- ३२, (पू.वि. ढाल-३ की गाथा-५ से है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय काया, मा.गु., पद्य, आदि काया कामिनी इम कहि अंति (-), (पू. वि. गावा-६ अपूर्ण तक है.) ८८५०९. (#) सामायिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. मनी, प्र. वि. हुंडी: समाइ., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१२, १७३८). " सामायिक सज्झाय, श्राव. प्रकाश, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदि: सतगुरु संग करो भव, अंति: जब कीधो परकास रे, गाथा - २०. ८८५१०. युगमंधर बिहरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. देवी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X११.५, ११X३४). युगमंधरजिन स्तवन, पं. चैनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दधिसुती विनतडी; अंति: चैनविजय गायो रे, गाथा-९. ८८५११. (+४) आध्यात्मिक हरियाली, आदिजिन स्तुति व अष्टमीतिथि सज्झाच, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५X१२, ६x४०). १. पे. नाम. आध्यात्मिक हरियाली सह टबार्थ, पू. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक हरियाली, आव, देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि वर कांबलि भिजें अंतिः मूरख कवि देपाल वखाणइ, गाथा-१, (वि. संपूर्ण कृति का गाथांक - १ लिखा है.) आध्यात्मिक हरियाली - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि कांबल क० इंद्री वरस अति अर्थ करज्यो. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोक भावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सोधर्म देवलोक पहि; अंतिः कांतिविजय गुण गाय, गाथा ४. ३. पे. नाम. अष्टमीतिथि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्म, आदि श्रीसरसतिने चरणे; अति वाचक देव सूसीस, गाथा-७. ८८५१२. आध्यात्मिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ये. (२६.५x११.५, ३१x१६) " आध्यात्मिक सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि पुहि पद्य, आदि मोहराय से लडीया चे अति जीन सेवा तडिया बे गाथा २०. " ८८५१३. (+) रत्नाकरपच्चीसी, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२६११, ११४४३). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि श्रेयः श्रियां मंगल, अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये श्लोक-२५८८५१४ (+) पडिलेहण कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११.५, १५४५५). पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि पडिलेहणाविसेसं अंति: सीसेणं विजयविमलेणं, गाथा-२७. ८८५१५ औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, ले. स्थल वापीनगर, प्रले. पं. कृष्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपार्श्वदेव प्रसादात्. जैदे. (२६११, १९४५६). " " For Private and Personal Use Only " 3 Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org ३६७ औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि चड्या पड्यानो अंतर अंति मति नवी काची रे, गाथा - ४१. ८८५१६. धन्नाकार्कदीमुनि सज्झाय, दशवैकालिकसूत्र की सज्झाय व मृगापुत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३. जै (२६४१२, १५४४४). १. पे. नाम. धन्नारिषकाकंदी स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. धन्ना अणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंति: गाया हो मन में गहगही, गाथा - २२. २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय-अध्ययन-५. पू. १आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे नाम. मृगापुत्र सज्झाच, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीव नगर सोहामणु; अंति: (-), (पू. वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ८८५१७. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २) = २, कुल पे. ४, दे., (२७१२, ९३१-३५). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. उदयविजय, मा.गु, पद्य, आदि (-); अंति या तास उदो करी माया, गाथा-४, (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्म, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं, अति जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. ३. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पू. ३आ, संपूर्ण, आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि वरमुत्तिअहार सुतारगण, अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा ४. ४. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि सुविधिनाथ जिन जनम; अंतिः जेह तेहने सुखकरणी, गाथा-४. ८८५१८. (#) अष्टमीतिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५X११.५, २५X१६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आठम दिन आठ मद तजी; अंति: लब्धि०पुण्यनी रेह रे, गाथा - ९, (वि. गाथांक का उल्लेख नहीं है.) ८८५१९. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, वे. (२६.५४११.५, १४४४५). औपदेशिक सज्झाय, मु. बालचंद, पुहिं. पद्म, आदि: अभयदान षटकाय जीव नित: अंतिः बालचंद०० करै नही कोई, " गाथा - ५. ८८५२०. (*) आलोयणा व सामायिक पौषधपारवा विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश " खंडित है, जीवे. (२६.५४१२, १७५४९). १. पे. नाम. आलोवणा, पू. १अ १आ, संपूर्ण. आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: जंवाइद्धं वच्चामेलिय; अंति मिच्छामि दुक्कडं. २. पे नाम. सामायिक पौषधपारवा विधि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पौषध पारने की विधि, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: सागरचंदो कामो चंदवडि; अंति : (-). ८८५२१. (*) आनंदघनकृत गीतानि, अध्यात्म पद व गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-४ (१ से ४) = २, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., ( २६११.५, १९५९). " १. पे. नाम. आनंदघनकृत गीतानि, पृ. ५अ-६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८१२, फाल्गुन शुक्ल, १२, शनिवार, ले. स्थल. भावनगर, प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा. आनंदघन गीतबहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: आनंद० चेतनमइ निकर्मरी, पद-७४, (पू.वि. गीत-५७ की गाथा- २ अपूर्ण से हैं . ) For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: माडी मोने निरपख किणह; अंति: झालै बीजी सगली पालै, गाथा-८. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: रुषभदेव हितकारी जगत; अंति: तुमही पर उपगारी, कडी-६. ४.पे. नाम, गौतमस्वामी पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि: गौतम गणधर नमीये हो; अंति: चीत नहि हम अमीये हो, गाथा-४. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण... उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुखदाई रे सुखदाई; अंति: घर अंगन नव निधि आई, गाथा-४. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन जगदानंदन; अंति: तुम हो मेरे आतमराम, गाथा-३. ७. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: तुम्हारे सिर राजत; अंति: रखो ए हमहि अति उलटा, गाथा-३. ८.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि: अब में साचो साहिब; अंति: चानो सो जस लीला पावे, गाथा-७. ९. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि: सयन की नयन की वयन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८८५२२. १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तरदेव यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११, २०-२१४५-१०). १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तरदेव यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ८८५२३. (#) जंबू कथा, महावीरजिन पद, अष्टापद स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, ३५-३८x२०-२८). १. पे. नाम. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक कथा का श्लोक बीजक, पृ. १अ, संपूर्ण. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा का श्लोक बीजक, सं., पद्य, आदि: सप्रभावं जिनं; अंति: तथानाहं प्रिये भवेत्, श्लोक-१६, (वि. अंत में २ श्लोक जैसा लिखा गया है.) २.पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अविनाशी के गुण गावना; अंति: पूरव अंस रीजावनां, गाथा-४. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. भगवानदास, पुहिं., पद्य, आदि: शरन पकडी आन प्रभु; अंति: भगवानदास० अविचल ठान, गाथा-४. ४.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ऋषभविजय, पुहि., पद्य, आदि: भजन विन युं ही जनम; अंति: ऋषभ० चिंतामणी पायो, गाथा-४. ५. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: माधुरी जिण वाणी; अंति: जगतप्रभूसुं अति सान, गाथा-४. ६. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तिरथ अष्टापद नित; अंति: जिनेंद्र बधते नेहरे, गाथा-८. ८८५२४. २० स्थानक तप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, ११४३७). २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे प्रणमुं; अंति: कांति० सोहामणो रे लो, गाथा-८. ८८५२५. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:सज्झायपत्र., दे., (२७X११.५, १२४४२). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुवां फल छे क्रोधना; अंति: उदयरतन उपसम रस नाही. गाथा-६. ज For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३६९ २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीइं; अंति: माननि दीजइ देसोटो, गाथा-५. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं बीज जाणजो; अंति: उदयरतन० छे सुद्ध हो, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण ज्योजो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८८५२६ (+#) नारकीनो चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, ११-२०४३५-४०). नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदजीणंद जुहारीए मन; अंति: सरब कलेस वो सामी, ढाल-४, ___ गाथा-३१. ८८५२७. (4) पुंडरिककंडरीक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. गुला; पठ. सा. उमेदाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कडरी०पुडरी., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १८-२०४४५). पुंडरिककंडरीक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कुंडरीक रीद्ध तज; अंति: अतोकर देसी थेउ पार, ढाल-४, गाथा-३५. ८८५२८ (+) अष्टकर्म ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १९४४०). ८ कर्म ढाल, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे जिनवचन प्रमाण, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., अंतराय-२ अपूर्ण से है.) ८८५२९ (+) पार्श्वजिन स्तवन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १६४४४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसादाणी पगडउ जेसल; अंति: पूजइ तेहनी धन्यासिरी, गाथा-४०. २.पे. नाम, महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवनतिलउ, गाथा-१९. ८८५३०. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३८, चैत्र कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रायपुर, प्रले. मु. हीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, १२४३४). अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आवो आवोने राज; अंति: सकल संघ सुख करीइं, गाथा-७. ८८५३१. १४ गुणस्थानक मार्गणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, १३४४६). १४ गुणस्थानक मार्गणा, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८८५३२. विनय सज्झाय व मनकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले. मु. जिनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३१). १. पे. नाम. विनय सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. विमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विनय करो चेला गुरु; अंति: थाइ गुरुने सरखो, गाथा-५. २. पे. नाम, मनकमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो मनक महामुनि; अंति: लबधी० सद्गति सारो रे, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८५३३. औपदेशिक ज्ञानपद व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६X११.५, २०X५७). " १. पे नाम औपदेशिक ज्ञानपद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. मनोहर, मा.गु., पद्म, आदि गान पदइ सरवणसंणा रे अति मनोहर० सकल आल जंजाल, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-समय, मु. मनोहर, मा.गु., पद्य, आदि: धध दीवस गमावीयो रे; अंति: मनोहर०सार करो भगवतजी, गाथा-८. ८८५३४. स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी चौवीसीपत्र, जैवे. (२६.५x१२, १२X३४-४२). २४ जिन स्तवन, आ. विजयऋद्धिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि जीरे मारे ऋषभ जिनंद, अंति (-), (पू.वि. अजिनाथ स्तवन गाथा - २ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८५३५. (+) ६२ मार्गणा बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७११.५, १३X२४). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को, आदि देवगति मनुष्यगति; अति: (-). " ८८५३६. (+) एकादशी छंद व वरस थंभ विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५४११.५, १२X३३). १. पे. नाम. एकादशी छंद, पृ. १अ- ३आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि छंद, मु. केसव, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्माणी वरदाइनी सह; अति: केसव० मन उल्लसीयो, गाथा ४५. २. पे. नाम. वरस थंभ विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. वरस का थंभ विचार, रा., गद्य, आदि: चैत्र उजाली पडिवा; अंति: मिलै तो थंभ ४ मीलै. ८८५३७. () औपदेशिक व चरखा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी: उपदेस., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५X११.५, १९X३०-४५). १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण. मु. कुशल पुहिं., पद्य, आदि परमहंस कुं चेतना रे; अंति: कुसल०साचा साइन विचार गाथा - १९. " २. पे नाम, चरखा सज्झाय, पू. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय चरखा, रा., पद्य, आदि आरजदेस थकी एक आयो; अंति: चरखो चालइ करए उउउए, गाथा-८. ८८५३८. (+) विहरमान को दस ढाल्यो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १ ले स्थल, रुपनगर, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. जैदे. (२६.५x११, १८x४०). . २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि श्रीमींदर मीलीया पर्छ; अंति हो लाल अजतबीर सांभलो, डाल- १०. ८८५३९. (+) गमा विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५x११, " १७४४३-४५). गमा विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि उववाय १ परिमाणं २; अति (-). (पू.वि. "आवतीवारामे ४ होइ पहिलइ बीजइ चउथ पांचमह एवं पाठांश तक है.) ८८५४० (+) १४ पूर्व तप विधि व नादनो विधि, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक " लकीरें-संशोधित., दे., ( २६.५X११.५, १५x७०). १. पे. नाम. चउदपूर्व तपनो विधि पू. १अ १आ, संपूर्ण १अ-१आ, १४ पूर्वतप विधि, मा.गु., गद्य, आदि: चउद पूर्वना तपमां; अंति: चूक मिच्छामि दुक्कडं. २. पे नाम, नांदनी विधि, पू. १आ, संपूर्ण, नाण स्थापना विधि, मा.गु., गद्य, आदि मोटी नांदमें त्रिगडो; अंति: झालर बगाडतां लाववी. ८८५४१. चित्तोडगढ गजल व अरिहंत बारह श्लोक, संपूर्ण, वि. १८३८, कार्तिक शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल सूरति बिंदिर, पठ. मु. भागचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (८३९) जादूसं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे. (२६११.५. १४X३०). For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३७१ १. पे. नाम. चित्तौड़गढ गजल, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. चित्तोडगढ गजल, क. खेताक यति, पुहिं., पद्य, वि. १७४८, आदि: चरण चतुर्भुज धार चित; अंति: चित्तौर की खूब गाई, गाथा-५९. २. पे. नाम. अरिहंत बारह श्लोक, पृ. ३अ, संपूर्ण. ८ प्रातिहार्य श्लोक, सं., पद्य, आदि: अशोकवृक्ष सुरपुष्प; अंति: अष्टो० जिनेश्वराणम्, श्लोक-१. ८८५४२. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४३७). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जो जो आपणी मन; अंति: इम कहै श्रीसार ए, ___ गाथा-७२. ८८५४३. पार्श्वजिन स्तवन व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. श्रावि. कंकुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, ११४३४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, रा., पद्य, आदि: शंखेश्वर स्वामी आप; अंति: मोहनविजय गुणगाय, गाथा-५. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन-तारंगातीर्थमंडन, पंन्या. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९५५, आदि: श्रीतारंगा धाममां; अंति: पुरज्यो आस लाल रे, गाथा-८. ८८५४४.(+) मेघकुमार चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:मेघ०., संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४३८-४२). मेघकमार चौढालिया, म. जादव, मा.ग., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुणनिलो; अंति: ओ भणताउ भणता सुख थाय, ____ ढाल-४, गाथा-२३. ८८५४५. औपदेशिक सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. थराद, प्रले. श्राव. माणकचंद मयाराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १५४३५). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलं करण नमी जें; अंति: नवी गर्भावासे अवतरे, गाथा-२५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पासजी ताहरूं न; अंति: आनंदवर्धन विनवे, गाथा-८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: सारद नाम सोहामणो; अंति: रण० सेव करता सुख लहे, गाथा-३०. ८८५४६. (+) गुणठाणा बासठियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १८४४३). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना भेद १४ गुणठाणा; अंति: नीगोदना जीवइ छइ. ८८५४७. नरकविस्तार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४११.५, १०४४१). नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिन विनवू; अंति: परम कृपाल उदार, ढाल-६, गाथा-३५. ८८५४८ (+#) शीयलव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९७, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३७). शीयलव्रत सज्झाय, म. उत्तमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४४, आदि: श्रीअरिहंत समरीये मन; अंति: कथियो उत्तमचंद रे. गाथा-१३. ८८५४९. पद्मावती आलोयण व पर्युषणपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२६४१२, १२४३०). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- जीवशिक्षा, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गूजरनो भव मे कियो; अंति: फोडी त्रुवर डालो, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १९१९, माघ कृष्ण, २, ले.स्थल. सोजत, प्रले. मु. लक्ष्मणसागर; पठ. सा. ज्ञानश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: कहे पापथी छुटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. विबुधविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुणजो साजन संत पजुसण; अंति: बुधी माहा मिलिया रे, गाथा-८. ८८५५०. नेमराजिमती सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. भेसाणी, प्रले.ऋ. खीमजी (गुरु मु. वेलजी ऋषि); गुपि.मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि); मु. नानजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७X१२, १८४४०-४६). १. पे. नाम. नेमराजिमति सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी रे वीनy; अंति: मलीया बे मुगति मझारि, गाथा-२७. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शासन सरोवर रे सबल; अंति: सहज० छे अमृत वेल रे, गाथा-६. ८८५५१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ९, जैदे., (२६४११.५, १३४३७-४६). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: यशविजये० पोष लाल रे, गाथा-५. २.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: वाचक यस० गुण गाय के, गाथा-५. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: संभव जिनवर वीनती; अंति: वाचक जस० मन साचूरे, गाथा-५. ४. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दीठी हो प्रभु दीठी; अंति: सुख दरिसण तणो जी, गाथा-६. ५.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर साचो; अंति: देख्या देव सकल मैं, गाथा-५. ६. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ते दन क्यारे आवसे; अंति: उदयरतन०तुम पदवी जासु, गाथा-८. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-लोढणमंडन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोढणमंडण, म. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीलोढण प्रभु पासजी; अंति: शुभ नमें करजोडि, गाथा-५. ८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ____ उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: डुंगर ठंडो रे डुंगर; अंति: पामे कोड कल्याणो रे, गाथा-८. ९. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-अर्बुदगिरितीर्थ मंडन, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. वा. प्रेमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७७९, आदि: आबु शिखर सोहामणो जिह; अंति: प्रेमचंद० परमानंद, गाथा-३४. ८८५५२. (+) नेमराजिमती विंझणो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १२४३९). नेमराजिमती विंझणो, म. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आव्या आव्या उनालाना; अंति: पद बिह सुखकारि के, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८८५५३. (*) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२६.५४११.५, २१४५४)पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि वाणी ब्रह्मावादिनी अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., डाल-३ की गाथा ३९ अपूर्ण तक लिखा है.) ८८५५४. (+) २४ जिन स्तवन व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६.५४११.५, १५४५६). १. पे. नाम. चोविसजिनेस पांचबोलनुं स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पच, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अति बोधवीज साची जिन सेव, गाथा - २७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. श्रावक के घर नवचंद्रवा विधान, पृ. १आ, , संपूर्ण. ९ चंद्रवा विधान-श्रावक के घर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुंनइ पाणीहारडइ; अंति: छोडि सीमंधरस्वामीया, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. श्रावक के घर सात गलणा विधान, पृ. १आ, संपूर्ण. ७ गरणा-श्रावक के घरमें, मा.गु., पद्य, आदि गलणूं आंगला त्रीसनु अति: पालितुं स्वामितुइ, गाथा-३, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ४. पे नाम आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि बोल संग्रह, पू. २आ, संपूर्ण, बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि तथा गणधरनइ त्रिपदी अंतिः वृत्ति मध्ये " " ६ आरास्वरूप विवरण *, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलउ आरो सुखमसुखम; अंति: कालचक्र हुवइ. ८८५५६. (+) छींक विचार, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित दे. (२६.५x१२, १२४३२-३३). छींक विचार, संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, आदि: छमछरी चउमास पाखी; अंतिः प्रगट लोगस्स कहेवो. ८८५५७. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैवे. (२६४१२, ९४२८). "" ३७३ कहिछइ. ८८५५५. ६ आरा अधिकार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी : ६ आराकानाम अंत में भारतीय ऋतु व मास के नाम लिखे हैं. दे. (२६.५४११.५, १५४५१-६०). " आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि जोग न मांड्यो मै घर अति देजो शीर जिनराओ, गाथा-२६. ८८५५८. (#) रावण सज्झाय व नंदक ढाल, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६.५४११.५. १९४४५). १. पे. नाम. रावण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि कहे भवीषण सुण वो; अंति: आदर मान दीयो तारी, गाथा-१६. २. पे. नाम. नंदक री ढाल, पू. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- निंदक, मा.गु., पद्य, आदि अरहंत सिद्धजी को रो; अंति हुइ जावमणारो से रो, गाथा-११. ८८५५९. इरियावही सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, दे. (२६.५x११.५ १२४३५). "" For Private and Personal Use Only इरिबावही सज्झाब, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि गुरु सनमुख रहि अंतिः शुभविर० अनुसरिई जी, गाथा - १४. , ८८५६० (+) स्थूलभद्र सज्झाय, नेमिजिन स्तवन व शांतिजिन स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४९-४६(१ से ४६)=३, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६१२, १३-१४४५०). १. पे. नाम. स्थूलीभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ४७-४८अ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२३, आदि श्रीधुलीभद्र आगे करे, अंति: खेत्र धांगे रही, गाथा- २३. २. पे. नाम नेमिजिन स्तवन, पू. ४८अ ४८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (१)आवो आघा आवो हो सासु, (२)बोले राजुल बाल मरकल; अंति: एह रीति कीरति होय, गाथा-९. Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१). ३७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४८आ-४९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांतिजिणेसर अरचित जग; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-६ की गाथा-२ तक लिखा है.) ८८५६१. नेमराजिमती ९ भव वर्णन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.ले.श्लो. (१२८८) पोथी प्यारी प्राणथी, जैदे., (२६.५४११.५, १६४२५-३५). नेमराजिमती ९ भव वर्णन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: कीम आया कीम फिर; अंति: जादु रथ पाछो फेरोजी, गाथा-१८. ८८५६२. (+#) संजयानो अधिकार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:संययानो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४११, २१-३०४६१-७७). संजया बोल, मा.गु., गद्य, आदिः (१)हिवप्रथम पन्नवणद्वार, (२)सामायकचारित्र१ छेदो; अंति: चारिना० संख्यात गुणा. ८८५६३. (+) २४ जिन नामावली व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४११.५, १६x६०). १.पे. नाम, चौविसजिन नामावली, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन, चक्रवर्ती, वासदेव, बलदेव, नाम देहायमान विवरण, मा.ग., को., आदिः (-); अंति: (-). २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर सोलमा रे; अंति: लाल आवागमन नीवार रे, गाथा-१५. ८८५६४ (+) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७४११.५, ३१x१८). ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंदीये काये; अंति: (-), (पू.वि. ११३ बोल तक है.) ८८५६५. विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, दे., (२६४११, २५४१७-२१). १. पे. नाम. ८४ लाखजीवाजोनि यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण ८४ लाख जीवायोनि संख्याविचार कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. दंडक यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. १४ महानदी नाम परिवारादि मान यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. बलदेव चक्रवर्ती नाम आदि मान यंत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. बलदेव चक्रवर्ती आदि नाम गति विचार मान यंत्र, मा.ग., को., आदिः (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. नरकादि बोल संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. नरकविचार संग्रह, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८८५६६. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, २४ जिन निर्वाणस्थल चैत्यवंदन व आदिजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२६४११, २३४१५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वर, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर गाममे; अंति: घणो पउमावै धरणेंद्र, गाथा-३. २. पे. नाम. २४ जिन निर्वाणस्थल चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. सुधनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद मुगते गया; अंति: सोदीनहर्ष मनरंग, गाथा-२. ३. पे. नाम, आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं श्रीआदि; अंति: धणी रुप कहे गुणगेह, गाथा-३. ४. पे. नाम. औषध, पृ. १आ, संपूर्ण.. औषधवैद्यक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पाराने जसीतनी गाँठ; अंति: सोमलखार अधे ले भार. ८८५६७. सुदर्शनशेठ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, २१४४४-५२). For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३७५ सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: सदगुरु पद पंकज नमी म; अंति: पेहरो सीयल सनीह, गाथा-४५, (वि. पुष्पिका नहीं है.) ८८५६८.(#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४,प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४११.५, २१४४०). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीसंतिजिणेसर संति; अंति: ध्यान श्रीसाध लह, गाथा-१३. २. पे. नाम, मुनिगुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नित नित वांदुजी मुनि; अंति: भणे विजयदेव सूरोजी, गाथा-१३. ३.पे. नाम, नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय *, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मिथिला नगरी; अंति: लावण्यसमय० सोवार, गाथा-८. ४. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सील सुरंगी भांति; अंति: पुरब पुनसु पाईले, गाथा-९. ८८५६९ (+) १० पच्चक्खाणफल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२,११४३४). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. ८८५७०. ज्ञानपंचमी स्तवन व बीजतिथि स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, ८x२७). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पंचमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरण पसाउले; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-७. २.पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) ८८५७१. ज्ञानपंचमी सज्झाय, पार्श्वजिन स्तवन व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., जैदे., (२६.५४१२, १४४३७-४८). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विजयलक्ष्मी० दाया रे, ढाल-५, गाथा-१६, (पू.वि. ढाल-५ गाथा-२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. २अ, संपूर्ण. __पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सारकर सारकर स्वामी; अंति: नेक नयणे निहालो, गाथा-७. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, रा., पद्य, आदि: सरसती सामण वीनवू; अंति: प्रेम घणे जिनचंद रे, गाथा-६. ८८५७२. ४ मंगल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:मंगल छै., जैदे., (२६४११.५, १९४४२). ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जिण नमु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-४६ तक है.) ८८५७३. (+) विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५-११(१ से १०,१४)=४, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११,१५४३४). १.पे. नाम. अठार पापस्थानक विचार, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १८ पापस्थानक आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सेव्या होय जास्यु, (पू.वि. मात्र अंतिम पाठ है.) २. पे. नाम. पुरुष ७ सुखदख वर्णन पद, पृ. ११अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: पहिलौ सुख निरोगी काय; अंति: (अपठनीय), गाथा-१. ३. पे. नाम. अष्टमंगल नाम, पृ. ११अ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: सादो साथीयो १; अंति: दर्पण ८ आठ मंगलीक. ४. पे. नाम, तिरेसठ शलाका पुरुष नाम, पृ. ११अ, संपूर्ण. ६३ शलाकापुरुष नाम, मा.गु., गद्य, आदि: २४ तीर्थंकर,; अंति: तरेसठ शलाका पूरा हुआ. ५. पे. नाम. पंचेंद्रिय जीव विचार, पृ. ११अ, संपूर्ण. ५इंद्रिय विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६. पे. नाम. षट् ऋतु नाम, पृ. ११अ, संपूर्ण. ऋतु नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पावस ऋति १ वर्षा ऋतु; अंति: ऋतु ५ ग्रीष्म ऋति ६. ७. पे. नाम. विविध बोल संग्रह, पृ. ११अ-१५आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पाठ नहीं हैं.) ८८५७५. जंबूद्वीप महाविदेहे जिन नामावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, ३६४१९). १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजयदेव१ करणभद्र२; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पुष्करावर्त प्रथम महाविदेह के मात्र २३ जिन तक ही लिखा है.) ८८५७६. मौनएकादशीपर्व स्तवन व महेंद्र जाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, अन्य. गुणचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४११.५, १५४३८). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. म. कांतिविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: कांति० माला महम है, ढाल-३, गाथा-४३. २.पे. नाम. महेंद्रजाल, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र आदि संग्रह, उ.,ग.,सं.,हिं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ८८५७७. उत्तराध्ययनसूत्र का बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. लछीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १३४५२). उत्तराध्ययनसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला अध्ययन में; अंति: कह्या इति ३६ अझयणा. ८८५७८. गजसुकुमालमुनि रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४११.५, १४४३२). गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देस सोरठ द्वारापुरी; अंति: ते मनवंछित फल पाइ, गाथा-९१. ८८५७९. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४११.५, ११४३३). महावीरजिन स्तवन-छट्टाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.ग., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाए नमी; अंति: देवीदास०संघ मंगल करो, ढाल-५, गाथा-६६. ८८५८० (+) महावीरजिन स्तवन व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, ११४३७). १.पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: जय जिनवर जग हितकारी; अंति: कहे वीरप्रभु हितकारी, गाथा-७. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: मनडुं ते माहरूं; अंति: शीयर हाथ संदेशजी, गाथा-८. ८८५८१. (4) पार्श्वजिन स्तवन, दानमहिमा व चौर ज्ञान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४११.५, २२४२४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ उपा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि पासजी जगधणी रे साहिब अति दरिसण दीठे सुख धाय, गाथा- १४. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: नखे नखे गोदानं; अंति: रमिजे केसवराय दोकुच, श्लोक ५. ३. पे. नाम चौरज्ञान, पु. १ आ. संपूर्ण ज्योतिष, पुहिं., मा.गु. सं., प+ग, आदि नामांकं दशगुणं; अंतिः कथयंति हि चोरनाम. "" ८८५८२. लावणी, पद, दुहा व कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे. (२६११.५, २९x१७-१९). १. पे. नाम. मन समझावनरी लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक लावणी, मु. देवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर नर चितकुं समजाण; अंति: चालो सावधानास्यामा, गाथा-६. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुम तजो जगत का ख्याल; अंति: त जिनराज ए हीया माये, गाथा-३. ३. पे. नाम. आदिजिन पद. पू. १आ, संपूर्ण, क. दिन, पुहिं., पद्य, आदि: ऋषभनाथ कुं रंग है; अंति: अरिहंत तुं ही वडो है, गाथा-२. ४. पे नाम औपदेशिक हो. पू. १आ, संपूर्ण. 1 औपदेशिक दोहा, क. दिन पुर्हि, पद्य, आदि मनखा देही पाय के अंति नहीं विगडी विस बावीस, गाथा १. ५. पे. नाम औपदेशिक कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, क. दिन, पुहि, पद्य, आदि किनकी विगरी उसकी अति विन नहीं सुधरे विगरी, गाथा-१. " ८८५८३. (*) औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे. (२६.५x११, १९४३४-५० ). "" १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-श्राविकादोषनिवारण, मा.गु., पद्य, आदि: बैठे साधु साध्वी; अंतिः शंका नही छे काय के, गाथा-२२. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-नरभव, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. रा., पद्म, आदि: पुरब सुकरत पुन करीने; अंतिः नाव सुग्यानी जोग मलो, गाथा- १४. ८८५८४. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२७४११.५, १२x२७). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "सहस्सागारिए अणेसणाए" पाठ तक लिखा है.) ८८५८५. (#) २४ जिन स्तवन- माता, पिता, लंछनादि नाम गर्भित, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जीवे. (२६.५४११.५, १६४४९) ३७७ २४ जिन स्तवन- माता, पिता, लछणादि नाम गर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: विनीता नवरी नाभिराजा अति श्रीमहावीर बांदु, गाथा-२४. ८८५८६. सिद्धदंडिका स्तवन संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. २, प्र. वि. शांतिजीप्रसादात् जैदे. (२६४१२, १३४३८). 1 , सिद्धदंडिका स्तवन पंन्या, पद्मविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी अंतिः पद्मविजय " जिनराया रे, ढाल - ५, गाथा - ३८. ८८५८७. स्तवन, स्तुति व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे ४, जैये. (२६११.५, २४४१५). For Private and Personal Use Only १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, पू. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. , आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: (-); अंति: विनय करीनिं विनव्योए, गाथा-५७, (पू.वि. गाथा ४६ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. राधाकृष्ण पद, पृ. २अ, संपूर्ण, पुहि., पद्य, आदि गोपसुता मिलि खेलत अंति लजी झेसे पात लझालु, गाथा- १. ३. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २अ संपूर्ण. Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक लोक संग्रह, पुहिं, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: कुग्रामवास कुनरेंद्र अंतिः नरका भवति, श्लोक १. ४. पे नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर; अंति: विरबीबुध जयकारी जी, गाथा-४. ८८५८८. परिहारविशुद्धिचारित्र स्वरूप, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैदे. (२६११.५, १९x४०). " " २० द्वार-परिहार विशुद्धि, मा.गु., गद्य, आदि: यथा नवनो गच्छ हुई; अंति: क्षयोपसमिकीतभाव हुइ. ८८५८९. अष्टमीतिथि स्तुति व सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, जैदे. (२६४१२, १०x३४). १. पे नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि अठम जिन चंद्रप्रभु अंतिः राज० अष्टमी पोसह सार, " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-४. २. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: मदमदनरहितनरहितसुमते अंति: दूनवून सत्रासत्रा, श्लोक-४. ८८५९० (+) स्थूलिभद्र नवरसो व औपदेशिक दूहा, संपूर्ण, वि. १७९९ श्रावण कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २. प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. प्र.ले. लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा जैदे. (२५.५x११.५ १२४४३). १. पे नाम. स्थूलिभद्र नवरसो, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ वेगै फल्या रे, ढाल - ९, गाथा- ७४. २. पे नाम औपदेशिक दहा. पू. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: नमै तुरी बहु तेज नमे; अंति: भाग पडै पिण नहि नमे, गाथा- १. ८८५९१. (#) पर्वत नाम संख्यादि मान विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. प्रत का बीच का भाग खंडित होने से कृि अपूर्ण है. पाठ नं. ८ से १६ तक नहीं है., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६X११.५, १२X४२). पर्वत नाम संख्यादि मान विचार, मा.गु., को., आदि (-); अति: (-). ८८५९२. (१) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८५५ वैशाख शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. ७-३ (१ से ३)=४, ले. स्थल. सूरतबिंदर, प्रले. पं. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६११.५, १५X४०). स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि (-); अति मानविजय नितु ध्यावे, स्तवन- २४, (पू.वि. शीतलजिन स्तवन से है.) ८८५९३. कालासवेसीरिषि सज्झाय, संपूर्ण वि. १७८४, फाल्गुन कृष्ण, १३, मध्यम, पू. ४, प्रले. जगरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११.५, १३X३३-३४). वैशिकपुत्र सज्झाय, मु. धर्मचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७७९, आदि: देवधर्मगुरुजन नमु; अंति: जे भाखै ते संतो रे, ढाल-६, गाथा - ९०. ८८५९४. (+) नेमराजिमती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६११.५, ११x४२). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि सारद पाय प्रणमी करी; अंतिः पुन्य० नेमीजीणंद के, गाथा-७५. ८८५९५. २४ जिन चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७११.५, २०X५-४४). १. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ अजित संभव; अंति: आणंद आठु जिण वंदण, गाथा-२, (वि. इसी कृति को २ चक्रबंध में अलग से समाहित किया है.) २. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि आदिनाथ आदिहे अजितनाथ; अंति: रीषभ० पूज्यौ रे भाई, गाथा - २, (वि. इसी कृति को २ चक्रबंध में अलग से समाहित किया है.) ८८५९६. पुद्गल परावर्तन के सात भेद पद, संपूर्ण, वि. १८९६, पौष शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५X११, १३x४१). १. पे. नाम. पुगल परावर्तन के सात भेद, पृ. १अ २अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३७९ मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम औदारिक पुद्गल; अंति: परावर्त्त कहीये. २. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. जिनहर्ष, पहिं., पद्य, आदिः युग में जीवन थोडो; अंति: जिन भजो पार उतार, गाथा-४. ८८५९७. (+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह व पार्श्वजिन स्तवन-शामला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, पठ. ललिताविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४२-४४). १.पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: एव तदहो विधीयतां, गाथा-३५, (पू.वि. श्लोक-२७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शामला, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूजाविधि मांहि भाविइ; अंति: वाचक जस कहे देव, गाथा-१७. ८८५९८. (#) सीमंधरजिन स्तवन व शीलधर्म महिमा, अपर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प.६-५(१ से ५)=१, कल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४०). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, पृ. ६अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १७३९, ले.स्थल. भागनगर. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: (-); अंति: रे प्रभु आणंद पूर, गाथा-४६, (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण से २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-शीलधर्म महिमा, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमिसर जिनतणूजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ८८५९९ नेमराजिमती लेख व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. अजबचंद, जैदे., (२६४११, १४४४५). १.पे. नाम. नेमराजिमती लेख, प. १अ, संपूर्ण, वि. १८०९. मु.रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीरैवतगिरे; अंति: सीस रूपविजय तुम दास, गाथा-१९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. सेवक, रा., पद्य, आदि: परमपुरुष सुखदाय; अंति: सेवक ऋषि मोटो स्तवै, गाथा-७. ८८६००. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११.५, १३४३७). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधनां; अंति: उदयरतन उपसम रस नाही, गाथा-६. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मान परिहार, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीइं; अंति: देज्यो देसोटो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, म. उदयरत्न, मा.ग., पद्य, आदि: समकितनं मुल जाणीये; अंति: ए छे मारगशुद्धि रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण ज्योजो; अंति: लोभ तजे तेहने सदा रे, गाथा-७. ८८६०१ (+) ४ कषाय के भांगा यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११-२६x२३-४६). चतुष्कषाय भांगा-भगवतीसूत्रे शतक-१ उद्देशक-५, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८६०२. गणधरवाद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०९, चैत्र शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. गंगादास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१०.५,९४३२). गणधरवाद स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सो सुत त्रिसलादेवी; अंति: सेवक सकलचंद शुभाकर, गाथा-४८. ८८६०३ () ६६ बोल-धर्म विशे, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २३४६-१७). ६६ बोल-धर्म विशे, मा.गु., गद्य, आदि: १ धर्म खरीछे के अखरी; अंति: धर्म घट हे के अघट है, अंक-६६. ८८६०४. स्थूलिभद्र फाग, पार्श्वजिन स्तवन व जिनकुशलसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १४४४७). १. पे. नाम. थूलिभद्र गीत फागबंध, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्र फाग, मु. मालदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणिंद जूहारीयइ; अंति: माल० महाव्रत पालउ रे, गाथा-१०८. २. पे. नाम. मंडोवरमंडण पारश्वनाथ गीत, पृ. ४अ, संपूर्ण, वि. १७२०, ले.स्थल. जयतारण, प्रले. मु. अमरसी, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-मंडोवरमंडण, ग. आनंदनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसदगुरु पाये नमी; अंति: आणंद० तु सुखकार रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरिसर गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण. जिनकुश नसूरि गीत, ग. आनंदनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: महियलमइ महिमा घणी रे; अंति: आनंदनिधान हितकाज, गाथा-६. ८८६०५. दंडक प्रकरण सह स्वोपज्ञ अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ५-१०x२५-३५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चोउवीसजिणे; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामेय; अंति: भवतु ददतु वितरंतु, ग्रं. २१६. ८८६०६. (+) धन्नापच्चीसी व होरी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १७४४५). १.पे. नाम, धन्ना पच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धन्नाअणगारपच्चीसी, म. रूप ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत समरीये मन; अंति: रूप० मुगत पधार्याइ, गाथा-२१. २. पे. नाम. होरी सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. धर्मजिन होरी, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: मधुवन में जाय मची हो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) ८८६०७. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. साहेपुरा, प्रले. सा. रायकुंवरी (गुरु सा. पाराजी आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नेमजी०., जैदे., (२६४११.५, १४४३०-३६). नेमिजिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रवीजे सुत लाडला; अंति: चोथमलजी गुणगाया रे, गाथा-१५. ८८६०८. पीस्तालीसआगम नाम श्लोक संख्यादि विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२५.५४१०.५, ११४३७-४२). ४५ आगम नाम श्लोक संख्या आदि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: आचारांग २ श्रुतस्कंध; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ठाणांग० संप्रतिग्रंथाग्रंथ ३७६७ तक लिखा है.) ८८६०९ (+) हीरविजयसूरि स्वाध्याय व संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२-१४४४५). १.पे. नाम. हीरविजयसरि स्वाध्याय, प. १अ-१आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३८१ हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. कुशलवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पणमिय पास जिणंद देव; अंति: कुसल० कोडि वरीस, गाथा-१२. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कुशलवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: मन रंगि रे प्रणमिय; अंति: न्यान उदय सुहंकरो, गाथा-६. ८८६१०. जीवडला सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८१५, भाद्रपद शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. हरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जीवडलारी सझाइ., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४११, १७-२०४२०-४६). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मनष जनम दुहलो लहो व; अंति: लीधो संजम भार रे, गाथा-३२. ८८६११. सामायिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सरावग., जैदे., (२५.५४११, १६४२८-३५). सामायिक सज्झाय, मु. कुस्यालचंद, रा., पद्य, वि. १८६४, आदि: सतगुरु आगम सुण भवे; अंति: चीत्तचोखी करोनी समाइ, गाथा-१७. ८८६१२. (+-) कार्तिकशेठ पंचढालियो व कयवन्नाशेठ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:कात., अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १९४४५). १. पे. नाम. कार्तिकशेठ पंचढालियो- ढाल १ से ४, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. कार्तिकसेठ पंचढालिया, म. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अरहत सिद्ध साधु सर्व; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. ढाल-४ तक लिखा है.) २. पे. नाम. कयवन्नाशेठ सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. कयवन्ना सज्झाय-दान विषये, मा.गु., पद्य, आदि: राजगरी नगरी भली सेठ; अंति: दानज रे उतरजी भवपार, गाथा-२१. ८८६१३. कर्मप्रकृतिनो विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११, ३५४८-२३). १४ गुणस्थानके कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उधि बंध १२०; अंति: (-), (पू.वि. मिश्रगुणस्थानके ५ स्थावर अपूर्ण तक हैं.) ८८६१४. गुणस्थानक कर्मबंधउदयउदिरणादि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४११.५, ९४२५). १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हवे मीथ्यातगुणठाणाथी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "देवतात्रिजंचनी सत्या" पाठ तक लिखा है.) ८८६१५. सकलकुशलवल्ली चैत्यवंदनसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १४४३२). सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्कर; अंति: व श्रेयसे शांतिनाथ, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत अनंत; अंति: मंगलीक माला संपजे. ८८६१६. (+) जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १८४५०). जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महाहेमवंत पर्वत वर्णन अपूर्ण से पुंडरीकद्रह वर्णन अपूर्ण तक है.) ८८६१७. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १२४४१). औपदेशिक सज्झाय-मोहपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: जगमां जीवने मोटो मोह; अंति: करो मातपितानी सेव, गाथा-२१. ८८६१८. जीवणदासजी गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, ११४३१). जीवणदासजी गीत-गच्छपति, श्राव. हमीर साह, रा., पद्य, आदि: चालो सहीयां वंदण जाय; अंति: आणी चित उलासो हे, गाथा-९. ८८६१९ जंबूद्वीप कलश विचार यंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालणपूर, प्रले. पं. दयाविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२६४११, ३२४७-२२). जंबूद्वीप कलश बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८६२०. (+) पार्श्वजिन स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे. (२६.५४११.५, १२४४१). "" १. पे नाम पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. "" पार्श्वजिन स्तुति- समस्यापदद्वयनिबद्ध, प्रा. सं., पद्य, आदि जाईजरामरणसोगपणासणस्स अति दलनतत्परतां विधेहि, श्लोक-४. २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पू. १अ १आ, संपूर्ण, सं., पद्य, आदि: योनागेंद्रकाष्टे: अंति: बोधिं दद्याज्ञानंदम्, श्लोक-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. पावंजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-श्रीपुरमंडण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपुरमंडण पासजिणेस; अंति: (-), गाथा-४, (वि. अंतिम गाथा मिटाई हुई है.) " ८८६२१. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. हुंडी नाकी, दे. (२५.५४११.५, १५४३५). औपदेशिक सज्झाय- नाक, रा., पद्य, आदि नाक कहे जुगमा हु बडो अंतिः सरीखो नहीं सिणगार रे, गाथा -१७. ८८६२२. नेमिजिन स्तवन व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., ( २६.५X११.५, १०X३१). १. पे. नाम. नेम स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. राजिमती गीत, पंडित. जयवंत, मा.गु., पद्य, आदि ओ सखी अमीय रसालके चा; अंति के नेम समुधरी रे के, गाथा- ६. २. पे. नाम. नेम स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, क. लाभहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सामलीया सुंदर देही ह; अंति: लाभहर्ष इम बोल्या रे, गाथा-७. ३. पे. नाम औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, पुहिं. प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि (-); अति: (-). ८८६२३. तीर्थवंदना चैत्यवंदन व गढप्रशाद मूहुर्त्त, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११.५, १०x२७). १. पे. नाम. समस्त जैनचैत्यवंदना स्तवन, पृ. १आ - २अ संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्ता देवलोके रवि; अंति: मनसा चित्तमानंदकारि, श्लोक - ९. २. पे. नाम. गडप्रशाद मुर्हत, पृ. २आ, संपूर्ण. गढप्रसादमूहुर्त लोक सं., पद्य, आदि आषादेचैत्राश्च अति: पट्टाभिषेकादिच: श्लोक-३. ८८६२५. (+) ९८ बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३३, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. सादडी, प्रले. मु. छगनलाल (गुरु मु. हुकमीचंद); गुपि. मु. हुकमीचंद, पठ. मु. भुरामल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : ९८ बोल., अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२५.५X११.५, १०X३९). ९८ बोल यंत्र- अल्पबहुत्व, मा.गु., को., आदि: सरवसुं थोडा गरभेज; अति: सरवजीव विसेसाइया ८८६२६. कर्मछत्तीसी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. हुंडी: कर्मछती. जैये. (२५x११.५, १२४३८). कर्मछत्तीसी, पुहिं., पद्य, आदिः परम निरंजन परमगुरु; अंति: करै मुह वधावे सिष्ट, गाथा-३७. ८८६२७. नेमराजीमति गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X११.५, १५X४८). १. पे. नाम. नेमराजीमति गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सहेल्या हे आयो आयो प अति श्रीजिनचंद कहइ लाल, गाथा - ११. २. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि रायकुमर राजल कहइ पीउ, अंतिः पभणइ श्रीजिनचंदसूर, गाथा- ७. ८८६२८. (+) मौनएकादशीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. वे. (२५.५x११, " ११-१२X३२-४०) For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३८३ मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमुं जिन; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१२ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८८६२९ (+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:पारस., संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४३७). पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: तारक जिण तेवीसमा हो; अंति: दिन दिन कोडि कल्याण, गाथा-२२. ८८६३०. ७ व्यसन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., दे., (२४.५४११, १३४४५). ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साधु सुगुर; अंति: सीस रंगे जेयरंग कहै, गाथा-९. ८८६३१. भीखनबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १८३५, वैशाख कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जोजावर, प्रले. मु. उत्तमचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अंतर्गत "ऋषि उत्तमचंद्रेण कृत खेरवा नगरमध्ये" लिखा है., जैदे., (२५४१०.५, १५४३९-४४). ढुंढकबत्तीसी, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षमा गुण आद; अंति: कवियण० काटसी घास, गाथा-३३. ८८६३२ (+) दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४२-४७). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पय नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९४ अपूर्ण तक है.) ८८६३३. (+) जिन मालिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १५४४०). जिनमालिका काव्य, मु. सुमतिरंग, मा.गु., पद्य, आदि: जगनायक जग मुगटमणि; अंति: जिनमालिकासंपूछाजैरी, ढाल-७, गाथा-७६. ८८६३४. साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८०५, आश्विन कृष्ण, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वालीनगर, प्रले.ग. अमृतविजय (गुरु पं. लालविजय); पठ.पं. मुनिविजय गणि (गुरु ग. अमृतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अतिचार., जैदे., (२५४११.५, १३४४२-४४). साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.म.प., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि अ चरण; अंति: विषइउ अनेरु जि. ८८६३५. (+) सिद्धदंडिका स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. भाणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ९४३९-४५). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाओ; अंति: दिंतु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जंक० जे उसभ क० ऋषभ; अंति: ते सिद्धिना सुख आपो. ८८६३६. (#) पांचमी स्तव, संपूर्ण, वि. १८१०, भाद्रपद कृष्ण, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. विनीतविजय (गुरु ग. नेमविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. नेमविजय (गुरु पंन्या. खेमाविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पांचमीस्तवनं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४४७). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुराय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२५. ८८६३७. (+#) औपदेशक सज्झाय व इलाचीकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:उपदेस की सजा०., संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, दे., (२६४११.५, १९४३५). १.पे. नाम. औपदेशक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि: परहस कु चेत नार सुगर; अंति: साचो अरथ विचार, गाथा-१९. २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम एलापुत्र जाणिये; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. ८८६३८. (4) पट्टावली व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३९). For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. पट्टावली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., गद्य, आदि: श्रीवर्धमान१; अंति: श्रीजिनचंद्रसूरि६९, अंक-६९. २. पे. नाम, दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: कबीरयोहजग देखर गोरो; अंति: (-). ८८६३९. गुरुगुण गहुंली, महावीरजिन गहुली व सुधर्मास्वामी गहुंली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, ९४२४-३३). १. पे. नाम, गुरु गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रूडीने रढियाली रे; अंति: पद्म कहे अमीअसींचाय, गाथा-७. २. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीतभय पाटण वीरजी; अंति: तस पद पद्म नमो नित, गाथा-६. ३. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहंली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंचम गणधर वीरनारे; अंति: करतां लहइं शिवठाण रे, गाथा-७. ८८६४० (-) नेमराजिमती सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्रावि. मानकी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नेमजी., अशुद्ध पाठ., दे., (२६४११, १७४३९). १.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ.१अ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४०, आदि: नगरी सुरीपुर सोवता; अंति: रायचंद० ढाल हुलासोये, गाथा-१३. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: एक सुखल नारी जोइ; अंति: सवारती नीतर नरग पडत, गाथा-९. ८८६४१.८५ संवर सज्झाय व ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:समरसकाए., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११, १८४३९-४५). १. पे. नाम. ५ संवर सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-संवर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर जिणेसर गोतम; अंति: जप मुगत जासी पाधरो, गाथा-६. २. पे. नाम. ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४३, आदि: रिखबराजा रे राणी दोए; अंति: रायचंद० आउ पूर्व पाइ, गाथा-१९. ८८६४२. महपत्ति पडिलेहण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, ११४३४). मुहपत्ति पडिलेहण सज्झाय, वा. साधुकीर्ति, प्रा., पद्य, आदि: पंचमउ गणहर सोहिमसामि; अंति: ते भवसायर लीला तरइ, गाथा-१४. ८८६४३. (+#) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १७५४, कार्तिक शुक्ल, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, पठ. श्रावि. चिना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४४०). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: पासचंद० आणंदइ संथया, ढाल-७, गाथा-८७. ८८६४४. (#) अनंतकाय सज्झाय व क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १३४३२-३७). १. पे. नाम. अनंतकाय सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-अनंतकाय त्यागे, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतकायना दोष अनंता; अंति: भावसागर आनंदा रे, गाथा-१२. २. पे. नाम, क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पंडित. भावसागर, मा.ग., पद्य, आदि: क्रोध न करीयै भोला; अंति: रे पोहचै सयल जगीस, ढाल-४, गाथा-३२. ८८६४५ (+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह सह टबार्थ व शंखेश्वरजिन स्तवनादि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ५४४४). . For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३८५ १.पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारमावन्नपरस्स; अंति: नो कस्य को वल्लभ, श्लोक-१०. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह-टबार्थ, रा., गद्य, आदि: संसारमाहि जीव आयनइ; अंति: स्वारथरा वलभ छइ. २.पे. नाम. प्रस्ताविक गाथा संग्रह सह टबार्थ, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: जीउ जलबिंदु समं संपत; अंति: सेसेसुजीएसुकागणणा, गाथा-२३. औपदेशिक गाथा संग्रह-टबार्थ, रा., गद्य, आदि: जीवितव्य ते पाणीना; अंति: जीव तिके काई गणतमे. ३. पे. नाम. संखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेसर; अंति: जिनह० भवसायरथी तारो, गाथा-५. ४. पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अड कम्म पास बंधो जीव; अंति: अणंत खुत्तो समुंपनो, गाथा-३. ८८६४६. (+#) शक्रस्तव-अर्हन्सहस्रनाम व महामंत्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. सप्तस्मरण के भाग है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३८). १. पे. नाम. शक्रस्तव-अर्हन्सहस्रनाम, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमोर्हते परमात्म; अंति: लिलेखे संपदां पदम्. २. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ८८६४७. (+) बासठमार्गणा द्वार व ८ कर्मनी १४८ कर्मप्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४११, ३७४२२). १. पे. नाम. ६२ मार्गणा विचार, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.. ६२मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गई इंद्रिय काय जोए; अंति: १० लेस्या ६ स्तोक. २. पे. नाम. आठकर्मनी १४८ प्रकृति स्थिति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १न्यानावरणी कर्मनी; अंतिः अबाधाकाल उदै आवइ. ८८६४८. (+) संसारसूपन विधि सज्झाय, मौनएकादशी स्तुति व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६४३८). १.पे. नाम, संसारसुपन विधिसरुप सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १७६९, वैशाख कृष्ण, ९. औपदेशिक सज्झाय-संसारस्वरूप, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (१)सुमिणंतराणुंभूअं सुख, (२)श्रीवीरनइ वीनवइ गौतम; अंति: लवलेस मात्रइ तेह, गाथा-३५. २.पे. नाम, मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: श्रीसंघ विघन निवारी, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ८८६४९ (+) २४ दडंक विचार, संपूर्ण, वि. १८०६, कार्तिक शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पद्मावती, प्र.वि. श्रीधर्मनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७४१५-६५). २४ दंडके २१ द्वार विचार-जीवादि, मा.गु., को., आदि: शरीर५ अवगाहना संघयण६; अंति: आगति गति वेद३, ___अंक-२४. ८८६५०. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सजाय., दे., (२५.५४११, ८४३७). पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेसरु; अंति: लहिइ अविचल पद निधार, गाथा-७. ८८६५१. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १०४३८). For Private and Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. धर्मसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर पासजी; अंति: धर्मनी भवो भव भावना, गाथा-६. ८८६५२. (+) अक्षर ककादि तेत्रीस दुहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:कका दूहा., संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४३६). कक्काबत्रीसी, पुहिं., पद्य, आदि: कका करी कछु काम धरम; अंति: य जिम सुख पावो सासता, गाथा-३३. ८८६५३. ३४ अतिशय संयुत जिनस्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बर्हानपुर, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३४-४०). ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमति दायक दुरित; अंति: ज्ञान० मांगु भवभवे, गाथा-११. ८८६५४. सुभद्रासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११,१५४३८). सुभद्रासती सज्झाय-सीयल, मु. संधो, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोझइ इर्या; अंति: दूधडो सोना केरो ठाम, गाथा-२२. ८८६५५. (+) ब्रह्मचर्य नववाड व सामायिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. श्राव. कुरसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४०-४५). १. पे. नाम, ब्रह्मचर्य नववाड सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नववाड सज्झाय-ब्रह्मचर्य, म. हान ऋषि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: रयण सिंघासण बइसणइ; अंति: जे सील सूधउ पाल ए, गाथा-४०. २.पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायक मन सुद्धइ करउ; अंति: सामायिक पालो निसदीस, गाथा-५. ८८६५६. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. ग. कुंअरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नही है., जैदे., (२५.५४११, ११४२५). १. पे. नाम. आवश्यकसूत्र का संपदा अक्षरादि विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र आलावा संपदा अक्षर संख्यादि कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. दशश्रावक विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. १० श्रावक नाम पत्नी व नगरी विचार, सं., गद्य, आदि: आणंदस्य सिवनंदा; अंति: तेलिया० सावत्थीनयरी. ३. पे. नाम. नदी परिवार विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ गंगादि नदी परिवार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गंगा नदीनओ परिवार सह; अंति: रक्ता० सहश्र १४०००. ४. पे. नाम. १२ पर्षदा यंत्र, पृ.१आ, संपूर्ण. १२ पर्षदा विचार यंत्र, मा.ग., को., आदि: ईशानकणि वैमानिकदेव१; अंति: वाण विंतर ३ देव. ८८६५७. (+) ८ कर्म ५० बोल यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. हरजी ऋषि; पठ. मु. करमसी (लोंकागच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १०४४१-४४). ८ कर्म ५० बोल यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८८६५८. सीलदीपक सज्झाय व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १४४४२). १. पे. नाम. सीलदीपक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. मु. राणा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-शीलव्रत, मु. पासचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वयरागइ मन लाईयइ इक; अंति: पासचंद० जिणआण संभालि, गाथा-२१. २. पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: गइ संपत फर आवे; अंति: गलासू लावता है, गाथा-५. ८८६५९ (+#) स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १९x४४-५०). स्तवनचौवीसी, उपा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीजिन जगआधार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वासुपूज्यजिन स्तवन तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३८७ ८८६६० (+) औपदेशिक सज्झाय व वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७८३, माघ शुक्ल, ४, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. बुहनिपुर, प्रले. ग. लालविजय (गुरु पं. लावण्यविजय गणि); गुपि. पं. लावण्यविजय गणि; पठ. श्राव. नेमीदास; अन्य. श्राव. मनमोहन, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३३-३६). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: जीव धरम म मुकिस विनय; अंति: ते चिरकालइ नंदो रे, गाथा-७. २. पे. नाम. वैराग सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: काया पुर पाटण मोकलु; अंति: सहजसुंदर उपदेस रे, गाथा-४. ८८६६१. नेमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, २१४५८-६२). कल्पसूत्र-हिस्सा नेमिजिन चरित्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीम जादव नाम हुओ सोर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नेमिजिन लग्न, पशु पोकार प्रसंग तक लिखा है.) ८८६६२ (+) १२ बोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १२४३६). १२ बोल सज्झाय-हीरसूरि औपदेशिक बोल, आ. विजयतिलकसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करउ; अंति: सेवतां सकल संघ आणंद, गाथा-१७. ८८६६३. (#) मौनएकादशी स्तवन व नेमराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४४२). १.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १८५३, माघ कृष्ण, १, ले.स्थल. समदरडी, प्रले. पं. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी; अंति: कांति० मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-२७. २. पे. नाम. नेमराजीमती गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण... नेमराजिमती गीत, म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हां रे में वारी नेम; अंति: रूपचद० खेलन हारे रे, गाथा-४. ८८६६४. (+) आत्माबोधकर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६४३३-३८). ___ कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: कर्मराजा रे प्राणी, गाथा-१९. ८८६६५ (+-) परनारी परिहार सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४३२). १.पे. नाम. परनारी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८९९, फाल्गुन शुक्ल, २, शुक्रवार, ले.स्थल. पचेवर, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य. परनारी परिहार सज्झाय, रा., पद्य, आदि: सुण भाई चुत्र सुजाण; अंति: थे देवगरु धरम धारो, गाथा-२८. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, रा., पद्य, आदि: जीण प्रीत करी प्रनार; अंति: समज जावो स्याणप वाला, गाथा-५. ३. पे. नाम. परनारी परिहार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. पुहिं.,रा., पद्य, आदि: रावण मोटो राव कहीजै; अंति: तावडौ ढलक जाय ढलको, गाथा-७. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजन हो राजन नाम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक है.) ८८६६६. शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १०४३५). पार्श्वजिन स्तव-शंखेश्वर, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: समस्तकल्याणनिधानकोश; अंति: मुनिचंद्र०भाजां वंदे, श्लोक-१०. ८८६६७.(+) महावीरजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११,१३४४१). For Private and Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૮૮ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: एक वरसीजी ऋषभ करी; अंति: जिनवर सकलमुनि आधार ए, गाथा-१२. ८८६६८. (E) २४ जिन परिवार संख्या विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. सरूपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १२४३४). २४ जिन परिवार संख्या विचार, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: पहिला आदेसरस्वामीनइ; अंति: सुधरमाजीनइ महावीरजी. ८८६६९ ज्योतिष विचार, जिन स्तवन व रत्नप्रभापथ्व्यादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५४१०.५, २०४८३). १. पे. नाम. विश्वा व संक्रांतिफल विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहि.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: चैत्रे च श्रावणे मास; अंति: महर्घ मुनयो वदंति. २. पे. नाम. रत्नप्रभा पृथ्वीमान विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: तत्रैकलक्ष अशीतिसहस; अंति: प्रथमाया धराया भवति. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रंगविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६५८, आदि: जी हौ पहिलो ऋषभजिणेस; अंति: लाला भणइ रतनरंग सार, गाथा-११. ४. पे. नाम, उनोदरीभेद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. - प्रा., प+ग., आदि: तिविहा उनोयरिया पण्ण; अंति: पण्णत्ता वीयरागेहिं. ५. पे. नाम, उपशमक्षपकश्रेणि विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: अपूर्णकरणाद्यांशा; अंति: स्थानमष्टमम्. ८८६७०. देहमान व लोकरज्जुमान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १२-१५४६०). १.पे. नाम. उच्छेदप्रमाणात्मांगल देहमान विचार, प. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामी को; अंति: सोलेसै कोशरो योजन छै. २. पे. नाम, घनीकृत वृत्तलोकरज्जुमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. घनीकृत वृत्त लोकरज्जुमान विचार, रा., गद्य, आदि: ऊद्ध्वलोक में २८; अंति: सूचीरज्जु ३८२४ है, (वि. घनीकृत लोकरज्जुमानसूचि अलग से भी संलग्न है.) ८८६७१ (+) पार्श्वजिन छंदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२-१४४२५-५५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-चिंतामणि, महम्मद काजी, मा.ग., पद्य, आदि: अचिंत चिंतामणी; अंति: काजी० मुज आपोजी सेव, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमिनाथ जान वर्णन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन जान वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: ४२ लक्ष हस्ती ४२घोडा; अंति: कृष्णस्याष्टग्रमहष्य. ३. पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दहा-शीयलविशे, मा.गु., पद्य, आदि: सील विना सह वेदिह; अंति: एम भाख्यो वितराग, गाथा-१. ४. पे. नाम. चौवीसतिर्थंकर परिवार, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ जिन परिवार, मु. करमसी, मा.गु., पद्य, आदि: चवदैसेवावन गणधार लाख; अंति: करमसी० प्रणमुं सही, गाथा-६. ८८६७२. नेमराजिमती सज्झाय व आध्यात्मिक पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १५४४७). १.पे. नाम, नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर नित नवा; अंति: एक राजुल नेमतणो खरो, गाथा-१५. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद संग्रह, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मुनिराज वंदना अपूर्ण तक है., वि. असंबद्ध व अस्तव्यस्त पाठ है.) For Private and Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३८९ ८८६७३. २४ जिन नाम, देहायुमान, वासुदेव, बलदेव, मातापिता, श्रावक, गणधरादि विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, २६४१२-५३). २४ जिन, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, नाम देहायुमान विवरण, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८८६७४ (-) मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११, १८४४६). मृगापुत्र रास, मु. मनधर, पुहिं., पद्य, आदि: सकेंद्र प्रसंस्या; अंति: गावइ श्रावकदास, गाथा-२९. ८८६७५ (#) औपदेशिक दहा व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३-१५४५२). १.पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. औपदेशिक दुहा-आहार विषयक, नयनसुख, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नयनसुख सुनहु सुजान, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: वाचक० उत्तम सीस सवाई, गाथा-४. ३. पे. नाम. बीजतिथी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहि पूरि मनोरथ माय, गाथा-४. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तति, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ८८६७६. (+) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. लउंगी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सोल सुपन., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४५-५०). ___ चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि वीनवं; अंति: साधइ मुगतिनउ ते माग, गाथा-२५. ८८६७७.(+) ८ आत्मा ६२ बोल व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७४०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १६४३७). १. पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: ददतु ददतु गालीलि; अंति: ऋणु राजायुद्धिस्थिर, गाथा-३. २. पे. नाम. ८ आत्मा ६२ बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि., को., आदि: १ द्रव्य आत्मा में; अंति: (-). ८८६७८. (#) बुध रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३८-४२). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवि अंबाई; अंति: सालभद्र० टलै कलेस तु, गाथा-६५. ८८६७९ पार्श्वजिन स्तवन, हीरविजयसूरि सज्झाय व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (१०x१०, १५४३३-४०). १.पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाखीणो सुहावै जीनजी; अंति: तो वांदु विजै हीर, गाथा-७. २. पे. नाम. हीरविजयसूरि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडीजी वीनवू; अंति: होज्यो मुझ आणंद, गाथा-१२. ३. पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कुलं च हीनी नगनोखी; अंति: लीज्यौ गुरुजी हमारी, गाथा-४. ८८६८०. आदिजिन भास व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, १३४४०). १. पे. नाम, आदिजिन भास, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिनजिन भास, मा.गु., पद्य, आदि: आज मन आणंद अधिको अंग; अंति: मणि सुरसाल रे प्राणी, गाथा-४. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची म. नेमिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकरण श्रीशांतिजि; अंति: त्रिभुवन राज रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. नेमिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भविजन वंदोरे अनुदिन; अंति: वसुख लहिइ होसु विशाल, गाथा-४. ४. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. नेमिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी नमीइ रे जपी; अंति: मरण लहीइ कोडि कल्याण, गाथा-४. ८८६८१. साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. वन्नाबाई, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५४११, ९४३५). साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: जो तूसइ देवि अंबाई, गाथा-४. ८८६८२. (#) औपदेशिक सज्झाय व औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. रुपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १६४३७). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. केलवाल नगर. क. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर इम उपदिसै; अंति: इम भणै रूपचंद रे, गाथा-२१. २.पे. नाम, औपदेशिक कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित-धडाबद्ध, क. पिंगल, मा.गु., पद्य, आदि: वस त्रिण त्रयवाज करस; अंति: एकधडाबंध कवित इह, का.-१. ८८६८३. आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, ११४४३). आराधना, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो नमस्कार श्रीअर; अंति: मिच्छादुकडं बोलउ तेह, गाथा-६४, (वि. कर्ता का नाम नहीं है.) ८८६८४. इलाचीकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १०४३५). इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलचीपुत्र जाणिये; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-१३. ८८६८५ (+) छकाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:छकाय., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६४३४). ६ काय सज्झाय, रा., पद्य, आदि: हुवा होसी आज छै जी; अंति: गयाजी दया तणइ प्रसाद, गाथा-१६. ८८६८६. दीपावलीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १०४४६). दीपावलीपर्व स्तुति, म. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासणनायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसती वर वाणी, गाथा-४. ८८६८७. (+) शांतिजिन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. रावटी नगर, प्रले. मु. राज ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४३८). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८५०, फाल्गुन शुक्ल, ५. मु. विजयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण वीनवु; अंति: हां शंतिसर गुण गायजी, गाथा-२२. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८५१, फाल्गुन कृष्ण, १४. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: वलवल वाधु वीरजी सुहा; अंति: मुगत आपो स्वामी, गाथा-९. ८८६८८.(#) स्त्रीदर्गण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मालपुरा, प्रले. सा. जीउजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९५३७). स्त्रीदर्गण सज्झाय, मा.ग., पद्य, आदि: नारी हार हाथी नजी; अंति: जान दाग न लाग कोइजी, गाथा-१५. ८८६८९ विनयनयरि स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. १८०२, चैत्र कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. लायक कुशल; पठ. पं. विजयहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४४६-५०). स्नात्रपूजा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: कियो लियो संजम भार, ढाल-८, गाथा-४३. ८८६९० जिनेंद्रसूरि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अंत मे रामस्तुति स्वरुप एक श्लोक लिखा है., जैदे., (२५४११, ११४४०). For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३९१ जिनेंद्रसूरि सज्झाय, मु. वल्लभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आज गछराज महाराज मोनु; अंति: लगन अडग तुज वार थापी, गाथा-९. ८८६९१. व्याख्यान संग्रह-उठाणरी गाथा, संपूर्ण, वि. १८९३, आषाढ़ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. रामा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३६). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: अनीतासरीराणी वीभवो; अंति: (अपठनीय), (वि. अक्षर घिस जाने के कारण अंतिमवाक्य अपठनीय है.) ८८६९२ () ४७ दोष व मांगलिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, ३६४१९). १.पे. नाम. ४७ दोष, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गोचरी ४७ दोष, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: महात्मानिइ काजिइ जे; अंति: साधु रहइ जिमतां लागइ. २. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणिविआणओ; अंति: जयई महपा माहावीरो, गाथा-२. ८८६९३. भगवतीसूत्र शतक-७, ८ व १५ गत बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, २६४७०). भगवतीसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. कोष्ठक सहित.) ८८६९४. २० स्थानकतप गणगुं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ११४२१-३२). २० स्थानकतप गणणं, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं हजार २; अंति: काउसग्ग ५ लोगस्सनो. ८८६९५. १५० जिन कल्याणक चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १०४३०). १५० जिन कल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक जग जयो; अंति: शिवलक्ष्मी वरीजे, गाथा-१६. ८८६९६. शत्रुजयतीर्थ व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११, १०x४०-४५). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तवन-२४ दंडकगर्भित, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सरसति भगवती; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभ की गाथा-२ तक लिखा है.) २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सेजे गया पाप; अंति: तो छूटे तप करते होजी, गाथा-१२. ८८६९७ (+) २४ जिन बहिर्लिपिका स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४४३-४५). २४ जिन बहिर्लिपिका स्तवन-प्रहेलिकाबद्ध, मु. सकलकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७०५, आदि: श्रीपरमेसर पाय नमी; अंति: कुसल सकल सरीर ए, गाथा-२१. ८८६९८. माणिभद्रवीर छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३८). __ माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति सूर सेवित; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१८ तक है.) ८८६९९ २५ बोल थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:पचीस बोलको., दे., (२५.५४११, १७४३८). २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोले गति च्यार; अंति: जथाखायक चारत्त. ८८७०० (+) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२४४२). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: यानि चैत्यानि वंदे, श्लोक-९. ८८७०१. मेतारजमुनि सज्झाय व खंधकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ११४३३). १. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदिः समदम गुणना आगरु जी; अंति: भणे जी साधुतणी सजाय, गाथा-१३. २. पे. नाम. खंधकमुनि सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो खंधक महामुनि; अंति: सेवक सुखियां कीजे रे, ढाल-२, गाथा-२०. ८८७०२. १० पच्चखाण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १८:५५). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सुरे नमुक्कारस; अंति: गारेणं वोसिरामि. ८८७०३. (+) भयहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. सिवचंद, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४३९). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: तस दूरे नासंति, गाथा-२४. ८८७०४. पंचतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४४८). पंचजिन बृहत्स्तोत्र, उपा. जयसागर, सं., पद्य, आदि: जय जय जगदानंदन जय; अंति: बोधाबोध लाभाय संत, श्लोक-२६, (वि. गाथा-१ से ५ के क्रम में लिखी है व कुल २६ गाथा हैं.) ८८७०५. १४ स्वप्न स्तवन, पार्श्वजिन स्तवन व बारहमासा वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १६x४०). १. पे. नाम. चौद स्वप्न, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम ऐरावण दिठो; अंति: मरुदेवी मोतीडे वधावै, गाथा-७. २. पे. नाम, संखेश्वरा पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवौ पास संखेसरौ मन; अंति: उदयरत्न० आप तूठा, गाथा-७. ३. पे. नाम, बारहमासा वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कार्तिक मासे मेली; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मार्गशिर्ष मास अपूर्ण तक लिखा है., वि. गाथांक नही है, यह कृति बाद में लिखी गई है.) ८८७०६. औपदेशिक सज्झाय व जिनशासनजोगी गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. टोडरमल ऋषि (गुरु मु. वीरुचंद ऋषि); गुपि. मु. वीरुचंद ऋषि; पठ. मु. सकर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ९-१०४३२). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: वाडी फूली अति भली मन; अंति: मनः सिख कहइ मुनिमाल, (वि. गाथांक नही है.) २. पे. नाम, जिनशासनजोगी गीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. साधगुण सज्झाय, मु. माल, पुहि., पद्य, आदि: वड वइरागी अति सोभागी; अंति: माल कहइ जसु जोगना, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ८८७०७. पार्श्वजिन स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १५४४६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: भलु आज भेट्या प्रभु; अंति: चक्रे समयादिसुंदरं, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: महानंद कल्याणवलि; अंति: नाथ जीरावलो गुण गायो, गाथा-११. ८८७०८. जिनप्रतिमा हुंडी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२६४११, १२४३२). जिनप्रतिमाहंडी रास, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुयदेवी हीयडै धरी; अंति: जिनहर्ष कहंत कै, गाथा-६६. ८८७०९ (4) साक्षिपाठयुत साधु वस्त्रव्यवहार विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४५०). विचार संग्रह , मा.ग., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामीजी; अंति: चाले० पहिले गणठाणै. ८८७१०. नवतत्त्व विचार, संपूर्ण, वि. १७५३, कार्तिक शुक्ल, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. आसोपनगर, जैदे., (२५४११, १९४३०-४४). नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व१ चेतना लक्षण; अंति: पुरुष१०८ सीझइ. For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३९३ ८८७११. (+) औपदेशिक सज्झाय, श्रीकृष्ण झंगडली पद व उपदेशपच्चीशी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १८४३७). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-दुर्मतिविषये, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हे दुरमतडी वेरणइने म; अंति: महाआनंद पदमे मीलसे, ढाल-२, गाथा-१४. २. पे. नाम. श्रीकृष्ण श्रृंगडली पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कृष्ण झंगडली पद, क. नरसिंह महेता, मा.गु., पद्य, आदि: ओलीया दोलीया माणक; अंति: नरसी०छानै सै धर दीनी. गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपदेशपच्चीसी, म. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८७८, आदिः (-); अंति: रतनचंद० दियो उपदेश, गाथा-२७, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२१ से लिखा है.) ८८७१२ (+-) महावीरजिन ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:माहवीरजी., अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १८:५९). महावीरजिन ढाल, म. चंद्रभाण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५०, आदि: सासणनायक वीरजणंद; अंति: चंद्रभाणजी० अभिराम, गाथा-३०. ८८७१३. (+) मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १६x४५). मेघकुमार सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मुनीवर मेघकुवारजी मन; अंति: लालचंद सुख पावसीजी, गाथा-२२, (वि. ढाल-३.) ८८७१४. (-) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:सज्झाय उपदेस., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४११, १८४५२). १. पे. नाम. कर्मउदयफल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: कर्म उदै हिवै आवीया; अंति: ए सिद्धांतनी साख, गाथा-१४. २. पे. नाम. तपसी साधु सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तपसी तो साधुजी उठ्या; अंति: करकज निज सिरनामी रे, गाथा-१७. ३. पे. नाम. सर्वार्थसिद्ध स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पं. धर्महर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सर्वारथसिद्धिइ; अंति: धन०बोले इणपर वाणी रे, गाथा-१५. ४. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन मेतारजमुनी जिन; अंति: लीयै निज कुटंबज साथे, गाथा-१४, (वि. कृति अपूर्ण लगती है.) ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पहिं.. पद्य, आदि: कांस पापी ले गया रे: अंति: कोई न भांजै भीर. गाथा-१४. ८८७१५. हर्षचंद्र गच्छाधिपति गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १५४४९). १.पे. नाम. हर्षचंद्रजी गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. हर्षचंद्र आचार्य गीत-गच्छाधिपति, मु. उगरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतदेव नमी करी हे; अंति: उगरचंद दिन अधिकी चाह, गाथा-१३. २. पे. नाम. आचार्यहर्षचंद्रजी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. हर्षचंद्र आचार्य गीत-गच्छाधिपति, मा.गु., पद्य, आदि: गणपतिदेव मनायकै सरसत; अंति: सुख पामै नितमेव, गाथा-११. ८८७१६. नेमिजिन गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नागोर, प्रले. सा. मोता (गुरु सा. चंदुजी); गुपि. सा. चंदुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, १४४४४). नेमिजिन गीत, रा., पद्य, आदि: सरसत सामण वीनय गणपत; अंति: सुणोजी श्रीनेमरजी, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३९४ www.kobatirth.org " ८८७१७ मूर्तिपूजामतपुष्टि व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२५.५४११, १५४५१). १. पे. नाम. जिनप्रतिमा जिनचैत्य संवादे प्रतिमास्थापन दृढकरण, पृ. १अ, संपूर्ण. मूर्तिपूजामतपुष्टि विचार - शास्त्रपाठयुक्त, सं., प+ग, आदि उक्तं च श्रीमत्पंच, अंतिः स्तव निषेध उक्तोस्ति. २. पे. नाम बोल संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण बोल संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. यंत्र में लिखा गया है.) ८८७१८. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७५, पौष शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २४.५X११, १२x२२). पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामणि; अंति: प्रभु पारसनाथ कीयै, गाथा-१५. ८८७१९. स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५. ५X११, १२X३८). स्तवनचीवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि जगजीवन जगवाला हो; अति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अजितजिन स्तवन तक लिखा है.) ८८७२० (+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. वि. संशोधित. जैदे. (२५x११, २८x२१). पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशारदामातसु चरण०; अंति: केसर० प्रभु भावियाजी, 1 ', " २. पे. नाम. ३० उपमा-साधु की, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: साधु कांसीना पात्र, अंति (अपठनीय), अंक ३०. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा - २१. ८८७२१.(+) शाश्वतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. श्रावि सूरज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२५X११, १०X३२). शाश्वतजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभाननजिन; अंति: लखमीवजे० आंणी रंगे, ढाल-७, गाथा - ३१. ८८७२२. (+) साधु उपमा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : साधुरी उपमा., संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, १८४५२). १. पे. नाम. मुनि की ८० उपमा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, ले. स्थल. तीवरी, प्रले. सा. गुमानाजी शिष्या, प्र.ले.पु. सामान्य.. ८४ उपमा-मुनि की, मा.गु, गद्य, आदि: सम्यकत सामायक १८ पाप; अति लोभणी गरमी दुर करइ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८७२३. (+) महावीरजिन गौतमस्वामी पृच्छा, सज्झाय व पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३. कुल पे. ९, प्र. वि. संशोधित - अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५X११, १५X४९-५१). १. पे. नाम. गौतमस्वामी पृच्छा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीरजिन गौतमस्वामी पृच्छा, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभूसु गोतमस्वामी; अंति: मेरी आवागम निवार, गाथा - १७. २. पे नाम. चित्रसंभूति सज्झाव, पृ. १आ-२, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि चीत कहे विर्मरायने अति ते सीवपूर वरसी हो, गाथा-२०. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि जनम वनार्सथान माता; अंति: सिद्धि मंगल करण, पद- १. ४. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. . जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: (१) सुमत की सेज गया रे, (२) लाभ नहीं लिया जिनंद, अंति: जीन० भव धुल कुगर भजक, गाथा-४. ५. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पु,ि पच, आदि पीया वीन झुर झुरइ अति नेम वीन सेज रही सूनी, गाथा-४. ६. पे. नाम. राजिमतीसती विलाप लावणी, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: दे गया दगा दिलदार; अंति: जीनदास० लावनी गाई रे, गाथा-४. ७. पे. नाम औपदेशिक वारहमासा, पृ. २आ, संपूर्ण. Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ " मु. ऋषि, पु,ि पद्य, आदि: चेत चितामनमाहे वीचार; अति ऋष० खेवा पार होता है, गाथा-१३. ८. पे नाम. सातवार लावणी, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: दीतवार मै दुनीया भोर; अंति: लाल० माधोपुर मझार रे, गाथा-९. ९. पे नाम औपदेशिक लावणी, पू. ३अ, संपूर्ण. " कबीर, पुहिं., पद्य, आदि जीनजीसु लगा रहे मेरे अंति: कवीर० मीलन की आसा, गाथा- ६. ८८७२४. विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५१०५, १७५७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ', १. पे नाम असमाधिस्थानक २० बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. २० बोल असमाधि, मा.गु., गद्य, आदि: अतही उतावलो न चालइ१; अंति: (१) एषणा सुमति न पालइ२०, (२) स्थानिक समवायांगे, कडी - २०. २. पे. नाम. बत्तीस ओपमासील उपरे, पृ. १अ, संपूर्ण. शीलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: तारा माहे चंद्रमा अति वासुदेव ३२ तिमसी०. ३. पे. नाम तेतीस आसातना, पृ. १अ, संपूर्ण. ३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, आदि: गुरू आगले चाले तो आस अंतिः सम आसण बेसइ आसातना३३. ४. पे. नाम. तीस मोहणीस्थानक बोल, पृ. १आ, संपूर्ण ३० बोल- मोहनीय कर्मबंध स्थानक, मा.गु., गद्य, आदि: त्रस जीव पंचेंद्री; अंति: सित्तर कोडाकोडि३०. ८८७२५ (-) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५X११, १०X३९). सीमंधरजिन स्तवन, मु. कनकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वाम सेवक; अंति: कनक० पंचमी गति दाइको, ३९५ गाथा - ११. ८८७२६. तीर्थंकरना ३४ अतिशय व ३५ वाणी गुण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक अनुमानित दिया " गया है., जैदे., (२५.५X१०.५, ३०X७-२३). ९. पे नाम तीर्थकरना ३४ अतिशय पू. १अ १आ, संपूर्ण ३४ अतिशय नाम, मा.गु., गद्य, आदि अद्भूत रूप अद्भूत, अंति (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. अंक- १९ तक लिखा है.) २. पे नाम तीर्थकरनी वाणीना ३५ गुण, पृ. १आ, संपूर्ण ३५ जिनवाणीगुण वर्णन, मा.गु., सं., गद्य, आदि: १ संस्कृतादिक जे वाणी, अंति: बोलता प्रवास न उपजड़, अंक- २८. ८८७२७ (+) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३१, चैत्र शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. देवग्राम, प्रले. ग. शिवदतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५x११, १५X४२). आदिजिन १३ भववर्णन स्तवन, मु. खुशालविजय, मा.गु., पद्य, आदि सरस्वति पाय प्रणमी; अति खुस्याल० अविचल राजरे, गाथा २४. ८८७२८. वृद्धदत्त व्यापारी सज्झाय व भाषाभेद विचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२४.५४११, २३X६२). १. पे. नाम वृद्धदत्त व्यापारी सज्झाय अनुकंपादि दान विषये, पृ. १अ १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुदेव नमस्कार; अंति: (-), (पू. वि. वृद्धदत्त कंपीलपुर में प्रसंग अपूर्ण तक है.) २. पे नाम भाषाभेद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रथम पेटांक के बीच की खाली जगह पर यह कृति लिखी गई है. मा.गु., गद्य, आदि (१) कतिविहाणं भाषा, (२) ज० जनपदसत्य जे जीण; अति: ए बीजो भेद कहीवर २. ८८७२९ (१) २४ जिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित संशोधित, जैदे., (२५.५x१०.५, १७४५४). ! י For Private and Personal Use Only २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति तास सीस पभणे आणंद, गाथा - २९. Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३९६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८७३०. (+) इक्षुकारसिद्ध चौपाई ढाल ४, संपूर्ण, वि. १८४४ मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, पालि, प्रले. कीजुराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५x१०.५, १३x२९). इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: (-); अंति: खेम० ए भल आ च्यार, प्रतिपूर्ण. ८८७३१. शांतिजिन स्तवन, जंबूस्वामी सज्झाय व रेवती श्राविका सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७२३, चैत्र, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X११, १८x४४). १. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज उलग; अंति: मोहन० रूपनो ललना, गाथा-७. २. पे. नाम, जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, ले. स्थल, वणोद, प्रले. पं. खुशालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि राजग्रही नगरी वसे अति सिद्धिव० उवज्झावा रे, गाथा १३. ३. पे. नाम. रेवतीश्राविका सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. वल्लभविजय, मा.गु., पद्य, आदि सोवन सिंघासण रेवती; अति: सुफल फल्यो संसार रे, गाथा-१०. ८८७३२. चतुर्विंशतिजिन स्तवन व शीतलजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., ( २६११, ११x४२). १. पे नाम, चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- अष्टमीतपगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि वृषभ लंछन आदिजिणंद प; अति जस ध्यान धरइ नीसदीस, गाथा - २४. २. पे. नाम शीतलजिन स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि सीतलनाथ सदा सुखदाइ, अंति: सीस पदमदीइ आसीस, गाधा ४. ८८७३३. (+४) देवसिकप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है. वे. (२४४१०.५, १५४३४-४३). देवसिप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम जयतिहुंअण कही; अंति: श्रावक सामायिक पारे... ८८७३४. (+) असज्झाय विगत, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२५-५x११, १५X३९). 3 "" खरतरगच्छीय शुद्ध समाचारी, मा.गु.से., गद्य, आदि धूंअरि पडइ तिहां ताइ अति पजूसण आराधीये. ८८७३५ (+) सिकारपचीसी व नेमराजिमती पद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, ले. स्थल, रुपनगर, प्रले. गुला, " प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी सिकार संशोधित, जैवे. (२६११, १५-१८४३४-३८). १. पे. नाम. सिकारपचीसी, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. शिकारपच्चीशी, मु. हरखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुंतो हुं तो सिकारी; अंति: सुवाय हरकवीज करजोर, गाथा-२५. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: भव भव केरी प्रीत धरी; अंति: भवना म्हारा बंधण तोड, " गाथा - ९. ८८७३६. (+) थावच्चामुनि सज्झाय व दानशीलतपभावना प्रभाती, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित संशोधित, जै. (२६११, १५४४५). १. पे. नाम. थावच्चापुत्र सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. देव, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: श्रीजिननेमि समोसर्वा अति रे श्रीसंघनइ जयकार, गाथा- २३. २. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. १आ, संपूर्ण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि रे जीव जिणधर्म कीजीय; अंतिः सेवता पामइ सुख बाहर, गाथा ६. ८८७३७ (*) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. लखमीदास पठ. पं. कांतिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है जैदे. (२५x११, १०X३२-३५ ). आदिजिन स्तवन, श्राव. जीवराज शिवराज, म., मा.गु., पद्य, आदि: ० धन धन मरूदेवि नंदन; अंति: गाता झाले परम आनंदा, गाथा-९, (वि. आदिवाक्य प्रारंभ में खंडित है.) For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ३९७ ८८७३८ (+) नेमिजिन फाग, संपूर्ण, वि. १८३४, फाल्गुन शुक्ल, १, शनिवार, मध्यम, पू. १, ले. स्थल मेडता, पठ. सा. गुला आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६X११, १९×३३-४५). मिजिन फाग, मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि भोग्या रे मन भाइयो र अति काई वरत्यौ जयकारो रे, गाथा-३०. ८८७३९ २४ तीर्थंकर मातापितानामादि, संपूर्ण, वि. १९०२, चैत्र शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १ ले, स्थल, सूरतबंदर, प्र. ग. भीमविजय, अन्य पं. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित. दे. (२५४११, १३x२९). , २४ जिन माता-पिता नामादि यंत्र, मा.गु., को., आदि: श्रीऋषभ वनीता नाभि; अंति: मातंग सिद्धाइ पीत ११, अंक-२४. ८८७४०. कलंकी जन्मपत्री, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X११.५, १६x४२). कलंकी जन्मपत्री फलकथन, प्रा., मा.गु., रा., गद्य, आदि: तिथौ गाली प्रकरणादिक; अंति: (-). ८८७४१. आर्द्रकुमारमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-६ (१ से ६ ) - ३, प्र. वि. हुंडी: चोडालियो, जैवे. (२५x१०.५. ११x४२-४५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आर्द्रकुमारमुनि सज्झाय, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: सकल जैन गुरु प्रणमुं; अंति: कनक० भणतां सब सुखकार, ढाल-५, गाथा- ४९, संपूर्ण. ८८७४२. पांडव रास- ढाल - १२० एवं १४४, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५X११, १९x५०). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य वि. १६७६, आदि (-); अति (-) (प्रतिपूर्ण, पू. वि. ढाल १२० एवं १४४ लिखा है.) ८८७४३. (+) सीमंधरस्वामी स्तवन व मुनिराज २७ गुण धमाल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. राम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ- संशोधित. वे., (२५.५x११, २०४८ ) - १. पे नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पू. २अ, संपूर्ण, सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: श्रीमादर साहेबा अरस अंति: रायचंद० चोमासै लाल, गाथा - १४. २. पे नाम मुनिराज का २७ गुण धमाल, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मुनिराज २७ गुण धमाल, मु. चंद, मा.गु., पद्य, आदि पंचमहाबरत मुनिवर धार; अंति: चंद० आतम हीत जयकार, गाथा - १७. ८८७४४. भरतबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. खेतसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित. दे., (२४.५x१०.५, ९५३३). भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसुंदर वंदे पाय रे, गाथा-७. ८८७४५. पंचमीतप स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित. जैवे. (२५.५x११, १३३५). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अति संघ सवल सुखदाय रे, ढाल - ५, गाथा - १६. ८८७४६ (२) शिवकुमार गीत संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६x११, १३४३८). 1 शिवकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मरथ राय वीतशोकापु; अंति: रे तस पाए हुं दास, गाथा-१६. ८८७४७. सौभाग्यपंचमी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पू. ३, प्रले. पंन्या. खुशालविजय (गुरु पंन्या. हस्तिविजय); गुपि. पंन्या. हस्तिविजय (गुरु ग. चतुरविजय); ग. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५.५४११, ११४३५). सौभाग्यपंचमी स्तोत्र, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि सरसति मात पसाउले गुर अंतिः कुअर० ज्ञान सदा भजड, गाथा - ३५. ८८७४८. (+) त्रिपदी अधिकार, पक्खी पोसह, तीर्थंकरगोत्रबंधादि विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, अन्य. मु. मनोहर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६४११, ४६-६०x२३-२९) विविध विचार संग्रह, गु. प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: मायाउयाणु उगे क० मात; अति धर्म ए ग्रंथाकार छे. For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८७४९ (+#) १८ हजार शीलंगरथ विचार व आलोचनागरथ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १३-१६४४८). १.पे. नाम. १८ हजारशीलांगरथ विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.. १८ हजार शीलांगरथ, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: जे नो करंति मणसा; अंति: १८००० इ भेदगाथा थाइ. २. पे. नाम. आलोचनांगरथनो अर्थ संक्षेपमां, पृ. १आ, संपूर्ण. आलोचणा रथ, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: कया ओसरणो नाणी; अंति: मिलि १८००० गाथा थइ. ८८७५० (#) धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३३). धर्मजिन स्तवन, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६८, आदि: धरमजीणेसर धर्मना धोर; अंति: भव भव पार उतारो, गाथा-८. ८८७५१ (+) साधारणजिन स्तवन, महावीरजिन स्तवन व प्रियविरह गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १३४३२). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: अटके नैयना प्रभु चरण; अंति: नवल. रस पीवे घटके, गाथा-३. २. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: झूमर झुमकत झुमझम; अंति: प्रभुगुण गहीया, गाथा-१०. ३.पे. नाम, प्रियविरह गीत, पृ. १आ, संप मा.गु., पद्य, आदि: कांमण कांइ जाणो छो; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभिक दो पद लिखा ८८७५२. (+) नवनिधि नाम व समोसरण विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ६४३२-४३). १.पे. नाम. नवनिधि नाम सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नवनिधि स्वरुप, प्रा., पद्य, आदि: निसप्पेपंडयए पिंगलएस; अंति: भरहाहिवचक्क वट्टीणं, गाथा-१३. नवनिधि स्वरुप-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नैसपनामा निधांन१; अंति: चक्रवर्ती तेहनइं. २.पे. नाम. समोसरण विचार सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. समवसरणविचार गाथा-देवेंद्रकृत, प्रा., पद्य, आदि: सोहम्माहिवइकउ सरणं; अंति: सासणेवि गुणविणेआ, गाथा-३. समवसरणविचार गाथा-देवेंद्रकृत-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सोधमेंद्रनो कह्यौ; अंति: जिनसासननउगुण जाणवउं. ८८७५३. आलोयणा विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४१०, २१-२६x४७-५५). आलोयणाविधि संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: भिभमास क० लूखं१ लघु; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्रावकप्रायश्चितगाथा-९ 'एएसं जं चरणं परिहारविधि तंतु' पाठ तक लिखा है.) ८८७५४. (+) खंधकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७४५०). खंधकमनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वैर न करज्यो जीवसुं; अंति: जिणधर्म कीधो उजलो, ढाल-२, गाथा-४३. ८८७५५. आदिजिन स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११,११४४०). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ जिनवर अनंत; अंति: प्रेम० आपो तिणिरतन्न, गाथा-४. २. पे. नाम, आदिजिन स्तुति-शत्रुजयमंडन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धप मप धोउं धोउं मादल; अंति: धुं संपदा भरपुरजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. विजयसेनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिकुलगयण विभासण; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ८८७५६. २४ तीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. अमेदा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तीर्थंकरनो., जैदे., (२६४११, २०४४०). For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ २४ जिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ कीजे; अंति: भक्ति द्यो कंठ मेरी, गाथा-३१. ८८७५७. साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, ११४४४). साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मा.गु., पद्य, आदि: सकल देव जिणवर अरिहंत; अंति: भाषत मोक्षिसख नवकरा, गाथा-१५. ८८७५८. (2) स्तवन संग्रह व ८ आत्मा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४११, १६४४८). १.पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण वरसो रे स्वाम; अंति: सुं मलवा मन साचुं, गाथा-५. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ना करीये रे नेडो; अंति: रंगे वरिये जी नगणा, गाथा-७. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. पुण्यउदय, मा.ग., पद्य, आदि: परभाते गोतम प्रणमीजे; अंति: प्रगट्यो परधान. गाथा-८. ४. पे. नाम, आत्मा नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ आत्मा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दिव्य आत्मा१ कषाये; अंति: आतमा७ वीर्ज आत्मा८. ८८७५९ (+) कृष्णरुक्मणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. शिवजी ऋषि; पठ. सा. गुरां आर्या; सा. गोमती आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४३६-३९). कृष्णरुक्मिणी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सारदा सतीना वीनवू; अंति: मीठा मीलीरोसणा, गाथा-२६. ८८७६० (+#) आठ मद, आठ कर्म, सात भय, बारह भावनादि नामावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१,प्र.वि. पत्रांक नहीं हैं., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११, २१४६०). __ बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जातिमद१ लाभमद २; अंति: पुत्र १० नवनारद ९. ८८७६१ (+) दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय व पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४०). १.पे. नाम. दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, म. लालविजय, मा.ग., पद्य, आदि: सारद बुद्धिदाई सेवक; अंति: लालविजय निसदीस, गाथा-१०. २. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमि पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ८८७६२. (+) जिनप्रभसूरि व जगडूशाहश्रेष्ठि प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. पं. जीवरंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४८). १.पे. नाम. जिनप्रभसूरि प्रबंध, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ____ उपा. रविवर्द्धन गणि, सं., गद्य, आदि: खरतरपक्षे श्रीजिन; अंति: एवं कलावपि स्मारितः. २. पे. नाम. जगडूशाहश्रेष्ठि प्रबंध, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: पंचालदेशे भद्रेश; अंति: धार इति विरुदं जज्ञे. ८८७६३. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. श्राव. वीरजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३५-४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ८८७६४. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११, १४४४६-४८). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्णं; अंति: बुद्धबोहि करणिक्काया, गाथा-४९. For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८७६५ (+) २५ बोल थोकडो, संपूर्ण, वि. १९११, कार्तिक कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. रतनगढ, प्रले. पं. कल्याणचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसंतनाथजी प्रासादत् सुख कृत्वा. श्री केसरीयानाथजी प्रसादात् रामजी. गुरुदेव प्रसादात् कालागोरा भैरुजी माहारज., संशोधित., दे., (२५४११.५, १५४३५-४२). २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: १ देवगति २ मनुष्यगति; अंति: संपराय ५ जथाख्यात. ८८७६६. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३१, आषाढ़ शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अर्गलपुर, दे., (२५.५४११,१६x४५). औपदेशिक सज्झाय-धर्मदलाली, मा.गु., पद्य, आदि: दलाली इस जीवन कीधी; अंति: आगे थारो इकतार, गाथा-३१. ८८७६७. (+) आत्मानी आत्मता, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. सूर्यपुर, प्र.