Book Title: Jivan Nirmata Sadguru Author(s): Hastimal Acharya Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 3
________________ 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 17 क्षमा रस में जो सरसाये, सरल भावों से शोभाये। प्रपंचों से विलग स्वामिन, पूज्यवर हों तो ऐसे हों।।3 ।। अगर।। विनयचन्द पूज्य की सेवा चकित हो देखकर देवा। गुरु भाई की सेवा के, करैय्या हों तो ऐसे हों।।4।। अगर।। विनय और भक्ति से शक्ति, मिलाई ज्ञान की तुमने। बने आचार्य जनता के, गुण सुभागी हों तो ऐसे हों।।5 ।। अगर।। गुरु-विनय (तर्ज-धन धर्मनाथ धर्मावतार सुन मेरी) श्री गुरुदेव महाराज हमें यह वर दो-21 रंग-रग में मेरे एक शान्ति रस भर दो।। टेर।। मैं हूँ अनाथ भव दुःख से पूरा दुखिया-21 प्रभु करुणा सागर तूं तारक का मुखिया। कर महर नज़र अब दीन नाथ तव कर दो-2 ||1 || रंग। ये काम-क्रोध-मद-मोह शत्रु हैं घेरे-2, लूटत ज्ञानादिक संपद को मुझ डेरे। अब तुम बिन पालक कौन हमें बल दो-2112 ।। रंग। मैं करुं विजय इन पर आतम बल पाकर-2, जग को बतला दूं धर्म सत्य हर्षाकर। हर घर सुनीति विस्तार कसै, वह जर दो-2 113 ।। रंग।। देखी है अद्भुत शक्ति तुम्हारी जग में-2 अधमाधम को भी लिये तुम्हीं निज मग में। मैं भी मांगू अय नाथ हाथ शिर धर दो-2114 ।। रंग।। क्यों संघ तुम्हारा धनी मानी भी भीरु-2, सच्चे मारग में भी न त्याग गंभीस। सबमें निज शक्ति भरी प्रभो! भय हर दो-2।।5 ।। रंग।। सविनय अरजी गुरुराज चरण कमलन में-2, कीजे पूरी निज विरुद जानि दीनन में। आनंद पूर्ण करी सबको सुखद वचन दो-2,116 || रंग। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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