Book Title: Jiravalli Mahatirth ka Aetihasik Vruttant
Author(s): Sohanlal Patni
Publisher: Z_Arya_Kalyan_Gautam_Smruti_Granth_012034.pdf

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Page 1
________________ श्रीजीरावल्लि महातीर्थ का ऐतिहासिक वृत्तान्त __ -प्रा० सोहनलाल पटनी जैन तीर्थों की परम्परा में श्री जीरावला पार्श्वनाथ तीर्थ का अपना विशिष्ट स्थान है। यह प्रसिद्ध मन्दिर अरावली पर्वतमाला की जीरापल्ली नाम की पहाड़ी की गोद में बसा हुआ है। यह बहुत ही प्राचीन मन्दिर है। हरे-भरे जंगलों से घिरा यह मन्दिर अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। सदियों से यह प्राचार्यों और धर्मनिष्ठ व्यक्तियों का शरण स्थल रहा है । यह जैन धर्म का सांस्कृतिक और धार्मिक केन्द्र रहा है। इसके पाषाणों पर अंकित लेख इसकी प्राचीनता और गौरव की गाथा गा रहे हैं। हर वर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु भक्तजन इस मन्दिर के दर्शन करके प्रेरणा और शक्ति का अर्जन करते हैं। आज भी प्रतिष्ठा शान्तिस्नात्र आदि शुभ क्रियाओं के प्रारम्भ में "ॐ ह्री श्री जीरावला पार्श्वनाथाय नमः" पवित्र मन्त्राक्षर रूप इस तीर्थाधिपति का स्मरण किया जाता है। इस तीर्थ की महिमा इतनी प्रसिद्ध है कि मारवाड़ व घाणेराव, नाडलाई, नाडोल, सिरोही एवं बम्बई के घाठकोपर आदि स्थानों में जीरावला पार्श्वनाथ भगवान की स्थापना हुई। जैन शास्त्रों में इस तीर्थ के कई नाम हैं-जीरावल्ली, जीरापल्ली, जीरिकापल्ली एवं जयराजपल्ली, . पर इसका नामकरण मेरी मान्यतानुसार इसके पर्वत जयराज पर ही हुआ है। जयराज की उपत्यका में बसी नगरी जयराजपल्ली। श्री जिनभद्रसूरिजी के शिष्य सिद्धान्तरुचिजी ने श्री जयराजपुरीश श्री पार्श्वनाथ स्तवन की रचना की है। इसी जयराजपल्ली का अपभ्रंश रूप आज जीरावला नाम में दृष्टिगोचर हो रहा है। सिरोही शहर से ३५ मील पश्चिम की दिशा में और भीनमाल से ३० मील दक्षिण पूर्व दिशा में जीरावला ग्राम में यह मन्दिर स्थित है। यह मरुप्रदेश का अंग रहा है। प्राचीन काल में जीरावल एक बहत बडा और समृद्धशाली नगर था। सांस्कृतिक दृष्टि से भी यह नगर बहुत समृद्ध था। यह देश परदेश के व्यापारियों के आकर्षण का केन्द्र रहा है और शूरवीरों की जन्म और कर्म भूमि रहा है। जीरावल का एक अपना विशिष्ट इतिहास है जिसकी झलक तीर्थमालाओं एवं प्राचीन स्तोत्रों के माध्यम से मिलती है। ___ जनश्रुति है कि इस भूमि पर महावीरस्वामी ने विचरण किया है। भीनमाल में वि. सं. १३३३ के मिले लेख से इसकी पुष्टि होती है। चन्द्रगुप्त मौर्य के भारतीय राजनीति के रंगमंच पर प्रवेश करने पर यह मौर्य साम्राज्य के अधीन था। अशोक के नाति सम्प्रति के शासनारूढ होने पर यह प्रदेश उसके राज्य के अधीन था। उसके समय में यहां जैन धर्म की बहुत उन्नति हुई। उसके समय में यहां कई जैन मन्दिरों के निर्माण का એમ શ્રીસર્ય કલ્યાણગૌતમસ્મૃતિ ગ્રંથ કહો. APRA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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