वि. श्री पार्श्वजिन प्रसादात्., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, ११४३३-३७). आत्मा की आत्मता, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यात प्रदेशी१; अंति: ध्यायवा योग्य छइं. ८८७६८. बासठ मार्गणाद्वार यंत्र, संपूर्ण, वि. १९१५, वैशाख शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. फलोदी, प्रले. मु. रणधीर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, १९४३७-५७). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१)गइ१ इंदिअ२ काए३ जोए४, (२)देवगति १ नरकगति २; अंति: वाकी २० भांगा सून्य, (वि. सारणीयुक्त.) ८८७६९. अक्षरबावनी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. गोकल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, २१४६७). अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहि., पद्य, वि. १७३६, आदि: ॐकार सदा सुख देत; अंति: केसवदास सदा सुख पावै, गाथा-६२. ८८७७० (+) नेमराजिमती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १४४३४). नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिनमुख कमले राजे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ तक लिखा है) ८८७७१ (+) शत्रुजयविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४१). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सारंगमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १६४९, आदि: सकल सांमिणि सदा समरी; अंति: आज मुझ आस्या फली, ढाल-४, गाथा-३६. ८८७७२. बीजतिथि चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, दे., (२५४११,७४४०). बीजतिथि चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: बीजराज करी सेवीइं; अंति: करे श्रीशुभवीर हजूर, __ गाथा-७. ८८७७३. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११, २४४१४-१७). पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: बहु मुगति कहे सुणो; अंति: ए तो भविक० इंसारीजी, गाथा-७, (वि. अंतिमवाक्य आंशिकरूप से खंडित है.) ८८७७४. (+) गौतमपृच्छा १४ बोल व गौतमपृच्छा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १९४४०-४२). १. पे. नाम. गौतमपृच्छा १४ बोल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवंत श्रीमहावीर; अंति: लाख सासउसास लेवै. २.पे. नाम. गौतमपृच्छा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीगौतमस्वामी हाथ, (२)एक नवकारनो काउसग्ग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रश्न-५ तक लिखा है.) ८८७७५. १६ सती सज्झाय, पार्श्वजिन छंद व परमेष्ठी नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र १४२ हैं., दे., (२५४११, २३४१५). १. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४०१ वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: उदयरत्न० सुख संपदा ए, गाथा-१७, (वि. गाथांक नहीं है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, पृ. २अ, संपूर्ण... मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: संखेसरोजी आप तूठा, गाथा-७, (वि. गाथांक नहीं है.) ३. पे. नाम. परमेष्ठि नमस्कार, पृ. २आ, संपूर्ण.. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ८८७७६. अरणिकमुनि सज्झाय, दानशीलतपभावना सज्झाय व मांगलिक गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:अरणक., जैदे., (२५४११, १८४३५). १. पे. नाम, अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सकल जाण सासण घणा; अंति: रे चवणे जासी मोख, ढाल-५. २.पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: सामीजी मारी विनती; अंति: गया वरत्या जै जैकार, गाथा-१०. ३.पे. नाम. मांगलिक गाथा, प. २आ, संपूर्ण. मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरहंता मंगल मुझ छे; अंति: तो मनवंछत फल पावसइ, श्लोक-८. ८८७७७. ऋषभदेव लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११, ३३४२०-२२). आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडण, मा.गु., पद्य, आदि: खटक देस में धुलेवनगर; अंति: खबर नहीं प्रभु घरकी, गाथा-१०. ८८७७८. (#) सिद्धचक्र स्तवन व नेमराजिमती नवभव स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४३०-३३). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: संघ सयल जयकार, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है., वि. अपूर्ण कृति है इसलिये परिमाण स्पष्ट नहीं है.) २.पे. नाम. नेमराजिमती नवभव स्तवन, पृ. २आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: नेमजी आव्या रे सहसाव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८८७७९. छुटकबोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११, १८४३१). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. सारिणीयुक्त.) ८८७८०. मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १४४४०). मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पुर सुग्रीव सोहामणो; अंति: पामी सीवसख ठाम हो, गाथा-१२. ८८७८१ (2) २० विहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पठ. श्रावि. मनु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५,१५४४३-४५). २० विहरमान स्तवन, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी गोयम गोयम; अंति: श्रीसमरचंदि गाविया, ढाल-२, गाथा-३६. ८८७८२. सारदादेवी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १९४५१). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: आस्या सफल फलजो ताहरी, गाथा-३५. ८८७८३. दीपावलीपर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१०.५, १०४३८-४३). दीपावलीपर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (१)श्रीवीरप्रभु तीन जगत, (२)भगवानश्री महावीर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "पंचअनुत्तर ने जावण वाला मुनि ८०० आठ" पाठांश तक लिखा है.) ८८७८४. ३६ बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२४४११, १४४३५). ३६ बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: एगविहे असंयमे एगे; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "आठकर्म ज्ञानावरणी द्रसणाव" पाठांश तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८७८५. पंचमीतिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११,१०४२७). पंचमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुनरपि पांचम एम वदे; अंति: जिहां सुख अनंतसु लबद, गाथा-८. ८८७८६. थलीभद्रमनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, जैदे., (२५४१२,१२४३९-४१). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीस्थूलिभद्र मुनि; अंति: तेहने करीए वंदना जो, गाथा-१७. ८८७८७. पंचमीतिथि स्तुति, एकादशीतिथि स्तुति व सामायिक सूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. ३, दे., (२४४११, ९४३२). १.पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. ९अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, गाथा-४, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुणहर्ष० तणा निशदिश, गाथा-४. ३. पे. नाम. सामायिक सूत्र, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आवश्यकसूत्र- हिस्सा करेमिभंते सूत्र, प्रा., प+ग., आदि: करेमि भंते सामाइअं; अंति: (-), (पू.वि. "अणायारो अन्नत्थ" पाठ अपूर्ण तक है.) ८८७८८. (+) १२ व्रत चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ९४२४-३३). १२ व्रत चौपाई, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १५३४, आदि: वीरजिणेसर प्रणम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ तक है.) ८८७८९. इलाचीकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४११.५, ९४२१). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धदायक सदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ गाथा-१३ अपूर्ण तक लिखा है.) ८८७९० पोटला नारीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४३८). पोट्टिला नारी सज्झाय, रा., पद्य, आदि: पोटीला नाम तेह सो; अंति: कहता मन भावइ, गाथा-११. ८८७९१. दशार्णभद्र ऋद्धिवर्णन कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १४४४४). दशार्णभद्र ऋद्धिवर्णन कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: अठषट चारिहजार धार गय; अंति: तलि नीकसे हइ जमेरा, गाथा-६. ८८७९२. तपचिंतवणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. कानजी; पठ. श्रावि. वखतुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तपचींतवणा., जैदे., (२५.५४११, १७X४९). तपपद सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अणसण उणोदरी भिख्याचर; अंति: प्राणी संसार में. ८८७९३. (+) खामणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४११.५, १५४३२). खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं अरिहंतने; अंति: गुणसागर सुखकार करो, गाथा-१५. ८८७९४. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हंडी:मौनेकादसी., जैदे., (२५४११, १०४२७-३०). मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति: समयसुंदर कहो द्याहडी, गाथा-१३. ८८७९५. जीवादिषद्रव्यस्वरूप, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(१ से २)=४, ले.स्थल. बीलाडानगर, जैदे., (२५.५४११, १८-१९४५४-६०). षड्द्रव्य स्वरूप, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: संस्थान अयोघनवत् ५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., दो प्रकार के संसारी जीव थावर त्रस का वर्णन अपूर्ण से है.) ८८७९६. १४ राजलोकमान चित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४४ हैं. पंक्ति-अक्षर अनियमित., दे., (२५४११.५). For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४०३ १४ राजलोकमान यंत्र, मा.गु., चि., आदि: (-); अंति: (-). ८८७९७. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १०४३७). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. धर्मसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वरपास सुणो; अंति: धर्मनी भवो भव भावना, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नही लिखा है.) ८८७९८. (+-) सामायिक लेवा-पारवा विधि व युगमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२४४११.५, १०४२४). १. पे. नाम. सामायिक लेवा-पारवानी संक्षिप्तविधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सामायिक लेवा-पारवानी विधि, मा.गु., प+ग., आदि: इच्छामी० इछाका० अरीआ; अंति: भणु सामाइविइ जुतो. २. पे. नाम. युगमंधरजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयुगमंदिरने कहे; अंति: जिनविजये गुण गायो रे, गाथा-८. ८८७९९. धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, १४४४१). धन्नाअणगार सज्झाय, म. ठाकरसी, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी रे धना अमीय; अंति: गाया हे मन में गहगही, गाथा-२२. ८८८०० (#) भक्तामरस्तोत्र टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३२-३४). ___ भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो वृषभनाथाय; अंति: सर्वथोक भला हुवै सही. ८८८०१. परमाणंद गीत व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. हेमरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४४६). १.पे. नाम. परमाणंद गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. म. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी माहरउ निरुपम; अंति: अविचल ब्रह्म सरूप रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, पृ. १आ, संपूर्ण... पुहि., पद्य, आदि: मल्लां मको चढि मनार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक लिखा है.) ८८८०२. औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्र १४२ हैं., दे., (२४४१०.५, २६-३०४२१-२५). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-कुनारी परिहार, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: के जाणे परणता; अंति: जुओ राजन हृदय विचारी, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम, श्रावकना २१ गुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहिए मिलस्ये रे; अंति: सफल जन्म तिण लाधो जी, गाथा-२१. ३. पे. नाम. औपदेशिक हमची-जीवहितशिक्षा, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वर्धमान पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिनि चरणे नमिने; अंति: वधमान० अजुयालइ रे, गाथा-२३. ४. पे. नाम. प्रभावत्यादि चेटकसप्तपुत्री विवरण श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रभावती पद्मावती; अंति: श्रेणिक प्रिया, श्लोक-४. ८८८०३. (#) ज्योतिष, पार्श्वजिन स्तवन व कृष्ण पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४४२). १.पे. नाम. ज्योतिष, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिषसारणी संग्रह*, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८२१, फाल्गुन कृष्ण, ४, शनिवार, लिख. मु. चंद्रविजय; प्रले. चुतरा, प्र.ले.पु. सामान्य. ग. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अंगी अजब बनी हे गुला; अंति: साती मिथ्यात्व की, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. सूरदास, मा.गु., पद्य, आदि: नट नारायण गाओ नागरीऐ; अंति: मलनकुं चरनकमल चितलाओ, गाथा-३. ८८८०४. गिरनारकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८, फाल्गुन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. खंभायत, प्रले. मु. शिवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ६४३१-३५). गिरनारतीर्थ कल्प, म. ब्रोद्र; सरस्वती, सं., पद्य, आदि: श्रीविमलगिरेस्तीर्था; अंति: संस्तवं तुष्टयै, श्लोक-२३. गिरनारतीर्थ कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीविमलगिरि तीर्थ; अंति: काजे सीवमस्तु. ८८८०५. नंदीश्वर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४११.५, १३४२६). नंदीश्वरद्वीपजिन स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसर बावन जिनालये; अंति: जिनचंद्र गुण गावैरे, गाथा-१५. ८८८०६. (#) पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १८४४०). पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमान पट्टे; अंति: श्रीजिनकृपासूरि. ८८८०७.(+) पडिकमण विधि व चैत्यवंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १६४३५). १.पे. नाम. प्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम अरीयावही पडिक्; अंति: माथै मुगट घाती जै. २.पे. नाम. चैत्यवंदन विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. चैत्यवंदन विधि-खरतरगच्छीय, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उभा होई तीन नवकार; अंति: माहोमाही वंदणा कीजै. ८८८०८. सीमंधरजिन स्तवन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १७४३१). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरजी सुणजो; अंति: दिजो सेवपुरवासजी, गाथा-७. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तुम सैती नही बोलू; अंति: सेती भल बोलहो रिषभजी, गाथा-७. ८८८०९. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. इल्लादूर्ग, जैदे., (२३.५४११.५, १२४३६-४१). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: अमृत वचने रे प्यारी; अंति: लब्धे० गिरि सुहंकर, गाथा-२६. ८८८१० (+) क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८३२, माघ शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. खांभोरनगर, प्रले. मु. शिवदत्तसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, २०४५४). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षमागुण; अंति: भणै चोबीह संघ जगीसजी, गाथा-३६. ८८८११. शियलव्रत सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४११, ११४३५). १. पे. नाम. शियलव्रत सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, म. हर्षकशल, मा.गु., पद्य, आदि: वचन सुण्या ब्राह्मण; अंति: णाजी दिनदिन चढतै नर, गाथा-११. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाखीणो सोहावें जिनजी; अंति: वांद श्रीगुरु हीर, गाथा-७. ८८८१२ (+) स्तुति व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, २४-२६४५९). १.पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. ग. सुमतिकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. सिंहविमल, पुहिं., पद्य, आदि: मगध देश को राज राजे; अंति: सीहविमल० महाव्रतधारी, गाथा-२१. २. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: भव्याणेग समिहियत्थकर; अंति: सययं अम्माण अंबासुरी, श्लोक-४. ३. पे. नाम, नेमिजिन स्तति-मौनएकादशी महात्म्य गर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org नेमिजिन स्तुति - मौनएकादशी महात्म्य गर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: मीनएकादशी मुझ, अंति करइ एम गुण उच्चरह, गाथा-४. ४. पे नाम. दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: पय पणमिव सरसति वरसति; अंति (-) (पू. वि. गाथा ११ अपूर्ण तक है.) ८८८१३. (+) अवंतिसुकुमाल रास, अपूर्ण, वि. १८९८ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ५-१ (२) ४, ले. स्थल सिवगड, प्रले. श्राव. मगाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : एवताकुमार., संशोधित., जैदे., (२३X१०.५, १७२९). " अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनीवर आर्यसुहस्ती, अंति: संतहरख सुख पावै रे, ढाल १३, गाथा- १०३ (पू. वि. गाथा १८ अपूर्ण से गाथा ४४ अपूर्ण तक नहीं है.) ८८८१४. नेमिजिन गीत संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. खुशालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४.५X१०.५, १४४४१). १. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८२६, चैत्र शुक्ल, १३, ले. स्थल. भटनेर. - ग. जीतसागर, पु िपच, आदि तोरण आया हे सखी कठै अंतिः प्रीत करे जी के जी, गाथा १६. २. पे नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण वि. १८२६, वैशाख कृष्ण, ३. मु. शांतिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि सखी री सांभल हे तू अति संतहरख गुण गाया हो, गावा- १५. ८८८१५. औपदेशिक सज्झाय व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्राव. गुलाला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४४१०.५ १२४३४). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नरभवनगर सोहामणुं; अंति: ज्ञान० हो वणजारा रे, गाथा-५. २. पे नाम साधारणजिन स्तवन-अध्यात्मगर्भित, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मेरा साहिब सुगुण अंति: नयविमल० गुण तव आया, गाथा- ९. ८८८१६. सज्झाय, पद व विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. हुंडी : मेतारज., दे., (२३.५X१०.५, २०४४८). १. पे. नाम. २ गाय संवाद सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. २ गाय संवाद पद, रा., पद्य, आदि: हरिया जव नित चरती; अंति: गए जोगी किसके मित, गाथा - १३. २. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: मासखमणरो पारणो मुनिः अति: खम्या करो सब कोई, गाथा- १५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ४०५ कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: कबीर इसा केउ ना मिल; अंति: ते बोलइ मरते वाणी, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: जहा मिए सिंघभिएण भिए; अंति: भित्तेण न करोति पापा, गाथा - १. ५. पे नाम. अवग्रह विचार, पू. १आ, संपूर्ण, पे. वि. पत्र के ऊपरी भाग में किसी प्रत का अपूर्ण हिस्सा है. आगमिक विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि (-); अंति: (-). , ८८८१७. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२३.५X१०, ११३०). For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि सारद नाम सुहामणुं अंति: रण० सेव करता सुख लहे गाथा - ३५. ८८८१९ औपदेशिक पदसंग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्रावि रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२x१०.५, १३X३३). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: रनवन सेती जडीयम गाई; अंति: होली जीम दीयो पूफाई, दोहा-५. २. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १अ १आ, संपूर्ण. Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव, मा.गु., पद्य, आदि: भवसागर में भटकत भटकत; अंति: (१)जाणो मन में समता आणो, (२)अलगा एकणा चित आराधो, गाथा-७. ८८८२० (+) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४११.५, ११४२९). सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारद माय प्रणमी; अंति: अमर नमे तुझ लली लली, गाथा-८. ८८८२१. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, ११४३४). आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे आपण ससनेहि; अंति: वृषभ लंछन बलिहारी, गाथा-६. ८८८२२. ८९ बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:बोल८९., जैदे., (२४४११, १७४४३). ८९ बोल संग्रह-औपदेशिक, रा., गद्य, आदि: सरधणा सुद्ध हूवै जिण; अंति: वाद विवाद न करे. ८८८२३. कल्याणतपो आनुपूर्वी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. मनोहरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचकल्याणक संक्षिप्त आराधना विधि सहित., जैदे., (२३४११, १४४१५). २४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा.,मा.ग.,सं., को., आदि: कार्तिकवदि ५संभव; अंति: पक्ष नेमिनाथ च्यवनं. ८८८२४. महावीरजिन निसाणी, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२३.५४११, १७४३५). महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाता सरसती सेवक; अंति: माणिक्यमुनी गावह, गाथा-३७. ८८८२५.(+) औपदेशिक सज्झाय द्वय व आठ बोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, २२४२४). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-क्रोध परिहार, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: बोल दसे की लाण उपजै; अंति: मैं गया दस की लाण रे, गाथा-१२. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-नरभव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: प्रथम नरभव दोहलो रे; अंति: धर्म थकी नवनाथ हो, गाथा-१२. ३. पे. नाम. ८ बोल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: ० जिणधर्म आदरो सार; अंति: बोल घणा छै सारो जी, गाथा-१३, (वि. आदिवाक्य का प्रारम्भिक भाग अपठनीय है.) ८८८२६. नेमराजिमती बारमासा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सीता, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४११, १८४३६). नेमराजिमती बारमासा, मु. अमरविशाल, मा.गु., पद्य, आदि: यादव मुझनैं सांभरै; अंति: वीनउ अमर विमांण, गाथा-१९. ८८८२७. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४७, भाद्रपद अधिकमास शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. मु. खीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२२.५४११.५, ११४३४). महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदाये; अंति: श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२१. । ८८८२८. (2) नमीराय सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४११.५, २१४३०). नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्र कहै नमीरायने; अंति: समयसुंदर सुखकामो रे, गाथा-२५. ८८८२९. स्थूलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. श्राव. चोभाचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, १३४३६). For Private and Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४०७ अपन स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; म. दीपविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: ___माग्य एसा टल्या रे, ढाल-९, गाथा-७४. ८८८३०. महावीरजिनकाल में तीर्थंकर गोत्र उपार्जकों के नाम आदि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११, १९४४५). १.पे. नाम. महावीरजिनकाल में तीर्थंकर गोत्र उपार्जकों के नाम, प.१अ, संपूर्ण. महावीरजिन तीर्थे तीर्थंकर गोत्र उपार्जक नाम, मा.गु., गद्य, आदिः श्रेणिकराजानो जीव; अंति: रेवती० उषधना देणहारी. २. पे. नाम. साढा पच्चीसदेशादि बोल संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक बोल, मा.गु., गद्य, आदि: बत्तीस साढादेस एक घर; अंति: चारित्र वीर्य आत्मा. ८८८३१. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक १-२ लिखा है, परंतु कृति अपूर्ण होने से पत्रांक अनुमानित है., जैदे., (२४.५४११, १२४३३). १. पे. नाम. थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुख सवाया हो रिषजी, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-८ से है.) २. पे. नाम, अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अर्बदगिरितीर्थ स्तवन, म. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आबुगढ तीरथ ताजा अष्ट; अंति: गाया जैनेंद्रसागर, ___ गाथा-८. ३. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेणक नरवर राजी; अंति: लीयो पौहता मुगत मझार, गाथा-१६. ४. पे. नाम, महावीरजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पावापुर महावीर जिणेस; अंति: जिणचंद० चितल्यावां, गाथा-५. ८८८३२. (#) औपदेशिक व वनमाली सज्झाय तथा शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १६४४०). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सुधो धरम मुकिस विनय; अंति: जेम चिरकाले नंदोरे. गाथा-९. २.पे. नाम. वनमाली सज्झाय, प. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वनमाली, म. पद्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे वाडी कारमी; अंति: तिलक० खोटि न लागै, गाथा-८. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजय नो वासी; अंति: बोले आ भव पार उतारो, गाथा-५. ८८८३३. (+) ९३ बोलनो बासठीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १८४३७-३८). ९३ बोल ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नोगरभ आहार पज्जता, (२)गरभ विना जीव किणने; अंति: गु०१४ जोग१५ ले०६. ८८८३४. तपोधिकार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११, १७४४७). तपविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान तप ज्ञानपूजा; अंति: मोदक १ जलगाडूवौ. ८८८३५. महावीर स्तवन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३५). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जससोम, मा.गु., पद्य, आदि: परमगुरु तुहई० उपगारी; अंति: जससोम० दिउ सारी, गाथा-९. २. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ.१आ, संपूर्ण. म. जससोम, मा.गु., पद्य, आदि: मोहरंग मोहि नचावइं; अंति: जयसोममुगतिनो दानोजी, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८८३६. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११,१५४४२-४७). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति: भगवंत भाव प्रशंसीउ, ढाल-३, गाथा-१९. . धर्मजिन गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ८८-८७(१ से ८७)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४४११, १०x२८). धर्मजिन गीत, मु. चिदानंद, पुहि., पद्य, आदि: तू जानें किरतार ते; अंति: साहिब राखो साथि, गाथा-६, संपूर्ण. ८८८३८. समोसरण गहुंली, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रावण शुक्ल, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. भोजाजी गोरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३१). समवसरण गहंली, पं. माणिक्यविमल गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल सजनि रे माहरी; अंति: माणक० सुख वेगे पावो, गाथा-१०. ८८८३९. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, जैदे., (२४.५४११, २१४४४). औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चडिया पडियानो अंतर; अंति: मति नवी काची रे, गाथा-४०. ८८८४० (#) पच्चक्खाण आगार यंत्र व इक्वीस बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, १२४५०). १.पे. नाम. पच्चक्खाण आगार यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., को., आदिः (-); अंतिः (-). २. पे. नाम. इक्वीस बोल-शीलगण, पृ. १आ, संपूर्ण. २१ बोल-शीलगुण, मा.गु., गद्य, आदि: शुद्ध मन शील पाले; अंति: वक पालै तै शाता पामै. ८८८४१ (4) जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११, १५४२८-३०). जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतचौवीसी आगे हुइ; अंति: (-), ढाल-४, गाथा-७३, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ की गाथा-१८ अपूर्ण तक लिखा है.) ८८८४२.(#) स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५१, आषाढ़ शुक्ल, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. जेसडा, प्रले. पं. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १५४३७-४१). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिसर जिनराय जी रेलो; अंति: मोहन कवि रूपनो रे लो, गाथा-६. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा वालमजीनी वाट; अंति: मारा पियाजीनी वात रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: घरे आवो तो पुछु एक; अंति: मुगत गया भली भातडली, गाथा-३. ४. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. सुविधिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: वाकै गढ फोज चढी है; अंति: दीधी नगारा की ठोर, गाथा-५. ५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: नेम जिणंद मोए प्यारो; अंति: नेम जिणंद मोए प्यारो, गाथा-५. ८८८४३. औपदेशिक व दानशीलतपभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १८४४२). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चेतन सुगर घणाजी; अंति: हे मन प्र उतारे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४०९ २.पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: भण गुण चटरो आईयो; अंति: गायसि करसिख वो पारो, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी ८८८४४. (+) ६२ मार्गणाद्वार विचार व ९८ जीवाल्पबहुत्व बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ४१४२२). १.पे. नाम. दिसीर उद्धार बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१)दिसि गइ इंदिय काए, (२)समचय जीव१ अप्काइया२; अंति: देवता तुला जाणवा. २.पे. नाम. ९८ बोल-जीव अल्पबहत्व, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ९८ बोल यंत्र-अल्पबहत्व, मा.गु., को., आदि: सर्वथी थोडी मनुषणी; अंति: (-), (पू.वि. क्रम-३१ पुरुषवेद तक है.) ८८८४५. सामायिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४११.५, १०४२६-३१). सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चतर नर सामायिक; अंति: ज्ञानवंत के पामे, गाथा-८. ८८८४६. पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२३.५४११, १०४३१). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ तक है.) ८८८४७. (+) सिंदूर प्रकरण का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४१०, १३४३२-३६). सिंदूरप्रकर-पद्यानुवाद, मु. राज, पुहि., पद्य, आदि: तप करि कुंभमध्य शोभा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) ८८८४८. पार्श्वजिन स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १७४५४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ___ मु. हर्षविजय पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: सयलसुहखाणि वरवाणि; अंति: गुरु हरखविजय जय करो, गाथा-२१. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गणशक्रभक्तं फलचैक; अंति: वार पूर्वीऋणाक्ष, श्लोक-२. ८८८४९. अणगारगुण वंदना व औपदेशिक बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१४११, १६४३५). १.पे. नाम. अणगारगुण वंदना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधगण वंदन, क. संदर, पुहिं., पद्य, आदि: पापपंथ परहर धर्मपंथ; अंति: संदर०वंदना हमारी है, गाथा-२. २. पे. नाम. औपदेशिक बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जीभ जोग और भोग जीभ्य; अंति: वाचा संभालक बोल. ८८८५०. औपदेशिक सज्झाय, औपदेशिक पद व देवकी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. त्रिकमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०, १४४४०). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सीख दीउं ते सांभलि; अंति: आणी आप आपण उतारो रे, गाथा-७. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सर्वे सांभरे रे; अंति: मुरेतु वणवु ठडे मेह, गाथा-५. ३. पे. नाम. देवकी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पभणे राणी देवकी हो; अंति: पाइय हो अमी आहाराकउ, गाथा-१२. ८८८५१. २४ दंडक, १४ गुणस्थानक व ३२ बोल बासठियो यंत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११, ११४३८). For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१० www.kobatirth.org १. पे नाम. २४ दंडक यंत्र, पू. १अ २अ, संपूर्ण, मा.गु., को., आदि: साते नारके येक डंडक अंति: जीवसत सुवा भूवाईया. २. पे नाम. १४ गुणस्थानक नाम, पृ. २अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पैला मीछायत गुणठाणा; अंति: अयोगीकेवल गुणठाणा १४. ३. पे. नाम. ३२ बोल बासठियो, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ३२ बोल ६ २ मार्गणायंत्र, मा.गु., को, आदि: १समचै जीवमै २अप्रज्य अंतिः ३२ प्रज्या० आहारीकदे०. ८८८५२. (+) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२x१०.५, १५X३९). . पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि हवै राणी पद्मावती; अति समयसुंदर० छुटे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची तत्काल, ढाल -३, गाथा-३३. ८८८५३. (+) मुनिसुव्रत गीत व शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. लखमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२x१०.५, २१x१५). १. पे. नाम. मुनिसुव्रत गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मुनिसुव्रतजिन गीत, मा.गु., पद्य, आदि मुनीसुव्रतजीनराया अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ५ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि जोर से जी जोर मारा; अंति केस जोर से जी राज, गाथा- १०. ८८८५४. नेमिजिन स्तवन व शंखेश्वरपार्श्वनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२.५X११, २२x१८). १. पे नाम, साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. १८-२२x१८). १. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि अवल गोखमें अमुलिक, अंतिः सेवा देवविजय जयकारी, गाथा- ७. २. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. ज्ञानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर तूंही देवाधिदे; अंति: ज्ञानविजय जयश्री वरी गाथा-७. ८८८५५. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. पत्र १x२ हैं. पत्रांक अनुमानित, दे., (२३४११, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि मे परदेसी दूर का अंतिः खुले निरंजन पद पाया, गाथा-४. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जब तु नाथ निंजना तब; अंति: रूपचंदसे गज सका लइया, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद. पू. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि हम लोक निरंजन लाल के अति रूपचंद० गुन गावे, गाथा ४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे साहिब तुमही हो; अंति: जस० आपो परम आनंदा, गाथा-५. ८८८५६. (+) पार्श्वजिन गीत व महाभद्रजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२४X११, १०x२८). १. पे नाम आजनैवधावो, पू. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत, माग, पद्य, आदि आजनै बधावो हे सहीयर अति प्रज भलै सुविहांण, गाथा- ७. २. पे. नाम महाभइजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४११ मा.गु., पद्य, आदि: मन मगन भयो महाभद्र; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखी ८८८५७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४,प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., दे., (२३४११, २७४२२). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. गजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: समरु सरसति सांमई; अंति: देज्यो सुख नीरवाण, गाथा-७. २. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो; अंति: समय० प्रउगमते सुर रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिनजि के आगे गुमान क; अंति: पसाए पाम्यो परमानंद, गाथा-६. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. गजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जिहा नेमीजिणंदा सुरप; अंति: कहे पाम्या परमानंदा, गाथा-३. ८८८५८. २४ जिन स्तुति, अरिहंतपद व सिद्धपद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. जतारण, प्रले. सा. तीजी (गुरु सा. छोटा सती); गुपि. सा. छोटा सती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तवन., दे., (२२.५४१०.५, १८४४०). १.पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भगवानदास, मा.गु., पद्य, आदि: पेला प्रणमरीषभदेव; अंति: भीमचरी छावणी माय, गाथा-९. २. पे. नाम, अरिहंतपद स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भगवानदास, मा.गु., पद्य, आदि: नीत नमु अरिहंतजी; अंति: गुण गाव्या रे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. सिद्धपद स्तवन, प.१आ, संपूर्ण. मु. भगवानदास, मा.गु., पद्य, आदि: निस दिन सिद्ध नमुं; अंति: सिद्धतणा गुण ग्रामजी, गाथा-९. ८८८५९ (+) ६ आरा मान व शीलमहिमा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, १६४३६). १. पे. नाम. ६ आरा मान, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पहलउ सूसूमसूसमनाम आर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आदिजिन आयुमान तक लिखा है.) २.पे. नाम. शीलमहिमा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सील पाल्यो सीतासती र; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है.) ८८८६०. मर्द कवित्त, नवपद स्तवन व कलियुग का प्यार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ३, दे., (२२४११, १०४२७-३०). १.पे. नाम. मर्द कवित्त, पृ. ६अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मर्द समसेर सकढाल; अंति: कदर सो मर्द जानै, दोहा-१. २. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. म. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: सह नरनारी मली आवो; अंति: पावै विनीतसागर मुदा, गाथा-७. ३. पे. नाम. कलियुग का प्यार, पृ. ६आ, संपूर्ण. व्यासदास, पुहिं., पद्य, आदि: सांवरियो मोटी पारै; अंति: भरोसा नाहु कीजीयै, दोहा-३. ८८८६१ (+#) चंदनबाला सज्झाय व ५ इंद्रिय विषयत्याग गीत, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४११, १४४३७). १. पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: धिन धिन दिन माहरि; अंति: सही सकल दखनु अंत रे, गाथा-१५. २. पे. नाम. ५ इंद्रिय विषयत्याग गीत, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: नागनि चंतवसि पइआलो; अंति: (-), (पू.वि. गाथ-५ तक है.) ८८८६२. () जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११, १६-१८४४०). जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी अगइ हुइ; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ८८८६३. (#) पार्श्वजिन निसाणी व औपदेशिक दोहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४११,१०४३३-३७). १.पे. नाम, पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण, प्रले. मु. रूपचंद यति; पठ. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: जिनहर्ष गावंदा है, गाथा-२६. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. ___पुहिं., पद्य, आदि: रोग जोग अरु राजसुत; अंति: ग्रहित फिर पिछतान, दोहा-२. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: ऐसे सहर बिच कोण दिवा; अंति: आगे भावभगत मन आण है, गाथा-५. ४. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. ज्योतिष दोहा, सहदेव, पुहिं., पद्य, आदि: रवि सेरी मंगल खाट; अंति: बीज परायो सहदेव कहै, दोहा-१. ८८८६४. राजमतिरहनेमि पंचढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२१.१४११, १३४२८-३१). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिद्धने आरिया; अंति: रीख रायचंदजी कनी जोड, ढाल-५. ८८८६५. आध्यात्मिक हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, ६x४२). आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसई कांबली भीजई; अंति: मुख कवि देपाल वखांणइ, गाथा-९. आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: कांबली कहतां इंद्री; अंति: कवि इम वखाणइं कहे. ८८८६६ (#) सिद्धचक्र सज्झाय, नवपद स्तवन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १९४३९). १.पे. नाम सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल; अंति: उतम० महिमा जाणीयो, गाथा-५. २.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८४३, आषाढ़ कृष्ण, ९, ले.स्थल. रामसीण. म. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणी हो कहै; अंति: जंपे हो बहु सुख पाया, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मोहन, रा., पद्य, आदि: उरंग लागो थाहरा रूप; अंति: मोहन विधते सनु रहो, गाथा-८. ८८८६७. (+#) स्वाध्यायसील अधिकार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १४४४८). औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंता रे सिख; अंति: कुमदचंद समय उलगौ, गाथा-१०. ८८८६८.(+) नेमराजिमती सज्झाय, नेमिजिन स्तवन व सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२३, श्रावण शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:तवन छै., संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १४४३७). १.पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, म. रंगसोम, रा., पद्य, आदि: विनवे राजल नारी हो; अंति: रुडे रे जयरंगे भणे, गाथा-६. २.पे. नाम, नेमजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४१३ नेमिजिन स्तवन, म. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: कालीने पीली वादली; अंति: कांति नमे वारो वार, गाथा-७. ३. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण... मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणी हो कहे सुण; अंति: जपे हो बहु सुख पाया, गाथा-५. ८८८६९ (4) चौद गुणस्थानक, सामायिक व खामणा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३४११, २८x१६-१८). १. पे. नाम. १४ गुणस्थानक सज्झाय, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिनेसर पय नमी रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ तक है.) २.पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीकमलविजय गुरु सीस, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से ३.पे. नाम. खामणा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. जै.क. समरो, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतजीने खामणाजी; अंति: सरवेसु मितर भाव, गाथा-८. ८८८७०. कुमतिनिरसन रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., जैदे., (२४४११, २०४१६). महावीरजिन स्तवन-कमतिउत्थापन समतिस्थापन, श्राव. शाह वघो, मा.ग., पद्य, वि. १७२६, आदि: श्रीश्रुतदेवी तणइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ८८८७१. गौतमस्वामी पद, स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८५, कार्तिक कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, ले.स्थल, आन्दाग्राम, प्रले. पं. बुद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, १३४४२). १.पे. नाम. गौतमस्वामी पद, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पहिं., पद्य, आदि: गोतमगणधर नमि हो अहनि; अंति: चीत नहि हम अमीये हो, गाथा-३. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमलाचल नित वंदीये; अंति: लहे ते नर चिर नंदे, गाथा-५. ३. पे. नाम, रोहिणीतप स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारे वासुपूज; अंति: रोहिणी गुण गाईया, ढाल-६, गाथा-३१. ४. पे. नाम, ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीतीर्थंकर वीर; अंति: विजयलक्ष्मीसूरि पावे, गाथा-४. ८८८७२. (+) कान्हडकठियारा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१०.५, १५४२९-३५). कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमु सदा; अंति: (-), (पृ.वि. ढाल-३ के दोहा-३ अपूर्ण तक है.) ८८८७३. (#) सम्मेतशिखरजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १०४३२). सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जसवंतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: समेतशिखर सोहामणो सखी; अंति: जनेंद्र अधीकार रे, गाथा-५. ८८८७४. सीमंधरजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी खंडित है., जैदे., (२४४११, १८x२४). १.पे. नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. विहरमानजिन स्तवन, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: पूर्व महाविदै मे; अंति: ए कीनी अरदासो जी, गाथा-११. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: श्रीमींधर साहबा अरज; अंति: जोग पीपाड चौमासै लाल, गाथा-२७. For Private and Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८८७५. नवकारफल कुलक, क्षमापना गाथा व प्रदक्षिणा गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. मीरापुर, प्रले. मु. मांडण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११,१८४४२-५०). १.पे. नाम. नवकारफल कुलक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __नमस्कार महामंत्र कुलक, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: घणघायकम्ममुक्का; अंति: संसारो तस्स किं कुणइ, गाथा-२६. २.पे. नाम. क्षमापना गाथा, प.१आ, संपूर्ण.. क्षमापना गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: जेमे जाणंति जिण अवरा; अंति: अमं पज विवयरु न पाउ, गाथा-६. ३. पे. नाम. प्रदक्षिणा गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रभातिमंगल स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: गोअम सुहम्म जंबू पभव; अंति: तथाहं प्रभुदर्शनं, गाथा-७. ८८८७६. २४ जिन राशि नक्षत्र रहस्य, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. नवलरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४११, १०४२२). २४ जिन राशि नक्षत्र रहस्य, मा.गु., गद्य, आदि: आगला तीरे रास; अंति: जोगथी गणीजै जोग लाभै. ८८८७७. (+) औपदेशिक सवैया व नमस्कार महामंत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४११, १८४५६). १.पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. सुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: जो दस वीस पची पचास; अंतिः प्राहा तुम कहा करी, दोहा-६. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. दर्गादास, रा., पद्य, वि. १८३१, आदि: श्रीअरिहंत पहिलै पद; अंति: होवे मंगलमाली, गाथा-१४. ८८८७८ (+) चोवीसजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. ग. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४११, ६४३६). २४ जिन चैत्यवंदन, मु. धर्मचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रउठि प्रणमु सदा; अंति: प्रभु पुजो धरी विवेक, गाथा-५. ८८८७९. (+) श्रावकप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी खंडित है., संशोधित., जैदे., (२३.५४११, ११४३५). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि; अंति: ४ लोगस्स० सज्झाय, (वि. सूत्रादि संक्षेप में दिए गए हैं.) ८८८८०. (+) नेमिजिन गीत व प्रहेलिका दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१०.५, १०x२८). १.पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: राजल बिठी मालीइं; अंति: हे मुझ घरे आस तो, गाथा-९. २.पे. नाम. प्रहेलिका दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: एक नानकडी कामनी तस; अंति: कामनी खातर देवा पठी, दोहा-१. ८८८८१. ३३ बोल थोकडो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:तेतीसरो., दे., (२३४११, १८४४३). ३३ बोल थोकडा-१संख्यक वस्तु से ३३संख्यक वस्तु, मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वी अप तेउ वाउ; अंति: (-), (पू.वि. गुरु ३३ आसातना १२ तक है.) ८८८८२. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:चौपदी., दे., (२३४१०.५, ८x२६). पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, पुहि., पद्य, वि. १८१८, आदि: वामानंदन साहिबा; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक लिखा है.) ८८८८३. १८ नातरा सज्झाय व १८ नातरा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १४४३५). १.पे. नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. पं. लेहरसागर गणि, प्र.ले.प. सामान्य. मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहला ने समरु रे पास; अंति: कांई हेतविजय गुण गाय, ढाल-३, गाथा-३०. २. पे. नाम. १८ नातरा विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ मा.गु., गद्य, आदि: भाई तिण कारण बेहुनी; अंति: सुसरो ते देवरनो पिता. ८८८८४. (4) साधु उपमा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:साधुरी उपमा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १६४३६). ३० उपमा-साधु की, मा.गु., गद्य, आदि: कांसाना तातरी कांसार; अंति: आवाधी पीडा उपजाव नही. ८८८८५. धर्मसिंघ गच्छाधिपती गुरुगुण भास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १२४३४). धर्मसिंघ गच्छाधिपति गुरुगुण भास, मु. नगजी, मा.गु., पद्य, वि. १७८२, आदि: श्रीचिंतामणिपाशजी; अंति: नगजी० गुण नीत गाव हौ, गाथा-११. ८८८८६. युगमंधरजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१०.५, १५४४७). १. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४४, आदि: जगगुरु जगमींदर; अंति: आया पापकरम देयो ठेली, गाथा-९. २.पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: माहाविदेह मे प्रभु; अंति: राय०साहिब दरेसण दीजे, गाथा-९. ८८८८७. औपदेशिक पद व नेमिजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१.५४११, २७४२०). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. विनयचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: नव घाटी लघ नरभव पायो; अंति: जिनवर उचरत वाणी एही, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. विनयचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: नेम वनावन व्याहन आए; अंति: सूरति मूरति भीनी, गाथा-७. ८८८८८.(-) ५ पांडव सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२२४१०.५, १५४३०). ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हसिनागपूर वर भलो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ तक है.) ८८८८९. सर्वानुभूतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१४११.५, ११४२८-३२). सर्वानुभूतिजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगतारक प्रभु विनवू; अंति: पूर्णानंद विलासरे., गाथा-१५. ८८८९० (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४११, १२४२६). १.पे. नाम. निदाउपरि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले. ग. मानकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-समता, मु. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहि गुरुचरण कमल नमी; अंति: हेमविजय कहइ सीस, गाथा-१३. २.पे. नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन धन्ना सालिभद्र; अंति: लहे ते रयणी दीह रे, गाथा-११. ३. पे. नाम. सीतासती गीत, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण, वि. १७३३, प्रले. ग. मानकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो प्रीया छोडी; अंति: पग भावे करीजी, गाथा-११. ४. पे. नाम, मनभमरा सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा कांई; अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा-९. ५. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रमक जमक वालो वीरजी; अंति: मुगतिसुख पावे रे, गाथा-३. ८८८९१. चित्रसंभूत कथा व विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३४, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोर, दे., (२०४११, २३४१७-२०). १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-१३ चित्रसंभूत कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. विविध विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. विविध विचार संग्रह, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (-). ८८८९२. पुण्यछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१४११, ३२४१७). पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२२ से ३३ अपूर्ण तक लिखा है.) ८८८९४ (#) नगर स्थापना वर्ष, अपूर्ण, वि. १८९१, फाल्गुन कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, प्र.वि. लिखावट से प्रत २०वी की प्रतीत होती है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, ११४३४). नगर स्थापना वर्ष, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: वीरना भाई वसावु छे, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., नगरक्रम-२१ से है.) ८८८९५. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१४११.५, २४४१६). शांतिजिन स्तवन, ऋ. रुगनाथ, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीसंतनाथजी का कीजे; अंति: चिंत्या म्हारी काटे, गाथा-१५. ८८८९६ (+#) अइमत्तामनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१०.५, १७४३७). ___अइमुत्तामुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पालासपुर नामा नगर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ की गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ८८८९७. (+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(३)=३, पठ. सा. विनयश्रीजी (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४१०.५, ११४३४). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, म. गणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुणी, ढाल-६, गाथा-४९. ८८८९८ (+) गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १५४५०). १.पे. नाम. सविधिनाथ गीत, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. सुविधिजिन गीत, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: विनयचंद्र इम भामइ हो, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. शांतिनाथ गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. शांतिजिन गीत, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर सांभलउ; अंति: विनयचंद्र मनध्यान रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. कुंथुनाथ गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. कंथजिन गीत, म. विनयचंद्र, मा.ग., पद्य, आदि: बहु दिवसांथी पामियउ; अंति: कुंथु जिणेसर पाय, गाथा-७. ४. पे. नाम. महावीर गीत, पृ. २आ, संपूर्ण.. महावीरजिन गीत, म. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन महावीर रे; अंति: नइ सेवक तणी रे, गाथा-७. ८८८९९ (+) शांतिजिन स्तवन, संखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन व सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, ८x२७). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सांतिजिणेसर प्रणमु; अंति: पुण गावे दयासागरसूरि, गाथा-१८. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पासजिन; अंति: सयल रिपु जीपतो, गाथा-५. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ८८९००. ५ पांडव सज्झाय व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४११,१३४३६). १. पे. नाम. ५ पांडव सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सह.) For Private and Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४१७ मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर दीपतौ; अंति: वरत्या जय जयकारजी, गाथा-१५. २.पे. नाम. सवैया ३१, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: कंचन भंडार पाय रंजन; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८८९०१. सज्झाय संग्रह व अतिथिसत्कार दोहा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२३.५४११, १८४६१). १.पे. नाम. आदिजिनपारणा सज्झाय, पृ.१अ, संपूर्ण. आदिजिन पारणा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ मेरे आंगण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ की गाथा-७ तक लिखा है.) २. पे. नाम. अतिथिसत्कार दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. हासिये में लिखा गया है. __ औपदेशिक दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: समय पधारै पाहुणा साध; अंति: कीजै अधिक सनेह, दोहा-१. ३.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नाम दीधांथी गरज न; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक लिखा है.) ४. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: राजमती इम दाखवै हो; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से लिखा है व गाथा-२० तक है.) ८८९०२. पर्युषणपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पोखरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४११, ९४२८-३०). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमु सरस्वती; अंति: तस जगवलभ गुण गाय, गाथा-१६. ८८९०३. (+#) नेमराजुल बारमासो, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:बारमासीयौ., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११,१३४३८). नेमराजिमती गीत, म. शांतिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सखीरी बोलइ राजल नारी; अंति: शांतिगुणगाया हो लाल, गाथा-१५. ८८९०४ (+) रोहिणीतप स्तवन व दशार्णभद्रऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, पठ. मु. न्यालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १६४३७). १.पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवति सामणीए; अंति: सफल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. २. पे. नाम. दशार्णभद्रऋषि सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक; अंति: पभणे लालविजय निसदीस, गाथा-९. ८८९०५ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५४१०.५, १०४३४). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. न्याय, मा.गु., पद्य, आदि: एक द्वारकानगरी राजे; अंति: रे के नायमुनि लेसे, गाथा-८. ८८९०६. (+#) आलोयणा विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४४२). १.पे. नाम. आलोयणा विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १७९९, आषाढ़ कृष्ण, ८, सोमवार. आलोचणा आराधना, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: ते मिच्छाम दुक्कडं. २. पे. नाम. साधु आलोयना विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. आलोयणा विधि-साधधर्म, मा.गु., गद्य, आदि: नववाडि ब्रह्मचर्यनी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "दिवसविषे संजम सेव्यो न होई" तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१८ www.kobatirth.org ८८९०७. (+) यौवनपच्चीसी, औपदेशिक पद व बोल, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२४.५x११, १९४५५). "" १. पे. नाम. यौवनपच्चीसी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: पुन्य जोगे नरभव लीयो; अंति: या धरम थारे दिल भावे, २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि धुणी धरम ध्यान की रे; अंतिः कबीर कहे नामसुं तरणा, गाधा-६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. १३ तणगा, पृ. १आ, संपूर्ण. १३ बोल-गुणरूप रूई अवगुणरूप चिनगारी, मा.गु., गद्य, आदि: जनमरूप रुइ मरणरूप; अंति: रुइ असंतोषरूप तणगो, बोल- १३. , : ८८९०८. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२१.५x१०.५, १५X४०). १. पे नाम. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. क. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि " इणि आगणइ प्रीतमीड: अंति बाट जौठ चौमासै रे, गाथा ९. २. पे नाम. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. तेजरुचि, मा.गु., पद्य, आदि : गुरु आदेश लही करी; अंति: बाह ग्रहानी लाजइ, गाथा - १२. ३. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पितलडी न कीजे रे; अति समयसुंदरनी रे जोडी, गाथा- ९. ८८९१०. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२३४१०.५, १२४३६). ८८९०९. (+) पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल ये. ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२१.५x१०.५, १०x३०-३५). १. पे नाम, नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा - २५. नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, आदि: जी टुक निजर महदीकरणा; अंति: ककी भवदध पार उतरणाजी, गाथा-५. २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि प्रभुचरणा से मेरो मन अति रणासे मेरो मन हटक्यो, गाथा-५. ३. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. मूलचंद, रा., पद्य, आदि लाग छै मानु पासजिन; अंति: मूलचंद० पार उतारो, गाथा - ५. ४. पे नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि गिरवरधीमा चालो राज अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) , संपूर्ण. , पार्श्वजिन स्तवन- पुरुषादानीय, मु. सुखदेव, मा.गु., पद्य वि. १८२२, आदि वामाजीनंदन साहिबो हो; अति भुराय कीसन सुरंग में, गाथा १०. ८८९११. नेमिजिन छंद व अनाधीमुनि सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जै.. (२३.५x१०.५, १८४५२). १. पे. नाम. नेमिजिन छंद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि गोल गलो नि साकर भेली; अति ए मोटो संताप, गाथा २०. For Private and Personal Use Only २. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १आ, मु. प्रेममुनि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति प्रेममुनि सुखदाय, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र अंत की दो गाथा लिखी हैं.) ८८९१२. महावीरजिन स्तवन व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी तवन, जैवे. (२४४१०.५, १५x५२). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, प्रले. उमा, प्र.ले.पु. सामान्य. गोरधन ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि धीन तसलादे तो भणी हे अति गोरधन लीला सुख धाय ए. ढाल ४, गाथा २६. २. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४१९ बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मन को गरणो सावध्यान; अंति: गया सारस जीम हंसा. ८८९१३. महाविदेहे पात्रादि प्रमाण, ऐतिहासिक घटनाक्रम व भार प्रमाणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. पत्र १४३ हैं., जैदे., (२३४१०.५, २८x१२). १. पे. नाम. सीमंधरजिन मुहपत्तिप्रमाण गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सोलेसयस्स हत्था; अंति: श्रीसीमंधरसामीयस्साओ, गाथा-१. २. पे. नाम. महाविदेहक्षेत्रे पात्रादि प्रमाण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहाविदेहे ऋषि; अंति: लोकने देखे. ३. पे. नाम. प्रमुख जैन ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्रीवीरात् २९१ वर्षे; अंति: (१)पूर्व सर्व व्यवच्छेद, (२)माथा ले गयो सेघण. ४. पे. नाम, कर्ण दानप्रमाण पद, पृ.१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: षट सरसव इक जव जव; अंति: गर्व न करतो नहीं कदा, गाथा-१. ५. पे. नाम. अक्षौहिणी सेना प्रमाण पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: हाथी सहसएकवीस २१०००; अंति: साधुकीर्ति वखाणीई, गाथा-१. ६.पे. नाम. १८ भार वनस्पती प्रमाण पद, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ भार वनस्पतिप्रमाण पद, म. सिद्ध, मा.ग., पद्य, आदि: प्रथम कोडि अडत्रीस; अंति: सुद्ध० कहे मोटा जती, गाथा-१. ८८९१४. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४२५). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: कहै पापथी छूटै ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. ८८९१५. मेतारजमनि सज्झाय व सिखामण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १८४४०-४५). १. पे. नाम, मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरु जी; अंति: राजविजय० ए सज्झाय, गाथा-१३. २. पे. नाम. सिखामण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे चरण; अंति: विजय० नहि ते अवतरे, गाथा-२७. ८८९१६. (+) शालीभद्रमुनि सज्झाय व नंदिषेणमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे.२, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१०.५, १२x२५). १.पे. नाम. शालिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विमान संचर्या रे, गाथा-१७, (पू.वि. गाथा-१४ से है.) २. पे. नाम. नंदिषणमुनि सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. म. धनमनि, मा.गु., पद्य, आदि: मुनीश्वर हो विरहण; अंति: श्रीनंदिषेण अणगार, गाथा-११. ८८९१७. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४१०.५, १७X४२). पार्श्वजिन स्तवन, म. नथमल, मा.ग.. पद्य, आदि: प्यारा लागो जी रूडा: अंति: तो जगजीवन आधारा जी, गाथा-११. ८८९१९ (4) सीमंधरजिन स्तवन व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. जेठा वस्ता वोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१०.५, ११४३३). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: धन धन खेत्र माहा विद; अंति: समयसुंदर०ओलगडी अवधार, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-जीरावला, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वीरमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास जिरावल पुजी; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. ३ गाथाओं में कृति पूर्ण कर दी है.) ८८९२०. देवानंदामाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:गोतमरी सजाइ., दे., (२१४११.५, १०४२६-३१). देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: पुछे उलट मन आणी गौतम, गाथा-१२. ८८९२१. त्रीजाव्रतनी सज्झाय, नेमराजिमती स्तवन व शृंगार गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२१४११, १३४३०). १.पे. नाम. त्रीजाव्रतनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. पं. महिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. अदत्तादानविरमण तृतीयव्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नीसूणो श्रावक समकीत; अंति: __तिलकविजय सुखपाया रे, पद-५. २.पे. नाम, नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लूंबी झंबी रह्यो; अंति: थयो दानविजय उल्लास, गाथा-८. ३. पे. नाम, शृंगार गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मुने बादलिइ भरिश; अंति: नायूँ तो उटे नेह, गाथा-३. ८८९२२. (+) सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४११.५, १५४३०). १.पे. नाम. हीरविजयसूरि सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विजय० कोड वरीस मनोहर, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन स्तवन-चंदन मंडण, मु. ऋषभविजय, पुहि., पद्य, आदि: चलो वंदन जईए वीरजी; अंति: रिषभ० तार भवतारजी, गाथा-५. ३. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: फुल गंध अक्षत अरु; अंति: है सौभाग्य मुणिंद की, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवन जगजीवन गोडी प; अंति: ताहरो जिनजी दास हो, गाथा-५. ५. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ___ मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अकल कला अविरुद्ध; अंति: आयो उमाह्यो अतिघणे, गाथा-९. ६. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सूर एक आयो रे साहस; अंति: द्यो मुझ सुख अनंत, गाथा-८. ७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सुधो धरम मुकिस विनय; अंति: ए अक्षर चिर नंदो रे, गाथा-९. ८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: इणि डुंगरीइ झीणी झीण; अंति: नयविमल० भव पार उतारो, गाथा-६. ९. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: माहरु मन मोह्यं रे; अंति: कहेतां नावे हो पार, गाथा-५. ८८९२३. जिनकशलसरि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१४११, १२४३२). जिनकुशलसूरि गीत, मु. राजेंद्रविजय, रा., पद्य, आदि: देरावर थारो देवरो हो; अंति: साहिब अरज करै राजिंद, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४२१ ८८९२४. १८ पापस्थानक आलोयणा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२२४११, ११४२२). १८ पापस्थानक आलोयणा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ से ३१ अपूर्ण तक है.) ८८९२५. चौवीसतीर्थंकरारो लेखो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:२४लेखो., जैदे., (२१.५४११, १४४३८-४३). २४ जिन लेखो, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीरिषबदेवस्वामी; अंति: (-), (पृ.वि. धर्मनाथजी वर्णन अपूर्ण तक है.) ८८९२६. (+) होलिकापर्व कथा, संपूर्ण, वि. १९२९, वैशाख कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. वावडीग्राम, प्रले.ऋ. मूलचंद्र (गुरु ऋ. कीस्तुरचंद); गुपि. ऋ. कीस्तुरचंद (गुरु मु. हीराचंद ऋषि); मु. हीराचंद ऋषि; पठ. सा. चिमना आर्या; सा. चंपाजी आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:होली कथा., संशोधित., दे., (२१४११, १७४३३). होलिकापर्व ढाल, म. विनयचंद, मा.ग., पद्य, आदि: प्रथम पुरुष राजा; अंति: विनयचंद कहे करजोरी, ढाल-४, गाथा-६०. ८८९२७. औपदेशिक विचार व वीतराग वाणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१x११, १२४३३). १. पे. नाम. औपदेशिक विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: अहो आत्मा तुं पांच; अंति: अचल सुख निपजा. २.पे. नाम. वीतराग वाणी, पृ. १आ, संपूर्ण.. वीतराग वाणी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: एहवू जाणी वीतरागनी; अंति: ते सुख संपदा पामे. ८८९२८. पांच इंद्री की ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. टकसर, दे., (२१४११, १५४३२-३५). पंचेंद्रिय ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर नमु तीरभुवन तिलो; अंति: भण गुण जसी लीले जी, ढाल-६. ८८९२९ (+) २८ लब्धि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४१०.५, १०४२८-३०). आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुं प्रथम जिनेसर; अंति: प्रगट ज्ञान प्रकाश ए, ढाल-३, गाथा-२५. ८८९३०. (-) औपदेशिक सज्झाय व दशवैकालिकसूत्र गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१४११,१६४३०-३४). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १९३३, वैशाख शुक्ल, १२, गुरुवार, ले.स्थल. केकडी. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: श्रीजिनवर दीधो असडो; अंति: चेत रे चेत तुं मानवी, गाथा-२१. २. पे. नाम. दशवैकालिक सूत्र गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र गीत, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: दसमीहोकालक सुत्र; अंति: जेतसी जय जय रंग, गाथा-७. ८८९३१. औपदेशिक लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:लाव., दे., (२१४११, १४४३०). औपदेशिक लावणी, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९३८, आदि: छिनमांहि छीजे आउषो; अंति: यारी डरजो कालसु करलो, गाथा-१२. ८८९३२. (#) चंद्रप्रभजिन स्तवन व वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११.५, १३४३०). १. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभु चितथी; अंति: रे वागागुहीर नीसांण, गाथा-५. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामि तुमे कांइ; अंति: वाछक जस हेजे हलस्यं, गाथा-८. ८८९३३. (+#) पच्चक्खाणफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११, १९४४८-५०). पच्चक्खाणफल सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पगलां प्रणमी; अंति: भवसमुद्रने तरीयै, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (+#) ८८९३४. ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२२x११, ३५X१५-२०). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को. आदि देवगति मनुष्यगति; अंति: आहारक अनाहारकः ८८९३५. साधुआचार सज्झाय - आचारांगसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. थुडागाम, प्रले. सा. तीजी (गुरु सा. छोटा सती); गुपि. सा. छोटा सती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी तवन. दे. (२२.५x११, १७४४०). आचारांगसूत्र-साधु आचार सज्झाय, संबद्ध, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि आचारांगसूत्र मध्ये अति: रामचंद्र० मे ताणी रे, गाथा - २२. ८८९३६. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२४४१०५, १०X२६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि करजोडि कहे कामनी; अंति सेवक जिन धरम धान, गाथा - १६. ८८९३७. महावीरजिन स्तवन व मनवशीकरण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५X१०.५, ११x२२-२६). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि जिनमुख देखण जादु अति यविमल प्रभु ध्याउरे, गाथा- १०. २. पे. नाम. मनवशीकरण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनवशीकरण, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऐसे जिनचरणा चित लाय; अंतिः इण परि लीजे नाम रे, गाथा- ४. ८८९३८. (+#) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. सा. व्रजकुयर आर्या (गुरु सा. राजकुयर आर्या); गुपि. सा. राजकुयर आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३x१०.५, १७X५०-५५). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: जीवन जीव आधारो रे, स्तवन- २४ गाथा १२२. ८८९३९. () स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७४, चैत्र कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, राज्यकालरा इंद्रसिंघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., ( २१.५X११, ११x२५-३०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पू. १अ संपूर्ण. जै. क. बनारसीदास, पु.ि, पद्म, आदि: दरवाज रे तेरे खोलवे; अति: बनारसी०जान में थोलवे, गाथा-५. " २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदिः प्रगट थया भले पासजी; अंति: धणी सेवकने साधार, गाथा- ७. ३. पे. नाम साधारणजिन पद, पू. १आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहि., पद्य, आदि देख्या विपत नाटी सकल अंति: नवल० मुख आज जिनवरका गाथा-२. ४. पे. नाम. वासुपूज्यजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि वस कीनो जिनराज मेरो अति गावता आवागमण निवार, गाथा- ३. ८८९४० (+) होणहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३४, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. श्राव. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२१.५x१०.५, ९४३१-३५). " भाविभाव सज्झाय, मु. शिवलाल, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: कोइ एक नगर वखाणु; अंति: वखाणी वार भृगु कहाणु, गाथा-२८. ८८९४१, (+) चडविहार उपवासनुं पच्चक्खाण व लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. दे., (२१X१०.५, १०X२८). १. पे. नाम. सुमतिकुमति लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. ,जिनदास, पुहि, पद्य, आदि: तु कुमत कलेसन नार; अति कि बात खोटी मत खेडे, गाथा-४, For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४२३ २.पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: फिकर अब लगी मेरा; अंति: पद दीजे प्रभु हमकु, गाथा-४. ३. पे. नाम, चउविहार उपवास- पच्चक्खाण, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सूरे उगे अभतठं; अंति: सणवा ससथेणवा बोसरे, (वि. अंत में छठ और अट्ठम का पच्चक्खाण दिया है.) ८८९४२. (+#) पार्श्वजिन स्तवन, आदिजिन स्तवन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२१.५४१०.५, ९४२६-३०). १. पे. नाम, शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: करम रिपु जीपतो, गाथा-५. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ___मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर अरिहंत धणी थे; अंति: मूलचंद० प्रभु तारजे, गाथा-७. ३.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, रा., पद्य, आदि: जीयाजी थाने वरजु छु; अंति: रूपचंद० शिवपुर थाने, गाथा-४. ८८९४३. पार्श्वजिन प्रभाती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०.५४१०.५, १८x१४-१७). ___पार्श्वजिन प्रभाती-शंखेश्वर, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: आज संखेसरा सरण हुँ; अंति: वेगला करो संभाली, गाथा-५. ८८९४४. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७९३, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. अहीपुर, प्रले. पं. मुक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५,१३४३५-४०). महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदा; अंति: श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२१. ८८९४५ (+#) आदिजिन स्तवन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४९, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. टीकर, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १२४३३-३५). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणंद जुहारीइ प्र; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज उलग; अंति: मनरंग सुपंडित रूपनो, गाथा-७. ८८९४६. औपदेशिक दोहा, सज्झाय व प्रास्ताविक कवित्तादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्र १४२., जैदे., (११.५४११,५२४१७-२०). १. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जो हो चतुर सुजाण, गाथा-२. २. पे. नाम, वणजारा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वणजारा, मा.गु., पद्य, आदि: पैलौ तो पैरो रैणि को; अंति: सुख पावसी वणझारा रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मा.ग., पद्य, आदि: चौद पूरबमांही सार; अंति: हो स्वामी श्रीनवकार, गाथा-७. ४. पे. नाम. औपदेशिक कृपणबोध कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त-कपणबोध, पुहिं., पद्य, आदि: कृपण मरंतो करै लछि; अंति: धन संच्यो कृपणी नर, गाथा-४. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक पद संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: चंदन ही विषकंद है; अंति: लही सुदेस सब देह, गाथा-५, (वि. विविध विद्वत्कृत दोहा, पद, कवित्त आदि संग्रह.) ८८९४७. आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १४४३०-३५). For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जइ पढम जिणेसर अति; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ तक लिखा है.) ८८९४८.(#) नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२०.५४११, २३४१७-२०). नेमराजिमती सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोखे रे बेठी राजुल; अंति: जुक्ते रे सीसु जाया, गाथा-१३. ८८९४९. आदिजिन चैत्यवंदन व पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४११, १२४३३). १. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जयादिनाथ प्रथितार्थ; अंति: बलं जयाजितं, श्लोक-८. २. पे. नाम. चिंतामणि मंत्रगर्भित पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. ८८९५०. अज्ञात देशी पद्य कृति व विविधविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२०.५४११, २३४१७). १. पे. नाम. अज्ञात देशी पद्य कृति, पृ. १अ, संपूर्ण.. अज्ञात देशी पद्य कृति*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. २.पे. नाम. विविधविचार संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. विविध विचार संग्रह, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: उत्सेध आंगुली १ योजन; अंति: अनाउपयोग कार्य करे. ८८९५१. धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. कस्तूरबाई महासती (गुरु सा. गंगाबाई महासती); गुपि. सा. गंगाबाई महासती (गुरु सा. कसलीबाई माहासती), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११, १५४२९). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. चोथमलजी, मा.गु., पद्य, आदि: राजगरीही नगरी वाषै; अंति: चोथमल० एक करु अरदास, गाथा-१७. ८८९५२. औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२१४११, १८-२३४१५-१८). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. अखयचंद, पुहिं., पद्य, आदि: धरणी क्यो बोझां मारी; अंति: अखचंद० बाजी हारी रे, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: सुध कर हीर दोहलदी; अंति: कबीर० जनम नही पावे, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: झीवर नाखी जाल बंदा; अंति: कबीर० मोर बालमसे भाई, गाथा-४. ८८९५३. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पत्र १४२ हैं., जैदे., (२१४११, २८x१७). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पति जोज्यो आपणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५५ अपूर्ण तक लिखा है.) ८८९५४. श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. रायचंद (लुंकगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (२३) जब लग मेरु अडग है, जैदे., (२१.५४१०.५, ९४२७). श्रावककरणी सज्झाय, म. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दखहरणी छे एह, गाथा-२३. ८८९५५. (+) स्तवन, पद, होरी व गीत आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४१०.५, २३४६३). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मोहोल चढी रे माहरा न; अंति: रूप० थइ छे खुसालि रे, गाथा-३. २. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. न्याय, मा.गु., पद्य, आदि: पुनः किहां गयो रे; अंति: जय ज्योति जगाडी रे, गाथा-७. ३.पे. नाम. जिनवाणी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४२५ मु. चंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जिणंदा थारी वांणीइं; अंति: काई चंद्रपद थाय रे, गाथा-८. ४. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.. श्राव. लींबो, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगिरनारें त्रिण; अंति: लींबोल्नेमनाथ गुणखांण, गाथा-३. ५. पे. नाम. अध्यात्म पद-होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक होरी, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्युं खेले रंग होरी; अंति: ज्ञानविमल०अवीचल जोडी, गाथा-३. ६.पे. नाम. अध्यात्मिक होरी, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पालीताणा. आध्यात्मिक होरी, म. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान रंग खेलिइ होरी; अंति: मोह की होरी जराई, गाथा-४. ७.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कृष्णदास, मा.गु., पद्य, आदि: ज्युं बने त्युं तार; अंति: मन मार रोकुं ज्यु, गाथा-४. ८. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. लींबो, पुहिं., पद्य, आदि: एक घडी वाला एक घडी; अंति: लिबो० गयांनी वाट जडी, गाथा-३. ९.पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हे दरवाजे तेरे खोल; अंति: ग लागो चित्त चोल चोल, गाथा-५. ८८९५७. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१४११, १३४३८). पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वप्रभु मुज; अंति: रे दरसण द्यो परतिख्य, गाथा-१०. ८८९५८. परमात्म छत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९२३, चैत्र शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. ओलीया, पठ. सा. जीउजी; लिख. सा. गंधवछबा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४११, १२४२८). परमात्मछत्रीसी, मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: परमदेव परमातमा परम; अंति: लिखि आत्म के उद्धार, गाथा-३६. ८८९५९. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२०४११, ९४२८). नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: चालोरी मनावण जइय ए; अंति: जइ दीक्षा लेइ पोह, गाथा-९. ८८९६० (+) आयुष्य विचार सह टबार्थ व इग्यारसि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२०४११, ६-१५४३८-४०). १.पे. नाम. आयुष्यविचार सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. पं. हर्षविजय गणि; पठ. पं. पृथ्वीसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. आयुष्य विचार, अप., पद्य, आदि: मणुआण वीसोत्तरसयं; अंति: अरए आऊ जिणे दिठं, गाथा-५. आयुष्य विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्य १२० वर्ष आयु; अंति: वर्ष १ किंसारी मास ३. २. पे. नाम, इग्यारसि विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पंचपंचासवै कुल्या; अंति: सर्व वृथा जाणवी. ८८९६१. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२०.५४१०.५, १०४२५). पार्श्वजिन स्तवन-बीबडोद मंडण, सा. रतनाजी, मा.गु., पद्य, वि. १९१८, आदि: सुण स्वामी रे रश; अंति: करी सेवा ___ रतनांजीशी, गाथा-५, प्र.ले.पु. सामान्य... ८८९६२. लुकमानहकीम नसीयत, संपूर्ण, वि. १९१०, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. नगविजय; पठ.पं. चुनीविजय गणि (गुरु पं. नगविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०४११, २३४५३). लुकमानहकीम नसीयत, पुहिं., प+ग., आदि: लुकमान हकीम अपनें; अंति: पृथ्वीमें अजय होसी, (वि. १९१०, कार्तिक शुक्ल, १५, वि. कृति गाथा-३६ तक पद्यबद्ध है, बाद में गद्य है.) ८८९६३. शांतिक विधि, संपूर्ण, वि. १९१०, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. पं. नगविजय, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२०४११, २४४५०). शांतिक विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम विशाल जिनभुवन; अंति: मंगलीक वधावीयें. ८८९६४. श्रावक तीन मनोरथ व जिनपद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ९, दे., (२०४११, २३४५३). १. पे. नाम, श्रावक तीन मनोरथ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोरथ करतो थको; अंति: करै संसारनो अंत करै. For Private and Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. ४ शरणा विचार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, वि. १९१०, कार्तिक शुक्ल, १३, प्रले. पं. नगविजय; पठ.पं. चुनीविजय गणि (गुरु पं. नगविजय), प्र.ले.प. सामान्य. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चत्तारिसरणा पढिवज्झा; अंति: (१)कालकंटक जायें दूर, (२)धर्मनो पडीवज्जु छु. ३. पे. नाम, आत्मस्वरूप पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: जाग रे सब रैन विहानी; अंति: ग्यान० निज राजधानी, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: चालो री सखी जिनदरसण; अंति: भयो शिवगारिया, गाथा-३. ५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. चंदकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: देखोनि आदेसरस्वामी; अंति: चंदखुसाल गुण गाया हे, गाथा-५. ६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. चंदखुसाल, पुहि., पद्य, आदि: मेरी लाज रखलीजे; अंति: चंदखुस्याल गाया, गाथा-२. ७. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. गुणविलास, पुहि., पद्य, आदि: तेरी गत तु ही जानै; अंति: गुणविलास वही है, गाथा-५. ८. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. __ मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: उठत प्रभात नाम जिनजी; अंति: द प्रभु संपति बढाईये, गाथा-४. ९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: लग्या मेरा नेहरा; अंति: ग्यान नहीं गहिरा, गाथा-५. ८८९६५. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२१४११, १६x२५). साधुवंदना, मु. भिक्षु ऋषि, रा., पद्य, आदि: जीणमारग मे धुरसुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२८ अपूर्ण तक लिखा है.) ८८९६६. गुरुराज निसांणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रामसेन्यनगर, जैदे., (१९.५४११, १२४३५). गुरुराज निसानी, मु. प्रतापविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लंबोदरचरणे लगी शारद; अंति: प्रताप० नव जय सवाया, गाथा-१३. ८८९६७. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४११, १२४२२). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: महिमंडल माहे घणा एक; अंति: तोई पहिरीजै पाइ, गाथा-३३. ८८९६९. पार्श्वजिन लावणी व वैराग्य पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०.५४१०.५, १०४३२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पार्श्व समरणा भय न; अंति: मन मे धरणा सीखन का, गाथा-७. २.पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सिता कुंन हरी री; अंति: (-), गाथा-७, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) ८८९७०. सीमंधरजिन स्तवन, पद व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे.५, प्र.वि. पत्र १४२ हैं., दे., (१९४११,४६४१०-१९). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंदर तुमे माहरा; अंति: एहवा बोधा चारो रे, गाथा-५. २.पे. नाम. सीमंधरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंदर तुमे माहरा; अंति: थेर करी राखु ठाम रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पहेलो आरो बेठा पछी; अंति: तरो सांभलो० रे संत. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ औपदेशिक पद-आत्मोपदेश, मा.गु., पद्य, आदि: एहवी वात सुतरनी जीव; अंति: जाहा जिनजी पास, गाथा-४. ५. पे नाम. सीमंधरजिन गुणमाला, पू. १अ १आ, संपूर्ण, गच्छा. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंदरसाम तणी गुण; अंति: देवसू०बोले नरने नारी, गाथा-४. ८८९७१ (+) जिनकुशलसूरि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, दे., (२०x१०.५, १०X२६-२८). जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: समरुं माता सरसती; अंति: विजैसिंघ लीला वरी, गाथा-३१. ८८९७२. पद्मावती सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३७, मध्यम, पृ. ३, कुल पे ४, प्रले. मु. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३X१०.५, ११३२). १. पे नाम आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रहिदास ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभदेव जिणंदा, अति रहिदाशे गुण गाया रे, गावा- १२. २. पे. नाम पद्मावती सज्झाय, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवि राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर० छुटो ततकाल, ढाल -३, गाथा-३६. ३. पे. नाम संभवजिन स्तवन, पू. ३अ- ३आ, संपूर्ण. ४२७ उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: संभव जिनवर विनति; अंति: जश० ए मुज साचुं रे, गाथा-५. .पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. नेम, मा.गु., पद्य, आदि: वारु वारु रे म्हांरा अति नेम० की मानो हो राज, गाथा १०. ८८९७३. गोडीजी पार्श्वजिन व फलोधीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. नथमल मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२x१०.५, ११x२६). १. पे. नाम. गोडीजी पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- गोडीजी, मु. देवीचंद, मा.गु., पद्य, आदि आज भलो दीन उगो प्रभुः अंति: प्रभु छो पर उपगारीजी, गाथा - ९. २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन फलोधीमंडन, पू. १आ- २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धि, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित फलदायक सामी; अंति: जय उत्तम जिनगुण गावै, पुहिं., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव, अंति: आवागमण निवार की, गाथा-६. ३. पे नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, पू. १अ संपूर्ण. गाथा-७. ८८९७५. २४ जिन आरती, चैत्यंवदन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ५, दे. (२१.५४११, १८४५८). १. पे. नाम. ५ परमेष्ठि आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि, पद्य, वि. १८वी, आदि: इहविधि मंगल आरती; अति मानवजन्म सफल कर लीजे, गाथा-५, २. पे. नाम. २४ जिन आरती, पृ. १अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव देशे दीपतो; अंति: तीरथ करण कल्याण, गाथा- ३. ४. पे. नाम सिद्धाचलजी चैत्ववंदन, पृ. १अ संपूर्ण, शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. रूप, मा.गु., पद्य, आदि: पश्चिमदेश मनोहरू; अंति: रूप कहे कर जोड, गाथा-६. ५. पे. नाम. बंगाली पद, पू. १अ १आ, संपूर्ण बं., पद्य, आदि अमि देखी माहाराज अंति: अमे देखी माहाराज, गाथा-७. " . ८८९७६. (*) अजितनाथ की मेरटी, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२५x११, १६x४९). " अजितजिन स्तवन, मु. छित्रमल, पुहिं., पद्य, आदि: भवकजिन मनकु समझाना अति सुणज्यो सब कांना, गाथा-३२. ८८९७७. नवकार रास व ढंढणऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५. ५X११, १३X३८). १. पे. नाम. नवकाररास, पू. १अ २अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि पहिलुंजी लीजइ अरिहंत अंति: जगमांहि नही कोई आधार, गाथा-२२. Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: (१)हे जिनहरख त्रिकाल रे, (२)जिनहर्ष०हुं वारी लाल, गाथा-९. ८८९७८. औपदेशिक सज्झाय व वज्रस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सत्यपुर, प्रले. मु. विनयरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १५४४०). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर विहारी रे आतम; अंति: बलिहारी नाम तिहारइ, गाथा-८. २. पे. नाम. वज्रस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: कहइ सुनंदा बांह पसार; अंति: धन धन जिणसासण जयउ, गाथा-९. ८८९७९ (+) ४२ एषणादोष अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. हंडी:बयालीस दोष., संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, २२४७०). गोचरी ४२ दोष गाथा-अवचरि, सं., गद्य, आदि: यैर्दोषैरहितस्य; अंति: वृत्तिर्विलोक्या, (वि. मल कृति का मात्र प्रतीक पाठ दिया गया है.) ८८९८० पार्श्वजिन स्तव सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, १८४४०). पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: जसु सासणदेवि वएसकया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण तक है.) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ 1. पूर्णकलश, सं., गद्य, आदि: जं संथवणं विहिय तस्स; अंति: (-), (प.वि. गाथा-२९ अपूर्ण तक की टीका है.) ८८९८१ पत्रक्रम, गौतम अष्टक व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, १७X५७). १. पे. नाम, पत्रक्रम, पृ. १अ, संपूर्ण. पत्रलेखनक्रम पद्धति, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य शंभोर्गुरु; अंति: तस्य दशांशकः, श्लोक-१०. २. पे. नाम. गौतम अष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. जिनभक्ति, सं., पद्य, आदि: जय जय गोडीजी महाराज; अंति: त्वं प्रणमामि सदैव, श्लोक-९. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन लघु स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अब मोहि चरण सरन जिन; अंति: सुखसिद्धि पुरी कौ, गाथा-३. ८८९८२. वीरजिन द्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५७). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: अनंतविज्ञानमतीत; अंति: कृतसपर्याः कृतधियः, श्लोक-३२. ८८९८३. (+) महालक्ष्मी स्तोत्र, अन्नपूर्णाराधनविधि व नवग्रह मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. मु. न्यायविशाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १४४३७-४१). १. पे. नाम, महालक्ष्मी स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महालक्ष्मी स्तव, सं., पद्य, आदि: आद्यं प्रणवस्ततः; अंति: सर्वदा भूतिमिच्छता, श्लोक-११. २. पे. नाम. अन्नपूर्णा स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: आदाय दक्षिणकरेण; अंति: च यशश्च मुक्तिं, गाथा-७. ३. पे. नाम. अन्नपूर्णाराधन विधि, पृ. २अ, संपूर्ण, प्रले. मु. न्यायविशाल, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ अन्नपूर्णा आराधना विधि, सं., गद्य, आदि: विधिवतस्ता च अवस्य; अंति: भवानीदेवता प्रीयतां. ४. पे. नाम. नवग्रह मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण, प्रले. मु. न्यायविशाल, प्र.ले.पु. सामान्य. ९ ग्रह मंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो श्रीआदित्याय; अंति: कुरु कुरु स्वाहा, श्लोक-९. ८८९८४. स्थापनाविशेषविधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१०.५, ६x४४-४७). स्थापनाचार्य विधि, सं., प+ग., आदि: स्थापनाविधिं; अंति: तदा राजवश्यं कृत्. स्थापनाचार्य विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: थापनानी विधि प्रति; अंति: हुइ तु राजवश करई. ८८९८५. संतिकरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६८८, कार्तिक शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४२८-४१). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: सिद्धी भणई सीसो, गाथा-१४. ८८९८६. नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पठ. श्रावि. लांगाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, ११४४२). नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, म. मेरु, अप.,मा.गु., पद्य, आदि: सिरि निलय जंबुदीवो; अंति: सुभत्रि हिं बोलइ, गाथा-२५. ८८९८७. (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १०x२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: मेयं देवाणुप्पिया, व्याख्यान-९. ८८९८८.(#) लोकनालिद्वात्रिंशिका व लघुअल्पबहुत्व विचार, संपूर्ण, वि. १७९४, चैत्र शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७४७५). १.पे. नाम. लोकनालिद्वात्रिंशिका अवचूरि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिणहंस वइसाह प्रसारि; अंति: ज्ञात्वेति भावार्थः. २. पे. नाम. लघुअल्पबहत्वविचार सार, पृ. २आ, संपूर्ण. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: पपूदउ पश्चिम पूर्व; अंति: बहुतमोपि वायुरिति. ८८९८९ (#) २४ तीर्थंकर के नाम-गणयोनिनक्षत्रराशिलंछनादि सहित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, २०४५६). २४ तीर्थंकर के नाम-गणयोनिनक्षत्रराशिलंछनादि सहित, मा.गु.,सं., को., आदिः (-); अंति: (-). ८८९९० (+) श्रावक आलोयणा विधि व ३२ असज्झाय विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४५). १. पे. नाम. श्रावक आलोयण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावक आलोचना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सम्यक्त अतीचार उपनै; अंति: उप १० पुरमड्ढ १०. २. पे. नाम. ३२ असज्झाय विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ३२ असज्झाय विचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: धुंहरि पडे तासीम; अंति: असिज्झाई पहर १२ ताई, गाथा-३२. ८८९९१. (+) कर्महींडोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ. श्रावि. मनो, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ९४२९-३२). कर्महींडोल सज्झाय, म. हर्षकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: कर्म हीडोलना झल; अंति: भविजन मनह पूरवो आस, गाथा-९. ८८९९२. सीमंधरजिन पत्र व सीमंधरजिन विनंती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १७४५८). १.पे. नाम. सीमंधरजिन पत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती पत्र, क. नर, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमहाविदेह; अंति: स्वामीने नमस्कार थाओ, पत्र-२. २. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती, पृ. २आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पूर्व पुखलावति विजै; अंति: जेमलजी० पोह उगते सूर, गाथा-९. ८८९९३. पार्श्वजिन लघु स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, ९४३४). पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदण जिणवरपाया; अंति: जय उग्र जिणशासणि चंद, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८८९९४. मौनएकादशी कथा व आधासीसी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३५-४०). १.पे. नाम. मौनएकादशी कथा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८४४, पौष कृष्ण, ३. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: श्रीराजगृहीपर्यां; अंति: (१)यो सुख नोज्ञनिने, (२)तो मया सशिष्य लिलिखे. २.पे. नाम. आधासीसी कथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. आधाशीशी कथा, पुहि., गद्य, आदि: ॐ नमो उठाउली वनगहन; अंति: (१)पीडा न करै सही छै जी, (२)वाचातः ठः ठः स्वाहा. ८८९९५ (+) इगवीसट्टा प्रकरण व प्रस्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४९-५६). १.पे. नाम. इगवीसट्ठा प्रकरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा १ नयरी २; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६४. २. पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नाग विशेषे शेषे; अंति: घने स्तुतिर्भवतः, श्लोक-१. ८८९९६. मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११,१६x४०). मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या जी; अंति: भणेजी ते पामे भवपार, गाथा-२२. ८८९९७ (#) सिखामण बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १८४४२). ८९ बोल संग्रह-औपदेशिक, रा., गद्य, आदि: सदहणा सुद्ध हुवै तिण; अंति: त्यांन वीतराग सरीखा. ८८९९८. (+) राजपदवीकुवरपदवी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पठ. श्रावि. दीपाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४०). २४ जिन देहमान-राजपदवीकुवरपदवीगर्भित, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथकी पांचसै; अंति: वरस राज बइठ्ठा नहीं, गाथा-२४. ८८९९९. द्वारिकानगरी सज्झाय व कृष्णबलराम सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, २२४५८). १. पे. नाम. द्वारिकानगरी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. ___ आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारामतीनो देखिउ; अंति: पुन्य वडो संसार हो, गाथा-३०. २.पे. नाम. कृष्णबलराम सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हलधर हरवे हुं चालीया; अंति: मुकति तणां सुख लहसी, गाथा-२२. ८९०००. विनयाध्ययनभाषा स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३३). उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय १ से ४ अध्ययन, संबद्ध, मु. कृपासौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: आणंदकारी इह परलोके; अंति: करो ज्ञाननो पोस, अध्ययन-४. ८९००१ पद्मावती आराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४११, ५४३०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पदमावती; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ अपूर्ण तक है.) पद्मावती आराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे पद्मावती राणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टबार्थ गाथा-६ तक है.) ८९००२ (+#) पाटपरंपरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, प. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १४४४२-४८). For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ पट्टावली सज्झाय-तपगच्छ, मु. हर्षसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्री सोलमो जिन शांति; अंति: हर्षसागर० सुख हवइए, गाथा-१७. ८९००३. (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७३८, फाल्गुन, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. नडीयाद, प्रले. पं. धनविजय गणि (गुरु पं. विनीतविजय गणि, तपगच्छ); गुपि. पं. विनीतविजय गणि (गुरु पंडित. प्रेमविजय, तपगच्छ); पठ. श्रावि. केसरीबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११,११४५८). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति द्यो मति; अंति: स्तव्यो वीर जिणेसरु, ढाल-१०, गाथा-७३. ८९००४. अरनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३९, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, ९४३०). अरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीअरजिन भवजलनो; अंति: प्रभुना गुण गाउ रे, गाथा-५. ८९००५ (#) सकलतीर्थ वंदना, संपूर्ण, वि. १९३०, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. ऋ. दोलत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, ९-११४३५). सकलतीर्थ वंदना, म. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल तीर्थ वंद कर; अंति: जीव कहे भवसायर तरं, गाथा-१५. ८९००६. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१०.५, १३४४२-४५). प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पाषाणै परिपूरिता; अंति: (-), (पू.वि. अलग-अलग गाथांक लिखा है., वि. गाथा २१+२=२३.) ८९००७. (+#) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १३४३४-४०). आदिजिन स्तवन-आडंपुरमंडन, मु. गोविंद मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जिम जाण दूरे; अंति: तुम तुठां आणंद रली, गाथा-२४. ८९००८. सम्यक्त्व भेद, गाथा संग्रह व क्षपकश्रेणि उपशमश्रेणि विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित., जैदे., (२५.५४११, १६४५२). १.पे. नाम. सम्यक्त्व के ९ नाम विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ख्यायकसम्यक्त्व१ भेद; अंति: करो एवं सर्व भेद ९. २.पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: पंचमे यथा भावो य पढम; अंति: पवज्झाए रसा भणिया ८, गाथा-८. ३. पे. नाम. क्षपकश्रेणि उपशमश्रेणि विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: अण४ जीव जीवारि आठमा; अंति: संघातिसंघाति उपशमावी, (वि. संदर्भ गाथा युक्त. अंत में संबंधित यंत्र भी दिया गया है.) ८९००९. सनत्कुमारचक्रवर्ती व भरतबाहुली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७१३, चैत्र शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. भक्तिधर्म, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४५०-५५). १.पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. राज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अमर तणी वाणी सुणी; अंति: ए मुनिवरनु आज, गाथा-१८. २. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबल चारीत लीयोजी; अंति: विमलकीरति सुखदाय, गाथा-१२. ८९०१०. दीक्षाविधि व दशदिग्पाल पूजाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १३४३५). १. पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सांझरी वेला चारित्र; अंति: तिपयाहिण वास उसग्गो. २. पे. नाम. दशदिग्पाल पूजाविधि, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ओं विसर विसर; अंतिः आगच्छ आगच्छ स्वाहा. For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३२ M3 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९०११. कामदेव श्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११, १४४३७). कामदेव श्रावक सज्झाय, म. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: एक दिन ईट्टै प्रशंस; अंति: कुसालचंद कियो प्रकास, गाथा-१७. ८९०१२. (+) गणधरवाद व १८ दोष, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, २२४५६-६०). १. पे. नाम. गणधरवाद, पृ. १अ-३अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेव केवल; अंति: थाकता देवलोकै गया, (पू.वि. 'ते कुण छे ते' से 'कविण सतामरता देखी' पाठ तक नही है.) २.पे. नाम. १८ दोष विचार, पृ. ३अ, संपूर्ण. १८ दोष विचार-गर्भपालन विषे, मा.ग., गद्य, आदि: जे गर्भवंती दिवसे घण; अंति: आवै अथवा बहिरु थाइ. ८९०१३. औपदेशिक छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१०.५, १०४३०-३५). औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती भारती चरण नमेव; अंति: रंग मनि धरजो चोल, गाथा-१६. ८९०१४. नेमिजिन स्तवन व औपदेशिक दुहा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १३४४०-४५). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १७८८, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. कुसलसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य. म. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: नेम वल्यो रथ मोरिने; अंति: पुगी मन जगीस रे, गाथा-१९. २.पे. नाम, औपदेशिक दहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: कजल तजै न स्यामता; अंति: अजाणका जैसे रंग पतंग, दोहा-३. ८९०१५. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, २३४५८). भरतचक्रवर्ती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: आरीसाना भवनमा बेठा; अंति: पीण सुख लुखा प्रणाम, ढाल-३. ८९०१६. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, बारा भावना सज्झाय व मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, २२४५९). १. पे. नाम. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: इण सर्वार्थसिद्ध कै; अंति: बोल्या इण पर बाणी जी, गाथा-२५. २. पे. नाम. बारा भावना की सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. जैपुर, प्रले. जग, प्र.ले.पु. सामान्य. १२ भावना सज्झाय, मु. रिखजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीरजी विनउरे; अंति: रिख० आराधो जिनवाण हो, गाथा-१६. ३. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: रे छुटीजे गर्भावास, गाथा-५. ८९०१७. (+) कोशास्थूलिभद्र सज्झाय, पार्श्वजिन स्तवन व नेमराजिमती पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५७). १. पे. नाम. कोशास्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि गीत, म. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: (१)अडी हांडी अम्हा उनसै, (२)च्यार घडीउ मुकै चिई; अंति: नित्यलाभ गुण गायडे, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. सूजस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौडीपारसनाथ सोहा; अंति: सुजस विस्तार सदा, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मोने प्यारो; अंति: रूपचंद० बे कर जोडि, गाथा-७. ४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४३३ मा.गु., पद्य, आदि: आवो कोकरीउ रे मुझी; अंति: मुझी आइल झलम पाइडे, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ.१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अली हां हां वो; अंति: मेरो सब सिणगार, पद-१. ८९०१८. सारदादेवी छंद, संपूर्ण, वि. १८२५, भाद्रपद शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सुपानगर, प्रले. पं. दयाचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १८४४५-५०). शारदामाता छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसवचन समता मनि आणी; अंति: आस फलसे सविताहरी, गाथा-३४. ८९०१९ (१) दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १७८५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. रायचंद शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दानसीलतप भावना रास., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १७-२१४५०-५६). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-९५, ग्रं. १३५. ८९०२० (+-) सीतासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४३४). सीतासती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: सोवन वाडी मे मीरग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ की गाथा-१६ तक लिखा है.) ८९०२१. (+) औपदेशिक सज्झाय, तेरकाठिया नाम व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, ११४४५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. मनोहर, मा.गु., पद्य, आदि: लख चौरासी जोन मैरे; अंति: लाल मनोहर कहे वीचारे, गाथा-११. २. पे. नाम, १३ काठिया नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: जुवा१ आलस२ सोक३ भय४; अंति: तब पावै पद निरवाण. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अति परिचयादवग्या सतत; अंतिः सदा सुखी प्रथिराज, गाथा-२. ८९०२२. (+#) चारित्रमनोरथमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पंडित. धर्मकीर्तिमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४५०). चारित्रमनोरथमाला, म. खेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिसर पाय नमी; अंति: श्रीखेमराज० लहइ अपार, गाथा-५२. ८९०२३. (+#) महावीरजिन स्तवन व मदनरेखासती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, ११-१४४३८-४८). १. पे. नाम. महावीरजिन १० स्वप्न स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: सासणनायक समरीयैरे; अंति: सुत्त भगोतीरी साख, गाथा-१३. २. पे. नाम. मदनरेखासती चौपई-ढाल ४, पृ. १आ, संपूर्ण. मदनरेखासती चौपई, मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८९०२४. (+#) दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६७२, आश्विन शुक्ल, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. लाठीपुर, प्रले. पं. चारित्रहर्ष (गुरु पं. प्रमोदविनय, खरतर गच्छ); गुपि.पं. प्रमोदविनय (गुरु उपा. भावहर्ष, खरतर गच्छ); उपा. भावहर्ष (खरतर गच्छ); पठ. श्रावि. बाल्हीबाई; राज्यकाल आ. जिनमाणिक्यसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ९४२४). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: गजसारेण अप्पहिआ, गाथा-४४. ८९०२५. १८ पापस्थानक परिहार कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, ११X४०). For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८ पापस्थानक परिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर रूप विचार चतुर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल १ जीवहिंसापरिहार तक लिखा है.) ८९०२६. (#) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X११, १३४३४-४० ). धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि धन धन धनो सालिभद्र, अंतिः लहे ते रवणी दीह रे, गाथा - ११. ८९०२७ (+) अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १६९०, भाद्रपद कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. देवविजय गणि (गुरु ग. विमलहर्ष); गुपि. ग. विमलहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५x११, ११४३५-४० ). अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु. सं., प+ग, आदि पहिला सर्व सजाई; अंति: बलिं रक्ष स्वाहा. ८९०२८. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. दोलत, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X११, १२X३०). शांतिजिन स्तवन, मु. दोलतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिनेसर जिनवरु व; अंति: सीस दोलतविजे गुण गाय, गाथा - ९. ८९०२९. दानशीलतपभावना प्रभाती व औपदेशिक दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११, ८-१०X२३-३७). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म कीजीय; अंति: ता मुगत तणा फल त्याह, गाथा- ६. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८९०३०. (+) व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रावण कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. खूबचंद (गुरु मु. उत्तमविजय); गुपि. मु. उत्तमविजय (गुरु पन्या, कांतिविजय): पन्या, कांतिविजय (गुरु पंन्या. केसरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी आठवोल विचार पत्र अंत मे 'श्री सुमतिजिन प्रसादात्' लिखा है., संशोधित. जैवे. (२६११, १२X४०). व्याख्यान संग्रह, प्रा., मा.गु., रा. सं., प+ग, आदि देवपूजा दयादानं अति: मंगलीकमाला होवे. ८९०३१. सीमंधरस्वामि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२४.५x१०.५, १५४५५). "" " सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि सफल संसार अवतार हुं; अति पूर आस्था मन तणी, गाथा - १८. ८९०३२. (+) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, ११४४५-५०) साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि रिसह जिण पमुह चउवीस अति (-) ( पू. वि. गाथा- ७४ अपूर्ण तक है.) ८९०३३. आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. अणंदपुर, प्रले. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी अषाढभुत०, जैदे., (२५.५x११, १७४४०). प्र.वि. हुंडी:अषाढभुत०., आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु, पद्य, वि. १८३६, आदि: दरसण परीसो वावीसमो; अति वचती आसता रे लाल, ढाल ५. ८९०३४. गोतमस्वामी पश्चाताप व महावीरजिन कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी गौतम पश्चाताप., दे., (२५.५x११, १८४५६). १. पे. नाम गौतमस्वामी पश्चाताप, पृ. १अ १आ, संपूर्ण गौतमस्वामी प्रायश्चित्त, मा.