Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 18
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१८
उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-११२,
(पू.वि. ढाल-२ की गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मुनिमालिका स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.
ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: ऋषभ प्रमुख जिन पाय; अंति: चारित्रसिंघ० कल्याण, गाथा-३५. ३. पे. नाम. अध्यात्मगुणनिरूपण शंखेश्वरपार्श्व स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अलगी रहेने अलगी रहेन; अंति:
जिनगुण स्तुति लटकाली, गाथा-५. ४. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वस्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभु जगजीवन बंधुरे; अंति: चरणनी सेवा दीजे रे,
गाथा-८. ५. पे. नाम. जिनपूजा स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. ___ ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: इम पूजा भगतै करौ आतम; अंति: देवचंद० सूत्र मझार, गाथा-४. ६. पे. नाम. औपदेशिक हियाली, पृ. ५आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-समस्यागर्भित, मु. जिनहर्ष *, मा.गु., पद्य, आदि: डालै बैठी सूडली तस; अंति: जिनहर्ष० मत छै
रूडी, गाथा-४. ७७४४३. (+) नवपद स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १३४३५). १.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणि हो के कहे; अंति: कांति बहु सुख पाया, गाथा-५. २. पे. नाम. सिद्धचक्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल; अंति: महिमा जेणे जाणीयो, गाथा-५. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.
मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद वखाण्यौ; अंति: कांतिसा० सुख पाया रे, गाथा-१०. ४. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.
मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो रे भवी भावे; अंति: कांतिसागर निशदीश, गाथा-५. ५. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: भवियां श्रीसिधचक्र; अंति: ज्ञानविनोद० हो लाल, गाथा-७. ६. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधीइ; अंति: ज्ञान० प्रसिध लाल रे, गाथा-५. ७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: आराहो प्राणी साची नव; अंति: ज्ञान० द्यो नित मेवा, गाथा-५. ८. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण.
सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, पुहि., पद्य, आदि: गौतम पूछत श्रीजिनभाष; अंति: ज्ञान० करो भगवान की, गाथा-७. ९. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.
मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सांभलो; अंति: विनोद० भव आधार कें, गाथा-५. ७७४४४. (#) नेमीश्वरराजीमती द्वादशमासा, संपूर्ण, वि. १९वी, मार्गशीर्ष, १०, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. हिर, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. संध्या के समय प्रतिलेखन कार्य पूर्ण होने का उल्लेख है. पुष्पिका में प्रतिलेखक ने "मेनिहिडकेन" लिखा है जो संदिग्ध नाम लगता है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३६-४०). नेमराजिमती बारमासा, म. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: समरीइ सारदा नाम साचु; अंति: नेमिविजय०
पूरण उमाह, गाथा-५७.
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