Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 14
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५६११. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३-३०(१ से ३०)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ५-७४३५-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन ७ गाथा ५७ अपूर्ण से अध्ययन १० गाथा २१ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५५६१५. संस्तारक प्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९००, भाद्रपद कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. मु. हरखचंद (गुरु मु. खुबचंद्र ऋषि, भट्टारकगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "भडायरीने सराय छ" लिखा है., त्रिपाठ. कुल ग्रं. १२६५, जैदे., (२४.५४११.५, ४-६४५८). संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण णमुक्कारं जिणवर; अंति: सुहसंकमणं मम दिंतु, गाथा-१२०. संस्तारक प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमद्वीरं नमस्कृत; अंति: सुख आपो इत्यर्थः. ५५६१७. खापराचोर चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९५, वैशाख कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. रिंछेलनगर, प्रले.ग. कांतिसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ११४३६). खापराचोर चौपाई, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: सरसति माता समरिए नित; अंति: मतिमंदिर सुख थाइ, ढाल-१७. ५५६२२. (+) चैतमतीनी चर्चा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, अन्य. श्रावि. तापीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७X४१). चैत्यमती की चर्चा, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: केतला कहे छे जे; अंति: माटे विचारी जो जो. ५५६२५. (+) धर्मबावनी, संपूर्ण, वि. १९वी, आश्विन कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. सगता; पठ. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १०४३३). अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, वि. १७२५, आदि: ॐकार उदार अगम अपार; अंति: नाम धर्मबावनी, गाथा-५७. ५५६२६. (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, अन्य. सा. गंगाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४११, १६४१९). साधुवंदना, मा.गु., गद्य, आदि: आचारांगे माहावीर; अंति: ता सीद्धना सुख पामीइ. ५५६२७. विदर्भी चौपाई, संपूर्ण, वि. १७३१, पौष शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२५४१०.५, १२४४०-५०). वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जईन धर्म मांहि जागता; अंति: पिमराज० नावै अवतार, गाथा-२०९. ५५६२८. (+#) षष्टिशतक, अपूर्ण, वि. १५९४, मध्यम, पृ. ११-२(१ से २)=९, पठ. ग. सोभा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ९४३८). षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पाढंतु जंतु शिवं, गाथा-१६१, (पू.वि. गाथा २२ अपूर्ण से है.) ५५६२९. (+#) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(६)=८, ले.स्थल. उदासर, प्रले. राजकुमार, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. किसी अन्य प्रत का हिस्सा प्रतीत होता है. अन्य पत्रानुक्रम ६१ से ६८ लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४३७). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम, द्वार-२२, श्लोक-१०२, संपूर्ण. ५५६३०. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८१९, भाद्रपद कृष्ण, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. वावनगर, प्रले. पं. मोहन; पठ.सा. रुखमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६x४३). श्रीपाल रास-लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: आदि प्रमुख जिन चोवीस; अंति: सुणतां सदा कल्याण, ढाल-२०, गाथा-२७१. . For Private and Personal Use Only

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