गु., गद्य, आदि: रात रही प्रभाते पाछा; अंति: महोटो अतिशय कहो छे. २. पे. नाम. महावीरजिन निर्वाणकथा - संक्षिप्त, पृ. १आ- ३अ, संपूर्ण. महावीरजिन कथा-संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, आदि: जे रात्रिये भगवान; अंति: ७२वर्ष पूरा थाय छे. For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ८९०३५ (+) औपदेशिक सज्झाय व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२५x११, १२४३०) . १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: इक घर घोडा हाथिया जी; अंति: लावन्य० फल जोय, गाथा - १२. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीर ते सिद्ध थया संघ; अंति: देवचंद्र पद लीधो रे, गाथा-८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८९०३६. शिवपुरनगर सज्झाय व मल्लिजिन पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. पीपाड, प्रले. सा. गुमाना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, १८४५०-५५). १. पे. नाम. शिवपुरनगर सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो श्रीवीर सीवपुरन; अंति: त्र अणुसारे एम भासई, गाथा - १९. २. पे. नाम. मल्लिजिन-पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ', मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८४२, आदि हरीया रंग भरीया हो न अति गतसु हीवडे हरख उलास, गाथा १३. ८९०३७. सीमंधरजिन स्तुति व पद्मप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. हेमा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १७४५३-५५). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु.नेत, मा.गु., पद्य, आदि सीमंधर रे जिणवर पय प अंतिः नेतमुनि बंदे सदा, गाथा- ९. २. पे. नाम पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि पद्मप्रभुसु काजसुं; अंतिः नेत संदेसे क्युं लहु गाथा ५. ८९०३८. १२ देवलोकना गांगीया अणगारनी पृच्छा व एकसंगोग्यादिरूप संख्यादि कल्पसंख्या यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X११, ४९x१८). १. पे. नाम. १२ देवलोकना गांगीया अणगारनी पृच्छा, पृ. १अ, संपूर्ण. संयोगी भांगा बोल, मा.गु., को. आदि (-); अंति (-). २. पे. नाम. एकसंगोग्यादिरूप संख्यादि कल्पसंख्या यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. एकसयोग्यादिरूप संख्यादि कल्पसंख्या यंत्र, मा.गु., को., आदि (-) अंति: (-). ८९०३९. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१७, भाद्रपद कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १, दे., ( २६११, १३×३६). साधारणजिन स्तवन- मकसूदावादमंडन, पं. शांति, मा.गु., पद्य, वि. १९९७, आदि जिणंद पद दरशण दुरगति, अंति शांति० ई अजवाली, गाथा-८. ८९०४०. रेवतीश्राविका सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५X११, २२x२०). रेवती श्राविका सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि सोवन सिंघासण रेवती, अंतिः सफल कीयो अवतार रे, गाथा- १०. ८९०४१. ४ मंगल पद, संपूर्ण वि. १८८४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, रविवार, मध्यम, पू. १, प्र. मु. रूपकुशल पठ. मु. भक्तिविजय, 7 , ४३५ प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२६४१०.५, १६x४० ). ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि सिद्धारथ भूपति सोहि अंति उदयरत्न भाखे इम, ढाल -४, गाथा - २१. ८९०४२. नमस्कार चौवीसी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. २, जैदे. (२५४११. १५४४५-५०). " " नमस्कारचौवीसी, मु. लखमो, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: पढम जिणवर पढम जिणवर; अंति: नमु जिम पामु भवतीर, गाथा - २४. ८९०४३. (+) स्तवन, अष्टपदी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. १२, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १२X३७-४०). For Private and Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: या चेतन की सब सुधि; अंति: सुख होइ वनारसिदास, गाथा-४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: चेतन तूं तिहुं काल; अंति: जिय होइ सहज सुरझेला, गाथा-४. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: मगन होइ आराधो साधो; अंति: वह जैसेका तैसा, गाथा-६. ४. पे. नाम. मूढशिक्षा अष्टपदी, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे क्युं प्रभु पाईय; अंति: विना तूं समजत नाही, गाथा-८. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे क्युं प्रभु पाइइ; अंति: तव को किहि भेटै, गाथा-८. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: चेतन उलटी चाल चले जड; अंति: चढि बयठे ते निकले, गाथा-४. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: तु आतम गुण जान रे; अंति: ओर न तोही छोडावणहार, गाथा-७. ८. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: रे मन कुरु सदा संतोष; अंति: वनारसी० नृपति को रंक, गाथा-४. ९. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन नैकु न तोहि; अंति: सुमिरन भजन आधार, गाथा-४. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दुविधा कब जे है या; अंति: बलि बलि वाछेन की, गाथा-४. ११. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हम बैठे अपने मोनस्यु; अंति: सुरझै आवागौनसों, गाथा-४. १२. पे. नाम. रामायन अष्टपदी, पृ. ३आ, संपूर्ण. रामायण अष्टपदी, पहिं., पद्य, आदि: विराजै रामायन घटमां; अंति: निहचै केवल राम, गाथा-८. ८९०४४.(+) पत्रप्रशस्ति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३९, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. काला, प्रले.पं. धनरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६४३८-४१). पत्रप्रशस्ति संग्रह, पुहिं.,सं., प+ग., आदि: स्वस्ति श्रीव्रज; अंति: वृंदचंद कैसो रूप है. ८९०४५ (+) प्रास्ताविक व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१५, आश्विन कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १९४५८-६३). १.पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा-श्लोक संग्रह, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: प्रथम श्रोतागुण एह; अंति: ताका माठा कर्म, श्लोक-६८. २.पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: न चोर हारी न च राज; अंति: मन में चिंतवे कि, (वि. गाथांक अलग-अलग क्रम में दिया है.) ८९०४६. सामायिक ३२ दोष स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १०४३५). सामायिक ३२ दोष स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरनइ प्रणमु; अंति: रमण ते निसचै वरइ, गाथा-१३. ८९०४७. (#) गौतमस्वामी रास, पार्श्वजिन स्तवन, ६ लेश्या व १२ देवलोक नाम संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ५-१(४)=४, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १२४३२-३९). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. १८८९, श्रावण शुक्ल, १३, ले.स्थल, खजवांणा, प्रले. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४३७ आ. जयरंगसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल; अंति: जयेरंगसुरी इम भणे ए, गाथा-६१, (पू.वि. गाथा-४८ ___अपूर्ण से ५८ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. ___मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सोभागी हो साहि; अंति: माहरै तूंहि ज रे देव, गाथा-५. ३. पे. नाम. ६ लेश्या नाम, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: कीसन लेस्या १ नील; अंति: सुकल लेस्या ६. ४. पे. नाम. १२ देवलोक नाम, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: पेलो सुधरमा देवलोके; अंति: (-), (पू.वि. पांचवा ब्रह्म देवलोक तक है.) ८९०४८. (#) क्रोधमानमायालोभ सज्झाय व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११,१९४४१-४५). १.पे. नाम. क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करीयै भोला; अंति: रे पामे सुख निसीदिस, ढाल-४, गाथा-३२. २.पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: हुं छु रे अबला तोरा; अंति: ० पहिले मुगते विराजी, गाथा-७. ८९०४९ २० विहरमानजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. उजमबाई- पानु छे., ., (२५.५४११, १०४३०-३६). २० विहरमानजिन स्तवन, मु. योग्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: चार जंबुधिप जाणिइ ए; अंति: ओगय० ए जनसु वाधे एके, गाथा-१२. ८९०५० (+#) सीमंधरजिन पत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४४५). सीमंधरजिन विनती पत्र, क. नर, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमहाविदेह; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "पत्र-२ जीवाजीने आणंद हर्ष" तक लिखा है.) ८९०५१ (#) औपदेशिक सज्झाय व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १७४२९). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजन हो राजन नाम; अंति: गुनसागरजे पाम भवपार, गाथा-१४. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी पहला रषभनाथ; अंति: (अपठनीय), (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ८९०५२ (4) ५ इंद्रिय सज्झाय व २२ अभक्ष निवारण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४१०.५, १३४३८). १. पे. नाम. ५ इंद्रिय स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: सुजाण लहो सुख सासता, गाथा-६. २. पे. नाम. २२ अभक्ष्यनिवारण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: भव्य प्राणी रे जिन; अंति: सुख पावै सर्वदा, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ८९०५३. (#) नेमराजिमती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४११, १६-१८४४५). नेमराजिमती रास, म. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: सुप्रसन नेमि जिणंद, गाथा-६५. ८९०५४. (+) गोडीपार्श्वनाथ, तीर्थमाला व आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११,११४३५-४०). For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पू. ११-३अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि वदन अनोपम चंदलो गोडि, अंति सेव करतां सुख लहइ, गाथा-४१. २. पे नाम तीर्थमाला स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि सेगुंजे रीषभ समोसर, अंति: समयसुंदर कहे एम की गाथा २१. ३. पे नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जयो जगनायक जगगुरु रे; अंति: द्यौ दरसण सुखकंद, गाथा-५. ८९०५५ (+) नेमजीरहनेमिराजमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी आषाढ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २)=१, ले. स्थल. जोधपुर, प्र. वि. प्रतिलेखकनाम अस्पष्ट है, अशुद्ध पाठ संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४.५x११.५. १५X४२). नेमराजिमती चौपाई, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०४ आदि (-) अंति: जेमल कहे नेमजिणंदा, गाथा- ४१, (पू.वि. गावा- ३१ अपूर्ण से है.) ८९०५६. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैदे. (२५.५x११, १०x३०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי शांतिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर सेवीये; अंति: जिनेंद्रसागर जयकार, गाथा-१०. ८९०५७. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. महिमावती, प्रले. मु. उत्तमऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे., (२५.५x१०.५, १२४३४-३९). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा-४४. ८९०५८. (+) आलोयणा विचार, संपूर्ण वि. १७५९ श्रावण शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. करमसीमुनि (गुरु ग. ज्ञानमेरु, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. ग. ज्ञानमेरू (गुरु उपा. आणंदकुशल, बृहत्खरतरगच्छ); उपा. आणंदकुशल (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: आलोयणा पत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., ( २४.५X१०.५, १३x४६-४८). आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि ज्ञानाशातनायां जघन्य अति: १० उपवास हुवै. ८९०५९ (+) संथारापोरसीसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी संथारा पो., संशोधित, जैदे. (२६११, ५५३८). י संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि निसीहि निसीहि निसीहि; अंतिः इअ समत्तं मए गहिअं, गाथा- १४. संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बाह्याभ्यंतर परियह; अंति: उचरवी सम्यक्त्व लीइ. ८९०६०. अष्टाह्निकाधुराख्यान, संपूर्ण वि. १७८२, फाल्गुन शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पू. ४, प्रले आ हीररत्नसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: अठाही व्याख्यान, जैदे., (२५X११, १७६०). अष्ठाह्निकाथुराख्यान, आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा गुरुं गिरे, अति तस्तात्पुण्यवृद्धये. (२५.५X१०.५, ४-८४६२). १. पे नाम श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह अवचूरि, पृ. १अ - ४, संपूर्ण. ८९०६१. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२६११, १४४३३). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: दीधो सदा चिरंजीवी, (वि. ६७ पाट तक है.) ८९०६२. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह अवचूरि व संथारक विधि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. त्रिपाठ., जै., For Private and Personal Use Only वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. वंदित्तुसूत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: कृत सामायिकेन; अंति: वृतितोवर चूर्णितश्च. २. पे. नाम संधारक विधि, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि निसीहि निसीहि निसीहि अति इअ समत्तं मए गहिअं, गाथा- १४. ८९०६३ (+) संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ९X३७-४८). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तिलोअगुरु अंति सो लहइ नत्थि संदेहो, गाथा - ७४. Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४३९ ८९०६४. सम्यक्त्वपच्चीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११, ५४३८-४३). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: होउ सम्मत्त संपत्ती, गाथा-२५. सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिम सम्यक्त्वनु; अंति: सम्यक्त्व संप्राप्ति. ८९०६५ (+) रत्नाकरपच्चीसी व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १२४३८-४३). १. पे. नाम, रत्नाकरपच्चीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: प्राणभाजां श्रुतांगी, श्लोक-४. ८९०६६ (+) विविध ग्रंथोद्धृत औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७७५५). औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: दय१ संगहर भय३ कालुणि; अंति: गच्छिज्जच्चुयं जाव, (वि. गाथांक अलग-अलग दिया है.) ८९०६७. जिनबिंब प्रवेशप्रतिष्ठादि विधि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४५४). जिनबिंब प्रवेशप्रतिष्ठादि विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: भला मुहूर्त्त जोईइ; अंति: ध्वजदंडौ कार्यों, (वि. ध्वजदंड विधि तक लिखकर पूर्ण कर दिया है.) ८९०६८.(+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ८४३५). पार्श्वजिन अष्टक, सं., पद्य, आदि: सुरदानवमर्त्यमुनींद; अंति: गुरूणां सुप्रसादतः, श्लोक-८. ८९०६९ चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:चउ०प०., जैदे., (२४४११, १८४३५-४०). चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ८९०७० अर्बुदगिरि-अचलगढतीर्थ प्रतिष्ठादि लेख, संपूर्ण, वि. १७०९, वैशाख शुक्ल, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अचलगढ, प्रले. मु. तेजा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आदनाथजी., जैदे., (२५४११, १६x४५). अर्बुदगिरि-अचलगढतीर्थ प्रतिष्ठादि लेख, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संवत् १५६६ वर्षे; अंति: सवत१५१८० भरावी छे. ८९०७१. बुध रास, संपूर्ण, वि. १७८३, भाद्रपद शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. गुढाग्राम, प्रले. पंडित. विद्याशेखर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बुद्धिरास., जैदे., (२५.५४११, १५४४५-५०). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देव अंबाई; अंति: त्यारा टलै कलेस तो, गाथा-६३. ८९०७२ (+) मौनएकादशीपर्व कथा, १८ भार वनस्पति दोहा व ८४ लाख जीवयोनि विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १८४५१-५७). १. पे. नाम. सुव्रतश्रावक मौनएकादसी कथा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अथ मार्गशीर्ष; अंति: प्रसादानं माला भवतु. २.पे. नाम. अढारभारवनस्पती विगत सह बालावबोध, पृ. २आ, संपूर्ण. १८ भार वनस्पतिमान दोहा, रा., पद्य, आदि: कोडि तीन लख वसु ससि; अंति: सुरभीसु वसत सार, दोहा-२. १८ भार वनस्पतिमान दोहा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ६८६०१७८००० इतरी जाति; अंति: भार४ फूलां फलाहीण छै. ३.पे. नाम. चउरासीजीवयोनी विगत, प. २आ, संपूर्ण. ८४ लाख जीवायोनि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: वर्ण१ गंध२ रस३ फरस४; अंति: योनि एक जाति कही जइ. ८९०७३. (4) जंबूस्वामी सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४२). १. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणीक नरवर राजीउ; अंति: मगति मोह मझारी रे, गाथा-१७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: लख चोरासी फेरा; अंति: तिम ताहरो थासे नही०, गाथा-७. ८९०७४.(#) गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. १८६३, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कृष्णगढनगर, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, ९४२४-३०). गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: श्रीवीर जिणेसर केरो; अंति: मन वंछित फल दातार, गाथा-१०. ८९०७५ (+) देवकीराणी सज्झाय, १० चक्रवर्ती सज्झाय व गुणमालानी, संपूर्ण, वि. १८५०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. अजमेर, प्रले.सा. लाछां आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४११, १९x४८). १. पे. नाम. देवकीमाता सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. देवकी सज्झाय, मु. रायचंदजी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदि: श्रीवसुदेवनी पट्ट; अंति: रायचंद० काठ कानी आया, गाथा-१८. २. पे. नाम. १० चक्रवर्ती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १० चक्रवर्ती सज्झाय-मोक्षगामी, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४८, आदि: श्रीरिषभदेवरो ननण; अंति: रायचंद०प्रसिद्ध जाणी, गाथा-१४. ३. पे. नाम, गुणमालानी, पृ. १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी गुणमाला, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम दिख्या लिनी; अंति: रायचद०बंदु त्रिहुकाल, गाथा-१५. ८९०७६. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. नयविमल; पठ. श्राव. कनका, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १६४५०). महावीरजिन स्तवन-सोवनगिरि, क. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस सुकोमल शीतल वाणी; अंति: कमलविजय जय जय करउ, ढाल-२, गाथा-३२. ८९०७७. सिद्धाचलमंडण ऋषभदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, १३४४१-४५). आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभजिणंद विमलगिरि; अंति: दघन० आनंदरस पी रहीये, गाथा-१३. ८९०७८. धर्मोपदेश सज्झाय, १४ गणस्थानक सज्झाय व २८ लब्धि नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११,१७४४३). १. पे. नाम. धर्मोपदेश सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-धर्म, मा.गु., पद्य, आदि: धरम वीना जुगमे रूलौ; अंति: नर तेहनो भागो रे, गाथा-१८. २. पे. नाम. १४ गुणस्थानक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: चवदै थानकरा जीव ए; अंति: आइ ग्यांनी तणी ए, गाथा-९. ३. पे. नाम. २८ लब्धी नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २८ लब्धि नाम, मा.ग., गद्य, आदि: आमोसही विप्पोसही; अंति: ए मइ होति लिद्धीउ२८. ८९०७९. त्रेवीसपदवी गतीआगती विचारादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११, २५-३०४३०). १. पे. नाम. त्रेवीस पदवी गतीआगती विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. २३ पदवी गतीआगती विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररत्न१ छत्ररत्न२; अंति: ए त्रेवीस पदवी जाणवी. २. पे. नाम. समुर्छिम मनुष्य उपजवाना ठाम, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४४१ १४ स्थान समुर्च्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि उच्चारे वडीनिती पास, अंतिः सव्व सूच असूचि ठाणे. ३. पे. नाम. २४ जिन, चक्रवर्त्ति व वासुदेव तनुमान आयुमान, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, नाम देहायुमान विवरण, मा.गु., को.. आदि ऋषभ१ भरत धनुष ५०० अति महावीर हाथ ७ वर्ष ७२. ८९०८०. (-) महावीरजिन स्तवन, चौपटखेल सज्झाय व समकित निर्मल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १(१)=१, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५X११, १४X३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन- पारणागर्भित, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तिन्है नमै कवि माल, गाथा - ३२, (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. चोपडि सीज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय चौपटखेल, आ. रत्नसागरसूरि, पुहिं, पद्म, आदि प्रथम उसभ मल झाटकी अति: (१) रत्नसागर कहै सूर रे, (२) चोपडि एण विधि खेल रे, गाथा- ९. ३. पे नाम समकित निर्मल सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय-समकित निर्मल, मा.गु, पद्य, आदि समकित निरमल जल करो, अति: मुगत तणा फल होयोजी, गाथा - ५. ८९०८१. (+) पट्टावली, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२५x११, १९४५४). "" " पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु, गद्य, आदि श्रीवर्द्धमानजिनशासन अति जयचंद्रसूरि० जयतलदे (वि. पाट ६३ तक है व ३ नाम बाद में लिखे हैं.) ८९०८२. (४) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे. (२४.५५११, ११x४०). औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८५५, आदि मांगे मन लागो हो; अति: दिपतो मेडतनगर " चोमास, गाथा १७. ८९०८३. नेमराजिमति स्तवन, गीत व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., । १७X३५-४० ). १. पे नाम. नेमराजिमती स्तवन, पू. १अ संपूर्ण. मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवल गोखने अवल झरुंखे; अंति: देवविजय जयकारी, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि नेम मिले तो वाता; अति द जस लीजीए हो प्यारे, गाथा-५. " ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि धन धन खेत्र विदेह हो; अति रतनचंद० आपारी रे लाल, गाथा- ७. ८९०८४. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. वालोचर, जैदे., ( २४.५X११, ६X३६). आदिजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सूरति स्वामी तुम्हार; अंति: निज सेवा निरधारी वे, गाथा-४. ८९०८५ कर्मविपाकफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०२, आश्विन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. पंचपदरा, प्रले. पं. कस्तुरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X११, १४४३८-४०). - कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि देव दाणव तीर्थंकर अंतिः नमो करमनु राजा रे, गाथा १९. ८९०८६. (*) नेमिजिन गीत, नेमराजिमति व विजयप्रभसूरि सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., ( २५X११, १०x४६). י For Private and Personal Use Only १. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. . रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदिः पीउजी रे पिउजी नाम; अंति: रूपवि० भेटइ आस्या फली, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. (२४.५X१०.५, Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वा. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सूरतिमंडण केवलनांणी; अंति: आपो मुगति पटराणी रे, गाथा-३. ३. पे. नाम. विजयप्रभसूरि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. लाभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वारिज भूतनयातनि आणी; अंति: गुरुगण गाय निसदीस, गाथा-७. ८९०८७. सुखदेव सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:सज्झाय., दे., (२५४११, १६x४२). सुखदेव सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरग थकी चव अवतर्यो; अंति: देवजीरो कीधो इधकार, गाथा-२५. ८९०८८ (#) २४ जिन स्तवन व पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १२४४०-४५). १. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १७९३, पौष शुक्ल, १०, शुक्रवार, ले.स्थल. लांबोरी, प्रले. मु. माणकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. २४ जिन स्तवन-अनागत, म. देवकलोल, मा.गु., पद्य, आदि: परषद बेठी तिवार गोयम; अंति: इम पभणै श्रीदेवक लोल, गाथा-१५. २.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १७९३, पौष शुक्ल, ११, शनिवार, प्रले. ग. माणिकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपणे घेर बेठा लील; अंति: समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८. ८९०८९ (4) पद्मावतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १८७०, चैत्र शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३६-४०). पद्मावतीदेवी छंद, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकति सदा सानिध करो; अंति: कल्याणनै जयकारणी, गाथा-२८. ८९०९० (+) महावीरजिन १० स्वप्न स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:सपना., संशोधित., जैदे., (२४४११, १८४३५). महावीरजिन १० स्वप्न स्तवन, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: सासणनायक समरीयैरे; अंति: सुत्त भगोतीरी साख, गाथा-१३. ८९०९१. देवकी ढाल, संपूर्ण, वि. १८८२, चैत्र शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. राजनगर, जैदे., (२४४११, २१४३५). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वली इम कहे कुमार आणी; अंति: तिण परे राखजो जी, गाथा-४५. ८९०९२. चेतनसुमतिमिलन सज्झाय, नेमिजिन स्तवन व नेमराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १६४३५-४०). १.पे. नाम. चेतनसुमतिमिलन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अवीनासीनी सेजडीइं; अंति: तांथी प्रीत बंधाणीजी, गाथा-५. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी सामलीउ सामलीउ; अंति: आस्या सवि फली रे लोल, गाथा-२३. ३. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रामविजय, पुहिं., पद्य, आदि: सुन सांइ प्यारा बे; अंति: राम लहे जयकारा रे, गाथा-७. ८९०९३. (4) तपफल विचार व प्रतिक्रमणादि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. पं. रूपचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १६x६९). १.पे. नाम. तपफल विचार, पृ. १अ, संपूर्ण... मा.गु., गद्य, आदि: नरकमाहि नारकी सउ वरस; अंति: तेहथी सर्व प्रबिज्यौ. २. पे. नाम. राईपडिकमण विधि-संक्षिप्त, पृ. १अ, संपूर्ण. देवसीराइअप्रतिक्रमण *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआचार्यमिश्र; अंति: सर्व मंगल कहिजे. ३. पे. नाम. पाखीप्रतिक्रमण विधि-संक्षिप्त, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पुहि.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: देवसी पडिकमणौ ठाईजे; अंति: वडौ स्तवन कहीजे. For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org ४. पे नाम. स्नात्र विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. लघुस्नान विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि प्रथम नित्य जिसी अति कही सर्वसाधु वांदीये. ८९०९४. (f) उपशम व भरहेसरबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, कुल पे २ प्रले. मु. न्यानरत्न राज्यकाल आ. कल्याणरत्नसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५x१०.५, १९४५०-५५). " १. पे. नाम. उपशम सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि भगवती भारति मनधरीजी अंतिः मुनि लखमी कल्लोल रे, गाथा-२१. २. पे. नाम. भरहेसरबाहुबली सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. भरसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि भरहेसर बाहुबली अभव; अंति: जसपडहो तिहुबणे सबले, गाधा -१३. ८९०९५. शीयलव्रत, रथनेमिराजिमती व प्राणातिपातविरमणव्रत सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. २, कुल पे. ३, दे., 5 (२५.५X११.५, १३x४३). १. पे. नाम शीयलव्रत सज्झाय, पू. १अ, संपूर्ण, मु. . कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती केरा रे चरण; अंतिः सीयल पालो नरनारी, गाथा- ८. २. पे. नाम रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि काउसम्म ध्याने मुनिः अति निरमल सुंदर देहरे, गाथा- ९. ३. पे. नाम. प्राणातिपातविरमणव्रत सज्झाय, पृ. १आ - २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: सकल मनोरथ पूरवा रे; अंति: कांति० प्रणमुं पाय रे, गाथा-६. ८९०९६ (+) युगमंधरजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे. (२४.५५११, १७३३-३७). "" १. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४४, आदि: जगगुरु जगमींदर; अंति: आया पापकरम देयो ठेली, गाथा- ९. २. पे नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: महावदेव मे प्रभु रो; अंति: आवागमण अलगी कीजे, गाथा -९. ८९०९७. जंबूकुमार सज्झाय, नेमराजिमती स्तवन व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, जैदे., " ४४३ (२५X११, १३X५०-५५). १. पे. नाम. जंबूकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १७९४, भाद्रपद कृष्ण, ५, गुरुवार. जंबूस्वामी सज्झाय, भाव, पुनो, मा.गु., पद्य, आदि श्रेणिकनरवर राजीयो; अंति भणे तिम पांमो भवपार, गाथा-२०. २. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि मात सिवादेवी जाया; अंति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. हि.प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि जीहां जीहां नयन खुले अंतिः राती पेड माटी हुहीम, गावा-२. ८९०९८. अरणिकमुनि व भरतबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पै. २, दे. (२४४११, १४x२८-३५). १. पे नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि अरणक मुनिवर चाल्यो; अंति: मनवंछित फल सिधो जी, गाधा ८. २. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि बाहुबलि चारित लीवो अंतिः विमलकीरति गुण गाय, गाथा- ११. ८९०९९. पद्मप्रभजिन स्तवन व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जैदे. (२४४१०.५, १०X२८-३५). १. पे. नाम पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण " . " पद्मप्रभजिन स्तवन- संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि धन धन संप्रति सांचउ; अति वेज्यो भव भव सेव रे, गाथा - ९. For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४४ www.kobatirth.org יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि आगणवेल आकासफल अणवाहि; अति: सोवंजी खेलावत पूत, गाथा- १. ८९१०० २० स्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२५x११, १२x२८-३४). २० स्थानकतप विधि, प्रा. मा.गु.. गद्य, आदि अरिहंत भक्ति; अति: पक्वणस्स २००० गुणीइ. ८९१०१. (+) ४ कषाय दृष्टांत कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : कोहे घेवरदृ०, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२४.५x११.५, १७४०-४४). "" कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४ कषाय परिहार-दृष्टांत कथा, रा. गद्य, आदि (१) कोहे घेवर खवगे माणा (२) क्रोधइ करी साध; अति: (-), ', (पू.वि. साधु चारित्रीको आहार अहंकार नहीं कल्पने का वर्णन अपूर्ण तक है.) ८९१०२ (+) वीसविहरमानजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे ६ प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५X१०, १५X४७). १. पे नाम २० विहरमानजिन स्तवन, पू. १अ संपूर्ण २० विहरमान स्तवन, मु. सौभाग्यसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि सीमंधरजुगमंधर राय, अंति: सोहगसुंदर कहइ विचार, गाथा ५. २. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. प्रा. मा.गु., सं., पद्य, आदि जोई सहु वणराइ पिणि; अति धूलडिया वि न दिठ्ठ, गाथा-३. " ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक लोक संग्रह, पुहिं. प्रा. मा. गु., सं., पद्य, आदि संतन का ही जिक्र तरी अंति तिल फिबुवि खल हुति, श्लोक- ८. ४. पे. नाम लेखलेखन पद्धति, पू. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: स्वस्ति शब्दः; अंति: पार्श्वे तस्य दशाशकः, गाथा-६. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. प्रा. मा. गु., सं., पद्य, आदि कणलं कज्जलं नत्थि अतिः तिहां कोन पूछइ वात, गाथा २. - ६. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य*, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदिः ॐ नमो ऊट ऊट कंटारइ; अंति: वीछी उतरइ निसंदेह. ८९१०३. अवंतीसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण वि. १९२१ माघ शुक्ल ८, मध्यम, पृ. १ ले स्थल सिहावा, दे., (२५x११, २४४४६). " अवंतिसुकमाल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि मालवदेश सुहावणोजी; अंति: धन धन अवंतीसुकमाल, गाथा- ३७. ८९१०४ (+) वज्रस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, प्रले. सा. वीरलक्ष्मी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X१०.५, २८x१३). वज्रस्वामी सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि कहइ सुनंदा बांह पसार, अति धन धन जिणसासण जयउ, गाथा - ९. ८९१०५ औपदेशिक सज्झाय व गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७८१, कार्तिक कृष्ण, १०, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, ले. स्थल, गनओली, जैवे. (२५x१०.५, ११-१८४३८-४४). ', १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाव-संसार असार, मा.गु., पद्य, आदि कीत बल आवदा कीत बल; अंति: कोई किसीदा णीही, For Private and Personal Use Only गाथा - ११. २. पे नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाच, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ,जेठमल, मा.गु, पद्य, आदि: वांदुर गजसुखमाल महा; अंति उतम फल पावइ नर तेह, गाथा-१८. ८९१०६. नेमराजिमती वारमासो, संपूर्ण वि. १८४८ आश्विन कृष्ण, ४, मध्यम, पू. १, प्रले. ऋ. विजयचंद पठ, जेता, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१०.५, १४X४०). Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि सांवण मासे स्वाम अतिः कविअण० नवनिधी पामी रे, गाथा - २४. ८९१०७ (+) नेमगोपी संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५x१०.५, १३-१४४३८-४८). नेमगोपी संवाद- चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि एक दिवस वसै नेमकुंवर अति: (-), (पू.वि. ढाल १२ की गाथा - १ अपूर्ण तक है. ) ८९१०८. साधु समकित अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २४.५X१०.५, १६x४३). साधुअतिचार संग्रह*, संबद्ध, मा.गु., रा., गद्य, आदि: प्रथम महाव्रतने; अंति: काच रमुणी रमुणी. ८९१०९ (+) नवकारमंत्र महिमा व नमस्कार महामंत्र छंद, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-४ (१ से ४) -३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२२४११, ९४२७). १. पे. नाम. नवकारमंत्र महिमा, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: गुण सुंदर सीस रसाल, गाथा- १४, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. नवकार अनानुपूर्वी, पृ. १अ, संपूर्ण. अनानुपूर्वी, मा.गु., को., आदि (-); अंति (-), (वि. गाधासहित.) उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंति: कुशल० रिद्ध वंछित लहै, गाथा-१७. ८९११०. नवकार अनानुपूर्वी व मौन एकादशीपर्वनुं गणनुं, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी दोडसैकल्याणक. दे. (२५.५x१०.५, २०x१०-३५ ). २. पे नाम. मौन एकादशीपर्व गणनु, पृ. १अ २आ, संपूर्ण मौनएकादशीपर्व गणणु, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते, अंतिः आरण्यकनाथाय नमः ८९११९. औपदेशिक गहली व आचार्यगुण भास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, दे. (२४.५११.५, १९३६). १. पे. नाम औपदेशिक गहुली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर शिव हेली रागी; अंति: ऋषभ कहे नीज मल धोती, गाथा-५. २. पे. नाम आचार्यगुण भास. पू. १अ १आ, संपूर्ण. मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि नमी सरसति मात सूवान, अंतिः कवि ऋषभविजय गुण गाय, गाथा ५. ८९११२. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., । (२५X११, १७X५०). १. पे. नाम. जिनपाल जिनरक्षित चोढालियो, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ४४५ जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे हुई; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, दाल-३ की गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे नाम औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा-४. २. पे नाम. २४ जिन चैत्यवंदन वर्णगर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहिं. मा. गु., सं., पद्य, आदि भलो जिहां भरतार नार; अंति: घरो धर्म सुलीलता, गाधा १. ८९११३. (-) महावीरजिन स्तुति, २४ जिन चैत्यवंदन वर्णगर्भित व विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्र १x२ हैं., अशुद्ध पाठ, वे. (२१x११, १९x१४). " १. पे. नाम महावीरजिन स्तुति-गधारमंडन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति- गंधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि गंधारे श्रीवीरजिणंद, अंति: जसविजय जयकारी, For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पद्मप्रभने वासपूज्य; अंति: ज्ञानविमल० निसदीस, गाथा-३. ३. पे. नाम. देववंदन विधि- संक्षिप्त, पृ. १आ, संपूर्ण. देववंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरिआवही पडिक्क; अंति: नवकार गणवा पछी० कहीए. ८९११४. (#) मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. साईपुरा, प्रले. श्रावि. मानाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मेगकुमार., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १९४४२). मेघकुमार सज्झाय, म. पुनो, रा., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: निवार हो स्वामी, गाथा-२१, (वि. गाथा-२ अपूर्ण तक खंडित है.) ८९११५. असज्झाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२१४११, ११४२६). __ असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी समरी मात; अंति: शिवलच्छी ते वरे, गाथा-१६. ८९११६. (-#) औपदेशिक सवैया व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२०.५४१०.५, १५४२९). १.पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. ऋ. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: दमडी कारण दनिहा दोडी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ मात्र लिखा है.) २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... मा.गु., पद्य, आदि: आज भलो दिन उगोजी; अंति: मारा सारो मनवंछत काज, गाथा-९. ८९११७. (+) २३ पदवी द्वार, संपूर्ण, वि. १८९८, वैशाख शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. वीरचंद्र; पठ. सा.रीदजी (गुरु सा. श्रीकवरा आर्या); गुपि.सा. श्रीकवरा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पदवी. आचार्यश्री सबलदासजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५४११, १६४३९). २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररतन पइडाने आकार; अंति: पदवी पावे समदिष्टीनि. ८९११८. (+) अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पीपाड, प्रले. जीउ, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अजत., संशोधित., जैदे., (२०.५४११.५, १९४३३). अजितजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीपना भरत मे; अंति: हुं प्रणमुं कृपानाथ, गाथा-३५. ८९११९ मधुबिंद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १३४४०). मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझने रे मात; अंति: परमसुख इम मांगीये, गाथा-१०. ८९१२०. शालिभद्रमुनि सज्झाय व नेमराजिमती बारमासो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२४.५४११, १८४४१). १.पे. नाम. शालिभद्रमनि सज्झाय, प. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: आवे सुखसंपत्ति दोडी, गाथा-३१, (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मु. हर्षकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: हो सामी क्युं आये; अंति: गाइया गावता सुख पावै, गाथा-२६. ८९१२१. २४ दंडक स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१०.५, १७X४७). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन-२४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ ग. धर्मसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर हो सोवनकाय; अंति: दरसण सुरतरु तोलै, ढाल-२, गाथा-२६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिमा हो; अंति: समय० जिनप्रमासु नेह, गाथा-७. ८९१२२. (+) ब्राह्मीसंदरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हंडी:व्राह्मी., संशोधित., दे., (२४४११.५, १५४३६). For Private and Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४४७ ब्राह्मीसंदरी सज्झाय, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४३, आदि: रिखभ राजा रे राणी; अंति: महिमा मे कमी नही काइ, गाथा-२१. ८९१२३. (+) धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८८, चैत्र कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १, प्रले. म. केसरीचंद महात्मा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १९४५१). धन्नाअणगार सज्झाय, म. विनयचंद, मा.ग., पद्य, आदि: जिणसासणसामी अंतरजामी; अंति: विनयचंद गुण गाया, गाथा-२०. ८९१२४. शांतिजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. १, कुल पे.५, दे., (२१.५४१०.५, १०४३५). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिनेसर साहिबा; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-६. २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: (-), गाथा-१, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण मात्र लिखा है.) ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: राम रावणने हण्यो; अंति: कारण कोण जमाल, गाथा-५. ४. पे. नाम, औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जो कछु भली न करी सके; अंति: मन न मिले जिहा फाट. ५. पे. नाम, ओसवाल पोरवाल उत्पत्ति, पृ. १आ, संपूर्ण. ओसवाल पोरवाल उत्पत्ति कवित, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: वर्द्धमानजिन पछी वरस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ८९१२५. (+) औपदेशिक सज्झाय व मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४१०.५, १२४३९). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायाकपट, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कुडकपट कर माया मेली; अंति: रतन० सेठी पकडी माया, गाथा-११. २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: तारे तुटे भवतणी पास, गाथा-५. ८९१२६. मृगापुत्र सज्झाय व मंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२२४११,११४४४). १.पे. नाम, मृगापुत्र सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जी हजो तम पाय दास, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. __ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ८९१२७. पोषध व राई प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११, १५४४३). पौषध व राईप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिकमी लोगस; अंति: लघु उसगहरं कहीजै. ८९१२८. (+) मंगल दीवो व सिद्धाचल स्तवनद्वय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २८-२७(१ से २७)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४१२, ११४३०). १.पे. नाम. मंगल दीवो, पृ. २८अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. ___ मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सवी सुख साधे रे, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. शQजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरगिरि प्रेमे रे; अंति: ध्यान धरे गुरुसाखे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. २८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श–जयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो सेवो रे; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ८९१२९. साधारणजिन स्तवन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:तवन., दे., (२१४११, १५४२६). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०८, आदि: अरिहंतदेवने औलखीस रे; अंति: रामचंद० रे रंगरु, गाथा-१०. २.पे. नाम. औपदेशिक पद-पुण्योपरि, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड मत कर रे; अंति: भरी जी कोटाने कोटी, गाथा-३. ८९१३०. सवैया व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. हुंडी:सवैया पत्र., जैदे., (२४.५४१०, १३४४७). १. पे. नाम. पार्श्वजिन सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण, पठ. पं. रतना, प्र.ले.पु. सामान्य. म. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात समै उठि पूजिइ; अंति: ध्रमसी ऐह मूरति नीकी, सवैया-२. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु.ज्ञान, पुहिं., पद्य, आदि: जदुराय चढे वर राजुल; अंति: ग्यान० गज गाजत गरड, पद-१. ३. पे. नाम, जिनवल्लभसूरि गुरुगण सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. म. नयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: चित्रकूट चामंड; अंति: नयरंग० जाणि गटक गटक, सवैया-१. ४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. ज्ञानसंदर, पुहिं., पद्य, आदि: लाल घोडो लाल पाघ लाल; अंति: लाल जाने मेरो सामरि, पद-२. ५. पे. नाम. नेमराजिमती सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. गुणविनय, मा.गु., पद्य, आदि: लाला भानु प्रात; अंति: राजिमति आस विलास धरइ, सवैया-९. ६. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आदर के भूखे प्यार; अंति: ऐसे कीने करता रहें, गाथा-१. ७. पे. नाम. प्रहेलिका पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. क. चंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम आंक अटकलो; अंति: चंद० सब दूरै रहो, गाथा-१. ८९१३१. अनुयोगद्वारसूत्र का हिस्सा साधु उपमा अधिकार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८१, कार्तिक कृष्ण, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जयतारण, प्रले. मु. बालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अनुजोग., त्रिपाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १८४३९-४१). अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा साधु उपमा अधिकार, आ. रक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: उरग१ गिरि२ जलण३ सागर; अंति: जलरुह१० रवि११ पवण१२, गाथा-१. अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा साधु उपमा अधिकार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अनुयोगद्वारमाहि; अंति: जागास्यइ अहो गौतम१२. ८९१३२ (+#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०, १५४४८). १.पे. नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जय जय जगदानंदन जय; अंति: भगवते ऋषभाय नमो नमः, श्लोक-५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: किं कल्पद्रमसेवया; अंति: सेव्यतां शांतिरेष स, श्लोक-५. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ___सं., पद्य, आदि: परमान्नं क्षुधात; अंति: कथं धन्यतमो न गण्यः, श्लोक-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं; अंति: वासुराः पुण्यभासुराः, श्लोक-५. ५.पे. नाम, महावीरजिन स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org 9 יי सं., पद्य, आदि कनकाचलमिव धीर, अंति बोधाः बोधिलाभाय संतु श्लोक-६. ६. पे. नाम. आदिजिन नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि सिरि रिसहेसर सामिय; अंति: सुंदर० पाय तुझ नमो, गाधा-६. ८९१३३. (+) दंडक प्रकरण, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. कृष्णगढनगर, प्रले. ग. ऋद्धिसुंदर (गुरु ग. राजसुंदर पंडित); गुपि. ग. राजसुंदर पंडित; पठ. मु. हर्षविजय (गुरु ग. रविविजय); गुपि. ग. रविविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२४.५X१०.५, ६X३४-४०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा - ३८. ८९१३४. संजया विचार-भगवतीसूत्रे शतक २५ उद्देश, संपूर्ण वि. १८९० भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. कर्मवाट्या, प्रले. मु. विनयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : संजयापत्रम्., जैदे., (२४X११, २०x४६). नियंठा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणा१ वेय२ रागे३; अंति: पहिलाना संख्यातगुणा, (वि. मार्गणायंत्र सहित.) ८९१३५ औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, दे. (२०.५४११, १५५२८). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय, आसकरणजी, मा.गु., पद्य, आदि: चित निरमल कर समरण; अंति: ध्यान धरो चीइ रे, गाथा- ९. ८९१३६. जैन मंत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, वे. (२४४१०.५, १४४४५) जैन मंत्र संग्रह-सामान्य*, प्रा., मा.गु.,सं., गद्य, आदिः ॐ नमो कालो; अंतिः क्षीँ क्षः स्वाहा. ८९१३७, (d) नेमिजिन स्तवन व नेमिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५x१०.५, १३४४० ). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण, वि. १७०६, पौष कृष्ण, ३, गुरुवार, ले. स्थल, जगणाग्राम, प्रले. मु. संघमाणिक्य (गुरु पंन्या. गजमाणिक्य, तपागच्छ); पठ. सा. राजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमिजिन रास, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि नेमी प्रणमह सुरनर, अंति: धुणिओ श्रीनेमिसरो, गाथा- ७९. २. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि बैठो हियडड़ आविने हे अंति: हे मुगति महलमै रंगी, गाथा- ९. ८९१३८. आदिजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६-४ (१ से ४) - २ कुल पे ४ वे. (२२.५४१०.५, ९४२४). ९. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पू. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. मु. . जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रभु आवागमण निवार, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम रथनेमि सज्झाय, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि काउसग्ग थकी नेमी, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है. ) ३. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण ४४९ मु. गौतम, मा.गु., पद्म, आदि भाव भले भवि पांचमी; अति गौतम० सीवपुर ठाय रे, गावा-८, ४. पे. नाम नरकनिगोद विचार, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पद्म नामे द्रह १००० अति अने नारकी एम वहे छे. (वि. अन्त में ज्योतिचक्र विचार प्रारंभ करके छोड़ दिया गया है.) ८९१३९. (#) २३ पदवी विचार यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्र १x२ हैं. पत्रांक अंकित नहीं है. अक्षरों की फैल गयी है, वे.. (२३४११.५, २५४३१) प्रज्ञापनासूत्र- २३ पदवी विचार यंत्र, मा.गु, यं., आदि तिर्थंकर चक्रवर्त्तिः अति: सर्वविरति केवलि " ८९१४०. मुगत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२३४१०.५, ११४३५) औपदेशिक सज्झाव मुक्ति, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि सम भूतेलथी उंचि इधकी, अंति: आगम अरथ सुणी छे, For Private and Personal Use Only गाथा - ११. " ८९१४९. आदिजिन विशेष नामावली व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, दे. (२५.५४१०.५, १२४४०). १. पे. नाम आदिजिन विशेष नामावली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो सृष्टिकर्तार; अंति: नामा सर्वगति सदाजी. २.पे. नाम, कंकणी बंध, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुरीसाणी अजमुं टां.१; अंति: अग्रे स्तंभनं भवति. वैकालिकसूत्र-सज्झाय-अध्ययन २, दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, सतरह संयम भेद व देवआयुषय विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२३.५४१०.५, ११४३४). १. पे. नाम, दशवैकालिकसूत्र की सज्झाय-अध्ययन २, पृ. १अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन २-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमवा नेमि जिणंदनई; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय १, पृ. १अ, संपूर्ण.. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुपदपंकज नमीजी; अंति: वृद्धिविजय जयकार, गाथा-५. ३. पे. नाम. सतरह संयम भेद नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १७ संयमभेद नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पृथवीकाय असंयम १; अंति: ते संजम १७ जाणवा. ४. पे. नाम. देव आयुष्य विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र आठवे देवलोक का विवरण अपूर्ण तक लिखा है.) ८९१४३. श्रीपालराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२३, चैत्र शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मोटा गाव, प्रले. दौलत, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४११, १७४३६-३८). श्रीपाल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविजय करी श्रीपाल; अंति: देखाडी जगी गुणगेहरे, गाथा-११. ८९१४४ (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२.५४१०.५, १६४३९). ऋषिमंडल स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८१ तक लिखा है.) ८९१४५. ४ शरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. सा. रुपा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४१०, १७४३४). ४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै चार सरणा करवा; अंति: नो सो पडिवजूं छं. ८९१४६. ज्ञानचंदजी गुरुगुण गहुंली व दोहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१०.५, ११४४२). १.पे. नाम. दहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण... प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: सोना रूपाना कैरा; अंति: मन वसै ताहु के पास, गाथा-११. २. पे. नाम. ज्ञानचंदजी गुरुगुण गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: समुदारी लहरडीया; अंति: वाधो रे कुश्रीसिंघजी, गाथा-४. ३. पे. नाम, औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहासंग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: म्हासिंघ मन दूध की; अंति: मन फटका गइ प्रीत, दोहा-१. ८९१४७. पार्श्वजिन स्तवन, पार्श्वजिन पद व दहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३८). १.पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. अभयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता सेवका दे; अंति: अभयसोम० दायक __ भगति, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जन्म बनारस ठाम मात; अंति: सिद्धि मंगल करण, पद-१. ३. पे. नाम, औपदेशिक हो, पृ. १आ, संपूर्ण. दहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सजन असा कीजीय; अंति: चख्या नही रहा उमवालग, गाथा-१. ८९१४८. आगमषट्त्रिंशिंका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४२-४४). For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org 2 आगमछत्रीशी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुहगुरु चरणकमळ प्रणम; अंति: पासचंदि हरखिं भणिय, गाथा - ३५. ८९१४९. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५.५x११, १०x३६) पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि सुणि माहरी अरदास रे अति सगलइ पिण जोवइन हारे, गाथा -९. ८९१५०. आदिजिन व वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. मना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X१०.५, १५X४० ). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: श्रीरिषभ सघला पत्नी जा; अंतिः कोई राखीजी मती, गाथा १५. २. पे नाम वासुपूज्यजिन स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण, मु. . रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: श्रीवासुपूज्य संजम; अंति: जगगुरु पांचु जिणंदो, गाथा-१५. ८९१५१. (*) नमस्कारमहामंत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५x१०.५, ११X३५). नमस्कारमहामंत्र सज्झाय, मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रवचन जगजय; अंति: मुनि विमलमनिधरी जगीस, गाथा - १३. ८९१५२. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६x१०.५, २२४५१). विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि प्रमोदाय कृतोप्यासीद अंति: देहसंख्या स्वमानेन. ८९१५३. (+*) सम्यक्त्वना ६७ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ टीकादि का अंश नष्ट है, जैवे., (२५.५X११, १६x४८). ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चउसद्दहणा तिलिंग दस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, प्रकार-८ प्रभावना का वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ८९१५४. (f) पार्श्वनाथ बारमासो, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५.५४१०, १५X४१-४६). ४५१ मु. नवल, मा.गु., पद्य, आदि हा रे बिदरा लग्यादि अति: नवल० भव तुम पाए सेव गाथा ४. , ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: ०जिणेसरु प्रभावती; अंति: ते सुजाण सुविचारी, गाथा - २९, (वि. आदि व अंति वाक्य का आंशिक भाग खंडित है.) ८९१५५. क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : क्षमाछत्रीशी., जैदे., (२५.५X१०.५, १७५८). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षमागुण; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा - ३६. " ८९१५६. स्तवन, पद व प्रहेलिका संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ५, दे. (२५.५५११, १३४४३-५६). १. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हीरधर्म, पुहिं., पद्य, आदि: जिणंदवा मिल गयो रे; अंति: धरम से लेह भयो हे, गाथा-५. २. पे नाम साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लबधि गुरु गौतमस्वामी; अंति: अनोपम गुणसागर गंभीर, गाथा-४. ५. पे नाम प्रहेलिका संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि गिरिसुतापति दीकरी; अंति राज हो सरन मन मांहे, गाथा-२. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मे मुख देख्यो पारस, अंति: रूपचंद० तरण जिहाज, गाथा-४. ४. पे. नाम महावीरजिन पद, पू. १अ १आ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९१५७. (+) विज्ञान व श्रेणिकराजा कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४३-४९). १. पे. नाम. विज्ञान उपरि कथा, पृ. ५अ, संपूर्ण. विज्ञान कथा, मा.गु., गद्य, आदि: कोईक राजानो पुत्र; अंति: कुमरी साजी सुख हुआ. २.पे. नाम, श्रेणिकराजा कथा, पृ. ५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: राजगृही नगरी राजा; अंति: (-), (पू.वि. राजा श्रेणिक के द्वारा जमतुडी की परीक्षा किये जाने के वर्णन तक है.) ८९१५८. (+) चंद्रप्रभजिन व नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४४९). १.पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल कलागुण नीलउ; अंति: पासचंदसूरि० तासु घरे, गाथा-१२. २. पे. नाम. नेमनाथजिननुं स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दशयदसार छपन कुल कोडी; अंति: पार्श्वचंद्र०पाय सरण, गाथा-१५. ८९१५९ (+#) पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १७१३, वैशाख अधिकमास शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. खीमेल, प्रले. मु. पुंजराज, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १७४४०). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आपि सूर; अंति: कुशललाभ० गोडी धणी, गाथा-२१. ८९१६१. नमस्कार महामंत्र सज्झाय व अजितशांतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. मोटा ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x६०). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरु; अंति: प्रभु सुरवर शीस रसाल, गाथा-७. २.पे. नाम, अजितशांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनकृत, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुख; अंति: मेरुनंदण उवज्झाय ए, गाथा-३२. ८९१६२. (+#) सनत्कुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, प्र.वि. हुंडी:संतकवारकी., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०,१३४३५). सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति प्रशंसा करे; अंति: सुख ले रे सवायो, गाथा-१९. ८९१६३. साधुगुण, मोहनिवारक व क्रोध परित्याग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १६x४२). १. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. साधु २७ गुण सज्झाय, पंडित. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत मुखकमल मधुकरी; अंति: मानविजय० करजोडि, गाथा-७. २. पे. नाम. मोह निवारक सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मोह तणे जोरे करी; अंति: उदय० पामो उत्तम ठाम, गाथा-११. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-क्रोध, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडवां फल छे क्रोधनां; अंति: निर्मली उपशमरसे नाही, गाथा-६. ८९१६४ (+) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १६x४६). For Private and Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४५३ आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदिः प्रणमुं प्रथम जिनेसर; अंति: प्रगट ग्यान प्रकाश, ढाल-३, गाथा-२५.. ८९१६५. सिद्धमंगल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १७४३७). सिद्धमंगल सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: बीजो मंगल मन सुध; अंति: जैमल्लजी० वारंबारजी, गाथा-१८. ८९१६६. संखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, कवित व सवैयादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, दे., (२५४११, १२४३७). १. पे. नाम. कवित्त- शिवभक्ति, पृ. १अ, संपूर्ण. कवित्त संग्रह-शिवभक्ति, पुहि., पद्य, आदि: कंठ जहर उकले भुजा हल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. म. महिमारुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेसर पास जिणंद; अंति: महिमा० दोलत मुझ माई, गाथा-४. ३. पे. नाम. सुभाषितानि, पृ. २अ, संपूर्ण... औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कृतकर्म क्षयो नास्ति; अंति: सुकृतनः परिपालयंति, श्लोक-३. ४. पे. नाम. ज्योतिष, पृ. २अ, संपूर्ण. ज्योतिष, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: रवीर्मेषतुलौ प्रोक्त; अंति: तु वा नीचमुदाहृतो. ५.पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. दहा संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: माथा कंठी मत हरे; अंति: सोउ दे सूर वतावे, (वि. दहा, मंत्र, सवैया, गाथादि लघु व प्रकीर्णक कृतियाँ हैं.) ८९१६७. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३३, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. चारित्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, ११४२३-२५). पार्श्वजिन स्तवन-लोढणमंडण, मु. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीलोढण प्रभु पासजी; अंति: शुभ नमें करजोडि, गाथा-५. ८९१६८. गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, २४४५०-५१). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. नयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद तणा पय वंदि; अंति: फलै इम पभणै मनरंग, गाथा-४६. ८९१६९ (+) जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, संपूर्ण, वि. १८००, मध्यम, पृ. ३, प्रले. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रणीका०. प्रतिलेखन सवंत् मात्र अठारा लिखा है., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३५-३८). जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे हुई; अंति: महाविदेह जासी मोख, ढाल-४, गाथा-६८. ८९१७० (+) पार्श्वजिन फाग, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.२,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३३). पार्श्वजिन फाग-फलवर्द्धि, मु. खेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु सिरोमणि मनिधर; अंति: नितु खेमकुशल विलसंति, गाथा-२५. ८९१७१. (+) २४ जिन स्तवन-मातापिता नामादिगर्भित, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. कचरा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४५०). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, म. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणम; अंति: चरणकमल प्रणमुंआणंद, गाथा-२९. ८९१७२. दृष्टांति कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१२४११, ५२४२९-३६). कथा संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चंद्रावती नगरी; अंति: परिवारने लाभ मल्यो. ८९१७३. १७ भेद जीवअल्पबहत्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १९४५०). For Private and Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७ भेद जीवअल्पबहुत्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत केवलज्ञान; अंति: जिम देखु परतिखपणे, ढाल-३, गाथा-१८. ८९१७४. अनाथीमुनि व गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७६९, आश्विन, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १९४६५). १. पे. नाम, अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक सुख; अंति: इम बोले मुनीराज के, गाथा-२९. २. पे. नाम, गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. म. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरिठ देस मझार दुरिक; अंति: समरो मुनिराजने जी, गाथा-३६. ८९१७६. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, ११४३८). महावीरजिन स्तवन-सांचोरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: धन्य दिवस मइं आज जुह; अंति: दर प्रगट तूं परमेसरो, गाथा-१४. ८९१७७. महामोहनीक्रम बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११, ३०x१२). ३० बोल-मोहनीय कर्मबंध स्थानक, मा.गु., गद्य, आदि: पेहलै बोलै त्रस जीव; अंति: कहे हं देवता देखु. ८९१७८. (म) क्षमाछत्रीसी व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४०-४४). १. पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा-३६. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीसंतिजिणेसर संति; अंति: सिद्ध श्रीसंघ धरै, गाथा-१३. ८९१७९ (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, १५४४५). औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, रा., पद्य, आदि: किण र बुडीपो तेडियो; अंति: जिणरे चरनारी बलिहारी, गाथा-२८, (वि. ढाल-२.) ८९१८० (+) श्रावकसंक्षिप्त अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वीकानेर, पठ. सा. भामा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५,१७४४९-५२). श्रावकसंक्षिप्तअतिचार , संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: जो कोवि हु पाणगणो; अंति: सीहस्स तव खवो होइ. ८९१८१. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११, १६४३५). नेमराजिमती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमद सेवादेजी राणी; अंति: (-), ढाल-१, गाथा-१८, __ (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ अपूर्ण तक लिखा है.) ८९१८२. ज्ञानपच्चीसी, सीमंधरजिन स्तवन व गौतमगणधर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, २२४५१). १. पे. नाम, ज्ञानपच्चीसी, पृ. १अ, संपूर्ण.. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तीरि जग जोनीमे; अंति: आपको उदे करण के हेतु, गाथा-२५. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. अलवर. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरजिन साहिबा; अंति: मुनिकुशलो० गावे हो, गाथा-७. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. गौतमगणधर सज्झाय, मा.ग., पद्य, आदि: भगवंत वाणी वागरी जिण; अंति: निरभेय ठाम बैठाय, गाथा-१८. ८९१८३. औपदेशिक, श्रावककरणी सज्झाय व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५४). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ औपदेशिक सज्झाय-अमलवर्जनविषये, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी मन धरी; अंति: त कहे मानविजय मनुहार, गाथा-२२. २. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नित, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक धरम करो सुख; अंति: हुवा प्रतमाहाधारी रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-धर्मोपदेश, मार्कंड, मा.गु., पद्य, आदि: तज रे मन गाम गिमारन; अंति: ज मजाद नहीं गुर की. ८९१८४. (+) शील सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १८४३९). शीयलव्रत सज्झाय, मु. मलुकचंद, रा., पद्य, वि. १८००, आदि: सारद माता समरु तो ही; अंति: जनमजनम का पातक खिर, गाथा-३०. ८९१८५ (+) वज्रकुंवर चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. श्राव. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बर्जकु., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १८४४१). वज्रकुंवर चौढालियो, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: राय जसरधत पहिला हुवा; अंति: खम्या करो भवसाइर तीर, ढाल-४, गाथा-६५. ८९१८६. औपदेशिक, पार्श्वजिन व आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१०.५, ११४३३). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: कयो तोकु श्री जीनके; अंति: आनंदघन पाय लागरे, गाथा-३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: देखी मुरत पास कीजी; अंति: रजोडी आवागमण निवारजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: लग्या मेरा नेहरा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक ___ लिखा है.) ८९१८७. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१०.५, २८x२०). गजसकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुकुमाल देवकीनंदन; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१८ अपूर्ण तक लिखा है.) ८९१८८. (+) मल्लिजिन-पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४११, १४४२८). मल्लिजिन-पार्श्वजिन स्तवन, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४२, आदि: हरीया रंग भरीया हो न; अंति: गतसु हीवडे हरख उलास, गाथा-१४.. ८९१८९ (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८००, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. खटवाडा, प्रले. सा. रायकंवरी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चरखो., संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३४). औपदेशिक सज्झाय-चरखा, मा.गु., पद्य, आदि: गढ सुरतेसु सुतार बुल; अंति: सगली न्यात जीमाई, गाथा-११. ८९१९० (#) वहुपटीपंचाशद्विकल्पा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३९). मुहपति पडिलेहण ५० बोल, रा., गद्य, आदि: सम्यक्त्वमूल निर्मल; अंति: विराधना ५० परिहरूं. ८९१९१ (+#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. सौभाग्य; पठ. ग. गजेंद्र; मु. कीर्तिविमल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३१). औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुण, मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: निजगुरुपाय प्रणमी; अंति: रे मन जीवरजीउ, गाथा-१२. ८९१९२. श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १३४४४). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करनी छे दुखहरनी एह, गाथा-२२. For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९१९३. मौनएकादशीपर्व गणणुं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. खेमधर्म (गुरु ग. नयधर्म); गुपि. ग. नयधर्म, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. द्विपाठ, जैवे. (२५x१०.५, १०x३९). मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., गद्य, आदि: श्रीमहाजस सर्वज्ञाय; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः . ८९१९४. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४X१०.५, ९X३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय-जीव, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सजी घरबार सारु मिथ्य; अंति: रत्नविजय०पामर प्राणी, गाथा - १२. " ८९१९५. मूर्खशतक व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पु. १. कुल पे. २, जैदे. (२५५११, १७४५६). १. पे. नाम. मूर्खशतक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि आपणी न्यातिथी दूर; अति: बहु विग्रही सो मूर्ख, गाथा १००. २. पे. नाम औपदेशिक दहा, पृ. १आ, संपूर्ण. , दुहा संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि कोई उदास रहे प्रभु अति मोही सूझ तनी के गाथा-१. ८९१९६. पार्श्वजिन व शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, कुल पे. २, दे., (२५.५X११, ११X३०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. , पार्श्वजिन स्तवन- भीनमाल, मु. मेरो, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति आवागमण निवार के गाथा-१८ (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पू. २अ- ३अ, संपूर्ण. मु. कडुओ, मा.गु., पद्य, आदि सरसती सामण वीनवु अंति भेट्या श्रीआदीनाथ रे, गाधा - १५. ८९१९७. १७ भेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे. (२५.५४१०.५, १५४४५) १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि अरिहंत मुखपंकजवासिनी अंतिः सुरपति जिम थुणियो, ढाल १७. ८९९९८. (*) पद्मावती आराधना, संपूर्ण वि. १८७० आश्विन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल, शांडेरानगर, प्रले. मु. सुखसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, १x२३). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: कहे पापथी गाथा - १०. २. पे. नाम सबैयो तेवीसो, पू. १अ, संपूर्ण, ततकाल, ढाल ३, गाथा- ३६. ८९९९९. (*) सवैयो तेवीसो व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५X१०.५, १६X६०). १. पे. नाम. जंबूकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पठ. श्राव. संतोषचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. हरखकुशल, रा., पद्य, आदि: रमण आठे अति भली आवती; अतिः नमुं सदाए जंबुस्वामि, औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु. सं., पद्य, आदि वेदन क्यों न बीतारत अंति: गए कितने निकसे हैं, सवैया १. ३. पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि आज अमारे आंगणडे जाण; अंति: सीहबीमल० दीनदयालीजी, गाथा-७, (वि. अंतिमवाक्य का आंशिक भाग खंडित है.) ४. पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पू. १आ, संपूर्ण. धन्ना अणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु, पद्य, आदि जिनवाणी रे धना अमीय; अति गावा हे मन में गहगही, गाथा - २१. ८९२००. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५. ५X१०.५, १५x५०). For Private and Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४५७ स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: रिषभ जिनेसर प्रीतम; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अभिनंदनजिन स्तवन तक लिखा है.) ८९२०१ (+) नवपदजीना खमासमणदेवा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२ हैं., संशोधित., दे., (२५.५४१०.५, ४९४२५-३५). ३४६ नवपदगुण वर्णन-खामणा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अशोकवृक्षप्रातिहार्य; अंति: भावोत्सर्गतपसे नमः. ८९२०२. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्रावि. मानाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आदनाथ., जैदे., (२६४१०.५, १३-२०x४५). आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाभिकुलगर कुल नभचंद; अंति: ग्यानचंद० कोइ न तोलै, ढाल-२, गाथा-२६. ८९२०३. नमस्कार महामंत्र पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११,१६x४५). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे अयांण; अंति: सेवा देज्यो नित्य, गाथा-१३. ८९२०४. नेमराजिमती व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, ११४३२). १.पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मात सिवादेवी जाया; अंति: आवौ रे हठीला हठ छौडी, गाथा-७. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनंदन जगवंदन देव; अंति: सुविधि० सुखरी बगसीस, गाथा-७. ८९२०५. गुणपाल ऋषि सज्झाय व नागरीलिपि वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १८४४२). १. पे. नाम. गुणपाल ऋषि स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. गणपालऋषि सज्झाय, क. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती भारति भारती रे; अंति: कमलविजय० सुख संदेस, गाथा-१५. २. पे. नाम. अक्षरचिंतन केवली, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: आईऊऋलुऐऔअः खघचत्रजतठढ; अंति: यरलवशषसहल्लक्षज्ञ. ८९२०६. (+) अढीद्वीपनो मेल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १०४३८). अढीद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम एकलाख जोअणनो; अंति: आठसै धनुषना देहमान. ८९२०७. अंतरिक्षपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७९१, वैशाख कृष्ण, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. पं. मोहनविजय, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १४४४४-४७). पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सारदमात मया करी आपो; अंति: जयो देव जयजय करण, गाथा-६३. ८९२०८. श्रावकप्रतिमा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४१०.५, १२४३३). श्रावकप्रतिमा सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सातमे अंगे भाखीयो जी; अंति: जिनहर्ष० शिवपुर वास, गाथा-१५. ८९२०९. २० स्थानकतप सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. असाउलपुर, प्रले. मु. सुखविजय (गुरु ग. गुणविजय); गुपि. ग. गुणविजय (गुरु पं. सूरविजय गणि); पं. सूरविजय गणि; पठ. मु. भाग्यविजय पंडित, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११, १९४५५). २० स्थानकतप सज्झाय, मु. हरखसागर सीस, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चउवीसइ रे त्रिकर; अंति: थानक तुम्हो भावि करी, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९२१० (+) महाविरजिन, साधारणजिन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८९, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १९४४६). १.पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: सासननायक सुखकारी; अंति: चर्मजीणेसर जीवरा जडी, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आउखो तटांनै सांधो; अंति: होज्यो निस्तार रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. शिवलाल, पुहि., पद्य, आदि: श्रीजिनराज सुणी लीयै; अंति: शिवलाल०लिज्यो अवधारी, गाथा-६. ८९२११. १० श्रावक गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. गिरिधरदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४३). १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठि प्रणमुं; अंति: कहइ मुनि श्रीसार रे, गाथा-१४. ८९२१२. (+#) विजयसेनसूरि सज्झाय व राशितिथिनक्षत्रादि कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४५२). १.पे. नाम, विजयसेनसूरि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विशालसुंदर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणसर सोलमु समर; अंति: विशालसुंदर० पाय रे, गाथा-११. २. पे. नाम. राशितिथिनक्षत्रादि कोष्ठक, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: मेष वृष मिथुन कर्क; अंति: आद्रा पुष्य० चोघडीयो. ८९२१३. साधारणजिन स्तुति, औपदेशिक पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४११, १६४४१). १. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. विमलकीर्ति, मा.ग., पद्य, आदि: बाहुबल चारित लीयो; अंति: विमलकीरति सुखदाइ, गाथा-१२. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मेघाशिष्य ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सिणगार सजी करी; अंति: मेघाशिष्य आत्ममा काज, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-माया, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: माया कारिमी रे भूलो; अंति: आराधइ नमि सुरनर पाइ, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर तुमसम ओर न कोइ; अंति: हित अनहित अवलोइ हो, गाथा-३. ५. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि.,सं., पद्य, आदि: बेगला ते दूकडा दूकडा; अंति: निर्दिदस्य निदि वपु, गाथा-२. ८९२१४. गुरुगुण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४१०.५, १०४३४-३८). विजयधर्मसूरि गरुगण गीत, म. जैनेंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी मात; अंति: गुरु चीरंजीवो रे, गाथा-१४. ८९२१५ (-) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१०.५, ३५४१८). १. पे. नाम. वृत्यादि बोल संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ४२ बोल संग्रह-आगमिक वृत्यादि मध्ये, रा., गद्य, आदि: चक्रवर्तिना कटिक चूर; अंति: ते सर्व असाधु जाणिवा. २. पे. नाम. भगवतीनी वृत्ति बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जतीनि खाडांतरूयारि; अंति: न थाइ सधांति कहीउ छइ. ८९२१६. स्थूलिभद्र एकवीसो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:श्रीथुलिभद्र एकवीसो., जैदे., (२५.५४११,११४३५). स्थूलिभद्र एकवीसो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: आविउ आविउ रे जलहर; अंति: बोलइ अंगी निरमल थाईइ, गाथा-४२. ८९२१७. थूलभद्र गीत व थंभणपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३४). For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४५९ १. पे. नाम. थूलभद्र गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पं. सोमविमल, मा.गु., पद्य, आदि: च्यारि घडि मुझ कही; अंति: रे वली प्रणमइ पाइ, गाथा-६. २. पे. नाम. थंभणपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थमंडन, म. वीरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पासप्रभु वंदिवा भविय; अंति: वीरचंद० गुणह गावइ, गाथा-६. ८९२१८. (+) वायुभूति व व्यक्त गणधर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३१-३३). १. पे. नाम. वायुभूतिगणधर सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: बाइभुती नेत वांदीय; अंति: चद्रभाण० करम जंजीर, गाथा-९. २. पे. नाम. व्यक्तगणधर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: व्यक्त ऋषीश्वर वांदी; अंति: रच्या हुंवारी लाल, गाथा-९. ८९२१९. पर्युषणपर्व सज्झायद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १३४३६). १. पे. नाम, पर्युषणपर्व सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: परब पजूसण आवीया रे; अंति: मतिहंस नमै करजोड रे, गाथा-११. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व सज्झाय-व्याख्यान-१, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखी पर्व पजुसण आविया; अंति: माणेकविजय जयकार रे, गाथा-९. ८९२२० (+) कोडाकोड कोष्ठक व चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:गणितपत्र., संशोधित., दे., (२५.५४११, १२४१०-४९). १. पे. नाम. मनुष्यसंख्याप्रमाण २९ अंक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मनुष्यसंख्याप्रमाण २९ अंकमय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: २ एकं १। २दसं १०।३; अंति: २९ कोडा कोड कोडा कोड. २. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभु सुणि; अंति: हीयै श्रीदयासागरसूरि, गाथा-५. ८९२२१. पट्टावली व निन्हव विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, ३५४२७). १. पे. नाम. पट्टावली तपागच्छीय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमान; अंति: श्रीविजयमानसूरि. २. पे. नाम. निन्हव विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. कृति का प्रारंभ १असे है. निह्नव विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीर केवलज्ञानात्; अंति: अक्कबरप्रतिबोधकः. ८९२२२. (+) सामायिकनी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, २०४७१). सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलउ १ खमासमण देई; अंति: कही वइठ ३ सज्झाय करइ. ८९२२३. (+#) सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन, संपूर्ण, वि. १७५२, चैत्र शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. नांदडनगर, प्रले. कर्मचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०, १६४४८-५३). सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन, मल्लिदास, मा.गु., पद्य, आदि: नमीय सीमंधर स्वामि; अंति: इणिबिधी मल्लिदास ए, गाथा-८७. ८९२२४. चोवीस ठाणा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११, १८४४९). २४ ठाणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गइ इंद्रि काय जोग; अंति: (-). ८९२२५. पदस्थापना गुरुगीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४५८). जिनराजसूरि पदस्थापना गुरुगीत, मु. चंद्रकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सानिधि गुण तवु; अंति: चंद्रकीरति गावंतारे, गाथा-१८. ८९२२६. ढंढणऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १६४३८). For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६० www.kobatirth.org ढणऋषि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि तुम्ह स; अति तास समरण कीजइ ए. गाथा १६. ८९२२७. जंबूकुमार सज्झाय, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५x११, १५X३८-४०). जंबूस्वामी सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि सबल नगर सोहामणउ नयरी; अंति: सुंदरी आठ न गंजिओ, सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदिः यत्रैव तत्रैव गता; अंति: गुणो भवेत्. २. पे. नाम. ७२ कला नाम श्लोक -पुरुष, पू. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - २१. ८९२२८. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. वीकानेरनयर, प्रले. पं. देवसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४४२). महावीर जिन स्तवन- बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि समरवि समरवि सारदा ए. अंति श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२१. ८९२२९. (#) संवर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१०.५, १०X३५). औपदेशिक सज्झाय-संवर, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर गोयमने कहे अति: म मुगति जिम लीला वरो, गाथा ६. ८९२३०. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२४.५x१०.५, १६४३६). १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मा.गु, पद्य, आदि: पाडलिपुर नामे नगर अति रूसी अणवराण भावो रे, गाथा-३४. ८९२३१. पुरुष ७२ कलानाम श्लोक व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. मेरुविजय; अन्य. ग. साधुविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: सोभाषित जैदे. (२६१०५ १५३१-५२). १. पे नाम. सुभाषित लोक संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., पद्य, आदि: लिखित १ पठित २ अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ अपूर्ण कलानाम-३८ तक लिखा है.) " ८९२३२. नेमराजुल स्तवन व जिनकुशलसूरि पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२५४११, १५४४२). १. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण नेमराजिमती स्तवन, मु. गुमानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सखी मुज छोड चले सांइ; अंति: मीलीया पुरी पुन्याइ, गाथा - १६. २. पे. नाम जिनकुशलसूरि पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. शिवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुम्ह दरसण बलिहारी०; अंति: बारी जाउ चार हजारी, गाथा-५. ८९२३३ (+) साधुश्रावक प्रतिक्रमण हेतु, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५X११, १०X३७). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि तत्रज्ञानाचार; अंति: हेतवे वाचकामृत. ८९२३४. (*) सरस्वतीदेवी स्तव, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित. जैदे. (२४.५४१०.५ १२४३३). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, लोक-१३. ८९२३५. नमस्कार महामंत्र छंद, महावीरजिन विनती स्तवन व कर्म सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १(१ )=१, कुल पे. ३, जैवे. (२४.५x१०.५, १८४४३). For Private and Personal Use Only १. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र छंद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रभु सुंदर सीस रसाल, गाथा-१४, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २. पे. नाम कर्म सज्झाय, पृ. २अ संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नमोनमो कर्मराजा रे, (प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रथम दो गाथा नहीं हैं.) ३. पे. नाम. महावीरजिन विनती स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४६१ महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन-विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मुज विनती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ तक है.) ८९२३६. (#) पार्श्वजिन स्तवन व सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४७). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशे; अंति: नमो नमो गोडीधवल, गाथा-३७. २.पे. नाम, सरस्वतीदेवी छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: ससिकर निकर समुज्ज्वल; अंति: नमु सोइ पूजो सरस्वती, ढाल-३, गाथा-१४. ८९२३७. (+) ३२ आगमिक प्रश्नोत्तर व १० प्रश्न विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३३-५५). १. पे. नाम. ३२ आगमिक प्रश्नोत्तर, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१)परम मंगलाय भूरिभव, (२)श्रीगीतार्थ जाणि पण; अंति: दशानि विषि कहिऊ छि. २. पे. नाम. १० प्रश्न विचार-आगमोक्त, प. २आ-३अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: सप्तम सप्तमिका प्रति; अंति: पछि जिनवचन प्रमाण. ८९२३८. आदिजिन व संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १०x४१). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: सकलभुवन सीर सेहरो आद; अंति: भव भव तुही ज स्वाम, गाथा-५. २. पे. नाम, संभवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: संभवजिननी सेवा प्यार; अंति: उदय० कीरत देज्यो हो, गाथा-५. ८९२३९. संथारापोरसीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. विमल; पठ. श्रावि. सुंदरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४४५). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इअ समत्तं मए गहिअं, गाथा-१४. ८९२४०. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, १४४३६). अजितशांति स्तवन , आ. नंदिषणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ८९२४१ (+) सीमंधरजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८१५, ?, माघ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. जिनशील, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १४४४०). सीमंधरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: जयश्रिया मोहरिपो; अंति: राज्यं लभे चाचिरात, श्लोक-२५. ८९२४२. (+) २४ दंडक स्तुति व श्रीकृष्णभक्ति पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १३४५०). १.पे. नाम. २४ दंडक स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचि महामणि; अंति: भारती भारती, श्लोक-४. २. पे. नाम. श्रीकृष्णभक्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कृष्णभक्ति पद, सूरदास, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मन मांन्यो; अंति: राचत ज्यं नटवा रे, गाथा-५. ८९२४३. (+) गौतमकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, ५४४४). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सारं खलु पात्रदानं, गाथा-२०. गौतम कलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी नर लक्ष्मी; अंति: सुख अनंत जीव पाम्य. For Private and Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९२४४. प्रश्नोत्तरमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पठ. श्रावि. कला; अखा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ९४३४). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिणवरेंद्र; अंति: विमलेन० किं न भूषयति, श्लोक-२९. ८९२४५. पार्श्वजिन स्तवन व खामणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १५४४६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, म. कीर्तिवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: आज उमाहो अति घणो हो; अंति: करि दिनदिन दीपावे रे, गाथा-७. २. पे. नाम. खमासणा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं अरिहंतने; अंति: गुणसागर सुख थाय, गाथा-१६. ८९२४६. (+#) पार्श्वजिन निसाणी व गोडीपार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १८४६१). १.पे. नाम. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: गुण जिनहर्ष कहंदा हे, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आपि सूर; अंति: कुशललाभ० गोडी धणी, गाथा-२२. ८९२४७. (#) ढाईद्वीप क्षेत्रमान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, २४-२८४९०). __ ढाईद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कालोदधिसमुद्र वर्त्त; अंति: चौरासीह०योजन उंचो छै. ८९२४८. २३ पदवी व जघन्य उत्कृष्ट आयुष्य विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. कुंवरजी स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:त्रेविसपद., दे., (२५४१०.५, १४४३४-३७). १.पे. नाम. २३ पदवी विचार, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण, वि. १९१६, ज्येष्ठ कृष्ण, २, मंगलवार. ___ मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ७ एकेंद्री रतन; अंति: १४ रावं १४ पदवि लाभे. २. पे. नाम. जघन्य उत्कृष्ट आयुष्य विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण, वि. २०वी, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, रविवार. मा.गु., गद्य, आदि: उधिकनो उधिक ते इहा; अंति: तिहानु पण उतकृष्ट. ८९२४९. बुधी रासो, संपूर्ण, वि. १८१५, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५४११,१२४३५). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवि अंबाई; अंति: हरिभद्रगरु० किलेस तो, गाथा-६२. ८९२५०, आषाढभूति चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, १७X४४). आषाढाभूति रास, म. रतनचंद ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८८३, आदि: गौतम गुणधर गणनीलो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ तक लिखा है.) ८९२५१. पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १०x४०). पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि दें; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ८९२५२. (+) गजसुकुमाल चौढालियो व वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:गजसुख०, संशोधित., जैदे., (२५४११, १८४६१). १. पे. नाम. जगसुकुमालमुनि चौढालियो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि चौढालियो, ग. आनंदनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगयसुकमाल साधु हु; अंति: च्यारं ढाल रसाल रे, ढाल-४, गाथा-२५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धर्म करो रे प्राणीया; अंति: ते पामै सिवलीला रे, गाथा-११. ८९२५३. कृष्णमहाराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:कृष्णम०, दे., (२५.५४११, १०४३९). कृष्णमहाराजा सज्झाय, म. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी द्वारिकामा नेम; अंति: क्रोड दीवाली जीवो हो, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२९ ८९२५४. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. सुरतनगर, जैदे., (२५.५X११, १०x३३). स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु, पंच, आदि वे करजोडी वीनवु अंतिः भाव० सिवराज रे लो, गाथा-३२. ८९२५५ (+) जिनचंदसूरि गीत संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२५.५X११, १५X४०). १. पे. नाम जिनचंद्रसूरि गीत, पृ. १अ. संपूर्ण. उपा. उदयतिलक, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि मुजरो दीजै हो सहगुरु; अंति: वंदता धाये सुख भरपूर, गाथा - ६. २. पे. नाम जिनचंद्रसूरि गीत, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपा. उदयतिलक, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि श्रीजिनरतन पटोधरु रे अति ज्या लगी दूर चिवंद, गाथा-८. ३. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. उदयतिलक, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि वडतखताधर विरजयो युग अंति सेवता पूगी मनह जगीस, गाथा- ६. ८९२५६. गजसुकुमालमुनि व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५x११, १५×५०). १. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाच, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकीनंदन; अंति: जोधाणे जोड जुगम गाई, गाथा- २३. २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय पू. १आ. संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चांगले एसी करना; अंति: जुग जेसा सुपना, गाथा - ११. ८९२५७. अजितजिन स्तवन, १८ पापस्थानक सज्झाय व औपदेशिक दूहो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. हुंडी अचतना, जैदे. (२६४१०.५, १६-१९५५). १. पे नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण, प्रले. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीपना भरत मे; अंति: जुगतसु जोडी दोनु हाथ, गाथा-३४. २. पे. नाम. १८ पापस्थानक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पच, आदि पापधानक अढारपुरा कर अंतिः रे जीवडला कहनीर थारी, गाथा- १६. पे नाम औपदेशिक दूहो. पू. १आ, संपूर्ण, औपदेशिक दुहा *, पुहिं., पद्य, आदि: जुवा रमै जे नर माया; अंति: तुज जुवा मत खेल रै, दोहा-१. ८९२५८. पार्श्वजिन स्तवन व पारवती छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२६४११, १०-१४४४३-६६ ). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण. " पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. अभयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता सेवका; अंति: अभयसोम० दायक भगति, יי ४६३ गाथा - ९. २. पे नाम. पारवती छंद, पू. १आ, संपूर्ण, पार्वती छंद, हिं., पद्य, आदि मेर सुता तुं जग जोय; अंतिः जय जय पार्वती योगिणी, गाथा - ९. ८९२५९. पार्श्वजिन बारमासो, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२४.५४१०, १३४४१). पार्श्वजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि श्रावण पावस उतर्यो, अंति: जिणहर्ष सदा आणंद रे, गाथा १३. ८९२६०. औपदेशिक सज्झाय व प्रास्ताविक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२६४११, १९३४). " १. पे. नाम. सज्झाय-उपशम उपदेश औपदेशिक, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-उपशम, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि भवभंजण रंजण जगदेव अति विजयभद्र० नही अवतरइ, गाथा - १२. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: शशि सोल कला रवि सहस; अंति: भए भए उस तीरथकी, गाथा-२. ८९२६१. सोमसुंदरसूरि सज्झाय, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५x१०.५, १६x४४). सोमसुंदरसूरि गुरुगुण सज्झाय, मा.गु, पद्य, वि. १५७६, आदि गोयम गणह जंबूसामि; अंतिः रिधि तीहं घरि मिलई, गाथा - २९. ८९२६२. (+) मधुविंदुनी सज्झाय व औपदेशिक पद संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., " (२५X१०, १६x४० ). For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम. मधुबिंदुनी सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण. मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मति रे मात; अंति: परम सुख इम मांगीयो, गाथा - १०. २. पे. नाम औपदेशिक दोहे, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, कबीर, पुडिं, पद्य, आदिः यु साधु संसार में अति सहिजै चलि आवइ, दोहा-७, " ८९२६३. (*) २४ दंडक २३ पदवी विचार, संपूर्ण वि. १८४१, माघ शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. क्र. जैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी पदवी २३. संशोधित, जैदे., (२५x१०.५, ११४४३-५०). "" २४ दंडक २३ पदवी गतिआगति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चक्र १ डंडरत्न २; अति: समदष्टीनी लाभे. ८९२६४. पद्मप्रभजिन गीत व भावपूजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५x११, ११x२५). १. पे. नाम पद्मप्रभजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. वीरमसागर, मा.गु., पद्य, आदिः पद्मप्रभु जिनवर नमः अंति: मनवंछित सुख पावे रे, गाथा-७. २. पे. नाम. भावपूजा सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञाननीर नीरमल आणी; अंति: करी मरणे राखो दयालजी, गाथा- ९. ८९२६५. पुण्यछत्रीसी, सज्झाय स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५X११, ५४X३३-३८). १. पे. नाम. पुण्यछत्रीसी, पू. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: पुन्यतणा फल परितख, अंतिः पुण्यना फल परतक्ष जी, गाधा-३६. २. पे. नाम. १० श्रावक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, वैशाख शुक्ल, २, प्रले. पं. आलमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठि प्रणमु दस; अंति: कहे मुनि श्रीसार रे, गाथा- १४. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वैशाख शुक्ल, ३. मु. . जिनरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर नमे चोवीसटे विध; अंति: सामि द्यो शिवसंपए, गाथा-१५. ४. पे. नाम. अरणिकमुनि चौपाई ढाल ४, पृ. १आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि चौपाई, ग. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८९२६६. (*) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५४११, १२४३९). मिजिन स्तवन- नवभव गर्भित, मु. नयशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसहगुरुना पाय अति सेवा सवलजन आनंदणो, गाथा-४३. ८९२६७. खंधकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६६, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५X११, १२x३९). खंधकमुनि सज्झाव, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो खंधक महामुनिः अंतिः सेवक सुखीआ कीजे रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाल - २, गाथा - २०. ८९२६८. पुरुषनी ७२ कला व स्त्रीनी ६४ कला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५x१०.५, १६x४०). १. पे. नाम. पुरुषनी ७२ कला, पृ. १अ, संपूर्ण. ७२ कला नाम- पुरुष, मा.गु., गद्य, आदि: लिखित १ गणित २ गीत ३ अंति: ७२ शकुनरुत कला. २. पे. नाम खीनी ६४ कला, पू. १आ, संपूर्ण. , जेतसी, " ६४ कला नाम-स्त्री, मा.गु., गद्य, आदि: १ नाटककला २ उचित्य; अंति: प्रश्नप्रहेलिका ६४. ८९२६९. मृगावती कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी: अछेरापत्र, जैवे. (२६११, १७x४८). मृगावतीसती कथा छठा अछेरा, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि कोशंबी नामे नगरि अंतिः ते अच्छे जांणवो. ८९२७०. पार्श्वजिन स्तवनद्वय व वैराग्य पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५X११, १२४३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि सुगण सोभागी साहब अति: जैतसी० तुहि ज हो देव गाथा-५. मु. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर. पू. १अ १आ, संपूर्ण. आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पासजिन; अंति: तो जिणचंद अरदल दीपतो, गाथा-५. ३. पे. नाम औपदेशिक पद- वैराग्य, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४६५ पुहिं., पद्य, आदि: रे मन ममता छोड़ दे; अंति: चरणे चितलाया, गाथा-४. ८९२७१. दानशीलतपभावना चौपाई, मधुबिंदुनी व रेवतीश्राविक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. हंडी:चउढालियो., जैदे., (२५.५४११, १८४५३). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना चौपाई, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: वृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. २. पे. नाम, मधुबिंदुनी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. बिंद सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति रे माता द्यो; अंति: परम सुख में मागीये, गाथा-१५. ३. पे. नाम. रेवतीश्राविका सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. वल्लभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिहासन राणी; अंति: दान थकी जय जयकार रे, गाथा-११. ८९२७२. आलोयणा छत्रीसी व गौतम रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२४.५४१०.५, १४४३५-४१). १. पे. नाम, आलोयण छत्रीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: पाप आलोयु आपणां सिद; अंति: आलोयण छतिसि उछांहि, गाथा-३६. २.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: तूठा संपति कोडि, गाथा-९. ८९२७३. ६ आरा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५४११, १६४५१-६७). ६ आरास्वरूप विवरण*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम आरो सुखमसुखम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ९ वासुदेव, ९ प्रतिवासुदेव, ९वलदेव ६३ सिलाका की चर्चा अपूर्ण तक लिखा है.) ८९२७४. नवतत्व भेद विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, २९४६३). नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १४ भेद; अंति: भाग भाव अल्पबहुत्व, (वि. सारिणीयुक्त.) ८९२७५ (4) जंबूस्वामी गीत, लोभ सज्झाय व साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १३४४०). १.पे. नाम. जंबूस्वामी गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर राजगृहमांहि वसे; अंति: नित नित करुंय प्रणाम, गाथा-१२. २. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-लोभ परिहार, मु. जयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: दौलत देख पराइयां; अंति: जयसोम कहइ जिन साखि, गाथा-४. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जयसोम, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर सेती वात कहुं; अंति: जयसोम कहइ करजोडि, गाथा-४. ८९२७६. (+) सीमंधरजिन स्तवन व श्रावकगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १८४४४). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मु. नेत, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर रे जिणवर पय प; अंति: नेतमुनि वंदे सदा, गाथा-९. २. पे. नाम. श्रावकगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. नित, मा.गु., पद्य, आदिः श्रावक धर्म करो; अंति: हुवा प्रतमाहाधारी रे, गाथा-९. ८९२७७. पन्नवणा बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११,१३४३५-४०). प्रज्ञापनासूत्र-बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व थोडा पश्चिमइ जे; अंति: अधोग्राम मोटउ छइ. For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९२७८. (+) दशवैकालिकसूत्र की सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८२३, अग्निनेत्रगजेंदु, पौष शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले.पं. विनयकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १७४३८). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमानिलो; अंति: जेतसी जय जय रंग, अध्याय-२. ८९२७९. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०, १४४६३). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सज्जन रूप अनंतगुन; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१८ अपूर्ण तक लिखा है.) ८९२८० (+) गुरुशिक्षा निसाणी, वैराग्य निसाणी व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, ले.स्थल. सोझत, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १८४४०-४३). १. पे. नाम. गुरुशिक्षा निसाणी, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ गुरुशिष्य कथन निसानी, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: इण संसार समुद्र को; अंति: सुख होइ सुलट्ठा, गाथा-७. २.पे. नाम. वैराग्य निसाणी, पृ. १अ, संपूर्ण. वैराग्य निशानी, म. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: काया माया कारिमी; अंति: परा सुख होइ सटक्की, गाथा-६. ३. पे. नाम, आदिजिन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: आदिही कौ तिथंकर; अंति: जो न बोलै आदि आदि, पद-१. ४. पे. नाम. शांतिजिन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. म. धर्मसिंह, पुहि., पद्य, आदि: छोरि षड खंड भारि; अंति: धर्मसी० बोले संत संत, सवैया-१. ५. पे. नाम. नेमिजिन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. __मु. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: राजीमती सती सेती; अंति: जो न बोलै नेमि नेमि, सवैया-१. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन सवैया, पृ.१आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: देवलोक दसमैं ते आप; अंति: धर्मसी० बोलै पास पास, सवैया-१. ७. पे. नाम. महावीरजिन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: गुणको गंभीर पीरसो; अंति: धर्मसी० बोलै वीर वीर, सवैया-१. ८९२८१. मान सज्झाय व नेमिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, ३२४१८). १.पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मान परिहार सज्झाय, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मान न करशो रे मानवी; अंति: रुषभनि० सहुँ कोय रे, गाथा-१५. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: मंगल करो अंबादेवीइं, गाथा-४. ८९२८२. बिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४३९). जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: भलां मूहुर्त जोईइं; अंति: नाम १०८ वार स्मर्यते. ८९२८३. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, ९४३५-३६). औपदेशिक सज्झाय, मु. भीमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारग वहे रे उतावळो; अंति: तो तमे पामस्यो मोक्ष, गाथा-१३. ८९२८४ (#) नेमिजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रावण शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. उतावलि, प्रले. मु. देवचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, १३४३४). नेमराजिमती बारमासा, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्वामि; अंति: कवियण० नवनिध पामी रे, गाथा-१३. ८९२८५. नवतत्त्व १३ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१०.५, १८४६७). नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव चेतन १ अजीव; अंति: कर्म टाले द्वार. ८९२८६. १६ स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१०, १६x४६). For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ ४६७ १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मु. विद्याधर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनवउं; अंति: साधीयो मुगतिनो मार्ग, गाथा-१७. ८९२८७. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वालीनगर, पठ. मु. रतनचंद, प्र.वि. 'रतनचंद पठनार्थ' ऐसा उपरी भागमें लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४३०-३४). साधपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि; अंति: वंदामी जिण चोवीसं. ८९२८८. अष्टकर्म भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १५४३९). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीकर्म ३०; अंति: ६ भंडारिसमा. ८९२८९. नेमिजिन धमाल व अनंतवीर्यजिन फाग, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १०४३६). १. पे. नाम. नेमिजिन धमाल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८७५, माघ शुक्ल, ६, रविवार, प्रले. मु. नेमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. पुहिं., पद्य, आदि: आए बसंत ऋदय प्रभुजी; अंति: नेम पायो सुख अनुप, गाथा-७. २.पे. नाम, अनंतवीर्यजिन फाग, पृ. १आ, संपूर्ण. अनंतवीर्यजिन होरी, मु. न्याय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे तुं तो जिन भज व; अंति: न्याय भवोदधी तर हो, गाथा-४. ८९२९०. मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३५). मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभ जीवन वासइ वसइ; अंति: कल्याण गुण गावइ रे, गाथा-१३. ८९२९१. मौनएकादशीपर्व सज्झाय, वासपूज्यजिन स्तवन व पार्श्वजिन पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४३६). १.पे. नाम, मौनएकादशीपर्व सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज म्हारे एकादशी रे; अंति: पाले ते भवसायर तिरसे, गाथा-८. २. पे. नाम, वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: तेरी मूरत की इकतारी; अंति: हीरधरम० लग रही जीते, गाथा-६. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौडीप्रभु पासजी; अंति: जिनलाभ० परम कल्याण, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मोतियन थाल भर के; अंति: लोह कनक मोहि करकै, गाथा-५. ५. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नवपद ध्यावो रे; अंति: पालो उपजै केवलन्यान, गाथा-७. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ आ. ज्ञानसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बलिहारी जाउं पास; अंति: न्यानसूरेसर की, गाथा-५, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ७. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु की सखी हुँ; अंति: केवलज्ञान सहाइ, गाथा-५. ८९२९२. कर्मविपाकफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १३४४१). कर्मविपाकफल सज्झाय, म. ऋद्धिहर्ष, मा.ग., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: रिद्धिहरष० नहि कोई, गाथा-१९. ८९२९४. आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. अजयदुर्ग, प्रले. मु. रतनचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४०-४३). आदिजिनविनती स्तवन-शजयतीर्थ, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर; अंति: लावण्यसमय० इम भणीया, गाथा-४५. ८९२९५ (+) साधवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४४१). For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुवंदना, वा. राजसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समरविसहि गुरुराय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ८९२९६. सिद्धचक्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७४, कार्तिक कृष्ण, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रामजी ऋषी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १०४३५). सिद्धचक्र सज्झाय, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल; अंति: कांति० महिमा जाणीयौ, गाथा-५. ८९२९७. आदिजिन स्तवन व सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १५४२७). १. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ जिनेसर त्रीज; अंति: गायो मगति विहारीजी, गाथा-७. २. पे. नाम. सिंदूरप्रकरण, पृ. १आ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक लिखा है.) ८९२९८. (+) २० स्थानकतप यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, ८x२३). २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: अर्हतपूजा त्रिकाल; अंति: नमो वयणस्स २०००. ८९२९९. सीतासती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. रुखमा बाई, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, ९४३८). सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो प्रिउ छोडि; अंतिः प्रणमु धरम हीयै धरी, गाथा-११. ८९३००. औपदेशिक सज्झाय, नेमराजिमती सज्झाय व अजितजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५४११, १८४५१). