Book Title: Jivan Nirmata Sadguru Author(s): Hastimal Acharya Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 1
________________ जीवन-निर्माता : सद्गुरु आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज परमश्रद्धेय आचार्यप्रवर श्री हस्तीमल जी महाराज के प्रवचन साहित्य एवं 'नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं' ग्रन्थ से यहाँ उनके गुरुविषयक कतिपय विचारों एवं भजनों का संकलन किया गया है। आचार्य श्री हस्ती ऐसे परम गुरुभक्त थे जो अपने गुरु के हृदय में निवास करते थे । आचार्य श्री के यहाँ प्रदत्त भजन प्रायः अपने गुरुदेव को समर्पित हैं। 1 सम्पादक 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 15 वास्तव में योग्य गुरु की ठोकरे खाने वाला ही योग्य शिष्य पूजनीय बन पाता है। आज कल के स्वेच्छाचारी शिष्यों के लिये यह बहुत ही ध्यान देने योग्य बात है। निर्ग्रन्थ गुरु के पास भक्त पहुँच जाए तो न तो गुरु उससे कुछ लेता है और न उसे कुछ देता ही है। वह तो एक काम करता है- अज्ञान के अंधकार को हटाकर शरणागत के ज्ञान चक्षु खोलता है, 'ज्ञानांजन-शलाका' के माध्यम से प्रकाश करता है और अज्ञान का जो चक्र घूमता है, उसको दूर करता है। Jain Educationa International देव का अवलम्बन परोक्ष रहता है और गुरु का अवलम्बन प्रत्यक्ष । कदाचित् ही कोई भाग्यशाली ऐसे नररत्न संसार में होंगे, जिन्हें देव के रूप में और गुरु रूप में अर्थात् दोनों ही रूपों में एक ही आराध्य मिला हो। देव और गुरु एक ही मिलें, यह चतुर्थ आरक में ही संभव है। तीर्थंकर भगवान् महावीर में दोनों रूप विद्यमान थे वे देव भी थे और गुरु भी थे। लेकिन हमारे देव अलग हैं और गुरु अलग। हमारे लिए देव प्रत्यक्ष नहीं हैं, परन्तु गुरु प्रत्यक्ष हैं। इसलिए यदि कोई मानव अपना हित चाहता है, तो उस मानव को सद्गुरु की आराधना करनी चाहिए। गुरु के अनेक स्तर हैं, अनेक दर्जे हैं, जिनको गुरु कहा जाता है, लेकिन वे सभी तारने में, मुक्त करने में सक्षम नहीं होते । आचार्य केशी ने बतलाया है कि आचार्य तीन प्रकार के होते हैंकलाचार्य, शिल्पाचार्य और धर्माचार्य । यदि कोई व्यक्ति कृतज्ञ स्वभाव का है और उपकार को मानने वाला है, तो उसको जिसने दो अक्षर सिखाए हैं, उसके प्रति भी आदर भाव रखेगा | जिसने थोड़ा सा खाने-माने लायक व्यवसाय प्रारम्भ में सिखाया है, उसको भी ईमानदार कृतज्ञ व्यक्ति बड़े सम्मान से देखेगा। इसी प्रकार जो शिल्पाचार्य हैं और उन्होंने अपने शिष्यों को शिल्प की शिक्षा दी है, उनके प्रति भी शिष्यों को आदरभाव रखना चाहिए। किन्तु कलाचार्य और शिल्पाचार्य को प्रिय है धन । जो भक्त जितनी ज्यादा भेंट- पूजा अपने गुरु के चरणों में चढ़ायेगा उसको कलाचार्य For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.Page Navigation
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