Book Title: Jivan Nirmata Sadguru Author(s): Hastimal Acharya Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 2
________________ जिनवाणी I 10 जनवरी 2011 || और शिल्पाचार्य समझेगा कि यही शिष्य मेरा अधिक सम्मान करता है, लेकिन धर्माचार्य की नजर में उसी शिष्य का सम्मान है, जिसने अपने जीवन को ऊँचा उठाने के लिए साधना की है। सद्गुरु होने की प्रथम शर्त यह है कि वह स्वयं निर्दोष मार्ग पर चले और अन्य प्राणियों को भी उस निर्दोष मार्ग पर चलावे। सद्गुरु की इसलिए महिमा है। 3 मनुष्य जैसा पुरुषार्थ करता है, वैसा भाग्य निर्माण कर लेता है। इतना जानते हुए भी साधारण आदमी शुभ मार्ग में पुरुषार्थ नहीं कर पाता। कारण कि जीवन-निर्माण की कुंजी सद्गुरु के बिना नहीं मिलती। जिन पर सद्गुरु की कृपा होती है, उनका जीवन ही बदल जाता है। आर्य जम्बू को भर तरुणाई में सद्गुरु का योग मिला तो उन्होंने 99 करोड़ की सम्पदा, 8 सुन्दर रमणियों एवं मातापिता के दुलार को छोड़कर त्यागी बनने का संकल्प किया। राग से त्याग की ओर बढ़कर उन्होंने गुरुपूजा का सही रूप उपस्थित किया। शिष्य के जीवन में गुरु ही सबसे बड़े चिकित्सक हैं। जीवन की कोई भी अन्तर समस्या आती है तो उस समस्या को हल करने का काम और मन के रोग का निवारण करने का काम गुरु करता है। कभी क्षोभ आ गया, कभी उत्तेजना आ गई, कभी मोह ने घेर लिया, कभी अहंकार ने, कभी लोभ .ने, कभी मान ने और कभी मत्सर ने आकर घेर लिया तो इनसे बचने का उपाय गुरु ही बता सकता * निर्ग्रन्थ, जिनके पास वस्तुओं की गाँठ नहीं होती- आवश्यक धर्मोपकरण के अतिरिक्त जो किसी तरह का संग्रह नहीं रखते हैं, वे ही धर्मगुरु हैं। साधुओं के पास गाँठ हो तो समझ लेना चाहिए कि ये गुरुता के योग्य नहीं हैं। कड़वी सीख देने वाले गुरु तत्काल खारे लगने पर भी भविष्य सुधारने वाले सच्चे मित्र हैं। दुर्जन की प्रेम-दृष्टि सन्मार्ग से च्युत करने वाली होने से बुरी है। जबकि सज्जन की त्रासपूर्ण तीखी बात भी हित भावना होने से भली है, हितकर है। गुरु-महिमा (तर्ज- कुंथु जिनराज तूं ऐसा) अगर संसार में तारक, गुरुवर हो तो ऐसे हों।।टेर।। क्रोध ओ लोभ के त्यागी, विषय रस के न जो रागी। सूरत निज धर्म से लागी, मुनीश्वर हों तो ऐसे हों।।1।। अगर॥ न धरते जगत से नाता, सदा शुभ ध्यान मन आता। वचन अघ मेल के हरता, सुज्ञानी हों तो ऐसे हों ।।2।। अगर ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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