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनमांकड, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: मन मांकडलो आण न माने; अंति: लावण्य० फल लीजे रे, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. सोमविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: बहिनी जेहने जेहस्यु; अंति: एतु अविहड जोड रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणेसर मुजने; अंति: कांति०मुजने पार उतार, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड तुं मत कर; अंति: समयसुंदर० कोटानकोटी, गाथा-३. ५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी हो आज उमाहो; अंति: कवियण० आस साहिजी, गाथा-७. ८९३०१ पार्श्वजिन छंद व पद्मावती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १३४४०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: धरमसीह ध्याने धरण, गाथा-२९. २.पे. नाम, पद्मावतीदेवी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिनशासन सामिनी; अंति: करजोडी कवियण विनवइ, गाथा-१५. ८९३०२. ललितांगकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, ले.स्थल. षोडनगर, प्रले. मु. कृष्णविमल (गुरु ग. कांतिविमल); गुपि. ग. कांतिविमल; प्रले. मु. केसरविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ३९४२४). ललितांगकुमार सज्झाय, मु. कुंवरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मानवभव पामी दलहो; अंति: छीपे दीपे ते निसदीस, गाथा-९. ८९३०३. नवपद स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५,१२४३३). For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org १. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि सहु नरनारी मली आवो अंति पायो विनीतसागर मुदा, गाथा-७ २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण. १८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातपात १ मृषावाद२; अंति: मोसो मिथ्यात् १८. २. पे. नाम आलोयणा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पास जिणेस हो प्रभु म; अंति: गाय सेवकनी पूरो रली, गाथा - ११. ८९३०४. (*) १८ पापस्थानक नाम व आलोयणादि बोल संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ८. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५x११, १४X३९). १. पे. नाम. अठार पापस्थानक नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ३२ अनंतकाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सूरण वज्रकंद मूली; अंति: खरवेल अमृत की होय है.. ४. पे नाम. बावीस अभक्ष्य नाम, पृ. १आ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि आजूणा चार पहर दिवसमे अंतिः मिच्छामि दुक्कडम् ३. पे. नाम बत्तीस अनंतकाय नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य नाम, मा.गु., गद्य, आदि भोजन निसाको घोलवडा अतिः वस्तु गिणतीमें आणीये. ५. पे. नाम. पांच शरीर नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ शरीर नाम, मा.गु., गद्य, आदि: औदारिक१ वैक्रिय२; अंति: तैजस४ कार्मण५. .पे. नाम. छ संघयण नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ४६९ ६ संघयण नाम, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: वज्रऋषभनाराच १ ऋषभ; अंतिः कीलक५ छेवठो६. ७. पे. नाम. अष्टप्रवचन माता नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ प्रवचनमाता विचार, मा.गु., गद्य, आदि ( १ ) इरिआभासेसणादाणे, (२) इर्यासुमति जयणाइ युग, अंति: वचनगुप्त २ कायगुप्त ३. ८. पे. नाम. श्रावकना २१ गुण, पृ. १आ, संपूर्ण. आवक २१ गुण नाम, मा.गु., गद्य, आदि लज्जालु १ दयालू २ अंति इगवीसगुणो० सो२१. ८९३०५. औपदेशिक गीत व सप्तवार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५X११, ११४३३). १. पे नाम औपदेशिक गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देश मुलकने परगणे; अंति: दीप०ए फूदडीयानां मान, गाथा-११. २. पे. नाम. सप्तवार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि आदितवारे देव दरसण अंति: करो गुरुजी रंगे रे. " ८९३०६. इलाचीकुमार सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४x११, १३X३२). १. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुरति जिम सोवन ओलखे अति उम्यो अभिनव भाण, गाथा १८. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. १आ, संपूर्ण, औपदेशिक सज्झायनिंदात्याग, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि गुण छे पुरा रे; अंति सहजसुंद० ओछोरे बोल, गाथा-६. ८९३०७. (-) चंद्रप्रभजिन स्तवन, साधु सज्झाय व नेमराजिमती बारमासा आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. वि. हुंडी : बीन, अशुद्ध पाठ. दे. (२६४१०.५, १७४३२). " "9 १. पे. नाम चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि सयो मोरा चंदराएणजिण अंति: जांरा सुरनर दासो ए. गाथा ६. २. पे नाम साधुगुण सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण. Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुगुण सज्झाय-उपमा युक्त, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: बेठा समवसरण सिंघासण; अंति: राइचंद० ढाल जोडी जी, गाथा-१४. ३. पे. नाम. राजैमतीरहनेमरो बारमासियो, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणजोरी बात सहीली; अंति: (१)जाय मुगतापुरी सुधारी, (२)जादुराय सखरा सुहेली, गाथा-१७. ४. पे. नाम. सीलोक, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: कातगम कौतग कराय घर; अंति: मूढ न जाण मरम, गाथा-१३. ८९३०८. सज्झाय, आहार ४७ दोष, सुभाषित व ५३ क्रिया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३९). १. पे. नाम. सीखामण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. सीधा ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जेणी दीधो तेणी लाधो; अंति: दीधुं लाभइ भाई रे, गाथा-७. २. पे. नाम. आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण.. ४७ आहारदोष गाथा आधाकर्मी, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मं उद्देसीयं; अंति: रसहेतु दव्वसंजोगा, गाथा-६. ३. पे. नाम. सुभाषित सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वृद्धवाक्यं सदा; अंति: मामय पाव यच्छति, गाथा-५. सुभाषित श्लोक संग्रह- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वृद्धवाक्य कहता है.; अंति: तु मेरा पाप जाय रे. ४. पे. नाम. ५३ क्रिया सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. ५३ क्रिया विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: गुण ८ वय १२ तव १२ सम; अंति: तेवस्स सावया भणिया १. ५३ क्रिया विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: गुण कहतां पंचफल वड; अंति: पालइ ते श्रावक कहीयइ. ८९३०९ (+) स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(२ से ६)=२, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:शीयलवेल., संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४३). १. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पृ. १अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १८७८, वैशाख शुक्ल, ३, प्रले. पं. ज्ञानसागर; अन्य. ग. मोतीविजय, प्र.ले.प. सामान्य. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजिन; अंति: विमला कमला वरस्ये रे, ढाल-१९, (पृ.वि. ढाल-४ की गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-१६ की गाथा-७ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गाजर वीज बीजटां १; अंति: गर्भ पडे सही, गाथा-६. ८९३१०. साधुधर्म सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२५.५४११, १६४३७). साधुगुण सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: साधु धन धन जीत्या; अंति: आसकरण कीधो जार पास, गाथा-२०, संपूर्ण. ८९३११. (4) स्थूलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १६x४२). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कोस्या कामिनि कहे; अंति: नयसुंदर० मन हीसि रे, गाथा-१५. ८९३१२. स्तवनचौवीसी-१४ बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अनुमान से पत्रांक २ दिया है., जैदे., (२४.५४११, १२४३२). स्तवनचौवीसी-१४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-३ गाथा-१ अपूर्ण से स्तवन-५ तक है.) ८९३१३. धर्मआराधना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:सज्झाय., जैदे., (२५४११, १९४६०). For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२१ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म आराधना सज्झाय, क्र. जेमल, मा.गु., पद्य, आदि: धर्म धर्म बोहला करे; अंति: णे ए आवागमण नीवार के, गाथा ४०. ८९३१४. (+) एकीभाव स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११, ९X३९-४३). एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., पद्य, ई. ११वी, आदि एकीभावं गत इव मया; अंति: वादिराज मुनभव्य सहाय श्लोक-२६. ८९३१५ (१) गीत संग्रह व नमिराजर्षि प्रतिबुद्धकारण ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे ४, प्र. वि. प्रतिलेखक नाम अस्पष्ट है., संशोधित., जैदे., (२५x११, १३x४२). ४७१ १. पे. नाम वैराग्य गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत-जीव प्रतिबोध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अइसारी जाणि संसार; अंति: हित सीख करे सुखकारी, गाथा १०. २. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनध्रम कीजिय; अंति: समयसुंदर० तणा फल था, गाथा-६. ३. पे नाम. जिनचंद्रसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि पूज्यजी तुम्ह चरणे; अंति री जिणचंद मुणिंद रे, गाधा-३. ४. पे. नाम. ४ प्रत्येकबुद्ध रास खंड ३ ढाल १४वी नमिराजर्षि अधिकार, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८९३१७. (+) सज्झाय-उपशम उपदेश औपदेशिक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. रेखाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५X१०.५ ११५४३). " औपदेशिक सज्झाय-उपशम, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि भवभंजण रंजण जिनदेव अंति: विजयभद्र० नही अवतरइ, गाथा १२. ८९३१८. २४ दंडक विगत व पच्चक्खाण सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. हेमसागर (अचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४५). १. पे. नाम. २४ दंडक विगत, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: नारकीना दंडक १; अंति: १ अप्प १ वनस्पति. २. पे. नाम. पच्चक्खाण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि दसविह ग्रह उठी अति पामौ निश्चय निर्वाण, गाथा-८. ८९३१९. (*) औपदेशिक सज्झाय व कृष्णगीत, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. वे. (२६४१०.५, ८९३२०. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, दे. (२५.५x११, १२४३८). , १४४४४). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय दयापालने, मु. हीरालाल, रा. पद्य वि. १९४४, आदि मारी दवामाता थाने; अंति हीरालाल ० उपगार हे, गाथा - १३. २. पे. नाम कृष्ण गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि जल जमना तट जावे रे; अति को जल जगत में पसरीयो, गाथा ११. पार्श्वजिन स्तवन-पोशीना, मु. कल्याणविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरी कविजन; अंति: सेवे ते नवनिद्धि लहे, गाथा १४. - For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट- १ ३ अंगुलमान गाधा, प्रा. गा. ३, पद्य, मूपु. ( परमाणुं तसरेणुं रहरे). ८७६५५-४(का ४ निक्षेप विचार, प्रा., मा.गु., गा. १, पण., ., (नाम निक्षेप स्थापना), ८७६९५-१(०) ४ शरणा विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, म्पू, (तेणं कालेणं तेणं समण), ८८९६४-२ ५ इंद्रिय २७ विषय गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू. (पंचक्खीनासयादोवि), ८६२४१-२(५) ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुंजयमुख्य), ८७६२७-२(+), ८८२४६-२(+) ५ समवाय गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (कालो १ सहावर नियई३), ८६६५३ (२) ५ समवाय गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (काल शब्दै उत्सर्पणी), ८६६५३ ६ काय बोल, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (पेहले बोले छ कायना), ८५८३० (+), ८६७५८(+) ६ भाविक स्थानक, सं., गद्य, ओ., (१ अस्तिजीव २ नित्य), ८७४८६-२ ६ संघयण नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे. (वज्रऋषभनाराच१ ऋषभ), ८९३०४-६(+) ७ व्यसन लोक, सं., पद्य, भूपू (द्युतं च मांसं च), ८६१३०-२(६) ८ कर्मस्थिति विचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, खे, (नाणे दंसणावरणे वेवणि), ८८३७६-३ (+३) ८ प्रकारी पूजा, प्रा., पूजा. ८, पद्य, मूपू., (विहडय कम्मकलंकं), प्रतहीन. (२) ८ प्रकारी पूजा-कथा, मा.गु., ग्रं. २२७५, गद्य, मूपू., (श्रीविजयचंद केवली), ८५९८३-२ ($) ८ प्रकारी पूजा, मा.गु., सं., पूजा. ८, पद्य, मूपू., (सुरसरि सिंधु पउमद्रह), ८८४४६ (+) ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., श्लो. ९, पद्य, भूपू (विमलकेवलभासनभास्कर ), ८७१०४ ८ प्रातिहार्य श्लोक सं., श्लो. १, पद्य, मूपू (अशोकवृक्षसुरपुष्प), ८८५४१-२ ८ लब्धि वर्णन, सं., गद्य, श्वे., (अणिमा महिमा लघिमा), ८५९८५-२(#) ९ ग्रह मंत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., ॐ नमो श्रीआदित्याय ), ८८९८३-४(+) ९ पुण्य प्रकार, प्रा., गद्य, भूपू., (नवविहे पुन्ने पन्नत). ८८४३७-५ (२) ९ पुण्य प्रकार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू. (साधुन अनाविक आपता), ८८४३७-५ १० दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, मा.गु. सं. पद १०, प+ग, श्वे. (ॐ नमो इंद्राय पूर्व), ८८२१२-२, ८६६१४-१(३) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० श्रावक नाम पत्नी व नगरी विचार, सं., गद्य, मूपू., (आणंदस्य सिवनंदा), ८८६५६-२ १२ देवलोक गणणु, मा.गु., सं., गद्य, भूपू., (ॐ ह्रीं नमो सौधर्म), ८६४७० (३) १२ व्रतपूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु. सं., ढा. १३, गा. १२४, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (उच्चैर्गुणैर्यस्य), ८८३३२ १४ पूर्व गणणु, मा.गु. सं., गद्य, मूपू. (उत्पादपूर्वाय नमः), ८८३४८-२ १४ पूर्व नाम, प्रा. मा. गु, गद्य, भूपू (१ श्रीउत्पादपूर्व), ८५९०१-१(+), ८७६९५-२(+), ८६५११-२ " " , १४ स्थान समुर्च्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (उच्चारेसु वा क०), ८९०७९-२ १५ सिद्धभेद गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, भूपू., (जिण १ अजिण २ तीथ ३) ८७९३४-१ १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ब्राह्मी चंदनबालिका), ८८०६४-२, ८८४७४-४ १८ हजार शीलांगरथ, प्रा.,मा.गु., गा. २, पद्य, मृपू., (जे नो करति मणसा), ८८७४९-१(०) १८ हजार शीलांगरथ गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू (जे नो करंति मणसा), ८७५६९-१ २० विहरमानजिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू, (द्वीपे सीमंधर), ८७४८७-२(*) २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा., मा.गु., पग, मूपू., ( नमो अरिहंताणं अरिहंत), ८८३४२(+) ८९२९८(+) ८६२६९-३, ८७७९२, ८८४३४ २० स्थानकतप उच्चारण विधि, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, मूपू. (प्रथम इरियावहि पडिकम), ८६२३९ परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४ For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ४७३ २० स्थानकतप गणj, प्रा.,मा.गु., को., मूपू., (नमो अरिहंताणं १ नमो), ८६५९४-२(+) २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं २०००), ८७३९३ २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (१ नमो अरिहंताणं २०००), ८७९५३-९(+), ८६५२४-३(2) २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (प्रथम नालिकेरादि),८६६२७-१, ८९१०० २१ मिथ्यात्त्व भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूप., (जे लौकिक देवता हरिहर), ८७६९२-२(+) २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), ८८९९५-१(+) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (पांच उंबर वड१ पीपल२), ८५६९९(+#) २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (श्रीऋषभदेव आषाढ वदि४), ८६२५६-१ २४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., को., मपू., (कार्तिकवदि ५ नाणंस), ८७०७९-१, ८८८२३ २४ जिन पंचकल्याणक-तिथि व जाप, सं., गद्य, मूपू., (कारतीक वदि ५ श्रीसंभ), ८७६३९(+) २४ जिन शुकनावली, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., इतर, (शीघ्र सकलाकार्यसिद्ध), ८६१९३(+$), ८५८९४ २४ जिन स्तव, श्राव. भूपाल, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., दि., (श्रीलीलायतनं महीकुल), प्रतहीन. (२) २४ जिन स्तव-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., दि., (इस लोक विषै यः कोऊ), ८५६९४(+#$) २४ जिन स्तवन, प्रा.,मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सिरिरिसहेसर अजियजिण), ८७८७५-१(+) २४ जिन स्तति, सं., श्लो.५, पद्य, मप., (सरकिन्नरनागनरेंद्र),८६६८३-२(+#) २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (नतसुरेंद्रजिनेंद्र), ८६५७६-१(+#), ८७६९४-८(+) २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मप., (आदौ नेमिजिनं नौमि), ८६६६०-२(+#), ८७२४०-२ २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्ठियंत्रगर्भित, मु. नेतृसिंह कवि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (वंदे धर्मजिनं सदा), ८५७९२-२ २४ तीर्थंकर के नाम-गणयोनिनक्षत्रराशिलंछनादि सहित, मा.गु.,सं., को., मूप., (--), ८८९८९(#) २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (रुचितरुचिमहामणि), ८९२४२-१(+) २४ मांडला, प्रा., गद्य, मपू., (आघाडे आसन्ने उच्चारे), ८६३७०-३(+) २८ लब्धि नाम, प्रा., गद्य, मप., (आमोसहीलद्धीणं १ विप),८८१७८-१ २८ लब्धि स्तवन, प्रा., गा. १८, पद्य, मप., (जा जस्स तुह पसाया),८८४३०(#) ३० चौवीसी जिननाम गणj, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीपे भरते अतीत), ८७३५४(#) ३२ लक्षणादि सामुद्रिक ज्योतिष विचार, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., इतर, (पंचदीर्घ चतुर्हस्व), ८८१४२-२ ३५ जिनवाणी अतिशय स्तवन, उपा. पुण्यसागर, अप., ढा. २, गा. २७, पद्य, मपू., (विणयगुण पणयजणजणिय), ८७६५५-२(#) ३५ जिनवाणीगुण वर्णन, मा.गु.,सं., अंक. ३५, गद्य, मूपू., (संस्कारत्वं संस्कृत), ८८७२६-२ ३६ बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु., गा. ३६, गद्य, मपू., (एगविहे असंयमे एगे), ८८७८४($) ४५ आगमतप गणगुं, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम श्रीनंदीसूत्र), ८८३४८-१(६) ४५ आगम श्लोक संख्या, सं., गद्य, मूपू., (१ आचारांग २५००२), ८६५११-१ ४७ आहारदोष गाथा आधाकर्मी, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (आहाकम्म १ देसिय २), ८९३०८-२ ५२ जिनालय ओली गणj, मा.गु.,सं., गद्य, भूपू., (अजुवाले पखवाडे गण), ८८३४८-५ ५२ प्रश्नोत्तर-विविधशास्त्रोक्त, प्रा.,मा.गु., प्रश्न. ५२, प+ग., मपू., (श्रीप्रश्नव्याकरणमां), ८६२६२-१ ५३ क्रिया विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, दि., (गुणवयतवसमपडिमै दाणं), ८९३०८-४ (२) ५३ क्रिया विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, दि., (गुण कहतां पंचफल वड), ८९३०८-४ ७२ कला नाम श्लोक -पुरुष, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (लिखित १ पठित २), ८९२३१-२($) ७२ स्वप्न विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (इत्थि वा पुरिसो वा), ८७७७१-३(+#) ३४६ नवपदगुण वर्णन-खामणा, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (अशोकवृक्षप्रातिहार्य), ८९२०१(+) अंचलमत विचार, सं., गद्य, स्पू., (अंचलं स्थापयंति१ मुख), ८७१४२ अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं.७०, गद्य, म्पू., (प्रणिपत्य प्रभु), ८७८७७(+) For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ अक्षरचिंतन केवली, सं., गद्य, श्वे., इतर, (ऊर्दध्वांकं त्रिगुण), ८९२०५-२ अक्षरार्थ श्लोक संग्रह, मा.गु.,सं., श्लो. ८, पद्य, मपू., (बावन अक्षर हे सखी), ८७६४७-२(+) (२) अक्षरार्थ श्लोक संग्रह-अर्थ, मा.गु., गद्य, मप., (बावन अक्षर मिली ददा), ८७६४७-२(+) अजितशांति स्तवन , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मपू., (अजियं जियसव्वभयं संत), ८९२४० (२) अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनकृत, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., गा. ३२, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (मंगल कमलाकंद ए सुख), ८७१२७, ८९१६१-२, ८६४०३(2) अढीद्वीप ३२ विजयजिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (श्रीजयदेवनाथाय), ८५७०१ अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प्रक. ३८, ग्रं. २०८५, प+ग., मपू., (नाणं पंचविह), प्रतहीन. (२) अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा साधु उपमा अधिकार, आ. रक्षितसूरि, प्रा., प+ग., मूप., (उरग१ सेतं सत्तविह), ८९१३१ (३) अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा साधु उपमा अधिकार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (अनुयोगद्वार मध्ये), ८९१३१ अन्नपूर्णा आराधना विधि, सं., गद्य, वै., (अन्नपूजा ध्यानपूजन), ८८९८३-३(+) अन्नपूर्णा स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (आदाय दक्षिणकरेण),८८९८३-२(+) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (अनंतविज्ञानमतीत), ८८९८२ अरिहंतजाप गणनु, सं., गद्य, मूपू., (अनंतज्ञानगुणधारकाय), ८८४३५-१ अरिहंतपद चैत्यवंदन, प्रा.,मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (उपन्नसन्नाण महोमयाणं), ८८३११-१ अर्बुदगिरि-अचलगढतीर्थ प्रतिष्ठादि लेख, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (संवत् १५६६ वर्षे), ८९०७० अष्टाह्निकाधुराख्यान, आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा गुरुं गिरं), ८९०६० ।। अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (ते माहिली शांतिकविध), ८७१७४(+), ८९०२७(+), ८७३७६(5) असज्झाय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (महिया जाव पडंति), ८७१५३ आगमशास्त्रे-शुकनाध्याय, सं., श्लो. १९, पद्य, जै., इतर, (देवं वृक्षं फलं वारा), ८८३२१(2) आगमिक विचार संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., श्वे., (नमो अरिहंताणं नमो), ८८८१६-५ आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २५, ग्रं. २६४४, प+ग., मूप., (सुयं मे आउसं० इहमेगे), प्रतहीन. (२) आचारांगसूत्र-अध्ययन नाम, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--),८६८६९-३ (२) आचारांगसूत्र-साधुआचार सज्झाय, संबद्ध, मु. रामचंद, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (आचारांगसूत्र मध्ये), ८८९३५ आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ७१, वि. ११वी, प+ग., मूपू., (देसिक्कदेसविरओ), ८६६६२(+) आत्म भावना, मा.गु.,सं., गद्य, मूप., (श्रीवर्द्धमानाय श्री), ८६१७५-१(+) । आदिजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मप., (ॐ नमो विश्वनाथाय), ८८३९७-४(+) आदिजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (जयादिनाथ प्रतितर्थसर), ८८९४९-१ आदिजिन स्तवन-शजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. ६, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (आदिजिनं वंदे गुणसदन), ८६८०९-३(+) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (आनंदानम्रकम्रत्रिदश), ८८२४६-१(+$) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभनाथ भुनाथनिभानने), ८५६५९-४(+) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (जय जय जगदानंदन जय), ८९१३२-१(+#) आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, मपू., (वरमुक्तियहार सुतार), ८८५१७-३ आदिजिन स्तोत्र, मु. चंद्रकीर्ति, सं., श्लो. ६, पद्य, म्पू., (नमो ज्योतिमूर्ति), ८६९०९(-) आदिजिन स्तोत्र-शत्रुजयतीर्थमंडण, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (पूर्णानंदमयं महोदयमय), ८६२८१-२(+) आयंबिल पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे नमुकारसी), ८६४१४-२(+) आयुष्य विचार, अप., गा. ५, पद्य, मूपू., (मणुआण वीसोत्तरसयं), ८८९६०-१(+) (२) आयुष्य विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (मनुष्य १२० वर्ष आयु), ८८९६०-१(+) For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ "" आलोचणा आराधना, प्रा. मा.गु., प+ग. म्पू., (एगेंदियाणं जं कहवी. ८५९२९(+), ८८९०६-१(+४) आलोचणा रथ, प्रा.,मा.गु., गा. १, प+ग., मूपू., ( कय चउसरणो नाणी निअमि), ८८७४९-२(+#) आलोचणा विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथमं ईर्यापथिकी), ८७४२३(+) . आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६. सू. १०५, प+ग, भूपू. (णमो अरहंताणं० सव्व) प्रतहीन. (२) आवश्यकसूत्र- हिस्सा करेमिभंते सूत्र, प्रा. प+ग, मूपू (करेमि भंते सामाइअं), ८८७८७-३ (३) יי (२) चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा. सं., प+ग. म्पू. ( नमो अरिहंताणं नमो ), प्रतहीन. " " (३) चैत्यवंदनसूत्र-विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, मूपू., (इछामि खमासमणो कही), ८६४९०-१($) (२) प्रणिधानसूत्र, हिस्सा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय वीयराय जगगुरु होउ), ८७६०२-४ (+$), ८६४९०-३ (२) श्रमण अतिचार, हिस्सा, प्रा., मा.गु., गद्य, म्पू., (विशेषत चारित्रारी), ८८३३४-१(*) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सकल कुशलवल्ली पुष्कर), ८५८७७, ८८६१५ (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अर्हत भगवंत अशरण), ८५८७७, ८८६१५ (२) जं किंचिसूत्र, प्रा. गा. १, पद्य, भूपू (जं किंचि नामतित्थ), ८८०८३-२ (२) ६ आवश्यकविचार स्तवन, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४४, पद्य, मूपू., (चोवीसइं जिन चींतवीं), ८७३४३(+), ८६५७७, ८६८८१ (२) ६ आवश्यक स्तवन, संबद्ध, मु. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनवर नमुं), ८८४०३ (+), ८७८७३ (२) १४ आवकनियम गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू (सच्चित्त दव्व विगई), ८६३७१-२(#) (३) १४ श्रावकनियम गाथा - अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाणी फल बीज दातण), ८६३७१-२(#) (२) अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आजुणा चौपहुर दिवसमाह), ८७६९४-१ (+), ८९३०४-२(५), ८६२५०-५ (२) आवश्यकसूत्र- इंद्रिय विषय विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, भूपू (पुठ्ठे सुण्णेइ सर्द), ८६४२३-२ (२) आवश्यक सूत्र- प्रतिलेखन विधि- प्रातः कालीन, संबद्ध, गु. मा.गु., गद्य, मूपू. (इच्छामि खमासमणो०), ८६७०९-२ (२) इरियावही १८२४१२० भेद, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू (१५ काम भूम ५ भरत ५), ८७०५८-१ (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २५, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (श्रुतदेवीना चरण नमी), ८५९१९(+#), ८७९५३-५ (+) (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (गुरु सन्मुख रही विनय), ८७१६६ (+), ८८५५९ " (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा. गा. ४, पद्य, म्पू (कल्लाणकंदं पढमं), ८५९९७-३, ८७८६८-१, ८८४४२-५, ८६९००-१(क), ८७२८८-१(१), ८७१३३-३(३) (२) क्षेत्रदेवता स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, म्पू, (वस्या क्षेत्रं समा), ८६३७७-४ (२) देववंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम दोय गाथारो नम), ८५८३७-१(#$), ८९११३-३(-) (२) देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, मूपू (इच्छामि खमासमणो बंदि). ८६६७० (+), ८७५६८/१, ८८८०७-१) ४७५ (२) देवसिप्रतिक्रमण विधि-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा. गु., गद्य, म्पू. (इरीयावही तसुतरी) ८७०१३-७ (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., पग, मूपू., ( नमो अरिहंताणं), ८६९०३(२), ८७८९०-२ (६) (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु., प्रा., मा.गु., सं., प+ग, भूपू, नमो अरिहंताणं० पदमं), प्रतहीन. " (३) आवकलघु अतिचार-अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू. (इच्छा० भगवन्० अरिहंत), ८७०२९ (२) देवसीराइअ प्रतिक्रमण *, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलै पडिकमणो करती), ८९०९३-२(#) (२) देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., ( अहन्नं भंते तुम्हाणं), ८८०४३-३(२), ८६७१६ (३) (२) द्वादशावर्तवंदन विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू., (एक यथाजात १ उघोमुहपति), ८७१८६-२ For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., पग, मृपू. ( नमो अरिहंताणं), प्रतहीन. (३) पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गा. ३, प+ग., मूपू., (सागरचंदो कामो), ८८०६६-१ (३) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा. मा. गु., गद्य, म्पू (करेमि भंते पोसह), ८६२५०-२ " (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, म्पू, (मन्हजिणाणं आणं मिच्छ), ८६६१३-२, ८७६८६-२ (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदिसह), ८८३३४-२(+) (२) पाक्षिकचीमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग. मूपू. (मुहपत्तिवंदणयं), ८७७७१-५१००) ८७००४ (३) छींक विचार, संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, मूपू (पाखी पडिकमणा करता), ८८५५६ (*), ८६८२४-१, ८७१७०-२, ८८१२२-१ (२) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पुहिं., प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलो० इच्छाकार ), ८६५३५ (+), ८९०९३-३(#) (२) पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि सं. वो ४, पद्य, भूपू (स्नातस्याप्रतिमस्य), ८८४४२-४ ८७१०२-६(४) ', " (२) | पौषध व राईप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू, (हरियावही पडिकमी लोगस), ८९१२७ " (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ८६३७०-२(+), ८५९७०, ८७०३२ (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि चार नवकारनो), ८७०१३-३ (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.मा.गु., पग, मूपू., (खमासमण देइने इरिया), ८६४७४, ८६६०४, ८६८२४-२ (२) प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू (श्रीप्रवचनसारोद्धार), ८६१०९-२ (६) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (पाछिली रात्रइ शय्या), ८६४५१ (+) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., ( देवसिय आलोइय पडिक्कं), ८६४३२(+), ८७६१४, ८८०८७ (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कर पडिकमणुं भावशुं), ८७२५५-२(#), ८६०२९($) (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गोयम पूछे श्रीमहावीर), ८५८५२(*) ८६२१७, ८६५२२, ८७०९२, ८८२५२ (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खेतांबर", संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, मृपू, नमो अरिहंताणं० करेमि), ८८८७९(+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., ( उग्गए सूरे नमुक्कार ), ८६४१०-६ (+), ८६६५१, ८८७०२, ८७२१२-१(#) (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाधा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू (दो चेव नमोक्कारे), ८६४९०-७(*) (३) यंत्र संग्रह-पन्नवणादि, संबद्ध, मा.गु., को., मूपू., (आसाढे मासे दुप्पया), ८६४५६ (#) (२) महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., ( नमोस्तु वर्द्धमानाय), ८९०६५-२ (+) (२) मुखवखिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त), ८५८०१-२(क) (२) राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू. (प्रथम इरियावही पडिक), ८७०१३-४, ८७७२१, ८७९३८(१) י: (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो ), प्रतहीन... (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मृपू., (भरहेसर बाहुबली अभव), ८६७१२-२(+), ८८१२५-११) ८९०९४-२(क) (२) वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., ( वंदित्तु सव्वसिद्धे), ८८४९६ (+), ८९०६२-१, ८६२७९(#), ८६३७१-१(#) (३) वंदितुसूत्र - अवचूरि, सं., गद्य, भूपू (कृत सामायिकेन), ८९०६२-१ (३) सामायिकपारणसूत्र, हिस्सा, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (सामाइअ वयजुत्तो जाव), ८८०६६-२ (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो), प्रतहीन. (३) पौषध सज्झाय खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. गा. ३३, पद्य, मृपू., (जगचूडामणिभूओ उसभो), ८६६१६ (+) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह (श्वे. मू. पू.), संबद्ध, प्रा. मा. गु. प+ग. म्पू, नमो अरिहं० सव्वसाहूण), ८८४६१ (*) 19 " " (३) श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणंमि दंसणंमि०), ८६४२९-२(+), ८९२३३(+), ८७२४११.८८३८१.८५८३७-३-४६) " (२) श्रावकसंक्षिप्त अतिचार, संबद्ध, मा.गु., प+ग, मूपू. (पण संलेहणा पनरस), ८९१८० (+), ८७०३७ , (२) श्रुतदेवी स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कमलदलविपुलनयना कमल), ८८३८४-२ (२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. सं., श्लो. ४, पद्य, पू, (संसारदावानलदाहनीरं), ८८४४२-६, ८६७१५-३(३) " For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ (२) साधुअतिचार संग्रह*, संबद्ध, मा.गु.,रा., गद्य, मपू., स्था., (१४ ज्ञानरा ५समगतरा), ८९१०८ (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), ८९२८७(+), ८८५८४($) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), ८८२९४ (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), ८५७१८ (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., सू. २१, गद्य, मूपू., (करेमि भंते० चत्तारि०), ८६६४९(+), ८५७११-२($) (३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (सयणासणन्नपाणे), ८६२५०-३ (३) साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूप., (ठाणे कमणे चंकमणे), ८६९६०-१, ८७००९-२ (३) साधुपाक्षिकअतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मि०), ८६४२९-१(+), ८८४३३(+), ८८६३४, ८६९२८(#), ८८०८२(#) (३) साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (संथारा उवट्टणकि परिय), ८६९६०-२ (२) सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम खमासमण देई), ८९२२२(+), ८७०१३-२ (२) सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम वस्त्र उतारी), ८७०१३-१ इंद्रजीवन में देवीसंख्यासूचक गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, श्वे., (दो कोडाकोडीओ पंचासी), ८८४३७-४ (२) इंद्रजीवन में देवीसंख्यासूचक गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बे कोडाकोड अनइ पचास), ८८४३७-४ इंद्राक्षी स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. १३, पद्य, वै., (ॐ अस्य श्री ॐ अं), ८६६६१-४(+) इंद्रादिदेवकत अभिषेक कलशमान गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (पणवीसजोअणुत्तंगो बार), ८७४४०-१(+) (२) इंद्रादिदेवकृत अभिषेक कलशमान गाथा-गमनिकारूप टीका, सं., गद्य, मूपू., (इंद्राः१० वैमानिकाः), ८७४४०-१(+) इंद्रियपराजयशतक, प्रा., गा. १००, पद्य, मपू., (सुच्चिअ सूरो सो), ८७८९७-२ इरियावहि कुलक, प्रा., गा. ११, पद्य, मपू., (दवा अडनउयसयं १९८ चउद), ८८४३७-१ (२) इरियावहि कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (५६५ जीवना भेद लिखिइ), ८८४३७-१ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग., मूपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), ८६६५४-३(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., कथा. ४, गद्य, मूपू., (एक आचार्यनइं एक चेलो), ८८८९१-१ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१ विनयसुत्तं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (पवयण देवी चीत धरीजी), ८६९२५, ८६९५४-१, ८८१६६ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-४ प्रमादवर्जन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (अजरामर जग को नहि), ८७८७८-२ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-द्रमपत्रीयाध्ययन सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. खिमाविजय , मा.गु., गा. २२, पद्य, मप., (वीर विमल केवल धणीजी), ८८०५८-२ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चित्त धरी), ८६६८४,८८४१५-२ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. हर्षकुशल, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (--), ८५९०६(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय १ से ४ अध्ययन, संबद्ध, मु. कृपासौभाग्य, मा.गु., अध्य. ४, पद्य, मूपू., (आणंदकारी इह परलोके), ८९००० (२) उत्तराध्ययनसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, मपू., (पहला विनय अध्ययन), ८८५७७ उनोदरीभेद विचार, प्रा., प+ग., मप., (तिविहा उनोयरिया पण्ण), ८८६६९-४ उपधानतपआदि विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (प्रथम द्वितीयोपध्यान), ८८३३६-१(क) उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम शुभदिवसइ पोषध), ८८२९९-३(+$) उपधानतपविधि यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., मूपू., (उपधाननाम१ सूत्रनाम२), ८७५४७-१(+), ८८२९९-१(+) उपधानमालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूप., (महूरत प्रथम दिवसे), ८७५४७-२(+) उपशमक्षपकश्रेणि विचार, सं., गद्य, मपू., (अपूर्णकरणाद्यांशा), ८८६६९-५ For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४७८ www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, म्पू, ( उवसग्गहरं पासं पासं), प्रतहीन. 1 (२) उवसग्गहर स्तोत्र- गाथा ५ की भंडारगाथा • संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गा. २, पद्य, मूपू., (तुह दंसणेण सामिय), ८७९५५-३(#) ऋषिमंडल स्तोत्र, सं., श्लो. ८४, पद्य, दि., (आय॑ताक्षरसंलक्ष्य), ८९१४४ (वडा ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६२, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्य), ८६३५८-५(+), ८६५७५ एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., श्लो. २६. ई. ११वी, पद्य, दि., (एकीभावं गत इव मया), ८९३१४(+) ओसवाल पोरवाल उत्पत्ति कवित, मा.गु. सं., चौपा. २, प+ग, वे. (वर्द्धमानजिन पछी वरस), ८९१२४-५ (३) " औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहिं., मा.गु. सं., पद्य, खे, (अजो कृष्ण अवतार कंस), ८६९८०-२(*), ८५७१२-२, ८६०३९-३, ८६०६३-३, ८६०६८-१, ८७४३२-४, ८९११२-२, ८९१२४-४, ८९१३०-६, ८६०४८-४(२), ८५७५३-३(३) औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अड कम्म पास बंधो जीव), ८८६४५-४(१) औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा. गा. ४, पद्य, मूपू (जं जं समयं जीवो), ८७११३-३(+), ८९०६६ (*), ८६००३-३ औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (धणमिव चिंतइ धम्मं), ८८६४५-२ (+) (२) औपदेशिक गाथा संग्रह-टबार्थ, रा., गद्य, मूपू., (जीवितव्य ते पाणीना), ८८६४५-२(+) औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि, प्रा., मा.गु. सं., गा. ९, पद्य, वे काम वली सवही पुरहे), ८५९६७-२(+), ८७९५८-३(१९), ८९०२१-३(+), ८८६७९-३, ८९०९७-३, ८६९३४-१(३) יי औपदेशिक दोहा संग्रह, प्रा. सं., गा. ३, पद्य, भूपू (ददतु ददतु गालीर्गालि). ८८६७७-१ (१) "" औपदेशिक पद, पुहिं. सं., गा. २, पद्य, मृपू., (बेगला से दूकडा दूकडा), ८९२१३-५ औपदेशिक श्लोक सं., श्लो. १, पद्य, मूपू (क्रोध मान यथा लोभ), ८६६२९-२ औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., श्लो. ५०, ग्रं. ५६८, पद्य, भूपू. (किं लक्ष्मीं गजवाज), ८६९३३-२, ८७९८४-३२२) औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., श्लो. ६१, पद्य, श्वे., (धर्मे रागः श्रुतौ), ८८२३०-२ (+#), ८९१०२-३ (+), ८५७२७-३, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६०६१-२, ८८०५९-३, ८८५८७-३, ८८८४८-२, ८९१६६-३ औपदेशिक सवैया संग्रह*, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु. सं., सवै. २५, पद्य, जै., वै.?, (पांडव पांचेही सूरहरि), ८९१९९-२(+#), ८६८१३-२, ८६९७२ औपपातिकसूत्र, प्रा. सू. ४३, ग्रं. १६००, पद्य, मूपु. ( तेणं कालेणं० चंपा०), प्रतहीन. (२) औपपातिकसूत्र - हिस्सा सूत्र- २१संसारसागर-नौका वर्णन, प्रा., पद्य, मूपू., (संसारभयउव्विग्गा भीव), ८५८४७(क) (३) औपपातिकसूत्र-हिस्सा सूत्र- २१संसारसागर-नौका वर्णन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसार थकी वली उद्वेग), ८५८४७(+) औषधवैद्यक संग्रह, पुहि., प्रा., मा.गु. सं., गद्य, इतर (अनार दाणा टां. ८०), ८५८१०-३(०), ८८३६४-१(२०) ८८५६६-४, ८८६२२-३, ८९१४१-२ औषध संग्रह, मा.गु., सं., गा. ६, पद्य, इतर (अथ नाहि परीक्षा), ८९३०९-२(*) औषध संग्रह * सं., गद्य, इतर (--), ८८०४३-२(क) औषधादि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, इतर, (माजु फल टं१ हीराकसी), ८७८७२-५(#) कथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, मूपू. (हिवे छ आरानुं नाम), ८९१७२ " कलंकी जन्मपत्री फलकथन, प्रा., मा.गु., रा., गद्य, म्पू. ( मम निव्वाणं गोयमा), ८८७४० कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. व्याख. ९ नं. १२९१६, गद्य, मृपू. (ते काले० समणे), ८८९८७/(+) ', (२) कल्पसूत्र-हिस्सा नेमिजिन चरित्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० अरिहा), प्रतहीन. (३) कल्पसूत्र-हिस्सा नेमिजिन चरित्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तेणई काले तेणे समे), ८८६६१($) (२) कल्पसूत्र - १० आश्चर्य गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, भूपू (उवसग्गर गब्भहरणं २), ८५६४६-१ (३) कल्पसूत्र-१० आश्चर्य गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( उ० श्रीमहावीरजीनई), ८५६४६-१ (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अर्हंत भगवंत उत्पन्न), ८७५२३, ८८४२८ (२) कल्पसूत्र संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, मूपू. (५० कोडि लाख सागर), ८७५३४-२१०) For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ४७९ कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मप., (जह तुह दंसणरहिओ काय), ८७०४४(+) (२) कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, म्पू., (जिम ताहरे दर्शनइ), ८७०४४(+) कायस्थिति विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (कायथिति जीव गय इंद्र), ८८१०३(+), ८५७५६ कार्तिकेयानुप्रेक्षा, आ. कार्तिकेयस्वामी, प्रा., गा. ४८९, पद्य, दि., (तिहुयण हिलयं देवं वं), ८६१७५-३+) कुंभस्थापन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (-), ८७२२६(#) केशीगणधर प्रदेशीराजा ११ प्रश्नोत्तर, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (अमात्य आदेसात् तुरंग), ८७८६४(#) क्षमापना गाथा संग्रह, प्रा., गा.८४, पद्य, मूपू., (संसारम्मि अणंते परभव),८८८७५-२ क्षेत्रदेवता स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, पू., (जे से खित्ते साहु), ८६३७७-३ खरतरगच्छीय पांच शक्रस्तवे देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम नवपदजीको गटो), ८६२३५(+) खरतरगच्छीय शुद्ध समाचारी, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (●अरिपडै तांसीम), ८८७३४(+) गढप्रसादमहर्त्त श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., इतर?, (आषाढेचैत्राश्च), ८८६२३-२ गणपति अष्टक, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (द्वे भार्ये सिद्धि), ८६६६१-६(+) गति आगति द्वार विचार-२४ दंडके, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (नारकीदंड २ गति), ८७१७८-२(+#) गमा विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (उववाय १ परिमाणं २),८८५३९(+६) गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वै., इतर, (कज्जल विज्जल गुंद), ८५७९५-२ गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, श्वे., (सत्तइ रत्ता मत्तइ), ८६१०६-५(+), ८७८३३-२, ८८८१६-४, ८९००८-२ गिरनारतीर्थ कल्प, मु. ब्रहेंद्र; सरस्वती, सं., श्लो. २३, पद्य, मप., (श्रीविमलगिरेस्तीर्था), ८८८०४ (२) गिरनारतीर्थ कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीशजयनो तीर्थ), ८८८०४ गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा, प्रा.,मा.गु., गा. १, गद्य, श्वे., (चउरिक्कदुपणपंचय), ८६०२६-१(+) (२) गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउक्क० च्यारि पैडा), ८६०२६-१(+) गुरुपरंपरा गुण स्तुति-तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गा. २, पद्य, मपू., (परमाणंद विमल वरदाई), ८७६८०-२ गुरुप्रतिमा प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (शुभ नक्षत्रेषु शुभवे), ८६१७७-१(+) गुरुशिष्य अध्ययनप्रेरक पत्र, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (स्वस्तिश्रीसकलसुर), ८६३५५ गोचरी ४२ दोष गाथा, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोलस उग्गमदोसा सोलस), प्रतहीन. (२) गोचरी ४२ दोष गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (यैर्दोषैरहितस्य),८८९७९(+) गोचरी आलोयण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, स्पू., (कालेणय गोअरिआ), ८६२५०-४ गोचरी आलोयण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (गोचरीथी आवीने पात्रा), ८६३७०-१(+) गोमतीसेठाणी कथा-अस्थिरचित्तविषये, प्रा.,मा.गु., गा. १, प+ग., मपू., (अप्प अरिहो अणवट्ठियस), ८६९४९-१(+) गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (लुद्धा नरा अत्थपरा), ८९२४३(+), ८७०२७ (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), ८९२४३(+), ८७०२७ गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूतिं गणभृद), ८७०३०-४ गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु.,सं., गा. ५, पद्य, मपू., (अंगुठे अमृत वसे), ८७९०७-२(#) गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, मपू., (इंद्रभूतिं वसुभूति), ८६६१९(+), ८७४७०-३, ८८९८१-२ ग्रह उच्चबल २४ सुगम प्रकार श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., इतर, (नीचो निता ग्रहा), ८७७१५-१ ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ८६६५७-१(+), ८८४८८-२ घंटाकर्ण कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (प्रणम्य गिरिजाकांत), ८६९४० । घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), ८५८९३-३(+-), ८६३५८-२(+), ८७८६२(+), ८८६४६ २(+#) (२) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (जेना कानमां अथवा), ८७८६२(+) चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (ॐ चंद्रप्रभः प्रभा), ८५६७०-२ For Private and Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८० www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ चडविहार उपवासनं पच्चक्खाण, प्रा., पद्य, भूपू (सूरे उगए अभत्त), ८८९४१-३(*) चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (छ खंड भरतक्षेत्र), ८६६३३-१, ८७६८१-१ चक्रवर्ती विचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, म्पू. (उसभा भरहो अजीए सगर). ८६१७७-५ (+) चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३. वि. ११वी, पद्य, मूपू (सावज्जजोग विरई), ८९०६९, ८६६७१(#) चर्चा संग्रह-अनेकार्थ, प्रा.,मा.गु., सं., प+ग., श्वे., (एकेक जिण वचनना अजाण ), ८६२७५ (+) चारित्र विधि, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू., (प्रथम सचित्त वस्तु), ८६६४७-१ चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६३, पद्य, मूपु. ( वंदित्तु वंदणिज्जे), प्रतहीन. (२) चैत्यवंदनभाष्य-हिस्सा १९ कायोत्सर्गदोष गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (घोडग१ लय२ खंभाइ३ माल), ८८१३४-१ (३) १९ कायोत्सर्गदोष गाथा- बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, (घोडो जिम चरण वांको), ८८९३४-१ चैत्यवंदन विधि- खरतरगच्छीय, प्रा., मा. गु, गद्य, मूपू. (उभा होई तीन नवकार), ८८८०७-२(५) चैत्री पूनम क्रियाविधि, प्रा. मा.गु. प+ग, मूपू. (प्रथम गोवररी गुंडली), ८६१६५-१(+) चैत्रीपूनम पारिवा विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपु (प्रथ देव आगेवा ज्ञान), ८६२०५-२ चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा. रा. सं., गद्य, मूपू., (प्रथम गोबररी गुंहली), ८८२६४(+$) जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा. उ. २१, गद्य म्पू, (तेणं कालेणं० रायगि), प्रतहीन. ', " (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा *, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., मूपू., (--), प्रतहीन. (३) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा का श्लोक बीजक, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (सप्रभावं जिनं), ८८५२३-१(#) जंबूद्वीप क्षेत्र विस्तारमान विचार, प्रा. सं., प+ग. म्पू. (जंबूद्वीपमध्यस्थानां), ८५७७० जगजीवनचंद्रसूरि अष्टक, मु. पन्नालाल ऋषि, सं., श्लो. ११, वि. १९०७, पद्य, श्वे. (अथप्रज्ञासीमा गुणगण), ८६१६८-२(+) जगडूशाह श्रेष्ठि प्रबंध, सं., गद्य, भूपू (पंचालदेशे भद्रेश), ८८७६२-२२+४) "" जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (जय तिहुयण वरकप्प), ८८४३१ (+) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (परमेसर सिरिपासनाह), ८७९५५-१(#) जलयात्रा विधि, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (जलयात्रा योग्य उपगरण), ८६७१४(३) וי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मु. ज्ञानसार, मा.गु., सं., प+ग., मूपू., (सकलगुणगरिष्ठान्), ८६१८७-१($) जिनदत्तसूरि स्तुति-खरतरगच्छीय, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (दासानुदासा इव सर्व), ८७६९४-७(+) जिनदर्शन प्रार्थनास्तुति संग्रह, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (अद्य प्रक्षालित), ८६४९३-४ " जिनप्रतिमापूजनोपकरण विचार - विविधग्रंथोद्धत, प्रा. सं., प+ग. म्पू, (तसाइ जीवरहिए भूमीभाग), ८७९५१-२(+) जिनप्रतिमा शिल्प विचार, प्रा. सं., श्लो. २४, पद्य, म्पू, इतर ( धर्मस्थाने ततो गम्यं), ८७९५१-१(+) जिनप्रभसूरि प्रबंध, उपा रविवर्द्धन गणि, सं., गद्य, म्पू (खरतरपक्षे श्रीजिन), ८८७६२-१ (क) " जिनप्रासादनिर्माणमहिमा श्लोक सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (काष्टादीनां जिनावासे), ८८४३२-३(१) जिनविवप्रतिष्ठा विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, मूपू (प्रणम्य श्रीमहावीर ) ८७०६९ , " जिनबिंब प्रवेशप्रतिष्ठादि विधि, प्रा., मा.गु., सं., प+ग. मूपू., (पहिलो मुहूर्त भलु), ८९०६७, ८७१६७ (#S) जिनबिंबप्रवेश विधि, मा.गु., सं., प+ग, मूपू., (पहिलं मूहूर्त), ८५८७३ जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (पहिलु मुहूर्त भलुं), ८६७६०, ८९२८२ जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (खेलं १ केलि २ कलि ३), ८६३३६(+) (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टवार्थ, मा.गु.. गद्य, मूपू., (लेष्मा क्रीडा हासा), ८६३३६ (*) जिनमंदिर जीर्णोद्धारफल श्लोक, प्रा., सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (जीर्णोद्धारः कृतो), ८८४३२-६(+) जिनमंदिर ध्वजारोहण विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू., ( तिहां प्रथम भुमी), ८८२१२-१ जिनशासनप्रभावना श्लोक, प्रा.सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरस्तदोषे जिनराज), ८८४३२-२(+) जिनसहस्रनाम लघुस्तोत्र, सं., श्लो. ४१, पद्य, म्पू. ( नमस्त्रिलोकनाथाय), ८७०४३(०) जिनस्तुत्यादि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., श्लो. १, पद्य, मूपू (श्रीअतो भगवंत), ८६७४७-३ . For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ जीव आयुमान विचार, सं., गद्य, म्पू., (समाषष्टिर्द्विघ्ना), ८७७८८-४ जीवभेद गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (नारयतिरिनरदेवा चउद्द), ८६८६१-२ (२) जीवभेद गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (नारय १ तिरि २ नर), ८६८६१-२ जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), ८७३७४(+$) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मप., (तीन भवन रै विषै), ८७३७४(+$) जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, सू. २७२, ग्रं. ४७५०, गद्य, मपू., (णमो उसभादियाणं चउवीस), प्रतहीन. (२) जीवाभिगमसूत्र-अल्पबहुत्व २४ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू., (३ बोल स्त्री बोलरी), ८५८१५(+) जैनधार्मिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (दयाधर्म जिणोवक्ते), ८७५४१-३ जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (श्रीनवकार मंत्र में), ८५७४६(+#), ८८१५३(#s) जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), ८९१०२-६(+), ८९१३६ जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (त्रीणि स्थानानि), ८६६७५-२(+-), ८६८९६-४(#), ८८२३२-२(5), ८७३०७-२(-) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १९, ग्रं. ५५००, प+ग., मप., (तेणं कालेणं० चंपाए), प्रतहीन. (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु.,प्रश्न.१००, गद्य, मपू., (ज्ञाताधर्मकथा साढि),८७५४६(2) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम पवित्र), ८६६७४-१(+), ८६५५१ ज्ञानपंचमीपर्व पूजा विधिसहित, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम श्री मंदरजी मे), ८६२२३(+$) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूप., (श्रीनेमिः पंचरूप), ८७१२५-१(+$), ८८७६१-२(+), ८६७१५-२, ८७६८३-२, ८७८०३-२, ८८३११-२, ८८४४२-३, ८८६७५-४(2) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमि पंच देह्या), ८८७८७-१(६) ज्ञानपंचमीपर्व स्तोत्र, मु. कीर्तिराज, प्रा., गा. ११, पद्य, मप., (वंदामि नेमिनाहं पंचम), ८८२१९(+#) ज्योतिष, पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., जै., वै., इतर, (आदित्यं १सोम २मंगल), ८८३६४-२(2), ८८६४८-३(+), ८७६८३-१, ८७७६२-२, ८७७८२-२, ८७८१५-२,८८३६०-१,८८६६९-१,८९१६६-४, ८६९००-५(#), ८७२६२-२(#).८७८९५(२). ८८५८१-३(2) ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, वै., इतर, (ज्येष्ठार्क पश्चिमो),८६३१९-२(+), ८७९९२-२(2) ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २५, पद्य, वै., इतर, (इष्टस्यावधिसंस्थितौ), ८६६५७-३(+) ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, इतर, (चैत्र १ वैशाख २ जैष), ८८१६४-१(+#) ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., इतर, (मेषे च मीने त्रियुगा), ८८२३६-१(+) ज्योतिष संग्रह, मा.गु.,सं., गा. २, पद्य, इतर, (आदित्ये उत्तरे काल),८७२४१-३ ढुंढकपक्षनिरूपित चैत्यशब्द विविधार्थयत चर्चा संग्रह, पुहि.,प्रा.,सं., गद्य, स्था., (प्रथम तो अहमदाबाद मे), ८६९६६ ढुंढकमत कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहि.,प्रा., ग्रं. २४०, गद्य, मूप., (ढुंढियो कहे हुँ), ८७७५६(६) ढुंढकमती को पूछने के ९० प्रश्न, प्रा.,मा.गु., प्रश्न. ९०, प+ग., मूपू., (--), ८६६७६(+#$) तत्त्वविचार श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (तत्त्वानि७ व्रत१२), ८७९८४-२(#) तपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम ठवणीमांडि ईरीय), ८७५४३(+) तपग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रथम इरियावही पडिक),८६९६७(+$) तपग्रहण विधि-पंचमीअष्टमीएकादशी आदि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (शुद दिन इदरा), ८६६५५(+), ८६२६९-४ तपविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नांदल मांडीजे), ८८८३४, ८६१९७(5) तपश्चर्या-व्रत-उद्यापनादिविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (अथ सूर्योद्यापन विधि), ८६२६९-५ तपावली, सं., तप. ५७, प+ग., मपू., (उपधानानि सर्वाणि), ८६८५९-२(+$) तीर्थंकर, चक्रवर्ति, वासुदेव नाम, अवगाहना, आयुष्य, प्रा., गा. ११, प+ग., मूपू., (दो चक्की हरपणगं पणग), ८८४०२-१ तीर्थमाला स्तव, सं., श्लो. २३, पद्य, मप्., (पंचानुत्तरशरणा), ८६५३२(+) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मप., (सद्भक्त्या देवलोके), ८६५७६-३(+#), ८६६८३-१(+#), ८८२९८-१(+), ८८७००(+), ८८६२३-१ For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८२ www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), प्रतहीन. (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, म्पू, (सकलात्प्रतिष्ठान), ८७०४७/*९), ८८१९१(७) दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४४, वि. १५७९, पद्य, मूपू., (नमिउं चउवीस जिणे), ८९०२४ (+#), ८९१३३(+), ८८६०५ (२) दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं. ग्रं. २१६, वि. १५७९, गद्य, म्पू., (श्रीवामेयं महिमामेयं), ८८६०५ दशदिग्पाल पूजाविधि, मा.गु. सं., गद्य, मूपू (हवे बलि सहाय दानना), ८९०१०-२ दशविधाराधना, प्रा. सं., प+ग. . () ८७३१८-१(७६) " दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. २वी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ८६७१३(+$) (२) दशवैकालिकसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (राजगृह नामा नगरनु ), ८८२४४ (२) दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किड), प्रतहीन. (३) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन की सज्झाय, संबद्ध, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धमो मंगल मेहमा), Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६४०४-६ (२) दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुपदपंकज नमीजी), ८९१४२-२, ८७५२१(क) (२) दशवैकालिकसूत्र अध्ययन २- सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नमवा नेमि जिणंदने), ८९१४२-१ ($) (२) दशवैकालिकसूत्र अध्ययन ६-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गणधर धरम इम उपदेशे), ८६०६५-४ ८६६३० (२) दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन ९ सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (विनय करेजयो चेला), ८७९८४-१(१) (२) दशवैकालिकसूत्र-धम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगल महिमा), ८६१८७-३, (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु, जैतसी, मा.गु., अ. १०, वि. १७१७, पद्य, मूपू. (धर्ममंगल महिमा निलो), ८६२८४(१), ८७१७९(+), ८९२७८(+), ८६०६०, ८७२१९-२, ८८०४२, ८७२८१ (२) दशवेकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु, वृद्धिविजय, मा.गु., सज्झा. ११, गा. १०८, पद्य, मूपू. (श्रीगुरुपदपंकज नमीजी), ८६४७१, ८८५१६-२ दसविधदान आलापक, प्रा., गद्य, मूपू., (दसविहे दाणे पण्णते), ८८४३७-६ (२) दसविधदान आलापक-टबार्थ, प्रा., गद्य, मूपू., (दस दांनना ठांमलि), ८८४३७-६ दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, म्पू., (पपुदउ कमसो जीवा जल), प्रतहीन. (२) दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व गाथा- अवचूरि, सं., गद्य, मूपू.. (पपूदउ पश्चिम पूर्व), ८८९८८-२(४) दिगंबरचर्चा बोल, प्रा. मा. गु., गद्य, दि., (विग्गह गतिमावन्ना), ८६०११ "" , दिनमान विचार, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (पोतानां पलालांथाय), ८६१७७-३(+) दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., प+ग. मूपू. (दीक्षा लेता एतला), ८६५५२(५), ८७६८८(४) " दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मृपू., (पुच्छा वासे चिड़ वेसे), ८५६७४(+), ८७०२१(*), ८७४५७-१(+), ८६४५८, ८६७९८, ८९०१०-१ दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग. म्पू., (प्रथम दिक्षा आपवानुं), ८७६१९ दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (योग्य पुरुष स्त्री), ८६४२१(+) दीपावलीपर्व गुणनो, मा.गु., सं., मंत्र, ३, गद्य, म्पू, (ॐ ह्रीं श्रीं महावी), ८६९१२-३(क) दीपावलीपर्व व्याख्यान, मा.गु. सं., श्लो. ४, प+ग, मूपु. ( पापायां पुरि चारु), ८८७८३ (६) दुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २५, पद्य, वै., इतर, (अनमिलनी बहुत मिलई), ८५९०३-२ (+), ८९१४७-३, ८९१६६-५, ८९१९५-२ For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ४८३ दहा संग्रह जैन, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २५, पद्य, श्वे., (चिहु नारी नर नीपजइ), ८७५५६-५ देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमोत्थुणं कहीने भगवन), ८७०१३-६ द्रव्यविचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (परिणामी जीव मुत्ता), ८८३७६-२(+) धर्मरत्न प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. १४५, वि. १२७१, पद्य, मूपू., (नमिऊण सयलगुणरयणकुलहर), प्रतहीन. (२) धर्मरत्नप्रकरण-चयनित २१ श्रावकगुण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (धम्मरयणस्स जुग्गो), ८८१३४-२ (३)२१ श्रावकगण गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (धर्म रतननै जोग्य),८८१३४-२ धारणागति यंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (इह देवस्य तद्विंबकार), ८६६४५ ।। ध्वजादंडरोपण विधि, मु. देवचंद, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम भूमि), ८५८१७(+#$) नंदमुनि कथा, प्रा., गा. १९, पद्य, मपू., (अहेव जंबूदीवे दाहण), ८८४५४-१(+-) नंदीश्वरद्वीप पूजा, मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (सर्वासिवासे सुतरां), ८५८०० नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, मु. मेरु, अप.,मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सिरि निलय जंबुदीवो), ८८९८६ नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद. ९, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं), ८७६६०(+), ८७९१९-१(+#), ८६४३७-१, ८७१०८-१, ८६०९०(२), ८७१४७-३(#$), ८६४६०-१(६) । (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ८७६६०(+), ८६०९०(#), ८६४६०-१($) (२) नमस्कार महामंत्र-(पु.हि.)महिमावर्णन, पुहि., गद्य, मूपू., (नोकार चौदा पुरव का), ८७४३१ (२) नमस्कार महामंत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (नमो क० नमस्कार हवो), ८७९१९-१(+#), ८७१४७-३(#$) (२) नमस्कार महामंत्र कुलक, संबद्ध, प्रा., गा. २३, पद्य, मपू., (घणघायकम्ममुक्का),८८८७५-१ (२) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, संबद्ध, पं. धर्मसिंह पाठक, प्रा.,मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (कामितसंपय करणं तिम), ८६८०९-२(+) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, प्रा., गा. ६, पद्य, मपू., (अरिहंताणं नमुक्कारो), ८५७१६ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मपू., (नमिऊण पणय सुरगण), ८८७०३(+) नमुत्थुणं कल्प, प्रा.,मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐ नमुत्थुणं अरिहंता), ८६६२१ नवग्रहदानविधान-जातकाभरणे, ढुंढिराज दैवज्ञ, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., इतर, (ये खेचरा गोचरतोष्ट), ८६६५७-२(+) नवग्रह वाहन, मा.गु.,सं., गा. ३, पद्य, वै., इतर, (चंद्रबुधभृगुत्रेव), ८७२३६-३ नवग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (जपाकुसुमसंकाशं), ८६५३७-३ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (जीवा अजीवा पुन्न), ८७३७०() (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.ग., गद्य, मपू., (--), ८७३७०() नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), प्रतहीन. (२) नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूप., (परिणामि जीव मुत्ता), ८७५३०-४ (३) नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्त्वार्थप्रकीर्णके),८७५३०-४ (३) नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा का विवरण, मा.गु., गद्य, मप., (षटद्रव्य मध्ये जीव१),८५९०८-२ नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., गा. ६०, पद्य, मपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ८७०२६(+), ८९०५७(+), ८८७६४, ८६५४९(5) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध*, रा., गद्य, म्पू., (जीवाजीवा० जीवतत्त्व), ८६५४९($) (२) नवतत्त्व प्रकरण-विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नवतत्त्व नाम जीव), ८६२५१(६) नवनिधि स्वरुप, प्रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (निसप्पेपंडयए पिंगलएस), ८८७५२-१(+) (२) नवनिधि स्वरुप-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (नैसर्पनामा निधांन१), ८८७५२-१(+) नवपद पूजा, मु. देवचंद्र, प्रा.,मा.गु., ढा. ९, गा. ९५, पद्य, मपू., (परम मंत्र प्रणमी), ८५८१२(+) नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पूजा. ९, पद्य, मपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), ८६०९८ नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मूपू., (अरिहंत पद ध्यातो), ८७००९-१, ८७८३६ नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., स्मर. ९, प+ग., मप., (नमो अरिहंताणं० हवइ), ८७२८७(+$) निशीथसूत्र, प्रा., उ. २०, ग्रं. ८१५, गद्य, म्पू., (जे भिखु हत्थकम्म), प्रतहीन. (२) निशीथसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू.?, (हत्थिकर्म करने वाला), ८६८०१(६) For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ नेमिजिन व कृष्णजीवन वृत्तांत, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (१ नेमिना भव ९ धनकुमर), ८७१६५-१ नेमिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, म्पू., (परमान्नं क्षधात), ८९१३२-३(+#) पंचजिन बृहत्स्तोत्र, उपा. जयसागर, सं., श्लो. २६, पद्य, मपू., (जय जय जगदानंदन जय), ८८७०४ पंचजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूप., (सुवर्णवर्णं गजराज), ८७४७०-४ पंचदशीविधि, सं., श्लो. ३६, पद्य, वै., (कैलाश शिखरासीनां), ८६६४६-१ पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन गाथा, प्रा.,सं., गा. १, पद्य, मपू., (बारसगुण अरिहंता), ८७६९२-१(+) पंचसंग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., गा. ९९१, पद्य, मपू., (नमिउण जिणं वीरं सम्म), प्रतहीन. (२) पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवाश्रितगणस्थानकसमयविद्यमानता गाथा, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, मप., (मिच्छा __ अविरय देसा), ८६०२६-२(+) (३) पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवाश्रितगुणस्थानकसमयविद्यमानता गाथा की व्याख्या, सं., गद्य, पू., (मिथ्यादृष्ट्यविरतदेश), ८६०२६-२(+) पंचांगुलि मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो पंचागुली), ८६३५८-४(+) पंचांगुलीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (स्वामी सीमंधर पाय), ८७५२४ पच्चक्खाण आगार यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., मपू., (--),८८८४०-१(2) पच्चक्खाण कल्पमान-पोरसी, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (सावण वद पडवाक दिन),८५६७२-२ पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर), ८७१४१-१,८७७५२-१,८८२५६(३) पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, पू., (गुब्बरग्रामवासी वसु), ८८८०६(#) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य त्रिविधं), ८५६६२-१, ८८१३८ पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, भूपू., (श्रीवर्द्धमानस्वामी), ८५७८९-१ पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., गा. २८, पद्य, मपू., (पडिलेहणाविसेस), ८८५१४(+) पत्रप्रशस्ति संग्रह, पुहिं.,सं., प+ग., मूपू., (स्वस्ति श्रीव्रज), ८९०४४(+) पत्रलेखनक्रम पद्धति, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., इतर, (प्रणम्य शंभोर्गुरु),८८९८१-१ पद्मपुराण, ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, वै., (शृणु सूत महाभाग सर्व), प्रतहीन. (२) पद्मपुराण-महालक्ष्मी स्तोत्र, हिस्सा, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (पद्मासने गजारूढा), ८७६३७-१ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मप., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ८५८१०-१(+६), ८८२२५(+) (२) पद्मावतीदेवी स्तव-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (--), ८५८१०-१(+$) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, मप्., (श्रीपार्श्वनाथजिन), ८५८१०-२(+) परिपाटीचतुर्दशक, उपा. विनयविजय, प्रा., गा. २७, वि. १८वी, पद्य, मप., (नमिऊण वद्धमाणं), ८७०४८(+) (२) परिपाटीचतुर्दशक- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी), ८७०४८(+) पर्यंताराधना विधि, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (स्तुतिदानपूर्वक), ८७३१८-२(#$) पार्श्वजिन अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, भूपू., (सुरदानवमर्त्यमुनींद), ८९०६८(+) पार्श्वजिन गीत, माग., गा. ७, पद्य, मपू., (आजनै वधावो हे सहीयर), ८८८५६-१(+), ८७७१०-३(2) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ९, पद्य, म्पू., (देवाधिदेवं कृत), ८६३४१-२(+) पार्श्वजिन मंत्रविधान-नमिऊण, प्रा.,मा.गु., मंत्र. १, गद्य, मपू., (ॐ ह्रीं अहँ नमीऊण), ८६८०५-१ पार्श्वजिन मंत्र-स्तंभनपर, प्रा., गद्य, मप., इतर, (ॐ नमो भगवओ सिरि पास), ८७९५५-६(#) पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, मु. धर्मवर्धन, सं., श्लो. ११, पद्य, मपू., (प्रणमति यः श्रीगौडी), ८५९९६-१(+) पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., श्लो. ७, पद्य, मूप., (स्फुरदेवनागेंद्र), ८७३९६, ८८१७३-१ पार्श्वजिन स्तव-जीरापल्ली , आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., श्लो. १३, पद्य, मप., (श्रीवामेयं विधुमधु), ८६६६०-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन, पं. लब्धिरुचि, सं., श्लो. ९, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (वंदेहं श्रीपार्श्व), ८५८६७ पार्श्वजिन स्तवन, सं., पद्य, मप., (ॐ ह्रीं प्रभृत्यक्षर), ८५६७०-३($) पार्श्वजिन स्तवन, सं., श्लो. ४, पद्य, श्वे., (खीटमंगलमुकीटं), ८७५३९-२ For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ४८५ पार्श्वजिन स्तवन-कलिकुंडमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं कलिकुंड), ८५६७०-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जय जय गोडीजी महाराज), ८८९८१-३ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. गुणरत्नसूरि, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (सौभाग्यभाग्या), ८७८१८-१ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभन, आ. अभयदेवसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कल्याणकेलि कमला), ८५९९६-२(+) पार्श्वजिन स्तव-शंखेश्वर, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मपू., (समस्तकल्याणनिधानकोशं), ८८६६६ पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., गा. ३७, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जसु सासणदेवि वएसकया), ८८९८०() (२) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, मपू., (जं संथवणं विहिय तस्स), ८८९८०($) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (योनागेंद्रकाष्टे), ८८६२०-२(+) पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (दें दें कि धप), ८८२४६-३(+$), ८९२५१, ८८०९१-१(#5), ८६६६७-१(६) । पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), ८८५१७-२ पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूप., (हर्षनतासुरनिर्जरलोकं), ८७१३३-४($) पार्श्वजिन स्तुति-समस्यापदद्वयनिबद्ध, प्रा.,सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (जाईजरामरणसोगपणासणस्स), ८८६२०-१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,सं., गा. ८, पद्य, मूपू., (भलु आज भेट्यो प्रभु), ८८७०७-१ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (अभिनवमंगलमालाकरणं), ८९१३२-४(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (क्षितिमंडलमुकुट), ८६३१४-२() पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूप., (प्रणमामि सदा प्रभु), ८६५३७-१ पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकंड, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (ॐ ह्रीं तं नमह), ८६३५८-७(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), ८६६६५(+), ८६९६४, ८८९४९-२, ८६६२२(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (जय जय जगनायक), ८६७३९-२(+), ८८१४४-१(#s), ८८८४६() पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूप., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), ८७२१४-२, ८७४३९-२, ८८०५८-१, ८६८९९-१(4) पार्श्वधरणेद्रपद्यावती स्तोत्र, सं., गद्य, मपू., (नमो भगवते श्री), ८६३५८-३(+) पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, श्वे., इतर, (महादेवं नमस्कृत्य), प्रतहीन. (२) पाशाकेवली-पद्यानुवाद, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मपू., इतर, (महादेव नमस्कृत्यं), ८७८०३-१ (२) पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., इतर, (१११ उत्तम थानक लाभ), ८६३१९-१(+) पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, मूपू., (देविंदविंदवंदिय पयार), प्रतहीन. (२) पिंडविशुद्धि प्रकरण-४२ आहारदोष सज्झाय, संबद्ध, ग. नित्यविजय, मा.गु., गा. ५८, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (सरसति सामिण प्रणमी), ८६५४५ पिततर्पण विधि-संक्षिप्त, सं., श्लो. ३, पद्य, वै., (प्रभाते वहति गंगा),८८०८१-२ पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. १६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (छत्तीसदिवस सहस्सा), ८७६९६-१(+), ८६०४६(#) (२) पुण्यपाप कुलक-अर्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (पुरुषनउं आऊळू सुवरस), ८७६९६-१(+) पुण्यपाप चतुर्भंगी विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., पू., (थूला सुहमा जीवा संकप), ८६४१०-२(+) पौषध पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (इरियावही पडिकमी), ८८५२०-२(#$) पौषधोपधान आलोयणा विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (मुंहपत्तीउ संघट्टे), ८८२९९-२(+) प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं.७७८७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० ववगय), प्रतहीन. (२) प्रज्ञापनासूत्र-मनुष्यभेद विचार, हिस्सा, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, मपू., (सेकिंतं मणुस्सा), ८८४३७-२ (३) प्रज्ञापनासूत्र-मनुष्यभेद विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (किम ते समुछिम मनुष्य), ८८४३७-२ (२) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा भाषापद ११, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, भूपू., (भासाणं भंते किमादीया), ८६६६६ (३) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा भाषापद का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (जिण देस भाषा बोल), ८६६६६ For Private and Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) प्रज्ञापनासूत्र-२३ पदवी विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर चक्रवर्ति), ८७८९९, ८७१४७-२(#) (३) प्रज्ञापनासूत्र-२३ पदवी विचार यंत्र, मा.गु., यं., म्पू., (तिर्थंकर चक्रवर्ति), ८९१३९(#) (२) प्रज्ञापनासूत्र-पद १२ का बंधेलका मुकेलका थोकडा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हो भगवान बंधेलका), ८६८२९ (२) प्रज्ञापनासूत्र-बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुक्षलोक मध्ये), ८९२७७ (२) प्रज्ञापनासूत्र-लघु अल्पबहत्त्व ९८ बोल, संबद्ध, धर्मदत्तदेव, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम १ बोले सर्वथी), ८८०३७-१ प्रतिमाशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. १०४, पद्य, मपू., (ऐंद्रश्रेणि नता), ८७०४६(+$) प्रदेशबंध वर्गणास्वरूप विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम कुचिकर्णश्रेष्टी), ८६५०३ प्रभातिमंगल स्तुति, प्रा., गा. १८, पद्य, मपू., (गोयम सोहम जंबू पभवो), ८८८७५-३ प्रभावत्यादि चेटकसप्तपुत्री विवरण श्लोक, सं., श्लो. ४, पद्य, श्वे., (प्रभावती पद्मावती), ८८८०२-४ प्रमुख जैन ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूप., (श्रीमहावीरदेव थकी), ८८९१३-३ प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ८९२४४ प्रश्नोत्तर संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ८६४९१ प्रस्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (नाग विशेषे शेषे), ८८९९५-२(+) प्रहेलिका श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, इतर, (जीव चोरासी लख तु), ८७९६०-४($) प्रासंगिक श्लोक संग्रह, सं., श्लो.८, पद्य, श्वे., इतर, (उच्चैः कल्याणवाही), ८७९२६-२(+) प्रासुकजल विचार, सं., गद्य, श्वे., (जत्थ जलं तत्थ वस्स), ८६४१०-१(+) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २८, पद्य, मप., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), ८६६५४-३(+), ८६६६९(+), ८९१०२-२(+), ८९१०२-५(+), ८६६८९-५, ८७४७०-६, ८९२६०-२, ८९००६(5) प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (चलंति तारा विचलंति),८५८४२-४, ८६१८१-२ प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २२, पद्य, श्वे., इतर?, (आहारनिद्राभयमैथुनानि), ८६२६७-१ प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ५७, पद्य, जै., इतर?, (दाता दरीद्री कृपणो), ८५९०१-२(+), ८६२४१-१(+), ८८६४५-१(+), ८९०४५-१(+), ८६६२३-१, ८६८०५-३, ८८५८१-२(2) (२) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह-टबार्थ, रा., गद्य, जै., इतर?, (संसारमाहि जीव आयनइ), ८८६४५-१(+) (२) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह-अर्थ, पुहि.,मा.गु., गद्य, जै., इतर?, (अहो महानुभाव उत्पन्न), ८५९०१-२(+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ६१, पद्य, मूपू., (धर्माज्जन्मकुले शरीर), ८८४२६-१(+#), ८८५९७-१(+$), ८७४१८-२, ८७७८८-५, ८७७७३($) बंधोदयसत्ता विचार, सं., गद्य, मूपू., (तत्र मिथ्यात्वादिभि), ८७५६९-२ बाराक्षरी, सं., गद्य, इतर, (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ), ८८२९५-३($) बालत्रिपुरासुंदरीदेवी स्तोत्र, मा.गु.,सं., गा. ६, पद्य, वै., (नित्यानंदकरी आई आणंद), ८६६६१-१(+$) बाला लघुस्तव-मंत्रगुप्तगर्भित, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (ऍकाराश्रयमाश्रितं), ८६६६१-७(+) बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, मूपू., (नो कप्पइ निग्गंथाण), ८८४२९(5) (२) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (कव० कश्चित नगरं), ८८४२९($) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., म्पू., (भो भो भव्याः शृणुत), ८६६५०(+), ८६९६८-१ बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (ॐ बृहस्पतिः सुरा), ८५९३६-५(+#), ८७७३७-३ बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (जीवाय १ लेसा ८ पखीय), ८८०११-२(+#), ८८४९९(+), ८८५७३-७(+$), ८७०६२, ८८७१७-२, ८८८४९-२, ८८९१२-२, ८७३९२(#$), ८७९३९(#$), ८८१७८-४(६), ८८१०९-३(-) बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (हिवै शिष्य पूछै), ८५७५५(+), ८५८२७-२(+#), ८८७६०(+#), ८८७७९ बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (सर्वथी थोडा चरित), ८८५५४-४(+), ८६९६५, ८७४१५(#S), ८६९५०() भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मप., (भक्तामरप्रणतमौलि), ८८१३३(+), ८८७६३(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., दि., (गंभीरताररविपुरि), ८७९५५-२(#) For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ (२) भक्तामर स्तोत्र-गीत, संबद्ध, ग. सोमकुंजर, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू, (मन समरु चकेसरी वंछत), ८६५७१(क), ८६८१४-२ (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय संबद्ध, मा.गु.से., गद्य, मूपू. (ॐ नमो वृषभनाथाय), ८७७११, ८८८००) , भक्तामर स्तोत्र ४८ गाथा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४८, पद्य, वि. (भक्तामरप्रणतमौलिमणि), प्रतहीन. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) भक्तामर स्तोत्र - (पु.हि.) पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं., गा. ४८, पद्य, मूपू., वि., ( आदिपुरुष आदिसजिन आदि), ८७१८१०) ८७७८४(३) भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, म्पू, नमो अरहंताणं० सव्व), प्रतहीन. (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२५ उद्देश- ६गत नियंट्ठा-संजया आलापकगाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (पनवणा १ वेब २ रागे ३) ८७२८५-१(३) (३) भगवती सूत्र - हिस्सा शतक- २५ उद्देश- ६गत नियंडा-संजया आलापकगाथा का विवरण, सं., को. म्पू, (पुलाको द्विविधो), ८६४५७(+) " (२) भगवती सूत्र - हिस्सा शतक ३० समवसरण विचार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू.. (कतिणं भंते समोसरणा प), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा समवसरण शतक-समवसरण विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ८७४१४(+$) (२) १४ बोल सज्झाय-भगवतीसूत्र शतक १, संबद्ध, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सूत्र भगोती सतक पहल), ८८१८३-४, ८७५०९-३(४) (२) भगवतीसूत्र-(प्रा.मा.गु.) बोल संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (तिविहं तिविहेणं न), ८८६९३ (२) भगवतीसूत्र-८ कर्मबंधद्वार कोष्ठक, संबद्ध, प्रा., मा.गु., को., मूपू., (--), ८५८४९(+) (२) भगवतीसूत्र गहुंली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सहियर सुणीये रे भगवत), ८६५००-२(+) (२) भगवती सूत्र चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को. मूपू., (पनवणा १ वेद २ रागे ३) ८६४९४, ८७५२९ (२) भगवतीसूत्र- बोलसंग्रह संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू. (एक मासनी दिक्षा सुभ), ८८५०५ (०) ८८३७१, ८९२१५-२/ " (२) भगवतीसूत्र भास, संबद्ध, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सिरीवीरजिणंद बंदिजे), ८८२०८ (२) भगवतीसूत्र शतक २४ संबद्ध दंडक विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (सात नारिकीयानो दंडक ), ८६३९६ (२) भडली संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, इतर, (जेहना हस्तना), ८५७९३-१(#) भवनदेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (ज्ञानादिगुणयुतानां), ८६३७७-५ भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. भाष्य. ३, वि. २४वी प+ग, मूपू (वंदित्तु वंदणिज्जे), ८७४९२ (६) "3 (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. २१, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर अरथ), ८७२०३-१ (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २०, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (वंदि प्रणमी प्रेम), ८५९३०-१(+) (२) भगवतीसूत्र-यंत्र, मा.गु., ., मूप.. (१एकेंद्री जीव छड़ देश), ८६९४२ भडली संग्रह, मा.गु., सं., पद्य, इतर (अथ पुनम के विचार ), ८५७९३-१४), ८८१०२-२(६) ४८७ भूतवली वासक्षेप मंत्र, सं., गद्य, म्पू, (ॐनमो अरहंताणं ॐनमो), ८६६१४-२ भूमिशुद्धि मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ भूरसि भूतधात्री), ८६९६८-२ मंगल प्रदीप, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू. (कोसबिअ संठिअस्सव), ८७९०९-४(*) मंत्र- औषधसंग्रह, सं., मा.गु., पद्य, १, (--), ८७७१४-३ मंत्र-तंत्र-यंत्र आदि संग्रह, उ., गु., सं., हिं., प+ग., इतर, (--), ८८५७६-२ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., प+ग, भूपू (श्री अर्हत) ८७६५१-३, ८७९५५-५(क) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पग, वै., इतर (श्री ॐ नमः आदि सुदिन), ८६६३३-२, ८७९६०-३, ८९१२६-२ मनुष्यसंख्याप्रमाण २९ अंकमय, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (२ एकं १ । २दसं १०। ३), ८९२२०-१(+) महालक्ष्मी स्तव, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (आद्यं प्रणवस्ततः), ८८९८३-१(+) महावीरजिन आयुविवरण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, म्पू., ( तिन्नि सय तीसासडा), ८८१११-१ (२) महावीरजिन आयुविवरण गाथा- अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपु., ( तिथिपत्रे आह), ८८१११-१ महावीर जिन आयुष्य विचार, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, भूपू (एक वर्षमें सवाइग्यार), ८८४२२-२(*) महावीरजिन गहुंली, मु. रंगविजय, माग., गा. ६, पद्य, मूपू., (बेंहनी गुणशिल्य), ८६३७२-२ , For Private and Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ महावीरजिनशासने ऐतिहासिक प्रसंग वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (१. श्रीवीर केवलात्), ८६४५०, ८७६८२ महावीरजिनशासने प्रमुख घटना व काल, प्रा.,रा.,सं., गद्य, मपू., (श्रीवीरात् २९१), ८६०३७($) महावीरजिन स्तव, सं., श्लो. ६, पद्य, मप., (कनकाचलमिव धीरं), ८९१३२-५(+#) महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), ८६०८०-२(+) महावीरजिन स्तति, प्रा.,सं., गा. ४, पद्य, मप., (परसमयतिमिरतरणिं भव), ८७२१९-३ महावीरजिन स्तति, सं., श्लो. १, पद्य, मप., (वीरं देवं नित्यं), ८५९७६-२(+#) मांगलिक श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, स्पू., (अर्हतो मंगलं संतु), ८८३६२-६ मांगलिक श्लोक, प्रा.,सं., गा. १२, पद्य, मप., (जयइ जगजीवजोणिविआणओ),८८६९२-२(#) मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू., (ॐकार बिंदु संयुक्तं), ८७२५४-१(+), ८६४३७-२, ८७४७०-५, ८८७७६-३ मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ६, पद्य, मपू., (कृतापराधेपिजने कृपा), ८६१०५-१(+) मालारोपणमहिमा श्लोक, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कल्याणावलिवल्लिमेघ), ८८४३२-४(+) महपत्ति पडिलेहण सज्झाय, वा. साधकीर्ति, प्रा., गा. १४, पद्य, मप., (गणहर गोयम सामि पणमी), ८८६४२ मुहपत्ति पडिलेहणा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (सूतत्थतत्तदिठी दंसण), ८८४३७-३ (२) मुहपत्ति पडिलेहणा-टबार्थ, प्रा., गद्य, मपू., (सूत्र अरथन), ८८४३७-३ महत संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, मपू., इतर, (श्वेतवस्त्र परिधान), ८७७५४-२ मूर्तिपूजामतपुष्टि विचार-शास्त्रपाठयुक्त, सं., प+ग., मूपू., (तथा केचन कुमतयः), ८८७१७-१ मैथुनविरमण गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेहूणसन्नारूढो नवलख), ८६२६२-३ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (अथ मार्गशीर्ष), ८९०७२-१(+) मौनएकादशीपर्व कथा, सं., प+ग., मूपू., (श्रीनेमनाथ द्वारिका), ८८१५८(+) मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को., मप., (जंबूद्वीपे भरते), ८६४३१(+), ८६५३६(+$), ८६५९४-१(+), ८६६५६(+), ८७५०४(+), ८८४२७(+), ८६७०९-१, ८७७५०, ८९११०-२ मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., गद्य, मप., (श्रीमहाजस सर्वज्ञाय), ८५७२५(+), ८५७०६, ८९१९३ मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गणj, सं., को., मूपू., (जंबूद्वीपे भरते अतीत), ८६२५६-२ मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, सं., गद्य, मपू., (राजगृहिपुर्यां समव), ८८९९४-१ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (दीक्षा श्रीअरनाथकस्य), ८५६५९-२(+) मौनएकादशीपर्व स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (भव्याणेग समिहियत्थकर), ८८८१२-२(+) यशदेवसूरि मूलमंत्र, सं., मंत्र. १, गद्य, मपू., (ॐहीं भूवालायै नम), ८५६६२-३ यशदेवसूरि स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (श्रीभूवाले सुदृष्ट्य), ८५६६२-२ योगविधि कालमांडलादि-साध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (अथ मोटा जोग वहे तेने), ८६४८७, ८७२३३ रत्नप्रभा पृथ्वीमान विचार, सं., गद्य, मप., (तत्रैकलक्ष अशीतिसहस), ८८६६९-२ रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लो. २५, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), ८६६८३-४(#), ८८५१३(+), ८९०६५-१(+) राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सू. १७५, ग्रं. २१००, गद्य, मपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), ८७५४२-१(६) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवउ० चउथा), ८७५४२-१(६) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय), ८६६४४(+$) (२) लघक्षेत्रसमास प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., अ. ६, वि. १५वी, गद्य, मप., (अहमिति ब्रह्मपदं), ८६६४४(+$) लघुपट्टावली-पार्श्वचंद्रसूरिगच्छीय, आ. हेमचंदसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (विदित सकलशास्त्रान), ८८४२६-२(+#) लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (शांति शांतिनिशांत), ८६८९३-३(+), ८७८०२(+) (२) लघुशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीमानदेव आचार्य), ८७८०२(+) । लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूप., (नमिय जिणं सव्वन्नु), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ (२) लघु संग्रहणी खंडाजोयण बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लाख जोवणनो जंबूद्वीप), ८७०५३ (+) लघुस्नान विधि, प्रा., मा.गु. सं., पग, मूपू. (प्रथम नित्य जिसी), ८९०९३-४१०) लब्धिद्वारे २१ द्वार विचार, पुहिं., प्रा., गद्य, श्वे., (जीव गइ इंदिय काए सुह), ८७२००($) लूणपाणी विधि, प्रा., गा. ८, गद्य, मूपू., ( उवणेउ मंगलं वो जिणाण), ८७९०९-२(+) लेखनी शुभाशुभ विचार, सं., श्लो. २७, पद्य, श्वे., (पंचसप्तनवमांशात्), ८७८०१ लेखलेखन पद्धति, सं., श्लो. ६, पद्य, श्वे., (स्वस्ति शब्दः), ८९१०२-४(+) लेश्यालक्षण लोक, प्रा. सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू (अतिरौद्र सदा क्रोधी), ८६८९३-२(*) लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. गा. ३२, वि. १४बी, पद्य, मूपु., (जिणदंसणं विणा जं), प्रतहीन. (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका अवचूरि, सं., गद्य, मूपु., (जिणदंसणेति० जिनदर्शन ), ८८९८८- शक " वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू (ॐ परमेष्ठि), ८६३५८-६ (*) ८६२९७-२, ८६८५२-३, ८८७७५-३ वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १५०, वि. १६५५, पद्य, मूपू. ( श्रीमत्पार्श्वजिन), ८५७१७-१ ($) (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (प्रणम्य श्रीमहावीर ), ८५७१७-१(३) वर्द्धमानविद्या मंत्र, प्रा., गद्य, मूपू. ॐ ह्रीं नमो अरिहंता), ८७९५५-४१०) विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ५१, पद्य, मूपु. ( वीरपयकवं नमिउं देवा), ८६७१७-२(३) " (२) विचारपंचाशिका-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीर पय क० महावीरदेव), ८६७१७-२ ($) विजयक्षमासूरि गुरुगुण सज्झाय, उपा. जीवविजय, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपु (भजत विजयक्षमासूरि ), ८८३६२-२ विजयक्षमासूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू. (श्रीमज्जिनेशः शुभ), ८८३६२-३ विजयक्षमासूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सार्वज्ञं विजयक्षमा), ८८३६२-४ विजयपताकायंत्र विधि, मा.गु. सं., प+ग, मूपू., (पुव्वं चिय नेरइए), ८६६४६-२ विधाता अष्टक, पुहिं. सं., गा. ७, पद्य, वै., इतर (महामूरख ने मीदरे), ८७५७३-२ " विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), प्रतहीन. " (२) विपाकसूत्र - हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. अ. १०, गद्य, म्पू, (तेण कालेन तेणं), ८७५९३(*) विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्य, वै., इतर, (जंभाराति पुरोहिते), प्रतहीन. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) विवाहपडल न-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., वै., इतर, (वाणी पद वांदी करी), ८७४४९ विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, श्वे., (गुणी गुणज्ञेषु गुणी), ८७०६६ (+४) ८७०७३, ८९१५२, ८७०७६(४) ८८०७७-२(क) 7 विविध विचार संग्रह *, गु., प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (जईया होही पुच्छा), ८७४०२-३ (+), ८७८३९(+), ८८७४८(+), ८८८९१-२, ८८९५०-२ विविधविषयसंबद्ध साधु पत्राचार पत्रसंग्रह, मु. भुवनकीर्ति, सं., गद्य, मूपू., (स्वस्तिश्रीमदभीष्ट), ८८१२८ विष्णु स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वै. शांताकारं भुजगशयनं), ८६७९३-३ " वैराग्यशतक, प्रा., गा. १०४, पद्य, म्पू., (संसारंमि असारे नत्थि), ८७५१८-१(#) व्याख्यान वाचन विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम इरियावहियं), ८८१०२-१ व्याख्यान विधि, पुहिं., प्रा.सं., श्लो. ३, प+ग, मृपू, नमो अरिहंताणं० जयइजग), ८७०४९ " व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु., रा.सं., प+ग., मूपू., (देवपूजा दया दानं), ८९०३० (+), ८८६९१ व्रतोद्यापनफल श्लोक सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू (लक्ष्मीकृतार्था सफलं), ८८४३२.५(१) ', ४८९ शक्रस्तव-अर्हन्सहस्रनाम, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., मूपू., (ॐ नमोर्हते भगवते), ८८३१७(+#), ८८६४६-१(+#) शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, म्पू, (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), ८७५१०-३(+) शत्रुंजयतीर्थ छट्ठ अट्टम गुणनुं, सं., गद्य, मूपू., (श्रीपुंडरीकगणधराय), ८८४३५-२ शत्रुंजयतीर्थ स्तव, सं. लो. १३, पद्य, मूपू. धरणेंद्रप्रमुखा नागा), ८५६८३ शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (यः पुरा राज्यभ्रष्टा), ८५९३६-४ (+#), ८७७४१-३ For Private and Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ शांतिक विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम विशाल जिनभुवन), ८८९६३ शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (विपुलनिर्मलकीर्तिभरा), ८५७६५-२ शांतिजिन स्तवन, मु. विवेक, अप., गा. ३०, पद्य, मपू., (जय पण सुरनर सुवनकाय), ८७५५७-१(+) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मप., (किं कल्पद्रुमसेवया),८९१३२-२(+#) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (देवदेवाधिपैः सर्वतो),८५६५९-५(+) शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, म्पू., (नाना विचित्रं बहुदुख), ८६४२३-५(5) शांतिस्नात्र विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मप., (तिहां चंद्रबलयोगे गत), ८७००३-३($) शारदाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ऐं ह्रीं श्रीं मंत्र), ८७१३६-१ शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., श्लो. १५, पद्य, मप., (नित्ये श्रीभवना), ८६५७६-२(+#) शीतलजिन स्तुति-आत्मनिंदागर्भित, ग. राजहंस, अप., गा. २१, पद्य, मूप., (सदानंद संपुन्न चंदो), ८७८४८ शुद्धआयंबिल विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (साधुने आंबिलमांहिं), ८६४५३ शृंगार श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, इतर, (हें कांतिकुचभारविभ्र), ८७२६५-२($) श्रमणधर्म गाथा, प्रा., गा.१, पद्य, मप., (अयमंतरं सि को एत्थं), ८६३७९-२ (२) श्रमणधर्म गाथा-टबार्थ, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अः इन जगै कोन छै), ८६३७९-२ श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, मप., (श्रीसर्वशं प्रणिपत), ८६६४१(+) (२) श्रावक आराधना-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत),८७३८४(+) श्रावक आलोचना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (सम्यक्त अतीचार उपनै), ८८९९०-१(+) श्रावक आलोयणा, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (ज्ञानाचारि पोथी पाटी), ८५९७९-१ श्रावक नित्यक्रिया विधि संग्रह, मा.ग.,सं., प+ग., मप., (स्नात्र करतां पहिला), ८७६००(+) श्रावक पाक्षिक अतिचार-लघु, प्रा.,मा.गु., गद्य, म्पू., (ईच्छामि खमा० ईच्छाका), ८६१०९-१(६) श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ११, पद्य, इतर, (अस्मान् विचित्रवपुषि),८६९५६-३,८७७९४-२(क) श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता श्याम), ८६१३९-४(+), ८६६६०-३(+#), ८५६६९-३, ८८१३४-४, ८६७७३-२(#) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., श्लो. ५०, पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), ८६१३८-२(+#), ८७४७७-१, ८७०७४(2) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रावकना दिवस-दिवस),८७४७७-१,८७०७४(2) षड्दर्शन समच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अधि.७, श्लो. ८७, पद्य, मप., (सद्दर्शनं जिनं नत्वा), ८६६३९ षड्द्रव्य नाम, सं., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकाय अधर्मा), ८७३८३-३(+) । षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., गा. १६१, पद्य, मपू., (अरिहं देवो सुगुरू), प्रतहीन. (२) षष्ठिशतक प्रकरण-हिस्सा गाथा १, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (अरिहं देवो सुगुरु), ८७९२१(+) (३) षष्ठिशतक प्रकरण-हिस्सा गाथा १-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (अहँत भगवंत असरणसरण), ८७९२१(+) संख्याताअसंख्याताअनंता मान विचार, मा.ग.,सं., गद्य, मप., (पाला च्यार ते मधे), ८५८९६(+) संघभक्ति महिमाश्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ६, पद्य, मपू., (बीजं मोक्षमहाद्रम), ८८४३२-१(+) संजयानियंठा के बोल, प्रा.,मा.गु., को., श्वे., (पन्नवणा १ बेये २), ८६४७९ संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, वि. १५वी, पद्य, मप., (संतिकरं संतिजिणं), ८८०७४(+#), ८७५८८-२, ८८९८५ संथारापचक्खाण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, स्था., (प्रथम इरियावही),८६६४७-२ संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मप., (निसीहि निसीहि निसीहि), ८९०५९(+), ८६२५०-१,८६६५८,८९०६२-२,८९२३९ (२) संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नमस्कार विना बीजो), ८९०५९(+) संबोध प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., अधि. ११, गा. १६१७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वीयरायं सव्वन), प्रतहीन. (२) संबोध प्रकरण-हिस्सा अभव्य कुलक, प्रा., गा. ९, पद्य, मपू., (जह अभविय जीवेहिं), ८६६४८(+) (३) संबोध प्रकरण-हिस्सा अभव्य कुलक का टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (जह क० जिम अभव्यनो), ८६६४८(+) संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५, पद्य, मूपू., (नमिऊण तिलोअगुरुं), ८९०६३(+) For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ४९१ (२) संबोधसप्ततिका-हिस्सा संघलक्षणस्वरूप गाथा २९-३०, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. २, पद्य, पू., (एगो साहू एगाय साहुणी), ८६६५२(+) (३) संबोधसप्ततिका-हिस्सा संघलक्षणस्वरूप गाथा २९-३० की-टीका, सं., गद्य, मपू., (एकः साधुर्यतिः १ एका), ८६६५२(+) समवसरणतप विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (भवजिननाथाय नमः १०), ८८१६१(+), ८५९९२ समवसरणविचार गाथा-देवेंद्रकृत, प्रा., गा. ३, पद्य, मप., (सोहम्माहिवइकउ सरणं), ८८७५२-२(+) (२) समवसरणविचार गाथा-देवेंद्रकृत-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (सोधमेंद्रनो कह्यौ), ८८७५२-२(+) समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०३, सू. १५९, ग्रं. १६६७, गद्य, मूपू., (सुयं मे० इह खलु समणे), प्रतहीन. (२) समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., ग्रं. ४४७४, वि. १७उ, गद्य, मप., (देवदेवं जिनं नत्वा), ८६८३३(+) समस्या श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (गतं बहुत्तरं कालं), ८६२८८-२(+) । समूछेमजीवकालमान गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जेठासाढे चतुरो वासा), ८७४७२-४(+) सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जह सम्मत्तसरूवं), ८९०६४ (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (जह कहतां जे उपशमादिक),८९०६४ सम्यक्त्वादि व्रत आरोपण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नांदि मांडिइ), ८७४६५-१ सरस्वतीदेवी अष्टक, म. धर्मवर्द्धन, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (प्राग्वाग्देवि जग), ८६६६१-८(+) सरस्वतीदेवी अष्टक, सं., श्लो.८, पद्य, मप., (जिनादेशजाता जिनेंद्र), ८७५३९-१ सरस्वतीदेवी छंद, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (स्यामि चेतनं हृदि), ८८२६७-२ सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, श्वे., इतर, (ॐ ह्रीं श्रीं वद), ८५९३८-२ सरस्वतीदेवीमंत्रसाधन विधि, प्रा., गद्य, मूपू., (ओं नमो भगवईए सुअदेव), ८६६६१-२(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसरि, सं., श्लो. १३, वि. ९वी, पद्य, मप., (करमरालविहंगमवाहना), ८६६६१-३(+), ८७५३५-१(+), ८९२३४(+) सरस्वतीदेव्यपराधक्षमापन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (अपराधक्षमं कुर्यात्), ८६६६१-५(+) साधारणजिन अष्टक, पं. वीरविमल गणि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (विमलकेवलदर्शनसंयुतं), ८७०४२-२ साधारणजिन आरती, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (मरगयमणि घटिअविसाल), ८७९०९-३(+) साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (जयश्रीजिनकल्याणवल्लि), ८७५३५-२(+) साधारणजिन चैत्यवंदन, प्रा.,मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदेह भगव), ८६७१२-१(+) साधारणजिन चैत्यवंदन-विविधतीर्थक्षेत्रमंडन, सं., श्लो. २६, पद्य, मपू., (नित्यं श्रीभुवनाधि), ८८०७१-१ साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थराजः पदपद्म), ८६९००-२(#) साधारणजिन स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सत्थीयनंदावत्तजुत्तभ), ८७६८०-३ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू., (सद्भक्तियुक्तिनतनैक), ८६९२१-३(+) साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ८, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो), ८६५७६-४(+#), ८७०४५(+), ८८३९७-३(+), ८५७७५-४, ८७००१, ८७१९०-३(#) साधारणजिन स्तुति-संगीतमय, मा.गु.,सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (धों धो धिधिक्तां), ८७७५१-२ साधारणजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (जय वीतमोहः जय वीतदोष), ८५९९६-३(+) साधु २७ गुण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मपू., (छव्वय ६ छक्काय ६), ८६२६२-२ साधुकालधर्म विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ज्यारे साधु काल करे), ८६५९२(+) साधुपारंपर्य परिचय, मु. नानकचंद, सं., गद्य, मूप., स्था., (यत्सूक्तिपीयूषरस), ८६२८०(+) साधुविधिप्रकाश, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर गणधर प्रते), ८७५६० सामाचारी-देवसूरगच्छीय, गच्छा. विजयधरणेंद्रसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जीयात् जिनेशसिद्धांत), ८५८३४(+) सामायिक विधि, प्रा.,मा.ग., प+ग., मप्., (नमो अरिहंताणं नमो), ८५८०१-३(#) सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., द्वा. २२, श्लो. १००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (सिंदूरप्रकरस्तपः), ८६६४३(+s), ८९२९७-२(5) सिंदरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५५, गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ८६६४३(+$) For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.८७०३९ स या ),८८९१२ .८९२४' ४९२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) सिंदूरप्रकर-बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिंदूरनो प्रकर कहिइं), ८७६०६($) (२) सिंदूरप्रकर-(पु.हि.)पद्यानुवाद, मु. राज, पुहिं, पद्य, मूपू., (तप करि कुंभमध्य शोभा), ८८८४७(+$) सिद्धचक्र आराधना विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथमवर्ष मास दिन), ८६४५४(+) सिद्धचक्र उद्यापन विधि, सं., गद्य, मप., (पंचवर्ण धान्येः), ८८१७७-१ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मपू., (उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण), ८६२९२-२(+), ८८१७७-३(5) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, अप., गा. ३, पद्य, म्पू., (जो धुरि सिरि अरिहंत), ८६६५९(+) सिद्धचक्रयंत्र संक्षिप्त पूजनविधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (ॐ भूरसी भूतधात्री), ८६८६०(+) सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (भत्तिजुत्ताण सत्ताण), ८८१७७-२ । सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (जं उसहकेवलाओ अंत), ८५६४७-१(+), ८८६३५(+) (२) सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (जंक० जे उसभ क० ऋषभ), ८८६३५(+) सिद्धपद स्तवन, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मपू., (जगतभूषण विगत दूषण), ८७०५९-३(+), ८७१२६(2) सिद्धितप गणj, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नमो सिद्धस्स), ८७०३९-२($) सीमंधरजिन महपत्तिप्रमाण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (सोलेसयस्स हत्था), ८८९१३-१ सीमंधरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. २५, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (जयश्रिया मोहरिपो), ८९२४१(+) सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४०, पद्य, श्वे., (दानं सुपात्रे विशुद), ८७४७२-५(+),८९०४५-२(+), ८७५८०-४, ८९३०८-३ (२) सुभाषित श्लोक संग्रह- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (सकल क० समस्त कुसल), ८९३०८-३ सभाषित श्लोक संग्रह *, सं., श्लो. ४५, पद्य, जै., इतर, (विद्यालक्ष्मीसंपन्ना), ८९२३१-१ सुभाषित संग्रह, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (चत्वारोनरकद्वारा), ८६५७६-५(+#) सुभाषित संग्रह *, सं., श्लो. ८, पद्य, इतर, (नागो भाति मदेन), ८७८६८-२ सुमतिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (मदमदनरहितनरहितसुमते), ८८५८९-२ सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मूपू., (बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज), प्रतहीन. (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मप., (पुच्छिसुणं समणा माहण), ८६०८० १(+$), ८६६५४-१(+), ८७८८३($) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (२३ सुगडांगजी के), ८७२६८-२ सूरिमंत्र साधन विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (एँ नमः ॐ ह्रीं नमो), ८७४०२-२(+) स्थापनाचार्य विधि, सं., प+ग., म्पू., (स्थापनाविधि), ८८९८४ (२) स्थापनाचार्य विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (थापनानो विधि ते प्रत), ८८९८४ स्नात्रपूजा, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (मुक्तालंकार विकार), ८६६०३(5) स्नात्रपूजा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., मप., (नमो अरिहंताणं नमो), ८८६८९ स्नान विधि, सं., प+ग., वै., (उत्तिष्ठंतु महद्भता), ८८०८१-१ हेमदंडक गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीवभेया सरीराहार), ८६४४८-२(+) होडाचक्र, सं., गद्य, इतर, (चुचे चोला अश्विनी।), ८५६७६-२(+) होलिकापर्व कथा, मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (उजीणी नगरीइं प्रजा), ८८३४५ होलिकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (होलिका फाल्गुने मासे), ८६२११ For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २ गाय संवाद पद, रा. गा. १३, पद्य, वै., इतर (हरिया जब नित चरती) ८८८१६-१ " " ४ अनंतजीव बोल, मा.गु., गद्य, श्वे. (अभव्य जीव अनंता १), ८७४४१-२(+) ४ आहार विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (हविं च्यार प्रकारना), ८६८४०-१ ४ कषाय पद, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जैन धर्म नही कीतावो), ८७९१८-४ (+) ४ कषाय परिहार-दृष्टांत कथा, रा., गद्य, श्वे., (कोहे घेवर खवगे माणा ), ८९१०१(+$) ४ गोला चौडालियो, मु. धनदास पुहिं. दा. ४, वि. १९०७, पद्य, वे. (संतनाथजी सोलमा सांति), ८६९८२ " "" 7 ४ गोला सज्झाय, रा., गा. १७, पद्य, श्वे. (साधांतणी वाणी सुणी), ८७४६१-४ " ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४५, गा. ८६२, ग्रं. ११२०, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ शशिकुलतिलो), ८९३१५-४१ ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चिहुं दिसथी च्यारे), ८७३०१-२(+), ८७७९१-२ ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ५, पद्य, म्पू, (नगर कंपिलानो धणी रे), ८७६३१, ८७५३७-१४) ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ भूपति सोहे), ८५८८६, ८७४२०, ८७७३४, ८९०४९, ८८०५३-३(३) ४ मंगल पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (पहेलुं ए मंगल जिनतणु), ८५७९९-१(+) ४ मंगल पद, मु. रूपचंद, मा.गु., पद. ५, पद्य, मूपू., (आज घरे नाथजी पधारे), ८५७५०-१(+) ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा. डा. ४, गा. ११०, पद्य, खे, (अनंत चोबीसी जे नमु), ८५७४३-२(६), ८७७०३-१(३), ८८५७२(७) 2 ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु. गा. १२, वि. १८५२, पच वे. (पो उठीनें समरीजे हौ). ८६२०४ " ४ मंगल सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, स्था., (पहिलो मंगल अरिहंतनो), ८७९६७(+) ४ मंगल सज्झाब, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मंगलिक पहिलुं कहुं ए), ८८३४०-१(१) ४ महाव्रत सज्झाय-साधुगुण, मा.गु., पद्य, वे. (त्रिविधि त्रिविधि कर). ८६०५६ (*४) " יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ मांगलिक गीत, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू., (गीतम गणधर मनधरी), ८७७७९ (+) ४ विपाक वर्णन, पु.ि गा. ९, पद्य, मूपू (अब विपाक वरनौ विधि), ८८२९१-५ ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., अ. ४, गा. १२. बि. १७वी, पद्य, मूपू. (मुजने चार शरणा होजो), ८६५२९(क) ४ शरणा, मा.गु., गद्य, मूप. (हिवे चार सरणा करवा), ८७१०५, ८९१४५ ४ श्रावक प्रकार पद, मु. मोतीचंद, मा.गु., गा. ३६, वि. १८३६, पद्य, श्वे. (वर्धमान शासनधणी गणधर ), ८५६९३ ५ इंद्रिय विवरण, मा.गु., गद्य से, (स्पशेंद्रिय १ रस), ८८५७३-५ (+) 2 ५. इंद्रिय विषयत्याग गीत, मु. लावण्यसमय, मा.गु.. गा. ८, पद्य, मूषू, नागनि चिंतवसे रे), ८८८६१-२(+) ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. ( काम अंध गजराज अगाज), ८७५३५-३(३), ८८१५७, ८९०५२-१(क), ८५६३९-२ (३) ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. माल, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, (भोलीडारे हंसा रे), ८६७५६ ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथसुत वंदिये), ८८०१३ ५ खामणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेला खामणा अढीदीप), ८८१२९(+$) ५ गुणठाणा, पुहिं., गद्य, मूपू., (पांच गुणठांणा सासता ), ८८२९२-१ ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (धुर समरुं श्रीआदिदेव), ८७४८७-१(+) ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मु. पुण्याविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (सिद्धाचल गिरनारगिरि ८६९८५(१) ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. (आदि हे आविजिणेस ए). ८५८२१, ८६१३०-१, ८६१७४-२, ८८२४२, ८७५७५ (8) ५ तीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आबु अष्टापद गिरनार ) ८६२१८-२ For Private and Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५ परमेष्ठि आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा.८, वि. १८वी, पद्य, दि., (इहविधि मंगल आरती), ८८४६३-२, ८८९७५-१ ५ परमेष्ठिगुण वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंताणं पहिलै पदे), ८६२०२(+) ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हस्तिनापुर नगर भलो), ८८१६७-२, ८८८८८(-5) ५ पांडव सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (हस्तिनागपुर दीपतौ),८८९००-१ ५ प्रश्नोत्तर-आगमगत, पुहि., गद्य, श्वे., (५ कारण असुभ होइ जिस), ८६२७० ५ भाव के ५३ उत्तरभेद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ उपसम भाव भेद २ २), ८६८६१-१ ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ३१, पद्य, मपू., (सकल मनोरथ पूरवैरे), ८७९७४-१(+), ८६००६, ८६८०२($), ८८३०६-१(६) ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, मपू., (सुरतरुनी परि दोहिलो), ८६४०७(+), ८७७९३(#) ५ महाव्रत स्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (सर्वप्राणातिपातविरमण), ८७८०६(5) ५ मूलभाव ५३ उत्तरप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मप., (प्रथम उदयिकभाव), ८५८९७(+), ८६८७३-३(+), ८६८५४-३(2) ५ मेरुपर्वत नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (सुदर्शनमेरु विजयमेरु), ८८३४८-४ ५ शरीरद्वार विचार, मा.गु., को., मूपू., (--), ८८३३९-३ ५ शरीर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (उदारिक१ वैक्रिय२), ८९३०४-५(+) ५ संस्थानभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (संस्थान ५ प्रकारना), ८५६५१ ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ९, गा. ५४, वि. १८३४, पद्य, मूपू., (श्रीस्याद्वाद शुद्धो), ८६५५९-१(+), ८७९७०(+) ६ आरा मान, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीस कोडाकोडि सागरोपम), ८८८५९-१(+$) ६ आरास्वरूप विवरण*, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम भरतादि दश), ८८५५५, ८९२७३($) ६ काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथ्वीकाय अपकाय),८७३८३-१(+) ६ काय सज्झाय, रा., गा. २२, पद्य, श्वे., (हुवाने होसे आज छे जी), ८८६८५(+), ८५८१८-१ ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (धर्मद्रव्य शुद्ध लोक),८८२०७(२) । ६ द्रव्य विचार स्तवन, मु. हेम, मा.गु., गा. ४७, पद्य, मूपू., (सिद्ध नमुं करजोडी), ८८२९१-१, ८८४०१ ६ नियंठा ३६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण महावीर० पनवण), ८८२१४($) ६ लेश्यादृष्टांत सज्झाय, मु. इंद्र शिष्य, रा., गा. १५, वि. १७११, पद्य, मूपू., (वंदीत वीरजिणंद रे), ८७७३६-२ ६ लेश्या नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (कृष्ण लेश्या १ नील), ८९०४७-३(#) ६ विगइ नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (द्ध दही माखण घी तेल), ८६८९६-३(#) ६ संवर सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर गोयमनें कह), ८८०४५-१(#$) ६ स्थानक विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (जीवादिक नव पदार्थ), ८५८७१(६) ७ कर्मबंध विवरण, पुहिं., गद्य, मूपू., (सप्तकर्म का बंध समय), ८८१८२(+) ७ कुलकर विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्सर्पिणीकालनो), ८७७७१-४(+#) ७ गरणा-श्रावक के घरमें, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (गलणूं आंगला त्रीसन), ८८५५४-३(+) ७ गरणा-श्रावक के घरमें, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाणीनु गरणु १ छाणानु), ८८०३७-२ ७ नय नाम, मा.गु., गद्य, मप., (निगम नइ १ संगर २),८७३८३-२(+) ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जडाव, रा., पद्य, श्वे., (सात वीसन मती सेवज्यो), ८६९०२-७($) ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर उपगारी साध सुगुरु), ८६८७६-६(+), ८८६३०, ८७३२६-१(-६) ७ समुद्घात विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सरीर मै समतघात किता), ८७४००-२(-) ७ सहेली प्रहेलिका, मा.गु., गा.८, पद्य, जै., वै., इतर, (पहली सखी जेब बोले), ८७१३१-१ ८ आत्मा ६२ बोल, पुहिं., को., म्पू., (१ द्रव्य आत्मा में), ८८६७७-२(+), ८७४७५-३, ८८३३९-४ ८ आत्मा विचार, मा.ग., गद्य, श्वे., (दिव्य आत्मा१ कषाये),८८७५८-४(2) For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ४९५ ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), ८७३१२(१), ८८६४७-२(+), ८७२१५, ८७२३७, ८८३९८, ८९२८८ ८ कर्म ३० बोल विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी पोलिआ), ८५६९१(+#S) ८ कर्म ५० बोल यंत्र, मा.