Book Title: Journal of Gyansagar Science Foundation 2013 04 01
Author(s): Sanjeev Sogani, Vimal Jain
Publisher: Gyansagar Science Foundation

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Page 2
________________ जीवन परिचय परम पूज्य सराककोद्धारक उपाध्याय रत्न मुनि श्री 108 ज्ञानसागर जी महाराज जन्म तिथि जन्म स्थान जन्म नाम पिता का नाम माता का नाम ब्रम्हचर्य व्रत क्षुल्लक दीक्षा क्षु.दीक्षोपरांत नाम :क्षुल्लक दीक्षा गुरू :मुनि दीक्षा :दीक्षा गुरू उपाध्याय पद वैशाखशुक्ल द्वितीय वि सं. 1 मई 1957 मुरैना (मध्यप्रदेश) श्री उमेश कुमार जी जैन श्री शांतिलाल जी जैन श्री अशर्फी देवी जैन सं. 2031, सन् 1974 सोनागिर जी 05-11-1976 क्षु श्री गुणसागर जी आचार्य श्री सुमतिसागर जी महाराज सोनागिर जी महावीर जयन्ती 31-03-1988 आचार्य श्री सुमतिसागर जी महाराज सरधना 30-11-1989, जिला मेरठ (उ.प्र.) ज्ञान की संपदा से समृद्ध उपाध्याय श्री 108 ज्ञानसागर जी महाराज का व्यक्तित्व एक ऐसे क्रांतिकारी साधक की अनवरत साधना यात्रा का वह अनेकान्तिक दस्तावेज है जिसने समय के नाट्य गृह में अपने सप्तभंगी प्रज्ञान के अनेकों रंग बिखेरे हैं। चम्बल के पारदर्शी नीर और उसकी गहराई ने मुरैना में 1 मई 1957 को इन महान तपस्वी का उदय उमेश के रूप में हुआ। मात्र १७ वर्ष की आयु में ब्रम्हचर्य व्रत और 19 वर्ष की आयु में ग्यारह प्रतिमा व्रत को धारण कर 12 वर्षों तक अपने जीवन को तप की अग्नि में तपाकर कुंदन बनाया। पूज्य पिता श्री शंतिलाल जी एवं माताश्री अशर्फी देवी जी की प्रथम संतान उमेश जी ने 5 नवम्बर 1976 को सिद्ध क्षेत्र सोनागिर में क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण कर अपने गुरू समाधिसम्राट आचार्य 108 श्री सुमतिसागर जी के चरणों में स्वयं को सदा-सदा के लिए समर्पित कर दिया। उमेश से रूपांतरित हुए क्षुल्लक गुणसागर जी ने कई वर्षों तक न्याय व्याकरण एवं सिद्धान्त के अनेक ग्रन्थों का चिंतन मनन अध्ययन किया। तपश्चरण की कठिन और बहुआयामी साधना अपनी पूर्ण तेजस्विता के साथ अग्रसर रही अपने उत्कर्ष की तलाश में महावीर जयंती के पावन प्रसंग पर 31 मार्च 1988 को क्षु. श्री ने आचार्य 108 श्री सुमतिसागर जी महाराज सें सिद्धक्षेत्र सोनागिर दतिया (म.प्र.) में निर्ग्रन्थ मुनि दीक्षा ग्रहण की और तब आविर्भाव हुआ उस युवा क्रांतिदृष्टा तपस्वी का जिसे मुनि ज्ञानसागर के रूप में युग ने पहचाना। अल्प समय पश्चात ही 30 जनवरी 1989 को सरधना जिला-मेरठ (उ.प्र.) में आचार्य 108 श्री सुमतिसागर जी ने पूज्य श्री ज्ञानसागर महाराज जी को उपाध्याय पद से सुशोभित किया। परम पूज्य उपाध्याय 108 श्री ज्ञानसागर जी वर्तमान युग के एक ऐसे युवा दृष्टा क्रांतिकारी विचारक, जीवन सर्जक और आचार निष्ट दिगम्बर संत है जिनके जनकल्याणी विचार जीवन की अनन्त गहराईयों, अनुभूतियो एवं साधना की अनंत ऊँचाईयों से उद्भूत हो मानवीय चिंतन के सहज परिष्कार में सन्नद्ध है। जीवन को उसकी समग्रता में जानने और समझने की कला से परिचित कराते हैं। पूज्य गुरुदेव के उपदेश हमेशा जीवन समस्याओं की गहनतम गुत्थियों के मर्म का संस्पर्श करते हैं। परम पूज्य उपाध्याय श्री ने समाज के प्रत्येक वर्ग के उत्थान के लिए अथक प्रयास किये हैं एवं निरंतर जारी हैं। बुद्धिजीवियों को एक मंच पर लाकर आध्यात्म एवं कर्तव्य दोनों पहलुओं को समानता से उजागर किया है एवं डॉक्टर, वकील, आई ए एस तथा विशेष रूप से वैज्ञानिकों को एक मंच पर लाकर जैन धर्म में छपे विज्ञान एवं उसकी उत्कृष्टता को फैलाया है। इन प्रयासों के लिए वैज्ञानिकों ने परम पूज्य उपाध्याय 108 श्री ज्ञानसागर जी महाराज को 31 जनवरी 2010 को "संसार उद्धारक" की उपाधि से अलंकृत किया है। उनके साधनामयी तेजस्वी जीवन को शब्दो की परिधि में बांधना संभव नहीं है। परम पूज्य उपाध्याय श्री के संदेश युगों तक संम्पूर्ण मानवता का मार्गदर्शन करें, हमें अंधकार से दूर प्रकाश के बीच जाने का मार्ग बताते रहें, हमारी जड़ता को इति कर हमें गतिशील बनाएं, सभ्यशालीन एवं सुसंस्कृत बनाते रहें, यही हमारे मंगलभाव है, हमारे चित्त की अभिव्यक्ति है, और हमारी प्रार्थना भी!

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