Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 18
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 469
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. मेघमाला विचार सह बालावबोध, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मेघमाला विचार, आ. विजयप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: कार्तिकेमार्गशीर्ष; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ तक है.) मेघमाला विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: कार्तिक सुदि २ जे; अंति: (-), (वि. प्रतिशत की परिभाषा में वर्षाज्ञान का विचार पहले दे दिया गया है.) ७७३९३. ४७ एषणादोष विचार, अपूर्ण, वि. १८१८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. १६७-१६६(१ से १६६)=१, जैदे., (२५४११, १३४५७). ४७ एषणादोष विचार, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ग्रहणैषणा दोष से है व दायकदोष-७ तक लिखा है.) ७७४०१. (#) नवस्मरण-भयहरण स्तोत्र चतुर्थ स्मरण व अजितशांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४४५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अजितशांति की गाथा-४ तक है.) ७७४०३. (+) अंबाई छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. पं. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२,१४४२४). सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सेहजसुंदर० सरस्वती, ढाल-३, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) ७७४०४. आचारदिनकर-उदय-३४ शांत्यधिकार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १५४५२). आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सामान्य शांतिक फलकथन अपूर्ण से अभुक्तमूलनक्षत्रजात दोषशांतिविधान अपूर्ण तक है.) ७७४०५. साधुपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४१२, १६x४७). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणे पंचविहे पन्नत्त; अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय महाव्रत संबंधी अतिचार अपूर्ण तक है.) ७७४०६.(+) कर्मविपाक प्रथम कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पाठांतरगाथा संकेत हेतु गाथा के प्रारंभ में "पाठांतर" शब्द लाल स्याही में लिखा गया है., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ९४३३). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से गाथा-३३ अपूर्ण तक है.) ७७४०७. नेमराजिमती नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १२x२७). नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजेकुलचंदलो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., ढाल-३ गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) ७७४०८. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र व अब्भुट्टिओसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १२४२६). १. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ३अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह ,संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं, (पू.वि. "पोषधव्रतनइं विषइ जे अतिचार लागो होइ" पाठ से है.) २. पे. नाम. अब्भुट्ठिओसूत्र, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अब्भुट्टिओसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: (-), (पृ.वि. "अभिंतरदेव० इच्छं" पाठ तक है.) ७७४१०. (+) रत्नाकरपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १८१९, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. मु. मलूकचंद्र ऋषि (गुरु पं. वीरचंद्र पंडित); गुपि.पं. वीरचंद्र पंडित; पठ. मु. नवनिधिविजय (गुरु ग. लक्ष्मीविजय); गुपि. ग. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखक ने यह प्रत नागपुर में वाजौली ग्राम स्थित मुनि श्री नवनिधिविजय के लिये लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १४४४२). For Private and Personal Use Only

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