गु., को., म्पू., (--), ८८६५७(+) ८ कर्म ८०० बोलबंधी यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ८७५३०-१ ८ कर्म ढाल, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ८८५२८(+$) ८ कर्मबंध भेदविचार कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ८८३३९-५ ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, मप., (ज्ञानावरणीयकर्म), ८६४५५(+#$) ८ कर्म सज्झाय, मु. कुसालचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (अष्ट करम अरी छे चेतन), ८५९५४-२(+-) ८ प्रकारी पूजा, मु. कुंअरविजय, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मूपू., (त्रिजगनायक तु धणी), ८७२२४-१(+) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७७, वि. १८२१, पद्य, पू., (अजर अमर निकलंक जे), ८६३९२-१(६) ८ प्रवचनमाता विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (इर्यासमितिना ४ भेद), ८९३०४-७(+) ८ प्रवचनमाता सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ९, गा. १३०, वि. १८वी, पद्य, मपू., (सुकृत कल्पतरु श्रेणि), ८६१०१(६) ८ बोल-धर्मपरिवार, रा., गद्य, श्वे., (धरम को पिता), ८६५५९-३(+) ८ बोल-पापपरिवार विषयक, रा., गद्य, श्वे., (पाप को बाप लोभ छे), ८६५५९-४(+) ८ बोल सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (० जिणधर्म आदरो सार), ८८८२५-३(+) ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मद आठ महामुनि वारीइं), ८६९५५(+), ८६१६०-२, ८६३८१ ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (प्रणमीय सरसति भगवती), ८७४५२(2) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा. ७६, पद्य, मूपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), ८७५१७(+), ८७७७७ ९ अंगपूजा भावना, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथमथी प्रगट), ८५९७३(#) ९ चंद्रवा विधान-श्रावक के घर, मा.गु., पद्य, भूपू., (पहिलुंनइ पाणीहारडइ), ८८५५४-२(+) ९ बलदेव नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (अचल१ विजय२ भद्र३), ८७९८६-५ ९ बोल जिनचंद्रसूरि खरतरगच्छ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ८८१३०-२ ९ वाड ब्रह्मचर्य, मा.गु., गद्य, श्वे., (वसति १ स्त्रीनी कथा), ८८२२०-१(+#) ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, मप., (श्रीगुरुने चरणे नमी), ८५७१२-१, ८५९२५-१, ८६१७०, ८६४६९-२,८७२७६, ८७६२६(2) ९ वाड सज्झाय, आ. देवसरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मप., (रमणी पश पंडग तणी रे), ८६९२१-१(+),८७८५१-२(+),८८३३८-१(2) ९ वाड सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नववाडि मुनिसर मनधरो), ८५८३८-१(+$) ९ वासुदेव नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (त्रिपृष्ठि१ द्विपृ०), ८७९८६-४ १० गच्छोत्पत्ति कालनिर्णय, मा.गु., गद्य, मूपू., (विक्रमादित्य थकी), ८६०९१-३ १० गणधर नाम-पार्श्वजिन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसुमतीस्वामी१), ८८३४८-३ १० चक्रवर्ती सज्झाय-मोक्षगामी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८४८, पद्य, श्वे., (श्रीरिषभदेवरो ननण), ८९०७५-२(+) १० दृष्टांत सज्झाय-मनुष्यभव, वा. गुणविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (प्रणमी परमेसर वीर),८८३९९ १० नारकी वेदना नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (सीय१ उष्ण२ खुह३),८७१६५-३ १० पच्चखाण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (नवकारसी सागार पोरसी), ८८३४८-८, ८८४३८(#) १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दसविह प्रह उठी), ८५७१०-१(+), ८६००७-२(+), ८७९०९-१(+), ८९३१८-२, ८७१८३-३(६) १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनंदन नमुं), ८८५६९(+), ८५६७५-१, ८५९४०-३, ८६२४९, ८६६८८, ८५७९६(#) For Private and Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १० प्रश्न विचार-आगमोक्त, मा.ग., गद्य, श्वे., (सप्तम सप्तमिका प्रति), ८९२३७-२(+) १० बोल औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मीली रे जोगाइ दस बोल), ८६५६४-६ १० बोल-धर्म, मा.गु., अंक. १०, गद्य, श्वे., (दया पाले सो दानेसरी), ८७७४५-३ १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (स्यादवादमत श्रीजिनवर), ८८३४९-२(+) १० वस्तु ३५ बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (पहले बोले १० यतिधर्म), ८६६१५-१(+), ८६२३१-१ १० श्रावक सज्झाय, आ. नन्नसूरि, मा.गु., गा. ३२, वि. १५५३, पद्य, मप., (जिण चुवीसी करुं), ८७४३५ १० श्रावक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८२९, पद्य, श्वे., (आणंदने सेवानंदा रे), ८५८०८-१(+#) १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (प्रह उठि प्रणमुं), ८६१८३, ८९२११, ८९२६५-२, ८७२९०-३(2) ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्वा. ११, वि. १७२२, पद्य, मप., (आचारांग पहेलुं कह्य), ८६९४७-१(+#) ११ गणधर छंद, मु. अनंतदास, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (गोयम गणधार सब सुखकार), ८७३९१-२(#) ११ गणधर संशय सज्झाय, मु. पद्म, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभाते उठीने भविका), ८६०१७-२ ११ गणधर सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (वीर पटोधर वंदीये), ८८२५१ १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. १२, गा. ७५, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति भारती), ८७९७२(+) १२ चक्रवर्ती के मातापिता नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (ऋषभ समित्रजय समुद्र), ८७९८६-७ १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम भर्थजी१ सगर२), ८७९८६-६ १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनत्तर देव आयष्य बोल यंत्र, मा.गु., यं., श्वे., (१ सोधर्मदेवलोके आउख), ८६०३३, ८८५२२ १२ देवलोक नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो सौधर्मइ देवलोक), ८९०४७-४(#$) १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (भवनपति व्यंतर), ८७१४५-४(+) १२ पर्षदा विचार यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (ईशानकुणि वैमानिकदेव१), ८८६५६-४ १२ प्रकार की साधु सामाचारी, मा.गु., गद्य, मपू., (लेबो अनइ देवउ तंजहा), ८७५३०-२ १२ बोल सज्झाय-हीरसूरि औपदेशिक बोल, आ. विजयतिलकसूरि शिष्य, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरसति मात मया करउ), ८८६६२(+) १२ भावना पद, रा., भा. १२, पद्य, भूपू., (हे रे जीव गढ मड), ८६५५८ १२ भावना पद, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ८८४६०-१($) १२ भावना सज्झाय, मु. रिखजी, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (श्रीमहावीरजी विनउरे), ८९०१६-२ १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी), ८६८०३(#$) १२ मास रात्रिदिनसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पोसक महिन १२ म० दिन), ८८३७३-२(+) १२ मास सूर्यकिरणसंख्या विचार, पुहि., गद्य, मपू., (चतक महिन साढीबारास), ८८३७३-१(+) १२ व्रत चौपाई, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ३४१, वि. १५३४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर प्रणमुं), ८८७८८(+$) १२ व्रत छप्पय, मु. प्रकाशसंघ, मा.गु., गा. १३, वि. १८७५, पद्य, श्वे., (जीवदया रे नीत पाली), ८६८१७ १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणातिपातव्रत मृषा), ८६१२१-१(+), ८८४१३-२(+) १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिला समकित व्रतना), ८६३८९(4) १२ व्रत सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम गणधर पाय), ८६६९०-१(+) १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, पू., (आलस १ मोह २ बने ३), ८९०२१-२(+) १३ काठिया सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुं गौतम), ८५७३८ १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., गा.१६, पद्य, मपू., (सोभागी भाई काठीया), ८५८५८(+-) १३ काठिया सज्झाय, मु. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., गा.१६, पद्य, मूपू., (गौतम नामि टलइ सवि), ८६८७५-२ १३ काठिया सज्झाय, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., गा.१५, वि. १९३९, पद्य, मूपू., (जिनमारग पाई जी कमाई), ८५६७७-१ १३ काठिया सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (परमाणंदिइं लीणमन आणी), ८६८७५-१ For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ १३ बोल- गुणरूप रूई अवगुणरूप चिनगारी, मा.गु., बो. १३, गद्य, मूपू., (जनमरूप रुड़ मरणरूप), ८८९०७-३(+) १३ बोल-चातुर्मास योग्य स्थानविषये, पुडिं, गद्य, श्वे. (किचड गारा थोडा होवे), ८७३५८-२(५) १४ गुणस्थानक ५७ कर्मबंधहेतु, मा.गु., गद्य, भूपू (मिध्यात्व १ सास्वादन), ८८४१२(१) ८७०५६.२(क) , १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व गुणठाणो १) ८८८५१-२ १४ गुणस्थानक भेद, मा.गु. को. भूपू (-), ८५७७६ (+) " " १४ गुणस्थानक मार्गणा, मा.गु., को. मूपु., (--), ८७४३२-५, ८७४७५-२, ८८५३१ १४ गुणस्थानक विचार, पुहिं., गद्य, मूपू., (नामद्वार ते १४ गुणठा), ८६४१८($) १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (बंधप्रकृतयस्तासां ), प्रतहीन. (२) १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को. म्पू, (मिथ्यात्व सास्वादन), ८६८७३-२(*) १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., ( पासजिनेसर पय नमी रे ), ८८८६९-१(#$) १४ गुणस्थानक सञ्झाब, रा. गा. ८, पद्य, वे (चवदे धानकरा जीवए) ८९०७८-२ " "" १४ गुणस्थानक सज्झाय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (समरवि वीरजिणेसरदेव), ८७६०८ १४ गुणस्थानके २५ द्वार, मा.गु., गद्य, म्पू. (नामद्वार लक्षणद्वार), ८७५२६ (३) १४ गुणस्थानके २८ द्वार, मा.गु.. द्वा. २८, गद्य, म्पू. (नामद्वार लक्षणद्वार ), ८८२६६ १४ गुणस्थानके ३३ द्वार बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (गुणठाणा सावद्य कितरा), ८८२७१ १४ गुणस्थानके ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को. मूपू., (--), ८८३३९-२ १४ गुणस्थानके ९३ द्वार विचार, मा.गु., को. म्पू. (--), ८७१७५(१) " १४ गुणस्थानके कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू. (उधि बंध १२० प्रकृति), ८८६१३(३) १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी ५ दर्शना), ८८६१४(३) १४ नियम सज्झाय ग ऋद्धिविजय, मा.गु. गा. २१, पद्य, मूपु. ( सारद पाव प्रणमी करि). ८६४६५-१(१) १४ पूर्वतप विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउद पूर्वना तपमां), ८८५४०-१(+) १४ पूर्व दूहा, मा.गु गा. १४, पद्य, मूपू. (उतपात प्रवाद पूर्व), ८७४०३ (*) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ पूर्व नाम, मा.गु., गद्य, म्पू. (उत्पाद पूर्व १ अग्र). ८६१२१-३(१) १४ पूर्व स्तवन, आ. सौभाग्यसूरि, मा.गु. दा. ३, गा. ३३. वि. १८९६, पद्य, मूपू (जिनवर श्रीवर्धमान), ८७०६७-३ १४ महानदी नाम परिवारादि मान यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ८८५६५-३ १४ रत्न विचार- चक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, म्पू., (चक्र छत्र दंड ए तीन), ८६९५८-२(१), ८८३६८ १४ राजलोकमान यंत्र, मा.गु., चि.. मूपू.. (-), ८८७९६ " १४ राजलोक विवरण यंत्र, मा.गु., यं., श्वे., (--), ८७३८७-२ १४ स्वप्न पूजा, मु. अबीरचंद्र ऋषि, पुर्हि पूजा. १४. वि. १९३१, पद्य, मूपू. (आगम अगोचर अलख अज अवि) ८६२७३(+) " १४ स्वप्न विचार-जिनमाता, मा.गु., गद्य, मूपू. (तथा केवली एक भवनई), ८६७९० (३) १४ स्वप्न विचार- भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, मूपू (स्त्री तथा पुरुष एक), ८७३५८-१(०) १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु. दा. ४, गा. २०, पद्य, भूपू (श्रीदेव तीर्थंकर केर, ८६५३८(४) १४ स्वप्न सज्झाय, ग. हीरधर्म, मा.गु., गा. ४२, पद्य, म्पू, (तारक सकलाधार प्रभु), ८६१४८(*), ८६६७७(१) १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, (प्रथम ऐरावण दिठो), ८८७०५-१ १५ तिथि गणणुं, मा.गु., गद्य, मूपू., (१श्रीगौतमसर्वज्ञाय), ८८३४८-६ १५ तिथि सज्झाय, मु. गंगदास, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सकल विद्या वरदावणी), ८८०८१-३ १५ तिथि सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (एकम कहै तू एकलो रे), ८७४६१-१ १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्तु. १६, गा. ६४, पद्य, मूपू. (एक मिध्यात असंयम), ८५९२६ (*) १५ भेद सिद्ध सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, भूपू (पनरे भेदे सिवगए मन), ८७९३४-२ १६ जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३६, पद्य, ओ., (ऋषभ अजित संभवस्वामी), ८७७४५-१ For Private and Personal Use Only ४९७ Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ ४९८ १६ सती नाम, मा.गु. गद्य, म्पू, (ब्राह्मी १ चंदन२ बालि), ८७२३१-२ (*), ८६१८०-१ १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदि जिनवर ), ८६४१४-१(+), ८६९९१, ८८३९३, ८८७७५-१, ८६५०१०) ८८०५३-२(४) १६ सत्यवादी सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू. (ब्रह्मचारी चूडामणी), ८६३४६-२००६) १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मु. जिनदास, मा.गु.. गा. १९, पद्य, मूपू., (सरसति सामि सुगुरु), ८५९५९-२(*) " १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपु. ( पाडलीपुर नगरी चंद्र ), ८६४९६ (०) १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मु. विद्याधर, मा.गु, गा. १८, पद्य, मूपू (सरसति सामणि वीन), ८९२८६ १६ स्वप्न सज्झाय-चंद्रगुप्त राजा, मा.गु., गा. २९, पद्य, थे. (पाडलिपुर नामे नगर), ८९२३०, ८७४६६ (३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७ भेद जीव अल्पबहुत्व स्तवन, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., डा. ३, गा. १८, पद्य, मूपू. ( अरिहंत केवलज्ञान), ८९१७३ १७ भेदी पूजा, मु. जीवराज ऋषि, मा.गु., ढा. १७, पद्य, मृपू. (श्रीजिनचदन प्रकासकर ), ८६३४२ १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., डा. १७, पद्य, म्पू., (अरिहंत मुखपंकजवासिनी), ८६३६९(+), ८९१९७ १७ भेदी पूजाविचार स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (विमल वरनाण जगभाण), ८६१८१-१ १७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सत्तरभेद पूजा फल), ८८०२६ १७ संयमभेद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथवीकाय असंयम १), ८९१४२-३ १८ दोष विचार गर्भपालन विषे, मा.गु., गद्य, श्वे. (जे गर्भवती दिवसे घण), ८९०१२-२ (*) १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (मथुरा नगरी मे कुबेर), ८८८८३-२ १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३२, पद्य, मूपू., (पहला ते प्रणमुं पास), ८५९२२-१(+) १८ नातरा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., ढा. ४, गा. ७५, पद्य, मूपू., (मानव भव पायो जी), ८७२९८ १८ नातरा सज्झाय, पंन्या. देवविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २२, वि. १६१८, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिणेसर पाय पण), ८८३००-३($) १८ नातरा सज्झाय, मु. वीरसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. ३२, पद्य, मूपू., (पहिले ने प्रणमुं रे), ८६१६१ १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., डा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (पहेलां ते समरूं पास), ८८८८३-१ १८ पापस्थानक आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोई भव्यजीव कोई), ८८५७३-१ (+5) १८ पापस्थानक आलोयणा सज्झाय, मा.गु., पद्य, ओ., (--), ८८९२४(३) १८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, म्पू, (पहलो प्राणातिपात). ८९३०४-१(*) १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक पहिलुं कहि), ८६१४६-१(+), ८७१०७(३) ८७४२१-२ १८ पापस्थानक परिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मा.गु., ढा. १८, ग्रं. ३५०, पद्य, श्वे., (सुंदर रूप विचार चतुर), ८९०२५($) १८ पापस्थानक सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३८, वि. १८९१, पद्य, श्वे., (महावीर वर्धमानजी), ८६४१९-१(+) १८ पापस्थानक सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पापस्थान अढारे पुरो), ८९२५७-२, ८५७६८-३ (#), ८८०८५-१(#) १८ पापस्थानक सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे. (प्राण परसोत्म कहइ), ८७३३८(+) १८ पौषध दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ बोले पोसानी रातने ), ८६००३-२ १८ भार वनस्पतिप्रमाण पद, मु. सिद्ध, मा.गु. गा. १, पद्य, मूपु (प्रथम कोड अडवीस), ८८९१३-६ " "" १८ भार वनस्पतिमान दोहा, रा., दोहा. २, पद्य, श्वे., ( कोडि तीन लख वसु ससि), ८९०७२-२ (+) (२) १८ भार वनस्पतिमान दोहा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे. (७६८६०९७८०० इतरी जाति), ८९०७२-२(+) " १९ बोल-श्रावकाचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेले बोले भगवा गुणवा), ८७३५६-१ २० द्वार परिहार विशुद्धि, मा.गु., गद्य, मूपु.. (क्षेत्रद्वार१ काल). ८८५८८ २० बोल असमाधि, मा.गु.. कडी. २०, गद्य, म्पू, (उतावलो चालें तो). ८६८६९-१, ८८७२४-१ २० बोल वादनिवारण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु.. गा. १९, वि. १८३३, पद्य, स्था., (किणसुं वाद विवाद न), ८६८७०-१(+), ८७१७६ २० मासा मान, पुहिं., गद्य, मूपू., इतर, (ताजारा का दाणाकी), ८७३५६-२ For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ४९९ २० विहरमानजिन, अतीत, अनागत व वर्तमान तीर्थंकरादि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीकेवलज्ञानी १), ८७४५६-२ २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मपू., (पहेला जिनवर विहरमान), ८६६८९-१ २० विहरमानजिन छंद, मु. तेजप्रताप शिष्य, मा.गु., गा. २६, पद्य, मपू., (--), ८७३९१-१(#$) २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (सीमंधर १ युगमंधर), ८८३८६-२, ८६६६४-३(#) २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी श्रीजुग), ८५८८२-१(+) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहेबो), ८६८२८-१(+) २० विहरमानजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सीमंधर युगमंधर बाहु), ८६५४४(+#), ८६९१६-२(+#) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. जीवणजी, मा.गु., गा.१२, वि. १८२२, पद्य, मूप., (श्रीमीदर पहला नम), ८७३०५-२(+-) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. जैमल ऋषि, रा., गा. १०, वि. १८२४, पद्य, स्था., (सीमंधर युगमंधरस्वामी), ८८३९२-२(+) २० विहरमानजिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७२९, पद्य, मूप., (वंद मन सुध विहरमाण), ८५८८२ २(+), ८६२०३(+), ८७३५० २० विहरमानजिन स्तवन, मु. नेमिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (प्रह उठी नमीइ रे जपी), ८८६८०-४ २० विहरमानजिन स्तवन, मु. योग्यरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (चार जंबुधिप जाणिइ ए), ८९०४९ २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., ढा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीमींदर मीलीया पछं), ८८५३८(+-) २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्रीमींद्र जुगमींद्र), ८८४७४-३ । २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूप., (मुज हीयडौ हेजालूवौ), ८५७३५ (+$) २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २०, वि. १८वी, पद्य, मूप., (श्रीसीमंधर जिनवर), ८५७६७(+) २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, म्पू., (पुखलवई विजये जयो रे), ८६४८३(+$), ८८५००(+$) २० विहरमानजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचविदेह विषय), ८६७०६-३(+) २० विहरमान स्तवन, पंन्या. न्यायसागर, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (कहियो वंदन जाय दधि), ८५७२४(+$) २० विहरमान स्तवन, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. २, गा. ३६, पद्य, मूपू., (स्वामी गोयम गोयम), ८८७८१(#) २० विहरमान स्तवन, मु.सौभाग्यसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (सीमंधरजगमंधर राय), ८९१०२-१(+) २० स्थानकतप गणj, मा.गु., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), ८८६९४ २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मप., (पहेले पद अरिहंत नमु), ८६२७१-२(+S) २० स्थानकतप चैत्यवंदन, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत महंत पद), ८६६८९-२ २० स्थानकतप चैत्यवंदन-कायोत्सर्गसंख्यागर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मप., (चोवीस पन्नर), ८६८५४-१(4) २० स्थानकतप सज्झाय, मु. कीर्तिसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर उपदेश्यु), ८७५६५-४(+) २० स्थानकतप सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर करुं प्र), ८७९५३-८(+) २० स्थानकतप सज्झाय, मु. हरखसागर सीस, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (जिन चउवीसइ रे त्रिकर), ८९२०९ २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (सरसत हां रे मारे), ८५७८४, ८७४५४,८८५२४ २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूप., (सुअदेवी समरी कहुं), ८६१९६, ८६५४७-१ २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. १९, पद्य, मूपू., (वीशस्थानक तप सेवीयै), ८७६७०(+), ८८०४३-१(#$) २० स्थानकतप स्तवन, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर प्रणमुं), ८६८५४-२(#) २० स्थानकतप स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ८५६६७-१(२) २० स्थानकतप स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुछे गौतम वीरजिणंदा), ८७२५२-१(#) २१ प्रकार के धोवण, मा.गु., गद्य, श्वे., (उस्सेइमं तेदाथरानु), ८६००३-५ २१ बोल-शीलगुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (शुद्ध मन शील पाले), ८८८४०-२(#) २१ बोल-सबल दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (हस्तकर्म करै तो सबल), ८६८६९-२, ८८१०९-१(-) For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनशासन रे शुद्धि), ८६४१६-१, ८७४६७, ८७८९६ २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मु. समरसिंघ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पयनमी), ८६५८९(+) २२ अभक्ष्य नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (वडोलीया पीप पीपर), ८७६९६-२(+), ८९३०४-४(+) २२ अभक्ष्य निवारण सज्झाय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भव्य प्राणी रे जिन), ८९०५२-२(#) २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २२, वि. १८२२, पद्य, स्था., (श्रीआदेसर आद दै), ८५६९२(#$) २२ परीषह वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (क्षुधा परीसह भूख), ८६१६०-१।। २३ पदवी गतीआगती विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे कहि गतीनो आव्यो), ८९०७९-१ २३ पदवी वर्णन स्वाध्याय, मु. केशव, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (प्रथम नमी श्रीवीरजिण), ८८३४६ २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (सात एकेंद्री रत्ननी), ८६३२५(+), ८६९५८-१(+), ८९११७(+), ८९२४८-१ २३ पदवी स्तवन, आ. उदयप्रभसूरि, मा.गु., गा. २३, पद्य, मपू., (श्रीजिनवर पाय),८६१२९(+) २३ बोल विचार-धर्म विशे, रा., अंक. २३, गद्य, श्वे., (श्रीजीणराजे धर्म दया), ८७९३६ २४ जिन, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, नाम देहायुमान विवरण, मा.गु., को., श्वे., (ऋषभ१ भरत धनुष ५००), ८८५६३-१(+), ८६२४४, ८८६७३, ८९०७९-३ २४ जिन ११ बोल संग्रह, रा., गद्य, मूपू., (पेले बोले ऋषभदेवजी), ८७९६९ २४ जिन अंतरकाल स्तवन, मा.ग., गद्य, मपू., (सफल संसारनी पंचपरम),८६७२२(+$) २४ जिन आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीरीषभदेव आउखू), ८७५३४-१(#) २४ जिन आरती, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (रिषभ अजत संभव अवीनंद), ८६४९०-६, ८८९७५-२ २४ जिन आश्रित चक्रवर्ती वासुदेव समय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभदेवनइ वारइ भरथ), ८८४१३-१(+) २४ जिन कल्याणक तिथि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम आदिनाथजी आसाड), ८७५६७ ।। २४ जिनकल्याणक स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ४९, वि. १८३६, पद्य, मप., (प्रणमी जिन चोवीशने), ८६५१२(+$) २४ जिन गणधरसंख्या चैत्यवंदन, मु. कल्याणविमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (प्रथमतीर्थंकरनि नमु), ८६२९१(+) २४ जिन गणधर संख्या स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पेहिला ऋषभजिणंद रे ए), ८८०९४(#) २४ जिन गीत, मु. अमररत्नसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, मूप., (सरसति देवी मनि समरइ), ८७२९४() २४ जिन गीत, मु. आणंद, मा.गु., गी. २४, पद्य, मूपू., (--), ८८१५२(६) २४ जिन चंद्रावला, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३५, पद्य, पू., (निजगुरु चरणकमल नमी), ८५८४५-१ २४ जिन चैत्यवंदन, मु. ऋद्धिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (आदि अजित संभवनाथ), ८८३९७-५(+) २४ जिन चैत्यवंदन, मु. धर्मचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्रउठि प्रणमु सदा), ८८८७८(+) २४ जिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदिहे अजितनाथ), ८८५९५-२ २४ जिन चैत्यवंदन-अतीत, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (उत्सर्पिणी आरे थया), ८८०३८-२ २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभने वासपूज्य), ८९११३-२() २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभ अजित संभव), ८८५९५-१ २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., मप., (चवणविमान नयरि जिण), ८६२८३, ८८००८ २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (शत्रुजे ऋषभ समोसर्य), ८७५८६-१(+), ८९०५४-२(+), ८५६५७, ८८४३९-३ २४ जिन देहमान-राजपदवीकवरपदवीगर्भित, पुहिं., गा. २४, पद्य, मप., (श्रीआदिनाथकी पांचसै),८८९९८(+) २४ जिन नमस्कार स्तुति, पं. संघसोम, मा.गु., स्तु. २४, गा. ९५, वि. १७०३, पद्य, मूपू., (सकलसुखदातार सार सेवक), ८७१३९(#$) २४ जिन नाम, कल्याणक, दीक्षा, मोक्षादि विवरण, पुहि., गद्य, म्पू., (ऋषभदेवजीका कल्याणक), ८८१२६-१ २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (ऋषभ१ अजित२ संभव३), ८६४९५(+#), ८७१२४(+#), ८७१४५-१(+) For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ २४ जिन नाम अतीत, मा.गु., गद्य, मृपू. (श्रीकेवलज्ञानी) ८७९८६-१ २४ जिननाम-अनागत, मा.गु., गद्य, मूपू., (पद्मनाभ श्रेणिकनो), ८५८०३-२ (+), ८७८४५-२, ८७९८६-२ २४ जिन नाम राशी जन्मनक्षत्र लंछनादि विचार, मा.गु., को. मूपू (-), ८७७५८ २४ जिन नाम वर्त्तमान, मा.गु., गद्य, मूपु., (श्रीऋषभदेवजी अजित), ८७९८६-३ २४ जिननाम स्तवन-अतीत, मु. राजविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी ध्याइइ), ८५८८७ २४ जिन निर्वाणस्थल चैत्यवंदन, पं. सुधनहर्ष, मा.गु. गा. ३, पद्य, मूपू., (अष्टापद मुगते गया), ८५७७५-१, ८८५६६-२ २४ जिन पद, जादुराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (वंदु जिनदेव सदा चरन), ८८२६१-७(+) २४ जिन पद, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थंकर चोवीसे), ८७१८९-१(+#) २४ जिन पद, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभ अजित संभव), ८६९०१-४(+) २४ जिन परिवार, मु. करमसी, मा.गु., गा. ६, पद्य, वे., (चवीस तीर्थंकरनो), ८८६७१-४(*) २४ जिन परिवार संख्या विचार, मा.गु., रा., गद्य, मूपू., (पहिले बोले साधुजी), ८८६६८(#) २४ जिन परिवार संख्या विचार, मा.गु., गद्य, मृपू (पेलो रीषभदेवजी), ८७४४४-१(+) २४ जिन प्रथमदेशना पर्षदासंख्या मान, मा.गु., गद्य, मृपू. (हवे प्रथमदेशना भगवंत), ८७१४५-२ (+) २४ जिन बहिर्लिपिका स्तवन प्रहेलिकाबद्ध, मु. सकलकुशल, मा.गु., गा. २०, वि. १७०५, पद्य, खे, (श्रीपरमेसर पाय नमी), ८८६९७(+) २४ जिन माता-पिता नामादि यंत्र, मा.गु., अंक. २४, को., श्वे. (आदिनाथ सर्वार्थसिद्ध), ८८७३९ २४ जिन राशि नक्षत्र योनि गण वर्ग हंसक विवरण कोष्टक, मा.गु.. को.. म्पू, (--). ८८९४७) ८७६४६, ८८११५ २४ जिन राशि नक्षत्र रहस्य, मा.गु., गद्य, थे., ( आगला तीर रास), ८८८७६ .. २४ जिन लंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वृषभ लंछन ऋषभदेव), ८५९८८-२(२), ८६००१-२, ८८०८३-३, ८८१७३-२ २४ जिन लंछन चैत्यवंदन, ग. शुभविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (आदिदेव लंछन वृषभ), ८६५१८-१ २४ जिन लंछनादि विवरण स्तवन, उपा. जयसागर, मा.गु., गा. २८, वि. १४९३, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर प्रणमुं), ८६१७४-१ २४ जिन लेख, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहला बांदु श्रीऋषभ), ८६८९१ (+४), ८८४८५ (+), ८८९२५(४) २४ जिन वर्ण स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३६, पद्य, स्था., (पहु उठी प्रभाते वंदु), ८७७४५-२ २४ जिन विवरण यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (ऋषभ१ अजित२ संभव३), ८६९४१ २४ जिन सज्झाय, मु. हेत ऋषि, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे. (श्रीआदनाथ अजत संभव), ८६५१३ २४ जिन सवैया, मु. हरिसागर, मा.गु., गा. २५, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (सेवी माता सरसती वचन), ८७८५४(#) २४ जिन स्तवन, मु. जिनरत्न, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (चतुर नमै च वीसरइ), ८९२६५-३ २४ जिन स्तवन, मु. देवा ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (नमो श्रीआदि अजितनाथ), ८७१४०-२(#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " , २४ जिन स्तवन, मु. नेमिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू., (भविजन बंदोरे अनुदिन ), ८८६८०-३ २४ जिन स्तवन, मु. महिमामेरू, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (ऋषभादिक तीर्थंकर राय), ८७२४७-१ २४ जिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १६५८, पद्य, मूपू., (जी ही पहिली ऋषभजिणेस), ८८६६९-३ २४ जिन स्तवन, मु. रत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मारा वीरजीनो सिंहासन), ८७१४६-६(+) २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु, गा. ८, पद्य, मूपु., (बंदु श्री आदिनाथ अजित), ८८०५९-१ " (समरू श्री आदि जिणंद), ८८०२०, ८७९५६ (३) २४ जिन स्तवन, मु. लालचंद, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू. (ऋषभ अजित संभव स्वामी), ८८९९४-३ (+) " २४ जिन स्तवन, आ. विजयऋद्धिसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपु., (जी रे मारे ऋषभ जिनंद), ८८५३४(३) २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु., गा. २५, पद्य, वे " २४ जिन स्तवन, सा. सायब कवर बाई, मा.गु., गा. १४, वि. १८८५, पद्य, वे., (श्रीनमुं श्रीआदजीसाम), ८५९९३ (+#$) २४ जिन स्तवन, मा.गु, गा. ७, पद्य, भूपू (आदि जिणेसर पहेला), ८७३७८-२(*) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. १९, वि. १८३०, पद्य, खे, (धुर प्रणमु ऋषभजिणंद), ८८३७३-३(*) " For Private and Personal Use Only ५०१ Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५०२ २४ जिन स्तवन, पुहिं., गा. ३२, पद्य, मूपू. (श्री आदिनाथ करिजे), ८८०४० (+), ८८७५६ २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभ अजित संभव), ८६९३० - ३(+) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (सीवर सीवर जिणराज सीव), ८७७१२(+) २४ जिन स्तवन-अतीत, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुकेरा रे पाय), ८५७८५-१ २४ जिन स्तवन-अनागत, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हवे चोवीसी आवती रे ), ८५७८५-३ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २४ जिन स्तवन-अनागत, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, स्था., (प्रथम माहाराज सेणक), ८७८७४-२ (-) २४ जिन स्तवन- अनागत, मु. देवकलोल, मा.गु.. गा. १५, पद्य, भूपू (परषद बइठी बार जिवार, ८९०८८- १(क) २४ जिन स्तवन-अष्टमीतपगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (वृषभ लंछन आदिजिणंद प), ८८७३२-१ २४ जिन स्तवन- गणधर संख्यादि विवरण, ग. नेमचंद, मा.गु. गा. २७, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर प्रणम्), ८८३८२ २४ जिन स्तवन- गुरुपरंपरानामगर्भित, ग. अमृतविजय, मा.गु., गा. २५, पद्य, म्पू (सरसति सामिणी प्रणमी), ८८१७६-२ (*) २४ जिन स्तवन- देहमान आयुस्थितिकथनादिगर्भित, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., डा. ५, गा. २९, वि. १७२५, पद्य, मूपू.. " (पंचपरमिड मन शुद्ध), ८७९९५ (+#) २४ जिन स्तवन- दोहला, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (पहल श्रीरषभनाथ अवतर ), ८५९५६(+#), ८७३२४ २४ जिन स्तवन- माता, पिता, लछणादि नाम गर्भित, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू. (विनीता नवरी नाभिराजा), ८८५८५११ २४ जिन स्तवन-मातापितानामगर्भित, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (नाभिराजा मरुदेवीमाता), ८७०९६(-) २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर प्रणमुं), ८५६७३-१(+#), ८६७३९-१ (+), ८८२६८ (+), ८८५५४-१ (+), ८८७२९ (+), ८९१७१ (+), ८७३२५, ८७७०९, ८८०५३-१(#), ८८३०५-१क २४ जिन स्तवन- माता पिता लंछन नाम गामादिगर्भित, गच्छा. हेमविमलसूरि, मा.गु., गा. २८, वि. १५६२, पद्य, मूपु. ( सबल जिणेसर प्रणमु), ८८३१९(+) २४ जिन स्तवन-वर्तमान, मु. नंदलाल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनजीने ॐकारा हो), ८८२३३(+) २४ जिन स्तुति, ग. अमृतधर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तीरथपति त्रिभुवन सुख), ८५७३१-१(*) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन स्तुति, मु. भगवानदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पेला प्रणमुं रीषभदेव), ८८८५८ - १ २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., ( कनक तिलक भाले हार, ८५८९२ (०४), ८६३३०(३) २४ जिन स्तुति, मा.गु. गा. ९, पद्य, मूपू (ऋषभ अजित जिननाथ संभव), ८८१८३-१ , ', २४ जिन स्तुति, पुहिं. गा. ११, पद्य, मूपू., (मानजी सतगुरुजी हमारी) ८५८२९-१(*) २४ ठाणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (गइ इंद्रि काय जोग), ८९२२४ २४ तीर्थंकरभक्त नाम, मा.गु., गद्य, मूपू. (१ भरत चक्री २ सगर चक), ८७४४४-२(१) २४ दंडक २३ पदवी गतिआगति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (बार गुणे करी विराजमा), ८९२६३(+), ८७०२८ २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को. म्पू. (दंडक २४ नामानि शरीर ), ८६९३८ (#), ८६५९५, ८८०२२-१ "" २४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., गा. २, प+ग., मूपू., ( सरीरोगाहणा संघयण), ८७०५६-१(#) २४ दंडक २९ बोल, मा.गु. गद्य, मूपू.. (प्रथम नामद्वार बीजु), ८९३१८-१ २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (दंडक लेश्या ठित्ति), ८८०३१-१(+३) २४ दंडक चौपाई, मु. दोलतराम, मा.गु., गा. ५७, पद्य, श्वे. (वंदो धीरसु पीर हर ), ८७८६५ (६) २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (नरक७ भवणपती १० पृथ्वी), ८६४४८-१ (+), ८७३१०, ८८८५१-१ २४ दंडके २१ द्वार विचार जीवादि, मा.गु., अंक. २४, को. म्पू., (शरीर५ अवगाहना संघयण६), ८८६४९(*) २५ बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, श्वे., ( नरकगति १ तिर्यंचगति), ८६२२१ (+), ८८७६५ (+), ८६६३४, ८६८३९, ८८६९९ २५ भावना विवरण ५ महाव्रत, मा.गु., गद्य, मूपु. ( मनोगुप्ति १ एषणासमित), ८७३९५-४(*) ', २८ बोल-शारंग नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (वेणा १ वारूण२ वाजी ३), ८५७३७-४ (२) २८ बोल- शारंग नाम- शब्दार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे. (-), ८५७३७-४ , " For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आमोसही विप्पोसही), ८८४०६(+#), ८९०७८-३, ८५९८५-१(#) (२) २८ लब्धि नाम-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (आमोसही हाथने स्पर्शइ), ८८४०६(+#) २८ लब्धि नाम दोहा, मा.गु., गा.५, पद्य, म्पू., (आमोसहि लब्धि मलि),८७०५०-२ २८ लब्धि स्तवन, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (अट्ठावीस लब्धि सारी), ८७०५०-१ २८ शिखामण बोल, रा., गद्य, मप., (जीणरी सरदणा परुपणा), ८८४२०-३(+) ३० उपमा-साधु की, मा.गु., अंक. ३०, गद्य, श्वे., (कांसी के भाजनकी १), ८८४२०-१(+), ८८७२२-२(+), ८८८८४(#) ३० बोल ढालिया-पंचमआरा, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. २, गा. ३०, पद्य, स्था., (धर्मकथा हिरदे धरो), ८८४२०-२(+) ३० बोल-महामोहनीय कर्मबंध, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रस जीवने पाणीमाहि), ८६८६९-४,८७८४५-१,८७५०९-२(#) ३० बोल-मोहनीय कर्मबंध स्थानक, मा.गु., गद्य, श्वे., (ए जे त्रस पाणी जीवनइ), ८८२७०-२, ८८७२४-४, ८९१७७ ३२ अनंतकाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (कचूर हलदनीला आदो वज), ८९३०४-३(+) ३२ असज्झाय विचार सज्झाय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (धूंहरि पडे तासीम), ८८९९०-२(+), ८७७१४-१ ३२ आगमिक प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, श्वे., (परम मंगलाय भूरिभव), ८९२३७-१(+) ३२ इच्छा बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (मल्लिनाथजी महोण घर), ८५७०८-२ ३२ बोल ६२ मार्गणायंत्र, मा.गु., को., मूपू., (१समचै जीवमै २अप्रज्य),८८८५१-३ ३२ योग विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (आलोयणा १ निरवलेवे २), ८६४४७(#), ८६८६९-५($) ३२ लक्षणपुरुष विवरण, मा.गु., गद्य, जै., वै., बौ., इतर, (लखण वंजण गुणोववेयं), ८७७७१-१(+#) ३२ सामायिकदोष सज्झाय, मु. विजयकुशल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (--), ८८४८८-१(६) ३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहलो बोल गुरु आगल), ८८७२४-३, ८८१०९-२(-) ३३ बोल थोकडा-१संख्यक वस्तु से ३३संख्यक वस्तु, मा.गु., गद्य, श्वे., (पृथ्वी अप तेउ वाउ), ८८८८१(६) ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसुमतिदायक कुमति), ८८३७६-१(+), ८५८९९, ८८०२८-१, ८८६५३, ८७९६०-१(६) ३४ अतिशय नाम, मा.गु., अंक. ३४, गद्य, मूप., (अद्भूतरूप अद्भूत अंग), ८८७२६-१ ३४ अतिशय वर्णन, मा.गु., गद्य, मूप., (नमो अरिहंताणं अरिहंत), ८७८९१, ८५९८५-३(2) ३४ अतिशय स्तवन, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (श्रीजिन प्रणमुं सुख), ८७४३२-१ ३४ अतिशय स्तवन, आ. महिमाप्रभसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूप., (शांतिजिणेसर सेवीइं), ८७४२२(#) ३४ असज्झाय काल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (उकावाए१ गजीए२ बीजीए३), ८६१६५-३(+), ८६२६१(+) ३६ राजकुल नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यवंश १ सोमवंश २), ८५६४७-२(+), ८५७५४-२(+) ४१ प्रश्न-ढुंढिया द्वारा तेरापंथ को पूछे गये, पुहिं., प्रश्न. ४१, गद्य, स्था., (कोई सचित्त लूण काचो), ८८२७०-१ ४२ बोल संग्रह-आगमिक वृत्यादि मध्ये, रा., गद्य, श्वे., (चक्रवर्तिना कटिक चूर), ८९२१५-१(-) ४५ आगम नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आचारांग१ सुयगडांग२), ८७७८८-२ ४५ आगम नाम श्लोक संख्या आदि विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआचारांग २५००), ८८६०८($) ४५ आगम पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., वि. १८८१, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ८६३००(+$) ४५ आगम स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (भवि तुमे वंदो रे), ८५७७८(+) ४७ दोष साधु गोचरी प्रायश्चित, मा.गु., गद्य, मपू., (आधाकर्मी दोष दुष्ट), ८८४६४ ५० बोल यंत्र-कर्मबंध, मा.गु., यं., म्पू., (--), ८७४८९(+) ५२ अनाचार वर्णन-साधु जीवन के, मा.गु., गद्य, मप., (उद्देशिक आहार लेवें), ८७५०९-१(#), ८७६६५-२(5) ५६ बोल-साधु आचार, रा., गद्य, मूपू., (ते विधि पुस्तक लिखो), ८६७८५(+) ६२ मार्गणा उदय यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (अथ नरक गत उदय यंत्रक), ८६८३६($) ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मप., (नमिउं अरिहंताई बोले), ८८५४६(+), ८८६४७-१(+), ८८८४४-१(+), ८८१६२, ८८४००-१, ८८७६८, ८७८२४(2) For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (देवगति मनुष्यगति), ८६१५७(+), ८६६९४(+#), ८६८७३-१(+), ८८५३५(+), ८८९३४(+#), ८८३३९-१, ८६८९४(5) ६२ मार्गणा विधान, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २८, पद्य, श्वे., (वंदौ देव जुगादि जिण), ८७९५४(+) ६२ मार्गणा स्तवन, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ११२, वि. १८६२, पद्य, मूपू., (शासननायक वीरने तिम), ८६७८२ ६३ शलाकापुरुष नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२ चक्री १ दिर्घदंत), ८८५७३-४(+), ८७७८८-१ ६३ शलाकापुरुष विवरण, मा.गु., गद्य, मपू., (नमोअरिहंताणं नमोसिद), ८७५७१(+) ६४ कला नाम-स्त्री, मा.गु., गद्य, मूपू., (नृत्य १ उचित्य),८९२६८-२ ६४ प्रकारीपूजा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (विशाल जिनभुवनमं सुमु), ८८४६९(#) ६४ सती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ४१, पद्य, स्था., (नाम पणे ज्ञानी कथीय), ८५९५१-१(+#), ८७९१४(+-), ८७५०७(#) ६५ गुण-आत्मा के, मा.गु., गद्य, मूपू., (असंख्यात प्रदेशी), ८७१२३(#) ६६ बोल-धर्म विशे, मा.गु., अंक. ६६, गद्य, श्वे., (१ धर्म खरीछे के अखरी), ८८६०३(2) ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन सुद्ध मन सुद्ध), ८८१७०(+६), ८९१५३(+#s), ८७४८६-१, ८८१६५ ७२ कला नाम-पुरुष, मा.गु., गद्य, मूपू., (लेखककला भणवोकला कवित), ८८३१०-२(+), ८९२६८-१ ८४ उपमा-मुनि की, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहली ओपमा सरप की), ८८७२२-१(+) ८४ लाख जीवायोनि विचार, मा.गु., गद्य, मप., (बावन लाख साधारण एकिं), ८९०७२-३(+), ८६६३७-२,८५८०१-१(2) ८४ लाख जीवायोनि संख्याविचार कोष्टक, मा.गु., को., श्वे., (--), ८८५६५-१ ८६ बोल संग्रह, मा.गु., को., मपू., (--), ८८२२८-१ ८९ बोल संग्रह-औपदेशिक, रा., गद्य, म्पू., (सरधणा सुद्ध हवै जिण), ८८८२२, ८८९९७(#) ९१ बोल-श्रावक के, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीवदया मैं राचीवइ), ८५७५७(+) ९३ बोल ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (नोगरभ आहार पज्जता), ८८८३३(+) ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. २३, वि. १७४३, पद्य, मूप., (वरतमान चोवीसै वंद), ८७९५९-१(+) ९८ बोल का बासठिया, रा., गद्य, श्वे., (पेले बोले सरवस), ८५६६० ९८ बोल यंत्र-अल्पबहुत्व, मा.गु., को., श्वे., (सरवथी थोडा गर्भज), ८६१५३(+), ८७३२०(+$), ८८६२५(+-), ८८८४४-२(+$), ८६५०९, ८६६३५ ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ८६१६७-२(#S) १०८ जिननाम स्तवन-विशेषण, पं. मानविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (स्वयंभूविभुशंभु सर्व), ८७३३६-४ १५० जिन कल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १६, पद्य, पू., (शासननायक जग जयो), ८६५२३(+), ८८६९५ १५६ प्रकृतिस्थितिबंध विचार, मा.गु., गद्य, मप., (विघ्नपंचक ५ आवरणि १४), ८६५०४ १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रसन्नचंद्र), ८६७९७(+), ८८३८६-१, ८८५७५(६) २२१ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, पू., (जीव २६ गइ ५ इंदि ३), ८७३२७ २५० अभिषेक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (एक कोड साठ लाख कलसा), ८८३४८-७ २५३ मण मोतीमान बोल-सर्वार्थसिद्ध विमान, मा.गु., गद्य, श्वे., (एक मोती ६४ मनन), ८७४३३-३(+) ५६० अजीव भेद यंत्र, मा.गु., यं., मूपू., (भरतक्षेत्र जंबूद्वीप), ८५८५७-२(+), ८६५४३-२ ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकाय खंध देस), ८८०३१-३(+), ८६४००-१, ८६७७६, ८७९६६, ८८४००-२, ८७२२२-१(६) ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, स्था., (जीव गइ इंदीये काए), ८८५६४(+s), ८५६७१(#$) ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सात नारकी पर्याप्ता), ८७७३३(+), ८६३०७ ५६३ जीवभेद गतिआगति विचार-२४ दंडके, रा., गद्य, मूपू, (तिहां प्रथम ७ नारकी), ८७०९८(+), ८८०३१-२(+) ५६३ जीवभेद यंत्र, मा.गु., को., मपू., (भरति महाबिदेह), ८५८५७-१(+), ८६१२४(+s), ८६१७५-५(+), ८६२५४, ८६५४३-१, ८६८३४-२(#) For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५०५ ५६३ जीवभेद विचार, पुहिं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (उंचा लोक में ५६३), ८५७६२, ८६६९१, ८६२६०(5), ८७७००($) ५६३ जीवविचार बोलसंग्रह *, पुहिं.,मा.गु., गद्य, मपू., (जीव का भेद बेइंद्री), ८८४०२-२ ५६३ भेद जीवराशि क्षमापना, मा.गु., गद्य, मपू., (जीवना पांचसइंत्रिसठ), ८६४००-२ १४५२ गणधर चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मप., (गणधर चोराशी कह्या), ८७२५२-२(#) अंगलक्षण विचार, मा.गु., गद्य, जै., वै., अन्य, इतर, (मणिबंध थकी उर्दध्व), ८७७७१-२(#) अंगुल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आंगुल ते मान विशेष), ८८४२२-१(+) अंबिकादेवी स्तोत्र, मु. पुण्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (जय जय अंबिक माय प्रह), ८७४६०-२, ८७६३७-२ अइमुत्तामुनि गहुंली, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (अयमत्तामुनि वंदिये), ८६३७२-१ अइमत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, स्पू., (वीरजिणंद वांदीने), ८७०१०(+), ८७०७२-१(+#), ८६१९९, ८६५२१, ८७२९२, ८७९०१, ८८१४९-१, ८६०५३-२(#), ८६९३५-२(#), ८७६४९-२(#) अइमुत्तामुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (पालासपुर नामा नगर), ८८८९६(+#$) अक्षयतृतीया स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू, (ऋषभ वरस रह्या उपवासी), ८५६८२(+) अक्षयनिधितप खमासमण दहा, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. २, गा. ३७, पद्य, मूप., (सुखकर संखेश्वर नमी), ८६११९, ८७०५२-२($) अक्षयनिधितप विधि, मा.गु., दोहा. १, प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावही कहेवी), ८६६९८-२(+#), ८७११४ अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ५२, वि. १८७१, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर शिर), ८६६९८-१(+#), ८७०५२-१ अक्षरचौतीसी, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूप., (कका कुड न बोलीये कुड),८८१०८(#) अक्षरबत्तीसी, मु. महेश, मा.ग., गा. ३२, वि. १७२५, पद्य, श्वे., (कका कछु कारज करो), ८६३५४-१(#$) अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहि., गा. ६२, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (ॐकार सदा सुख देत), ८८७६९, ८७६९८-१(#) अक्षौहिणी सेना प्रमाण पद, मु. साधुकीर्ति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (हाथी सहसएकवीस २१०००), ८८९१३-५ अक्षौहिणीसैन्य मान, मा.गु., गद्य, श्वे., (गज इकवीस हजार आठसै), ८७११३-२(+) अजितजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (अजितनाथ अवतार सार), ८७२११-२ अजितजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, पू., (पंथडो निहालुरे बीजा), ८५६६९-१, ८६५४७-२ अजितजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (कमल वने भमरो रमे रे), ८८०२३-३(#) अजितजिन स्तवन, मु. कर्मचंद्र, मा.ग., गा. १२, पद्य, श्वे., (श्रीअजितनाथ महाराज), ८५७७७-२(+) अजितजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजित जिणेसर मुजने), ८९३००-३ अजितजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (बीजा अजित जिणंदजी रे), ८६०२४ अजितजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजित जिणेसरदेव मोरा), ८६०६१-१ अजितजिन स्तवन, मु. छित्रमल, पुहिं., गा. ३२, पद्य, मपू., (भवकजिन मनकु समझाना), ८८९७६(+) अजितजिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (अजितजिन तेरी रे), ८६२८७(#) अजितजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ज्ञानादिक गुण संपदा), ८६८८९ अजितजिन स्तवन, मु. नरसुंदर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अजित जिनेसर वांदता), ८७६५८(+) अजितजिन स्तवन, ग. पद्मविजय, मा.ग., गा. ५, पद्य, मप., (अजित जिनेस्वर साहिबा), ८७८८४-२ अजितजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.ग., गा. ५, पद्य, मप., (प्रीतलडी बंधाणी रे), ८७१४६-२(+), ८७४०५ अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (ओलग अजित जिणंदनी), ८७२६५-१,८८१२४-१ अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अजित जिणंदस्यु प्रीत), ८६७६२-१(२), ८७६२३-२(+#), ८७४४३-२, ८८५५१-२ अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अजितदेव मुज वालहा), ८५७९३-३(4) अजितजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अजितजिणेसर साहिबो रे), ८७८८७-१(#) अजितजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, पद्य, स्था., (जंबूदीपना भरत मे), ८७०७५-३(+), ८९११८(+), ८५६४२-१, ८९२५७-१ For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अजितजिन स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मप., (आज अजितजिन साहिब मिल), ८८४३९-२ अजितजिन स्तवन, मु. शिवरत्न, मा.गु., गा. १५, वि. १९वी, पद्य, मपू., (सायबा रे अजीत जेणंदस), ८६५६७(+) अजितजिन स्तवन, मा.ग., पद्य, मप., (जउ जउ अजित जिणेसरु), ८८२६२-३(६) अजितजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू., (विश्वपति केवल पाय), ८६५०५-२ अजितजिन स्तवन-चोथा आरा, मु. तेजसिंह, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (चोथो आरो जिनवर वारो), ८५६३७-२ अजितजिन स्तवन-तारंगातीर्थमंडन, पंन्या. मोहनविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १९५५, पद्य, मूप., (श्रीतारंगा धाममां), ८८५४३-२ अजितजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (विश्वनायक लायक), ८७६९४-५(+) अजितवीर्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दीव पुष्करवर पश्चिम), ८६०३१-२ अजीवभेद सज्झाय, मु. जिन, मा.गु., ढा. २, गा. ३५, पद्य, मूपू., (श्रुतदेवी सुपरें नमी), ८७८१८-३ अज्ञात देशी पद्य कृति, मा.गु., गा. ५, पद्य, जै., इतर?, (दौलत दुणानो लीली लाह), ८८४७९-३(+-), ८८९५०-१ अट्ठाईपर्व भास, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा.१२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति ध्याउं मन), ८७२८४ अढीद्वीप वर्णन, मा.गु., गद्य, म्पू., (तीर्थोलोकमां असंख्य), ८६६६४-२(#) अढीद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रथम एकलाख जोअणनो), ८९२०६(+) अणगस गीत, मु. माणिक, रा., गा. २३, पद्य, मूपू., (अणगस करवो कालि बाई), ८८३०९(+) अणाहारीवस्तु नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (हरडै १ बहेडा २ आंवला), ८६००३-१ अणाहारीवस्तु नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (हलदेर १ बेहडा २ आबला), ८६८४०-२ अतीत अनागत वर्तमान तीर्थंकरादि विवरण, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीकेवलनांणी १), ८७७८८-३ अदत्तादानविरमण तृतीयव्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद. ५, पद्य, मूपू., (नीसूणो श्रावक समकीत), ८८९२१-१ अदत्तादानविरमणव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, वि. २०वी, पद्य, मपू., (त्रीजुं महाव्रत), ८६७६२-२(+), ८६३१५-२ अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मप., (प्रणमियै विश्वहित),८७०२५ अध्यात्म पद, मु. कुशल, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (चितानंद मन कहारे), ८७०८२, ८८२०९-२ अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, स्था., (अजर अमर पद परमेसर), ८७१९२(+#), ८५६३७-१, ८८३७५ () अनंतजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (गावउ जीउ श्रीअनंत), ८७९१५(#) अनंतजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, वि. १६४१, पद्य, मूपू., (नयरि अजध्याथान अपूरव), ८७६१०-२(+) अनंतवीर्यजिन होरी, मु. न्याय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (तुं तो जिन भज विलंब), ८९२८९-२ अनागत जिनचोवीसी चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (पद्मनाभ सुरदेवजी), ८८०३८-३ अनाथीमुनि पंचढालियो, उपा. विमलविनय वाचक, मा.गु., ढा. ५, गा.७१, वि. १६४७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन नायक), ८५८२२(+) अनाथीमुनि रास, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., ढा. ८, वि. १७३५, पद्य, मूपू., (वंदियै वीर जिणेसर), ८७८६३(+#) अनाथीमुनि सज्झाय, मु. खूबचंद ऋषि, पुहि., गा. १३, वि. १९६५, पद्य, श्वे., (राजगरिकी वागमे सरे), ८८४६०-३ अनाथीमुनि सज्झाय, मु. खेमकीर्ति, मा.गु., गा. ६८, वि. १७४३, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत सिद्ध), ८५९४७-१, ८६१४१(२) अनाथीमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २३, वि. १९५९, पद्य, मपू., (तु नइ जाण रे नाथ), ८७२५८ अनाथीमुनि सज्झाय, मु. प्रेममुनि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (--), ८८९११-२($) अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (मगधाधिप श्रेणिक), ८७७६८(+), ८९१७४-१, ८८४७८-१(4), ८८४९३(4) अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो), ८६४६७-२(+), ८७६२३-३(+#), ८७००८-७ अनाथीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुहि., गा. १९, पद्य, मूपू., (मगध देश को राज राजे), ८८८१२-१(+) अनाथीमुनि सज्झाय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४०, पद्य, मूपू., (वडा छो तरवर छाय हो), ८७३५५८) For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५०७ अनानुपूर्वी, मा.गु., को., मूपू., (--), ८९११०-१ अनानुपूर्वी विधिसहित, मा.गु., को., मूपू., (जोणसा भांगा नीकालना), ८६६२३-२ अनित्य भावना, रा., गद्य, मप., (अनित्यानि शरीराणि), ८८१८४ अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (उपदेश न लागे अभव्यने), ८६३४१-१(+) अभव्य सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (अभव न समझे किमहि न), ८७५६३-३(#) अभिनंदनजिन चैत्यवंदन, मु. चेतन, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (अभिनंदन से देव सेव), ८६७४२-६ अभिनंदनजिन पद, क. देपाल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (अमे उवाया वाया ते), ८७२६०-२(-) अभिनंदनजिन पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (अभीनंदन जिनराय चलो),८६३९८-५ अभिनंदनजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (अभिनंदनजी अरज हमारी), ८८०६१-१(+) अभिनंदनजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु तुम दर्सण), ८६८५१-४(+#) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मपू., (अकल कला अविरुद्ध), ८८९२२-५(+) अभिनंदनजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दीठी हो प्रभु दीठी), ८८५५१-४ अमकासती सज्झाय, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (अमका ते वादल उगीयो), ८५९०७, ८६९२७ अमरसिंघ राजकुमार पद-मेवाडीराणा, मा.गु., गा. ४, पद्य, इतर, (राजा जेसिंघजीरो), ८७९११-२ अमरसिंघ श्लोको, मा.गु., गा. ३५, पद्य, जै., वै.?, (सरसति सामण तुज पायेज),८७५५६-२ अमरसिंहजी महाराज के समुदाय की ६१ मर्यादा, पुहि., वि. १९५२, गद्य, श्वे., (पुज्यजी अमरसिंघजी), ८७८३८(+) अरजिन स्तवन, मु. केशव, मा.गु., ढा. ५, गा. ४८, वि. १६९६, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवर प्रणमुं), ८६३६४ अरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीअरजिन भवजलनो), ८९००४ अरणिकमुनि चौपाई, ग. राजहर्ष, मा.गु., ढा. ९, वि. १७३२, पद्य, पू., (श्रीफलवधि प्रणमुं), ८९२६५-४ अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., ढा. ८, वि. १७०२, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि वीन), ८७४५५-१ अरणिकमुनि रास, मु. बुधमल, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (पारसजीन पारस इधक करी), ८६४०५ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. खीमा, पुहिं., गा. १२, पद्य, श्वे., (कचा था सोई चल गया), ८६४९२-१ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. ब्रह्मराय ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (गुरु गोयम गणहर चरणइ), ८७७६४-२(+) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मप., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ८६३२१(+), ८५८२६, ८७७०५-४, ८९०९८-१ अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ८७००८-५ अरणिकमनि सज्झाय, मा.ग., गा. २२, पद्य, मप., (एक दिन अर्हणक जाम उठ), ८८०६३ अरणिकमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, मपू., (तिण अवसर एक कांमनी), ८७३१३-२(#$) अरणिकमुनि सज्झाय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मपू., (सकल जाण सासण घणा), ८८७७६-१ अरिहंतपद सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (वारी जाउं श्रीअरिहंत), ८७५४१-२ अरिहंतपद स्तवन, मु. भगवानदास, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नीत नमु अरिहंतजी), ८८८५८-२ अर्जुनमालीमुनि चौढालिया, रा., ढा. ६, पद्य, श्वे., (सोदागर मीलीया पछ नयी), ८७२९७-२(+#), ८७५८२ अर्जुनमालीमुनि ढाल, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. ९, वि. १८२०, पद्य, स्था., (वर्धमान जिनवर नमु), ८८४५८ अर्बुदगिरितीर्थ कल्प, मा.गु., गा. ४४, प+ग., वै., (अर्बुदाचल उपरे अंबरण), ८६६८९-४ अर्बुदगिरितीर्थ छंद, क. रूप, मा.गु., गा. १७, पद्य, मप., (पुत्र गवरी समरु), ८८३७७-५ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. अमीसागर, मा.गु., ढा. २, गा. ४२, वि. १८६२, पद्य, मूपू., (समरि सरसति मायने), ८६५५० अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आबुगढ तीरथ ताजा अष्ट), ८८८३१-२ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (आवो आवोने राज श्रीअर), ८८५३० अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (आबु अचल रलिआमणो रे), ८७०९४-२(६) अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सरव थोडा अवधदसणी ते), ८५९४३(+S) For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अवंतिसुकमाल सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (घणा मुगणा महाघणावइ),८७८४३-१ अवंतिसकमाल सज्झाय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मप., (मालवदेश सुहावणोजी),८९१०३ अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, पू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), ८८८१३(+$), ८७१६८(#), ८७२८२(२), ८७९९८-१(#), ८८२७६-१(#) अष्टमंगल नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (आरीसो १ भद्रासण २), ८८५७३-३(+) अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मप., (चैत्र वदी आठम दिने), ८६१०८-२(+), ८८३१२-२(+), ८५९३४,८६२१०,८६३७४ अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (महा सुदी आठमने दिने), ८८३८०-३, ८६४७५-३(2) अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १२, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आठिम तप आराधिइं भाव), ८६६२६-२(2) अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (अठावअ गिरितुंग), ८६१५९-२(+) अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसरसतिने चरणे), ८७१२२-५(+#), ८८५११-३(+#) अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आठम कहे आठिम दिने), ८८५१८(2) अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, ., (हां रे मारे ठाम धर्म), ८६०००-२(+$), ८८१४१-१(+), ८६२६६(#) अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, वि. १८३९, पद्य, मूप., (पंच तिरथ प्रणमुं सदा), ८७०५१-१(+), ८७२८०(+), ८६२७४, ८७२५३, ८७३४९, ८६१३२-१(६) । अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (मंगल आठ करी जिन आगल), ८७१२५-२(+), ८६०८८-२, ८६४७६-२, ८७०१५-२, ८७७३२-१, ८६८५०-३(#) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमीदिन चंद्रप्रभु), ८६१२७, ८६६३१, ८६९९८-१, ८८५८९-१ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (अष्टमी अष्ट परमाद), ८५६५९-३(+), ८७१०२-३(#) अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (चोवीसे जिनवर प्रणमुं), ८८४२१-१(+), ८५९४४-१, ८६९९८-२ अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (तिरथ अष्टापद नित), ८८१८६-६(+$), ८८५२३-६(2) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वंदो रे अष्टापदगढ़ने), ८६७३७-२ अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनडो अष्टापद मोह्यो), ८८८५७-२, ८६९३५-३(#) असज्झाय भास, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (संध्याकालि अने परभात), ८७७१४-२ असज्झाय विधि, मा.गु., गद्य, मपू., (असज्झायना भेद २ एक), ८७८२५(+) असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति माता आदे नमीइं), ८६८७९, ८६९१८, ८७८१७, ८७९४७ असज्झाय सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पवयण समरी सासणमाता), ८७२९१-२(+), ८९११५ असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मपू., (प्रणमुं श्रीगौतम), ८५९४०-२, ८६०३८, ८७८००-२, ८७८६८-३($) असार संसार वर्णन-गौतम द्वारा प्रश्न महावीरस्वामी द्वारा जवाब, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे श्रीभगवान प्रते), ८५८५३-३(-) आगमछत्रीशी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सुहगुरु चरणकमळ प्रणम), ८९१४८ आगम यथाक्रमबीजक संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रभु प्रणम्य प्रथम), ८६०४५(5) आगम स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रुत अतिहि भलो संघ), ८६६७४-२(+) आचारछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ३७, पद्य, श्वे., (गुर समज मेको नही), ८६७७७-१(+) आचारछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (शुद्ध समकित पाया), ८६७७७-२(+) आचार्य ८ संपदा, मा.गु., गद्य, मपू., (१ आचार संपदा २ रूपसं),८७३३३ For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ आचार्यगुण भास, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( नमी सरसति मात सूवान), ८९१११-२ " आचार्यपद सज्झाय नवकार पदाधिकारे तृतीय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु. गा. ९, पद्य, मूपू. ( आचारी आचार्यनुंजी), ८५७४१ आचार्य प्रथम पीठिका १३८ बोल सूचिपत्र, मा.गु., गद्य, म्पू., (१ अश्वादिक्रयाणकविक्), ८८१३०-१ आत्मग कवित्त, पुहिं., गा. १, पद्य, वे (क्रोध उदे रातो मदमान), ८६१७५-४मण आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा. गद्य, मूपू. (हे आत्मा हे चेतन ऐ), ८६४४३(*) , आत्मस्वरूप पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ४, पद्य, म्पू.. (जाग रे सब रैन विहानी), ८८९६४-३ " आत्महितविनंति छंद, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (प्रभु पाय लागी करूं), ८६०४१-१(#) आत्मा की आत्मता, मा.गु., गद्य, श्वे., (असंख्यातप्रदेशी अनंत), ८८७६७ (+) आदिजिन १३ भववर्णन स्तवन, मु. खुशालविजय, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., ( सरस्वति पाय प्रणमी), ८८७२७ (+) आदिजिन आरती, मु. माणेकमुनि, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (अपछरा करती आरती जिन), ८६७३६-३(+), ८६१३३-२, , ८६७३५-३, ८८२८४-२ आदिजिन आरती, मूलचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय आरती आदिजिणंदा), ८६७३६-२ (९) ८६४९०५, ८६७३५-२ आदिजिन गीत, मु. दुर्गदास, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (वडा अनडां पाहडां), ८७२६२-१(#) आदिजिन चैत्यवंदन, मु. चेतन, पुहि., गा. ३, पद्य, म्पू., (मेरे नैनन में छबि ). ८६७४२-९ " आदिजिन चैत्यवंदन, आ. राजेंद्रसूरि पुडिं, गा. ५, पद्य, मूपु (श्रीशत्रुंजे ऋषभजिण), ८७५१२-२(*) , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम तिर्थंकर आदि), ८८५६६-३ आदिजिन चैत्यवंदन धुलेवा मंडन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, म्पू, (श्रीकेशरियानाथजी तु), ८७२१४-३ चैत्यवंदन-धुलेवा " , आदिजिन चौडालिया, ग. साधुकीर्ति, मा.गु., डा. ४, गा. २४, पद्य, मूपू., (रूप मनोहर जुगतानंदण), ८७८४० (+) आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४७, वि. १८४०, पद्य, वे (अरिहंत सिद्धनै आयरिय) ८७९८७ (+$) आदिजिन छंद-धुलेवा, श्राव. रोड गीरासिंह कवि, पुहिं., गा. ४४, वि. १८६३, पद्य, मूपू., (सदाशिव राव आव्यो), ८६३०९-२(+$) आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मृपू. (प्रमोदरंगकारणी कला), ८६१०६-१(+), ८६३२७(*), ८६८३१, ८८२१०.२(३) आदिजिन छंद शत्रुंजयतीर्थ मंडन, मु. कविराज, मा.गु., गा. १८, वि. १८५२, पद्य, वे. (श्रीगणधर जिनकुशलगुरु), ८७७३५ (+) आदिजिन छढालिया, मा.गु., ढा. ६, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आनंदसुं), ८८४४७(+) आदिजिन पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज सकल मंगल मिलै आज), ८७६०२-१(+) आदिजिन पद, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ५, पद्य, मूषू, (लग्या मेरा नेहा), ८८९६४ ९ ८९१८६-३(१) " आदिजिन पद, आ. ज्ञानसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू. (प्रभु की सखी हूं), ८९२९१-७ आदिजिन पद, क. दिन पुहिं. गा. ४, पद्य, थे. (ऋषभनाथ कुं रंग है), ८८५८२-३ आदिजिन ढाल, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जय जय ऋषभ जिणेसर ), ८७७९० आदिजिन नमस्कार, मु, सुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (सिरि रिसहेसर सामिय), ८९१३२-६ (+) " आदिजिन पंचकल्याणक गरबी- बारेजामंडन, क. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८८०, पद्य, मूपू., (--), ८८००९-१($) आदिजिन पंचकल्याणक स्तवन बीकानेरमंडन, मु. थिरहर्ष, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., ( प्रथम जिणेशर पय नमी), ८७६५९(+) आदिजिन पद, आदमखान, पुहिं., गा. ३, पद्य, जै ? (बाबो रिषभ बैठे), ८५९७७-२ (क) " , आदिजिन पद उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मृपू. (तुम्हारे सिर राजत). ८८५२१-७(*) " ५०९ आदिजिन पद, मु. लाल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदा मोरी निजर), ८७७५९-२(#) आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुडिं, गा. ३, पद्य, म्पू, (आज ऋषभ घर आवे देखो, ८७२४७-४ आदिजिन पद, मा.गु. गा. ४, पद्य, म्पू., (आज उदय घर संपदा), ८६३०९-५ (+ आदिजिन पद, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू., (नाभिजी को नंद), ८७२४७-२ आदिजिन पद-केसरियाजी, मु. कुसाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (सफल घडी जी प्रभु), ८७३७२-४ (-) आदिजिन पद-केसरीया, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मारा केसरीया माहाराज), ८५९७७-४(+#) For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन पद-जन्ममहोत्सव, मु. लालविनोद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (जाके जनम समय सुरराज), ८६५८२-१ आदिजिन पद-संध्याकाल, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांझ समें जिन वंदु), ८६४९०-७ आदिजिन परिवार स्तवन, मु. जसवंत ऋषि, मा.गु., ढा. २, गा.१२, पद्य, मूपू., (श्रीरसहेसर पाय नमी), ८७३६५-१ आदिजिन पारणा सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीआदिनाथ मेरे आंगण), ८८९०१-१(६) आदिजिनपुत्र नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (भरत बाहुबलि संख), ८७४१८-१ आदिजिन लावणी, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, म्पू., (आहे अति झीणी अति), ८७८०५-१ आदिजिन लावणी, मा.गु., गा. १३, वि. १८०८, पद्य, पू., (सरसति माता सुमति), ८६७०१(+) आदिजिन लावणी, पुहिं., गा. २५, वि. १८६०, पद्य, मूपू., (सरसती माता सुमति की), ८७५९६-१(#) आदिजिन लावणी-केसरियाजी, मु. मूलचंद्र, पुहिं., गा. ९, वि. १८६३, पद्य, मपू., (सुणीये बातो रांव), ८५७३७-२ आदिजिनविनती पूजा स्तवन, ग. अनंतहंस, मा.गु., गा. २३, वि. १९वी, पद्य, मप., (सुणी सेजा सिहरि), ८७५३२(2) आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. ५, गा. ५७, वि. १६६६, पद्य, मपू., (श्रीआदीसर वंदं पाय), ८७०५७(+#) आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (सुण जिनवर शेव्रुजा), ८६६९३(+), ८६१८४-२ आदिजिनविनती स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (कनक कमल पगलां ठवइ ए), ८७४४३-१ आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (जय पढम जिणेसर), ८६१३५-१(+), ८६१६९(+), ८९२९४, ८८९४७($) आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५७, वि. १७उ, पद्य, मपू., (आदिश्वरप्रभुने विनंत), ८६३९०(+#)८६७८०(+), ८७१५२(+), ८५६२६(2), ८६५१९-१(६), ८८५८७-१(६) आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ६७, पद्य, मप., (आदि धर्म जिणि उधों), ८६५४८(+#$) आदिजिन विशेष नामावली, मा.गु., गद्य, पू., (ॐ नमो सृष्टिकर्तार), ८९१४१-१ आदिजिन सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (सरसत सामण बीनउरे), ८८४६७(#) आदिजिन सलोको, मु. कुशलचंद, रा., गा. ४४, वि. १९६१, पद्य, श्वे., (--), ८६८३८-१(-$) आदिजिन सवैया, पुहिं., पद. १, पद्य, मपू., (आदिही कौ तिथंकर), ८९२८०-३(+) आदिजिन स्तवन, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ७, वि. १८३८, पद्य, मूपू., (रीषभानंदण वांदीये), ८८४४९-३ आदिजिन स्तवन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुरति मोहन वेलडीजी), ८८१६९-१ आदिजिन स्तवन, मु. कपूर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रथम तिर्थंकर रीषभ), ८८४८३-२(+) आदिजिन स्तवन, मु. कर्मचंद्र, मा.गु., गा. १५, वि. १९७५, पद्य, श्वे., (पंचपरमेष्टी नित्यनमु), ८५७७७-१(+) आदिजिन स्तवन, मु. कान्हजी, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (चौदाजी कुलमें नाभिजी), ८७१५४-२(-), ८७८७४-१(-) आदिजिन स्तवन, मु. कीर्तिसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (करज्यो म्हारी अरज प्),८८१६९-२ आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (जे जगनायक जगगुरु जी), ८७१२२-२(+#), ८९०५४-३(+) आदिजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सूरति स्वामि तिहारी), ८९०८४ आदिजिन स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (पूजो पूजो प्रथम जिणं), ८६२८६(2) आदिजिन स्तवन, मु. गजेंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (समरु सरसति सांमई), ८८८५७-१ आदिजिन स्तवन, मु. गुणविलास, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूप., (अब मोहे तारो दीनदयाल), ८७१८९-३(+#) आदिजिन स्तवन, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (श्री आदि जिणंद वंदीय), ८७३०४(६) आदिजिन स्तवन, मु. चंदकुशल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (देखोने आदेसर बाबा),८८९६४-५ आदिजिन स्तवन, मु. जससोम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (मोहरंग मोहि नचावई), ८८८३५-२ आदिजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंद दिणंद मया), ८६१८८-२(+) आदिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदिसर सुखकारी हो), ८९१३८-१(६) आदिजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, पू., (आदिदेव अरिहंतजी रे), ८७५७३-१, ८७९०७-१() आदिजिन स्तवन, मु. जीतविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (ऋषभजिनेसर स्वामि रे), ८६७५३(+#) For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ आदिजिन स्तवन, श्राव, जीवराज शिवराज, म.मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (० धन धन मरूदेवि नंदन), ८८७३७/*) आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., डा. २ गा. २६, वि. १८बी, पद्य, खे, (श्रीनाभिकुलगुर), ८७८११(+), ८७६६५-१, ८९२०२, 3 " ८७६६४(#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (त्रिभुवननायक ऋषभजिन), ८५८७६(५) आदिजिन स्तवन, मु, भाव, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल समीहित पूरण), ८८०११-४(*) आदिजिन स्तवन, मु. मान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (रंग लागो श्रीजिनराज), ८६०४९-१ आदिजिन स्तवन, मु, मुक्तिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (प्राणजिवन परमेस्वरु), ८७८८४-१ आदिजिन स्तवन, मूलचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपु. ( आदीसर अरिहंत धणी थे), ८८९४२-२ (+) आदिजिन स्तवन, मु. मोहन, रा. गा. ८, पद्य, मूपू., (अंग लागो बाहरा रूप), ८८८६६-३(४) आदिजिन स्तवन, मु, मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (आदिसर जिनराय जी रेलो), ८८८४२-१ (३) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (एतो प्रथम तीर्थंकर), ८८९४५-१(+#) " आदिजिन स्तवन, मु, मोहनविजय, मा. गु, गा. ५, पद्य, मूपू., (पीउडा जिनचरणानी सेवा), ८६३९७-२(*) " आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बालपणे आपण ससनेहि), ८६४१०-४ (+), ८६९१६-१(+#), ८६००८, ८८०२५-२, ८८८२१ आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., कडी. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव हितकारी जगद), ८८५२१-३ (+) आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५. वि. १८वी, पद्य, म्पू. (जगजीवन जगवाल हो), ८८१८६-५ (१), ८८५५१ १ " आदिजिन स्तवन, ऋ. रतनचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८८२, पद्य, श्वे. (आदिजिन अरज सुणोजी), ८८४०२-३ आदिजिन स्तवन, मु. रहिदास ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, वे. (श्रीऋषभदेव जिणंदा), ८८९७२-१ आदिजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मृपू. ( आयो आयो मास आसाढ दिस), ८८३७७-२ आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज भले दिन उगो हो), ८६७३४-१ आदिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५. वि. १८४३, पद्य, म्पू. (श्रीरिषभ सघला पली जा), ८९१५० १ आदिजिन स्तवन, मु. रायचंदजी ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, स्था., (सांमीजी रे सांमा जोय), ८७२०५-२(+) आदिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (तु तिर्थका देवताजी), ८५८८३-४ आदिजिन स्तवन, वा. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ६८, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति लही वाणी ए), ८८३०८(+$) आदिजिन स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकलभुवन सीर सेहरो आद), ८९२३८-१ आदिजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु., ( आदिजिनेसर विनती) ८५७६०-२ आदिजिन स्तवन, मु. सिंहकुशल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (म्हे तो उदीयापुरसुं), ८८१५९-१ आदिजिन स्तवन, मु. सुरत ऋषि, मा.गु. गा. ९, वि. १८०९, पद्य, श्वे. (आदिजिणेसर हो साहिब), ८७२४०-१ आदिजिन स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नाभिनंदन जगवंदन देव), ८९२०४-२ आदिजिन स्तवन, मु. सौभाग्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू. (फुल गंध अक्षत अरु), ८८९२२-३(+) आदिजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सार करोने हमारी हे), ८८४८९ आदिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( उगत प्रभात नाम जिनजी), ८७६०२-२(+), ८८९६४-८ आदिजिन स्तवन, मु. हीरविजय शिष्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू, (नाभिराया कुलचंदए जग), ८७९९३ (+) आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (जिनजी पहला रषभनाथ), ८९०५१-२(#) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (जोग न मांड्यो मै घर ), ८८५५७ आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मृपू. (तुम सैती नही बोलूं), ८६७५५-२, ८८८०८-२ आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, म्पू, (नाभिराव कुलसैहरी), ८६०५३-३(७) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनवर पूजता आज), ८८१६८-१ आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रभुजी तुम दंसणा), ८६४७७-५ (३) ५११ For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (श्रीऋषभ जिनेसर त्रीज),८९२९७-१ । आदिजिन स्तवन-२४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसुंदर, मा.गु., ढा. २, गा. २६, पद्य, मूपू., (आदीसर हो सोवनकाय), ८९१२१-१ आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, मपू., (प्रणमुं प्रथम जिनेसर), ८८९२९(+), ८९१६४(+),८८१२१ ।। आदिजिन स्तवन-अर्बुदगिरितीर्थ मंडन, वा. प्रेमचंद, मा.गु., गा. ३४, वि. १७७९, पद्य, मूपू., (आबु शिखर सोहामणो जिह), ८८५५१-९ आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मपू., (श्रीअष्टापद ऊपरे जाण), ८५८४३-१, ८६९६२, ८७०४१ आदिजिन स्तवन-आडंपुरमंडन, मु. गोविंद मुनि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (जिन जिम जाण दूरे), ८९००७(+#) आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरसति माताने नमु), ८७०२०-२(#) आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.ग., गा. ६, पद्य, मप., (आज तो बधाइ राजा नाभि), ८७६७९-१ आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., गा. २१, पद्य, मप., (पहिलु पणमिअ देव), ८७८८५(+) आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडण, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (खटक देस में धुलेवनगर), ८८७७७ आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चालो री सखी धूलेवै), ८५८६३-२८) आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, मु. चारित्रविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९१७, पद्य, मूपू., (ऋषभ प्रभु मोहना सुख), ८६२०६-१ आदिजिन स्तवन-नारदपुरीमंडन, मु. वल्लभ, मा.गु., गा. ७, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (चालो सहेली आपण सहु), ८६४२४-७, ८८३९१-१(२) आदिजिन स्तवन-बृहत्शजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मपू., (प्रणमवि सयल जिणंद), ८७६४९-१(#$) आदिजिन स्तवन-भावनगरमंडण, मु. साधु, पुहि., गा. ७, वि. १८६१, पद्य, मपू., (प्रथम जिणंद जुहारियै), ८६३०९-४(+) आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., गा. १६, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (राणपुर नमौ हियो रे), ८६९३३-१ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. १३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंद विमलगिरि), ८९०७७ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमो नमो श्रीआदि), ८६६८१(#) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. रत्नचंद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल तीरथ), ८७३९४(#) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. २२, पद्य, मपू., (सयलि सुहकर सयलि सुहक), ८७७३८-१ आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), ८७५९१-१(+), ८६९००-३(१), ८७८८७-२(#) आदिजिन स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मप., (विमलाचलमंडण जिनवर), ८६०७६-२(+) आदिजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभ जिनवर अनंत), ८८७५५-१ आदिजिन स्तुति, आ. राजेंद्रसूरि , मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (आदिश्वर जिनवर भेट्या), ८७५१२-४(+) आदिजिन स्तुति, आ. विजयसेनसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (नाभिकुलगयण विभासण), ८८७५५-३(5) आदिजिन स्तुति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आदिनाथ लंबा हाथ), ८८०५७-३(+) आदिजिन स्तति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (सील सुरंगी भांति), ८८५६८-४(-#) आदिजिन स्तुति-शत्रुजयमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (धप मप धोउं धोउं मादल), ८८७५५-२ आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुधर्म देवलोक पहिलो), ८८५११-२(+#), ८७१२८-१ आदिजिन हरियाली, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अचंभो उपनो कहो जी), ८६२०१-४(+), ८८०१२(#) (२) आदिजिन हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरुष कउ आउखु हवडा), ८८०१२(#) आदिनजिन भास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (आज मन आणंद अधिको अंग), ८८६८०-१ For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५१३ आधाकर्मी आहार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (आधाकरमी आहार लेनार), ८८४४५($) आधाशीशी कथा, पुहिं., गद्य, वै., इतर, (ॐ नमो पैठाणपुर पाटण), ८८९९४-२ आधाशीशी निवारण मंत्र विधिसहित, मा.गु., गद्य, जै., वै., इतर, (ॐअट्ठावली वनगहनमांहि), ८६१०६-७(+) आधाशीशी मंत्र, पुहिं., गद्य, वै., इतर, (ॐ नमो हनुवंतबीर के), ८७५३७-५(2) आध्यात्मिक गीत-देहस्थहंस, मु. हंसतिलक, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (अरिहंतदेव सुसाध गुरु), ८७३४१(+) आध्यात्मिक ज्ञान पद, मु. विनयविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (मोकुं ऐसो भेद बतायो), ८६७७५-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, मपू., (अबधू आस्या औरनकी कहा), ८७२१९-६(६) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (अबधू रामराम जग गावै), ८७२१९-४ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधू क्या मागुंगुनह), ८८४०५-१० आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधू नट नागर की बाजी), ८७२१९-५, ८८४०५-११ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूप., (अवधू नाम हमारा राखे), ८७७२३-२(4), ८८०९१-३(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूप., (अवधू राम राम जग गावे), ८७७२३-१(2) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मप., (औधू क्या सौवे तन मढ),८८४०५-९ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (निसाणी कहा बतावुरे), ८६४३४-१ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रे घरियारी बाउ रे मत), ८८०२३-२(2) आध्यात्मिक पद, मु. ऋषभदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (यह चेतन या होरी रे), ८५९७७-८(+#) आध्यात्मिक पद, कबीरदास संत, पुहि., दोहा. ५, पद्य, वै., (रनवन सेती जडीयम गाई),८८८१९-१ आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं., गा.७, पद्य, मप., (एसा ज्ञान विचारो), ८६८८४(+) आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहि., गा.५, पद्य, मपू., (चेतन समता मिलना), ८८१७९-२ आध्यात्मिक पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (कैसा ध्यान धर्या है), ८६८१९-९ आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्ध स्वरूप सदा पद), ८६८१९-४ आध्यात्मिक पद, मु. जिनलाभ, पुहिं., पद. ३, पद्य, मूप., (चित्त सेवा प्रभु चरण), ८६३०९-६(+) आध्यात्मिक पद, दलपतराम डाह्याभाई, मा.गु., गा.१२, पद्य, वै., (जाय छे जगत चाल्य),८८४७७-१०(+) आध्यात्मिक पद, मु. प्रेम, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (मेरो चीत जिन चरणां), ८६२१२-१२(+#) आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (चेतन तूं तिहुं काल), ८९०४३-२(+) आध्यात्मिक पद, मु. भूधर, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (देख्या दुनियां बीचि), ८७४५८-४ आध्यात्मिक पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (लख लहो रे लख लहो रे), ८५९२५-३ आध्यात्मिक पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा.५, पद्य, मप., (है इस सहिर विचको),८७२२५-३ आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मपू., (किसके बे चेले किसके), ८७९५३-४(+) आध्यात्मिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रात भयो प्रात भयो), ८८१८६-४(+) आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (अविनाशी के गुण गावता), ८८५२३-२(2) आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (करता कुन कहावे साधु), ८६०८६-३ आध्यात्मिक पद, पुहिं.,गा. ३, पद्य, श्वे., (जालम जोगीडा से लागी), ८६२२८-२ आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे.?, (तन का तनक भरोसा नाहि), ८७९४५-४+) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मप., (सोयो तं बोहोत काल),८७६८७-५(+) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (हम बैठे अपनी मोनसौ), ८९०४३-११(+), ८६८५२-२ आध्यात्मिक पद-नश्वर काया, पुहिं., पद्य, श्वे., (तेरी काया में है), ८५७८०-८ आध्यात्मिक पद संग्रह, पुहिं., पद्य, दि.?, (हे अनंत व्यापक सकल), ८८६७२-२(5) आध्यात्मिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूप., (प्राणी क्यो विषयनसुं), ८६८१९-५ आध्यात्मिक सज्झाय, पं. चरणकुमार, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (आतमध्यानी अंतरजामी), ८७८१३(+#) For Private and Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५१४ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आध्यात्मिक सज्झाय, नग, रा., पद्य, म्पू, (थोडा दीनरो जीवणो), ८५८०४ , " " आध्यात्मिक सज्झाव, आ. भावप्रभसूरि पुहिं. गा. २३, पद्य, मूपू. (अरिहंत राजा मोहराय), ८८५१२ आध्यात्मिक सज्झाय, आ. विनयप्रभसूरि, मा.गु. गा. ८, पद्य, म्पू, (सासरीये इम जइये रे), ८६०५२-१ आध्यात्मिक सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (चित्रोडारा रत्ननी), ८५९६७-३(+) आध्यात्मिक सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, खे, (भलोज आखर उपजे), ८८५०३-२० आध्यात्मिक सज्झाय, रा. गा. ८, पद्य, श्वे. (मे देवन ते अरहंत चाउ), ८८१०१-३) " आध्यात्मिक सज्झाय-चरखा, रा., गा. ८, पद्य, श्वे., (आरजदेस थकी एक आयो), ८८५३७-२ (-) आध्यात्मिक सज्झाय-योगी गुण, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (योगीनिइ जोखिम नही), ८७६१८-१(+) आध्यात्मिक सज्झाव- समकित निर्मल, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (समकित निरमल जल करो), ८९०८०-३(-) , आध्यात्मिक सज्झाय सहजानंदी, पं. वीरविजय, मा.गु.. गा. ११, वि. १९वी पद्य, मूपू (सहजानंदी रे आतीमा), ८६१७६ आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु, गा. ६, वि. १६वी, पद्य, म्पू, (वरसे कांबल भींजे), ८५६९८(*), ८८५११-१(०१) ८७४१३, ८७७४८, ८८८६५ 1 (२) आध्यात्मिक हरियाली-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (कांबली कहता इंद्री). ८५६९८(+), ८८५११-१(+४) ८७७४८, ८८८६५. ८७४१३६) आध्यात्मिक होरी, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (उठो सरधा गोरी चेतनसू), ८७५९०-१ आध्यात्मिक होरी, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (क्युं खेले रंग होरी), ८८९५५-५ (+) आध्यात्मिक होरी, मु. ज्ञानसागर, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू. (ज्ञान रंग खेलिइ होरी), ८८९५५-६(+) , + Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आध्यात्मिक होरी पद, मु. सुमत, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (चेतन खेलत होरी सत्ता ), ८५९७७-९(+#) आध्यात्मिक होली पद, मु. जडाव, मा.गु., गा. ८, वि. २०वी, पद्य, वे., (होली खेलो रे हांरे), ८६९०२-१ आध्यात्मिक होली पद, मु. भाणचंद, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (चातुरी कहा बोलु समझ), ८७५९०-३ आध्यात्मिक होली पद-जीवदया, मु. जडाव, रा., गा. ११, वि. १९५१, पद्य, श्वे., (मती ढोलो रे हां रे), ८६९०२-२ आनंदघन गीतवहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुडिं, पद. ७८, पद्य, मूपू. (क्या सोवेउठि जाग), ८८५२१-१(३) . आनंदश्रावक ढाल, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ६५, वि. १८२९, पद्य, श्वे., (अनरी जात अनेक छै), ८७२५७ आनंदधावक ढाल, मु. वल्लभविजय, मा.गु., डा. ५, गा. ४८, पद्य, मूपू (श्रीजिनवीर समोसर्वा), ८८४२४-१ आनंदधावक सज्झाय, मु. कनीराम, रा. गा. ४४, वि. १८८६, पद्य, वे (पडिमाधारी आनंद), ८५६७६-१(+) आनंदश्रावक सज्झाय, मा.गु. गा. ९, पद्य, मूपू., (किण होलिरा दुहा लिख), ८८४४९-२ ', आयंबिलत सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ११. वि. १७३, पद्य, मूपू (समरी श्रुतदेवी सारदा), ८६३१२-४(+३) י: आयुष्य सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (प्राणी आउखो तूटेने), ८५८८९-१(+), ८७३०६-२ आराधना, मु. हंस, मा.गु., गा. ९६, पद्य, मूपू., (पहिलउ नमस्कार अरिहंत), ८८६८३ आराधना, मा.गु., ग्रं. २२७, गद्य, मूपू., ( नमो अरिहंताणं० पहिलउ), ८८१०४(#) आर्द्रकुमारमुनि सज्झाय, वा. कनकसोम, मा.गु., डा. ५, गा. ४९, वि. १६४४, पद्य, मूपू. (सकल जैन गुरु प्रणम्), ८७६५००*), ८८७४१ आर्द्रकुमार सज्झाय, क. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (प्रीउडा प्रीतडली इम), ८७१४४(+), ८७५८४ आर्द्रकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपु. ( तुम्ह दरसणरी अति घणी) ८७२१२-२(क) आर्यदेश नाम, मा.गु. गद्य, मूपू. (१ मगधदेश राजग्रहीनगर), ८६६६४-४१०) " आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६९८, पद्य, मूपू., (पाप आलोयु आपणां सिद), ८७८१४(+), ८९२७२-१ For Private and Personal Use Only आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, म्पू. (ज्ञाननी आशातना जघन्य), ८९०५८ (+), ८७८९७-१, ८८३८९, ८७८८९७) आलोयणाविचार दोहा, मा.गु., गा. ८८, पद्य, श्वे., (सिद्ध श्रीपरमातमा), ८५६६५ (+), ८६७८७(+) आलोयणा विधि, मा.गु., ग्रं. ११७, गद्य, मूपू., (देववंदन अकरणे पुरिमढ), ८८४८४(+) Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५१५ आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (न्यान रै विषै दरसनरै), ८८५२०-१(2) आलोयणाविधि संग्रह, मा.गु., गद्य, प., (१ वरस नानि आलोयण),८६२३६, ८८७५३ आलोयणा विधि-साधधर्म, मा.ग., गद्य, श्वे., (ज्ञाननि विषे जे), ८८९०६-२(+#$) आशिकपच्चीसी, य. जिनचंद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., इतर, (आसिक मोह्यो तुझ रूप), ८७५८९-१(5) आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. ६७, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवदन निवासिनी), ८७२०८-१, ८५८५१-३($) आषाढाभूतिमुनि चौढालियो, मा.गु., पद्य, पू., (उतराध्ययन दूसरै), ८६३०९-१(+$) आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (दरसण परिसोह बावीसमो), ८७०१४(+), ८७८३२-१, ८९०३३, ८५७३३(#) आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ५, गा. ३७, वि. १८वी, पद्य, मपू., (श्रीश्रुतदेवी हिइ), ८६४३३, ८८३५६(2) आषाढाभूति रास, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ९, वि. १८८३, पद्य, श्वे., (गणधर गौतम गुणनीलो), ८९२५०() आषाढाभूति सज्झाय, मु. कुसालचंद, मा.गु., ढा. २, गा. २२, वि. १८९९, पद्य, मपू., (मन मान लो सेण अरजी), ८६०३४(+) इंद्र के आयष्य में च्यवन होनेवाली इंद्राणियों की संख्या, मा.गु., गद्य, मप., (२८५७१४२८५७१४२८५ पहिल), ८८१७८-३ इंद्रभूति विशेषण नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (सरस्वति कंठाभरण), ८६९७४-१(+) । इंद्र रावण वाक्युद्ध, रा., गा. २५, पद्य, श्वे., (सीध्रुज आव्यो महीपति), ८७४६५-४ इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., ढा. ४, वि. १७४७, पद्य, मूप., (परम दयाल दयाकरु आसा), ८८७३०(+), ८७४८४(#) इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (नारी मे दीठी इक आवती), ८६०४८-३(2) इलाचीकुमार चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (प्रथम गुणधर गुणनीलो), ८८००५(+), ८७०८५ इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. १८७, ग्रं. २९९, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धदायक सदा), ८८७८९(६) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (धनदत्त शेठनो दीकरो ए), ८६८५६(-2) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नाम इलापुत्र जाणीए), ८८६३७-२(+#), ८६०९५-१, ८८१८७, ८८६८४, ८६२४६-२(2), ८८०९१-२(#), ८८३३३(2) इलाचीकुमार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (नाम एलापुतर जाणीए), ८७००८-२ इलाचीकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सुरति जिम सोवन ओलखे), ८७२०७(+), ८९३०६-१ ईश्वरजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (दानसील बहु जगमां तेर), ८८११७-२ उच्छेदप्रमाणात्मांगल देहमान विचार, रा., गद्य, मप., (श्रीमहावीरस्वामी को),८८६७०-१ उदयसागरसूरि गुरुगुण भास, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा.७, वि. १७९७, पद्य, मपू., (सदगुरु दीठे पातिक), ८७९८५-२(+#) उदाईऋषि सज्झाय, रा., गा. १९, पद्य, श्वे., (घणा लोक आव जावै वाणी), ८७२९७-१(+#) उदाईराजा चौढालियो, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., ढा. ४, पद्य, स्था., (चंपानगरी पधारीया), ८६८५७($) उदाईराजा वखाण, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ६, पद्य, स्था., (चंपानगर पधारीया), ८५८१३(+#), ८६४१३(३) उदाईराजा सज्झाय, मु. कुशलचंद्र, मा.गु., गा. १४, वि. १८७४, पद्य, मप., (सोल देशतणो धणी नामे), ८८१९४-५(+) उपकेशगच्छ सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (अइसा रे ओयसपुर नव), ८७२६९-२(5) उपदेशइकवीसी, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (सिखामण सांभलो सुखकार), ८६९४६ उपदेशछत्रीसी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३६, वि. १८६६, पद्य, स्था., (सबद करी सतगुरु समझाव), ८६३४५-१ उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (सांभलज्यो सज्जन नर), ८६२४८, ८८४७६ उपदेशतेवीसी, म्. चोथमल ऋषि, रा., गा. २३, वि. १८२६, पद्य, श्वे., (पांच पद नवकार सिमरो), ८८२५०-१(+) उपदेशपच्चीसी, मु. चंद्रभाणऋषि, रा., गा. २५, वि. १८६०, पद्य, श्वे., (चौरासी मे चाकजू रे), ८६६८६-१ उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचंद, रा., गा. २७, वि. १८७८, पद्य, श्वे., (निठ निठ नर भवे लहो), ८७९४५-२(+), ८८७११-३(+$), ८६७७० उपदेशपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, पुहि., गा. २५, वि. १८२०, पद्य, स्था., (जीनवर दिए एसो उपदेश), ८६७६७-१ For Private and Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहि., गा. ३०, पद्य, मूपू., (आतमराम सयाने तें), ८५९६६ उपदेशरसालछत्तीसी, मु. रुघपति पाठक, मा.गु., गा. ३७, पद्य, श्वे., (श्रीजिनचरण नमी करी),८५६४६-३ उपदेशसत्तरी, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७८, पद्य, मपू., (समझ० सदगुरु मुखवाणी), ८७८५६(+) उपधान आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (चलवडौ अणपडिलेह्यां), ८८३३६-२(+) उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. १८, पद्य, म्पू., (श्रीमहावीर धरम), ८६८०७(+) उपवासफल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (एक उपवासे १ उपवास), ८६९०६-१(+), ८७१५६-२ उपशम सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (भगवती भारति मनधरीजी), ८९०९४-१(2) ऋतु नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (चैत्र वैशाख वसंत जेठ), ८८५७३-६(+) ऋषभाननजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मपू., (श्रीऋषभानन गुणनिलौ), ८८२९५-१, ८६५२४-२(2) ऋषिपंचमी उत्पत्ति कथा, मा.गु., गद्य, जै., वै., (हवे पर्यषण पर्वनी), ८६०९१-१ ऋषिबत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूप., (अष्टापद श्रीआदिजिणंद), ८७९३७ एकमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (एक मिथ्यात असंयम), ८८३५४(+#), ८७१३३-१ एकसंयोग्यादिरूप संख्यादि कल्पसंख्या यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ८९०३८-२ एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (शासननायक वीरजी प्रभु), ८८३१२-३(+), ८६५१४-१(१), ८७१९०-१(2) एकादशीतिथि छंद, मु. केसव, मा.गु., गा. ४५, पद्य, श्वे., (ब्रह्माणी वरदाइनी सह), ८८५३६-१(+) एकादशीतिथि विचार, मा.गु., गद्य, मप., (पंचपंचासवै कुल्या), ८८९६०-२(+) एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (आज एकादसी रे नणदल), ८८४६२ एकादशीतिथि सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (आज म्हारे एकादशी रे), ८९२९१-१ एकादशीतिथि सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (आज एकादशी रे नणदल), ८८०५७-२(+) एकादशीतिथि सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., गा. १५, वि. १७वी, पद्य, मपू., (गोयम पूछे वीरने सुणो), ८६५५९-२(+), ८६२३८, ८७९८९, ८८४११-१ एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांसजिन),८७१०२-५(#) एकादशीव्रत गीत, मा.गु., गा. ११, पद्य, वै., (मेरुशिखरि सोनानु), ८७८७६-१, ८८०९८-२(2) एकेंद्रिय विषयसंज्ञा निरूपण पद, मु. उदयराज, पुहिं., पद. १, पद्य, मपू., (नवपल्लव अशोक हुंति), ८७४३२-२ ओसवालज्ञाति उत्पत्ति कवित, रा., गा. २, पद्य, मप., (पहुपराव पमार श्रीकरै), ८६२६४-३(१) ओसीयाजीतीर्थ छरीपालितसंघ स्तवन, सा. उद्योत, रा., गा.८, वि. १९५३, पद्य, मपू., (संघवीजी संघ चलावो थल), ८६०१२ औपदेशिक कथा-सिंहवानर, मा.गु., गा. ११, पद्य, जै., इतर?, (एक समै सुणि सिंघकुं), ८७२६६-१ औपदेशिक कवित-धडाबद्ध, क. पिंगल, मा.गु., का. १, पद्य, वै., इतर, (वंश त्रिण वाजिंत्र), ८८६८२-२(#) औपदेशिक कवित्त, क. गद्द, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (ओ उपनोए एक उवागर), ८८०२८-२ औपदेशिक कवित्त, रा., पद्य, जै., इतर?, (सार बाबासार सब बातरी), ८८१२५-२(#) औपदेशिक कवित्त-कपणबोध, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., इतर, (कृपण मरंतो करै लछि), ८८९४६-४ औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, म्पू., इतर, (कीमत करन बाचजो सब), ८५७५४-१(+), ८६३८८, ८६५९८-३ औपदेशिक कुंडलियाँ, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (संतांरी निद्या करे), ८६३५४-३(#) औपदेशिक कुंडलियाँ-परनारीपरिहार, मु. रत्न ऋषि, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (नारि उबी गोखडे कहे प), ८६८१३-१ औपदेशिक गहुंली, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (मुनिवर शिव हेली रागी), ८९१११-१ औपदेशिक गहंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (मुनिवर मारगमां वसिया), ८७५५५-१ औपदेशिक गाथा संग्रह-प्रश्नोत्तरमय, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (किस कारण० गोरी पीत), ८५७२२-१(#) औपदेशिक गीत, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., गा. २३, पद्य, मूपू., (देह देह नणद हठीली), ८७७१०-१(#) For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५१७ औपदेशिक गीत, मु. जिनराज, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (सब स्वारथ के मित हइ), ८७७५९-६(#) औपदेशिक गीत, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (देस मुलकने रे परगणे), ८९३०५-१ औपदेशिक गीत-कायाविषये, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (नणंद रे बे हुइ घाववी), ८७३७८-१(+) औपदेशिक गीत-जीव प्रतिबोध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूप., (श्रीसारा जाण असार), ८९३१५-१(+) औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (भगवति भारति चरण), ८६४११(+), ८७५९८-२(+), ८७४९३-२, ८९०१३ औपदेशिक ज्ञानपद, मु. मनोहर, मा.गु., पद. ८, पद्य, श्वे., (गान पदइ सरवणसंणा रे), ८८५३३-१,८७६५४(८) औपदेशिक दहा, पं. जसवंत, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (जसवंत इस संसार में), ८८०५४-३(+) औपदेशिक दुहा, मु. नाथ, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (सतत लाख पुर्व लग गया), ८५९७२-२(+#) औपदेशिक दहा, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (चोखे चीते तप करो दया), ८६१०५-३(+) औपदेशिक दहा, पुहिं., गा. १, पद्य, मूप., (नरभव तो पायो सही), ८६१३१-२ औपदेशिक दहा, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (सह न ऐसा कीजीये), ८८०००-३(+-#) औपदेशिक दहा, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (सुख मे सजन बहुत है), ८६६००-२ औपदेशिक दहा *, पुहिं., दोहा. १, पद्य, इतर, (सोरठ गढथी उतरी कंस), ८८३३०-२(+),८९२५७-३, ८८०८५-२(#) औपदेशिक दहा-आहार विषयक, नयनसुख, मा.गु., दोहा. १७, पद्य, जै., इतर, (--), ८८६७५-१(#S) औपदेशिक दहा-शीयलविशे, मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (सील विना सह वेदिह), ८८६७१-३(+) औपदेशिक दहा संग्रह, पुहिं., गा. १३, पद्य, इतर?, (एक समे जब सींह कुं), ८६७०६-४(+) औपदेशिक दहा संग्रह, पुहि., दोहा.८, पद्य, श्वे., (प्यावै था जब पीया), ८९०१४-२ औपदेशिक दहा संग्रह, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (लगे भुख ज्वर के गये), ८६७२७-१(+), ८७८८६-२ औपदेशिक दहासंग्रह-विविधविषयोपरि, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, जै., वै.?, (लाख तज्यो ठामै लिख्य), ८६२८८-३(+), ८५६४६-२, ८८१९५-३, ८६५२४-१(२) औपदेशिकदृष्टांत पद, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (हुंड्या हाले रे चिहु), ८७९४५-१(+) औपदेशिक दोहा, मु. उदय, पुहि., दोहा. ३, पद्य, मूपू., (धन विन तन कुंद हीत), ८७४३८-२ औपदेशिक दोहा, क. दिन, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (मनखा देही पाय कै),८८५८२-४ औपदेशिक दोहा, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (पर आश्रय सो कष्ट हे), ८८९०१-२ औपदेशिक दोहा, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सजन फल जिम फूलजो वड), ८७९६०-५(६) औपदेशिक दोहा, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (समय समझे के कीजीऐ), ८९०९९-२ औपदेशिक दोहा, पुहि., दोहा. १, पद्य, वै., इतर, (सिद्ध कसिवै कुं काल), ८५८४२-२, ८८३३७-३ औपदेशिक दोहा संग्रह, क. गद, पुहि., गा. २०, पद्य, जै.?, (कनक दान कुर खेत का), ८६५९८-१ औपदेशिक दोहा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु., पद्य, श्वे., (गइ संपत फर आवे), ८८६५८-२, ८९३०७-४(-) औपदेशिक दोहा संग्रह, राम चरण, पुहिं., गा. २, पद्य, जै., वै.?, (काजल भरणो हे सखि), ८५८५३-२(-) औपदेशिक दोहासंग्रह, पुहिं., दोहा. ४६, पद्य, वै., इतर, (चोपड खेले चतुर नर), ८८३५३-२, ८९१४६-३ औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि., दोहा. २, पद्य, मूपू., (रोग जोग अरु राजसुत), ८८८६३-२(2) औपदेशिक दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, मूपू., (सिद्ध श्रीपरमातमा), ८९०२९-२, ८८६३८-२(#) औपदेशिक पद, श्राव. अखयचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (धरणी क्यो बोझां मारी), ८८९५२-१ औपदेशिक पद, मु. आतमराम, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (इक दिन लाला रे रैन), ८८४७७-१(+) औपदेशिक पद, मु. आतमराम, पुहि., गा. ४, पद्य, भूपू., (कुमति के फंद फस्यो), ८८४७७-४(+) औपदेशिक पद, मु. आनंद, पुहि., गा. ४, पद्य, स्था., (एसे तो विषम वाजी), ८८४७७-७(+) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ए जिनके पइया लाग रे), ८९१८६-१ औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मायडी मुने निरपख), ८५९३५-२(+), ८८५२१-२(+) For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५१८ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपु. ( ल्याव रे मनां चीत), ८७२५०-२(+) औपदेशिक पद, मु. आनंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (जरा ते जोबन रतन), ८८४७७-३(+) औपदेशिक पद, मु. ऋषभविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (भजन विन युं ही जनम), ८८५२३-४ (#) औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (झीवर नाखी जाल बंदा), ८८९५२-३ औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (सुनियो संत सुजान), ८८८१६-३ औपदेशिक पद, कबीर, पु.ि, गा. ६, पद्य, वै., (धुणी धरम ध्यान की रे), ८८९०७-२(+) औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं. दोहा ७, पद्य, जै. वै., ( साधु संसार में), ८९२६२-२(*) , " औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., गा. ४, पद्य, जै. ?, (सुध कर हीर दोहलदी), ८८९५२-२ औपदेशिक पद, मु. कान्ह, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे. (सुनो रे आलम के यार ), ८७६९८-३ औपदेशिक पद, मु. कृष्णदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू. (ज्यु बने त्युं तार), ८८९५५-७(7) ', औपदेशिक पद, मु. केशवदास, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जा घरि तेल फूलेल), ८७६९८-२(#) औपदेशिक पद, क. गंग, पुहिं., गा. २, पद्य, जै., वै., इतर?, (अन विना जैसै प्रान), ८८२२६-४ औपदेशिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं. गा. ७, पद्य, म्पू.. (दान सुपातर मुनीकु), ८८४५६-३ औपदेशिक पद, मु. चेनविजय, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू. (कोण नींद सुतो मन), ८५९७७-६(+) औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (तुम तजौ जगत का ख्याल), ८८५८२-२ औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (नय की निज बुटी निज), ८७२५६-२(-) औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूषू, (पिया बीन झूर झूर हुई), ८८७२३-५ (+), ८६८६२-१ औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कहा रे अग्यानी जीव), ८८१८६-३(+), ८८४०५-३ औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (पालो पालो रे संजम कि), ८६७७७-३(+) औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (भोर भइ रे वटाउ जागो), ८६९३०-२ (+) औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपु. ( मत करो रे चतुर, ८६७७७-४(*) औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं. गा. ५, पद्य, मृपू. (मेटो मेटो रे भवीक जन), ८६७७७-५ (१) औपदेशिक पद, क. दिन, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे. ?, (किनकी विगरी उनकी), ८८५८२-५ " " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " औपदेशिक पद, मु. दिलहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८३२, पद्य, श्वे., (मनधर सारद मातजी वली), ८६१३४ औपदेशिक पद, मु. बोलत, पुहिं. गा. ३, पद्य, वे. (भिसत के मकांम ज्यां), ८८२५४-७ औपदेशिक पद, मु. द्यानत, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (ग्यानी जीवदया नित), ८७३३९-१(+#) औपदेशिक पद, मु. चानत, पुडिं, गा. ४, पद्य, म्पू, (ते बाधो जन्म ईही खोय), ८५९७७-१५ (+#) औपदेशिक पद, मु. द्यानत, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (वसि संसार में मै), ८७३३९-२ (+#) औपदेशिक पद, मु. नंदलाल, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे. (महा असुचि मलमूत्र, ८६३९९-५ औपदेशिक पद, मु. नगजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नायक विणजारा रे अंखी), ८५९७७-१४(+#) औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू., (पुदगल का क्या विसवास), ८७३३९-३(०) औपदेशिक पद, मु. प्रेम, पुहिं., रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (उत्तम चरणा चत धरो), ८६२१२-१६(+#) औपदेशिक पद, मु. प्रेम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (चेतन समजौ चितमे जोय), ८६२१२-५(+#) औपदेशिक पद, मु. प्रेम, पुहिं. गा. २, पद्य, मूपू., (तन तडफे जीम माछलो), ८६१३९-५(१) औपदेशिक पद, मु. प्रेम, पुहिं., पद. १, पद्य, मूपू., (तरीया तीखी ते गहे), ८६२१२-१८(+#) औपदेशिक पद, मु. प्रेम, पुहिं. पद. १, पद्य, मूपू., (तरीयासु जे तर गेहा), ८६२१२-१९क " औपदेशिक पद, मु. प्रेम, पुहिं, गा. ३, पद्य, मृपू., (माने नाही लिगार मुरख), ८६२१२-१(+) औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (चेतन उलटी चाल चाले), ८९०४३-६(+) औपदेशिक पद, श्राव, बनारसीदास, पुहिं, गा. ४, पद्य, दि. (चेतन नैकुन तोहि), ८९०४३-९(*) औपदेशिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे. (तु आतम गुण जान रे), ८९०४३-७(+) יי For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, दि., (या चेतन की सब सुधि), ८९०४३-१(+) औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं, गा. ४, पद्य, दि. (रे मन कुरु सदा संतोष), ८९०४३-८(+) औपदेशिक पद, क. बनारसीदास, पुहिं. गा. ७, पद्य, दि. (समझ रे नर समझ चेतन), ८६९१३-१/-) " "" " www.kobatirth.org (चरखा भया पुराना रे), ८७७२३-४(क) औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, वे औपदेशिक पद, जै.क. भूधरदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (समज के सिर धूल ऐसी स), ८७७६६-२ औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहि., गा. ४, पद्य, खे, (दुनिया मतलब की गरजी), ८८४७७-८(*) औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे. (पाप धतुरा न बोय रे), ८६३९९-३ औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं, गा. ४, पद्य, से., (मारे गुरां दीनो माने), ८७७२३-३(०) , " ', औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि पुहिं. गा. १०, पद्य, मूपू., (परम गुरु जैन कहो, ८६७१९-२, ८७२३६-२ औपदेशिक पद, मु. रंग, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जोवनधन थीर नही रहणा ), ८८२६१-६(+) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (आपे खेल खेलंदां), ८७९७६-१ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, रा. गा. ३, पद्य, वे., (जीवाजी थाने वरजु छु), ८८९४२-३ (४०) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (समझ समझ जिया ग्यांन), ८७४३६-४(#) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ४, पद्य, श्वे. (हक मरना हक जाना), ८७४३६-७(१) औपदेशिक पद, मु. लालचंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू (लीज्यो लीज्यो नाव), ८७३७२-३(-) औपदेशिक पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (हो महाराज सरण मोही), ८५९७७-३(+#) औपदेशिक पद, मु. लाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, श्वे. (मनवा जगत चल्यो जाये), ८६३०९-८(*) औपदेशिक पद, मु. लींबो, पुहि., गा. ३, पद्य, मृपू., (एक घडी वाला एक घडी), ८८९५५-८(१) औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (घोरा जूठा हे रे तु), ८७९५३-३(+) औपदेशिक पद, मु. विनयचंद ऋषि, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (नव घाटी लघ नरभव पायो), ८८८८७-१ औपदेशिक पद, शंकरदास पुहिं. गा. ४, पद्य, वे. इतर ( तुजे चलणा वाही से), ८६३९९-४ "" 1 " औपदेशिक पद, मु. सुग्वानसागर, पुहिं. गा. ५, पद्य, वे नहीं ऐसो जनम बारंबार ), ८६८२५-१ " "" י' औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजी तुम कौन देश लगन), ८८४७७-२ (+) औपदेशिक पद, पुर्हि, गा. ४, पद्य, थे. (असी विध तीनै पाइये), ८६८१९-८ " औपदेशिक पद, पुहिं., पद. १, पद्य, जै., वै., इतर ?, (एम मुगल्ल अवल अभंग), ८८२२६-२ औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ८, पद्य, मूपू.. (ऐसे क्यु० सुणि पंडित), ८९०४३-५ (+ण "" " , औपदेशिक पद पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू (कुमता हि डोलहि), ८८४७७-५ (+) औपदेशिक पद, रा. गा. ५, पद्य, मूपू. (खांमी रा लाल भरीयो). ८६३२४-५ (-) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (गरमी हइ छेले छवाय), ८८४५६-१ औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ६, पद्य, श्वे. (चेत चेत नर गाफल मत), ८७९९६-२(न " יי " U " औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (छांडदे अभिमान जीव रे), ८५८८३-१ औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ४, पद्य, भूपू (जाणपणानो बोहोत गुता), ८८२९१-३ औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ३, पद्य, श्वे. (जागि जागि रेन गइ भोर), ८६५०७-१(१), ८८४०५-१२ औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू. (जेसे करवत एक काठ विच), ८८२९१-२ औपदेशिक पद, गु., गा. २, पद्य, मूपू., (तमे जरा औनें आवो रे), ८७७१३-२(#) औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ६, पद्य, खे., (ते सब जग छग खाया है), ८६८१९-१० " औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (दरद दील दरदीनु दरदी), ८८४७७-९(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, वे औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, श्वे., (देख " (दासी मेरी खरी रे), ८६५६४-४ (दुविद्या कबजे है या), ८९०४३-१०(*) तेरे पकडन नु फोज), ८६६७३-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only ५१९ Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५२० www.kobatirth.org औपदेशिक पद, पुहिं., गा. २, पद्य, वै., इतर, (नमे तुरी बहु ते गन), ८८५९०-२(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ८, पद्य, वै., (भरिम जलशमें कहुं), ८८१९५-४($) औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, श्वे., (मोहि डहि रे उसदीको), ८७६०५-२(+-#S) औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूप. (रूपवंत गुणहीण तिण), ८८२९१-४ " יי देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (वटाउडा गुजर गई सारी), ८६८१९-६, ८६३२४-४(-) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (वडपणनि विचारी जोयो), ८७३७८-३(+) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. (षद्रव्यनामै कह्यो), ८६७६६-१(-) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सर्वे सांभरे रे), ८८८५०-२ औपदेशिक पद, पुर्हि गा. ३, पद्य, खे, (सुकृत न कीयो), ८८३१८-५ " औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (स्नान करो उपसमरसपूर), ८७३७८-४(+) औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ७, पद्य, वे हमारा दिल लग्या फकिर ), ८६६८६-२ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., ( है चस्मा फैज का जारी), ८६३९९-१ " " " औपदेशिक पद-असत्यत्याग विशे, मु. नंदलाल शिष्य, पुहिं. गा. ४, पद्य, श्वे. (ऐसी दुनीयारो कड़), ८७६२२-३(+) औपदेशिक पद- अहंकार परिहार, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं. गा. ५, पद्य, म्पू, तुम तर्या करो भव), ८६४७७-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक पद-आत्म निरीक्षण, पुहिं., पद्य, श्वे., (न यारो में रही यारी), ८५७८०-७ औपदेशिक पद-आत्मोपदेश, मा.गु., गा. ४, पद्य, थे. (एहवी बात सुतरनी जीव), ८८९७०-४ " औपदेशिक पद-इंद्रियदमनविषये, मु. जेमल ऋषि, मा.गु.. गा. ९, पद्य, स्था., (दया तणो मारग सुध), ८७९२४-१(-) औपदेशिक पद-कर्मगति, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (कर्मगति हे अजब जग), ८६४७७-२ औपदेशिक पद- काया, मु. चेतन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (काया माया घिर नहीं), ८६७४२-५ औपदेशिक पद- काया, मु. रूपचंद, पुहि गा. ४, पद्य, म्पू, (आ तन काची मीटी का), ८७९७६-३ औपदेशिक पद- कुमति, मु. प्रेम, पुर्हि गा. ३, पद्य, भूपू (काढो रे काढो कुमत). ८६२१२-११ (+) " " औपदेशिक पद-कुमति, मु, प्रेम, पुहि, गा. ४, पद्य, मूपू., (कुमति की पटरानी रे) ८६२१२-३ (+) औपदेशिक पद-गुरुभक्ति, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., ( एक कर लो रे सेवा), ८८४५६-२ औपदेशिक पद-गुरुवाणी, मु. प्रेम, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुगडजन सांभलो रे). ८६२१२-१७(+) औपदेशिक पद- जोबन, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मत अकडे जोबन के मटके), ८८२८६-७(#) औपदेशिक पद- ज्ञान, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (बाबा तेरे बाग में), ८७४३६-८(#) औपदेशिक पद- तमाखू परिहार, मु. जडाव, रा. गा. १३. वि. १९५१, पद्य, श्वे. (मत पीवो रे हां रे मत) ८६९०२-४ 1 "" "" औपदेशिक पद-दत्तव्रत, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (पावोगा मुगती फुलपखडी), ८८२८६-४(#) औपदेशिक पद-दया, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (दया विना करणी दुखदान), ८६३९९-६ औपदेशिक पद - दसपचक्खाण, मु. राम, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (दसपचखाणे जीवडोजी काई), ८६९०१-२(+) औपदेशिक पद-नरभव प्रमाद, मा.गु., पद. ४, पद्य, मूपू., (खोयो रे गमार तें), ८५९७७-५(+#) औपदेशिक पद परनारी परिहार, मु. देव, मा.गु., गा. ९, पद्य, थे. (सुण मारी चतुर सुजाणे), ८८३८७-१ औपदेशिक पद-परिग्रह, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., ( तयागो ममता परीग्रह), ८८२८६-६(#) औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मृपू., (पारकी होड मत कर रे ), ८९१२९-२, ८९३००-४, ८६९३५-४००० औपदेशिक पद-भलेगर्भित पुहिं. गा. ४, पद्य, वे (भली बात करीए माडी). ८६८८५-३ , " औपदेशिक पद-मन पुहिं, गा. ४, पद्य, श्वे. (ए मन ऐसो है जिणधर्म), ८५८८३-२ " औपदेशिक पद-मान, पुहिं., पद्य, श्वे., (आजी मान म करीस्या), ८६८१९-११($) औपदेशिक पद-यौवन, मु. उदयरत्न', मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (योवनीयानी फोजां मोजं), ८७९६०-२ औपदेशिक पद- लोभ परिहार, मु. जयसोम, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दौलत देख पराइयां), ८९२७५-२ (#) For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ', औपदेशिक पद-वाणी, मु. रतनचंद, रा. गा. ५, पद्य, श्वे. (हे रसना बिगर विचारि ८६८१९-३ औपदेशिक पद- वैराग्य, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (रे मन ममता छोड़ दे), ८९२७०-३ ', औपदेशिक पद-शीलव्रत, मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (सदा पालो रे शीयल), ८८२८६-५(#) औपदेशिक पद संग्रह, मु. जिनदास, पुहिं, गा. ३, पद्य, श्वे. (करम की कैसे कटे फांस), ८५७२२-२ (क) औपदेशिक पद संग्रह, पुहिं., दोहा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीसीधंत वीतराग की), ८६३७९-१ औपदेशिक पद संयमित वाणी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू. (श्रावक थोड़ा बोलीजे), ८५८१८-२ औपदेशिक पद संसारस्वप्नबोधे, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, स्था., ( नरक निगोद भमंत रे), ८७९२४-२ (# ) औपदेशिक पद-सदगुरुवाणी, मु. प्रेम, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरे चीत नहीं वसे रे), ८६२१२-९(+#) औपदेशिक पद-सद्गुरु, मु. प्रेम, पुहिं, गा. ३, पद्य, भूपू (सतगुर के चरणे सिर) ८६२९१२-४(+) " औपदेशिक पद समस्यागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (डाले बेठी सुडलि तस), ८८९८६-२(*) (जति साधानो विरुद धरा), ८७९२४-४(#$) (कीजी कीजी रे हारे, ८६९०२-३(३) औपदेशिक पद-साधु, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., औपदेशिक पद-सुकृत, मु. जडाव, रा., पद्य, थे. औपदेशिक प्रभाती सज्झाय, ग. मोतीचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (घडी में घडीयाला वाजे), ८७५४२-२ औपदेशिक बारमासा, मा.