Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 14
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५६४३. (+#) सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१०(१ से ६,९ से १२)=८, कुल पे. ५, अन्य. सा. पानबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४३७). १.पे. नाम. ते धम्मीयानी सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-धर्मीजीव, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: ते धमीया रे भाई ते; अंति: कवियण एह सहेनाणी रे, गाथा-८. २.पे. नाम. विजयशेठ अने विजयाशेठाणीनी लावणी, पृ. ७अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतरागदेवजिन नमु; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. झांझरियानुचोढालीयो, पृ. १३अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: (-); अंति: भावरतन होवै परमाणंदा, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-४ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. मोटी साधुवंदना, प्र. १४आ-१८अ, संपूर्ण. साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमो अनंत चौवीसी रिषभ; अंति: जेमलजी एह तरणनो दाव, गाथा-११२. ५. पे. नाम. चउद स्वप्न, पृ. १८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तिर्थंकर केरडी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक ट ५५६४४. (+) नवतत्त्व विचार, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४५). नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर प्रणमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ की गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ५५६४५. आठकर्मनी १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १७५८, आश्विन कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ८, प्रले.पं. उद्धव ऋषि (गुरु आ. सुखमल्लजी); गुपि. आ. सुखमल्लजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४४२). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी मतिज्ञान१; अंति: गुणस्थानकै सत्ता कही. ५५६४६. मृगापुत्र चौपाई व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०३, कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २, ले.स्थल. सेत्रावा, प्रले. पं. देवमाणिक्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ११४४०). १.पे. नाम. मृगापुत्र महामुनि माता प्रतिबोधनाधिकार, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. मृगापुत्र चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: परतिख प्रणमुवीर; अंति: जिनह० त्रिजग सुहामणौ, ढाल-१०, गाथा-१२८. २. पे. नाम. शेजयमंडण रुषभदेव स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आतमराम किण दिन; अंति: आणंद सुख पास्युरे, गाथा-११. ५५६४७. (+) चोवीस तीर्थंकरोनां नाम तथा पूर्ववर्तमानादि माहिती कोठो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, २५४२६). २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ५५६४८. (+) सूत्रव्याख्यान विधिशतक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १६-१०(१ से ४,६ से १०,१४)=६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४६३). सूत्रव्याख्यानविधिशतक, उपा. धर्मसागर गणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). सूत्रव्याख्यानविधिशतक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 ... 612