Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 21
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 478
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२९ ८९२५४. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. सुरतनगर, जैदे., (२५.५X११, १०x३३). स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु, पंच, आदि वे करजोडी वीनवु अंतिः भाव० सिवराज रे लो, गाथा-३२. ८९२५५ (+) जिनचंदसूरि गीत संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२५.५X११, १५X४०). १. पे. नाम जिनचंद्रसूरि गीत, पृ. १अ. संपूर्ण. उपा. उदयतिलक, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि मुजरो दीजै हो सहगुरु; अंति: वंदता धाये सुख भरपूर, गाथा - ६. २. पे. नाम जिनचंद्रसूरि गीत, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपा. उदयतिलक, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि श्रीजिनरतन पटोधरु रे अति ज्या लगी दूर चिवंद, गाथा-८. ३. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. उदयतिलक, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि वडतखताधर विरजयो युग अंति सेवता पूगी मनह जगीस, गाथा- ६. ८९२५६. गजसुकुमालमुनि व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५x११, १५×५०). १. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाच, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकीनंदन; अंति: जोधाणे जोड जुगम गाई, गाथा- २३. २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय पू. १आ. संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चांगले एसी करना; अंति: जुग जेसा सुपना, गाथा - ११. ८९२५७. अजितजिन स्तवन, १८ पापस्थानक सज्झाय व औपदेशिक दूहो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. हुंडी अचतना, जैदे. (२६४१०.५, १६-१९५५). १. पे नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण, प्रले. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीपना भरत मे; अंति: जुगतसु जोडी दोनु हाथ, गाथा-३४. २. पे. नाम. १८ पापस्थानक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पच, आदि पापधानक अढारपुरा कर अंतिः रे जीवडला कहनीर थारी, गाथा- १६. पे नाम औपदेशिक दूहो. पू. १आ, संपूर्ण, औपदेशिक दुहा *, पुहिं., पद्य, आदि: जुवा रमै जे नर माया; अंति: तुज जुवा मत खेल रै, दोहा-१. ८९२५८. पार्श्वजिन स्तवन व पारवती छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२६४११, १०-१४४४३-६६ ). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण. " पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. अभयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता सेवका; अंति: अभयसोम० दायक भगति, יי ४६३ गाथा - ९. २. पे नाम. पारवती छंद, पू. १आ, संपूर्ण, पार्वती छंद, हिं., पद्य, आदि मेर सुता तुं जग जोय; अंतिः जय जय पार्वती योगिणी, गाथा - ९. ८९२५९. पार्श्वजिन बारमासो, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२४.५४१०, १३४४१). पार्श्वजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि श्रावण पावस उतर्यो, अंति: जिणहर्ष सदा आणंद रे, गाथा १३. ८९२६०. औपदेशिक सज्झाय व प्रास्ताविक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२६४११, १९३४). " १. पे. नाम. सज्झाय-उपशम उपदेश औपदेशिक, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-उपशम, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि भवभंजण रंजण जगदेव अति विजयभद्र० नही अवतरइ, गाथा - १२. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: शशि सोल कला रवि सहस; अंति: भए भए उस तीरथकी, गाथा-२. ८९२६१. सोमसुंदरसूरि सज्झाय, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५x१०.५, १६x४४). सोमसुंदरसूरि गुरुगुण सज्झाय, मा.गु, पद्य, वि. १५७६, आदि गोयम गणह जंबूसामि; अंतिः रिधि तीहं घरि मिलई, गाथा - २९. ८९२६२. (+) मधुविंदुनी सज्झाय व औपदेशिक पद संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., " (२५X१०, १६x४० ). For Private and Personal Use Only

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