गु.. गा. १३. वि. १९२०, पद्य, श्वे. (चेत कहे तुं चेतन), ८६१२२(*) औपदेशिक बारहमासा, मु. ऋषि, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे., (चेत चितामनमाहे वीचार), ८८७२३-७(+) औपदेशिक बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवदयाने विशे रमवु), ८६८२६ (+), ८७९०५, ८८८३०-२ औपदेशिक बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, वै., (--), ८६८२०-१(#$) औपदेशिक लावणी, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे. (खबर नही आ जगमे पल), ८७९८२-३(+), ८७०३१-२, ८८०५९-२ " (लाभ नहि लियो जिणंद), ८८७२३-४(+-) (सुकृत की बात तेरे), ८६८६२-६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक लावणी, कबीर, पुहिं., गा. ६, पद्य, जै., इतर ?, (जीनजीसु लगा रहे मेरे), ८८७२३-९(+) औपदेशिक लावणी, श्राव. कुंभालाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मादां कि निंद्या करे), ८८२५४-९ औपदेशिक लावणी, मु. जडाव, पुहिं. गा. ५. वि. १९५१, पद्य, मूपू (पाप से जीव चोत राजी), ८७६२२-१(+-) औपदेशिक लावणी, मु. जिनवास, पुहिं. गा. ४, पद्य, श्वे. ( आयो अब समकित के घर ), ८७२८९-२ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (चल चेतन अब उठकर अपने), ८५६४८-१, ८८१८३-२ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (बल जावो रे मुसाफर), ८७०६० औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, रा., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (मन सुण रे थारी सफल), ८६८६२-४ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू. औपदेशिक लावणी, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १९३८, पद्य, श्वे., (छिनमांहि छीजे आउषो), ८८९३१ औपदेशिक लावणी, मु. तिलोकचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पाप लोभमा भेला किधा), ८६०३९-२ औपदेशिक लावणी, मु. देवचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (चतुर नर मनकुं रे समज), ८८५८२-१ औपदेशिक लावणी, मु. रामकिसन ऋषि, पुहिं., गा. १९, वि. १८६८, पद्य, श्वे., (चेत चतुर नर कहे तेरे), ८६९३५-१(#) औपदेशिक लावणी, मु. सूरजमल, पुहिं. गा. ६, वि. १९५२, पद्य, ओ., (खबर नहीं है जुग में), ८६८६८-६ " औपदेशिक लावणी, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (धीक तेरा जीवना जिनंद), ८८३१८-४ १, "" औपदेशिक लावणी, पुहिं. गा. ५, पद्य, वे. औपदेशिक लावणी, पुठि, गा. ४, पद्य, श्वे. औपदेशिक लावणी, मा.गु. गा. ८, पच, भूपू ? (परगट हरकुं सवी भजे), ८५८८१-२१) (लक्ष्मीसुम दोनु का), ८५८८१-१८) (सुणो भव प्रभुजी के), ८६४६८-२(*) औपदेशिक लावणी- कायानगरी, मु. दीपचंद, पुहिं., पद. ४, पद्य, थे. (एक नगर बडा गुलजार), ८८३१८-२ औपदेशिक लावणी- क्रोधादिपरिहार, मु. रामरतन शिष्य, पुहिं., पद. ४, पद्य, श्वे., (पंडीत कान कशा बडा), ८८३१८-१ औपदेशिक लावणी-नश्वर काया, हसनबेग, पुहिं., पद्य, म्पू, इतर (ये काया कंचन सेवहत), ८५७६३-१ औपदेशिक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे. (आपरी सकत सारं दान), ८८९२७-१ " For Private and Personal Use Only ५२१ Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२२ देशी भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हुं तो प्रणमुं सदगुर), ८७०५१-२(+), ८७००५, ८६१२८-१(2) औपदेशिक सज्झाय, आसकरणजी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (चित निरमल कर समरण), ८९१३५ औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु संघाते प्रीत), ८७२३५-२(+), ८८०२५-१, ८८४४१-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (यामें वास में बें), ८६१३७-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (सोइ सयाना जानीयो जिन), ८५६४४-२ औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मपू., (संसारे जीव अनंत भवें), ८६९५४-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. ऋषिराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जीवडला जे के काले), ८७५३८-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. ऋषिराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (तारा मनमां जाणे छे), ८७५३८-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. किशनलाल, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (मत कर गर्व दीवाना), ८५९८७-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. कुशल, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (परमहंस कुं चेतना रे), ८८६३७-१(#), ८८५३७-१(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. खुसाल, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (साधु कहै सांभल बाई), ८७९८२-१(+), ८६४९२-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. खूबचंद ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (हाकवो मन बजाजी सतगुर), ८७२५६-१(-) औपदेशिक सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, पुहिं., ढा. १, गा. १२, पद्य, मूपू., (भरतकुमर जाइ कह्यो), ८५८९३-२(+-) औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल, रा., गा. १२, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (साधु कहे तुं सुण रे), ८६२९४-२(+), ८७१५७(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. जडाव, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चेतन चेतो रे दस बोल), ८६९०२-५ औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जुग मे जीवन थोडो), ८८५९६-२ औपदेशिक सज्झाय, जीवदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (तु मत मार रे वीरा), ८६८२५-४ औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नरभव नयर सोहामणो), ८८८१५-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (नाहलो न माने रे), ८८००२ (२) औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बार भावना मांहई), ८८००२ औपदेशिक सज्झाय, मु. देवब्रह्म, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (उभींछी धन वो बरियार), ८७९०८-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. देवब्रह्म, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (काया का घर उपर), ८७९०८-१(2) औपदेशिक सज्झाय, मु. पद्मतिलक शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (न सूई पुण्यवंत बीर), ८७८०५-३ औपदेशिक सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २३, वि. १६वी, पद्य, मपू., (अभिमानी जीवडा इम किम), ८७४३८-१ औपदेशिक सज्झाय, ग. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, पू., (जोय जतन करी जीवडा,), ८६५५६-५(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रेम, पुहिं., गा. १३, वि. १८८७, पद्य, स्पू., (सब चत थीर राखी मेली), ८६१३९-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. बालचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (अभयदान षटकाय जीव नित), ८८५१९ औपदेशिक सज्झाय, मु. भीमविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (मारग वहेरे उतावळो), ८९२८३ औपदेशिक सज्झाय, श्राव. भीषम, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (भंषा घरना निजाइ भंडी), ८५९९८-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (चतुर विहारी आतम माहर), ८८९७८-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. भूधर, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (या संसार क्षारसागर), ८५८८३-८ औपदेशिक सज्झाय, मु. मगन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ए अवसर मति हारो), ८८२५४-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. मगन, मा.ग., गा.११, पद्य, श्वे., (तप जप संजम खप करो हो), ८८२५४-४ औपदेशिक सज्झाय, मु. मगन, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (मुनि उपदसमे गावे रे), ८८२५४-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. मनोहर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (लाख चोरासीजी नमे रे), ८९०२१-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वाडी फूली अति भली), ८८७०६-१ औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (चड्या पड्यानो अंतर), ८८५१५, ८८८३९ औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चतुर नर सामाइक नय), ८६७१९-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. रघुपतिशिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (या जप छयण तीरतीर लाल), ८७५४८-१८) औपदेशिक सज्झाय , मु. रतनचंद, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (इण कालरो भरोसो भाई), ८८३७२-२, ८५८६५-१(-) For Private and Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (थारी फूल सी देह पलक), ८७२२८-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. रामचंद्र, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (काई रे गुमान करे आप), ८६९०१-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. राम, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (रे मन समज तु जगत), ८८२६९-२(2) औपदेशिक सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (वास चडीने मोतिया जग), ८८२६९-३(-2) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (च्यार पोर रो दीन), ८७९२३ औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (प्यारो मोहनगारो राज), ८८१७२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १७, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (मांरो मन लागो हो), ८९०८२(2) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २४, वि. १८०८, पद्य, स्था., (श्रीजिण दे इसडो), ८७२७०, ८८४६६, ८८९३०-१) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंदजी ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, स्था., (वगसमर संगासण धरम पेम), ८८०९० औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (ऐसे ऐसे सेहर वसे कोइ), ८८१११-२, ८८८६३-३(#) औपदेशिक सज्झाय, क. रूपचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूप., (जिणवर इम उपदिसै आगै), ८७८४४(#), ८८६८२-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (काइ नवी चेतो रे चित), ८७१०९(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (अरजवडा होय जगतम डोल), ८७१८५-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (चंदनमलियागरि तणुं), ८७४०४-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मपू., (सुधो धर्म मकिस विनय), ८५९५२-२(+$), ८७५६५-१(+),८८६६०-१(१),८८९२२-७(१),८७७६२-१,८८४८८-३, ८७९५०-१(२), ८८८३२-१(२) औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मंगल करण नमीजे चरण), ८५६३६-२, ८६३५९-२, ८७५८३, ८८१९५-१,८८५४५-१, ८८९१५-२, ८६००९(#), ८७०४२-१(६) औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (दुरलभ भए नरनो भव), ८७९८२-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (पांचे घोरो रथ एक), ८७९५३-२(+), ८७९८४-४(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (दुध पुत्रने धन जोबन), ८६४४१ औपदेशिक सज्झाय, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (चेतन चेतजो रे ए काळ), ८६९८९, ८६८२०-२(#) औपदेशिक सज्झाय, क. वीरविमल, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (चेतन चेतन ज्योरे), ८८३३५-२(+) औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मप., (धोबीडा तुं धोजे मनन), ८६४७२-३(+#$) औपदेशिक सज्झाय, मु. समुद्रविजय, पुहिं., गा. १३, पद्य, मपू., (एक तो काया हर दुजी), ८७७०३-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (धोबीडा तुं धोजे मननु), ८८०३४, ८८५५०-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. साधुदास, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे., (मोहो मंदगी नींध सूता), ८७१५८-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. सीधा ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जेणी दीधो तेणी लाधो), ८९३०८-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. सुंदरस्वामि शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (तारा मनमां जाणे छे), ८८२३८-४(2) औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहिं., गा.८, वि. १९६४, पद्य, श्वे., (चालोजी आपी मोसनगर), ८७६२२-२(+-) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मपू., (अबक् चूक पड्यो जीवा), ८६७६८-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (आपे बेनी चलो सइआ जिन), ८६४६०-२(5) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (आर आसइ हरइ खिलअचनाश), ८६३५२(+-) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे.?, (इस जगमाही कोइ नही), ८६९२९-२(4) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूप., (उंडोजी अर्थ विचारीय), ८७५११(+) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (एक सुखल नारी जोइ), ८८६४०-२(-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (कठण चोट माथे कालनी), ८७५३८-३ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा.८, पद्य, म्पू., (कमरकुं मोडकर चलते), ८५७८०-६ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. १४, पद्य, श्वे., (कांसु पापी ले गया रे), ८८७१४-५(-) For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, श्वे., (किन देख्यावे शिवगामी), ८५९६८-३(#$) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (चली जा चली जा रे), ८५७१०-३(+) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा.११, पद्य, श्वे., (चांगले एसी करना), ८९२५६-२ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, श्वे., (चेत कह चीतमाहि बीचार), ८६५०२-२(5) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (चेतन ते एसी करी तेसी), ८७२२४-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मप., (चेतो रे भव प्राणीया), ८६८११-१(+#) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (चैतन अनंत गणरो रे), ८६८११-२(+-2) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मप., (जिन धर्मध्यान धरो), ८८३९२-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ४७, पद्य, श्वे., (जीव सरवे आतमा धर्म), ८७१५९(-) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (तु मत मार रे मुजकु), ८६८२५-३ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (दीयो वातु मिथ्यात), ८८२३८-२(#) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. २०, पद्य, मप., (दुर्लभ लाधो मनुष्य), ८७५५३(-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (धंधो करी धन मेलीउरे), ८७३४८-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (धन्य छे धन्य छे धन्य), ८८२३८-३(#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नरस्यूं प्रीत न कीजि), ८८४८२-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (नाम दीधांथी गरज न), ८८९०१-३(६) औपदेशिक सज्झाय, पहिं., गा.१०, पद्य, श्वे., (नाया धोया पीहर मील), ८७६१२-३(-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मप., (निनवउलाचालै रे भव), ८५७६४-२($) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, म्पू., (पहिला धुरि समरूं), ८८४९०(+#) औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, श्वे., (पाणीरी बद तीणरो नर), ८७७६१-२(-६) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पारकि तुने सीध पडी), ८८००९-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २८, पद्य, मपू., (पुहे महीने सापडे मक), ८५६४२-२ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ३८, पद्य, मूपू., (पोह सम उजत भावसु), ८७२०२ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (प्रीति सोपाधिक विष), ८७२७८ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. १४, पद्य, मूपू., (भरजोबन मते भइ कवरी), ८८४६३-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (भुखा घरनी जाइ भुडी), ८६३४५-२ औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (मन वच काया करे जे), ८७६३३-३ औपदेशिक सज्झाय, मा.ग., गा. ३२, पद्य, श्वे., (मनुष्य जन्म मिल्यो), ८८६१० औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे., (मयमत पीती सुत वंद), ८८२६९-१(2) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ३३, पद्य, पू., (महिमंडल माहे घणा एक), ८८९६७(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मीठा थे तो धुतर), ८५७५२-२ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. १०, पद्य, श्वे., (यतना का कहा गरब), ८७८७६-२($) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (लख चोरासी फेरा), ८९०७३-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ८, वि. १९२१, पद्य, श्वे., (श्रीजिनचरणा नमो करूं), ८६६७३-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (संजम भव चावकर लीदो), ८५९५४-३(+-$) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, स्पू., (सज्जन रूप अनंतगुन), ८९२७९(5) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, म्पू., (सीख दीउं ते सांभलि),८८८५०-१ औपदेशिक सज्झाय-अनंतकाय त्यागे, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (अनंतकायना दोष अनंता), ८८६४४-१(2) औपदेशिक सज्झाय- अभिमान परिहार, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (अभिमान न करयो कोई), ८८४२४-३ औपदेशिक सज्झाय-अमलवर्जनविषये, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (जिनवाणी मन धरी), ८९१८३-१ For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ औपदेशिक सज्झाय-अहंकार, मु. पद्मसागर, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (अहंकारीने गरब घणेरा),८८२१६-१ औपदेशिक सज्झाय- आचारविचार, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (पांचु इंद्री रखै), ८५७१०-२(+) औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रबोध, मु. कवियण, मा.गु., गा. १४, पद्य, पू., (मायाने वस खोटु बोले), ८५९७५-१ औपदेशिक सज्झाय- आत्मशिक्षा, मा.गु., पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध समरू), ८६९७५($) औपदेशिक सज्झाय-आत्महित, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (माहरुं माहरु म म कर), ८८४४१-२ औपदेशिक सज्झाय-आत्मोपदेशी, मु. प्रेम, रा., गा.७, वि. १८८६, पद्य, श्वे., (छे सासे पुल खुटी थार), ८६२१२-१५(+#) औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (आउखु तुट्याने सांधो), ८९२१०-२(+), ८७००८-८($) औपदेशिक सज्झाय-उपकारविषे, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ७, गा. ९२, वि. १८३४, पद्य, श्वे., (श्रीअरिहंत सिद्धने), ८६८८३(+) औपदेशिक सज्झाय-उपशम, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (भयभंजण रंजण जगदेव), ८९३१७(+), ८७१४१-२, ८९२६०-१ औपदेशिक सज्झाय-कटुवचन त्याग, रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (कडवा बोल्यां अनरथ), ८५७१९(2) औपदेशिक सज्झाय-कर्म, रा., गा.१२, पद्य, श्वे., (कर्म बली रे भाई कर्म), ८६१६२-१(-) औपदेशिक सज्झाय-कर्मकहाणी, मा.गु., पद्य, श्वे., (कहु छु कर्मतणि एक), ८६२१४-२(+$) औपदेशिक सज्झाय-कर्मविशे, मु. केसोदास, पुहि., गा.६, पद्य, श्वे., (उदय करमगति नाहि टरी), ८६५८२-२ औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. पदमतिलक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (वनमाली धणी इम कहे), ८७०७२-२(+#), ८७९७४-३(+) औपदेशिक सज्झाय-काया, मु.रूपचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, स्था., (काया हो कामण जीवजी),८७३२९(+-), ८७९१६(+-) औपदेशिक सज्झाय-काया, पुहि., गा.४, पद्य, मूपू., (कहे काया प्राणी से), ८६३९९-२ औपदेशिक सज्झाय-काया, मा.गु., पद्य, श्वे., (काया कामिनी इम कहि), ८८५०८-२(६) औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (काया पुर पाटण मोकलौ), ८८६६०-२(+) औपदेशिक सज्झाय-काल, मु. जेमल ऋषि, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (देव दाणव चक्रवर्ति), ८७९२४-३(2) औपदेशिक सज्झाय-कनारी परिहार, रा., पद्य, मप., (के जाणे परणतां), ८८८०२-१ औपदेशिक सज्झाय-क्रोध परिहार, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (बोल दसे की लाण उपजै), ८८८२५-१(+) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (कडवां फल छे क्रोधनां),८६८७६-१(+),८६३४०-१, ८६६०७, ८८५२५-१, ८८६००-१, ८९१६३-३ औपदेशिक सज्झाय- क्रोध परिहार, मु. रामचंद, पुहि., गा. ११, पद्य, मूपू., (खमा कीया सुख उपजै), ८८३७७-४ औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा.७२, पद्य, मपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), ८५७९७(+#), ८७२५०-१(+), ८८१३१(+$), ८८५४२(+), ८५८७०, ८६३१०, ८७३५९, ८८३०४, ८६५९९(2), ८६६७९(), ८८९५३(5) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गरभावासमे चिंतवइ है), ८६३१२-३(+#), ८८३६४-३(+2), ८८०७८ औपदेशिक सज्झाय-गर्भावासदःखवर्णन, जिनदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (तने संसारी सुख किम), ८६०५२-३ औपदेशिक सज्झाय- गुरुगुण, मु. सौभाग्य, मा.गु., गा. १२, पद्य, स्पू., (निजगुरुपाय प्रणमी), ८९१९१(+#) औपदेशिक सज्झाय-गुरुभक्ति, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८७७, पद्य, श्वे., (सतगुरु ज्ञानी दीपता), ८७३०३ औपदेशिक सज्झाय-गुरुवाणी, मु. कुसालचंद ऋषि, पुहि., गा. ९, वि. १८८०, पद्य, श्वे., (सतगुर की सांभल वाणी), ८७०७५-२(+) औपदेशिक सज्झाय-घृत विषये, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (भवियण भाव घणो धरी), ८५९९४-१, ८७३०२, ८८०९५, ८८२०२-१(२) । औपदेशिक सज्झाय-चरखा, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (गढ सुरतसुं कबाडी आयौ), ८९१८९(+) औपदेशिक सज्झाय-चारित्रधर्म, मु. भूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आठमो चारित्रपद नीत), ८७७५३-७(+) औपदेशिक सज्झाय-चेतन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मप., (चेतन अनंत गुणाको रे), ८८१०१-२(-) औपदेशिक सज्झाय-चेतन, मु. देवब्रह्म, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (चेतनजी का ध्यान), ८७९०८-३(#) For Private and Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय-चौपटखेल, आ. रत्नसागरसूरि, पुहि., गा. २३, पद्य, मूपु., (प्रथम अशुभ मल झाटिके), ८७२०६(#$), ८९०८०-२(-) औपदेशिक सज्झाय-जिनवाणी, पुहिं., गा. ६, पद्य, मपू., (को को नही तारे जिण), ८५८८३-३ औपदेशिक सज्झाय-जीव, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सजी घरबार सारु मिथ्य), ८६४५९-२, ८९१९४ औपदेशिक सज्झाय-जीव, मा.गु., पद्य, म्पू., (जीव तुं सिद्धने संभा), ८६५२६(+$) औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, ऋ. रत्न, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवरनी वाणी रे), ८७९४३ औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुण चेतन सुगर घणाजी), ८८८४३-१ औपदेशिक सज्झाय-जीवमाया, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (गुर परमातम पाय लागु), ८५७६८-२(#) औपदेशिक सज्झाय-जीवशिक्षा, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (बापडला रे जीवडला), ८७५६२-२(#) औपदेशिक सज्झाय- जीवशिक्षा, मा.गु., गा. १०, पद्य, पू., (गूजरनो भव मे कियो), ८८५४९-१ औपदेशिक सज्झाय-जीवशिखामण, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जोने तु पाटण जेवां), ८६४५९-१ औपदेशिक सज्झाय-जीवोपदेश, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ३५, पद्य, स्था., (जीवा तु तो भोला रे), ८७१०८-२ औपदेशिक सज्झाय-जोबन अस्थिर, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (जोबनीयानी मोजो फोजो), ८७८३४-३ औपदेशिक सज्झाय-ज्ञान, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सातमो ग्यांन तणो पद), ८७७५३-८(+) औपदेशिक सज्झाय-ज्ञान चर्चा, रा., गा. २४, पद्य, श्वे., (ग्यानि ग्यानसू देखले), ८७५७४ औपदेशिक सज्झाय-तत्त्वज्ञान, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (प्रथम प्रणमी वीरजिण), ८७७३६-१ औपदेशिक सज्झाय-तमाक त्याग, मु. आणंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, मप., (प्रीतम सेती विनवे),८७४३७, ८७१३६-२(5) औपदेशिक सज्झाय-तृष्णा, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (क्रोध मान मद मच्छर), ८६०७२ औपदेशिक सज्झाय-तृष्णापरिहार, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (तिसना तुरणी हेतु), ८७१५४-१(-) औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मु. हीरालाल, रा., गा. १३, वि. १९४४, पद्य, स्था., (मारी दयामाता थाने), ८९३१९-१(+) औपदेशिक सज्झाय-दांत जीभ, मु. वेलजी, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (दात कहे सुण जीभ म कर), ८७९९४-२(-2) औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मपू., (एक घर घोडा हाथीया जी), ८७८५१-१(+), ८९०३५-१(+), ८६०३९-१, ८७७६९,८७३२६-२(-) । औपदेशिक सज्झाय-दानविषये, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूप., (समरु सरस्वति सामणीजी), ८८०१६-१ औपदेशिक सज्झाय-दीवा, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १५, पद्य, मूपू., (दस धारो दिवो बले ए), ८६२०९, ८६५६० औपदेशिक सज्झाय-दीवा, मा.गु., ढा. २, गा. ९, पद्य, भूपू., (दस द्वारे दिवो कह्यो), ८६००२, ८६३१४-१, ८७०२४ औपदेशिक सज्झाय-दर्मतिविषये, मा.गु., ढा. २, गा. १५, पद्य, मूपू., (दुरमतडी वेरण थई लीधो), ८८७११-१(+) औपदेशिक सज्झाय-धर्म, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (धरम वीना जुगमे रूलौ), ८९०७८-१ औपदेशिक सज्झाय-धर्मदलाली, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मपू., (दलाली इस जीवन कीधी), ८८७६६, ८६३८३-१(#$) औपदेशिक सज्झाय-धर्मध्यान, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (देख काल जुग की कनी), ८६४७७-३ औपदेशिक सज्झाय-धर्मप्रेरक संवाद, मा.गु., पद्य, श्वे., (आयो चले बाजार लोक कह), ८६७१८-२(६) औपदेशिक सज्झाय-धर्मफल, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १७, वि. १८६५, पद्य, श्वे., (दया रणशींगो वाजीओ रे), ८५८८४-२(2) औपदेशिक सज्झाय-नरकदःख वर्णन, मु. रिषजी, मा.गु., गा. ३१, पद्य, श्वे., (--), ८७६०९(+#) औपदेशिक सज्झाय-नरकदःख वर्णन सज्झाय, मा.गु., ढा. १, गा. १८, पद्य, मपू., (श्रीवीर जिणेसर भाखी), ८७६४४(+#) औपदेशिक सज्झाय-नरभव, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (प्रथम नरभव दोहलो रे), ८८८२५-२(+) औपदेशिक सज्झाय-नरभव, रा., गा. १४, पद्य, मपू., (पुरब सुकरत पुन करीने), ८८५८३-२(+) । औपदेशिक सज्झाय-नरभवरत्नचिंतामणि, मु. अभयराम, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आ भव रत्नचिंतामणी), ८६६१५-२(+६), ८७३६९-१(+-) औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (नवघाटी मे भटकता रे), ८७०७५-१(+) औपदेशिक सज्झाय- नश्वर काया, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (असुवथकी जीव उपनां), ८५७८०-५ For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ औपदेशिक सज्झाय-नाक, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (नाक कहै जुगमा हु वडो),८८६२१ औपदेशिक सज्झाय-नारी, मु. सुधनहर्ष पंडित, पुहि., गा. ११, पद्य, मूपू., (नर लघु नारी मोटी), ८७४८० औपदेशिक सज्झाय-नारी, पुहि., गा. १७, पद्य, श्वे., (मुरख के मन भावे नही), ८७३३१, ८७४६१-२ औपदेशिक सज्झाय-नारीत्याग, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (बेटी से विलुधो जुवो), ८६०८४(2) औपदेशिक सज्झाय-निंदक, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २८, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (नवरो माणस तो नंदक), ८६०७०-२ औपदेशिक सज्झाय-निंदक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अरीहंत सिद्धजी को रो), ८८५५८-२(#) औपदेशिक सज्झाय-निदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मप., (निंदा म करजो कोईनी), ८६०६९-२, ८७४०४-३ औपदेशिक सज्झाय-निदात्याग, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (गुण छे पुरा रे), ८७८७९, ८९३०६-२ औपदेशिक सज्झाय-निंदा परिहार, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (तीर्थंकर देवने कहोजी), ८६५०२-१ औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (एक काया दुजी कामनी), ८७४४८(+), ८७९१८-५(+), ८६४३४-२ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण कंता रे सिख), ८८८६७(+#), ८७२६१, ८८२०६ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (राजन हो राजन नाम), ८८६६५-४(+-६), ८९०५१-१(2) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. चोथमल ऋषि, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (सुगडा मानवी हो चतुरा), ८७०९५-२(+) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. चोथमल ऋषि, पुहिं., गा.७, वि. १९८१, पद्य, श्वे., (सोनारूपा मिट्टि तणे), ८७०९५-१(+) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, शंकर, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (सुण चतुर सुजाण परनार), ८६६०६-४(5) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीव वारु छु मोरा), ८६०९५-२ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (जीण प्रीत करी प्रनार), ८८६६५-२(+-) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, पुहिं., पद्य, श्वे., (मल्लां मको चढि मनार), ८८८०१-२() औपदेशिक सज्झाय-परिग्रह, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (परगरहनो छत पांचमोय), ८७४५९ औपदेशिक सज्झाय-परोपकार, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (हटवालो मै लै जसो जुग), ८८४०७ औपदेशिक सज्झाय-प्रहेलिका, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (एक बलीओ रे जग मुझ), ८६५१५ औपदेशिक सज्झाय-बादशाह प्रतिबोधन, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., गा. ७, पद्य, मपू., (या दुनिया फना फरमाए), ८७५६२-१(2) औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, रा., गा. २७, पद्य, मूपू., (कुणे बुढापा तेडीयो), ८९१७९(+) औपदेशिक सज्झाय-भयपच्चीसी, रा., गा. २१, पद्य, श्वे., (सासण नायक श्रीव्रधमा), ८७२०४(+) औपदेशिक सज्झाय-भविष्य विशे, मु. लब्धिविजय; मु. हेमविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (भविष्यमें लख्यु होय), ८६७८४ औपदेशिक सज्झाय-मनभमरा, मु. लाभविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भूल्यो मन भमरा तुं), ८८२९६(+) औपदेशिक सज्झाय-मनमांकड, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (मन मांकडलो आण न माने), ८९३००-१ औपदेशिक सज्झाय-मनवशीकरण, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मनाजी तुं तो जिन), ८८९३७-२ औपदेशिक सज्झाय-मनवशीकरण, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (मन मरकट वस कीजे रे), ८५८८३-६ औपदेशिक सज्झाय-मनस्थिरीकरण, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मन थिर करजो रे समकित), ८८११६ औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभल दुर्लभता, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मनुख जुवरा कोइ अनारज), ८७८३० औपदेशिक सज्झाय-मनुष्यभव, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (भवसागर में भटकत भटकत), ८८८१९-२ औपदेशिक सज्झाय-महावीरजिन को पूछे गये प्रश्न, मा.गु., पद्य, श्वे., (एक परसन पुछु रे), ८८२१६-२(5) औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.५, पद्य, मूप., (रे जीव मान न कीजीए), ८६८७६-२(+), ८६३४०-२, ८८५२५-२, ८८६००-२ औपदेशिक सज्झाय-मायाकपट, म. रतनचंद, मा.ग., गा. ११, पद्य, श्वे., (कडकपट कर माया मेली), ८९१२५-१(+),८५८६५-२(-) For Private and Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (समकितनु मुल जाणीये),८६८७६-३(+),८६३४०-३, ८८५२५-३,८८६००-३ औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (माया कीधी जीव कारमी), ८५६२७ औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, महमद, मा.ग., गा. ११, पद्य, जै., वै., अन्य, इतर, (भूलो ज्ञान भमरा कांई),८८८९०-४(+), ८६७९३-१, ८६९८१-३, ८७३९०-१(#) औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (माया कारिमी रे भूलो), ८९२१३-३ औपदेशिक सज्झाय- मिथ्याप्रदर्शन, मा.गु., पद्य, श्वे., (काल गयो जाण्यो भरतार), ८७४६५-३($) औपदेशिक सज्झाय-मुक्ति, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सम भूतेलथी उंचि इधकी), ८९१४० औपदेशिक सज्झाय-मृत्यु बाद की गति जानने के लक्षण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुझने देवता देवांगना), ८७४००-१(-) औपदेशिक सज्झाय-मोक्षनगर, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (मुगत नगर मारू सासरू), ८५८०२-१ औपदेशिक सज्झाय-मोक्षपद, मु. हरिदास, पुहि., पद्य, श्वे., (बिमल चित्त कर मित्त), ८५७६४-१ औपदेशिक सज्झाय-मोहपरिहार, मा.गु., गा. २०, पद्य, मपू., (जगमां जीवने मोटी), ८८६१७(+) औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपता त्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बापलडी रे जीभलडी तुं), ८६५५६-१(+) औपदेशिक सज्झाय-रहेंटीया, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रथम नमु मरूदेवी),८८२०२-२(#) औपदेशिक सज्झाय- रात्रिभोजन परिहार, मु. विशालसुंदर-शिष्य, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मप., (श्रीजिनवर वंदी चउवीस), ८७८३१(+) औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (तमे लक्षण जो जो लोभ), ८६८७६-४(+), ८६३४०-४, ८८६००-४, ८८५२५-४(६) औपदेशिक सज्झाय-वणजारा, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (पैलौ तो पैरो रैणि को), ८८९४६-२ औपदेशिक सज्झाय-वणजारा, पुहि., गा. ९, पद्य, पू., (वीणज करणकु आयाजी), ८८२९२-३ औपदेशिक सज्झाय-वणझारा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (नरभव नगर सोहामणु), ८५८९१-२(+) औपदेशिक सज्झाय-वधुदीक्षा, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (उत्तर दक्षणथी साधु), ८५७६६-२ औपदेशिक सज्झाय-वनमाली, मु. पद्मतिलक, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (काया रे वाडी कारमी), ८८८३२-२(#) औपदेशिक सज्झाय-वाणिया, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वाणीओ वणज करे छे रे), ८७८६६-१(#) औपदेशिक सज्झाय-विकथा, मा.गु., पद्य, मपू., (हारे मारे सरसति), ८६८५०-४(#$) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (परषदा आगे दिये मुनि), ८६३०१ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. कविदास, मा.गु., गा. १२, वि. १९३०, पद्य, मूप., (तुंने संसारसुख केम), ८५८३१(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहि., गा. ३५, पद्य, स्था., (मोह मिथ्यात की नींद), ८५७३९, ८७७२२(#) औपदेशिक सज्झाय- वैराग्य, क. दिन, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (सबसे रे मीठा बोलीइ), ८८४०५-२ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, महमद शाह, मा.गु., गा.७, पद्य, जै., मु., (गाफल बंदा नीदडली), ८६०६५-१, ८८१५९-३ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (धर्म करो रे प्राणीया), ८९२५२-२(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (नगरी खूब बनी छै जी), ८६३०९-३(+), ८७९४५-३(+), ८५७८०-२ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज की काल चलेसी रे), ८७७२८(+), ८५६४४-१ औपदेशिक सज्झाय- वैराग्य, मु. रामचंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (साथे रे माया नही चले), ८८३७७-३ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बुझ रे तुं बुझ प्राण), ८६४०४-३ औपदेशिक सज्झाय- वैराग्य, रा., गा. १२, पद्य, श्वे., (मात पिता वइन नै भाई), ८७४६१-३ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्यविषयक, मु. सुमतिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (एक मास पछी मास जाय), ८६७९२-२(+$) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य विषयक, पुहि., गा. १४, पद्य, श्वे., (रतन जडता का पिंजरा), ८७०८८-१(+#) औपदेशिक सज्झाय-शिष्य, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (गुरू का कह्या मान ले), ८६१६२-२(-) For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५२९ औपदेशिक सज्झाय-शीलगण, पुहि., पद्य, श्वे., (सोका मिल झठो कलंक), ८६०४०($) औपदेशिक सज्झाय-शीलधर्म, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, स्था., (सहु सरीखा नर नहीं), ८७७७६-१(+) औपदेशिक सज्झाय-शीलधर्म महिमा, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीनेमिसर जिनतणूजी), ८८५९८-२(#5) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. जिनसमुद्र, मा.ग., गा. ६, पद्य, मप., (अहो लाल सुंदर रूप सो), ८७८४२-१ औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. भेरूदास, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (म करि रसरंग पीया), ८६४१६-२ औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अनोपम शिखामण कही), ८५६३०(+) औपदेशिक सज्झाय-शीलव्रत, मु. पद्मतिलक शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (न सुइ निकझन नइ धनवंत), ८७५९७, ८७७६३ औपदेशिक सज्झाय-शीलव्रत, मु. पासचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वयरागइ मन लाईयइ इक), ८८६५८-१ औपदेशिक सज्झाय-शोक, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. २०, पद्य, श्वे., (विरूई सोक सगाई जोति), ८८२५०-२(+) औपदेशिक सज्झाय-श्रमणाचार, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (पग दीजै सिरखि तप), ८८१९२-२(#) औपदेशिक सज्झाय-श्रावक, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (दलहो नरभव पामवो जीव), ८५९६७-१(+) औपदेशिक सज्झाय-श्रावकधर्म, मा.गु., गा. १३, वि. १६३०, पद्य, मप., (सरसती सामणी करउ पसाय), ८७३७३-२(#) औपदेशिक सज्झाय-श्रावकाचार, मु. ललितसागर, पुहि.,मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (श्रावक जनम गमै छै रे), ८८१५६(+) औपदेशिक सज्झाय-श्राविकादोषनिवारण, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (बैठे साधु साध्वी), ८८५८३-१(+), ८८००४, ८६११४(-) औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ९, पद्य, मपू., (ओरन से रंग न्यारा), ८६५०७-४(+), ८७०४२-३($) औपदेशिक सज्झाय-संवर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (वीर जिणेसर गौतमने), ८६६८०(+), ८८११३(+), ८७०२०-१(२), ८९२२९(१), ८७७०४-२(६),८८६४१-१८) औपदेशिक सज्झाय-संसार असार, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (असाउत्तम जन्म तुम्ही), ८७८०९-२ औपदेशिक सज्झाय-संसार असार, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू, (कीत बल आवदा कीत बल), ८९१०५-१ औपदेशिक सज्झाय-संसारस्वरूप, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मप., (श्रीवीरने वीनवें), ८८६४८-१(+) औपदेशिक सज्झाय-सद्गुरु, ऋ. गंगाराम, मा.गु., गा. २०, वि. १९११, पद्य, श्वे., (श्रीगुरुदेव क्रिया), ८७८३३-१ औपदेशिक सज्झाय-समता, मु. चिदानंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (हो प्रीतमजी प्रीत की),८६५२०-२(+-) औपदेशिक सज्झाय-समता, मु. हेमविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (सहि गुरुचरण कमल नमी), ८८८९०-१(क) औपदेशिक सज्झाय-समय, मु. मनोहर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धध दीवस गमावीयो रे), ८८५३३-२ औपदेशिक सज्झाय-साधुगुण, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (चोरासी लख जोनमे रे), ८६६२६-१(२) औपदेशिक सज्झाय-साधुसंगति, मु. दया, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (साधूजी नगरी आया परा), ८७७०२(#) औपदेशिक सज्झाय-सासबहू, मा.गु., पद्य, श्वे., (सासु कहो वहु सांभलो), ८५८२९-२(+) औपदेशिक सज्झाय-सिंहछाली उदाहरणयुक्त, रा., ढा. २, गा. ५१, पद्य, श्वे., (एकण गाव वस एक पाली), ८७३६४(+-) औपदेशिक सज्झाय-सुकृत, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (सुकरत करणा वह सो कर), ८६८६८-५ औपदेशिक सज्झाय-सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूप., (सुगुण सनेही हो सांभल), ८६७५९-२(+#) औपदेशिक सज्झाय-हरियाली, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (सेठाणी नही खुले माल), ८७२५६-३(-) औपदेशिक सवैया, मु. चंपालाल, पुहि., सवै. १, पद्य, श्वे., (पत्थर को देव जान पूज), ८६६७३-३ औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ३६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसद्गुरु उपदेश), ८७३४४, ८७४२४ औपदेशिक सवैया, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, दि., (निरमल ग्यान के),८७४७९-३(+) औपदेशिक सवैया, ऋ. लालचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (दमडी रे काज दुनिया), ८९११६-१(-#$) औपदेशिक सवैया, श्राव. विनोदलाल, पुहि., सवै. ११, पद्य, मपू., (उजलभावको भेद उमेद सो), ८७२९०-५(2) औपदेशिक सवैया, मु. संग्रामदास, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (तेरो उपाये धरीयोइं), ८६८२५-२ औपदेशिक सवैया, क. सुंदर, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (जित झैन तहां फुनि), ८६४६९-३ । औपदेशिक सवैया, मु. सुंदर, पुहि., दोहा. ६, पद्य, श्वे., (जो दस वीस पची पचास), ८८८७७-१(+) For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३० देशी भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सवैया, मु. सुंदर, पुहिं., पद. ३, पद्य, श्वे., (नयण बिना नहीं दरपण), ८६७०२-२(+-2) औपदेशिक सवैया, पुहिं., दोहा. ७, पद्य, दि., (कंचन भंडार पाय रंजन), ८८९००-२ औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद्य, श्वे., (कुंजर को देख जैसे), ८६०५०(+$) । औपदेशिक सवैया, पुहिं., सवै.५, पद्य, मूपू., (ज्या की भवथिति घट गई), ८८०७१-३ औपदेशिक सवैया, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (नर राम विसार के काम), ८८४७७-११(+) औपदेशिक सवैया-१८ पापस्थानक, मा.गु., सवै. ४, पद्य, मप., (पाप अठारा सेवता बदे), ८६४१९-२(+) औपदेशिक सवैया-धर्मोपदेश, मार्कंड, मा.ग., पद्य, वै., इतर, (तज रे मन गाम गमारण), ८९१८३-३ औपदेशिक सवैया-मित्रलक्षण, दीनदरवेस, पुहिं., पद. १, पद्य, इतर, (मिसरी घोरे जुठ से), ८६७३२-३(#) औपदेशिक सवैया- शीलगुण, नान, पुहिं., सवै. २, पद्य, श्वे., (चंदबदन महा मृगलोचन), ८५७९२-४ औपदेशिक सवैया संग्रह, पुहिं., पद. ६, पद्य, मूपू., (सूर छिपें घन वादलथे), ८६७२७-२(+) औपदेशिक सवैया-स्त्री, पुहि., पद. १, पद्य, श्वे., (ग्यानी हु का ग्यान), ८६७६७-२ औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (उठी सवेरे सामायिक), ८५९३२-२(#) औपदेशिक हमची-जीवहितशिक्षा, मु. वर्धमान पंडित, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसती सामिण पाये नमी), ८७००६(+), ८७३८६(+), ८५९८९, ८८८०२-३ औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (कहेयो रे पंडित ते), ८६२८८-१(+) (२) औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दिसे जाणिइं ते चेतना), ८६२८८-१(+) औपदेशिक हरियाली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ते कुण नारी छइ जगि), ८७५६५-३(+) औपदेशिक हरियाली पद, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ते वण सरग नरग नही), ८६९४८-१ औपदेशिक हरियाली पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (एक पुरख छि सिहिजि), ८६९४८-२ औपदेशिक हरियाली पद, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., इतर, (सुकडि लगत फुल मुल), ८६९४८-४ औपदेशिक हरीयाली, पं. वीरविजय, मा.ग., गा. ९, पद्य, मप., (चेतन चेतो चतुर), ८६५४६ (२) औपदेशिक हरीयाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे चेतन चतुर नाच), ८६५४६ औपदेशिक होली, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (मास फागण आयो जाणी मत),८७५२५(2) औषध संग्रह, लीलाचंद, पुहिं., गद्य, वै., इतर, (बावलरी गंग रात्र भीज), ८८२५७-३(#) औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (लंग टा१ जाईफल टा२), ८७०९९-२(+), ८६६२७-२, ८७७५४-३, ८७९४९-३(#) कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहि., ढा. २७, गा. ४३, पद्य, श्वे., (गाफल मत रहे रे मेरी), ८५९६०(+) कक्काबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (कका करमनी वात करी), ८६१८४-१ कक्काबत्रीसी, मु. महिमा, मा.गु., गा. ४०, वि. १७२५, पद्य, भूपू., (सुप्रसन्न होयज्यो), ८७१४३-१ कक्काबत्रीसी, पुहिं., गा. ३३, पद्य, श्वे., (कका कर कुछ काज धर्म), ८८६५२(+), ८७७०८ । कनकध्वजराजा रास, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ६४, वि. १९२३, पद्य, मूपू., (अजोध्या नगरी तणो सरे), ८६०९४-१(+) कनीरामजीगुरुगुण प्रभाती, मु. नथमल ऋषि, पुहि., गा.८, पद्य, स्था., (पूज्य कनीरामजीरो जाप), ८५७४५-१(#) कनीराम स्तवन, मु. नथमल ऋषि, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (पूज्य नाम तणी महिमा), ८५७४५-२(#) कमलावतीराणी सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (जी हो ईषुकारपुर), ८८१६८-२($) कमलावतीरानी इक्षकारराजा भृगुपुरोहित सज्झाय, मा.गु., गा. ३४, पद्य, म्पू., (महिला में बैठी राणी), ८७२४३(+s), ८८५०३-१(#) कमलावतीसती सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., गा. ९, वि. १९६०, पद्य, श्वे., (धन पुरुस जो संजम), ८८३७८-१(+), ८७२३० कमलावतीसती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, पुहि., गा. २९, पद्य, श्वे., (महिला में बेठी राणी), ८८१९४-१(+$), ८५७८१(-) कमलावतीसती सज्झाय, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., गा. १६, पद्य, पू., (कहे राणी कमलावती), ८७४६८ कयवन्ना सज्झाय-दान विषये, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (राजगरी नगरी भली सेठ), ८८६१२-२(+-) For Private and Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (चंपानगरी अतिभली हुँ), ८७६७१-२(+), ८६४०४-१, ८७००८-४ करपल्लवी, मा.गु., गद्य, श्वे., (कके कमल खखे खडग), ८८०८१-४ कर्ण दानप्रमाण पद, मा.गु., गा. १, पद्य, मप., (षट सरसव इक जव जव),८८९१३-४ कर्मउदयफल सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (कर्म उदै हिवै आवीया), ८८७१४-१(-) कर्मग्रंथ-२ कर्मबंध-उदय-उदीरणा-सत्तायंत्र, मा.गु., को., श्वे., (--), ८७१३५(+#) कर्मछत्तीसी, पुहिं., गा. ३७, पद्य, श्वे., (परम निरंजन परमगुरु), ८७४७९-२(+),८८६२६ कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६८, पद्य, मपू., (कर्म थकी छूटे नही), ८७४७०-२ कर्मप्रकृति सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मप., (आठे दी कर्मा तणी एक), ८७७९९(#) कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (देवदाणव तीर्थंकर), ८५६७३-३(#), ८५६७८-१(+#), ८८६६४(+), ८६०१६, ८६२३२, ८६९३४-२, ८९०८५, ८९२९२, ८९२३५-२,८६२४६-१(#) कर्म सज्झाय, मु. दान, मा.गु., गा. ८, पद्य, पू., (सुखदुःख सरज्यां पामी), ८७१२२-६(+#), ८७९३२-२ कर्म सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (करम तणी गति न्यारी),८६८१९-२ कर्महींडोल सज्झाय, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कर्म हीडोल नामाई), ८८९९१(+) कलावतीसती चौढालियो, मु. रंग, मा.गु., ढा. ४, गा. ६२, वि. १८३५, पद्य, स्था., (मालवदेश मनोहरु तिहां), ८६२७७(+) कलावतीसती चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. १६, वि. १८३०, पद्य, श्वे., (जुगमंद्र जिन जगतगुरु), ८६३८६(+#) कलावतीसती सज्झाय, म्. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ८८१८५(#$) कलावतीसती सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (नयरी कोसंबीनो राजा), ८५६६४(+) कलियुग का प्यार, व्यासदास, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, इतर, (सांवरियो मोटी पारै), ८८८६०-३ कलियुग सज्झाय, मु. कांति, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (श्रीसरस्वति समरु सदा), ८६२०७ कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (सरस्वतीस्वामीनी पाय), ८६८१९-१(5) कलियग सज्झाय, मु. रामचंद, रा., गा.१०, पद्य, मप., (हलाहल कलजुग चल आयो), ८६५६४-२ कवित्त संग्रह-शिवभक्ति, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (संकरदास गादीमरद), ८९१६६-१(६) काकशकुन विचार, मा.गु., गद्य, जै., इतर?, (विहाणामांही उगती दिस), ८७१६५-४($) कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (पारसनाथ प्रणमुं सदा), ८८८७२(+$), ८७३६३ कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १८८६, पद्य, मूपू., (एक दिन इंद्रे), ८६९८३-२, ८९०११ कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, मा.गु., गद्य, म्पू., (जीव १ गई २ इंदिय ३), ८७३७७ कार्तिकसेठ पंचढालिया, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., ढा. ५, गा. ९१, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिध साधु सर्व), ८७१५८-१(+$), ८८६१२-१(+-) कालचक्र-१२ आरा यंत्र, मा.गु., यं., म्पू., (अथावसर्पिणीनो १ आरो), ८६३०४ कालचक्र मान विवरण, मा.गु., गद्य, मपू., (बाद्रपद्गल प्राव्रत),८७६२१(-) । कालिकाचार्य सभा समक्ष कल्पवाचन प्रसंगवर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (आनंदपुर नगरने विषे), ८६०९१-२ कालिकामाता स्तोत्र, गिरधारी, मा.गु., गा. ८, पद्य, वै., (करी सेवना ताहरी मात), ८८१४५-१ काव्य/दहा/कवित्त/पद्य संग्रह, मा.गु., गा. ५०, पद्य, इतर?, (मृग मरे रस कान नैण), ८८२२६-५ कीर्तिध्वजराजा ढाल, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ७४, वि. १९३१, पद्य, श्वे., (श्रीआदि जिनेश्वरू), ८६३१८(+), ८६४०९-१(+), ८६७७१(+),८५८७५ कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, रा., ढा. ७, पद्य, श्वे., (राय दसरथ पेली हवो), ८७५०३ कथजिन गीत, मु. विनयचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, स्पू., (बहु दिवसांथी पामियउ), ८८८९८-३(+) कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूप., (कुंथुजिन मनडुं किमहि), ८५८७२-२ For Private and Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३२ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ कुंथुजिन स्तवन, आ, जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू, (जिन तिम हुं आवी चढयो), ८७४१६-५(*) कुंथुजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कुंथु जिणेसर जाणज्यो), ८८१६७-१ कुंथुजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कुंथु जिणंद करुणा कर), ८६११२ कुगुरु लावणी, मु. जिनदास, पुहिं. गा. ५. वि. १७वी, पद्य, मूपू, (तजु तजु में उन), ८५६४८-२, ८६३२४-२(-) " कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (शुद्ध संवेगी कीरिया), ८८१४८-२(+) कुमतिखंडन सज्झाय, मु.] मणिविजय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (ॐकार आद अनंता अरिहंत), ८५७१३ कुमतिसुमति सज्झाय, मु. लालविनोद, पुहिं, गा. ५, पद्य, वे. (साधो छोडो कुमति), ८५८८३-७ ', कुशालचंदगुरुगुण गीत, मु. भगवानदास ऋषि, मा.गु., गा. ४१, वि. १९११, पद्य, श्वे., (अविनासी कासि धणी), ८६७८८ (+#) कृपणपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २०, वि. १८५४, पद्य, स्था., (निठ निठ तै नरभव पायो), ८७४१२ कृपण आविका लक्षण, मा.गु., गद्य, थे. (कृपणनीआ साधु बोहरवा), ८६००३-४ " कृष्ण गीत, हीरालाल, पुहिं. गा. १६, पद्य, वै. (जल जमना तट जावे रे ), ८९३१९-२(*) " , कृष्ण झुंगडली पद, क. नरसिंह महेता, मा.गु., गा. ६, पद्य, वै., (ओलीया दोलीया माणक), ८८७११-२(*) कृष्णबलराम सज्झाय, पुहिं., गा. २२, पद्य, मूपू., (हलधर हरवे हुं चालीया), ८८९९९-२ कृष्ण बारमासा, मु. अखमल, पुहिं. गा. १४, पद्य, जै. वै., (गिरधर मुरलीबाज कीसन), ८७०३१-१ कृष्णभक्ति पद, क. नरसिंह महेता, पुहिं. गा. ९, पद्य, वै., (जी मात जसोदा जलभर ८६८०८-१(-) कृष्णभक्ति पद, सूरदास, मा.गु., गा. ३, पद्य, वै., (नट नारायण गाओ नागरीऐ), ८८८०३-३(०) कृष्णभक्ति पद, सूरदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., (मेरो मन मान्यो, ८९२४२ - २(+) कृष्णभक्ति पद, मा.गु., गा. १, पद्य, वै., (काल मथुरा मांह्यवी, ८७०११-२(+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " कृष्णमहाराजा सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु. गा. १०, पद्य, भूपू (नगरी द्वारिकामा नेम), ८९२५३ कृष्णरुक्मणी गीत, मीराबाई, पुहिं., गा. ७, पद्य, वै., (रूखमणी चलउ हो जनमभूम), ८७६१५-२ कृष्णरुक्मणी सज्झाय, मु. धनदास, रा. गा. १२, पद्य, थे. (रुकमण घरसुं निसरी जख), ८७५६१-१८) कृष्णरुक्मिणी सज्झाय, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे., (सारदा सतीना वीनवुं), ८८७५९(+) केशीगौतमगणधर गहुंली, मु. जीवणविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जी हो श्रावस्तीनगरी), ८६२९३ केशीगौतमगणधर गहुली, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, (सावथी उद्यानमा रे), ८७७४०-३ केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मृपू., (ए दोय गणधर प्रणमीये), ८६०९७, ८६७१०, ८६९८७, ८७२३४ क्रिया विधि अविधि विचार, मा.गु., गद्य, खे, (कहे छे जे क्रिया), ८६८५१-२(क क्रोधपचीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (भवियण हो भवियण करोध), ८६०७०-१ क्रोधपरिहार सज्झाय, हसनबेग, पुहिं., गा. ४, पद्य, जै., मु., (कोइ क्रोध मत करोजी), ८५७६३-२ क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, पंडित भावसागर, मा.गु., डा. ४, गा. ३२, पद्य, मूपू., (क्रोध न करीये भोला), ८८६४४-२(७), ८९०४८-१(#), ८८५०८-१ ($) क्षपकश्रेणि उपशमश्रेणि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अण४ जीव जीवारि आठमा ), ८९००८-३ " क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, म्पू, (आदर जीव क्षमागुण), ८६४९८ (+), ८७६५६(१), ८८८१०(१), ८५७२०, ८६११५, ८६१४५, ८७४७०-१, ८७९०४, ८८४२३, ८९१५५, ८७८६९(४७) ८९१७८-१(७) क्षेत्रपाल निसानी, मु. फतेचंद, मा.गु., पद्य, भूपू गोरा मतवाला भेरु), ८८१४३-१(क) खंधकमुनि चौढालिया, मु. केवल, मा.गु., गा. ४६, पद्य, खे, (आदि सिद्ध नवनार गुर). ८६१२० खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा. दा. ४, वि. १८९१, पद्य, स्था. (नमुं वीर सासनधणीजी), ८८१७१ " " For Private and Personal Use Only " खंधकमुनि चौढालिया, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ८८, वि. १९३९, पद्य, श्वे. (प्रणमु जग नायक सदा), ८६७६८-२ खंधकमुनि चौडालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा. डा. ४, वि. १८५३, पद्य, खे, (मुनीवर सासण धणीजी), ८६४१७ . " खंधकमुनि चौढालिया, रा. डा. ४. वि. १८११, पद्य, थे. ( नमूं वीर शासनधणी जी), ८६४९७(६) " יי Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५३३ खंधकमुनि चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, पद्य, मूपू., (सावत्थी नगरी सोहामणी), ८५६५८(+#), ८६५२५(#), ८८२१३(2) खंधकमुनि चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ८, पद्य, स्था., (वध परिसो वर्णवु), ८७८३२-३($) खंधकमुनि सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., ढा. ४, वि. १७३२, पद्य, श्वे., (तिर्थंकर चरणे नमि), ८६०६६ खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २०, पद्य, मूप., (नमो नमो खंधक महामुनि), ८५८३२-१, ८६३८०, ८६७०४,८८७०१-२,८९२६७ खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १२, पद्य, मूपू., (राय सेवक कहे साधुने), ८७०६४ खंधकमनि सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. ४३, पद्य, मपू., (वैर न करज्यो जीवसं), ८८७५४(+) खंधकमुनि सज्झाय, रा., गा. ३०, पद्य, मपू., (श्रीसीमंधर पाय नमुजी), ८५७१५(६) खरतरगच्छ गच्छाधिपति पत्रलेखन पद्धति, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वस्तिश्रीपार्श्व), ८७५९४(+) खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं अरिहंतने), ८८७९३(+), ८९२४५-२, ८७९१७(#) खामणा सज्झाय, जै.क. समरो, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (अरिहंतजीने खामणाजी), ८८८६९-३(#) गंगकवि पद, गंग, मा.गु., गा. १, पद्य, इतर, (गंग प्रवाह वहै अजी), ८८१७९-४ गंगादि नदी परिवार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (गंगा नदीनओ परिवार सह), ८८६५६-३ गजल मुसलमानी-औपदशिक, मा.गु., पद्य, जै., मु., (टूक लोटत कम चीपडी), ८६५६४-७ गजसुकुमालमुनि चौढालियो, ग. आनंदनिधान, मा.गु., ढा. ४, गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीगयसुकमाल साधु हु), ८९२५२-१(+) गजसुकुमालमुनि चौपाई, मु. माधव, मा.गु., ढा. १५, पद्य, मूपू., (रिठनेमि नामे हुवा), ८७६४५ गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., गा. ९१, पद्य, पू., (देस सोरठ द्वारापुरी), ८७८५३(+), ८८५७८ गजसुकुमालमुनि लावणी, मु. तीलोक ऋषि, मा.गु., गा. ३८, वि. १९३६, पद्य, श्वे., (परमपती परमेसर समरो), ८६१२६(+) गजसकमालमुनि सज्झाय, मु. गुणनिधि, मा.गु., गा. १०, वि. १९२५, पद्य, मपू., (द्वारिकानगरि समोसर), ८६६३२(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २३, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (गजसुखमाल देवकीनंदन), ८५७६९, ८७१९४, ८९२५६-१, ८९१८७(5) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. जेठमल, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (वंदु गजसुकमाल महामुन), ८९१०५-२ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. ३८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (द्वारिकानगरी ऋद्धि), ८५७९९-२(+), ८६८८८-१(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. दोलत, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (खिमा करी मुनराई), ८६५६४-५ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. न्याय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (एक द्वारकानगरी राजे), ८८९०५ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. फतेचंद, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (श्रीजिन सीवसुखदायक), ८८३२३(-) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, श्राव. भगवानदास, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (श्रीजिन आया हो सोरठ), ८६७६४(#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (द्वारिकानगरी अति भली), ८७४५८-२ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. मकनमोहन, मा.गु., ढा. २, गा. ४३, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीयाजी), ८७२२३ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीजिन आया हो सोरठ), ८६२०१-८(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रत्नचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (देवकीनंद शिरोमणि), ८६३२४-१(-) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (नयरी द्वारामती जाणिय), ८७९३३-३(+), ८७५३७-२(2) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सोरठ देश मझार), ८९१७४-२, ८५९०५(-2), ८५९४२(-5) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., ढा. १०, गा. ७५, पद्य, श्वे., (अरिष्टनेमि नामै हुआ), ८५९४८(4) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४५, पद्य, श्वे., (वली इम कहे कुमार आणी), ८९०९१ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (वाणी श्रीजिनराजतणी), ८७२७२(+#) गजसकुमालमुनि होली, मु. लालजी, मा.गु., गा. ११, वि. १८८३, पद्य, श्वे., (सील संजमतणी करल्यौ), ८६२१६(-) गणधरवाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरदेव केवल), ८९०१२-१(+s) गणधरवाद स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ४८, पद्य, मूपू., (सो सुत त्रिसलादेवी), ८८६०२ For Private and Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३४ www.kobatirth.org भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ गणधर विवरण, मा.गु., को., मूपू., (गौतम अगनीभूति), ८५९४५-२ (+), ८६१७७-६(+), ८६९७४-३(+) गर्भपरावर्तन विचार-वैदिक शास्त्र साक्षी व मांधाता कथा युक्त, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ८७४०२-१ (+) गर्भस्थजीव भावना व गति विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (ओ जीव मरनै समद्रष्टी), ८७४००-३(-) गर्भस्थ शिशु लिंगज्ञान श्लोक, मा.गु., गा. १, पद्य, वै., इतर (नखद्वयं गुरवणि), ८७५८०-२ " (२) गर्भस्थशिशु लिंगज्ञान श्लोक - बालावबोद, गु., प्रा., गद्य, वै., इतर, (नख कही जे विसति कहु), ८७५८०-२ गिरनारतीर्थ पद, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (शिखर गिरनार जाना हो), ८७६२३-४(+#) 1 " गिरनारतीर्थोद्धार रास, पंडित नवसुंदर, मा.गु., ढा. १३ गा. १८४, पद्य, मूपु (सवल वासव सयल बासव), ८७६६३(३) गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (सारो सोरठ देश देखाओ), ८८२७४-२ गुण अवगुण बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, म्पू (पंडित जे ते न करे), ८५७०८-४ गुणकरंडक गुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २८, गा. १६०३, वि. १७५७, पद्य, खे, संपति सुखदायक सरस), ८६४४२ (६) " गुणपालऋषि सज्झाय, क. कमलविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू., (भगवती भारति भारती रे) ८९२०५ १ गुणसागरमुनि के नाम पत्र, सा. जीजीबाई, पुहिं., गा. २८, पद्य, श्वे., (स्वस्तिश्री प्रभु), ८५९५५-१ गुणस्थानक स्तुति, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपु. (पहेलुं मिध्यात्व), ८६३६०-२ गुरु आगमन गहुंली, मु. सोमचंद्र, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सई मोरी चालो सतगुरु), ८७९०६ (+), ८७९०३ गुरुगुण गहुली, मु. आसकरण, मा.गु., गा. १०. वि. १८४०, पद्य, थे. (हाथ जोड विनती करु), ८७५४८-२-१ गुरुगुण गहुंली, पं. ऋद्धिसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुण साहेली सद्गुरु), ८७३४५ गुरुगुण गहुली, मु. कीर्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (सोहम गुरु सम गुरु), ८६०७४ गुरुगुण गहुली, मु. खांतिविजय, मा.गु गा. ४, पद्य, मूपू. (परमानंद पद साधता रे), ८६३८२-२(०) गुरुगुण गहुंली, मु. खांतिविजय, मा.गु. गा. १०, पद्य, म्पू, (सही मोरी चालो सहगुरु), ८६३८२-१ (*) " ', Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुगुण हुंली, मु. खेमाविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी रे आजुनो दीन), ८६१२८-२(#) गुरुगुण गहुली, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू.. (हूं तो हरख धरीने), ८६७९४ गुरुगुण गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (रूडीने रढियाली रे), ८८६३९-१ गुरुगुण गहुली, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपु. ( श्रीश्रीसुरत मझार आज), ८७०३३-२ गुरुगुण गहुंली, जै.क. भूधर, पुहिं. गा. १३, पद्य, दि. ? (ते गुरु मेरे उर बसे) ८६२४५), ८६८३०+) गुरुगुण गहुंली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गुहली करो गुरु आगले), ८७६८५-२ गुरुगुण गहुंली, मु. राम, मा.गु., गा. १३, पद्य, वे., (सदगुरुं मुख चंदचकोर ), ८५९२४-१ . ', गुरुगुण गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चरण कमल सुसोभता व्रत), ८८०३२-२ गुरुगुण गहुली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपु. ( आतमरुची गुणधारणी रे), ८५९२४-२ ', गुरुगुण गहुली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. गुरुगुण गहुली, मा.गु., गा. ५, पद्य, क्षे. गुरुगुण गहुली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू. गुरुगुण गीत, मु. कुसालचंद, मा.गु., गा. ७, वि. १८८८, पद्य, श्वे., ( पुन्यजोगे सतगुरु मिल), ८८२७९-१, ८८३८५-१(#) गुरुगुण पद, मु. केसरचंद ऋषि, रा. गा. ९, पद्य, ., (रंगमहिलरी गोठ्यां थे), ८५८१९-३ गुरुगुण पद, वा. शिवचंद, मा.गु., गा. २७, वि. १८४७, पद्य, मूपू., ( सारद माय नमी करी), ८६०५८ (+) गुरुगुण भास, मु. कर्मचंद्र, मा.गु. गा. ९. वि. १७९२, पद्य, भूपू (श्रीसूरीसर पर नमी), ८७९५८-२(*) गुरुगुण भास, मु. केसर, मा.गु. गा. ९. वि. १८८१, पद्य म्पू. (--), ८५८१९-१(७) गुरुगुण भास, आ. देवेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सजनी श्रीगुरुपदपंकज), ८६४६३-२ गुरुगुण भास, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (गछनायक कहे वेगे), ८६४६३-१ गुरुगुण भास, मा.गु., गा. ५, पच, भूपू., (सदगुरु हे सदगुरु), ८७७४०५ " (कुंकुम चंदन छडो रे), ८७७४०-२ (चरणकरण करि सोभता), ८६७०५ (चालो सहेली बंदवा), ८८३६०-२ For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ गुरुगुण सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., गा. १२, वि. १८७५, पद्य, मूपू., (--), ८८४८०-१(+$) गुरुगुण सज्झाय, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ७, वि. १८०४, पद्य, स्पू., (मुझने वाला लागे रे), ८८४८०-२(+) गुरुगुण सज्झाय, मु. दयाचंद ऋषि, रा., गा. १२, वि. १९०३, पद्य, श्वे., (सतगुर ग्यानी दिपता), ८८०१६-३ गुरुगुण सज्झाय, पं. भूपविजय, मा.गु., गा. १६, वि. १८५०, पद्य, मूपू., (प्रणमि श्रीसारदा सार), ८७९६५ गुरुगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (सामीजी साहेब सुणो), ८७७६० गुरुगुण सज्झाय, मु. विजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सकल सूरीसू गुणेकरी), ८७२६४-२ गुरुगुण सज्झाय, पुहि., गा. २५, पद्य, मपू., (आगइ कुगुरू अनंता), ८८२७९-२ गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आज म्हारै आनंद रंग), ८६७९९-२(+) गुरुगुण स्तवन, मु. रंग, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (लोक अलोक भाव सब जगके), ८८२५४-६ गुरुगुण स्तुति, मु. कुशालचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (पांच महाव्रत पालताजी), ८७२०५-३(+) गुरुगण स्तुति, मु. हीरालाल ऋषि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (गरुजी माने मृगती को), ८८२८६-२(#) गुरुणीगुण गीत, रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (अगरु जीव गरु आंगणै), ८७५५० गुरुणीगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २१, पद्य, श्वे., (सुणो आर्याजी अरदास), ८७३६१, ८७५७८ गुरुणीगुण सज्झाय, पुहि., गा. १३, पद्य, श्वे., (ऐसी गुरणीरा गुण गाय), ८७०७५-५(+) गुरुपद पूजा-अष्टप्रकारी, उपा. सुजस, मा.गु., पूजा. ८, पद्य, मूपू., (वर छतिस गुणायुत जानि), ८६६९२(+) गुरुराज निसानी, मु. प्रतापविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (लंबोदरचरणे लगी शारद),८८९६६ गुरुविहार भास, पंन्या. खिमाविजय , मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (आज रहो मनमोहन तुमने), ८७६५१-१ गुरुविहारविनती गीत, मा.गु., गा. २०, पद्य, मप., (श्रीशंखेश्वर पाये नम), ८६१४०(+), ८६५६८, ८६९०७-१ गुरुशिष्य कथन निसानी, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (इण संसार समुद्र को), ८९२८०-१(+) गुरुशिष्य प्रश्नोत्तर संवाद, मा.गु., प्रश्न. १८, गद्य, श्वे., (देखी रे चेला विणा), ८६८८५-१ गुरुशिष्य संवाद पद, पुहिं., पद्य, श्वे., (चेलाके चीता गुरांजी), ८५७४३-१ गरुसंगति पद, रा., गा. १८, पद्य, श्वे., (पन जोगे गुरु मीलीया),८५९१६-२(+-) गूढार्थ दोहा संग्रह, पुहि., गा. ९, पद्य, जै., इतर?, (गिरधीकंतजतास तिलक), ८७४१६-३(+) गृहस्थ नामावली, मा.गु., गद्य, जै., वै., इतर, (कुबेरदास नरसीदास सा), ८७७७०-३(-) गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (उद्गम दोष श्रावकथी), ८७६०१(#) गोचरी ४७ दोष, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (१ अहाकमे १ उपवा० वरा), ८६१५८, ८८६९२-१(#) गोपीचंदराजा ढाल, पुहि., ढा. ७, पद्य, श्वे., (ऊंची सीतोमडी रे गोपी), ८७७०७ गौतमगणधर पद, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (वंदं वीर जिणेसर सार), ८५६७३-२(+#) गौतमगणधर सज्झाय, मा.ग., गा. १८, पद्य, श्वे., (भगवंत वाणी वागरी जिण),८९१८२-३ गौतमगणधर स्तवन, ग. राजेंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (अजीया गौतम गणधर), ८६९६९-१ गौतमपृच्छा, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीगौतमस्वामी हाथ), ८८७७४-२(+$) गौतमपृच्छा १४ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीभगवंत श्रीमहावीर), ८८७७४-१(+) गौतमपृच्छा चौपाई, मु. नयरंग, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मपू., (वीरजिणंद तणा पय वंदि), ८७०९०(+), ८९१६८ गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मपू., (वीर विमल केवल तूंणह), ८८०४७(+) गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (गोतमस्वामी पूछा करई), ८६९८८(+) गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामी पृच्छा), ८७६१५-१, ८६३०५(2) गौतमस्वामी अष्टक, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पहिलो गणधर वीरनो रे), ८६४६२-१(+), ८८२०१(१) गौतमस्वामी गहुँली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी रे कामनी कहे सुण), ८७०७० गौतमस्वामी गहुँली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हस्तियाम वनखंड मझारि), ८८३९४(+) गौतमस्वामी गहंली, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (बिंहनी अपापानयरी), ८६६१७-१ For Private and Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ गौतमस्वामी गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, वि. १७वी, पद्य, मप., (गौतम नाम जपो परभाते), ८५८४५-२ गौतमस्वामी गुणमाला, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (गोतम दिख्या लिनी), ८९०७५-३(+) गौतमस्वामी चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १, वि. १८वी, पद्य, मूप., (नमो गणधर नमो गणधर), ८७०३०-२ गौतमस्वामी चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (बिरुद धरी सर्वज्ञनु), ८७७४७(#) गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मात पृथ्वी सुत प्रात), ८६४६२-२(+) गौतमस्वामी छंद, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (इंद्रभूति गौतमस्वामी), ८५६९७(#) गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष), ८५७३१-२(+), ८५८०२-२, ८७३६८-२,८९२७२-२,८७१९०-२(#), ८९०७४(2) गौतमस्वामी दीपालिका रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. १३, गा. ७६, पद्य, मप., (इंद्रभूति गौतम भणई), ८७५९८-१(+) गौतमस्वामी पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (गौतम गणधर नमीये हो), ८८५२१-४(+), ८८८७१-१ गौतमस्वामी प्रायश्चित्त, मा.गु., गद्य, मूपू., (रात रही प्रभाते पाछा), ८९०३४-१ गौतमस्वामी रास, आ. जयरंगसूरि, मा.गु., गा. ६१, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल), ८९०४७-१(#$) गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १४, वि. १८३४, पद्य, स्था., (गुण गाउ गौतम तणा), ८५८२४, ८७६२८-१ गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६६, पद्य, मपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ८६५४१-१(#), ८६९०४(+), ८८०८९(+), ८८४५३(#) गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूप., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ८८३५९(+), ८७५६४, ८७११७(#$) गौतमस्वामी रास, श्राव. शांतिदास, मा.गु., गा. ६६, वि. १७३२, पद्य, मप., (सरस वचन दायक सरसती), ८७४२६ गौतमस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीगौतमस्वामी पूछा), ८६२९९(+#), ८८३४९-१(+) गौतमस्वामी स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मपू., (वीर मधुरी वाणी भाखे), ८७०३०-५ गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (प्रभाते गोतम प्रणमी), ८८७५८-३(#) गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पहेलो गणधर वीरनो रे), ८५७१७-२ गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूप., (इंद्रभूति अनुपम गुण), ८७०३०-३ गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (गौतम नाम प्रभात जपो), ८६१०६-२(+) घंटाकर्णयंत्र महिमा, मा.गु., गद्य, मपू., (दिन प्रत्ये वार ३ तथ), ८६३५८-१(+) घनीकृत वृत्त लोकरज्जुमान विचार, रा., गद्य, मूपू., (ऊवलोक में २८), ८८६७०-२ घासीरामजी गीत, रा., ढा. १, गा. १३, वि. १९३०, पद्य, स्था., (लाडपुरोसर सुवावणो), ८७७६१-१(-) घासीराम संलेखना सज्झाय, मु. कनीराम, मा.गु., गा. ९, वि. १९१२, पद्य, स्था., (पूज घासीरामजी भारी), ८७२२८-१(#) चंदनबालासती गीत, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.३६, पद्य, मप., (कांसांबिते नगरी पधार), ८७०६८ चंदनबालासती चौपाई, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. १२८, पद्य, मपू., (वीरजिणवर पाय पणमेवि), ८७४३४(+$) चंदनबालासती वेल, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मप., (कौशंबी नयरी पधारीया), ८८४४३ चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (बालकुंआरी चंदनबाला), ८८०८४, ८८२६० चंदनबालासती सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (धन धन दिहाडो आजुनो), ८८८६१-१(2) चंदनबालासती सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (आज हमारे आंगणडे हुं), ८९१९९-३(+#) चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, पुहिं., अ. ५, गा. १९९, पद्य, मपू., (स्वस्ति श्रीविक्रम), ८७९९१-१(2) चंद्रगुप्त १६ स्वप्न सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, पू., (श्रीगुरुपद प्रणमी), ८७०११-१(+$) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (पाडलीपुर नामे नगर), ८५९६७-४(+) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ४०, पद्य, स्था., (पाडलीपुर नामे नगर), ८७१६३-१(+-), ८७३४७-१(+), ८६०६२,८७२१०,८८०७९,८५८५३-१(-) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. समयसुंदर, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (पाडलीपुरनामे नगर चंद), ८७२१७-१ For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५३७ चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि एम नमुं), ८८६७६(+) चंद्रप्रभजिन पद, मा.गु., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (चंदलिया संदेशो रे), ८७८७८-१ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभु चितथी), ८८९३२-१(#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. कुशालचंद शिष्य, मा.गु., गा. ११, वि. १९०३, पद्य, श्वे., (चंद्राप्रभुजिन देवा), ८५८४०-१(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. कुसालचंद, मा.गु., गा.१५, पद्य, मप., (महासेणकुल दीपक चंदा),८५९५४-१(+-) चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभु सुणि), ८९२२०-२(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मंगल कलागुण नीलउ), ८९१५८-१(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चंद्रवदन चंद्रसारिखी), ८७४०४-१ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. माणिक, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (चंद्रप्रभुजिन चाकरी), ८८४१८-१ चंद्रप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (चंद्रप्रभुजिन साहिबा), ८८४१८-२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.ग., वि. १८४६, पद्य, श्वे., (आठमौ नवमौ नैणा निरखु), ८८४१६-२() चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८५४, पद्य, स्था., (चंद्रप्रभु चितमोह), ८७४९१-१(+#), ८७६६७(-) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (कर जोडी विधि वीनवु), ८६९३२(#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (था परवारी हो जिनजी),८६११७-२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मा.ग., गा. ६, पद्य, श्वे.?, (सयो मोरा चंदराएणजिण), ८९३०७-१(-) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, म्पू., (--), ८८३९१-३(2) चंद्रप्रभजिन स्तवन-रूपातीतगर्भित, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तुंही साहिबा रे मन), ८६८५१-३(+#) चंद्रराजागुणवती सवैया, मु. हीरालाल, पुहि., सवै. ६, वि. १९३१, पद्य, स्था., (कुसुमपुरी को राज चनण), ८८०१८ चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मपू., (प्रथम धराधव तीम), ८७२७५ (+$), ८७३२१ चंद्राननजिन स्तवन, मु. वीरविमल शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनजी मुझ मंदर पधारी), ८६८८०-३ चंद्रावतीभीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, पू., (जिनमुख सोहे सरस्वति), ८८२७४-१ चउसरण गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (तुमने चार सरणा हुज्य), ८८१३४-३ चक्रेश्वरीदेवी छंद, शंकर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मा चक्रेसरी सिद्धाचल), ८८१९६-२(#) चतुर्थीतिथि स्तुति, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसेजमंडण दुर), ८८२०४-४ चतुर्थीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सर्वारथसिद्धथी चवी ए), ८६१४७-२, ८७१३३-२ चतुर्दशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, पू., (चौद सुपन सुचित हरि), ८८३२६-२(+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, ग. अमृतविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७वी, पद्य, मपू., (कनकवर्ण विराजित काया), ८८१७६-१(+) चतुष्कषाय भांगा-भगवतीसूत्रे शतक-१ उद्देशक-५, मा.गु., को., मूपू., (--), ८८६०१(+$) चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (पंच महाव्रत दशविधि), ८६६९५-२(+), ८६८५५ चारित्रमनोरथमाला, मु. खेमराज, मा.गु., गा. ५३, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर पाय नमी), ८९०२२(+#), ८७१२१ चारित्रमनोरथमाला, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४१, ग्रं. ८८, पद्य, मूपू., (सुह गुरुपय प्रणमउं), ८७३५२ चित्तोडगढ गजल, क. खेताक यति, पुहि., गा. ५७, वि. १७४८, पद्य, मपू., इतर, (चरण चतुरभुज घाईऐ चित), ८८५४१-१ चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (चित्त कहे ब्रह्मराय), ८८७२३-२(+-), ८७०६१ चित्रसंभूति सज्झाय, मु. त्रिकम, मा.गु., ढा. ४, वि. १७३१, पद्य, मप., (प्रणमुं सरसति सामणी), ८७४२७-२ चित्रसंभूति सज्झाय, मु. राजहर्ष, मा.गु., गा. २०, पद्य, मप., (बांधव बोल मानो जी), ८७४७१(-#) चुनडी सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (सीयल० चुनडी जे उढे), ८७४५८-३ चेतनसुमतिमिलन सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (अवीनासीनी सेजडीइं), ८९०९२-१ चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ३७, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अवसर जो नर अटकलो ते), ८५८११(+), ८७३१४,८७४२८,८७७७५, ८७८३२-२ For Private and Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ चेलणासती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, स्था., (चेडाभूपतिनी साते धूय), ८८३७२-१ चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरे वखाणी राणी), ८५८३२-२, ८७००८-६, ८८४७४-२, " ८६८४२-३ () चेलणासती सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. ४६, पद्य, श्वे., (दासी उभी जोगी समीप), ८६८६३ (+) चेलणासती सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (राणी करीये रसोइ), ८८३८५-२ (#) चेलणासती सज्झाय, रा. गा. १२, पद्य, मूपू (सुण रा सामीजी सुण रा), ८७३६९-२ (+) चैत्यपरिपाटी स्तवन-पालीतीर्थमंडन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १९२०, पद्य, मूपू., (सुंदर सोहे मरुधर मोह), ८६२७२ चैत्यवंदनचौवीसी, अंबालाल सींघ दीवानजी, मा.गु., गा. १५, पद्य, जै., वै., (आदिनाथ पहिला नमूं), ८५७८७(+) चैत्यवंदनचीवीसी, क. ऋषभ, मा.गु, चैत्यव. २४, पद्य, म्पू. (आदिदेव अरिहंत नमु), ८७७४९, ८७९५२ (३) चोसठियो यंत्र, मा.गु., को., श्वे., (ऋषभनाथ अजीतनाथ संभव), ८८०३५ चौपड वैराग्य सज्झाय, आ. मानसागरसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू (प्रथम अशुभमल झाटकी), ८८००६-३ चौवीसी स्तवन, मु. स्वरूपचंद्र, मा.गु., स्त. २४, पद्य, वे (ऋषभजिणेसर दरिसण दीजे), ८६१३६ (३) छंदलक्षण, मा.गु., प+ग., मूपू., इतर, (गाथानुं उत्तरार्द्ध), ८८३६९ (+#) छत्रीसछत्रीसी, मा.गु., गद्य, मृपू. (-), ८५७९४-१(*) छींक विधि-समयसुंदरकृत, वा. समयसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम ईरिहावहि), ८८२३४-२(#) जंघाल विधि, मा.गु., गा. ३, पद्य, इतर, (सींधो प. ८ तांबाको), ८७७१०-४(#) जंबूकुमार चौडालियो, मा.गु., डा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर विहरता राज), ८८०३६ जंबूकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू. (प्रभवो कर विचारणा धन), ८७४९६ (६) जंबूद्वीप कलश बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, खे, (पहेले बोले जंबुद्वीप), ८८६१९ जंबूद्वीप क्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (जंबूदीपमइ १८४ माडला), ८८६१६ (+४) जंबूद्वीप क्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे जंबुद्वीपनो मान), ८८४७२, ८६६६४- १ (क) जंबूद्वीप क्षेत्र विस्तारमान विचार, मा.गु., गद्य, खे, (जंबूद्वीप एक लक्ष), ८८०२२-२ जंबूद्वीपपन्नत्ती छंद, मु. साकलचंद, पुहिं., पद्य, मूपू., (एक लक्ष जोयण), ८७२४४ जंबूवृक्ष वर्णन, मा.गु., गद्य, खे, (जंबूवृक्षं पीठ पांच), ८७९७५ " जंबूस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोल वरसें संयम लिओ), ८५६८६-२ जंबूस्वामी गहुंली, मु. मनमोहन, मा.गु, गा. ७, पद्य, मूपू (गाम नगर पुर विचरतां), ८७४३९-१ जंबूस्वामी गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., नगर राजगृहमांहि वसे), ८९२७५-१(७) जंबूस्वामी मोक्षगमन विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजंबुस्वामी मोक्ष), ८६७११-२ ($) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, म्पू. ( श्रेणीक नरवर राजीयों), ८७४११ जंबूस्वामी सज्झाय, ऋ. खुशालचंद्र, मा.गु., गा. १४, वि. १८१७, पद्य, मूपू. (मगध देश राजगृही नगरी), ८७५५४ जंबूस्वामी सज्झाय, श्राव. पुनो, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (श्रेणिकनरवर राजीयो), ८९०९७-१ जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु. गा. १४, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (सरसत सामीने विनवें), ८७१६४८) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सयल नयर सोहामणउ नयरी), ८९२२७ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८३९, पद्य, वे., (राजग्रही नगरीनो वासी), ८७६२८-२ (६) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी वसे), ८७१२२-७(+#), ८६०७१-१, ८६७४३, ८७२९९-१, ८८७३१-२, ८७३२६-३ (-) जंबूस्वामी सज्झाय, मु, हरखकुशल, रा. गा. ९, पद्य, मूपू., (आठे ते रमणी अती भली), ८९९९९-१(०) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (ए आठौहि कामिणि जंबू), ८६९८३-१ . जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., डा. ३, गा. २७, पद्य, म्पू. (राजगग्राही नगरी वसे), ८६१८२, ८८२०९-१ जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (राजगरी नगरी भली), ८७३७१ For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रेणिक नरवर राजिओ), ८८१६४-३(+#), ८६८३७-१, ८७४७६-२, ८८८३१-३, ८९०७३-१(२) जघन्य उत्कृष्ट आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उधिकनो उधिक ते इहा), ८९२४८-२ जमाली सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., गा. ११, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (सासणनायक श्रीवीर), ८६५७४(-$) जयंतीश्राविका सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धने आरिया), ८६३७५(#S) जयंतीश्राविका सज्झाय, रा., गा. २१, पद्य, मप., (सदारथराजाजी का कुल),८७३८८-२(+) जयचंदसूरि गुरुगुण सवैया, मु. केसर, पुहि., दोहा. १, पद्य, मूपू., (ग्यान जिहाज भवोदधि), ८५८१९-२ जयचंदसूरि भास, मु. केसर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरस वचन द्यो सारदा), ८५८१९-४ जलयात्रा वरघोडा स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (हवे सामग्री सवी सज), ८६५६१ जसवंत गुरुगुण भास, मु. जसवंत शिष्य, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुमतिजिन वंदीइ सुमति), ८७३६५-२ जसवंतसींघ महाराजा दुहा, पुहिं., गा. १३, पद्य, वै., इतर, (मनडो आज उमाहियो घटा), ८७५५६-४ जातिनाम गाथा, मा.गु., गा. २, पद्य, वै., इतर, (चुडागर१ दरजी नाई३), ८६९१५-२ जामोती चौपाई, रा., ढा. ७, पद्य, श्वे., (कृष्णबलभद्र दोनो नीस), ८७९७७(+) । जिनकल्याणक १५ तिथि तपस्या विधि, मा.गु., को., मूपू., (१वैशाख वदि श्रीकुंथु), ८५८७४ जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ८, वि. १८५३, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा गुरुपदांभोज), ८७७८७(#) जिनकुशलसूरि आरती, मु. लाभवर्द्धन, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (जय जय सद्गुरु आरती), ८६१८७-२ जिनकुशलसूरि गीत, ग. आनंदनिधान, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (महियलमइ महिमा घणी रे), ८८६०४-३ जिनकुशलसूरि गीत, मु. राजेंद्रविजय, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (देरावर थांरो देवरे), ८८९२३ जिनकुशलसूरि छंद, मु. भावराज, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशलसूरि सुख), ८६१६८-१(+) जिनकुशलसूरिजी गीत, मु. शांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३१, वि. १८१२, पद्य, मूपू., (जगगुरु वीर जिणंद), ८७४५०(+) जिनकुशलसूरिजी स्तवन, मु. चंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अरे लाला श्रीजिनकुशल), ८६२६७-२ जिनकुशलसूरि पद, मु. शिवचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (दादा कुशलसूरिंद तुम), ८९२३२-२ जिनकुशलसूरि स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. १६, वि. १७८१, पद्य, मूपू., (गाजै जिणकुशल गडालै), ८६२६७-३ जिनकुशलसूरि स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (दादौ परतिख देवता), ८६१८८-३(+), ८६०५४-४ जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (समरु माता सरसती), ८८९७१(+) जिनगुणप्रशस्ति बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (भगवान त्रिलोक्य तारण), ८५९८३-१ ।। जिनचंद्रसूरि गीत, उपा. उदयतिलक, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मपू., (मुजरो दीजै हो सहगुरु), ८९२५५-१(+) जिनचंद्रसूरि गीत, उपा. उदयतिलक, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मप., (वडतखताधर विरजयो युग), ८९२५५-३(+) जिनचंद्रसूरि गीत, उपा. उदयतिलक, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मपू., (श्रीजिनरतन पटोधरु रे), ८९२५५-२(+) जिनचंद्रसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पूज्यजी तुम्ह चरणे), ८९३१५-३(+) जिनचंद्रसूरि भास, मु. लावण्यकमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गुणनिधि जिणचंद), ८५८०९ जिनचंद्रसूरि वधावा, मु. दौलतविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (समरु माता नित प्रति), ८६०५९-१(+) जिनदत्तसूरि गुरुगुण पद, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, मूप., (चरण की चरण की चरण), ८६०५४-५ जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (दादा चिरंजीवो सेवक), ८६०५४-३ जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मु. जेमल ऋषि, मा.ग., ढा. ४, गा.७३, पद्य, स्था., (अनंतचौवीसी आगे हुइ), ८६९४३, ८८८४१(#$) जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ६८, पद्य, मपू., (अनंत चोवीसी आगे हुई), ८९१६९(+), ८७९५७(4), ८८८६२(#$), ८९११२-१($) जिनपूजा अष्टक, पुहिं., गा. ११, पद्य, दि., (जलधारा चंदन पुहप), ८५६८८-२(+) जिनप्रतिमा अधिकार स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (अरिहंतादिक प्रणमी), ८६३११-१(+) For Private and Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जिनप्रतिमामंडन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, पू., (भरतादिके उद्धारज), ८५९२०(#) जिनप्रतिमा वंदनफल स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनवर जिनप्रतिमा), ८७३३६-३ जिनप्रतिमावंदन स्तवन, मु. जसविजय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (--), ८६१५२६) जिनप्रतिमा स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, मपू., (जिन जिन प्रतिमा वंदण), ८५८४२-१($) जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मप., (जिन जिन प्रतिमा वंदन), ८६००४, ८८४९५ जिनप्रतिमाहंडी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६७, वि. १७२५, पद्य, मपू., (सुयदेवी हीयडै धरी), ८६५७०(+#), ८७७२५(+), ८८७०८ जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (भविका श्रीजिनबिंब), ८७७१६(+) जिनभक्तिसूरि भास, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पंथीडा कहोने जी वात), ८७६७८-२ । जिनमालिका काव्य, मु. सुमतिरंग, मा.गु., ढा. ७, गा. ७६, पद्य, मपू., (जगनायक जग मुगटमणि), ८८६३३(+) जिनराजसूरि गुरुगुण गीत-खरतरगच्छाधिपति, मु. आनंदकीर्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (करि जोडि जोसी पूछती), ८७६४१-४(+#) जिनराजसूरि गुरुगुण गीत-खरतरगच्छाधिपति, मु. आनंदकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गुरु गच्छनायक जिण), ८७६४१-३(+#) जिनराजसूरि गुरुगण गीत-खरतरगच्छाधिपति, मु. आनंदकीर्ति, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (देखउ माई सोभा मेरइ), ८७६४१-५(+#) जिनराजसूरि गुरुगुण गीत-खरतरगच्छाधिपति, मु. आनंदकीर्ति, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (भद्रसेनजीरा वीरजी हो), ८७६४१-२(+#) जिनराजसूरि पदस्थापना गुरुगीत, मु. चंद्रकीर्ति, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सानिधि गुण तवु), ८९२२५ जिनलब्धिसूरि वधावो, मु. लालचंद, पुहि., गा.८, पद्य, मूपू., (सारा श्रीसंघनी हो), ८६८९७-२ जिनलोक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुधरमां देवलोकमां), ८६०१७-१ जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (सयल तीर्थंकर करु), ८६१०६-४(+), ८६९०६-२(+), ८७५९५ जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (जिन चउवीसै करु), ८७२१६-१ जिनवरसीदान स्तवन, मु. लब्धिअमर, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (श्रीवरदाईना चरण नमी), ८७४७२-३(+) जिनवल्लभसूरि गुरुगुण सवैया, मु. नयरंग, मा.गु., सवै. १, पद्य, मूपू., (चित्रकूट चामंड), ८९१३०-३ जिनवाणी गहंली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (अमृत सरखी रे सुणीइं), ८५६६३-१(+s), ८६८६१-४ जिनवाणी स्तवन, मु. चंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जिणंदा थारी वाणीइं), ८८९५५-३(+) जिनविजयसूरि गीत, मु. करमचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (पूज पधार्या हो मरुधर), ८७४७४-२(+) जिनविजयसूरि गीत, मु. करमचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि हुं), ८७४७४-१(+) जिनेंद्रसूरि सज्झाय, मु. वल्लभसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज गच्छराज महाराज), ८८६९० जीवण गुरुगुण पद, मु. परमानंद, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (आज मनोरथ फलीयाजी), ८६१२५-३(+) जीवण गुरुगण पद, आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (आज हुवो अति ओछव मेरे), ८६१२५-२(+) जीवण गुरु बधाई, मु. परमानंद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (आज वधाई मेरे आज वधाइ), ८६१२५-४(+) जीवणगुरु स्तवन-नागोरीगच्छाधिपति, आ. लक्ष्मीचंद्रसूरि, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (आज दिवस सफलो भयो सद), ८६१२५-१(+) जीवणदासजी गीत-गच्छपति, श्राव. हमीर साह, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (चालो सहीयां वंदण जाय), ८८६१८ जीवदया सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा.१३, पद्य, मपू., (रे जीवदया पालज्यो), ८७५६३-४(+#) जीवदया सज्झाय, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १५, वि. १६वी, पद्य, मूप., (गोयम गणहर पय पणमेवि), ८६१०६-३(+) जीवपद स्थापना चर्चा, पुहि., गद्य, मप., (वाजै जैनमति प्रदेबी), ८६९८०-१(+) जीवभेद सज्झाय, मु. जिनविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २०, पद्य, मप., (श्रीसारद चितमें धरी), ८७८१८-२ जीवविचार बोल*, मा.गु., को., मूपू., (--), ८७०५५(+) जीवविराधना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अणगल्यु पाणि वावयाँ), ८५७४४-१ जेमलऋषि गुणमाल, मु. भगवानदास, रा., गा. १८, वि. १८९१, पद्य, स्था., (पूज्य जेमलजी रो), ८६८६६ जैनयंत्र संग्रह, मा.गु., को., मप., (१ जीव समुंचइ ५ नियमा), ८६६३७-३, ८७४०६(#$), ८६९५३($) जैमलऋषि गुणवर्णन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, स्था., (पुन जोगे ज्ञानी गुरु), ८७६३६ For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ज्ञान आराधना विधि, मा.गु., गद्य, मूपू (चौदसथी आदरे एकासणा), ८६१२१-४(+) ज्ञानचंदजी गुरुगुण गहुंली, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (समुदारी लहरडीया), ८९१४६-२ ज्ञानदर्शनचारित्र संवाद, मा.गु., ढा. १, गा. ४, पद्य, मूपू (श्रीइंद्रादिक भावधी), ८६३९७-१(+) ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (युगला धर्म निवारिओ), ८८३१२-१(+) ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (त्रिगडे बेठा वीर ), ८६४७५-२ (७) ज्ञानपंचमीपर्वतप उद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (बिंच ५ पुस्तक ५ झलमल), ८५९७९-२ ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पूजा. ५, गा. ९, पद्य, मूपू. (श्रीसीभाग्यपंचमी), ८८०१९ ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ३, गा. २५, पद्य, मूपू. (प्रणमुं श्रीगुरु पाय), ८५९७४(०९), ८७९०३(+), ८७४६४, ८७८६१-१, ८८८३६, ८७८३५ (१), ८८६३६ (क) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (सद्गुरुना प्रणम्) ८७१२२-४(४) ८६३९२-२, ८८३०६-२ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., डा. ५, गा. १६, पद्य, मूपू., ( श्रीवासुपूज्य जिणेसर, ८६७००-१(+), ८६४८८, " ८७०८०, ८७२१९-१, ८८७४५, ८८५७१-१(३) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणेसर, ८६१६३ (+), ८७०७१(+), ८८४४० (+६), ८८८९७(+), ८५७३०, ८५६३४(०), ८६५६३(१) יי ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुपदकज), ८८०६० ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू, (श्रीजिनवरने प्रगट), ८५८५६-१ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मा.गु. गा. ९, पद्य, म्पू, (सौभाग्यपंचमी तप करो), ८६७३३-२ (**), ८६३२९ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचमीतप तुमे करो रे), ८७०९९-१(+), ८७१९५, ८७८६१-२ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. गौतम, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (भाव भले भवि पांचमी), ८९१३८-३ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कारतकसुद पंचमी तप की), ८६०५२-४ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरुपम सुखदायक जग), ८७६९४-४(+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थंकर वीर), ८५७८८(+), ८८८७१-४ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. सुखविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू. (कार्तिक शुदि पाचमि), ८६४६६ ज्ञानपच्चीसी, मु. उदयकरण, पुहिं. गा. २४, पद्य, मूपू. (शुरनर तिरीजग योनी), ८५६८८-१(०), ८७५१८-२२०१ " ज्ञानपच्चीसी, जे.क. बनारसीदास पुहिं. गा. २५. वि. १७वी, पद्य, दि., (सुरनर तियंग जग जोनि), ८६०३२, ८७६१७, ८९१८२-१ ज्योतिष दोहा, सहदेव, पुहिं. दोहा १, पद्य, इतर (रवि सेरी मंगल खाट), ८८८६३-४(क) " ज्योतिषसारणी संग्रह, मा.गु., को. वै., इतर (--), ८८८०३-१(१) ज्योतिष्कसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (जंबू द्वीप माहे २), ८५७५९ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., गा. १६, पद्य, मृपू., इतर ( ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल ), ८७२७९ " झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (सरसति चरणे शीश नमावी), ८५९२२-२ (+$), ८६४६७-१११, ८५६८६- १(३) ५४९ झांझरियामुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (महियलि मांहि मुनिवरु), ८७०७८ झांझरियामुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपु. ( इणे अवसर विरहातुर), ८८४५७(-) ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), ८६०६९-१, ८६६२९-१, ८७००८-३, ८७१९७, ८७७०५-२, ८८९७७-२ ८६२४६-३(३) ८६७७३- १(क) खंडणऋषि सज्झाव, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि तइ साचउ), ८९२२६ ढंढणमुनि सज्झाय, पं. क्षेमवर्द्धन, मा.गु., गा. १९, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सरसतिमात पसायथी रीषि), ८६७८३-२ (+#) ढाईद्वीप क्षेत्रविवरण यंत्र, मा.गु., पं., ., (-), ८७३८७-१ ढाईद्वीप विचार, मा.गु., गद्य थे. (खंडा ८ हजार ५५०), ८९२४७(१) " For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ढंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमत निरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी प्रणमी), ८५७०४, ८८४८१, ८६८२७(#) ढुंढकबत्तीसी, मु. कवियण, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमा गुण), ८८६३१ ढुंढकमत पट्टावली दढालियो, मा.गु., ढा. २, पद्य, स्था., (वांद सिरी चोवीसमा), ८५७१४(#) ढुंढक रास, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ७, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (सरसती चरण नमी करी), ८६४४५ ढुंढक रास, रा., पद्य, श्वे., (संबत सतरैगुणतीसमै), ८७९४९-२(#$) तपपद सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., गा. १४, पद्य, श्वे., (तप बडो रे संसार मे), ८५९८१-२(-) तपपद सज्झाय, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (सर्व देवदेव में), ८६०६८-२ तपपद सज्झाय, मा.गु., पद्य, मप., (अणसण उणोदरी भिख्याचर), ८८७९२ तपफल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवती शास्त्रोक्तं), ८७३९७-२(+), ८९०९३-१(2) तपविधि यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ८८४५५ तपसी साधु सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (तपसी तो साधुजी उठ्या), ८८७१४-२(-) तामलीतापस चौपाई, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., ढा. १२, वि. १८७३, पद्य, श्वे., (परिसनाथ प्रणमुं सदा), ८६२७६(+#), ८७९१३ तारातंबोल नगरी वार्ता, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (संवत १६८४ वर्षे महा),८५९३३(+#) तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (तित्थयरा गणहारी चक्क), ८६७४६(+), ८७७४४(+-) तृतीयातिथि स्तवन, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव नितु वंदना), ८८२०४-३ तृतीयातिथि स्तुति, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आदिजिणेसर सुख करु), ८८२०४-२ तृतीयातिथि स्तुति, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (निसिहि त्रण), ८७५०५ तृतीयातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (श्रेयांस जिणेसर शिव), ८६१४७-१ तेजसिंहगुरु भास, मु. काहनजी, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (प्रात समे नित्य प्रण), ८७३०१-१(+) तेजसिंहगुरु भास-लुंकागच्छ, मु. वेलजी, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (साध सिरोमणि सिवसुख), ८७९३०(+) त्याज्य करवा लायक अभक्ष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (मदिरा मारवणने मांस न), ८६१२१-२(+) । त्रिशलामाता गर्भचिंताविलाप व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए भवतव्यता एहवी माता), ८७९८८ थावच्चाकुमार चौढालिया, मु. तेजसिंह, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (सरसति चरणकमल नमी), ८८३५०-२(#) थावच्चाकुमार सज्झाय, रा., गा.७, पद्य, मप., (नेमजिणंद समोसर्या रे), ८७६३३-२ थावच्चापुत्र ढाल, मा.गु., ढा. ६, गा. ६७, पद्य, मूपू., (थाव! भोगी भमर), ८७७७८(+) थावच्चापुत्र सज्झाय, मु. देव, मा.गु., गा. २३, वि. १६९७, पद्य, स्पू., (जिन नेम समोसर्या रे), ८८७३६-१(+) दंडकद्वार बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, मपू., (सरीर३ वैक्रीय१ तेजस२), ८७८९३(+#$) दंडकभेद बोल-लघु, मा.गु., गद्य, मूप., (शरीर ओगाहणा संघयण), ८७०१६(+) दंडक यंत्र, मा.गु., गद्य, मूप., (--), ८८५६५-२ दंडक सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा.१८, वि. १७७२, पद्य, मप., (गणधर गौतम स्वामिजी),८८१७४(+$) दयाचंदगुरु गीत, मु. प्रताप मुनि, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (भल आया हो सतगुरुजीनी), ८८०४६ दयाछत्रीसी, मु. चिदानंदजी, पुहिं., गा. ३६, वि. १९०५, पद्य, मूपू., (चरणकमल गुरूदेव के), ८६६८५(+#) दयाछत्रीसी, मु. साधुरंग, मा.गु., गा. ३६, वि. १६८५, पद्य, मपू., (दयाधर्म मोटो जिन), ८८३१५ दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु रे), ८६११६-२(#) दयामाता सज्झाय, मा.गु., गा. ३९, पद्य, मूपू., (दया भगवती छे सुखदाई), ८७७९६($) दशचंदरवा सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ४१, वि. १७३८, पद्य, मपू., (समरी सिद्ध अनंत महंत), ८७९६४ दशवैकालिकसूत्र कलश, मु. जेतसी, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दशवैकालिकसूत्र सुहाम), ८८९३०-२(-) दशार्णभद्र ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (दशार्णभद्र श्रीवीर), ८८४१९(+) दशार्णभद्र ऋद्धिवर्णन कवित्त, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (अठषट चारिहजार धार गय), ८८७९१ For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५४३ दशार्णभद्र राजर्षि ऋद्धि वर्णन, मु. श्रीचंद, मा.गु., गा. ३९, पद्य, मप., (चोवीसमा श्रीवीरजिणंद), ८८१८८(+) दशार्णभद्र राजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, वि. १७८६, पद्य, मूपू., (सारदमात मनरली समरु), ८७१३२(+), ८६०१५, ८७४५१, ८७८०८(#) दशार्णभद्र राजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सारद बुधदाइ सेवक), ८७८७१(+), ८८७६१-१(+), ८८९०४-२(+) दसोटण विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (मांड्यो उतंग तोरण), ८८३४४(+#) दानशीलतपभावना चौढालियो, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., ढा. ४, वि. १६६२, पद्य, मपू., (प्रथम जिनेसर पय नमी), ८८३२२(+$) दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.६, वि. १७वी, पद्य, मप., (रे जीव जिन धरम कीजीय), ८८३४०-२(+), ८८७३६-२(+), ८९३१५-२(+), ८६८१६-१, ८७२४१-२, ८९०२९-१। दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूप., (प्रथम जिनेसर पाय), ८७५७६(+), ८७८४९(+), ८८०२१(+), ८८६३२(+$), ८९२७१-१, ८९०१९(#), ८६७६३($) दानशीलतपभावना सज्झाय, पंडित. कुशल, पुहि., गा. १०, पद्य, श्वे., (अरे चेता नद नही है), ८८०७६-१(+#) दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयमल, रा., गा. १९, पद्य, श्वे., (पुनी जोग गुर मीलीया), ८८३३८-२(2) दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयैतादास, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (दान एक मन देह जीवडे), ८६४८१, ८६८८५-२ दानशीलतपभावना सज्झाय, रा., ढा. २, गा. ३८, पद्य, श्वे., (आदजिणेसर आददे रे विर), ८८०३०(+) दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (तीण काले ने तीण समे), ८५९६७-५(+$) दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (भण गुण चटरो आईयो), ८८८४३-२ दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (रंगपतजीनी माता बुलावे), ८६७५५-१ दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मप., (सामीजी मारी विनती), ८८७७६-२ दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (--), ८८४७० । दान सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रसीया राचै दान तणे), ८७११९-३(+) दामोदरजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (सुप्रतीते हो करि थिर), ८६५०६-२(+) दिनमान गाथा, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (तणोकर सत अंगुलो), ८६१७७-२(+) दीक्षा विधि, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम संध्या चारित्र), ८८४०८ दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूप., (दुःखहरणी दीपालिका रे), ८७०३०-६(७) दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मगधदेस पावापुरी प्रभ), ८८०६४-१ दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, पू., (वीरजिनवर वीरजिनवर), ८६१७२, ८७४६२,८७८८८-१ दीपावलीपर्व रास, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ४३, पद्य, श्वे., (भजन करो श्रीभगवंतरो), ८६२९४-१(+), ८७१२०(+-5), ८७८२० दीपावलीपर्व सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २२, पद्य, मपू., (भजन करो भगवंत रो गण), ८६५७९(2) दीपावलीपर्व सज्झाय, पं. हर्षविजय गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धन धन मंगळ सकल तरेस), ८५८१८-३, ८७१३१-२, ८७७०६ दीपावलीपर्व स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरजीनां गुण), ८६२०१-३(+) दीपावलीपर्व स्तवन, मु. जडाव, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (जिण दिन मुगत गया जिन), ८६९०२-६ दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर मनोहरु), ८७०३०-१(६) दीपावलीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दीवाली दिन पर्व), ८८३२६-१(+), ८६८५०-२(#), ८७७१३-१(#) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सासननायक श्रीमहावीर), ८७१४३-२, ८८६८६ दूहा संग्रह, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (परदारा छे पापणी सापण), ८८०१०-२ दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., ढा. ५, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (पंच प्रभूनें नीत नमु), ८६८०६ दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (पय पणमीअ सरसति सरसति), ८७४१०(+#), ८८८१२-४(+$) For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ देव आयुष्य विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ उडूनामा पटल ६४५१६१), ८९१४२-४($) देवकी ६ पुत्र सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (अब रायऋषजी हो राज), ८७३८१(+), ८७४५८-१, ८८२५९ देवकी सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मप., (पभणे राणी देवकी हो), ८८८५०-३ देवकी सज्झाय, मु. रायचंदजी ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८४७, पद्य, स्था., (श्रीवसुदेवनी पट्ट), ८९०७५-१(+) देवकी सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (ओजी मुनिवर वचन सुणी), ८६४०९-२(+) देवतादि आयुष्य लेश्या विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (देवता को दस हजार वरस), ८८४९७(5) देवलोकसुख सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (देवलोकारा साताकारी), ८७१४०-१(#) देवलोक स्तवन, मु. चतुरसागर, मा.गु., ढा. ७, गा. ४४, पद्य, मपू., (सरस वचन दे सरस्वति), ८६०७५(5) देवसिप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., प+ग., मप., (प्रथम इरियावही पडिकम), ८८७३३(+#) देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., गा. १२, पद्य, मप., (जिनवर रूप देखी मन), ८५८६८, ८७२९९-२, ८८९२०, ८६७८१(2), ८७८५८(2) देवेंद्रसूरिजी विनतीपत्र, अमरचंद भोजक, मा.गु., वि. २०वी, प+ग., मप., (स्वस्ति श्रीपार्श्व), ८६१५४(+) दोहा संग्रह-, रा., पद्य, श्वे., (दैव गहे न अटेरडी जे), ८८३५५-३(+) दोहा संग्रह-जैनधार्मिक, पुहि.,मा.गु., दोहा. १, पद्य, मूपू., (अष्टापद श्रीआदजिनवर), ८६७४९(६) द्वारिकानगरी ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. जयमल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (बावीसमा श्रीनेमिजिण), ८६५८० द्वारिकानगरी सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. ६०, पद्य, मूपू., (द्वारामतीनो देखिउ), ८८९९९-१ द्वारिका व कृष्णपरिवारादि विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (धारकनगरी १२ जोजन), ८८०७७-३(-2) धन्नाअणगारपच्चीसी, मु. रूप ऋषि, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (श्रीअरिहंत समरीये मन), ८८६०६-१(+) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, पू., (वीर वचन चित्तधारी), ८६८९७-१ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. चोथमलजी, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (राजगरीही नगरी वा), ८८९५१ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (जिनवाणी रे धना अमीय), ८६८४७-१(+#), ८९१९९-४(+#), ८७६३३-१, ८८५१६-१, ८८७९९, ८६४०२(१), ८७५२०(-2) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. मेरु, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूप., (चरणकमल नमी वीरना), ८६९०८ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. रत्न, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नगर काकंदी हो मुनीसर), ८८१९४-२(+), ८६९१५-१ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (धना मुनी धन मानवभव), ८७६१२-१८) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. २०, पद्य, स्था., (जिनशासन स्वामी अंतरज), ८७०४०(+), ८९१२३(+) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवचने वयरागी हो), ८८४२४-२ धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., गा.१३, पद्य, श्वे., (घरे बतीसु कामनी धना),८७१६१८) धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. १७, पद्य, मपू., (वीरवचन प्रतिबोधीए), ८८४७१ धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणी रे धन्ना), ८६३८३-२(2) धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सरसत सामण विनवुजी), ८८०४४ धन्नाऋषि सज्झाय, मु. केसर, मा.गु., गा. ३१, वि. १७७९, पद्य, मूपू., (सुभद्रा कहे धन्ना), ८७५१९ धन्नाकाकंदी ढाल, मु. भगवानदास ऋषि, मा.गु., ढा. २, गा. २७, वि. १९०५, पद्य, श्वे., (काकंदिनगरि निरूपम), ८७०६५(+) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (अजिया मुनि० वेभारगिर), ८६४६५-२(+), ८५६४५-५ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. नेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (पूछे प्यारीने धन्नो), ८६५६९(2) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (अनुमति आपो मातजी बोल), ८८३०५-२(2) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (धन धन धन्ना सालिभद्र), ८६५५६-४(+), ८८८९०-२(+), ८७९९८-२(#), ८९०२६(#) धरणेंद्रसूरिगुरुगुण सज्झाय, मु. चिमन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विजयधरणेंद्रसूरींद्र), ८६६२०-१ धर्म आराधना सज्झाय, ऋ. जेमल, मा.गु., गा. ४०, पद्य, श्वे., (धर्म धर्म बोहला करे), ८९३१३ For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ धर्मजिन गीत, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मप., (तु जानें किरतार ते), ८८८३७ धर्मजिन पद, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (पूजो श्रीजिनधरम देव), ८७२११-३ धर्मजिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (इक सुणलौ नाथ अरज), ८७७५९-४(#) धर्मजिन स्तवन, मु. गोडीदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रीधरमजिनेसर ध्याव), ८८०२३-१(-2) धर्मजिन स्तवन, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (मंगलकारण देव निरुपम), ८७९९१-२(#) धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मप., (हां रे मारे धरमजिणंद), ८६१३८-१(+#$), ८६८४७-२(+#), ८८२१८(2) धर्मजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (थास्युं प्रेम बन्यौ), ८७४५५-२ धर्मजिन स्तवन, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., गा. ८, वि. १८६८, पद्य, श्वे., (धरमजीणेसर धर्मना धोर), ८८७५०(#) धर्मजिन होरी, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., पद.८, पद्य, मपू., (मधुवन मै धूम मची होर), ८८६०६-२(+$) धर्म भावना, मा.गु., गद्य, श्वे., (धन्य हो प्रभु संसार), ८६५९७, ८७१९१ धर्मरुचिअणगार सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (धर्मरुचि मुनिवर भणी), ८७१५०-१(2) धर्मरुचिअणगार सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, रा., गा. १५, वि. १८६५, पद्य, स्था., (चंपानगरनी रुप सुंदर), ८५९९८-१, ८८३८७-२, ८६८१५(#) धर्मसिंघ गच्छाधिपति गुरुगण भास, मु. नगजी, मा.गु., गा. ११, वि. १७८२, पद्य, श्वे., (श्रीचिंतामणिपाशजी), ८८८८५ धूपपूजा, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (एक जिन तुरसियो बोले), ८६७३६-१(+), ८६७३५-१ ध्यानभेदविचार पद, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (मन परिणामसु ध्यान), ८८२९० नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (साधुजी न जइए रे परघर), ८७७१५-३, ८८०२३-४(2) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. धनमुनि, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (मुनीश्वर हो विरहण), ८८९१६-२(+) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरीनो वासी), ८८३५५-१(+), ८५६७९, ८७७९५ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (रहो रहो रहो वालहा), ८६७५९-१(+#), ८५६४५-२ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुनिवर महियल विचरे), ८७९३३-५(+) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (वेरागे संयम लीयोजी), ८५९०० नंदीश्वरद्वीपजिन स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नंदीसर बावन जिनालये), ८६१८८-१(+), ८८३४३(+), ८७०६७-१, ८८८०५ नंदीश्वरद्वीपजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (आठमई दीप नंदीसर), ८८०६१-२(+$) नंदीश्वरद्वीपजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नंदीसर शास्वती), ८६९७३ नंदीश्वरद्वीप स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (नंदीश्वर वरद्वीप संभ), ८७०२२ नगर स्थापना वर्ष, मा.गु., गद्य, श्वे., (सं. १४९४ राणपुररो), ८८८९४(#$) नमस्कारचौवीसी, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., अ. २४, गा. १४४, वि. १८५६, पद्य, मपू., (जय जय जिनवर आदिदेव), ८६७५७ नमस्कारचौवीसी, मु. लखमो, मा.गु., गा. २५, वि. १६वी, पद्य, श्वे., (पढम जिणवर पढम जिणवर), ८९०४२ नमस्कार महामंत्र १०८ गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुण श्री अरिहंतना), ८८०७७-१(-2) नमस्कार महामंत्र चौढालिया, उपा. राजसोम पाठक, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मपू., (नवकारवाली मणियडा), ८६७५२ नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वंछित० श्रीजिनशासन), ८५९१७(+), ८५९३६-२(+#), ८५९४५-१(+), ८६४६७-३(+$), ८९१०९-२(+), ८५९६४, ८७७५१-१, ८७७८३-२ नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, पू., (सुखकारण भवियण समरो), ८९१०९-१(+$), ८६१३३-३, ८६१८९, ८७२५९,८८१३९, ८८१४५-२,८८२३५(2), ८९२३५-१(६) नमस्कार महामंत्र जाप विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिला शरीर सुध वस्त्), ८८०८८ नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (किं कप्पतरु रे आयाण), ८८०९३(+), ८७१८४, ८९२०३ For Private and Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५४६ " देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (पहिलो लीजि), ८८०९२(*), ८५७४०, ८७६७६, ८७८१२, ८८९७७-१ नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसति सांमिने दो मुझ), ८६२४७-२ (+), ८७२७७-१, ८७३५३, ८८४७५-१ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु, दुर्गादास, रा. गा. १४, वि. १८३१, पद्य, थे. (अरिहंत पहले पद जानी), ८८८७७-२(*) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( श्रीनवकार जपो मनरंग), ८७७४१-२, ८८४३६-१ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ८९१६१-१ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (समर रे जीव नवकार नित). ८६४१६-३ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कहेजो चतुर नर ए कोण), ८६०६५-२, ८७१३० नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (बार जपुं अरिहंतना), ८६८२२ नमस्कारमहामंत्र सज्झाय, मु. विमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनप्रवचन जगजय), ८९१५१(७) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पुहिं., गा. १५, पद्य, श्वे., (ओर बसत बोहो विधी मिल), ८७८१९(#) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (चौद पूरबमांही सार), ८८९४६-३ "" नमस्कार महामंत्र सज्झाय-महिमा, मा.गु.. गा. २१, पद्य, श्वे. (सरसत करु जीय सर सरसत), ८७९२७-१( नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. मगन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ध्यान धरो नवकार को), ८८२५४-१ नमस्कारमहामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. १३, पद्य, स्था. (प्रथम श्रीअरिहंतदेवा), ८६९१३-२८१, ८७०८१-१८) , नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रूपचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (नमस्कार अरिहंतने), ८७५६३-१(+#) नमस्कार महामंत्र स्तुति, मु. लालचंद, रा. गा. १४, पद्य, वे (णमो अरिहंताणं० इहां), ८७९१९-३(+-*) नमिजिन स्तवन, मु. अभिराज, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (सरसति दिउ मुझ वाणि), ८७६१०-१(+) नमिजिन स्तवन, ग. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नित नमीयें नमि जिनवर ), ८७१४८-१($) יי नमिराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., डा. ७, वि. १८३९, पद्य, श्वे. (सासणनायक समरीये), ८८२३०-१(०२०), ८५८३९(१) नमिराजर्षि लावणी, मु. हीरालाल, पुहिं., ढा. २, पद्य, स्था., (विदेह देश और मिथिला), ८६२२०-१(-) नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (देवतणी ऋधि भोगवी), ८६९५४-३, ८७९५०-२(#) नमिराजर्षि सज्झाय, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी हो मिथिला नगरी), ८८५६८-३(#) नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (इंद्र कहै नमीरायने), ८८८२८(#) मिराजर्षि सज्झाय, उपा. समवसुंदर गणि, मा. गु, गा. ८, पद्य, मूपू., (जी हो मिथीला नगरीनो), ८५६४५-३, ८६४०४-२ " नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., ढा. ४, गा. ३१, पद्य, मूपु (आदिजिणंद जुहारीयइ मन), ८७६७४(*), ८७८९४(१२), ८८५२६(+#) नरक देव सिद्ध आयु अवगाहना प्रतर विरहकाल आदि विचार, मा.गु, गद्य, म्पू (--), ८८१६० नरकनिगोद विचार, मा.गु., गद्य, खे, (पद्म नामे द्रह १०००), ८९१९३८-४ " नरकभूमिविवरण बोलयंत्र, मा.गु., को. वे. (रतनप्रभा योजन १०) ८७४२९ " , नरकविचार संग्रह, मा.गु., को. मृपू., (--), ८८५६५-५(5) "" नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., डा. ६, गा. ३५, पद्य, मूपू (वर्द्धमानजिन विन), ८८५४७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नलदमयंती सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे. (जो तम छाड्यो देस हो), ८८१०१-१ ($) " नवकारवाली सज्झाय, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (करी पडीकमणो प्रेमथी), ८५९८४ नवकारवाली सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु, गा. ९, पद्य, मृपू., (नोकारवाली बंदीइ चिर) ८६६९०-२ (+३) नवकारवाली सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (समरथ नारि छे अतिसारी), ८६९४८-३ नवग्रह दशदिक्पालपूजन कोष्टक, मा.गु., को., वे., (--), ८६६६७-२ नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, वे., (जीव चेतन १ अजीब), ८५७०८-३, ८९२८५ नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व १४ भेद), ८८७१०, ८९२७४ नवतत्त्वगुण बोल- रूपी अरूपी विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (नवतत्वमांडी रूपी), ८८४१० नवपद उलाला, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. २१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तीर्थपति अरिहा नमुं), ८५८०६ For Private and Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५४७ नवपदओली खमासमण, मा.गु., गद्य, मपू., (ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण), ८८४९४ नवपद गहुँली, मु. आत्माराम, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (सहियर चतुर चकोरडी), ८६५००-३(+) नवपद चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू., (अरिहंतपद उजल नमु वलि), ८७७५३-३(+) नवपद चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (श्रीसिद्धचक्र देवा), ८७७५३-२(+) नवपद चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (सिद्धचक्र पद वंदिय), ८६२७१-१(+) नवपद दोहा, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (परममंत्र प्रणमी करी), ८५९९७-२ नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमोनंत संत प्रमोद), ८७८७० नवपद लावणी, क. बाल, पुहि., गा. ५, वि. १९१७, पद्य, मूपू., (जगतमें नवपद जयकारी), ८६२३०(+) नवपद वर्णानसार आयंबिलतप विचार, मा.गु., गद्य, मप., (पहेले पदे आंबेल धोलु), ८७६५१-२ नवपद स्तवन, मु. आनंदविमल, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (नवपद सार संभार जीया),८५९५३-१(+) नवपद स्तवन, मु. आनंदविमल, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (मेरे नवपद चित नित), ८५९५३-३(+) नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (गोयम नाणी हो कहै), ८५९६९-१(+), ८८८६८-३(+), ८७६७९-५, ८८८६६-२(2) नवपद स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (सेवो रे भवी भावे), ८५९६९-४(+), ८६३६३-४(+) नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलानो), ८६१५९-१(+$), ८७८९०-१ नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., गा. ७, वि. १७८८, पद्य, मूपू., (सहु नरनारी मली आवो), ८८८६०-२, ८९३०३-१ नवपद स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., गा. १२, वि. १८९०, पद्य, मूपू., (नवपद ध्यावो सुखकरू), ८५९३८-१ नवपद स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नवपद ध्यावो रे), ८९२९१-५ नवपद स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत जपो मनरंग), ८७७५३-९(+) नवपद स्तुति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अरीहंताणं नमोकारो), ८७५१०-२(+) नवपद स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (इच्छारोधे संवरी), ८५९९७-१ नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), ८७६४८(+#$) नववाड सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नववाड सही जिनराज), ८६६७५-१(+-), ८७६४२, ८७६५२ नववाड सज्झाय-ब्रह्मचर्य, मु. हान ऋषि शिष्य, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मूपू., (रयण सिंघासण बइसणइ), ८८६५५-१(+) नववाड स्तवन, मु. दुर्गादास, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (जीण माय कही नवबाड), ८७७४२(+) नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घेर आवीया),८६८४२-१(-) नाण स्थापना विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (मोटी नांदमें त्रिगडो), ८८५४०-२(+) नाणावटी सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मपू., (हो नाणावटी नाणुं निर), ८५९१५(+#) नाणावटी सज्झाय, श्राव. साहजी रुपाणी, रा., गा. ८, पद्य, श्वे., (हो नाणावटी नाणु), ८६७४५-२ नारकी जोड, मु. करसन, मा.गु., गा. २४, पद्य, श्वे., (जीव भरमाणो घणो बह), ८६२५८-२(+-) निंदा परिहार सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चावत म करो परतणी), ८७९३१-२ नियंठा बोल, मा.गु., गद्य, स्था., (पन्नवणा वेय रागे), ८९१३४ निर्जरा तत्त्वविचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, मपू., (निरजरा तत्व किणने), ८६२५७(६) निर्मोहीराजा पंचढालीयो, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १८७४, पद्य, श्वे., (निरमोही गुण वरण), ८५८२० निर्मोहीराजा सज्झाय, खूबचंद, पुहि., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (वंदु नाभिराय के नंदन), ८६११८(-) निर्वाणीजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुं चरण परमगुरू), ८६५०६-१(+) निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीय जिनवर रे देशना), ८७६४०(+) निह्नव विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरनइ केवलज्ञ), ८५८४२-३, ८९२२१-२ नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., चोक. २४, वि. १८३९, पद्य, मपू., (एक दिवस वसै नेमकुंवर), ८६३२२(+), ८९१०७(+$), ८५६६८(#$), ८६२५९(#) For Private and Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४८ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमराजिमती ९ भव वर्णन स्तवन, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपु., (कीम आवा कीम फिर). ८८५६१ नेमराजिमती गीत, पं. जयकरणजी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (हां हो नेमजी लागी), ८८२७६-२(#) नेमराजिमती गीत, पंडित जयवंत, मा.गु गा. ३, पद्य, भूपू (ओ सखी अमीय रसाल कद), ८८६२२-१ नेमराजिमती गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (घर आवोजी आंबो मोरीयो), ८८६२७-२ नेमराजिमती गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु. गा. ११, पद्य, भूपू (सहेल्या हे आयो आयो प) ८८६२७-१ " नेमराजिमती गीत. ग. जीतसागर, पुहिं. गा. १५, पद्य, मृपू., (तोरण आया हे सखी कहे). ८७३३९-४(*), ८८२१९, ८८८१४-१ नेमराजिमती गीत, मु. यशोवर्द्धन, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू. (ससनेही राजुल विनवै), ८७२१८-१ (+) , " नेमराजिमती गीत, मु. रामविजय, पुर्हि, गा. ७, पद्य, भूपू (सुन सांई प्यारावे), ८९०९२-३ नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपु. ( अलबेले नेमकुमार होरी), ८६७७५-८ नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, पुहिं, गा. ६, पद्य, थे. (आजू मे वारि नेमजी), ८८६६३-२ (# ) नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू., (नेम मले तो बातां), ८९०८३-२ नेमराजिमती गीत, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे. (कर जोड़ी करु एक), ८७४७८-१ " ', नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नेम वंदन राजुल चली), ८८०७५ नेमराजिमती गीत, मु. शांतिहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सखीरी बोलइ राजल नारी), ८८९०३(+#), ८८८१४-२ नेमराजिमती गीत, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (मेरी बहिनी मि पीछलइ), ८७४७८-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (समतविजेसरत नेम बिराज), ८७२९६-२) नेमराजिमती चौपाई, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ४१, वि. १८०४, पद्य, स्था. (नवरी सौरीपुर राजीयो), ८९०५५ (नाडा नेमराजिमती तेरमासा, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२८, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (प्रणमुं विजया रे), ८८१४८-१(+$) नेमराजिमती नवभव स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १७३७, पद्य, मूपु. ( नेमजी आव्या रे सहसाव), ८६१७३, ८८७७८-२(#S) नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., डा. ९, गा. ४०, पद्य, मूपू. (समुद्रविजय सुत चंदलो), ८६१८६(१), ८६४६४, ८६९९६ नेमराजिमती पद, मु. चेनविजय, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू (राजुल पोकारे नेम), ८७९१८-३(*) " मराजिमती पद, मु. जिनदास, रा., गा. ८, पद्य, मूपू., ( स्याम मिलन की उमग), ८८२०३-१ नेमराजिमती पद, मु. ज्ञान, पुहिं., पद. १, पद्य, मूपू (जदुराय च वर राजुल), ८९१३०-२ नेमराजिमती पद, मु. ज्ञानसुंदर, पुहिं., पद. २, पद्य, मूपू., (लाल घोडो लाल पाघ लाल), ८९१३०-४ नेमराजिमती पद, मु. बोलत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अंतरजामी मोरा मोरा), ८७७८०-४ नेमराजिमती पद, मु. दोलत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (एमे हाढा रे मनाउ साम), ८७७८०-५ नेमराजिमती पद, मु. दोलत, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू.. (प्रभु मेरे प्राण), ८७७८०-३ नेमराजिमती पद, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू, (नव भव केरी प्रीत), ८८७३५-२(*) नेमराजिमती पद, मु. प्रेम, रा. गा. ५, पद्य, म्पू., ( थे जोवो रे जादव तोरण), ८६१३९-३(+) नेमराजिमती पद, मु. प्रेम, रा. गा. ३, पद्य, म्पू, (सामवरणा हो साहेब) ८६२१२-२०(+) नेमराजिमती पद, मु. रतनचंद, रा. गा. ३, पद्य, भूपू (बातडली सुण जाज्यो), ८८०१४-२ नेमराजिमती पद, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे. (रहो रहो सांवलीया), ८६९१२-४(#) नेमराजिमती पद. मु. लब्धिरूचि, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू. (जरा सुणो बालम मोरी), ८६७२३-२(*) , " " , . י मराजिमती पद, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मृपू., (आ नेमजी सुं कहियो), ८५९७७-१० (+४) नेमराजिमती पद, मु. विनयचंद ऋषि, पुठि, गा. ७, पद्य, वे. (नेम वतावन व्याहन आए). ८८८८७-२ " नेमराजिमती पद, मु. सेवक, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (द्वारकापुरसु चालया), ८६२२८-१ नेमराजिमती पद, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे. (अली हां हां वो), ८९०१७-५ (+) " नेमराजिमती पद, मा.गु., पद्य, वे. (आवो कोकीउ रे मुझी), ८९०१७-४(*) नेमराजिमती पद, मा.गु., पद्य, म्पू., (गिरवर धीमा चालो राज), ८८९०९-४(+) For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५४९ नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (टुक नजर मैहरदी करणा), ८८९०९-१(+) नेमराजिमती पद, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (पूछोनी जीया तरसेनी), ८६९२९-१(2) नेमराजिमती पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (हे रे जी रे आडंबर कर), ८६५२०-१(+-) नेमराजिमती पद-केशरीया, मु. नथमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (जो थे चालो सिवपूरी र), ८८१९४-४(+) नेमराजिमती पद संग्रह, मु. ज्ञान, पुहिं., पद. ५, पद्य, पू., (सुरसरी सुख कारन तारन), ८६२२७-२ नेमराजिमती बारमासा, मु. अमरविशाल, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (यादव मुझनैं सांभरै), ८६८७४, ८८८२६ नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (सांवण मासे स्वाम), ८७९२६-१(+), ८९१०६, ८५८९८(२), ८९२८४(२) नेमराजिमती बारमासा, मु. कान कवि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (राणी राजुलनो भरतार), ८८१९६-३(#) नेमराजिमती बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.१३, पद्य, मूपू., (राणी राजुल इण परि), ८८०७० नेमराजिमती बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (वेसाखे वन मोरिया), ८८३६१ नेमराजिमती बारमासा, मु. दयाचंद, मा.गु., गा.१६, पद्य, श्वे., (नेम पियारा सांभलो एक), ८७४४२ नेमराजिमती बारमासा, मु. देव, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे., (का ढुंदरी नेमनाथ), ८६५९१(#) नेमराजिमती बारमासा, मु. नेमविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (ससीएदनी नयनांबुझी), ८८१३५(+#) नेमराजिमती बारमासा, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २२, वि. १९११, पद्य, श्वे., (राजुल उभी विनवे रे), ८८३३०-१(+),८७०१८ नेमराजिमती बारमासा, मु. लालविनोद, पुहि., गा. २६, पद्य, मप., (विनवे उग्रसेन की), ८६३३३(+#), ८५७९५-१ नेमराजिमती बारमासा, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (चढी सांवणे सामि), ८५७८०-४ नेमराजिमती बारमासा, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २८, वि. १७२८, पद्य, मप., (मागसर मासे मोहिनीयो), ८७९९२-१(#) नेमराजिमती बारमासा, मु. हर्षकीर्ति, पुहि., गा. २६, पद्य, मूपू., (हो सामी क्युं आये), ८६४६८-१(क), ८६६११, ८७२४९, ८९१२०-२ नेमराजिमती बारमासा, मा.गु., पद्य, श्वे., (मोही तारा मुखडा), ८७७७०-२(-१) नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मपू., (सारद पय पणमी करी), ८५९४१(+), ८८५९४(+), ८७१३७, ८७४१९, ८७३९८(45), ८९०५३(#) नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (फिकर अब लगी मेरा), ८८९४१-२(+) नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (मेरा दख मत कर मेरि), ८६१५०-२(+) नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूप., (वीलखे वदन भोले नलके), ८८३१८-३ नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सजन विना गुना तजी हम), ८६८६२-७ नेमराजिमती लावणी, मु. प्रेम, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (तम सुख संपत के दरीया), ८६२१२-२(+#) नेमराजिमती लावणी, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजुलराणी नेम पुकारै), ८६७२३-१(+) नेमराजिमती लावणी, पुहिं., पद. ५, पद्य, मूपू., (हे री हे री माई मेरो), ८६८६२-५ नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (स्वस्ति श्रीरेवंतगिर), ८७५४५, ८८५९९-१ नेमराजिमती विंझणो, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आव्या आव्या उनालाना), ८८५५२(+) नेमराजिमती विवाहलो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २९, पद्य, मपू., (जूनारेगढ केरी रे जोउ), ८७३३० नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., गा. ३२, पद्य, मूपू., (हठ करी हरीय मनावीयै), ८७५०२(#) नेमराजिमती सज्झाय, उपा. अमरसी, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (पंथीडा हरकर कहै रे), ८७८२९-१, ८८३३७-१ नेमराजिमती सज्झाय, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १७३०, पद्य, मपू., (श्रीनेमिसर नित नमु), ८८४७९-१(+-) नेमराजिमती सज्झाय, मु. चंदनलाल, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (प्रथम मनाउ श्रीनवकार), ८६५३०($) नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (राजुल इण परि वीनवै), ८८९०१-४ नेमराजिमती सज्झाय, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (कविमाता करज्यो मया), ८७२१८-२(+#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नेम कांइ फिर चाल्या), ८८२५७-२(#) For Private and Personal Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. धरम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नव भव केरी प्रित धरी), ८८३३७-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. माणक, मा.गु., गा. १८, पद्य, मपू., (पहिली तो समरूं हो), ८७१०६(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. मेघाशिष्य ऋषि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सकल सिणगार सजी करी), ८९२१३-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. रंगसोम, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (विनवे राजुल नारी हो), ८८८६८-१(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (समुद्रविजयजीरा लाडला), ८५८६३-१(-) नेमराजिमती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (नगर सोरीपुर शोभता), ८८६४०-१(-) नेमराजिमती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. १, गा. १८, पद्य, मपू., (सुमद सेवादेजी राणी), ८९१८१(६) नेमराजिमती सज्झाय, श्राव. रुपचंद, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (अणसमजूंजी सी सीखामण), ८७२३५-१(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सकल सज्जन सर्थि), ८७०११-३(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पियुजी पियुजी रे), ८९०८६-१(+), ८६०६७-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गोखे रे बेठी राजुल), ८७११९-४(+), ८८९४८(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २८, पद्य, मपू., (बे कर जोडीने वीनवू), ८८५५०-१ नेमराजिमती सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गीरनार की वता दे), ८८३८३-२ नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कपूर होवे अति उजलो), ८९३००-२ नेमराजिमती सज्झाय, पं. हिम्मतविजय गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सहसावनि नेमि राजुल),८५७२९-२(+) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (नेमनाथ मनावता गयो), ८७३२८ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (पूरा तो लागो नेमजी), ८८३७८-२(+) नेमराजिमती सज्झाय, रा., गा. ३४, पद्य, मपू., (म्हे धावाला प्रभू), ८६४०१ नेमराजिमती सज्झाय, रा., पद्य, मूपू., (म्हे ध्यावला हो), ८५७८०-१ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रीनेमीसर नित नवा), ८८६७२-१ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मप., (सुंदर स्याम संदेसो), ८६५८५-१(+) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सुणजोरी वात सहेली), ८९३०७-३(-) नेमराजिमती सवैया, मु. गुणविनय, मा.गु., सवै. ९, पद्य, मूपू., (लाला भानु प्रात), ८९१३०-५ नेमराजिमती स्तवन, मु. अनुपकुशल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सिवादेवी जाया मुज), ८६७७४-१(2) नेमराजिमती स्तवन, मु. अमीयकुवर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सांभल सजनी रे मारी ह), ८७५०१(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. कनककीर्ति, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जान सजी जादव जुड्या), ८८०९८-१(2) नेमराजिमती स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (नवभव केरी प्रीत खरी), ८८०१६-२ नेमराजिमती स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूप., (चंपक वरणी चुंनडी आजो), ८८१५५-२ नेमराजिमती स्तवन, मु. गुमानचंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (सखी मुज छोड चले सांइ), ८९२३२-१ नेमराजिमती स्तवन, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सदगुरु पाय गा), ८७८५९ नेमराजिमती स्तवन, ग. जिनहर्ष, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जब मेरो साहिब तोरण), ८८०१०-३ नेमराजिमती स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (लूंबी झूबी रह्यो), ८८९२१-२, ८६७७८(), ८७४३६-१(2) नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवल गोखने अजब जरोखे), ८८१५९-२, ८८८५४-१, ८९०८३-१,८६७३२-२(#) नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (घडी एक रहोने रथ राखि), ८७११९-२(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. न्याय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (पुनः किहां गयो रे), ८८९५५-२(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. प्रेम, पुहि., गा. ७, पद्य, मप., (हे मेरो मन वस कर लीन), ८७५९९-२(+) नेमराजिमती स्तवन, पं. मनरुपजी, रा., गा. ९, पद्य, म्पू., (प्रभु थे समुद्रविजै), ८८३५५-२(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कां रथ वाळो हो राज), ८७३१६ नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, स्था., (मोरा वालमजीनी वाट), ८८८४२-२(2) For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (यादवजी हो समुद्रविजय), ८८२००-१ मराजिमती स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पोपटजी संदेशो कहेजे), ८६०१८-१(१) राजिमती स्तवन, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (यादवराय आठ भवांरी), ८६८३३-२ नेमराजिमती स्तवन, आ. रामचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, वि. १९५२, पद्य, . ( बोलो बोल रे दील खोल), ८६०९४-२(१) मराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नेमनाथ अरज सुणो अरज), ८८३००-१(5) मराजिमती स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (मात सिवादेवी जाया), ८९२०४-१, ८९०९७-२(३) नेमराजिमती स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (नीरंजन यार वो टुक), ८७६९७ 3 मराजिमती स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि सिं, गा. ९, पद्य, मूपू. (साहिब मझ्डा चंगी सूरत). ८७६१०-३ (*) नेमराजिमती स्तवन, मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (इम राजुलरांणि जंपे), ८८२६२-२ नेमराजिमती स्तवन, मु. हीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धन धन बावीसमु जिनराज), ८६५६५-२ नेमराजिमती स्तवन, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपु., (आदु जोगी जन्म का नहीं), ८८२४८-१ नेमराजिमती स्तवन, पुहिं. गा. २०, पद्य, श्वे. (क्यु आया किम फीर). ८८२८८, ८६८०८-२ (४) राजिमती स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जान लेइ जादव सढ्या), ८७९३२-१ नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (नेम पिया संग जाउंगी), ८८२०३-२($) मराजिमती स्तवन, पुहिं. गा. १०, पद्य, म्पू, (राजूल सखि आइ मिल सगर), ८८०४५-२(३) " नेमराजिमती स्तवन रा. गा. ६, पद्य, वे. (समुद्रविजजीरो लाडलो), ८८०१४-१ 2 " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. १५, वि. १८२५, पद्य, मूपू., ( पडवे प्रीतम रे प्रेम), ८६४३५ नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (जे जिनमुखकमले विराजे), ८८७७० (+$), ८५६३९-१, ८६३७८ नेमराजिमती स्तुति, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अलबेली छबीली रंगीली), ८८०५७-१(+) नेमराजिमती होरी, घेलचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., नेमराजिमती होरी, क. चतुर, पुहिं. गा. ३, पद्य, भूपू नेमराजिमती होरी, म. धनिवास, पहि. गा. १०. वि. १९१३, पद्य, श्वे. ( सब रुत को सिणगार ), ८६५८५-३(+) मु. नेमराजिमती होरी, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, म्पू. (होरी के दिन चार चलो), ८६७७५-७ (कीन संग खेलुं में), ८६७७५-६ (राजुल सुंदर नार शाम), ८६७७५-४ " . " नेमराजिमती होरी, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ८, पद्य, म्पू., (होरी खेलावत कानइआ), ८६७७५-३ नेमराजिमती होरी, पं. सुबुद्धिविजय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (कृष्ण गोपंगज्ञा घेरि ), ८६१७९-१ नेमसागरगुरु गहुंली, मा.गु.. गा. ९, पद्य, भूपू (गुरुजी आव्या रे), ८७३९५-३(*) नेमिजिन गजल, मु. रंग, पुहिं. गा. २६, पद्य, मूपू., (सतगुरु चरण में भजना), ८६२२७-१ , नेमिजिन गीत, वा. जसविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुरति मंडण केलनाणी म). ८९०८६-२(*) नेमिजिन गीत, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (वैठो हियडइ आविनै हे), ८९१३७-२(#) नेमिजिन गीत, श्राव. लींबो, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीगिरनारें त्रिण), ८८९५५-४(+), ८६४९३-३ नेमिजिन गीत, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जीवन आवो रंगइ रमिइ), ८७४३० (+) नेमिजिन गीत, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजल बिठी मालीइं), ८८८८०-१(+) नेमिजिन गीत, रा., गा. १७, पद्य, श्वे. (सरसत सामण वीनय गणपत ), ८८७१६ नेमिजिन चरित्र, रा. डा. १४, पद्य, " वे. (संकराजा जशोमतीराणी), ८५७७२(+) " " नेमिजिन चुनडी, मु. हीरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सीयल सुरंगी चुनडि), ८८२३२-१ नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू., (राजुलवर श्रीनेमनाथ), ८७८७२-३(७) नेमिजिन छंद, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (गोल गलो नि साकर भेली), ८८९११-१ नेमिजिन जान वर्णन, मा.गु., गद्य, म्पू.. (द्वारामतीनगरी), ८८६७१-२ (+) नेमिजिन तपकल्याणक, मु. सुनंदलाल, मा.गु., डा. ९, गा. ४२, वि. १७४४, पद्य, श्वे. (अरि गुरु गणधर देव), ८६३६७(*) For Private and Personal Use Only ५५१ Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमिजिन धमाल, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (आए बसंत ऋदय प्रभुजी), ८९२८९-१ नेमिजिन नवरसो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. ५, गा. ७२, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (सरसति सामिनी पाय नमी), ८६७२८(+), ८६०३६, ८८५०६, ८६४८९(5) नेमिजिन पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद. ९, पद्य, मूपू., (खेलत नैम कुमार ऐसे), ८५९७७-७(+#) नेमिजिन पद, चंद्रगुलाब, पुहिं., पद्य, मूपू., (नेमजीकु जावा न देती), ८५८३७-२(2) नेमिजिन पद, मु. दोलत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेमीसर वांदवा नेमी), ८७७८०-१ नेमिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पहि., गा. ४, पद्य, मूप., (तुम बिन ओर न जायँ), ८५८७२-३ नेमिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. २, पद्य, मप., (सयन की नयन की वयन), ८८५२१-९(+$) नेमिजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (घरे आवो रे पूर्वी एक),८८८४२-३(#) नेमिजिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हेली गिरनारै बोल्या), ८८३७४-४ नेमिजिन पद, श्राव. लींबो, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीगरनारे त्रण कल्य), ८७५९०-२ नेमिजिन पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (छपन करोड जाद जान), ८५८४०-२(+) नेमिजिन पद, रा., गा. ५, पद्य, मप., (नेम जिणंद मोए प्यारो), ८८८४२-५(#) नेमिजिन पद, मा.ग., गा. ३, पद्य, मप., (वासनो सोहान बस राख), ८७७८०-६ नेमिजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (संजम को सारो रस लायो), ८७७८०-२ नेमिजिन फाग, मु. राजहर्ष, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (भोगी रै मन भावीयो रे), ८८७३८(+-), ८७२९६-१(-) नेमिजिन बारमासा, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जी स्वामी की आया), ८५६९५ नेमिजिन बारमासा, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (नेणारी मारी नामरू), ८५९०२(+) नेमिजिन बारमासा, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (समुद्रविजयरा पुत), ८७८५५-१(+), ८७१४९-१(-) नेमिजिन बारमासो, पुहिं., गा. १४, पद्य, मप., (अब सखी आयो है सावण), ८८१००(+#$) नेमिजिन बारमासो, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (राजिमती कहै नेमजीने), ८५९२५-२ नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, मूपू., (राजुल सहीयन इम कहथ), ८६९४५(+-#) नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७३६, पद्य, मपू., (समुद्रविजय कुलचंदलो), ८५९९१(+) नेमिजिन रास, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., गा. ७९, पद्य, मपू., (नेमी प्रणमइ सुरनर), ८९१३७-१(#) नेमिजिन रास, पं. कमलकीर्ति गणि, मा.ग., गा.१६, पद्य, मप., (पणमिय सारद सामिणी गउ), ८७७३०(+#) नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुम तजीय कर राजुल), ८८२४१, ८५९५९-१(#) नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सजन समजावो अपने मन), ८७३७२-१(-) नेमिजिन लावणी, मु. माणेक, मा.गु., ढा. ४, गा. १६, पद्य, मपू., (श्रीनेमि निरंजन बाल), ८७१६९(+), ८६३१३(2) नेमिजिन सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (ए संसार असार सरूप), ८५९३५-१(+) नेमिजिन सज्झाय, मु. दीपविजयशिष्य, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (भाखें श्रीभगवंत), ८७२२९ नेमिजिन सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (देस विदेह सोहामणु), ८७७३८-२ नेमिजिन सलोको, मु. कुशलविनय, मा.गु., गा. २२, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (--), ८८२५७-१(#$) नेमिजिन सवैया, मु. धर्मसिंह, मा.गु., सवै. १, पद्य, मपू., (राजीमती सती सेती), ८९२८०-५(+) नेमिजिन स्तवन, मु. अमृतविमल, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मपू., (सखी आई रे नेम जान), ८६५७२ नेमिजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (सांमलीया सिद्धनें), ८६४६५-३(+) नेमिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (हुं छु रे अबला ताहर), ८९०४८-२(#) नेमिजिन स्तवन, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (प्रभुजीना ध्यानमा र), ८६४३४-३ नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (कालीने पीली वादली), ८८८६८-२(+) नेमिजिन स्तवन, मु. कुसालचंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, स्था., (प्रभु समदविजय सुत), ८७८३७ नेमिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जगपति नेम जिणंद प्रभ), ८६११७-१ For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ नेमिजिन स्तवन, पं. खेमचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसत मात मनायकैजी), ८७९४१ नेमिजिन स्तवन, मु. गजेंद्र, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (जिहा नेमीजिणंदा सुरप), ८८८५७-४ नेमिजिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (समुद्रविजे सुत लाडलो), ८८६०७ नेमिजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (तोरण आवी कंत पाछा), ८७३६२ नेमिजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (उभी राजूल देराणि अरज), ८८२६२-१ नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ७, पद्य, मपू., (दोय घडीया बे वारी), ८५८५४-३(+) नेमिजिन स्तवन, मु. नित्यविजय, रा., गा.५, पद्य, मूपू., (सूरति थाहरी हो), ८६०६७-१ नेमिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (तोरणथी रथ फेरी), ८७०९४-१(5) नेमिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (शामलिया लाल तोरणथी), ८७१४८-२ नेमिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (दशयदसार छपन कुल कोडी), ८९१५८-२(+) नेमिजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा.११, वि. १९०८, पद्य, मूपू., (समुदविजय सुत लाडलो),८७५९९-१(+) नेमिजिन स्तवन, मु. भवानीदास ऋषि, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (गीरनारी की बता दो), ८६९९३-२ नेमिजिन स्तवन, मु. माणकचंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मप., (सकल नगरमां तिलक समोव), ८६३९८-१ नेमिजिन स्तवन, मु. मानसागर, मा.गु., गा. १९, वि. १७४८, पद्य, मूप., (नेम वल्यो रथ मोरिने), ८९०१४-१ नेमिजिन स्तवन, मु. मोहन, पुहि., गा. ७, पद्य, मूप., (सजेलार जलधार सुखकार), ८६०४८-१(#) नेमिजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (ना करीये रे नेडो), ८८७५८-२(#) नेमिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (सांवरियो साहेब है), ८६९१२-२(#) नेमिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (सांवलिया साहेब), ८६९१२-१(#) नेमिजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (मारा नेम पीयारा), ८५९३०-२(+), ८९०९२-२ नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (श्रावण वरसो रे स्वाम), ८८७५८-१(2) नेमिजिन स्तवन, क. लाभहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (सामलिया सुंदर देहि), ८८६२२-२ नेमिजिन स्तवन, मु. लाल, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (गढ ऊंचो घणो रे), ८५७९२-१ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (आवो आघा आवो हो सासु), ८८५६०-२(+) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (चालोरी मनावण जइय ए), ८८९५९ नेमिजिन स्तवन, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (संजम तो मरम न दिल), ८६४७७-४ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (समुद्रविजय को लाडलो), ८६०३५-१ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (समुद्रविजयसुत शिवा), ८८११९(+) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (सुणो स्वामि हमारा रे), ८६७१७-१, ८८२१७(२) नेमिजिन स्तवन, रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (हो जी माता शिवादेवी), ८७८५५-२(+), ८७१४९-२(-) नेमिजिन स्तवन-नवभव गर्भित, मु. नयशेखर, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मप., (श्रीसहगुरुना पायइ), ८९२६६(+) नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., कडी. ३६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (जायवकुल सिणगार सिरि), ८६२८५(+#) नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूप., (श्रावण सुदि दिन), ८७२८८-२(#), ८७०००-३($), ८७०१५-१(६) नेमिजिन स्तुति, पंन्या. महिमाविजय, मा.गु., गा. ४, वि. २०वी, पद्य, मप., (श्रीगिरनारशिखर सिणगा), ८६३८७, ८६७३१ नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कुगति कुमति छोडी), ८६०२७-२ नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुर असुर वंदित पाय), ८६३०८-१(+), ८७५९१-२(+), ८७६९४-२(+), ८६१४७-३, ८९२८१-२ नेमिजिन स्तुति-मौनएकादशी महात्म्य गर्भित, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (मौनएकादशी मुझ), ८८८१२-३(+) नेमिजिन हालरडुं, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (गावे हालरियो मा शिवा), ८८४५६-४ For Private and Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५४ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमिजिन होरी, मु. ज्ञानउद्योत, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू.. (एक समे घनशामकी सुंदर ), ८६७७५-९ नेमिजिन होरी, मु. मूलदास, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (देखो सूंनयां होरी), ८६५८५-४(+) नेमिजिन होरी, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (गोपी गोवालन होरी नेम), ८६७७५-५ पंचजिन आरती, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहली आरती प्रथम), ८८२८४-३ पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. (सुखदाइ श्री आदिजिणंद), ८७८७२-११७) पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ५, पच, म्पू, (अरिहंत देवा चरणोनी) ८७५१०-१(+) पंचपद महिमा, मु. राम ऋषि, पुहिं., गा. ५९, पद्य, स्था., (सरव आगमसार श्रीनवकार), ८७६५५-१(#) पंचपरमेष्ठि आरती, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पहिली आरती अरिहंत), ८७३९०-२(#) पंचपरमेष्ठि विवरण, मा.गु., गद्य, मृपू., (अर्हतो भगवंत इंद्र), ८७२४२ पंचम आरा सज्झाय, मु. जिनहंस, मा. गु, गा. २१, पद्य, मूपू (वीर कठै गौतम सुणो), ८७६७७ (४) " पंचम आरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहे गौतम सुणो), ८६७५४(+), ८७४०१(+), ८६५२८ पंचमआरा सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे. (श्रीजिन चरणकमल नमी), ८६३६८, ८७१८५-१ " पंचमआरा सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (पंच आराना भाव रे), ८६६०९ पंचमीतप पारने की विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (तपकरी उजमणो कीजै), ८६२०५-१ पंचमीतिथिपर्व सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सद्गुरू चरण पसाउले), ८६५७८-२ (+$), ८६७०८-२(+), ८६७६१-२, ८८०३९-१, ८८४११-२, ८८५७०-१ पंचमीतिथि विधि स्तवन, मा.गु., प+ग. म्पू, (पहलो अंग सुहामणो रे). ८८०६२ पंचमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू. (पुनयी पांचम एम वदे), ८८७८५ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचमीतिथि सज्झाय, मु. हंसविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसती चरण नमि करी रे ), ८६९२६ - २(+$) पंचमीतिथि स्तवन, मु. वर्धमान ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. पंचमीतिथि स्तुति, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु. गा. ४, पद्य, भूपू पंचमीतिथि स्तुति, मु. कीर्तिरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर साथे), ८७०९३-१ पंचमीतिथि स्तुति, मु. जीवविजय; मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १७८४-१८००, पद्य, मूपू., (पंचमी दिन जनम्या नेम), ८७०००-२ पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचरूप करि मेरुशिखर), ८७४९३-३ पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु गा. ४, पद्य, मूपू. (सुविधिनाथ जिन जनम), ८८५१७-४ १४८४, पद्य, मूपू., (सारद प्रणमी पाये सकल), ८७२२७ (पंचमी संभव ज्ञान), ८७१०२-२(४) पंचसहेली रास, क. छहल, पुहिं. गा. ६१. वि. १५७५, पद्य, इतर (देख्या नगर सुहामणा), ८७७१८(२) " . " पंचेंद्रिय ढाल, मा.गु., डा. ६, पद्य, मूपू., (वीर नमु तीरभुवन तिलो), ८८९२८ पकवान आदि कालमान विचार संग्रह, मा.गु., गा. १, प+ग, वे. (वासीसु पनर दिवसो), ८५९४०-१ " पक्षी परिवार कवित्त, पुहिं. गा. १३, पद्य, वै., इतर ( तीतर सवार पवो पै दल), ८६६७३-४ पच्चक्खाणकल्पमान यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (आसाढ मासे दुपया कहता), ८५८५७-३(+) पच्चक्खाण फल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रह उठीने दस पचखाण), ८८२२८-२ पच्चक्खाणफल सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभु पगलां प्रणमी), ८८९३३(+#) पच्चक्खाण सज्झाय, आ. सौभाग्यरत्नसूरि, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर प्रणमी करी), ८७८००-१ पट्टावली, मा.गु., गद्य, मूपु. ( आचार्यश्रीजयप्रभसूरि ८७८७५-२(१) ', पट्टावली, मा.गु., गद्य, श्वे. (श्रीजेसलमेर का भंडार ), ८८०५५ (+$) पट्टावली*, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानतीर्थं), ८७९७८ पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., अंक. ७४, गद्य, मूपू., (श्रीवर्धमानस्वामि१), ८६१५५ (+$), ८६६१८, ८८४८६, ८८६३८-१(म) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानस्वामि शिष), ८६५८३, ८७१८२ For Private and Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५५५ पट्टावली-तपागच्छीय, पुहिं., पद्य, मप., (वीर पाटि श्रीसोहम), ८७४८३(+$) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीवर्द्धमान), ८९२२१-१, ८५६३२(#), ८७५४४(#$) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, पू., (श्रीवर्द्धमानसामी), ८९०८१(+), ८९०६१ पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., ग्रं. २२५०, गद्य, मूपू., (श्रीवीर वर्धमानस्वाम), ८५८३५ पट्टावली लोंकागच्छीय, रा., गद्य, श्वे., (श्रीमहावीरस्वामीने), ८७७५२-२ पट्टावली सज्झाय-तपगच्छ, मु. हर्षसागरशिष्य, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (श्री सोलमो जिन शांति), ८९००२(#) पद्मप्रभजिन गीत, मु. वीरमसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभु जिनवर नमु), ८९२६४-१ पद्मप्रभजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (पदमप्रभु जिन ताहरो), ८६३०९-७(+), ८७१८९-२(+#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पद्मचरण जिनराय बाल), ८७३९९-२ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. धनजी शिष्य, मा.गु., गा. ९, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभू प्रणमु हर), ८७२९०-२(2) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपद्मप्रभुना नाम), ८६४९३-१ पद्मप्रभजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभुसु काजसुं), ८९०३७-२ पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धन धन संप्रति साचो), ८८३०७, ८९०९९-१ पद्मावती आरती, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (जय जय पद्मे मा जय जय),८६८०५-२ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), ८५७९० (+#), ८५९४६(+), ८६०००-१(+), ८६०७६-१(+), ८६१९८(+), ८६३५०(+#), ८७९६८(+), ८८८५२(+), ८९१९८(+), ८५७०७, ८६२१५, ८६७४४, ८६८६७, ८६८९२, ८७२१३, ८७३०६-१,८७८०४, ८८५४९-२, ८८९१४,८८९७२-२,८८१९२-१(#), ८८३५२(१), ८५६५०(5), ८९००१(६), ८६५९३(-), ८६७५१(-) (२) पद्मावती आराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (हिवे पद्मावती राणी), ८६२१५, ८९००१(६) पद्मावती आराधना बृहत्-जीवराशिक्षमापना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ८२, पद्य, मूपू., (हिवे राणी पद्मावति), ८६७४०(+) पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूप., (श्रीपार्श्व प्रतिमा), ८६८०९-१(+) पद्मावतीदेवी स्तवन, मु. कवियण, मा.ग., गा.१५, पद्य, मप., (जय जय जिनशासन सामिनी), ८९३०१-२ परदेशीराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (राय प्रदेसी मुकीओ), ८६९७१(६) परदेशीराजा सज्झाय, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (आइ राजान इम कहे), ८७३०८(-#) परनारी परिहार पद, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (देखे पराई नारि के), ८७४३२-३ परनारी परिहार सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (सुण चतुर सुजाण पर), ८६७४५-१ परनारी परिहार सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अहो चतुर परनारी मत), ८८०८६-२(+#) परनारी परिहार सज्झाय, पुहि.,रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (रावण मोटो राय कहावै), ८७०८८-२(+#), ८८६६५-३(+-) परनारी परिहार सज्झाय, रा., गा. २८, पद्य, श्वे., (सुण मेरा चुत्र सुजाण), ८८६६५-१(+-) परमाणंद गीत, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. १३, पद्य, पू., (स्वामी माहरउ निरुपम), ८८८०१-१ परमात्मछत्रीसी, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ३६, पद्य, मप., (परमदेव परमातमा परम), ८७९७९(+), ८८९५८ पर्युषणपर्व अठाई स्तवन, मु. हेमसौभाग्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पास जिणंदा), ८६१०४(+), ८६७८६(#) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (सकलपर्व शृंगारहार), ८६५८७(+), ८६६०२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कल्पतरुवर कल्पसूत्र), ८६३०३-३ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिननी बहिन सुदर्शना), ८६३०३-५($) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीदेवाधि), ८६३०३-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, पू., (श्रीशजय शृंगार), ८६३०३-१ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (सुपन विधि कहे सुत), ८६३०३-४ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (पर्व पर्युषण गुणनीलो), ८८११४(+), ८७७६७, ८८०३८-१, ८६८००(2) For Private and Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पर्युषणपर्व नमस्कार, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमंडणो), ८६२२९(+), ८६४२५ पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूप., (प्रथम प्रणमु सरस्वती), ८६४८५(+), ८५६४१-१, ८६८९५, ८८९०२ पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसरस्वती मातने ध्), ८६०२०-२ पर्यषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.ग., गा. ११, पद्य, मप., (पर्व पजुषण आवीया रे), ८७०५९-१(+), ८६७११-१,८९२१९-१ पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. माणेकविजय, मा.गु., ढा. ११, गा. १२७, वि. १८वी, पद्य, मपू., (पर्व पजूसण आवीया रे), ८६०२०-१ पर्युषणपर्व सज्झाय-व्याख्यान-१, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (पर्व पजुसण आवीया आनं), ८९२१९-२ पर्युषणपर्व सज्झाय-व्याख्यान-३, मु. माणेक मुनि, मा.गु., गा. ९, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (देखी सुपन तव जागी), ८६२९० पर्युषणपर्व स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीपजुसण परव सेवो), ८६२९२-१(+), ८८३५३-१ पर्युषणपर्व स्तवन, मु. विबुधविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुणजो साजन संत पजुसण), ८८५४९-३ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुण्ये), ८८३२६-३(+) पर्यषणपर्व स्तति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (वली वली हुं ध्याव), ८७२५४-२(+), ८७६९४-६(+) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूप., (वरस दिवसमां अषाड), ८८१८१, ८८००७-२(#) पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण पुण्ये), ८५६४१-२ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर अतिअलवेसर), ८६९७८-१(+), ८८५८७-४ पर्युषणपर्व स्तुति, आ. भावलब्धिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुण्यवंत पोशाळे आवे), ८५८५५(+) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सत्तरे भेदे जिन पूजा), ८७०००-१, ८८४१५-३, ८८५०२-२ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण पुण्ये), ८८५०२-१ पर्वत नाम संख्या , मा.गु., गद्य, श्वे., (भरत १ हीमवंत२ हेमवंत), ८६४२३-३ पर्वत नाम संख्यादि मान विचार, मा.गु., को., मूपू., (--), ८८५९१(2) पर्वतिथि चर्चा, मु. हर्षचंद्रजी, मा.गु., गद्य, मपू., (जे चवदसांदिक दोय), ८५७७४ पल्योपम-सागरोपम त्रण प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पल्योपमना त्रण भेद), ८७२२२-२ पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., खं. ९ ढाल १५१, ग्रं. ५७५०, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू), ८६४०६, ८८७४२ पांडव सज्झाय-शत्रंजयतीर्थगर्भित, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. १९, पद्य, मप., (जी हो पंच पांडव मुनि), ८५६८४ पाक्षिकतप पारणा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पखवासा तप पूरौ हुवा), ८६८५८ पार्वती छंद, पुहिं., गा. ९, पद्य, वै., (मेर सुता तुं जग जोय), ८९२५८-२ पार्श्वजिन १० भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मपू., (जंबूद्वीप भरतक्षेत्र), ८७५७०(+) पार्श्वजिन अष्टक, ग. मयाचंदजी, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति सुमति आप), ८६१८५ पार्श्वजिन आरती, मु. सुखविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (पेली आरती अश्वसेन), ८७४८५(+) पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे एही ज चाहीइं), ८८२२६-१, ८८४०५-६ पार्श्वजिन गीत, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (बे दरवाजे तेडे खोल),८८९५५-९(+) पार्श्वजिन गीत-गोडीजी, मु. राम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (श्रावण आयौ रे मास), ८८३७७-१ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (जय जय श्रीपार्श्वनाथ), ८७८७२-४(#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, क. हेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (जय जगततारण दुखवारण), ८६६८३-३(+#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर गाममे), ८८५६६-१ पार्श्वजिन छंद, मु. विनयशील, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (अश्वसेन कुल कज सुर), ८५७३७-५ पार्श्वजिन छंद, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ८७३१९(#$) पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., (सरसत मात मना करी), ८६०१३, ८७४६९, ८९२०७, ८५७९१(६), ८८३४७(5) For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५५७ पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५५, वि. १५८५, पद्य, मूपू., (सरस वचन दियो सरसति), ८६७०३, ८७९९७(#), ८६६९९(5) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मपू., (सुवचन दे मुझ शारद), ८६३४७(+#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सरसति सुमति आप), ८९१५९(+#), ८९२४६-२(+#), ८७६२९(१), ८८२१०-१(#$) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. वनीतराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (सुख संपत दाई सुजस), ८६९२२(2) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूप., (पूरणवंछित पामीइ दूयण), ८५७२१ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.ग., गा. ४६, पद्य, मप., (सुवचन आपो शारदा मया), ८७७२४-१,८८०२९,८७०३५-२($) पार्श्वजिन छंद-चिंतामणि, मु. चेतन, मा.ग., ढा. २, गा. २६, वि. १८३७, पद्य, मप., (कल्पवेल चिंतामणि), ८६६०६-१ पार्श्वजिन छंद-चिंतामणि, मुहम्मद काजी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (अचिंत चिता चिंतामणि), ८८६७१-१(+), ८८३०२ पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आपण घर बेठा लील करो), ८५८८३-९, ८८४७८-२(#), ८९०८८-२(#) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पास शंखेश्वरा सार), ८६४७२-५(+#), ८७६११(+), ८६०८६-१ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), ८६१०८-१(+9), ८५८४३-२, ८७१००, ८७२०३-२, ८७५८०-१, ८८७०५-२, ८८७७५-२, ८७७२७(#) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवे), ८८१४४-२(2) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. नित्यविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (सारदा माता सरस्वति,), ८६४८४ पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (थंभणपूरवर पासजिणंदो), ८५९५८(+), ८७७८१, ८८२४७, ८८२८५ पार्श्वजिन जकडी-फलवर्धिपरमंडण, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (श्रीफलवर्द्धपुरि), ८७८४१-२(+) पार्श्वजिन जन्मोत्सव पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज वधाइया जैरी माइ), ८५८८३-५ पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), ८९२४६-१(+#5), ८६३५९-१, ८८४४९-१, ८८८६३-१(#), ८७७०५-२(5) पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ८, वि. १८८९, पद्य, मपू., (संखेश्वर साहेब सुर), प्रतहीन. (२) पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा विधिसहित-जन्मकल्याणक पूजा ढाल, हिस्सा, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (रमति ___गमती हसुनें), ८६३११-२(+) पार्श्वजिन पद, मु. अनिएचंद, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (डगरा बताय दे पाहरीया), ८८१६९-३ पार्श्वजिन पद, मु. उदयसागर, पुहिं., पद. ७, पद्य, मूपू., (अब हम कुं ज्ञान दीयो), ८६३९८-३, ८७६७९-७ पार्श्वजिन पद, मु. चंदखुसाल, मा.गु., पद. ५, पद्य, श्वे., (नन्नडायो गोद खिलावै), ८५९७७-१(+#) पार्श्वजिन पद, मु. जसराज, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जागो मेरे लाल विसाल), ८५६७८-२(+#) पार्श्वजिन पद, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (जागो मेरे लाल विसाल), ८७६०२-३(+) पार्श्वजिन पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (वो दिल भाय मेरे सांइ), ८७०६७-२ पार्श्वजिन पद, आ. ज्ञानसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बलिहारी जाउं पास), ८९२९१-६ पार्श्वजिन पद, आ. नयचंदसूरि, मा.ग., गा.७, पद्य, मप., (जय बोलो पासजीनेसर की), ८६३९८-६ पार्श्वजिन पद, पं. प्रतापविजय, मा.गु., पद. ११, वि. १८९३, पद्य, मूपू., (जगतगुरु दरसन वहीलो), ८७०८७-१ पार्श्वजिन पद, मु. प्रेम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (वरसन लागो ऐ वरसालो), ८६१३९-६(+) पार्श्वजिन पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (दरवाजे तेरे खोल), ८८९३९-१(-) पार्श्वजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (देखी मुरत पास की), ८९१८६-२ पार्श्वजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वामानंदन जगदानंदन), ८८५२१-६(+) For Private and Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५८ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ 19 पार्श्वजिन पद, मु. रतनचंद, रा. गा. ६, वि. १८७४, पद्य, ., (वामानंदन पासजिणंदजी, ८८२३१-१ पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (तेवीसमा जिनराज जोडी), ८६५२७(+) पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल- शिष्य, रा. गा. ६, पद्य, म्पू., (जोडी थांरी कोन जुंडे), ८८२६१-९ (*) पार्श्वजिन पद, मु. हरखचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (हो छबि तेरी सुहावन), ८८२६१-८*) पार्श्वजिन पद, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (जन्म बनारस ठाम मात), ८८७२३-३(+), ८९१४७-२ पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपु. ( प्रभु म्हांरा पास), ८५९६८-२ (# ) पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (मोतियन थाल भर के), ८९२९१-४ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. अमृत शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पूजो पूजो रे गोडीपास), ८८२६१-४(+) पार्श्वजिन पद- गोडीजी, मु. देवीचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, वे. (आज भलो दीन उगो प्रभु, ८८९७३-१ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सरस वचन दे सरसती एह), ८८०५४-२ (+), ८६३७३, ८९३०१-१ पार्श्वजिन पद-दीवबंदर, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपु., (सचा सांई हो डंका), ८७९७६-४, ८७४३६-१०(०) " पार्श्वजिन पद- पुरुषादानीय आ. जिनराजसूरि, मा.गु. गा. ५, पद्य, म्पू, (मन गमतो साहिब मिल्यौ, ८७४१६-४(+) " पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनना मोहन म्हारा ), ८८३८०-१ पार्श्वजिन पारणुं, ग. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (माता वामा देवी झुलाव), ८६१३५-३(+$) पार्श्वजिन प्रभाती-शंखेश्वर, वा. उदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज संखेश्वर सरण हुँ), ८८९४३ पार्श्वजिन फाग- गोडीजी, मा.गु., पद्य, मूपू (रंग मचो जिन द्वार), ८७७५९-५ (MS) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , पार्श्वजिन फाग - फलवद्धिं, मु. खेमकुशल, मा.गु. गा. २३, पद्य, मूपू (सुगुरु सिरोमणि मनिधर), ८९१७० (+) पार्श्वजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रावण पावस उलह्यो), ८७१५१-१, ८९२५९ पार्श्वजिन बारमासो, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू. ( ० जिणेसरु प्रभावती), ८९९५४मा पार्श्वजिन भास-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चिंतामणि म्हारी चिंत), ८८२९२-२ पार्श्वजिन लावणी, मा.गु. गा. ७, पद्य, भूपू., (पार्थ समरणा भजन ज), ८८९६९-१ " पार्श्वजिन लावणी कल्याण, मु. गुलाबचंद, पुष्टि. गा. १७, पद्य, मूपू., (अगडदु अगडदु बाजे), ८६४९०-४ पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या. रूपविजय, पुहिं., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगत भविक जिन पास), ८५७३७-१ पार्श्वजिन लावणी- चिंतामणी, पंडित हरसुख, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. (श्रीचिंतामण जिनवर ), ८७३७२-२ (-) पार्श्वजिन लावणी-मगसी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुगतगढ जीत लिया वंका), ८६८६२-२, ८६८६२-३ पार्श्वजिन लावणी-मगसी, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बंदू श्री मगसीपास), ८६०२३-३(*) पार्श्वजिन विवाहलो, मा.गु., ढा. ६, पद्य, म्पू, (जी रे वरघोडे वर ), ८८२९३(३) पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., गा. ५६, वि. १८५१, पद्य, श्वे. वै., (प्रणमुं परमातम अविचल ), ८५८७९(+), ८७४५३(+), ८८२६१-१ (+), ८६८२१, ८७४०७, ८६८९८(२) पार्श्वजिन सलोको, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसती सांमण तुझ पाय), ८७५५६-३ पार्श्वजिन सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., सवै. २, पद्य, मूपू., (प्रात समै उठि पूजिइ), ८९१३०-१ पार्श्वजिन सवैया, मु. धर्मसी, मा.गु., सवै १, पद्य, भूपू (देवलोक दसमैं ते आप), ८९२८०-६ (*) " पार्श्वजिन स्तवन, मु. अनूपचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जीवन मांहरा तेवीसम ज ), ८८३७४-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु गा. १०, पद्य, भूपू (श्रीपार्श्वप्रभु मुज), ८८९५७ " " पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदसागर, पुहिं. गा. १३, वी. २४४१, पद्य, मूपू. (प्रभु मेरे पारसनाथ), ८५८६०-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, पं. उत्तमचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हां रे आज श्रीजिनराज), ८७२७३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तारी मूरतिनुं नही), ८५९३७-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ताहरे वयणे मनडूं), ८५९३७-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु. गा. ९, वि. १८वी, पद्य, भूपू (पार्श्वप्रभुना चरण), ८६१३७-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपु., (मुझ सरीखा मेवासीने), ८८४०५-१ For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू, (बादल दहदीस उना), ८७३०१-३(+), ८७८९८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. २२, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (तारक देव त्रेवीसमो), ८८६२९ (+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे. (श्रीसुगुरु चिंतामणि), ८६१९१, ८६६३६, ८८७१८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. कुशालचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८८५, पद्य, क्षे., (कासी ए देस वणारसी), ८७२०५-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. केसर ऋषि, मा.गु., गा. ८, वि. १८४२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पास जिनेसरु), ८८४३६-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण; मु. खेमचंद, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (निरमल होय भजले), ८६९०१-६(+) पार्श्वजिन स्तवन, ग. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ५, पंच, मूपू. (अंगी अजब बनी हे गुला), ८८८०३-२ (४) पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंगकुशल, मा.गु., गा. १५, वि. १९वी पद्य, म्पू., (सरसति सांमण घ्याऊ), ८६५८८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अरिहंतजीरी अजबसूरत), ८७३१३-१(७) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मन मोहनगारो साम सहि), ८५८५९ (-) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय बोलो पास जिनेसर), ८७८०९-३ पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु. गा. ९, पद्य, मूपू., (जीनवर माहा तेवीसमां), ८८०१४-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (हेली वृंदावन जास्या), ८८३७४-३ पार्श्वजिन स्तवन, आ. निलाभसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अब मोहि चरण सरन जिन), ८८९८१-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, भूपू (सुगण सोभागी साहब), ८९२७०-१, ८९०४७-२(क) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू., (अंखीयां हरखण लागी), ८७४३६-३(०) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रभु के आगे गुमान), ८८८५७-३ पार्श्वजिन स्तवन, आ. धर्मसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ८८६५१, ८८७९७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. नथमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे. (प्यारा लागो जी रूडा), ८८९१७ " " " पार्श्वजिन स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( आयो मास वसंत सरस जब), ८६३९८-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वहाणां वायां रे प्रभ), ८५७५०-४(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. नेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (वारु वारु रे म्हांरा), ८८९७२-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. प्रधानसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पारसना पसायथी रे), ८५९८२-१(+) (प्रभु तु साचो पारस), ८८२८१ " पार्श्वजिन स्तवन, मु. भाग्यउदय, पुहिं. गा. ५, पद्य, म्पू. पार्श्वजिन स्तवन, पं. माणिक्यविजय, मा.गु., गा. १६, वि. १८७६, पद्य, मूपू. (-), ८८००६-१(३) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपासजी प्रगट), ८८२००-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. मुक्तिचंद्र, मा.गु, गा. २५, पद्य, म्पू., (--), ८७३४८-१ (+३) पार्श्वजिन स्तवन, मु. मूलचंद, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (लागै छै मांनुं पास), ८८९०९-३(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, रा. गा. ५, पद्य, भूपू (शंखेश्वर स्वामी आप) ८८५४३-१ יי י' Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन, आ. यशोदेवसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (परगट पास जिणंदजी), ८६८१६-२ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं. गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे साहिब तुम ही), ८८८५५-४, ८५७९३-२(१) " पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु गा. ४. वि. १८वी, पद्य, भूपू (सुखदाई रे सुखदाई), ८८५२१-५११ " पार्श्वजिन स्तवन, मु. रंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( पास जिणेसर म्हारो ), ८८४५२-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्ननिधान, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( पासजिणंद जुहारी), ८७५८६-३(+) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. रामविजय, मा.गु. गा. १४, पद्य, मूपू. (पासजी जगधणी रे साहिब), ८८५८१-१(३) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पासजी वामाजीना जाया), ८६३२८-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु मोने प्यारो), ८९०१७-३(+) पार्श्वजिन स्तवन, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (हु तो पाए पडुं तमारे), ८७३७९ पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. (सकल मुरती श्रीपास), ८८१४४-३ (#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (सुणि माहरी अरवास रे), ८९१४९ For Private and Personal Use Only ५५९ Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. विनयसागर, हिं., गा. ६, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (पारस प्रभु का चार), ८८४९२-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. विवेकविजय पं., मा.गु., गा.७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (पासजिणंदा मुझ मन वसि), ८८१७९-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. विशाल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (श्रीगोतम हो पाय प्रण), ८७३६७(-) पार्श्वजिन स्तवन, मु. शुभविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (शारदा माताने समरीएरे), ८७२७४ पार्श्वजिन स्तवन, शेरसिंह, पुहिं., गा. १२, पद्य, श्वे., (तेरे दर्शन की बलीहार), ८५८६०-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, पा. सदानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोरा पासजिनराय सूरत), ८८०७२-२(#$) पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुगुण, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (कोयल टहुक रही मधुबन), ८७५३९-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुमति, मा.गु., पद्य, मपू., (सरसति समरु हर्ष घणि), ८५७२८(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. सेवक, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (परमपुरुष सुखदाय), ८८५९९-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (तार्य तार्य पार्श्व), ८५९१२-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षविजय पंडित, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सयलसुहखाणि वरवाणि), ८८८४८-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. हितविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एक पुरुष मे नवलो), ८६५०७-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. हिम्मत, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (दरसण मांहरा जिनजी को), ८६९०१-५(+) पार्श्वजिन स्तवन, पुहिं., गा.७, पद्य, मप., (अश्वसेन का लडका जोर), ८६६८९-३ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (जगदानंदण जिणवरपाया), ८८९९३ पार्श्वजिन स्तवन, पुहिं., गा.८, पद्य, मूपू., (टुक नीजर मरवी धरणाबे), ८६०२८-३(+) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बहु मुगति कहे सुणो), ८८७७३ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (वामानंद राख हमारी), ८७२५६-४(-) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा.८, पद्य, म्पू., (श्रीपार्श्वनाथ तुझ), ८७४०४-४ पार्श्वजिन स्तवन-१० भवगर्भित, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (० गौतम हो पाय प्रणमे), ८८४७९-२(+-) पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मु. मतिविसाल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूप., (श्रीसारद हो पाय), ८५७११-१ पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मपू., (पूर मनोरथ पासजिणेसर), ८६२८२-२(+$),८७९४८(+),८७९५९-२(+),८८०५४-१(६),८७३१७(2), ८६४२८($) । पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पारसनाथ प्रह), ८७१७८-१(+#, ८८३६५(#) (२) पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रह समै पारस्वनाथजी), ८७१७८-१(+#), ८८३६५(#) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरिक्षजी, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सिरपूरनगरमां सोभता र), ८६०२३-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा.११, पद्य, मप., (कासीदेस वणारसी सोहे), ८५७९८-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (प्रभु पासजी ताहरो), ८८५४५-२ पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (हां जी दिक्ष्मदेश), ८७६३८(4) पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वाणी ब्रह्मवादिनी),८८३८८(+), ८८५५३(+$), ८६०१०,८६६७८(६),८७७५४-१(६) पार्श्वजिन स्तवन-अमीझरा, वा. रामविजय, मा.गु., गा.६, पद्य, मूप., (तमे जो जो रे भाई अजब), ८५७५३-२ पार्श्वजिन स्तवन-अवंती, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ऐवंती पासजी भेट्या), ८६०४९-२ पार्श्वजिन स्तवन-गंभीरा, मु. धर्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (आव्यो सरणे तुमारे जी),८८२७५-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. अमृतवल्लभ, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (दरसण दीजै पासजी), ८७९३१-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उमा, रा., गा.५, वि. १८७४, पद्य, मपू., (श्रीगोडीचा पासजी मोन),८८२६१-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीथलपति थलदेशे), ८७७०५-१, ८६३४९-१(१), ८९२३६-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. केसर, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (श्रीशारदामातसु चरण०), ८८७२०(+) For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ , पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (श्रीगवडीपुरमंडण), ८८४५१-१ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जगरूप, मा.गु, गा. ७, पद्य, मूपू.. (मन सुध कर मनुहार ८७२१८.५ (१) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ९, वि. १७२२, पद्य, मूपू., ( अमल कमल जिम धवल), ८६०२८-१(+), ८६८४४, ८८०७२.१(m) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनभक्ति यति, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे. (श्रीगोडी प्रभु पास), ८५८५१-१ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वाल्हेसर मुझ विनती), ८७६७१-१(+), ८६०५४-२ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनलाभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीगौडीप्रभु पासजी), ८८४५२-४, ८९२९१-३ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विनय सजीने साहिबा ), ८५८५१-२ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (ॐकाररूप परमेश्वरा), ८७९२९-१(३) " पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (लाखीणो सोहावें जिनजी), ८८२८३-१, ८८६७९-१, ८८८११-२ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मूरति मननी मोहनी सखी), ८८२७६-३(४) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पं. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (लाखीणो सुहावै जिनजी), ८८२७७ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. भाण, मा.गु, गा. १९, पद्य, मूपू (गोडी गिरुड गाजतो धवल ), ८६११६-४०) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ८, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (प्रगट थया भले पासजी), ८८९३९-२) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुजरो थें मानो हो), ८८२६१-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १९८४, पद्य, मूपू.. ( आहोरसेर मांहि उच्छव), ८७५१२-५ (+ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहिं, गा. ५, पद्य, मूपू. (कृपा करो गोडी पास), ८७७५९-१(०) " पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, ऋ. रूपचंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (धवल धणी सुणि वीनतीजी), ८७३७५ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू. में मुख देख्यो गोडी), ८९१५६-३ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रूपविबुधशिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गोडीप्रभु पासजी), ८५९३७-८(+#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. विनीतसागर, मा.गु., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, मूपू.. ( पास जिणेस हो प्रभु म), ८९३०३-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४१, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (वदन अनोपम चंदलो गोडि), ८६२८१-१(+$), ८९०५४-१(०), ८६३६५ ५६१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३१, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (सारद नाम सुहामणुं), ८८५४५-३, ८८८१७ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. सुखसार, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (गुणनथी गोडी पास), ८८१५५-१ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीगीडीपारसनाथ सोहा), ८९०१७-२(+) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मा.गु, गा. १२, वि. १८६२, पद्य, म्पू, (साहेचिया लाल दिल भर ), ८५७२६ पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. कल्याणनिधान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (श्रीचिंतामणि पार्श्व), ८५७९२-३ पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु, माणेक मुनि, मा.गु.. गा. ५, पद्य, मूपू., (पुज्य रे पुज्य), ८५७२७-२ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जिनपति अवनासी कासी), ८६९०७-३ पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आणी मनसुध आसता देव), ८५९४७-३ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीपास चिंतामणि जेम), ८७२३१-१ (+), ८७२९०-१(#) पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि मरोटमंडण, मु. दौलत, मा.गु. गा. ११, पद्य, मूपु. ( चिंतामणि स्वामीजी), ८६०५९-२(१ पार्श्वजिन स्तवन- जन्मोत्सव, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु.. गा. ७, पद्य, मूपू. (आज महोच्छव अति भलो), ८६९८१-१ पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनप्रतिमा हो जिन), ८७३३६-२, ८९१२१-२, ८६८९६-१(म) पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (महानंदकल्याणवल्ली), ८८१२६-२, ८८७०७-२ पार्श्वजिन स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू (पुरसादाणी परगडउ जेसल), ८८५२९-१(०) पार्श्वजिन स्तवन- डोहामंडण, मा.गु., पद्य, म्पू, (प्रभू डोहागाम बीराजे), ८७३२२-३ (+४) " For Private and Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन-दशपुरमंडण, मु. उदयसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दशपुरमंडण सोहै नवफण), ८७१०२-४(#) पार्श्वजिन स्तवन-नवखंडा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९४५, पद्य, मूपू., (घनघटा भुवन रंग छाया), ८६२४७-१(+), ८७२७७-२,८८४७५-२ पार्श्वजिन स्तवन-नवलखा, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीनवलखा प्रभु पास), ८६७१९-३($) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, श्राव. लाधो साह, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आहे पाटणनगरे सुशोभीत), ८७५६६ पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (परम पुरुष परमेसरु), ८८६५०, ८६१३७-३(६) पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (श्रीपालवीआ पासजी), ८८३८०-२ पार्श्वजिन स्तवन-पाटणमंडण, मा.गु., पद्य, मपू., (सानिध करजो सारदा), ८६०९२-२(६) पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, पुहि., गा. १०, वि. १८१८, पद्य, मूपू., (वामानंदन साहिबा), ८८८८२(६) पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानीय, मु. सुखदेव, मा.गु., गा. १०, वि. १८२२, पद्य, मूपू., (वामानंदन साहिबा हे), ८८९१०, ८७२५५-१(4) पार्श्वजिन स्तवन-पोखणा, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (वेवाण उठ तुं वहेली), ८६५९०-१ पार्श्वजिन स्तवन-पोशीना, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १३, वि. १८८७, पद्य, मप., (सरसति सामिनीने समरी), ८६७२४ पार्श्वजिन स्तवन-पोशीना, मु. कल्याणविजय शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मप., (सरसति समरी कविजन), ८९३२० पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (उठो रे मारा आतमराम), ८६९०१-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. अभयसोम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसति माता सेवका दे), ८९१४७-१, ८९२५८-१, ८६३४९-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वंछित फलदायक स्वामी), ८८९७३-२ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. कीर्तिवर्द्धन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (आज उमाहो अति घणो हो), ८९२४५-१ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (परतापूरण प्रणमीइ अरि), ८८३८३-१ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. समयसुंदर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (आयो आयो फलवदिमंडन), ८७९५३-६(+) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीफलवधिपुर पासजी), ८६८५२-१ पार्श्वजिन स्तवन-बारातवर्णन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कडडा बाजा हो नणदल), ८६२६४-१(4) पार्श्वजिन स्तवन-बीबडोद मंडण, सा. रतनाजी, मा.गु., गा. ५, वि. १९१८, पद्य, मप., (सुण स्वामी रे रश), ८८९६१ पार्श्वजिन स्तवन-बोरनगर मंडण, मु. केसरविजय, रा., गा.१०, वि. १९४१, पद्य, मपू., (पारस थारि निरखण दो),८६०९९ पार्श्वजिन स्तवन-भद्रेश्वर मंडन, मु. हंसविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (स्वच्छ श्रीकच्छमा), ८६९९७-२ पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, मु. शिवरत्न, मा.गु., गा. ८, वि. १८००, पद्य, मूपू., (पास जिणंदजी री जाउं), ८८३९१-२(#$) पार्श्वजिन स्तवन-भीनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., गा. ५३, वि. १६६१, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति नमीय पाय), ८६११६-१(2) पार्श्वजिन स्तवन-भीनमाल, मु. मेरो, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सामिण विनमुं), ८९१९६-१(६) पार्श्वजिन स्तवन-मंडोवरमंडण, ग. आनंदनिधान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसदगुरु पाये नमी), ८८६०४-२ पार्श्वजिन स्तवन-मगसी, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, वि. १८७१, पद्य, मपू., (रक्षण भरतै जाणीये रे), ८५७९८-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-मगसी, आ. जिनसंभवसूरि, मा.गु., गा. ११, वि. १८५०, पद्य, मपू., (मगशी पारस मोहियो), ८८३५८ पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनमोहन पावन देहडीजी), ८८९२२-४(+) पार्श्वजिन स्तवन-लग्नकुंडलीगर्भित, मु. गुलाबविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ज्योतीसी लगन बनावो), ८६७०७ पार्श्वजिन स्तवन-लोढणमंडण, मु. शुभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीलोढण प्रभु पासजी), ८८५५१-७, ८९१६७ पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, आ. जिनभक्तिसरि, मा.ग., गा. ७, पद्य, मप., (वरकाणापुर राजीया), ८६४२४-६ पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. नित्यप्रकाश, मा.गु., गा.१३, पद्य, मप., (सारद हो पाय प्रणमवी),८६८९९-३(2) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (काइ रे जीव तुं मन), ८७४३६-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (लगी लगी आंखीआने रही), ८८२६१-५(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. कांति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तत थेई तत थेई राज), ८७७१५-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मप., (पणमवि सारदमाय पाय घण), ८६८८२-१ For Private and Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. कीर्ति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वामादेवीनंदन विश्व), ८७०८६-१(2) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (श्रीशंखेश्वर पासजिन), ८८८९९-२(+), ८८९४२-१(+#), ८७२३९, ८८४३६-२, ८९२७०-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अंतरजामी सुण अलवेसर), ८८६४५-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. ज्ञानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (जिनवर तूंही देवाधिदे), ८८८५४-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मप., (रहिने रहिने रहिने), ८६४२४-३, ८८००६-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (जी प्रभु पासजी पासजी), ८८१५४(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. विबुधविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेसर साहबो रे), ८७९८४-५(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (सुणो सखि संखेश्वर जइ), ८८५०७ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सहजानंदी शीतल सुख), ८६९५१ पार्श्वजिन स्तवन-शामला, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पूजाविधि मांहे), ८८५९७-२(+), ८७८२६, ८६३५१(२) पार्श्वजिन स्तवन-शेरीसा, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३०, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (स्वामि सुहंकर श्रीसे), ८८३९० पार्श्वजिन स्तवन-श्रीपुरमंडण, मु. राजेंद्रभक्ति, मा.गु., गा.११, वि. १८८१, पद्य, मपू., (प्रभु श्रीपुरमंडण), ८७१९३-२ पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. २, गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासनसेहरो जग), ८७६५५-३(#), ८६३३८(5) पार्श्वजिन स्तवन-सावरनगरमंडण, पं. भीमचंद पंडित, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (अभिनव अमृतवेला कंदो), ८७६६१-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-सुथरीमंडण घृतकल्लोल, मु. मुक्तिचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भवीआ सुथरीगाम सोहामण), ८७३४८-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रभु प्रणमुंरे पास), ८८३२४-१ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनपुरमंडन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (परवादी ऊलूको परि), ८७१४८-३(5) पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभन, उपा. शांतिचंद्र, मा.गु., ढा. २, गा. २३, पद्य, मूप., (मंगलमाला मंदिर केवल), ८६३०६(+) पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थमंडन, मु. वीरचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (पासप्रभु वंदिवा भविय), ८९२१७-२ पार्श्वजिन स्तुति, मु. उदयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दशपुरमंडन सोहे नवफण), ८८५१७-१(5) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनमहेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रणमू अश्वसेनंदन), ८६०२३-२(+) पार्श्वजिन स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रह ऊठी प्रणमो श्री), ८७९३५(#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (पासजिणंदा वामानंदा), ८६४३७-३ पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जलण जल वियोगा नाम), ८६०२७-३, ८८१७५-१(६) पार्श्वजिन स्तुति-जीरावला, मु. वीरमुनि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पास जीरावलो पुजी), ८६५८१, ८८९१९-२(#) पार्श्वजिन स्तुति-फलवर्द्धितीर्थ, आ. जिनसिंहसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परतापूरण चिंताचूरण), ८७६९४-९(+) पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शंखेश्वर पासजी पूजीए), ८६७४७-२ पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. महिमारुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शंखेसर पास जिणंद), ८९१६६-२ पार्श्वजिन स्तुति-श्रीपुरमंडण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (श्रीपुरमंडण पासजिणेस), ८८६२०-३(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सकल सदा फल चिंतामणि), ८५७२७-१, ८७४६०-३, ८७४९३-१ पार्श्वजिन स्तोत्र, ऋ. जीणलाल, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (पार्श्व जिणेसर पुरण), ८६०३५-२ पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनमुख पंकज), ८५९७५-२, ८८१४५-३ पार्श्वजिन स्तोत्र-लघु, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (थुणिस्युं जिणवर पासु), ८७८४१-१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सारकर सारकर स्वामी), ८८५७१-२ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (श्रीसकल सार सुरतरु), ८७५७९(+), ८७१९६-५ पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (रंग मच्यो जिनद्वार), ८८२४८-६ पासत्था सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (वंदे सकल सुरासुरराय), ८६६९६(+) For Private and Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पिंगल नाममाला, पुहि., पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतसु सिद्धपद), ८५८२८($) पुंडरिककंडरीक सज्झाय, पं. क्षेमवर्द्धन, मा.गु., गा. १७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सरसति समरी गुरु नमि), ८६७८३-३(+#) पुंडरिककंडरीक सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. ३५, पद्य, श्वे., (कुंडरीक रीद्ध तज), ८८५२७(#) पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६९, पद्य, मपू., (पुण्यतणां फल परतखि), ८९२६५-१, ८८८९२($) पुण्यपाप पद, मु. दीपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (दोय वात हे जगमें), ८६५६४-३ पुण्यपाप स्तवन, मु. विवेकविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८७२, पद्य, मूपू., (सरसतिनैं प्रणमु सदा), ८५८४८(+#$) पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धिदायक सदा), ८७०१९, ८८१६३ पुण्य सज्झाय, मु. माणेक, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर प्रणमी), ८५६३६-१($) पुद्गलपरावर्त भेद, मा.गु., गद्य, भूपू., (औदारिक वैक्रिय तेजस), ८८५९६-१ पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, मप., (द्रव्य क्षेत्र काल),८७१६५-२,८७२२२-३ पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (नाम १ गुण २ तिसंख ३), ८७७९४-१ पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (सात वर्गणाइं औदारिकइ), ८८१०६(+) पुरुष ७ सुखदख वर्णन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., इतर, (पहिलौ सुख निरोगी काय), ८८५७३-२(+) पूष्पपूजा चर्चा, मा.गु., गद्य, श्वे., (तथा कोइक पूछे जे), ८६९६१(-$) पृथ्वीकायादि आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (खेचरपंखीनो आउषो), ८६७३४-२ पृथ्वीचंद्रगुणसागर वेली, मा.गु., गा. ५४, पद्य, मपू., (सिरिनेमि जिणेसर नमिय), ८७४७३ पृथ्वीचंद्रगुणसागर सज्झाय, पंडित. जीवविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ६८, पद्य, मपू., (शासननायक सुखकर वंदी), ८६३३२(+) पृथ्वी सचितअचित सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम नमु सहगुरुनु), ८६२१८-३ पेथडशा महामात्य वनप्रसंग वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (राजा पेथडने ५५हाथी), ८७४७७-२ पोट्टिला नारी सज्झाय, रा., गा.११, पद्य, भूपू., (पोटीला नाम तेह सो), ८८७९० पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेश्वर पास), ८८४४२-१ पौषधविधि स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १६६७, पद्य, मप., (जेसलमेर नगर भलो जिहा), ८७३६० पौषधव्रत सज्झाय, मु. गुणलाभ, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (पहिलु समरण आणीयइ), ८५८१४(+), ८६००१-१ पौषधसामाइक सज्झाय, पं. सुमतिकमल, मा.गु., गा.१०, पद्य, मपू., (वीर जिणवर रे पासि), ८७४७२-१(+) प्रतिक्रमणसूत्र आलावा संपदा अक्षर संख्यादि कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ८८६५६-१ प्रतिमापूजा विषयक २१ प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, मूपू., (समकित तो सरदहण रूप), ८५९३९ प्रतिमास्थापन स्तवन, मु. विमलरत्नविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (जेहनै जिनप्रतिमास्यु), ८६३५४-२(#) प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा.१७, वि. १७उ, पद्य, मप., (धुरि समरं सामिणी), ८५७८६, ८६६१० प्रदेशीराजा केशीगणधर ढाल, रा., ढा. १, गा. २५, पद्य, श्वे., (हिवै प्रदेसीरायजी), ८६२६८ प्रदेशीराजा चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (चित इम लेइ राजान भेट), ८५८५४-१(+) प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सेतंबिका नयरि सोहांम), ८६५५५(+) प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. रूपमुनि, मा.गु., ढा. २, गा. १७, पद्य, श्वे., (विमलजणेसर पाय नमी), ८८३५०-१(#) प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मपू., (गिरि वैताढ्यने उपरे), ८६८८८-२(+), ८६४२६() प्रभाती गहुँली, मु. दीपविजय, रा., गा. ९, पद्य, मपू., (आजो रे बाई आजो रे), ८६८६१-३ प्रभु पोखणा स्तवन, मु. आणंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (--), ८८२८४-१(६) प्रभु पोखणा स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जीरे इंद्राणी पूछे व), ८६५९०-२ प्रभु समक्ष भावना, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिनमंदर पडीमा), ८६२४०-१ प्रश्न संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ सिद्धविग्रहगइ), ८८०६५ For Private and Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (प्रणमुं तुमारा पाय), ८८१२३-२ प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (मारगमा मुनिवर मल्यो), ८७५३७-४(2) प्रहेलिका दहा, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (चार मील्या चोसठ हसे), ८६८३५-२(+) । प्रहेलिका दोहा, पुहिं., दोहा. १, पद्य, वै., इतर, (अहिफण कमल चक्र टणकार), ८८८८०-२(+), ८६५९८-२, ८७२६६-२ प्रहेलिका पद, क. चंद, मा.गु., गा. १, पद्य, जै., इतर, (प्रथम आंक अटकलो), ८९१३०-७ प्रहेलिका पद, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, जै., वै., (एक नार अति नानडि उवे), ८६२०१-७(+) प्रहेलिका पद, मु. राज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (वनमे तो जाई राज वस्त), ८७७४०-१ प्रहेलिका पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै., वै.?, (उजल बरणो नाहलो रे), ८६२०१-५(+) प्रहेलिका पद, मा.गु., गा. २, पद्य, जै., वै., (हाथ न धोवै पग न धोवै), ८६२०१-६(+) प्रहेलिका पदकवित्तादि संग्रह-समस्यागर्भित, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., गा. ७, पद्य, वै., इतर, (अंग बनाइ सुगंध लगाइ), ८६९४८-५ प्रहेलिका संग्रह, मा.गु., पद्य, इतर, (खाट खटक नेलोनां कडा), ८९१५६-५ प्रहेलिका संग्रह, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (देख्यां रे चेला बीन),८६०४२(+) । प्रहेलिका संग्रह, पुहि., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (पवन को करें तोल गगन), ८६९३०-४(+), ८६५३७-४, ८८५०३-३(#) प्राणातिपातविरमणव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, वि. २०वी, पद्य, मपू., (सकल मनोरथ पूरवे रे), ८९०९५-३ प्रास्ताविक कवित संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., वै., (थरहरै कृपण पंचमांहि), ८६९९५(+$) प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पुहिं., गा. ३०, पद्य, श्वे., इतर, (गीत ही नाद युं श्लोक), ८५९५५-२ प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पुहिं., गा. २५, पद्य, इतर, (प्रीतिकाज छंडिजै),८८९४६-५ प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ७, पद्य, वै., इतर, (एक गोरी दुजी सामलि), ८५७२२-४(2) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., दोहा. ७१, पद्य, श्वे., इतर, (पडिवन्नइ माछा भला), ८७३११-२(+), ८७५९६-२(+#), ८६५३७-२, ८८३३१-२(#) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ५, पद्य, इतर?, (प्रीतो करि पाछा खस्य), ८८३६०-३ प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.गु.,रा., गा. २५, पद्य, वै., इतर, (बुरी प्रीत भमर की), ८६८८२-२, ८७२९३-२, ८७४६५-२, ८८९४६-१, ८९१२४-३, ८९१४६-१, ८७२८५-३($) प्रास्ताविक पद, पुहिं., पद. १, गा. ३, पद्य, जै.?, (सतावी सह सात त्रण), ८७६९८-४(2) प्रास्ताविक लोक सज्झाय, मा.गु., पद्य, इतर, (घरे तेराणा राजीया), ८५९९४-२(६) प्रास्ताविक सवैया संग्रह, पुहिं.,मा.गु., गा. ३, पद्य, जै.?, (एक ही मातपिता तसु), ८७११३-४(+), ८७१८८-२ प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.ग., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मप., (प्रणमुं सद्गुरु पाय), ८८१४६(5) प्रियविरह गीत, मा.गु., पद्य, इतर, (कांमण कांइ जाणो छो), ८८७५१-३(+$) प्रेम गीत, मा.गु., गा. ६, पद्य, इतर, (मृघानयणी मनुहरणी), ८७२६०-४(२) फकीरचंद जीवन चरित्र, मु. उत्तम, रा., गा. १८, पद्य, श्वे., (जंबुदीपना भरतमे किसन), ८७३८०(+), ८८०२७(+-), ८७३३२(#) फतेचंदमुनि सज्झाय, श्राव. जेष्ठाजी, पुहि., ढा. २, गा. २०, वि. १९१०, पद्य, श्वे., (देशक मारग मोक्षना), ८७२२० फतेचंदमुनि सज्झाय, मु. श्रीचंद्र ऋषि, पुहि., गा. २७, पद्य, श्वे., (चरम जिणेसर वीनवू), ८७२९५(+) बंगाली पद, बं., गा.७, पद्य, मप., (अमि देखी माहाराज),८८९७५-५ बंधउदयउदीरणासत्ता यंत्र-८ कर्मविषये, मा.गु., को., मूपू., (--), ८६५६६(+$), ८७४७५-१ बलदेव के पितामाता नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रजापति१ बंभराजा२), ८७९८६-८ बलदेव चक्रवर्ती आदि नाम गति विचार मान यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ८८५६५-४ बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (तुंगीआगीर सीखर सोहे), ८७८१५-१ बलभद्रकृष्ण सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (द्वारकानगरथी नीसर्या), ८५९१३(+#) For Private and Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शा माटे बंधव मुखथी न), ८६९५६-१ बलभद्रमुनि सज्झाय, पं. क्षेमवर्द्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. ४१, वि. १८५४, पद्य, मूपू., (सरसति चरणकमल नमी), ८६७८३-१(+#) बलभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू., (तुंगीयापुर नगर), ८६३२४-६(-) बलभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (हुं तुझ आगल सुं कहु), ८७३११-१(+) बारहमासा वर्णन, मा.गु., पद्य, जै., वै.?, (कार्तिक मासे मेली), ८८७०५-३(६) बालपच्चीसी, पुहि., गा. २५, पद्य, म्पू., (दलहो मनुष्य जमारो), ८८०९७ बालिका गीत, मा.गु., गा. ११, पद्य, जै., वै., इतर, (घूघरीयालो घाट सोविन), ८७८०५-२ बाहुजिन स्तवन, मु. कल्याणसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (अरज सुणो रुडा राजिआ), ८६४२४-४ बाहजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (रमत रमिवा मैं गईथी), ८६२०१-२(+),८७१५१-२ बीजतिथि चैत्यवंदन, मु. नयसागर, मा.गु., गा.११, पद्य, मप., (चोवीशमो जिनराजी चंपा), ८६५४२(+) बीजतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (दुविध धर्म जिणे), ८६४७५-१(#) बीजतिथि चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (बीज रीझ करी सींचीए), ८८७७२ बीजतिथि सज्झाय, मु. देवेंद्रसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन अनुसरीए), ८६०६५-३ बीजतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूप., (बीज तणे दिन दाखवू), ८७१२२-३(+#), ८६८१८-१ बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूप., (बीज कहे भव्य जीवने), ८६९२६-१(+), ८८०३९-२, ८८२७३, ८८५७०-२($) बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, वि. १८७८, पद्य, मपू., (सरस वचन रस वरसती), ८७३५१(+), ८६०८२(2) बीजतिथि स्तवन, मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (--), ८८२०४-१(६) बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जंबूद्वीपे अहनीस), ८६४३६, ८७९०० बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानसागरसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (अजवाली बीजे चंदा), ८७१०२-१(#) बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (दिन सकल मनोहर बीज), ८७५९१-३(+$), ८६२३४, ८७७३२-२, ८८६७५-३(#), ८६७१५-१(६) । बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., ढा. १२, वि. १८४५, पद्य, श्वे., (जंबुद्वीपनै भरतमै), ८७१६०(+#) बुढापा सज्झाय, मु. जेमल, रा., गा. २९, पद्य, श्वे., (दुर्लभ मनुष जमारो), ८६८९३-१(+) बुढापा सज्झाय, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (भुढला तेरी अकल कीदर), ८७६१२-२(-) बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं देवी अंबाई), ८७६९३(+), ८५७३४, ८८३६३, ८९०७१, ८९२४९, ८८०३३(#), ८८२०५(#s), ८८६७८(#), ८७५८७(2) बुधरसाधु रास, मा.गु., वि. १८५१, पद्य, श्वे., (अरिहंत सुधने साधजी), ८७७२६ (६) बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच मिथ्यात्वना), ८७२६७(+) बोल संग्रह-विविधगत्यागतादि जीव एकसमयसिद्धसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पेले बोले समुद्रमा), ८७१५६-१ ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती विवरण, पुहि.,मा.गु.,रा., गद्य, भूपू., (ब्रह्मदत्त), ८७१६२(+-#) ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २१, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (रिखभ राजा रे राणी), ८९१२२(+), ८८६४१-२(-) भक्ष्याभक्ष्य काल प्रमाण, मा.गु., गद्य, मपू., (चावल रांधै पहर४), ८६२६९-१ भजनपच्चीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (सुत्रकथा सुध सोधने), ८६०४७(+) भरतक्षेत्रादि परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (भरतक्षेत्र ५२६ योजन), ८७४५६-१, ८८४७३ भरतचक्रवर्ती ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २६, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (प्रथम सीवरीये ऋषभजिण), ८५९६५ भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ११, वि. १९४५, पद्य, श्वे., (मुगतपद पाया हो), ८८१९९ भरतचक्रवर्ती सज्झाय, रा., ढा. २, पद्य, मपू., (आरीसारा भुवनमें बेठा), ८९०१५, ८६१९२($) भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (भरतजी भूप भये वैरागी), ८७०१२-२(+) भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (सितंतरलाख पुरब बरस), ८७५५२(+$) For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ "" भरतबाहुबली संवाद, मु. कुशल, मा.गु., गा. ६४, पद्य, भूपू (सारद माता समरीयेँ), ८५९०९ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (तव भरतेश्वर वीनवे), ८६३०२ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ३८, वि. १७७१, पद्य, मूपू (स्वस्ति श्रीवरवा), ८६६९५-१(१), ८८०२४, ८६९५७-२(३) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (बाहुबल चारित लीयो), ८५८८९-२(+$), ८९००९-२, ८९०९८-२, ८९२१३-१, ८७२०८-३(३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (राजतणा अति लोभीया), ८७०७९-२, ८८२८३-२, ८८७४४, ८७३०७-१(-) भले अर्थ की वार्ता, मा.गु., गद्य, मूपू., (भले ते स्युं अरे जीव), ८६०५७-१ भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालागमन पंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रभु नीशाल बैठा), ८६२३३(+), ८६८८६(+#), ८८२५३, ८६४५२ ($) भावपचीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (भावपचीसी जोरु भारी), ८७३४६ भावपूजा सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ज्ञाननीर नीरमल आणी), ८९२६४-२ भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मु. महानंद, मा.गु., वि. १८३९, गद्य, श्वे. (प्रभु नीशाले बैठा), ८५६४९ भवदेवनागिला सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८७२, पद्य, स्था., (भवदेव जागी मोहनी तज), ८८२८६-१(#) भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, गा. ८, पद्य, भूपू (भवदेव भाई घरे आवीयो), ८५७००-२, ८५७६६-१ भवानी स्तोत्र, ग. कल्याणसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू. ( सकति सदा सानिधि करो), ८९०८९ (४) भवीयकुटुंब सज्झाय, मा.गु., ढा. २ गा. ७८, पद्य, म्पू. (सिरि रिसहेसर मनिहि), ८८३५७(+) भांग गीत, पुहि., पद. १, पद्य, इतर ( आणी लटाली पटाली), ८७२६५-३ भांगडीया खटपटीया ढाल, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, स्था., (निराकार चिद्रुप अजरा), ८६८३८-२ (४) भागा अमलसरी संवाद, देवीचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, वै., इतर ? (-), ८६७७४-२ (२) " भानुमुनि ढाल, मु. दयाचंद, मा.गु. डा. ३, वि. २०वी, पद्य, थे. (वर्द्धमान वरदायको नम), ८५६५५ (*) " ५६७ भावपूजा स्वरूप, मा.गु., गद्य, मूपू., (० करुणाभाव २ जिनगुण), ८७२६८-३ भावश्रावक १७ गुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मृपू. (भावश्रावकनां भावीए), ८५९९५ (+) भाविभाव सज्झाय, मु. शिवलाल, मा.गु., गा. २८, वि. १८७७, पद्य, जै. ?, (कोइ एक नगर वखाणु), ८८९४०(+), ८६८४९($) भाषाभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (कतिविहाणं भाषा ), ८८७२८-२ For Private and Personal Use Only भीलडी सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सरस्वती स्वामीने), ८६१४४ " भुजंगजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (भुजंगदेव भावे भजो), ८६०३१-१, ८८२२२-२(#) भृगुपुरोहित चौढालिया, ऋ. जेमल, रा. डा. ४, पद्य, श्वे. (तीण अवसर मुनीराव), ८७५८१ (+) भृगुपुरोहित चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ६०, पद्य, श्वे., (देव हुंता भव पाछलै), ८७६०४(+#), ८६०३० भृगुपुरोहित छढालीयो, मु. जेमलजी मुनि, मा.गु., ढा. ६, पद्य, श्वे., (दर्शण कीधां साधरो), ८६३३१(+) भृगुपुरोहित सज्झाय-रात्रिभोजन परिहार, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (देव तणी ऋद्ध भोगवि), ८७६२३-१(+) भैरुजी छंद, मा.गु., पद्य, जे. (वाटे घाटे तु वसे), ८८१४३-२ (५६) मंगल दीवो, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दीवो रे दीवो मंगलिक), ८८२८४-४ मंगल दीवो, मु. रत्नविजय, मा.गु, गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ८९१२८-१(३) मंगल पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत नमो नमो सिद्ध), ८६०८६-२ मंगलाचरण सवैया, पुहिं. गा. १, पद्य, ओ., (सो केवल दर्शन ग्यान), ८६१७५-३(*) " मंत्र संग्रह*, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (लीली बलकी तुंबडी), ८६९६८-३ मगणादि ८ छंदोगण रूपदेवफलादि कोष्ठक, मा.गु., को., श्वे., इतर, (मगनsss मही सुख मित्र), ८६६३७-१ मणिविजयजी पत्र, श्राव. पानाचंद, रा., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीपार्श्व), ८६९३१ Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ मतांतर सज्झाय-जनरल, आ. पद्मसागरसूरि, म.,मा.गु., गा. १०, पद्य, मूप., (पुन्यचा मारग नवनवा), ८७५५७-२(+) मतिज्ञान स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (प्रणमो पंचमी दिवसे), ८५८५६-२ मदनरेखासती चौपई, मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ८७४३३-३), ८९०२३-३(+#) मधुबिंद सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति मुझने रे मात), ८९२६२-१(+), ८९११९, ८९२७१-२ मनकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (नमो रे नमो मनक), ८६५५६-३(+), ८७५४०-२, ८८५३२-२ मरुदेवीमाता चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४६, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (माताजी मरुदेवा रे), ८६२५३($) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. कल्याण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रिषभ जीवन वासइ वसइ), ८९२९० मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (एक दिन मरुदेवी आइ), ८६३६२ मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८५०, पद्य, स्था., (जंबुदीपै हो भरत), ८५६४०(-) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (दीख्यारा दिनथी न), ८७९४४(+) मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (मरुदेवी माता कहे), ८८०७६-२(+#) मर्द कवित्त, पुहि., दोहा. १, पद्य, इतर, (मर्द समसेर सकढाल), ८८८६०-१ मल्लिजिन कथा, मा.गु., गद्य, म्पू., (इण जंबूदिपे पश्चिम), ८८२२१(#) मल्लिजिन-पार्श्वजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (हरिआने रंग भरिआ हो), ८९१८८(+), ८९०३६-२ मल्लिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संजम लेवा मल्लि उमाह), ८६५१६-१(#) मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, गा. ४१, वि. १७५६, पद्य, मपू., (नवपद समरी मन शुद्ध), ८६९९० मल्लिजिन स्तवन, मु. चंद्रभाणऋषि, पुहि., गा. १६, वि. १८५३, पद्य, श्वे., (जीवडा जप लीज्यो रे), ८७३९७-१(+) मल्लिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (तुज मुज रीझनी रिंझ), ८७४५५-३ मल्लिजिन स्तवन, मा.ग., पद्य, मप., (मिथिला नगरि सोहामणी), ८६०७१-२($) मल्लिजिन स्तुति, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जगपति मल्लिजिणेसर), ८७९८५-३(+#) महान तपस्वीरत्नो-तप चिंतवन, मा.गु., गद्य, मूपू., (तप निर्जरा का बारा), ८७९८७(+) महापरिठवण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्नानपूर्वक नवो वेष), ८६५३१ महाभद्रजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (मन मगन भयो महाभद्र), ८८८५६-३(+) महाविदेहक्षेत्रे पात्रादि प्रमाण विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीमहाविदेहे ऋषि), ८८९१३-२ महावीरजिन १० स्वप्न स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८३०, पद्य, श्वे., (ढाल कोयल प्रवत), ८७४३३-१(+), ८९०२३-१(+#), ८९०९०(+), ८७६७२(#) महावीरजिन कथा-संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, श्वे., (इहां कुण जे श्रीसमण), ८९०३४-२ महावीरजिन गहुंली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (जग उपकारी रे वीर), ८५८२३ महावीरजिन गहुंली, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मंगलिक वाणी रे वाली), ८६५००-४(+) महावीरजिन गहंली, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (श्रीजिनवीर समोसर्या), ८५८५०-३(+) महावीरजिन गहंली, पं. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सहि चालो श्रीमहाविर), ८६५००-१(+) महावीरजिन गहुंली, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभु मारो दीइ छ), ८५६६३-२(+), ८६५००-५(+) महावीरजिन गहुंली, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीतभय पाटण वीरजी), ८८६३९-२ महावीरजिन गहंली, मु. पद्मविजय, मा.ग., गा. ७, पद्य, मप., (वीरजी विचरता गांमो), ८७०३३-१ महावीरजिन गहंली, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (सासन नायक वीरजिणंद), ८७०५९-४(+) महावीरजिन गहुंली, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवीर समोसर्या), ८६२४२ महावीरजिन गहुंली-५६ दिक्कुमारी, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ए तो अमल कप्प उद्यान), ८५६७२-१ महावीरजिन गीत, मु. विनयचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मनमोहन महावीर रे), ८८८९८-४(+) महावीरजिन गौतमस्वामी ढाल, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १२, वि. १८४४, पद्य, श्वे., (गुर म्हावीर गोतमचेला), ८७०७५-४(+) For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ महावीरजिन गौतमस्वामी पच्छा, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (प्रभूसु गोतमस्वामी), ८८७२३-१(+-) महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. मुक्ति, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ सुत वंदीये), ८८४९२-२ महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ६३, वि. १८३९, पद्य, स्था., (सिद्धार्थकुलमई जी), ८६२१४-१(+$), ८७५१५(+),८७२७१, ८७६९०,८७८०७($) महावीरजिन छंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर जनमीया), ८७९९४-१(#$) महावीरजिनजन्म बधाई, रा., गा.१३, पद्य, मप., (त्रिसला दे माता),८६५७३, ८६९९३-१ महावीरजिन ढाल, मु. चंद्रभाण ऋषि, रा., गा. ३०, वि. १८५०, पद्य, श्वे., (सासणनायक वीरजणंद), ८८७१२(+-) महावीरजिन तीर्थे तीर्थंकर गोत्र उपार्जक नाम, मा.गु., गद्य, मप., (श्रेणिकराजा पद्मनाभ१), ८८८३०-१ महावीरजिन नामकरण विवरण, मा.ग., प+ग., मप., (मगधदेसमें अति भलो), ८८३१०-१(+) महावीरजिन निर्वाण आरती, मु. उदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जय जय जगदीश जिनेसर), ८६३२६ महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीमाता सरसती सेवक), ८७०३४, ८८८२४ महावीरजिन पद, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (सवी दुःख टालोगो महा), ८९१५६-४ महावीरजिन पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पावापुर महावीर जिणेस), ८६५०७-३(+), ८८८३१-४ महावीरजिन पद, मु. नंदलाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (वाजत रंग बधाइ नगरमें), ८६०२८-२(+) महावीरजिन पद, मु. प्रेम, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (ढुंढत जिनजीकुं जुग), ८६२१२-६(+#) महावीरजिन पद, मु. प्रेम, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (महावीरजी मुगतका वासी), ८६२१२-१०(+#) महावीरजिन पद, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मप., (मो मन वीर सुहावै),८७२४७-५ महावीरजिन पद, मु. रतनचंद, मा.गु., गा.१०, पद्य, मप., (हांजी प्रभु चंपानगर), ८५९६८-१(2) महावीरजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (माधुरी जिनवानि चलौरी), ८८५२३-५(#) महावीरजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (रमक जमक वालो वीरजी), ८८८९०-५(+) महावीरजिन पारj, मु. अमीविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (माता त्रिशलाए पुत्र), ८६१५०-१(+$), ८७०३८(+), ८५६२८ महावीरजिन पारj, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, पद्य, मूपू., (अनरी जात अनेक छे), ८८४७४-१ महावीरजिन भास, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीरजी आया रे गुणशैल), ८६६१७-२ महावीरजिन लावणी, पुहिं., पद्य, श्वे., (श्रीत्रिसलादे उतम), ८६२२०-२(-६) महावीरजिन लोरी, मा.गु., गा. १८, वि. १८५१, पद्य, श्वे., (श्रीनमस्कार जिन को), ८६७१८-१ महावीरजिन सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूप., (एक वरसीजी ऋषभ करी), ८८६६७(+) महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (आधार ज हुँतो रे एक), ८८३०१(#), ८५८६४, ८६४९९, ८७३४० महावीरजिन सवैया, मु. धर्मसी, मा.गु., सवै. १, पद्य, मपू., (गुणको गंभीर पीरसो), ८९२८०-७(+) महावीरजिन सवैया-वाणीविशेषण, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (वीर हिमाचल ते निकसी), ८७९१९-२(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (गंगा गया गोदावरी), ८६०४१-२(#) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १७९०, पद्य, मूपू., (जगपति तारक श्रीजिनदे), ८६४७२-२(2) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (नीजरां रहस्यांजी), ८५८३६(+), ८७९४२-१(+), ८५९५०(#), ८६९३५-५(2) (२) महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत भगवंतनी), ८५८३६(+), ८७९४२-१(+), ८५९५०(#) महावीरजिन स्तवन, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (राग विना तुंरीजवे),८८२३९-२(2) महावीरजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (सूर एक आयो रे साहस), ८८९२२-६(+) महावीरजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (सो प्रभु मेरे वीर), ८५९५३-२(+) महावीरजिन स्तवन, पंन्या. खिमाविजय , मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद जगत उपकारी), ८८१९७(+), ८७८१५-३ महावीरजिन स्तवन, मु. गोरधन ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. २६, पद्य, श्वे., (धीन तसलादे तो भणी हे), ८८९१२-१ महावीरजिन स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., गा.७, वि. २०वी, पद्य, म्पू., (वीरजिणंदशु विनती), ८७११५-१(+) For Private and Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७० www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन, मु. चेतनदास, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (कुंडलपुर सुहावणा), ८६४०८(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (सासननायक सुखकारी), ८९२१०-१(+) महावीरजिन स्तवन, मु. जयसौभाग्य, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सखी माहरु मन मोह्यं), ८७६८९ महावीरजिन स्तवन, मु. जससोम, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू. (परमगुरु तुहई० उपगारी), ८८८३५-१ महावीरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु. गा. १९, पद्य, भूपू (सुणि जिनवर चोवीसमा), ८८०६७(१) महावीरजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर वंदीये), ८६०६३-२ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनमुख देखण जावुं), ८८९३७-१ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दरिसण आव्या रे हो दर ), ८६२१८-१, ८७११२ महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजी सुणो एक विनति), ८६१७१ महावीरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तार हो तार प्रभु मुज), ८५९३०-३(+) महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विरजीणेसर वीनती हमार), ८७३२२-२(+) महावीरजिन स्तवन, आ. भावप्रभसूरि, पुहिं., गा. २०, पद्य, मूपू., (मोहराय से लडीया रे), ८५८९५-२($) महावीरजिन स्तवन, मु. मलूकचंद, मा.गु. गा. ७, पद्य, म्पू. (इणे सरोवरआनी पाल उभी), ८७३८५ महावीरजिन स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मारा प्रभुजी मुजने), ८६९९७-१ महावीरजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दुर्लभ भव लही दोहलो), ८६४१०-३(+) महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५. वि. १८वी, पद्य, म्पू. ( गिरुआ रे गुण तुम), ८५७६०-४ महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (प्रभुजी वीरजिणंदने), ८७७३७-१ महावीरजिन स्तवन, मु. रंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, (शांत सनेही वीरजी भवि), ८६७६५ (+) महावीरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुचरणा से मेरो मन), ८८९०९-२ (+) महावीरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अमलकलप उद्यांनमां), ८५८३८-२(+) महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ते दिननो विसवास छें), ८५९८२-३(+) महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २२, पच, भूपू (सुगुरु संजोगथी मे), ८८४५२-३ महावीर जिन स्तवन, मु. रूपसिंघ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपु. ( प्रथम दीपे दीपता रे), ८६४२४-२ महावीरजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. (सिद्धारथ कुल कमल दिव), ८६०१८-२) महावीरजिन स्तवन, मु. लाभविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आजूनो आजूनो आजनो रे), ८६७९५ महावीर जिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८६२, पद्य, ., (वीर जिनंद सासण धणी), ८६१११(०), ८६१५१, ८६८९० महावीरजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., ( श्रीमहावीरजी करपा), ८५९६१(#) महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५. वि. १७वी, पद्य, मूपू (सिद्धारथना रे नंदन), ८५९८२-२ (*) महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (जय जिनवर जग हितकारी), ८८५८०-१(+) महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (त्रिसलानंदन चिंदन), ८७६१३ महावीरजिन स्तवन, मु. शिवकल्याण, मा.गु., गा. १९, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (सकल संघ सुखकारी वीरइ), ८७१९८ महावीरजिन स्तवन, मु. सिद्ध, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., ( वदन अनोपम चंदा निरखं), ८७६७८-१ महावीरजिन स्तवन, सेवक, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वलवल वाधु वीरजी सुहा), ८८६८७-२(+) महावीरजिन स्तवन, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (झूमर झुमकत झुमझुम), ८८७५१-२(+) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, म्पू., (श्रीगुरुचरणकमल नमीए), ८५८४६ (३) महावीरजिन स्तवन- १४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (एक मन वंधु श्रीवीर ), ८६८४५ (+), ८५७४८, ८६३४६-१(#) ', महावीर जिन स्तवन- १४ स्वप्नगर्भित, मु. नंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, वे (श्रीसिद्धारथ कुलतिलो), ८७४१७(*), ८७८६७ महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (तीसलादेजीने सुपना), ८७९२५ For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ महावीरजिन स्तवन- २४ दंडकगर्भित, क. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ८९, पद्य, मूपू (प्रणमी सरसति भगवती), ८८६९६-१(३) महावीरजिन स्तवन-२७ भव, पंन्या. ज्ञानकुशल, मा.गु., ढा. ११, गा. ८७, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (पूरण प्रेमे प्रणमीइ), ८६४४४ (+) महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (विमल कमलदल लोयणा), ८६९२३ महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १०, गा. १००, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति दिओ मति), ८५६६१(+#$), ८७८१६, ८६६८७ (#$), ८९००३(#) महावीरजिन स्तवन- ४५ आगमसंख्यागर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, वि. १७७३, पद्य, म्पू, (देवांना पिण जेह छै), ८८००३-१ (+) महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिणेसर सुपरे), ८६२८२-१(+३), ८६३५७/१ " महावीर जिन स्तवन- कुंडलपुर, मु. जतीदास, पुहिं., गा. १०, पद्य, वे., (कुंडलपुर सुवावणो), ८७४९७(+), ८६०७९ महावीर जिन स्तवन- कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, श्राव. शाह वघो, मा.गु., गा. ४०, वि. १७२६, पद्य, मूपू (श्रीश्रुतदेवीनें चरण), ८८८७०(8) ५७१ महावीरजिन स्तवन-चंदन मंडण, मु. ऋषभविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (चलो वंदन जईए वीरजी), ८८९२२-२(+) महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., ढा. ५, गा. ६६, वि. १६११, पद्य, मूपू (सकल जिणंद पाय नमी), ८७९५३-७(+), ८८५७९, ८६०२२(४) " महावीरजिन स्तवन-छमासी तप, मु. कवियण, मा.गु., ढा. २, गा. १७, पद्य, मूपू., (पय प्रणमी जीनवरतणां), ८७६०७ महावीरजिन स्तवन- जन्मकल्याणकगर्भित, मु. धनदास, मा.गु., डा. ४, गा. ८१, वि. १९०९, पद्य, मूपु. ( प्रथम जिनेस्वर पाय), ८५६५२(+) , महावीरजिन स्तवन-जीरणसेठ द्वारा चौमासी पारणा, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतजी अनंतबली), ८८४९१(+#$) महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन- विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.. गा. १९, पद्य, मूपू (वीर सुणो मुज विनती), ८५७०५(*) ८५९६२(*०), ८६३३७(*), ८७३४७-२(+), ८८२८२(*), ८८५२९-२(*), ८७१७३, ८७७०४-१, ८७९७१, ८९२३५-३(5) महावीरजिन स्तवन- तपगर्भित, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू (गौतमस्वामीजी बुद्धि), ८५७५१-२ महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( मारग देशक मोक्षनो रे), ८९०३५-२ (+), ८५८७२-१ महावीरजिन स्तवन- दीपावलीपर्व, मु. सुजस, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मारग देशक मोक्षनो रे), ८७८८८-२ महावीरजिन स्तवन-नालंदापाडा, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (मगध देशमांहि विराजै), ८७६३५-२, ८६३३९(#) महावीरजिन स्तवन- निगोदविचारगर्भित, मु. क्षमाप्रमोद, मा.गु., गा. ४८, पद्य, मूपू. (प्रह उठी नमियें सदा), ८६०४३, ८६८४३ महावीरजिन स्तवन- निसालगरणु, मा.गु., गा. २३, पद्य, म्पू, (त्रिभुवन जिण आणंदा), ८८२८७(१) महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (शासननायक शिवकरण वंदु), ८७९०३(७) महावीरजिन स्तवन- पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु. गा. ३१, पद्य, म्पू, (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ८५८९३-१(+), ८९०८०-१(७) , महावीर जिन स्तवन- पारणागभिंत, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपु. ( श्रीअरतजी अतबली), ८५९५१-२(+) महावीरजिन स्तवन- पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चोमासी पारणो आवे), ८७६७३, ८८३२७, For Private and Personal Use Only ८६५१४-३ (#), ८८०६९(#) महावीरजिन स्तवन- बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ सारदा), ८७६२७-१(०), ८८८२७(*), ८७६३०, ८७८८६-९, ८८९४४, ८९२२८ महावीरजिन स्तवन- भुडुतीर्थमंडन, मु. रामचंद, मा.गु., गा. १३, वि. १८३७, पद्य, मूपु. ( सरसति सामण वीनवु), ८७१३४(५) महावीरजिन स्तवन- विजयसेठविजयासेठाणी विनतीगर्भित, मु. दीपविजय कवि, मा.गु.. गा. ११. वि. १८८८, पद्य, मूपू (एकवार कछ देस आवीये), ८६९०७-२ Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७२ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ . न्यायसागर, मा.गु., ढा. ६, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (एकविध दुहविध त्रिविध), महावीरजिन स्तवन- समकितविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., ८६७८९ (२३) महावीरजिन स्तवन-समवसरणगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (त्रिशलानंदन वंदीये), ८६१४२(+) महावीरजिन स्तवन- सांचोरमंडन, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु.. गा. १३. वि. १६७७, पद्य, मूपू (धन्य दिवस मई आज जुह), ८९१७६(+) महावीर जिन स्तवन-सोवनगिरि, क. कमलविजय, मा.गु., ढा. २ गा. ३२, पच, भूपू (सरस सुकोमल शीतल वाणी), ८९०७६ महावीरजिन स्तवन- स्वप्नगभिंत, मु. रावचंद ऋषि, मा.गु. गा. १४, वि. १८३१, पद्य, स्था. (सासननायक समये समये), " "" יי ८७५७७(+#) महावीरजिन स्तुति, मु. चेतन, पुर्हि, गा. ४, पद्य, मूपु (परमपुरुष परमेश्वर) ८६७४२-२ " . महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुरति मनमोहन कंचन), ८५९४४-२ (६) महावीरजिन स्तुति, मु. दोलतविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शासननो नायक जीनवर ), ८८१३६ महावीरजिन स्तुति, आ. विजयजिनेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (वाणी श्रीवीरजिनेसर). ८८४२१-२ (५३) (२) महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे इहां श्रीवीर ), ८८४२१-२(+$) महावीरजिन स्तुति, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (सिद्धारथ कुल मुगुट), ८६०६४-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कठन करम मेली काठीआ), ८६०२७-४, ८८१७५-२ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दयातणो सायर मुक्ति), ८७६७५-३ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वर्धमान जिनवर परम), ८७०७७ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान जिनवर ), ८७१०२-७ (#$) महावीरजिन स्तुति-गंधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गंधारे श्रीवीरजिणंद), ८७०९३-२, ८९११३-१ महावीरजिन हालरडुं, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू.. (माता त्रिशला झुलावे), ८६२५२ (४) महावीरजिन होरी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (महावीर ऐसे जिनवंदनकु), ८६०९२-१ माईदास संथारा भास, मु. दुर्गदास, मा.गु., गा. १३, वि. १६३४, पद्य, वे (श्रीपति नरपति नाकपति), ८७६०५-१(क माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (सरस वचन द्यो सरसती), ८६८२३, ८७७१७(#), ८७९२०(#), ८८१९८३) माणिभद्रवीर छंद, मु. लालकुशल, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सरसति भगवती भारती), ८५६८१ माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., ( सरसति सामनि पाय), ८७९२८ (क) माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मूपू., (सरस्वती स्वामनी पाय), ८७२४५, ८६४४९ ($) For Private and Personal Use Only माणिभद्रवीर छंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सरस वसन दियो सरसति), ८६६२५ (#) माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, भूपू (सूरपति सेवित शुभ खाण), ८७७२४-२(३), ८८६९८(३) माणिभद्रवीर पद, मु, मोहनरुचि, पुहिं, गा. ५, पद्य, मूपू., (कुसल माणिभद्र के), ८५९७७-११(+४) " मानतुंगमानवती रास, अनुपचंद - शिष्य, मा.गु., ढा. ८, वि. १८७०, पद्य, मूपू., (सरी संत जणेसरु नमतां), ८५८९० मान परिहार सज्झाय, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु. गा. १६. वि. १७वी, पद्य, मूपू. (मान न करशो रे मानवी), ८९२८१-१ मार्जारी दोषनिवारण विधि- समयसुंदरकृत, उपा. समयसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरिहावहि पडिक्कमि), ८८२३४-३(#) मिच्छामि दुक्कडं पत्र-धर्मसागरजी द्वारा, मा.गु., वि. १६४९, गद्य, मूपू., (संवत १६४९ वर्षे पोष), ८७७६५-२(#) मुक्तिगमन सज्झाय, पुहिं., गा. २०, वि. १९२८, पद्य, वे., (तीर्थंकर महावीर ), ८६७०२-१ (+#), ८७६२२-४(+) मुनिगुण भास, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ज्ञानदिवाकर सोभता), ८७५५५-२, ८८०३२-१($) मुनिगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. ९, पद्य, स्था., (मानवभव पायो टाणो नो), ८६२१४-४ (+) मुनिगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु.. गा. १३, पद्य, मूपु. ( नित नित बंदु रे मुनि), ८८५६८-२ (-*) मुनिगुण सज्झाय, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आरति सवि दूर करी), ८७९५८-१(+) मुनिगुण सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( चारित्रनो खप करजो), ८६३७७-१ Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५७३ मुनिगुण सवैया, रा., गा. ३६, पद्य, श्वे., (पाप पंथ परहर मोख पंथ), ८६७३८(+$) मुनिपति चरित्र *, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीपे भरतखेत्र), ८६७७९(2) मुनिराज २७ गुण धमाल, मु. चंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (पंचमहाबरत मुनिवर धार), ८८७४३-२(+-) मुनिवंदन सज्झाय, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमुनिराजने वंदना), ८६२०६-२(5) मुनिशिक्षा सज्झाय, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (देवगुरु संघ कारण), ८७६१८-२(+) मुनिसुव्रतजिन गीत, मा.गु., पद्य, मूपू., (मुनीसुव्रतजीनराया), ८८८५३-१(+$) । मुनिसुव्रतजिन पद, पुहि., पद. ४, पद्य, मूपू., (मुनीसुव्रतनाथ जिणेसर), ८६३९८-४ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., गा.७, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रतजिन तुंज), ८७११५-२(+) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हो प्रभु मुज प्यारा), ८६४१०-५(+) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (वरसे वरसे वचन सुधा), ८७०५९-२(+), ८७२२५-१ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मपू., (मुनिसुव्रतसामी हो के), ८६५०५-१(६) मुहपति पडिलेहण ५० बोल, रा., गद्य, म्पू., (प्रथम दृष्टि पडिलेहन), ८९१९०(#) मुहपत्तिपडिलेहणविधि स्तवन, ग. लब्धिवल्लभ, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वर्धमान जिनवर तणा), ८७३२३ मुहपत्तिपडिलेहन बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्र अर्थ तत्त्व), ८६३९४(+) मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहि., गा.८, पद्य, दि., (ऐसे क्यं प्रभु पाईइ),८९०४३-४(+) मूढशिक्षा पद, आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (जे मूरख जन बाउरे जिन), ८८४०५-५ मूर्ख के १०० बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (छते सामर्थ्य उद्यम), ८५७०८-१ मूर्खशतक, मा.गु., गा. १००, पद्य, श्वे., (धारानगरीइ भोज राजा), ८९१९५-१ मृगांकलेखा रास, श्राव. वछ, मा.गु., गा. ४११, पद्य, म्पू., (गोयम गणहर पय नमेवि), ८७१५५ (#$) मृगापुत्र रास, मु. मनधर, पुहिं., गा. ३०, पद्य, मप., (शक्र इंद्र प्रसंसा), ८८६७४(-) मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, स्पू., (सुगरीपुर नगर सोहामणौ), ८७५०६-१ मृगापुत्र सज्झाय, मु. विमल, मा.गु., गा. २१, पद्य, म्पू., (--), ८९१२६-१(६) मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., ढा. १, गा. ३५, पद्य, मूपू., (प्रणमी पार्श्व जिणंद), ८७०६३($) मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सुग्रीवनयर सुहामणो), ८७३९५-१(+), ८८५१६-३($) मृगापुत्र सज्झाय, मु. हंसविमल, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (सूगरीव नयरी सोहामणी), ८६१६६ मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., गा. २७, पद्य, म्पू., (सुग्रीवनगर सुहामणों), ८८२२७ मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सुग्रीवनयर सोहामणु), ८८७८० मृगावतीसती कथा-छठा अछेरा, मा.गु., वि. १८वी, गद्य, श्वे., (कोशंबी नामे नगरि), ८९२६९ मृषावादपापस्थानक सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, वि. २०वी, पद्य, मपू., (असत्य वचन मुखथी नवि), ८६९४७-२(+#), ८६३१५-१,८७८६६-२(#) मेघकुमार चौढालिया, मु. जादव, मा.गु., ढा. ४, गा. २३, पद्य, श्वे., (प्रथम गणधर गुणनिलो), ८८५४४(+),८५७३६, ८६२२२, ८७२८५-२, ८८२३८-१(२) मेघकुमार सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ८७९२९-२(+#),८७९३३-४(+), ८९१२५-२(+) मेघकुमार सज्झाय, क. कुसल, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर आवी समोसर), ८८१५१-२(5) मेघकुमार सज्झाय, मु. पुण्यविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (वीरजिणंद समोसर्या), ८६१९४ मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., गा. २२, पद्य, पू., (वीरजिणंद समोसर्या जी), ८८१५१-१, ८८९९६, ८९११४(#), ८५९८१-१(-) मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ८९०१६-३, ८६८४२-२(-) मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ८६६२०-२($), ८८२४९(६) मेघकुमार सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (मुनिवर मेघकुमारजी), ८८७१३(+) मेघकुमार सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. २८, पद्य, मपू., (सद्गुरु पाय प्रणमी म), ८८३३१-१(4) For Private and Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ मेघकुमार सज्झाय, मु. हंस, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे), ८६८५०-१(#) मेघकुमार सज्झाय, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (धारणी समजावे हो मेघक), ८७०९७-२(+$), ८५६५६-२(4) मेघकुमार सिलोको, मा.गु., पद्य, मूपू., (समरुं हुं पेहला), ८६४३९(5) मेघरथराजा सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १७९७, पद्य, श्वे., (दशमें भवे श्रीशांति), ८६०७८(#) मेघरथराजा सज्झाय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मप., (पुरब दिस पोषद मै), ८७०८९(+-2), ८७७९८(+) मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडा विनती, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (दया बरोबर धर्म नहीं), ८५९११(+), ८७४२५(+), ८८४५९, ८८२२९(2) मेतारजमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मप., (धन धन मेतारज मुनि), ८८७१४-४(-) मेतारजमुनि सज्झाय, रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (मासखमणरो पारणो मुनि), ८८८१६-२ मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहि.,मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समदम गुणना आगरु जी), ८५९५२-३(+5), ८६७०८-१(+), ८७९३३-२(+), ८५७७९, ८६६०१,८८७०१-१,८८९१५-१, ८७१८०(#), ८८१४९-२($) । मेवाडदेशवर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., गा. १२, वि. १८१४, पद्य, श्वे., इतर, (मन धरी माता भारती), ८७७४१-१ मोक्ष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (मोक्षनगर मारुं सासरु), ८६०५२-२, ८८४०४ मोटा पखवासानो गुणनो-१ से १६ तिथि तप, मा.गु., गद्य, श्वे., (कुंथुनाथ पारंगताउ), ८७०३९-१ मोह निवारक सझाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (मोह तणे जोरे करी), ८९१६३-२ मौनएकादशीपर्व सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (हरी पुछे नेमने हो), ८५६३१ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मपू., (द्वारिकानयरी समोसर्य), ८६९५२, ८८५७६-१, ८८०४१(#S), ८८६६३-१(#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, मपू., (जगपति नायक नेमिजिणंद), ८६६७३(+#), ८६२२४, ८६५५३(१) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी पूछे वीरने),८५८०५ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (विश्वनायक मुक्तिदायक), ८५८४४ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ४२, वि. १७८१, पद्य, मपू., (शांतिकरण श्रीशांतिजी), ८६४७६-१ मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठा भगवंत), ८७५३६-२(+), ८६०५४-१,८८७९४ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (भर्या समद मा झुलण), ८५९१६-१(+-) मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., ढा. १२, गा. ६२, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (धुरि प्रणमुं जिन), ८५९२३(+), ८८६२८(+$), ८५९६३($) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), ८७१२५-३(+$), ८५८७२-४, ८७६८०-१, ८८७८७-२ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गौतम बोले ग्रंथ), ८५९३२-१(+#), ८६५१७(+), ८८६४८-२(+), ८६०५२-५, ८६४३०, ८८४४२-२,८८४८२-१,८६३४३(#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (तिथि मौनएकादशी उपदेश), ८७५८८-१ यतिधर्मबत्रीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३२, वि. १८वी, पद्य, मप., (भाव यति तेने कहो), ८६५०८(+) युगबाहजिन स्तवन, मु. जिनदेव, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (इण जंबुदीवइ जाणीय), ८८२८९(#) युगमंधरजिन स्तवन, पं. चैनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (काया पामी अति कूडी), ८८५१० युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काया रे पामी अति), ८८७९८-२(+-) युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीयुगमिंधर भेटवा), ८७५१४-१ युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १०, वि. १८४४, पद्य, श्वे., (जगत गुरु जुगमंदर), ८९०९६-१(+#), ८८८८६-१ युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३९, पद्य, मपू., (जुगमींधरजिन सांभलो), ८८४१६-१ For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ यगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. ९, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (महाविदेह मे प्रभु रो), ८९०९६-२(+2), ८८८८६-२, ८७३५७-२) युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १६, वि. १८२५, पद्य, स्था., (युगमंधर जिन सांभलो), ८७०८१-२(-) युगमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. २१, पद्य, मप., (निसदन लली ललि शीस), ८७३०५-१(+-) योगपावडी, गोरखनाथ, मा.गु., गा. ६८, पद्य, वै., (क्रोध लोभ दरइं परि), ८६४६९-१ योनिअल्पबहत्व विचार, रा., गद्य, मप., (सबसे थोडा जीवा सीतोस), ८६४४८-३(+) यौवनपच्चीसी, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. २५, वि. १९१६, पद्य, स्था., (जोवनियानो लटको दहाडा), ८७११०(+#) यौवनपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८४०, पद्य, स्था., (पुन जोग नर भव लहो), ८८९०७-१(+) रतनकुमार ढाल, सा. लछमा, मा.गु., ढा. ५, वि. १९०९, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण आगला रे), ८६४८०(#$) रतनजी नाम के २४ लेखन भेद, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ रतनजी २ तरनजी), ८५७५८-२ रत्नप्रभसूरि कवित, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (विक्रमादैत्य थकि वरस), ८६१०६-६(+) रत्नप्रभापथ्वी विचार, मा.गु.,रा., गद्य, श्वे., (एक लाख असी हजाररो), ८६१७७-४(+) रत्नविजय रास, मा.गु., ढा. ५, वि. १९३३, पद्य, मूपू., (सरसत गणपत दीजियौ), ८६२९६(2) रथनेमिराजिमती गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजुल चाली रंगसुरे), ८७९३३-६(+), ८५६४५-४ रथनेमिराजिमती जोड, मा.गु., गा.१०, पद्य, श्वे., (मुनीवर संजम लईने), ८६२५८-१(+-) रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ५, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनें आयरी), ८५७०९(+), ८६९१०(+#s), ८८८६४ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहि., गा. १९, पद्य, मूप., (देखी मन देवर का), ८७८२२ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (काउसग व्रत रहनेम), ८८३६४-४(+#$) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (काउसग्ग ध्याने मुनि), ८७२२१, ८९०९५-२ रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मूपू., (रहनेमि अंबर विण), ८६४३८(5) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. श्रीदेव, पुहि., गा. ८, पद्य, मपू., (देवर दूर खडो रहो कें), ८६८८०-१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सदगुरु पाय), ८८४१५-१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (काउसग लेइ ध्याने रहा), ८६०८९ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (काउसग्ग थकी नेमी),८९१३८-२($) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (राजमतीजी मोटी सती रे), ८६८६८-२ रथनेमि सज्झाय, मु. प्रतापविजय, मा.ग., गा. ११, पद्य, मप., (वेगलो रे वरणागीया), ८५६८५(+#) रथनेमि सज्झाय, म्. वसता मुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (काउसग्ग थकी रे रहनेम), ८५८५०-२(+) रागमाला, आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मपू., इतर, (पास जिणेसर पाय नमीए), ८७४६३-२(+) रागमाला-पंचम, पंन्या. समुद्रविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., इतर, (नमो नाद अन्नादमय), ८७४६३-१(+) राजिमतीपच्चीसी, मा.गु., गा. ४७, पद्य, म्पू., (सुनि भवियण हो प्रथम), ८८०४८ राजिमतीसतीइकवीसा, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (सासननायक सुमरिय), ८८०००-१(-2), ८७७१९, ८७३५७-१(-) राजिमतीसती विलाप लावणी, म. जिनदास, पहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मप., (दे गया दगा दिलदार), ८८७२३-६(+-), ८६८६२-८,८७२८९-१(६) राजिमतीसती सज्झाय, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सरसत सामण हो चंदावदन), ८६३८५ रात्रिभोजन चौपाई, मा.ग., गा.७९, पद्य, श्वे., (श्रीगुरु भगत करं मन), ८७६२० रात्रिभोजन त्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (सकल धरममां सारज कहिइ), ८७९७४-२(+) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (ग्यान भणो गुण खाणी), ८६००७-१(+), ८७०८७-२ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (अवनितलि वारू वसइजी), ८७७८५, ८६१९०(#s), ८७५५८-१(#) For Private and Personal Use Only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ रात्रिभोजन दोषविचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (छन्नू भव लगे जीव), ८८१७८-२ रात्रिभोजन परिहार पद, पं. रत्न, पुहिं., पद. ४, पद्य, श्वे., (रात्रीभोजन दोष अती), ८५७२२-३(4) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि *, मा.गु., ढा. ४, गा. ३५, पद्य, मूप., (गुरुपद प्रणमी आणी), ८६०८३(+), ८८१२४-२() रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (रंभा जणणी रुयडीजी), ८८४१७ राधाकृष्ण पद, मलुकदास वैष्णव, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (सांवरै की दृष्ट मानु), ८८२२६-३ राधाकृष्ण पद, पुहि., गा. १, पद्य, वै., (गोपसुता मिलि खेलत), ८८५८७-२ राधाकृष्ण रेखता, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, वै., (जनम जनम गून मांगि), ८५६६९-२ राधाकृष्ण होरी, सूरदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., (चटके मेरो चीर मोरारी), ८६१७९-३ राधाकृष्ण होरी, सूरदास, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (होरी खेलत कुंजविहारी), ८६१७९-२ राधाभक्ति पद, सूरदास, पुहिं., पद. १, पद्य, वै., (तिलक किसै गुण सार्यो), ८७५३५-४(+) रामभक्ति पद, मलुकदास वैष्णव, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (राम भजि राम भजि),८७५७२-२ रामलक्ष्मणसीता ढाल-कालविशे, पुहि., पद्य, श्वे., (हरे काल से डर रे नाद), ८६३२३(5) रामसीता चरित्र, मा.गु., पद्य, श्वे., (हा हा देव ते स्यूं),८८११०(+$) रामसीता पद, कबीर, पुहि., कडी. ६, पद्य, वै., (अरण गरण की बादलीह), ८७३८८-१(+) रामसौभाग्य पं द्वारा दी गयी हर्षपहिरामणी का खरडा, मा.गु., वि. १८६२, गद्य, मपू., (सं १८६२ वर्षे वैशाख), ८८२१५(+) रामायण अष्टपदी, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (विराजै रामायन घटमां), ८९०४३-१२(+) रायचंदऋषि गुरुगण वर्णन, मु. आसकरण, रा., ढा. १, गा. १८, वि. १८४०, पद्य, स्था., (अरिहंत सिद्धने आरीया), ८५८८० रावण चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (अतवरो छ मानवि क्रोध), ८८४९८(+) रावणमंदोदरी संवाद रास, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ८६२००($) रावणमंदोदरी संवाद सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४९, वि. १५८५, पद्य, मूपू., (गजपती गुणवती वचन रस), ८७३६८-१ रावण सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (केहे भविषण सुण हो), ८७०१२-१(+) रावण सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (कहे भवीषण सुण वो),८८५५८-१(२) राशितिथिनक्षत्रादि कोष्ठक, मा.ग., को., जै., इतर, (मेष वृष मिथन कर्क), ८९२१२-२(+#) रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विचरता गामोगाम नेमि), ८५८६६, ८६६००-१, ८८१२३-१, ८७८९२() रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सोवन सिहासन रेवति),८७०८८-३(+#), ८७१७०-१, ८८७३१-३, ८९२७१-३ रेवतीश्राविका सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (सोवन संघासन रेवती), ८९०४० रोहिणी उजमणो, मा.गु., गद्य, मूपू., (विध लीखीयै छै गुरुनै), ८८२९७-२ रोहिणीतप सज्झाय, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य नमी स्वामी), ८६३३५(+), ८८३९५(+) रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३१, वि. १८५९, पद्य, मपू., (हां रे मारे वासुपूज), ८८८७१-३, ८६४८२(#) रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सासणदेवता सामणीए मुझ), ८५९१०(+$), ८६१०२(+), ८६१५६(+), ८६७४१(+), ८८९०४-१(+), ८६०७७-१, ८६६२४, ८६९१९, ८८१९०, ८८२९७-१, ८५८६९(5) रोहिणीतप स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (नक्षत्र रोहिणी जे), ८६९९४, ८७६३२, ८६५१४-२(#) रोहिणीतप स्तुति, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसीधचक्रजी भगवान), ८६७६१-१ लक्ष्मीधरश्रेष्ठि कथा-धर्मसेवागर्भित, मा.गु., गद्य, मूपू., (धम्मं निसेवितुं सुह), ८६९४९-२(+) लब्धिकीर्तिजी की पहिरावणी विगत, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ८६९३७ ललितांगकुमार सज्झाय, मु. कुंवरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (मानवभव पामी दुलहो), ८९३०२ For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५७७ ललितांगकुमार सज्झाय-शील विषये, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. १३, वि. १९५९, पद्य, स्था., (सुंदर सहर मनोहरो कवर), ८६४०९-३(+) लालजीमहाराज सज्झाय, पुहि., गा. ७, वि. १९५९, पद्य, श्वे., (पुज पधार्या आप हुआ), ८६८६४ लालविजयजी का दस्तावेज, पं. लालविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (आ मारी गादी सरसामान), ८६५४१-२(#) लीलोतरी नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (कोलांनी जाती तुरीया),८६५२०-३(+-) लुंकामतीय प्रश्नबोल, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीउवाईमांहि अंबडनी), ८६२६२-४ लुकमानहकीम नसीयत, पुहिं., प+ग., जै.?, (जहा गणधर आसमान थिर), ८८९६२ लोट मिश्रण काल, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रावण भाद्रवे ५ दिन), ८७६९६-३(+) वंकचूल रास, मा.गु., गा. ९४, पद्य, मूपू., (आदि जिनवर आदि जिनवर), ८७६९१(+) वचनगुप्ति सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वचन विचारी रे सजन), ८७९८१-२(2) वज्रकुंवर चौढालियो, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ६५, पद्य, मूप., (राय जसरधत पहिला हुवा), ८९१८५(+) वज्रधरजिन स्तवन, मु. वीरविमल शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुरवर चिंत रे), ८६८८०-२ वज्रस्वामी गहंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (सखी रे में कौतुंक), ८६७२६(+) (२) वज्रस्वामी गहंली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीवयरस्वामी ६ मासन), ८६७२६(+) वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १५, गा. ८९, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (अरध भरतमांहि शोभतो), ८८४४८(+#) वज्रस्वामी सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कहै सुनंदा बांह पसार), ८९१०४(+), ८८९७८-२ वडगच्छशाखा लावणी, मु. दुर्लभराम, मा.गु., गा. ८, वि. १९२२, पद्य, मपू., (महाराज राजेश्वर गणधर), ८६१२३(+) वरस का थंभ विचार, रा., गद्य, जै., वै., इतर, (चैत्र उजाली पडिवा), ८८५३६-२(+) वर्णमाला, मा.गु., गद्य, श्वे., (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लु), ८८०१०-१ वर्तमानजिन चौवीसी, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वर्तमानका लेहविरे), ८५७८५-२ वर्धमानजिन नामकरण आश्रयी भोजन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (भलो उत्तंग तोरण), ८७६४७-१(+) वर्षफल विचार, मा.गु., गद्य, इतर, (चैत्र दि १ दीवशे), ८५९१२-१(+) वस्तुपालतेजपाल धन व्यय विवरण, मा.गु., गद्य, मपू., (१३१३ जै प्रसाद), ८८४५१ वस्तुपालतेजपाल सुकृत कवित्त, दत्त, मा.गु., गा. २, पद्य, मपू., (पंचसहस प्रासाद जैन), ८५७५४-३(+) वायुभूतिगणधर सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८५५, पद्य, मूप., (वायुभूति नित वंदीए), ८९२१८-१(+) वासुदेव की माता के नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मृगादेवी१ उमादेवी२), ८७९८६-९ वासुपूज्यजिन पद, मु. रूपचंद्र, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (मेरो मन वस किनो हो), ८८९३९-४(-) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (नायक मोह नचावीयो), ८५७४२-२ वासुपूज्यजिन स्तवन, वा. देव, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीवसुपूज्य नरेसरू), ८५७९४-२(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (वासव पूजित वासुपूज्य),८६१३२-२ वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वामि तुमे कांइ), ८८९३२-२(#) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (श्रीवासुपूज्य संजम), ८९१५०-२ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. रूप, मा.गु., गा. १२, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (श्रीबासपूज्य बारम), ८८४६५ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. हीरधर्म, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिणंदवा मिल गयो रे), ८९१५६-१ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. हीरधर्म, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (तेरी मूरत की इकतारी), ८९२९१-२ वासुपूज्य स्तवन-पिलवाईमंडण, ग. गुलाबविजय, मा.गु., ढा. १, गा. २५, वि. १८९१, पद्य, मूपू., (सरसति केरा चरण नमी), ८६९४४(+#) विकल पच्चक्खाण सज्झाय, रा., वि. १८३२, पद्य, श्वे., (भेख धार्यारा त्याग), ८६४७३(+$) विचारचोसठी, आ. नन्नसूरि, मा.गु., गा. ६०, वि. १५४४, पद्य, मपू., (वीरजिणेसर प्रणमी पाय), ८७११६(#) विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिं त्रीजे), ८८७०९(#) For Private and Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir TCGPJUTOTEIPSITT OTTAA ५७८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ विजयजिनेंद्रसूरि गुरुगुण गहुंली, मु. रंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सहि मोरी शासननायक), ८६९७४-२(+) विजयधर्मसूरि गहुंली, मु. बुद्धिकुशल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीविजयधर्मसूरीसरूं), ८७६६९(#) विजयधर्मसूरि गुरुगुण गीत, मु. जैनेंद्र, पुहि., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी मात), ८९२१४ विजयधर्मसूरि भास, मु. दीपविजयशिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वालो माहरो दीए छे), ८६३७७-२ गुरुगुण सज्झाय, मु. हितविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, पू., (वंदऊं विजयप्रभसूरि), ८८३६२-१ विजयप्रभसूरि सज्झाय, उपा. कुशलसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पूज्य पधारो मरुदेशे), ८७२०९ विजयप्रभसूरि सज्झाय, मु. लाभविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वारिज भूतनयातनि आणी), ८९०८६-३(+) विजयलक्ष्मीसूरि गहुंली, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आर्यदेश नरभव लह्यो), ८५६६३-३(+) विजयलक्ष्मीसूरि बारमासा, मा.गु., गा. १६, पद्य, पू., (हु तो सरसतिने पाये), ८५८९५-१ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, पद्य, मपू., (भरतक्षेत्रे रे), ८६३४८, ८७४०४-५, ८७७६६-१(६) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रामचंद, पुहिं., ढा. ४, वि. १९१०, पद्य, श्वे., (आदिनाथ आदिसरु सकल), ८७०९७-१(+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय-शीलगर्भित, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रह उठी रे पंच), ८७३१५(+), ८७४९४(+), ८७४७६-१, ८६०५३-१(१) । विजयसेनसूरि सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (श्रीहीरविजयसूरि पाय), ८६९२१-२(+) विजयसेनसूरि सज्झाय, मु. विशालसुंदर-शिष्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (श्रीशांतिजिणेसर पय), ८९२१२-१(2) विज्ञान कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोईक राजानो पुत्र), ८९१५७-१(+) विद्यासागरसूरि गुरुगण भास, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ७, वि. १७९७, पद्य, मूप., (श्रीगुरुचरण पसाइ गुण),८७९८५-१(+#) विनयपच्चीसी, पुहिं., पद्य, श्वे., (जिणशासन को मूल है), ८६८४८($) विनय बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (वीनयना सातभेद नाणवीन), ८७१७१(-६) विनय सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीजंबु मुनी विनव्य), ८६५५४ विनय सज्झाय, आ. विमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विनय करो चेला गुरु), ८८५३२-१ विमलजिन पंचकल्याणक स्तवन-मेदिनीतटिमंडण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूप., (विमलनाथ सुणौ वीनति), ८७५६३-२(#) विमलजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जिन विमल वदन रलियामण), ८६१३५-२(+) विमलमंत्री शलोको, मु. उदयरत्न, गु.,मा.गु., गा. ११७, वि. १८वी, पद्य, मपू., (सरसति समरु बे कर जोड), ८७५८५(+$) विमलासती पंचढालियो, मु. कुसालचंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १८९८, पद्य, श्वे., (सासणनायक सीमरीये), ८७७५५ विरहव्यथा गीत, मा.गु., पद्य, जै., वै., इतर, (जीवन मोरा हो सांभलि), ८७०२०-३(#$) विविध जीव आयुष्य विचार *, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२० हाथीनो आयु १२०), ८६४२३-४ विविधतप यंत्र संग्रह, मा.गु., को., मूपू., (अशोकवृक्ष तप १ आसो), ८८३६७(+), ८५९७१ विविधविचार संग्रह-स्थानकवासी, मा.गु., प+ग., स्था., (से जइ पुण कुलाइ), ८८२३४-१(4) विशालजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (द्रव्य सरुप इम उपदीस), ८८११७-३ विशालसोमसूरि भास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सरसति मात पसाउ लइ रे), ८७६७१-३(+) विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहि., गा. ४२, वि. १७१५, पद्य, दि., (आत्मलीन अनंतगुण), ८७०९१(+), ८७२५१(-) विहरमानजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (पूर्व महाविदेह विराज), ८५७५१-१, ८८८७४-१ वीतराग वाणी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एहवू जाणी वीतरागनी), ८८९२७-२ वृद्धदत्त व्यापारी सज्झाय-अनुकंपादि दान विषये, मा.गु., पद्य, मपू., (श्रीगुरुदेव नमस्कार), ८८७२८-१(5) वैराग्य निशानी, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (काया माया कारमी दिन), ८९२८०-२(+) वैराग्यपच्चीसी, मु. गोपालदास, पुहिं., गा. २५, पद्य, श्वे., (इह प्रमादी जीव जग), ८५९७२-१(#) वैराग्यपच्चीसी, मु. सदारंग, मा.गु., ढा. २, गा. २५, पद्य, मूपू., (ए संसार अथिर करि जाण), ८६३१७(+), ८८२४५(+) For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५७९ वैराग्य पद, गोरखनाथ, मा.गु., गा. ६, पद्य, वै., (माहरो रे वेरागी रे), ८७५५८-२(#) वैराग्य पद, पुहिं., गा. ७, पद्य, वै., (सिता कुंन हरी री), ८८९६९-२($) वैराग्य सज्झाय, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (सखरो धर्म छै साचो), ८५८८४-१(-2) वैराग्य सझाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु पाय प्रणमी), ८८२०२-३(#$) वैशिकपुत्र सज्झाय, मु. धर्मचंद, मा.गु., ढा. ६, गा. ९०, वि. १७७९, पद्य, मूपू., (देवधर्मगुरुजन नमु), ८८५९३ व्यक्तगणधर सज्झाय, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. ९, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (व्यक्त ऋषीश्वर वांदी), ८९२१८-२(+) व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, मूपू., (अशरणशरण भवभयहरण), ८६८७७, ८७१८६-१ शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूप., (विमल गिरिवर विमल), ८७२८६(+) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कीर्तिमाणेक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्री सिद्धाचल तीर्थ), ८६६८३-५(+#), ८६३६०-१ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (जय जय नाभिनरिंदनंद), ८७६८७-४(+) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विमलकेवल ज्ञानकमला), ८६६८३-६(+#), ८६३१६ शत्रंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. रूप, मा.गु., गा.६, पद्य, मप., (पश्चिमदेश मनोहरू),८८९७५-४ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धुर समरु श्रीआदिदेव), ८८३९७-१(+) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शत्रुजय सिद्ध), ८७९४२-३(+), ८७२११-१, ८७८२३-१ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (सीध खेत्र वंदो सदा), ८८२५५-१ शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ८६५१०(+#$) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आंखडीये रे में आज), ८५९३७-४(2), ८६३९७-३(+), ८७९८१-१(२) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (डुंगर ठंडो रे डुंगर), ८७५००-२, ८७६८१-२, ८८१८९, ८८५५१-८ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (ते दिन क्यारे आवसी), ८८५५१-६ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कडुओ, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सरसती सामण वीन), ८९१९६-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कनक, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (चालो सखी सिद्धाचल), ८७३००-३(5) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (शेजानो वासी), ८७७१०-२(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्री रे सिद्धाचल), ८५७५०-२(+), ८६९७८-३(+), ८८१४१-२(+), ८६०८८-१, ८७१२८-२, ८६७९३-२($) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजय शिष्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (सहीयां मोरी चालो शेत), ८८२४३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (स्वामीजी मुजने सिद्ध), ८६५६५-१ शजयतीर्थ स्तवन, मु. केवल, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (श्रीशेत्तुंजो भेटीया), ८६८७८-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, म्पू., (नाभिनंदन पूर्व नवाणु), ८६०८५(5) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा.१६, पद्य, मप., (करजोडी कहे कामिनी), ८८९३६ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (अंग उमाहो अति घणो), ८८०५० शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (सरसती सामण वीन), ८८५७१-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भाव धर धन्य दिन आज), ८७२४७-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (करजोडी कहे कामनी), ८७२९१-१(+), ८६८४६ शत्रंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (श्रीविमलाचल तीरथ), ८७४१६-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.१२, पद्य, मपू., (हांजी विमलाचल मन०), ८७८२७-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल वंदो रे), ८५७६०-३, ८६५९८-४, ८६७३७-१, ८७३००-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शत्रुजय नो वासी), ८८८३२-३(2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (इण डुंगरीयानी झिणी), ८८९२२-८(+) For Private and Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (माहरुं मन मोह्यं रे), ८८९२२-९(+), ८५७६०-५ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मोरा आतमराम कुण दिन), ८७६७९-३, ८८११२-२, ८८४३९-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धगिरि ध्यायो), ८६७४७-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १५, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (जे कोइ सिद्धगिरिराज), ८६६०५ शवजयतीर्थ स्तवन, मु. दोलत, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (सुण सुण कंता हो नारी), ८८३३७-४ शजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूप., (जात्रा नवाणु करीए वि), ८५६२९-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (तमे तो भले बिराजोजी), ८८३९६-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरजी आव्या रे), ८६०४४, ८८३९६-२(5) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सहिया सेजगिर), ८७८८१, ८६३३४(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (विमलाचल नित वंदीये), ८७६७९-२, ८८८७१-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (पग पग आए समरता आज), ८६२८९ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (अमृत वचने रे प्यारी), ८६७२१(+$), ८७६८६-१, ८८८०९ शजयतीर्थ स्तवन, मु. विमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (नीलुडी रायणने शीतळ), ८७९४६ श@जयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (भरतने पाटे भूपति रे), ८६२६३(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, म्पू., (वहालो वसे विमलाचले र), ८८११२-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. वेलो, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (बे कर जोडी रे कहे), ८७५००-३ शत्रंजयतीर्थ स्तवन, मु. शुभविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मप., (इण डूंगरीये मन मोहीउ), ८७४१६-१(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. ३, गा. १३, पद्य, मपू., (पय पणमी रे जिणवरना), ८७७९७(+), ८८००३-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सारंगमुनि, मा.गु., ढा. ४, गा. ३६, वि. १६४९, पद्य, मूपू., (सकल सांमिणि सदा समरी), ८८७७१(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मारुं डुंगरिये मन), ८६९७६ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., गा. ११, वि. २०वी, पद्य, मपू., (चालो चालोने जइये), ८६२९८ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (जोर से जी जोर मारा), ८८८५३-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (पुंडरगिरि प्रेमे रे), ८९१२८-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (शेजेजे गयां पाप), ८८६९६-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सिद्धाचल ध्यावो रे), ८६८७८-२($) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सेवो सेवो रे), ८९१२८-३(+$) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूप., (श्रीसिद्धाचलमंडण), ८६२०१-१(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मपू., (बे करजोडी विनवू जी), ८८४५०(2) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. आनंदहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (आदि अनादि तीरथ सार), ८७९२२-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. बुद्धिसागरसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (शत्रुजय मंडण ऋषभ), ८६०८७ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आगे पूरव वार नीवाणु), ८६९०५-१ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल मंगल लीला मुनि), ८५६९०, ८६५६२, ८६५३४(#) शवजयतीर्थोद्धार स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (श्रीभरतराजाजी उद्धार), ८५८२५(+) शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., गा. ४७, वि. १७वी, पद्य, मप., (सरसती सामिणी मन दियो), ८६९७७-२, ८७२४६ शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, स्पू., (अहि नर असुर सुरपति), ८५९९९(+), ८६१०७(+#), ८७६६८(+), ८५६६६(#) शनिश्चर छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (छायानंदन जग जयो रवि), ८५९३६-३(+#) शांतिक विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (तणी बांधी माटी प्रति), ८६८५९-१(+) शांति-कुंथु-अरजिन स्तवन, मु. बालचंद मुनि, मा.गु., गा. ४५, वि. १६८४, पद्य, मप्., (सकल सिद्धि आदिनमी), ८७७८९(+) For Private and Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५८१ शांतिजिन आरती, सेवक, पुहिं., गा. ६, पद्य, मप., (जय जय आरती शांति), ८६४९०-८, ८६१३३-१(६), ८७५६१-२(८) शांतिजिन गीत, मु. विनयचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (शांति जिणेसर सांभलउ), ८८८९८-२(+) शांतिजिन छंद, मु. दीपसागर, मा.गु., गा. १६, वि. १८९४, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ को कीजे), ८६९६३ शांतिजिन छंद-त्रिभंगी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा.५, पद्य, दि., (विश्वसेन कुल कमल), ८७११३-१(+) शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सारद माय नमुं सिरनाम), ८५७७३(+), ८५८८८(+-), ८५९३६-१(#), ८८५०४(+),८५९८०,८६३९५, ८६८१२,८७७८३-१,८७८३४-२ शांतिजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (एक ध्यान संतजी का), ८७९१८-१(+) । शांतिजिन पूजन स्तवन, मा.गु., गा. ६, प+ग., मूपू., (श्रीशांतिनाथ जिनतणा),८५८३३ शांतिजिन सवैया, मु. धर्मसिंह, पुहिं., सवै. १, पद्य, मपू., (छोरि षड खंड भारि), ८९२८०-४(+) शांतिजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (जिनजी हो आज उमाहो), ८९३००-५ शांतिजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (शांतिजिणेसर सोलमा रे), ८८५६३-२(+) शांतिजिन स्तवन, मु. खिमधर, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीगुरु वंदीय पूजीय), ८७५७२-१ शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., गा. १३, वि. १७४२, पद्य, पू., (श्रीशांतिजिणेसर शांत), ८६४०४-५, ८८००१(२), ८९१७८-२(#), ८८५६८-१(२) शांतिजिन स्तवन, मु. चारित्रविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (शांति आपो रे शांति), ८५६७५-२,८५७४२-१ शांतिजिन स्तवन, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (तुम मूरति मोहन वेलडी), ८७३००-२ शांतिजिन स्तवन, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (नगर हथिणापुर अतिहि), ८७३८९ शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (शांति जिनेश्वर साचो), ८८५५१-५ शांतिजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुं पारंगत तुं परमेश), ८५९३७-९(+#), ८७३९९-१ शांतिजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साहिब), ८५६८७(+) शांतिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (शांतिजिणेसर सेवीये), ८९०५६ शांतिजिन स्तवन, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मप., (शांतिजिणेसर प्रणमु), ८८८९९-१(+) शांतिजिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (श्रीशांतिनाथ दयानिधि), ८७४२१-१ शांतिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जगत दिवाकर जगत कृपाव), ८५९३७-७(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. दोलतविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (शांतिजिनेसर जिनवरु व), ८९०२८ शांतिजिन स्तवन, मु. नेमिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांतिकरण श्रीशांतिजि), ८८६८०-२ शांतिजिन स्तवन, आ. मुक्तिसागरसरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८९८, पद्य, मप., (शांतिप्रभु वीनती एक),८५७५०-३(+) शांतिजिन स्तवन, वा. मेघविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (शांति करो जिन सांतजी), ८८३००-२ शांतिजिन स्तवन, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सजनी शांत महारस सागर), ८७६०३-२(2) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांतिजिन एक मुज विनत), ८७९६२ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (शांति जिनेश्वर साहिब), ८५६२९-२, ८७७३७-२, ८७८२७-२, ८९१२४-१ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सोलमा श्रीजिनराज उलग), ८५८०३-१(+), ८६७९१(#), ८८९४५-२(+#), ८६०९६-१, ८८७३१-१ शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हम मगन भए प्रभुध्यान), ८७९७६-५ शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (तुं धन तुं धन तुं), ८६५८४-१(-) शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्रात उठ श्रीसंतिजिण), ८५७५२-१, ८६५८४-२() शांतिजिन स्तवन, पंन्या. रत्नविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (शांतिजिणंद अवधारिये), ८६३२०-२ शांतिजिन स्तवन, उपा. राजविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (सोलमा जिनवर सांतिजिन), ८७५३६-१(+) शांतिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुंदर शांतिजिणंदनी), ८५७६०-१ For Private and Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शांतिजिन स्तवन, ऋ. रुगनाथ, मा.गु., गा. १५, वि. १८३४, पद्य, श्वे., (श्रीसंतनाथजी का कीजे), ८८८९५ शांतिजिन स्तवन, मु. विजयचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सरसति० लागुराव गुरुप), ८८६८७-१(+) शांतिजिन स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ जिनेसर चरण), ८६७३०(4) शांतिजिन स्तवन, पं. वीरविजय, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (क्षण क्षण सांभरो), ८७२०१ शांतिजिन स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अलवेसर अवधारीये दासा), ८७०५४ शांतिजिन स्तवन, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वंछितपूरण आदि नमो), ८५८१९-५ शांतिजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मप., (सेवा शांति जिणंदनी),८६३१५-३ शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरइ आंगन कल्प फल्यो), ८८४०५-८ शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (सुंदररूप सोहामणो), ८६८९६-२(2) शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुखदाई रे सुखदाई रे), ८७२६०-३(-) शांतिजिन स्तवन, मु. सीवरतन, मा.गु., गा. १४, वि. १८५७, पद्य, मूपू., (सांती सांतीसू दारस स), ८६२६५(#) शांतिजिन स्तवन, मु. हीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (श्रीशांतिनाथ महाराज), ८६७९२-१(+) शांतिजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, ग. आणंदसुंदर, मा.गु., गा. ११, वि. १८८६, पद्य, मूपू., (वंदू श्रीजिन सोलमा), ८८४८३-१(+) शांतिजिन स्तवन-दियोदरपुरमंडन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति केरा हो चरणकमल), ८७४९९-१ शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, मप., (शांतिजिणेसर अरचित जग), ८८५६०-३(+$), ८७७३९(2) शांतिजिन स्तवन-मातर, मु. शिवरत्न, मा.ग., गा. १३, वि. १८५५, पद्य, मप., (साचा देवनी रे सेवा), ८७८८० शांतिजिन स्तुति, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गजपुर अवतारा विश्वसे), ८७०८६-३(2) शांतिजिन स्तुति, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकलसुखाकर प्रणमितनाग), ८७०८६-२(#) शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (शांति जिणेसर समरीइं), ८६०८८-३ शांतिजिन स्तुति, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (मयगल घरबारी नार), ८६०२७-१ शांतिजिन स्तुति, मु. हेमकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (तज लवंग जायफल एलची), ८६९००-४(#$) शांतिजिन स्तुति-ब्राह्मीपुरमंडण, आ. शांतिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (ब्राह्मीपुरमंडण सोलम), ८७६७५-२ शांतिप्रकाश, पुहि., गा. १२५, वि. १९३६, पद्य, श्वे., (प्रेम सहित वंदौ), ८५६८०(+), ८५७५८-१ शांबप्रद्युम्न लावणी, मु. नंदलाल शिष्य, पुहिं., गा. २९, पद्य, श्वे., (ए प्रजन कुवर का स्या), ८६६६३(+#) शारदामाता छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सकल वचन समता मन आणी), ८७८३४-१, ८९०१८ शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. १०, वि. १७वी, पद्य, दि., (नमो केवल रुप भगवान), ८७४७९-१(+), ८८०७१-२, ८८२६७-१ शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., ढा. २९, गा.५१०, वि. १६७८, पद्य, मप., (सासननायक समरियै), ८५६५३(+#$) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. विनीतविमल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मपू., (राजगृही नगरीने), ८९१२०-१(६), ८५६९६(2) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रथम गोवालतणे भवे), ८६१४९(+), ८६८३७-२, ८६९५७-१, ८७५३१ शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (शालिभद्र स्नेहजी रे), ८५७००-३ शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (--), ८८९१६-१(+$) शालिभद्रमुनि सज्झाय-दानविषये, ग. हर्षकुशल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (दान सुपात्रे हो दीज),८८४८७ शाश्वतजिनबिंबसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (पहिले त्रि छेलो किं), ८७५२२(45) शाश्वतजिनबिंब स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., ढा. ६, गा. ६०, पद्य, मप., (सरसति माता मनधरि), ८५९२१(+) शाश्वतजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ३१, पद्य, मूप., (श्रीऋषभाननजिन), ८८७२१(+) शाश्वताअशाश्वताजिन चैत्यवंदन, मु. महोदय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सीमंधर प्रमुख नमुं), ८५६४४-३(5) For Private and Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ शाश्वताचैत्य जिनबिंबसंख्या कोष्टक, मा.गु., को., मपू., (--), ८७९६१(+) शिकारपच्चीशी, मु. हरखविजय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मपू., (तुतो हुं तो सिकारी), ८८७३५-१(+) शिवकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (पद्मरथ राय वीतशोकापु), ८८७४६(#), ८५७००-१(६) शिवपुरनगर सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २१, पद्य, स्था., (सुणो श्रीसीवपुर नगर), ८७४९८(+), ८९०३६-१ शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (अहो सिधसिला सगला), ८७६३४(#) शिष्य हितशिक्षा सज्झाय, मु. जिनभाण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चेला रहे गुरुने पास), ८६९८४ शीघ्र सिद्धगति प्राप्ति बोल विचार, रा., गद्य, मूपू., (आकरी आकरी तपसा करे), ८७२६८-१ शीतलजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (रामानंदन पापनिकंदन), ८६५१६-२(#) शीतलजिन स्तवन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (नंदानंदन जुगदावंदन), ८७०३५-१ शीतलजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.ग., गा.११, पद्य, मप., (शीतल जिनकी शीतल वाणी),८७४९१-२(+#) शीतलजिन स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (इणि जिनवरनी जी सेव), ८७२६४-१,८७४९९-२ शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), ८६६०८(१), ८७६०३-१(#) शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. १५, पद्य, मूप., (मोरा साहेब हो), ८६०५१, ८७५०६-२(), ८७०८३(-2) शीतलजिन स्तवन-कलकत्तामंडन, आ. शांतिसागरसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुभहित जिन सीतल सेवो), ८६७३३-१(+#) शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (सुख समिकित दायक कामि), ८७६९४-३(+) शीतलजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (सीतलनाथ सदा सुखदाइ), ८८७३२-२ शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, वि. १६३७, पद्य, मपू., (पहिलुं प्रणाम करूं), ८८१०७(+$) शीयलबत्रीसी, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (सील रतन यतने करि), ८७१७७(+#) शीयलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली उपमा ग्रह), ८५९०३-१(+),८८७२४-२ शीयलव्रत चौढालियो, मु. जीवण, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, पद्य, मप., (चोविसे जिन आगमे रे), ८६९७७-१ शीयलव्रत सज्झाय, मु. उत्तमचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८४४, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हत नीत नमु), ८८५४८(+#) शीयलव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, पू., (सरसती केरा रे चरणकमल), ८९०९५-१ शीयलव्रत सज्झाय, मु. मलुकचंद, रा., गा. ३२, वि. १८००, पद्य, श्वे., (सारद माता समरु तो ही), ८९१८४(+) शीयलव्रत सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८५०, पद्य, स्था., (गेरो रंग लागो हो), ८७३७२-५(-) शीयलव्रत सज्झाय, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वचन सुण्या ब्राह्मण),८८८११-१ शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (सील पाल्यो सीतासती र), ८८८५९-२(+$) शीयलव्रत सज्झाय-नववाड, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (गुणनिधि जीवडा रे शील), ८७५६५-२(+) शीलोपदेश सज्झाय, मु. रतनविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९६६, पद्य, मप., (मत ताको नार वेराणी), ८५७८०-९ शंगार गीत, मा.गु., गा. ३, पद्य, जै., इतर, (मुने बादलिइ भरिश),८८९२१-३ श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणातिपात अतिचार), ८६३७१-३(#) श्रावक २१ गुण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्म रत्ने व्यवहारे), ८९३०४-८(+) श्रावक २१ गुण सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (लज्जावंत दयावंत), ८७११३-५(+) श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., पद्य, मूपू., (पहलो मनोर्थ समणोपासक), ८६६१३-१ श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो मनोरथ समणोपासण), ८५९४९(+), ८५९७६-१(+#), ८७३९५-२(+), ८७५१३(+), ८६०१४,८७९८०,८८९६४-१ श्रावक आलोयणा, रा., गद्य, मूपू., (अणगल जल वावर्यै लाख), ८५७४४-२, ८८३२९-१(-) श्रावकआलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (खमासमण देइ गुरुने), ८५८६२ श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रावक तुं उठे परभात), ८७५४९(+#), ८७७५७(+), ८६१८०-२, ८६९७९, ८८९५४, ८९१९२, ८६२५५(4), ८८१३२(#) For Private and Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ श्रावककरणी सज्झाय, मु. नित, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (श्रावक धर्म करो), ८९२७६-२(+), ८९१८३-२ श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूप., (कहिए मिलस्ये रे), ८६८५१-१(+#), ८८८०२-२, ८८१९३-२(2) श्रावकगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (कछ देस श्रावक भला), ८८०६८-२($) श्रावक गृहे ९ चंद्रवा विधान, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाणीहारे १ उखले २), ८८०३७-३ श्रावकप्रतिमा सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.ग., गा. १५, पद्य, मप., (सातमै अंगे भाखीओ जी), ८९२०८ श्रावकविधि सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (प्रणमु वीर जिणेसर पा), ८७५९२(#) श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मपू., (कल्पवेल कवियण तणी), प्रतहीन. (२) श्रीपाल रास-सिद्धचक्र स्तवन, मा.गु., ढा. ११, गा. ४६, पद्य, मूपू., (त्रीजे भव वर थानक तप), ८६३९३(#) श्रीपाल सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (श्रीविजय करी श्रीपाल), ८९१४३ श्रीमती रास, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. ६, वि. १८९४, पद्य, श्वे., (सील धर्म सुख संपजै), ८६९२४(#) श्रीसारबावनी, मु. श्रीसार कवि, मा.गु.,रा., गा. ५६, वि. १६८९, पद्य, मपू., (ॐ ॐकार अपार पार न), ८७१८८-१(६) श्रुतज्ञान स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रुत चौद भेद करी,), ८५८५६-३ श्रेणिकराजा कथा, मा.गु., गद्य, मपू., (राजगृही नगरी राजा), ८९१५७-२(+) । श्रेणिकराजा सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (मतो पुरव सुकरत न कीय), ८५८०७ श्रेयांसजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्री श्रेयांस जिन),८७२९३-१ श्रेयांसजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (श्रेयांसजिणंद घनाघन), ८६२९७-१ श्रेयांसजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (हो श्रेयांसजी जिनराय), ८७६६१-२(+#) षड्द्रव्य स्वरूप, मा.गु., गद्य, मूप., (पहीलों जीवद्रव्य), ८८७९५($) संग्रहणी स्तवन, मु. चारित्रसागर, मा.गु., ढा. ११, गा. ७७, पद्य, मूपू., (सरसति वरसति सकतिरूप), ८६७९६(६) संजतीराजा चौढालियो, मा.गु., पद्य, म्पू., (जिनमार्ग जगमे प्रगट), ८५७०३($) संजया बोल, मा.गु., गद्य, स्था., (पन्नवणा वेय रागे), ८८५६२(+#) संज्ञीअसंज्ञी जीव कालमान, मा.ग., गद्य, श्वे., (--), ८७१४७-१(#) संथारा सज्झाय, मु. चौथमलजी म., मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (सायो रणकनकपुररा राज), ८७९२७-२(-) संभवजिन चैत्यवंदन, मु. चेतन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (संभव श्रीजिनराय रे), ८६७४२-७ संभवजिन छंद-अल्पबहुत्वगर्भित, मु. हर्ष, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (संभव सहजिइ सुखदातार), ८७१२९ संभवजिन स्तवन, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संभवजिननी सेवा प्यार), ८९२३८-२ संभवजिन स्तवन, मु. कुशलवर्द्धन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मन रंगि रे प्रणमिय), ८८६०९-२(+) संभवजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (संभव जिनवर वीनती), ८६६१२ संभवजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (नाथकी नाथकी नाथकी), ८८३१४ संभवजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (सुखकार हो), ८८०५१ संभवजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (संभव जिनवर स्वामि), ८७५००-१ संभवजिन स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (साहिब सांभलो रे संभव), ८६५३३(+#) संभवजिन स्तवन, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (हुं तो मोह्यो रे लाल), ८५९३१(+) संभवजिन स्तवन, मु. न्याय, मा.गु., गा. ९, वि. १७९८, पद्य, मूपू., (जिनपती संभव देव दयाल), ८७९८५-४(+#) संभवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (संभव जिनवर विनती), ८८५५१-३, ८८९७२-३ संभवजिन स्तवन, मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., गा.७, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (मुने संभवजिनस्यु), ८६४६३-३, ८८१९६-१(#) संयोगी भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (क१ ख२ ग३ घ४ च५ छ७ ज८), ८६१६४, ८७८२१ संयोगी भांगा बोल, मा.गु., को., मूपू., (--), ८९०३८-१ For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ संवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, मा.ग., पद्य, मप., (सकला० स्नातस्या०), ८६४७२-४+#) संसार स्थिति विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (ककउ केवलउ ते पिता), ८६०५७-२ सकडाल-गोसाला संवाद ढाल, मा.ग., पद्य, श्वे., (एक दिवस सकडाल तिहां), ८८२२३($) सकलतीर्थ वंदना, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, पू., (सकल तीर्थ वंदु कर), ८६१३१-१, ८८२९५-२, ८९००५ (१) सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रवचन अमरी समरी), ८६९८६(+), ८६८६५ सच्चियायदेवि छंद, हेम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सानिधि साचल मात तणी), ८६९०५-२, ८७२६९-१ सज्जन दर्जन दहा, मा.गु., दोहा. १, पद्य, श्वे., (सजन थोडा हंश परे), ८५७३७-३ सतसया दोहा, क. बिहारीदास, ब्र., गा. ७१३, वि. १७१०, पद्य, वै., इतर, (मेरी भव बाधा हरौ), ८७१८९-४(+#$) सद्गुरु पद, मु. गंगाराम, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (सतगुरु साधु सिपाई), ८५९७७-१३(+#) सद्गुरु पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सहीयां सहगुरुजीने), ८७७४०-४ सद्रुमाहात्म्य पद, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, स्था., (श्रीजिनराज सरणो धरम), ८७५३९-३ सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (जोवा आया रे देवता), ८७५३७-३(#) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मपू., (कुरुदेशे गजपुर ठामे), ८७१९९ सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, वि. १७४६, पद्य, मपू., (सुरपति प्रशंसा करे), ८७१६३-२(+-), ८७८५२(+-), ८८३७९(+), ८९१६२(+#) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. राज ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (अमर तणी वाणी सुणी), ८९००९-१ सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूप., (सरसति सरस वचन रस), ८५८५०-१(+$) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय-रूपअभिमान, रा., ढा. ४, पद्य, श्वे., (तीण कालन तीणसमे परथम),८५९१८ सनत्कुमार रास, मु. लक्ष्मीमूर्ति, मा.गु., ढा. ७, गा. ४४, पद्य, मूपू., (जोए विमासी जीव तुं), ८७४९५(#$) सप्तनय विवरण-नैगमादि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नैगम संग्रह व्यवहार), ८५७४९ सप्तवार सज्झाय, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (आदितवारे देव दरसण), ८९३०५-२ समता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, स्था., (चाखो रे नर समतारस), ८६८७०-२(+) समवसरण कालमान विचार-इंद्रादि द्वारा रचित, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोधर्मो इंद्रनु), ८७१४५-३(+) समवसरण गहुंली, पं. माणिक्यविमल गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सांभल सजनि रे माहरी), ८८८३८ समवसरण पद, मु. माल, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (सुरअसुर नरपती सकल), ८६५८२-३ समवसरण बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीवाए लेसपखाए दिट्ठी), ८६९३९(2) समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (समोसरणनी शोभा जेणे), ८५८६१, ८६९५६-२ समवसरण स्तुति, मु. जयतसी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मिलि चौविह सुरवर), ८५६५९-६(+) समवसरण स्तुति, मु. विनय, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (आज समोसरण की रचना भई), ८६७७५-१ सम्मेतशिखरतीर्थ आरती, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आरती समेतशिखरजी की), ८६७९९-१(+) सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (पूरव दिसे दीपतो), ८७६८७-३(+), ८८९७५-३ सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. चेतन, पुहि., गा. ४, पद्य, पू., (मेरे मन आनंद सरस), ८६७४२-८ सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, आ. राजेंद्रसूरि , पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (पूरब देशमें प्रगट हे), ८७५१२-३(+) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मधुवन में जाय मची रे), ८७७५९-३(#) सम्मेतशिखरतीर्थ-शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (धनभाग हमारा सिखरसमित), ८७९१८-२(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जसवंतसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (समेतशिखर सोहामणो सखी), ८८८७३(#) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, आ. जिनसौभाग्यसूरि, मा.गु., गा. १७, वि. १८९५, पद्य, मूपू., (सिखर समेत जुहारो), ८६२४३ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८९८, पद्य, मूपू., (दुरलभ नर भव जांणी), ८५७८३ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८९८, पद्य, मूपू., (समेतशिखर सुरमणि समो), ८५७८२ For Private and Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८६ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, पद्य, मूपू., (सुकृतवल्लि कादंबिनी), ८७९५३-११), ८५९९० (MS) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक्त्व ८ वचन भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (न जाणइ न आदरइ न पालइ), ८७६९२-३(+) सम्यक्त्व के ९ नाम विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्य समकित भाव), ८९००८-१ सम्यक्त्व पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जागे सौ जिनभक्ति), ८८४०५-७ सम्यक्त्व सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जब लगे समकित रत्नकुं), ८८४०५-४ सम्यक्त्व सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (देव नीरंजन गुरनीर), ८५७८०-३ सरस्वतीदेवी छंद, मु. दयानंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (मा भगवती विद्यानी), ८८२७५-२ सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मृपू. (बुद्धि विमल करणी) ८६२१३ , सरस्वतीदेवी छंद, मु, शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू (सरस वचन समता मन), ८६४४६ (+), ८८७८२, ८८०८० (4) सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., ढा. ३, गा. १४, पद्य, मूपू., (शशिकर जिनकर समुज्ज्व), ८७८६० (+), ८६८९९-२(#), ८७६२५(५), ८९२३६-२(१), ८६८१४-१(३) सर्वघातियादिकर्म विवरण, पुहि., पद्य, म्पू, (सर्वघातिया की), ८८२९१-६ (5) सर्वानुभूतिजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपु. ( जगतारक प्रभु विनवें), ८८८८९ सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), ८७४४०-२(+), ८७४४१-१११, ८७१९३-१(३) " सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू. (इण स्वार्थसिंध के चंद), ८९०१६-१ सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (एक मोती चोसठमणतणा ए), ८८०५६ (६) सर्वार्थसिद्ध स्तवन, पं. धर्महर्ष, मा.गु.. गा. ११, पद्य, मूपू. (सरवारथ सिद्ध चंडुइ), ८७५२७(4) ८८७१४-३(-) सवचंदसूरि भट्टारक रास- खरतरगच्छ, रा. ढा. ३, पद्य, मूपु., (सासन नायक समरोड़), ८८१२७-२(४) सवचंदसूरि भट्टारक समयमान- खरतरगच्छ, रा., गद्य, म्पू. (भट्टारिक सवचंदसूरिनी), ८८१२७-१(७) सवैया संग्रह, पुहिं, पद्य, वै., इतर (अली आय खरी सन्मुख), ८८१६४-२ (०) ८७८२९-२ ', सवैया संग्रह - जैन धार्मिक, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु., पद्य, जै., (पूरव तयासीलाख सुख), ८७१८८-३ सहस्रकूटजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. १४. वि. १८वी, पद्य, मूपू (सहसकूट जिन प्रतिमा), ८६१८८-४(*) सविप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २ डाल २२, गा. ५३५, ग्रं. ८०० वि. १६५९, पद्य, मूपु. ( श्रीनेमीसर गुणनिलउ ), ८७२६३ (#$) ! ', सागरराजा सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. ३०, पद्य, श्वे. (सागरतणा बेटा हुता), ८६००५ सागरोपम पल्योपम विचार, मा.गु., गद्य, मूपू (च्वार गाउनो कुओ), ८६१०५.२(*) " साढापच्चीस देशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, मूपु. ( मगधदेस राजग्रहीनगर), ८६५११-३(३) साढाबार ज्ञाति नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., ( श्रीमाली १ ओसवाल२), ८८३२४-२ सातवार लावणी, मु. लालचंद, पुहि. गा. ९, पद्य, वे (दीतवार मै दुनीया भोर) ८८७२३-८(+) " साधारणजिन गीत, पुहि., गा. १२, पद्य, वे. (साधु सुपात्र बडे), ८७९१९-४(+) " साधारणजिन चैत्यवंदन, मु. चिदानंदजी, मा.गु. गा. ५, पद्य, म्पू. (मन मोह्यं प्रभु गुण), ८७९८१-३(४) साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (चउजिन जंबूद्वीपमां), ८५७७५-१ साधारणजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपु. ( जय जय तुं जिनराज आज), ८७००३-१ ८७२१४-१ 1 " " साधारणजिन नमस्कार, मु. ऋषभ, मा.गु. गा. ७, पद्य, भूपू (सीमंधर प्रमुख सर्वे), ८७१११ (क) साधारणजिन पद, मु. आनंद, पुहिं. गा. ७, पद्य, म्पू, (मेरी क्या ही बेकदरी), ८८४७७-६(*) साधारणजिन पद, मु. चंदखुसाल, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (मेरी लाज रखलीजे), ८८९६४-६ साधारणजिन पद, मु. जयसोम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनवर सेती वात कहुं), ८९२७५-३(#) साधारणजिन पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (देख्या मुख आज जिनवर ), ८८९३९-३(-) For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ ५८७ साधारणजिन पद, मु. प्रेम, पुहिं., गा. ३, पद्य, मप., (चरण नमु नित जिनवर), ८६२१२-७(+#) साधारणजिन पद, मु. प्रेम, पुहि., गा. २, पद्य, मपू., (तम जपत नाम जगतमे सुख), ८६२१२-८(+#) साधारणजिन पद, मु. फतेचंद पंडित, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मने रुडो लागे छैजी), ८८२४८-३ साधारणजिन पद, क. बनारसीदास, पुहि., पद. १, पद्य, दि., (जाके मुख दर्शसै भगत), ८८२३६-२(+) साधारणजिन पद, श्राव. भगवानदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (शरन पकडी आन प्रभु), ८८५२३-३(#) साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (चालो री सखी प्रभु), ८८९६४-४ साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा.८, पद्य, मपू., (अब में साचो साहिब), ८८५२१-८(+) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (निरंजन यार वोरे अब), ८७७७०-१(-) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (लोक चहुद के पार), ८७६७९-८ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (हम लोक निरंजन लाल के), ८८८५५-३ साधारणजिन पद, मु. सेवाराम, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (प्रभुजीसू लागो मारो), ८६२२८-३ साधारणजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (ज्ञानावरणादिक गए भए),८६८२८-२(+) साधारणजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (तीरथ करता दख हरता), ८६७६६-२(-) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (दिल दाम हरम जानी दोस), ८७४३६-९(१) साधारणजिन पद, पुहि., पद. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनदेव पाया उदै), ८८२४८-५ साधारणजिन पद-इंद्रनाटक, मु. कनककुशल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (इंद्र नाचै नाचै हरि), ८७९४९-१(२) साधारणजिन रेखता, मु. नवल, पुहिं., गा. ५, पद्य, म्पू., (करु आराधना तेरी हिये), ८८२४८-४ साधारणजिन लावणी, मु. रामचंद्र, पुहि., गा.५, पद्य, श्वे., (हांक जिनवरना गुण), ८८२५४-८ साधारणजिन लावणी, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूप., (नाथ मारी अरजी सुण), ८६५६४-१ साधारणजिन स्तवन, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पामी प्रभुजीना पाय), ८५९३७-३(+#) साधारणजिन स्तवन, पंन्या. ऋद्धिकुशल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जिनवर हो मुझ नमडइ तु), ८७२६०-१(-) साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (वंदु श्रीजिनराय मन), ८६३८४, ८७४८२ साधारणजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (जिणंदा ताहरी वाणीइं),८८३७४-१ साधारणजिन स्तवन, मु. चिदानंद, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (अब तु चेतन समजीये),८८२५४-५ साधारणजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, रा., गा. ५, पद्य, मूप., (सुगुण सनेहियो प्रभुज), ८७८८२(+) साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (खतरा दूर करणा दूर), ८८१७९-१ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अरिहंत देवा चरणोनी), ८५९८८-१(+),८८०८३-१ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आज माहरा प्रभुजी), ८६३२०-१ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मपू., (सकल समता सुरलता तुं), ८८३३५-१(+) साधारणजिन स्तवन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आबोलो स्याना ल्यो छो), ८६६२८ साधारणजिन स्तवन, मु. नवल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अटके नेणुदीजे जिन), ८८७५१-१(+) साधारणजिन स्तवन, मु. नवल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (हारे बिदरा लग्यादि), ८९१५६-२ साधारणजिन स्तवन, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा.८, वि. १७वी, पद्य, दि., (मगन होइ आराधो साधो), ८९०४३-३(+) साधारणजिन स्तवन, मु. यशोविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (आवो मुज मन धाम), ८७९८१-४(#) साधारणजिन स्तवन, मु. राज, पुहिं., दोहा. ६, पद्य, मप., (श्रीजिनराज के सतर), ८६७३२-१(#) साधारणजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., गा.१०, वि. १९०८, पद्य, मपू., (अरिहंतदेवने औलखीस रे), ८९१२९-१ साधारणजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (प्रभु तोरी वाणी सुणी), ८५७५३-१ साधारणजिन स्तवन, मु. रामविजय, पुहिं., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मपू., (मुनिध्येय नमो सुरगेय), ८७००३-२($) साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जब तुम नाथ निरंजन तब), ८८८५५-२ साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (मनभावन जन तन मन तोसे),८७४३६-६(#) For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मे परदेसी दूर का), ८८८५५-१ साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (यातन काची माटी का),८७२२५-२ साधारणजिन स्तवन, मु. लाल, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (तारो तो सही म्हारा), ८७८०९-१ साधारणजिन स्तवन, मु. विजयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (लिधु माराज मारु मन), ८५७९३-४(#) साधारणजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (एक जिनशुं तरसियो ले), ८६१७८ साधारणजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (मन मंदिर आवो रे कहुं), ८६२२५ साधारणजिन स्तवन, मु. शिवलाल, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (श्रीजिनराज सुणी लीय), ८९२१०-३(+) साधारणजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १५, वि. १६८३, पद्य, मूपू., (भाव भगति मन आणि घणी), ८७५८६-२(+) साधारणजिन स्तवन, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ४, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (प्रीत मेरी जिनवर से), ८५९४७-२ साधारणजिन स्तवन, मा.ग., पद्य, श्वे., (जाकी देहस्यौ दसौ दिस), ८६०७०-३($) साधारणजिन स्तवन-अध्यात्मगर्भित, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (मेरा साहिब सुगुण), ८८८१५-२ साधारणजिन स्तवन-देवनाटकविचार, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभु आगल नाचे सुरपत), ८७२१६-२ साधारणजिन स्तवन-नंदीश्वरद्वीप मंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ४, गा. २६, पद्य, मूपू., (आनंदमंदिर नंदिसरवर), ८६३९१(+) साधारणजिन स्तवन-मकसूदावादमंडन, पं. शांति, मा.गु., गा. ८, वि. १९१७, पद्य, भूपू., (दरशण दुरगति टाली), ८९०३९ साधारणजिन स्तवन-विनती, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनराजे करुनइ), ८७३७३-१(2) साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंपक केतकी पाडल जाई), ८६३०८-२(+), ८७९६३, ८८६८१ साधारणजिन स्तुति, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (संसार नाम जिसका सार), ८६४७८ साधारणजिन स्तुति, मु. प्रेम, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (समर सरीजिनराजकुं विप), ८६१३९-२(+) साधारणजिन स्तुति, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनवर तुमसम ओर न कोइ), ८९२१३-४ साधु २७ गुण सज्झाय, पंडित. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत मुखकमल), ८९१६३-१ साधु आचार १०८ बोल, पुहि.,मा.गु., गद्य, श्वे., (जति थइनै आधाकर्मी), ८६२२०-३(-१) साधु आचार विवरण, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूप., (जाणइ अनइ पुछइ पुन्य), ८७७७२(#) साधु आचार स्तवन, मु. मोतीचंद, रा., गा. ५३, वि. १८३६, पद्य, मप., (चेलुजी स्वामी घर छोड),८६८०४(+), ८६८३५-१(+) साधु को त्याग करने योग्य १२ प्रकार के आधाकर्मि आहार, पुहि., गद्य, मूप., (१आधाकर्मि २ उद्देशिक), ८७५३०-३ साधुक्रिया बोल विचार, मा.गु., ग्रं. ६३०, गद्य, श्वे., (अथप्रश्न शिष्य गुरु), ८५८२७-१(+#) साधुगुण पद, मु. चेतन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचमहाव्रत पाले साधु), ८६७४२-४ साधुगुण पद, मु. प्रेम, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूप., (संत मुनी सदा सुखी रे), ८६२१२-१३(+#) साधुगुण पद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (गहि सुधग्यान धरे है), ८७९१९-५(+-#) साधगण वंदन, क. सुंदर, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (पापपंथ परहर धर्मपंथ), ८८८४९-१ साधुगुण सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८३२, पद्य, श्वे., (साधु धन ते जीता), ८९३१० साधुगुण सज्झाय, मु. किशनलाल, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (हां केइसा गुरुदेव), ८५९८७-१ साधुगुण सज्झाय, मु. प्रेम, पुहिं., गा. ७, वि. १८८६, पद्य, मप., (चरण नमु सतगुर तणा), ८६२१२-१४(#) साधुगुण सज्झाय, मु. माल, पुहिं., पद्य, मूप., (वड वइरागी अति सोभागी), ८८७०६-२ साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सकल देव जिणवर अरिहंत), ८८७५७ साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा.१३, पद्य, मूपू., (कदी ए मीलसे मुनिवर), ८७७९१-१ साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (पांचेइंद्रीरे अहनिस), ८५८०८-२(+#), ८५९५२-१(+$), ८६८७५-३ साधुगुण सज्झाय, ग. विजयविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पंच महाव्रत सुधां), ८७९५०-३(#) साधुगुण सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (कवरा साधतणो आचार), ८८२८६-३(#) साधुगुण सज्झाय-उपमा युक्त, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (बेठा समवसरण सिंघासण), ८९३०७-२(-) For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ साधु पंचभावना, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ६, गा. ९५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वस्ति सीमंधर परम), ८६९३६(+) । साधुपद सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८६३, पद्य, श्वे., (समकितधारी सुधमती जी), ८५६८९(+#), ८६४२७(+#), ८५६५६-१(#) साधुपद सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (पंचोइ इंद्रीजि अहो), ८७७६४-१(+), ८८१९३-१(#) साधुपद सज्झाय, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुमति गुरु शुद्ध), ८७१८३-२ साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु., गद्य, मपू., (ज्ञानना अतिचार कहै), ८८३२९-२(-) साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ७, गा. ८८, पद्य, मपू., (रिसहजिण पमुह चउवीस), ८८६४३(+#), ८९०३२(+%), ८८४०९, ८८३२५(६) साधुवंदना, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ३२, वि. १७वी, पद्य, दि., (श्रीजिनभाषित भारती), ८८१८० साधुवंदना, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गा. २९, वि. १८७३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर प्रणमुं), ८६११६-३(#) साधुवंदना, मु. भिक्षु ऋषि, रा., ढा. २, गा. ३९, पद्य, श्वे., (जिणमार्ग में धूरसुं), ८८९६५(5) साधुवंदना, वा. राजसागर, मा.गु., गा. ३३६, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समरविसहि गुरुराय), ८९२९५(+$) साधुवंदना, मा.गु., गा. २४९, पद्य, स्पू., (वंदिय गुरूआ सिद्ध),८८०४९(+$) साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, स्था., (नमुं अनंत चोवीसी), ८७०१७(+), ८५८७८, ८७३६६, ८८१८३-३ साधुसत्व सज्झाय, मु. छित्रमल, मा.गु., गा. १४, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (घर छोडीने निसर्या), ८५८५४-२(+) साधु समाचारी, मा.गु., गद्य, मप., (आठ मास तांइ साधु मन),८८३५१ साधुसाध्वी कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोइ साधु काल करे तथा), ८८१२२-२ साधुस्वरूप सज्झाय, जै.क. भूधरदास, पुहिं., गा. १४, पद्य, दि., (मोह महारीय जीपक), ८६४०४-४ साध्वीकालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, मप., (कोटी गण वयरी शाखा), ८६५९६(+) सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २२, पद्य, मूपू., (श्रीजिनसारद सद्गुरु), ८६६९७ सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मा.गु., पद्य, मपू., (दोष बत्रीस नीवारी), ८६०७७-२($) सामायिक ३२ दोष स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (जिनवरना प्रणमुं पाय), ८९०४६ सामायिकप्रतिक्रण के समय स्थापना के बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरना पटोधर पांच), ८६२४०-२ सामायिक लेवा-पारवानी विधि, मा.गु., प+ग., श्वे., (इच्छामि खमासमण देइ), ८८७९८-१(+-) सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (प्रणमिय श्रीगौतम), ८८३८४-१, ८८८६९-२(#$) सामायिक सज्झाय, मु. कुस्यालचंद, रा., गा. १७, वि. १८६४, पद्य, श्वे., (सतगुरु आगम सुण भवे), ८७३०५-३(+-), ८८६११ सामायिक सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (मन वचन कायाई पालो), ८६०९६-२(१) सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामायिक मन सुधे करो), ८८६५५-२(+), ८६९१४ सामायिक सज्झाय, श्राव. प्रकाश, मा.गु., गा. २०, वि. १८६४, पद्य, श्वे., (सतगुरु संग करो भव), ८८५०९(#) सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चतुर नर साय नायक), ८८३०३, ८८८४५, ८६०४८-२(2) सामायिक सझाय, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सद्गर संगत करो भव), ८८२५८ सिचियायमाता छंद, आ. सिद्धसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (मुज मन आस्था अज फली), ८८२३६-३(+$) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. चेतनविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय सिद्धचक्र सुर), ८६७४२-१ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (सुखदायक श्रीसिद्धचक), ८७७५३-१(+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. प्रमोदरुचि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत आराधिये), ८७५१२-१(+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र महामंत्र), ८७८२३-२ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. शांतिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (पहेले दिन अरिहंतनु), ८७८२३-३ For Private and Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधतां), ८६३४४(+), ८६५७८-१(+), ८८१२०(+), ८५९०४, ८६८८७ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधता), ८८३९७-६(+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. सुखविजय; पं. दीपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (सिद्धचक्र आराधतां), ८७९९०-४ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चंपापूरीनो नरवरु नाम), ८७९९०-२ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (नमो अरिहंत पहिले पदे), ८७९९०-५ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शिवसुखदायक सिद्धचक्र), ८७९९०-१ सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत उदार कांत), ८७६८७-१(+) सिद्धचक्र नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (आसो मासने चैत्र मास), ८७९९०-३ सिद्धचक्रपद स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नवपद ध्यान धरो रे), ८६१०३ सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नवपद महिमा सार सांभल), ८५९६९-२(+), ८६३६३-२(+), ८८१८६-१(+$), ८६५१८-२, ८६५५७-१,८६८७२-१,८८८६६-१(#) सिद्धचक्र सज्झाय, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (नवपद महिमा सार सांभल), ८९२९६ सिद्धचक्र सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमूनीचंद्रसूरीसने), ८७३२२-१(+) सिद्धचक्र सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. ११, पद्य, मूपू., (जगदंबा प्रणमी कहुं), ८७०५८-२ सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (समरी सारद माय प्रणमी), ८८८२०(+), ८६५५७-२ सिद्धचक्र स्तवन, पं. अमृतकुशल, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुना पद पंकज), ८५७२९-१(+) सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. उत्तमविजय , मा.ग., गा.११, पद्य, मप., (भावे कीजे रे नवपद), ८६८७१(#) सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (गोयम नाणि हो के कहे), ८६३६३-१(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद वखाण्यौ), ८५९६९-३(+), ८६३६३-३(+) सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुरमणि सम सहू मंत्र), ८६२३१-२, ८७७०१ सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (आराहो प्राणी साची नव), ८६९२०-२,८७१९६-२ सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (गौतम पूछत श्रीजिनभाष), ८६८७२-२, ८६९२०-३, ८७१९६-३, ८७६७९-४ सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (नवपद महिमा सांभलो), ८६९२०-४, ८७१९६-४ सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (भवियां श्रीसिधचक्र), ८५९६९-५(+), ८६३६३-५(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधिय), ८५९६९-६(+$), ८७१९६-१, ८६९२०-१($) सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सकल कुसलवर मंदरु ए), ८७६७९-६ सिद्धचक्र स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा.११, पद्य, मपू., (श्रीजयति तीरथपति), ८६८१०(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. दोलतविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (सरसति चरणे नमी रे), ८८४१४ सिद्धचक्र स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधिये), ८७६८५-१ सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र वर सेवा), ८६२२६(+), ८६७००-२(+) सिद्धचक्र स्तवन, वा. भोजसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र सुहामणो), ८६०६३-१ सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. २५, पद्य, मूपू., (जी हो प्रणमुं दिन), ८७६२४, ८८२४०, ८५७६५-१(६) सिद्धचक्र स्तवन, मु. राम शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (ओ भवि रे प्राणी रे), ८६९७८-५(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १४१७, पद्य, मपू., (सकल सुरासुर सेवित), ८६१००(+) सिद्धचक्र स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (वीरजिणेशर उपदिशि रे), ८६५१९-२ सिद्धचक्र स्तवन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (--), ८८७७८-१(#$) सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, स्पू., (श्रीसिद्धचक्र सेवो), ८८००७-१(#), ८८६७५-२(#), ८९१२४-२() For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ सिद्धचक्र स्तुति, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( अंगदेश चंपापुरी वासी), ८७०२३ सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पहिले पद जपीइ अरिहंत), ८६७०६-२(+) सिद्धचक्र स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरिहंत नमो वळी सिद्ध), ८६१६७-१(#) सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर अति अलवेसर) ८७७५३-४(+) सिद्धचक्र स्तुति, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेशर अति अलवेसर), ८६९७८-२(+) सिद्धचक्र स्तुति, मु. भूपविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नवपद ध्यान घरो भवि), ८७७५३-५(१) सिद्धचक्र स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू, (निरुपमसुखदायक जगनायक), ८७७५३-६(*) सिद्धचक्र स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (श्रीसीधचक्रपद सेवा), ८८२५५-२ सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ८५८९१-१(+), ८७४८८, ८८५८६ सिद्धपद महिमा वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., ( दूज पद सिद्धाणं कहता), ८६८६८-४ सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपु. ( श्रीगीतम पृच्छा करे), ८५६३३, ८६४८६ सिद्धपद स्तवन, मु. भगवानदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (निस दिन सिद्ध नमुं), ८८८५८-३ सिद्धपद स्तुति, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (तुमे तरण तारण दुख), ८६६०६-२ सिद्धमंगल सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (बीजो मंगल मन सुध धाव), ८९१६५ सिद्धसहस्रनामवर्णन छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, म्पू., (जगन्नाथ जगदीश जगबंधु), ८७६४३ सिद्धांतसारविचार सज्झाव, आ. आणंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., डा. ३, गा. १५, पद्य, मूपू. (श्रीजगनाथि समुखि), ८७४७२-२ (+) सिद्धार्थराजा भोजनसमारंभ वर्णन, मा.गु., गद्य, वे. इतर (हिवे मांड्यो उत्तंग), ८७८४७(*) " सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू., (छोडी हो पिउ छोडि), ८८८९०-३(*), ८९२९९ सीतासती गीत, मु. नवल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जब कहइ तुझ बनवास रे), ८७६४१-६(+#) सीतासती गीत, मु. राजसमुद्र, रा. गा. ९, पद्य, मूपू (लखमणजी रा वीराजी हो), ८७६४१-१(+) सीतासती पद, पंडित. तुलसीदास, पुहिं., पद्य, वै., (मेगनाथ माता कन आय), ८६८३३-३ "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir י सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (जनकसुता हुं नाम), ८६८१८-२ सीतासती सज्झाय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, श्वे. (खरदुषणसु जगडो माचोयो), ८६८६८-१ सीतासती सज्झाय, रा., गा. २८, पद्य, श्वे., (सोवन वाडी मे मीरग), ८९०२० (+$), ८६६८२ (-) सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जलजलती मिलती घणी रे), ८६३१२-२(+#), ८७९३३-१(*), ८८०००-२(४) ८६४२४-१, ८७००८-१, ८८३७७-६ ,י ५९९ सीमंधरजिन गुणमाला, गच्छा. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू. (श्रीमंदरसाम तणी गुण), ८८९७०५ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदुं जिणवर विहरमाण), ८७६८७-२(+) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर वीतराग), ८७१४६-३(+), ८७९४२-२(+), ८७८२३-४, ८७८७२-२(#) सीमंधरजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. सीमंधरजिन पद, मा.गु. गा. ४, पद्य, चे. (पहेलो आरो बेठा पछी) ८८९७०-३ (श्रीमंदर तुमे माहरा), ८८९७०-२ सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन, मल्लिदास, मा.गु., गा. ८७, पद्य, मूपू., (नमीय सीमंधर स्वामि), ८९२२३(+#) " सीमंधरजिन विनती पत्र क. नर, मा.गु., पत्र. २, गद्य, वे. (स्वस्ति श्रीमहाविदेह), ८९०५० (+), ८६०५५, ८८९९२-१ सीमंधरजिनविनती लेख, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. ३७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीपुंडरगिण), ८८३७०-२ सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनस्वामी अरज), ८६९३०-१(+) सीमंधरजिन विनती स्तवन, वा. उदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मनडुं ते माहरु मोकलु), ८८५८०-२(+) सीमंधरजिन विनती स्तवन, क. कमलविजय, मा.गु., डा. ७, गा. १०५, वि. १६८२, पद्य, भूपू (स्वस्ति श्रीपुष्कला), ८८३७०-१ सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, स्था. (पूर्व पुकलावती विजैम), ८८९९२-२ " For Private and Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार हुँ), ८६८४१ (+$), ८८८९९-३(+$), ८९०३१, ८६४१५(4) सीमंधरजिनविनती स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (--), ८६२१४-३(+$) सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. १२५, ग्रं. १८८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वामी सीमंधर विनती), ८५७२३(+$) (२) सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वदेव), ८५७२३(+$) सीमंधरजिन विनती स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३५०, वि. १८वी, पद्य, मप., (श्रीसीमंधर साहिब), ८६१९५ सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (मारी वीनतडी अवधारो), ८६७७२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. कनकविजय, मा.गु., गा.१३, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरस्वाम सेवक), ८८७२५(-) सीमंधरजिन स्तवन, मु. कनकसौभाग्य शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (प्रभुजी सीमंधरस्वामी), ८५६४८-३, ८८२७८ सीमंधरजिन स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (श्रीसीमंधरजिन साहिबा), ८९१८२-२ सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनसागरसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (स्वामि सीमंधर विनति), ८७५१४-२ सीमंधरजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.१५, पद्य, मूपू., (चांदलिया संदेशो), ८६८७६-५(+), ८६२१९ सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तारी मुद्राए मन मोह्), ८५९३७-५(+#) सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (बे कर जोडीन वीनउं), ८७२३२-२ सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., गा. १३, वि. १८वी, पद्य, मप., (स्वामी सीमंधर साहिबा), ८६९११ सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सुणो चंदाजी सीमंधर), ८६४९०-२ सीमंधरजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (ओलुडि महाविदेह), ८६३१२-१(+#) सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पुष्कलवइ विजये जयो), ८६४७२-१(+#), ८७१४६-४(+),८७२१७-२, ८७२३२-१(६) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (धन धन क्षेत्रविदेह), ८८२३१-२, ८९०८३-३ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रामचंद्र, पुहि., गा.८, पद्य, मूपू., (सीमंधरजी क्या जाणु), ८८०४५-३(#) सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (श्रीसीमंधर साहिबा हु), ८६३२८-१(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८२०, पद्य, स्था., (बे कर जोडि सीमिंदर), ८७७७६-२(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २७, वि. १८८६, पद्य, स्था., (श्रीसीमंदरसामी मारी), ८८८७४-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८४०, पद्य, मपू., (सीमंदर साहबा अरज सुण),८८७४३-१(+-) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मोल चडी रे मारा नाथ), ८८९५५-१(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (श्रीसीमंधरजी सुणजो), ८८८०८-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ७, गा. ४०, पद्य, मूप., (सुणि सुणि सरसती भगवत), ८५७०२(+), ८६१४३, ८६४४०६) सीमंधरजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, वि. १७वी, पद्य, मपू., (धन धन क्षेत्र महाविद), ८६९७८-४(+), ८८९१९-१(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., ढा.७, गा. ११५, वि. १७१३, पद्य, मप., (अनंत चोवीसी जिन नम), ८७६१६ सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (श्रीसीमंधरस्वामीजी), ८७१५०-२(-2) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज भलो दिन उगोजी),८९११६-२(2) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ओ मारा सीमंधरस्वामी), ८५७४७ सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (वालो मारो सीमंधर), ८६४२२ सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रीमंदर तुमे माहरा), ८८९७०-१ सीमंधरजिन स्तवन, रा., गा.१०, पद्य, मप., (श्रीमंदिरजिनजीने),८६९८१-२ For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. २१, पद्य, मृपू. (सुधन संसार जिनराज), ८७८५७-२ सीमंधरजिन स्तवन- आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु.. गा. ५६, वि. १५६२, पद्य, मूपू. (आज अनंता भवतणां कीधा), ८८५९८-१(#$) सीमंधरजिन स्तुति, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (मनसुध वंदो भावे भवि), ८५६५९-१ (+३), ८५६६७- २(क) , " सीमंधरजिन स्तुति, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, म्पू., (सीमंधर नित बंदीये), ८७२९०-४(५) सीमंधरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु.. गा. १. वि. १८वी, पद्य, म्पू. (सीमंधर जिनवर सुखकर) ८७१४६-५ (+) सीमंधरजिन स्तुति, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू. (प्रभुनाथ तुं तियलोक), ८६९९२(*) " सीमंधरजिन स्तुति, मु. नेत, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सीमंधर रे जिणवर पय प), ८९२७६-१(+), ८९०३७-१ सीमंधरजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४. वि. १९वी पद्य, भूपू (जंबुद्वीप विदेहमां), ८६३६१ सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( श्रीसीमंधर मुझनै), ८५९७८ (+), ८८२२०-२ (+#) सीमंधरजिन स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु. गा. ८, पद्य, मूपू (पूरव दिशि इशान कुण), ८८३९७-२(१), ८५७७५-३, ८८५०२-३ सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकलसुरासुर नरवर), ८८४५२-५ सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सीमंधर स्वामी यो), ८७६७५-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुकोशलमुनि गीत, मु. ज्ञानदास, मा.गु., गा. ६४, पद्य, म्पू, (सर्वसिद्धे सहिगुरु), ८७४४६ (*) , " सुकोशलमुनि सज्झाब, मु. सूरचंद, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (नयरी अयोध्या जयवती), ८७१८३-१ सुकोशलमुनि सज्झाव, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू (ऋषभजिन राजवंसि राजा), ८७८४३-२ सुकोशलसाधु रास, मु. कविवण, मा.गु., गा. २३, पद्य, म्पू., (प्रहि उठी रे भगवति), ८७४६०-१ सुखदेव सज्झाय, मा.गु., गा. २६, पद्य, म्पू, वै. (स्वर्ग थकी अवतयों), ८९०८७ " सुभद्रासती सज्झाय, मु. भानु मा.गु., गा. ४५, पद्य, मूपु. ( प्रथम नमुं ते सारद), ८५८४१(३) , सुगुनकुवर साध्वी सज्झाय, सा. केसरबाई, पुहिं. गा. ६, वि. १९४३, पद्य, वे (धन सतीयां सुजाण), ८५६७७-२ " सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सुगुरू पिछाणो एणे), ८६०२१ सुगुरु लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (नमुं नमुं में गुरू), ८६३२४-३(-) सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४५, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु पद पंकज नमी), ८७८१०, ८८५६७ सुदर्शनसेठ सज्झाय, सा. मनाबाई, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (सेठ सुदर्शण सरावग), ८६८६८-३ सुदर्शनसेठ सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू. (पंच विषयरस राती कपिल), ८७३४२(*) सुधर्मास्वामीगणधर गहुंली, क. अमृत कवि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (राजगृही उद्यानमां), ८६२९५ सुधर्मास्वामी गली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू, (पंचम गणधर वीरनारे), ८८६३९-३ सुधर्मास्वामी गहुंली, ग. राजेंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीर पटोधर शोभता सहिय), ८६९६९-२ सुधर्मास्वामी गीत, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (भरतक्षेत्रमे भलो), ८७६३५-१ सुधर्मास्वामी भास, रा. गा. ७, पद्य, मूपू., (कठडा आया गुरुजी), ८६०६४-१ सुधर्मास्वामी सज्झाय, मु. राम मुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (स्वामी सुधर्मा हो), ८६८३३-१ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८. वि. १८वी, पद्य, म्पू, (श्रीसुपार्श्व जिन), ८८२२२-१(३) सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नीरखी नीरखी तुंज), ८६४९३-२ सुबाहुकुमार संधि, उपा. पुण्यसागर, मा. गु, गा. ८९, ग्रं. १४०, वि. १६०४, पद्य, म्पू. (पणमि पास जिणेसर केरा), ८७४४५ (क) , सुबाहुकुमार सज्झाव, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १८९३, पद्य, म्पू., (हवे सुबाहुकुमार एम), ८६७४८ सुभद्रासती चौढालिया, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू (सिवसुखदायक लायक सदा), ८७७२९(+) , सुभद्रासती पंचढालीयो, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १८७०, पद्य, स्था., (सिवदायक लायक सदा), ८७१०१(+), ८७२४८($) सुभद्रासती रास - शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., डा. ४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि बीन), ८८३४१(०), ८७४२७-१ सुभद्रासती सज्झाय सीयल, मु. संधो, मा.गु., गा. २१, पद्य, वे. (मुनीवर सोधे इरया जीव), ८८६५४ ८६ २०८ (# ) "" For Private and Personal Use Only ५९३ Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९४ देशी भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सुमतिकुमति लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (हां रे तुं कुमति), ८८९४१-१(+) सुमतिजिन आरती, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (सुमतिजिणंदने आगले), ८८१४०(+) सुमतिजिन दोहा, मा.गु., दोहा. १, पद्य, मूपू., (सुमति सुमत भर दीजीइं), ८८२९८-२(+) सुमतिजिन पद, मु. गुणविलास, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (तेरी गति तुं ही जाणे), ८८९६४-७ सुमतिजिन पद, मु. चेतन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (दरसन दीजै सुमत), ८६७४२-३ सुमतिजिन स्तवन, मु. जसवंत-शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुमती जिणेसर साहिबा), ८७५४१-१ सुमतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मपू., (तुम हो बहु उपगारी), ८८०११-३(+#) सुमतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुमतिनाथ गुणस्युं), ८७१४६-१(+) सुमतिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पांचमा सुमतिजिणेसर), ८६४६३-४ सुमतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (प्रणमउ सुमतिजिणंद), ८७८५७-१ सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मप., (सुमतिजिणंद सुमति), ८७११८(+), ८७७२०(+#), ८६४२०६६) समतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (मोटा ते मेघरथ राय), ८६७०६-१(+), ८५९०८-१,८८२३९-१(2) सुमति विलाप सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (पडजो कुमतिगढना कांगर), ८७११९-१(+) सुरप्रभजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आवो रे मन मंदीर मोरे), ८८११७-१ सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (धन धन सुलसा साची), ८५६४५-१() सुविधिजिन गीत, मु. विनयचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (--), ८८८९८-१(+$) सविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (भोरी अमांणी आया रे), ८७४३६-५(2), ८८०९१-४(#) सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (मुजरा साहिब मेरा रे), ८८२४८-२ सुविधिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २, गा. २९, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (श्रीसुविधि जिणंद), ८५७३२(5) सुविधिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (ताहरी अजबशी योगनी), ८५९३७-६(+#) सुविधिजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुविधि जिन वळी वळी), ८७३९९-३ सविधिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (कीसै वीरह दे गाउरे), ८६८१९-७ सुविधिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (वांकै गढ फोज चढी है), ८६६०६-३, ८७९७६-२, ८८८४२-४(#) सुशीलासती चौढालियो, मु. सांवत ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४९, वि. १९०७, पद्य, श्वे., (सदगुरु पाय नमी कहुं), ८५७६८-१(4) सूतक विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पुत्र जन्म होणेंसे), ८८३१३ सूतक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुत्र जन्म्यां १०), ८६१६५-२(+), ८६४२३-१, ८६८३४-१(२) सूतक विचार *, मा.गु., गद्य, श्वे., (पुत्र जन्म्यां दिन१०), ८६२६९-२ सूतक विचार-जन्म, मा.गु., गद्य, श्वे., (पुत्र जन्मे त्यारे), ८७३०९ सूर्यकांता सज्झाय, मु. हीरविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसती स्वामीने विनवु), ८८५०१(+) सूर्य सलोको, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि करोने), ८७५५६-१, ८५९८६(#) सोमजीगुरुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सोमजी पूज विराजै), ८८०६८-१ सोमसुंदरसूरि गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. २९, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (गोयम गणह जंबूसामि), ८९२६१ सोरठदेशवर्णन पद, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., इतर, (मागी तो कागद मोकलो), ८६२६४-२(2) सौभाग्यपंचमी स्तोत्र, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. ३५, पद्य, भूपू., (सरसतिमात पसाउलै गुरु), ८८७४७ स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २४, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), ८७३३७, ८७३३५(२), ८६११०(), ८९२००(5) स्तवनचौवीसी, मु. गुणविलासजी, पुहिं., स्त. २४, वि. १७५७, पद्य, मूपू., (अब मोहीगे तारो), ८५७८९-२(5), ८६०८१(६) स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (मनमधुकर मोही रह्यो), ८७४८१($), ८६२३७(5) स्तवनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मपू., (आदिकरण अरिहंतजी ओलगड), ८७८२८(+#S) For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२१ स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मप., (ऋषभ जिणंदा ऋषभ), ८८५९२(+9), ८६०९३(#$) स्तवनचौवीसी , उपा. मेघविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मप., (श्रीजिन जगआधार), ८८६५९(+#$) स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, गा. १२१, वि. १८वी, पद्य, मपू., (जगजीवन जगवालहो), ८५६३८(+$), ८८०५२(+$), ८८९३८(+#), ८८७१९(5) स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूप., (ओलगडी आदिनाथनी जो), ८८३९६-१(६) स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., स्त. २४, वि. १९०६, पद्य, श्वे., (श्रीआदिश्वर सामी हो), ८८३२८($) स्तवनचौवीसी-१४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव नितु वंदिये), ८९३१२(६) स्त्रीचरित्र चौढालिया, श्राव. हीराचंद, रा., ढा. ४, वि. १८३६, पद्य, मप., (लख चोरासी मै भटकर), ८७००७(+) स्त्रीदर्गण सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (नारी हार हाथी नजी), ८८६८८(#), ८७९९६-१(-) स्त्रीरूप वर्णन कवित्त, पुहि., गा. ६, पद्य, जै., वै., इतर?, (तुझ मुख अति सारु), ८७५८९-२ स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (शुद्ध स्वरूपने ध्याउ), ८७०१३-५ स्थूलिभद्र एकवीसो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४२, वि. १५५३, पद्य, मूपू., (आव्यो आव्यो रे जलहर), ८९२१६ स्थूलिभद्र कोशा बारमासो, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.१७, पद्य, मपू., (कोश्या कहे सुणज्यो),८७२९९-४(६) स्थूलिभद्रकोशा सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मप., (आ चित्रसाली आ सुख), ८८३६६ स्थूलिभद्र गीत, मु. यशोवर्द्धन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (सखी मोहि थूलभद्र आणि), ८७२१८-३(+#) स्थूलिभद्र चौमासा, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (श्रावण आयो साहिबा रे), ८७५५१-२ स्थूलिभद्रनवरस सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ९, गा. ४९, पद्य, मूपू., (करी शृंगार कोशा कहि), ८७५२८() स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपति दायक सदा), ८८५९०-१(+), ८७१७२, ८८८२९, ८८४४४(#$) स्थूलिभद्र फाग, मु. मालदेव, मा.गु., गा. १०८, पद्य, श्वे., (पासजिणिंद जूहारीयइ), ८८६०४-१ स्थूलिभद्र बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (साहिबा रे मारा आसाढो), ८७९११-१ स्थूलिभद्र बारमासा, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चैत्र मास सोहमणो), ८८११८(2) स्थूलिभद्रमुनि गीत, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कोसवो ए मुझी मावडी), ८९०१७-१(+) स्थूलिभद्रमुनि चौमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रावण आयो वालहा),८७५५१-१ स्थूलिभद्रमुनि लेख, मु. देवविजय, मा.गु., गा. २१, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्री कोस्या), ८७१२२-१(+#) स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १८, वि. १८६२, पद्य, मूप., (सयल सुहंकर पासजिन), ८९३०९-१(+$), ८६०७३() स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. १७, पद्य, पू., (श्रीस्थूलिभद्र मुनि), ८८७८६ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १८२३, पद्य, मूप., (श्रीथूलीभद्र आगि करि), ८८५६०-१(+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (प्राणप्यारा हो), ८६४२४-५ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. तेजरुचि, मा.गु., गा. १२, पद्य, पू., (गुरु आदेश लही करी), ८८९०८-२ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (कोस्या कामिनि कहे), ८९३११(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सद्गुरु वचन शिर धरी), ८५९२७(+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूप., (बोलोनाजी बोलोनाजी), ८६९७० स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूप., (बे करजोडी वीनवं), ८९२५४ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, आ. भावहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (योग ध्यानमें जोडी), ८६५४०(+), ८७२३६-१ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. यशोवर्द्धन, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (कहै इम कोस्या नारि), ८७२१८-४(+#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (लाछलदे मात मल्हार बह), ८६५५६-२(+), ८६०१९, ८७५४०-१ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मुनिवर रहण चोमासे), ८८८३१-१(६) For Private and Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (वेस्याई वधाव्या), ८७२९९-३ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शुभविजय, मा.गु., गा.१६, पद्य, मूपू., (सरसति सामिनि मनि धरु), ८८०९९ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीतडली न किजीये), ८७८२३-५, ८८९०८-३ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, क. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंदलीया तुं वेहलो), ८७८४२-२, ८८९०८-१ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पं. सोमविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू., (च्यारि घडि मुझ कही), ८९२१७-१ स्थूलिभद्रमुनि सवैया, मु. भगोतीदास, पुहिं., गा. ९, पद्य, दि.?, (एक समें चारो शिष्य), ८७७८२-१ स्नात्र पूजा, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (पवित्र धोती पेरी रे), ८८०१५ स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ८, गा. ६०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), ८८१०५ स्याद्वादनय स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सार गुणधार सुखकार), ८८०११-१(+#), ८७३३६-१ स्याद्वाद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, म्पू., (--),८८२२८-३ स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, मूप., इतर, (हवै स्वप्न विचार), ८८१४२-१ स्वयंप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मपू., (स्वामी स्वयंप्रभ), ८६५०७-५(+$) हनुमंत मंत्र विधि संग्रह, मा.गु., गद्य, जै., वै., इतर?, (ॐ नमो आदेस गरु कु ॐ), ८७४५७-२(+) हनुमान ढाल, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (रावणनो चाकर सूग्रीव), ८७६५७(-) । हरिकेशीमुनि चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. १०, वि. १८२८, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धने आयरिय), ८७००२(4) हर्षचंद्र आचार्य गीत-गच्छाधिपति, मु. उगरचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (अरिहंतदेव नमी करी हे), ८८७१५-१ हर्षचंद्र आचार्य गीत-गच्छाधिपति, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (गणपतिदेव मनायकै सरसत), ८८७१५-२ हितविजयगुरु स्तुति, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सुगुरु वंदो चित्त), ८८३६२-५ हितशिक्षा चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, म्पू., (सुणि मिरगावती हवइ), ८७७७४($) हितशिक्षाबत्रीसी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (सकल विमल गुन कलित), ८६५३९(+), ८६७६९ हिसाबपंचविंशतिका, पुहि., गा. ३२, पद्य, मूप., इतर, (प्रथम इष्ट परमेष्टि), ८८२७२ हीरविजयसूरि कवित, क. सोम, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सबे भृग नयन चलीगु), ८८१९५-२ हीरविजयसूरि के १२ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (संवत १६४६ सोल छइताला), ८७७६५-१(#) हीरविजयसूरि गहुंली, मु. सुजस, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्री गुरुहीर के), ८५९७७-१२(+#) हीरविजयसूरि व खरतरगच्छ मतमतांतर प्रश्न, मा.गु., गद्य, मूपू., (अपरं श्रीहीरविजयसूरि), ८६६३८(+) हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. आनंदहर्ष, मा.ग., गा. १५, पद्य, मप., (गोयम गणहर पाय नमिजी), ८७९२२-१(+) हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. कुशलवर्द्धन, मा.गु., गा. १२, वि. १८वी, पद्य, मपू., (पणमिय पास जिणंद देव), ८८६०९-१(+) हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २०, पद्य, मपू., (बे कर जोडीजी वीन), ८६०३९-४, ८८६७९-२ हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसती मती आपोजी सारी), ८८९२२-१(+$) हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. हर्षसोम, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (हीर गुरु हीर गुरु), ८७५५९ हुकममुनि दीक्षा सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ११, पद्य, स्था., (सेर टोडा सुनी कल), ८८४६०-२ हेमकीर्तिगुरु गहुँली, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (हेमकीरतगुरु वांदस्या), ८५८३७-४(#) होलिकापर्व कथा, मा.गु., गद्य, मप., (जंबदीप भरतखंडि मालव), ८८४५४-२(+-) होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ४, गा. ५९, पद्य, श्वे., (प्रथम पुरुष राजा), ८७५१६(+), ८८०८६-१(+#), ८८९२६(+) होलिकापर्व सज्झाय, मु. जिनदास, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमीसर वनखंडरो वसीयो), ८६५८५-२(+) होली विचार दोहा, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., इतर, (पूर्व वाय वहंतो जोय), ८७५८०-३ For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RADHAN TOP Hamarea isa NCERAMERArrantiesciraca CHODARBsnastysterts idolratraT alk न आराधन Geomamrah airedनश्चटमय Funcमितिका aaरिशोरशिDिRUIm विविवाबिसमीतीमोगरा femelमाaama damo na ON Dyanerdesanitareer Rap Ramufनका samantamamalinone 13मेवाडयाnिtaanAS महावार कोबा. Sumadolaleasleml 卐 अमृतं तु विद्या तु Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail : gyanmandir@kobatirth.org/ Website : www.kobatirth.org ISBN: 978-81-89177-94-2 Set: 81-88177-00-1 For Private and Personal Use Only